CBSE Class 11 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश
विद्यार्थी को किसी अपठित गद्यांश को पढ़कर उसपर आधारित प्रश्नों का उत्तर देना होता है। इन प्रश्नों का उत्तर देने से पूर्व अपठित को अच्छी प्रकार से पढ़कर समझ लेना चाहिए। जिन प्रश्नों के उत्तर पूछे गए हैं वे उसी में ही छिपे रहते हैं। उन उत्तरों को अपने शब्दों में लिखना चाहिए। अपठित गद्यांश के अंतर्गत यदि कोई कठिन शब्द, वाक्य, उक्तियाँ आदि दिए गए हों, जो आप को समझ न आ रहे हों, तो बिना घबराए उनके अर्थ को अवतरण के भावों से संबंधित करके सोचना चाहिए। सावधानीपूर्वक सोचने से आपको दिए गए सभी प्रश्नों के उत्तर अवतरण में अवश्य मिल जाएँगे। अपठित गद्यांश का शीर्षक भी पूछा जाता है। शीर्षक अपठित में व्यक्त भावों के अनुरूप होना चाहिए। शीर्षक कम-से-कम शब्दों में लिखना चाहिए। शीर्षक से अपठित का मूल-भाव भी स्पष्ट होना चाहिए। शीर्षक संक्षिप्त, आकर्षक और सार्थक होना चाहिए। अपठित गद्यांश को हल करते समय आपको जिन आवश्यक तत्वों की आवश्यकता होगी, वे हैं-
- एकाग्रता
- मूलभावों की स्पष्टता
- विवेचन-क्षमता
- अभिव्यक्ति की स्पष्टता
- विषय की स्पष्टता
अपठित गद्यांश के महत्वपूर्ण उदाहरण –
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
1. काशी में रहते समय भारती बहुधा नौकारूढ़ होकर गंगा की प्राकृतिक छटा देखा करते थे। भारती के अंतर्मन पर इसका भी गहरा प्रभाव पड़ा था। काशीवास का इनके बाद के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। इसने ही उनको व्यापार दृष्टि दी थी, अन्यथा भारती संकुचित दायरे में सीमित रहकर आँचलिक बन जाते।
भारती को अध्ययन के प्रति, विशेषकर प्राचीन-काव्य-साहित्य के अध्ययन में विशेष रुचि थी। इस संबंध में एक घटना उल्लेखनीय है। क्रिसमस तथा प्रथम जनवरी आदि के त्योहार मनाने के लिए एट्टयपुरम के राजा अपने मित्रों के साथ एक बार मद्रास आए। उनके साथ भारती भी थे। घर से चलते समय भारती की पत्नी ने राजा द्वारा दिए गए पुरस्कार से अच्छी साड़ियाँ और कपड़े लाने की प्रार्थना की थी। मद्रास से लौटते समय भारती अपने साथ दो गाड़ी सामान भरकर लाए। दूर से देखकर चेल्लमा अत्यधिक आनंदित हुई। पास आने पर जो देखा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। दोनों गाड़ियाँ प्राचीन तमिल साहित्य से संबंधित पुस्तकों से भरी थीं। भारती ने पत्नी के कुछ न कहने पर भी उनकी आंतरिक वेदना को भाँपकर कहा, “‘मुझे खेद है कि तेरे लिए केवल एक ही साड़ी ला सका। ये साहित्यिक कृतियाँ ही वास्तविक स्थायी संपत्ति हैं, शेष सब क्षणभंगुर हैं।” अपनी व्यथा को दबाते हुए चेल्लमा ने भी इस कथन का समर्थन किया, क्योंकि पति की प्रसन्नता ही उनकी प्रसन्नता थी।
सन 1905 ई० के बंग-भंग आंदोलन के बाद तीन ऐतिहासिक घटनाएँ घटीं जिनका भारती के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। पहला लाला लाजपतराय को क्रांतिकारी घोषित करके सरकार ने उन्हें देश-निकाला दिया। दूसरा गरम दल और नरम दल में आपसी मतभेद हो जाने के कारण ‘सूरत कांग्रेस’ का अधिवेशन बिना किसी निर्णय के संघर्षमय वातावरण में समाप्त हो गया। तीसरा तमिलनाडु के देशभक्त व० उ० चिदंबरम् पिल्ले को अंग्रेजी सरकार द्वारा कठोर कारावास की सज़ा दी गई। इन घटनाओं से क्षुब्ध होकर भारती बंगाल के क्रांतिकारी नेता विपिनचंद्र पाल, सुंद्रनाथ बनर्जी आदि को मद्रास में आमंत्रित करके विशाल जनसभाएँ करने लगे।
प्रश्न 1.
भारती को किसमें अधिक रुच्चि थी ?
(क) अर्थशास्त्र में
(ख) काव्य-साहित्य के अध्ययन में
(ग) लेखन में
(घ) योग में
उत्तर :
(ख) काव्य-साहित्य के अध्ययन में
प्रश्न 2.
भारती मद्रास से दो गाड़ियाँ किससे भरकर लाए थे ?
(क) सोना
(ख) चाँदी
(ग) अनाज
(घ) प्राचीन तमिल साहित्य से संबंधित पुस्तकें
उत्तर :
(ख) प्राचीन तमिल साहित्य से संबंधित पुस्तकें
प्रश्न 3.
भारती नौका पर बैठकर क्या देखा करते थे ?
(क) मछलियाँ
(ख) हंस
(ग) प्राकृतिक घटा
(घ) कौए
उत्तर :
(ग) प्राकृतिक घटा
प्रश्न 4.
भारती के जीवन को कहाँ के वास ने गहरा प्रभावित किया था ?
(क) मथुरावास
(ख) अयोध्यावास
(ग) वृंदावनवास
(घ) काशीवास
उत्तर :
(घ) काशीवास
प्रश्न 5.
भारती की पत्नी ने पति से क्या लाने के लिए कहा था ?
(क) फल
(ख) अच्छी साड़ियाँ और कपड़े
(ग) सब्तित्रियाँ
(घ) राशन
उत्तर :
(ख) अच्छी साड़ियाँ और कपड़े
प्रश्न 6.
गंगा में नौका-विहार ने भारती पर क्या प्रभाव डाला था ?
उत्तर :
भारती काशी में गंगा नदी में प्राय: नौका विहार किया करते थे, जिसने उन्हें व्यापक दृष्टि प्रदान की थी। ऐसा न होने की स्थिति में संभवत: वे संकुचित दायरे में सीमित रह कर आँचलिक बन जाते।
प्रश्न 7.
भारती की दृष्टि में वास्तविक स्थाई संपत्ति क्या थी ?
उत्तर :
भारती की दृष्टि में वास्तविक स्थायी संपत्ति तो साहित्यिक कृतियाँ ही थीं। शेष सब कुछ तो क्षण भंगुर था; व्यर्थ था।
प्रश्न 8.
देश-निकाला में कौन-सा समास है?
उत्तर :
अपादान तत्पुरुष समास
प्रश्न 9.
‘संबंधित’ में किस प्रत्यय का प्रयोग किया गया है ?
उत्तर :
‘इत’ प्रत्यय।
प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उच्चित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
महाकवि भारती।
2. ‘उत्साह की गिनती अच्छे गुणों में होती है। किसी भाव के अच्छे या बुरे होने का निश्चय अधिकतर उसकी प्रवृत्ति के शुभ या अशुभ परिणाम के विचार से होता है। वही उत्साह जो कर्तव्य कमों के प्रति इतना सुंदर दिखाई पड़ता है। अकर्तव्य कमों की ओर होने पर वैसा श्लाघ्य नहीं प्रतीत होता। आत्म-रक्षा, पर-रक्षा, देश-रक्षा आदि के निमित्त साहस की जो उमंग देखी जाती है, उसके सौददर्य तक परपीड़न, डकैती आदि कमों का साहस कभी नहीं पहुँच सकता। यह बात होते हुए भी विशुद्ध उत्साह या साहस की प्रशंसा संसार में थोड़ी-बहुत होती ही है। अत्याचारियों या डाकुओं के शौर्य और साहस की कथाएँ भी लोग तारीफ़ करते हुए सुनते हैं।
अब तक उत्साह का प्रधान रूप ही हमारे सामने रहा, जिसमें साहस का पूरा योग रहता है। पर कर्ममात्र के संपादन में जो तत्परतापूर्ण आनंद देखा जाता है यह भी उत्साह ही कहा जाता है। सब कामों में साहस अपेक्षित नहीं होता, पर थोड़ा-बहुत आराम, विश्राम, सुभीते इत्यादि का त्याग सबमें करना पड़ता है और कुछ नहीं तो उठकर बैठना, खड़ा होना या दस-पाँच कदम चलना ही पड़ता है। जब तक आनंद का लगाव किसी क्रिया, व्यापार या उसकी भावना के साथ नहीं दिखाई पड़ता तब तक उसे ‘उत्साह’ की संज्ञा प्राप्त नहीं होती। यदि किसी प्रिय मित्र के आने का समाचार पाकर हम चुपचाप ज्यों-के-त्यों आनंदित होकर बैठे रह जाएँ या थोड़ा हँस भी दें तो यह हमारा उत्साह नहीं कहा जाएगा।
हमारा उत्साह तभी कहा जाएगा जब हम अपने मित्र का आगमन सुनते ही उठ खड़े होंगे, उससे मिलने के लिए दौड़ पड़ेंगे और उसके ठहरने आदि के प्रबंध में प्रसन्न-मुख इधर-उधर आते-जाते दिखाई देंगे। प्रयत्न और कर्म-संकल्प उत्साह नामक आनंद के नित्य लक्षण हैं।
प्रत्येक कर्म में थोड़ा या बहुत बुद्धि का योग भी रहता है। कुछ कर्मों में तो बुद्धि की तत्परता और शरीर की तत्परता दोनों बराबर साथ-साथ चलती है। उत्साह की उमंग जिस प्रकार हाथ-पैर चलवाती है उसी प्रकार बुद्धि से भी काम कराती है। ऐसे उत्साह वाले को कर्मवीर कहना चाहिए या बुद्धिवीर-यह प्रश्न मुद्राराक्षस-नाटक बहुत अच्छी तरह हमारे सामने लाता है। चाणक्य और राक्षस के बीच जो चोटें चली हैं वे नीति की है-शस्त्र की नहीं।
प्रश्न 1.
उत्साह में सबसे अधिक योगदान किसका रहता है ?
(क) साहस का
(ख) धन का
(ग) बुव्धि का
(घ) चरित्र का
उत्तर :
(क) साहस का
प्रश्न 2.
प्रत्येक कर्म में किस का योग रहता है?
(क) साहस का
(ख) बुद्धि का
(ग) धन का
(घ) क्रोध का
उत्तर :
(ख) बुद्धि का
प्रश्न 3.
चाणक्य और राक्षस के बीच किस प्रकार की चोटें चली थी ?
(क) मन की
(ख) बुद्धि की
(ग) नीति की
(घ) अनीति की
उत्तर :
(ग) नीति की
प्रश्न 4.
उत्साह की गिनती किस प्रकार के गुणों में होती है?
(क) तामसिक गुणों में
(ख) साहसिक गुणों में
(ग) बुरे गुणों में
(घ) अच्छे गुणों में
उत्तर :
(घ) अच्छे गुणों में
प्रश्न 5.
लोग क्या करते हुए अत्याचारियों की कथाएँ सुनते हैं?
(क) तारीफ करते हुए
(ख) निंदा करते हुए
(ग) दुख जताते हुए
(घ) प्रसन्नता जताते हुए
उत्तर :
(क) तारीफ़ करते हुए
प्रश्न 6.
किसी भाव का अच्छा या बुरा होना किस पर निर्भर करता है?
उत्तर :
किसी भाव का अच्छा या बुरा होना उसकी प्रवृत्ति के शुभ या अशुभ परिणाम के विचार से होता है, जो उत्साह कर्त्तव्यों-कर्मों के प्रति सुंदर दिखाई देता है वही अकत्त्तव्य के कारण वैसा प्रतीत नहीं होता।
प्रश्न 7.
आनंद को कब उत्साह नहीं माना जाता ?
उत्तर :
जब तक आनंद का लगाव किसी क्रिया, व्यापार या उसकी भावना के साथ नहीं होता तब तक उसे उत्साह नहीं माना जाता।
प्रश्न 8.
प्रयत्न और कर्म-संकल्प क्या हैं ?
उत्तर :
प्रयत्न और कर्म-संकल्प उत्साह नामक आनंद के नित्य लक्षण हैं।
प्रश्न 9.
‘विशुद्ध’ में से उपसर्ग छाँटिए।
उत्तर :
‘वि’ उपसर्ग।
प्रश्न 10.
अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
उत्साह के प्रयोजन।
3. हिंदी की वर्तमान दशा पर प्रकाश डालने से पूर्व मे इसके उद्भव और विकास से आपका परिचय कराना चाहती हूं। हिंदी के उद्भव की प्रक्रिया बहुत प्राचीन है। संस्कृत दो रूपों में बँटी-वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत। संस्कृत के लौकिक रूप से प्राकृत भाषा आई। प्राकृत से अपभ्रंश तथा अपश्रंश से शौरसैनी भाषा उत्पन्न हुई जिससे आज प्रयुक्त होनेवाली पश्चिमी हिंदी भाषा का आविर्भाव हुआ। तुलसीदास और जायसी ने जिस अवधी भाषा का प्रयोग किया वह अर्ध मागधी प्राकृत से विकसित हुई। सूरदास, नंददास और अष्टछाप के कवियों ने जिस ब्रज भाषा में काव्य-रचना की वह शौरसैनी अथवा नगर अपभ्रंश से विकसित हुई।
भौगोलिक दृष्टि से खड़ी बोली उस बोली को कहते हैं जो रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, देहरादून, अंबाला और पटियाला के पूर्वी भागों में बोली जाती है। चौदहवीं शताब्दी में सर्वप्रथम अमीर खुसरो ने इसे “‘भारत के मुसलमानों की भाषा” कहकर इसमें काव्य-रचना की थी। तत्पश्चात् भारतेंदु हरिश्चंद्र, महाबीर प्रसाद द्विवेदी, मैथिलीशरण गुप्त, प्रसाद, निराला, पंत आदि ने इसे अपने साहित्य में प्रयुक्त किया और आज देश के लाखों साहित्यकार इसमें साहित्य रचना कर रहे हैं। भाषा विज्ञान की दृष्टि से पश्चिमी हिंदी को ही हिंदी कहा जाता है। यह उस भू-भाग की भाषा थी जिसे प्रार्चीन काल में अंतर्वेद कहते थे।
इस भाषा में अरबी-फारसी के शब्दों को भी स्वीकार किया गया। इस भाषा का मानक रूप सीमित करने के लिए पारिभाषिक शब्दावली के कई कोश तैयार किए गए। आज इसे खड़ी बोली हिंदी कहते हैं। इसमें संस्कृत, उर्दू, अरबी, फारसी और अंग्रेज्जी के शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इस पश्चिमी हिंदी भाषा में ब्रज भाषा, कन्नौजी, बाँगरू, बुंदेली आदि अनेक उपभाषाएँ हैं और यह संसार के कुल 12 भाषा परिवारों में से “भारोपीय परिवार” की भाषा है।
यह सरल, सुबोध एवं नवीन क्षमता से युक्त है। इसकी लिपि वैज्ञानिक एवं सरल है तथा देश की भावनात्मक एकता बनाए रखने की अदम्य क्षमता से युक्त है। देश की आज्ञादी से पूर्व महात्मा गांधी ने उद्घोष किया था कि “राष्ट्रभाषा हिंदी के बिना सारा राष्ट्र गूँगा है।” देश की स्वतंत्रता प्राप्त होते ही जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि “हिंदी का विकास देश का विकास है”। राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन का मत था कि हिंदी ही देश की एकता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।”
तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने हिंदी को विश्व की महानतम भाषा कहा है। डॉ॰ चटर्जी ने इसे “सत्य, संस्कृति एवं भारत की अखंडता का प्रतीक” माना है। हिंदी को लेकर और भी कई बड़ी-बड़ी बातें कही गई हैं। लेकिन आज भी व्यवहार के स्तर पर यह राष्ट्रभाषा होते हुए भी दासी का जीवन जी रही है। हिंदी के नाम पर रोज्जी-रोटी कमाने वाले लोग आम व्यवहार में इसका प्रयोग करना सामाजिक हीनता का प्रतीक और अपमानजनक समझते हैं। अनेक लोग इस गुलाम मानसिकता के स्पष्ट उदाहरण हैं।
प्रश्न 1.
हिंदी के प्रति अनेक लोगों की मानसिकता कैसी है ?
(क) प्रशंसनीय
(ख) अशोभनीय और निंदनीय
(ग) गर्वित
(घ) सम्मानजनक
उत्तर :
(ख) अशोभनीय और निंदनीय
प्रश्न 2.
प्राकृत भाषा किससे बनी थी?
(क) तमिल से
(ख) तेलुगु से
(ग) संस्कृत के लौकिक रूप से
(घ) अवधी से
उत्तर :
(ग) संस्कृत के लौकिक रूप से
प्रश्न 3.
अष्टछाप के दो कवियों के नाम चुनिए-
(क) सूरदास और नंबदास
(ख) तुलसी और जायसी
(ग) कबीर और रहीम
(घ) अमीर खुसरो और वृंद
उत्तर :
(क) सूरदास और नंददास
प्रश्न 4.
अमीर खुसरो ने खड़ी बोली को क्या कहा था ?
(क) भारत के मुसलमानों की भाषा
(ख) भारत के हिंदुओं की भाषा
(ग) दक्षिण भारतीयों की भाषा
(घ) पहाड़ियों की भाषा
उत्तर :
(क) भारत के मुसलमानों की भाषा
प्रश्न 5.
तुलसी और जायसी की अवधी किससे विकसित हुई थी ?
(क) ब्रज से
(ख) अर्ध मागधी प्राकृत से
(ग) हिंदी से
(घ) संस्कृत से
उत्तर :
(ख) अर्ध मागधी प्राकृत से
प्रश्न 6.
हिंदी के उद्भव से पहले संस्कृत कितने भागों में बँट गई थी?
उत्तर :
हिंदी के उद्भव से पहले संस्कृत भाषा वैदिक संस्कृत, लॉकिक संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भागों में बँट गई थी।
प्रश्न 7.
सर्वप्रथम हिंदी में काव्य-रचना किसने और कब की थी?
उत्तर :
हिंदी में सर्वप्रथम अमीर खुसरो ने चौदहवीं शताब्दी में काव्य-रचना की थी।
प्रश्न 8.
‘अदम्य’ में किस उपसर्ग का प्रयोग किया गया है ?
उत्तर :
‘अ’ उपसर्ग।
प्रश्न 9.
