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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 1 सिल्वर वैडिंग

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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 1 सिल्वर वैडिंग are part of NCERT Solutions for Class 12 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 1 सिल्वर वैडिंग.

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 1 सिल्वर वैडिंग

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है, लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों? चर्चा कीजिए। (CBSE-2008, 2010, 2016)
उत्तर:
यशोधर बाबू की पत्नी समय को अच्छी तरह पहचानती हैं। वह जानती है कि बच्चों की सहानुभूति तभी प्राप्त की जा सकेगी जब बच्चों की सोच के अनुसार चला जाए। व्यवहार भी यही कहता है। दूसरे उसके व्यक्तित्व के विकास पर किसी व्यक्तिविशेष या वाद का प्रभाव नहीं है। तीसरे, संयुक्त परिवार के साथ उसका अनुभव सुखद नहीं रहा। उसकी इच्छाएँ अतृप्त रही। उसके अनुसार, “मुझे आचार-व्यवहार के ऐसे बंधनों में रखा गया मानो मैं जवान औरत नहीं, बुढ़िया थी।” अब वह बेटी के कहने के हिसाब से कपड़े पहनती है। वह बेटों के मामले में भी दखल नहीं देती।

दूसरी तरफ, यशोधर बाबू स्वयं को बदल नहीं पाते। वे सदैव किसी-न-किसी उलझन के शिकार हैं। वे सिद्धांतवादी हैं। इस कारण वे परिवार के सदस्यों से तालमेल नहीं बिठा पाते। उन पर किशनदा का प्रभाव है जो परंपरा को ढोते हुए अंत में फटेहाल मरे। वे संयुक्त परिवार, भारतीय परंपराओं को बनाए रखना चाहते हैं, परंतु परिवार उन्हें निरर्थक मानता है। यशोधर बाबू पार्टीबाजी, फैशन, अच्छे मकान में रहना आदि को पसंद नहीं करते। वे आधुनिक भौतिक वस्तुओं को बंधन मानते हैं। फलतः वे अलग-थलग हो जाते हैं। अंत में, उन्हें परिस्थितियों से समझौता करना पड़ता है।

प्रश्न 2.
पाठ में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य की आप कितनी अर्थ छवियाँ खोज सकते/सकती हैं? (CBSE-2009, 2012, 2014)
उत्तर:
‘जो हुआ होगा’ वाक्यांश का प्रयोग किशनदा की मृत्यु के संदर्भ में होता है। यशोधर ने किशनदा के जाति भाई से उनकी मृत्यु का कारण पूछा तो उसने जवाब दिया- जो हुआ होगा अर्थात् क्या हुआ, पता नहीं। इस वाक्य की अनेक छवियाँ बनती हैं –

  1. पहला अर्थ खुद कहानीकार ने बताया कि पता नहीं, क्या हुआ।
  2. दूसरा अर्थ यह है कि किशनदा अकेले रहे। जीवन के अंतिम क्षणों में भी किसी ने उन्हें नहीं स्वीकारा। इस कारण उनके मन में जीने की इच्छा समाप्त हो गई।
  3. तीसरा अर्थ समाज की मानसिकता है। किशनदा जैसे व्यक्ति का समाज के लिए कोई महत्त्व नहीं है। वे सामाजिक नियमों के विरोध में रहे। फलतः समाज ने भी उन्हें दरकिनार कर दिया।

प्रश्न 3.
‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रारंभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं? इस काव्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है? (CBSE-2008, 2009, 2011)
उत्तर:
समहाउ इंप्रापर का अर्थ है – कुछ-न-कुछ गलत जरूर है। यशोधर बाबू द्वारा इस वाक्यांश का प्रयोग करना वास्तव में आज की स्थिति का सच्चा वर्णन करना है। आज परिवार, समाज और राष्ट्र में कहीं-कहीं कुछ-न-कुछ गलत ज़रूर हो रहा है। फिर यशोधर बाबू जैसे सिद्धांतवादी लोगों के लिए ऐसी स्थिति को स्वीकारना सहज नहीं है। उनका तकियाकलाम निम्न संदर्भो में प्रयुक्त हुआ है|

  1. साधारण पुत्र को असाधारण वेतन मिलना
  2. दफ्तर में सिल्वर वैडिंग
  3. स्कूटर की सवारी पर
  4. अपनों से परायेपन का व्यवहार मिलने पर
  5. डीडीए फ्लैट का पैसा न भरने पर
  6. छोटे साले के ओछेपन पर
  7. शादी के संबंध में बेटी द्वारा स्वयं निर्णय लेने पर
  8. खुशहाली में रिश्तेदारों की उपेक्षा करने पर
  9. केक काटने की विदेशी परंपरा पर आदि।

