NCERT Solutions for Class 6 Hindi Bal Ramkatha बाल रामकथा is part of NCERT Solutions for Class 6 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 6 Hindi Bal Ramkatha बाल रामकथा.
Board | CBSE |
Textbook | NCERT |
Class | Class 6 |
Subject | Hindi |
Chapter Name | बाल रामकथा |
Number of Questions Solved | 32 |
Category | NCERT Solutions |
NCERT Solutions for Class 6 Hindi Bal Ramkatha बाल रामकथा
पाठ्यपुस्तक का प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
पुस्तक के पहले अध्याय के पहले अनुच्छेद में लेखक ने सजीव ढंग से अवध की तसवीर प्रस्तुत की है। तुम भी अपने आसपास की किसी जगह का ऐसा ही बारीक चित्रण करो। यह चित्रण मोहल्ले के चबूतरे, गली की चहल-पहल, सड़क के नज़ारे आदि किसी का भी हो सकता है जिससे तुम अच्छी तरह परिचित हो।
उत्तर-
मैं अपने गाँव के माहौल से अच्छी तरह परिचित हूँ। यहाँ का सरल, सहज तथा घटना रहित जीवन ही यहाँ की मुख्य विशेषता है। यहाँ का वातावरण शांत तथा शहर के कोलाहल से बहुत अलग है। पक्षियों की चहचहाहट, गाय-भैंसों के सँभाने की ध्वनि तथा बच्चों की हँसी का शोर ही यहाँ की शांति को भंग करता है। प्रकृति से निकटता यहाँ के परिवेश की खासियत है। दूर-दूर तक खेतों में फैली हुई हरियाली और आम के बगीचे यहाँ आकर्षण के केंद्र हैं। बसंत में हवा में फैली महक हो या बरसात का कीचड़ और पानी, गर्मी की सुहानी शाम हो या जाड़े की गुनगुनी धूप-वाकई सही मायनों मे गाँव में ही मौसम का मजा लिया जा सकता है। मेरे गाँव में अब अधिकांश घर पक्के बन चुके हैं। हाँ, अभी कुछ घरों की छत खपड़े की या फूस की है। गाँव में सड़क बन चुकी है और स्कूल भी खुल चुके हैं। बिजली भी है, पर कभी-कभी ही आती है।
एक तरह से अच्छा भी है, कम से कम समाज और प्रकृति से निकटता तो बनी हुई है। शहरों में यदि इसका अभाव है, तो इसका मुख्य कारण कहीं न कहीं बिजली भी है। बच्चे दोस्तों के साथ खेलने के बदले कंप्यूटर पर गेम खेलना अधिक पसंद करते हैं। मेरे गाँव में ऐसा नहीं है। शाम को गाँव के चबूतरे पर बैठ कर लोग अपने सुख-दुख बाँटते हैं, गाँव की समस्याओं पर चर्चा करते हैं। घर के छोटे-बड़े झगड़े बुजुर्ग आपस में मिलकर सुलझा लेते हैं और अगर कोई बड़ी समस्या हो तो पंचायत में उसके निदान को प्रयास होता है। मेरे गाँव में ज्यादातर लोग कृषक तथा मजदूर हैं। कुछ लोग अध्यापन के कार्य से भी जुड़े हुए हैं। मेरा गाँव मुझे बहुत प्रिय है।
प्रश्न 2.
विश्वामित्र जानते थे कि क्रोध करने से यज्ञ पूरा नहीं होगा। इसलिए वे क्रोध को पी गए। तुम्हें भी कभी-कभी गुस्सा आता होगा। तुम्हें कब-कब गुस्सा आता है और उसका क्या परिणाम होता है?
उत्तर-
हाँ, मुझे गुस्सा तब आता है जब मुझसे कोई झूठ बोले, मेरी बात न माने या मुझसे पूछे बिना मेरी चीजों को हाथ लगाता है तो मुझे गुस्सा आता है। मैं गुस्से को काबू करने का काफ़ी प्रयत्न करता हूँ लेकिन उसे रोक नहीं पाता। इसका परिणाम . मुझे नुकसान के रूप में उठाना पड़ता है। इसका परिणाम मुझे डाँट सुननी पड़ती है या फिर किसी से झगड़ा के रूप में परिवर्तित हो जाता है। मेरे कई मित्रों से गुस्से के कारण संबंध खराब हो गए। यहाँ तक कि बोल-चाल भी बंद हो गए।
प्रश्न 3.
