NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 3 शीलम् एतत् प्रशस्यते (ऐसा अच्छा आचरण प्रशंसनीय होता है)
पाठपरिचयः, सारांशः च
पाठपरिचयः
सुभाषितानि संस्कृतभाषायाः रत्नानि सन्ति। ‘सुष्ठु भाषितम्’ इति सुभाषितम्। लघुकलेवराणि अपि एतानि सुभाषितानि भावदृष्ट्या महान्तम् अर्थम् उद्वहन्ति। व्यावहारिके जीवने एतेषां सुवचनानां विशिष्टं महत्त्वम् अस्ति। नैराश्ये एतानि प्रेरकानि वचनानि प्रेरणारूपेण कार्य कुर्वन्ति। लोकाचारं व्यवहारज्ञानं च प्रदाय जीवनपथं परिष्कुर्वन्ति। जीवनस्य पथि एतानि पाथेयमिव अस्माकं हितं रचयन्ति।
पाठे सङ्कलितानां सुभाषितानां सन्दर्भग्रन्थाः
सारांशः
ज्ञातिभिः सह प्रीतिभोजनम्, स्नेहवार्तालापः, परस्परं प्रीतिः च कार्याणि, न च कदापि विरोधः करणीयः। चक्षुषा मनसा वचसा कर्मणा लोकं प्रसादयेत्। आशा येषां दासी, लोकः तेषां दासवत् आचरति। अव्यवस्थित-चित्तानाम प्रसादः अपि भयङ्करः। मित्रम् प्रति अविचार्य प्रियं करणीयम्। अज्ञः अल्पारम्भः व्यग्रः तिष्ठति परं कृतधियः महारम्भाः निराकुलाः तिष्ठन्ति। यः पठनं, लेखन, दर्शनं, पृच्छनम्, पण्डिताश्रयं च करोति तस्य बुद्धिः विकासम् प्राप्नोति। कर्मणा मनसा गिरा सर्वप्राणिषु अनुग्रहः दानं च प्रशस्यते।
हिन्दीभाषायां पाठपरिचयः
प्रस्तुत पाठ में श्लोक विदुरनीति, कवितामृतकूप, वैद्यकीय सुभाषितम्, सुभाषितरत्नभाण्डागारम्, मनुस्मृति तथा शिशुपालवध म् पाठ से लिए गए हैं।
सारांशः
संबंधियों के साथ प्रीतिभोज, प्रेमपूर्वक वार्तालाप तथा व्यवहार करना चाहिए, उनसे कभी विरोध नहीं करना चाहिए। चक्षु, मन, वाणी तथा कर्म चार प्रकार से लोगों को प्रसन्न करना चाहिए। आशा जिनकी दासी होती है लोग उनके दास बनकर व्यवहार करते हैं। अव्यवस्थित चित्त वालों की प्रसन्नता भी भयंकर होती है। मित्र का बिना विचारे ही प्रिय करना चाहिए। मूर्ख अल्पारम्भ से ही घबरा जाते हैं। महारथ वाले बुद्धिमान् सदा निश्चिन्त रहते हैं। जो पढ़ता है, लिखता है, देखता है, पूछता रहता है तथा पण्डितों की सेवा करता है उसकी बुद्धि विकसित होती है। सब प्राणियों के प्रति कर्म से, मन से तथा वाणी से अद्रोह, अनुग्रह तथा दान का भाव प्रशस्त माना जाता है।
सुभाषित संस्कृत भाषा का रत्न है। सुष्ठु भाषित को ही सुभाषित कहते हैं। छोटे आकार वाले भी ये सुभाषित भाव-दृष्टि से बड़े गंभीर तथा महत्त्वपूर्ण हैं। व्यावहारिक जीवन में इन सुवचनों का विशेष महत्त्व है। निराशा के समय ये प्रेरक वचन नीति का काम करते हैं, लोकाचार तथा व्यावहारिक ज्ञान देकर जीवन के मार्ग को परिष्कृत करते हैं तथा जीवन के मार्ग में ये नीतिवचन हमारे लिए पाथेय का कार्य करते हैं।
क. मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः, भावार्थः, सरलार्थश्च
1. सम्भोजनम् सङ्कथनं सम्प्रीतिश्च परस्परम्।
ज्ञातिभिः सह कार्याणि न विरोधः कदाचन॥1॥ (विदुरनीतिः)
शब्दार्थाः – ज्ञातिभिः – परिजनैः, सम्बन्धिभिः (रिश्तेदारों से । संभोजनम् – सहभोजनम् (प्रीतिभोज)। सङ्कथनम् – प्रेमणा वार्तालापः (प्रेमपूर्वक वार्तालाप)। सम्प्रीतिः – प्रेममयः व्यवहारः (स्नेहपूर्ण व्यवहार)।
सरलार्थ – सम्बन्धियों के साथ प्रीतिभोज, सम्यक् वार्तालाप तथा प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। उनके प्रति कभी द्वेष भाव नहीं रखना चाहिए।
2. चक्षुषा मनसा वाचा कर्मणा च चतुर्विधम्।
प्रसादयति यो लोकं तं लोकाऽनुप्रसीदति॥2॥ (विदुरनीति:)
शब्दार्थाः – चक्षुषा – नेत्रेण (आँख से)। प्रसादयति – प्रसन्नं करोति (प्रसन्न करता है)। अनुप्रसीदति – तदनुसृत्य प्रसन्नो भवति (वैसा ही प्रसन्न होता है)।
सरलार्थ – जो मनुष्य आँखों से, मन से, वचन से तथा कर्म से, चार प्रकार से लोगों को प्रसन्न रखता है, लोग भी उसको उसी तरह (अर्थात् चार प्रकार से) प्रसन्न रखते हैं।
3. आशायाः ये दासास्ते दासाः सर्वलोकस्य।
आशा येषां दासी तेषां दासायते लोकः॥3॥ (कवितामृतकूपः)
शब्दार्थाः – आशायाः – कामनायाः (इच्छा के)। दासाः – सेवकाः (नौकर, गुलाम)। सर्वलोकस्य – सर्वेषां लोकानाम् (सब लोगों के)। दासी – सेविका (नौकरानी)। दासायते – दासवत् भवति (दास के समान होता है)।
सरलार्थ – जो लोग आशा के दास होते हैं वे सब लोगों के दास होते हैं। किन्तु आशा जिनकी दासी होती है, लोग उनके दास बनकर आचरण करते हैं।
4. क्षणे रुष्टाः क्षणे तुष्टा, रुष्टास्तुष्टा क्षणे क्षणे।
अव्यवस्थितचित्तानां प्रसादोऽपि भयङ्करः॥4॥ (अज्ञातः)