‘स्वतंत्रता’ में किस प्रत्यय का प्रयोग है?
उत्तर :
‘ता’ प्रत्यय।
प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
मेरे देश की भाषा-हिंदी।
4. स्वाधीनता-संग्राम में संलग्न रहने के साथ-साथ भारती साहित्य-सृजन में भी लगे रहे व वे बहुमुखी प्रतिभासंपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने खंडकाव्य, मुक्तक, गद्यगीत, निबंध, कहानियाँ आदि अनेक विधाओं में श्रेष्ठ रचनाएँ की। इन सभी रचनाओं में उनका प्रगतिशील और राष्ट्रीय दृष्टिकोण झलकता है। उनके खंडकाव्यों में पांचालीशपथम्, कंणन पाट्दु (कान्हा के गीत) और कुयिल पाद्यु (कोयल के गीत) विशेष प्रसिद्ध हैं। तमिल में गद्यगीत लिखने का श्रीगणेश भी भारती ने ही किया। उन्होंने लगभग 400 गद्यगीत लिखे हैं। वे एक श्रेष्ठ पत्रकार भी थे। स्वदेशमित्रन के संपादक की प्रार्थना पर भारती ने अविरल रूप से लेख, कविता, कहानी आदि लिखे। स्वतंत्रता-आंदोलन के पचास वर्षों के इतिहास को भी भारती ने धारावाहिक रूप से स्वदेशमित्रन में लिखा था।
भारती की संपूर्ण रचनाएँ तमिलनाडु सरकार द्वारा भारती ग्रंथावली के नाम से तीन भागों में प्रकाशित हो चुकी हैं। इन सभी रचनाओं में भारतीय स्वतंत्रता और राष्ट्रीयता का स्वर ओजस्वी भाषा में मुखरित हुआ है। ब्रिटिश दासता के विरूद्ध संघर्ष, राष्ट्रीय एकता, स्वतंत्र भारत का अभ्युदय, सामाजिक अन्याय, शोषण और विषमता को दूर कर समतामूलक समाज की स्थापना, भारतीय संस्कृति की गरिमा आदि भावों को उन्होंने अपनी सशक्त वाणी में व्यक्त किया है, इसलिए उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की संज्ञा से विभूषित किया जाता है।
कहा जाता है कि एक बार वे तिरुवनंतपुरम में अजायबघर देखने गए। विभिन्न प्रकार के पशुओं को देखते हुए जब वे सिंह के समक्ष पहुँचे, तो अकड़कर खड़े हो गए और कहने लगे “सिंह राजा! देखो तुम्हारे सामने कविराजा खड़ा है। तुम अपने समान शारीरिक बल इसे दो। भीतरबाहर एक समान अपने स्वभाव को भी अगर तुम दे सको तो अच्छा होगा।” ऐसी प्रभावपूर्ण घटनाएँ भारती के पग-पग के जीवन में भरी पड़ी हैं। भारती तिरुल्लिक्केणी के मंदिर नित्यप्रति जाते थे और वहाँ के हाथी को गन्ना, नारियल आदि खिलाते थे।
एक दिन की घटना है कि हाथी मतवाला हो गया था। लोगों द्वारा उसके पागल होने की बात जानकर और बार-बार मना करने पर भी भारती उसे फल खिलाने के लिए चले गए। पागल हाथी के धक्का मार देने के कारण उनकी हड्डियाँ टूट गई। सौभाग्यवश उनके मित्र ‘कुवलै’ वहाँ अचानक आ गए। वे मूर्च्छित अवस्था में उन्हें चिकित्सालय ले गए। जब भारती चिकित्सालय में थे, उन्हीं दिनों अली बंधु (मुहम्मद अली और शौकत अली) मद्रास आए थे। उनके साथ महात्मा गांधी जी भी थे। भारती को देखने के लिए ये लोग उनके यहाँ गए। उनसे मिलकर भारती को बड़ी प्रसन्नता हुई।
प्रश्न 1.
स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ भारती क्या करने लगे थे?
(क) व्यवसाय का
(ख) अध्यापन
(ग) साहित्य-सुजन
(घ) काव्य-रचना
उत्तर :
(ग) साहित्य-सृजन
प्रश्न 2.
भारती कैसे साहित्यकार थे?
(क) अंतर्मुखी
(ख) बहुमुखी प्रतिभासंपन्न
(ग) श्रेष्ठतम साहित्यकार
(घ) महान साहित्यकार
उत्तर :
(ख) बहुमुखी प्रतिभासंपन्न
प्रश्न 3.
तमिल में गद्य-गीत लिखना किसने प्रारंभ किया था ?
(क) भारती ने
(ख) फणीश्वरनाथ रेणु’ ने
(ग) चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने
(घ) केदारनाथ सिंह ने
उत्तर :
(क) भारती ने
प्रश्न 4.
भारती ग्रंथावली के कितने भाग हैं?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर :
(ख) तीन
प्रश्न 5.
अली बंधुओं के नाम चुनिए-
(क) मुहम्मद अली और शौकत अली
(ख) मुख्तार अली और जफ्फार अली
(ग) हाकिम अली और अहमद अली
(घ) अमज़द अली और रहमान अली
उत्तर :
(क) मुहम्मद अली और शौकत अली।
प्रश्न 6.
भारती ने किन विधाओं में साहित्य-रचना की थी?
उत्तर :
भारती ने खंड-काव्य, मुक्तक, गद्यगीत, निबंध, कहानियाँ आदि की रचना करने के साथ पत्रकारिता की थी।
प्रश्न 7.
भारती ने धारावाहिक रूप में किसे लिखा था ?
उत्तर :
भारती ने ‘स्वदेश मित्रन’ में स्वतंत्रता-आंदोलन के पचास वर्षों के इतिहास को धारावाहिक के रूप में लिखा था।
प्रश्न 8.
‘नित्यप्रति’ में प्रयुक्त समास का नाम लिखिए।
उत्तर :
‘अव्ययीभाव’ समास।
प्रश्न 9.
‘स्वतंत्रता’ में से प्रत्यय छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
‘ता’ प्रत्यय।
प्रश्न 10.
अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
भारती की महानता।
5. कर्म के मार्ग पर आनंदपूर्वक चलता हुआ उत्साही मनुष्य यदि अंतिम फल तक न पहुँचे तो भी उसकी दशा कर्म न करने वाले की अपेक्षा अधिकतर अवस्थाओं में अच्छी रहेगी, क्योंकि एक तो कर्मकाल में उसका जीवन बीता, वह संतोष या आनंद में बीता, उसके उपरांत फल की अप्राप्ति पर भी उसे यह पछतावा न रहा कि मैने प्रयत्न नहीं किया। फल पहले से कोई बना-बनाया पदार्थ नहीं होता। अनुकूलन प्रयत्न-कर्म के अनुसार, उसके एक-एक अंग की योजना होती है। बुद्धि द्वारा पूर्ण रूप से निश्चित की हुई व्यापार परंपरा का नाम ही प्रयत्न है। किसी मनुष्य के घर का कोई प्राणी बीमार है।
वह वैद्यों के यहाँ से जब तक औषधि ला-ला कर रोगी को देता जाता है और इधर-उधर दौड़ धूप करता जाता है तब तक उसके चित्त में जो संतोष रहता है-प्रत्येक नए उपचार के साथ जो आनंद का उन्मेष होता रहता है यह उसे कदापि न प्राप्त होता, यदि वह रोता हुआ बैठा रहता। प्रयत्न की अवस्था में उसके जीवन का जितना अंश संतोष, आशा और उत्साह में बीवा, अप्रयत्न की दशा में उतना ही अंश केवल शोक और दु:ख में कटता। इसके अतिरिक्त रोगी के न अच्छे होने की दशा में भी वह आत्मग्लानि के उस कठोर दु:ख से बचा रहेगा जो उसे जीवन भर यह सोच-सोचकर होता कि मैंने पूरा प्रयत्न नहीं किया।
कर्म में आनंद अनुभव करने वालों ही का नाम कर्मण्य है। धर्म और उदारता के उच्च कर्मों के विधान में ही एक ऐसा दिव्य आनंद भरा रहता है कि कर्ता को वे कर्म ही फलस्वरूप लगते हैं। अत्याचार का दमन और क्लेश का शमन करते हुए चित्त में जो उल्लास और पुष्टि होती है वही लोकोपकारी कर्म-वीर का सच्चा सुख है। उसके लिए सुख तब तक के लिए रुका नहीं रहता जब तक कि फल प्राप्त न हो जाए, बल्कि उसी समय से थोड़ा-थोड़ा करके मिलने लगता है जब से वह कर्म की ओर हाथ बढ़ाता है।
कभी-कभी आनंद का मूल विषय तो कुछ और रहता है, पर उस आनंद के कारण एक ऐसी स्कूर्ति उत्पन्न होती है जो बहुत-से कामों की ओर हर्ष के सांथ अग्रसर रहती है। इसी प्रसन्नता और तत्परता को देख लोग कहते हैं कि वे काम बड़े उत्साह से किए जा रहे हैं। यदि किसी मनुष्य को बहुत-सा लाभ हो जाता है या उसकी कोई बड़ी भारी कामना पूर्ण हो जाती है तो जो काम उसके सामने आते हैं उन सबको वह बड़े हर्ष और तत्परता के साथ करता है। उसके इस हर्ष और तत्परता को भी लोग उत्साह ही कहते हैं।
इसी प्रकार किसी उत्तम फल या सुख-प्राप्ति की आशा या निश्चय से उत्पन्न आनंद, फलोन्युख प्रयत्नों के अतिरिक्त और दूसरे व्यापारों के साथ संलग्न होकर, उत्साह के रूप में दिखाई पड़ता है। यदि हम किसी ऐसे उद्योग में लगे हैं, जिससे आगे चलकर हमें बहुत लाभ या सुख की आशा है तो हम उस उद्योग को तो उत्साह के साथ करते ही हैं, अन्य कार्यों में भी प्राय: अपना उत्साह दिखा देते हैं।
यह बात उत्साह में नहीं, अन्य मनोविकारों में भी बराबर पाई जाती है। यदि हम किसी बात पर क्कुद्ध बैठे हैं और इसी बीच में कोई दूसरा आकर हमसे कोई बात सीधी तरह भी पूछता है तो भी हम उस पर झुझला उठते हैं। इस झुझलाहट का न तो कोई निर्दिष्ट कारण होता है, न उद्देश्य। यह केवल क्रोध की स्थिति के व्याघात को रोकने की क्रिया है, क्रोध की रक्षा का प्रयत्न है। इस झुंझलाहट द्वारा हम यह प्रकट करते हैं कि हम क्रोध में हैं और क्रोध में ही रहना चाहते हैं। क्रोध को बनाए रखने के लिए हम उन बातों से भी क्रोध ही संचित करते हैं जिनसे दूसरी अवस्था में हम विपरीत भाव प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार यदि हमारा चित्त किसी विषय में उत्साहित रहता है तो हम अन्य विषयों में भी अपना उत्साह दिखा देते हैं।
प्रश्न 1.
मनुष्य को कौन कर्म की ओर अग्रसर कराती है ?
(क) आलस्य
(ख) ताज्तगी
(ग) बुद्धि
(घ) स्फूर्ति
उत्तर :
(ग) स्फूर्ति
प्रश्न 2.
उत्साही मनुष्य किस मार्ग पर चलता है?
(क) कर्म के मार्ग पर
(ख) धर्म के मार्ग पर
(ग) सत्य के मार्ग पर
(घ) असत्य के मार्ग पर
उत्तर :
(क) कर्म के मार्ग पर
प्रश्न 3.
अप्रयत्न की दशा में जीवन कैसे कटता है?
(क) खुशी में
(ख) उल्लास में
(ग) मज़े में
(घ) शोक और दुख में
उत्तर :
(घ) शोक और दु:ख में
प्रश्न 4.
दिव्य आनंद किसमें भरा रहता है?
(क) अधर्म के कार्यों में
(ख) व्यवसाय में
(ग) धर्म और उदारता के उच्च कार्यों में
(घ) देश के कार्यों में
उत्तर :
(ग) धर्म और उदारता के उच्च कार्यों में
प्रश्न 5.
क्रोध क्या है ?
(क) मनोविकार
(ख) कर्मण्यता
(ग) अकर्मण्यता
(घ) मानसिकता शांति
उत्तर :
(क) मनोविकार
प्रश्न 6.
फल क्या है ?
उत्तर :
फल कोई पहले से बना बनाया पदार्थ नहीं होता। वह बुद्धि द्वारा सुविचारित और कर्मों का परिणाम है जो कोई व्यक्ति साहस से प्राप्त करता है।
प्रश्न 7.
कर्मण्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कर्म में आनंद अनुभव करने वालों का नाम ही कर्मण्य है। यह उच्च कर्मों के विधान में निहित रहता है।
प्रश्न 8.
‘कर्म-काल’ में समास का भेद छांटिए।
उत्तर :
‘संबंध तत्पुरुष’ समास।
प्रश्न 9.
‘तत्परता’ में प्रयुक्त प्रत्यय कौन-सा है?
उत्तर :
‘ता ‘प्रत्यय।
प्रश्न 10.
अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
उत्साह।
6. दु:ख के वर्ग में जो स्थान भय का है, वही स्थान आनंद-वर्ग में उत्साह का है। भय में हम प्रस्तुत कठिन स्थिति के नियम से विशेष रूप में दु:खी और कभी-कभी उस स्थिति से अपने को दूर रखने के लिए प्रयत्तवान भी होते हैं। उत्साह में हम आने वाली कठिन स्थिति के भीतर साहस के अवसर के निश्चय द्वारा प्रस्तुत कर्म-सुख की उमंग से अवश्य प्रयत्नवान होते हैं। उत्साह से कष्ट या हानि सहने की दृढ़ता के साथ-साथ कर्म में प्रवृत्ति होने के आनंद का योग रहता है। साहसपूर्ण आनंद की उमंग का नाम उत्साह है। कर्म-साँदर्य के उपासक ही सच्चे उत्साही कहलाते हैं।
जिन कर्मों में किसी प्रकार कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है उन सबके प्रति उत्क्ंठापूर्ण आनंद उत्साह के अंतर्गत लिया जाता है। कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं। साहित्य-मीमांसकों ने इसी दृष्टि से युद्ध-वीर, दान-वीर, दया-वीर इत्यादि भेद किए हैं। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा क्या मृत्यु तक की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यंत प्राचीन काल से पड़ता चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुँचते हैं। केवल कष्ट या पीड़ा सहन करने से साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता।
उसके साथ आनंदपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कंठा का योग चाहिए। बिना बेहोश हुए भारी फोड़ा चिराने को तैयार होना साहस कहा जाएगा, पर उत्साह नहीं। इसी प्रकार चुपचाप, बिना हाथ-पैर हिलाए, घोर प्रहार सहने के लिए तैयार रहना साहस और कठिन-से-कठिन प्रहार सहकर भी जगह से न हटना वीरता कही जाएगी। ऐसे साहस और वीरता को उत्साह के अंतर्गत तभी ले सकते हैं जब कि साइसी या वीर उस काम को आनंद के साथ करता चला जाएगा जिसके कारण उसे इतने प्रहार सहने पड़ते हैं। सारांश यह है कि आनंदपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कंठा में ही उत्साह का दर्शन होता है, केवल कष्ट सहने के निश्चेष्ट साहस में नहीं। वृति और साहस दोनों का उत्साह के बीच संचरण होता है।
दानवीर और अर्थ-त्याग का साहस अर्थात उसके कारण होने वाले कष्ट या कठिनता को सहने की क्षमता अंतर्निहित रहती है। दानवीरता तभी कही जाएगी जब दान के कारण दानी को अपने जीवन-निर्वाह में किसी प्रकार का कष्ट या कठिनता दिखाई देगी। इस कष्ट या कहिनता की मात्रा या संभावना जितनी ही अधिक होगी, दानवीरता उतनी ही ऊँची समझी जाएगी, पर इस अर्थ-त्याग के साहस के साथ ही जब तक पूर्ण तत्परता और आनंद के चिह्न न दिखाई पड़ेंगे तब तक उत्साह का स्वरूप न खड़ा होगा।
प्रश्न 1.
भय का स्थान किस वर्ग में है?
(क) दुख के वर्ग में
(ख) सुख के वर्ग में
(ग) क्रोध के वर्ग में
(घ) चिंता के वर्ग में
उत्तर :
(क) दु:ख के वर्ग में
प्रश्न 2.
उत्साह के बीच किनका संचरण होता है ?
(क) माया और मोह का
(ख) वृत्ति का साहस का
(ग) काम और क्रोध का
(घ) भय और क्रोध का
उत्तर :
(ख) वृत्ति और साहस का
प्रश्न 3.
मृत्यु तक की परवाह किस प्रकार की वीरता में नहीं होती?
(क) धर्मवीरता में
(ख) कर्मवीरता में
(ग) युद्धवीरता में
(घ) दानवीरता में
उत्तर :
(ग) युद्धवीरता में
प्रश्न 4.
उत्साह के भेद किन्होंने किए हैं ?
(क) कवियों ने
(ख) नेताओं ने
(ग) चिकित्सकों ने
(घ) साहित्य-मीमांसकों ने
उत्तर :
(घ) साहित्य-मीमांसकों ने
प्रश्न 5.
सच्चे उत्साही कौन होते हैं?
(क) कर्म सौँदर्य के उपासक
(ख) धर्म के उपासक
(ग) धर्मवीर
(घ) युद्धवीर
उत्तर :
(क) कर्म-सॉंदर्य के उपासक
प्रश्न 6.
उत्साह में किसका योग रहता है ?
उत्तर :
उत्साह में कष्ट या नुकसान सहने की दृढ़ता के साथ कर्म में प्रवृत्ति होने के आनंद का योग रहता है। कर्म सौंद्य में उत्साह का योग बना रहता है।
प्रश्न 7.
दानवीरता किसे कहा जा सकता है?
उत्तर :
दानवीरता उसे कहा जा सकता है जब दान देने वाले को अपने जीवन-निर्वाह में किसी प्रकार का कष्ट दिखाई देगा।
प्रश्न 8.
‘आनंद वर्ग’ में किस समास का प्रयोग है?
उत्तर :
‘तत्पुरुष’ समास
प्रश्न 9.
कठिनता का विपरीतार्थक लिखिए।
उत्तर :
सरलता
प्रश्न 10.
अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
उत्साह।
7. व्यापार और वाणिज्य ने यातायात के साधनों को सुलभ बनाने में योग दिया है। यद्यपि यातायात के साधनों में उन्नति युद्धों के कारण भी हुई है, तथापि युद्ध स्थायी संस्था नहीं हैं। व्यापार से रेलों, जहाज़ों आदि को प्रोत्साहन मिलता है और इनसे व्यापार को। व्यापार के आधार पर हमारे डाक-तार विभाग भी फले-फूले है। व्यापार ही देश की सभ्यता का मापदंड है। दूसरे देशों से जो हमारी आवश्यकताओं की पूरि होती है, वह व्यापार के बल-भरोसे पर ही होती है। व्यापार में आयात और निर्यात दोनों ही सम्मिलित हैं।
व्यापार और वाणिज्य की समृद्धि के लिए व्यापारी को अच्छा आचरण रखना बहुत आवस्यक है। उसे सत्य से ग्रेम करना चाहिए। अकेला यही गुण उसे अनेक सांसारिक झंझटों से बचाने में सफल हो सकेगा और उसे एक चतुर व्यापारी बना सकेगा, क्योंकि जो आदमी सच्चा होता है वह अपने काम-काज और व्यवहार में सादगी से काम लेता है। फल यह होता है कि उससे ग़लती कम होती है और नुकसान उउने के अवसर बहुत कम आते हैं। जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं, उनके अपने रोज़ाना के काम-काज और व्यवहार में उचित-अनुचित और अच्छे-बुरे का ध्यान अवश्य बना रहता है।
व्यापारी को आशावादी और शांत स्वभाव का होना चाहिए। उसे न निराश होने की आवश्यकता है और न क्रोध करने की। यदि आज थोड़ा नुकसान हुआ है तो कल फ़ायदा भी जरूर होगा, यह सोचकर उसे घबराना नहीं चाहिए। सेवा की पतवार के सहारे अपने व्यापार अथवा व्यवसाय की नाव को उत्साह सहित भैवर से निकाल ले जाने में बुद्धिमानी है। हारकर हाथ-पैर छोड़ देने से यश नहीं मिलता।
व्यापार ने हमारे सुख-साधनों को बढ़ाकर हमारे जीवन का स्तर ऊँचा किया है। हमारे विशाल भवन, गगनचुंबी अट्टालिकाएँ, स्वच्छ दुग्ध, फेनोण्ज्वल कटे-फटे वस्त्र, विद्युत्-प्रकाश, रेडियो, तार, टेलीविजन, रेल और मोटें सब हमारे क्यापार पर ही आश्रित हैं।
व्यापार में दूसरे देशों पर हमारी निर्भरता अभी बढ़ी हुई है। जब तक यह निर्भरता रहेगी तब तक हम सच्चे अर्थ में स्वतंत्र नहीं हो सकते हैं। हमें अपनी आवश्यकताओं को कम करके जीवन का स्तर नीचे गिराने की आवश्यकता नहीं है, वरन् हमको अपने देश का उत्पादन बढ़ाकर अन्य देशों की भाँति आत्मनिर्भरता प्राप्त कर लेना वांछनीय है। विलास की वस्तुओं के लिए धन बाहर भेजना लक्ष्मी का अपमान है। हम सभ्य तभी कहे जा सकते हैं, जब हम अपनी सभ्यता के प्रसाधनों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर करते रहें।
प्रश्न 1.
युद्ध कैसी संस्था नहीं हैं ?
(क) स्थाई
(ख) अस्थाई
(ग) लगातार चलने वाली
(घ) कभी नहीं होने वाली
उत्तर :
(क) स्थाई
प्रश्न 2.
डाक-तार विभाग किससे फले-फूले हैं?
(क) सरकार के कारण
(ख) व्यापार के कारण
(ग) जनता के कारण
(घ) कर्मचारियों के कारण
उत्तर :
(ख) व्यापार के कारण
प्रश्न 3.
देश की सभ्यता का मापदंड क्या है ?
(क) सरकार
(ख) जनता
(ग) व्यापार
(घ) समाज
उत्तर :
(ग) व्यापार
प्रश्न 4.
व्यापार में क्या-क्या सम्मिलित है?
(क) आयात
(ख) निर्यात
(ग ) क्रय-विक्रय
(घ) (क) तथा (ख) दोनों
उत्तर :
(घ) (क) तथा (ख) दोनों
प्रश्न 5.
हमारे जीवन को किसने ऊँचा किया है ?
(क) व्यापार
(ख) समाज
(ग) धर्म
(घ) सरकार
उत्तर :
(क) व्यापार ने
प्रश्न 6.
यातायात के साधनों को प्रोत्साहन किस कारण दिया गया था ?
उत्तर :
यातायात के साधनों को प्रोत्साहन व्यापार और वाणिज्य के साथ-साथ युद्धों ने अधिक दिया था।
प्रश्न 7.
किसी व्यापारी का आचरण कैसा होना चाहिए ?
उत्तर :
व्यापार और वाणिज्य की समृद्धि के लिए किसी भी व्यापारी को सत्य प्रेमी, सादगी पसंद, चतुर और व्यवहारकुशल होना चाहिए। उसे उचित-अनुचित में भेद की समझ होनी चाहिए। उसे विवेकी और आशावादी होना चाहिए।
प्रश्न 8.
डाक-तार में कौन-सा समास है ?
उत्तर :
द्वंदव समास।
प्रश्न 9.
‘प्रसाधनों’ में उपसर्ग छाँटिए।
उत्तर :
‘प्र’ उपसर्ग।
प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उच्चित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
व्यापारी की सफलता का रहस्य।
8. आज की मौत कल पर बकेलते-ढकेलते एक दिन ऐसा आ जाता है कि उस दिन मरना ही पड़ता है। यह प्रसंग उन पर नहीं आता, जो ‘मरण के पहले’ मर लेते हैं। जो अपना मरण आँखों से देखते हैं, जो मरण का ‘अगाऊ’ अनुभव कर लेते हैं उनका मरण है। और, जो मरण के अगाऊ अनुभव से जी चुराते हैं, उनकी छाती पर मरण आ पड़ता है। सामने खंभा है, यह बात अंधे को उस खंभे का छाती में प्रत्यक्ष धक्का लगने के बाद मालूम होती है। आँख वाले को यह खंभा पहले ही दिखाई देता है। अतः उसका धक्का उसकी छाती को नहीं लगता। ज़िंदगी की जिम्मेदारी कोई गिरी मौत नहीं है और मौत कौन ऐसी बड़ी मौत है ? जीवन और मरण दोनों आनंद की वस्तु होनी चाहिए। कारण, अपने परम प्रिय पिता ने-ईश्वर ने-वे हमें दिए हैं।
ईश्वर ने जीवन दुखमय नहीं रचा। पर, हमें जीवन जीना आना चाहिए। कौन पिता है, जो अपने बच्चों के लिए परेशानी की जिंदगी चाहेगा ? तिस पर ईश्वर के प्रेम और करुणा का कोई पार है ? वह अपने लाडले बच्चों के लिए सुखमय जीवन का निर्माण करेगा कि परेशानियों और झंझटों से भरा जीवन रचेगा? कल्पना की क्या आवश्यकता है, प्रत्यक्ष ही देखिए न, हमारे लिए जो चीज़ जितनी जरूरी है, उसके उतनी ही सुलभता से मिलने का इंतज्ञाम ईश्वर की ओर से है। पानी से हवा ज्यादा ज़रूरी है, तो ईश्वर ने हवा को अधिक सुलभ किया है।
जहाँ नाक है, वहाँ हवा मौजूद है। पानी से अन्न की ज्ञरूरत कम होने की वजह से पानी प्राप्त करने की बनिस्बत अन्न प्राप्त करने में अधिक परिश्रम करना पड़ता है। आत्मा सबसे अधिक महत्त्व की वस्तु होने के कारण, वह हर एक को हमेशा के लिए दे डाली गई है। ईश्वर की ऐसी प्रेमपूर्ण योजना है। इसका ख्याल न करके हम निकम्मे, जड़-जवाहरात जमा करने में जितने जड़ बन जाएँ, उतनी तकलीफ़ हमें होगी। पर, यह हमारी जड़ता का दोष है, ईश्वर का नहीं।
प्रश्न 1.
हमारी तकलीफों का ज्ञिम्मेदार कौन है ?
(क) स्वयं हम
(ख) पड़ोसी
(ग) रिश्तेदार
(घ) दुकानवार
उत्तर :
(क) स्वयं हम
प्रश्न 2.
प्रत्येक व्यक्ति को निश्चित रूप से कभी-न-कभी क्या मिलनी है?
(क) संपत्ति
(ख) मृत्यु
(ग) दुख
(घ) खुशी
उत्तर :
(ख) मृत्यु
प्रश्न 3.
ईश्वर ने जीवन कैसा नहीं रचा ?
(क) सुखमय
(ख) व्यर्थ
(ग) दुखमय
(घ) कठिन
उत्तर :
(ग) दुखमय
प्रश्न 4.
ईश्वर ने हमें क्या दिया है ?
( क) सुख
(ख) मन की शांति
(ग) चिंता
(घ) सुख प्रदान करने वाली सभी वस्तुएँ
उत्तर :
(घ) सुख प्रदान करने वाली प्रत्येक वस्तु
प्रश्न 5.
हमारे दुख किसका परिणाम हैं?
(क) हमारी जड़ता का
(ख) हमारे आलस्य का
(ग) हमारी बुद्धिमत्ता का
(घ) हमारी मेहनत का
उत्तर :
(क) हमारी जड़ता का
प्रश्न 6.
जीवन के लिए आवश्यक सुख-दुख कौन प्रदान करता है ?
उत्तर :
जीवन के लिए सभी आवश्यक सुख-दुख ईश्वर ही प्रदान करता है। उसी ने हवा दी और उसी ने पानी।
प्रश्न 7.
सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण वस्तु कौन-सी है ? वह कहाँ है ?
उत्तर :
सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु आत्मा है जो परमात्मा ने सभी को सदा के लिए दे दी है।
प्रश्न 8.
‘जिप्मेदारी’ में किस प्रत्यय का प्रयोग किया गया है ?
उत्तर :
‘ई’ प्रत्यय।
प्रश्न 9.
‘अभाव’ में से उपसर्ग छाँटिए।
उत्तर :
‘अ’ उपसर्ग।
प्रश्न 10.
अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
ईश्वर की अनुपम देन।
9. हिंदी अपना भविष्य किसी से दान में नहीं चाहती। वह तो उसकी गति का स्वाभाविक परिणाम होना चाहिए। जिस नियम से नदी-नदी की गति रोकने के लिए शिला नहीं बन सकती, उसी नियम से हिंदी भी किसी सहयोगिनी का पथ अवरुद्ध नहीं कर सकती। यह आकस्मिक संयोग न होकर भारतीय आत्मा की सहज चेतना ही है, जिसके कारण हिंदी के भावी कर्त्तव्य को जिन्होंने पहले पहचाना, वे हिंदी-भाषी नहीं थे। राजा राममोहन राय से महात्मा गांधी तक प्रत्येक सुधारक, साहित्यकार, धर्म-संस्थापक, साधक और चिंतक हिंदी के जिस उत्तरदायित्व की ओर संकेत करता आ रहा है, उसे नतशिर स्वीकार कर लेने पर ही हिंदी लक्ष्य तक नहीं पहुँच जाएगी, क्योंकि स्वीकृतिमात्र न गति है, न गंतव्य।
वस्तुत: संपूर्ण भारत संघ को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए उसे दोहरे संबल की आवश्यकता है। एक तो आंतरिक, जो मन के द्वारों को उन्मुक्त कर सके और दूसरा बाह्य, जो आकार को सबल और परिचित बना सके। अन्य प्रदेशों के लोकहृय के लिए तो वह अपरिचित नहीं है, क्योंकि दीर्घकाल से संत-साधकों की मर्मबानी बनकर ही नहीं, हाट-बाज्ञार की व्यवहार बोली के रूप में भी देश का कोना-कोना घूम चुकी है।
यदि आज उसे अन्य प्रदेशों से अविश्वास मिले, तो उसका वर्तमान खंडित और अतीत मिथ्या हो जाएगा। उसकी लिपि का स्वरूप भी मतभेदों का केंद्र बना हुआ है। सुदूर अतीत की ब्राहम से नागरी लिपि तक आते-आते उसके बाह्य रूप को समय के प्रवाह ने इतना माँजा और खरादा है कि उसे किसी बड़ी शल्य-चिकित्सा की आवश्यकता नहीं है। नाममात्र के परिवर्तन से ही वह आधुनिक युग के मुद्रण-लेखन यंत्रों के साथ अपनी संगति बैठा लेगी, परंतु तत्संबंधी विवादों ने उसका पथ प्रशस्त न करके उसके नैसर्गिक सौष्ठव को भी कुंठित कर दिया है। यदि चीनी जैसी चित्रमयी दुरूह लिपि अपने राष्ट्र-जीवन का संदेश वहन करने में समर्थ है, तो हमारी लिपि के मार्ग की बाधाएँ दुर्लघ्य कैसे मानी जा सकती हैं।
स्वतंत्रता ने हमें राजनीतिक मुक्ति देकर भी न मानसिक मुक्ति दी है और न हमारी दृष्टि को नया क्षितिज। हमारा शासन तंत्र और उसके संचालक भी उसके अपवाद नहीं हो सकते, परंतु हमारे पथ की सबसे बड़ी बाधा यह हमारी स्वतंत्र कार्य-क्षमता राज्यमुखापेक्षी होती जा रही है। पर अंधकार आलोक का त्योहार भी तो होता है। दीपक की लौ के ददय में बैठ सके ऐसा कोई बाण अँघेर के तूणीर में नहीं होता है। यदि हमारी आत्मा में विश्वास की निष्पक्ष लौ है, तो मार्ग उज्ज्वल रहेगा ही।
भाषा को सीखना उसके साहित्य को जानना है, और साहित्य को जानना मानव-एकता की स्वानुभूति है। हम जब साहित्य के स्वर में बोलते हैं, तब वे स्वर दुस्तर समुद्रों पर सेतु बाँधकर, दुलंघ्य पर्वतों को राजपथ बनाकर मनुष्य की सुख-दु:ख की कथा मनुष्य तक अनायास पहुँचा देते हैं। अस्त्रों की छाया में चलने वाले अभियान निष्फल हुए हैं, चक्रवर्तियों के राजनीतिक स्वप्न टूटे हैं, पर मानव-एकता के पथ पर खड़ा कोई चरण-चिहन अब तक नहीं मिटा है। मनुष्य को मनुष्य के निकट लाने का कोई स्वप्न अब तक भंग नहीं हुआ है। भारत के लोक-हदयय और चेतना ने अनंत युगों में जो मातृभूमि गढ़ी है, वह अथर्व के पृथ्वीसूक्त से वंदेमातरम् तक एक, अखंड और अक्षत रही है। उस पर कोई खरोंच हमारे अपने अस्तित्व पर चोट है।
प्रश्न 1.
हिंदी किनका मार्ग अवरुद्ध नहीं कर सकती ?
(क) अपनी सहयोगिनी भाषाओं की
(ख) देशी भाषाओं की
(ग) विवेशी भाषाओं की
(घ) आगत भाषाओं की
उत्तर :
(क) अपनी सहयोगिनी भाषाओं का
प्रश्न 2.
हिंदी का कौन-सा स्वरूप मतभेदों का केंद्र बना हुआ है?
(क) बोली का स्वरूप
(ख) लिपि का स्वरूप
(ग) व्याकरण का स्वसूप
(घ) विभाग का स्वरूप
उत्तर :
(ख) लिपि का स्वरूप
प्रश्न 3.
चीन की लिपि क्या है?
(क) देवनागरी
(ख) गुरुमुखी
(ग) चित्रमयी
(घ) फारसी
उत्तर :
(ग) चित्रमयी
प्रश्न 4.
मानव-एकता की स्वानुभूति क्या है ?
(क) साहित्य को पढ़ना
(ख) साहित्य को लिखना
(ग) साहित्य को वेखना
(घ) साहित्य को जानना
उत्तर :
(घ) साहित्य को जानना
प्रश्न 5.
पृथ्वीसूक्त किस ग्रंथ में मिलता है?
(क) अथर्ववेव
(ख) बजुवेवेंद
(ग) सामवेव
(घ) ऋग्वेद
उत्तर :
(क) अथर्ववेद
प्रश्न 6.
हिंदी का भविष्य कैसा होना चाहिए?
उत्तर :
हिंदी का भविष्य उसकी गति का स्वाभाविक परिणाम होना चाहिए। उसे किसी दूसरी भाषा का विरोध किए बिना अपना स्थान मिलना चाहिए।
प्रश्न 7.
हिंदी की भारतीय आत्मा को किसने पहचाना था ?
उत्तर :
हिंदी की भारतीय आत्मा को जिन महापुरुषों ने पहचाना था वे स्वयं अहिंदी भाषी थे। राजा राममोहन राय से महात्मा गांधी तक ने इसे नतशिर स्वीकार किया था।
प्रश्न 8.
‘फर्म-संस्थापक’ में कौन-सा समास है?
उत्तर :
‘संबंध तत्पुरुष’ समास।
प्रश्न 9.
‘अविश्वास’ में प्रयुक्त उपसर्ग लिखिए।
उत्तर :
‘अ’ उपसर्ग।
प्रश्न 10.
अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
मातृभाषा हिंदी।
10. हमारा हिमालय से कन्याकुमारी तक फैला हुआ देश, आकार और आत्मा दोनों दृष्टियों से महान और सुंदर है। उसका बाहय साँदर्य विविधता की सामंजस्यपूर्ण स्थिति है और आत्मा का सॉददर्य विविधता में छिपी हुई एकता की अनुभूति है।
चाहे कभी न गलने वाला हिम का प्राचीर हो, चाहे कभी न जमने वाला अतल समुद्र हो, चाहे किरणों की रेखाओं से खचित हरीतिमा हो, चाहे एकरस शून्यता ओढ़े हुए मरु हो, चाहे साँवले भरे मेष हों, चाहे लपटों में साँस लेता हुआ बवंडर हो, सब अपनी भिन्नता में भी एक ही देवता के विग्रह को पूर्णता देते हैं। जैसे मूर्ति के एक अंग का टूट जाना संपूर्ण देव-विग्रह को खंडित कर देता है, वैसे ही हमारे देश की अखंडता के लिए विविधता की स्थिति है।
यदि इस भौगोलिक विविधता में क्याप्त सांस्कृतिक एकता न होती, तो यह विविध नदी, पर्वत, वनों का संग्रह-मात्र रह जाता। परंतु इस महादेश की प्रतिभा ने इसकी अंतरात्मा को एक रसमयता में प्लावित करके इसे विशिष्ट व्यक्तित्व प्रदान किया है, जिससे यह आसमुद्र एक नाम की परिधि में बँध जाता है।
हर देश अपनी सीमा में विकास पाने वाले जीवन के साथ एक भौतिक इकाई है, जिससे वह समस्त विश्व की भौतिक और भौगोलिक इकाई से जुड़ा हुआ है। विकास की दृष्टि से उसकी दूसरी स्थिथि आत्म-रक्षात्मक तथा व्यवस्थापरक राजनीतिक सत्ता में है। तीसरी सबसे गहरी तथा व्यापक स्थिति उसकी सांस्कृतिक गतिशीलता में है, जिससे वह अपने विशेष व्यक्तित्व की रक्षा और विकास करता हुआ विश्व-जीवन के विकास में योग देता है। यह सभी बाह्य और स्थूल तथा आंतरिक और सूक्ष्म स्थितियाँ एक-दूसरे पर प्रभाव डालती और एक-दूसरी से संयमित होती चलती हैं।
एक विशेष भूखंड में रहने वाले मानव का प्रथम परिचय, संपर्क और संघर्ष अपने वातावरण से ही होता है और उससे प्राप्त जय, पराजय, समन्वय आदि से उसका कर्म-जगत ही संचालित नहीं होता, प्रत्युत अंतर्जगत और मानसिक संस्कार भी प्रभावित होते हैं।
प्रश्न 1.
