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Quality Summary In Hindi and English

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Quality Summary In Hindi and English

Soul of the Chapter (पाठ का सारांश)

Gessler Brothers and the Art of Boot Making

The author had known the shoemaker for many years because he used to make boots for his father. Mr Gessler was the shoemaker who lived with his elder brother in their shop in London. The shop didn’t have any signs apart from the name of the Gessler Brothers. He used to make boots only on orders. Once the author questioned Mr Gessler if it wasn’t awful to make those shoes perfectly fitting into the feet they were meant for. The man answered with a heavy German accent that it is an art.

Mr Gessler will be engrossed in his boot making art most of the time and won’t talk much with his customers. He strongly admired every piece of materials he used to work with. The boots made by Gessler brothers were of supreme quality and lasted very long. But in once occasion the author had a different experience. He complained about it to Mr Gessler. To this the old man promised that he will repair the shoe and if couldn’t he will return the money to the author.

Nir Gessler’s Grief and the Hard Times is his life

On one occasion while placing an order for a shoe, the author was a bit absent-minded. He was wearing a pair of boots bought in an emergency from a large shop. Mr Gessler looked carefully and pressed at a point where the left boot wasn’t comfortable. With a sad face he commented that it hurts the customers but still the big firms don’t have any self-respect. They lure customers with their advertisements and not with their works. Because of this Mr Gessler was losing on business. The author has heard such things for the first time from Mr Gessler he felt bad and ordered many pairs of boots instantly.

जेसलर बंधु तथा जूते बनाने की कला

लेखक उस जूते बनाने वाले को कई सालों से जानते थे, क्योंकि वे उनके पिता के लिए भी जूते बनाया करते थे। मिस्टर जेसलर अपने बड़े भाई के साथ लंदन की अपनी दुकान में रहते थे। दुकान की कोई और पहचान न थी, बस यह जेसलर बंधुओं के नाम से जानी जाती थी। वे आदेश मिलने पर ही जूते बनाया करते थे। एक बार लेखक ने मिस्टर जेसलर से पूछा था कि क्या उनको अलग-अलग नाप के पैरों के लिए जूते बनाना थोड़ा बुरा नहीं लगता? उस व्यक्ति ने एक भारी-भरकम जर्मन उच्चारण में जवाब दिया कि यह तो एक कला है।

ज्यादातर समय मिस्टर जेसलर जूते बनाने के काम में लगे रहते थे और अपने ग्राहकों से ज्यादा बात नहीं करते थे। अपने साथ काम में प्रयोग होने वाले प्रत्येक सामान से उनको लगाव था। जेसलर बंधुओं के द्वारा बनाए गए जूते बड़े मजबूत होते थे और बहुत लंबे समय तक चलते थे। एक बार लेखक का अनुभव थोड़ा विपरीत हो गया था। इसकी शिकायत उन्होंने मिस्टर जेसलर से की। इस पर उस बूढ़े व्यक्ति ने लेखक से वादा किया कि वह जूते की मरम्मत करके देंगे और अगर ऐसा नहीं हुआ, तो वे लेखक को पूरे पैसे वापस कर देंगे।

मिस्टर जेसलर का दुःख तथा उनके जीवन के मुश्किल क्षण

एक बार जूते बनाने के लिए आदेश देते समय लेखक थोड़े से खोए हुए थे, जो जूते उस समय लेखक ने पहने थे, वह उन्होंने जल्दबाजी में किसी बड़ी दुकान से खरीदे थे। मिस्टर जेसलर ने उस जूते को ध्यान से देखा तथा जहाँ से जूता चुभ रहा था, उस जगह को थोड़ा-सा दबाया। उदासी भरे चेहरे के साथ उन्होंने कहा कि कई बार ग्राहकों को परेशानी होती है, फिर भी बड़ी कंपनियाँ अपने आत्मसम्मान का मोल नहीं जानती हैं। वे ग्राहकों को अपने काम की बजाय विज्ञापन से लुभाते हैं। इन्हीं कारणों से मिस्टर जेसलर जैसे लोग अपना धंधा खो रहे थे। लेखक ने पहली बार ये बातें सुनी थीं और मिस्टर जेसलर के लिए उन्हें इतना अफसोस हुआ था कि उन्होंने कई जोड़े जूते उसी क्षण बनाने का आदेश ‘ दे दिया था।