शब्दार्थाः – रुष्टाः – क्षुब्धाः (नाराज़)। तुष्टाः – प्रसन्नाः (सन्तुष्ट)। अव्यवस्थितचित्तानाम् – अस्थिरमनसाम् (जिनके मन स्थिर नहीं, उनका)। प्रसादः- अनुग्रहः (प्रसन्नता, कृपा)।
सरलार्थ – जो लोग क्षण में क्षुब्ध तथा क्षण में प्रसन्न होते हैं तथा इस प्रकार क्षण-क्षण में क्षुब्ध तथा प्रसन्न होते रहते हैं, ऐसे अव्यवस्थित मन वाले लोगों की प्रसन्नता भी भयंकर होती है।
5. यथा भूमिः तथा तोयं, यथा बीजं तथाङ्करः।
यथा देशः तथा भाषा, यथा राजा तथा प्रजा॥5॥ (वैद्यकीय-सुभाषितम्)
शब्दार्थाः – तोयम्- जलम् (पानी)। तथाङ्करः- तथा। अङ्करः – बीजस्य विस्फोटः (वैसा ही अंकुर)।
सरलार्थ – जैसी भूमि होती है, वैसा ही पानी का स्वाद होता है। जैसा बीज होता है, वैसा ही अंकुर होता है। जैसा देश होता है, वहाँ के रहने वालों की वैसी भाषा होती है। जैसा राजा होता है, प्रजा भी वैसी ही होती है।
6. कराविव शरीरस्य नेत्रयोरिव पक्ष्मणी।
अविचार्य प्रियं कुर्यात्तन्मित्रं मित्रमुच्यते॥6॥ (सुभाषितरत्नभाण्डागारम्)
शब्दार्थाः – करौ- हस्तौ (दोनों हाथ)। पक्ष्मणी- नेत्रयोः पक्ष्मणी (दोनों आँखों की पलकें)। नेत्रयोः- नयनयोः (दोनों आँखों का)। अविचार्य- न विचार्य (बिना विचारे)। प्रियं- प्रियकार्य (हित)। कुर्यात्- करोति (करता है)। उच्यतेकथ्यते (कहा जाता है)।
सरलार्थ – जैसे दोनों हाथ शरीर का बिना विचारे हित करते हैं, दोनों पलकें आँखों का बिना विचारे ध्यान रखती हैं, वैसे ही जो मित्र, मित्र का बिना विचारे प्रिय करता है वही मित्र (वास्तव में) मित्र होता है।
7. आरभन्तेऽल्पमेवाज्ञाः कामं, व्यग्राः भवन्ति च।
महारम्भाः कृतधियस्तिष्ठन्ति च निराकुलाः॥7॥ (मनुस्मृतिः)
शब्दार्थाः – अज्ञाः – मूर्खाः (मूर्ख)। अल्पम्- लघु (थोड़ा)। आरभन्ते- प्रारम्भं कुर्वन्ति (शुरू करते हैं)। व्यग्राःचिन्तिताः (चिन्तित, व्याकुल)। कृतधियः- बुद्धिमन्तः (बुद्धिमान्)। निराकुला:- अनुद्विग्नाः (शान्तचित्त, व्याकुल न होने वाले)। महारम्भाः – अतीव उद्योगं कुर्वन्तः (अधिक उद्योग करने वाले)।
सरलार्थ – मूर्ख लोग किसी लघु काम को भी आरम्भ करते हैं तो अधिक चिन्तित हो जाते हैं पर बुद्धिमान् महान् कार्य को आरम्भ करके भी चिन्तित नहीं होते, वे शान्तचित्त रहते हैं।
8. यः पठति लिखति पश्यति, परिपृच्छति पण्डितानुपाश्रयति।
तस्य दिवाकरकिरणैः नलिनीदलमिव विकास्यते बुद्धिः॥8॥ (शिशुपालवधम्)
शब्दार्थाः – परिपृच्छति- प्रतिप्रश्नं करोति (प्रतिप्रश्नं करता है)। उपाश्रयति- समीपं तिष्ठति, सेवते (सेवा करता है, समीप बैठता है)। दिवाकरकिरणैः- सूर्यस्य किरणैः (सूर्य की किरणों से)। नलिनीदलम् इव- कमलिनी-पत्रम् इव (कमलिनी के पत्ते के समान)। विकास्यते- विकास नीयते (विकसित की जाती है)।
सरलार्थ – जो व्यक्ति पढ़ता, लिखता, देखता, बार-बार पूछता रहता है तथा पण्डितों (बुद्धिमानों) के पास बैठता है, इन क्रियाओं से उसकी बुद्धि वैसे ही विकास को प्राप्त होती है, जैसे सूर्य की किरणों के द्वारा कमल के पुष्प की पंखुड़ियों तथा पत्तों का विकास होता है। .
9. अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा।
अनुग्रहश्च दानञ्च शीलमेतत् प्रशस्यते॥9॥ (सुभाषितरत्नाभाण्डागारम्)
शब्दार्थाः – अद्रोहः- अद्वेष (द्वेष न करना)। अनुग्रह:- कृपा (दया)। शीलम्- सद्व्यवहारः (सच्चरित्र)। प्रशस्यते- प्रशंसनीयः भवति (प्रशस्त होता है)।
सरलार्थ – मन, वचन, कर्म से सब प्राणियों के प्रति द्वेष न करना, अनुग्रह तथा दान देना ऐसा शील प्रशंसा योग्य होता है।
ख. अनुप्रयोगस्य-प्रश्नोत्तराणि
1. क. निम्नलिखितानां पदानां उच्चारणम् कुरुत (निम्नलिखित पदों का उच्चारण कीजिए) –
सम्प्रीतिश्च, लोकोऽनुप्रसीदति, रुष्टास्तुष्टाः, नेत्रयोरिव, कराविव, कुर्यात्तन्मित्रम्, कृतधियस्तिष्ठन्ति।
(ख) अधोलिखितानां अनुलेखनम् कुरुत (उपर्युक्त पदों को फिर से लिखिए) –
सम्प्रीतिश्च, लोकोऽनुप्रसीदति, रुष्टास्तुष्टाः, नेत्रयोरिव, कराविव, कुर्यात्तन्मित्रम्, कृतधियस्तिष्ठन्ति।
2. (अ) अधोलिखितुषु पदेषु तालव्यवर्णानाम् चयनं कुरुत (निम्नलिखित पदों में तालव्यवर्ण चुनकर लिखिए)
o
उत्तरः
(क) च्
(ख) श् य्
(ग) श् य् इ
(घ) च् इ
(ङ) ज्।
2. (ब) निर्देशानुसारम् उत्तरत (निर्देश के अनुसार उत्तर दीजिए) –
(क) ‘रुष्टः’ इति पदे कः वर्णः ओष्ठ्यः ?
(ख) ‘तुष्टः’ इति पदे कः वर्णः दन्त्यः?
(ग) “किरणैः’ इति पदे कः वर्णः कण्ठतालव्यः?
(घ) ‘अविचार्य’ इति पदे कः वर्णः दन्तोष्ठ्यः ?
(ङ) ‘भाषा’ इति पदे कः वर्णः मूर्धन्यः?
