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CBSE Previous Year Question Papers Class 10 Hindi A 2017 Delhi Term 2

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CBSE Previous Year Question Papers Class 10 Hindi A 2017 Delhi Term 2

CBSE Previous Year Question Papers Class 10 Hindi A 2017 Delhi Term 2 Set – I

खण्ड ‘क’

प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए।       [5]
देश की आजादी के उनहत्तर वर्ष हो चुके हैं और आज जरूरत है अपने भीतर के तर्कप्रिय भारतीयों को जगाने की, पहले नागरिक और फिर उपभोक्ता बनने की। हमारा लोकतंत्र इसलिए बचा है कि हम सवाल उठाते रहे हैं। लेकिन वह बेहतर इसलिए नहीं बन पाया क्योंकि एक नागरिक के रूप में हम अपनी जिम्मेदारियों से भागते रहे हैं। किसी भी लोकतांत्रिक प्रणाली की सफलता जनता की जागरूकता पर ही निर्भर करती

एक बहुत बड़े संविधान विशेषज्ञ के अनुसार किसी मंत्री का सबसे प्राथमिक, सबसे पहला जो गुण होना चाहिए वह यह कि वह ईमानदार हो और उसे भ्रष्ट नहीं बनाया जा सके। इतना ही जरूरी नहीं, बल्कि लोग देखें और समझे भी कि यह आदमी ईमानदार है। उन्हें उसकी ईमानदारी में विश्वास भी होना चाहिए। इसलिए कुल मिलाकर हमारे लोकतंत्र की समस्या मूलतः नैतिक समस्या है। संविधान, शासन प्रणाली, दल, निर्वाचन ये सब लोकतंत्र के अनिवार्य अंग हैं। पर जब तक लोगों में नैतिकता की भावना न रहेगी, लोगों का आचार-विचार ठीक में रहेगा। तब तक अच्छे से अच्छे संविधान और उत्तम राजनीतिक प्रणाली के बावजूद लोकतंत्र ठीक से काम नहीं कर सकता। स्पष्ट है कि लोकतंत्र की भावना को जगाने व संवर्धित करने के लिए आधार प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक है।

आजादी और लोकतंत्र के साथ जुड़े सपनों को साकार करना है, तो सबसे पहले जनता को स्वयं जाग्रत होना होगा। जब तक स्वयं जनता का नेतृत्व पैदा नहीं होता, तब तक कोई भी लोकतंत्र सफलतापूर्वक नहीं चल सकता। सारी दुनिया में एक भी देश का उदाहरण ऐसा नहीं मिलेगा जिसका उत्थान केवल राज्य की शक्ति द्वारा हुआ हो। कोई भी राज्य बिना लोगों की शक्ति के आगे नहीं बढ़ सकता।
(क) लगभग 70 वर्ष की आजादी के बाद नागरिकों से लेखक की अपेक्षाएँ हैं कि वे :
(i) समझदार हों
(ii) प्रश्न करने वाले हों।
(iii) जगी हुई युवा पीढ़ी के हों
(iv) मजबूत सरकार चाहने वाले हों

(ख) हमारे लोकतांत्रिक देश में अभाव है :
(i) सौहार्द्र का
(ii) सद्भावना का
(iii) जिम्मेदार नागरिकों का
(iv) एकमत पार्टी का

(ग) किसी मंत्री की विशेषता होनी चाहिए :
(i) देश की बागडोर संभालने वाला
(ii) मिलनसार और समझदार
(iii) सुशिक्षित और धनवान ।
(iv) ईमानदार और विश्वसनीय

(घ) किसी भी लोकतंत्र की सफलता निर्भर करती है :
(i) लोगों में स्वयं ही नेतृत्व भावना हो
(ii) सत्ता पर पूरा विश्वास हो।
(iii) देश और देशवासियों से प्यार हो
(iv) समाज सुधारकों पर भरोसा हो

(ङ) लोकतंत्र की भावना को जगाना-बढ़ाना दायित्व है :
(i) राजनीतिक
(ii) प्रशासनिक
(iii) सामाजिक
(iv) संवैधानिक
उत्तर:
(क) (iii) जगी हुई युवा पीढ़ी के हों।
(ख) (iii) जिम्मेदार नागरिकों का
(ग) (iv) ईमानदार और विश्वसनीय
(घ) (i) लोगों में स्वयं ही नेतृत्व भावना हो
(ङ) (iii) सामाजिक

प्रश्न 2.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए     [5]
गीता के इस उपदेश की लोग प्रायः चर्चा करते हैं कि कर्म करें, फल की इच्छा न करें। यह कहना तो सरल है पर पालन उतना सरल नहीं। कर्म के मार्ग पर आनन्दपूर्वक चलता हुआ उत्साही मनुष्य यदि अन्तिम फल तक न भी पहुँचे तो भी उसकी दशा कर्म न करने वाले की उपेक्षा अधिकतर अवस्थाओं में अच्छी रहेगी, क्योंकि एक तो कर्म करते हुए उसका जो जीवन बीता वह संतोष या आनन्द में बीता, उसके उपरांत फल की अप्राप्ति पर भी उसे यह पछतावा न रहा कि मैंने प्रयत्न नहीं किया। फल पहले से कोई बना बनाया पदार्थ नहीं होता। अनुकूल प्रयत्न-कर्म के अनुसार उसके एक-एक अंग की योजना होती है। किसी मनुष्य के घर का कोई प्राणी बीमार है। वह वैद्यों के यहाँ से जब तक औषधि ला-लाकर रोगी को देता जाता है तब तक उसके चित्त में जो संतोष रहता है, प्रत्येक नए उपचार के साथ जो आनन्द का उन्मेष होता रहता है यह उसे कदापि न प्राप्त होता, यदि वह रोता हुआ बैठा रहता। प्रयत्न की अवस्था में उसके जीवन का जितना अंश संतोष, आशा और उत्साह में बीता, अप्रयत्न की दशा में उतना ही अंश केवल शोक और दुख में कटता। इसके अतिरिक्त रोगी के न अच्छे होने की दशा में भी वह आत्मग्लानि के उस कठोर दुख से बचा रहेगा जो उसे जीवन भर यह सोच-सोच कर होता कि मैंने पूरा प्रयत्न नहीं किया।

कर्म में आनन्द अनुभव करने वालों का नाम ही कर्मण्य है। धर्म और उदारता के उच्च कर्मों के विधान में ही एक ऐसा दिव्य आनन्द भरा रहता है कि कर्ता को वे कर्म ही फलस्वरूप लगते हैं। अत्याचार का दमन और शमन करते हुए कर्म करने से चित्त में जो तुष्टि होती है वही लोकोपकारी कर्मवीर को सच्चा सुख है।
(क) कर्म करने वाले को फल न मिलने पर भी पछतावा नहीं होता क्योंकि :
(i) अन्तिम फल पहुँच से दूर होता है।
(ii) प्रयत्न न करने का भी पश्चाताप नहीं होता
(iii) वह आनन्दपूर्वक काम करता रहता है।
(iv) उसका जीवन संतुष्ट रूप से बीतता है।

(ख) घर के बीमार सदस्य का उदाहरण क्यों दिया गया है?
(i) पारिवारिक कष्ट बताने के लिए
(ii) नया उपचार बताने के लिए।
(iii) शोक और दुख की अवस्था के लिए
(iv) सेवा के संतोष के लिए

(ग) ‘कर्मण्य’ किसे कहा गया है?
(i) जो काम करता है।
(ii) जो दूसरों से काम करवाता है।
(iii) जो काम करने में आनन्द पाता है।
(iv) जो उच्च और पवित्र कर्म करता है।

(घ) कर्मवीर का सुख किसे माना गया है ?
(i) अत्याचार का दमन
(ii) कर्म करते रहना ,
(iii) कर्म करने से प्राप्त संतोष
(iv) फल के प्रति तिरस्कार भावना

(ङ) गीता के किस उपदेश की ओर संकेत है :
(i) कर्म करें तो फल मिलेगा
(ii) कर्म की बात करना सरल है
(iii) कर्म करने से संतोष होता है।
(iv) कर्म करें फल की चिंता नहीं
उत्तर:
(क) (ii) प्रयत्न न करने का भी पश्चाताप नहीं होता
(ख) (iv) सेवा के संतोष के लिए।
(ग) (iii) जो काम करने में आनन्द पाता है।
(घ) (ii) कर्म करने से प्राप्त संतोष
(ङ) (iv) कर्म करें फल की चिंता नहीं

प्रश्न 3.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए [1 × 5 = 5]
सूख रहा है समय
इसके हिस्से की रेत
उड़ रही है आसमान में
सूख रहा है।
आँगन में रखा पानी का गिलास
पैखुरी की साँस सूख रही है।
जो सुंदर चोंच मीठे गीत सुनाती थी
उससे अब हाँफने की आवाज आती है।
हर पौधा सूख रहा है।
हर नदी इतिहास हो रही है।
हर तालाब का सिमट रहा है कोना
यही एक मनुष्य को कंठ सूख रहा है।
वह जेब से निकालता है पैसे और
खरीद रहा है बोतल बंद पानी
बाकी जीव क्या करेंगे अब
न उनके पास जेब है न बोतल बंद पानी।।
(क) ‘सूख रहा है समय’ कथन का आशय है :
(i) गर्मी बढ़ रही है।
(ii) जीवनमूल्य समाप्त हो रहे हैं।
(iii) फूल मुरझाने लगे हैं।
(iv) नदियाँ सूखने लगी हैं।

(ख) हर नदी के इतिहास होने का तात्पर्य है :
(i) नदियों के नाम इतिहास में लिखे जा रहे हैं।
(ii) नदियों का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है।
(iii) नदियों का इतिहास रोचक है।
(iv) लोगों को नदियों की जानकारी नहीं है

(ग) “पैखुरी की साँस सूख रही है।
जो सुंदर चोंच मीठे गीत सुनाती थी”
ऐसी परिस्थिति किस कारण उत्पन्न हुई?
(i) मौसम बदल रहे हैं।
(ii) अब पक्षी के पास सुंदर चोंच नहीं रही
(iii) पतझड़ के कारण पत्तियाँ सूख रही थीं।
(iv) अब प्रकृति की ओर कोई ध्यान नहीं देता

(घ) कवि के दर्द का कारण है :
(i) पंखुरी की साँस सूख रही है।
(ii) पक्षी हॉफ रहा है।
(iii) मानव का कंठ सूख रहा है।
(iv) प्रकृति पर संकट मँडरा रहा है।