इन संदर्भो से स्पष्ट होता है कि यशोधर बाबू समय के हिसाब से अप्रासंगिक हो गए हैं, इस कारण वे अपेक्षित रह गए।

प्रश्न 4.
यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्त्वपूर्ण योगदान है और कैसे? (CBSE-2012)
उत्तर:
मेरे जीवन को दिशा देने में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान मेरे गुरुओं का रहा है। उन्होंने हमेशा मुझे यही शिक्षा दी कि सत्य बोलो। सत्य बोलने वाला व्यक्ति हर तरह की परेशानी से मुक्त हो जाता है जबकि झूठ बोलने वाला अपने ही जाल में फँस जाता है। उसे एक झूठ छुपाने के लिए सैकड़ों झूठ बोलने पड़ते हैं। अपने गुरुओं की इस बात को मैंने हमेशा याद रखा। वास्तव में उनकी इसी शिक्षा ने मेरे जीवन की दिशा बदल दी।

प्रश्न 5.
वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं? (सैंपल पेपर-2005)
उत्तर:
यह कहानी आज के समय की पारिवारिक संरचना और उसके स्वरूप का सही अंकन करती है। आज की परिस्थितियाँ इस कहानी की मूल्य संवेदना को प्रस्तुत करती हैं। आज के परिवारों में सिद्धांत और व्यवहार का अंतर दिखाई देता है। आज के परिवारों में भी यशोधर बाबू जैसे लोग मिल जाते हैं जो चाहकर भी स्वयं को बदल नहीं सकते। दूसरे को बदलता देख कर वे क्रोधित हो जाते हैं। उनका क्रोध स्वाभाविक है क्योंकि समय और समाज का बदलना जरूरी है। समय परिवर्तनशील है और व्यक्ति को उसके अनुसार ढल जाना चाहिए। यह कहानी वर्तमान समय की पारिवारिक संरचना और स्वरूप को अच्छे ढंग से प्रस्तुत करती है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना कहेंगे/कहेंगी और क्यों?
(क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य
(ख) पीढ़ी अंतराल
(ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव।
उत्तर:
मेरी समझ में पीढ़ी अंतराल ही ‘सिल्वर वैडिंग’ शीर्षक कहानी की मूल संवेदना है। यशोधर बाबू और उसके पुत्रों में एक पीढ़ी को अंतराल है। इसी कारण यशोधर बाबू अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाते हैं। यह सिद्धांत और व्यवहार की लड़ाई है। यशोधर बाबू सिद्धांतवादी हैं तो उनके पुत्र व्यवहारवादी। आज सिद्धांत नहीं व्यावहारिकता चलती है। यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं जो नयी पीढ़ी के साथ कहीं भी तालमेल नहीं रखते। पीढ़ी का अंतराल और उनके विचारों का अंतराल यशोधर बाबू और उनके परिवार के सदस्यों में वैचारिक अलगाव पैदा कर देता है।

प्रश्न 7.
अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलावों के बारे में लिखें जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुर्गों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे? ।
उत्तर:
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। बदलना ही समय की पहचान है। आज घर का परिवेश बिलकुल बदल चुका है। एकल परिवार प्रणाली प्रचलन में आ चुकी है यद्यपि यह सुविधाजनक है किंतु इसके बुरे परिणाम भी सामने आ रहे हैं। लोगों में असुरक्षा की भावना बढ़ी है। विद्यालय आज आधुनिक रूप धारण कर चुके हैं लेकिन यह रूप बुजुर्गों को बिलकुल भी पसंद नहीं आ रहा। कारण स्पष्ट है कि आधुनिकता के नाम पर इन विद्यालयों में पाश्चात्य संस्कृति का खुलकर समर्थन किया जा रहा है। शिक्षा और परिवार में परिवर्तन के नाम पर संस्कृति का परित्याग होता जा रहा है।

प्रश्न 8.
यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उसके लिए तर्क दीजिए
(क) यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं है।
(ख) यशोधर बाबू में एक तरह का वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है।
(ग) यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है।
उत्तर:
यशोधर बाबू के बारे में हमारी यही धारणा बनती है कि यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता है पर पुराना छोड़ता नहीं, इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है। यद्यपि वे सिद्धांतवादी हैं तथापि व्यावहारिक पक्ष भी उन्हें अच्छी तरह मालूम है। लेकिन सिद्धांत और व्यवहार के इस द्वंद्व में यशोधर बाबू कुछ भी निर्णय लेने में असमर्थ हैं। उन्हें कई बार तो पत्नी और बच्चों का व्यवहार अच्छा लगता है तो कभी अपने सिद्धांत। इस द्वंद्व के साथ जीने के लिए मजबूर हैं। उनका दफ्तरी जीवन जहाँ सिद्धांतवादी है वहीं पारिवारिक जीवन व्यवहारवादी। दोनों में सामंजस्य बिठा पाना उनके लिए लगभग असंभव है। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
नया छोकरा चड्ढा किस प्रकार की धृष्टता करता था?
उत्तर:
चड्ढा असिस्टेंट ग्रेड में आया था। चूंकि वह नौजवान था, इसलिए वह पंत बाबू के साथ धृष्टता किया करता था। उनकी उम्र का लिहाज भी वह नहीं करता था। उनकी घड़ी को वह चूनेदानी कहता; कभी उनकी कलाई पकड़ लेता। उसे इस बात का जरा भी खयाल नहीं होता था कि पंत बुजुर्ग व्यक्ति हैं। वह तो अपनी जवानी के जोश में जो कुछ करता उसे अच्छा लगता है। धीरे-धीरे यशोधर पंत ने इन बातों की ओर ध्यान देना छोड़ दिया। वे किसी तरह का विरोध भी नहीं करते थे।