उत्तरः
(क) उ
(ख) त्
(ग) ऐ
(घ) व्
(ङ) ष्
3. (अ) उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखितानां पदानां समासं कुरुत (उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित पदों का
समास कीजिए) –
यथा न धर्मः – अधर्मः
न अभ्यासः – अनभ्यासः
(क) न विचार्य …………………..
(ख) न द्रोहः …………………..
(ग) न ज्ञः (जानाति इति) …………………..
(घ) न जीर्णः …………………..
(ङ) न उचितम् …………………..
उत्तरः
(क) अविचार्य
(ख) अद्रोहः
(ग) अज्ञः
(घ) अजीर्णः
(ङ) अनुचितम्।
3. (ब) अधोलिखिततालिकायां रिक्तस्थानपूर्ति कुरुत (निम्नलिखित तालिका में रिक्त स्थान भरिए)
(क) दानम् + च = …………………..
(ख) रुष्टाः + तुष्टाः = …………………..
(ग) प्रीतिः + ………………….. = प्रीतिश्च
(घ) ……………… + इव = नेत्रयोरिव
(ङ) ……………… + च = अनुग्रहश्च
(च) करौ + इव = ………………..
(छ) प्रसादः + अपि = ………………….
उत्तरः
(क) दानञ्च
(ख) रुष्टास्तुष्टाः
(ग) च
(घ) नेत्रयोः
(ङ) अनुग्रहः
(च) कराविव
(छ) प्रसादोऽपि।
4. पदानां समानार्थकानि पदानि पाठात् चित्वा लिखत (पदों के समानार्थक पद पाठ से चुनकर लिखिए) –
(क) सहभोजनम् ………………………..
(ख) सम्बन्धिभिः ………………………..
(ग) जलम् ………………………..
(घ) संसारः ………………………..
(ङ) वाचा ………………………..
(च) अनुग्रहः ………………………..
(छ) हस्तौ ………………………..
(ज) परितृप्तः ………………………..
उत्तरः
(क) सम्भोजनम्
(ख) ज्ञातिभिः
(ग) तोयम्
(घ) लोकः
(ङ) गिरा
(च) प्रसादः
(छ) करौ
(ज) तुष्टः।
5. ‘यथा’ ‘तथा’ इति अव्यययोः प्रयोगः सह एव भवति।
उदाहरण- यथा गुरवे रोचते शिष्यः तथा करोति।
एवमेव अधोलिखितानि वाक्यानि पूरयत –
(क) …………….. भूमिः …………….. जलम्।
(ख) ………………….. बीजम् ………………… अङ्करः।
(ग) …………….. देशः ………………….. भाषा।
(घ) …………………. राजा ……………… प्रजा।
(ङ) …………………. करौ शरीरं रक्षतः पक्ष्मणी च नेत्रयोः रक्षां कुरुतः ………….. एव सन्मित्रम् मित्रस्य हितं करोति।
(च) ……………… सूर्यकिरणाः कमलिनीपत्रं विकासयन्ति ………………… विद्यायाः अभ्यासः बुद्धः विकासं करोति।
उत्तरः
(क) यथा, तथा
(ख) यथा, तथा
(ग) यथा, तथा
(घ) यथा, तथा
(ङ) यथा, तथा
(च) यथा, तथा।
6. अधोलिखितान् प्रश्नान् संस्कृतभाषया उत्तरत (निम्नलिखित प्रश्नों के संस्कृत भाषा में उत्तर दीजिए) –
(क) कैः सह विरोध: न कर्तव्यः?
(ख) लोकः केभ्यः दासवत् आचरति?
(ग) केषां कृपा अपि भयम् उत्पादयति?
(घ) संसारः कं नरम् अनुप्रसीदति?
(ङ) शीलं किं कथ्यते?
(च) कस्य बुद्धिः विकसिता भवति?
(छ) महत्कार्यं कुर्वन्तः अपि के व्याकुलाः न भवन्ति?
उत्तरः
(क) ज्ञातिभिः सह विरोधः न कर्तव्यः।
(ख) लोकः तेभ्यः दासवत् आचरति ये आशायाः दासाः सन्ति।
(ग) अव्यवस्थितचित्तानां कृपा अपि भयम् उत्पादयति।
(घ) संसारः तं नरम् अनुप्रसीदति यः चक्षुषा, मनसा, वाचा कर्मणा च चतुर्विधं लोकं प्रसीदति।
(ङ) कर्मणा, मनसा, गिरा सर्वभूतेषु अद्रोहः, अनुग्रहः दानं च शीलं कथ्यते।
(च) यः पठति, लिखति, पश्यति, परिपृच्छति, पण्डितान्, उपाश्रयति तस्य बुद्धिः विकसिता भवति।
(छ) महत्कार्य कुर्वन्तः अपि कृतधियः व्याकुलाः न भवन्ति।
7. अधोलिखितभावानां समक्षं पाठात् चित्वा समुचितं श्लोकं पंक्तिम् वा लिखत (निम्नलिखित भावों के सामने पाठ से चुनकर समुचित श्लोक या पंक्ति लिखिए) –
(क) बुद्धिमन्तः महद् अपि कार्यम् आरभ्य कदापि व्याकुलाः न भवन्ति।
………………………………………………………………
(ख) यादृशी भूमिः भवति जलस्य आस्वादः अपि तादृशः एव भवति।
………………………………………………………………
(ग) अस्थिरचित्ताः जनाः अतिशीघ्रम् प्रसन्नाः अप्रसन्नाः वा भवन्ति। अतः तेषाम् अनुग्रहः अपि विश्वसनीयः न भवति।
………………………………………………………………
(घ) बुद्धः सम्यक् विकासार्थं पठनं लेखनं परिप्रश्नः आदिभिः क्रियाविधिभिः अभ्यासः कर्तव्यः।
………………………………………………………………
(ङ) यस्य नरस्य नयनयोः प्रेमभावः, मनसि परहितचिन्तनम् वाचि माधुर्य, कर्मणि च प्रियं, हितं कर्तुम् तत्परता भवति सः एव लोके प्रशंसनीयः।
………………………………………………………………
उत्तरः
(क) महारम्भाः कृतधियस्तिष्ठन्ति च निराकुलाः।
(ख) यथा भूमिः तथा तोयम्।
(ग) अव्यवस्थितचित्तानां प्रसादोऽपि भयङ्करः।
(घ) यः पठति लिखति पश्यति परिपृच्छति पण्डितानुपाश्रयति।
तस्य दिवाकरकिरणैः नलिनीदलमिव विकास्यते बुद्धिः।।
(ङ) अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा।
अनुग्रहश्च दानञ्च शीलमेतत् प्रशस्यते।
8. श्लोकान् आधृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत (श्लोकों के आधार पर रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए) –
(क) सम्बन्धिभिः सह कदापि ………………. न कर्त्तव्यः।
(ख) ………………. दासाः सर्वलोकस्य दासाः भवन्ति।
(ग) अस्थिरचित्तानाम् अनुग्रहः अपि ………………. जनयति।
(घ) ……………. कार्यम् आरभ्य व्याकुलाः भवन्ति।
(ङ) सर्वभूतेषु ………………. , अनुग्रहः ………………… च शीलं कथ्यते।
उत्तरः
(क) विरोधः,
(ख) आशायाः,
(ग) भयम्,
(घ) अज्ञाः,
(ङ) अद्रोहः, दान।
9. अधोलिखितानां सूक्तीनां समक्षं पाठात् चित्वा समुचितपङ्क्तिं लिखत (निम्नलिखित सूक्तियों के सामने पाठ से चुनकर समुचित पंक्ति को लिखिए) –
(क) सङ्गच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
…………………………………………..
