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CBSE Class 12 Hindi जनसंचार माध्यम और लेखन

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CBSE Class 12 Hindi जनसंचार माध्यम और लेखन

क. प्रिंट माध्यम

प्रश्नः 1.
संचार क्या है?
उत्तरः
‘संचार’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘चर’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है-चलना या एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचना। संचार सिर्फ दो व्यक्तियों तक सीमित परिघटना नहीं है। यह हज़ारों-लाखों लोगों के बीच होने वाले जनसंचार तक विस्तृत है। अत: सूचनाओं, विचारों और भावनाओं को लिखित, मौखिक या दृश्य-श्रव्य माध्यमों के जरिए सफलतापूर्वक एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना ही संचार है और इस प्रक्रिया को अंजाम देने में मदद करने वाले तरीके संचार माध्यम कहलाते हैं।

प्रश्नः 2.
संचार के विभिन्न प्रकार बताइए।
उत्तरः
संचार एक जटिल प्रक्रिया है। उसके कई रूप या प्रकार हैं जो निम्नलिखित हैं –
(क) मौखिक संचार : एक-दूसरे के सामने वाले इशारे या क्रिया को मौखिक संचार कहते हैं। इसमें हाथ की गति, आँखों व चेहरे के भाव, स्वर के उतार-चढ़ाव आदि क्रियाएँ होती हैं।
(ख) अंतरवैयक्तिक संचार : जब दो व्यक्ति आपस में और आमने-सामने संचार करते हैं तो इसे अंतरवैयक्तिक संचार कहते हैं। इस संचार की मदद से आपसी संबंध विकसित करते हैं और रोजमर्रा की ज़रूरतें पूरी करते हैं। संचार का यह रूप पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों की बुनियाद है।
(ग) समूह संचार : इसमें एक समूह आपस में विचार-विमर्श या चर्चा करता है। कक्षा-समूह इसका अच्छा उदाहरण है। इस रूप का प्रयोग समाज और देश के सामने उपस्थित समस्याओं को बातचीत और बहस के जरिए हल करने के लिए होता है।
(घ) जनसंचार : जब व्यक्तियों के समूह के साथ संवाद किसी तकनीकी या यांत्रिकी माध्यम के जरिए समाज के एक विशाल वर्ग से किया जाता है तो इसे जनसंचार कहते हैं। इसमें एक संदेश को यांत्रिक माध्यम के जरिए बहुगुणित किया जाता है ताकि उसे अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सके। रेडियो, अखबार, टीवी, सिनेमा, इंटरनेट आदि इसके माध्यम हैं।

प्रश्नः 3.
जनसंचार की विशेषताएँ बताइए।
उत्तरः
जनसंचार की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  • जनसंचार माध्यमों के जरिए प्रकाशित या प्रसारित संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है।
  • जनसंचार के लिए औपचारिक संगठन होता है।
  • इस माध्यम के लिए अनेक द्वारपाल होते हैं। द्वारपाल वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह है जो जनसंचार माध्यमों से प्रकाशित या प्रसारित होने वाली सामग्री को नियंत्रित और निर्धारित करता है।

प्रश्नः 4.
जनसंचार के कार्य बताइए।
उत्तर-
जनसंचार के कार्य निम्नलिखित हैं –

  • सूचना देना
  • शिक्षित करना
  • मनोरंजन करना
  • एजेंडा तय करना
  • निगरानी करना
  • विचार-विमर्श के मंच।

प्रश्नः 5.
पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तरः
प्रिंट, रेडियो, टेलीविज़न या इंटरनेट के जरिए खबरों के आदान-प्रदान को ही पत्रकारिता कहा जाता है। इसके तीन पहलू हैं – समाचार संकलन, संपादन व प्रकाशन।

प्रश्नः 6.
रेडियो के विषय में बताइए।
उत्तरः
रेडियो एक ध्वनि माध्यम है। इसकी तात्कालिकता, घनिष्ठता और प्रभाव के कारण इसमें अद्भुत शक्ति है। ध्वनि तरंगों के कारण यह देश के कोने-कोने तक पहुँचता है। आकाशवाणी, एफ०एम० चैनल, बीबीसी, वॉयस ऑफ अमेरिका, मास्को रेडियो आदि अनेक केंद्र हैं।

प्रश्नः 7.
टेलीविज़न का वर्णन करें।
उत्तरः
टेलीविज़न जनसंचार का सर्वाधिक ताकतवर व लोकप्रिय माध्यम है। इसमें शब्द, ध्वनि व दृश्य का मेल होता है जिसके कारण इसकी विश्वसनीयता कई गुना बढ़ जाती है। भारत में इसकी शुरुआत 15 सितंबर, 1959 को हुई। 1991 में खाड़ी युद्ध में दुनिया भर में युद्ध का सीधा प्रसारण किया गया। इसके बाद सीधे प्रसारण का महत्त्व बढ़ गया। आज भारत में 400 से अधिक चैनल प्रसारित हो रहे हैं।

प्रश्नः 8.
इंटरनेट को जनसंचार का नया माध्यम कहा जाता है। क्यों?
उत्तर-
इंटरनेट एक ऐसा माध्यम है जिसमें प्रिंट मीडिया, रेडियो, टेलीविज़न, किताब, सिनेमा यहाँ तक कि पुस्तकालय के सारे गुण मौजूद हैं। इसकी पहुँच व रफ़्तार का कोई जवाब नहीं है। इसमें सारे माध्यमों का समागम है। यह एक अंतरक्रियात्मक माध्यम है यानी आप इसमें मूक दर्शक नहीं हैं। इसमें आप बहस कर सकते हैं, ब्लाग के जरिए अपनी बात कह सकते हैं। इसने विश्व को ग्राम में बदल दिया है। इसके बुरे प्रभाव भी हैं। इस पर अश्लील सामग्री भी बहुत अधिक है जिससे समाज की नैतिकता को खतरा है। दूसरे, इसका दुरुपयोग अधिक है तथा सामाजिकता कम होती जाती है।

प्रश्नः 9.
जनसंचार माध्यमों के लाभ व हानि बताइए।
उत्तरः
जनसंचार माध्यम के निम्नलिखित लाभ हैं –

  • यह हमारे दैनिक जीवन में शामिल हो गया है।
  • धर्म से लेकर सेहत तक की जानकारी मिल रही है।
  • इससे मानव जीवन सरल, समर्थ व सक्रिय हुआ है।
  • सूचनाओं व जानकारियों के कारण लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मज़बूती मिली है।
  • सरकारी कामकाज पर निगरानी बढ़ी है।

इसकी हानियाँ निम्नलिखित हैं –

  • इसने काल्पनिक जीवन को बढ़ावा दिया है। इससे पलायनवादी प्रवृत्ति बढ़ रही है।
  • समाज में अश्लीलता व असामाजिकता बढ़ रही है।
  • गलत मुद्दों को जबरदस्त प्रचार के जरिए सही ठहराया जाता है।

प्रश्नः 10.
समाचार क्या है?
उत्तरः
समाचार किसी भी ऐसी ताज़ा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है जिसमें अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका अधिक-से-अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा है।

प्रश्नः 11.
समाचार के तत्व कौन-से हैं?
उत्तरः
समाचार के निम्नलिखित तत्व होते हैं –

  • नवीनता
  • निकटता
  • प्रभाव
  • जनरुचि
  • टकराव
  • महत्त्वपूर्ण लोग
  • अनोखापन
  • पाठक वर्ग
  • नीतिगत ढाँचा।

प्रश्नः 12.
संपादन का अर्थ बताइए।
उत्तर-
संपादन का अर्थ है-किसी सामग्री से उसकी अशुद्धियों को दूर करके उसे पठनीय बनाया। एक उपसंपादक अपनी रिपोर्टर की खबर को ध्यान से पढ़कर उसकी भाषागत अशुद्धियों को दूर करके प्रकाशन योग्य बनाता है।

प्रश्नः 13.
संपादन के सिद्धांत बताइए।
उत्तरः
पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन करना ज़रूरी है –

  • तथ्यों की शुद्धता
  • वस्तुपरकता
  • निष्पक्षता
  • संतुलन
  • स्रोत।

प्रश्नः 14.
पत्रकार की बैसाखियाँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तरः
पत्रकार की बैसाखियाँ निम्नलिखित हैं –

  • संदेह करना
  • सच्चाई
  • संतुलन
  • निष्पक्षता
  • स्पष्टता।

प्रश्नः 15.
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ को समाचार पत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ माना जाता है। इस पृष्ठ पर अखबार विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय रखता है। इसे संपादकीय कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ महत्त्वपूर्ण जनसंचार माध्यम और लेखन मुद्दों पर अपने विचार लेख के रूप में प्रस्तुत करते हैं। आमतौर पर संपादक के नाम पत्र भी इसी पृष्ठ पर प्रकाशित किए जाते हैं। वह घटनाओं पर आम लोगों की टिप्पणी होती है।

प्रश्नः 16.
पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार कौन-से हैं?
उत्तरः
पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं –

  • खोजपरक पत्रकारिता
  • विशेषीकृत पत्रकारिता
  • वॉचडॉग पत्रकारिता
  • एडवोकेसी पत्रकारिता
  • वैकल्पिक पत्रकारिता।

1. खोजपरक पत्रकारिता – खोजपरक पत्रकारिता से आशय ऐसी पत्रकारिता से है जिसमें गहराई से छानबीन करके ऐसे तथ्यों और सूचनाओं को सामने लाने की कोशिश की जाती है जो आम जनता के सामने नहीं आते। यह पत्रकारिता सार्वजनिक महत्त्व के मामलों में भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को सामने लाने की कोशिश करती है। इस पत्रकारिता का उपयोग उन्हीं स्थितियों में किया जाता है जब सच्चाई बताने का कोई और उपाय नहीं रह जाता। टेलीविज़न में यह स्टिंग ऑपरेशन के रूप में होता है। अमेरिका का वाटरगेट कांड इसका नायाब उदाहरण है जिसमें राष्ट्रपति निक्सन को इस्तीफ़ा देना पड़ा था।

2. विशेषीकृत पत्रकारिता – पत्रकारिता का अर्थ घटनाओं की सूचना देना मात्र नहीं है। पत्रकार से अपेक्षा होती है कि वह घटनाओं की तह तक जाकर उसका अर्थ स्पष्ट करे और आम पाठक को बताए कि उस समाचार का क्या महत्त्व है ? इसके लिए विशेषता की आवश्यकता होती है। पत्रकारिता में विषय के हिसाब से विशेषता के सात प्रमुख क्षेत्र हैं। इनमें संसदीय पत्रकारिता, न्यायालयी पत्रकारिता, आर्थिक पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता, विज्ञान और विकास पत्रकारिता, अपराध पत्रकारिता तथा फ़ैशन और फ़िल्म पत्रकारिता शामिल हैं। इन क्षेत्रों के समाचार और उनकी व्याख्या उन विषयों में विशेषता हासिल किए बिना देना कठिन होता है।

3. वॉचडॉग पत्रकारिता – लोकतंत्र में पत्रकारिता और समाचार मीडिया का मुख्य उत्तरदायित्व सरकार के कामकाज पर निगाह रखना है और कहीं भी कोई गड़बड़ी हो तो उसका परदाफ़ाश करना है। इसे परंपरागत रूप से वॉचडॉग पत्रकारिता कहा जाता है। इसका दूसरा छोर सरकारी सूत्रों पर आधारित पत्रकारिता है। समाचार मीडिया केवल वही समाचार देता है जो सरकार चाहती है और अपने आलोचनात्मक पक्ष का परित्याग कर देता है। आमतौर पर इन दो बिंदुओं के बीच तालमेल के जरिए ही समाचार मीडिया और इसके तहत काम करने वाले विभिन्न समाचार संगठनों की पत्रकारिता का निर्धारण होता है।

4. एडवोकेसी पत्रकारिता – ऐसे अनेक समाचार संगठन होते हैं जो किसी विचारधारा या किसी खास उद्देश्य या मुद्दे को उठाकर आगे बढ़ते हैं और उस विचारधारा या उद्देश्य या मुद्दे के पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार और ज़ोरशोर से अभियान चलाते हैं। इस तरह की पत्रकारिता को पक्षधर या एडवोकेसी पत्रकारिता कहा जाता है। भारत में भी कुछ समाचारपत्र या टेलीविजन चैनल किसी खास मुद्दे पर जनमत बनाने और सरकार को उसके अनुकूल प्रतिक्रिया करने के लिए अभियान चलाते हैं। उदाहरण के लिए जेसिका लाल हत्याकांड में न्याय के लिए समाचार माध्यमों ने
सक्रिय अभियान चलाया।

5. वैकल्पिक पत्रकारिता – मीडिया स्थापित राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था का ही एक हिस्सा है और व्यवस्था के साथ तालमेल बिठाकर चलने वाले मीडिया को मुख्यधारा का मीडिया कहा जाता है। इस तरह की मीडिया आमतौर पर व्यवस्था के अनुकूल और आलोचना के एक निश्चित दायरे में ही काम करता है। इस तरह के मीडिया का स्वामित्व आमतौर पर बड़ी पूँजी के पास होता है और वह मुनाफ़े के लिए काम करती है। उसका मुनाफ़ा मुख्यतः विज्ञापन से आता है।

इसके विपरीत जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करता है उसे वैकल्पिक पत्रकारिता कहा जाता है। आमतौर पर इस तरह के मीडिया को सरकार और बड़ी पूँजी का समर्थन हासिल नहीं होता है। उसे बड़ी कंपनियों के विज्ञापन भी नहीं मिलते हैं और वह अपने पाठकों के सहयोग पर निर्भर होता है।

प्रश्नः 17.
समाचार माध्यमों के मौजूदा रुझान पर टिप्पणी करें।
उत्तरः
देश में मध्यम वर्ग के तेज़ी से विस्तार के साथ ही मीडिया के दायरे में आने वाले लोगों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है। साक्षरता और क्रय शक्ति बढ़ने से भारत में अन्य वस्तुओं के अलावा मीडिया के बाज़ार का भी विस्तार हो रहा है। इस बाज़ार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हर तरह के मीडिया का फैलाव हो रहा है-रेडियो, टेलीविज़न, समाचारपत्र, सेटेलाइट टेलीविज़न और इंटरनेट सभी विस्तार के रास्ते पर हैं लेकिन बाज़ार के इस विस्तार के साथ ही मीडिया का व्यापारीकरण भी तेज़ हो गया है और मुनाफा कमाने को ही मुख्य ध्येय समझने वाले पूँजीवादी वर्ग ने भी मीडिया के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्रवेश किया है।

व्यापारीकरण और बाजार होड़ के कारण हाल के वर्षों में समाचार मीडिया ने अपने खास बाजार (क्लास मार्केट) को आम बाज़ार (मास मार्केट) में तब्दील करने की कोशिश की है। यही कारण है कि समाचार मीडिया और मनोरंजन की दुनिया के बीच का अंतर कम होता जा रहा है और कभी-कभार तो दोनों में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है। समाचार के नाम पर मनोरंजन बेचने के इस रुझान के कारण आज समाचारों में वास्तविक और सरोकारीय सूचनाओं और जानकारियों का अभाव होता जा रहा है।

आज निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि समाचार मीडिया का एक बड़ा हिस्सा लोगों को जानकार नागरिक’ बनाने में मदद कर रहा है बल्कि अधिकांश मौकों पर यही लगता है कि लोग ‘गुमराह उपभोक्ता’ अधिक बन रहे हैं, अगर आज समाचार की परंपरागत परिभाषा के आधार पर देश के जाने-माने समाचार चैनलों का मूल्यांकन करें तो एक-आध चैनल को छोड़कर अधिकांश सूचनारंजन (इन्फोटेनमेंट) के चैनल बनकर रह गए हैं, जिसमें सूचना कम और मनोरंजन ज्यादा है। इसकी वजह यह है कि आज समाचार मीडिया का एक बड़ा हिस्सा एक ऐसा उद्योग बन गया है जिसका मकसद अधिकतम मुनाफा कमाना है। समाचार उद्योग के लिए समाचार भी पेप्सी-कोक जैसा एक उत्पाद बन गया है जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को गंभीर सूचनाओं के बजाय सतही मनोरंजन से बहलाना और अपनी ओर आकर्षित करना हो गया है।

दरअसल, उपभोक्ता समाज का वह तबका है जिसके पास अतिरिक्त क्रय शक्ति है और व्यापारीकृत मीडिया अतिरिक्त क्रय शक्ति वाले सामाजिक तबके में अधिकाधिक पैठ बनाने की होड़ में उतर गया है। इस तरह की बाज़ार होड़ में उपभोक्ता को लुभाने वाले समाचार पेश किए जाने लगे हैं और उन वास्तविक समाचारीय घटनाओं की उपेक्षा होने लगी है जो उपभोक्ता के भीतर ही बसने वाले नागरिक की वास्तविक सूचना आवश्यकताएँ थीं और जिनके बारे में जानना उसके लिए आवश्यक है। इस दौर में समाचार मीडिया बाज़ार को हड़पने की होड़ में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की चाहत पर निर्भर होता जा रहा है और लोगों की ज़रूरत किनारे की जा रही है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि समाचार मीडिया में हमेशा से ही सनसनीखेज़ या पीत-पत्रकारिता और पेज-थ्री पत्रकारिता की धाराएँ मौजूद रही हैं। इसका हमेशा अपना स्वतंत्र अस्तित्व रहा है, जैसे ब्रिटेन का टेबलॉयड मीडिया और भारत में भी ‘ब्लिट्ज़’ जैसे कुछ समाचार पत्र रहे हैं। पेज-थ्री भी मुख्यधारा की पत्रकारिता में मौजूद रहा है लेकिन इन पत्रकारीय धाराओं के बीच एक विभाजन रेखा थी जिसे व्यापारीकरण के मौजूदा रुझान ने खत्म कर दिया है।

यह स्थिति हमारे लोकतंत्र के लिए एक गंभीर राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संकट पैदा कर रही है। आज हर समाचार संगठन सबसे अधिक बिकाऊ बनने की होड़ में एक ही तरह के समाचारों पर टूटता दिखाई पड़ रहा है। इससे विविधता खत्म हो रही है और ऐसी स्थिति पैदा हो रही है जिसमें अनेक अखबार हैं और सब एक जैसे ही हैं। अनेक समाचार चैनल हैं। ‘सर्फ़’ करते रहिए, बदलते रहिए और एक ही तरह के समाचारों को एक ही तरह से प्रस्तुत होते देखते रहिए।

