NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 4 दूरदृष्टिः फलप्रदा (दूरदृष्टि अच्छे परिणाम देती है)
पाठपरिचयः सारांश: च
प्रस्तावना जीवने दूरदृष्टिं विना सफलता न लभ्यते। प्रायः वयं तात्कालिकं सुखमेव पश्यामः येन अनेकानि कष्टानि आपतन्ति। यः जनः दूरदर्शी भवति, सः सर्वान् पक्षान विपक्षान् च गणयित्वा निर्णयं करोति। पञ्चतन्त्रे विष्णुशर्मा मत्स्यानाम् उदाहरणेन राजपुत्रान् एतदेव शिक्षयितुं प्रयत्नं करोति। अत्र अनागतविधाता नामक : मत्स्यः विपत्तेः निराकरणस्य उपायं चिन्तयति, प्रत्युत्पन्नमतिः विपत्तौ आगते सति शीघ्रमेव निर्णयं कृत्वा आत्मरक्षां करोति, परन्तु यद्भविष्यः भविष्यम् आश्रित्य कथं विनश्यति इति प्रस्तूयते अस्यां कथायाम्।
हिंदी रूपान्तरण – जीवन में दूरदृष्टि के बिना सफलता प्राप्त नहीं होती। अकसर हम सभी उसी वर्तमान सुख को ही देखते हैं जिससे अनेक कष्ट आ पड़ते हैं। जो व्यक्ति दूरदर्शी होता है, वह सब पक्ष और विपक्ष को देखकर निर्णय करता है। पञ्चतन्त्र में विष्णुशर्मा मछलियों के उदाहरण से राजकुमारों को यही सिखाने का प्रयत्न करता है। यहाँ अनागत-विधाता नामक मछली विपत्ति को दूर करने का उपाय सोचती है, प्रत्युन्नमति मुसीबत के आने पर जल्दी ही निर्णय करके आत्मरक्षा करती है किन्तु यद्भविष्य भविष्य पर आश्रित रहकर कैसे विनाश को प्राप्त होती है। यह इस कथा के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।
पाठ-सन्दर्भ
यह कथा ‘पञ्चतन्त्र’ नामक नीतिकथापरक ग्रन्थ से संकलित की गई है। इस ग्रन्थ के रचयिता हैं-श्री विष्णुशर्मा। राजा अमरशक्ति के शास्त्रविमुख, राजनीति से अनजान तीन राजकुमारों को व्यवहार तथा नीति में प्रवीण बनाने के लिए विष्णुशर्मा ने पञ्चतन्त्र की रचना की। उसके पाँच तन्त्रों के नाम हैं – (1) मित्रभेदः (2) मित्र सम्प्राप्तिः (3) लब्धप्रणाशः (4) काकोलूकीयम् (5) अपरीक्षितकारकम्। प्रथमतन्त्र मित्रभेद से ली गई यह कथा रोचक एवं शिक्षाप्रद है। यह कथा दैव (भाग्य) की अपेक्षा पुरुषार्थ के महत्त्व पर प्रकाश डालती है।
पाठ-सार
किसी जलाशय में तीन मछलियाँ अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति तथा यद्भविष्य रहती थीं। एक बार उस जलाशय को मछुआरों ने देखा तथा कहा कि हमने बहुत मछलियों वाला ऐसा तालाब पहले कभी नहीं खोजा। आज तो हमारे आहार का प्रबन्ध हो गया और सन्ध्या का समय भी हो गया है। इसलिए हमें कल प्रातः यहाँ आना चाहिए। यह हमारा निश्चय है। उन मछुआरों की बातें सुनकर अनागतविधाता ने सभी मछलियों को बुलाकर कहा-आप लोगों ने उसे सुन लिया है जो मछुआरों ने कहा। अतः किसी पास के तालाब पर हमें रात में ही चले जाना चाहिए। कमजोर व्यक्ति को शक्तिशाली से दूर भाग जाना चाहिए अथवा किसी दुर्ग का सहारा लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त और कोई चारा (गति) नहीं है। निश्चय ही प्रात: मछुआरे आकर सब मछलियों का विनाश करेंगे। अतः यहाँ क्षण भर भी ठहरना ठीक नहीं है।
अनागतविधाता की बात सुनकर प्रत्युत्पन्नमति ने उसका समर्थन किया। उसने कहा-आपने सच कहा है। मेरा भी यही अभिमत है। यहाँ से हमें दूसरी जगह चले जाना चाहिए। उन दोनों की बातें सुनकर यद्भविष्य हँस पड़ी। उसने कहा-आप दोनों का कहना ठीक नहीं है। किसी के एक कथन-मात्र पर हमें बाप-दादा से प्राप्त इस तालाब को छोड़ना क्या ठीक है? यदि आयु क्षीण है तो दूसरे स्थान पर जाकर भी मृत्यु होगी ही। कहा गया है-बिना रक्षा के उपाय का पालन करके भी भाग्य द्वारा रक्षित होकर प्राणी जीवित रहता है। रक्षा का उपाय करने पर भी भाग्य का मारा प्राणी कभी जीवित नहीं रहता। वन में छोड़ा गया असहाय प्राणी भी जीवित रहता है पर घर में प्रयत्न करने पर भी वह जीवित नहीं रहता। अतः मैं नहीं जाऊँगी। आपको जो उचित प्रतीत होता है वह आप करें। इसके बाद अनागतविधाता तथा प्रत्युत्पन्नमति दोनों वहाँ से परिजन सहित निकल गईं। तदनन्तर प्रातः उन मछुआरों ने तालाब को बिलो (मथ) डाला तथा यद्भविष्य सहित सब मछलियों से उस तालाब को रहित कर दिया।
उद्देश्य
प्रस्तुत कथा का उद्देश्य यह दिखाना है कि दूरदर्शी व्यक्ति पक्ष-विपक्ष का विचार कर निर्णय लेता है और उसका निर्णय फलदायी होता है।
मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः, सरलार्थश्च
1. कस्मिंश्चित् जलाशये अनागतविधाता प्रत्युत्पन्नमतिः यद्भविष्यश्च इति त्रयो मत्स्याः प्रतिवसन्ति स्म। अथ कदाचित् तं जलाशयं दृष्ट्वा गच्छद्भिः मत्स्यजीविभिः उक्तम्-“अहो, बहुमत्स्योऽयं ह्रदः कदापि न अस्माभिः अन्वेषितः। अद्य तु आहारवृत्तिः सञ्जाता। सन्ध्यासमयः अपि संवृत्तः। ततः प्रभाते अत्र आगन्तव्यम् इति निश्चयः।”