(ङ) ‘बाकी जीव क्या करेंगे अब’ कथन में व्यंग्य है :
(i) जीव मनुष्य की सहायता नहीं कर सकते।
(ii) जीवों के पास अपने बचाव के कृत्रिम उपाय नहीं हैं।
(iii) जीव निराश और हताश बैठे हैं।
(iv) जीवों के बचने की कोई उम्मीद नहीं रही
उत्तर:
(क) (ii) जीवन मूल्य समाप्त हो रहे हैं।
(ख) (ii) नदियों का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है
(ग) (iv) अब प्रकृति की ओर कोई ध्यान नहीं देता
(घ) (iv) प्रकृति पर संकट मँडरा रहा है।
(ङ) (ii) जीवों के पास अपने बचाव के कृत्रिम उपाय नहीं हैं।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए [1 × 5 = 5]
नदी में नदी का अपना कुछ भी नहीं
जो कुछ है.
सब पानी का है।
जैसे पोथियों में उनका अपना
कुछ नहीं होता
कुछ अक्षरों का होता है।
कुछ ध्वनियों और शब्दों का
कुछ पेड़ों का कुछ धागों का
कुछ कवियों का
जैसे चूल्हे में चूल्हे को अपना
कुछ भी नहीं होता
न जलावन, न आँच, न राख
जैसे दीये में दीये का
न रुई, न उसकी बाती
न तेल न आग न तिल्ली
वैसे ही नदी में नदी का
अपना कुछ नहीं होता।
नदी न कहीं आती है न जाती है।
वह तो पृथ्वी के साथ
सतत पानी-पानी गाती है।
नदी और कुछ नहीं
पानी की कहानी है।
जो बूंदों से सुनकर बादलों को सुनानी है।
(क) कवि ने ऐसा क्यों कहा कि नदी का अपना कुछ भी नहीं सब पानी का है।
(i) नदी का अस्तित्व ही पानी से है।
(ii) पानी का महत्व नदी से ज्यादा है।
(iii) ये नदी का बड़प्पन है।
(iv) नदी की सोच व्यापक है।

(ख) पुस्तक निर्माण के संदर्भ में कौन-सा कथन सही नहीं है?
(i) ध्वनियों और शब्दों का महत्व है।
(ii) पेड़ों और धागों का योगदान होता है।
(iii) कवियों की कलम उसे नाम देती है।
(iv) पुस्तकालय उसे सुरक्षा प्रदान करता है।

(ग) कवि, पोथी, चूल्हें आदि उदाहरण क्यों दिए गए हैं?
(i) इन सभी के बहुत से मददगार हैं।
(ii) हमारा अपना कुछ नहीं
(iii) उन्होंने उदारता से अपनी बात कही है।
(iv) नदी की कमजोरी को दर्शाया है।

(घ) नदी की स्थिरता की बात कौन-सी पंक्ति में कही गई है?
(i) नदी में नदी का अपना कुछ भी नहीं
(ii) वह तो पृथ्वी के साथ सतत पानी-पानी गाती है।
(iii) नदी न कहीं आती है न जाती है।
(iv) जो कुछ है सब पानी का है।

(ङ) बँदे बादलों से क्या कहना चाहती होंगी?
(i) सूखी नदी और प्यासी धरती की पुकार
(ii) भूखे-प्यासे बच्चों की कहानी
(iii) पानी की कहानी।
(iv) नदी की खुशियों की कहानी
उत्तर:
(क) (i) नदी का अस्तित्व ही पानी से है।
(ख) (iv) पुस्तकालय उसे सुरक्षा प्रदान करता है।
(ग) (i) हमारा अपना कुछ नहीं
(घ) (ii) नदी न कहीं आती है न जाती है।
(ङ) (iii) पानी की कहानी

खण्ड ‘ख’

प्रश्न 5.
निर्देशानुसार उत्तर दीजिए    [1 × 3 = 3]
(क) जीवन की कुछ चीजें हैं जिन्हें हम कोशिश करके पा सकते हैं। (आश्रित उपवाक्य छाँटकर उसका भेद भी लिखिए)
(ख) मोहनदास और गोकुलदास सामान निकालकर बाहर रखते जाते थे। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
(ग) हमें स्वयं करना पड़ा और पसीने छूट गए। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
उत्तर:
(क) जिन्हें हम कोशिश करके पा सकते हैं। -विशेषण उपवाक्य
(ख) मोहनदास और गोकुलदास ने सामान निकाला और बाहर रखा।
(ग) जब हमने स्वयं किया तब हमारे पसीने छूट गए।

प्रश्न 6.
निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तित कीजिए    [1 × 4 = 4]
(क) कूजन कुंज में आसपास के पक्षी संगीत का अभ्यास करते हैं। (कर्मवाच्य में)
(ख) श्यामा द्वारा सुबह-दोपहर के राग बखूबी गाए जाते हैं। (कर्तृवाच्य में)
(ग) दर्द के कारण वह चल नहीं सकती। (भाववाच्य में)
(घ) श्यामा के गीत की तुलना बुलबुल के सुगम संगीत से की जाती है। (कर्तृवाच्य में)
उत्तर:
(क) कर्मवाच्य- कूजन कुंज में आस-पास के पक्षी द्वारा संगीत का अभ्यास किया जाता है।
(ख) कर्तृवाच्य- श्यामा सुबह-दोपहर के राग बखूबी गाती है।
(ग) भाववाच्य- दर्द के कारण उससे चला नहीं जाता
(घ) कर्तृवाच्य- श्यामा के गीत की तुलना बुलबुल के सुगम संगीत से करते हैं।

प्रश्न 7.
रेखांकित पदों का पद-परिचय दीजिए-   [1 × 4 = 4]
सुभाष पालेकर ने प्राकृतिक खेती की जानकारी अपनी पुस्तकों में दी है
उत्तर:
(क) सुभाष पालेकर- व्यक्तिवाचक संज्ञा, एकवचन, पुल्लिंग, कर्ता
(ख) प्राकृतिक- उपसर्ग एवं प्रत्यय, एकवचन, स्त्रीलिंग विशेषण
(ग) जानकारी– एकवचन, स्त्रीलिंग, भाववाचक संज्ञा,
(घ) दी है- सकर्मक क्रिया, वर्तमान काल

प्रश्न 8.
(क) काव्यांश पढ़कर रस पहचानकर लिखिए-     [1 × 2 = 2]
(i) साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं,
पूरा करूँगा कार्य सब कथनानुसार यथार्थ में।
जो एक बालक को कपट से मारे हँसते हैं अभी,
वे शत्रु सत्वर शोक-सागर–मग्न दीखेंगे सभी।
(ii) साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना देय दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाए।

(ख) (i) निम्नलिखित काव्यांश में कौन-सा स्थायी भाव है?
मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहै न आनि सुवावै
तू काहै नहिं बेगहीं आवै, तोको कान्ह बुलावै
(ii) श्रृंगार रस के स्थायी भाव का नाम लिखिए।
उत्तर:
(क) (i) वीर रस
(ii) करुण रस
(ख) (i) वात्सल्य-स्नेह (वत्सलता)
(ii) रति

खण्ड ‘ग’

प्रश्न 9.
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए|
भवभूति और कालिदास आदि के नाटक जिस जमाने के हैं उस जमाने में शिक्षितों का समस्त समुदाय संस्कृत ही बोलता था, इसका प्रमाण पहले कोई दे ले तब प्राकृत बोलने वाली स्त्रियों को अपढ़ बताने का साहस करे। इसका क्या सबूत कि उस जमाने में बोलचाल की भाषा प्राकृत न थी? सबूत तो प्राकृत के चलने के ही मिलते हैं। प्राकृत यदि उस समय की प्रचलित भाषा ने होती तो बौद्धों तथा जैनों के हजारों ग्रंथ उसमें क्यों लिखे जाते, और भगवान शाक्य मुनि तथा उनके चेले प्राकृत ही में क्यों धर्मोपदेश देते? बौद्धों के त्रिपिटक ग्रंथ की रचना प्राकृत में किए जोन का एकमात्र कारण यही है कि उस जमाने में प्राकृत ही सर्वसाधारण की भाषा थी। अतएव प्राकृत बोलना और लिखना अपढ़ और अशिक्षित होने का चिन्ह नहीं।
(क) नाटककारों के समय में प्राकृत ही प्रचलित भाषा थी-लेखक ने इस संबंध में क्या तर्क दिए हैं? दो का उल्लेख कीजिए। [2]
(ख) प्राकृत बोलने वाले को अपढ़ बताना अनुचित क्यों है?   [2]
(ग) भवभूति-कालिदास कौन थे? [1]
उत्तर:
(क) बौद्ध धर्म में त्रिपिटक ग्रंथ की रचना प्राकृत में हुई थी। प्राकृत ही जनसाधारण के बोलचाल की भाषा थी।
(ख) लेखक के अनुसार प्राकृत को बोलने वाले अपढ़ नहीं थे। क्योंकि प्राकृत जन प्रचलित भाषा थी। जिसे सुशिक्षित व्यक्तियों द्वारा बोला जाता था। प्राकृत भाषा में हजारों धर्मग्रंथ लिखे गए हैं। शाक्य मुनि एवं उनके शिष्य प्राकृत में ही धर्मोपदेश दिया करते थे।
(ग) भवभूति और कालिदास संस्कृत के महान नाटककार थे। साथ ही दार्शनिक भी थे। इन्होंने कई विख्यात नाटकों की भी रचना की थी।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए-    [2 × 5 = 10]
(क) मन्नू भंडारी ने अपने पिताजी के बारे में इंदौर के दिनों की क्या जानकारी दी?
(ख) मन्नू भंडारी की माँ धैर्य और सहनशक्ति में धरती से कुछ ज्यादा ही थी-ऐसा क्यों कहा गया?
(ग) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ को बालाजी के मंदिर का कौन-सा रास्ता प्रिय था और क्यों?
(घ) संस्कृति कब असंस्कृति हो जाती है और असंस्कृति से कैसे बचा जा सकता है?**
(ङ) कैसा आदमी निठल्ला नहीं बैठ सकता? संस्कृति पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।**
उत्तर:
(क) इंदौर में वे सामाजिक–राजनीतिक संगठनों से जुड़े थे। उन्होंने शिक्षा का उपदेश ने दिया अपितु विद्यार्थियों को अपने घर पर रखकर भी पढ़ाया जिससे वे बाद में ऊँचे-ऊँचे पद पर आसीन हुए। वहाँ के समाज में उनकी काफी प्रतिष्ठा और सम्मान था।