विविधता समाप्त होने के साथ-साथ समाचार माध्यमों में केंद्रीकरण का रुझान भी प्रबल हो रहा है। हमारे देश में परंपरागत रूप से कुछ बड़े राष्ट्रीय अखबार थे। इसके बाद क्षेत्रीय प्रेस था और अंत में जिला-तहसील स्तर के छोटे समाचार पत्र थे। नई प्रौद्योगिकी आने के बाद पहले तो क्षेत्रीय अखबारों ने जिला और तहसील स्तर के प्रेस को हड़प लिया और अब राष्ट्रीय प्रेस क्षेत्रीय पाठकों में अपनी पैठ बना रहा है और क्षेत्रीय प्रेस राष्ट्रीय रूप अख्तियार कर रहा है। आज चंद समाचार पत्रों के अनेक संस्करण हैं और समाचारों का कवरेज अत्यधिक आत्मकेंद्रित, स्थानीय और विखंडित हो गया है। समाचार कवरेज में विविधता का अभाव तो है ही, साथ ही समाचारों की पिटी-पिटाई अवधारणाओं के आधार पर लोगों की रुचियों और प्राथमिकताओं को परिभाषित करने का रुझान भी प्रबल हुआ है।

प्रश्नः 18.
प्रिंट माध्यम का वर्णन करते हुए इसकी विशेषताएँ भी बताइए।
उत्तरः
प्रिंट यानी मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में से सबसे पुराना है। आधुनिक युग का प्रारंभ छपाई के आविष्कार
से हुआ। चीन में सबसे पहले मुद्रण शुरू हुआ, परंतु आधुनिक छापेखाने का आविष्कार जर्मनी के गुटेनबर्ग ने किया। यूरोप में पुनर्जागरण ‘रेमेसाँ’ की शुरुआत में छापेखाने की प्रमुख भूमिका थी। भारत में ईसाई मिशनरियों ने सन् 1556 में गोवा में धार्मिक पुस्तकें छापने के लिए खोला था।

प्रिंट माध्यम की विशेषताएँ –

मुद्रित माध्यमों के तहत अखबार, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि हैं। मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता या शक्ति यह है कि छपे हुए शब्दों में स्थायित्व होता है। उसे आप आराम से और धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं। पढ़ते हुए उस पर सोच सकते हैं।

अगर कोई बात समझ में नहीं आई तो उसे दोबारा या जितनी बार इच्छा करे, उतनी बार पढ़ सकते हैं।

यही नहीं, अगर आप अखबार या पत्रिका पढ़ रहे हों तो आप अपनी पसंद के अनुसार किसी भी पृष्ठ और उस पर प्रकाशित किसी भी समाचार या रिपोर्ट से पढ़ने की शुरुआत कर सकते हैं।

मुद्रित माध्यमों के स्थायित्व का एक लाभ यह भी है कि आप उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं और उसे संदर्भ की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। मुद्रित माध्यमों की दूसरी बड़ी विशेषता यह है कि यह लिखित भाषा का विस्तार है। जाहिर है कि इसमें लिखित भाषा की सभी विशेषताएँ शामिल हैं। लिखित और मौखिक भाषा में सबसे बड़ा अंतर यह है कि लिखित भाषा अनुशासन की माँग करती है। बोलने में एक स्वतःस्फूर्तता होती है, लेकिन लिखने में आपको भाषा, व्याकरण, वर्तनी और शब्दों के उपयुक्त इस्तेमाल का ध्यान रखना पड़ता है। यही नहीं, अगर लिखे हुए को प्रकाशित होना है यानी ??? लोगों तक पहुँचना है तो आपको एक प्रचलित भाषा में लिखना पड़ता है ताकि उसे अधिक-से-अधिक लोग समझ पाएँ।

मुद्रित माध्यमों की तीसरी विशेषता यह है कि यह चिंतन, विचार के विश्लेषण का माध्यम है। इस माध्यम में आप गंभीर और गूढ बातें लिख सकते हैं, क्योंकि पाठक के पास न सिर्फ उसे पढ़ने, समझने और सोचने का समय होता है बल्कि उसकी योग्यता भी होती है। असल में, मुद्रित माध्यमों का पाठक वही हो सकता है जो साक्षर हो और जिसने औपचारिक या अनौपचारिक ??? के जरिए एक विशेष स्तर की योग्यता भी हासिल की हो।

मुद्रित माध्यमों की कमज़ोरी :

1. निरक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम किसी काम के नहीं हैं। साथ ही, मुद्रित माध्यमों के लिए लेखन करने वालों को अपने पाठकों के भाषा-ज्ञान के साथ-साथ उनके शैक्षिक ज्ञान और योग्यता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। इसके अलावा उन्हें पाठकों की रुचियों और जरूरतों का भी पूरा ध्यान रखना पड़ता है।

2. वे रेडियो, टी०वी० या इंटरनेट की तरह तुरंत घटी घटनाओं को संचालित नहीं कर सकते। ये एक निश्चित अवधि पर प्रकाशित होती हैं; जैसे अखबार 24 घंटे में एक बार या साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में एक बार प्रकाशित होती है। अखबार या पत्रिका में समाचारों या रिपोर्ट को प्रकाशन के लिए स्वीकार करने की एक निश्चित समय-सीमा होती है। जिसे डेडलाइन कहते हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर समय-सीमा समाप्त होने के बाद कोई सामग्री प्रकाशन के लिए स्वीकार नहीं की जाती। इसलिए मुद्रित माध्यमों के लेखकों और पत्रकारों को प्रकाशन की समय-सीमा का पूरा ध्यान रखना पड़ता है।

3. इसी तरह मुद्रित माध्यमों में लेखक को जगह (स्पेस) का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए। जैसे किसी अखबार या पत्रिका
के संपादक ने अगर आपको 250 शब्दों में रिपोर्ट या फ़ीचर लिखने को कहा है तो आपको उस शब्द सीमा का ध्यान रखना पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि अखबार या पत्रिका में असीमित जगह नहीं होती। साथ ही उन्हें विभिन्न विषयों और मुद्दों पर सामग्री प्रकाशित करनी होती है।

4. मुद्रित माध्यम के लेखक या पत्रकार को इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है कि छपने से पहले आलेख में मौजूद सभी गलतियों और अशुद्धियों को दूर कर दिया जाए, क्योंकि एक बार प्रकाशन के बाद वह गलती या अशुद्धि वहीं चिपक जाएगी। उसे सुधारने के लिए अखबार या पत्रिका के अगले अंक का इंतज़ार करना पड़ेगा।

प्रश्नः 19.
रेडियो माध्यम के विषय में बताइए।
उत्तरः
रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें सब कुछ ध्वनि, स्वर और शब्दों का खेल है। इन सब वजहों से रेडियो पर श्रोताओं से संचालित माध्यम माना जाता है। रेडियो पत्रकारों को अपने श्रोताओं का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसकी वजह यह है कि अखबार के पाठकों को यह सुविधा उपलब्ध रहती है कि वे अपनी पसंद और इच्छा से कभी भी और कहीं से भी पढ़ सकते हैं।

अगर किसी समाचार/लेख या फ़ीचर को पढ़ते हुए कोई बात समझ में नहीं आई तो पाठक उसे फिर से पढ़ सकता है या शब्दकोश में उसका अर्थ देख सकता है या किसी से पूछ सकता है, लेकिन रेडियो के श्रोता को यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती। वह अखबार की तरह रेडियो समाचार बुलेटिन को कभी भी और कहीं से भी नहीं सुन सकता। उसे बुलेटिन के प्रसारण समय का इंतज़ार करना होगा और फिर शुरू से लेकर अंत तक बारी-बारी से एक के बाद दूसरा समाचार सुनना होगा। इस बीच, वह इधर-उधर नहीं आ जा सकता और न ही उसके पास किसी गूढ़ शब्द या वाक्यांश के आने पर शब्दकोश का सहारा लेने का समय होता है।

स्पष्ट है कि रेडियो में अखबार की तरह पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं है। अगर रेडियो बुलेटिन में कुछ भी भ्रामक या अरुचिकर है तो संभव है कि श्रोता तुरंत स्टेशन बंद कर दे। दरअसल, रेडियो मूलतः एकरेखीय (लीनियर) माध्यम है और रेडियो समाचार बुलेटिन का स्वरूप, ढाँचा और शैली इस आधार पर ही तय होता है। रेडियो की तरह टेलीविज़न भी एकरेखीय माध्यम है, लेकिन वहाँ शब्दों और ध्वनियों की तुलना में दृश्यों/तसवीरों का महत्त्व सर्वाधिक होता है। टी०वी० में शब्द दृश्यों के अनुसार और उनके सहयोगी के रूप में चलते हैं, लेकिन रेडियो में शब्द और आवाज़ ही सब कुछ है।

प्रश्नः 20.
रेडियो समाचार की संरचना किस शैली पर आधारित होती है?
उत्तरः
रेडियो समाचार की संरचना उलटा पिरामिड-शैली पर आधारित होती है।

प्रश्नः 21.
उलटा पिरामिड-शैली क्या होती है?
उत्तरः
समाचार लेखन की सबसे प्रचलित, प्रभावी और लोकप्रिय शैली उलटा पिरामिड-शैली ही है। सभी तरह जनसंचार माध्यमों में सबसे अधिक यानी 90 प्रतिशत खबरें या स्टोरीज़ इसी शैली में लिखी जाती हैं। उलटा पिरामिड-शैली समाचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले लिखा जाता है और उसके बाद घटते हुए महत्त्वक्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना / विचार / समस्या का ब्योरा कालानुक्रम के बजाए समाचार के महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरू होता है। तात्पर्य यह कि इस शैली में, कहानी की तरह क्लाइमेक्स अंत में नहीं बल्कि खबर के बिलकुल शुरू में आ जाता है।

उलटा पिरामिड-शैली में कोई निष्कर्ष नहीं होता। उलटा पिरामिड शैली के तहत समाचार को तीन हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है-इंट्रो-बॉडी और समापन। समाचार के इंट्रो या लीड को हिंदी में मुखड़ा भी कहते हैं। इसमें खबर के मूल तत्व को शुरू की दो या तीन पंक्तियों में बताया जाता है। यह खबर का सबसे अहम हिस्सा होता है। इसके बाद बॉडी में समाचार के विस्तृत ब्योरे को घटते हुए महत्त्वक्रम में लिखा जाता है। हालाँकि इस शैली में अलग से समापन जैसी कोई चीज़ नहीं होती और यहाँ तक कि प्रासंगिक तथ्य और सूचनाएँ दी जा सकती हैं, अगर ज़रूरी हो तो समय और जगह की कमी को देखते हुए आखिरी कुछ लाइनों या पैराग्राफ़ को काटकर हटाया भी जा सकता है और उस स्थिति में खबर वहीं समाप्त हो जाती है।

प्रश्नः 22.
टेलीविज़न लेखन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तरः
टेलीविज़न लेखन में दृश्यों की अहमियत सबसे ज़्यादा है। यह टेलीविज़न देखने और सुनने का माध्यम है और इसके लिए समाचार या आलेख (स्क्रिप्ट) लिखते समय इस बात पर खास ध्यान रखने की ज़रूरत पड़ती है कि आपके शब्द परदे पर दिखने वाले दृश्य के अनुकूल हों। टेलीविज़न लेखन इन दोनों ही माध्यमों से काफी अलग है। इसमें कम-से-कम शब्दों में ज़्यादा-से-ज्यादा खबर बताने की कला का इस्तेमाल होता है। इसलिए टी०वी० के लिए खबर लिखने की बुनियादी शर्त दृश्य के साथ लेखन है। दृश्य यानी कैमरे से लिए गए शॉट्स, जिनके आधार पर खबर बुनी जानी है। अगर शॉट्स आसमान के हैं तो हम आसमान की बात लिखेंगे, समंदर की नहीं। अगर कहीं आग लगी हुई है तो हम उसका जिक्र करेंगे पानी का नहीं।

प्रश्नः 23.
टी०वी० खबरों के विभिन्न चरण बताइए।
उत्तरः
किसी भी टी०वी० चैनल पर खबर देने का मूल आधार वही होता है जो प्रिंट या रेडियो पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रचलित है यानी सबसे पहले सूचना देना। टी०वी० में भी यह सूचनाएँ कई चरणों से होकर दर्शकों के पास पहुँचती हैं। ये चरण हैं –

  • फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़
  • ड्राई एंकर
  • फ़ोन-इन
  • एंकर-विजुअल
  • एंकर-बाइट
  • लाइव
  • एंकर-पैकेज

फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ – सबसे पहले कोई बड़ी खबर फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जाती है। इसमें कम-से-कम शब्दों में महज़ सूचना दी जाती है।

ड्राई एंकर – इसमें एंकर खबर के बारे में दर्शकों को सीधे-सीधे बताता है कि कहाँ, क्या, कब और कैसे हुआ। जब तक खबर के दृश्य नहीं आते एंकर, दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारियों के आधार पर सूचनाएँ पहुँचाता है।

फ़ोन-इन – इसके बाद खबर का विस्तार होता है और एंकर रिपोर्टर से फोन पर बात करके सूचनाएँ दर्शकों तक पहुँचाता है। इसमें रिपोर्टर घटना वाली जगह पर मौजूद होता है और वहाँ से उसे जितनी ज़्यादा-से-ज्यादा जानकारियाँ मिलती हैं, वह दर्शकों को बताता है।

एंकर-विजुअल – जब घटना के दृश्य या विजुअल मिल जाते हैं तब उन दृश्यों के आधार पर खबर लिखी जाती है, जो एंकर पढ़ता है। इस खबर की शुरुआत भी प्रारंभिक सूचना से होती है और बाद में कुछ वाक्यों पर प्राप्त दृश्य दिखाए जाते हैं।

एंकर-बाइट – बाइट यानी कथन। टेलीविज़न पत्रकारिता में बाइट का काफ़ी महत्त्व है। टेलीविज़न में किसी भी खबर को पुष्ट करने के लिए इससे संबंधित बाइट दिखाई जाती है। किसी घटना की सूचना देने और उसके दृश्य दिखाने के साथ ही इस घटना के बारे में प्रत्यक्षदर्शियों या संबंधित व्यक्तियों का कथन सुनाकर खबर को प्रामाणिकता प्रदान की जाती है।

लाइव – लाइव यानी किसी खबर का घटनास्थल से सीधा प्रसारण। सभी टी०वी० चैनल कोशिश करते हैं कि किसी बडी घटना के दृश्य तत्काल दर्शकों तक सीधे पहुँचाए जा सकें। इसके लिए मौके पर मौजूद रिपोर्टर और कैमरामैन ओ०बी० वैन के जरिए घटना के बारे में सीधे दर्शकों को दिखाते और बताते हैं।

एंकर-पैकेज – पैकेज किसी भी खबर को संपूर्णता के साथ पेश करने का एक जरिया है। इसमें संबंधित घटना के दृश्य, इससे जुड़े लोगों की बाइट, ग्राफ़िक के जरिए ज़रूरी सूचनाएँ आदि होती हैं। टेलीविज़न लेखन इन तमाम रूपों को ध्यान में रखकर किया जाता है। जहाँ जैसी ज़रूरत होती है, वहाँ वैसे वाक्यों का इस्तेमाल होता है। शब्द का काम दृश्य को आगे ले जाना है ताकि वह दूसरे दृश्यों से जुड़ सके, उसमें निहित अर्थ को सामने लाना है, ताकि खबर के सारे आशय खुल सकें।

प्रश्नः 24.
टी०वी० में ध्वनियों का क्या महत्त्व है?
उत्तरः
टी०वी० में दृश्य और शब्द के अलावा ध्वनियाँ भी होती हैं। टी०वी० में दृश्य और शब्द-यानी विजुअल और वॉयस ओवर
(वीओ) के साथ दो तरह की आवाजें और होती हैं। एक तो वे कथन या बाइट जो खबर बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं और दूसरी वे प्राकृतिक आवाजें जो दृश्य के साथ-साथ चली आती हैं-यानी चिड़ियों का चहचहाना या फिर गाड़ियों के गुज़रने की आवाज़ या फिर किसी कारखाने में किसी मशीन के चलने की ध्वनि।

टी०वी० के लिए खबर लिखते हए इन दोनों तरह की आवाज़ों का ध्यान रखना ज़रूरी है। पहली तरह की आवाज़ यानी कथन या बाइट का तो खैर ध्यान रखा ही जाता है। अकसर टी०वी० की खबर बाइट्स के आसपास ही बुनी जाती है। लेकिन यह काम पर्याप्त सावधानी से किया जाना चाहिए। कथनों से खबर तो बनती ही है, टी०वी० के लिए उसका फ़ॉर्म भी बनता है। बाइट सिर्फ किसी का बयान भर नहीं होते जिन्हें खबर के बीच उसकी पुष्टिभर के लिए डाल दिया जाता है। वह दो वॉयस ओवर या दृश्यों का अंतराल भरने के लिए पुल का भी काम करता है।

लेकिन टी०वी० में सिर्फ बाइट या वॉयस ओवर नहीं होते और भी ध्वनियाँ होती हैं। उन ध्वनियों से भी खबर बनती है या उसका मिजाज़ बनता है। इसलिए किसी खबर का वॉयस ओवर लिखते हुए उसमें शॉट्स के मुताबिक ध्वनियों के लिए गुंजाइश छोड़ देनी चाहिए। टी०वी० में ऐसी ध्वनियों को नेट या नेट साउंड यानी प्राकृतिक आवाजें कहते हैं-यानी वो आवाजें जो शूट करते हुए खुद-ब-खुद चली आती हैं। जैसे रिपोर्टर किसी आंदोलन की खबर ला रहा हो जिसमें खूब नारे लगे हों। वह अगर सिर्फ इतना बताकर निकल जाता है कि उसमें कई नारे लगे और उसके बाद किसी नेता की बाइट का इस्तेमाल कर लेता है तो यह अच्छी खबर का नमूना नहीं कहलाएगा। उसे वे नारे लगते हुए दिखाना होगा और इसकी गुंजाइश अपने वीओ में छोड़नी होगी।

ध्वनियों के साथ-साथ ऐसे दृश्यों के अंतराल भी खबर में उपयोगी होते हैं। जैसे किसी क्रिकेट मैच की खबर में वॉयस ओवर खत्म होने के बाद भी कुछ देर तक मैदान में शॉट्स चलते रहें तो दर्शक को अच्छा लगता है।