शब्दार्थः, पर्यायवाचिशब्दाः टिप्पण्यश्चः- कस्मिंश्चित्-कस्मिन्नपि, किसी। जलाशये-सरसि, सरोवर में। अनागता-विधाता-अनागतस्य विधाता, षष्ठी तत्पुरुष, अनागतस्य भयस्य प्रतिकर्ता, संकट के आने से पहले ही उसका प्रतिकार करनेवाला, मत्स्य का नाम जो उसके गुण, स्वभाव के अनुरूप है। प्रत्युत्पन्नमतिः-प्रत्युत्पन्नमतिः यस्य सः, बहुव्रीहि, प्रतिकर्तु तत्परः, तत्परता से उपाय करनेवाला। यद्भविष्यः-भविष्यं प्रति निश्चिन्तः, भविष्य के प्रति निश्चिन्त, भाग्यवादी। त्रयः-त्रिसंख्यकाः, तीन। मत्स्याः – मच्छाः, मछलियाँ। प्रतिवसन्ति स्म-निवसन्ति स्म, रहते थे। अथ-तदनन्तर, उसके बाद। कदाचित्-कदापि, कभी, कस्मिन्नपि समये। तं जलाशयं-तत्सरः, उस तालाब को। दृष्ट्वा -अवलोक्य, अवेक्ष्य, देखकर। गच्छद्भिः -गमनं कुर्वद्भिः, जाते हुए, व्रजद्भिः। मत्स्यजीविभिः-मत्स्यैः जीवन्ति, तैः, मत्स्यजीवैः, मछुआरों से। उक्तम्-कथितम्, कहा गया। अहो-विस्मयादिकबोधकः अव्ययः। आश्चर्य प्रगट करनेवाला अव्यय, अरे! बहुमत्स्यः-बहवः मत्स्याः यस्मिन् सः, प्रभूतमीनः, बहुत मछलियों वाला।
अयं-एषः, यह। हृदः- जलाशयः, तालाब। अन्वेषितः-अनु + आ + इष् + णिच् + क्त, गवेषितः, विलोकितः, देखा गया। अद्य-वर्तमानदिने, आजा आहारवृत्तिः-आहारस्य वृत्तिः, षष्ठी तत्पुरुषः, भोजन प्रबन्ध, भोजन की व्यवस्था, सञ्जाता-सम्पन्ना, हो गई। सन्ध्यासमयः-सायंकालः, शाम का समय। संवृत्तः-संञ्जातः, हो गया। ततः तस्मात्-आरम्भ, अब इसके बाद। प्रभाते-प्रात:काले, सुबह। अत्र-अस्मिन् स्थाने, इस जगह। आगन्तव्यम्-आ + गम् + तव्यत्, आना चाहिए। इति-एषः, यह। निश्चयः-संकल्पः, इरादा।
भावार्थ:- आहारार्थी आहारस्य सम्भावनां दृष्ट्वा तदर्थं निश्चयं करोति। भावि सङ्कटस्य सङ्केतं दृष्ट्वा तस्य उपायोऽपि चिन्तनीयः।
सरलार्थ – किसी तालाब में अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति तथा यद्भविष्य नाम की तीन मछलियाँ रहती थीं। तत्पश्चात् किसी समय उस तालाब को देखकर जाते हुए मछुआरों ने कहा-‘अरे, बहुत मछलियों वाला यह तालाब हमारे द्वारा पहले कभी नहीं खोजा गया। आज की भोजन की व्यवस्था तो हो चुकी है। शाम का समय भी हो गया है। इसके बाद हमें प्रात:काल यहाँ आना चाहिए। यही हमारा संकल्प है।
2. तेषां तत् कुलिशपातोपमं वचः समाकर्ण्य अनागतविधाता सर्वान् मत्स्यान् आहूय इदम् अवदत्-अहो! श्रुतं भवद्भिः यत् मत्स्यजीविभिः अभिहितम्? तद् रात्रावपि गम्यतां किञ्चित् निकटं सरः। उक्तं च
अशक्तैर्बलिनः शत्रोः कर्तव्यं प्रपलायनम्।
आश्रितव्योऽथवा दुर्गः नान्या तेषां गतिर्भवेत्॥1॥
अन्वयः- अशक्तैः बलिनः शत्रोः प्रलायनं कर्तव्यम् अथवा दुर्गः आश्रितव्यः, तेषाम् अन्या गतिः न भवेत्।
शब्दार्थः, पर्यायवाचिशब्दाः टिप्पण्यश्च:- तेषाम्-मत्स्यजीविनाम्, उन मछुआरों के। तत्-उपर्युक्तम्, ऊपर कहे गए उस। कुलिश-वज्रम्, वज्रा पात-निपात, गिराने के। उपमम्-सदृशम्, सदृश, समान। वचः-वचनम्, कथन को। समाकर्ण्य-श्रुत्वा, सुनकर। अनागतविधाता-भविष्यप्रतिकर्ता, भविष्य का उपाय करनेवाले। सर्वान्-सम्पूर्णान्। मत्स्यान्-जलचरान्, मछलियों को। आहूय-आह्वानं कृत्वा, बुलाकर। इदम्-एतादृशम्, इस। अवदत्-निवेदनमकरोत्, निवेदन किया, कहा। अहो-अरे। श्रुतम्-आकर्णितम् सुना है। अस्मभिः-हमारे द्वारा। यत्-कि। मत्स्यजीविभिः-मत्स्याजीवैः, मछुआरों द्वारा? अभिहितम्-कथितम्, कथन। तद्-तत्, तो। रात्रावपि-रात्रौ एव, रात में ही। गम्यताम्-गन्तव्यम्, जाना चाहिए। किञ्चित्-कञ्चित्, किसी। निकटम्-समीपस्थम्, निकटवर्ती। सरः-जलाशय को। उक्तं च-कथितं च, के द्वारा और कहा गया है।
श्लोकार्थः- अशक्तैः-असमर्थैः शक्तिहीनैः. दुर्बल के द्वारा। बलिन:-बलशालिभ्यः, बलवान। शत्रो:-रिपोः, शत्रु से। प्रपलायनम्-दूर पलायन, भागना। कर्त्तव्यम्-करणीयम्-करना चाहिए। अथवा-वा, या। दुर्ग:-सरक्षितः दुर्गमः स्थानविशेषः। आश्रितव्यः-आश्रय स्वीकर्तव्यः, आश्रय स्वीकार करना चाहिए। तेषां-अशक्तानाम्, उन अशक्तों की। अन्या-तृतीया, तीसरी। गतिः-अवस्था, उपाय। नास्ति-न वर्तते, नहीं है।
भावार्थ:- नीतिम् आश्रित्य जनः स्वरक्षायाः उपायान् चिन्तयति।
सरलार्थ – उस (मछुआरों के उस वज्र के गिरने के समान विनाशकारी) कथन को सुनकर आए संकट पर दूरदृष्टि से विचार करनेवाले (अनागत विधाता) मत्स्य ने शेष सब मछलियों को बुलाकर यह कहा-‘अरे, आप सबके द्वारा मछुआरों द्वारा कहा गया कथन सुना गया तो हमें रात में ही किसी पास के तालाब में चले जाना चाहिए। कहा भी गया है-शक्तिशाली शत्रु से शक्तिहीनों को दूर भाग जाना चाहिए अथवा किसी सुरक्षित दुर्ग का आश्रय लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त उनके लिए और कोई गति (रास्ता, चारा, विकल्प) नहीं है।
3. तन्नूनं प्रभातसमये मत्स्यजीविनः अत्र समागत्य मत्स्यसंक्षयं करिष्यन्ति। तन्न युक्तं साम्प्रतं क्षणमप्यत्र अवस्थातुम्।