किसी स्थान पर रहने वाले मानव का सबसे पहला परिचय किससे होता है?
(क) अपने वातावरण से
(ख) अपने परिवार से
(ग) शिक्षा से
(घ) अपने बेश से
उत्तर :
(क) अपने वातावरण से
प्रश्न 2.
हमारा देश कहाँ से कहाँ तक फैला हुआ है ?
(क) गुजरात से नागालैंड तक
(ख) हिमालय से कन्याकुमारी तक
(ग) कश्मीर से केरल तक
(घ) हिमाचल से आंध्रप्रदेश तक
उत्तर :
(ख) हिमालय से कन्याकुमारी तक
प्रश्न 3.
हमारे देश की भौगोलिक विविधता में क्या व्याप्त है ?
(क) अनेकता
(ख) सांस्कृतिक विविधता
(ग) आर्थिक अनेकता
(घ) सांस्कृतिक एकता
उत्तर :
(घ) सांस्कृतिक एकता
प्रश्न 4.
प्रत्येक देश अपनी सीमा में विकास पाने वाले जीवन के साथ क्या है?
(क) एक आर्थिक इकाई
(ख) एक सामाजिक इकाई
(ग) एक भौतिक इकाई
(घ) एक भौगोलिक इकाई
उत्तर :
(ग) एक भौतिक इकाई
प्रश्न 5.
हमारे देश की अंतरात्मा किसमे डूबी हुई है?
(क) एकता में
(ख) अनेकता में
(ग) विभिन्नता में
(घ) रसमयता में
उत्तर :
(घ) रसमयता में
प्रश्न 6.
हमारे देश की सुंदरता किसमें निहित है?
उत्तर :
हमारे देश की बाह्य सुंदरता विविधता के सामंजस्य और आत्मा की सुंदरता विविधता में छिपी एकता में निहित है।
प्रश्न 7.
कौन एक ही देवता के विग्रह को पूर्णता प्रदान करते हैं ?
उत्तर :
ऊँचे-ऊँचे बर्फ़ से ढके पर्वत, अतल गहराई वाले सागर, रेगिस्ताम, घने-काले बादल, बवंडर आदि देवता के विग्रह को पूर्णता प्रदान करते हैं।
प्रश्न 8.
‘आंतरिक’ में प्रत्यय छॉटिए।
उत्तर :
‘इक’ प्रत्यय।
प्रश्न 9.
‘विश्व-जीवन’ में कौन-सा समास है ?
उत्तर :
संबंध तत्पुरुष समास।
प्रश्न 10.
अवतरण को उच्चित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
देश की सांस्कृतिक एकता।
11. हमारे देश ने आलोक और अंधकार के अनेक युग पार किए हैं, परंतु अपने सांस्कृतिक उत्तराधिकार के प्रति वह नित्तांत सावधान रहा है। उसमें अनेक विचारधाराएँ समाहित हो गई, अनेक मान्यताओं ने स्थान पाया, पर उसका व्यक्तित्व सार्वभौम होकर भी उसी का रहा। उसके अंतर्गत आलोक ने उसकी वाणी के हर स्वर को उसी प्रकार उद्भासित कर दिया, जैसे आलोक हर तरंग पर प्रतिबिंबित होकर उसे आलोक की रेखा बना देता है। एक ही उत्स से जल पाने वाली नदियों के समान भारतीय भाषाओं के बाहय और आंतरिक रूपों में उत्सगत विशेषताओं का सीमित हो जाना ही स्वाभाविक था। कूप अपने अस्तित्व में भिन्न हो सकते हैं, परंतु धरती के तल का जल तो एक ही रहेगा। इसी से हमारे चिंतन और भावजगत में ऐसा कुछ नहीं है, जिसमें सब प्रदेशों के हृदय और बुद्धि का योगदान और समान अधिकार नहीं है।
आज हम एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थिति पा चुके हैं, राष्ट्र की अनिवार्य विशेषताओं में दो हमारे पास हैं-भौगोलिक अखंडता और सांस्कृतिक एकता परंतु अब तक हम उस वाणी को प्राप्त नहीं कर सके हैं, जिसमें एक स्वतंत्र राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के निकट अपना परिचय देता है। जहाँ तक बहुभाषा-भाषी होने का प्रश्न है, ऐसे देशों की संख्या कम नहीं है जिनके भिन्न भागों में भिन्न भाषाओं की स्थिति है। पर उनकी अविच्छिन्न स्वतंत्रता की परंपरा ने उन्हें सम-विषम स्वरों से एक राग रच लेने की क्षमता दे दी है।
हमारे देश की कथा कुछ दूसरी है। हमारी परतंत्रता आँधी-तूफ़ान के समान नहीं आई, जिसका आकस्मिक संपर्क तीव्र अनुभूति से अस्तित्व को कंपित कर देता है। वह तो रोग के कीटाणु लाने वाले मंद समीर के समान साँस में समाकर शरीर में व्याप्त हो गई है। हमने अपने संपूर्ण अस्तित्व से उसके भार को दुर्वह नहीं अनुभव किया और हमें यह ऐतिहासिक सत्य भी विस्मृत हो गया कि कोई भी विजेता विजित कर राजनीतिक प्रभुत्व पाकर ही संतुष्ट नहीं होता, क्योंकि सांस्कृतिक प्रभुत्व के बिना राजनीतिक विजय न पूर्ण है, न स्थायी। घटनाएँ संस्कारों में चिर जीवन पाती हैं और संस्कार के अक्षयवाहक, शिक्षा, साहित्य, कला आदि हैं।
दीर्घकाल से विदेशी भाषा हमारे विचार-विनिमय और शिक्षा का माध्यम ही नही रही, वह हमारे विद्ववान और संस्कृत होने का प्रमाण भी मानी जाती रही है। ऐसी स्थिति में यदि हममें से अनेक उसके अभाव में जीवित रहने की कल्पना से सिहर उठते हैं, तो आश्चर्य की बात नही। परलोक की स्थिति को स्थायी मानकर तो चिकित्सा संभव नहीं होती। राष्ट्र-जीवन की पूर्णता के लिए उसके मनोजगत को मुक्त करना होगा और यह कार्य विशेष प्रयत्न-साध्य है, क्योंकि शरीर को बाँधने वाली शृंखला से आत्मा को जकड़ने वाली शृंखला अधिक दृढ़ होती है।
आज राष्ट्रभाषा की स्थिति के संबंध में विवाद नहीं है, पर उसे प्रतिष्ठित करने के साधनों को लेकर ऐसी विवादैषणा जागी है कि साध्य ही दूर से दूरतम होता जा रहा है। विवाद जब तर्क की सीधी रेखा पर चलता है, तब लक्ष्य निकट आ जाता है, पर जब उसके मूल में आशंका, अविश्वास और अनिच्छा रहती है, तब कहीं न पहुँचना ही उसका लक्ष्य बन जाता है।
प्रश्न 1.
अनेक विच्चारधाराएँ किसमें समाहित हो गई हैं ?
(क) हमारे वातावरण में
(ख) देश में
(ग) हमारे समाज में
(घ) हमारी संस्कृति में
उत्तर :
(घ) हमारी संस्कृति में
प्रश्न 2.
हमें आँधी-तूफ़ान की तरह क्या प्राप्त नहीं हुआ ?
(क) वेग
(ख) धूल
(ग) स्वतंत्रता
(घ) परतंत्रता
उत्तर :
(ग) स्वतंत्रता
प्रश्न 3.
कोई स्वतंत्र राष्ट्र किस माध्यम से अपना परिचय दूसरे स्वतंत्र राष्ट्रों को देता है ?
(क) अपनी उन्नति से
(ख) अपनी मातृभाषा से
(ग) अपने व्यवहार से
(घ) अपने देशवासियों से
उत्तर :
(ख) अपनी मातृभाषा से
प्रश्न 4.
राजनीतिक विजय किसके बिना अधूरी रहती है ?
(क) सास्कृतिक प्रभुत्व के बिना
(ख) राजनीतिक प्रभुत्व के बिना
(ग) भौतिक प्रभुत्व के बिना
(घ) भौगोलिक प्रभुत्व के बिना
उत्तर :
(क) सांस्कृतिक प्रभुत्व के बिना
प्रश्न 5.
घटनाएँ किसमें चिरजीवन प्राप्त करती हैं ?
(क) व्यवहार में
(ख) विचारों में
(ग) मन में
(घ) संस्कारों में
उत्तर :
(घ) संस्कारों में
प्रश्न 6.
हमारा देश प्रमुख रूप से किसके प्रति सावधान रहा है ?
उत्तर :
हमारे देश ने अनेक संकटों को झेला है। उसे अनेक विचारधाराएँ और मान्यताएँ मिली हैं पर फिर भी वह सदा अपने सांस्कृतिक उत्तराधिकार की रक्षा के प्रति सावधान रहता है।
प्रश्न 7.
राष्ट्र की कौन-सी दो अनिवार्य विशेषताएँ हमारे पासं हैं ?
उत्तर :
हमारे पास भौगोलिक अखंडता और सांस्कृतिक एकता है।
प्रश्न 8.
‘व्यक्तित्व’ में किस प्रत्यय का प्रयोग है ?
उत्तर :
‘त्व’ प्रत्यय।
प्रश्न 9.
‘राष्ट्र-जीवन’ में कौन-सा समास है ?
उत्तर :
‘संबंध तत्पुरुष’ समास।
प्रश्न 10.
अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
राष्ट्रभाषा की स्थिति।
12. जातियाँ इस देश में अनेक आई हैं। लड़ती-झगड़ती भी रही हैं, फिर प्रेमपूर्वक बस भी गई हैं। सभ्यता की नाना सीढ़ियों पर खड़ी और नाना ओर मुख करके चलने वाली इन जातियों के लिए एक सामान्य धर्म खोज निकालना कोई सहज बात नहीं थी। भारतवर्ष के ऋषियों ने अनेक प्रकार से अनेक ओर से इस समस्या को सुलझाने की कोशिश की थी पर एक बात उन्होंने लक्ष्य की थी। समस्त वर्णों और समस्त जातियों का एक सामान्य आदर्श भी है। वह है अपने ही बंधनों से अपने को बाँधना। मनुष्य पशु से किस बात में भिन्न है ? आहार-निद्रा आदि पशुसुलभ स्वभाव उसके ठीक वैसे ही हैं, जैसे अन्य प्राणियों के लेकिन वह फिर भी पशु से भिन्न है।
उसमें संयम है, दूसरे के सुख-दु:ख के प्रति संवेदना है, श्रद्धा है, तप है, त्याग है। यह मनुष्य के स्वयं के उद्भावित बंधन हैं। इसीलिए मनुष्य झगड़े-टंटे को अपना आदर्श नहीं मानता, गुस्से में आकर चढ़ दौड़ने वाले अविवेकी को बुरा समझता है और वचन, मन और शरीर से किए गए असत्याचरण को गलत आचरण मानता है। यह किसी खास जाति या वर्ण या समुदाय का धर्म नहीं है। वह मनुष्य-मात्र का धर्म है। महाभारत में इसीलिए सत्य और अक्रोध को सब वर्णों का सामान्य धर्म कहा है –
एवद्धि त्रितयं श्रैष्ठं सर्वभूतेषु भारत।
निर्वेरत महाराज सत्यमक्रोध एव च॥
अन्यत्र इसमें निरंतर दानशीलता को भी गिनाया गया है। गौतम ने ठीक ही कहा था कि मनुष्य की मनुष्यता यही है कि यह सब के दुःख-सुख को सहानुभूति के साथ देखता है। यह आत्म-निर्मित बंधन ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है। अहिंसा, सत्य और अक्रोधमूलक धर्म का मूल उत्स यही है। मुझे आश्चर्य होता है कि अनजाने में भी हमारी भाषा से यह भाव कैसे रह गया है। लेकिन मुझे नाखून के बढ़ने पर आश्चर्य हुआ था अज्ञान सर्वत्र आदमी को पछाड़ता है। और आदमी है कि सदा उससे लोहा लेने को कमर कसे है।
मनुष्य को सुख कैसे मिलेगा ? बड़े-बड़े नेता कहते हैं, वस्तुओं की कमी है, और मशीन बैठाओ, और उत्पादन बढ़ाओ, और धन की वृद्धि करो, और बाहय उपकरणों की ताकत बढ़ाओ। एक बूढ़ा था। उसने कहा था—बाहर नहीं, भीतर की ओर देखो। हिंसा को मन से दूर करो, मिथ्या को हटाओ, क्रोध और द्वेष को दूर करो, लोक के लिए कष्ट सहो। आराम की बात मत सोचो, प्रेम की बात सोचो, आत्म-पोषण की बात सोचो, काम करने की बात सोचो। उसने कहा-प्रेम ही बड़ी चीज़ है, क्योंकि वह हमारे भीवर है। उच्छृंखलता पशु की प्रवृत्ति है, ‘स्व’ का बंधन मनुष्य का स्वभाव है। बूढ़े की बात अच्छी लगी या नहीं, पता नहीं। उसे गोली मार दी गई। आदमी के नाखून बढ़ने की प्रवृत्ति ही हावी हुई। मैं हैरान हो कर सोचता हूँ-बूढ़े ने कितनी गहराई में पैठ कर मनुष्य की वास्तविक चरितार्थता का पता लगाया था।
प्रश्न 1.
पशु की मूल प्रवृत्ति क्या है ?
(क) जड़ता
(ख) लालच
(ग) उच्छृंखलता
(घ) बढ़ना
उत्तर :
(ग) उच्छृंखलता
प्रश्न 2.
विभिन्न जातियाँ पहले क्या कर रहीं थीं ?
(क) मेल-जोल बढ़ाना
(ख) आपस में लड़ाई-झगड़ा
(ग) अपनी जाति का प्रचार
(घ) दूसरी जाति का प्रचार-प्रसार
उत्तर :
(ख) आपस में लड़ाई-झगड़ा
प्रश्न 3.
तरह-तरह की ज्ञातियों के लिए क्या खोजना कठिन था ?
(क) एक सामान्य धर्म
(ख) एक जाति
(ग) एक समाज
(घ) एक वर्ग
उत्तर :
(क) एक सामान्य धर्म
प्रश्न 4.
मनुष्य किसे अपना आदर्श नहीं मानता ?
(क) धर्म को
(ख) झगड़े-टंटे को
(ग) समाज को
(घ) परिवार को
उत्तर :
(ख) झगड़े-टंटे को
प्रश्न 5.
‘स्व’ का बंधन किसका स्वभाव है?
(क) पशु का
(ख) व्यापार का
(ग) मानव का
(घ) जाति का
उत्तर :
(ग) मानव का
प्रश्न 6.
ऋषियों ने क्या किया था ?
उत्तर :
प्राचीन काल में ऋषियों ने समस्याओं को सुलझाने की अनेक प्रकार से कोशिश की थी और सभी के लिए आदर्श स्थापित किया था।
प्रश्न 7.
मनुष्य में पशु से भिन्न क्या है?
उत्तर :
मनुष्य में पशुओं से संयम, सुख-दु:ख के प्रति संवेदना, श्रद्धा, तप और त्याग की भावनाएँ भिन्न हैं। यही उन्हें पशुओं से श्रेष्ठ बनाती हैं।
प्रश्न 8.
‘लड़ती-झगड़ती’ में समास का नाम बताइए।
उत्तर :
‘द्वंदव’ समास।
प्रश्न 9.
‘उच्छंखलता’ में प्रत्यय कौन-सा है ?
उत्तर :
‘ता’ प्रत्यय।
प्रश्न 10.
अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
मनुष्य जीवन में सुख के आधार।
13. मैं घहरते हुए सावन-भादों में भी वहाँ गया हूँ और मैंने इस प्रपात के उद्गम यौवन के उस महावेग को भी देखा है जो सौ-डेढ़-सौ फीट की अपनी चौड़ी धारा की प्रबल भुजाओं में धरती के चटकीले धानी आँचर में उफनाते सावन को कस लेने के लिए व्याकुल हो जाता है और मैने देखा है कि जब अंबर के महलों में घनालिंगन करने वाली सौदामिनी धरती के इस सौभाग्य की ईर्ष्या में तड़प उठती है, तब उस तड़पन की कौँध में इस प्रपात का उमड़ाव फूलकर दुगुना हो जाता है।
शरद की शुभ्र ज्योत्सा में जब यामिनी पुलकित हो गई है और जब इस प्रपात के यौवन का मद खुमार पर आ गया है और उस खुमारी में इसका सौँदर्य मुग्धा के वदनमंडल की भौति और अधिक मोहक बन गया है, तब भी मैने इसे देखा है और तभी जाकर मैंने शरदिंदु को इस प्रपात की शांत तरल स्फटिक-धारा पर बिछलते हुए देखा है।
पहली बार जब मैं गया था तो वहाँ ठहरने के लिए कोई स्थान नहीं बना था और इसलिए खड़ी दुपहरी में चट्टानों की ओट में ही छाँह मिल सकी थी। ये भूरी-भूरी चट्टानें पानी के आघात से घिस-घिसकर काफ़ी समतल बन गई हैं और इनका ढाल बिल्कुल खड़ा है। इन चट्टानों के कगारों पर बैठकर लगभग सात-आठ हाथ दूर प्रपात के सीकरों का छिड़काव रोम-रोम से पिया जा सकता है। इन शिलाओं से ही कुंड में छलाँग मारने वाले धवल जल-बादल पेंग मारते से दिखाई देते हैं और उनके मंद गर्जन का स्वर भी जाने किस मल्हार के राग में चढ़ता-उतरता रहता है कि मन उसमें खो-सा जाता है।
एक शिला की शीतल छाया में कगार के नीचे पैर डाले मैं बड़ी देर तक बैठे-बैठे सोचता रहा कि मृत्यु के गहन कूप की जगत पर पैर लटकाए भले ही कोई बैठा हो, किंतु यदि उसे किसी ऐसे सँददर्य के उद्रेक का दर्शन मिलता रहे तो वह मृत्यु की भयावह गहराई भूल जाएगा। मृत्यु स्वयं ऐसे उन्मादी सौँदर्य के आगे हार मान लेती है, नहीं तो समय की कसौटी पर यौवन का गान अमिट स्वर्ण-रेखा नहीं खींच सकता था। मिट्टी में खिले हुए गुलाब की पंबुड़ियाँ भर जाती हैं और उनको झरते देख मृत्यु हैसना चाहती है, पर उस मिट्टी में से जब गुलाब की गंध ओस पड़ने पर उसाँस की भाँति निकल पड़ती है, तब मृत्यु गलकर पानी हो जाती है।
मैं सोचता रहा कि यहाँ जो अजर-अमर साँदर्य उमड़ा चला जा रहा है, वह स्वयं विलय का साँदर्य है-विलय मटमैली धारा का शुभ्र जल-कणों में, शुभ्र जल-कणों की राशि का शुभ्रतर वाण में और वाष्य का साँदर्य के रस-भरे जूही-लदे घुँघराले और लहरीले चूड़ापाश में। यह चूड़ापाश जूहियों से इस तरह सज जाता है कि उसके निचले छोर की श्यामलता भर दिखाई पड़ सकती है। एक अद्वितीय चाँदनी उसे ऊपर से छाप लेती है। मैंने देखा कि साँझ हो आई है। सूर्य की तिरछी किरणें जाते-जाते इस सॉददर्य का रहस्य-भेदन करते जाना चाहती हैं। पर जैसे प्रपात जाने कितने कवच-मंत्र-उच्चारण करता हुआ और मुखर हो रहा है और अपने को इस प्रकार समेट रहा है कि रवि-रशिमयों का प्रयत्न आप से आप विफल हो रहा है।
प्रश्न 1.