प्रश्नः 25.
रेडियो और टेलीविज़न समाचार की भाषा व शैली के विषय में बताइए।
उत्तरः
रेडियो और टी०वी० आम आदमी के माध्यम हैं। भारत जैसे विकासशील देश में उसके श्रोताओं और दर्शकों में पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान-मज़दूर तक सभी हैं। इन सभी लोगों की सूचना की ज़रूरतें पूरी करना ही रेडियो और टी०वी० का उद्देश्य है। लोगों तक पहुँचने का माध्यम भाषा है और इसलिए भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सभी को आसानी से समझ में आ सके, लेकिन साथ ही भाषा के स्तर और गरिमा के साथ कोई समझौता भी न करना पड़े।

लेखक आपसी बोलचाल में जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह की भाषा का इस्तेमाल रेडियो और टी०वी० समाचार में भी करें। सरल भाषा लिखने का सबसे बेहतर उपाय यह है कि वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट लिखे जाएँ। रेडियो और टी०वी० समाचार में भाषा और शैली के स्तर पर काफ़ी सावधानी बरतनी पड़ती है। ऐसे कई शब्द हैं जिनका अखबारों में धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है, लेकिन रेडियो और टी०वी० में उनके प्रयोग से बचा जाता है। जैसे निम्नलिखित, उपरोक्त, अधोहस्ताक्षरित और क्रमांक आदि शब्दों का प्रयोग इन माध्यमों में बिलकुल मना है। इसी तरह द्वारा शब्द के इस्तेमाल से भी बचने की कोशिश की जाती है, क्योंकि इसका प्रयोग कई बार बहुत भ्रामक अर्थ देने लगता है। उदाहरण के लिए इस वाक्य पर गौर कीजिए-पुलिस द्वारा चोरी करते हुए दो व्यक्तियों को पकड़ लिया गया। इसके बजाय पुलिस ने दो व्यक्तियों को चोरी करते हुए पकड़ लिया। ज़्यादा स्पष्ट है।

इसी तरह तथा, एवं, अथवा, व, किंतु, परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए और उनकी जगह और, या लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। साफ़-सुथरी और सरल भाषा लिखने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, सामासिक और तत्सम शब्दों, अतिरंजित उपमाओं आदि से बचना चाहिए। इनसे भाषा कई बार बोझिल होने लगती है। मुहावरों के इस्तेमाल से भाषा आकर्षक और प्रभावी बनती है। इसलिए उनका प्रयोग होना चाहिए। लेकिन मुहावरों का इस्तेमाल स्वाभाविक और जहाँ ज़रूरी हो वहीं होना चाहिए अन्यथा वे भाषा के स्वाभाविक प्रवाह को बाधित करते हैं।

प्रश्नः 26.
इंटरनेट के लाभ-हानि बताइए।
उत्तरः
इंटरनेट सिर्फ एक टूल यानी औज़ार है, जिसे आप सूचना, मनोरंजन, ज्ञान और व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संवादों के आदान-प्रदान के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इंटरनेट जहाँ सूचनाओं के आदान-प्रदान का बेहतरीन औज़ार है, वहीं वह अश्लीलता, दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का भी जरिया है। इंटरनेट पर पत्रकारिता के भी दो रूप हैं। पहला तो इंटरनेट का एक माध्यम या औजार के तौर पर इस्तेमाल, यानी खबरों के संप्रेषण के लिए इंटरनेट का उपयोग। दूसरा, रिपोर्टर अपनी खबर को एक जगह से दूसरी जगह तक ईमेल के जरिए भेजने और समाचारों के संकलन, खबरों के सत्यापन और पुष्टिकरण में भी इसका इस्तेमाल करता है।

रिसर्च या शोध का काम तो इंटरनेट ने बेहद आसान कर दिया है। टेलीविज़न या अन्य समाचार माध्यमों में खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने या किसी खबर की पृष्ठभूमि तत्काल जानने के लिए जहाँ पहले ढेर सारी अखबारी कतरनों की फाइलों को ढूँढना पड़ता था, वहीं आज चंद मिनटों में इंटरनेट विश्वव्यापी संजाल के भीतर से कोई भी बैकग्राउंडर या पृष्ठभूमि खोजी जा सकती है।

प्रश्नः 27.
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता पर टिप्पणी करें। उत्तरः भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का अभी दूसरा दौर चल रहा है। भारत के लिए पहला दौर 1993 से शुरू माना जा सकता
है, जबकि दूसरा दौर सन् 2003 से शुरू हुआ है। पहले दौर में हमारे यहाँ भी प्रयोग हुए। डॉटकॉम का तूफ़ान आया और बुलबुले की तरह फूट गया। अंततः वही टिके रह पाए जो मीडिया उद्योग में पहले से ही टिके हुए थे। आज पत्रकारिता की दृष्टि से ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘हिंदू’, ‘ट्रिब्यून’, ‘स्टेट्समैन’, ‘पॉयनियर’, ‘एनडीटी.वी.’, ‘आईबीएन’, ‘जी न्यूज़’, ‘आजतक’ और ‘आउटलुक’ की साइटें ही बेहतर हैं। ‘इंडिया टुडे’ जैसी कुछ साइटें भुगतान के बाद ही देखी जा सकती हैं। जो साइटें नियमित अपडेट होती हैं, उनमें ‘हिंदू’, ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘आउटलुक’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘एनडीटी.वी.’, ‘आजतक’ और ‘जी न्यूज़’ प्रमुख हैं।

लेकिन भारत में सच्चे अर्थों में यदि कोई वेब पत्रकारिता कर रहा है तो वह ‘रीडिफ़ डॉटकॉम’, ‘इंडियाइंफोलाइन’ व ‘सीफी’ जैसी कुछ ही साइटें हैं। रीडिफ़ को भारत की पहली साइट कहा जा सकता है जो कुछ गंभीरता के साथ इंटरनेट पत्रकारिता कर रही है। वेब साइट पर विशुद्ध पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय ‘तहलका डॉटकॉम’ को जाता है।

प्रश्नः 28.
हिंदी नेट संसार पर टिप्पणी करें।
उत्तरः
हिंदी में नेट पत्रकारिता ‘वेब दुनिया’ के साथ शुरू हुई। इंदौर के नई दुनिया समूह से शुरू हुआ यह पोर्टल हिंदी का संपूर्ण पोर्टल है। इसके साथ ही हिंदी के अखबारों ने भी विश्वजाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू की। ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’, ‘नई दुनिया’, ‘हिंदुस्तान’, ‘भास्कर’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘प्रभात खबर’ व ‘राष्ट्रीय सहारा’ के वेब संस्करण शुरू हुए। ‘प्रभासाक्षी’ नाम से शुरू हुआ अखबार, प्रिंट रूप में न होकर सिर्फ इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। आज पत्रकारिता के लिहाज़ से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ साइट बीबीसी की है। यही एक साइट है जो इंटरनेट के मानदंडों के हिसाब से चल रही है। वेब दुनिया ने शुरू में काफ़ी आशाएँ जगाई थीं, लेकिन धीरे-धीरे स्टाफ और साइट की अपडेटिंग में कटौती की जाने लगी जिससे पत्रकारिता की वह ताज़गी जाती रही जो शुरू में नज़र आती थी।

हिंदी वेबजगत का एक अच्छा पहलू यह भी है कि इसमें कई साहित्यिक पत्रिकाएँ चल रही हैं। अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिंदी नेस्ट, सराय आदि अच्छा काम कर रहे हैं। यही नहीं, सरकार के तमाम मंत्रालय, विभाग, बैंक आदि ने भी अपने हिंदी अनुभाग शुरू किए हैं।

हिंदी वेब पत्रकारिता में प्रमुख समस्या हिंदी के फॉन्ट की है। अभी कोई ‘की बोर्ड’ हिंदी में नहीं बना है। डायनमिक फॉन्ट की अनुपलब्धता के कारण हिंदी की अधिकतर साइटें नहीं खुलती।

प्रश्नः 29.
पत्रकारीय लेखन क्या है? इसके कितने रूप हैं?
उत्तरः
अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचना पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं। इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं और इसके कई रूप हैं। पत्रकार तीन तरह के होते हैं-पूर्णकालिक, अंशकालिक और फ्रीलांसर यानी स्वतंत्र। पूर्णकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन में काम करनेवाला नियमित वेतनभोगी कर्मचारी होता है, जबकि अंशकालिक पत्रकार (स्ट्रिंगर) किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर काम करनेवाला पत्रकार है, लेकिन फ्रीलांसर पत्रकार का संबंध किसी खास अखबार से नहीं होता है, बल्कि वे भुगतान के आधार पर अलग-अलग अखबारों के लिए लिखता है।

ऐसे में, यह समझना बहुत ज़रूरी है कि पत्रकारीय लेखन का संबंध और दायरा समसामयिक और वास्तविक घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों से है। हालाँकि यह माना जाता है कि पत्रकारिता जल्दी में लिखा गया साहित्य है। लेकिन यह साहित्य और सृजनात्मक लेखन-कविता, कहानी, उपन्यास आदि से इस मायने में अलग है कि इसका रिश्ता तथ्यों से है न कि कल्पना से। दूसरे, पत्रकारीय लेखन साहित्यिक-सृजनात्मक लेखन से इस मायने में भी अलग है कि यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों और जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है, जबकि साहित्यिक रचनात्मक लेखन में लेखक को काफ़ी छूट होती है।

प्रश्नः 30.
अखबार के लिए प्रयुक्त भाषा में किन-किन बातों का ध्यान रखा जाता है?
उत्तर
अखबार और पत्रिका के लिए लिखने वाले लेखक और पत्रकार को यह हमेशा याद रखना चाहिए कि वह विशाल समुदाय के लिए लिख रहा है जिसमें एक विश्वविद्यालय के कुलपति सरीखे विद्वान से लेकर कम पढ़ा-लिखा मज़दूर और किसान सभी शामिल हैं। इसलिए उसकी लेखन शैली, भाषा और गूढ़ से गूढ़ विषय की प्रस्तुति ऐसी सहज, सरल और रोचक होनी चाहिए कि वह आसानी से सबकी समझ में आ जाए। पत्रकारीय लेखन में अलंकारिक-संस्कृतनिष्ठ भाषा-शैली के बजाय आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल किया जाता है।

पाठकों को ध्यान में रखकर ही अखबारों में सीधी, सरल, साफ़-सुथरी, लेकिन प्रभावी भाषा के इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है। शब्द सरल और आसानी से समझ में आने वाले होने चाहिए। वाक्य छोटे और सहज होने चाहिए। जटिल और लंबे वाक्यों से बचना चाहिए। भाषा को प्रभावी बनाने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, जार्गन्स (ऐसी शब्दावली जिससे बहुत कम पाठक परिचित होते हैं) और क्लीशे (पिष्टोक्ति या दोहराव) का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इनके प्रयोग से भाषा बोझिल हो जाती है।

प्रश्नः 31.
समाचार लेखन और छह ककार का संबंध बताइए।।
उत्तरः
किसी समाचार को लिखते हुए मुख्यत: छह सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है। क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ? इस-क्या, किसके (या कौन), कहाँ, कब, क्यों और कैसे-को छह ककारों के रूप में भी जाना जाता है। किसी घटना, समस्या या विचार से संबंधित खबर लिखते हुए इन छह ककारों को ही ध्यान में रखा जाता है।

समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ़ या शुरुआती दो-तीन पंक्तियों में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैं-क्या, कौन, कब और कहाँ? इसके बाद समाचार की बॉडी में और समापन के पहले बाकी दो ककारों-कैसे और क्यों का जवाब दिया जाता है। इस तरह छह ककारों के आधार पर समाचार तैयार होता है। इनमें से पहले चार ककारक्या, कौन, कब और कहाँ-सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं जबकि बाकी दो ककारों-कैसे और क्यों में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है।

प्रश्नः 32.
संपादकीय लेखन पर टिप्पणी करें।
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय को उस अखबार की अपनी आवाज़ माना जाता है। संपादकीय के जरिये अखबार किसी घटना, समस्या या मुद्दे के प्रति अपनी राय प्रकट करते हैं। संपादकीय किसी व्यक्ति विशेष का विचार नहीं होता इसलिए उसे किसी के नाम के साथ नहीं छापा जाता। संपादकीय लिखने का दायित्व उस अखबार में काम करने वाले संपादक और उनके सहयोगियों पर होता है। आमतौर पर अखबारों में सहायक संपादक, संपादकीय लिखते हैं। कोई बाहर का लेखक या पत्रकार संपादकीय नहीं लिख सकता है।

प्रश्नः 33.
स्तंभ लेखन क्या है?
उत्तरः
स्तंभ लेखन विचारपरक लेखन का एक प्रमुख रूप है। कुछ महत्त्वपूर्ण लेखक अपने खास वैचारिक रुझान के लिए जाने जाते हैं। उनकी अपनी एक लेखन-शैली भी विकसित हो जाती है। ऐसे लेखकों की लोकप्रियता को देखकर अखबार उन्हें एक नियमित स्तंभ लिखने की ज़िम्मेदारी दे देते हैं। स्तंभ का विषय चुनने और उसमें अपने विचार व्यक्त करने की स्तंभ लेखक को पूरी छूट होती है। स्तंभ में लेखक के विचार अभिव्यक्त होते हैं। यही कारण है कि स्तंभ अपने लेखकों के नाम पर जाने और पसंद किए जाते हैं। कुछ स्तंभ इतने लोकप्रिय होते हैं कि अखबार उनके कारण भी पहचाने जाते हैं, लेकिन नए लेखकों को स्तंभ लेखन का मौका नहीं मिलता है।

प्रश्नः 34.
संपादक के नाम पत्र के विषय में बताइए।
उत्तरः
अखबारों के संपादकीय पृष्ठ पर और पत्रिकाओं की शुरुआत में संपादक के नाम पाठकों के पत्र भी प्रकाशित होते हैं। सभी अखबारों में यह एक स्थायी स्तंभ होता है। यह पाठकों का अपना स्तंभ होता है। इस स्तंभ के जरिये अखबार के पाठक न सिर्फ विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करते हैं बल्कि जन समस्याओं को भी उठाते हैं। एक तरह से यह स्तंभ जनमत को प्रतिबिंबित करता है। ज़रूरी नहीं कि अखबार पाठकों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों से सहमत हो। यह स्तंभ नए लेखकों के लिए लेखन की शुरुआत करने और उन्हें हाथ माँजने का भी अच्छा अवसर देता है।

प्रश्नः 35.
लेख पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
सभी अखबार संपादकीय पृष्ठ पर समसामयिक मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकारों और उन विषयों के विषेषज्ञों के लेख प्रकाशित करते हैं। इन लेखों में किसी विषय या मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की जाती है। लेख विशेष रिपोर्ट और फ़ीचर से इस मामले में अलग होते हैं, क्योंकि उसमें लेखक के विचारों को प्रमुखता दी जाती है, लेकिन ये विचार तथ्यों और सूचनाओं पर आधारित होते हैं और लेखक उन तथ्यों और सूचनाओं के विश्लेषण और अपने तर्कों के जरिये अपनी राय प्रस्तुत करता है। लेख लिखने के लिए पर्याप्त तैयारी ज़रूरी है। इसके लिए उस विषय से जुड़े सभी तथ्यों और सूचनाओं के अलावा पृष्ठभूमि सामग्री भी जुटानी पड़ती है। यह भी देखना चाहिए कि उस विषय पर दूसरे लेखकों और पत्रकारों के क्या विचार हैं?

लेख की कोई एक निश्चित लेखन शैली नहीं होती और हर लेखक की अपनी शैली होती है, लेकिन अगर आप अखबारों और पत्रिकाओं के लिए लेख लिखना चाहते हैं तो शुरुआत उन विषयों के साथ करनी चाहिए जिस पर आपकी अच्छी पकड़ और जानकारी हो। लेख का भी एक प्रारंभ, मध्य और अंत होता है। लेख की शुरुआत में अगर उस विषय के सबसे ताज़ा प्रसंग या घटनाक्रम का विवरण दिया जाए और फिर उससे जुड़े अन्य पहलुओं को सामने लाया जाए, तो लेख का प्रारंभ आकर्षक बन सकता है। इसके बाद तथ्यों की मदद से विश्लेषण करते हुए आखिर में अपना निष्कर्ष या मत प्रकट कर सकते हैं।

प्रश्नः 36.
साक्षात्कार के विषय में बताइए।
उत्तरः
समाचार माध्यमों में साक्षात्कर का बहुत महत्त्व है। पत्रकार एक तरह से साक्षात्कार के जरिये ही समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट और अन्य कई तरह के पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल इकट्ठा करते हैं। पत्रकारीय साक्षात्कार और सामान्य बातचीत में यह फ़र्क होता है कि साक्षात्कार से एक पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से तथ्य, उसकी राय और भावनाएँ जानने के लिए सवाल पूछता है। साक्षात्कार का एक स्पष्ट मकसद और ढाँचा होता है। एक सफल साक्षात्कार के लिए आपके पास न सिर्फ ज्ञान होना चाहिए बल्कि आपमें संवेदनशीलता, कूटनीति, धैर्य और साहस जैसे गुण भी होने चाहिए। एक अच्छे और सफल साक्षात्कार के लिए यह ज़रूरी है कि आप जिस विषय पर और जिस व्यक्ति के साथ साक्षात्कार करने जा रहे हैं, उसके बारे में आपके पास पर्याप्त जानकारी हो। दूसरे आप साक्षात्कार से क्या निकालना चाहते हैं, इसके बारे में स्पष्ट रहना बहुत ज़रूरी है। आपको वे सवाल पूछने चाहिए जो किसी अखबार के एक आम पाठक के मन में हो सकते हैं। साक्षात्कार को अगर रिकार्ड करना संभव हो तो बेहतर है, लेकिन अगर ऐसा संभव न हो तो साक्षात्कार के दौरान नोट्स तैयार करते रहें।

समाचार के उदाहरण

(1) मैकुलम ने आमिर का समर्थन किया

न्यूजीलैंड के कप्तान ब्रैंडन मैकुलम ने कहा है कि स्पॉट फिक्सिंग मामले में सज़ा काटने वाले तेज़ गेंदबाज़ मोहम्मद आमिर को ‘संदेह का लाभ’ मिलना चाहिए और उसे इस महीने न्यूजीलैंड में सीमित ओवरों के मैचों में खेलने की स्वीकृति मिलनी चाहिए। आमिर को पाकिस्तान की टीम में शामिल किया गया है जो न्यूजीलैंड में तीन टी-20 और तीन वनडे मैचों की सीरिज में हिस्सा लेगी। इस तेज़ गेंदबाज का खेलना हालाँकि न्यूजीलैंड के आव्रजन अधिकारियों के उन्हें वीजा जारी करने पर निर्भर करता है। आमिर जब सिर्फ 18 साल का था तब स्पॉट फिक्सिंग में शामिल होने पर 2011 में उस पर क्रिकेट से पाँच साल का प्रतिबंध लगा था। उसने छह महीने की सज़ा में से तीन महीने जेल में भी बिताए थे। आईसीसी द्वारा लगाया प्रतिबंध अब खत्म हो गया है और मैकुलम ने कहा कि उसे अपना कॅरिअर बहाल करने की स्वीकृति मिलनी चाहिए।