(ख) लेखिका की माँ अपने पति के दुर्व्यवहार एवं विभिन्न कारणों से उपजे क्रोध को अपना प्राप्य और बच्चों की प्रत्येक उचित-अनुचित फरमाइशे तथा ज़िद को अपना फर्ज समझकर बड़े सहज भाव से स्वीकार करती थी। उन्होंने जिंदगी भर अपने लिए कुछ नहीं चाहा कुछ नहीं माँगा बल्कि अपने पति और बच्चों की खुशियों को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था। उनका त्याग, धैर्य सहिष्णुता तथा सहनशक्ति उनकी विवशता और मजबूरी के प्रतीक हैं। लेखिका की माँ उपर्युक्त विशेषताओं के कारण धैर्य और सहनशक्ति में धरती से कुछ ज्यादा ही थीं।

(ग) बिस्मिल्ला खाँ को रसूलनबाई और वतूलन बाई के यहाँ से होकर बालाजी मंदिर जाने का रास्ता बहुत प्रिय था क्योंकि इससे होकर जाने में उन दोनों गायिका बहनों का मधुर गायन सुनने को मिलता था। ।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए     [5]
वह अपनी पूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से
गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
खो चुका होता है।
या अपनी ही सरगम को लाँघकर
चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहती है।
जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था।
(क) ‘वह अपनी पूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ख) मुख्य गायक के अंतरे की जटिल-तान में खो जाने पर संगतकार क्या करता है?
(ग) संगतकार, मुख्य गायक को क्या याद दिलाता है?
उत्तर:
(क) मुख्य गायक के गायन को प्रभावी बनाने, उसकी सहायता करने के लिए संगतकार उसके स्वर से अपना स्वर मिलाते हैं। ऐसी परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।
(ख) मुख्य गायक के अंतरे जटिल तान में खो जाने पर अर्थात् उसके स्वर के बिगड़ जाने पर संगतकार अपने स्वर से सहारा देकर उसे संभालता है।
(ग) संगतकार अपनी कोमल, सुंदर तथा क्षीण आवाज से कदम-कदम पर मुख्य गायक के गायन में सहायता करता है। मुख्य गायक जब भटकने लगता है अथवा अनहद की गूंज में लड़खड़ा जाता है तब संगतकार ही स्थाई भाव को सँभाले रखता था। ऐसा करके संगतकार मुख्य गायक को उसके द्वारा बचपन में की गई गलतियों की याद दिलाता है।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए- [2 × 5 = 10]
(क) लड़की जैसी दिखाई मत देना’ यह आचरण अब बदलने लगा है-इस पर अपने विचार लिखिए।
(ख) बेटी को अंतिम पूँजी क्यों कहा गया है?
(ग) ‘दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं कथन में किस यथार्थ का चित्रण है?
(घ) बहु धनुही तोरी लरिकाई-यह किसने कहा और क्यों?
(ङ) लक्ष्मण ने शूरवीरों के क्या गुण बताए हैं?
उत्तर:
(क) नारी सशक्तिकरण के युग में लड़कियाँ अब लड़की जैसी दिखाई नहीं देती है क्योंकि अब समय बदल रहा है। वे पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर प्रत्येक क्षेत्र में कार्य कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रही हैं। इंदिरा गाँधी, लता मंगेशकर, साक्षी मलिक, पी.टी. ऊषा, सानिया मिर्जा, पी.वी. सिंधु, कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स जैसे कई उदाहरण हैं जिनका नाम लेते ही समाज में नारियों की सफलता का परचम स्वतः फहरने लगता है। ऐसे में नारियों की दुनियाँ सिर्फ घर और रसोई तक सीमित नहीं है।

कमजोर और बेबस हो सकी यातनाओं को सहन नहीं कर रही है। क्योंकि वे अब शिक्षित हैं तथा उन्हें अपने अधिकारों का उचित प्रयोग करना आता है।

(ख), बेटी का लगाव माँ से सबसे अधिक होता है। वह उसके सबसे निकट एवं उसके सुख-दुख की साथी होती है। माँ भी अपनी बेटी को पूँजी की तरह सहेजकर पालती पोसती है। विवाह के पश्चात् यह पूँजी भी जाने वाली होती है। माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी इसलिए लग रही है, क्योंकि उसके जाने के बाद कौन उसका सुख-दुःख पूछेगा एवं वह अपने मन की बात किससे कहेगी।

(ग) जब जीवन में लक्ष्य प्राप्ति के लिए किए प्रयास संघर्ष सफल होते हैं तो जीवन में सदैव उत्साह रहता है। जीवन में आई बाधाओं से संघर्ष करने में आनंदानुभूति होती है। इसके विपरीत अभीष्ट की प्राप्ति के लिए किए गए प्रयास और संघर्ष असफल होते हैं तो हतोत्साहित व्यक्ति को कोई पथ दिखाई नहीं देता है। इस प्रकार जीवन में अंधेरा ही अंधेरा छा जाता है। दूर-दूर तक दुखों का अंत नहीं होता है।

(घ) लक्ष्मण ने उक्त कथन कहा-हमने बचपन में ऐसी अनेक धनुहियाँ तोड़ी थी, तब आपने कभी गुस्सा नहीं किया। इस धनुष के टूट जाने पर इतना गुस्सा क्यों? किस कारण धनुष के प्रति इतना स्नेह है?

(ङ) लक्ष्मण ने शूरवीरों के निम्नलिखित गुण बताए
(i) वीर योद्धा रण क्षेत्र में शत्रु के समक्ष पराक्रम दिखाते हैं।
(ii) वे शत्रु के समक्ष अपनी वीरता का बखान नहीं करते
(ii) वे ब्राह्मण, देवता, गाय और प्रभु भक्तों पर पराक्रम नहीं दिखाते हैं।
(iv) वीर क्षोभरहित होते हैं तथा अपशब्दों का प्रयोग नहीं करते हैं।

प्रश्न 13.
जल-संरक्षण से आप क्या समझते हैं? हमें जल-संरक्षण को गंभीरता से लेना चाहिए, क्यों और किस प्रकार? जीवन मूल्यों की दृष्टि से जल-संरक्षण पर चर्चा कीजिए।    [5]
उत्तर:
जल संरक्षण अर्थात् जेल का रक्षण, जल को बचाना। आधुनिक मानव ने जल के अति दोहन एवं प्रदूषण ने जल को जो मानवकृत संकट उपस्थित किया है, वह किसी भी तरह सामूहिक आत्मघात से कम नहीं है। देश में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची हुई है। भूगर्भ का जलस्तर निरन्तर कम होता जा रहा है। गहराई से आने वाला पानी खारा और अपेय हो गया है। नदियाँ हमारे कुकर्मों के कारण प्रदूषित ही नहीं हुई हैं। बल्कि समाप्त होने के कगार पर आ गई हैं। प्रदूषण के कारण भूमण्डलीय ताप में वृद्धि हो रही है और ध्रुव प्रदेश की बर्फ तथा ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। यह महासंकट की , चेतावनी है, जिसे मनुष्य स्वार्थवश अनसुनी कर रहा है।

वर्तमान में जल संरक्षण आवश्यक ही नहीं अनिवार्य हो गया है। जीना है तो जल को बचाना ही होगा उसका सही और नियन्त्रित उपयोग करना चाहिए। जलाशयों को प्रदूषित होने से बचाना होगा। वृक्षारोपण करने होंगे। बरसात के पानी को संरक्षित कर उसका उपयोग किया जा सकता है। गली-मोहल्लों में नुक्कड़ नाटक द्वारा जल संरक्षण की इस मुहिम को पहुँचाना होगा कि भविष्य में जो जल संकट होने की संभावना उत्पन्न हो रही है, उसके लिए अभी से सब तत्पर हो जाएं तथा वर्तमान में जल संरक्षण करें।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर 250 शब्दों में निबंध लिखिए [10]
(क) एक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम

  • सजावट और उत्साह
  • कार्यक्रम का सुखद आनन्द
  • प्रेरणा

(ख) वन और पर्यावरण ।

  • वन अमूल्य वरदान
  • मानव से संबंध
  • पर्यावरण के समाधान

(ग) मीडिया की भूमिका

  • मीडिया का प्रभाव
  • सकारात्मकता और नकारात्मकता
  • अपेक्षाएँ

उत्तर:
(क) एक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम
पिछले सप्ताह हमारे स्कूल का स्थापना दिवस बड़ी धूम-धाम से मनाया गया। इस अवसर पर एक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। यह कार्यक्रम रात्रि आठ बजे से बारह बजे तक चला। सारा कार्यक्रम इतना आनन्दमय था कि पता ही नहीं चला कि कब समय बीत गया। कार्यक्रम की प्रस्तुति विशिष्ट थी।

सर्वप्रथम, ‘सरस्वती वंदना का कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। निराला द्वारा रचित सरस्वती वंदना वीणा वाणिनी वर दे की प्रस्तुति अत्यंत भावपूर्ण ढंग से की गई। सारा वातावरण भक्तिमय बन गया था। इसके पश्चात् एक छात्रा का भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुत हुआ। यद्यपि वह दसवीं कक्षा की ही छात्रा थी, पर उसके नृत्य की भाव-भंगिमाएँ उसे एक कुशल नर्तकी दर्शा रही थी। दर्शक बार-बार तालियाँ बजाकर उसका उत्साहवर्द्धन कर रहे थे। 15 मिनट तक उसने अनोखा समां बांधा। इसके पश्चात् हास्य व्यंग्य का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। इसमें अभिनय, गीत, चुटकुले आदि का समावेश था। हास्य भरे संवाद सुनकर लोगे लोट-पोट हो गए। सब तरफ हँसी का माहौल बन गया। सब लोग काफी खुश नजर आये। इसके बाद देश भक्ति की भावना पर आधारित समूहगान प्रस्तुत किया गया। इसमें भाग लेने वालों के हाव-भाव देखते ही बन रहे थे। सारा वातावरण देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत हो गया।

अब बारी आई कव्वाली की। लड़के-लड़कियाँ दो विरोधी गुटों में बँटी थीं। वे एक-दूसरे पक्ष को नीचा दिखाने पर तुले थे। उनके बोल और भाव मशहूर कव्वालों जैसे लग रहे थे। दस मिनट तक कव्वाली ने खूब रंग जमाया।

इसके बाद एकल गाने सुनाए गए। इनमें कुछ फिल्मी गाने थे तो कुछ हरियाणवी। दोनों प्रकार के गाने बहुत ही अच्छे लगे। हरियाणा की रागिनी ने समाँ बाँधा। अंत में भांगड़ा नृत्य पेश किया गया। बहुत अच्छे नृत्य थे। इस नृत्य का उत्साह और नृत्य भंगिमाएँ देखती ही बन रही थीं। लोगों में जोश दौड़ने लगा।

