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NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत

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NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत (उठो, जागो)

पाठपरिचयः सारांशः च :
प्रथमः पाठः ‘उत्तिष्ठत जाग्रत’ (उठो, जागो) के शीर्षक में उपनिषदों के निम्न मन्त्र के पहले दो शब्द हैं

उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान् निबोधत।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया, दुर्गं पथस्तत् कवयो वदन्ति॥

इस पाठ के सभी पद्य मनुस्मृति, धर्मसूत्र तथा उपनिषदों से लिए गए हैं।
प्रस्तुत पाठ में उपर्युक्त मन्त्र सहित पाँच पद्य. हैं। प्रथम पद्य (मनुस्मृति) में सज्जनों के घर की विशेषता बताई गई है। सज्जनों के घर में ये चार चीजें सदा होती हैं-(1) अतिथि को दिया जानेवाला तिनकों से बना आसन (चटाई आदि), (2) अतिथि के बैठने तथा रहने के लिए आश्रयस्थान, (3) पेय जल, एवं (4) सत्य तथा मधुर वाणी। कभी भी इनमें से किसी एक का भी अभाव नहीं होता। उनके घर जो भी अतिथि आता है उसे ये चार चीजें अवश्य दी जाती हैं।

दूसरे मन्त्र (बौधायन धर्मसूत्र) में बताया गया है कि शरीर, बुद्धि, आत्मा और मन की शुद्धि किस प्रकार होती है। शरीर की शुद्धि जल से, बुद्धि की शुद्धि ज्ञान से, आत्मा की शुद्धि अहिंसा से तथा मन की शुद्धि सत्य से होती है। अतः बाह्य तथा आन्तरिक शुद्धि के लिए ज्ञान, अहिंसा और सत्य की आवश्यकता होती है। इन तत्त्वों के धारण करने से मनुष्य अन्तर्बाह्य सब प्रकार से पवित्र हो जाता है।
तीसरे पद्य (मुण्डकोपनिषद्) में सत्य की महिमा बताई गई है। अन्त में सत्य की ही विजय होती है। महापुरुषों का मार्ग सत्य से भरा होता है। सब कामनाएँ पूर्ण होने के पश्चात् ऋषि जिस धाम में जाते हैं वह सत्य का परम निधान चौथे पद्य (ईशोपनिषद्) में बताया गया है कि सब प्राणियों को अपने जैसा समझकर व्यवहार करना चाहिए। जो सब प्राणियों को अपने में तथा सब प्राणियों में अपने-आप को देखता है, वह किसी से कभी कोई घृणा नहीं करता, सबकी रक्षा में तथा सबके प्रति परोपकार की भावना से भरा रहता है।

अन्तिम पद्य (कठोपनिषद्) में कहा गया है कि सदा ज्ञान के लिए प्रयत्नशील रहो। अज्ञान की निद्रा का परित्याग करो। महापुरुषों के पास जाकर ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करो। जिस प्रकार छुरे की धार तीखी होती है, उस पर नंगे पैरों से चलना कठिन होता है, ज्ञान का मार्ग भी वैसा ही कठिन होता है। कवि तथा ऋषि ऐसा वर्णन करते हैं। अतः हमें एकाग्र मन से, ध्यान से सन्मार्ग का आश्रय लेना चाहिए। ‘उत्तिष्ठत जाग्रत’ स्वामी विवेकानन्द का राष्ट्रीय वाक्य है।

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः, भावार्थः, सरलार्थश्च :

1. तृणानि भूमिरुदकं वाक्चतुर्थी च सूनृता।
एतान्यपि सतां गेहे नोच्छिद्यन्ते कदाचन॥ (मनुस्मृतिः)

पदच्छेद – तृणानि भूमिः उदकम् वाक् चतुर्थी च सूनृता। एतानि अपि सताम् गेहे न उच्छिद्यन्ते कदाचन। अन्वयः- तृणानि, भूमिः, उदकम्, चतुर्थी च सूनृता वाक्। सताम् गेहे एतानि कदाचन अपि न उच्छिद्यन्ते।
शब्दार्थः, पर्यायवाचिशब्दाः टिप्पण्यश्च – तृणानि (नुपं०) – आसनम् (नपुं०) (तृण, प्रथमा, बहुवचनम्), तिनके, तिनकों से बना बैठने का आसन। भूमिः (स्त्री०)- आश्रयः (भूमि, प्र०, ए०व०), रहने के लिए स्थान, निवास स्थान।