(2) वर्ल्ड डार्ट में हॉलैंड का दबदबा खत्म, लेविस और एंडरसन फाइनल में

एड्रियन लेविस और गैरी एंडरसन ने वर्ल्ड डार्ट चैंपियनशिप में हॉलैंड का दबदबा खत्म कर फाइनल में जगह बना ली है। दोनों ने सेमीफाइनल में डच खिलाड़ियों को हराया। इंग्लैंड के लेविस ने पाँच बार के वर्ल्ड चैंपियन रेमंड वान बर्नवेल्ड को 6-3 से मात दी। स्कॉटलैंड के एंडरसन ने ‘द कोबरा’ के नाम से मशहूर जेल क्लासेन को 6-0 से हराया। क्लासेन के नाम सबसे कम उम्र (22 साल) में वर्ल्ड चैंपियन बनने का रिकॉर्ड है। टूर्नामेंट के विजेता को 3 लाख पाउंड (करीब 2.93 करोड़ रु.) इनामी राशि मिलेगी।

(3) नया सिस्टम : परीक्षा केंद्र भी अपने राज्य में ही मिलेगा
रेलवे ने पहली बार बनाया अब अपनी मरजी के दिन दीजिए परीक्षा

रेलवे बेरोज़गारों को बड़ी राहत देने जा रहा है। पहली बार भरती परीक्षा में ऐसी छूट मिलेगी जिससे अभ्यर्थी परीक्षा कार्यक्रम के दौरान अपनी सुविधानुसार किसी भी तारीख को परीक्षा दे पाएगा। इतना ही नहीं, भरती परीक्षा देने के लिए अभ्यर्थियों को अब प्रदेश से बाहर नहीं जाना पड़ेगा। अभ्यर्थी भले ही देश के 21 में से किसी भी भरती बोर्ड में आवेदन करे, वह अपने राज्य में ही परीक्षा दे सकेगा। रेलवे की यह व्यवस्था नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरीज ग्रेजुएट (एनटीपीसी) परीक्षा से शुरू होने जा रही है। परीक्षा के लिए अभी आवेदन लिए जा रहे हैं।

परीक्षा ऑनलाइन होगी, पेपर लीक की आशंका खत्म होगी
परीक्षा ऑनलाइन होने से पेपर लीक जैसी आशंकाएँ खत्म हो जाएंगी। परीक्षा केंद्र के रूप में अपने ही राज्य के पाँच शहरों के विकल्प चुनने से परीक्षार्थी को दूसरे राज्य नहीं जाना पड़ेगा। अब तक जिस भरती बोर्ड के लिए आवेदन किया जाता था, अभ्यर्थी को परीक्षा देने वहीं जाना पड़ता था। आर्थिक बोझ भी घटेगा।

नए सिस्टम से अभ्यर्थी को फ़ायदा
तय तारीख को परीक्षा देने में अक्षम तो रेलवे से तारीख बढ़ाने को कह पाएँगे

  • परीक्षा केंद्र के लिए पाँच विकल्प माँगे गए हैं। यह केंद्र भी अभ्यर्थी के राज्य के ही पाँच शहरों के हैं। एनटीपीसी ऑनलाइन परीक्षा 15 दिन से अधिक समय तक चल सकती है।
  • अभ्यर्थी को परीक्षा के लिए जो दिन दिया जाएंगा, अगर उसे उस दिन परीक्षा देने में परेशानी है तो वह परीक्षा अवधि के दौरान किसी भी दिन परीक्षा दे पाएगा।

(4) नेपाल में फूट की राह पर मधेस मोरचा

नेपाल में मधेस मोरचा फूट की राह पर जाता दिखाई दे रहा है। मधेस मोरचा में शामिल सद्भावना पार्टी ने रविवार को दक्षिणी नेपाल के तराई इलाकों में अलग से आंदोलन छेड़ने का एलान किया है। इस एलान के चलते मधेस मोर्चा में फूट पड़ने की आशंका और बढ़ गई है।

संघीय लोकतांत्रिक मोरचा ने सद्भावना पार्टी के इस फैसले से नाखुशी जताते हुए आलोचना की है। इसके प्रमुख उपेंद्र यादव ने इसे बड़ी भूल करार दिया है। हालांकि सद्भावना पार्टी ने मोरचा से अलग होने की खबरों को खारिज करते हुए अपने मुखिया राजेंद्र महतो के साथ हुए दुर्व्यवहार की वजह से सरकार के साथ वार्ता से भी दूरी बना ली है। महतो प्रदर्शन के दौरान पुलिस के लाठीचार्ज में बुरी तरह घायल हो गए थे। उनका दिल्ली में इलाज चल रहा है। सद्भावना पार्टी के उपाध्यक्ष लक्ष्मण लाल कर्ण ने बताया कि उनकी पार्टी तब तक बातचीत के लिए तैयार नहीं होगी, जब तक कि सरकार इस घटना पर माफ़ी नहीं माँग लेती।

  • महतो की सद्भावना पार्टी ने तराई में अलग आंदोलन छेड़ने का किया एलान
  • हालांकि, मोरचा में फूट पड़ने की आशंका को पार्टी ने किया दरकिनार

घायल मधेसी ने दम तोड़ा

नेपाल में रविवार को एक मधेसी प्रदर्शनकारी की मौत हो गई है। यह प्रदर्शनकारी बीते दिनों आंदोलन के दौरान हुई पुलिस फायरिंग में गोली लगने से घायल हो गया था। 50 वर्षीय शेख मैरुद्दीन को बीते साल 14 अक्तूबर को रौतहट के जिला मुख्यालय गौर में गोली लगी थी।

(5) प्रॉपर्टी डीलर ने कर्ज उतारने को रचा था 59 लाख की लूट का ड्रामा

फतेहाबाद-रतिया रोड पर शनिवार शाम को 59 लाख की लूट की वारदात हुई ही नहीं थी। प्रॉपर्टी डीलर ने लूट की झूठी कहानी गढ़ी थी। मात्र तीन घंटे में ही उसका राज़ खुल गया। पुलिस ने उसके खिलाफ़ झूठी शिकायत देने का केस दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस के अनुसार कथित लूट का शिकार हुए हरनेक फौज़ी के जरिए बलियाला निवासी जगतार सिंह ने पंजाब में ज़मीन खरीदी थी। उसके लिए उसने 59 लाख रुपए हरनेक को दे रखे थे। सोमवार को पंजाब में उस ज़मीन की रजिस्ट्री होनी थी और ज़मीन की कीमत उसके मालिक को दी जानी थी, लेकिन, हरनेक ने जगतार के 59 लाख रुपए उसने अपने कर्ज उतारने में खर्च कर दिए। इसी वजह से शनिवार को हरनेक ने 59 लाख रुपए की लूट का ड्रामा रचा। गुरुद्वारा झाड़ साहब रतिया रोड फतेहाबाद के पास सड़क किनारे लगे पिलर में टक्कर मारकर और ईंट से गाड़ी का सामने का शीशा तोड़ा और मोबाइल फ़ोन को घटनास्थल के पास फेंककर पुलिस को लूट की झूठी सूचना दी। हरनेक से 59 लाख रुपए की राशि में से उसके पास बचे हुए 7 लाख 75 हजार रुपए बरामद किए जा चुके हैं।

(6) आत्मनिर्भरता के लिए देश में बनाने होंगे सभी हथियार : मोदी ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “देश को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाना है। इसके लिए देश में ही हथियार बनाने होंगे।” मोदी कर्नाटक के टुमकुर में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के 75वें स्थापना दिवस समारोह में बोल रहे थे। इस मौके पर उन्होंने 5,000 करोड़ रुपए के ग्रीनफील्ड हेलिकॉप्टर प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया। उन्होंने कहा, ‘भारत को दुनिया में किसी भी देश पर आश्रित न रहना पड़े, यह काम अभी होना है। इसके लिए बहुत लंबी यात्रा पूरी करना बाकी है। भारत की सेना दुनिया की किसी भी सेना से कमजोर नहीं होनी चाहिए। भारत की सेना के पास दुनिया के किसी भी देश से कम ताकतवर शस्त्र नहीं होने चाहिए। सेना के लिए शस्त्र विदेशों से लाने पड़ते हैं। अरबों-खरबों रुपया विदेशों में जाता है। बाहर से जो शस्त्र मिलते हैं वो थोड़े कम ताकतवर मिलते हैं। अगर विश्व में भारत को अपनी सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना है तो उसे अपनी ज़रूरत के अनुसार और अपनी सुरक्षा के लिए शस्त्र खुद बनाने पड़ेंगे।’

विज्ञान से फायदा उठाने के लिए पाँच ‘ई’ सिद्धांत –

मोदी ने कहा, ‘देश में विज्ञान से पूरा फायदा उठाने के लिए वैज्ञानिकों और तकनीकविदों को पाँच ‘ई’ के सिद्धांत को अपनाना चाहिए। यह पाँच ई हैं-इकोनॉमी (अर्थव्यवस्था), एनवायरमेंट (पर्यावरण), एनर्जी (ऊर्जा), एम्पैथी (सहानुभूति) और इक्विटी (निष्पक्षता)।

4,000 परिवारों को रोज़गार –

प्रोजेक्ट में करीब 5,000 करोड़ रुपए का पूँजी निवेश होगा। ये सबसे ज़्यादा पूँजी वाली फैक्टरी बनने वाली है। इस प्रोजेक्ट के कारण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करीब 4,000 परिवारों को किसी-न-किसी को यहाँ पर रोजगार मिलने वाला है।

योग भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में मिलाना होगा
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘स्वास्थ्य के पेशेवरों, नीति बनाने वालों, सरकारी संगठनों और उद्योगों को साथ आना होगा। वे मिलकर ही भारत में अलग चिकित्सा तंत्रों के बीच अंतर पाट सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि आप योग और पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को आपके स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था में शामिल करेंगे।’ वे डीम्ड यूनिवर्सिटी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान में योग पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बोल रहे थे।

(7) बेंगलुरू की स्टार्टअप ने लैब में लिवर बनाया

बेंगलुरू की एक स्टार्टअप ने लेबोरेटरी में कृत्रिम लिवर तैयार करने में सफलता हासिल की है। दरअसल ये थ्रीडी प्रिंटर से तैयार किए गए टिशू हैं जो लिवर का काम बखूबी कर सकते हैं। इन्हें ह्यूमन सेल्स की मदद से ही बनाया गया है। इनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि लिवर की बीमारियों के इलाज में अब ह्यूमन या एनिमल ट्रायल्स पर निर्भरता कम हो जाएगी। इनकी मदद से दवा और वैक्सीन और अच्छी तरह से विकसित की जा सकेंगी साथ ही उनकी लागत भी कम हो जाएगी। सबसे बड़ी बात, जल्दी ही लिवर को पूरी तरह ट्रांसप्लांट भी किया जा सकेगा।

रिसर्चर अरुण चंद्र बताते हैं कि लिवर में मौजूद टॉक्सिन्स और दवाओं का मेटाबॉलिज्म बड़ी परेशानी है। इसी वजह से ह्यूमन ट्रायल्स विफल हो रहे हैं। चंद्र के अनुसार उनकी कंपनी ने इसे पूरी तरह देश में ही तैयार किया है। उनका दावा है कि वे इस तरह के हज़ारों और टिशू तैयार कर सकते हैं और लिवर संबंधी बीमारियों पर दवाओं के प्रभाव का पता लगा सकते हैं। चाहे वह लिवर कैंसर ही क्यों न हो। चंद्र के साथ इनोवेशन टीम में शामिल हैं वरिष्ठ वैज्ञानिक अब्दुल्ला चाँद और शिवराजन टी, वो भी वैज्ञानिक हैं। पेंडोरम से ही जुड़े तुहीन भौमिक बताते हैं कि इस तरह से कृत्रिम अंगों को बनाकर हम कई गंभीर बीमारियों का इलाज खोज पाएँगे। ह्यूमन सेल्स की मदद से बनाए गए इस ऑर्गन से बॉयो आर्टिफिशियल लिवर सपोर्ट सिस्टम बनाया जा सकेगा। जो लिवर फेल होने की दशा में मरीज की जिंदगी बचा सकेगा। पेंडोरम टेक्नोलॉजीस नामक स्टार्टअप की नींव इन्हीं तीनों ने साथियों के साथ मिलकर रखी थी। उस समय वे सभी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलोर में पढ़ रहे थे। उन्हें ये आइडिया तब आया था जब एक कंपीटिशन जीती थी। तब से उन्होंने आर्टिफिशियल ऑर्गन्स को लेकर रिसर्च शुरू की। चंद्रू बताते हैं कि ‘शुरुआत में परिवार और मित्रों ने पैसों से मदद की।

बाद में उन्हें बायोटेक इंडस्ट्री और रिसर्च काउंसिल और सरकार से मदद मिली। इस इनोवेशन पर वे एक करोड़ रु. से ज्यादा खर्च कर चुके हैं। इसमें आधी मदद सरकार ने की है।

(8) बड़ी सफलता, शरीर की ऊर्जा से काम करेगी कंप्यूटर चिप

वैज्ञानिकों की हमेशा यह कोशिश रही है कि ऐसी मशीन बनाई जाए, जो मनुष्य की आंतरिक ऊर्जा से संचालित हो सके। इसमें कुछ सफलता मिल गई है। कोलंबिया में इंजीनियरिंग पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों ने ऐसी कंप्यूटर चिप बनाने में सफलता हासिल की है, जो हमारे शरीर की ऊर्जा से काम करेगी। इसमें शरीर की गतिविधियों से रासायनिक ऊर्जा का संचार होता है, जो सर्किट में लगे सीमॉस तक पहुँचता है और वह सक्रिय हो जाता है।

शोध करने वाली टीम के लीडर प्रो० केन शेफर्ड ने बताया कि विश्व में पहली बार हमारे शरीर की गतिविधियों से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को इंटीग्रेटेड सर्किट तक पहुँचाने में सफलता मिल गई है। ऐसा प्रयोग हम पहले मोबाइल फ़ोन में कर चुके हैं। इस चिप में शोधकर्ताओं ने लिपिड बिलैयर मेंबरेंस तैयार किया, जिसमें इऑन पंप लगा होता है। इसे बायोलॉजी के क्षेत्र में एनर्जी करेंसे मॉलिक्यूल कहते हैं। इसमें एटीपी (एडीनोजिन ट्रिपोस्फेट) होता है, जो एक तरह का कोएन्जाइम होता है, वह लिविंग सेल में रासायनिक ऊर्जा ट्रांसफर करने का काम करता है। इस तरह लिविंग सिस्टम वैसे ही मैकेनिकल काम करता है, जैसे सेल डिविजन और मॉस कॉन्ट्रैक्शन काम करते हैं।

शेफर्ड के अनुसार इऑन पंप ट्रांजिस्टर जैसे काम करते हैं। उसका इस्तेमाल वे न्यूरॉन की क्षमता बनाए रखने के लिए कर चुके हैं। पंप से आर्टिफिशियल लिपिड मेंबरेंस को ऊर्जा मिलती है और वहाँ से इंटीग्रेटेड सर्किट तक। उन्हें उम्मीद है कि इंटेल के डिजाइनर इस ओर ध्यान देंगे।

(9) 104 की उम्र में बकरियाँ बेच गाँव के लिए बनवाए शौचालय

ये हैं 104 साल की कुंबर बाई। राजधानी रायपुर से करीब 90 किमी दूर धमतरी के कोटाभर्रा गाँव में रहती हैं। उम्र के आखिरी पड़ाव में वे इस कोशिश में जुटी हैं कि गाँव की हर महिला का मान रहे, हर घर में शौचालय रहे। पैसे नहीं थे तो बकरियाँ बेचकर दो शौचालय बनवाए। इसके बाद पूरे गाँव ने उनकी ख्वाहिश को अपना बना लिया। अब हर घर में शौचालय है। कुंवर बाई के दो बेटे थे। एक की बचपन में मौत हो गई। 30 साल पहले दूसरा बेटा भी चल बसा। इसके बाद सास-बहू को घर की गाड़ी खींचनी पड़ी। कुंवर बाई के मुताबिक इतने संघर्ष के दौर में सबसे बड़ा संघर्ष खुले में शौच के लिए जाना होता था। जब तक मज़बूरी थी, तब तक चला, लेकिन बहू और उसके बाद नातिन के सामने यही मज़बूरी आई तो वह देख नहीं पाईं। तय किया कि शौचालय बनवाऊँगी।

(10) भिखारियों के लिए डेवलपमेंट प्रोग्राम लाएगी केंद्र सरकार

केंद्र सरकार भिखारियों के लिए स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम लाने की तैयारी कर रही है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से तैयार की गई स्कीम के मुताबिक भीख माँग रहे लोगों को खाना, शेल्टर, हेल्थ केयर और पुनर्वास मुहैया कराया जाएगा।इस योजना के तहत ऐसे भिखारियों को स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग दी जाएगी, जो शरीर से स्वस्थ हैं ताकि ऐसे लोग समाज की मुख्यधारा में आ सकें। एक वरिष्ठ सरकारी मंत्रालय के मुताबिक इस योजना में पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने के लिए एक डेटाबेस तैयार किया जाएगा। योजना का लाभ मिलने वाले लोगों की कंप्यूटरीकृत सूची तैयार की जाएगी।

(11) प्रलय के बाद भी हो खेती, इसलिए बनाया बीज बैंक

मान लीजिए युद्ध, बाढ़ या ग्लोबल वार्मिंग की वजह से सारी फ़सलें बरबाद हो जाती हैं। इन फ़सलों के बीज भी नष्ट हो जाते हैं। तो आगे खेती कैसे होगी? हम खाएँगे क्या? दुनिया के चुनिंदा वैज्ञानिकों को भी यह चिंता हई। उन्होंने इसका समाधान निकाला। वे पूरी दुनिया की प्रमुख फ़सलों के बीज डीप फ्रीज में जमा कर रहे हैं। यह बीज बैंक सामान्य नहीं है। इस ‘ग्लोबल सीड वॉल्ट’ को आर्कटिक के स्वालबार्ड द्वीप पर पहाड़ के नीचे बनाया गया है। उत्तरी ध्रुव से 1,300 किलोमीटर दूर इस द्वीप पर तापमान माइनस में रहता है। जिस जगह बीज हैं वहाँ का तापमान (-)18 डिग्री सेल्सियस रखा जाता है। यहाँ कोयले की भी खान है। रेफ्रिजिरेशन यूनिट चलाने के लिए बिजली इसी कोयले से बनाई जाती है।