इसके बाद समूह गान का कार्यक्रम शुरू हुआ। तानपूरे पर एक गायिका तन्मय होकर गा रही थी। सुनने वाले मंत्रमुग्ध होकर बैठे थे। लगभग 15 मिनट तक खूब समाँ बाँधा। लोगों की इसमें कम ही रुचि होती है पर यहाँ यह कार्यक्रम खूब जमा।

अब कार्यक्रम अंतिम चरण की ओर बढ़ रहा था। समय भी बहुत हो चला था। समारोह के अंत में मुख्य अतिथि का भाषण हुआ और राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम समाप्त हो। गया। यह कार्यक्रम लंबे समय तक याद किया जाएगा।

(ख) वन और पर्यावरण वन प्रकृति का अनुपम उपहार हैं। इस अमूल्य संपदा के कोष को बनाए रखने की आवश्यकता है। पेड़-पौधे तथा मनुष्य एक-दूसरे के पोषक हैं। इन वृक्षों, पेड़-पौधे अथवा वनों से प्राकृतिक तथा पर्यावरण संतुलन बना रहता है। संतुलित वर्षा तथा प्रदूषण से बचाव के लिए भी वनों के संरक्षण की आवश्यकता है। इतना ही नहीं, शस्य–स्यामला भूमि को बंजर होने से बचाने, भू-क्षरण, पर्वत-स्खलन आदि को रोकने में भी वन संरक्षण अनिवार्य होता है। इन्हीं वनों में अनेक वन्य प्राणियों को आश्रय मिलता है। हमारे देश में तो वृक्षों को पूजने की परंपरा है। हमारी संस्कृति में वृक्षारोपण पुण्य का कार्य माना जाता है तथा किसी फलदार अथवा हरे-भरे वृक्ष को काटना पाप है। पुराणों के अनुसार एक वृक्ष लगाने से उतना ही पुण्य मिलता है जितना इस गुणवान पुत्रों का यश खेद का विषय है कि आज हम वन-संरक्षण के प्रति न केवल उदासीन हो गए हैं वरन् उनकी अंधाधुंध कटाई करके स्वयं अपने पैरों पर कुलहाड़ी मार रहे हैं, जिससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। आए दिन आने वाली बाढ़े, सूखा, भू-क्षरण, पर्वत-स्खलन तथा पर्यावरण की समस्या मानव के विनाश की भूमिका बाँध रही हैं। समस्याएँ चेतावनी देती हैं-‘हे मनुष्य! अभी समय है, वनों की अंधाधुंध कटाई मत कर अन्यथा बहुत पछताना पड़ेगा पर मानव है कि उसके कान खड़े नहीं होते। वह वनों की कटाई के इन दूरगामी दुष्परिणामों की ओर से जान-बूझकर आँख मूंदे हुए हैं।

हमारे वन हमारे उद्योगों के लिए मजबूत आधार प्रस्तुत . करते हैं। ये ईंधन, इमारती लकड़ी प्रदान करते ही हैं, साथ ही अनेक उद्योग-धंधों के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध कराते हैं। लाख, गोंद, रबड़ आदि हमें वनों से ही प्राप्त होते हैं। प्लाइवुड, रेशम, वार्निश, कागज, दियासलाई जैसे अनेक उद्योग-धंधे वनों की ही अनुकंपा पर आधारित हैं। ये वन भूमिगत जल के स्रोत हैं।

आज नगरीकरण शैतान की आँत की तरह बढ़ता जा रहा है जिसके लिए वनों की अंधाधुंध कटाई करके मनुष्य स्वयं अपने विनाश को निमंत्रण दे रहा है। सिकुड़ते जा रहे वनों के कारण पर्यावरण प्रदूषण इस हद तक बढ़ गया है कि साँस लेने के लिए स्वच्छ वायु दुर्लभ हो गई है। बड़े-बड़े उद्योग-धंधों की चिमनियों से निकलता धुआँ वातावरण को प्रदूषित कर रहा है। बेमौसमी बरसात तथा ओलों की वजह से खेत में पड़ी फसलें खराब हो जाती हैं तथा धरती मरुस्थल में बदलती जा रही है। पेड़ों तथा वनों की कटाई के कारण ही पर्वतों से करोड़ों टनं मिट्टी बह-बहकर नदियों में जाने लगी है। सबसे गंभीर बात तो यह है कि पृथ्वी के सुरक्षा कवच ओजोन में भी बढ़ते प्रदूषण के कारण दरार पड़ने लगी है। यदि वनों की कटाई इसी प्रकार चलती रही, तो वह दिन दूर नहीं जब यह संसार शनैः-शनैः समय के मुँह में जाने लगेगा और विनाश का तांडव होगा। वनों की कटाई के स्थान पर उद्योग-धंधे ऐसे स्थानों पर स्थापित किए जाएँ, जहाँ बंजर भूमि हैं तथा कृषि योग्य भूमि नहीं है। हर्ष का विषय है कि सरकार ने वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया है। मनुष्य भी इस ओर जागृत हुआ है तथा अनेक समाजसेवी संस्थाओं ने वन-संरक्षण की महत्ता को जन-जन तक पहुँचाया है। चिपको आंदोलन इस दिशा में सराहनीय कार्य कर रहा है।

(ग) मीडिया की भूमिका
जिन साधनों का प्रयोग कर बहुत से मानव समूहों तक विचारों, भावनाओं व सूचनाओं को सम्प्रेषित किया जाता है, उन्हें हम जनसंचार माध्यम या मीडिया कहते हैं। मीडिया, ‘मीडियम’ शब्द का बहुवचन रूप है, जिसका अर्थ होता है-माध्यम।

इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के अन्तर्गत रेडियो, टेलीविजन एवं सिनेमा आते हैं। मीडिया से किसी न किसी रूप में जुड़े रहना, आधुनिक मानव की आवश्यकता बनती जा रही है। मोबाइल, रेडियो, इंटरनेट इत्यादि में से किसी न किसी उत्त माध्यम से व्यक्ति हर समय दुनियाभर की खबरों पर नजर रखना चाहता है।

आज समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, रेडियो और टेलीविजन विश्वभर में जनसंचार के प्रमुख एवं लोकप्रिय माध्यम बन चुके हैं। शहर से दूरदराज क्षेत्रों में, जहाँ आज भी बिजली नहीं पहुँची है, रेडियो ही जनसंचार का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम है। न्यूज चैनलों की स्थापना के साथ ही यह जनसंचार का एक ऐसा सशक्त माध्यम बन गया, जिसकी पहुँच करोड़ों लोगों तक हो गई।

मीडिया की भूमिका किसी भी समाज के लिए महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि यह न केवल सूचना के प्रसार को कार्य करता है बल्कि लोगों को किसी मुद्दे पर अपनी राय कायम करने में भी सहायक होता है। हाल ही में 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में जब प्रिण्ट ही नहीं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के भी दिग्गज बहती गंगा में हाथ धोते नजर आए, तब कुछ निर्भीक एवं निष्पक्ष समाचार-पत्रों ने पत्रकारिता के अपने धर्म के अन्तर्गत देश को उनकी असलियत बताई है।

मीडिया का प्रभाव आधुनिक साज पर स्पष्ट देखा जा सकता है। चाहे फैशन का प्रचलन हो या आधुनिक गीत-संगीत का प्रचार-प्रसार इन सबमें मीडिया की भूमिका अहम होती है।

इधर कुछ वर्षों से धन देकर समाचार प्रकाशित करवाने एवं व्यावसायिक लाभ के अनुसार समाचारों को प्राथमिकता देने की घटनाओं में भी तेजी से वृद्धि हुई है, इसका कारण यह है कि भारत के अधिकतर समाचार पत्रों एवं न्यूज चैनलों को स्वामित्व किसी न किसी स्थापित उद्यमी घराने के पास है। मीडिया के माध्यम से लोगों को देश की हर गतिविधियों की जानकारी तो मिलती ही है साथ ही उनका मनोरंजन भी होता है। मीडिया देश एवं राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक गतिविधि की सही तस्वीर प्रस्तुत करता है। यह सरकार एवं जनता के बीच एक सेतु का कार्य करता है।

जनता की समस्याओं को इस माध्यम से जन-जन तक पहुँचाया जा सकता है। विभिन्न प्रकार के अपराधों एवं घोटालों का पर्दाफाश कर यह देश एवं समाज का भला करता है। इसलिए निष्पक्ष एवं निर्भीक मीडिया के अभाव में स्वस्थ लोकतंत्र की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस तरह यह माध्यम आधुनिक समाज में लोकतन्त्र के प्रहरी का रूप ले चुका है और यही कारण है कि इसे लोकतन्त्र के चतुर्थ स्तम्भ की संज्ञा दी गई है।

प्रश्न 15.
पी.वी. सिंधु को पत्र लिखकर रियो ओलंपिक में उसके शानदार खेल के लिए बधाई दीजिए और उनके खेल के बारे में अपनी राय लिखिए। [5]
अथवा
अपने क्षेत्र में जल-भराव की समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए स्वास्थ्य अधिकारी को एक पत्र लिखिए।
उत्तर:
पी. वी. सिंधु को पत्र

58/19,
अलकापुरी,
दिल्ली।
दिनांक 20 सितम्बर, 20XX
प्रिय पी.वी. सिंधु
सस्नेह नमस्कार,
कल आपका टी.वी. पर प्रदर्शन देखा। उसे देखकर मुझे बहुत गर्व हुआ। आपने ओलम्पिक में रजत पदक प्राप्त करके भारत का नाम रोशन किया है। आपकी यह सफलता प्रशंसा के योग्य है। ओलम्पिक में रजत पदक पाना बड़े सम्मान की बात है।

यह देख कर मुझे बहुत गर्व महसूस हो रहा है कि आपने अपने माता-पिता का ही नहीं अपितु पूरे देश का नाम विश्व में रोशन किया हैं आप बहुत अच्छी खिलाड़ी हैं।

आपके परिश्रम एवं प्रतिभा को देखकर मुझे पूर्ण विश्वास हो गया है कि आप एक न एक दिन स्वर्ण पदक भी प्राप्त करोगी। ईश्वर से प्रार्थना है कि आप भविष्य में इसी प्रकार की सफलता प्राप्त कर जीवन के पथ पर आगे बढ़ती जाए। अंत में मेरी ओर से एक बार पुनः आपको इस सफलता के लिए हार्दिक बधाई । आपकी प्रशंसिका