जब लेखक पहली बार वहाँ गया था तो कहाँ रुका था ?
(क) होटल में
(ख) मित्र के घर पर
(ग) सराय में
(घ) चद्टानों की ओट में
उत्तर :
(घ) चट्टानों की ओट में
प्रश्न 2.
सूर्य की किरणें जल-प्रपात को क्या प्रदान करती हैं?
(क) अपार सुंवरता
(ख) रोशनी
(ग) प्रकाश
(घ) किरणें
उत्तर :
(क) अपार सुंदरता
प्रश्न 3.
लेखक जल-प्रपात को देखने किन महीनों में गया था ?
(क) माध में
(ख) सावन-भादों में
(ग) फाल्गुन में
(घ) अषाढ़ में
उत्तर :
(ख) सावन-भादों में
प्रश्न 4.
लेखक कहाँ बैठकर सोच रहा था ?
(क) नदी किनारे
(ख) कमरे में
(ग) कगार के नीचे
(घ) झरने के पास
उत्तर :
(ग) कगार के नीचे
प्रश्न 5.
चद्टानों के कगारों से प्रपात के सीकरों की दूरी कितनी है ?
(क) लगभग सात-आठ हाथ
(ख) लगभग पाँच-छह हाथ
(ग) दस फीट
(घ) दस मीटर
उत्तर :
(क) लगभग सात-आठ हाथ।
प्रश्न 6.
जल-प्रपात का फैलाव वर्षा ऋतु में कैसा हो जाता है ?
उत्तर :
जल-प्रपात का फैलाव वर्षा ऋतु में बढ़कर दुगुना हो जाता है और वह उफनते सावन को कस लेने के लिए व्याकुल-सा हो उठता है।
प्रश्न 7.
शरद की चाँदनी में जल-प्रपात लेखक को कैसा प्रतीत हुआ था ?
उत्तर :
लेखक को शरद की चाँदनी में जल-प्रपात ऐसा लगा था जैसे वह शांत रूप में स्फटिक धारा पर फैला हुआ हो। वह चाँदनी में जगमगा रहा था।
प्रश्न 8.
‘स्वर्ण-रेखा’ में कौन-सा समास है ?
उत्तर :
‘संबंध तत्पुरुष’ समास।
प्रश्न 9.
‘श्यामलता’ में प्रत्यय छाँटिए।
उत्तर :
‘ता’ प्रत्यय।
प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
जल-प्रपात का साँदर्य।
14. निराला जी के त्याग की कहानियाँ तो अनंत हैं। उनकी डायरी लिखी जा सकती है। मतवाला प्रति शनिवार को निकलता था। उस दिन प्रात:काल को कई बंगाली स्नातक युवक अपनी साइकिल लेकर पहुँच जाते थे। वे प्रति सप्ताह आखबार बेचकर अपना कमीशन ले लेते थे। मतवाला की काफ़ी धूम और धाक थी। गरीब छात्रों को उसकी बिक्री से पर्याप्त सहायता मिल जाती थी। एक दिन एक अत्यंत दीन-मलीन छात्र से निराला जी हाल-चाल पूछने लगे। उसे फटेहाल देख ऐसे द्रवित हुए कि डेढ़ सौ रुपए की नई साइकिल तो खरीद ही दी, उसके लिए डबल सूट भी बनवा दिया और कहा कि स्वावलंबन का सहारा मत छोड़ो तथा पुस्तकें खरीदने के लिए पैसे मुझसे लेते जाओ।
मतवाला कार्यालय का दरबान गोरखपुर-बस्ती की ओर का रहने वाला एक नौजवान था। वह निराला जी को ‘गुरु जी’ कहा करता था। उसकी शादी तय हुई, तब निराला जी ने रेशमी साड़ी, मखमली कुर्ती, सोने का इयर-रिंग (कर्णाभूषण) इत्र-फुलेल आदि खरीदकर दस रुपए नेवते के साथ भेज दिया। यह काम उन्होंने बिल्कुल गुपचुप किया। उनकी कमाई के अधिकांश पैसे मौन भाव से परोपकार में ही खर्च होते।
सुद्द-संघ (मुजफ्फरपुर) के वार्षिकोत्सव से लखनऊ लौटते समय मुझसे मिलने के लिए बीच में छपरा उतरे, तो रिक्शे वाले की फ्टी गंजी देख उससे हाल-चाल पूछने लगे और एक नई गंजी तथा एक नया अँगोछा खरीदकर अपने सामने ही फटी गंजी निकलवाई और नई पहनाई। वह बेचारा रोता हुए उनके चरणों में लोटने लगा।
निराला जी वास्तव में निराला ही थे। अंगूर का गुच्छा या मीठे खजूर की पुड़िया किसी भिखारी के हाथ में देते समय हँसकर कह भी देते थे कि इसे मेरे सामने चखकर देखो तो कैसा है। एक दिन एक कंगले को लाल सेब देकर उसे सीख देने लगे कि इसे तू खाएगा तो तेरा चेहरा ऐसा ही सुर्ख हो जाएगा, जिसपर उसने दीनतापूर्वक हँसकर कहा कि एक दिन आप की मर्जीं से यह खाने को मिल ही गया तो क्या इतने से ही मेरे सूखे बदन में खून आ जाएगा, मालिक ! यह सुनकर निराला जी ने सेठ जी से कहा कि इसे दो रुपए दे दीजिए, यह और भी खरीद कर खाएगा। सेठ जी ने भी बिना हिचक वैसा ही किया और जब मुंशी जी ने ठहाके के साथ यह कह दिया कि इतने पैसे से भी नया खून लाने भर सेब नहीं खा सकता, तब अपनी जेब से झट निकाल कर एक रुपया फिर दिया।
निराला जी संसार से ऐसे निस्संग रहे कि जीवन भर फक्कड़शाह बने रहे। उनके पास न अपना कोई संदूक था, न ताला-कुंजी थी। कपड़ेलत्ते और रुपए-पैसे की मोह ममता तो थी ही नहीं। अपनी धुन में मस्त रहने से फुरसत ही कहाँ थी। रुपए-पैसे का हिसाब-किताब रखने का अभ्यास ही नहीं था। तकिए के नीचे नंबरी नोट पड़े रहते, पर इन नोटों को उनके पास पड़े रहने का अवकाश कहाँ मिलता था। पूरे चौबीस घंटे तक उनके पास जो द्रव्य ठहर जाए, उसका अहोभाग्य!
निराला जी की ये कहानियाँ आज के युग में उपन्यास की मनगढ़ंत बातें भले ही समझी जाएँ, पर आज जो निराला की पूजा-प्रतिष्ठा हो रही है, उससे उनकी साधना स्वत: सिद्ध हो रही है। पुण्यबल के बिना कीर्ति-प्रसार कदापि नहीं होता। निस्पृह त्याग से बढ़कर कोई पुण्य भी नहीं। व्यास वचनानुसार “परोपकाराय पुण्याय” तभी मनुष्य कर पाता है जब उसकी प्रकृति में त्याग-वृत्ति की प्रधानता रहती है।
प्रश्न 1.
निराला जी अपनी कमाई का अधिकांश भाग किस पर खर्च कर देते थे?
(क) परोपकार में
(ख) पुस्तकों पर
(ग) छात्रों पर
(घ) परिवार पर
उत्तर :
(क) परोपकार में
प्रश्न 2.
मतवाला कब निकला करता था ?
(क) प्रत्येक रविवार को
(ख) प्रत्येक शनिवार को
(ग) प्रत्येक सोमवार को
(घ) प्रत्येक शुक्रवार को
उत्तर :
(ख) प्रत्येक शनिवार को
प्रश्न 3.
बंगाली युवक मतवाला बेचकर क्या प्राप्त करते थे?
(क) भोजन
(ख) आश्रय
(ग) अपना कमीशन
(घ) पूरा पैसा
उत्तर :
(ग) अपना कमीशन
प्रश्न 4.
मतवाला का दरबान कहाँ का रहने वाला था ?
(क) दिल्ली
(ख) छपरा
(ग) मुजफ्फरपुर
(घ) गोरखपुर बस्ती की ओर का
उत्तर :
(घ) गोरखपुर बस्ती की ओर का
प्रश्न 5.
निराला लेखक से मिलने के लिए कहाँ गए थे ?
(क) छपरा
(ख) मुजफ्फरपुर
(ग) गोरखपुर
(घ) बलिया
उत्तर :
(क) छपरा
प्रश्न 6.
निराला जी के त्याग की कहानियाँ कितनी हैं?
उत्तर :
निराला जी के त्याग की कहानियाँ अनंत हैं। उनकी तो डायरी लिखी जा सकती है।
प्रश्न 7.
निराला जी की किस पत्रिका की धूम थी?
उत्तर :
निराला जी की पत्रिका ‘मतवाला’ की धूम थी।
प्रश्न 8.
‘सुहद’ में किस उपसर्ग का प्रयोग है?
उत्तर :
‘सु’ उपसर्ग।
प्रश्न 9.
‘ताला-कुंजी’ में कौन-सा समास है?
उत्तर :
‘द्वंद्व’ समास।
प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उच्चित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
महाप्राण निराला।
15. कवियों, शायरों तथा आम आदमी को सम्मोहित करने वाला ‘पलाश’ आज संकट में है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर इसी पलाश का विनाश जारी रहा तो यह ‘डाक के तीन पात’ वाली कहावत में ही बचेगा। अरावली और सतपुड़ा पर्वत शृंखलाओं में जब पलाश वृक्ष चैत (वसंत) में फूलता था तो लगता था कि वन में आग लग गई हो अथवा अग्निदेव फूलों के रूप में खिल उठे हों।
पलाश पर एक-दो दिन में ही संकट नहीं आ गया है। पिछले तीस-चालीस वर्षों में दोना-पत्तल बनाने वालों, कारखाने बढ़ने, गाँव-गाँव में चकबंदी होने तथा वन माफियाओं द्वारा अंधाधुँध कटान कराने के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में पलाश के वन घटकर दस प्रतिशत से भी कम रह गए हैं। वैज्ञानिकों ने पलाश वनों को बचाने के लिए ऊतक संवद्धन (टिशू कल्चर) द्वारा परखनली में पलाश के पौधों को विकसित कर एक अभियान चलाकर पलाश वन रोपने की योजना प्रस्तुत की है। हरियाणा तथा पुणे में ऐसी दो प्रयोगशालाएँ भी खोली हैं।
एक समय था जब बंगाल का पलाशी का मैदान, अरावली की पर्वत-मालाएँ टेसू के फूलों के लिए दुनिया भर में मशहूर थी। विदेशों से लोग पलाश के रक्तिम वर्ण के फूल देखने आते थे। महाकवि पद्माकार का छंद-‘ कहै पद्माकर परागन में, पौन हूँ में, पानन में, पिक में, पलासन पगंत है।’ लिखकर पलाश की महिमा बखान की थी। ब्रज, अवधी, बुंदेलखंडी, राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी, लोकगीतों में पलाश के गुण गाए गए हैं। कबीर ने तो ‘खांखर भया पलाश’ – कहकर पलाश की तुलना एक ऐसे सुंदर-सजीले नवयुवक से की है, जो अपनी जवानी में सबको आकर्षित कर लेता है किंतु बुढ़ापे में अकेला रह जाता है। वसंत व ग्रीष्म ऋतु में जब तक टेसू में फूल व हरे-भरे पत्ते रहते हैं, उसे सभी निहारते हैं किंतु शेष आठ महीने वह पतझड़ का शिकार होकर झाड़-झंखाड़ की तरह रह जाता है।
पर्यावरण के लिए प्लास्टिक-पालीथीन की थैलियों पर रोक लगने के बाद पलाश की उपयोगिता महसूस की गई, जिसके पत्ते, दोनों, थैले, पत्तल, थाली, गिलास सहित न जाने कितने काम में उपयोग में आ सकते है। पिछले तीस-चालीस साल में नब्बे प्रतिशत वन नष्ट कर डाले गए। बिन पानी के बंजर, ऊसर तक में उग आने वाले इस पेड़ की नई पीढ़ी तैयार नहीं हुई। यदि यही स्थिति रही और समाज जागरूक न हुआ तो पलाश विलुप्त वृक्ष हो जाएगा।
प्रश्न 1.
किन लोकगीतों में पलाश का वर्णन किया गया है?
(क) ब्रज्ज
(ख) अवधी
(ग) पंजाबी
(घ) इन सभी में
उत्तर :
(घ) इन सभी में
प्रश्न 2.
पलाश की उपयोगिता कब अनुभव की गई?
(क) चकबंदी के बाद
(ख) ऊतक संवर्धन द्वारा पलाश उगान के बाद
(ग) प्लास्टिक की थैलियों पर रोक लगाने के बाद
(घ) जमीन बंजर होने के बाद
उत्तर :
(ग) प्लास्टिन,पॉलीथीन की थैलियों पर रोक लगने के बाद
प्रश्न 3.
पलाश पर अधिक संकट कब से आया है?
(क) पिछले दो-तीन वर्षों से
(ख) पिछले दस-बीस वर्षों से
(ग) पिछले बीस-तीस वर्षों से
(घ) पिछले तीस-चालीस वर्षों से
उत्तर :
(घ) पिछले तीस-चालीस वर्षों से
प्रश्न 4.
पलाश के वन घट कर कितने रह गए हैं?
(क) पचास प्रतिशत से भी कम
(ख) तीस प्रतिशत से भी कम
(ग) बीस प्रतिशत से भी कम
(घ) दस प्रतिशत से भी कम
उत्तर :
(घ) दस प्रतिशत से भी कम
प्रश्न 5.
पलाश किन स्थितियों में उग सकता है?
(क) उपजाक स्थान में
(ख) केवल नमी वाले स्थानों
(ग) बंजर और ऊसर स्थान में भी
(घ) केवल लाल मिद्टी
उत्तर :
(ग) बंजर और ऊसर स्थान में भी
प्रश्न 6.
अरावली और सतपुड़ा में पलाश के वृक्ष कैसे लगते थे ?
उत्तर :
अरावली और सतपुड़ा पर्वत शृंखलाओं में फूले हुए पलाश के वृक्ष ऐसे लगते थे जैसे जंगल में आग लग गई हो या अंग्निदेव फूलों के रूप में खिल उठे हों।
प्रश्न 7.
पलाश के वृक्ष कम क्यों रह गए हैं?
उत्तर :
पलाश के वृक्षों की अंधाधुँध कटाई, गाँवों की चकबंदी आदि के कारण इनकी संख्या बहुत कम रह गई है।
प्रश्न 8.
‘सम्मोहित’ में प्रत्यय छॉटिए।
उत्तर :
‘इत’ प्रत्यय।
प्रश्न 9.
‘दोना-पत्तल’ में समास का भेद छॉटिए।
उत्तर :
दोना और पत्तल = ‘द्वंद्व’ समास।
प्रश्न 10.
अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
पलाश।
16. भाषा और धर्म किसी भी संस्कृति के मूलाधार होते हैं। धर्म वह मूल्य तय करता है जिनसे जनसमूह संचालित होते हैं और भाषा सनातन मानव परंपराओं की वाहक और नई अभिव्यक्ति का वाहन दोनों है। निर्मल के रचना संसार में भारतीय धर्मों और भाषाओं की अचरजपूर्ण भिन्नता के प्रति एक सहज उत्सुकता और आदर का भाव हर कहीं है लेकिन इसी के साथ एक त्रासद एहसास भी है कि असली लड़ाई बाहरी युद्ध क्षेत्रों में नहीं, मनुष्यों के मनों में चलती है और आवश्यकता नहीं कि उस लड़ाई में जीत हमेशा उदात्त, धर्यवान और क्षमाशील तत्वों की ही हो। “मैं उस क्षण जार्ज से डरने लगा। खुद अपने से डरने लगा।
मुझे लगा, जैसे मैं अब कभी उसकी और नहीं देख सकूँगा। उस क्षण में कोई भयंकर चीज़ कर सकता है। मैं उससे बहुत कुछ कहना चाहता था, कुछ भी…..किंतु अब हम दोनों एक संग होते हुए भी अचानक अकेले पड़ गए थे और मैं कुछ भी नहीं कर सकता था…। शायद इससे भयंकर और कोई चीज़ नही जब दो व्यक्ति एक संग होते हुए भी यह अनुभव कर लें कि उनमें से कोई भी एक-दूसरे को नहीं बचा सकता….. ।”‘ (लंदन की एक रात)
इस दर्शन के कारण आदमी, देवता, नदी, पर्वत, वनोपवन से जुड़े मिथकों की एक धुंध हमेशा उनके मन को आधुनिक जीवन जीने के बीच स्वदेश, परदेश हर कहीं घेरे रहती है। ‘मिथक मनुष्य की ‘सर्जना’ उतनी नहीं, जितना वह मनुष्य की अज्ञात, अनाम, सामूहिक चेतना का अंग हैं इसके द्वारा अर्थ-ग्रहण किया जाता है …कला चेतना की उपज है (जो) …..उदात्ततम क्षणों में मिथक होने का स्वप्न देखती है….जिसमें व्यक्ति और समूह का भेद मिट जाता है।” (कला, मिथक और यथार्थ)
अंतत: एक लेखक में ऐसद्धो सच्चे और कठोर आत्मालोचन की क्षमता भी संस्कृति के गहरे अनुशासन से ही उपजती है और देर से ही सही, यह एक कलाकार को मानव नियति को ठीक से समझकर संस्कृति के नए आयाम रचने की ताकत भी प्रदान करती है। व्यक्ति और समाज के अंतरसंबंध कैसे बनते हैं और उनके बीच संप्रेषण के सहज तार कभी कैसे टूट भी जाते हैं, उन्हें किस हद तक टूटने से बचाया जा सकता है ? संस्कारित, सभ्य किंतु निष्कवच कला को, उसकी विनम्र और अहिंसापरक विचारशीलता को सर्वग्रासी सुरसाकार आक्रामक विचारधाराओं के जबड़ों से क्योंकर बचाया जाना जरूरी है ? इन सवालों को लेकर निर्मल का स्वर विनम्र भले हो लेकिन उसे हमेशा आदर से सुना जाएगा।
प्रश्न 1.