न मिसाइल का असर, न बाढ़ का खतरा –
बीज बैंक का प्रवेश द्वार समुद्र से 130 मीटर ऊपर है। स्वालबार्ड को लेकर देशों के बीच कोई विवाद नहीं है, फिर भी भविष्य में आर्कटिक में कोई बड़ा धमाका कर दे और उत्तरी ध्रुव की सारी बर्फ पिघल जाए, तब भी पानी इस वॉल्ट के प्रवेश द्वार तक नहीं पहुँचेगा। पहाड़ के गर्भ में, 115 मीटर नीचे होने से इस पर मिसाइल हमले का भी असर नहीं होगा। यहाँ भूकंप का खतरा भी कम है।

5 हज़ार प्रजाति के 8.7 लाख सैंपल जमा –
इस सीड वॉल्ट में अभी तक दुनिया की 5,000 से ज़्यादा प्रजाति की फ़सलों के 8,65,871 सैंपल जमा किए जा चुके हैं। यहाँ 45 लाख सैंपल रखने की जगह है। विश्व की जितनी भी महत्त्वपूर्ण फ़सलें हैं, उनमें से करीब आधी के सैंपल यहाँ जमा हो चुके हैं।

सीरिया को भेजे गए गेहूँ के बीज –
‘ग्लोबल सीड वॉल्ट’ का महत्त्व अभी से दिखने लगा है। गृहयुद्ध ग्रस्त सीरिया में फ़सलें बरबाद हो गईं। तब वहाँ खेती के लिए यहीं से गेहूँ, जौ, मटर आदि की कई किस्मों के बीज भेजे गए।

यहाँ मफ़्त में रख सकते हैं बीज –
नॉर्वे सरकार ने इसे 60 करोड़ रुपए में बनाया था। यहाँ बीज रखने वालों को पैसे नहीं लगते। खर्च नॉर्वे सरकार और ग्लोबल क्रॉप डायवर्सिटी ट्रस्ट उठाती है। ट्रस्ट को बिल गेट्स फाउंडेशन, कई सरकारों से पैसे मिलते हैं।

(12) स्मार्ट ग्रिड वाला पहला शहर पानीपत

मार्च 2017 तक 12,000 उपभोक्ता जुड़ जाएँगे स्मार्ट ग्रिड से –

हरियाणा का पानीपत स्मार्ट ग्रिड से जुड़ने वाला पहला शहर बनने जा रहा है। अगले साल मार्च तक यहाँ के 12,000 बिजली उपभोक्ताओं के लिए स्मार्ट ग्रिड की स्थापना के बाद बिजली कटौती समाप्त हो जाएगी। स्मार्ट ग्रिड से जुड़ने वाले उपभोक्ताओं के यहाँ न तो इनवर्टर की ज़रूरत होगी और न ही किसी प्रकार के पावर बैक-अप की। सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि स्मार्ट ग्रिड वाले इलाके में बिजली की चोरी नहीं हो पाएगी। अभी यह पता लगाना कठिन होता है कि बिजली की चोरी किस क्षेत्र में हो रही है, लेकिन स्मार्ट ग्रिड की स्थापना से आसानी से यह देखा जा सकेगा कि किस इलाके में बिजली की चोरी की जा रही है। वर्ष 2012 में स्मार्ट ग्रिड की स्थापना को लेकर देश के 14 पायलट परियोजनाओं की शुरुआत की गई थी। इनमें सबसे तेजी से पानीपत में काम चल रहा है। इंडिया स्मार्ट ग्रिड फोरम के प्रेसिडेंट रेजी कुमार पिल्लई ने बताया कि स्मार्ट ग्रिड की कई पायलट परियोजनाओं का काम फंड की कमी की वजह से धीमी गति से चल रहा है।

उन्होंने बताया कि पानीपत की स्मार्ट ग्रिड पायलट परियोजना का काम वर्ष 2017 के मार्च तक पूरा हो जाएगा और स्मार्ट ग्रिड से जुड़ने वाला पहला शहर होगा। उन्होंने बताया कि स्मार्ट ग्रिड से लोड शेडिंग (बिजली कटौती) समाप्त हो जाएगी, क्योंकि स्मार्ट ग्रिड की मदद से बिजली की माँग और आपूर्ति का पहले से पता होगा। बिजली की माँग का पहले से पता होने पर बिजली की कमी होने पर किसी एक ही क्षेत्र में थोड़ी देर के लिए बिजली की कटौती होगी। स्मार्ट ग्रिड की बदौलत क्वालिटी पावर की आपूर्ति होगी। वोल्टेज में होने वाले उतार-चढ़ाव की कोई गुंजाइश नहीं रह जाएगी। ऐसे में घरों में वोल्टेज नियंत्रण करने के लिए स्टेबलाइजर की ज़रूरत नहीं होगी। वहीं बिजली की निर्बाध आपूर्ति होने से पावर बैकअप भी नहीं रखना पड़ेगा। स्मार्ट ग्रिड से जुड़ने वाले उपभोक्ताओं को अपने-अपने घरों में स्मार्ट मीटर लगवाना होगा।

(13) डाकघरों में खुलेंगे 1,000 एटीएम

डाक विभाग इस साल तक देशभर में एक हज़ार एटीएम खोलने जा रहा है। इस कदम से विभाग देशभर में फैले अपने करीब 25,000 डाकघरों के जरिए लोगों को कोर बैंकिंग प्रणाली (सीबीएस) की सुविधा मुहैया कराना चाहता है।

डाक विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि विभाग 12,441 डाकघरों को पहले ही सीबीएस के तहत ला चुका है और डाकघरों में 300 एटीएम खोले जा चुके हैं। उन्होंने बताया कि इसे आगे बढ़ाने के लिए मार्च तक 1,000 नए एटीएम खोले जाएंगे। डाकघरों में सीबीएस प्रणाली स्थापित हो जाने पर लोग डाक संबंधी कामों के अलावा यहाँ से बैंकिंग सेवाओं का लाभ भी उठा सकेंगे, भले ही उनका खाता कहीं भी हो।

पारिभाषिक शब्दावली

अपडेटिंग-विभिन्न वेबसाइटों पर उपलब्ध सामग्री को समय-समय पर संशोधित और परिवर्धित किया जाता है। इसे ही अपडेटिंग कहते हैं।

ऑडिएस-जनसंचार माध्यमों के साथ जुड़ा एक विशेष शब्द। यह जनसंचार माध्यमों के दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों के लिए सामूहिक रूप से इस्तेमाल होने वाला शब्द है।

ऑप-एड-समाचार पत्रों में संपादकीय पृष्ठ के सामने प्रकाशित होने वाला वह पन्ना जिसमें विश्लेषण, फ़ीचर, स्तंभ, साक्षात्कार और विचारपूर्ण टिप्पणियाँ प्रकाशित की जाती हैं। हिंदी के बहुत कम समाचार पत्रों में ऑप-एड पृष्ठ प्रकाशित होता है, लेकिन अंग्रेज़ी के हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबारों में ऑप-एड पृष्ठ देखा जा सकता है।

डेडलाइन-समाचार माध्यमों में किसी समाचार को प्रकाशित या प्रसारित होने के लिए पहुँचने की आखिरी समय-सीमा को डेडलाइन कहते हैं। अगर कोई समाचार डेडलाइन निकलने के बाद मिलता है तो आमतौर पर उसके प्रकाशित या प्रसारित होने की संभावना कम हो जाती है।

डेस्क-समाचार माध्यमों में डेस्क का आशय संपादन से होता है। समाचार माध्यमों में मोटे तौर पर संपादकीय कक्ष डेस्क और रिपोर्टिंग में बँटा होता है। डेस्क पर समाचारों को संपादित किया जाता है उसे छपने योग्य बनाया जाता है।

न्यूज़पेग-न्यूज़पेग का अर्थ है किसी मुद्दे पर लिखे जा रहे लेख या फ़ीचर में उस ताज़ा घटना का उल्लेख, जिसके कारण वह मुद्दा चर्चा में आ गया है। जैसे अगर आप माध्यमिक बोर्ड की परीक्षाओं में सरकारी स्कूलों के बेहतर हो रहे प्रदर्शन पर एक रिपोर्ट लिख रहे हैं तो उसका न्यूज़पेग सीबीएसई का ताज़ा परीक्षा परिणाम होगा। इसी तरह शहर में महिलाओं के खिलाफ़ बढ़ रहे अपराध पर फ़ीचर का न्यूज़पेग सबसे ताज़ी वह घटना होगी जिसमें किसी महिला के खिलाफ़ अपराध हुआ है।

पीत पत्रकारिता (येलो जर्नलिज़्म)-इस शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में अमेरिका में कुछ प्रमुख समाचार पत्रों के बीच पाठकों को आकर्षित करने के लिए छिड़े संघर्ष के लिए किया गया था। उस समय के प्रमुख समाचार पत्रों ने पाठकों को लुभाने के लिए झूठी अफ़वाहों, व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोपों, प्रेम संबंधों, भंडाफोड़ और फ़िल्मी गपशप को समाचार की तरह प्रकाशित किया। उसमें सनसनी फैलाने का तत्व अहम था।

पेज थी पत्रकारिता-पेज थ्री पत्रकारिता का तात्पर्य ऐसी पत्रकारिता से है जिसमें फ़ैशन, अमीरों की पार्टियों, महफ़िलों और जाने-माने लोगों (सेलीब्रिटी) के निजी जीवन के बारे में बताया जाता है। यह आमतौर पर समाचार पत्रों के पृष्ठ तीन पर प्रकाशित होती रही है। इसलिए इसे पेज थ्री पत्रकारिता कहते हैं। हालाँकि अब यह ज़रूरी नहीं है कि यह पृष्ठ तीन पर ही प्रकाशित होती हो, लेकिन इस पत्रकारिता के तहत अब भी ज़ोर उन्हीं विषयों पर है।

फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन (एफ़०एम०)-रेडियो प्रसारण की एक विशेष तकनीक जिसमें फ्रीक्वेंसी को मॉड्यूलेट किया जाता है। रेडियो का प्रसारण दो तकनीकों के जरिए होता है जिसमें एक तकनीक एमप्लीच्यूड मॉड्यूलेशन (ए०एम०) है और दूसरा फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन (एफ़०एम०)। एफ़०एम० तकनीक अपेक्षाकृत नई है और इसकी प्रसारण की गुणवत्ता बहुत अच्छी मानी जाती है, लेकिन ए०एम० रेडियो की तुलना में एफ़०एम० के प्रसारण का दायरा सीमित होता है।

फ्रीलांस पत्रकार-फ्रीलांस पत्रकार से आशय ऐसे स्वतंत्र पत्रकार से है जो किसी विशेष समाचार पत्र या पत्रिका से जुड़ा नहीं होता या उसका कर्मचारी नहीं होता। वह अपनी इच्छा से किसी समाचार पत्र को लेख या फ़ीचर प्रकाशन के लिए देता है जिसके प्रकाशन पर उसे पारिश्रमिक मिलता है।

बीट-समाचार पत्र या अन्य समाचार माध्यमों द्वारा अपने संवाददाता को किसी क्षेत्र या विषय यानी बीट की दैनिक रिपोर्टिंग की ज़िम्मेदारी। यह एक तरह के रिपोर्टर का कार्यक्षेत्र निश्चित करना है। जैसे कोई संवाददाता शिक्षा बीट कवर या इंफोटेन्मेंट कहते हैं।

सीधा प्रसारण (लाइव)-रेडियो और टेलीविज़न में जब किसी घटना या कार्यक्रम को सीधा घटित होते हुए दिखाया या सुनाया जाता है तो उस प्रसारण को सीधा प्रसारण (लाइव) कहते हैं। रेडियो में इसे आँखों देखा हाल भी कहते हैं जबकि टेलीविज़न के परदे पर सीधे प्रसारण के समय लाइव लिख दिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि उस समय आप जो भी देख रहे हैं, वह बिना किसी संपादकीय काट-छाँट के सीधे आप तक पहुँच रहा है।

स्टिंग आपरेशन-जब किसी टेलीविज़न चैनल का पत्रकार छुपे टेलीविज़न कैमरे के जरिए किसी गैर-कानूनी, अवैध और असामाजिक गतिविधियों को फ़िल्माता है और फिर उसे अपने चैनल पर दिखाता है तो इसे स्टिंग आपरेशन कहते हैं। कई बार चैनल ऐसे आपरेशनों को गोपनीय कोड दे देते हैं। जैसे आपरेशन दुर्योधन या चक्रव्यूह । हाल के वर्षों में समाचार चैनलों पर सरकारी कार्यालयों आदि में भ्रष्टाचार के खुलासे के लिए स्टिंग आपरेशनों के इस्तेमाल की प्रवृत्ति बढ़ी है।

गत वर्षों में पूछे गए प्रश्नः

प्रश्नः 1.
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की दो विशेषताएँ लिखिए। (CBSE-2016, 2017)
उत्तरः

  1. यह विशाल क्षेत्र में पहुँच जाता है।
  2. इसमें दृश्य व श्रव्य माध्यम हैं।

प्रश्नः 2.
संपादक के दो दायित्वों का उल्लेख कीजिए। (CBSE-2012, 2015, 2016)
उत्तरः

  1. विभिन्न स्रोतों से प्राप्त समाचारों का चुनाव कर प्रकाशन योग्य बनाना।
  2. तात्कालिक घटनाओं पर संपादकीय लेख लिखना।

प्रश्नः 3.
संपादकीय का महत्त्व समझाइए। (CBSE-2016, 2017)
उत्तरः
संपादकीय किसी भी समाचार पत्र की आवाज़ होता है। यह एक निश्चित जगह पर छपता है। यह समाचार पत्र की राय है।

प्रश्नः 4.
रेडियो माध्यम भाषा की दो विशेषताएँ लिखिए। (CBSE-2016)
उत्तरः

  1. रेडियो माध्यम की भाषा आम बोलचाल की होनी चाहिए।
  2. इसमें सटीक मुहावरों का प्रयोग भी होना चाहिए।

प्रश्नः 5.
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ क्यों कहा जाता है? (CBSE-2016)
उत्तरः
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, क्योंकि यह जनसमस्याओं को शेष तीनों स्तंभों के सामने प्रस्तुत करता है तथा इन तीनों स्तंभों के कार्यों की समीक्षा भी करता है।

प्रश्नः 6.
अंशकालिक पत्रकार से आप क्या समझते हैं ? (CBSE-2015, 2017)
उत्तरः
अंशकालिक पत्रकार वे पत्रकार हैं जो किसी भी समाचार पत्र में स्थायी नहीं होते। ये एक से अधिक अखबारों के लिए सामग्री एकत्रित करते हैं।

प्रश्नः 7.
पेज थ्री पत्रकारिता क्या है?
(CBSE-2014, 2015) उत्तरः पीत पत्रकारिता को ‘पेज थ्री’ पत्रकारिता कहा जाता है। यह प्राय: चरित्रहीनता से संबंधित होती है। इसमें सनसनीखेज़ खबर होती है।

प्रश्नः 8.
जनसंचार का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2015)
उत्तरः
जब व्यक्तियों के समूह के साथ संवाद किसी तकनीकी या यांत्रिकी के माध्यम से समाज के एक विशाल वर्ग से किया जाता है तो इसे जनसंचार कहते हैं।

प्रश्नः 9.
आल इंडिया रेडियो की स्थापना कब हुई ? आजकल यह किस संस्था के अंतर्गत है? (CBSE-2015)
उत्तरः
आल इंडिया रेडियो की स्थापना 1936 ई० में हुई। आजकल यह फ्रिक्वेंसी मॉड्यूलेशन संस्था के अंतर्गत है।

प्रश्नः 10.
फ़ीचर के दो लक्षण लिखिए। (CBSE-2014, 2015)
उत्तरः

  1. फ़ीचर एक सृजनात्मक, सुव्यवस्थित व आत्मनिष्ठ लेखन है जो पाठक को मनोरंजक रूप में जानकारी देता है।
  2. इसकी भाषा सरल, आकर्षक व मन को छूने वाली होनी चाहिए।

प्रश्नः 11.
पत्रकार किसे कहते हैं? (CBSE-2015)
उत्तरः
वह व्यक्ति जो समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपने के लिए लिखित रूप में सामग्री देने, सूचनाएँ और समाचार एकत्र करता है, पत्रकार कहलाता है।

प्रश्नः 12.
डेडलाइन किसे कहते हैं? (CBSE-2014, 2015)
उत्तरः
अखबार में समाचार या रिपोर्ट को प्रकाशन हेतु स्वीकार करने के लिए एक निश्चित समय-सीमा होती है। इसी को डेड लाइन कहते हैं।

प्रश्नः 13.
वॉचडॉग पत्रकारिता से क्या आशय है? (CBSE-2015, 2017)
उत्तरः
वह पत्रकारिता जो सरकार के कामकाज पर निगाह रखती है तथा भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करती है, वॉचडॉग पत्रकारिता कहलाता है।

प्रश्नः 14.
ब्रेकिंग न्यूज का क्या आशय है? (CBSE-2015)
उत्तरः
ब्रेकिंग न्यूज वह है जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण तथा तुरंत प्राप्त होती है। यह बहुत कम शब्दों में दर्शकों तक पहुँचाई जाती है।

प्रश्नः 15.
संचार प्रक्रिया में फीडबैक किसे कहते हैं और इसका क्या महत्त्व है? (CBSE-2015)
उत्तरः
कूटीकृत संदेश के पहुंचने पर प्राप्तकर्ता अपनी राय व्यक्त करता है। यही फीडबैक है। इससे संदेश के पहुँचने का पता चलता है।

प्रश्नः 16.
‘समाचार’ शब्द को परिभाषित कीजिए। (CBSE-2017)
उत्तरः
समाचार किसी भी ऐसी ताज़ा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है जिसमें अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि हो व असरकारक है।

प्रश्नः 17.
इंटरनेट की लोकप्रियता के दो कारणों का उल्लेख कीजिए। (CBSE-2015)
उत्तरः