अथवा
जल भराव की समस्या

सेवा में,
स्वास्थ्य अधिकारी,
आगरा नगर निगम,
आगरा।
दिनांक 20 जनवरी, 20XX
विषय-जलभराव की समस्या हेतु।
महोदय,
मैं लोहामंडी क्षेत्र की निवासी हैं तथा आपका ध्यान अपने क्षेत्र में जलभराव से हो रही समस्याओं की ओर आकर्षित करना चाहती हूँ। वर्षा ऋतु के पश्चात् जगह-जगह सड़कों पर जलभराव हो गया जिसके कारण मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है साथ ही आने-जाने वालों की गाड़ियों में पानी चले जाने के कारण खराब हो जाती हैं तथा वे दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। जल भराव से संपूर्ण क्षेत्र में दुर्गंध फैल रही है। ऐसा नहीं है कि हमारे क्षेत्र में सफाई कर्मचारी नहीं आते अपितु वे नियमित रूप से अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करते थे, परंतु वे उस जलभराव की समस्या का समाधान नहीं करते हैं। कई बार मौखिक रूप से क्षेत्रीय सफाई निरीक्षक से भी कहा तथा लिखित रूप में भी इसकी चर्चा की, परंतु किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। वर्षा के पानी का भराव गंदी नालियों और सफाई न होने के कारण पूरे क्षेत्र में मलेरिया के फैलने की भी संभावना बढ़ गई है। यह चिंता का विषय है।

अतः आप से अनुरोध है कि लोहामण्डी क्षेत्र के निवासी की इस समस्या के समाधान के लिए संबंधित अधिकारियों तथा कर्मचारियों को उचित निर्देश देने की कृपा करें। जिससे कि पूरा क्षेत्र इस जलभराव की समस्या से बच सके।

मुझे आशा है कि आप हमारे क्षेत्र की सफाई करवाने के लिए तुरंत आवश्यक कार्यवाही करेंगे।
भवदीया
अ ब स

प्रश्न 16.
निम्नलिखितगद्यांशका शीर्षकलिखकरएक-तिहाईशब्दों में सारलिखिएः [5]
संतोष करना वर्तमान काल की सामयिक आवश्यक प्रासंगिकता है। संतोष का शाब्दिक अर्थ है ‘मन की वह वृत्ति यो अवस्था जिसमें अपनी वर्तमान दशा में ही मनुष्य पूर्ण सुख अनुभव करता है। भारतीय मनीषा ने जिस प्रकार संतोष करने के लिए हमें सीख दी है उसी तरह असंतोष करने के लिए भी कहा है। चाणक्य के अनुसार हमें इन तीन उपक्रमों में संतोष नहीं करना चाहिए। जैसे विद्यार्जन में कभी संतोष नहीं करना चाहिए कि बस, बहुत ज्ञान अर्जित कर लिया। इसी तरह जप और दान करने में भी संतोष नहीं करना चाहिए। वैसे संतोष करने के लिए तो कहा गया है-जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान। हमें जो प्राप्त हो उसमें ही संतोष करना चाहिए। ‘साधु इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय, मैं भी भूखा न रहूँ साधु न भूखा जाए।’ संतोष सबसे बड़ा धन है। जीवन में संतोष रहा, शुद्ध-सात्विक आचरण और शुचिता का भाव रहा तो हमारे मन के सभी विकार दूर हो जाएंगे और हमारे अंदर सत्यनिष्ठा, प्रेम, उदारता, दया और आत्मीयता की गंगा बहने लगेगी। आज के मनुष्य की सांसारिकता में बढ़ती लिप्तता, वैश्विक बाजारवाद और भौतिकता की चकाचौंध के कारण संत्रास, कुंठा और असन्तोष दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। इसी असंतोष को दूर करने के लिए संतोषी बनना आवश्यक हो गया है। सुखी और शांतिपूर्ण जीवन के लिए संतोष सफल औषधि है।**

CBSE Previous Year Question Papers Class 10 Hindi A 2017 Delhi Term 2 Set – II

Note: Except for the following questions all the remaining questions have been asked in previous set.

खण्ड ‘ख’

प्रश्न 5.
निर्देशानुसार उत्तर दीजिए    [1 × 3 = 3]
(क) कभी ऐसा वक्त भी आएगा जब हमारा देश विश्वशक्ति होगा। (आश्रित उपवाक्य छाँटकर उसका भेद भी लिखिए)
(ख) घर से दूर होने के कारण वे उदास थे। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)।
(ग) जब बच्चे उतावले हो रहे थे तब कस्तूरबा की आशंकाएँ भीतर उसे खरोंच रही थीं। (सरल वाक्य में बदलिए)
उत्तर:
(क) जब हमारा देश विश्वशक्ति होगा। (आश्रित उपवाक्य क्रियाविशेषण)
(ख) घर से दूर थे इसलिए वे उदास थे।
(ग) बच्चों के उतावले होने के कारण कस्तूरबा की आशंकाएँ। भीतर से उसे खरोंच रही थीं।

प्रश्न 6.
निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तित कीजिए | [1 × 4 = 4]
(क) बुलबुल रात्रि विश्राम अमरूद की डाल पर करती है। (कर्मवाच्य में)
(ख) कुछ छोटे भूरे पक्षियों द्वारा मंच सँभाल लिया जाता है। (कर्तृवाच्य में)
(ग) वह रात भर कैसे जागेगी। (भाववाच्य में)
(घ) सात सुरों को इसने गजब की विविधता के साथ प्रस्तुत किया। (कर्मवाच्य में)
उत्तर:
(क) कर्मवाच्य- बुलबुल के द्वारा रात्रि विश्राम अमरूद की डाल पर किया जाता है।
(ख) कर्तृवाच्य- कुछ छोटे भूरे पक्षी मंच सँभाले लेते हैं।
(ग) भाववाच्य- उससे रात भर कैसे जागा जाएगा।
(घ) कर्मवाच्य- सात सुरों को उसके द्वारा गजब की विविधता के साथ प्रस्तुत किया गया।

प्रश्न 7.
रेखांकित पदों का पद-परिचय दीजिए [1 × 4 =4)
हिंदुस्तान वह सब कुछ है जो आपने समझ रखा है लेकिन वह इससे भी बहुत ज्यादा है।
उत्तर:
पद- परिचय
हिंदुस्तान- व्यक्तिवाचक संज्ञा, एकवचन, पुल्लिंग
आपने- सर्वनाम, पुरुषवाचक, एकवचन, पुल्लिंग
लेकिन– समुच्चयबोधक अव्यय
वह– सर्वनाम, अन्य पुरुषवाचक, एकवचन, पुल्लिंग
बहुत- अनिश्चित परिमाणवाचक, बहुवचन, पुल्लिंग।

प्रश्न 8.
(ख) (i) निम्नलिखित काव्यांश में कौन-सा स्थायी भाव है? [1 × 2 = 2]
कबहुँ पलक हरि मूंद लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै
सोवत जानि मौन है रहि रहि, करि करि सैन बतावै
इहि अंतर अकुलाई उठे हरि, जसुमति मधुर गावै।
(ii) वीर रस का स्थायी भावे लिखिए।
उत्तर:
(ख)
(i) वात्सल
(ii) उत्साह

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर 250 शब्दों में निबंध लिखिए [10]
(क) जैसी संगति वैसा स्वभाव

  • सदगुणों का विकास
  • कुसंग से बचाव
  • कैसे करें

(ख) खेल और स्वास्थ्य

  • खेलों की उपयोगिता
  • खेल और स्वास्थ्य का संबंध
  • हमारा कर्तव्य

(ग) हमारे पड़ोसी

  • पड़ोसियों का महत्त्व
  • हमारी पड़ोसी
  • विशेष बातें

उत्तर:
(क) जैसी संगति वैसा स्वभाव
संगति को लेकर अनेक सार्थक और तथ्यपूर्ण उक्तियाँ कही गयी हैं। अनेक कहानीकारों ने सत्संगति की महत्ता को अपनी कहानी का विषय बनाया है जिसके माध्यम से उन्होंने लोगों के जीवन में सत्संगति का प्रभाव दर्शाया है। इसलिए श्री तुलसीदास की उक्ति सार्थक ही है कि

एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आधा
तुलसी संगति साधु की कटै कोटि अपराध।।

सज्जन पुरुषों से सत्संग पाकर अति सामान्य जन महान हो गए। जीवन सुधरा उनके जीवन लक्ष्य बदले और ध्येय पथ पर अग्रसर होते हुए महानों से महान बनें।

अंगुलिमाल जैसी पातकी महात्मा बुद्ध के सान्निध्य से अपनी हिंसक प्रवृत्ति को छोड़ दिया। यह संगति का प्रभाव था। इसलिए यह सत्य है कि सत्संगति सद्गुणों का विकास करती है। मनुष्य के असत विचारधाराओं को दूर कर सद् प्रवृत्ति का विकास करती है। जिस प्रकार बुरे लोगों के पास बैठने से वैसा ही प्रभाव पड़ता है उसी प्रकार सज्जन लोगों के संसर्ग से भी प्रभाव पड़े नहीं रहता है।

इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि श्री तुलसीदास जी ने सत्य ही कहा है कि

शठ सुधरहिं सत्संगति पाई।
पारस परसि कुधात सुहाई।।

इसलिए महापुरुषों का सत्संग तीर्थ से भी बढ़कर है या यह कहा जाए कि महापुरुषों की संगति चलती हुई तीर्थ है जिससे बारह वर्ष के बाद आने वाले महाकुंभ के स्नान से भी बढ़कर पुण्य मिलता है जिसका फल तुरंत मिलता है। अतः सत्य है कि पुरुषों के कथनानुसार अच्छी संगति से जीवन पवित्र हो जाता है। इसके महत्व को स्वीकारते हुए श्री तुलसीदास जी ने यहाँ तक कहा है। कि

तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग,
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सत्संग।

जहाँ विद्वानों ने अच्छी संगति की महिमा के गीत गाए हैं। वहीं कुसंग से बचने की सलाह भी दी है। यद्यपि सज्जन पुरुष पर कुसंग का प्रभाव नहीं पड़ता है तथापि लगातार कुसंग के संसर्ग में रहने का प्रभाव भी पड़े बिना भी नहीं रहता है।

रघुवंश की राजरानी कही जाने वाली कैकेयी जैसी विदुषी, सद्गुणसंपन्न, वीरांगना, राजा दशरथ की प्रिय भार्या, भरत जैसे चरित्रवान पुत्र की जननी, कुसंगति मंथरा के कुसंग के प्रभाव को न नकार सकी और सदा-सदा के लिए लोगों के लिए हेय बन गई। कैकेयी मंथरा का संसर्ग पाकर बालक राम को वन भेजने के लिए हठ कर बैठी। इस संदर्भ में तुलसीदास जी ने इस प्रकार कहा है कि