राम और लक्ष्मण ने महाराज दशरथ के निर्णय को खुशी-खुशी स्वीकार किया। तुम्हारी समझ में इसका क्या कारण रहा होगा?
उत्तर-
राम और लक्ष्मण एक आदर्श पुत्र थे। उन्होंने समाज के सामने जो आदर्श और मूल्य स्थापित किए, उसी की वजह से आज भी उनकी पूजा की जाती है। वे अपने पिता के वचनों का मान रखना चाहते थे। वह नहीं चाहते थे कि उनके कारण कोई उनके पिता को झूठा या वचन से फिरने वाला कहे। उन्हें अपने वंश की परंपरा का भी ध्यान था। रघुकुल में वचन का मान रखने के लिए उनके पूर्वजों ने प्राणों की बाजी तक लगा दी थी। उन्हें तो पिता के वचन कायम रखने के लिए केवल वन में ही वास करना था। उनके पिता वृद्ध हो चुके थे। वे उन्हें दुखित भी नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने उनके निर्णय को खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया।
प्रश्न 4.
विश्वामित्र ने कहा, ”ये जानवर और वनस्पतियाँ जंगल की शोभा हैं। इनसे कोई डर नहीं है।” उन्होंने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर-
जानवर और वनस्पतियाँ जंगल की शोभा हैं। वनस्पतियाँ ही तो जंगल का आधार हैं। वनस्पतियों के बिना जंगल की कल्पना नहीं की जा सकती। प्रकृति का पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए भी ये सहायक होते हैं। धरती पर जीवन की उपस्थिति के लिए ये आवश्यक हैं। अतः ये हमारे जीवन साथी हैं और हमें जानवरों से कोई खतरा नहीं होता। ये प्रकृति की शोभा बढ़ाते हैं। जानवरों से रौनक बनी रहती है। अतः इनके महत्त्व को समझते हुए विश्वामित्र ने कहा कि ये जंगल की शोभा हैं। इनसे नहीं डरना चाहिए।
प्रश्न 5.
लक्ष्मण ने शूर्पणखा के नाक-कान काट दिए। क्या ऐसा करना उचित था? अपने उत्तर का कारण बताओ।
उत्तर-
राम और लक्ष्मण ने शूर्पणखा का विवाह-प्रस्ताव ठुकरा दिया था, इसलिए क्रोधित शूर्पणखा सीता पर झपटी । फलस्वरूप लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट लिए। शूर्पणखा एक राक्षसी थी फिर भी एक स्त्री को इंस प्रकार अपमानित करना सही नहीं ठहराय जा सकता। उसे दंडित करने के अन्य उपाय भी थे। यदि कोई स्त्री गलत कर्म करती है, तो उसे दंडित अवश्य किया जाए परंतु ऐसे किसी दंड के पक्ष में मैं नहीं हूँ जिससे उसके सम्मान को ठेस पहुंचे।
प्रश्न 6.
विश्वामित्र और कैकेयी दोनों ही दशरथ को रघुकुल के वचन निभाने की प्रथा याद दिलाते हैं। तुम अपनी मदद से बताओ कि क्या दिया हुआ वचन हमेशा संभव होता है।
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं कि दिया हुआ वचन सदैव निभाना संभव नहीं होता है। यह कभी-कभी परिस्थितियों तथा मज़बूरियों पर निर्भर करता है। मुझे याद है कि मैंने अपने एक मित्र को सदैव मदद करने का वचन दिया था। एकबार उस मित्र को कई सालोंबाद धन की आवश्यकता हुई। उसने मेरे से कुछ रुपये माँगे, पर जब तक मैं गरीब हो चुका था। मेरी आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी। आर्थिक विपन्नता के कारण मैं अपना वचन नहीं निभा पाया।
प्रश्न 7.