उक्तं चविद्यताना गतिः येषामन्यत्रापि सुखावहा।
ते न पश्यन्ति विद्वांसो देहभङ्ग कुलक्षयम्॥2॥
अन्वयः – येषाम् अन्यत्र अपि सुखा वहा गतिः विद्यमाना. ते विद्वांसः देहभङ्ग, कुलक्षयं न पश्यन्ति।
शब्दार्थः, पर्यायवाचिशब्दाः, टिप्पण्यश्च:- तन्नून-तत् – नूनम्। नूनम्-निश्चयेन, निश्चय से। प्रभातसमये-प्रात:काले, सवेरे। मत्स्यजीविनः-मत्स्यजीविन्, प्रथमा विभक्तिः , बहुवचनम्. मछुआरे। अत्र-एतत् स्थानम्, यहाँ। समागत्य-सम्यक् आगत्य, अच्छी तरह आकर। मत्स्यसंक्षयम्-मत्स्यानां संक्षयम् विनाशम्, मछलियों का विनाश। करिष्यन्ति-विधास्यन्ति, करेंगे। तन्न-तत् न, तो नहीं। युक्तम्-योग्यम्, उचित। साम्प्रतम्-अधुनैव, अभी। क्षणमप्यत्र-क्षणम् + अपि + अत्र = क्षणमात्रम् अपि अस्मिन् स्थाने, क्षण भर भी इस स्थान पर। अवस्थातुम्-अवस्थानं, रुकना। उक्तं-कथितम्। येषाम्-येषां प्राणिनाम्, जिन जीवों की। अन्यत्र-अन्यस्मिन् स्थाने, अन्य स्थान पर। अपि-भी। विद्यमाना-विद् + शानच् वर्तमाना, वर्तमान। ते-एते, वे। विद्वांसः-बुद्धिमन्तः, ज्ञानवन्तः, ज्ञानी। देहभङ्गम्-देहस्य भङ्ग तम्, देहविनाशम्, शरीर के नाश को। कुलक्षयम्-कुलस्य क्षयम्, विनाशम्, कुल के विनाश को। न पश्यन्ति-नहि उद्वीक्षन्ते, नहीं देखते।
भावार्थ:- विद्वांसः सुखदाम् अवस्थां दृष्ट्वा तां स्वीकुर्वन्ति, तेषाम् शरीरहानिः कुलहानिः च न भवतः।
सरलार्थ – तो निश्चय ही प्रात:काल मछुआरे यहाँ आकर मछलियों का सम्पूर्ण विनाश करेंगे। अतः यह सब यहाँ क्षण भर भी ठहरना कदापि ठीक नहीं है। कही भी है-जिनके लिए किसी दूसरी जगह भी सुखदायी अन्य गति (विकल्प) है वे विद्वान् अपने शरीर का नाश तथा कुलनाश को नहीं देखते हैं अर्थात् उनके शरीर का व कुल का नाश नहीं होता।
4. तदाकर्ण्य प्रत्युत्पन्नमतिः प्राह-अहो! सत्यमभिहितं भवता। ममापि अभीष्टमेतत्। तदन्यत्र गम्यताम् इति। अथ तत् समाकर्ण्य उच्चैः विहस्य यद्भविष्यः उवाच-अहो! भवद्भ्यां न सम्यग् मन्त्रितं इति। किं वाङ्मात्रेणापि पितृपैतामहादिकम् एतत् सरः त्यक्तुं युज्यते? आयुः क्षयोऽस्ति चेत्, अन्यत्रगतानामपि मृत्युः भविष्यति एव। उक्तं च –
शब्दार्थः, पर्यायवाचिशब्दाः टिप्पण्यश्चः- तदाकर्ण्य-तत् + आकर्ण्य, तत् श्रुत्वा, उसे सुनकर। प्रत्युत्पन्नमतिः-शीघ्र प्रतिकर्ता, शीघ्र प्रतिकार करनेवाला। आह-अवदत्, बोला। सत्यम्-तथ्ययुक्तम्, सच। उक्तम्-कथितम्, कहा गया है। भवता-त्वया। मम-माम्कीनः, मेरा। अभीष्टम्-निश्चयः, निश्चय। तदन्यत्र-तत् + अन्यत्र, तो दूसरी जगह। गम्यताम्-गन्तव्यम्, जाना चाहिए। अथ-तदनन्तरं, उसके बाद। तत् समाकर्ण्य-प्रत्युत्पन्नमतेः वचनं श्रुत्वा, प्रत्युत्पन्नमति के कथन को सुनकर। उच्चैः-उच्च स्वरेण, ऊँचे स्वर में। विहस्य-हसित्वा, हँसकर।
यद्भविष्यः-भाग्यवादी। उवाच-कथितवान्, कहा। अहो-अरे। भवद्भ्याम्-उभाभ्याम्, आप दोनों के द्वारा। न-नहीं। सम्यक्-उचितम्। मन्त्रितम्-विचारितम्, विचार किया गया । वाङ्मात्रेण-केवलं वाचा एव, केवल वाणी द्वारा कहे जाने से। पितृ-पैतामहिकम्-पितृपितामह + ठक्, पितृपितामहानां परम्परा प्राप्तम्, बाप-दादों की सम्पत्ति को। एतत् सरः-एतं जलाशयं, इस तालाब को। त्यक्तुं युज्यते-त्यागना उचित नही है। आयुःक्षयः-आयुषः नाशः, आयु का नाश। चेत्-यदि, अगर। अन्यत्र गतानाम्-अन्यस्थान प्राप्तानाम्, दूसरी जगह पहुँचे हुओं की। मृत्युः-विनाशः, मौत। भविष्यति एव-होगी ही।
भावार्थ:- भाग्यवादी पूर्णतः भाग्यम् अवलम्बते, अतः उद्यमनं करोति।
सरलार्थ – उसे सुनकर प्रत्युत्पन्नमति (हाज़िर जवाब) ने कहा-अरे, आपने सच कहा है। यही मेरा भी मत है। तो हमें दूसरी जगह जाना ही चाहिए। तदनन्तर उसे सुनकर ऊँचे स्वर में यद्भविष्य ने कहा-अरे आप दोनों ने ठीक से विचार नहीं किया। क्या वाणी मात्र से ही बाप-दादों का यह तालाब छोड़ा जा सकता है? अगर किसी की आयु कम (क्षीण) है तो दूसरी जगह जाने पर भी मृत्यु आएगी ही। कहा भी गया है
5. अरक्षितं तिष्ठति दैवरक्षितं
सुरक्षितं दैवहतं विनश्यति।
जीवत्यनाथोऽपि वने विसर्जितः
कृतप्रयत्नोऽपि गृहे न जीवति॥3॥
अन्वयः- अरक्षितम् दैवरक्षितम् तिष्ठति सुरक्षितम् दैवहतं विनश्यति। अनाथः वने विसर्जितः अपि जीवति, कृतप्रयत्नः गृहे अपि न जीवति।।
शब्दार्थः, पर्यायवाचिशब्दाः टिप्पण्यश्चः- अरक्षितम्-न रक्षितम्, नञ् तत्पुरुषः, न रक्षा किया हुआ। दैवरक्षितम्-दैवेन रक्षितम्, भाग्य द्वारा रक्षा किया हुआ। सुरक्षितम्-सम्यक् रक्षितम्, अच्छी तरह रक्षा किया हुआ। दैवहतं-दैवेन हतम्, दुर्भाग्येन विनाशितम्, भाग्य का मारा। कृतप्रयत्नः-कृतःप्रयत्नः येन सः, बहुव्रीहिः, कृतप्रयासः, यत्न करने पर भी। न जीवति-रक्षितः न भवति, जीवित नहीं रहता। अनाथ:-न नाथः बहुव्रीहिः, असहाय। विसर्जितः-त्यक्तः, छोड़ा गया।