प्रश्न 2.
किशनदा का बुढ़ापा सुखी क्यों नहीं रहा?
उत्तर:
बाल-जती किशनदा का बुढ़ापा सुखी नहीं रहा। उनके तमाम साथियों ने हौजखास, ग्रीनपार्क, कैलाश कहीं-न-कहीं ज़मीन ली, मकान बनवाया, लेकिन उन्होंने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। रिटायर होने के छह महीने बाद जब उन्हें क्वार्टर खाली करना पड़ा तब उनके द्वारा उपकृत लोगों में से एक ने भी उन्हें अपने यहाँ रखने की पेशकश नहीं की। स्वयं यशोधर बाबू उनके सामने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं रख पाए क्योंकि उस समय तक उनकी शादी हो चुकी थी और उनके दो कमरों के क्वार्टर में तीन परिवार रहा करते थे। किशनदा कुछ साल राजेंद्र नगर में किराए का क्वार्टर लेकर रहे और फिर अपने गाँव लौट गए जहाँ साल भर बाद उनकी मृत्यु हो गई। विचित्र बात यह है कि उन्हें कोई भी बीमारी नहीं हुई। बस रिटायर होने के बाद मुरझाते-सूखते ही चले गए। अकेलेपन ने उनके अंदर की जीवनशक्ति को समाप्त कर दिया था।

प्रश्न 3.
पीढ़ी का अंतराल किस तरह हमारे जीवन को प्रभावित कर रहा है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
पीढ़ी का अंतराल आने से विचार नहीं मिलते। युवा लोग पुराने विचारों को ढकोसला, मात्र परंपरा और दकियानूसी मानते हैं। वे तो पुराने विचारों को पूरी तरह त्याग देते हैं। इसीलिए पुराने विचार रखने वाले और कहने वाले उन्हें फालतू आदमी लगते हैं। विचारों को इस मतभेद ने मध्यवर्गीय जीवन को बहुत प्रभावित किया है। मध्यवर्गीय परिवार आज संयुक्त परिवार प्रथा को भूला चुके हैं क्योंकि विचारों का मतभेद वहाँ भी है। यशोधर पंत का जीवन इसी पीढ़ी अंतराल ने प्रभावित किया है। अपने बच्चों के विचारों को वे अपना नहीं सकते और अपने विचारों को वे छोड़ नहीं सकते। अपनाने और छोड़ने की इस दुविधा भरी स्थिति में यशोधर बाबू सपरिवार, होते हुए भी स्वयं को अकेला पाते हैं।

प्रश्न 4.
आज पारिवारिक संबंध आर्थिक संबंधों पर ज्यादा निर्भर रहते हैं, स्पष्ट करें।
उत्तर:
विज्ञान के इस युग में आज संबंधों का मानक आर्थिक स्थिति बन गई है। आज पारिवारिक संबंध तभी सही रहते हैं जब आर्थिक स्थिति बेहतर हो। यशोधर पंत की पारिवारिक स्थिति इसी अर्थ पर निर्भर करती है। बच्चे चाहते हैं कि पिता किसी न किसी ढंग से ऊपरी कमाई करें और उनका जीवन सुखी बनाएँ लेकिन सिद्धांतवादी पंत ने ऐसा कभी सोचा भी नहीं। और तो और अपने कोटे का निर्धारित फ्लैट भी उन्होंने नहीं लिया। इन सभी बातों से उनके बच्चे सदा उनसे खिन्न रहे। यद्यपि बड़ा बेटा भूषण एक विज्ञापन एजेंसी में पंद्रह सौ रुपये मासिक की नौकरी करता है तथापि पिता और पुत्र के बीच की वैचारिक खाई बनाने में पैसे की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। कहीं न कहीं पैसा ही इन संबंधों को प्रभावित कर रहा है।