उदकम् (नपुं०) – जलम्, पीने के लिए पानी। चतुर्थी च – और चौथी। सूनृता सत्या मधुरा च- सत्येन माधुर्येण युक्ता, सच तथा मिठास से भरी हुई। वाक्- वाणी, बोली, बोलचाल। सताम् – सज्जनानाम् (सत्, षष्ठी, बहुवचनम्), अच्छे लोगों के। गेहे (नपु०) – गृहे, सप्तमी, घर में। एतानि- इमानि एकवचन, ये चारों चीजें। कदाचन – कदापि, कभी अपि – अपि, भी। न – नहि, नहीं। उच्छिद्यन्ते – विनाश्यन्ते, उत्क्षिप्यन्ते, नष्ट होती, (उत् + छिद्, लट्, प्र०पु०, बहुवचनम्)।
भावार्थ – सज्जनानां गृहेषु अतिथीनां कृते आसनं, वासाय स्थानम्, जलम्, मधुरवाण्या सत्कारः इति भावानाम् कदापि अभार : न भवति। ते सर्वदा अतिथिसत्काराय उद्यताः भवन्ति।
सरलार्थ – सज्जनों के घरों में अतिथियों के लिए आसन, रहने के लिए स्थान, (पीने के लिए) पानी, मधुरवाणी के द्वारा सत्कार (सम्मान)-इन पदार्थों का कभी अभाव (कमी) नहीं होता। वे (सज्जन) सदा अतिथि – सत्कार के लिए तैयार (तत्पर) रहते हैं।

2. अद्भिः शुध्यन्ति गात्राणि, बुद्धिः ज्ञानेन शुध्यति।
अहिंसया च भूतात्मा मनः सत्येन शुध्यति॥ (बौधायन धर्मसूत्र)

पदच्छेद – अद्भिः शुध्यन्ति गात्राणि, बुद्धिः ज्ञानेन शुध्यति। अहिंसया च भूतात्मा, मनः सत्येन शुध्यति।।
अन्वय – गात्राणि अद्भिः शुध्यन्ति, बुद्धिः ज्ञानेन शुध्यति, भूतात्मा च अहिंसया (शुध्यति), मनः सत्येन शुध्यति।
शब्दार्थः, पर्यायवाचिशब्दाः टिप्पण्यश्चः- ‘गात्राणि- शरीराणि (गात्र, प्रथमा, बहुवचनम्), शरीर, अंग। अद्भिःजलैः (अप्, तृतीया, बहुवचनम्), पानी से। शुध्यन्ति- शुद्धानि भवन्ति (शुद्ध, लट्, प्र०पु०, बहुवचनम्), शुद्ध होते हैं बुद्धिः- विचारः, बुद्धिः, विचार, बुद्धि। ज्ञानेन- ज्ञान द्वारा, ज्ञान के द्वारा। शुध्यति- पवित्रा भवति (शुध्, लट् लकार, प्र०पु०, एकवचनम्), पवित्र होती है। भूतात्मा च- जीवात्मा (भूतानाम् आत्मा च षष्ठी बहुवचनम्), जीवात्मा, आत्मा। अहिंसया- अहिंसा-माध्यमेन (अहिंसा, तृतीया, एकवचनम्), अहिंसा के द्वारा। मनः- मनः, संकल्प-आश्रयः, संकल्पों का आश्रय, मन। सत्येन- सत्यवचनेन, सत्यव्यवहारेण (सत्य, तृतीया, एकवचनम्), सच बोलने से, सही व्यवहार से।
भावार्थ – अस्माकम् शरीरम् जलेन स्वच्छं/पवित्रं भवति, अस्माकं बुद्धिः ज्ञानेन शुद्धा भवति, यथा यथा च वयं ज्ञानं प्राप्नुमः, अस्माकं बुद्धिः पवित्रा भवति, मनुष्यस्य आत्मा अहिंसया शुद्धः भवति, सत्यस्य आचरणेन मनः पवित्रम् भवति।
सरलार्थ- हमारा शरीर जल से स्वच्छ/पवित्र होता है, हमारी बुद्धि ज्ञान से शुद्ध होती है, और जैसे-जैसे हम ज्ञान प्राप्त करते हैं, हमारी बुद्धि पवित्र होती जाती है। मनुष्य की आत्मा अहिंसा से पवित्र (शुद्ध) होती है, सत्य के आचरण से मन पवित्र होता है।

3. सत्यमेव जयति नानृतम्,
सत्येन पन्था विततो देवयानः।
येनाक्रमन्त्षयो ह्याप्तकामाः,
यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानम्॥ (मुण्डकोपनिषद्)

पदच्छेद – सत्यम् एव जयति न अनृतम्, सत्येन पन्थाः विततः देवयानः। येन आक्रमन्ति ऋषयः हि आप्तकामाः, यत्र तत् सत्यस्य परमम् निधानम्।।
अन्वय – सत्यम् एव जयति अनृतम् न। देवयानः पन्थाः सत्येन विततः। आप्तकामाः ऋषयः येन यत्र आक्रमन्ति तत् हि सत्यस्य परमम् निधानम्।।शब्दार्थः, पर्यायवाचिशब्दाः टिप्पण्यश्च – सत्यम्- सत्यम्, सच। एव- एव, ही। जयति- जयते, विजयं प्राप्नोति, जय को प्राप्त करता है। अनृतम्- असत्यम् (न ऋतम्), झूठ। न- नहि, नहीं। देवयानः- देवानां यानः (महापुरुषाणां मार्गः), देवताओं, महापुरुषों का मार्ग। पन्थाः – मार्गः (पथिन्, पु०, प्र०, ए०व०), मार्ग। सत्येन- सत्य द्वारा, सत्य के द्वारा। वितत – विस्तृतः, परिपूर्ण (वि + तन् + क्त), फैला हुआ, भरा हुआ। आप्तकामाः (आप्ता: कामाः ते यैः)-कृतकृत्याः, सफलमनोरथयुक्ताः, जिनके मनोरथ पूरे हो गए हैं वे। ऋषयः- मन्त्रद्रष्टारः, ऋषि लोग, मन्त्रद्रष्टा। येन- येन मार्गेण, जिस