भावार्थ:- भाग्यवादी मन्यते यत् प्राणिने : रक्षा, विनाशः च भाग्यस्य परिणामेन भवतः।
सरलार्थ – जिसकी रक्षा नहीं की गई, भाग्य उसकी रक्षा कर देता है (और उसे कुछ हानि नहीं होती)। जिसकी अच्छी तरह रक्षा की गई, वह (बेचारा) भाग्य का मारा नष्ट हो जाता है। वन में छोड़ा गया अनाथ जन भी जीवित रहता है तथा घर में रहनेवाला प्रयत्न करने पर भी जीवित नहीं बचता। जीवन और मरण भाग्य पर आश्रित हैं, पौरुष पर कदापि नहीं। यह यद्भविष्य (भाग्यवादी) का तर्कसंगत विचार है।
6. तदहं न गच्छामि। भवद्भ्यां यत् प्रतिभाति, तत् कर्तव्यम्। अथ तस्य तं निश्चयं ज्ञात्वा अनागतविधाता प्रत्युत्पन्नमतिश्च निष्क्रान्तौ सह परिजनेन। अथ प्रभाते तैः मत्स्यजीविभिः जालैस्तं जलाशयम् आलोड्य
यद्भविष्येण सह तत् सरो निर्मत्स्यतां नीतम्।
शब्दार्थः, पर्यायवाचीशब्दाः टिप्पण्यश्चः- परिजनेन-परिवारे सह, परिवार के साथ। आलोड्य-आ + लोड् + ल्यप्, आलोडन कर, मथकर। निर्मत्स्यतां नीतम्-निर् + मत्स्य + तल्, मत्स्यहीनः कृतः, मछलियों से रहित कर दिया गया। निष्क्रान्तौ-निस् + क्रम् + क्त, द्विवचन। जालैस्तं-जालैः + तं।
भावार्थ:- उद्यम विना भाग्यवादी विनाशम् अधिगच्छति।
सरलार्थ – (यद्भविष्य मत्स्य ने कहा) तो मैं नहीं जाऊँगा। आप दोनों को ठीक लगता है वह करो। उसके बाद उसके उस निश्चय को जानकर अनागतविधाता तथा प्रत्युपन्नमति दोनों परिवार सहित (वहाँ से) निकल गये। तदनन्तर प्रातः उन मछुआरों के द्वारा जालों से उस तालाब के पानी को मथकर (आलोडन कर) यद्भविष्य सहित सारे तालाब को मछलियों से रहित कर दिया गया।
अनुप्रयोगः
प्रश्न: 1.
अधोलिखितानां शब्दानां शुद्धम् उच्चारणाभ्यासं कुरुत सञ्चिकायां च लिखत
उत्तरम्ः
टिप्पणी-छात्र इन शब्दों को कॉपी पर अवश्य लिखें। उच्चारण में शुद्धि का ध्यान रखें।
प्रश्नः 2.
कक्षायां छात्राः वर्गद्वये विभक्ताः भवेयुः –
कालिदासवर्गः भासवर्गः च। कालिदासवर्गस्य प्रश्नानाम् उत्तराणि भासवर्गः, भासवर्गस्य प्रश्नानाम् उत्तराणि कालिदासवर्गः एकपदेन दास्यति –
उत्तरम्:
(पहला प्रश्न कालिदासवर्ग की ओर से पूछा जाता है तथा उत्तर भासवर्ग की ओर से दिया जाता है, फिर यह क्रम बदलकर बारी-बारी से चलता है।)
प्रश्न: 3.
निम्नलिखितवाक्येषु स्थूलानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि?
(क) अस्माभिः कदाचिदपि अयं हृदः न अन्वेषितः। ………………….
(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः प्राह-अहो भवता सत्यम् उक्तम्। ………………..
(ग) अहो श्रुतं भवद्भिः यत् मत्स्यजीविभिः कथितम्। …………………..
(घ) मम अपि अभीष्टमेतत्। …………….
(ङ) तस्य निश्चयं ज्ञात्वा अनागतविधाता प्रत्युत्पन्नमतिश्च ततः निष्क्रान्तौ। ……………………
उत्तरम्:
प्रश्न: 4.
अधोलिखिताः उक्तयः केन के प्रति उक्ताः?
उत्तरम्:
प्रश्नः 5.
अधः प्रदत्तानां कथनानाम् उचितं मेलनं कुरुत
उत्तरम्:
प्रश्नः 6.
पाठात् चित्वा समानार्थकपदानि लिखत
उत्तरम्:
प्रश्नः 7.
मञ्जूषायां दत्तैः अव्ययपदैः अधोलिखितवाक्येषु रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत
(क) द्वौ मत्स्यौ परिवारेण ………….. निष्क्रान्तौ।
(ख) मत्स्यजीविनः प्रभाते ………………… आगमिष्यन्ति।
(ग) ………….. गते अपि मृत्युः भविष्यति।
(घ) किं सर्वैः श्रुतम्, ………………….. सायं मत्स्यजीविभिः किम् उक्तम् इति।
(ङ) यस्य गतिः नास्ति, सः ……………. गृहं स्थास्यति।
(च) यद्भविष्यः सरः त्यक्त्वा ………………… गच्छति।
(छ) प्रत्युत्पन्नमतिः अवदत्, मम …………… इदं मतम्।
(ज) यद्भविष्यः अवदत्, युवाम् ………………………….. न वदथः।
मञ्जूषा – अद्य/सम्यक्/न/अपि/अन्यत्र/सह/एव/अत्र
उत्तरम्:
(क) द्वौ मत्स्यौ परिवारेण सह निष्क्रान्तौ।
(ख) मत्स्यजीविनः प्रभाते एव आगमिष्यन्ति।
(ग) अन्यत्र गते अपि मृत्युः भविष्यति।
(घ) किं सर्वैः श्रुतम् अद्य सायं मत्स्यजीविभिः किम् उक्तम् इति।
(ङ) यस्य गतिः नास्ति, सः अत्र गृहं स्थास्यति।
(च) यद्भविष्यः सरः त्यक्त्वा न गच्छति।
(छ) प्रत्युत्पन्नमतिः अवदत्, मम अपि इदं मतम्।
(ज) यद्भविष्यः अवदत्, युवाम् सम्यक् न वदथः।
प्रश्नः 8.
अधोदत्तानां विशेषणपदानां समुचितैः विशेष्यपदैः सह मेलनं कुरुत
उत्तरम्:
प्रश्न: 9.
विलोमपदानि मेलयत –
उत्तरम्:
प्रश्न: 10.
उदाहरणानि अनुसृत्य वाक्यानाम् वाच्यपरिवर्तनं कुरूत –
उदाहरणानि
उत्तरम्:
(क) गच्छद्भिः मत्स्यजीविभिः उक्तम्।
(ख) अस्माभिः अयं बहुमत्स्यः ह्रदः न अन्वेषितः।
(ग) प्रभाते अस्माभिः आगम्येत।
(घ) भवद्भिः श्रुतम् यत् मत्स्यजीविभिः अभिहितम्।
(ङ) रात्रौ एव किञ्चित् निकटं सरः गम्यताम्।
(च) अशक्तैः बलिनः शत्रोः पलायनं कर्तव्यम्।
(छ) मत्स्यजीविभिः सः जलाशयः आलोड्य निर्मत्स्यतां नीतः।
(ज) भवद्भ्याम् यत् प्रतिभायते तत् कर्तव्यम् (क्रियेत)।
प्रश्न: 11.