प्रश्न 5.
गीता की महिमा सुनते-सुनते जनार्दन शब्द सुनते ही यशोधर पंत क्या सोचने लगते हैं?
उत्तर:
गीता की महिमा सुनते-सुनते अचानक यशोधर पंत के कानों में ‘जनार्दन’ शब्द सुनाई पड़ा। यह सुनते ही उन्हें अपने जीजा जनार्दन जोशी की याद आ गई। उन्हें याद आया कि परसों ही चिट्ठी आई है कि उनके जीजा जी बीमार हैं। वे अहमदाबाद में रहते हैं। ऐसे समय में उनका हाल-चाल जानने के लिए अहमदाबाद जाना ही होगा। यशोधर पंत एक मिलनसार व्यक्ति हैं। हर किसी के सुख-दुख में वे जाते हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे भी पारिवारिकता के प्रति उत्साही बनें। लेकिन ऐसा नहीं हो पाता। पत्नी और बच्चों का तो यह मानना है कि पुराने रिश्तों के प्रति लगाव रखना मूर्खता है? क्योंकि इन्हें निभाने के लिए समय और पैसा दोनों की हानि होती है। अपने जीजा जनार्दन जोशी का हाल-चाल जानने के लिए वे अहमदाबाद जाने के लिए उतावले हैं जब बड़ा बेटा उन्हें पैसे देने से मना कर देता है तो वे उधार पैसे लेकर अहमदाबाद जाने का निर्णय करते हैं।

प्रश्न 6.
यशोधर पंत ने भविष्य के बारे में कभी नहीं सोचा, केवल वर्तमान के बारे में ही चिंता की। क्यों ?
उत्तर:
सिद्धांतवादी लोग लकीर का फकीर बन जाते हैं। उन्हें भविष्य की कोई फिक्र नहीं होती। वे तो बस वर्तमान को ही सब कुछ मानते हैं। यशोधर पंत भी ऐसे ही व्यक्ति हैं। उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों के इस आग्रह को कई बार ठुकराया कि कोई मकान मोल क्यों न ले लिया जाए। रिटायर होने के बाद तो सरकारी क्वार्टर छोड़ना पड़ेगा, लेकिन इस बात को यशोधर बाबू ने कभी समझने का प्रयत्न ही नहीं किया। सदा यही कहते रहे कि जो होगा देखा जाएगा। यशोधर बाबू ने तो किशनदा की एक बात को गाँठ में बाँध लिया है कि मूर्ख लोग मकान बनाते हैं और समझदार लोग उसमें रहते हैं। इसलिए वर्तमान में जीन वाले यशोधर पंत भविष्य की चिंता करता भी तो क्यों?

प्रश्न 7.
यशोधर बाबू किशनदा की किन परंपराओं को अभी तक निभा रहे हैं?
उत्तर:
यशोधर बाबू किशनदा के भक्त हैं। वे उनके विचारों का अनुसरण करते हैं, जो निम्नलिखित हैं
(क) उन्होंने कभी मकान नहीं लिया क्योंकि किशनदा ने कहा कि मूर्ख मकान बनाते हैं, समझदार उसमें रहते हैं।
(ख) उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ा।
(ग) उन्हें हर नई चीज़ में कमी नज़र आती थी।
(घ) वे किशनदा की उस बात को मानते हैं कि जवानी में व्यक्ति गलतियाँ करता है, परंतु बाद में समझदार हो जाता है।
(ङ) वे ‘जन्यो पुन्यू’ के दिन सब कुमाउँनियों को जनेऊ बदलने के लिए अपने घर बुलाते थे, होली गवाते थे तथा रामलीला की तालीम के लिए क्वार्टर का एक कमरा देते थे।

प्रश्न 8.
यशोधर बाबू की घर के लोगों से किस-किस बात पर नहीं बनती ?
उत्तर:
पिछले कई वर्षों से यशोधर बाबू का अपनी पत्नी और बच्चों से हर छोटी-बड़ी बात में मतभेद होने लगा है। इसी वजह से वह घर जल्दी लौटना पसंद नहीं करते। जब तक बच्चे छोटे थे तब तक वह उनकी पढ़ाई-लिखाई में मदद कर सकते थे। अब बड़ा लड़का एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में नौकरी पा गया है। यद्यपि ‘समहाउ’ यशोधर बाबू को अपने साधारण पुत्र को असाधारण वेतन देने वाली यह नौकरी कुछ समझ में आती नहीं।