(ख) अङ्गीकृतं सुकृतिनः परिपालयन्ति।
…………………………………………..
(ग) देशमाख्याति भाषणम्।
…………………………………………..
(घ) राज्ञि धर्मिणि धर्मिष्ठाः, पापे पापाः समे समाः।
…………………………………………..
(ङ) अवशेन्द्रियचित्तानां हस्तिस्नानमिव क्रियाः।
…………………………………………..
उत्तरः
(क) सम्भोजनं सङ्ककथनं सम्प्रीतिश्च परस्परम् ज्ञातिभिश्च कार्याणि।
(ख) महारम्भाः कृतधियास्तिष्ठन्ति च निराकुलाः।
(ग) यथा देशः तथा भाषा।
(घ) यथा राजा तथा प्रजा।
(ङ) अव्यवस्थितचित्तानां प्रसादोऽपि भयङ्करः।
ग. पाठ-विकासः
समानान्तरसूक्तयः
(क) आशा नाम मनुष्याणां काचिदाश्चर्यशृङ्खला।
यया बद्धा प्रधावन्ति मुक्तास्तिष्ठन्ति पङ्गुवत्॥
भावार्थ:- आशा मनुष्यों की एक ऐसी आश्चर्यजनक जंजीर है जिसमें बँधकर मनुष्य दौड़ते रहते हैं तथा घुटकर लँगड़े जैसे हो जाते हैं। .
(ख) अवशेन्द्रियचित्तानां हस्तिस्नानमिव क्रिया।
दुर्भगाभरणप्रायो ज्ञानं भारः क्रिया विना॥
भावार्थ:- इन्द्रियों तथा मन के वश में न रहने वालों की क्रिया हाथी के स्नान के समान होती है। क्रिया के बिना ज्ञान कुरूप स्त्री के आभूषणों के समान भारस्वरूप होता है।
(ग) विनैः पुनः पुनः अपि प्रतिहन्यमानाः।
प्रारभ्य चोत्तमजना: न परित्यजन्ति।
भावार्थ:- विघ्नों से बार-बार आहत होकर भी उत्तम जन प्रारम्भ करके किसी काम को बीच में नहीं छोड़ते।
(घ) अङ्गीकृतं सुकृतिनः परिपालयन्ति।
भावार्थ:- पुण्यशाली स्वीकृत नियम का पूर्ण पालन करते हैं।
(ङ) न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः।
भावार्थ:- न्यायपथ से धीर कभी विचलित नहीं होते।
(च) समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः।
समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति॥ (ऋग्वेदः 10/191/4)
भावार्थ:- तुम्हारे अभिप्राय समान हों, हृदय समान हों, मन समान हों, जिससे तुम्हारी संगति शुभ हो।
(छ) क्षणमानन्दितामेति क्षणमेति विषादिताम्।
क्षणं सौम्यत्वमायाति सर्वस्मिन्नटवन्मनः॥ (योगवासिष्ठः 1/28/38)
भावार्थ:- मन नटवत् (नट के समान) क्षण में प्रसन्न हो जाता है, क्षण में दुःखी हो जाता है तथा क्षण में सबके प्रति सौम्य स्वभाव का होता है।
(ज) किमिवावसादकरमात्मवताम्। (किरातार्जुनीयम् 6/19)
भावार्थ:- मन को वश में रखने वालों के लिए क्या दुःखकारक है अर्थात् कुछ भी दुःखकारक नहीं है।
घ. पठितांश-अवबोधनम्
1. अधोलिखितं श्लोकं पठित्वा समुचितरूपेण प्रश्नान् उत्तरत।
(क) कराविव शरीरस्य नेत्रयोरिव पक्ष्मणी।
अविचार्य प्रियं कुर्यात्तन्मित्रं मित्रमुच्यते॥
I. एकपदेन उत्तरत –
(i) करौ कस्य प्रियं कुरुतः?
(ii) पक्ष्मणी कयोः प्रियं कुरुतः?
(iii) मित्रं कस्य प्रियम् अविचार्य करोति?
(iv) सन्मित्रं मित्रस्य किं करोति?
उत्तरः
(i) शरीरस्य
(ii) नेत्रयोः
(iii) मित्रस्य
(iv) प्रियम्।
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत
सन्मित्रम् कः कथ्यते?
उत्तरः
सः सन्मित्रं कथ्यते यः मित्रस्य तथैव प्रियं करोति यथा करौ शरीरस्य अथवा पक्ष्मणी नेत्रयोः प्रियं
कुरुतः।
III. निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) श्लोके ‘उच्यते’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
(क) प्रियम्
(ख) मित्रम्
(ग) अप्रियम्
(घ) नेत्रम्
उत्तरः
(ख) मित्रम्
(ii) ‘हस्तौ’ इति पदस्य कः पर्यायः श्लोके आगतः?
(क) करौ
(ख) कराविव
(ग) पक्ष्मणी
(घ) करः
उत्तरः
(क) करौ
(iii) श्लोके ‘रिपुः’ पदस्य कः विपर्ययः लिखितः?
(क) पक्ष्मणी
(ख) कराविव
(ग) करौ
(घ) मित्रम्
उत्तरः
(घ) मित्रम्
(iv) श्लोके ‘तत्’ पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(क) जनाय
(ख) ग्रहाय
(ग) मित्राय
(घ) प्रियाय
उत्तरः
(ग) मित्राय
(ख) यथा भूमिः तथा तोयं, यथा बीज तथाङ्करः।
यथा देशः तथा भाषा, यथा राजा तथा प्रजा॥
I. एकपदेन उत्तरत –
(i) यादृशं बीजम् तादृशः कः भवति?
(ii) तोयं कस्याः सदृशं भवति?
(iii) राज्ञः सदृशी का कथिता?
(iv) यथा देशः तथा का भवति?
उत्तरः
(i) अङ्करः
(ii) भूमेः
(iii) प्रजा
(iv) भाषा।
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
प्रजा कस्य व्यवहारम् अनुसरति?
उत्तरः
प्रजा राज्ञः व्यवहारम् अनुसरति।
III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
(i) श्लोके ‘नृपः’ पदस्य कः विपर्ययः प्रयुक्तः?
(क) राजा
(ख) जनः
(ग) प्रजा
(घ) स्वामी
उत्तरः
(ग) प्रजा
(ii) ‘यथा देशः तथा भाषा’। अत्र अव्ययपदं किम्?