रास्ते से। अत्र- अस्मिन् स्थाने, इस स्थान पर। आक्रमन्ति- गच्छन्ति (आ + क्रम्, लट्, प्र०पु०, बहुवचनम्), जाते हैं। तत्- (सः मार्गः), असौ एव, तदेव, वह ही, वही। हि- एव, निश्चयेन, ही, निश्चय से। सत्यस्य- सत्यस्य, तत्त्वस्य, सत्य का। परमम्- महत्, महत्तमम्, बड़ा, सबसे बड़ा। निधानम्- धाम (नि + धा + ल्युट्), स्थान।
भावार्थ – सत्यस्य एव सर्वदा जयः भवति, अनृतम् असत्यं कदापि अन्ते जयं न आप्नोति। महापुरुषाणां मार्गः सत्येन एव परिपूर्णः। सफलमनोरथाः ऋषयः येन मार्गेण गच्छन्ति यत्र च प्राप्नुवन्ति सः मार्गः सत्यस्य एव मार्गः, सत्यस्य परमम् धाम तदेव वर्तते। सरलार्थ – सत्य की ही सदा जीत होती है। झूठ (जो सच या ऋत-शाश्वत् नहीं है) अन्त में विजय कदापि प्राप्त नहीं करता। जिनके मनोरथ सफल (पूर्ण) हो गए हैं, ऐसे ऋषि जिस मार्ग से जाते हैं और जहाँ पर पहुँचते हैं, वह मार्ग सत्य का ही मार्ग है, सत्य का सबसे बड़ा स्थान (आश्रय) वही है।

4. यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्येवानुपश्यति,
सर्वभूतेषु चात्मानम् ततो न विजुगुप्सते॥ (ईशोपनिषद्)

पदच्छेदः- यः तु सर्वाणि भूतानि आत्मनि एव अनुपश्यति, सर्वभूतेषु च आत्मानम् ततः न विजुगुप्सते।।
अन्वयः- यः तु सर्वाणि भूतानि आत्मनि एव अनुपश्यति, सर्वभूतेषु च आत्मानम् (अनुपश्यति) ततः न विजुगुप्सते।
शब्दार्थ:- पर्यायवाचिशब्दाः टिप्पण्यश्चः- यः- यः मनुष्यः, प्राणी, जो मनुष्य/प्राणी। तु- निश्चयेन, निश्चय से।

सर्वाणि – सम्पूर्णानि, अखिलानि (सर्व, द्वितीया, बहुवचनम्), समस्त। भूतानि- मनुष्यान् प्राणिनः (भूत, द्वितीया, बहुवचनम्), मनुष्यों/प्राणियों को। आत्मनि- आत्म-मध्ये, निजे अन्त:करणे, स्वकीये, हृदये (आत्मन्, सप्तमी, एकवचनम्), आत्मा में, अपने हृदय में। एव- एव, ही। अनुपश्यति- अन्वीक्षणं करोति, पश्यति, (अनु + दृश्, लट्, प्र०पु०, एकवचनम्), देखता है। सर्वभूतेषु- सर्वेषु प्राणिषु, सर्वेषु मनुष्येषु (सर्वभूत, सप्तमी, बहुवचनम्), सब प्राणियों में। च- तथा, और। आत्मानम्- (अनुपश्यति) निजम् (आत्मन्, द्वितीया, एकवचनम्, स्वरूपम्), अपने-आप को देखता है। तत – तदनन्तर, तस्मात् परं, उसके बाद (वह)। न- नहि, नहीं। विजुगुप्सते- घृणां करोति (वि. गुप् + सन्, लट्, एकवचनम्), घृणा करता है।

भावार्थ – यः मनुष्यः सर्वान् प्राणवतः जनान् स्वकीये हृदये पश्यति, सर्वान् आत्मवत् पश्यति, सर्वे जनाः मत्सदृशाः एव, सर्वेषु स एव आत्मा विराजते यः मयि अस्ति इति यदा ज्ञानं भवति. तत्पश्चात् सः केनापि सह घृणां कर्तुं न शक्नोति, सर्वेषां रक्षणे परोपकरणे च उद्यतः भवति।

सरलार्थ – जो व्यक्ति सब प्राणधारी जीवों को अपने हृदय में देखता है, अर्थात् सबको अपने समान देखता है, सब लोग मेरे जैसे ही हैं, सबमें वह ही आत्मा विराजमान है जो मुझमें है इस प्रकार का ज्ञान रखता है, इस प्रकार की अनुभूति करने लगता है, उसके बाद वह मनुष्य किसी के साथ घृणा नहीं कर सकता। वह सबकी रक्षा में तथा परोपकार में सदा उद्यत रहता है।

5. उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान् निबोधत।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया,
दुर्ग पथस्तत् कवयो वदन्ति॥ (कठोपनिषद्)

पदच्छेद – उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान् निबोधत। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया, दुर्गम् पथः तत् कवयः वदन्ति।
अन्वय – उत्तिष्ठत, जाग्रत, वरान् प्राप्य निबोधत। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया। कवयः तत् पथः दुर्गम् वदन्ति।
शब्दार्थ – पर्यायवाचिशब्दाः टिप्पण्यश्च – उत्तिष्ठत – ज्ञानाय प्रयत्नं कुरुत (उत् + स्था, लोट, म०पु०, बहुवचनम्), ज्ञानार्थ प्रयत्न करो। जाग्रत – जागृत, अज्ञानस्य निद्रां त्यजत (वैदिक प्रयोग) (जागृ, लोट, म०पु०, बहुवचनम्), अज्ञान की नींद को छोड़ो। वरान् – श्रेष्ठान् जनान् (वर, द्वितीया, बहुवचनम्), श्रेष्ठ पुरुषों के। प्राप्य – गृहीत्वा, प्र + आप् + ल्यप्, समीप पाकर। निबोधत – जानीत, (नि, बुध्, लोट, म०पु०, बहुवचनम्), जानो। क्षुरस्य – छुरिकायाः (क्षुर, पु०, षष्ठी, एकवचनम्), छुरिका की। धारा – धारा, धार। निशिता – तीक्ष्णा, तीखी। दुरत्यया – दु:खे गन्तुम् शक्या (दु: + अति + अया), कष्टपूर्वक जाने योग्य। कवयः- विद्वांसः, (कवि, प्रथमा, बहुवचनम्), विद्वान् लोग। तत् (नपुं०) – अदस्, उपर्युक्तम्,

उस (उपर्युक्त)। पथः (नपुं०) – मार्गम्, (पथः वैदिकप्रयोगः), मार्ग को। दुर्गम् (नपुं०) – कठिनम्, कठिन। वदन्तिकथयन्ति, वर्णयन्ति (वद्, लट्, प्र०पु०, बहुवचनम्), वर्णन करते हैं।

भावार्थ – हे जनाः! यूयं ज्ञानं प्राप्तुं तत्पराः उद्यताः भवत। अज्ञाननिद्रां त्यक्त्वा उत्तिष्ठत। महापुरुषाणां समीपे गत्वा ज्ञानं प्राप्तुं प्रयत्नं कुरुत। ज्ञानमार्गः सरल: नास्ति। छुरिकायाः धारा यथा तीक्ष्णा, पद्भ्याम् गन्तुम् अशक्या भवति तथैव महापुरुषाः ज्ञानस्य मार्गम् अतीव कठिनम् इति वर्णयन्ति। तर्हि एकाग्रमनसा ध्यानेन सन्मार्गम् आश्रित्य चलत।

सरलार्थ – हे लोगो! तुम सब ज्ञान को पाने के लिए तैयार हो जाओ। अज्ञान की नींद को छोड़कर उठो। महापुरुषों के पास जाकर ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करो। ज्ञानमार्ग सरल नहीं है। जैसे छुरिका (छुरी) की धार तीक्ष्ण होती है, उस पर पैदल नहीं चला जा सकता, वैसे ही महापुरुष- ‘ज्ञान का मार्ग बहुत कठिन है’- ऐसा वर्णन करते हैं तो एकाग्र मन से ध्यानपूर्वक सन्मार्ग का आश्रय (सहारा) लेकर चलो।

अनुप्रयोगस्य प्रश्नोत्तराणि 

प्रश्न 1.
अधोलिखिताः पंक्तीः मेलयत
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 1
उत्तरम्:
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 2

प्रश्न 2.
विलोमपदानि मेलयत
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 3
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 4
उत्तरम्:
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 5

प्रश्न 3.
कर्तृपदैः सह क्रियापदानि योजयत –
(i) गात्राणि अद्भिः ……………
(ii) यूयम् सर्वे वरान प्राप्य ………………..
(iii) सत्यम् एव ………………
(iv) कवयः तत् मार्ग दुर्गं ……………
(v) एतानि सज्जनानां गृहेषु कदापि न …………
(vi) बुद्धिः ज्ञानेन ……………
(vii) आत्मवत् सर्वान् दृष्ट्वा नरः न …………….
उत्तरम्:
(i) गात्राणि अद्भिः शुध्यन्ति।
(ii) यूयम् सर्वे वरान् प्राप्य निबोधत।
(iii) सत्यम् एव जयति।
(iv) कवयः तत् मार्गं दुर्गं वदन्ति।
(v) एतानि सज्जनानां गृहेषु कदापि न उच्छिद्यन्ते।
(vi) बुद्धिः ज्ञानेन शुध्यति।
(vii) आत्मवत् सर्वान् दृष्ट्वा नरः न विजुगुप्सति।