मान लो कि तुम्हारे स्कूल में रामकथा को नाटक के रूप में खेलने की तैयारी चल रही है। तुम इस नाटक में उसी पात्र की भूमिका निभाना चाहते हो जो तुम्हें सबसे ज़्यादा अच्छी, दिलचस्प या आकर्षक लगती है। वह पात्र कौन सा है और क्यों?
उत्तर-
वैसे तो रामकथा के सभी पात्र अनुकरणीय हैं परंतु हनुमान का चरित्र अत्यंत दिलचस्प तथा आकर्षक है। हनुमान में वीरता साहस, बुधि तथा पराक्रम कूट-कूटकर भरा हुआ है। राम के प्रति उनकी भक्ति अनन्य है। वह श्रीराम के सच्चे सेवक हैं। उनकी सहायता के बिना राम सीता को पुनः प्राप्त नहीं कर पाते। इन सारी विशेषताओं के बाद भी हनुमान का स्वभाव सरल है। वह अपनी क्षमताओं से अनजान हैं तथा उन्हें स्वयं पर जरा भी गुमान नहीं है। अतः हनुमान की भूमिका निभाना मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा।
प्रश्न 8.
सीता बिना बात के राक्षसों के वध के पक्ष में नहीं थीं, जबकि राम राक्षसों के विनाश को ठीक समझते थे। तुम किससे सहमत हो-राम से या सीता से? कारण बताते हुए उत्तर दो।
उत्तर-
सीता बिना बात के राक्षसों के वध के पक्ष में नहीं थीं, जबकि राम राक्षसों के विनाश को आवश्यक मानते थे। इस दोनों विचारों में राम के विचारों से सहमत हूँ। कारण यह था कि राक्षस अपने बुरे कामों से बाज नहीं आते। राक्षस अकारण निर्दोष ऋषि मुनियों का वध करते थे। उनका अत्याचार स्त्रियों तथा बच्चों पर कहर बनकर टूटता था। उनमें दया के भाव का नामोनिशान तक न था। समाज को उनके अत्याचारों से बचाने के लिए उनका सफाया करना आवश्यक था। अतः उपरोक्त परिस्थितियों को देखकर मैं राम के विचारों से सहमत हूँ।
प्रश्न 9.
रामकथा के तीसरे अध्याय में मंथरा कैकेयी को समझाती है कि राम को युवराज बनाना उसके बेटे के हक में नहीं है। इस प्रसंग को अपने शब्दों में कक्षा में नाटक के रूप में प्रस्तुत करो।
उत्तर-
मंथरा – अरी मूर्ख रानी! तेरे सर पर विपदा आ पड़ी है और तू घोड़े बेचकर सो रही है?
कैकेयी – क्या हुआ? क्या बात है?
मंथरा – कल राम का राज्याभिषेक होने वाला है।
कैकेयी – यह तो खुशी की बात है।
मंथरा – तेरी बुधि फिर गई है। यह तेरे और भरत के विरुद्ध राजा दशरथ का षड्यंत्र है।
कैकेयी – यह कैसी उलटी बात है। राज तो बड़े बेटे को ही मिलता है और फिर राम मुझसे कितना स्नेह करते हैं।
मंथरा – मेरी भोली रानी! यह सब एक छलावा है। राम के युवराज बनते ही तुम्हारी और भरत की हैसियत एक दास की हो जाएगी।
कैकेयी – क्या सचमुच ऐसा होगा? अब मैं क्या करूं? मंथरा – जाकर दशरथ को अपने वचनों की याद दिलाकर भरत के लिए राज और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँग लो।
कैकेयी – परंतु मैं यह सब करूंगी कैसे?
मंथरा – तुम मैले कपड़े पहन कर कोपभवन चली जाओ। राजा आएँ तो उनसे बात मत करना। जब वह मनाने लगें तो अपने दोनों वचन माँग लेना।
कैकेयी – मैं यही करूंगी और महाराज का षड्यंत्र किसी भी तरह सफल नहीं होने देंगी।
प्रश्न 10.