  1. यह संप्रेषण का बेहतरीन साधन है।
  2. यह दृश्य, श्रव्य व भागीदारी का माध्यम है।

प्रश्नः 18.
किसी समाचार की प्रस्तुति में जनरुचि का क्या महत्त्व है? (CBSE-2015)
उत्तरः
समाचार पत्रों में जनरुचि के अनुसार ही खबरों को स्थान दिया जाता है। राजनीति, खेल, हिंसा, अर्थ आदि खबरें पाठक वर्ग की रुचि के अनुसार महत्ता पाती हैं।

प्रश्नः 19.
संपादन में वस्तुपरकता से क्या तात्पर्य है? (CBSE-2015)
उत्तरः
वस्तुपरकता का आशय है-समाचार, घटनाएँ तथा तथ्य उसी रूप में प्रस्तुत किए जाएँ, जिस रूप में वे घटित हुए हों। इनमें दबाव के कारण बदलाव नहीं आना चाहिए।

प्रश्नः 20.
कार्टून कोना किसे कहते हैं? (CBSE-2015)
उत्तरः
कार्टून कोना समाचार पत्र के कोने पर होता है। इसके माध्यम से की गई सटीक टिप्पणियाँ पाठक को छूती हैं। यह एक तरह से हस्ताक्षरित संपादकीय है।

प्रश्नः 21.
पत्रकार के दो प्रकार लिखिए। (CBSE-2015)
उत्तरः
पूर्वकालिक पत्रकार, अंशकालिक पत्रकार, स्वतंत्र पत्रकार ।

प्रश्नः 22.
एंकर बाइट किसे कहते हैं? (CBSE-2013, 2015, 2017)
उत्तरः
एंकर बाइट किसी घटना से संबंधित व्यक्तियों का वह कथन है जिसे घटना की सूचना व उसके दृश्य के साथ दिखाया जाता है ताकि खबर प्रामाणिक हो सके।

प्रश्नः 23.
विशेष लेखन क्या है? (CBSE-2012, 2013, 2015)
उत्तरः
किसी विशेषज्ञ द्वारा विषय पर लिखा गया विशेष लेख विशेष लेखन कहलाता है।

प्रश्नः 24.
जनसंचार का आधुनिकतम माध्यम क्या है? (Sample Paper-2014)
उत्तरः
इंटरनेट।

प्रश्नः 25.
फ़ीचर किसे कहा जाता है? (CBSE-2013, 2014, 2015)
उत्तरः
फ़ीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने के
साथ मुख्य रूप से उसका मनोरंजन करना होता है।

प्रश्नः 26.
प्रमुख जनसंचार माध्यम कौन-से हैं? (CBSE-2013, 2015)
उत्तरः
रेडियो, टी०वी०, अखबार, इंटरनेट आदि।

प्रश्नः 27.
समाचार लेखन की बहुप्रचलित शैली कौन-सी है? (CBSE-2015)
उत्तरः
उलटा पिरामिड शैली।

प्रश्नः 28.
भारत में पहला छापाखाना कब और कहाँ खुला? (CBSE-2014)
उत्तरः
भारत में पहला छापाखाना 1556 ई० में गोवा में खुला।

प्रश्नः 29.
किन्हीं दो राष्ट्रीय समाचार पत्रों के नाम लिखिए। (CBSE-2014)
उत्तरः
दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, जनसत्ता।

प्रश्नः 30.
एनकोडिंग से आप क्या समझते हैं? (CBSE-2014)
उत्तरः
संदेश भेजने के लिए शब्दों, संकेतों या ध्वनि चित्रों का उपयोग किया जाता है। भाषा भी एक प्रकार का कोड है। प्राप्तकर्ता को समझाने योग्य कूटों में संदेश बाँधना एनकोडिंग कहा जाता है।

प्रश्नः 31.
‘फ़ोन इन’ का आशय समझाइए। (CBSE-2017)
उत्तरः
फ़ोन-इन वे सूचनाएँ या समाचार हैं जो घटनास्थल पर मौजूद रिपोर्टर से फ़ोन पर बातें करके एंकर दर्शकों तक पहुँचाता

प्रश्नः 32.
पत्रकारिता में बीट’ शब्द का क्या अर्थ है? (CBSE-2010, 2014)
उत्तरः
पत्रकारिता में खबरों के प्रकार को बीट कहते हैं, जैसे-राजनीतिक, आर्थिक, खेल, फ़िल्म तथा कृषि आदि। इनके आधार पर संवाददाताओं को काम दिया जाता है।

प्रश्नः 33.
संपादकीय में लेखक का नाम क्यों नहीं होता? (CBSE-2014)
उत्तरः
संपादकीय में लेखक का नाम नहीं होता, क्योंकि यह व्यक्ति विशेष का विचार नहीं होता, बल्कि अखबार का दृष्टिकोण व्यक्त करता है।

प्रश्नः 34.
स्वतंत्र पत्रकार किसे कहा जाता है? (CBSE-2014, Sample Paper-2014)
उत्तरः
ऐसा पत्रकार किसी अखबार विशेष से न बँधकर भुगतान के आधार पर अलग-अलग अखबारों के लिए लिखता है।

प्रश्नः 35.
स्तंभ लेखन से आप क्या समझते हैं? (CBSE-2014)
उत्तरः
स्तंभ लेखन वे विचारपरक लेख हैं जो कुछ विशेष लेखकों द्वारा अपनी वैचारिकता को व्यक्त करने की अलग शैली है।

प्रश्नः 36.
पत्रकारिता की भाषा में मुखड़ा (इंट्रो) किसे कहते हैं ? (CBSE-2014, 2017)
उत्तरः
इंट्रो को पत्रकारिता की भाषा में मुखड़ा कहते हैं। इसे समाचार के पहले पैराग्राफ़ की शुरुआत दो-तीन पंक्तियों में 3-4 ककारों के आधार पर लिखा जाता है।

प्रश्नः 37.
एडवोकेसी पत्रकारिता क्या हैं? (CBSE-2014)
उत्तरः
इस पत्रकारिता में वे समाचार संगठन होते हैं जो किसी विधारधारा या किसी खास मुद्दे को उठाकर आगे बढ़ाते हैं और उसके पक्ष में जनमत बनाने के लिए जोर-शोर से अभियान चलाते हैं।

प्रश्नः 38.
संपादकीय किसे कहते हैं? (CBSE-2010, 2013, 2014)
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाला अनाम लेख को संपादकीय कहा जाता है। इसके जरिए अखबार अपनी राय प्रकट करता है।

प्रश्नः 39.
मुद्रित माध्यम की किसी एक विशेषता को स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2013)
उत्तरः
मुद्रित माध्यम में स्थायित्व होता है।

प्रश्नः 40.
हिंदी में नेट पत्रकारिता में सबसे बड़ी अड़चन क्या है? (CBSE-2013)
उत्तरः
हिंदी में नेट पत्रकारिता की सबसे बड़ी अड़चन फॉन्ट है।

प्रश्नः 41.
ऐसे चार हिंदी समाचार पत्रों के नाम लिखिए जिनके वेब (नेट) संस्करण भी उपलब्ध हैं। (CBSE-2013)
उत्तरः
दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी।

प्रश्नः 42.
समाचार लेखन के छह ककारों के नाम लिखिए। (CBSE-2017)
उत्तरः
समाचार लेखन के छह ककार हैं-क्या, किसके, कहाँ, कब, कैसे तथा क्यों।

प्रश्नः 43.
खोजपरक पत्रकारिता किसे कहा जाता है? (CBSE-2013)
उत्तरः
वह पत्रकारिता जो भ्रष्टाचार, अनियमितता, गड़बड़ी आदि को उजागर करती है, खोजपरक पत्रकारिता कहलाती है।

प्रश्नः 44.
मुद्रित माध्यम की एक विशेषता बताइए जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में नहीं है? (CBSE-2013)
उत्तरः
मुद्रित माध्यम में स्थायित्व होता है जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में नहीं है।

प्रश्नः 45.
हिंदी में प्रकाशित किन्हीं चार दैनिक समाचार पत्रों के नाम लिखिए। (CBSE-2012)
उत्तरः
दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी।

प्रश्नः 46.
किन्हीं दो हिंदी समाचार चैनलों के नाम लिखिए। (CBSE-2010)
उत्तरः
आजतक, एबीपी, एनडीटी०वी० ।

प्रश्नः 47.
समाचार और फ़ीचर में क्या अंतर होता है? (CBSE-2010)
उत्तरः
समाचार में किसी घटना का यथातथ्य वर्णन होता है जबकि फ़ीचर का उद्देश्य पाठक को शिक्षित करने के साथ मनोरंजन करना भी है।

प्रश्नः 48.
विशेष लेखन के किन्हीं दो प्रकारों का नामोल्लेख कीजिए। (CBSE-2010)
उत्तरः
खेल, शिक्षा, व्यवसाय आदि।

प्रश्नः 49.
समाचार लेखन कौन करते हैं? (Sample Paper-2015)
उत्तरः
समाचार लेखन संवाददाता करते हैं।

प्रश्नः 50.
अखबार अन्य माध्यमों से अधिक लोकप्रिय क्यों हैं? एक मुख्य कारण लिखिए।(Sample Papper-20)
उत्तरः
अखबार अन्य माध्यमों से अधिक लोकप्रिय हैं क्योंकि इसमें स्थायित्व है। इसका प्रयोग सुविधानुसार किया जा सकता है।

प्रश्नः 51.
पत्रकारीय लेखन में सर्वाधिक महत्त्व किस बात का है?
उत्तरः
पत्रकारीय लेखन में सर्वाधिक महत्त्व समसामयिक घटनाओं की जानकारी पर है।

प्रश्नः 52.
वेब पत्रकारिता से क्या आशय है?(CBSE-2012)
उत्तरः
जो पत्रकारिता इंटरनेट के जरिए की जाए, उसे बेव पत्रकारिता कहते हैं।

प्रश्नः 53.
उलटा पिरामिड शैली क्या है? (CBSE-2012)
उत्तरः
वह शैली जिसमें महत्त्वपूर्ण तथ्यों के बाद घटते हुए महत्त्वक्रम से अन्य तथ्यों व सूचनाओं को लिखा जाता है। उलटा पिरामिड शैली होती है।

प्रश्नः 54.
इंटरनेट पत्रकारिता के दो लाभ लिखिए। (CBSE-2017)
उत्तरः

  1. इसकी गति तीव्र होती है।
  2. इसे कहीं भी पढ़ा जा सकता है।

प्रश्नः 55.
विशेष रिपोर्ट के मूलभूत तत्व क्या हैं? (CBSE-2012)
उत्तरः
गहरी छानबीन, तथ्यों का एकत्रीकरण, विश्लेषण तथा व्याख्या।

प्रश्नः 56.
पत्रकारिता की भाषा में साक्षात्कार का क्या आशय है? (CBSE-2011)
उत्तरः
पत्रकारिता में साक्षात्कार के जरिए समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट आदि के लिए कच्चा माल इकट्ठा किया जाता है। पत्रकार अन्य व्यक्ति से तथ्य, उसकी राय व भावनाएँ जानने के लिए सवाल पूछता है।

प्रश्नः 57.
ड्राई एंकर से क्या तात्पर्य है? (CBSE-2011)
उत्तरः
ड्राई एंकर वह है जो समाचार के चित्र नहीं आने तक दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारी के आधार पर घटना से संबंधित सूचना देता है।

प्रश्नः 58.
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से क्या तात्पर्य है? (CBSE-2011)
उत्तरः
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में रेडियो, टेलीविज़न, कंप्यूटर, इंटरनेट आते हैं।

प्रश्नः 59.
रेडियो की अपेक्षा टी०वी० समाचारों की लोकप्रियता के दो कारण लिखिए। (CBSE-2011)
उत्तरः

  1. टी०वी० पर चित्र होने के साथ समाचार अधिक विश्वसनीय हो जाता है।
  2. इनके साथ दर्शक सीधे रूप से जुड़ जाता है।

प्रश्नः 60.
रेडियो नाटक से आप क्या समझते हैं? (CBSE-2010)
उत्तरः
रेडियो पर मनोरंजन के लिए प्रसारित होने वाले नाटक रेडियो नाटक कहलाते हैं।

प्रश्नः 61.
पत्रकारीय लेखन और साहित्यिक सृजनात्मक लेखन में क्या अंतर है?
उत्तरः
पत्रकारीय लेखन में पत्रकार पाठकों, दर्शकों व श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं, जबकि साहित्यिक सृजनात्मक लेखन में चिंतन के जरिए नई रचना का उद्भव होता है।

प्रश्नः 62.
फ़ीचर लेखन की भाषा-शैली कैसी होनी चाहिए? (Sample Paper-2009)
उत्तरः
फ़ीचर लेखन की भाषा, सरल, रूपात्मक, आकर्षक व मन को छूने वाली होनी चाहिए।

प्रश्नः 63.
पत्रकारिता का मूल तत्व क्या है? (Sample Paper-2009)
उत्तरः
पत्रकारिता का मूल तत्व लोगों की जिज्ञासा की भावना ही है।

प्रश्नः 64.
जनसंचार के प्रचलित माध्यमों में सबसे पुराना माध्यम क्या है? (CBSE-2009)
उत्तरः
मुद्रित माध्यम।

प्रश्नः 65.
फ़्लैश किसे कहते हैं? (CBSE-2009)
उत्तरः
वह बड़ी खबर जो कम-से-कम शब्दों में दर्शकों तक तत्काल महज सूचना के रूप में दी जाती है, फ़्लैश कहलाती है।

अभ्यास प्रश्नः

प्रश्नः 1. संचार का महत्त्व दो बिंदुओं में समझाइए। (CBSE-2017)
प्रश्नः 2. स्टिंग आपरेशन के दो लाभ लिखिए। (CBSE-2017)
प्रश्नः 3. समाचारों के स्रोत से आप क्या समझते हैं। (CBSE-2017)
प्रश्नः 4. ‘पीत पत्रकारिता’ से आप क्या समझते हैं? (CBSE-2017)
प्रश्नः 5. पत्रकारिता की बैसाखियों से क्या तात्पर्य है? (CBSE-2017)
प्रश्नः 6. अच्छे पत्रकार में संदेह करने का स्वभाव होना क्यों आवश्यक है? (CBSE-2017)
प्रश्नः 7. ‘डेस्क’ किसे कहते हैं? (CBSE-2017)
प्रश्नः 8. “प्रिंट मीडिया’ के कोई दो लाभ लिखिए। (CBSE-2017)

ख. संपादकीय.

प्रश्नः 1.
संपादकीय का क्या महत्त्व है?
उत्तरः
संपादक संपादकीय पृष्ठ पर अग्रलेख एवं संपादकीय लिखता है। इस पृष्ठ के आधार पर संपादक का पूरा व्यक्तित्व झलकता है। अपने संपादकीय लेखों में संपादक युगबोध को जाग्रत करने वाले विचारों को प्रकट करता है। साथ ही समाज की विभिन्न बातों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। संपादकीय पृष्ठों से उसकी साधना एवं कर्मठता की झलक आती है। वस्तुतः संपादकीय पृष्ठ पत्र की अंतरात्मा है, वह उसकी अंतरात्मा की आवाज़ है। इसलिए कोई बड़ा समाचार-पत्र बिना संपादकीय पृष्ठ के नहीं निकलता।

पाठक प्रत्येक समाचार-पत्र का अलग व्यक्तित्व देखना चाहता है। उनमें कुछ ऐसी विशेषताएँ देखना चाहता है जो उसे अन्य समाचार से अलग करती हों। जिस विशेषता के आधार पर वह उस पत्र की पहचान नियत कर सके। यह विशेषता समाचार-पत्र के विचारों में, उसके दृष्टिकोण में प्रतिलक्षित होती है, किंतु बिना संपादकीय पृष्ठ के समाचार-पत्र के विचारों का पता नहीं चलता। यदि समाचार-पत्र के कुछ विशिष्ट विचार हो, उन विचारों में दृढ़ता हो और बारंबार उन्हीं विचारों का समर्थन हो तो पाठक उन विचारों से असहमत होते हुए भी उस समाचार-पत्र का मन में आदर करता है। मेरुदंडहीन व्यक्ति को कौन पूछेगा। संपादकीय लेखों के विषय समाज के विभिन्न क्षेत्रों को लक्ष्य करके लिखे जाते हैं।

प्रश्नः 2.
किन-किन विषयों पर संपादकीय लिखा जाता है?
उत्तरः
जिन विषयों पर संपादकीय लिखे जाते हैं, उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –

  • समसामयिक विषयों पर संपादकीय
  • दिशा-निर्देशात्मक संपादकीय
  • संकेतात्मक संपादकीय
  • दायित्वबोध और नैतिकता की भावना से परिपूर्ण संपादकीय
  • व्याख्यात्मक संपादकीय
  • आलोचनात्मक संपादकीय
  • समस्या संपादकीय
  •  साहित्यिक संपादकीय
  • सांस्कृतिक संपादकीय
  • खेल से संबंधित संपादकीय
  • राजनीतिक संपादकीय।

प्रश्नः 3.
संपादकीय का अर्थ बताइए।
उत्तरः
‘संपादकीय’ का सामान्य अर्थ है-समाचार-पत्र के संपादक के अपने विचार। प्रत्येक समाचार-पत्र में संपादक प्रतिदिन ज्वलंत
विषयों पर अपने विचार व्यक्त करता है। संपादकीय लेख समाचार पत्रों की नीति, सोच और विचारधारा को प्रस्तुत करता है। संपादकीय के लिए संपादक स्वयं जिम्मेदार होता है। अतएव संपादक को चाहिए कि वह इसमें संतुलित टिप्पणियाँ ही प्रस्तुत करे।

संपादकीय में किसी घटना पर प्रतिक्रिया हो सकती है तो किसी विषय या प्रवृत्ति पर अपने विचार हो सकते हैं, इसमें किसी आंदोलन की प्रेरणा हो सकती है तो किसी उलझी हुई स्थिति का विश्लेषण हो सकता है।

प्रश्नः 4.
संपादकीय पृष्ठ के बारे में बताइए।
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ को समाचार-पत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ माना जाता है। इस पृष्ठ पर अखबार विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय रखता है। इसे संपादकीय कहा जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार लेख के रूप में प्रस्तुत करते हैं। आमतौर पर संपादक के नाम पत्र भी इसी पृष्ठ पर प्रकाशित किए जाते हैं। वह घटनाओं पर आम लोगों की टिप्पणी होती है। समाचार-पत्र उसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं।

