NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 12 हँसी की चोट, सपना, दरबार
Class 11 Hindi Chapter 12 Question Answer Antra हँसी की चोट, सपना, दरबार
प्रश्न 1.
‘हैसी की चोट’ सवैये में कवि ने किन पंच तत्वों का वर्णन किया है तथा वियोग में वे किस प्रकार विदा होते हैं ?
उत्तर :
इस सैैये में कवि ने पृथ्वी, जल, वायु, तेज तथा आकाश तत्वों का वर्णन किया है। प्रेम में विरह की पीड़ा बहुत दुःखदायी होती है जो श्मशान की आग से भी बुरी होती है। श्मशान की आग तो कुछ ही समय में सब कुछ जला कर मिटा देती है लेकिन वियोग की पीड़ा तो तिल-तिल कर जीवन लेती है। गोपी ने जिस दिन से श्रीकृष्ण को अपनी तरफ़ मुसकराकर देखते हुए देखा है उस दिन से वह वियोग की आग में जल रही है। वह सूख-सी गई है। उसकी साँसों का आना-जाना बंद हो गया है। आँखों से अब आँसू बहने बंद हो गए हैं। उसकी आँखों में आँसू शेष बचे ही नहीं हैं। उसके शरीर का तेज समाप्त हो चुका है। विरह-अग्नि ने उसके शरीर की कृशता को अत्यधिक बढ़ा दिया है। उसके शरीर के पाँचों तत्व-पृथ्वी, जल, वायु, तेज तथा आकाश धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। प्रिय से मिलने की आशा में जीवन रूपी आकाश तत्व को अभी बनाए हुए है। गोपी का शरीर सूख गया है; तेज समाप्त हो गया है तथा जल तत्व खत्म हो गया है।
प्रश्न 2.
‘हँसी की चोट’ सवैये की अंतिम पंक्ति में यमक और अनुप्रास का प्रयोग करके कवि क्या मर्म अभिव्यंजित करना चाहता है ?
उत्तर :
इस पंक्ति में कवि ने यमक और अनुप्रास के प्रयोग के द्वारा अपने कथन में चमत्कार तथा गंभीरता उत्पन्न करते हुए स्पष्ट करना चाहता है कि जिस दिन से नायक ने नायिका की ओर हँसकर देखा है उस दिन से ही नायिका की हँसी समाप्त हो गई है। वह नायक के विरह में जल रही है। उस दिन से ही नायिका का हुदय नायक ले गया है।
प्रश्न 3.
नायिका सपने में क्यों प्रसन्न थी और वह सपना कैसे टूट गया ?
उत्तर :
जब नायक ने नायिका के सपने में स्वयं आकर यह कहा कि आओ झूला झूलने चलें, तो अपने प्रियतम को सामने देख और उसका निमंत्रण पाकर वह फूली नहीं समाई थी लेकिन जैसे ही उसकी आँखें खुलीं वैसे ही उसका सपना टूट गया था। वहाँ न तो श्रीकृष्ण थे और न ही आकाश में घने बादल थे। उसकी आँखें आँसुओं से भर गई थीं।
प्रश्न 4.
‘सपना’ कवित्त का भाव-सँददर्य लिखिए।
उत्तर :
‘सपना’ कवित्त में गोपी का श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम और मिलन की इच्छा का भाव व्यक्त हुआ है। मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि मानव के अब चेतन मन में छिपी बातें ही सपनों के रूप में प्रकट होती हैं। गोपी श्रीकृष्ण से मिलना चाहती थी; वर्षा में उनके साथ झूले पर झूलना चाहती थी और उनकी निकटता को अनुभव करना चाहती थी। रिमझिम वर्षा की झड़ी लगी थी। घने काले बादल आकाश में उमड़–ुमड़कर आए थे। श्रीकृष्ण ने स्वयं गोपी के पास आकर कहा कि आओ, आज झुला झूलने चलें। गोपी यह सुन फूली नहीं समाई। प्रसन्नता में भरकर जैसे ही वह उठी, उसकी नींद खुल गई। उसके जागने से उसके भाग्य ही मानों सो गए। न तो आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे और न ही वहाँ श्रीकृष्ण थे। वियोग की पीड़ा के कारण उसकी ऑँखें आँसुओं से भर गई थीं।
प्रश्न 5.