निर्मल वर्मा के व्यक्तित्व की क्या पहचान है?
(क) सांस्कृतिकता
(ख) सभ्यता
(ग) विनम्रता
(घ) ये सभी
उत्तर :
(घ) ये सभी
प्रश्न 2.
भाषा किसका वाहन है ?
(क) नई परंपराओं का
(ख) नई अभिव्यक्ति का
(ग) नई विचारधारा का
(घ) नए सप्नों का
उत्तर :
(ख) नई अभिव्यक्ति का
प्रश्न 3.
भाषा किसकी वाहिका है ?
(क) अभिव्यक्ति की
(ख) सनातन मानव परंपराओं का
(ग) नए विचारों की
(घ) नए लक्ष्यों की
उत्तर :
(ख) सनातन मानव परंपराओं की
प्रश्न 4.
कला किसकी उपज है ?
(क) चेतना की
(ख) बुद्धि की
(ग) सोच की
(घ) विचारों की
उत्तर :
(क) चेतना को
प्रश्न 5.
निर्मल वर्मा के स्वरों को किस प्रकार सुना जाएगा ?
(क) ध्यान से
(ख) आवर से
(ग) निरादर से
(घ) समान भाव से
उत्तर :
(ख) आदर से
प्रश्न 6.
संस्कृति के मूलाधार किसे माना जाता है ?
उत्तर :
संस्कृति के मूलाधार भाषा और धर्म को माना जाता है क्योंकि इन्हीं के द्वारा जीवन-मूल्य और सनातन परंपराओं का वहन और जीवन का संचालन होता है।
प्रश्न 7.
निर्मल वर्मा के साहित्य में क्या उपलब्ध होता है?
उत्तर :
निर्मल वर्मा के साहित्य में भारतीय धर्मों और भाषाओं की आश्चर्यजनक उत्सुकता और आदर का भाव विद्यमान है। साथ ही मानव के मन में उत्पन्न होने वाले भिन्न-भिन्न भाव भी उपलब्ध होते हैं।
प्रश्न 8.
‘उत्तुकता’ में प्रत्यय छाँटिए।
उत्तर :
‘ता’ प्रत्यय।
प्रश्न 9.
‘अनाम’ में उपसर्ग छाँटिए।
उत्तर :
‘अ’ उत्सर्ग
प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
‘निर्मल वर्मा की कला-साधना की पहचान’।
17. इस कदर बढ़ती अपसंस्कृति के घनघोर अँधेरे में मानवता को राह दिखाने के लिए साहित्यिक पत्रिकाओं के जलते हुए मशाल की आवश्यकता होती है जो अंधकार में भटकते मानव को राह दिखा सके। विशाल बाँध और कारखाने निर्मित कर संसार की गहराई नापकर, मंगल में पाँव रखकर हम विकास के डंके भले ही पीट लें, यदि आदमी को आदमी बनाने की जुगत नहीं कर सके तो यह विनाश है। बौद्धिकता और भौतिकता की दानवीय शक्ति मानव को निगल जाएगी। ईंट, पत्थर के भवनों में दमदमाहट लाने के लिए कितने रंग-रोगन किए जाते हैं, किंतु हाँड़-मांस के पुतले मानव में दया, क्षमा, कर्णादि, ममता, समसरसता और विश्वबंधुत्व का भाव संचरण करने के लिए तंत्र भी मौन है।
इसके लिए दधीचि सरीखे दान और कर्णादि सरीखे त्याग की आवश्यक्ता होती है। मानवता को यह उपहार सत्ता के आधारकों से नहीं सच्चे साहित्य साधकों से ही मिल सकता है। जब इतिहास कंदराओं में भटक जाता है, राजमार्ग से रक्त-स्नान में फिसल जाता है, तब साहित्यकार वीथिकाओं में कराहती मनुष्यता की बाँह धाम लेता है और जिन प्रतिमाओं पर समय की धूल पड़ जाती है उसे साहित्यकार ही साफ़ करता है, सँवारता-सजाता है और उनके गीत गाता है। जबकि साहित्य प्रत्येक युग के लिए समान रूप से आनंददायक होता है और हृदय का स्पंदन एक-सा रहता है। उसका रहस्य यह है कि वह हदय का विषय है।
हमारे अंत:करण में उठने वाली आशा और निराशा, हर्ष और विषाद, क्रोध और क्षमा, वाल्मीकि और व्यास, कालिदास और भवभूति, सूरदास और तुलसीदास, होमर और दांते, शेक्सपीयर और गेटे, मीर और गालिब जैसे साहित्यकारों की लोकप्रियता का कारण एक विशाल सहददय समाज के लिए उनके साहित्य की संवेद्यता ही है। किसी समीक्षक ने लिखा भी है कि संसार की किसी भी भाषा के नाटक, कालिदास के हों या शेक्सपीयर के हों, टाल्सटॉय का कथा साहित्य हो या प्रेमचंद का, कविताएँ एकबाल की हों, इलियट की या जयशंकर प्रसाद की, साहित्य शास्त्र अभिनव गुप्त का हो या कालीराज का या रामचंद्र शुक्ल का, इनके सबके कृतित्व के कालजयी होने का कारण है-उनका रचनात्मक प्रतिभा से संपन्न होना, जिसके कारण इनकी उद्भाविका क्रिया के इनकी रचनाओं में प्रभूत प्रमाण मिलते हैं, वर्तमान काल में यह सवाल अकसर पूछा जाता है कि बढ़ते हुए संचार माध्यमों के युग में केबल, चैनलों की भरमार के इस दौर में साहित्यिक पत्रिकाओं की क्या भूमिका होगी ? वैसे भी बहुत कम लोगों की रुचि साहित्यिक पत्रिकाएँ पढ़ने में है।
इधर बढ़ते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स तरक्की ने इसमें और भी कमी ला दी। नतीजन साहित्यिक पत्रिकाओं की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है। बहुत से प्रकाशकों का यह मन बनने लगा है कि अब साहित्यिक पत्रिकाएँ नहीं प्रकाशित हो पाएँगी। लोगों का तर्क यह है कि चलती, बोलती, फिरती तस्वीरों के आगे लिखे हुए शब्द अपनी महत्ता खो बैठे हैं। बहुत-सी पत्रिकाएँ, साहित्यिक पत्रिकाएँ, गंभीर लघु पत्रिकाएँ एक-एक करके बंद हो गई हैं। हालांकि इससे पड़ते विपरीत प्रभावों से साहित्यिक पत्रिकाओं की भूमिका सिद्ध हो जाती है।
लोगों में संवेदनशीलता बढ़ रही है। मीडिया के लिए दुर्घटना, विपदा आदि सब सनसनी फैलाने वाला, बिकने वाला माल है, इससे अधिक कुछ नहीं। इधर कुछ वर्षों से पाठकों की रुचियों के नाम पर आए साहित्य से बरसों से साहित्यिक पत्रिकाओं को काटा जा रहा है और देखते ही देखते वे सच्ची कथाओं वाले बाजारू साहित्य पर उत्र आए हैं। यह सब बहुत चिंताजनक और भयावह हैं। पढ़े-लिखे लोग इस दौर के महत्वपूर्ण साहित्यकारों की कृतियों के बारे में तो छेड़िए, उनके नाम तक नहीं जानते। नागार्जुन, शमशेर बहादुर सिंह, मुक्तिबोध जैसे कवियों को भला कितने लोग जानते हैं ?
प्रश्न 1.
मानव में कौन-कौन से गुण होने चाहिए?
(क) दया
(ख) क्षमता
(ग) ममता
(घ) ये सभी
उत्तर :
(घ) ये सभी
प्रश्न 2.
आज का मानव कहाँ भटक रहा है ?
(क) अपसंस्कृति के अंधकार में
(ख) माया के अंधकार में
(ग) धन के लाभ में
(घ) संसार के मायाजाल में
उत्तर :
(क) अपसंस्कृति के अंधकार में
प्रश्न 3.
मानव को कौन निगल जाएगी?
(क) माया
(ख) बौधिकता और भौतिकवादी की शक्ति
(ग) चिंता
(घ) क्रोधागिन
उत्तर :
(ख) बौद्धिकता और भौतिकतावादी की शक्ति
प्रश्न 4.
आज किसके जैसे त्याग की आवश्यकता है?
(क) हरिश्चंद जैसे
(ख) गांधी जैसे
(ग) दधीचि और कर्ण जैसे
(घ) भगत सिंह जैसे
उत्तर :
(ग) दधीचि और कर्ण जैसे
प्रश्न 5.
कौन मानवजाति को सजा-सँवारकर उसके गीत गाता है?
(क) कथाकार
(ख) कवि
(ग) गायक
(घ) साहित्यकार
उत्तर :
(घ) साहित्यकार
प्रश्न 6.
किस अवस्था में विनाश निश्चित है?
उत्तर :
यदि मनुष्य को मनुष्य बनाने का प्रयास नहीं किया गया तो विनाश निश्चित है।
प्रश्न 7.
आज के तीन प्रसिद्ध कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर :
आज के तीन प्रसिद्ध कवि नागारुज, मुक्तिबोध और शमशेर बहादुर सिंह हैं।
प्रश्न 8.
‘अपसंस्कृति’ शब्द में से उपसर्ग छाँटिए।
उत्तर :
‘अप’ उपसर्ग।
प्रश्न 9.
रंग-रोगन में समास का भेद छाँटिए।
उत्तर :
द्वंद्व समास।
प्रश्न 10.
अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
साहित्य और साहित्यिक पत्रिकाएँ।
18. सतलुज का पुराना नाम कितना सुंदर था। देश के ऋषि-मुनि इसे शतदू नाम से पुकारते थे। ऋग्वेद में ऋषि-मुनियों ने शतदू का यशगान किया है। तब भारतवर्ष हिम वर्ष नाम से जाना जाता था। भारत के राजा होने पर इसे भारतवर्ष कहा जाने लगा। शतदू के किनारे भरत ने अपने राज्य का विस्तार किया। इससे सभ्यता का भी विकास हुआ। वह पूर्व वैदिक काल की सभ्यता थी। शतदू के तट पर ही विश्वामित्र और वशिष्ठ के बीच युद्ध हुआ। वशिष्ठ अपने ज्ञान और तप के कारण ब्रहमर्षि कहलाते थे। विश्वामित्र अपने को किसी से कम नहीं समझते थे। वे चाहते थे लोग उन्हें भी ब्रह्मर्षि कहें। वशिष्ठ को नीचा दिखाने के लिए विश्वामित्र सेना लेकर आ पहुँचे। वशिष्ठ ने उनका सत्कार करना चाहा। विश्वामित्र घमंड से बोले तू हमारा क्या सत्कार करेगा। हमारे लाखों लोग हैं। हम शाही भोजन के अभ्यस्त हैं।
वशिष्ठ जी ने कामधेनु गाय की कृपा से विश्वामित्र की सारी आकाँक्षाएँ पूरी कर दी। इस पर विश्वामित्र ने कामधेनु की ही माँग रख दी। माँग पूरी न होती देख विश्वामित्र युद्ध ठान बैठे। इस प्रकार शतद्रू के किनारे यह पहला युद्ध हुआ था।
शिष्कीला से थोड़ा आगे जाकर पर्वतमाला के बीच सतलुज आगे बढ़ती है। हिंदुस्तान-तिब्यत सड़क शिफ्कीला तक बनाई गई थी। पुरनी हिंदुस्तानतिब्धत सड़क तो अब उपयोग में नहीं लाई जाती। हाँ सतलुज के प्रवाह पथ के साथ-साथ नई हिंदुस्तान-तिब्यत सड़क बन गई है। अब इसे शिप्कीला से आगे खाबो होते हुए रोहतांग से जोड़ दिया गया है। शिप्कीला के पास खाबो से पहले सतलुज का संगम स्पिती से होता है। यहीं सतलुज का एक पुल बना दिया गया है जिससे किन्नौर के जिला मुख्यालय रिकांगपियो से खाबो, काजा आदि के लिए बसें आती-जाती हैं।
शिप्कीला से भारत में प्रवेश करने के बाद सतलुज करछम पहुँचने से पहले किन्नर कैलाश तथा हिमालय के गल क्षेत्र (ग्लेसियर) से आने वाले अनगिनत होतों का जल अपने में समाहित कर क्षिप्र से क्षिप्रतर वेग से बहती है। करहम के पास बस्पा से इसका संगम होता है। यहाँ तक सतलुज देवदारू, चीड़ की जिस घनी हरीतिमा के बीच रहती है वह विरल होता है। रामपुर बुशहर पहुँचने तक घाटियों में हरियाली कम होती जाती है। लेकिन नदी के जल की उपयोगिता बढ़ती जाती है।
नाथपा-झाखड़ी जल विद्युत् परियोजना के द्वारा पूह से लेकर रामपुर, बुशहर तक सतलुज के वेग के दोहन की कोशिश की जा रही है। पूह के पास सतलुज पाँच हज्ञार फुट की ऊँचाई पर बहती है। अतः पानी को केवल मोड़ने की ज़रूरत है-बिजली उत्पादन अपेक्षाकृत आसानी से हो जाता है। करछम के पास से रामपुर, बुशहर तक कई किलोमीटर लंबी सुरंग बनाई गई है। इसमें से बस्पा-सतलुज का पानी छोड़ा जाएगा तथा रामपुर-बुशहर के पास जलशक्ति से संयंत्र चलेंगे। बिजली पैदा होगी। सतलुज पर जहाँ भी यांत्रिकी अनुकूलता है छोटे-बड़े संयंत्र स्थापित कर जल विद्युत् का उत्पादन हो रहा है।
पूरी सतलुज घाटी में निर्माण गतिविधियाँ जारी हैं। एक उत्सव जैसा वातावरण है। सतलुज पर सबसे बड़ा बाँध तो भाखड़ा पर है किंतु भाखड़ा बाँध बाहरी विशेषज्ञों की देख-रेख में बनाया था। जबकि नाथपा-झाखड़ी भारतीय इंजीनियरों की देन है। यह ज़रूर है कि सड़क को चौड़ा करना, भारी परिवहन तथा उत्खनन आदि के कारण-किन्नर लोक का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। यहाँ से अपनी भेड़-बकरियाँ लेकर पशुपालक यायावर मैदानों की ओर जाया करते थे। सड़क परिवहन और निर्माण के कारण ये पशुपालक यायावर परेशान हैं।
भेड़-बकरियों का पालन कम हो रहा है। शायद यह सतलुज के तीव्र वेग का परिणाम है कि रामपुर-बुशहर जैसे अपेक्षाकृत गम्म स्थान पर भी नदी स्नान की परंपरा नहीं है। करछम-पूह आदि तो अत्यंत उंडे स्थान हैं, जहाँ नदी स्नान की कल्पना भी मुश्किल है। तथापि सतलुज का पानी स्नानार्थियों को भले ही न आकर्षित करे किंतु गाँव-गाँव को बिजली अवश्य दे रहा है ताकि वे अपने उज्ज्वल भविष्य की ओर उन्मुख हो सकें।
प्रश्न 1.
वैदिक काल में भारतवर्ष किस नाम से जाना जाता था?
(क) भारत
(ख) इंडिया
(ग) हिंदुस्तान
(घ) हिमवर्ष
उत्तर :
(घ) हिमवर्ष
प्रश्न 2.
विश्वामित्र और वशिष्ठ के बीच युद्ध कहाँ हुआ था ?
(क) गंगा किनारे
(ख) शतनु के किनारे
(ग) यमुना के किनारे
(घ) नर्मदा के किनारे
उत्तर :
(ख) शतद्यू के किनारे
प्रश्न 3.
वशिष्ठ बहमर्षि क्यों कहलाते थे ?
(क) ज्ञान और तप के कारण
(ख) सत्यवादी होने के कारण
(ग) उदार होने के कारण
(घ) दानवीरता के कारण
उत्तर :
(क) ज्ञान और तप के कारण
प्रश्न 4.
विश्वामित्र ने वशिष्ठ से युद्ध क्यों किया था ?
(क) कामधेनु के कारण
(ख) दानवीरता के कारण
(ग) ज्ञान के कारण
(घ) कर्पवृक्ष के कारण
उत्तर :
(क) कामधेनु के कारण
प्रश्न 5.
हिंदुस्तान-तिख्यत सड़क कहाँ तक बनाई गई थी?
(क) खाघो तक
(ख) शिष्टिला तक
(ग) काजा तक
(घ) बस्पा तक
उत्तर :
(ख) शिप्कीला तक
प्रश्न 6.
ऋ्रृ्वेव में किसका गुणगान कियाग या है?
उत्तर :
ऋम्वेद में सतलुज का ऋषियों के द्वारा गुणगान किया गया है जिसे पहले शतद्रू नाम से जाना जाता था।
प्रश्न 7.
पूर्व वैदिक काल में सक्यता का विकास कहाँ हुआ था?
उत्तर :
पूर्व वैदिक काल में शतदू के किनारे महाराज भरत ने अपने राज्य का विस्तार किया था और यहीं सभ्यता का विकास हुआ था।
प्रश्न 8.
‘ऋषि-मुनियों’ में समास का भेद छॉटिए।
उत्तर :
‘द्वंद्व’ समास।
प्रश्न 9.