प्रश्नः 5.
अच्छे संपादकीय में क्या गुण होने चाहिए?
उत्तरः
एक अच्छे संपादकीय में अपेक्षित गुण होने अनिवार्य हैं –

  • संपादकीय लेख की शैली प्रभावोत्पादक एवं सजीव होनी चाहिए।
  • भाषा स्पष्ट, सशक्त और प्रखर हो।
  • चुटीलेपन से भी लेख अपेक्षाकृत आकर्षक बन जाता है।
  • संपादक की प्रत्येक बात में बेबाकीपन हो।
  • ढुलमुल शैली अथवा हर बात को सही ठहराना अथवा अंत में कुछ न कहना-ये संपादकीय के दोष माने जाते हैं,अतः संपादक को इनसे बचना चाहिए।

उदाहरण

1. दाऊद पर पाक को और सुबूत

डॉन को सौंप सच्चे पड़ोसी बने जनरल

भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान के चेहरे से नकाब नोच फेंका है। मुंबई बमकांड के प्रमुख अभियुक्तों में से एक और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के पाक में होने के कुछ और पक्के सुबूत मंगलवार को नई दिल्ली ने इस्लामाबाद को सौंपे हैं। इनमें प्रमाण के तौर पर दाऊद के दो पासपोर्ट नंबर पाकिस्तान को सौंपे हैं। यही नहीं, भारत सरकार ने दाऊद के पाकिस्तानी ठिकानों से संबंधित कई साक्ष्य भी जनरल साहब को भेजे हैं। इनमें दो पते कराची के हैं। भारत एक लंबे समय से पाकिस्तान से दाऊद के प्रत्यर्पण की माँग करता आ रहा है। अमेरिका भी बहुत पहले साफ कर चुका है कि दाऊद पाक में ही है। पिछले दिनों बुश प्रशासन ने वांछितों की जो सूची जारी की थी, उसमें दाऊद का पता कराची दर्ज है। दरअसल अलग-अलग कारणों से भारत, अमेरिका और पाकिस्तान के लिए दाऊद अह्म होता जा रहा है। भारत का मानना है कि 1993 में मुंबई में सिलसिलेवार धमाकों को अंजाम देने के बाद, फरार डॉन अब भी पाकिस्तान से बैठकर भारत में आतंकवाद को गिजा-पानी मुहैया करा रहा है। अमेरिका ने दाऊद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों की फेहरिस्त में शामिल कर लिया है। वाशिंगटन का दावा है कि दाऊद कराची से यूरोप और अमेरिकी देशों में ड्रग्स का करोबार भी चला रहा है, लिहाजा उसका पकड़ा जाना बहुत ज़रूरी है। तीसरी तरफ, पाकिस्तान के लिए दाऊद इब्राहिम इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में आतंक फैला रहे संगठनों को जोड़े रखने और उनको पैसे तथा हथियार मुहैया कराने में दाऊद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। खबर तो यहाँ तक है कि दाऊद ने पाकिस्तान की सियासत में भी दखल देना शुरू कर दिया है और यही वह मुकाम है, जब राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को कभी-कभी दाऊद खतरनाक लगने लगता है। फिर भी, वह उसे पनाह दिए हुए है। जब भी भारत दाऊद की माँग करता है, पाक का रटा-रटाया जवाब होता है कि वह पाकिस्तान में है ही नहीं पिछले दिनों परवेज मुशर्रफ ने कोशिश की कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों और इंटरपोल की फेहरिस्तों से दाऊद के पाकिस्तानी पतों को खत्म करा दिया जाए, लेकिन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश इसके लिए तैयार नहीं हुए। भारत के खिलाफ आतंकवाद को पालने-पोसने और शह देने में पाकिस्तान की भूमिका जग-जाहिर है। एफबीआई ने दो दिन पूर्व अमेरिका की एक अदालत में सचित्र साक्ष्यों के साथ एक हलफनामा दायर कर दावा किया है कि पाक के बालाघाट में आतंकी शिविर सक्रिय है। बुधवार को भारत की सर्वोच्च पंचायत संसद में सरकार ने खुलासा किया कि पाक अधिकृत कश्मीर में 52 आतंकी शिविर चल रहे हैं। क्या जॉर्ज बुश इन बातों पर गौर फरमाएँगे? भारत को भी दाऊद चाहिए और अमेरिका को भी, तो क्यों नहीं बुश प्रशासन पाकिस्तान पर जोर डालता है कि वह डॉन को भारत को सौंपकर एक सच्चे पड़ोसी का हक अदा करे। पाकिस्तान के शासन को भी समझना चाहिए, साँप-साँप होता है जिस दिन उनको डसेगा, तब पता चलेगा।

2. धरती के बढ़ते तापमान का साक्षी बना नया साल

उत्तर भारत में लोगों ने नववर्ष का स्वागत असामान्य मौसम के बीच किया। इस भू-भाग में घने कोहरे और कडाके की ठंड के बीच रोमन कैलेंडर का साल बदलता रहा है, लेकिन 2015 ने खुले आसमान, गरमाहट भरी धूप और हल्की सर्दी के बीच हमसे विदाई ली। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं हुआ। ब्रिटेन के मौसम विशेषज्ञ इयन कुरी ने तो दावा किया कि बीता महीना ज्ञात इतिहास का सबसे गर्म दिसंबर था। अमेरिका से भी ऐसी ही खबरें आईं। संयुक्त राष्ट्र पहले ही कह चुका था कि 2015 अब तक का सबसे गर्म साल रहेगा। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में आने वाले दिनों में तापमान ज्यादा नहीं बदलेगा। यानी आने वाले दिनों में भी वैसी सर्दी पड़ने की संभावना नहीं है, जैसा सामान्यतः वर्ष के इन दिनों में होता है। दरअसल, कुछ अंतरराष्ट्रीय जानकारों का अनुमान है कि 2016 में तापमान बढ़ने का क्रम जारी रहेगा और संभवतः नया साल पुराने वर्ष के रिकॉर्ड को तोड़ देगा। इसकी खास वजह प्रशांत महासागर में जारी एल निनो परिघटना है, जिससे एक बार फिर दक्षिण एशिया में मानसून प्रभावित हो सकता है। इसके अलावा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से हवा का गरमाना जारी है। इन घटनाक्रमों का ही सकल प्रभाव है कि गुजरे 15 वर्षों में धरती के तापमान में चिंताजनक स्तर तक वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप हो रहे जलवायु परिवर्तन के लक्षण अब स्पष्ट नज़र आने लगे हैं। आम अनुभव है कि ठंड, गर्मी और बारिश होने का समय असामान्य हो गया है। गुजरा दिसंबर और मौजूदा जनवरी संभवत: इसी बदलाव के सबूत हैं। जलवायु परिवर्तन के संकेत चार-पाँच दशक पहले मिलने शुरू हुए। वर्ष 1990 आते-आते वैज्ञानिक इस नतीजे पर आ चुके थे कि मानव गतिविधियों के कारण धरती गरम हो रही है। उन्होंने चेताया था कि इसके असर से जलवायु बदलेगी, जिसके खतरनाक नतीजे होंगे, लेकिन राजनेताओं ने उनकी बातों की अनदेखी की। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन रोकने की पहली संधि वर्ष 1992 में ही हुई, लेकिन विकसित देशों ने अपनी वचनबद्धता के मुताबिक उस पर अमल नहीं किया। अब जबकि खतरा बढ़ चुका है, तो बीते साल पेरिस में धरती के तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्शियस तक सीमित रखने के लिए नई संधि हुई। नया साल यह चेतावनी लेकर आया है कि अगर इस बार सरकारों ने लापरवाही दिखाई तो बदलता मौसम मानव सभ्यता की सूरत ही बदल देगा।

3. कामकाजी महिलाओं को मज़बूती देता फैसला

मातृत्व अवकाश की अवधि 12 से 26 हफ्ते करने और माँ बनने के बाद दो साल तक घर से काम करने का विकल्प देने का केंद्र का इरादा सराहनीय है। आशा है, इसका चौतरफा स्वागत होगा। सरकार इन प्रावधानों को निजी क्षेत्र में भी लागू करना चाहती है, लेकिन इससे कॉर्पोरेट सेक्टर को आशंकित नहीं होना चाहिए। इन नियमों को लागू कर कंपनियाँ न सिर्फ समाज में लैंगिक समता लाने में सहायक बनेंगी, बल्कि गहराई से देखें तो उन्हें महसूस होगा कि कामकाजी महिलाओं के लिए अधिक अनुकूल स्थितियाँ खुद उनके लिए भी फायदेमंद हैं। अक्सर माँ बनने के साथ महिलाओं के कॅरियर में बाधा आ जाती है। अनेक महिलाएँ तब नौकरी छोड़ देती हैं। इसके साथ ही उन्हें ट्रेनिंग और तजुर्बा देने में कंपनियाँ, जो निवेश करती हैं वह बेकार चला जाता है। असल में अनेक कंपनियाँ यही सोचकर नियुक्ति के समय प्रतिभाशाली महिला उम्मीदवारों का चयन नहीं करतीं। इस तरह वे श्रेष्ठतर मानव संसाधन से वंचित रह जाती हैं। नए प्रस्ताव लागू होने पर महिलाएँ नौकरी छोड़ने पर मजबूर नहीं होंगी। साथ ही ये नियम बड़े सामाजिक उद्देश्यों के अनुरूप भी हैं। मसलन, बाल विकास की दृष्टि से जीवन के आरंभिक छह महीने बेहद अहम होते हैं। उस दौरान शिशु को माता-पिता के सघन देखभाल की आवश्यकता होती है, इसीलिए अब विकसित देशों में पितृत्व अवकाश भी दिया जाने लगा है, ताकि नवजात बच्चों की तमाम शारीरिक, मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक ज़रूरतें पूरी हो सकें। फिर जब आधुनिक सूचना तकनीक भौतिक दूरियों को अप्रासंगिक करती जा रही है, तो (जहाँ संभव हो) घर से काम करने का विकल्प देने में किसी संस्था/कंपनी को कोई नुकसान नहीं होगा। केंद्रीय सिविल सर्विस सेवा (अवकाश) नियम-1972 के तहत सरकारी महिला कर्मचारियों को छह महीने का मातृत्व अवकाश पहले से मिल रहा है। अब दो साल तक घर से काम करने का विकल्प सरकारी और निजी, दोनों क्षेत्रों की नई माँ बनीं महिला कर्मचारियों को देना प्रगतिशील कदम माना जाएगा। .इससे भारत उन देशों में शामिल होगा, जहाँ महिला कर्मचारियों के लिए उदार कायदे अपनाए गए हैं। 42 देशों में 18 हफ्तों से अधिक मातृत्व अवकाश का प्रावधान लागू है। वहाँ का अनुभव है कि इन नियमों से सामाजिक विकास को बढ़ावा मिला, जबकि उत्पादन या आर्थिक विकास पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं हुआ। बेशक ऐसा ही भारत में भी होगा। अत: नए नियमों को लागू करने की तमाम औपचारिकताएँ सरकार को यथाशीघ्र पूरी करनी चाहिए।

4. जीवन गढ़ने वाला साहित्यकार

जिन्होंने अपने लेखन के जरिये पिछले करीब पाँच दशकों से गुजराती साहित्य को प्रभावित किया है और लेखन की करीब सभी विधाओं में जिनकी मौजूदगी अनुप्राणित करती है, उन रघुवीर चौधरी को इस वर्ष के ज्ञानपीठ सम्मान के लिए चुनने का फैसला वाकई उचित है। गीता, गाँधी, विनोबा, गोवर्धनराम त्रिपाठी और काका कालेलकर ने उन्हें विचारों की गहराई दी, तो रामदरश मिश्र से उन्होंने हिंदी संस्कार लिया। विज्ञान और अध्यात्म, यथार्थ तथा संवेदना के साथ व्यंग्य की छटा भी उनके लेखन में दिखाई देती है। रघुवीर चौधरी हृदय से कवि हैं। विचारों की गहराई और तस्वीरों-संकेतों का सार्थक प्रयोग अगर तमाशा जैसी उनकी शुरुआती काव्य कृतियों में मिलता है, तो सौराष्ट्र के जीवन पर उनके काव्य में लोकजीवन की अद्भुत छटा दिखती है। अलबत्ता व्यापक पहचान तो उन्हें जीवन की गहराइयों और रिश्तों की फाँस को परिभाषित करते उनके उपन्यासों ने ही दिलाई। उनके उपन्यास अमृता को गुजराती साहित्य में एक मोड़ घुमा देने वाली घटना माना जा सकता है। इसके जरिये गुजराती साहित्य में अस्तित्ववाद की प्रभावी झलक तो मिली ही, पहली बार गुजराती साहित्य में परिष्कृत भाषा की भी शुरुआत हुई। गुजराती भाषा को मांजने में उनका योगदान दूसरे किसी से भी अधिक है। उपर्वास त्रयी ने रघुवीर चौधरी को ख्याति के साथ साहित्य अकादमी सम्मान दिलाया, तो रुद्र महालय और सोमतीर्थ जैसे ऐतिहासिक उपन्यास मानक बनकर सामने आए। पर रघुवीर चौधरी का परिचय साहित्य के दायरे से बहुत आगे जाता है। भूदान आंदोलन से बहुत आगे जाता है। भूदान आंदोलन से लेकर नवनिर्माण आंदोलन तक में भागीदारी उनके एक सजग-जिम्मेदार नागरिक होने का परिचायक है, जिसका सुबूत अखबारों में उनके स्तंभ लेखन से भी मिलता है। साहित्य अकादमी से लेकर प्रेस काउंसिल और फ़िल्म फेस्टिवल तक में उनकी भूमिका उनकी रुचि वैविध्य का प्रमाण है। आरक्षण पर उन्होंने किताब लिखी है; हालांकि आरक्षण के मामले में गांधी और अंबेडकर के समर्थक रघुवीर चौधरी पाटीदार आंदोलन के पक्ष में नहीं हैं। अपने गाँव को सौ फीसदी साक्षर बनाने से लेकर कृषि कर्म में उनकी सक्रियता भी उन्हें गांधी की माटी के एक सच्चे गांधी के तौर पर प्रतिष्ठित करती है।

5. अखंड भारत की सुंदर कल्पना

भाजपा महासचिव राम माधव ने अल जजीरा को दिए एक इंटरव्यू में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश को मिलाकर अखंड भारत के निर्माण की जो इच्छा जताई है, वह नई न होने के बावजूद चौंकाती है, तो उसकी वजह है। तीनों देशों को एक करने की इच्छा बहुतेरे लोग जताते हैं। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव तो जब-तब भारत-पाक-बांग्लादेश महासंघ की बात करते हैं लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस संकल्पना के पीछे, राम माधव पिछले साल तक भी जिसके प्रवक्ता थे, वस्तुतः वृहद हिंदू राष्ट्र की वह संकल्पना है, जो विभाजन के कारण साकार नहीं हो सकी लेकिन भारत को हिंदू राष्ट्र मानने वाले राम माधव यह उम्मीद भला कैसे कर सकते हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम बहुसंख्यक मुल्क आपसी रजामंदी से संघ और भाजपा की इच्छा के अनुरूप वृहद हिंदू राष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए तैयार हो जाएँगे? यही नहीं, राम माधव को इस मुद्दे पर संघ और भाजपा के उन नेताओं की भी राय ले लेनी चाहिए, जो केंद्र की मौजूदा सरकार की रीति-नीतियों पर सवाल उठाने वाले लोगों को पाकिस्तान भेज देने की बात करते हैं। अलबत्ता इच्छा चाहे वृहद हिंदू राष्ट्र की संकल्पना को साकार करने की हो या भारत-पाक-बांग्लादेश महासंघ बनाने की, यथार्थ के आईने में यह व्यर्थ की कवायद ही ज़्यादा है। आज़ादी के बाद भारत ने लोकतांत्रिक परंपरा को मज़बूत करते हुए विकास के रास्ते पर लगातार कदम बढ़ाया, जबकि पाकिस्तान सामंतवादी व्यवस्था में जकड़ा रहा, जिसके सुबूत सैन्यतंत्र की मज़बूती, लोकतंत्र की कमजोरी और कट्टरवाद तथा आतंकवाद के मज़बूत होने के रूप में दिखाई पड़ी। बांग्लादेश ने ज़रूर अपने स्तर पर कमोबेश प्रगति की, पर कट्टरता के मामले में वह पीछे नहीं है। लिहाजा इन दो देशों को अपने साथ जोड़ने से भारत पर बोझ ही बढ़ेगा। जब सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात करते हुए छोटी इकाइयों को तरजीह दी जा रही है, तब तीन देशों का महासंघ प्रशासनिक दृष्टि से कितनी बड़ी चुनौती होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। लिहाजा यथार्थ को स्वीकारते हुए इन तीनों देशों के आपसी रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश करना ही अधिक व्यावहारिक लगता है।

6. संपादकीय

प्रत्येक जीव में अपने प्रति सुरक्षा का भाव होना एक सहज वृत्ति है। पराक्रमी और शक्तिशाली व्यक्ति या जीव से लेकर निरीह प्राणी तक, जिस किसी में भी चेतना होती है, सभी अपने लिए एक सुरक्षित स्थान की तलाश या अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण की जद्दोजहद में जुटे दिखाई पड़ते हैं। यदि हम अपने चारों ओर देखें तो, अपने दैनिक जीवन में ही इसके कई उदाहरण दिखाई पड़ेंगे लेकिन सुरक्षित और अनुकूल परिस्थिति का निर्माण बिना जोखिम उठाये संभव नहीं होता है। यदि किसी को सभी प्रकार से अनुकूल वातावरण बिना किसी संघर्ष के मिल भी जाए तो वह जीवन अर्थहीन माना जाएगा। ध्यान रहे कि संघर्ष से न डरने वालों का जीवन सुगमतापूर्वक व्यतीत सदैव समस्याओं की दलदल में फँसता रहता है। कर्मपथ पर सबसे अधिक भरोसा स्वयं पर करना होता है, लेकिन परिस्थितियाँ आने पर दूसरों के सहयोग की भी ज़रूरत होती है। लेकिन यह सनद रहे कि केवल दूसरों से ही सहयोग लेना उचित नहीं होता बल्कि सहयोग देने के लिए भी तत्पर रहना होता है। हालांकि कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें दूसरों से सहयोग लेने की आदत पड़ जाती है, जो उन्हें पराश्रित बना देती है और इस प्रकार व्यक्ति न केवल कमज़ोर होता जाता है बल्कि स्वयं के कौशलों को भी क्षीण करता जाता है। लक्ष्य की ओर बढ़ते हर युवा को यह समझना चाहिए कि जीवन में आदर्श परिस्थितियों जैसा कभी कुछ नहीं होता। कभी धाराएँ अपनी दिशा में तो कभी प्रतिकूल दिशा में होती है। ऐसे में, हर व्यक्ति का यही कर्तव्य है कि वह बगैर हिम्मत हारे, पूरी क्षमता से अपनी पतवार चलाता रहे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व्यक्ति के आत्मबल पर खूब जोर देते थे। याद रहे कि मुश्किल परिस्थितियों में व्यक्ति का आत्मबल ही सबसे अचूक हथियार होता है। हमें अपने आत्मबल को इतना ऊँचा और अपने संकल्प को इतना दृढ़ बना लेना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में हमारी मानसिक शांति पर आँच न आ सके। हर युवा को यह समझ लेना चाहिए कि कोई भी परिस्थिति इतनी कठिन नहीं होती कि वह व्यक्ति के अस्तित्व पर हावी हो जाए।