(क) देशः
(ख) भाषा
(ग) भाषाः
(घ) यथा-तथा
उत्तरः
(घ) यथा-तथा
(iii) जलस्य पर्यायवाचिपदं श्लोके किम् आगतम्?
(क) तोयम्
(ख) भूमिः
(ग) आपः
(घ) अङ्कुरः
उत्तरः
(क) तोयम्
(iv) ‘बीजम्’ इति पदस्य लिङ्गः कः?
(क) पुल्लिङ्गः
(ख) नपुंसकलिङ्गः
(ग) स्त्रीलिङ्गः
(घ) किमपि न
उत्तरः
(ख) नपुंसकलिङ्गः
(ग) चक्षुषा मनसा वाचा कर्मणा च चतुर्विधम्।
प्रसादयति यो लोकं तं लोकोऽनुप्रसीदति॥
I. एकपदेन उत्तरत
(i) प्रसादः कतिविधः भवति?
(ii) लोकः किं करोति?
(iii) श्रेष्ठं जनं कः अनुप्रसीदति?
(iv) श्लोके प्रसादस्य प्रथम साधनं किं वर्तते?
उत्तरः
(i) चतुर्विधः
(ii) अनुप्रसीदति
(iii) लोकः
(iv) चक्षुः
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत
लोकः कम् अनुप्रसीदति?
उत्तरः
लोकः तम् अनुप्रसीदति यः लोकं चतुर्विधम् प्रसादयति।
III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
(i) ‘संसारः’ इत्यस्य स्थाने किं पदं श्लोके प्रयुक्तम्?
(क) जगत्
(ख) जगतः
(ग) लोकः
(घ) लोकम्
उत्तरः
(ग) लोकः
(ii) ‘गिरा’ इत्यस्य स्थाने अत्र कः पर्यायः प्रयुक्तः?
(क) वाचा
(ख) मनसा
(ग) चक्षुषा
(घ) कर्मणा
उत्तरः
(क) वाचा
(iii) ‘यो लोकं’। अत्र ‘यः’ (यो)’ पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(क) लोकाय
(ख) जनाय
(ग) नेत्राय
(घ) कर्मणे
उत्तरः
(ख) जनाय
(iv) श्लोके ‘अनुप्रसीदति’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किम्? .
(क) यः
(ख) लोकम्
(ग) तम्
(घ) लोकः
उत्तरः
(घ) लोकः
(घ) सम्भोजनम् सङ्कथनम् सम्प्रीतिश्च परस्परम्।
ज्ञाततिभिः सह कार्याणि न विरोधः कदाचन॥
I. एकपदेन उत्तरत –
(i) कैः सह सम्भोजनम् करणीयम्?
(ii) ज्ञातिभिः सह क: न कर्तव्यः?
(iii) ज्ञातिभिः सह किं कर्तव्यम्?
(iv) परिजनैः सह कीदृशं कथनं कर्तव्यम्?
उत्तरः
(i) ज्ञातिभिः
(ii) विरोधः
(iii) सम्भोजनम्
(iv) सङ्कथनम्
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
सम्बन्धिभिः (ज्ञातिभिः) सह किं-किं कर्तव्यम्?
उत्तरः
सम्बन्धिभिः (ज्ञातिभिः) सह सम्भोजनम् सङ्कथनम् सम्प्रीतिश्च कर्तव्याः।
III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
(i) ‘मैत्री’ पदस्य कः विपर्ययः श्लोके आगतः?
(क) सङ्कथनम्
(ख) सम्भोजनम्
(ग) सम्प्रीतिः
(घ) विरोधः
उत्तरः
(घ) विरोधः
(ii) श्लोके ‘सम्भोजनम् सङ्ग्रथनं सम्प्रीतिश्च’ इति कर्तृपदस्य क्रियापदं किं प्रयुक्तम्?
(क) कदाचन
(ख) कार्याणि
(ग) विरोधः
(घ) परस्परम्
उत्तरः
(ख) कार्याणि
(iii) अत्र श्लोके ‘सार्धम्’ इत्यस्य पदस्य कः पर्यायः प्रयुक्तः?
(क) सह
(ख) कदाचन
(ग) ज्ञातिभिः
(घ) परस्परम्
उत्तरः
(क) सह
(iv) अस्मिन श्लोके ‘प्रीतिभोजनम्’ इत्यस्य पदस्य अर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?
(क) सम्प्रीतिः
(ख) सङ्कथनम्
(ग) सम्भोजनम्
(घ) परस्परम्
उत्तरः
(ग) सम्भोजनम्
(ङ) आशायाः ये दासास्ते दासाः सर्वलोकस्य।
आशा येषां दासी तेषां दासायते लोकः॥
I. एकपदेन उत्तरत –
(i) जनाः कस्याः दासाः वर्तन्ते?
(ii) आशायाः दासाः कस्य दासाः भवन्ति?
(ii) सर्वलोकस्य दासाः के?
(iv) श्रेष्ठ जनानां दासी का भवति?
उत्तरः
(i) आशायाः
(ii) सर्वलोकस्य
(iii) आशादासाः
(iv) आशा
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
लोकः केषां दासायते?
उत्तरः
लोकः तेषां दासायते येषां दासी आशा भवति।
III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
(i) श्लोके ‘आशा’ इति विशेष्यस्य विशेषणपदं किम्?
(क) येषां
(ख) तेषां
(ग) दासी
(घ) लोकः
उत्तरः
(ग) दासी
(ii) ‘आशायाः ये दासाः’ अत्र ‘ये’ पदं केभ्यः प्रयुक्तम्?
(क) लोकेभ्यः
(ख) जनेभ्यः
(ग) आशाभ्यः
(घ) दासेभ्यः
(घ) दासायते
उत्तरः
(ख) जनेभ्यः
(iii) श्लोके ‘लोकः’ इति कर्तृपदस्य क्रियापदं किम्?
(क) दासास्ते
(ख) तेषां
(ग) सर्वलोकस्य
(घ) दासाः
उत्तरः
(घ) दासायते
(iv) ‘निराशा’ इत्यस्य पदस्य कः विपर्ययः अत्र प्रयुक्तः?
(क) आशा
(ख) आशायाः
(ग) दासी
उत्तरः
(क) आशा
(च) क्षणे रुष्टाः क्षणे तुष्टाः, रुष्टास्तुष्टा क्षणे क्षणे।
अव्यवस्थितचित्तानां प्रसादोऽति भयङ्करः॥
I. एकपदेन उत्तरत –
(i) के क्षणे रुष्टाः भवन्ति?
(ii) क्षणे-क्षणे अव्यवस्थितचित्ताः कीदृशाः भवन्ति?
(iii) के क्षणे तुष्टाः भवन्ति?
(iv) केषां प्रसाद: भयङ्करः भवति?