तुमने ‘जंगल और जनकपुर’ तथा ‘दंडक वन में दस वर्ष’ में राक्षसों द्वारा मुनियों को परेशान करने की बात पढ़ी। राक्षस ऐसा क्यों करते थे? क्या यह संभव नहीं था कि दोनों शांतिपूर्वक वन में रहते? कारण बताते हुए उत्तर दो।
उत्तर-
राक्षस सदैव विध्वंस करते रहते थे और आतंक फैलाते रहते थे। शांतिपूर्वक रहना राक्षसों के स्वभाव के विपरीत था। वे निर्दोष प्राणियों की हत्या करते रहते थे। इसके विपरीत ऋषि मुनियों की संस्कृति भिन्न थी। ऋषि-मुनि तो जंगल में आश्रमों में शांतिपूर्वक रहते थे। पर राक्षसों की प्रवृत्ति ऋषि-मुनियों के यज्ञ ‘भंग करने की थी। इस तरह राक्षसों की संस्कृति ऋषि मुनियों की संस्कृति से बिलकुल विपरीत थी। इसलिए वे सभी एक साथ मिलजुलकर नहीं रह सकते थे।
प्रश्न 11.
हनुमान ने लंका से लौटकर अंगद और जामवंत को लंका के बारे में क्या-क्या बताया होगा?
उत्तर-
हनुमान ने लंका से लौटकर अंगद और जामवंत को उस राक्षस नगरी की सुंदरता के विषय में बताया होगा। वहाँ के भव्य भवनों तथा सुवासित उद्यानों का वर्णन किया होगा। उन्होंने बताया होगा कि लंका की इमारतों के प्राचीर और कंगूरे कैसे आकाश छूते हैं। हनुमान ने उन्हें सीता की जानकारी दी होगी कि वह रावण की अशोक वाटिका में बंदी हैं तथा हर समय राक्षसों से घिरी रहती हैं। हनुमान ने इसकी चर्चा भी अवश्य की होगी कि कैसे उन्होंने अपनी जलती हुई पूँछ से सोने की लंका को आग की लपटों के हवाले कर दिया। रावण से अपनी मुलाकात का वर्णन भी उन्होंने जरूर किया होगा।
प्रश्न 12.
तुमने बहुत सी पौराणिक कथाएँ और लोक कथाएँ पढ़ी होंगी। उनमें क्या अंतर होता है? यह जानने के लिए पाँच पाँच के समूह में कक्षा के बच्चे दो-दो पौराणिक कथाएँ और लोक कथाएँ इकट्ठा करें। कथ्य (कहानी), भाषा आदि के अनुसार दोनों प्रकार की कहानियों का विश्लेषण करें और उनके अंतर लिखें।
उत्तर-
पौराणिक कथाएँ और लोक कथाएँ धार्मिक मान्यताओं पर आधारित होती हैं। उनमें कोई-न-कोई देवता का संबंध जुड़ा होता है। लोक कथाएँ वे कथाएँ हैं जो लोक जीवन में प्रचलित हैं। लोक कथाएँ प्रायः आम बोलचाल की भाषा में लिखी जाती हैं। श्रवण कुमार, नचिकेता, हरिश्चंद्र आदि लोक कथाओं के उदाहरण हैं जबकि विजय नारायण सिंह द्वारा संकलित ‘दुष्ट न छोड़े दुष्टता’ ‘डेढ़ मित्र’ और चतुर मज़दूरनी लोक कथाएँ हैं। पौराणिक कथाएँ संस्कृत में या हिंदी में लिखी गई हैं। वहीं लोक कथाएँ साधारण जन में प्रचलित कहानियाँ हैं, जिनमें जन-जीवन से जुड़े प्रसंग होते हैं।
प्रश्न 13.