प्रश्न 4.
सन्धिच्छेदमधिकृत्य अधोलिखितां तालिकां पूरयत –
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 6
उत्तरम्:
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 7

प्रश्न 5.
(i) अत्र कुत्र तृतीया विभक्तिः न अस्ति ?
अद्भिः, सत्येन, अहिंसया, निशिता
(ii) अत्र कुत्र षष्ठीबहुवचनम् अस्ति?
क्षुरस्य, सत्यस्य, सताम्, कवयः
(iii) एतेषु किम् अव्ययपदम् न अस्ति?
ततः, कदाचन, वाक्, एव
(iv) एतेषु किं क्रियापदम् न अस्ति?
विततः, उच्छिद्यन्ते, उत्तिष्ठत, विजुगुप्सते
(v) एतेषु किं क्रियापदं बहुवचने न अस्ति?
आक्रमन्ति, वदन्ति, निबोधत, अनुपश्यति
उत्तरम:
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 8

प्रश्न 6.
अधोलिखितसूक्तिभिः सह सम्बद्धां पंक्ति मेलयत
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 9
उत्तरम:
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 10

प्रश्न 7.
पाठं पठित्वा अशुद्धं तथ्यं चिनुत
(i) अतिथये आसनम्, जलम् च दातव्यम्।
(ii) सत्यस्य एव अन्ते जयः भवति।
(iii) आत्मा हिंसया दूष्यते।
(iv) वसुधैव कुटुम्बकम् इति ज्ञात्वा नरः घृणां करोति।
(v) ऋषयः सत्यस्य मार्गे चलन्ति।
(vi) ज्ञानमार्गः अतीव सरलः।
(vii) वयम् अज्ञाननिद्रां त्यक्त्वा उत्तिष्ठाम।
(viii) ज्ञानिनां समीपे गत्वा ज्ञान प्राप्तव्यम्।
(ix) सज्जनानां गृहे मधुरवचनानाम् अभावः भवति।
(x) यदा वयं सत्यं वदामः तदा अस्माकं मनः पवित्रम् भवति।
उत्तरम्:
(iv) वसुधैवकुटुम्बकम् इति ज्ञात्वा नरः घृणां करोति।
(vi) ज्ञानमार्गः अतीव सरलः।
(ix) सज्जनानां गृहे मधुरवचनानाम् अभावः भवति।

प्रश्न 8.
अधोलिखितानां पदानां स्थाने पाठे किं पदं प्रयुक्तम्
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 11
उत्तरम:
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 12

प्रश्न 9.
रिक्तस्थानानि पूरयत
वाक्यानि
(i) बुद्धिः ……………… शुध्यति।
(ii) अद्भिः …………….. शुध्यन्ति।
(iii) …………. आत्मानं दृष्ट्वा घृणां न करोति।
(iv) ……………… गेहे अतिथिभ्यः सर्वदा आसनं जलं, स्थानं मधुरवचनानि च विराजन्ते।
(v) …………….. सत्यमार्गम् आश्रयन्ति।
उत्तरम्:
(i) बुद्धिः ज्ञानेन शुध्यति।
(ii) अद्भिः गात्राणि शुध्यन्ति।
(iii) सर्वभूतेषु आत्मानं दृष्ट्वा घृणां न करोति।
(iv) सताम् गेहे अतिथिभ्यः सर्वदा आसनं जलं, स्थानं मधुरवचनानि च विराजन्ते।
(v) आप्तकामाः ऋषयः सत्यमार्गम् आश्रयन्ति।

प्रश्न 10.
अधोलिखितविशेष्यैः सह विशेषणानि विशेष्याणि वा योजयत
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 13
उत्तरम्:
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 14
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 15

पाठ-विकासः

(क) संदर्भ-ग्रन्थ परिचय
हमारा वैदिक साहित्य बहुत विस्तृत है। वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक ग्रन्थ, स्मृतियाँ, वेदाङ्ग धर्मसूत्र इत्यादि।
इस पाठ में उपनिषदों से तथा धर्मसूत्र व मनुस्मृति से पद्य संकलित किए गए हैं
उपनिषद् – प्रमुख उपनिषद् 11 हैं – (1) ईश (2) केन (3) कठ (4) प्रश्न (5) मुण्डक (6) माण्डूक्य (7) छान्दोग्य (8) ऐतरेय (9) तैत्तिरीय (10) बृहदारण्यक (11) श्वेताश्वेतर।