उत्तरः
(i) अव्यवस्थितचित्ताः
(ii) रुष्टास्तुष्टाः
(iii) अव्यवस्थितचित्ताः
(iv) अव्यवस्थितचित्तानाम्
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
अव्यवस्थितचित्तानां कः भयङ्करः भवति?
उत्तरः
अव्यवस्थितचित्तानां प्रसादोऽपि भयङ्करः भवति।
III. निर्देशानुसार उत्तरत –
(i) श्लोके ‘तुष्टाः’ पदस्य कः विपर्ययः प्रयुक्तः?
(क) नष्टाः
(ख) सन्तुष्टाः
(ग) असन्तुष्टाः
(घ) रुष्टाः
उत्तरः
(घ) रुष्टाः
(ii) ‘प्रसन्नता’ इत्यस्य पदस्य कः पर्यायः अत्र श्लोके आगतः?
(क) भयङ्करः
(ख) प्रसादः
(ग) प्रसादोऽपि
(घ) तुष्टः
उत्तरः
(ख) प्रसादः
(iii) श्लोके ‘प्रसादः’ इति विशेष्यपदस्य किं विशेषणं प्रयुक्तम्?
(क) भयङ्करः
(ख) रुष्टः
(ग) तुष्टः
(घ) सन्तुष्टः
उत्तरः
(क) भयङ्करः
(iv) ‘प्रतिक्षणम्’ इत्यस्य समस्तपदस्य कः विग्रहः श्लोके आगतः?
(क) रुष्टाः
(ख) क्षणे क्षणे
(ग) क्षणे
(घ) तुष्टाः
उत्तरः
(ख) क्षणे क्षणे
(छ) आरभन्तेऽल्पमेवाज्ञाः कामं, व्यग्राः भवन्ति च।
महारम्भाः कृतधियस्तिष्ठन्ति च निराकुलाः॥
I. एकपदेन उत्तरत –
(i) के निराकुलाः तिष्ठन्ति?
(ii) अज्ञाः कथं कार्यम् आरभन्ते?
(iii) के कामं व्यग्राः भवन्ति?
(iv) कृतधियः कीदृशाः भवन्ति?
उत्तरः
(i) कृतधियः
(ii) अल्पमेव
(iii) अज्ञाः
(iv) महारम्भाः
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
अज्ञाः कीदृशाः भवन्ति?
उत्तरः
अज्ञा: अल्पमेव कार्य प्रारभ्य कामं व्यग्राः भवन्ति।
III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
(i) श्लोके ‘आरभन्ते’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
(क) अज्ञाः
(ख) अल्पमेव
(ग) कामम्
(घ) व्यग्राः
उत्तरः
(i) (क) अज्ञाः
(ii) ‘कृतधियः’ इति कर्तृपदस्य क्रियापदं किम्?
(क) निराकुलाः
(ख) तिष्ठन्ति
(ग) स्तिष्ठन्ति
(घ) महारम्भाः
उत्तरः
(ख) तिष्ठन्ति
(iii) श्लोके ‘अल्पम्’ इत्यस्य पदस्य कः विपर्ययः आगतः?
(क) व्यग्राः
(ख) कृतधियः
(ग) एव
(घ) कामम्
उत्तरः
(घ) कामम्
(iv) ‘व्याकुलाः’ इति पदस्य कः पर्यायः अत्र लिखितः?
(क) अज्ञाः
(ख) अल्पमेव
(ग) व्यग्राः
(घ) महारम्भाः
उत्तरः
(ग) व्यग्राः
(ज) यः पठति लिखति पश्यति, परिपृच्छति पण्डितानुपाश्रयति।
तस्य दिवाकर किरणैः नलिनीदलमिव विकास्यते बुद्धिः॥
I. एकपदेन उत्तरत –
(i) अत्र श्रेष्ठजनस्य कति गुणाः वर्णिता?
(ii) दिवाकर किरणैः किं विकस्यते?
(iii) श्रेष्ठजनः कान् उपाश्रयति?
(iv) श्रेष्ठकर्मभिः कस्याः विकासः भवति?
उत्तरः
(i) पञ्च
(ii) बुद्धिः
(iii) पण्डितान्
(iv) बुद्धेः
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
श्रेष्ठः जनः किं-किं करोति?
उत्तरः
श्रेष्ठः जनः पठति, लिखति, पश्यति, परिपृच्छति पण्डितान् उपाश्रयति।
III. निर्देशानुसार उत्तरत
(i) श्लोके ‘यः’ सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(क) लोकाय
(ख) जनाय
(ग) देशाय
(घ) कुलाय
उत्तरः
(ख) जनाय
(ii) श्लोके ‘पठति’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
(क) तस्य
(ख) बुद्धिः
(ग) यः
(घ) नलिनीदलम्
उत्तरः
(ग) यः
(iii) ‘सूर्य’ इति पदस्य कः पर्यायः श्लोके आगतः?
(क) दिवाकर
(ख) किरणैः
(ग) दिवाकर किरणैः
(घ) भानुः
उत्तरः
(क) दिवाकर
(iv) ‘मूर्खान्’ पदस्य कः विपर्ययः अत्र श्लोके लिखितः?
(क) दिवाकर किरणैः
(ख) पण्डितान्
(ग) उपाश्रयति
(घ) विज्ञान
उत्तरः
(ख) पण्डितान्
(झ) अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा।
अनुग्रहश्च दानश्च शीलमेतत् प्रशस्यते॥
I. एकपदेन उत्तरत –
(i) दानम् किं भवति?
(ii) केषु अद्रोहः कर्तव्यः?
(iii) द्वितीयं शीलं किम्?
(iv) अद्रोहः केन कर्तव्यः ?
उत्तरः
(i) शीलम्
(ii) सर्वभूतेषु
(iii) अनुग्रहः
(iv) कर्मणा
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
कीदृशं शीलं प्रशस्यते?
उत्तरः
सर्वभूतेषु कर्मणा-मनसा-गिरा अद्रोहः, अनुग्रहः दानम् च एतत् शीलं प्रशस्यते।
III. निर्देशानुसार उत्तरत –
(i) श्लोके ‘शीलम्’ इति कर्तृपदस्य क्रियापदं किम् प्रयुक्तम्?
(क) एतत्
(ख) अद्रोहः
(ग) प्रशस्यते
(घ) दानम्
उत्तरः
(ग) प्रशस्यते
(ii) ‘वाचा’ इत्यस्य पदस्य अर्थ किं पदं श्लोके प्रयुक्तम्?
(क) गिरा
(ख) कर्मणा
(ग) मनसा
(घ) अनुग्रहः
उत्तरः
(क) गिरा
(iii) ‘कृपणता’ श्लोके अस्य पदस्य कः विपर्ययः आगतः?
(क) दानम्
(ख) दानञ्च
(ग) अनुग्रहः
(घ) शीलम्
उत्तरः
(क) दानम्
(iv) ‘शीलमेतत्’ अनयोः पदयोः विशेषणपदं किम्?