‘दरबार’ सवैये में किस प्रकार के वातावरण का वर्णन किया गया है ?
उत्तर :
देव के द्वारा रचित इस सवैया में रीतिकालीन पतनशील सामंती व्यवस्था और दरबारी वातावरण की ओर संकेत किया गया था। दरबारियों को अपने राजा की हाँ में हाँ मिलानी पड़ती थी। तत्कालीन शासक बुद्धिहीन और भ्रष्ट बुद्धि थे। मूखों वाली हरकतें करना और देखना उन्हें प्रिय था और दरबारियों को भी वैसा ही करना पड़ता था। बुद्धिमान दरबारी सब देख-सुनकर चुप रहते थे। छोटी, तुच्छ और हीन बातों को महत्व दिया जाता था। व्यर्थ ही तुच्छ और हेय बातें बुद्धिहीन शासकों को अच्छी लगती थीं। वे ओछे और बाज़ारू प्रवृत्ति के थे। उन्हें अच्छो-बुरे के बीच अंतर करना ही नहीं आता था। वे समझाने पर समझते नहीं थे और सुनाने पर सुनते नहीं थे। उनकी जैसी पसंद थी, वे वैसा ही सुनते थे। इसलिए अपनी कला और प्रतिभा को छोड़ सारी रात वे राजा की पसंद के कारण नाचते रहते थे।
प्रश्न 6.
दरबार में गुणग्राहकता और कला की परख को किस प्रकार अनदेखा किया जाता है ?
उत्तर :
‘दरबार’ सवैये में कवि ने बताया है कि ‘साहिब’ तत्कालीन शासक है जो बुद्धिमान और विवेकी नहीं है। तुच्छ सोच और हेय मानसिकता का परिचायक होने के कारण उसके दरबार का वातावरण बिगड़ चुका है। वह अपने दखबारियों की अच्छी सलाह न सुनता है और न ही मानता है। ओछी और बाजारू बातें ही उसे अच्छी लगती हैं। गहरी सोच और कठिन विषयों पर तो वह विचार करता ही नहीं इसलिए दरबार में गुणवान तथा कलावान व्यक्ति की अनदेखी की जाती है तथा चापलूसी को प्रधानता दी जाती है।
प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि।
(ख) सोए गए भाग मेरे जानि वा जगन में।
(ग) वेई छाई बूंदें मेरे आसु हूवै दृगन में।
(घ) साहिब अंध, मुसाहिब मूक, सभा बहिरी।
उत्तर :
(क) नायक ने जब से नायिका को हैसकर देखा है तब से नायिका को ऐसा लगता है जैसे उस नायक ने हैसकर देखने मात्र से ही उस का हदयय चुरा लिया है। वह नायक से मिलने के लिए व्याकुल रहने लगती है और निरंतर उससे नहीं मिल पाने की वियोगाग्नि में जलती रहती है।
(ख) लाक्षणिकता से युक्त इस पंक्ति में गोपिका की पीड़ा स्पष्ट रूप से व्यक्त हुई है। जब वह सो रही थी और सपने में श्रीकृष्ण की रूप माधुरी और सान्निध्य को पा रही थी तब संयोग अवस्था के सुखों में डूबी हुई थी लेकिन जगते ही; आँखें खोलते ही उसका सपना टूट गया। जब आँखें खुलीं तो न तो वहाँ श्रीकृष्ण थे और न ही आकाश में छाए बादल। वह तो दुख के सागर में मानो डूब-सी गई। उसकी आँखें औसुओं से भर गई । उसकी किस्मत उसके जागने से सो गई। हर मानव अपने सपनों में अवचेतन के कारण उन सुखों को पा लेता है जो चाहे उसे जीवन में उपलब्ध न हो। गोपिका श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी पर उन्हें प्राप्त नर्ही कर पा रही थी इसलिए सपने में उसे अपने भाग्य पर गर्व हो रहा था कि उसने श्रीकृष्ण को पा लिया था, पर नींद खुलते ही जीबन का यथार्थ सामने आ गया। उसके जागने से उसके भाग्य ही मानो सो गए।