क्या होता यदि-
(क) राजा दशरथ कैकेयी की प्रार्थना स्वीकार नहीं करते।
(ख) रावण ने विभीषण और अंगद का सुझाव माना होता और युद्ध का फैसला न किया होता
उत्तर-
(क) यदि राजा दशरथ कैकेयी की प्रार्थना स्वीकार नहीं करते तो जैसा कि कैकेयी ने उनसे पहले ही कहा था, वह अपने प्राण त्याग देतीं। यदि ऐसा न भी होता तो भी दशरथ रघुकुल के पहले राजा होते जो अपने वचन से फिर गए होते। उनका वह सम्मान न रहता जो उनकी मृत्यु के बाद भी उन्हें मिलता रहा। राम को वन नहीं जाना पड़ता। उनका राज्याभिषेक हो गया होता। वो अपना राज बहुत अच्छे से चलाते। परंतु फिर भी राम कथा का उतना प्रचलन न होता क्योंकि यह जिन कारणों से आज पढ़ी सुनी और देखी जाती है, वे कारण उत्पन्न न होते। जिन आदर्शों और मूल्यों की स्थापना रामायण में की गई है, संसार उस उदाहरण से वंचित रह जाता।
(ख) यदि रावण ने विभीषण और अंगद का सुझाव माना होता और युद्ध का फैसला न किया होता तो वह सीता को राम को लौटा देता। रावण और राम की सेना के बीच वह भयानक युद्ध न हुआ होता। असंख्य वीरों को अपने प्राण ने गॅवाने पड़ते तथा रावण की असमय मृत्यु भी न हुई होती।
प्रश्न 14.
नीचे कुछ चारित्रिक विशेषताएँ दी गई हैं और तालिका में कुछ पात्रों के नाम दिए गए हैं। प्रत्येक नाम के सामने उपयुक्त विशेषताओं को छाँटकर लिखो।
पराक्रमी, साहसी, निडर, पितृभक्त, वीर, शांत, दूरदर्शी, त्यागी, लालची, अज्ञानी, दुश्चरित्र, दीनबंधु, गंभीर, स्वार्थी, उदार, धैर्यवान, अड़ियल, कपटी, भक्त, न्यायप्रिय और ज्ञानी।
- राम …….
- सीता ……..
- लक्ष्मण ……..
- विभीषण ……….
- हनुमान ……..
- कैकेयी ………
- रावण ………
- भरत ……..
उत्तर-
- राम – पराक्रमी, साहसी, निडर, पितृभक्त, वीर, शांत, त्याग, दीनबंधु, उदार, गंभीर, धैर्यवान, न्यायप्रिय और ज्ञानी।
- सीता – त्याग, उदार, अड़ियल, शांत
- लक्ष्मण – साहसी, पराक्रमी, निडर, पितृभक्त, वीर, त्यागी, दूरदर्शी, भक्त, ज्ञानी।
- विभीषण – दूरदर्शी, साहसी, निडर, वीर, त्याग, गंभीर, भक्त, ज्ञानी।
- हनुमान – पराक्रमी, वीर, साहसी, बली, निडर, शांत, धैर्यवान, भक्त, ज्ञानी।
- कैकेयी – लालची, अज्ञानी, अड़ियल, स्वार्थी, कपटी।
- रावण – घमंडी, दुश्चरित्र, पराक्रमी, साहसी, निडर, अज्ञानी, अड़ियल, कपटी।
- भरत – त्यागी, भक्त, ज्ञानी, गंभीर, उदार, धैर्यवान, न्यायप्रिय, उदार।
प्रश्न 15.
तुमने अपने आस-पास के बड़ों से रामायण की कहानी सुनी होगी। रामलीला भी देखी होगी। क्या तुम्हें अपनी पुस्तक रामकथा की कहानी और बड़ों से सुनी लक्ष्मण की कहानी में कोई अंतर नज़र आया? यदि हाँ तो उसके बारे में कक्षा में बताओ।
उत्तर-
बड़ों से सुनी गई रामकथा तथा रामलीला में राम के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाओं का ही उल्लेख मात्र होता है परंतु पुस्तक ‘बाल रामकथा’ की कहानी से हमें राम के जीवन के हर छोटे-बड़े घटनाक्रम की जानकारी मिली। इस पुस्तक के माध्यम से हमें श्रीराम के जीवन का विस्तृत परिचय प्राप्त हुआ।
प्रश्न 16.
रामकथा में कई नदियाँ और स्थानों के नाम आए हैं। इनकी सूची बनाओ और एटलस में देखो कि कौन-कौन सी नदियाँ और जगहें अभी भी मौजूद हैं। यह काम तुम चार-चार समूह में कर सकते हो।
उत्तर-
रामकथा में आए नदियों तथा स्थानों के नाम निम्नलिखित हैं-
नदियों के नाम- सरयू, गंगा, गोदावरी, गंडक तथा गोमती और सोन।
स्थानों के नाम- इस कथा में स्थानों के नाम हैं-अयोध्या, मिथिला, चित्रकूट, किष्किंधा, कैकेय राज्य, दंडक वन, श्रृंगवेरपुर, विंध्याचल, प्रयाग और लंका। ये सारे स्थल अपने पुराने या नए नामों के साथ आज भी भारत भूमि पर उपस्थित हैं। छात्र एटलस में इन्हें हूँढ़ने का प्रयास करें।
प्रश्न 17.