वह कहते हैं कि डेढ़ हजार रुपया तो हमें अब रिटायरमेंट के पास पहुँच कर मिला है, शुरू में ही डेढ़ हजार रुपया देने वाली इस नौकरी में ज़रूर कुछ पेंच होगा। यशोधर जी का दूसरा बेटा दूसरी बार आई.ए.एस. देने की तैयारी कर रहा है। और यशोधर बाबू के लिए यह समझ सकना असंभव है कि जब यह पिछले साल ‘एलाइड सर्विसेज’ की सूची में, माना काफ़ी नीचे आ गया था, तब इसने ज्वाइन करने से इंकार क्यों कर दिया? उनका तीसरा बेटा स्कॉलरशिप लेकर अमेरिका चला गया है और उनकी एकमात्र बेटी न केवल तमाम प्रस्तावित वर अस्वीकार करती चली जा रही है बल्कि डॉक्टरी की उच्चतम शिक्षा के लिए स्वयं भी अमेरिका चले जाने की धमकी दे रही है। यशोधर बाबू जहाँ बच्चों की इस तरक्की से खुश होते हैं वहा ‘समहाउ’ यह भी अनुभव करते हैं कि वह खुशहाली भी कैसी जो अपनों में परायापन पैदा करे। अपने बच्चों द्वारा गरीब रिश्तेदारों की उपेक्षा उन्हें ‘समहाउ’ हुँचती नहीं।

प्रश्न 9.
यशोधर बाबू की पत्नी ने मॉडर्न बनने के पीछे क्या तर्क दिए थे?
उत्तर:
यशोधर बाबू की पत्नी अपने मूल संस्कारों से किसी भी तरह आधुनिक नहीं है, परंतु बच्चों की तरफदारी करने की मातृसुलभ मजबूरी ने उन्हें भी मॉडर्न बना डाला है। जिस समय उनकी शादी हुई थी यशोधर बाबू के साथ गाँव से आए ताऊजी और उनके दो विवाहित बेटे भी रहा करते थे। इस संयुक्त परिवार में पीछे ही पीछे बहुओं में गज़ब के तनाव थे लेकिन ताऊजी के डर से कोई कुछ कह नहीं पाता था। यशोधर बाबू की पत्नी को शिकायत है कि संयुक्त परिवार वाले उस दौर में पति ने हमारा पक्ष कभी नहीं लिया, बस जिठानियों की चलने दी। उनका यह भी मानना है कि मुझे आचार-व्यवहार के ऐसे बंधनों में रखा गया मानो मैं जवान औरत नहीं, बुढ़िया थी। जितने भी नियम इनकी बुढ़िया ताई के लिए थे, वे सब मुझ पर भी लागू करवाए – ऐसा कहती है घरवाली बच्चों से। बच्चे उससे सहानुभूति व्यक्त करते हैं। फिर वह यशोधर जी से उन्मुख होकर कहती है-मैं भी इन बातों को उसी हद तक मानूंगी जिस हद तक सुभीता हो। अब मेरे कहने से वह सब ढोंग-ढकोसला हो नहीं सकता।

प्रश्न 10.
कहानी के आधार पर सिद्ध कीजिए कि यशोधर बाबू का व्यक्तित्व किशनदा के पूर्ण प्रभाव में विकसित हुआ था।
अथवा
‘सिल्वर वैडिंग’ के आधार पर बताइए कि यशोधर बाबू किशनदा को अपना आदर्श क्यों मानते थे?
उत्तर:
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में यशोधर बाबू किशनदा के मानस पुत्र लगते हैं। उनका व्यक्तित्व किशनदा की प्रतिच्छया है। कम उम्र में यशोधर पहाड़ से दिल्ली आ गए थे तथा किशनदा ने ही उन्हें आश्रय दिया था। उन्हें सरकारी विभाग में नौकरी दिलवाई। इस तरह जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान करने वाले व्यक्ति से प्रभावित होना स्वाभाविक है। किशनदा की निम्नलिखित आदतों का यशोधर बाबू ने जीवन भर निर्वाह किया

  • ऑफिस में सहयोगियों के साथ संबंध
  • सुबह सैर करने की आदत
  • पहनने-ओढ़ने का तरीका
  • किराए के मकान में रहना
  • आदर्श बातें करना
  • किसी बात को कहकर मुसकराना
  • सेवानिवृत्ति के बाद गाँव जाने की बात कहना आदि

यशोधर बाबू ने रामलीला करवाना आदि भी किशनदा से ही सीखा। वे अंत तक अपने सिद्धांतों पर चिपटे रहे। किशनदा के उत्तराधिकारी होते हुए भी उन्होंने परिवार नामक संस्था को बनाया।