(ग) श्रीकृष्ण ने गोपिका को उसके सपने में जब झूले पर झूलने का आग्रह किया था तब बाहर रिमझिम बारिश की झड़ी लगी हुई थी। गोपिका की नींद खुलते ही उसे वास्तविकता का पता चला कि वह तो सपना देख रही थी। न तो बाहर वर्षा हो रही थी और न ही श्रीकृष्ण वहाँ थे। उसकी आँखों से आँसू बह निकले। गोपी को लगा कि वही वर्षा की बूँदे उसकी आँखों में ऑसू की बूँदों के रूप में दिखाई देने लगी हैं।
(घ) तत्कालीन विलासी तथा चापलूसी-पसंद राजाओं की दशा का वर्णन करते हुए कवि लिखता है कि सद्बुद्धि और विवेक से रहित राजा अक्ल का अंधा है। उसके चापलूस दरबारी अच्छा-बुरा देखते हुए भी राजा की जी हजूरी करने के कारण चुप रहते हैं तथा सभा में उपस्थित अन्य लोग भी राजा की नाराजगी मोल न लेने के कारण देखते-सुनते हुए भी बहरे-गूँगे बने रहते हैं तथा कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नही करते।
प्रश्न 8.
देव ने दरबारी चाटुकारिता और दंभपूर्ण वातावरण पर किस प्रकार व्यंग्य किया है ?
उत्तर :
रीतिकालीन महाकवि देव स्वयं दरबारी कवि थे। जीवनभर वे अनेक राजाश्रयों को प्राप्त करते रहे थे। उन्होने किसी दरबार के चाटुकारिता और दंभपूर्ण वातावरण का चित्रण करते हुए उस पर व्यंग्य किया है कि यदि राजा मूख्य हो तो बुद्धिमान और विवेकी दरबारी भी अपने राजा जैसे ही हो जाते हैं। राजा के समझदार दरबारी चुप हो जाते है और शेष राजा के मूर्खतापूर्ण व्यवहार का समर्थन करते हुए स्वयं भी वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। ऐसे दरबार में कोई किसी की सलाह नहीं सुनता और न ही कोई सलाह देता है। उन्हें जिस प्रकार नचाया जाए वे मूर्खों की भाँति वैसे ही नाचते हैं।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
(क) साँसनि करि।
(ख) झहरि गगन में।
(ग) साहिब अंधा बाच्यो।
उत्तर :
देखिए सप्रसंग व्याख्या भाग।
प्रश्न 10.
देव के अलंकार-प्रयोग और भाषा के प्रयोग के कुछ उदाहरण पठित पदों से लिखिए।
उत्तर :
‘हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि’ में अनुप्रास और यमक अलंकार है।
‘झहरि-झहरि झीनी बूँद’ में अनुप्रास और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
‘घहरि-घहरि घटा घेरी’ में अनुप्रास तथा पुनरक्ति प्रकाश अलंकार है।
‘झहरी- झहरि झीनी बूँद हैं परति मनो,
‘घहरि-घहरि घटा घेरी है गगन में-में उत्रेक्षा अलंकार है।
‘रंग रीझ को माच्यो’ में अनुप्रास अलंकार है।
‘फूली न समानी’ ‘सोए गए भाग’ और मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है। सर्वत्र ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया गया है। ‘साहिब ग्रंथ, मुसाहिब मूक, सभी बहिरी’ में लाक्षणिक तथा प्रतीकात्मक प्रयोग देखे जा सकते है।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
‘दरबार’ सवैया को भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक अंधेर नगरी के समक्ष रखकर विवेचना कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।
प्रश्न 2.