यह राम कथा वाल्मीकि रामायण पर आधारित है। तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के बारे में जानकारी इकट्ठी करो और उसे चार्टपेपर पर लिखकर कक्षा में लगाओ। जानकारी प्रस्तुत करने में निम्नलिखित बिंदु हो सकते हैं|
राम कथा का नाम, रचनाकार का नाम, भाषा/प्रांत
उत्तर-
कथा का नाम – रामचरित मानस
रचनाकार – तुलसीदास
भाषा/प्रांत – अवधी अवध (पूर्वी उत्तर प्रदेश)
छात्र यह जानकारी चार्ट पेपर पर दर्शाएं।
प्रश्न 18.
“नगर में बड़ा समारोह आयोजित किया गया। धूमधाम से।” (पृष्ठ-3)
‘एक दिन ऐसी ही चर्चा चल रही थी। गहन मंत्रणा’। (पृष्ठ-4)
‘पाँच दिन तक सब ठीक-ठाक चलता रहा। शांति से निर्विघ्न।’ (पृष्ठ-10)
रामकथा की इन पंक्तियों में कुछ वाक्य केवल एक या दो शब्दों के हैं। ऐसा लेखक ने किसी बात पर बल देने के लिए, उसे प्रभावशाली बनाने के लिए या नाटकीय बनाने के लिए किया है। ऐसे कुछ और उदाहरण पुस्तक से छाँटो और देखो कि इन एक-दो शब्दों के वाक्य को पिछले वाक्य में जोड़कर लिखने से बात के असर में क्या फर्क पड़ता है। उदाहरण के लिए-
‘पाँच दिन तक सब शांति से निर्विघ्न और ठीक-ठाक चलता रहा।
उत्तर-
- वे चलते रहे। नदी के घुमाव के साथ-साथ। नदी पार जंगल था। घना दुर्गम।
- महाराज पलंग पर पड़े हैं। बीमार। दीन-हीन।
- वे गंगा किनारे पहुँच गए। श्रृंगवेरपुर गाँव में।
छात्र उपर्युक्त उदाहरणों में दोनों वाक्यों के बीच के अंतर पर ध्यान दें।
अन्य पाठेतर हल प्रश्न
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
रामायण के रचयिता कौन थे?
उत्तर-
रामायण के रचयिता आदिकवि वाल्मीकि थे।
प्रश्न 2.
‘बाल रामकथा’ किसके द्वारा लिखी गई है?
उत्तर-
‘बाल रामकथा’ श्री मधुकर उपाध्याय द्वारा लिखी गई है।
प्रश्न 3.
राम के चरित्र की विशेषता अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
राम को मर्यादा पुरु षोत्तम राम कहा जाता है। वह एक आदर्श पुरुष, भाई तथा राजा थे। राम पितृभक्त, धैर्यवान, साहसी, न्यायी, पराक्रमी, त्यागी तथा उदार थे। उनका चरित्र आज हमारे जीवन में अनुकरणीय है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
राम कथा से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर-
राम कथा से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें राम की तरह अपने माता-पिता, गुरुजनों की भावनाओं को पूरा-पूरा सम्मान करना चाहिए। इस कथा से हमें साहस और बुधि से प्रत्येक कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा मिलती है। विपरीत परिस्थितियों में धीरज बनाए रखना भी इस कथा के माध्यम से हम सीखते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि रामकथा हमारे जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण प्रेरणा का स्रोत है।
प्रश्न 2.
यदि आप राम के चारित्रिक गुणों को अपना लें तो आपके जीवन में क्या परिवर्तन आ जाएगा?