प्रश्न 11.
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी का प्रमुख पात्र वर्तमान में रहता है, किंतु अतीत को आदर्श मानता है। इससे उसके व्यवहार में क्या-क्या विरोधाभास दिखाई पड़ते हैं? सोदाहरण उल्लेख कीजिए। (CBSE-2012)
अथवा
यशोधर पंत की पीढ़ी की विवशता यह है कि वे पुराने को अच्छा समझते हैं और वर्तमान से तालमेल नहीं बिठा पाते। ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर इस कथन की सोदाहरण समीक्षा कीजिए। (CBSE-2012)
अथवा
‘सिल्वर वैडिंग’ का प्रधान पात्र वर्तमान में रहता है, किंतु अतीत में जीता है। भविष्य के साथ कदम मिलाने में असमर्थ रहता है। – उपर्युक्त कथन के आलोक में यशोधर बाबू के अंतरवंद्व पर सोदाहरण प्रकाश डालिए। (CBSE-2011)
अथवा
‘यशोधर बालू दो भिन्न कालखंडों में जी रहे हैं’-पक्ष या विपक्ष में सोदाहरण तर्क दीजिए। (CBSE-2016)
उत्तर:
‘सिल्वर वैडिंग’ का प्रधान पात्र यशोधर बाबू है। वह रहता तो वर्तमान में हैं, परंतु जीता अतीत में है। वह अतीत को आदर्श मानता है। यशोधर को पुरानी जीवन शैली, विचार आदि अच्छे लगते हैं, वे उसका स्वप्न हैं। परंतु वर्तमान जीवन में वे अप्रासंगिक हो गए हैं। कहानी में यशोधर का परिवार नए ज़माने की सोच का है। वे प्रगति के नए आयाम छूना चाहते हैं। उनका रहन-सहन, जीने का तरीका, मूल्यबोध, संयुक्त परिवार के कटु अनुभव, सामूहिकता का अभाव आदि सब नए ज़माने की देन है। यशोधर को यह सब ‘समहाड इम्प्रापर’ लगता है। उन्हें हर नई चीज़ में कमी नजर आती है। वे नए जमाने के साथ तालमेल नहीं बना पा रहे। वे अधिकांश बदलावों से असंतुष्ट हैं। वे बच्चों की तरक्की पर खुलकर प्रतिक्रिया नहीं दे पाते। यहाँ तक कि उन्हें बेटे भूषण के अच्छे वेतन में गलती नजर आती है। दरअसल यशोधर बाबू अपने समय से आगे निकल नहीं पाए। उन्हें लगता है कि उनके जमाने की सभी बातें आज भी वैसी ही होनी चाहिए। यह संभव नहीं है। इस तरह के रूढ़िवादी व्यक्ति समाज के हाशिए पर चले जाते हैं।

प्रश्न 12.
यशोधर के स्वभाव को ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के आधार पर बताइए। (CBSE-2010)
अथवा
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर यशोधर बाबू के स्वभाव की किंहीं तीन विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (CBSE-2008, 2009)
अथवा
यशोधर पंत की तीन चारित्रित विशेषताएँ सोदाहरण बताइए। (CBSE-2014)
उत्तर:
यशोधर पंत गृह मंत्रालय में सेक्शन अफ़सर हैं। वह पहाड़ से दिल्ली आए थे और यहाँ किशनदा के घर रहे। उनका यशोधर
पर असर था। यशोधर के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  1. भौतिक सख के विरोधी – यशोधर भौतिक संसाधनों के घोर विरोधी थे। उन्हें घर या दफ्तर में पार्टी करना पसंद नहीं था। वे पैदल चलते थे या साइकिल पर चलते थे। केक काटना, काले बाल करना, मेकअप, धन संग्रह आदि पसंद नहीं था।
  2. असंतुष्ट पिता – यशोधर जी एक असंतुष्ट पिता भी थे। अपने बच्चों के विचारों से सहमत नहीं थे। बेटी के पहनावे को वे सही नहीं मानते थे। उन्हें बच्चों की प्रगति से भी ईष्र्या थी। बेटे उनसे किसी बात में सलाह नहीं लेते थे क्योंकि उन्हें सब कुछ गलत नज़र आता था।
  3. परंपरावादी – यशोधर परंपरा का निर्वाह करते थे। उन्हें सामाजिक रिश्ते निबाहने में आनंद आता था। वे अपनी बहन को नियमित तौर पर पैसा भेजते थे। वे रामलीला आदि का आयोजन करवाते थे।
  4. अपरिवर्तनशील – यशोधर बाबू आदर्शो से चिपके रहे। वे समय के अनुसार अपने विचारों में परिवर्तन नहीं ला सके। वे रूढ़िवादी थे। उन्हें बच्चों के नए प्रयासों पर संदेह रहता था। वे सेक्शन अफ़सर होते हुए भी साइकिल से दफ्तर जाते थे।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 13.
यशोधर बाबू किन जीवन-मूल्यों को थामे बैठे हैं? नई पीढ़ी उन्हें प्रासंगिक क्यों नहीं मानती? तर्कसम्मत उत्तर दीजिए। (CBSE-2015)
अथवा
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के पात्र किशनदा के उन जीवन-मूल्यों की चर्चा कीजिए जो यशोधर बाबू की सोच में आजीवन बने रहे। (CBSE-2014)
अथवा
‘सिल्वर वैडिंग’ के आधार पर उन जीवन-मूल्यों पर विचार कीजिए जो यशोधर बाबू को किशनदी से उत्तराधिकार में मिले थे। आप उनमें से किन्हें अपनाना चाहेंगे? (CBSE-2015)
उत्तर:
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में लेखक ने दो पीढ़ियों के अंतराल को बताया है। यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि उनकी पत्नी, बच्चे व सहयोगी नई पीढ़ी का। यशोधर बाबू निम्नलिखित जीवनमूल्यों को थामे हुए हैं