को न कुसंगति पाई नसाई।
रहे न नीच मतों चतुराई।।।

अतः विद्वान मानव समाज’ को प्रेरित करते आए हैं कि यथासंभव कुसंग से, परनिंदा से बचना चाहिए। संत कवि कबीरदास जी ने भी समाज को सीख देते हुए कहा है। कि

कबिरा संगति साधु की हरे और की व्याधि।
संगति बुरी असाधु की, आठों पहर उपाधि।।

(ख) खेल और स्वास्थ्य
खेल मात्र खाली समय का सदुपयोग नहीं है, अपितु जीवन की नियमित आवश्यकता है। जिसने दिन में एक बार खेलों को स्थान दिया है, वह जीवन में सदैव खुश रहा है। बड़ी मुसीबतों में विचलित नहीं होता है।

धन के अभाव में मनुष्य सुख का अनुभव कर सकता है। शरीर के स्वस्थ रहने पर धन प्राप्त करने के प्रयास किए जा सकते हैं। किन्तु अस्वस्थ रहने पर सुखों का अनुभव तो दूर, सब कुछ सामने होते हुए भी सुख की कामना नहीं कर पाता है। अतः जिसका स्वास्थ्य अच्छा है वह ही सब कुछ करने की और सब कुछ प्राप्त करने की इच्छा रख सकता है। इसलिए जीवंत पुरुष यही कहा करते हैं। कि मानव को स्वास्थ्य के प्रति सदैव सचेत रहना चाहिए। जिसने नियमित खेलना सीख लिया, जीवन में नियमित प्रातः भ्रमण करना सीख लिया उसने सब सीख लिया। रोग-व्याधि उससे दूर ही भागते हैं। भौतिक सुखों को तभी प्राप्त किया जा सकता है जब शरीर आरोग्य हो। खेलने वाले साथियों के मध्य रहें। हँसना भी खेल का एक हिस्सा है। हँसी तभी आनंददायक होगी जब हम शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होंगे।

स्वस्थ युवक खेल-सामग्री के अभाव में भी खेल सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि खेल के लिए विशेष साधन जुटाएं जाएं साधन के अभाव में भी खिलाड़ी कोई-न-कोई खेल ढूंढ़ ही लेते हैं। साथी न मिलने पर भी मस्ती में अकेले भी खेला जा सकता है। पहले बच्चे लकड़ी की गाडी बनाकर खेलते थे और आज खेल के साधन बाजार में महँगे दामों पर मिलते हैं। यह सोचकर मत बैठे कि जब तक साधन नहीं होंगे तब तक कैसे खेलें। बहुत से लोग आज अपने स्तर को बनाए रखने के लिए बच्चों को घर में कैद रखना चाहते हैं, वे खेल के सभी साधन घर में ही जुटा देते हैं, जिससे सामुहिक खेलों से बालक वंचित रह जाता है। घर में खेले जाने वाले खेलों से मानसिक खेल तो हो जाते हैं, किन्तु शारीरिक खेल नहीं हो पाते। हैं। शारीरिक खेल तो घर से बाहर सामुहिक रूप से ही संपन्न होते हैं। आज क्रिकेट, फुटबॉल, बास्केटबाल तथा अन्य-अन्य खेलों के प्रति स्तरीय रुचि संपन्न घरों में पैदा हुई है। ग्रामीण अंचल में खेले जाने वाले प्रायः सभी खेल बिना किसी विशेष साधन के खेले जाते रहे हैं।

आयुर्वेद में कहा गया है कि खूब भूख लगने पर भोजन का आनंद मिलती है और परिश्रम से पसीना आने पर शीतल छाया का आनंद मिलता है। थकाने के बाद शीतल छाया में और सामान्य भोजन में जो आनंद की अनुभूति होती है ऐसी आनंद की अनुभूति रोगग्रस्त शरीर को विविध प्रकार के ‘व्यंजनों में भी नहीं मिलती है। उदाहरणस्वरूप जो बालक रुचि से खेलता है उसकी पाचन शक्ति बढ़ती है। दूसरी ओर आलसी बच्चे होते हैं जो टी.वी. पर आने वाले पदार्थों के विज्ञापन की ओर आकर्षक होते हैं तथा उन्हें ही प्रयोग करते हैं। अतः खेलने वाले बच्चों, युवकों के लिए कभी चिकित्सकों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। शरीर स्वयं अरोग्य हो जाता है। खेल हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। हम स्वयं खेलते हुए स्वस्थ रहते हुए दूसरों को भी उत्त प्रेरित करें। जब हम हरी सब्जी तथा ताजे फल खाएँगे तो हम स्वस्थ रहेंगे तथा रोज व्यायाम करना भी बेहतर हो सकता है। खेलने से हमारे शरीर का विकास होता है।

(ग) हमारे पड़ोसी
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है”
अरस्तु मनुष्य समाज से पृथक रहकर अपने जीवन यापन की कल्पना नहीं कर सकता है। अगर वह ऐसा करता है। तो वह पशुतुल्य है। सामाजिक जीवन में सर्वप्रथम एक अच्छे पड़ोसी की आवश्यकता होती है। दिन अथवा रात कठिन परिस्थितियों में हम सबसे पहले अपने पड़ोसी से सहायता माँगते हैं, क्योंकि वही हमारे सबसे निकट होता है। इसलिए यह कहना अनुचित न होगा कि हमारा प्रिय स्वजन हमारा पड़ोसी होता है। यही हमारी मदद करता है। अगर हमारे अच्छे पड़ोसी हैं तो ऐसा प्रतीत होगा कि हम स्वर्ग में रह रहे हैं क्योंकि अच्छे पड़ोसी होते हैं तो हमारे जीवन की आधी परेशानियाँ स्वतः समाप्त हो जाती हैं जिससे हमारे जीवन शैली और जीवन स्तर में विकास होता है। पड़ोसी एक-दूसरे के पूरक होते हैं। खुशनुमा अवसर हो अथवा गमगीन माहौल, पड़ोसी जितनी सहायता करते हैं उतनी तो कभी हमारे अपने भी न करें। अच्छे पड़ोसी आवश्यकता पड़ने पर निःस्वार्थ भाव से हमारी सम-विषम परिस्थितियों में हमारे साथ खड़े होते हैं तथा हमारे सहायक भी होते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि “प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है।”

मेरे माता-पिता विवाहोत्सव में सम्मिलित होने के लिए शहर से बाहर गए थे। इस बीच मेरे छोटे भाई का स्वास्थ्य अचानक खराब हो गया। उन्होंने और उनकी धर्मपत्नी ने पूरी रात बैठकर उसकी देखभाल की। परिणामस्वरूप अगले दिन उसके स्वास्थ्य में सुधार आ गया। हमारे पड़ोसी बहुत सरल एवं सज्जन व्यक्ति हैं। हमेशा हमारी सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। हमारे मध्य बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध बन गए हैं। मारनी जैक्सन ने सही कहा है कि जिस तरह हम अपने परिवार के सदस्यों को नहीं चुन सकते, उसी प्रकारे पड़ोसियों को चुनना भी अकसर हमारे वश में नहीं होता है। इस तरह के रिश्तों में सूझ-बूझ से काम लेना पड़ता है, अदब से पेश आने और सहनशीलता दिखाने की जरूरत पड़ती है।”

प्रश्न 15.
अपने प्रधानाचार्य को पत्र लिखकर अनुरोध कीजिए कि ग्रीष्मावकाश में विद्यालय में रंगमंच प्रशिक्षण के लिए एक कार्यशाला राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सहयोग से आयोजित की जाए। इसकी उपयोगिता भी लिखिए। [5]
अथवा
अपने चाचाजी को पत्र लिखकर अनुरोध कीजिए कि वे आपके पिताजी को इस बात के लिए समझाकर राजी करें कि आपको बाढ़-पीढ़ितों की सहायता के लिए गठित स्वयंसेवकों के साथ जाने के लिए सहमत हों।
उत्तर:
सेवा में,
प्रधानाचार्य,
सर्वोदय बाल विद्यालय,
कमलानगर,
आगरा।
5 जुलाई, 20XX
विषय-ग्रीष्मावकाश में विद्यालय में रंगमंच प्रशिक्षण के लिए नाट्य कार्यशाला हेतु।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि हम ग्रीष्मावकाश में विद्यालय में रंगमंच प्रशिक्षण के लिए एक कार्यशाला राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सहयोग से आयोजित करना चाहते हैं। इसकी कई उपयोगिताएँ भी हैं, जिसके परिणामस्वरूप हमारे विद्यालय के विद्यार्थी इस कार्यशाला में नाट्य सम्बन्धी कई अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों/बिंदुओं को सीख सकेंगे एवं इससे लाभ लेकर वह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन और अत्यधिक प्रभावी ढंग से कर सकेंगे। इस प्रशिक्षण कार्यशाला में विद्यालय के शिक्षकों का भी पूर्ण योगदान रहेगा। अतः आपसे अनुरोध है कि आप हमें ग्रीष्मावकाश में विद्यालय में रंगमंच प्रशिक्षण के लिए कार्यशाला आयोजित करने की अनुमति प्रदान करने का कष्ट करें, जिससे सभी लोग लाभान्वित हो सकें।
धन्यवाद!
आपका आज्ञाकारी शिष्य
अभिषेक
(छात्र प्रमुख)

अथवा

पता : 37/18 जनकपुरी दिल्ली,
20 नबम्बर 20XX
आदरणीय चाचाजी,
सादर प्रणाम।
आशा करता हूँ कि घर में सब कुशलमंगल होंगे। हम भी यहाँ सब कुशलमंगल हैं। चाचाजी इस समय आपको पत्र लिखने का विशेष कारण है। हमारे विद्यालय से कुछ स्वयंसेवक संगठित होकर बाढ़ग्रस्त पीड़ितों की सहायता करने हेतु जा रहे हैं। मैंने भी अपना नाम दे दिया है और अगले सप्ताह मुझे उनके साथ जाना है। मगर पिताजी मुझे इस कार्य में जाने के लिए अपनी अनुमति नहीं दे रहे हैं।

आप अच्छी तरह जानते हैं इस समय बाढ़ पीड़ितों को हमारी मदद की आवश्यकता है। इस समय केवल आप हैं, जो मेरी सहायता कर सकते हैं। पिताजी को अब आप समझा सकते हैं। पत्र मिलते ही पिताजी से बात अवश्य कीजिए। पत्र समाप्त करता हूँ और आपके जवाब की प्रतीक्षा रहेगी।
आपका भतीजा
निर्मल सिंह

CBSE Previous Year Question Papers Class 10 Hindi A 2017 Delhi Term 2 Set – III

Note : Except for the following questions all the remaining questions have been asked in previous sets.