‘उपयोगिता’ में से प्रत्यय छाँटिए।
उत्तर :
‘ता’ प्रत्यय।
प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
सतलुज।
19. भारत के संविधान में सभी को उन्नति के बराबर अवसर देने की बात कही गई है। बाद में आपातकाल में संविधान में समाजवाद लाने की बात भी जोड़ी गई। समाजवाद की बात को फिलहाल भूल भी जाएँ तो भी समान अवसर की बात तो भूली नहीं जा सकती जिस पर देश के संविधान-निर्माताओं ने अपनी मोहर लगाई थी लेकिन इस समय जो राजनीतिक और आर्थिक माहौल है उसमें संविधान की इस बुनियादी बात को लोग भूले हुए हैं और उन्हें आज कोई इसकी याद दिलाने वाला भी नहीं है।
अतः विश्व बैक या कोई और संस्था अगर आर्थिक असमानता बढ़ने की बात करती है तो इसे इस तरह दरगुजर कर दिया जाता है, जैसे यह बात कही ही नहीं गई हो या गलती से कह दी गई हो। वैसे यह सच भी है कि विश्व बैंक या अंतराष्ट्रीय मुद्राकोष जैसी संस्थाओं को किसी भी देश में आर्थिक असमानता बढ़ने की वास्तविक चिंता नहीं है। ऐसी बातें अकसर क्षेपक या प्रसंग के रूप में ही आती हैं। इस देश में अभी भी लगभग चालीस करोड़ लोग ऐसे हैं जो गरीबी की हालत में जी रहे हैं।
यानी जिनके पास खाने-कपड़े रहने का कोई पुखता इंतजाम नहीं है। भारत में आज सत्तर हज्ञार से ज्यादा परिवार ऐसे ज्ञरूर हो गए हैं जिनके पास दस लाख रुपये से ज्यादा की दौलत है लेकिन इसी के साथ यह भी एक सच्चाई है कि आज औसत भारतीय परिवार 1991 के मुकाबले साल में सौ किलोग्राम अनाज कम खा रहा है। आँकड़ों के अनुसार 2002-03 में प्रति व्यक्ति अनाज की खपत उस समय से भी कम रही, जब आज़ादी से पहले बंगाल का सबसे भीषण अकाल पड़ा था।
इस सच्चाई से भी हम वाकिफ हैं कि यही भारत जो विश्व अर्थव्यवस्था को चुनौती देता बताया जाता है, संयुक्त राष्ट्र मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार 124 वें स्थान से भी पिछड़कर 12 वें स्थान पर चला गया है। यहाँ पिछले दस वर्षों में बाल-मृत्यु दर में गिरावट इतनी धीमी रही है कि आज बांग्लादेश भी-जो हमसे इस मामले में पीछे रहा करता था-आगे बढ़ चुका है। भारत विश्व के उन कुछ देशों में से है जहाँ बच्चों के पोषण का स्तर सबसे अधिक गिरा हुआ है। इस मामले में भारत की बदनामी इतनी ज्यादा है कि उसकी तुलना अफ्रीका के कुछ बेहद ही गरीब देशों से की जाती है।
कुल मिलाकर हम एक ऐसे देश के निवासी बनते जा रहे हैं जिसमें अर्थव्यवस्था तो प्रगति कर रही है मगर लोग पिछड़ते जा रहे हैं जबकि दिलचस्प यह है कि इंदिरा गांधी के जमाने में जब अर्थव्यवस्था की गति तेज़ नहीं थी, जब अर्थव्यवस्था आज के मुहावरों में जंजीरों में जकड़ी हुई थी तब लोग ज्यादा तेजी से प्रगति कर रहे थे। आज थोड़ी-सी जगमगाहट ने घने अंधेरे को इस तरह ढक दिया है कि अच्छे अच्छों को अँधेरे का आभास तक नहीं होता। वास्तव में आर्थिक असमानता, सामाजिक असमानता को भी बरकरार रखने में मदद करती है क्योंकि आर्थिक समानता ही वह पहली सीढ़ी है जोकि व्यक्ति को सामाजिक समानता की ओर ले जा सकती है।
इसके बगैर सामाजिक असमानता मिटाने के बारे में सोचा भी नही जा सकता लेकिन हमारे यहाँ पिछले वर्षों में सामाजिक असमानता को खत्म करने के आधे-अधूरे राजनीतिक प्रयास ही हुए हैं। इसलिए इसका बहुत असर हमारे आर्थिक ढाँचे पर नहीं पड़ा है। इसी का असर है कि आज लगभग सर्वसम्मति से यह मान लिया गया है कि बिहार-जैसे राज्य का कुछ नहीं किया जा सकता और वहाँ जो आज स्थिति है, उसे खुदा भी ठीक नहीं कर सकता यानी वहाँ की सरकार पर भी यह नैतिक दायित्व अब नहीं रहा कि वह बिहार को फिर से आर्थिक और सामाजिक रूप से खड़ा करे। अगर वह मात्र इतना भी कर लेती है कि जो स्थिति इस समय वहाँ है उसे और बिगड़ने न दे तो इससे भी हमारे देश का आला वर्ग प्रसन्न हो जाएगा और इसे भी एक उपलब्धि माना जाएगा।
प्रश्न 1.
भारत के संविधान में क्या बात कही गई है?
(क) अपराध की सजा की
(ख) उन्नति के बराबर अवसर देने की
(ग) नौकरी वेने की
(घ) घर देने की
उत्तर :
(ख) उन्नति के बराबर अवसर देने की
प्रश्न 2.
वर्तमान में लोग क्या भूले हुए हैं?
(क) अर्थव्यवस्था को
(ख) स्वतंत्रता-संग्राम को
(ग) शहीदों के बलिदान को
(घ) संविधान की बुनियादी बातों को
उत्तर :
(घ) संविधान की बुनियादी बातों को
प्रश्न 3.
आज औसत भारतीय परिवार सन 1991 के मुकाबले कितना अनाज कम खा रहा है ?
(क) 10 किलोग्राम
(ख) 100 किलोग्राम
(ग) 100 किलोग्राम
(घ) 10000 किलोग्राम
उत्तर :
(ख) 100 किलोग्राम
प्रश्न 4.
देश की आज्ञादी से पहले कहाँ अकाल पड़ा था ?
(क) गुजरात में
(ख) बंगाल में
(ग) महाराष्ट् में
(घ) राजस्थान में
उत्तर :
(ख) बंगाल में
प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र मानव विकास रिपोर्ट में भारत किस स्थान पर है ?
(क) पहले स्थान पर
(ख) 100 वें स्थान पर
(ग) 120 वें स्थान पर
(घ) 127 वें स्थान पर
उत्तर :
(घ) 12 गवें स्थान पर
प्रश्न 6.
आपातकाल में हमारे संविधान में किस बात को जोड़ा गया ?
उत्तर :
आपातकाल में हमारे संविधान में समाजवाद लाने की बात जोड़ी गई थी।
प्रश्न 7.
विश्व बैंक या अंतराष्ट्रीय मुद्राकोष को किसकी चिंता नहीं है ?
उत्तर :
विश्व बँक या अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष को किसी भी देश में आर्थिक असमानता बढ़ने की कोई चिंता नही है, ऐसी बातें तो कभी-कभी प्रसंग के रूप में कही जाती है।
प्रश्न 8.
‘विश्व बैंक’ में कौन-सा समास है ?
उत्तर :
संबंध तत्पुरुष समास।
प्रश्न 9.
‘बेहद’ में कौन-सा उपसर्ग है ?
उत्तर :
‘बे’ उपसर्ग।
प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
भारत की अर्थव्यवस्था।
20. जर्मनी के सुप्रसिद्ध विचारक नीत्रे ने, जो विवेकानंद का समकालीन था, घोषणा की कि ‘ईश्वर मर चुका है’ नीत्शे के प्रभाव में यह बात चल पड़ी कि अब लोगों को ईश्वर में दिलचस्पी नही रही। मानवीय प्रवृत्तियों को संचालित करने में विज्ञान और बौद्धिकता निर्णायक भूमिका निभाते हैं-यह स्वामी विवेकानंद को स्वीकार नहीं था। उन्होंने धर्म का बिलकुल नया अर्थ दिया। स्वामी जी ने माना कि ईश्वर की सेवा का वास्तविक अर्थ गरीबों की सेवा है।
उन्होंने साधुओं-पंडितों, मंदिर-मस्जिद, गिरिजाघरों-गोंपाओं की इस परंपरागत सीच को नकार दिया कि धार्मिक जीवन का उद्देश्य संन्यास के उच्चतर मूल्यों को पाना या मोक्ष-प्राप्ति की कामना है। उनका कहना था कि ईश्वर का निवास निर्धनदरिद्र-असहाय लोगों में होता है क्योंकि वे ‘दरिद्र-नारायण’ हैं। ‘दरिद्र नारायण’ शब्द ने सभी आस्थावान स्ती-पुरुषों में कर्तव्य-भावना जगाई कि ईंश्वर की सेवा का अर्थ दीन-हीन प्राणियों की सेवा है।
अन्य किसी भी संत-महात्मा की तुलना में स्वामी विवेकानंद ने इस बात पर ज्यादा बल दिया कि प्रत्येक धर्म ग़रीबों की सेवा करे और समाज के पिछड़े लोगों को अज्ञान, दरिद्रता और रोगों से मुक्त करने के उपाय करे। ऐसा करने में स्त्री-पुरुष, जाति-संप्रदाय, मत-मतांतर या पेशे-व्यवसाय से भेदभाव न करे। परस्पर वैमनस्य या शत्रुता का भाव मिटाने के लिए हमें घृणा का परित्याग करना होगा और सबके प्रति प्रेम और सहानुभूति का भाव जगाना होगा।
प्रश्न 1.
नीत्शे कौन था?
(क) वैज्ञानिक
(ख) विचारक
(ग) साहित्यकार
(घ) कवि
उत्तर :
(ख) विचारक
प्रश्न 2.
स्वामी विवेकानंद के अनुसार ईश्वर की सेवा का वास्तविक अर्थ किसकी सेवा था?
(क) वास्तविकता की
(ख) गरीबों की
(ग) गुरुजनों की
(घ) अपनी
उत्तर :
(ख) गरीबों की
प्रश्न 3.
स्वामी विवेकानंद के अनुसार ‘दरिद्र नारायण’ कौन है?
(क) ईए्वर
(ख) माता नर्मदा
(ग) धनवान लोग
(घ) गरीब लोग
उत्तर :
(घ) गरीब लोग
प्रश्न 4.
विवेकानंद ने किस बात पर ज्ञोर दिया?
(क) गरीबों की सेवा पर
(ख) ईश्वर की आस्था पर
(ग) मूर्तिपूजा पर
(घ) शिक्षा पर
उत्तर :
(क) गरीबों की सेवा पर
प्रश्न 5.
स्वामी विवेकानंद के अनुसार शत्रुता मिटाने के लिए हमें किसका परित्याग करना होगा?
(क) घृणा का
(ख) ईं्य्या का
(ग) क्रोध का
(घ) भेद-भाव का
उत्तर :
(क) घृणा का
प्रश्न 6.
नीत्रो ने क्या घोषणा की थी?
उत्तर :
नीत्शो ने घोषणा की कि ईश्वर मर चुका है।
प्रश्न 7.
नीत्शे की घोषणा के पीछे क्या थी?
उत्तर :
नीत्शे की घोषणा के पीछे यह सोच थी कि मानवीय प्रवृत्तियों की संचालित करने में विज्ञान और बुद्धि का योगदान है।
प्रश्न 8.
उपसर्ग और प्रत्यय अलग कीजिए-संचालित अथवा निर्धनता।
उत्तर :
संचालित = सम् उपसर्ग, निर्धनता = ता प्रत्यय।
प्रश्न 9.
सरल वाक्य में बदलिए-स्वामी जी ने माना कि ईश्वर सेवा का वास्तविक अर्थ ग़रीबों की सेवा है।
उत्तर :
स्वामी जी ईश्वर सेवा का वास्तविक अर्थ ग़रीबों की सेवा मानते हैं।
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश के लिए एक उपुयक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
धर्म का सत्य स्वरूप।
21. सिने जगत के अनेक नायक-नायिकाओं, गीतकारों, कहानीकारों और निर्देशकों को हिंदी के माध्यम से पहचान मिली है। यही कारण है कि गैर-हिंदी भाषी कलाकार भी हिंदी की ओर आए हैं। समय और समाज के उभरते सच को परदे पर पूरी अर्थवत्ता में धारण करने वाले ये लोग दिखावे के लिए भले ही अंग्रेजी के आग्रही हों, लेकिन बुनियादी और ज़मीनी हकीकत यही है कि इनकी पूँजी, इनकी प्रतिष्ठा का एकमात्र निमित्त हिंदी ही है। लाखों-करोड़ों दिलों की धड़कनों पर राज करने वाले ये सितारे हिंदी फ़िल्म और भाषा के सबसे बड़े प्रतिनिधि हैं।
‘छोटा परदा’ ने आम जनता के घरों में अपना मुकाम बनाया तो लगा हिंदी आम भारतीय की जीवन-शैली बन गई। हमारे आद्यग्रंधोंरामायण और महाभारत को जब हिंदी में प्रस्तुत किया गया तो सड़कों का कोलाहल सन्नाटे में बदल गया। ‘बुनियाद’ और ‘हम लोग’ से शुरू हुआ सोप ऑपेरा का दौर हो या सास-बहू धारावाहिकों का, ये सभी हिंदी की रचनात्मकता और उर्वरता के प्रमाण हैं। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ से करोड़पति चाहे जो बने हों, पर सदी के महानायक की हिंदी हर दिल की धड़कन और हर धड़कन की भाषा बन गई। सुर और संगीत की प्रतियोगिताओं में कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, असम, सिक्किम जैसे ग़ैर-हिंदी क्षेत्रों के कलाकारों ने हिंदी गीतों के माध्यम से पहचान बनाई। ज्ञान गंभीर ‘डिस्कवरी’ चैनल हो या बच्चों को रिझाने-लुभाने वाला ‘टॉम ऐंड जेरी’-इनकी हिंदी उच्चारण की मिठास और गुणवत्ता अद्भुत, प्रभावी और ग्राह्य है। धर्म-संस्कृति, कला-कौशल, ज्ञान-विज्ञान भी कार्यक्रम हिंदी की संप्रेषणीयता के प्रमाण हैं।
प्रश्न 1.
सिने जगत के अनेक नायक-नायिकाओं, गीतकारों आदि को किसके माध्यम से पहचान मिली?
(क) हिंदी
(ख) अंग्रेज़ी
(ग) मराठी
(घ) बंगाली
उत्तर :
(क) हिंदी
प्रश्न 2.
आम जनता के घरों को किसने अपना मुकाम बनाया?
(क) सिनेमा ने
(ख) हिंदी गीतों ने
(ग) छोटे परदे ने
(घ) फिल्मों ने
उत्तर :
(ग) छोटे परदे ने
प्रश्न 3.
हिंदी आम जनता की क्या बन गई?
(क) पहली पसंद
(ख) भाषा
(ग) जीवन-शैली
(घ) शत्रु
उत्तर :
(ग) जीवन-शैली
प्रश्न 4.
गैर-हिंदी क्षेत्रों के कलाकारों ने किसके माध्यम से अपनी पहचान बनाई?
(क) हिंदी के
(ख) अंग्रेज़ी के
(ग) तमिल के
(घ) संस्कृत के
उत्तर :
(क) हिंदी के
प्रश्न 5.
‘टॉम ऐंड जैरी’ किस प्रकार का कार्यक्रम है?
(क) ज्ञान गंभीर
(ख) भक्ति
(ग) बच्चों का
(घ) न्यूज्ञ
उत्तर :
(ग) बच्चों का
प्रश्न 6.
गैर-हिंदी भाषी कलाकारों के हिंदी सिनेमा में आने के दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
गैर-हिंदी भाषी कलाकार हिंदी सिनेमा मे इसलिए आते हैं क्योंकि हिंदी सिनेमा से इन्हें लोकप्रियता और प्रतिष्ठा मिलती है तथा आर्थिक लाभ मिलता है।
प्रश्न 7.
छोटा परदा से क्या तात्पर्य है ? इसका आम जन-जीवन की भाषा पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
छोटा परदा से तात्पर्य दूरदर्शन है। इस पर प्रसारित हिंदी भाषी कार्यक्रमों ने हिंदी को आम जन-जीवन की भाषा बना दिया है, जिसे हर कोई समझ और बोल सकता है।
प्रश्न 8.
आशय स्पष्ट कीजिए-सड़कों का कोलाहल सन्नाटे में बदल गया।
उत्तर :
इस कथन से यह आशय है कि जब दूरदर्शन पर हिंदी भाषा में रामायण और महाभारत जैसे कार्यक्रम प्रसारित होते थे तो लोग घरों से दूरदर्शन पर इन कार्यक्रमों को देखते थे तथा सड़कें सुनसान हो जाती थीं।
प्रश्न 9.
‘सन्नाटा’ और ‘ज्ञान’ शब्दों के विलोम लिखिए।
उत्तर :
सन्नाटा – कोलाहल, ज्ञान – अज्ञान
प्रश्न 10.
उपर्युक्त अवतरण के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
हिंदी की लोकप्रियता।
22. बाज्ञार ने, विज्ञापन ने हिंदी को एक क्रांतिकारी रूप दिया, जिसमें रवानगी है, स्वाद है, रोमांच है, आज की सबसे बड़ी चाहत का अकूत संसार है। इस तरह हिंदी भविष्य की भाषा, समय का तकाजा और रोज़गार की ज़रूरत बनती जा रही है।
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकारिता है। सूचना-क्रांति ने विश्व को ग्राम बना दिया है। मीडिया की जागरूकता ने समाज में एक क्रांति ला दी है और इस क्रांति की भाषा हिंदी है। इतने सारे समाचार चैनल हैं और सभी चैनलों पर हिंदी अपने हर रूप में नए कलेवर, तेवर में निखरकर, सँवरकर, लहरकर, ‘बोले तो बिंदास बनकर छाई रहती है।’ तुलनात्मक अर्थों में आज अंग्रेज़ी-पत्रकारिता का मूल्य, बाज़ार, उत्पादन, उपभोग और वितरण बहुत बड़ा है।
प्रिंट मीडिया की स्थिति ज्यादा बेहतर है, पत्र-पत्रिकाओं की लाखों प्रतियाँ रोज़ाना बिकती हैं। चीन के बाद सबसे अधिक अखबार हमारे यहाँ पढ़े जाते हैं, हिंदी के संत्रेक्षण की यह मानवीय, रचनात्मक और सारगर्भित उपलब्धि है। पत्र-पत्रिकाएँ हिंदी की गुणवत्ता और प्रचार-प्रसार के लिए कृतसंकल्प हैं। यह भ्रम फैलाया गया था कि हिंदी रोज्तगारोन्दुखी नहीं है। आज सरकारी, गैर-सरकारी क्षेत्रों में करोड़ों हिंदी पढ़े-लिखे लोग आजीविका कमा रहे हैं। भविष्य में हिंदी का बाज़ार-माँग और अधिक होगी।
पसीनों में, प्रार्थनाओं में, सिरहानों की सिसकियों में और हमारे सप्नों में जब तक हिंदी रहेगी तब तक वह बिना किसी पीड़ा या रोग के सप्राण, सवाक् और सस्वर रहेगी।
प्रश्न 1.