देव के समान भाषा प्रयोग करने वाले किसी अन्य कवि के पदों का संकलन कीजिए।
उत्तर :
यहाँ तीन कवियों का एक-एक पद दिया जा रहा है। अन्य पदों का संकलन विद्यार्थी स्वयं अपने विद्यालय के पुस्तकालय से करें-
(i) फाग के भीर अभीरन कें, गहि गोबिंद लै गई भीतर मोरी।
माई करी मन की पद्माकर, ऊपर नाई अबीर की झोरी।
छीन पितंबर कम्मर तें, सु विदा दई मीड़ि कपोलन रोरी।
नैन नचाई, कही मुसकाइ, लला फिरि आइयौ खेलन होरी।
– पद्माकर
(ii) सब जाति फटी दुख की दुपटी कपटी न रहै जहँ एक घटी।
निघटी रूच मीचु घटी हूँ घटी जगजीव जतीन की छूटी चटी।
अघओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरज्ञान-गटी।
चहुँ ओरनि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी जटी पंचबटी॥
– केशवदास
(iii) तब तौ छबि पीवत जीवन है, अब सोचन लोचन जात जरे।
हित-पोष के तो सु प्रान पले, विललात महा दु:ख दोष भरे।
घनआनँद मीत सुजान बिना, सब ही सुख-साज-समाज टरे।
तब हार पहार से लागत है, अब आनि कै बीच पहार परे।।
-घनानंद
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कथ्य पर आधारित प्रश्न –
प्रश्न 1.
देव की कविता में वियोग श्रूंगार को बहुत अधिक स्थान दिया गया है-इस कथन के आधार पर कवि पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
देव रीतिकालीन श्रेष्ठ रस-सिद्ध कवि हैं जिन्होंने जीवन-भर दरबारी वातावरण में रहकर काव्य-रचना की थी। उन्होंने दरबारों की मानसिकता के आधार पर कविता रची थी। तब रसराज भृंगार ही कविता में प्रधान था। इसके संयोग और वियोग पक्षों को समान रूप से महत्व दिया गया था, पर प्रेम की सच्चाई और पराकाष्ठा वियोग शूंगार में निहित है। देव ने नाबिका के वियोग का सूक्ष्म चित्रण किया है। उनके द्वारा किया गया वियोग-वर्णन और उसकी अवस्थाएँ अनेक प्रकार की हैं। जब नायक नायिका को यह बतलाता है कि वह प्रवास पर जाने वाला है तब नायिका परेशान हो जाती है और वह उनके जाने से पहले ही वियोग की अंग्न में जलने लगी है –
विरह की ज्वाला से नायिका की अवस्था अत्यंत सोचनीय हो गई है-पता नहीं वह वियोगावस्था को सहन भी कर पाएगी या नहीं। वर्षा की ॠतु उस विरहिनी को निरंतर जला रही है। वह विरह की आग में जलकर भी अपनी पीड़ा से नायक को पीड़ित नहीं करना चाहती –
पीर सही घर ही में रही कविदेव दियौ नहीं दूतिनि को दुख।
भाहूक बात कही न सुनी मन मारि विसारी दियोँ सिमरौ सुख।
प्रश्न 2.
‘नट की बिगरी मति’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर :
नट अपनी कला और प्रतिभा से लोगों का मनोरंजन किया करते थे। वे दूसरों को प्रसन्न कर धन, मान और मर्यादा प्राप्त करते थे इसलिए वे वही कार्य करते थे जो देखने-सुननेवाले को अच्छा लगता था। जब श्रासक की रचचि ही अच्छी न हो तो उसके दरबार में नट से कला की श्रेष्ठता की प्राप्ति की कल्पना भी उचित नहीं है। वे अपनी कला और प्रतिभा से भटककर रातभर नाचते थे; दूसरों को नाचने के लिए प्रेरित करते थे। ${ }^{+}$नट की बिगरी मति’ से यह प्रकट होता है।
प्रश्न 3.
कृष्ण के हैसते हुए मुँह फेरकर चले जाने से गोपिका ने क्या कुछ खो दिया और क्या उसके पास शेष रह गया ?