छात्राः गोलाकारे उपविशन्ति। ते एकैकं कृत्वा शुद्धक्रमेण कथां पूरयन्ति।
क्रमरहितानि वाक्यानि
(i) मत्स्यजीविनः जलाशयं निर्मत्स्यं कृतवन्तः।
(ii) एकस्मिन् जलाशये त्रयः मत्स्याः निवसन्ति स्म।
(iii) अनागतविधाता सर्वान् मत्स्यान् आहूय तत् सरः त्यक्तुम् उपादिशत्।
(iv) यद्भविष्यः भविष्यम् आश्रित्य तत्रैव अतिष्ठत्।
(v) प्रत्युत्पन्नमतिः अनागतविधात्रा सह सपरिवारं ह्रदं त्यक्त्वा अन्यं हृदं गच्छति।
(vi) प्रत्युत्पन्नमतिः अनागतविधातुः उपदेशं स्वीकरोति।
(vii) यद्भविष्यः भविष्यम् आश्रित्य मृत्यु प्राप्तवान्।
उत्तरम्:
(i) एकस्मिन् जलाशये त्रयः मत्स्याः निवसन्ति स्म।
(ii) अनागतविधाता सर्वान् मत्स्यान् आहूय तत् सरः त्यक्तुम् उपादिशत्।
(iii) प्रत्युत्पन्नमतिः अनागतविधातुः उपदेशं स्वीकरोति।
(iv) प्रत्युत्पन्नमतिः अनागतविधात्रा सह सपरिवारं हृदं त्यक्त्वा अन्यं हृदं गच्छति।
(v) यद्भविष्यः भविष्यम् आश्रित्य तत्रैव अतिष्ठत्।
(vi) मत्स्यजीविनः जलाशयं निर्मत्स्यं कृतवन्तः।
(vii) यद्भविष्यः भविष्यम् आश्रित्य मृत्यु प्राप्तवान्।
प्रश्न: 12.
अधोलिखितभावार्थान् उचितपदैः पूरयत
(क) ये जनाः ……….. भवन्ति तेषां कृते ततः पलायनम् एव …………… अस्ति, अथवा ते ततः …………. स्थानं गच्छेयुः। अन्यः कोऽपि ……………. न अस्ति ।
(ख) येषां जनानां कृते ……………… स्थानं विद्यते ते ………………. देहस्य नाशम् अथवा …………. विनाशं न पश्यन्ति।
(ग) भाग्यवशात् यः …….. सः सुरक्षायाः उपायं विना अपि …………….. । यस्य भाग्ये जीवनं नास्ति सः तु …………….. अपि मृत्यु प्राप्नोति। अनाथ: तु ………… त्यक्तः अपि जीवति।।
सहायकपदानि
वने, विद्वांसः, निर्बलाः, सुरक्षितं. कुलस्य, रक्षितः, उपायः, मार्गः, जीवति, सम्यक् रक्षितः, अन्यत्।
उत्तरम्:
(क) ये जनाः निर्बलाः भवन्ति तेषां कृते ततः पलायनम् एव मार्गः अस्ति, अथवा ते ततः अन्यत् स्थानं गच्छेयुः। अन्यः कोऽपि उपायः न अस्ति।
(ख) येषां जनानां कृते सुरक्षितं स्थानं विद्यते ते विद्वांसः देहस्य नाशम् अथवा कुलस्य विनाशं न पश्यन्ति।
(ग) भाग्यवशात् यः रक्षितः सः सुरक्षायाः उपायं विना अपि जीवति। यस्य भाग्ये जीवनं नास्ति सः तु सम्यक् रक्षितः अपि मृत्युं प्राप्नोति। अनाथः तु वने त्यक्तः अपि जीवति।
प्रश्न: 13.
पाठात् चित्वा उचितां पंक्तिं लिखत
(क) दैवे प्रतिकूले यत्नाः विफलाः जायन्ते।
(ख) समशक्तिभिः एव युद्ध कर्तव्यम्।
(ग) पुरुषार्थ विना भाग्यं न फलति।
उत्तरम्:
(क) सुरक्षितं दैवहतं विनश्यति।
(ख) अशक्तैर्बलिनः शत्रोः कर्तव्यं प्रपलायनम्।
(ग) विद्यमाना गतिः येषामन्यत्रापि सुखावहा। तेन न पश्यन्ति विद्वांसो देहभङ्ग कुलक्षयम्। जीवने दूरदृष्टिं विना सफलता न लभ्यते।
पाठ-विकासः
(क) लेखकग्रन्थपरिचयः
विद्यार्थी पाठ सन्दर्भ देखें।
(ख) भाषाविकासः
कृत्-प्रत्ययाः- (क) क्त्वा तथा ल्यप् प्रत्ययौ कृत्-प्रत्ययाः के सन्ति? ये प्रत्ययाः ‘भू’ आदि धातुभिः सह युक्ताः सन्ति ते कृत्-प्रत्ययाः मन्यन्ते। कृत्-प्रत्यय-सम्बन्धन संज्ञा-विशेषण-अव्यय-पदानां रचना भवति। क्त्वा ल्यप् च प्रत्ययौः अव्यय-सदृशौ स्तः यदि कस्मिचिद् वाक्ये एका क्रिया पूर्वं भवति, पश्चात् च द्वितीया क्रिया भवति तदा ‘क्त्वा’ अथवा ‘ल्यप्’ प्रत्ययः भवति।
यथा – छात्रः पठति, छात्रः स्मरति।
अत्र पठन-क्रियायाः अनन्तरं स्मरण क्रिया प्रारभते। अतः क्त्वा प्रत्ययः योज्यते-छात्रः पठित्वा स्मरति। ‘ल्यप्’ (य)- प्रत्ययः अपि ‘क्त्वा’ प्रत्ययस्य अर्थे प्रयुक्तः भवति। यदि धातोः पूर्वम् उपसर्गः भवति तदा ल्यप्-प्रत्ययस्य योगः भवति। यथा-वि + स्मृ + ल्यप् = विस्मृत्य।
उदाहरणानि
तुमुन-प्रत्ययः
यथा ‘क्त्वा-ल्यप्’-प्रत्ययान्तौ अव्ययौ स्तः, तथैव ‘तुमुन्’ प्रत्ययातः अपि अव्ययः भवति। एका क्रिया सम्पादयितुं यत्र अन्या क्रिया क्रियते, तत्र भविष्यत् = अर्थम् सूचयितुम् ‘तुमुन्’ प्रत्ययः धातुना सह योज्यते। यथा-बालकः उत्सवं द्रष्टुं गच्छति। अत्र उत्सवस्य दर्शनाय गमनक्रिया भवति। अतः ‘तुमुन्’ प्रत्ययः धातुना सहयोजितः अस्ति।
उदाहरणानि
(क) छात्राः ज्ञातुम् (ज्ञा + तुमुन्) प्रश्नान् पृच्छन्ति।
(ख) महापुरुषाः यशः अर्जितुम् (अर्ज + तुमुन्) त्यागं कुर्वन्ति।
(ग) सैनिकाः देशं रक्षितुम् (रक्ष् + तुमुन्) युद्धं कुर्वन्ति।
(घ) किं त्वं सेवितुम् (सेव् + तुमुन्) तत्परः असि?