(क) शीलम्
(ख) एतत्
(ग) शील
(घ) मेतत्
उत्तरः
(ख) एतत्
2. निम्नलिखितं श्लोकं पठित्वा तस्य भावपूर्ति मञ्जूषायाः समुचितैः पदैः करोतु भवान् –
(क) सम्भोजनम् सङ्कथनम् सम्प्रीतिश्च परस्परम्।
ज्ञातिभिः सह कार्याणि न विरोधः कदाचन॥
अस्य भावोऽस्ति- यत् अस्मिन् जगति सदैव (i) …………………. सह प्रीतिभोजनम्, सम्यक् (ii) ………………….प्रेममयः व्यवहारः च कुयुः। तैः सह (iii) ………………….परस्परं (iv) …………………. न कुर्यात्।
मञ्जूषा – वार्तालापः, कदापि, सम्बन्धिभिः, द्वेषम्
उत्तरः
(i) सम्बन्धिभिः
(ii) वार्तालापः
(iii) कदापि
(iv) द्वेषम्
(ख) चक्षुषा मनसा वाचा कर्मणा च चतुर्विधम्।
प्रसादयति यो लोकं तं लोकोऽनुप्रसीदति॥
अर्थात्यः –
(1) ………………… स्वनेत्राभ्याम्, मनसा (ii) ………………… स्वकार्येण च अनेन (ii) ……………….. जनान् प्रसन्नान् करोति। जनाः अपि तं (iv)…………………. दृष्ट्वा प्रसीदन्ति (प्रसन्नं कुर्वन्ति)।
मञ्जूषा – जनं, जनः, चतुः प्रकारेण, वचनेन
उत्तरः
(i) जनः
(ii) वचनेन
(iii) चतुः प्रकारेण
(iv) जनं
(ग) आशायाः ये दासास्ते दासाः सर्वलोकस्य।
आशा येषां दासी तेषां दासायते लोकः॥
अस्य भावोऽस्ति- अस्मिन् संसारे ये जनाः (i) …………………. दासाः भवन्ति ते जनाः सर्वेषाम् (ii) ……………….. दासाः भवन्ति। परं कामना (आशा) यस्य (iii) ………………… भवति। जनाः (लोकाः ) (iv) ……….. दासाः इव आचरणं कुर्वन्ति।
मञ्जूषा – तेषां, कामनायाः, दासी, लोकानाम् ।
उत्तरः
(i) कामनायाः
(ii) लोकानाम्
(iii) दासी
(iv) तेषां
(घ) क्षणे रुष्टाः क्षणे तुष्टाः रुष्टास्तुष्टा क्षणे क्षणे।
अव्यवस्थितचित्तानां प्रसादोऽपि भयङ्करः॥
भावार्थ: – अस्मिन् जगति ये जनाः क्षणे एव (i) …………………. क्षणे च (ii) ………………… एवमेव प्रतिक्षणं क्षुब्धाः प्रसन्नाः च भवन्ति। संसारे ईदृशाणाम् अस्थिर मनसां (iii) …………………. प्रसन्नता अपि (iv) …………….. भवति।
मञ्जूषा – जनानां, भयङ्करा, क्षुब्धाः, प्रसन्नाः
उत्तरः
(i) क्षुब्धाः
(ii) प्रसन्नाः
(iii) जनानां
(iv) भयङ्करा
(ङ) यथा भूमिः तथा तोयं, यथा बीजं तथाङ्कुरः।
यथा देशः तथा भाषा, यथा राजा तथा प्रजा॥ अस्य भावोऽस्ति यत् संसारे आधारस्य (i) …………… सर्वत्र दृश्यते। दृश्यते यत् यादृशी भूमिः भवति तस्याः अन्तः स्थितस्य (ii) …………….. स्वादः अपि तादृशः एव भवति। एवमेव यादृशं (iii) ………………. भवति तादृशम् एवम् अङ्कुरः अपि भवति, तथैव यादृशः देशों वर्तते तादृशी एव जनानां (iv) ………………. भवति। राज्ये यादृशः नृपः उपकारी अनुपकारी वा भवति तादृशी एव उत्तमा अनुत्तमा वा तस्य प्रजा अपि भवति।
मञ्जूषा – जलस्य, प्रभावः, भाषा, बीजम्
उत्तरः
(i) प्रभावः
(ii) जलस्य
(iii)बीजम्
(iv) भाषा
(च) कराविव शरीरस्य नेत्रयोरिव पक्ष्मणी।
अविचार्य प्रियं कुर्यात्तन्मित्रं मित्रमुच्यते॥ अर्थात्- यथा शरीरस्य रक्षा (प्रियं) (i) ……………. कुरुतः, नेत्रयो (ii) …………….. रक्षतः तथैव यः जनः (iii) ………………. प्रिय (हित) कार्यम् अविचार्य एव करोति तत् (iv) ………………. एव वास्तविक मित्रम् उच्यते (कथ्यते)।
मञ्जूषा – मित्रम्, मित्रस्य, पक्ष्मणी, हस्तौ
उत्तरः
(i) हस्तौ
(ii) पक्ष्मणी
(ii) मित्रस्य
(iv) मित्रम्
(छ) आरभन्तेऽल्पमेवाज्ञाः काम, व्यग्राः भवन्ति च।
महारम्भाः कृतधियस्तिष्ठन्ति च निराकुलाः॥
अस्य श्लोकस्य भावोऽस्ति- अस्मिन् संसारे इदं दृश्यते यत् मूर्खाः जनाः स्वल्पं विचिन्त्य एव (i) ……………. आरम्भणं कुर्वन्ति तथा विपत्तौ आगते सति अधिकाधिकं (ii) …………… भवन्ति। परं (iii) ………….. जनाः महताम् उद्योगानाम् (iv) …………. कृत्वा विपत्ते आगतौ सति अपि कदापि उद्विग्नाः न भवन्ति।
मञ्जूषा – चिन्तिताः, आरम्भणं, कार्यस्य, बुद्धिमन्तः |
उत्तरः
(i) कार्यस्य
(ii) चिन्तिताः
(iii) बुद्धिमन्तः
(iv) आरम्भणं
(ज) यः पठति लिखति पश्यति, परिपृच्छति पण्डितानुपाश्रयति।
तस्य दिवाकर किरणैः नलिनीदलमिव विकास्यते बुद्धिः॥
भावार्थ: – अस्य श्लोकस्य भावोऽयम् यत्-अस्मिन् संसारे यः जनः निरन्तरं सद्ग्रन्थान् (i) ………………….. तस्य लेखनं करोति तान् निरन्तरं पश्यति विद्वद्भिः सह (ii) ……………. करोति विदुषः च सेवते। एताभिः क्रियाभिः तस्य (iii) …………. तथैव विकासं प्राप्नोति यथा सूर्यस्य किरणैः (iv) ………………… विकासः भवति।
उत्तरः
(i) पठति
(ii) प्रतिप्रश्नान्
(iii) बुद्धिः
(iv) कमलपत्राणां
(झ) अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा।