  1. सादगी – यशोधर बाबू सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। आधुनिक वस्तुएँ उन्हें पसंद नहीं थी। वे साइकिल पर दफ्तर जाते थे तथा फटा पुलोवर पहनकर दूध लाते थे।
  2. परंपराओं से लगावे – उनका अपनी संस्कृति से लगाव था। वे होली जैसे त्योहार पर कार्यक्रम करवाते थे।
  3. सामूहिकता – यशोधर बाबू अपनी उन्नति के साथ-साथ रिश्तेदारों, साथियों की उन्नति के बारे में चिंतित रहते थे।
  4. त्याग की भावना – यशोधर पंत में त्याग की भावना थी। उन्होंने कभी संग्रह की भावना नहीं अपनाई।

नई पीढ़ी यशोधर पंत के जीवन-मूल्यों को अप्रासंगिक मानती है। उनका लक्ष्य सिर्फ धन कमाना है। वे भौतिक चकाचौंध को ही सब कुछ मानते हैं। इसके अलावा, सामूहिक या संयुक्त परिवार के कष्ट उन्होंने अनुभव किए हैं। उन्हें व्यक्तिगत उन्नति के अवसर नहीं मिलते थे। इन सभी कारणों से नई पीढ़ी पुराने मूल्यों को स्वीकार नहीं करती।

प्रश्न 14.
‘सिल्वर वैडिंग’ वर्तमान युग में बदलते जीवन-मूल्यों की कहानी है। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2014)
उत्तर:
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी वर्तमान युग में बदलते जीवन-मूल्यों की कहानी है। इस कहानी में यशोधर पंत प्राचीन मूल्यों के प्रतीक हैं। उनके विपरीत उनकी संतान नए युग का प्रतिनिधित्व करती है। दोनों पीढ़ियों के अपने-अपने जीवन मूल्य हैं। भूषण व यशोधर की बेटी वर्तमान समय के बदलते जीवन-मूल्यों की झलक दिखलाते हैं। नई पीढ़ी जन्म-दिन, सालगीरह आदि पर केक काटने में विश्वास रखती है। नई पीढ़ी तेज़ी से आगे बढ़ना चाहती है। इसके लिए वे परंपरागत व्यवस्था को छोड़ने में संकोच नहीं करते।

यशोधर बाबू परंपरा से जुड़े हुए हैं। वे सादगी का जीवन जीना चाहते हैं। संग्रह वृत्ति, भौतिक चकाचौंध से दूर, वे आत्मीयता, सामूहिकता के बोध से युक्त हैं। इन सबके कारण वे भौतिक संसाधन नहीं एकत्र कर पाते । फलतः वे घर में ही अप्रासांगिक हो जाते हैं। उनकी पत्नी बाहरी आवरण को बदल पाती है, परंतु मूल संस्कारों को नहीं छोड़ पाती। बच्चों की हठ के सम्मुख वह मॉडर्न बन जाती है। समय परिवर्तनशील होता है। जीवन-मूल्य भी अपने रूप को बदल लेते हैं।

प्रश्न 15.
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में आधुनिक पारिवारिक मूल्यों के विघटन का यथार्थ चित्रण है। उदाहरण देते हुए इस कथन का विवेचन करें।
उत्तर:
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में आधुनिक पारिवारिक मूल्यों के विघटन का यथार्थपरक चित्रण है। यशोधर के परिवार में उनके बेटे, बेटी व पत्नी हैं। ये सभी आधुनिक विचारों के समर्थक हैं। उन्हें यशोधर के आदर्श व मूल्य अप्रासांगिक नज़र आते हैं। बड़ा बेटा भूषण एक प्राइवेट कंपनी में अच्छा वेतन पाता है। दूसरा बेटा आई०ए०एस० की तैयारी कर रहा है। तीसरा बेटा छात्रवृत्ति लेकर अमेरिका गया। बेटी अपनी मर्जी से शादी करना चाहती है। पत्नी अपने पुराने कष्टों के लिए पति को जिम्मेदार मानती है। यह पीढ़ी मौज-मस्ती में विश्वास रखती है। ये भौतिक संसाधनों को जीवन का अंतिम सत्य मानते हैं। दूसरी तरफ यशोधर बाबू रामलीला करवाने, रिश्तेदारों के मोह, सादगीपूर्ण जीवन, नीरस जीवन आदि मूल्यों में विश्वास रखते हैं। कई जगह वे संतान की प्रगति से ही ईर्ष्या करते हुए दिखाई देते हैं। इन सब कारणों से परिवार उन्हें कोई तवज्जो नहीं देता। इस प्रकार परिवार में तनाव होता है। पारिवारिक मूल्य विघटित होते जाते हैं।