(ङ) अहं द्रष्टुम् (दृश् + तुमुन्) अत्र आगतोऽस्मि।
भावविकासः
(क) कर्म करना ही चाहिए कर्म किए बिना सफलता नहीं होती।
कर्मैव हि कर्तव्यं नास्ति सिद्धिरकर्मणः। (महाभारत)
(ख) परिश्रम से दुर्लभ काम भी सिद्ध हो जाते हैं।
दुर्लभान्यपि कार्याणि सिद्ध्यन्ति प्रोद्यमेन वै। (बुद्धचरितम्)
(ग) सोये हुए शेर के मुख में मृग प्रवेश नहीं करते।
नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः (बुद्धचरितम्)
(घ) उद्यम को मित्र के समान स्वीकार करें तथा आलस्य का शत्रु के समान परित्याग कर देवें।
उद्यमो मित्रवत् ग्राह्यः, प्रमादं शत्रुवत् त्यजेत्। (बुद्धचरितम्)
(ङ) अपने व्यवसाय से ही जन्तु धन्य होकर जीवनयापन करते हैं।
स्वेनैव व्यवसायेन धन्याः जीवन्ति जन्तवः। (ब्रह्मपुराण)
(च) उद्यम से ही कार्य सिद्ध होते हैं मनोरथों से नहीं।
उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। ( पञ्चतन्त्र)
(छ) जो अच्छे कार्य में थक गया है देवता उससे मैत्री नहीं करते।
न ऋते श्रान्तस्य सख्याय देवाः। (ऋग्वेद 4.33.11)
अतिरिक्त-अभ्यासः
प्रश्न: 1.
अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा तदाधारितानाम् प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत(क) कस्मिंश्चित् जलाशये अनागविधाता प्रत्युत्पन्नमतिः यद्भविष्यश्च इति त्रयो मत्स्याः प्रतिवसन्ति स्म। अथ कदाचित् तं जलाशयं दृष्ट्वा गच्छद्भिः मत्स्यजीविभिः उक्तम्- “अहो, बहुमत्स्योऽयं हृदः कदापि न अस्माभिः अन्वेषितः। अद्य तु आहारवृत्तिः सञ्जाता। सन्ध्यासमयः अपि संवृत्तः। ततः प्रभाते अत्र आगन्तव्यम् इति निश्चयः।”
I. एकपदेन उत्तरत (1/2 x 4 = 2)
(i) मत्स्यजीविनः कं दृष्ट्वान्?
(ii) त्रिषु मत्स्येषु प्रथमः कः आसीत्?
(iii) जलाशयः कीदृशः आसीत्?
(iv) जलाशयः कैः अन्वेषितः?
उत्तरम्:
(i) जलाशयम्
(ii) अनागतविधाता
(iii) बहुमत्स्यः
(iv) मत्स्यजीविभिः
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (1 x 1 = 1)
मत्स्यजीविनः कं निश्चयं कृतवन्तः?
उत्तरम्:
‘प्रभाते अत्र आगन्तव्यम्’ इति निश्चयं मत्स्यजीविनः कृतवन्तः।
III. निर्देशानुसारेण उत्तरत (1 x 2 = 1)
(i) ‘सञ्जाता’ क्रियापदस्य कर्तृपदं लिखत।
(ii) ‘अस्माभिः’ इति पदं कस्य स्थाने प्रयुक्तम्?
उत्तरम्:
(i) आहारवृत्तिः
(ii) ‘मत्स्यजीविभिः’ इति पदस्य स्थाने
(ख) तदहं न गच्छामि। भवद्भ्यां यत् प्रतिभाति, तत् कर्तव्यम्। अथ तस्य तं निश्चयं ज्ञात्वा अनागतविधाता
प्रत्युत्पन्नमतिश्च निष्क्रान्तौ सह परिजनेन। अथ प्रभाते तैः मत्स्यजीविभिः जालैस्तं जलाशयम् आलोड्य यद्भविष्येण सह तत् सरो निर्मत्स्यता नीतम्।
I. एकपदेन उत्तरत (1/2 x 4 = 2)
(i) सरः परित्यज्य कः न अगच्छत्?
(ii) मत्स्यजीविभिः जलाशयः कैः आलोडितः?
(iii) उभौ मत्स्यौ केन सह निष्क्रान्तौ?
(iv) सरः कीदृशीम् अवस्थां नीतम्?
उत्तरम्:
(i) यद्भविष्यः
(ii) जालैः
(iii) परिजनेन
(iv) निर्महस्यताम्
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत
उत्तरम्:
यदभविष्यः अवदत्-तदहं न गमिष्यामि। भवद्भ्यां यत् प्रतिभाति तत् कर्तव्यम्।
यद्भविष्यः किम् अवदत्?
III. निर्देशानुसारेण उत्तरत (1 x 1 = 2)
(i) ‘नीतम्’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
(ii) ‘सहः’ योगे का विभक्तिः प्रयुज्यते?
उत्तरम्:
(i) तैः मत्स्यजीविभिः।
(ii) तृतीय विभक्तिः। अनागतविधाता परिजनेन सह निष्क्रान्तः।
(ग) तदाकर्ण्य प्रत्युत्पन्नमतिः प्राह-अहो! सत्यमभिहितं भवता। ममापि अभीष्टमेतत्। तदन्यत्र गम्यताम् इति। अथ तत्
समाकर्ण्य उच्चैः विहस्य यद्भविष्यः उवाच-अहो! भवद्भ्यां न सम्यग् मन्त्रितम् इति। किं वाङ्मात्रेणापि पितृपैतामहादिकम् एतत् सरः त्यक्तुं युज्यते? आयुः क्षयोऽस्ति चेत्, अन्यत्रगतानामपि मृत्युः भविष्यति एव। उक्तं च
I. एकपदेन उत्तरत (1/2 x 2 = 1)
(i) कः उच्चैः विहस्य उवाच?
(ii) आयुक्षयो भवति सति केषाम् अपि मृत्युः भविष्यति?
उत्तरम्:
(i) यद्भविष्यः
(ii) अन्यत्रगतानाम्
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (1 x 2 = 2)
(i) अनागतविधातुः वचनम् आकर्ण्य प्रत्युत्पन्नमतिः किं प्राह?
(ii) यदभविष्यानुसारेण वाङ्मात्रेण अपि किं कर्तुं न युज्यते?
उत्तरम्:
(i) अनागतविधातुः वचनम् आकर्ण्य प्रत्युत्पन्नमतिः प्राह-अहो सत्यमभिहितं भवता। ममापि अभीष्टमेतत्। तदन्यत्र गाम्यताम् इति।
(ii) यद्भविष्यानु सारेण- वाङ्मात्रेण अपि पितृपैतामहादिकम् एतत् सरः किं त्यक्तुं युज्यते?
III. निर्देशानुसारेण उत्तरत (1 x 2 = 2)
(i) ‘श्रुत्वा’ इति पदस्य अर्थ किं पदम् अनुच्छेदे प्रयुक्तम्?
(ii) अनुच्छेदे उवाच’ क्रियापदस्य कर्तृपदं किम्?
उत्तरम्:
(i) समाकर्ण्य
(ii) यद्भविष्यः
प्रश्न: 2.