उत्तर :
जब श्रीकृष्ण ने गोपिका की ओर हैंसते हुए देखा और फिर मुँह फेरकर चले गए तो जिन पाँच तत्वों से मानवीय शरीर बनता है उनमें से पृथ्वी, जल, वायु तथा तेज तत्व तो समाप्त हो गए। केवल आकाश तत्व थोड़ा-सा शेष रह गया जो धौरे-धीरे समाप्त होता जा रहा था।
प्रश्न 4.
‘हँसी की चोट’ पद का सार लिखिए।
उत्तर :
‘हैंसी की चोट’ पद महाकवि देव द्वारा रचित काव्य ग्रंथ ‘सुखसागर तरंग’ से अवतरित है। एक दिन नायिका को नायक ने हँसकर देखा और नायिका नायक की हैंसी पर उसे अपना दिल दे बैठी। नायिका के इस बदलाव पर नायक ने कोई ध्यान नहीं दिया। नायक के ध्यान न देने के कारण नायिका अत्यधिक उद्विग्न एवं व्याकुल है। नायिका को लगता है कि अब वह मूर्चिछहोने वाली है। उसकी साँसों से हवा का आना जाना बंद हो गया है। आँखों से अश्रुओं का बहना समाप्त हो गया है। उसके शरीर में विद्यमान पाँचों तत्व, जल, वायु, तेज अगिन तथा आकाश धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। नायिका को अब अपने प्रिय से मिलने की आशा है। वही आशा उसके जीवन रूपी आकाश को स्थिर बनाए हुए है।
प्रश्न 5.
‘दरबार’ सवैये में देव ने मूल रूप से क्या कहना चाहा है ?
उत्तर :
रीतिकालीन कवि देव ने ‘दरबार’ सवैये में मूर्ख राजा की सभा का सजीव चित्रण करते हुए उस समय के युग का चित्र खींचा है। मूर्ख राजा के समक्ष बुद्धिमत्ता यही है कि चुप रहो। कवि देव ने दरबार की अव्यवस्था का वर्णन किया है। पतनशील और निष्क्रिय सामंती व्यवस्था के प्रति कवि ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
प्रश्न 6.
सिद्ध कीजिए कि देव दरबारी कवि थे ?
उत्तर :
रीतिकालीन देव का पूरा नाम देवदत्त था। ये दरबारी कवि थे। इन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक आश्रयदाताओं के पास आश्रय लेकर काव्य-रचना की। इनके सभी छंदों में दरबारी चमक देखी जा सकती है। देव की कविता का प्रमुख वर्य-विषय शृंगार था। इन्हें आचार्य का पद भी प्राप्त है। देव ने गुण और रीति को समानार्थक माना है। दरबारी कवि होने के कारण उनको आचार्य होने के बजाय कवि रूप में अधिक सफलता मिली। दरबारी साँदर्य-बोध के कारण इन्हें दरबारी कवि कहना गलत न होगा।
कथ्य पर आधारित प्रश्न –
प्रश्न 1.
‘सपना’ कवित्त का भाव-सौंदर्य और शिल्प-सौंदर्य लिखिए।
उत्तर :
‘सपना’ कवित्त में विरही मन की इच्छाएँ और उन इच्छाओं के पूरा न होने से उत्पन्न पीड़ा के भावों को कवि ने अति सूक्ष्मता और कोमलता से प्रकट किया है। सारा आकाश घने काले बादलों से भरा था। छोटी-छोटी बूँदे घने काले बादलों से गिर रही थीं। श्रीकृष्ण ने गोपिका से एक साथ झुला झूलने का आग्रह किया। प्रसन्नता से भरकर जैसे ही गोपिका ने अपनी आँखें खोलीं उसका सपना टूट गया। वहाँ न तो श्रीकृष्ण थे, न घने बादल, न ही झीनी-झीनी बूँदे। विरह की पीड़ा से गोपिका की आँखें आँसुओं से भर गई।
कवि ने ब्रज भाषा को कोमलकांत शब्दावली के द्वारा संयोग एवं वियोग भृंगार को प्रकट किया है। अभिधा शब्द-शक्ति तथा प्रसाद गुण ने कवि के कथन को सरलता, सरसता और भाव प्रबलता प्रदान की है। कवित्त छंद ने कवि के कथन को संगीतात्मकता प्रदान की है। अनुप्रास, पुनरक्ति प्रकाश, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण, विरोधाभास और मानकीकरण का सुंदर-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है। तद्भव शब्दों में लयात्मकता और कोमलता विद्यमान है। गतिशील बिंब योजना है। कवि ने प्रेम की व्यापकता को प्रकट किया है जो गोपिका के माध्यम से उसके सोतेजागते प्रकट होता है।
प्रश्न 2.