संदर्भ – (1) तृणानि भूमिः ……………. (मनुस्मृतिः)
मनुस्मृति – यह हमारा प्राचीनतम संविधान (Constitution) है। इसमें 12 अध्याय हैं।
अद्भिः गात्राणि (बौधयन-धर्मसूत्र) कल्पसूत्र, श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, शुल्वसूत्र तथा धर्मसूत्र ये प्रसिद्ध सूत्रग्रन्थ हैं। सूत्रग्रन्थों में नीति, सदाचार, शासनव्यवस्था, प्रजा के अधिकार, कर्तव्य, सामाजिक आचार-विचार, सामाजिक व्यवस्था इत्यादि विषय हैं। स्वयं भूखे रहकर भी सेवक को भोजन देना चाहिए। इस प्रकार आदेश आपस्तम्बीय धर्मसूत्र (259) का है। शुल्वसूत्रों में रेखागणित (ज्यॉमेट्री) के सिद्धान्तों का वर्णन है।
(2) यस्तु सर्वाणि ……………. (ईशोपनिषद्)
ईशोपनिषद यजुर्वेद का चालीसवाँ अध्याय है।
(3) सत्यमेव जयति ………… (मुण्डकोपनिषद्)
यह हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य भी है (सत्यमेव जयते)
(4) उत्तिष्ठत जाग्रत …………….. (कठोपनिषद्)
यह मन्त्र सब नागरिकों के प्रति आह्वान है। स्वामी विवेकानन्द के द्वारा इसे राष्ट्रीय वाक्य के रूप में स्वीकार किया गया है।

(ख) भाव-विस्तार
समानान्तर सूक्तियाँ
मूल पाठ्यपुस्तक से देखें।

(ग) भाषा-विस्तार
(1) ‘आत्मा’ शब्द पुंल्लिङ्ग में प्रयुक्त होता है; जैसे – यह आत्मा बलवान् होनी चाहिए। अयम् आत्मा बलवान् भवेत्। यहाँ अयम् तथा बलवान् विशेषण पद भी पुंल्लिङ्ग में है।

(2) पथिन् शब्द भी पुंल्लिङ्ग में है। इसके रूप प्रथमा विभक्ति में इस प्रकार चलते हैं
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 16

(3) अप् शब्द स्त्रीलिङ्ग बहुवचन में ही प्रयुक्त होता है। रूप इस प्रकार हैं-आपः (प्रथमा), अपः (द्वितीया), अद्भिः (तृतीया), अद्भ्यः (चतुर्थी-पञ्चमी), अपाम् (षष्ठी), अप्सु (सप्तमी)।
प्रयोग – इस जल में = एतासु अप्सु।

सन्धि परिचय :

(1) दीर्घ सन्धिः – दीर्घ से दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ, ऋ को लिया जाता है। नियम है-अक् (अ, आ, इ, ई उ, ऊ, ऋ ऋ, ल) से परे सवर्ण (समान वर्ण अर्थात् अ आ/ इ ई/ उ ऊ /ऋ ऋ) हों तो दीर्घ (आ, ई, ऊ, ऋ) हो जाता है।

(2) गुण सन्धिः – ए, ओ तथा अर् को गुण कहा जाता है। अ, आ इन दो वर्णो से परे इनसे भिन्न अर्थात् इ-ई/उ-ऊ/ऋ-ऋ के आ जाने पर मेल के द्वारा क्रमशः ए/ओ/अर् हो जाते हैं; जैसे-न + उच्छिद्यन्ते = नोच्छिद्यन्ते।

(3) यण् सन्धिः – य, व, र, ल् को यण् कहते हैं। इ, ई/उ, ऊ/ऋऋ के परे असमान स्वर आ जाने पर क्रमशः – य /व् /र् हो जाते हैं। उदाहरण –
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 17

अतिरिक्त-अभ्यासः

प्रश्न: 1.
अधोलिखितम् पद्यम् पठित्वा तदाधारितानाम् प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत।
(क) उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधत।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया। दुर्गं पथस्तत् कवयो वदन्ति॥

I. एकपदेन उत्तरत –
(i) कस्य धारा निशिता?
(ii) वरान् प्राप्य किं कुरुत?
(iii) पथः कीदृशम् अस्ति?
(iv) कान् प्राप्य मार्ग निबोधत?
उत्तर:
(i) क्षुरस्य
(ii) निबोधत
(iii) दुर्गम्
(iv) वरान्

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
कवयः पन्थानं कथं वदन्ति?
उत्तर:
कवयः पन्थानं दुर्गं वदान्ति।

III निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘निशिता’ कस्याः विशेषणम् आस्ति? –
(ii) ‘वदन्ति’ पदस्य कर्तृपदं लिखत।
उत्तर:
(i) ‘धारा’ पदस्य
(ii) कवयः

(ख) यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्येवानुपश्यति।
सर्वभूतेषु चात्मानम् ततो न विजुगुप्सते॥
एकपदेन उत्तरत –
(i) भूतानि कस्मिन् अनुपश्यति?
(ii) आत्मनि कानि अनुपश्यति?
(iii) आत्मानम् कुत्र अनुपश्यति?
(iv) ततः स किं न करोति?
उत्तर:
(i) आत्मनि
(ii) भूतानि
(iii) सर्वभूतेषु
(iv) विजुगुप्सते

(ग) उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान् निबोधत।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया, दुर्गं पथस्तत् कवयो वदन्ति॥