उत्तर-
यदि राम के चारित्रिक गुणों को अपना लें तो हमारे मन में ईष्र्या, द्वेष, स्वार्थ की भावना का अंत हो जाएगा। प्रेम और सद्भावनाओं का विकास होगा। समाज में भाईचारे की भावनाओं का विकास होगा। समाज में समरसता बढ़ेगी। खुशहाल समाज का निर्माण होगा।
प्रश्न 3.
यदि आपको वनवास हो जाए तो वहाँ आप अपना जीवन-यापन कैसे करेंगे?
उत्तर-
अगर कभी हमें वनवास हो जाए तो जीवन व्यतीत करना अत्यंत कठिन हो जाएगा, क्योंकि वहाँ हम सारी सुख-सुविधाओं से वंचित रहेंगे। हमें वहाँ कई ऐसी परेशानियों से जूझना पढ़ेगा; जैसे-सुरक्षा, रात में अंधेरे की समस्या, स्वास्थ्य, मेडीकल की सुविधाएँ। इसके अलावा श्री राम की तरह हममें दृढ़ इच्छा शक्ति का अभाव है। अगर राम की तरह दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो वन में रहना कुछ आसान हो जाता। वन में हमें कुछ आवश्यक खाने-पीने की वस्तुएँ तो अवश्य मिल जाएँगी। उन चीजों से दैनिक गुजारा करते।
प्रश्न 4.
आपको लक्ष्मण के चरित्र से क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर-
लक्ष्मण का चरित्र-मातृ-प्रेम और सेवा भावना से ओतप्रोत है। हलाँकि लक्ष्मण को वनवास नहीं मिला था, फिर भी उन्होंने अपने बड़े भाई की सेवा में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। लक्ष्मण ने राम-सीता को आदर्श मानकर उनकी सेवा बड़े लगन से की। उनके चरित्र से हमें मातृत्व प्रेम, सेवा, समर्पण, कर्तव्य, पालन की प्रेरणा मिलती है।
प्रश्न 5.
राम के वन-गमन के बाद अयोध्या में क्या-क्या हुआ?
उत्तर-
राम के वन जाने के बाद भरत को तुरंत अयोध्या लाने के लिए घुड़सवार दूत रवाना किए गए। अयोध्या नगरी का माहौल बदल गया। सड़कें चारों तरफ सूनी दिखने लगीं। बाग-बगीचों में भी उदासी छा गई। राजा दशरथ राम के वियोग से चल बसे। भरत जब ननिहाल से लौटकर अयोध्या आए तो उन्हें राम के वन-गमन और राजा दशरथ की मृत्यु का पता चला। भरत ने अयोध्या की गद्दी पर बैठने से इनकार कर दिया तथा उन्होंने माता कैकेयी को भला-बुरा कहा। मुनि वशिष्ठ ने भरत को सलाह दी कि सिंहासन खाली नहीं रहना चाहिए, पर वे नहीं माने। उन्होंने राम को वन से वापस अयोध्या लाने का निश्चय किया।
प्रश्न 6.
तुम हनुमान को किस रूप में देखते हो?
उत्तर-
हम हनुमान को एक राम का शुभचिंतक एवं आदर्श सेवक के रूप में देखते हैं। हनुमान का जीवन नि:स्वार्थ सेवा का अनुपम उदाहरण है। हनुमान ने बिना किसी स्वार्थ के जीवनभर सुग्रीव तथा राम-सीता की सेवा की। उनकी सेवा भक्ति पराकाष्ठा थी। उनके क्रियाकलाप हमें सेवा भावना की प्रेरणा देते हैं।
प्रश्न 7.
यदि राजा दशरथ कैकेयी की प्रार्थना को स्वीकार नहीं करते तो क्या होता? अनुमान से बताओ?
उत्तर-
यदि राजा दशरथ कैकेयी की प्रार्थना स्वीकार नहीं करते तो राम का राज्याभिषेक होता। राम को अयोध्या की जनता अपना योग्य शासक मानती थी। राम के गद्दी सँभालने से वहाँ की प्रजा खुशहाल होती तथा उनमें उदासी नहीं छाती। वहाँ की सुख समृद्धि बढ़ती।
प्रश्न 8.
क्या अपने माता-पिता के लिए तुम्हें कुछ करने का मौका मिला है?