अनुग्रहश्च दानञ्च शीलमेतत् प्रशस्यते॥
भावार्थः – अस्मिन् संसारे (i) …………….. स्व कर्मणा, मनसा (ii) ……………… द्वेषं न करणम् सर्वान् प्रति (ii) ……………… करणं तेभ्यश्च दानं करणम् एते त्रयः गुणाः जनानां (iv) ……………… शीलं भवन्ति।
मञ्जूषा – कृपां, प्रशंसनीयं, सर्वप्राणिषु, वाण्या
उत्तरः
(i) सर्वप्राणिषु
(ii) वाण्या
(iii) कृपां
(iv) प्रशंसनीयं
3. निम्नलिखितस्य सन्दर्भ ग्रन्थस्य लेखकस्य च नामनी लिखत
(i) ज्ञातिभिः सह कार्याणि न विरोधः कदाचन।
(ii) चक्षुषा मनसा वाचा कर्मणा च चतुर्विधम् प्रसादयति यो लोकं तं लोकोऽनुप्रसीदति।
(iii) आशायाः ये दासाः ते दासाः सर्वलोकस्य।
(iv) अव्यवस्थिचित्तानां प्रसादोऽपि भयङ्करः।
(v) यथा देशः तथा भाषा, यथा राजा तथा प्रजा।
(vi) अविचार्य प्रियं कुर्यात् तन्मित्रं मित्रम् उच्यते।
(vii) महारम्भाः कृतधियः तिष्ठन्ति च निराकलाः
(viii) यः पठति लिखति पश्यत् िपरिपृच्छति पण्डितानुपाश्रयति, तस्य दिवाकर किरणैः नलिनीदलम् इव विकास्यते बुद्धिः।
(ix) अनुग्रहश्च दानञ्च शीलम् एतत प्रशस्यते। उत्तरम्सन्दर्भग्रन्थः
4. निम्नश्लोकं पठित्वा तस्य अन्वयं रिक्त-स्थान-पूर्ति-माध्यमेन उचितैः पदैः सम्पूरयत –
(क) सम्भोजनं सङ्कथनं सम्प्रीतिश्च परस्परम्।
ज्ञातिभिः सह कार्याणि न विरोधः कदाचन।
अन्वयः – ज्ञातिभिः सह (i) …………… सङ्कथनम् (ii) …………… च कार्याणि। (iii) …………………. विरोधः (iv) …………………. न (कर्तव्यः )।
उत्तरः
(i) सम्भोजनम्
(ii) सम्प्रीति
(iii) परस्परं
(iv) कदाचन।
(ख) चक्षुषा मनसा वाचा कर्मणा च चतुर्विधम्।
प्रसादयति यो लोकं तं लोकोऽनुप्रसीदति॥
अन्वयः- यः (i) …………………. चक्षुषा मनसा (ii) …………… कर्मणा च (iii) …………… प्रसादयति (iv) …………… तम् अनुप्रसीदति।
उत्तरः
(i) लोकम्
(ii) वाचा
(iii) चतुर्विधम्
(iv) लोकः
(ग) आशायाः ये दासास्ते दासाः सर्वलोकस्य। आशा येषां दासी तेषां दासायते लोकः॥
अन्वयः – ये (जनाः) (i) ………………. दासाः (भवन्ति) ते (ii) ……………… दासाः (भवन्ति), आशा (iii) ……………… दासी (अस्ति) (iv) ……………. तेषां दासायते।
उत्तरः
(i) आशायाः
(ii) सर्वलोकस्य
(iii) येषाम्
(iv) लोकः
(घ) क्षणे रुष्टाः क्षणे तुष्टा, रुष्टास्तुष्टा क्षणे क्षणे।
अव्यवस्थितचित्तानां प्रसादोऽपि भयङ्करः॥
अन्वयः – ये (जनाः) (i) …………. रुष्टाः क्षणे तुष्टाः (ii) ……………… (च) रुष्टाः तुष्टाः (भवन्ति), (तेषाम्) (iii) …………… प्रसादः अपि (iv) …………… (भवति)।
उत्तरः
(i) क्षणे
(ii) क्षणे-क्षणे
(iii) अव्यवस्थितचित्तानां
(iv) भयङ्करः
(ङ) यथा भूमिः तथा तोयं, यथा बीजः तथाङ्कुरः।
यथा देशः तथा भाषा, तथा राजा तथा प्रजा॥
अन्वयः – यथा (i) ……………… तथा तोयम् यथा बीजम् तथा (ii) ……………… यथा (iii) ……………… तथा भाषा यथा (iv) ……………… तथा प्रजा (भवति)।
उत्तरः
(i) भूमिः
(ii) अङ्कुरः
(iii) देशः
(iv) राजा।
(च) कराविव शरीरस्य नेत्रयोरिव पक्ष्मणी।
अविचार्य प्रियं कुर्यात्तन्मित्रं मित्रमुच्यते॥
अन्वयः – (यत् मित्रम्) करौ (i) ……………… इव (ii) ……………… नेत्रयोः इव अविचार्य (मित्रस्य) (iii) …………… कुर्यात् तत् (iv) …………… मित्रम् उच्यते।
उत्तरः
(i) शरीरस्य
(ii) पक्ष्मणी
(iii) प्रियम्
(iv) मित्रम्।
(छ) आरभन्तेऽल्पमेवाज्ञाः कामं व्यग्राः भवन्ति च।
महारम्भाः कृतधियस्तिष्ठन्ति च निराकुलाः॥
अन्वयः – अज्ञाः (i) …………… एव आरभन्ते (ii) …………… व्यग्राः च भवन्ति, (iii) …………… महारम्भाः (iv) …………… च तिष्ठन्ति।
उत्तरः
(i) अल्पम्
(ii) कामम्
(iii) कृतधियः
(iv) निराकुलाः।
(ज) यः पठति लिखति पश्यति, परिपृच्छति पण्डितानुपाश्रयति।
तस्य दिवाकरकिरणैः नलिनीदलमिव विकास्यते बुद्धिः॥
अन्वयः – यः पठति (i) ……………. पश्यति, परिपृच्छति (i) …………… उपाश्रयति। (ii) …………… नलिनीदलम् इव तस्य (iv) …………… विकास्यते।
उत्तरः
(i) लिखति
(ii) पण्डितान्
(iii) दिवाकरकिरणैः
(iv) बुद्धिः ।
(झ) अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा।
अनुग्रहश्च दानञ्च शीलमेतत् प्रशस्यते॥
अन्वयः – सर्वभूतेषु (i) …………… मनसा (ii) …………… अद्रोहः अनुग्रहः च (ii) …………… च एतत् (iv) …………….. प्रशस्यते।
उत्तरः
(i) कर्मणा
(ii) गिरा
(iii) दानम्
(iv) शीलम्।
5. ‘क’ वर्गीय पदानां ‘ख’ वर्गीय पदैः सह अर्थमेलनं कृत्वा लिखत –
उत्तरः
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