कवित्त छंद का परिचय दीजिए।
उत्तर :
कवित्त एक वार्षिक सम छंद है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के पंद्रहवें और सोलहवें वर्ण पर यति होती है। इसके अंदर सामान्य रूप से अंतिम वर्ण गुरु होता है।
उदाहरण –
साँसनि ही सौँ समीर गयो अरु, आँसुन ही सब नीर गयो ढरि।
तेज गयो गुन लै अपनो, अरु भूमि गई तनु की तुलना करि॥
प्रश्न 3.
चौपाई छंद का लक्षण तथा उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
चौपाई के प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं। चरण के अंत में जगण तथा तगण का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
उदाहरण –
प्रश्न 4.
सवैया छंद का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
कवित्त के समान सवैया एक सम वार्णिक छंद है। प्रत्येक चरण में इसके वण्णों की संख्या 22 से 26 तक होती है।
उदाहरण – पाँयनि नुपूर मंजु बजै, करि किंकिनि कै धुनि की मथुराई। साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।।
प्रश्न 5.
‘हँसी की चोट’ सवैया का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘हँसी की चोट’ सवैया महाकवि देव द्वारा रचित काव्य ग्रंथ ‘ सुखसागर तरंग’ से अवतरित है। इसमें कवि ने नायिका की विरहावस्था को अति मार्मिक डंग से प्रस्तुत किया है। कवि ने इस सबैया में विरह की दशम अवस्था का उल्लेख किया है।
कला पक्ष की दृष्टि से सवैये की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
- वियोग शृंगार का अंकन किया गया है।
- यमक, अनुप्रास और स्वर मैत्री अलंकारों का सहज प्रयोग है।
- लाक्षणिक और प्रतीकात्मक प्रयोगों ने कवि के शब्दों को गहनता प्रदान की है।
- सवैया छंद है।
- अभिधा शब्द-शक्ति है।
- ब्रजभाषा की कोमलकांत शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
- बिंबात्मकता विद्यमान है।
प्रश्न 6.
देव ने अपने छंदों में किस रस का सर्वाधिक प्रयोग किया है और क्यों ?
उत्तर :
देव रीतिकालीन कवि है। रीतिकाल का प्रभाव उनपर देखते ही बनता है। शृंगार रस के दोनों पक्ष इस काल में छाए रहे। देव की रचनाओं में विषयविविधता बहुत व्यापक है। प्राय: राधा-कृष्ण के माध्यम से इन्होंने अपनी शृंगारिक भावनाओं को प्रकट किया है। इन्होंने शृंगार रस के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है। नायक-नायिका का रूप माधुर्य मिलन और हाव-भाव का चित्रण बहुत मनोहारी है। इनकी प्रवृत्ति भी अन्य रीतिकालीन कवियों के समान संयोग श्रृंगार में अधिक रमी है।
प्रश्न 7.
देव की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
देव रीतिकालीन कवि हैं। उन्होंने भृंगार के दोनों पर्षों का खूब प्रयोंग किया है। उन्हेंने अपने काव्य को सफल अभिव्यकित प्रदान करने के लिए शब्द शक्तियों का अच्छा प्रयोग किया है। इन्होंने माधुर्य और प्रसाद गुण का अच्छा प्रयोग किया है। इनके काव्य में तत्सम शब्दावली का प्रयोग अधिक दिखता है। ब्रजभाषा की कोमलकांत शब्दावली का इन्होंने सुंदर प्रयोग किया है।
11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers
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