I. एकपदेन उत्तरत –
(i) कस्य धारा निशिता वर्तते?
(ii) किं कृत्वा वरान् निबोधत?
उत्तर:
(i) क्षुरस्य
(ii) उत्थाय

II. पूर्व वाक्येन उत्तरत कवयः तत् पथः कीदृशं वदन्ति?
उत्तर:
कवयः तत् पथः दुर्गं वदन्ति।

III. निर्देशानुसारेण उत्तरत
(i) श्लोके ‘धारा’ पदस्य किं विशेषणं वर्तते?
(ii) जानीत’ इति पदस्य अर्थे श्लोके किं पदं प्रयुक्तम्?
उत्तर:
(i) निशिता
(ii) निबोधत

IV. श्लोके ‘वदन्ति’ इत्यस्य क्रियापदस्य कर्तृपदं किम्?
(घ) सत्यमेव जयति नानृतम्,
सत्येन पन्था विततो देवयानः।
येनाक्रमन्त्य॒षयो ह्याप्तकामाः,
यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानम्॥
उत्तर:
कवयः

I. एकपदेन उत्तरत
(i) ऋषीणाम् मार्गः कस्य परमं निधानं भवति?
(ii) कस्य जयः न भवति?
उत्तर:
(i) सत्यस्य
(ii) अनृतस्य

II. पूर्ण वाक्येन उत्तरत
देवयानः पन्था कीदृशो भवति?
उत्तर:
देवयानः पन्थाः सत्येन विततों भवति।

III. निर्देशानुसारेण उत्तरत –
(i) ‘असत्यम्’ अस्य पदस्य अर्थे श्लोके किं पदं प्रयुक्तम्?
(ii) श्लोके ‘आक्रमन्ति’ अस्याः क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
उत्तर:
(i) अनृतम्
(ii) ऋषयः

IV. ‘परमं निधानम्’ अत्र विशेष्यपदं किम्?
(ङ) तृणानि भूमिरुदकं वाक्चतुर्थी च सूनृता।
एतान्यपि सतां गेहे नोच्छिद्यन्ते कदाचन॥
उत्तर:
विधानम्

I. एकपदेन उत्तरत (1/2 x 2 = 1)
(i) अस्मिन् श्लोके तृणानि पदं कस्य कृते आगतम्?
(ii) अस्माकं वाक् कीदृशी भवेत्?
उत्तर:
(i) आसनस्य
(ii) सूनृता

II. पूर्ण वाक्येन उत्तरत (2 x 1 = 2) सतां गृहेषु के गुणाः कदापि न उच्छिद्यन्ते?
उत्तर:
सतां गृहेषु तृणानि भूमि उदकं सूनृता च वाक् एते गुणाः कदापि उच्छिद्यन्ते।

III. निर्देशानुसारेण उत्तरत (1/2 x 2 = 1)
(i) ‘जलम्’ इति पदस्य अर्थे श्लोके किं पदं प्रयुक्तम्?
(ii) ‘वाक्चतुर्थी’ इति पदयोः विशेषण पदं किम्?
उत्तर:
(i) उदकम्
(ii) चतुर्थी

IV. श्लोकात् एकम् अव्ययपदं चित्त्वा लिखत।
उत्तर:
अपि

प्रश्न: 2.
ग्रन्थस्य लेखकस्य च नामनी लिखत –
(i) तृणानि भूमिरुदकं वाक्चतुर्थी च सूनृता।
(ii) सत्यमेव जयति नानृतम्।
(iii) उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान् निबोधत।
उत्तर:
(i) ग्रन्थः- मनुस्मृतिः लेखक:- महर्षिः मनु
(ii) ग्रन्थः- मुण्डकोपनिषदः लेखक:- अज्ञात ऋषि
(iii) ग्रन्थ:- कठोपनिषद लेखकः- कठ ऋषि

प्रश्न: 3.
भावार्थ लेखनम् भावचयनम् वा (1/2 x 4 = 4)
(I) तृणानि भूमिरुदकं वाक् चतुर्थी …………… कदाचन’। अस्य श्लोकस्य भावोऽस्ति यत्-ये जनाः ……..(1)…… भवन्ति तेषां गृहे अतिथि-सत्काराय आसनम्, निवासाय च ……(2)…….. पिपासा-शान्त्यै जलम् मधुरा च ………(3)……. कदापि ……….(4)…….. न भवन्ति अर्थात् एतानि वस्तूनि सदैव सज्जनानां गृहेषु अतिथि-सत्कारार्थ सज्जितानि भवन्ति।
उत्तर:
(1) सज्जनाः
(2) भवनम्
(3) वाणी
(4) समाप्ताः

(II) ‘सत्यमेव जयति नानृतम् ………….. निधानम्’। अर्थात्- संसारे सदैव ……..(1)……… एव जयते कदापि असत्यस्य जयः न भवति। महापुरुषाणां पन्थानः सदैव ………(2)……… एव आच्छादिताः भवन्ति। अतः श्रेष्ठमनोरथयुक्ताः ………(3)……. येन मार्गेण गच्छन्ति सः मार्गः एव …….(4)……… मार्गः भवति तेन एव सदैव गन्तव्यम् अन्येन मार्गेण न।
उत्तर:
(1) सत्यम्
(2) सत्येन
(3) जनाः
(4) सत्यस्य