उत्तर-
हाँ, मुझे छोटे-मोटे कामों को करने का माता-पिता के लिए कई अवसर मिलते रहते हैं। मैंने उनके कई बार आदेशों का पालन किया है। माता-पिता को प्रसन्न करना ईश्वर को प्रसन्न करने के समान है। माता-पिता को सबसे अधिक खुशी तब होती है जब बच्चे अपने कर्तव्य का सही पालन करें। बच्चे सही शिक्षा प्राप्त करें।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
राम कथा का कौन-सा प्रसंग तुम्हें सबसे रोचक लगा? उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
हमें राम कथा का लंका-विजय प्रसंग सबसे अच्छा लगा। लंका पर आक्रमण करने से पूर्व उसकी पूरी तैयारी कर ली गई थी। सुग्रीव ने युद्ध के लिए वानरी सेना को कहा। उन्होंने कहा कि वही वानर सेना में युद्ध के लिए जाएँगे जो शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हैं। वानरी सेना का शोर सुनकर राक्षसी सेना में भय पैदा हो गया। विभीषण ने देखा कि राक्षस सेना डरी हुई है। डरी हुई सेना कभी युद्ध नहीं जीत सकती। इसलिए विभीषण ने रावण को समझाने का प्रयास किया, पर रावण ने उनकी एक बात नहीं सुनी। अंगद ने भी राम का दूत बनकर रावण को काफ़ी समझाने का प्रयास किया, फिर भी रावण नहीं माना। अंत में राम और रावण की सेना में घमासान युद्ध हुआ। रावण के कई बलशाली राक्षस मारे गए।
महाबली, धूम्राक्ष, वज्रद्रष्ट, अकंपन भी युद्ध में धराशायी हो गए। मेघनाद और कुंभकर्ण भी मारे गए। लक्ष्मण ने महल में घुसकर मेघनाद का पीछा किया और उसे मार गिराया। रावण भी नहीं बच पाया। इस प्रकार रावण का अंत हुआ तथा राम की लंका पर विजय हुई। राम की चारों तरफ जय-जयकार होने लगी। सभी राक्षस मारे गए। राम ने सभी वानरी सेना का आभार प्रकट किया। विभीषण का राजतिलक किया गया और सीता को अशोक वाटिका से लाने की व्यवस्था की गई।
प्रश्न 2.
मंथरा ने रानी कैकेयी को कौन-कौन से तर्क देकर उनकी सोच बदल दी?
उत्तर-
मंथरा ने रानी कैकेयी को भय दिखाते हुए कहा कि राम के राजा बन जाने से तुम्हारे सुखों का अंत हो जाएगा। राजा दशरथ ने तुम्हारे अधिकार छीनने का षड्यंत्र रचा है। इसलिए जान-बूझकर भरत को ननिहाल भेज दिया है। इतना ही नहीं उसे राज याभिषेक के उत्सव पर भी नहीं बुलाया गया। मंथरा के इन तर्को का जब रानी कैकेयी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो वह रानी कैकेयी के पलंग पर उनके निकट बैठ गई और कहने लगी-“तुम नादान हो। तुम्हें निकट आया संकट दिखाई नहीं देता। राम के राजा बन जाने से तुम कौशल्या की दासी बन जाओगी।
भरत राम के दास हो जाएँगे। राम के बाद अगला राजा राम का पुत्र ही होगा। भरत कभी राजा नहीं बन पाएँगे।” मंथरा ने कैकेयी से कहा-‘”राम को राज मिला तो भरत को देश निकाला दे देंगे। इस तिस्कार से भरत की रक्षा करो। मंथरा के इन तर्को से रानी कैकेयी की सोच बदल गई।”
प्रश्न 3.
रावण-वध क्या शिक्षा देता है?
उत्तर-
रावण-वध से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बुराई का अंत अवश्य होता है। रावण बुराई का प्रतीक था। राम ने उसका वध कर समाज को उसके आतंक एवं अन्याय से मुक्त कराया। राम ने सीता का हरण करके स्त्रियों के प्रति अपनी सहिष्णुता का परिचय दिया था। वह विभीषण के प्रति निर्मम था। उसका संहार तो होना आवश्यक था। इसलिए रावण वध हमारे मत अनुसार सही प्रतीत होता है।
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