खण्ड ‘ख’

प्रश्न 5.
निर्देशानुसार उत्तर दीजिए   [1 × 3 = 3]
(क) मैंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों के अभावग्रस्त जीवन के बारे में मैं सब जानती हूँ। (आश्रित उपवाक्य छाँटकर उसका भेद भी लिखिए)
(ख) सीधा-सादा किसान सुभाष पालेकर अपनी नेचुरल फार्मिंग में कृषि के क्षेत्र में क्रांति ला रहा है। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
(ग) अपने उत्पाद को सीधे ग्राहक को बेचने के कारण किसान को दुगुनी कीमत मिलती है। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
उत्तर:
(क) संज्ञा उपवाक्य– कि स्वतंत्रता सेनानियों के अभावग्रस्त जीवन के बारे में मैं सब जानती हूँ।
(ख) मिश्र वाक्य– जितना सीधा-सादा किसान सुभाष पालेकर है, उतना ही अपनी नेचुरल फार्मिंग से कृषि के क्षेत्र में क्रांति ला रहा है।
(ग) संयुक्त वाक्य- अपने उत्पाद को सीधे ग्राहक को बेचा इसलिए किसान को दुगुनी कीमत मिली।

प्रश्न 6.
निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तित कीजिए- [1 × 4 = 4]
(क) मैनाओं ने गीत सुनाया (कर्मवाच्य में)
(ख) माँ अभी भी खड़ी नहीं हो पाती। (भाववाच्य में)
(ग) बीमारी के कारण उससे उठा नहीं जाता। (कर्तृवाच्य में)
(घ) क्या अब चला जाए? (कर्तृवाच्य में)
उत्तर:
(क) कर्मवाच्य-मैनाओं के द्वारा गीत सुनाया गया।
(ख) भाववाच्य-माँ से अभी भी खड़ा नहीं हुआ जाता।
(ग) कर्तृवाच्य-बीमारी के कारण वह उठ नहीं पाता।
(घ) कर्तृवाच्य-क्या अब चलें ?

प्रश्न 7.
रेखांकित पदों का पद-परिचय दीजिए- [1 × 4 = 4]
मानव सभ्य तभी है जब वह युद्ध से शांति की ओर आगे बढ़े।
उत्तर:
मानव- जातिवाचक संज्ञा, एकवचन, पुल्लिग, कर्ता
सभ्य- पुल्लिग, एकवचन, विशेष्य का विशेषण।

प्रश्न 8.
(ख) (i) निम्नलिखित काव्यांश में कौन-सा स्थायी भाव है? [1]
जसुमति मन अभिलाष करै
कब मेरो लाल घुटुरुवनि रँगे, कब धरती पग दुवेक धरै।
(ii) करुण रस का स्थायी भाव लिखिए।
उत्तर:
(ख) (i) वत्सलता (स्नेह) :
(ii) शोक

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर 250 शब्दों में निबंध लिखिए [10]
(क) हम होंगे कामयाब

  • कामयाबी का अर्थ
  • कर्मठ व्यक्ति
  • आत्मविश्वासी और दृढ़निश्चय

(ख) शिक्षा-व्यवस्था

  • वर्तमान शिक्षा प्रणाली
  • सुधार अपेक्षित
  • वांछनीय शिक्षा व्यवस्था

(ग) स्मार्ट फोन

  • स्मार्ट फोन की सुविधा
  • मोबाइल संपत्ति और विपत्ति दोनों रूप में
  • स्वास्थ्य पर पड़ता प्रभाव

उत्तर:
(क) हम होंगे कामयाब
सफलता उसी मनुष्य का वरण करती है जिसने उसकी प्राप्ति के लिए श्रम किया हो। प्रथम श्रेणी वे ही विद्यार्थी उत्तीर्ण होते हैं जो पूरे वर्ष कठिन परिश्रम करते हैं। मनुष्य के पास श्रम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। जीवन में कामयाब होने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। पुरुष वही होता है, जो पुरुषार्थ करता है। संपूर्ण विश्व में हो रही प्रगति पुरुषार्थ का ही परिणाम है। मनुष्य जितना परिश्रम करता है उतनी ही उन्नति करता है। साधारण से साधारण व्यक्ति भी अपने परिश्रम से महान उद्योगपति और देश का प्रधानमंत्री बन सकता है।

कठिन परिश्रम के द्वारा ही एक चाय बनाने वाला व्यक्ति आज हमारे देश का प्रधानमंत्री है, जिसके विषय में बताना ऐसा प्रतीत होगा जैसे सूर्य को दीपक दिखाना। बिना परिश्रम के तो सामने रखे हुए थाल से रोटी का ग्रास मुंह में नहीं जाता। जीवन की सफलता अथवा कामयाबी के लिए परिश्रम की नितांत आवश्यकता होती है। साधु-सन्यासी भी कठिन परिश्रम द्वारा ईश्वर से साक्षात्कार करते हैं, जैसे–महात्मा बुद्ध, ईसामसीह, दयानंद सरस्वती इत्यादि। अतः यह कहना अनुचित न होगा कि श्रम के बिना कुछ संभव नहीं है। श्रम शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार का होता है।

आलसी और अकर्मण्ये व्यक्ति जीवन के किसी क्षेत्र में सफल नहीं होता। वह पशु की भाँति होता है और उसी की तरह मृत्यु को प्राप्त होता है। जबकि परिश्रमी व्यक्ति के जीवन में परिश्रम का वही महत्व है जो उसके जीवन में खाने का और सोने का है। परिश्रम के बिना उसका जीवन व्यर्थ है। गति का दूसरा नाम जीवन होता है। जिस मनुष्य के जीवन में गति नहीं वह आगे नहीं बढ़ सकता। वह उसे तालाब के समान है जिसमें न पानी कहीं से आता है और न निकलता है। मानव जो संघर्षों के लिए बना है, संघर्षों के पश्चात् उसे सफलता मिलती है। संघर्षों में घोर श्रम करना पड़ता है। भारत की दासता का मुख्य कारण था कि यहाँ के लोग अकर्मण्य हो गए थे। यदि हम आज भी अकर्मण्य और आलसी बने रहे तो पुनः हम अपनी स्वतंत्रता खो देंगे।

परिश्रम से ही व्यक्ति को यश और धन दोनों की प्राप्ति होती है। परिश्रम से मनुष्य धनोपार्जन भी करता है। ऐसे लोगों का भी उदाहरण यहाँ देखने को मिल सकता है। जिन्होंने दस रुपए से अपना व्यवसाय आरंभ किया और अपने परिश्रम के दम पर करोड़पति बन गए। जिसे अपने परिश्रम पर पूर्व विश्वास होता है वही प्रतिस्पर्धाओं में सफल होता है। मेहनत के कारण ही साधारण व्यक्ति भी एक महान वैज्ञानिक, कलाकार, डॉक्टर बनते हैं। विकास के मार्ग पर वही व्यक्ति अग्रसर होता है जो कभी मेहनत, श्रम से नहीं डरता, उससे नहीं भागता तथा एक दिन कामयाब होकर विश्व में अपना नाम रोशन करता है। कर्म का महत्व श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को गीता के उपदेश द्वारा समझाया था। उनके अनुसार
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनः।”
कर्मठ व्यक्ति ही सुखी और समृद्ध होता है, जबकि आलसी व्यक्ति सदैव दुःखी एवं दूसरों पर निर्भर रहता है। परिश्रमी अपने कर्मों के द्वारा अपनी इच्छाओं की पूर्ति करता है।

(ख) शिक्षा व्यवस्था
शिक्षा के इस युग में जब हम उस मानवे की कल्पना करते हैं जो अशिक्षित होता था, तो कितना हास्यास्पद तथा आश्चर्यजनक लगता है। मनुष्य को उस दशा में कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ा होगा यह सोचना भी चिंतनीय है। यही कुछ कारण रहे होंगे जिनके कारण मनुष्य ने पढ़ना-लिखना सीखकर प्रगति की दिशा में अपना कदम आगे बढ़ाया। शिक्षा का कितना महत्व है-यह आज बताने की आवश्यकता नहीं है।

मानव को मनुष्य बनाने में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा के अभाव में उसमें और पशु में विशेष अंतर नहीं रह जाता है। ऐसे ही मनुष्य के लिए कहा गया होगा।
“ते मृत्युलोके भुवि भारभूता मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति।”
शिक्षा ही पशु और मनुष्य में अंतर पैदा करती है। मनुष्य का स्वभाव है कि वह उम्र बढ़ने के साथ-साथ सीखना शुरू कर देता है। अनेक बातें वह माता-पिता और साथियों से सीख जाती है। सामान्यतः यही वह समय होता है जब उसे स्कूल भेजा जाता है। शिक्षा प्रणाली अर्थात् एक निश्चित तरीके से शिक्षा देने की पद्धति कर्ब अस्तित्व में आई यह कहना मुश्किल है। बदलते वक्त के साथ शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन हुए। वर्तमान में शिक्षा प्रणाली हमारे समक्ष में है, इसमें भी अनेक गुण और दोष देखे जा रहे हैं। आज हमारे समाज में सरकारी, अर्धसरकारी, प्राइवेट आदि अनगिनत शैक्षिक संस्थाएं हैं। जिनमें बच्चे को प्राथमिक शिक्षा दी जाती हैं। इनमें बच्चे को तीन साल से पाँच वर्ष की उम्र में प्रवेश दिया जाता है। जिनमें पाठ्यक्रम के अलावा खेल के माध्यम से शिक्षा दी जाती है। इनमें साधारणतः दस वर्ष के उम्र तक के बच्चे को शिक्षा तथा सामान्य विषयों की प्रारंभिक जानकारी दी जाती है। खेद का विषय यह है कि इस प्राथमिक शिक्षा को प्राप्त करते समय ही बहुत से विद्यार्थी विद्यालय छोड़ देते हैं और माता-पिता की आमदनी में सहयोग देने हेतु काम में लग जाते हैं। इस प्रकृति को रोकने के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं।