निम्नलिखितं श्लोकं पठित्वा तदाधारितान् प्रश्नान् उत्तरत
(क) अशक्तैर्बलिनः शत्रोः कर्तव्यं प्रपलायनम्।
आश्रितव्योऽथवा दुर्गः नान्या तेषां गतिर्भवेत्॥
I. एकपदेन उत्तरत (1/2 x 2 = 1)
(i) अशक्तैः कुत्र आश्रितव्यः?
(ii) कैः बलिनः शत्रोः प्रपलायनम् कर्तव्यम्?
उत्तरम्:
(i) दुर्गः
(ii) अशक्तैः
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (2x 1 = 2)
अशक्तैः किम् कर्तव्यम्?
उत्तरम्:
अशक्तैः बलिनः शत्रोः प्रपलायनम् कर्तव्यम् अथवा दुर्गः आश्रयितव्यः।
III. निर्देशानुसारेण उत्तरत (1/2 x 4 = 2)
(i) ‘शक्तिशालिभिः’ अस्य पदस्य कः विपर्ययः श्लोके आगतः?
(ii) ‘बलिनः शत्रोः’ अनयोः पदयोः विशेषणं किम्?
(iii) ‘कर्तव्यम्’ इति क्रिया पदस्य कर्तृपदं किम्?
(iv) श्लोके ‘तेषां’ पदं केभ्यः आगतम्?
उत्तरम्:
(i) अशक्तैः
(ii) बलिनः
(iii) अशक्तैः
(iv) अशक्तेभ्यः
(ख) विद्यमाना गतिः येषामन्यत्रापि सुखावहा।
ते न पश्यन्ति विद्वांसो देहभग कुलक्षयम्॥
I. एकपदेन उत्तरत (1/2 x 2 = 1)
(i) विद्वांसः किम् न पश्यन्ति?
(ii) विदुषाम् अन्यत्र अपि कीदृशी गतिः विद्यमाना भवति?
उत्तरम्:
(i) कुलक्षयम्
(ii) सुखावहा
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (2 x 1 = 2)
के विद्वांसः देहभङ्ग कुलक्षयञ्च न पश्यन्ति?
येषाम् अन्यत्र अपि सुखावहा गतिः विद्यमाना भवति ते विद्वांसः देहभङ्गं कुलक्षयं च न पश्यन्ति?
उत्तरम्:
येषाम् अन्यत्र अपि सुखावहा गतिः विद्यमाना भवति ते विद्वांसः देहभङ्ग कुलक्षयं च न पश्यन्ति?
III. निर्देशानुसारेण उत्तरत (1/2 x 4 = 2)
(i) श्लोके ‘गतिः’ इति विशेष्य पदस्य विशेषण पदं किम्?
(ii) ‘पश्यन्ति’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम् अस्ति?
(iii) ‘मूर्खाः’ इति पदस्य श्लोके विपर्ययः कः?
(iv) श्लोकात् एकम् अव्यय पदं चित्त्वा लिखत।
उत्तरम्:
(i) सुखावहा
(ii) विद्वांसः (ते)
(iii) विद्वांसः
(iv) अन्यत्र/अपि
(ग) अरक्षितं तिष्ठति दैवरक्षितं
सुरक्षितं दैवहतं विनश्यति। जीवत्यनाथोऽपि वने विसर्जितः, कृतप्रयत्नोऽपि गृहे न जीवति॥
I. एकपदेन उत्तरत ( 2 x 2 = 1)
(i) दैवहतं कीदृशं विनश्यति? \
(ii) कुत्र विसर्जितः अनाथोऽपि जीवति?
उत्तरम्:
(i) सुरक्षितम्
(ii) वने
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (2 x 1 = 2)
गृहे स्थितोऽपि कः न जीवति?
उत्तरम्:
कृतप्रयत्नः गृहे स्थितोऽपि न जीवति।
III. निर्देशानुसारेण उत्तरत (1/2 x 4 = 2)
(i) ‘भाग्यहतम्’ इति पदस्य श्लोके कः पर्याय:?
(ii) ‘ग्रहीतः’ इति पदस्य श्लोके कः विपर्ययः?
(iii) ‘विसर्जितः’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किम्?
(iv) ‘सुरक्षितं दैवहतम्’ अनयोः पदयोः विशेषणं किम्?
उत्तरम्:
(i) दैवहतम्
(ii) विसर्जितः
(iii) अनाथः
(iv) सुरक्षितम्
प्रश्न: 3.
I सन्दर्भग्रन्थस्य लेखकस्य च नामनी लिख्येताम् (1+1 = 2)
(i) “अहो, बहुमत्स्योऽयं ह्रदः कदापि न अस्माभिः अन्वेषितः”।
(ii) “तद् रात्रावपि गम्यतां किञ्चित् निकटं सरः”।
(iii) “अरक्षितं तिष्ठति दैवरक्षितम्”।
(iv) “तदहं न गच्छामि। भवद्भ्यां यत् प्रतिभाति, तत् कर्तव्यम्”।
उत्तरम्:
(i) ग्रन्थनाम- पञ्चतन्त्रम्, लेखकनाम-श्री विष्णु शर्मा
(ii) ग्रन्थनाम- पञ्चतन्त्रम्, लेखकनाम-श्री विष्णु शर्मा
(ii) ग्रन्थनाम-पञ्चतन्त्रम्, लेखकनाम-श्री विष्णु शर्मा
(iv) ग्रन्थनाम-पञ्चतन्त्रम्, लेखकनाम-श्री विष्णु शर्मा
II. कः कम् कथयति (1+ 1 = 2)
(i) ‘जीवति अनाथोऽपि वने विसर्जितः’।
(ii) ‘तन्नूनं प्रभातसमये मत्स्यजीविनः अत्र समागत्य मत्स्यसंक्षयं करिष्यन्ति’।
(iii) ‘अहो! सत्यमभिहितं भवता। ममापि अभीष्टमेतत्।
(iv) ‘अहो, बहुमत्स्योऽयं हृदं: कदापि न अस्माभिः अन्वेषितः’।
उत्तरम्:
(i) वक्ता (कः)-यद्भविष्यः, श्रोता (कम्)-प्रत्युत्पन्नमतिम्
(ii) क:-अनागत विधाताए, कम्-सर्वान् मत्स्यान्
(iii) कः-प्रत्युत्पन्नमतिः, कम्-अनागत विधातारम्
(iv) कः-मत्स्यजीविभिः, कम्-परस्परम्
प्रश्नः 4.