7. व्यक्ति पूजा की संस्कृति से बाहर निकलें पार्टियाँ

अपने 131वें स्थापना दिवस पर कांग्रेस पार्टी को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। पार्टी की महाराष्ट्र इकाई की पत्रिका ‘कांग्रेस दर्शन’ में छपे लेखों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के अतीत को उकेरा गया और जवाहर लाल नेहरू की कुछ नीतियों की ओलाचना की गई। नेहरू के संबंध में कहा गया कि अगर वे सरदार वल्लभभाई पटेल की सलाह से चलते तो चीन, तिब्बत तथा जम्मू-कश्मीर के मामलों में स्थितियाँ कुछ अलग होतीं, लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। ऐसी राय रखने वाले लोग हमेशा मौजूद रहे हैं। यह भी सही है कि प्रथम प्रधानमंत्री के अनेक समकालीन नेता तथा इतिहासकार यह नहीं मानते-जैसाकि ‘कांग्रेस दर्शन’ के लेख में कहा गया है-कि नेहरू और पटेल के संबंध तनावपूर्ण थे या उनमें संवादहीनता थी। वैसे गुजरे दौर के बारे में बौद्धिक एवं राजनीतिक दायरे में अलग-अलग समझ सामने आए, इसमें कुछ अस्वाभाविक नहीं है। कांग्रेस के लिए बेहतर होता कि वह ऐसे मामलों पर पार्टी के अंदर सभी विचारों को व्यक्त होने का मौका देती। उससे पार्टी का वैचारिक-यहाँ तक सांगठनिक आधार भी-अधिक व्यापक होता। हालांकि, सोनिया गांधी के बारे में कही गई बातों के पीछे दुर्भावना तलाशी जा सकती है, लेकिन बेहतर नज़रिया यह होगा कि पार्टी इन बातों का सीधे सामना करे, इसलिए कि अगर (जैसाकि लेख में अध्यक्ष का कोई दोष नहीं है। यह कहना कि पार्टी में शामिल होने के महज 62 दिन बाद वे कांग्रेस की अध्यक्ष बन गईं, सोनिया से कहीं ज्यादा कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति पर टिप्पणी है, जिसकी एक परिवार पर निर्भरता जग-जाहिर है लेकिन ऐसा अब ज़्यादातर पार्टियों के साथ हो चुका है। दरअसल, अपने देश में राजनीतिक दलों ने अपने नेता को ‘सुप्रीमो’ यानी सबसे और तमाम सवालों से ऊपर मानने तथा वंशवादी उत्तराधिकार की ऐसी संस्कृति अपना रखी है, जिससे उनके भीतर लोकतांत्रिक विचार-विमर्श अवरुद्ध हो गया है। इस कारण उन दलों को गाहे-ब-गाहे शार्मिंदगियों से भी गुजरना पड़ता है। फिलहाल, ऐसा कांग्रेस के साथ हुआ है। इस पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया अगर ‘कांग्रेस दर्शन’ के संपादक की बर्खास्तगी तक सीमित रह गई, तो यही कहा जाएगा कि उसने असली समस्या से आँखें चुरा लीं। सही सबक यह होगा कि पार्टी अपने भीतर इतिहास और वैचारिक सवालों पर खुली चर्चा को प्रोत्साहित करे तथा किसी पूर्व या वर्तमान नेता को आलोचना से ऊपर न माने।

8. हिंसक आंदोलनों पर अब लगाम लगाने का वक्त

मामला गुजरात का था, लेकिन हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा और तोड़फोड़ की ताजा पृष्ठभूमि में यह सुप्रीम कोर्ट के विचारार्थ आया। उद्योगपतियों की संस्था एसोचैम का अनुमान है कि हरियाणा में इस आंदोलन के दौरान 25,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ। पिछले वर्ष गुजरात में पटेल आरक्षण आंदोलन के समय भी बड़े पैमाने पर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया था। ऐसा ही राजस्थान में गुर्जर आंदोलन के वक्त हुआ। ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण पाने का जाट अथवा दूसरी जातियों का दावा कितना औचित्यपूर्ण है, यह दीगर सवाल है। मगर लोग अराजकता जैसी हालत पैदा करने पर उतर आएँ, तो उसे लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। लोकतांत्रिक समाज में वह सिरे से अस्वीकार्य होना चाहिए। यह बात दरअसल तमाम किस्म के आंदोलनों पर लागू होती है, इसलिए यह संतोष की बात है कि अब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों को अति-गंभीरता से लिया है। जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ पटेल समुदाय के नेता हार्दिक पटेल पर दायर राजद्रोह मामले की सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान उसने यह महत्त्वपूर्ण टिप्पणी की, ‘हम लोगों को राष्ट्र की संपत्ति जलाने और आंदोलन के नाम पर देश को बंधक बनाने की इजाजत नहीं दे सकते।’ कोर्ट ने कहा कि वह सार्वजनिक संपत्ति को क्षतिग्रस्त करने वाले लोगों को दंडित करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करेगा। न्यायाधीशों ने संकेत दिया कि इसके तहत संभव है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने वाले लोगों को क्षतिपूर्ति देनी पड़े। असल में यातायात रोकने से होने वाली दिक्कतों पर भी इसके साथ ही विचार करने की आवश्यकता है। उससे हजारों लोगों के समय और धन की बर्बादी होती है और उन्हें एवं उनके परिजनों को गहरी मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ती है। अपनी माँग मनवाने के लिए दूसरों को ऐसी मुसीबत में डालने का यह चलन खासकर आरक्षण की माँग को लेकर होने वाले आंदोलनों में बढता गया है। इस पर तुरंत रोक लगाने की ज़रूरत है। सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख से अब इस दिशा में प्रभावी पहल की उम्मीद बंधी है। वैसे बेहतर होता राजनीतिक दल आम-सहमति बनाते और संसद इस बारे में एक व्यापक कानून बनाती। किंतु वोट बैंक की चिंता में रहने वाली पार्टियों से यह उम्मीद करना बेमतलब है, इसीलिए अनेक दूसरे मामलों की तरह इस मुद्दे पर भी आशा न्यायपालिका से ही है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्नः 1.
संपादक के दो प्रमुख कार्य बताइए। (CBSE-2011, 2012, 2015)
उत्तरः
संपादक के दो प्रमुख कार्य हैं –
(क) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त समाचारों का चयन कर प्रकाशन योग्य बनाना।
(ख) तात्कालिक घटनाओं पर संपादकीय लेख लिखना।

प्रश्नः 2.
संपादकीय किसे कहते हैं? (CBSE-2009, 2010, 2014)
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ पर तत्कालीन घटनाओं पर संपादक की टिप्पणी को संपादकीय कहा जाता है। इसे अखबार की आवाज़ माना जाता है।

प्रश्नः 3.
संपादकीय में लेखक का नाम क्यों नहीं दिया जाता? (CBSE-2009, 2014)
उत्तरः
संपादकीय को अखबार की आवाज़ माना जाता है। यह व्यक्ति की टिप्पणी नहीं होती। अपितु समूह का पर्याय होता है। इसलिए संपादकीय में लेखक का नाम नहीं दिया जाता।

प्रश्नः 4.
संपादकीय का महत्त्व समझाइए। (CBSE-2016)
उत्तरः
संपादकीय तत्कालीन घटनाक्रम पर समूह की राय व्यक्त करता है। वह निष्पक्ष होकर उस पर अपने सुझाव भी देता है। मज़बूत लोकतंत्र में संपादकीय की महती आवश्यकता है।

प्रश्नः 5.
समाचार पत्र के किस पृष्ठ पर विज्ञापन देने की परंपरा नहीं है?
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ।

प्रश्नः 6.
सामान्यतः किस दिन संपादकीय नहीं छपता?
उत्तरः
रविवार।

प्रश्नः 7.
संपादकीय का उददेश्य क्या है?
उत्तरः
संपादकीय का उद्देश्य विषय विशेष पर अपने विचार पाठक व सरकार तक पहुँचाना है।

प्रश्नः 8.
संपादकीय पृष्ठ पर क्या-क्या होता है?
उत्तरः
संपादकीय, संपादक के नाम पत्र, आलेख, विचार आदि।

प्रश्नः 9.
भारत में संपादकीय पृष्ठ पर कार्टून न छपने का क्या कारण है?
उत्तरः
कार्टून हास्य व्यंग्य का प्रतीक है। यह संपादकीय पृष्ठ की गंभीरता को कम करता है।

अभ्यास प्रश्नः

प्रश्नः 1. संपादन के सिद्धांतों में ‘तथ्य परकता’ (एक्यूरेसी) का क्या आशय है? (CBSE-2017)
प्रश्नः 2. संपादक का मुख्य कार्य क्या है? (CBSE-2017)

( ग. रिपोर्ट)

प्रश्नः 1.
रिपोर्ट के विषय में बताइए।
उत्तरः
‘रिपोर्ट’ शब्द का हिंदी पर्याय ‘प्रतिवेदन’ है। समाचार संकलित करके उसे लिखकर प्रेस में भेजना रिपोर्टिंग कहलाता है। ज्यादातर यह कार्य फील्ड में जाकर किया जाता है। एक संवाददाता सेमिनार, रैली अथवा संवाददाता सम्मेलन से विविध प्रकार की खबरें एकत्रित करके उन्हें अपने कार्यालय में प्रेषित कर देता है। वास्तव में रिपोर्ट एक प्रकार की लिखित विवेचना होती है जिसमें किसी संस्था, सभा, दल, विभाग अथवा विशेष आयोजन की तथ्यों सहित जानकारी दी जाती है। रिपोर्टिंग का उद्देश्य संबंधित व्यक्ति, संस्था, परिणाम, जाँच अथवा प्रगति की सही एवं पूर्ण जानकारी देना है।

प्रश्नः 2.
रिपोर्टिंग के प्रकार बताइए।
उत्तरः
रिपोर्टिंग कई प्रकार की होती है; यथा –

  • राजनीतिक, साहित्यिक, सामाजिक, आर्थिक भाषणों एवं सम्मेलनों की रिपोर्ट।
  • अदालतों की रिपोर्ट।
  • आपराधिक मामलों की रिपोर्ट।
  • प्रेस कांफ्रेंस या संवाददाता सम्मेलन की रिपोर्ट।
  • युद्ध एवं विदेश यात्रा की रिपोर्ट।
  • प्राकृतिक आपदा, दुर्घटना, दंगा आदि की रिपोर्ट।
  • संगीत सम्मेलन व कला संबंधी रिपोर्ट।
  • खोजी समाचारों की रिपोर्ट।
  • व्यावसायिक प्रगति अथवा स्थिति की रिपोर्ट।
  • पुस्तक प्रदर्शनी, चित्र प्रदर्शनी आदि की रिपोर्ट।

प्रश्नः 3.
अच्छी रिपोर्टिंग के लिए अपेक्षित गुण बताइए।
उत्तरः
एक रिपोर्टिंग तभी अच्छी और उपयोगी बन सकती है, जब उसमें गुण हों। अच्छी रिपोर्टिंग के लिए निम्नलिखित गुण होना अनिवार्य है –

  • रिपोर्टर के डेस्क से संबंध अच्छे होने चाहिए।
  • रिपोर्ट पूरी तरह स्पष्ट और पूरी हो।
  •  रिपोर्ट की भाषा न आलंकारिक हो, न ही मुहावरेदार।
  • रिपोर्ट में सूचना भर होनी चाहिए।
  • किसी भी वाक्य के एक-से अधिक अर्थ न निकलें।
  • भाषा में प्रथम पुरुष का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
  • जो भी तथ्य दिए जाएँ वे विश्वसनीय एवं प्रामाणिक हों।
  • रिपोर्ट संक्षिप्त हों।
  • उन्हीं तथ्यों का समावेश करना चाहिए जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण हों।
  • तथ्यों का तर्क और क्रम सुविधानुसार हों।
  • रिपोर्ट का शीर्षक स्पष्ट और सुरुचिपूर्ण हों।
  • शीर्षक ऐसा हो जो मुख्य विषय को रेखांकित करे।
  • रिपोर्ट में प्रत्येक तथ्य और विषय को अलग अनुच्छेद में लिखा जाना चाहिए।
  • प्रतिवेदन के अंत में सभा अथवा दल अथवा संस्था के अध्यक्ष को हस्ताक्षर कर देने चाहिए।

प्रश्नः 4.
रिपोर्टिंग लिखने की विधि बताइए।
उत्तरः
रिपोर्टिंग लिखने में निम्नलिखित विधियों को अपनाना चाहिए –

  • सर्वप्रथम संस्था का नाम लिखा जाना चाहिए।
  • बैठक सम्मेलन का उद्देश्य स्पष्ट किया जाना चाहिए।
  • आयोजन स्थल का नाम लिखें।
  • आयोजन की तिथि और समय की सूचना दी जानी चाहिए।
  • कार्यक्रम में उपस्थित लोगों की जानकारी दी जाए।
  • कार्यक्रम एवं गतिविधियों की जानकारी दी जाए।
  • यदि भाषण है तो उसके मुख्य बिंदुओं के बारे में बताया जाए।
  • निर्णयों की जानकारी भी दी जानी चाहिए।
  • प्रतियोगिता का परिणाम आया हो तो उसका भी उल्लेख किया जाना चाहिए।

प्रश्नः 5.
रिपोर्ट की विशेषताएँ बताइए।
उत्तरः
रिपोर्ट अपने आप में एक ऐसा दस्तावेज़ है जिसका महत्त्व मात्र समसामयिक नहीं होता अपितु संबंधित क्षेत्र में सुदूर भविष्य तक भी इसकी उपयोगिता रहती है। रिपोर्ट की विशेषताओं का विवेचन नीचे किया जा रहा है –

1. कार्य योजना-रिपोर्टर को पहले पूरी योजना बनानी चाहिए। विषय का अध्ययन करके उसके उद्देश्य को समझना चाहिए। इसकी प्रारंभिक रूपरेखा बनाने से रिपोर्ट लिखने में सहायता मिलती है।

2. तथ्यात्मकता-रिपोर्ट तथ्यों का संकलन होता है। इसलिए सबसे पहले विषय से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी लेनी पड़ती है। इसके लिए पुराने रिपोर्टों, फाइलों, नियम-पुस्तकों, प्रपत्रों के द्वारा आवश्यक सूचनाएँ इकट्ठी की जाती हैं। सर्वेक्षण तथा साक्षात्कार द्वारा आँकड़ों और तथ्यों को प्राप्त किया जाता है। इन तथ्यों को रिकार्ड किया जाए और आवश्यकता पड़े तो इनके फोटो भी लिए जा सकते हैं।

3. प्रामाणिकता-तथ्यों का प्रामाणिक होना अत्यंत आवश्यक है। किसी विषय, घटना अथवा शिकायत आदि के बारे में जो तथ्य जुटाए जाएँ, उनकी प्रामाणिकता से रिपोर्ट की सार्थकता बढ़ जाती है।

4. निष्पक्षता-रिपोर्ट एक प्रकार से वैधानिक अथवा कानूनी दस्तावेज़ बन जाती है। इसलिए रिपोर्टर का निर्णय विवेकपूर्ण होना अत्यंत आवश्यक है। रिपोर्ट लिखते समय या प्रस्तुत करते समय रिपोर्टर प्रत्येक तथ्य, वस्तुस्थिति, पक्ष-विपक्ष, मत-विमत का निष्पक्ष भाव से अध्ययन करे और फिर उसके निष्कर्ष निकाले। इस प्रकार प्रत्येक स्थिति में उसका यह नैतिक दायित्व हो जाता है कि वह नीर-क्षीर विवेक का परिचय दे। इससे रिपोर्ट उपयोगी होगा और मार्गदर्शक भी सिद्ध होगा।

5. विषय-निष्ठता-रिपोर्ट का संबंधित प्रकरण पर ही केंद्रित होना अपेक्षित है। यदि किसी विषय-विशेष पर रिपोर्ट लिखा जाना है तो उससे संबंधित तथ्यों, कारणों और सामग्री आदि तक ही सीमित रखना चाहिए। इसमें प्रकरण को एक सूत्र की तरह प्राप्त तथ्यों में पिरोया जाए, जिससे प्रकरण अपने-आप में स्पष्ट होगा।

6. निर्णयात्मकता-रिपोर्ट मात्र विवरण नहीं होती। इसलिए रिपोर्टर को संबंधित विषय का विशेष जानकार होना आवश्यक है। यदि वह विशेषज्ञ होगा तो साक्ष्यों और तथ्यों का सही या गलत अनुमान लगा पाएगा तथा उनका विश्लेषण करने में समर्थ होगा। साथ ही वह प्राप्त तथ्यों, साक्ष्यों और तर्कों का सम्यक परीक्षण कर पाएगा और अपने सुझाव तथा निर्णय भी दे पाएगा।

7. संक्षिप्तता और स्पष्टता-रिपोर्ट लिखते समय यह ध्यान रखा जाए कि उसमें अनावश्यक विस्तार न हो। प्रत्येक तथ्य या साक्ष्य का संक्षिप्त और सुस्पष्ट विवरण दिया जाए। यदि रिपोर्ट काफी लंबा हो गया हो तो उसका सार दिया जाए जिससे प्राप्त तथ्यों और सुक्षावों पर ध्यान तुरंत आकृष्ट हो सके। लेकिन अस्पष्ट सूचना या विवरण से उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता। अत: रिपोर्ट संक्षिप्त होते हुए भी अपने आप में स्पष्ट और पूर्ण होनी चाहिए।

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