माध्यमिक स्तर प्राथमिक और महाविद्यालयी शिक्षा के बीच का स्तर है। प्राथमिक शिक्षा उत्तीर्ण करने वाला विद्यार्थी इसमें प्रवेश लेता है। यहाँ बालक का ज्ञान क्षेत्र बढ़ता है। उसे कई विषयों को पढ़ना पड़ता है। दसवीं की पढ़ाई के बाद की शिक्षा विभिन्न वर्गों एवं व्यवसायों में बँट जाती है। बारहवीं पास छात्र फिर विभिन्न क्षेत्रों में बँट जाते हैं। यहाँ तक आते-आते कुछ छात्र बीच में ही विद्यालय छोड़ जाते हैं।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली ऐसी है कि विश्वविद्यालय की शिक्षा पाने के बाद भी विद्यार्थी निराशाग्रस्त हैं। वे बस सरकारी नौकरी करना चाहते हैं। उसे पाने के लिए अपना समय, श्रम तथा धन गॅवाते रहते हैं। ऐसी शिक्षाप्रणाली मनुष्य को मनुष्य बनाना आत्मनिर्भरता की भावना भरना, चरित्र-निर्माण करना जैसे उद्देश्यों से कोसों दूर है। आज यह उदरपूर्ति का साधन बनकर रह गई है। आज ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है जो देश के लिए अच्छा नागरिक कुशल कार्यकर्ता उत्पन्न करे तथा व्यक्ति को आत्मनिर्भरता की भावना से भर दे। शिक्षा में व्यावहारिकता तथा रचनात्मकता हो जिससे आगे चलकर वही छात्र देश के विकास में हर तरह का सहयोग दे सके।

(ग) स्मार्ट फोन
संचार का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। संचार के क्षेत्र में क्रांति लाने में विज्ञान-प्रदत्त कई उपकरणों का हाथ है, पर मोबाइल फोन की भूमिका सर्वाधिक है। मोबाइल फोन जिस तेजी से लोगों की पसन्द बनकर उभरा है, उतनी तेजी से कोई अन्य संचार साधन नहीं। आज इसे अमीर-गरीब, युवा–प्रौढ़ हर एक की जेब में देखा जा सकता है। मोबाइल फोन अत्यंत तेजी से लोकप्रिय हुआ है। इसके प्रभाव से शायद ही कोई बचा हो। आजकल इसे हर व्यक्ति की जेब में देखा जा सकता है। कभी विलासिता का साधन समझा जाने वाले मोबाइल फोन आज हर व्यक्ति की जरूरत बन गया है। इसकी लोकप्रियता का कारण इसका छोटा आकार, कम खर्चीला होना, सर्वसुलभता और इसमें उपलब्ध अनेकानेक सुविधाएँ हैं। मोबाइल फोन का जुड़ाव तार से न होने के कारण इसे कहीं भी लाना-ले जानी सरल है।

इसका छोटा और पतला आकार इसे हर जेब में फिट होने योग्य बनाता है। किसी समय मोबाइल फोन पर बातें करना तो दूर सुनना भी महँगा लगता था, पर बदलते समय के साथ आने वाली कॉल्स निःशुल्क हो गई। अनेक प्राइवेट कंपनियों के इस क्षेत्र में आ जाने से दिनोंदिन इससे फोन करना सस्ता होता जा रहा है। मोबाइल फोन जब नए-नए बाजार में आए थे तब बड़े मँहगे होते थे। चीनी कंपनियों ने सस्ते फोन की दुनिया में क्रांति उत्पन्न कर दी उनके फोन भारत के ही नहीं वैश्विक बाजार में रह गए। इन मोबाइल फोनों की एक विशेषता यह भी है कि कम दाम के फोन में जैसी सुविधाएँ चाइनीज फोनों में मिल जाती है, वैसी अन्य कंपनियों के महँगे फोनों में मिलती है। हर वर्ग का व्यक्ति इससे लाभ उठा रहा है, पर व्यापारी वर्ग इससे विशेष रूप से लाभान्वित हो रहा है। बाजार-भाव की जानकारी लेना-देना, माल का आर्डर देना, क्रय-विक्रय का हिसाब-किताब बताने जैसे कार्य मोबाइल आ जाने से उनकी रोजी-रोटी में वृद्धि हुई है। अब वे दीवारों, दुकानों और ग्राहकों के पास अपने नम्बर लिखवा देते हैं। और लोग उन्हें बुला लेते हैं। राजमिस्त्री, प्लंबर, कारपेंटर, ऑटोरिक्शा आदि एक कॉल पर उपस्थित हो जाते हैं। अकेले और अपनी संतान से दूर रहने वाले वृद्धजनों के लिए मोबाइल फोन किसी वरदान से कम नहीं है। वे इसके माध्यम से पल-पल अपने प्रियजनों से जुड़े रहते हैं और अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उन्हें जगह-जगह भटकने की समस्या से मुक्ति मिल गई है। मोबाइल फोन के प्रयोग से कामकाजी महिलाओं और कॉलेज जाने वाली लड़कियों के आत्म-विश्वास में वृद्धि हुई है। वे अपने परिजनों के संपर्क में रहती है तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में पुलिस या परिजनों को कॉल कर सकती है।

विद्यार्थियों के लिए मोबाइल फोन अत्यंत उपयोगी है। अब मोटी-मोटी पुस्तकों को पीडीएफ फॉर्म में डाउनलोड करके अपनी रुचि के अनुसार कहीं भी और कभी भी पढ़ सकते हैं। अब मोबाइल फोन पर एफ.एम. के माध्यम से प्रसारित संगीत का आनंद उठाया जाता है।तो इसमें लगे मेमोरी कार्ड द्वारा कई घंटों का रिकार्डिंग करके उनका मनचाहा आनंद उठाया जा सकता है। अब तो फोन पर बातें करते हुए दूसरी ओर से बात करने वाले का चित्र भी देखा जा सकता है। आधुनिक मोबाइल फोन में उन सभी सुविधाओं का आनंद उठाया जा सकता है। तथा उने कामों को किया जा सकता है, जिन्हें कम्प्यूटर पर किया जाता है। मोबाइल फोन ने समय की बचत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इससे जटिल चित्रों के फोटो खींचकर बाद में अपनी सुविधानुसार इनका अध्ययन किया जा सकता है। कक्षा में पढ़ाए गए किसी पाठ या सेमीनार के लेक्चर की वीडियो रिकार्डिंग करके इनका लाभ उठाया जा सकता है। जिस प्रकार किसी सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी प्रकार मोबाइल फोन का दूसरा पक्ष उतना उज्ज्वल नहीं है। मोबाइल फोन के दुरुपयोग की प्रायः शिकायतें मिलती रहती हैं। लोग समय-असमय कॉल करके दूसरों की शांति में व्यवधान उत्पन्न करते हैं। कभी-कभी मिस्ड कॉल के माध्यम से परेशान करते हैं।

विद्यार्थीगण पढ़ने के बजाए फोन पर गाने सुनने, अश्लील फिल्में देखने, अनावश्यक बातें करने में व्यस्त रहते हैं। इससे उनकी पढ़ाई का स्तर गिर रहा है। वे अभिभावकों की जेब पर भारी पड़ता है। मोबाइल फोन पर बातें करना हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इस पर ज्यादा बातें करना बहरेपन को न्योता देना है। आतंकवादियों के हाथों इसका उपयोग गलत उद्देश्य के लिए किया जाता है। वे तोड़फोड़, हिंसा, लूटमार जैसी घटनाओं के लिए इसका प्रयोग करने लगे हैं। मोबाइल फोन निःसंदेह अत्यंत उपयोगी उपकरण और विज्ञान का चमत्कार है। इसका सदुपयोग और दुरुपयोग मनुष्य के हाथ में है। हम सबको इसका सदुपयोग करते हुए इसकी उपयोगिता को कम नहीं होने देना चाहिए। हमें भूलकर भी इसका दुरुपयोग और अत्यधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 15.
अपनी बहन को पत्र लिखकर योगासन करने के लिए प्रेरित कीजिए। [5]
अथवा
किसी महिला के साथ बस में हुए अभद्र व्यवहार को रोकने में बस कंडक्टर के साहस और कर्तव्यपरायणता की प्रशंसा करते हुए परिवहन विभाग के प्रबंधक को पत्र लिखिए।
उत्तर:
बी/24, गौतम नगर,
नई दिल्ली।
दिनांक-11 जनवरी, 20XX
प्रिय बहन,
अभी-अभी मुझे पिताजी का पत्र प्राप्त हुआ, उससे घर के समाचार ज्ञात हुए। साथ ही यह पता चला कि तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक नहीं है। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखा करो। ये तो तुम को पता ही है कि पहला सुख निरोगी काया। इसके लिए तुमको नियमित रूप से योगासन करना चाहिए। भागदौड़ की जिंदगी में सभी बहुत व्यस्त हो गए हैं, उनको अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान नहीं रहता। जो व्यक्ति अपने शरीर की उपेक्षा करता है वह जल्दी ही बूढ़ा हो जाता है। इसलिए तुमको मैं यही सलाह दूंगा कि तुम नियमित रूप से योगा करो जिससे तुम्हारा शरीर चुस्त एवं फुर्तीला हो जाएगा। इससे तुम्हारे शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाएगी। स्वयं को हर वक्त तरो-ताजा महसूस करोगी। साथ ही कोई बीमारी तुमको छू भी नहीं पायेगी।

आशा करता हूँ कि तुम मेरी सलाह को मानोगी तथा उसका अपने जीवन में पालन करोगी। मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम पूर्णतः स्वस्थ हो जाओगी।
तुम्हारा भाई
अजये

अथवा

सेवा में,
प्रबंधक,
दिल्ली परिवहन विभाग,
दिल्ली-110001
दिनांक 20 मई, 20XX
विषय : बस कंडक्टर के प्रशंसनीय व्यवहार हेतु पत्र।
महोदय,
इस पत्र के द्वारा मैं आपको आपकी बस के एक कंडक्टर के प्रशंसनीय व्यवहार से अवगत करा रहा हूँ। मैं विकासपुरी का निवासी हूँ तथा प्रतिदिन 860 नं. की रूट बस से गाँधीनगर जाता हूँ। गत 20 अप्रैल की बात है, मैं गाँधीनगर से 860 नं. की बस से सायंकाल लगभग 7.00 बजे अपने घर लौट रहा था कि मोतीनगर के बस स्टॉप से कुछ मनचले बस में चढ़ गए। उन्होंने बस में बैठी एक महिला यात्री के साथ छेड़खानी अथवा अभद्र व्यवहार किया। बस कंडक्टर ने साहस के साथ उन युवकों का सामना किया और बहादुरी से उन्हें धर-दबोचा। यात्रियों ने भी बस कंडक्टर की सहायता से बस पुलिस स्टेशन में ले गया। जहाँ पुलिस अधिकारी ने बस कंडक्टर के साहस एवं कर्तव्यपरायणता के प्रशंसनीय व्यवहार की सराहना की। अतः आपसे आग्रह है कि आप कंडक्टर श्री रामप्रकाश को उनके प्रशंसनीय व्यवहार के लिए सम्मानित करें, जिसके परिणामस्वरूप अन्य कर्मचारी को भी प्रेरणा मिल सके।
धन्यवाद!
भवदीय
अशोक कुमार

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