I. निम्न वाक्यानाम् उचितं भावं चित्त्वा लिखत (1 x 2 = 2)
(क) “सुरक्षितं देवहतं विनश्यति” अर्थात
(i) भाग्येन हतः प्रयत्नेन रक्षितः अपि नश्यति।
(ii) सुरक्षितः भाग्येन हतः अपि न नश्यति।
(iii) भाग्येन हतः सुरक्षितः अपि रक्षितः भवति।
उत्तरम्:
(i) भग्येन हतः प्रयत्नेन रक्षितः अपि नश्यति।
(ख) ‘अशक्तैर्बलिनः शत्रोः कर्तव्यं प्रपलायनम्’। अर्थात्
(i) शक्तिहीनैः बलवतः शत्रोः युद्ध कर्तव्यम्।
(ii) शक्तिहीनैः बलवतः शत्रोः पलायनम् कर्तव्यम्।
(iii) शक्तियुक्तैः बलवतः शत्रोः पलायनम् कर्तव्यम्।
उत्तरम्:
(ii) शक्तिहीनैः बलवतः शत्रोः पलायनम् कर्तव्यम्।
II. निम्नवाक्ये उचितभाव युक्तैः पदैः रिक्त स्थानानि संपूरयत (1/2 x 4 = 2)
(क) “विद्यमाना गतिः येषामन्यत्रापि सुखावहा ……….(i)………. कुलक्षयम्’। अस्य भावोऽस्ति यत् ये ………(ii)……… स्वहिताय स्वं स्थानम् अपि अन्यत्र समयानुसारेण पलायनं कुर्वन्ति ते …….(iii)……. कदापि कुत्रापि स्वदेहस्य कथयति पतनम् स्वस्थ ………..(iv)………. च नाशं न पश्यन्ति।
मञ्जूषा – जनाः, कुलस्य, परित्यज्य, जनाः
उत्तरम्:
(i) जनाः
(ii) परित्यज्य
(iii) जनाः
(iv) कुलस्य
(ख) ‘आयुः क्षयोऽस्ति चेत् अन्यत्रगतानामपि मृत्युः भविष्यति एव’। अर्थात्-तृतीयः मत्स्यः यद्भविष्यः
सर्वान् मत्स्यान् सम्बोध्य कथयति यत् अहम् मत्स्यजीविनाम् केवलं ………(i)…… एव पितृ-पितामहादिनाम् एतत् सरः न त्यक्ष्यामि। यदि मम भाग्ये मम ………(ii)…….. एव लिखिता अस्ति तदा तु अन्यत्र स्थानेषु गमनेन अपि ……(iii)……. नाशः भविष्यति एव। अतः अहं तु इदं स्थानं ………..(iv)…….. अन्यत्र न गमिष्यामि। यदि भवन्तः इच्छन्ति तर्हि स्वेच्छानुसारं गच्छन्तु।
मञ्जूषा – त्यक्त्वा, मम, वचनात्, मृत्युः
उत्तरम्:
(i) वचनात्
(ii) मृत्युः
(iii) मम
(iv) त्यक्त्वा
प्रश्नः 5.
निम्न श्लोकान् पठित्वा सम्यक्तया तेषाम् अन्वयं लिखत (1/2 x 8 = 4)
(क) अशक्तैर्बलिनः शत्रोः कर्तव्यं प्रपलायनम्।
आश्रितव्योऽथवा दुर्ग: नान्या तेषां गतिर्भवेत्॥
अन्वयः – अशक्तैः …….(i)….. शत्रोः प्रपलायनं …………..(ii)……. अथवा दुर्गः ……….(iii)…… तेषाम् अन्या ……..(iv)……. न भवेत्।।
उत्तरम्:
(i) बलिनः
(ii) कर्तव्यम्
(iii) आश्रितव्यः
(iv) गतिः
(ख) विद्यमाना गतिः येषामन्यत्रापि सुखावहा।
ते न पश्यन्ति विद्वांसो देहभङ्ग कुलक्षयम्॥
अन्वयः – येषाम् अन्यत्र अपि …………..(i)……….. गतिः विद्यमाना ते …….(ii)…….. देह ………(iii)…… कलक्षयं न ………(iv)……
उत्तरम्:
(i) सुखावहा
(ii) विद्वांसः
(iii) भङ्गम्
(iv) पश्यन्ति
(ग) अरक्षितं तिष्ठति दैवरक्षितं
सुरक्षित दैवहतं विनश्यति।
जीवत्यनाथोऽपि वने विसर्जितः,
कृतप्रयत्नोऽपि गृहे न जीवति॥
अन्वयः- अरक्षितं ….(i)…… तिष्ठति ………(ii)….. दैवहतं विनश्यति। अनाथः वने ……..(iii)…… अपि जीवति, ….(iv)…. गृहे अपि न जीवति।।
उत्तरम्:
(i) दैवरक्षितं
(ii) सुरक्षित
(iii) विसर्जितः
(iv) कृतप्रयत्नः
प्रश्नः 6.
निम्नलिखितानां वाक्यानां कथा क्रमानुसारं सम्यक्तया पुनर्लेखनं कुरुत.
(क) (i) अनागतविधाता प्रत्युत्पन्नमतिश्च सपरिजनं निष्क्रान्तौ।
(ii) अहो भवद्भ्यां न सम्यक्तया चिन्तितम्।
(iii) एकस्मिन् तडागे त्रयः मत्स्याः निवसन्ति स्म।
(iv) अनागतविधाता सर्वान् मत्स्यान् तत्सरः त्यक्तुम् अकथयत्।
(v) बहुमत्स्यान् दृष्ट्वा मत्स्यजीविनः परस्परं श्वः प्रभाते तत्र आगन्तुम् अकथयन्।
(vi) मत्स्यजीविनः प्रभाते जलाशयम् आलोड्य सर्वान् मत्स्यान् अमारयन्।
(vii) किं केवलं कथनेन एतत् सरः त्यक्तुं युज्यते।
उत्तरम्:
(i) एकस्मिन् तडागे त्रयः मत्स्याः निवसन्ति स्म।
(ii) बहुमत्स्यान् दृष्ट्वा मत्स्यजीविनः परस्परं श्वः प्रभाते तत्र आगन्तुम् अकथयन्।
(iii) अनागतविधाता सर्वान् मत्स्यान् तत्सरः त्युक्तुम् अकथयत्।
(iv) अत्र सम्प्रति क्षणमात्रम् अपि स्थातुम् उचितं नास्ति।
(v) अहो भवद्भ्यां न सम्यक्तया चिन्तितम्।
(vi) किं केवलं कथनेन एतत् सरः त्यक्तुं युज्यते।
(vii) अनागतविधाता प्रत्युत्पन्मतिश्च सपरिजनं निष्क्रान्तौ।
(viii) मत्स्यजीविनः प्रभाते जलाशयम् आलोड्य सर्वान् मत्स्यान् अमारयन्।
(ख) वाक्यानां ‘क’ खण्डेन सह ‘ख’ खण्डम् उचितं सम्मेलयत
उत्तरम्:
1. (v)
2. (vi)
3. (viii)
4. (ii)
5. (vii)
6. (iv)
7. (i)
8. (iii)
प्रश्नः 7.
निम्नलिखितानां रेखाङ्कित पदानां प्रसङ्गानुसारेण शुद्धम् अर्थ चिनुत –
(क) अनागत विधाता प्रत्युत्पन्नमतिश्च निष्क्रान्तौ सह परिजनेन।
(i) पारिवारिकजनेन
(ii) परेणजनेन
(iii) परितःजानेन
उत्तरम्:
(i) पारिवारिकजनेने
(ख) आयु क्षयः अस्ति चेत् अन्यत्र गतानामपि मृत्युः भविष्यति एव।
(i) क्षीणः
(ii) क्षयरोगः
(iii) नाशः।
उत्तरम्:
(iii) नाशः
(ग) अहो बहुमत्स्योऽयं हृदः कदापि न अस्माभिः अन्वेषितः।
(i) तडागः
(ii) नदी
(iii) प्रपातः।
उत्तरम्:
(i) तडागः
(घ) ममापि अभीष्टम् एतत्। –
(i) उचितम्
(ii) निश्चयः
(iii) प्रियम्।
उत्तरम्:
(iii) प्रियम्
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