(III) ‘उत्तिष्ठत जाग्रत, प्राप्य ……………. वदन्ति’। अस्य श्लोकस्य भावोऽस्ति यत् यमाचार्य: नचिकेताय कथयति यत् वत्स! यूयं ज्ञानस्य प्राप्यै तत्पराः भवत। अज्ञानस्य निद्रा ………..(1)….. ज्ञान-प्राप्तुं महापुरुषाणा ……..(2)…… कुरु। यतः ज्ञान मार्गः …….(3)…….. नास्ति। अयं तु छुरिकायाः धारा इव कठिनः वर्तते अतः ……..(4)…….. सद्ज्ञान प्राप्तयर्थ प्रत्यनं कुरुत।
उत्तर:
(1) परित्यज्य
(2) अनुसरणं
(3) सरलः
(4) यूयम्

(IV) ‘सर्वभूतेषु चात्मानम् ततो न विजुगुप्सते’ अर्थात्
(i) जनः सर्वजनान् स्व-आत्मनि पश्यति।
(ii) जनः सर्वप्राणिषु स्वात्मानम् दृष्ट्वा केनापि सह घृणां न करोति।
(iii) जनः स्वात्मनि सर्वप्राणिनं न पश्यन्नपि केनापि सह घृणां न करोति।
उत्तर:
(ii) जनः सर्वप्राणिषु स्वात्मानम् दृष्ट्वा केनापि सह घृणां न करोति।

प्रश्न: 4.
निम्नलिखितानां श्लोकानाम् रिक्तस्थानपूरयन् अन्वयं लिखतु (1 x 4 = 4)

(I) यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्येवानुपश्यति।।
सर्व भूतेषु चात्मानम् ततो न विजुगुप्सते॥
अन्वयः
यः तु …….(1)…….. भूतानि आत्मनि एव …….(2)……… सर्वभूतेषु च …….(3)………. (पश्यति) ………(4)….. न विजुगुप्सते।
उत्तर:
(1) सर्वाणि
(2) अनुपश्यति
(3) आत्मानम्
(4) ततः

(II) सत्यमेव जयति नानृतम्,
सत्येन पन्था विततो देवयानः।
येनाक्रमन्त्यूषयो ह्याप्तकामाः,
यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानम्॥
अन्वयः
सत्यम् एव जयति ……..(1)………. न। ………(2)………. पन्था सत्येन विततः। आप्तकामाः ………..(3)………. येन यत्र आक्रमन्ति तत् हि ……..(4)……. परमम् निधानम् (भवति)।
उत्तर:
(1) अनृतम्
(2) देवयानः
(3) ऋषयः
(4) सत्यस्य

(II) तृणानि भूमिरुदकं वाक्चतुर्थी च सूनृता।
एतान्यपि सतां गेहे नोच्छिद्यन्ते कदाचन।
अन्वय –
तृणानि भूमिः ……..(1)………. चतुर्थी च ……….(2)……… वाक्। सताम् गेहे …………(3)……. कदाचन अपि ……(4)……. न उच्छिद्यन्ते।
उत्तर:
(1) उदकम्
(2) सूनृता
(3) एतानि
(4) कदाचन

प्रश्नः 5.
निम्नलिखितानां पङ्क्तिनां सार्थकं संयोजनं क्रियताम्
NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 1 उत्तिष्ठत जाग्रत 18
उत्तर:
(i) (ङ)
(ii) (ग)
(iii) (ज)
(iv) (च)
(v) (क)
(vi) (छ)
(vii) (ख)
(vi) (घ)

प्रश्नः 6.
रेखाकितानां श्लिष्टपदानाम् उचितम् अर्थमेलनम् कुरुत
I. दुर्ग पथस्तत् कवयो वदन्ति। .
(i) कठिनम्
(ii) सेनायाः निवासम्
(iii) विशिष्टं स्थानम्।
उत्तर:
(i) कठिनम्

II. यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानम्।
(i) धनम्
(ii) अन्नम्
(iii) स्थानम्।
उत्तर:
(iii) स्थानम्

II. अद्भिः गात्राणि शुध्यन्ति।
(i) गायत्र्यादि छन्दांसि
(ii) अंगानि
(iii) पात्राणि।
उत्तर:
(ii) अंगानि

IV. एतान्यपि सतां गेहे नोच्छिद्यन्ते कदाचन।
(i) सज्जनानाम्
(ii) सत्यानाम्
(iii) साधूनाम्।
उत्तर:
(i) सज्जनानाम्

v. सर्वभूतेषु चात्मानम् ततो न विजुगुप्सते।
(i) अन्तर्हितो भवति
(ii) लीनो भवति
(iii) घृणां करोति।
उत्तर:
(iii) घृणां करोति

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