प्रश्न 16.
‘यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है।’-इस कथन के पक्ष-विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए। (CBSE-2008, 2012)
उत्तर:
यशोधर बाबू अपने जीवनदर्शन के कारण पुरानी परंपरा के व्यक्ति नज़र आते हैं। वे जीवनभर अपने सिद्धांतों का पालन करते रहे। उनके व्यक्तित्व पर किशनदा का प्रभाव रहा। यशोधर बाबू ने अपने पद के हिसाब से जीवन जीया। वे सहकर्मियों के साथ मधुर संबंध भी रखते थे। वे सामाजिक व्यक्ति थे। नौकरी में होने के बावजूद वे संयुक्त परिवार को मानते थे। वे सामाजिक रिश्तों को निभाते थे। वे अपनी बहन को नियमित तौर पर पैसा भेजते हैं। बीमार जीजा को देखने जाने के बारे में सोचते हैं। यशोधर बाबू भारतीय संस्कारों को भी अपनाते हैं।

वे अपने घर में कुमाऊँनी परंपरा से संबंधित आयोजनसालोंसाल तक करवाते रहे। उनकी इच्छा थी कि समाज में उन्हें सम्मानित व्यक्ति समझा जाए। वे भौतिक चकाचौंध को गलत समझते थे। उन्हें अप ने बच्चों की प्रगति अच्छी लगती थी, परंतु उनका वैचारिक दायरा बहुत बड़ा नहीं था। वे अपनी आमदनी के अनुरूप खर्च करना चाहते थे। इन गुणों से उन्हें आदर्श व्यक्तित्व माना जा सकता है। नई पीढ़ी को उनके जीवन के प्रमुख तत्वों को आत्मसात करना चाहिए।

प्रश्न 17.
यशोधर पंत की आँखों में नमी आने का क्या कारण हो सकता है? यदि भूषण की जगह आप होते और शेष परिस्थितियाँ ठीक कहानी की ही तरह होती तो आपका व्यवहार अपने ‘बब्बा’ के प्रति कैसा होता?
उत्तर:
भूषण ने अपने पिता को ऊनी ड्रेसिंग गाउन उपहार स्वरूप दिया ताकि वह दूध लाते समय ठंड से बचा रहे। यह सुनकर पंत की आँखों में नमी आ गई। इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं

  1. यशोधर को यह बात दिल से लगी। भूषण ने स्वयं दूध लाने की जिम्मेदारी नहीं ली। उसने पिता की सेहत के लिए तथा अपनी प्रतिष्ठा के लिए यह गाउन दिया था।
  2. दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि यशोधर के पथप्रदर्शक किशनदा की मौत दयनीय दशा में हुई। उन्होंने परिवार नहीं बनाया। फलतः किसी ने उनकी देखभाल नहीं की। यशोधर को लगा कि उनकी देखभाल करने वाला परिवार भी है।

यदि भूषण की जगह हम होते तो हम अपने ‘बब्बा’ के प्रति अच्छा व्यवहार करते। उन्हें पूरा सम्मान दिया जाता। उनकी ज़रूरतों का ध्यान रखा जाता।

प्रश्न 18.
‘यशोधर बाबू चाहते हैं कि उन्हें समाज का सम्मानित बुजुर्ग माना जाए, लेकिन जब समाज ही न हो तो यह पद उन्हें क्यों कर मिले?’ यशोधर बाबू का ऐसा चाहना क्या उचित है? उनकी यह सोच आपको कहाँ तक अपील करती है?
उत्तर:
यशोधर का स्वयं को सम्मानित करवाने की चाह उचित ही है। इसका कारण यह है कि यशोधर ने सारी उम्र समाज की परंपराओं का निर्वाह किया। व्यक्तिगत सुखों को तिलांजलि दी थी। आदर्श जीवन को जीया। अतः उनका चाहना ठीक है, परंतु आज समाज बदल गया है।

पुरानी पद्धति पर जीवन जीने वाले अप्रासंगिक माने जाने लगे हैं। आदर्श व्यवहार की कसौटी पर असफल हो रहा है। ऐसे माहौल में यशोधर जैसे व्यक्तियों की इच्छा धराशयी हो जाती है। ये लोग समयानुसार अपने में बदलाव नहीं कर पाते और घर में ही अकेले रह जाते हैं।

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