After several months he went to their shop again, but this time he mistook Mr Gessler for his elder brother. After a while he realised his mistake and learnt that the elder brother had passed away. He again ordered many pair of shoes and soon after that he left for abroad. After returning back, he went to his favourite boot shop again. This time Mr Gessler looked more aged this time, only a year had passed but from his face it appeared as though he has covered a journey of a decade.

The Artist’s End but with a Bitter Truth

Mr Gessler failed to recognise the author. The author as usual placed his orders and this time the boots were better than ever. The author one evening went personally to thank Mr Gessler for such a splendid work. But the name plate was missing from the shop. He found an Englishman inside. The man informed him that Mr Gessler had passed away and they have taken up the shop. The man further added that Mr Gessler died of starvation.

The man used to make all the boots himself, he never allowed anyone else to touch them. Used the finest quality leather and worked hard day and night to complete the orders in time. He made the best boots in London with the finest leather yet he lost it to competition. Everything that he earned went on paying rent for the shop and on buying leathers. He skipped his meals working for hours for each pair of boots.

कई महीनों के बाद लेखक पुन: उनकी दुकान पर गए, पर मिस्टर जेसलर को उनके भाई की जगह समझ कर धोखा खा गए थे। कुछ देर बाद उन्हें पता चला कि बड़ा भाई अब इस दुनिया में नहीं रहा। उन्होंने फिर से कई जोड़ी जूतों का आदेश दे दिया और उसके थोड़ी देर बाद ही विदेश जाने के लिए निकल पड़े। वहाँ से लौटने के बाद वे अपनी पसंद . की जूते की दुकान पर पुन: गए। इस बार मिस्टर जेसलर कुछ ज्यादा ही उम्रदराज लग रहे थे। सिर्फ एक साल गुजरा था, पर ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने एक दशक का सफर पूरा कर लिया हो।

कलाकार का अंत पर एक कड़वी सच्चाई के साथ

मिस्टर जेसलर लेखक को पहचान नहीं पा रहे थे। लेखक ने हमेशा के जैसे अपने आदेश दिए और इस बार के जूते पहले से काफी बेहतर थे। एक शाम लेखक व्यक्तिगत रूप से मिस्टर जेसलर का शुक्रिया अदा करने गए, लेकिन दुकान के बाहर कोई नेम प्लेट नहीं दिखी। अंदर एक गोरा आदमी था। उस गोरे आदमी ने उन्हें बताया कि मिस्टर जेसलर की मौत हो चुकी है और उन लोगों ने वह दुकान हासिल कर ली है। उस गोरे आदमी ने आगे बताया कि मिस्टर जेसलर भूखों मर गए।

उन्होंने सारे जूते हमेशा स्वयं ही बनाए थे और कभी भी किसी को उन्हें छूने नहीं दिया था। हमेशा उत्तम क्वालिटी का सामान उपयोग में लाते थे और आदेशों को समय पर पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत किया करते थे। लंदन में सबसे अच्छे जूते वही बनाते थे, फिर भी वह प्रतियोगिता में हार गए थे। जो कुछ भी वे कमाते थे, वह दुकान का किराया भरने में और अच्छी गुणवत्ता वाले चमड़े को खरीदने में खर्च हो जाता था। वे अपने भोजन को भी काम पूरा करने के चक्कर में छोड़ जाते थे, ताकि जूतों का जोड़ा समय पर तैयार किया जा सके।

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