सूचना क्रांति ने विश्व को क्या बना विया है?
(क) बाज्वार
(ख) छत
(ग) शहर
(घ) ग्राम
प्रश्न 2.
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ किसे कहा गया है?
(क) पत्रकारिता को
(ख) लोकतंत्रीय शासन-प्रणाली
(ग) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को
(घ) अधिकार को
प्रश्न 3.
लेखक ने किसे व्यापक माना है?
(क) हिंदी पत्रकारिता को
(ख) अंग्रेज़ी पत्रकारिता को
(ग) हिंदी के पाठक को
(घ) हिंदी पत्र-पत्रिकाओं को
प्रश्न 4.
भविष्य में किसकी बाज्ञार माँग और अधिक होने की संभावना है?
(क) सरकारी एवं गैर सरकारी क्षेत्रों की
(ख) अंग्रेज्जी पढ़े-लिखे लोगों की
(ग) हिंदी की
(घ) आजीविका की
प्रश्न 5.
विश्व को ग्राम बना देने का आशय क्या है?
(क) सारे विश्व को ग्रामीण वेश-भूषा पहनाना
(ख) विश्व के किसी कोने में होने वाली घटना का पता लगाना
(ग) विश्व के सभी लोगों को किसान बनाना
(घ) विश्व में सबको ग्रामीण परिवेश में रखना
प्रश्न 6.
‘प्रिंट मीडिया’ से क्या तात्पर्य है ? हिंदी के लिए उसकी पत्र-पत्रिकाएँ क्या कर रही हैं?
प्रश्न 7.
बाज्वार ने हिंदी के स्वरूप को क्या विशेषताएँ दीं जिनसे वह रोज़गार की ज़रूरत बनती जा रही है?
प्रश्न 8.
‘सरकारी’ और ‘अतीत’ शब्दों के विलोम लिखिए।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची बताइए-‘समय’ तथा ‘प्रार्थना’।
प्रश्न 10.
उपर्युक्त अवतरण के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
1. (घ) ग्राम
2. (क) पत्रकारिता को
3. (ग) हिंदी के पाठक को
4. (ग) हिंदी को
5. (ख) विश्व के किसी कोने में होने वाली घटना का पता लगाना।
6. प्रिंट मीडिया से तात्पर्य मुद्रित माध्यम जैसे अखबार, पत्र-पत्रिकाएँ आदि हैं। हिंदी के पत्र-पत्रिकाओं की लाखों प्रतियाँ रोज़ बिकती हैं। इससे हिंदी का प्रचार-प्रसार निरंतर बढ़ रहा है।
7. बाज़ार ने मीडिया के माध्यम से हिंदी को एक क्रांतिकारी रूप दिया। सभी चैनलों पर हिंदी के प्रयोग ने इसके रोज़गार के अवसरों में बहुत वृद्धि की है।
8. सरकारी × निजी, अतीत × वर्तमान।
9. समय-काल, प्रार्थना-खंदना।
10. ‘हिंदी’ सब की भाषा।
23. यह संतोष और गर्व की बात है कि देश वैज्ञानिक और औद्योगिक क्षेत्र में आशातीत प्रगति कर रहा है। विश्व के समृद्ध अर्थव्यवस्था वाले देशों से टक्कर ले रहा है और उनसे आगे निकल जाना चाहता है। किंतु इस प्रगति के उजले पहलू के साथ एक धुँधला पहलू भी है, जिससे हम छुटकारा चाहते हैं। वह है नैतिकता का पहलू। यदि हमारे हुदय में सत्य, ईमानदारी, कर्त्तव्यनिष्ठा और मानवीय भावनाएँ नहीं हैं; देश के मान-सम्मान का ध्यान नहीं है; तो सारी प्रगति निरर्थक होगी। आज यह आम धारणा है कि बिना हथेली गर्म किए साधारण-सा काम भी नहीं हो सकता।
श्रष्ट अधिकारियों और श्रष्ट जनसेवकों में अपना घर भरने की होड़ लगी है। उन्हें न समाज की चिंता है, न देश की। समाचार-पत्रों में अब ये रोज्ञमर्रा की घटनाएँ हो गई हैं। लोग मान बैठे हैं कि यही हमारा राष्ट्रीय चरित्र है, जबकि यह सच नहीं है। नैतिकता मरी नहीं है, पर प्रचार अनैतिकता का हो रहा है। लोगों में यह धारणा घर करती जा रही है कि जब बड़े लोग ही ऐसा कर रहे हैं तो हम क्या करें ? सबसे पहले तो इस सोच से मुक्ति पाना ज्ररूरी है और उसके बाद यह संकल्प कि श्रष्टाचार से मुक्त समाज बनाएँगे। उन्हें बेनकाब करेंगे जो देश के नैतिक चरित्र को बिगाड़ रहे हैं।
प्रश्न 1.
यदि हमें देश के मान-सम्मान का ध्यान नहीं है तो क्या निरर्थक है?
(क) अहिंसा
(ख) संस्कार
(ग) प्रगति
(घ) नैतिकता
उत्तर :
(ग) प्रगति
प्रश्न 2.
साधारण-सा काम कब तक नही होता?
(क) बिना औसू बहाए
(ख) बिना हथेली गरम किए
(ग) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को
(घ) अधिकार को
उत्तर :
(ख) बिना हथेली गरम किए
प्रश्न 3.
भ्रष्ट अधिकारियों में किस बात की होड़ लगी है?
(क) पानी भरने की
(ख) साधन चुराने की
(ग) विदेश घूमने की
(घ) अपना घर भरने की
उत्तर :
(घ) अपना घर भरने की
प्रश्न 4.
सबसे पहले क्या संकल्प लेने की जरूरत है?
(क) सरल समाज का
(ख) संपन्न समाज का
(ग) भ्रष्टाचारमुक्त समाज् का
(घ) निर्धन समाज का
उत्तर :
(ग) श्रष्टाचार-मुक्त समाज का
प्रश्न 5.
देश की आशातीत प्रगति से जुड़ा धुंधला पक्ष किससे जुड़ा है?
(क) नैतिकता से जुड़ा है
(ख) रिश्वत से जुड़ा है
(ग) काम से जुड़ा है
(घ) भ्रष्टाचार से जुड़ा है
उत्तर :
(क) नैतिकता से जुड़ा है
प्रश्न 6.
नैतिक चरित्र से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर :
नैतिक चरित्र से लेखक का आशय देशवासियों में अपने देश के मान-सम्मान का ध्यान होना चाहिए। वे सत्य, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठा से अपना कार्य करें तथा उनमें मानवीय संवेदना होनी चाहिए।
प्रश्न 7.
देशवासियों के लिए गर्व की बात क्या है ?
उत्तर :
देश वैज्ञानिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में बहुत अधिक प्रगति कर रहा है और विश्व के समृद्ध देशों से टक्कर लेकर उनसे आगे निकल जाना चाहता है।
प्रश्न 8.
उपसर्ग अलग कीजिए-निरर्थक, अधिकारी
उत्तर :
निर्, अधि।
प्रश्न 9.
सरल वाक्य में बदलिए-लोग मान बैठे हैं कि यही हमारा राष्ट्रीय चरित्र है।
उत्तर :
लोगों ने इसे ही हमारा राष्ट्रीय चरित्र मान लिया है।
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
भ्रष्टाचार मुक्त समाज।
24. कुछ लोगों को अपने चारों ओर बुराइयाँ देखने की आदत होती है। उन्हें हर अधिकारी श्रष्ट, हर नेता बिका हुआ और हर आदमी चोर दिखाई पड़ता है। लोगों की ऐसी मनःस्थिति बनाने में मीडिया का भी हाथ है। माना कि बुराइयों को उजागर करना मीडिया का दायित्व है, पर उसे सनसनीखेज्र बनाकर चैनलों में बार-बार प्रसारित कर उनकी चाहे दर्शक-संख्या बढ़ती हो, पर आम आदमी इससे अधिक शंकालु हो जाता है और यह सामान्यीकरण कर डालता है कि सभी ऐसे हैं। आज भी सत्य और ईमानदारी का अस्तित्व है। ऐसे अधिकारी हैं जो अपने सिद्धांतों को रोज़ी-रोटी से बड़ा मानते हैं। ऐसे नेता भी हैं जो अपने हित की अपेक्षा जनहित को महत्व देते हैं।
वे मीडिया-प्रचार के आकाँक्षी नहीं हैं। उन्हें कोई इनाम या प्रशंसा के संट्टिफ़िकेट नहीं चाहिए, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे कोई विशेष बात नहीं कर रहे, बस कर्तव्यपालन कर रहे हैं। ऐसे कर्तव्यनिष्ठ नागरिकों से समाज बहुत-कुछ सीखता है। आज विश्व में भारतीय बेईमानी या भ्रष्टाचार के लिए कम, अपनी निष्ठा, लगन और बुद्धि-पराक्रम के लिए अधिक जाने जाते हैं। विश्व में अग्रणी माने जाने वाले देश का राष्ट्रपति बार-बार कहता सुना जाता है कि हम भारतीयों-जैसे क्यों नहीं बन सकते। और हम हैं कि अपने को ही कोसने पर तुले हैं। यदि यह सच है कि नागरिकों के चरित्र से समाज और देश का चरित्र बनता है, तो क्यों न हम अपनी सोच को सकारात्मक और चरित्र को बेदाग बनाए रखने की आदत डालें।
प्रश्न 1.
उपसर्ग अलग कीजिए-अधिकारी
(क) अधि
(ख) अ
(ग) धि
(घ) अधिक
उत्तर :
(क) अधि
प्रश्न 2.
प्रत्यय अलग कीजिए-नागरिक
(क) इक
(ख) इ
(ग) क
(घ) ईय
उत्तर :
(क) इक
प्रश्न 3.
लेखक भारतीय नागरिकों से क्या अपेक्षा करता है?
(क) वे अपनी सोच को नकारात्मक बनाएँ
(ख) वे अपने चरित्र को उज्ज्वल बनाएँ
(ग) वे कायर बनें
(घ) वे निर्दयी बनें
उत्तर :
(ख) वे अपने चरित्र को उज्जवल बनाएँ
प्रश्न 4.
किसी संपन्न देश के राष्ट्पति को अपने नागरिकों से भारतीयों जैसा बनने के लिए कहना क्या सिद्ध करता है?
(क) भारतीय श्रेष्ठ एवं सकारात्मक चरित्र वाले होते हैं।
(ख) भारतीय वीर होते हैं।
(ग) भारतीय गरीब होते हैं।
(घ) भारतीय कर्मठ होते हैं।
उत्तर :
(क) भारतीय श्रेष्ठ एवं सकारात्मक चरित्र वाले होते हैं
प्रश्न 5.
आज दुनिया में भारतीय किन गुणों के लिए जाने जाते हैं?
(क) निष्ठा, लगन, बुद्धि और पराक्रम
(ख) छल, दंभ, द्वेष और प्रेम
(ग) लगन, पराक्रम, वीरता और घृणा
(घ) वीरता, प्रेम, ईष्ष्या और द्वेष
उत्तर :
(क) निष्ठा, लगन, बुद्धि और पराक्रम
प्रश्न 6.
‘आज भी सत्य और ईमानदारी का अस्तित्व है’-पक्ष या विपक्ष में अपनी ओर से दो तर्क दीजिए।
उत्तर :
हम इस कथन का समर्थन करते हैं क्योंकि कुछ अधिकारी अपने सिद्धांतों को रोजी-रोटी से भी बड़ा मानकर ईमानदारी से काम करते हैं तथा विदेशी भी भारतीयों की निष्ठा एवं लगन की प्रशंसा करते हैं।
प्रश्न 7.
अपनी टी०आर०पी० बढ़ाने के लिए कुछ चैनल क्या करते हैं? उसका आम नागरिक पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
अपनी टी०आर॰पी० बढ़ाने के लिए कुछ चैनल बुराइयों को उजागर करने के लिए उन्हें सनसनीखेज बनाकर अपने चैनल पर बार-बार प्रसारित करते हैं जिससे आम नागरिक यही सोचता है कि सभी बुरे ही हैं।
प्रश्न 8.
लोगों की सोच को बनाने-बदलने में मीडिया की क्या भूमिका है ?
उत्तर :
लोगों की सोच को बनाने-बदलने में मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है, वे जैसा दिखाते हैं लोगों पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 9.
लेखक ने क्यों कहा है कि कुछ लोगों को अपने चारों ओर बुराइयाँ देखने की आदत है ?
उत्तर :
क्योंकि उन्हें हर अधिकारी भ्रष्ट, हर नेता बिका हुआ तथा हर आदमी चोर दिखाई देता है। उनकी सोच नकारात्मक होती है, वे अच्छाई में भी बुराई देखते हैं।
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
सकारात्मक सोच।
25. आज किसी भी व्यक्ति का सबसे अलग एक टापू की तरह जीना संभव नहीं रह गया है। भारत में विभिन्न पंथों और विविध मत-मतांतरों के लोग साथ-साथ रह रहे हैं। ऐसे में यह अधिक जरखूरी हो गया है कि लोग एक-दूसरे को जानें; उनकी जजरूरतों को, उनकी इच्छाओं-आकाँक्षाओं को समझें; उन्हें तरजीह दें और उनके धार्मिक विश्वासों, पद्धतियों, अनुष्ठानों को सम्मान दें। भारत जैसे देश में यह और भी अधिक जजरूरी है, क्योंकि यह देश किसी एक धर्म, मत या विचारधारा का नहीं है।
स्वामी विवेकानंद इस बात को समझते थे और अपने आचार-विचार में अपने समय से बहुत आगे थे। उनका दृढ़ मत था कि विभिन्न धर्ंो-संप्रदायों के बीच संवाद होना ही चाहिए। वे विभिन्न धर्मों-संप्रदायों की अनेकरूपता को जायज और स्वाभाविक मानते थे। स्वामीजी विभिन्न धार्मिक आस्थाओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने के पक्षधर थे और सभी को एक ही धर्म का अनुयायी बनाने के विरदद्ध थे। वे कहा करते थे-यदि सभी मानव एक ही धर्म को मानने लगें, एक ही पूजा-पद्धति को अपना लें और एक-सी नैतिकता का अनुपालन करने लगें तो यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात होगी। क्योंकि यह सब हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक विकास के लिए प्राणघातक होगा तथा हमें हमारी सांस्कृतिक जड़ों से काट देगा।
प्रश्न 1.
आज किसी व्यक्ति का सबसे अलग किसकी तरह जीना संभव नहीं है ?
(क) सागर की तरह
(ख) नहर की तरह
(ग) टापू की तरह
(घ) गगन की तरह
उत्तर :
(ग) टापू की तरह
प्रश्न 2.
अवतरण में किस देश में विभिन्न मतों के लोगों के साथ रहने की बात कही गई है?
(क) स्वीडन
(ख) अमरीका
(ग) चीन
(घ) भारत
उत्तर :
(घ) भारत
प्रश्न 3.
अपने आचार-विचार में कौन अपने समय से आगे थे?
(क) ईश्वरचंद विद्यासागर
(ख) राजा राममोहन राय
(ग) विवेकानंद
(घ) दयानंद सरस्सती
उत्तर :
(ग) विवेकानंद
प्रश्न 4.
स्वामी जी किनके बीच सामंजस्य स्थापित करने के पक्षधर थे?
(क) धार्मिक आस्थाओं के बीच
(ख) विभिन्न संस्थाओं के मध्य
(ग) लोगों के विचारों के बीच
(घ) विविध वेशों के बीच
उत्तर :
(क) धार्मिक आस्थाओं के बीच
प्रश्न 5.
एक ही धर्म व पूजा-पद्धति को मानने से हमारी कौन-सी जड़ें कट जाएँगी?
(क) वैज्ञानिक
(ख) सांस्कृतिक
(ग) बौद्धिक
(घ) राजसी
उत्तर :
(ख) सांस्कृतिक
प्रश्न 6.
टापू किसे कहते हैं ? ‘टापू की तरह’ जीने से लेखक का क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
टापू वह भूखंड होता है, जो चारों ओर से पानी से घिरा होता है तथा जिसका मुख्य धरती से कोई संपर्क नहीं होता। ‘टापू की तरह’ जीने से लेखक का आशय समाज के सब लोगों से अलग रहकर जीने से है। दुनियावालों से कोई संपर्क नहीं रख कर जीना टापू की तरह जीना है।
प्रश्न 7.
‘भारत जैसे देश में यह और भी अधिक ज्ररूरी है।’ क्या ज्रूरूी है और क्यों?
उत्तर :
भारत जैसे देश में यह और भी अधिक ज्रूरी है किं लोग एक-दूसरे को जानें, समझें और उनके धार्मिक विश्वासों, पद्धतियों एवं अनुष्ठानों को सम्मान दें क्योंकि भारत विभिन्न धर्मों, मतों एवं विचारधाराओं का देश है।
प्रश्न 8.
स्वामी विवेकानंद को ‘अपने समय से बहुत आगे’ क्यों कहा गया है?
उत्तर :
स्वामी विवेकानंद को अपने समय से बहुत आगे इसलिए कहा गया था क्योंकि वे इस बात को समझते थे कि विभिन्न धर्म-संप्रदायों के बीच ताल-मेल होना चाहिए, जिससे इनमें सामंजस्य स्थापित किया जा सके।
प्रश्न 9.
स्वामीजी के मत में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति क्या होगी और क्यों ?
उत्तर :
स्वामीजी के अनुसार यदि सभी मनुष्य एक ही धर्म, पूजा-पद्धति को अपना कर एक-सी नैतिकता का पालन करने लगें तो यह सबसे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी।
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
सर्वधर्म-समभाव
26. मांगलिक अवसरों पर पुष्ष-मालाओं का महत्व कोई नया नहीं है। पुष्ष-मालाएँ उन्हें ही पहनाई जाती थीं जिन्हें सामाजिक दृष्टि से विशिष्ट या अति विशिष्ट माना जाता था। देवताओं पर पुष्प-मालाएँ अर्पित करने के पीछे मनुष्य की ऐसी ही भावनाएँ थी। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण है फूलों की मालाओं को धारण करना। जितना सम्मान, फूलों की माला पहनाकर, किसी अति विशिष्ट व्यक्ति को दिया जाता है उसकी सार्थकता तभी है जब वह व्यक्ति अपने गले में धारणकर उसे स्वीकार करे। यदि वह विशिष्ट व्यक्ति उसे धारण नहीं करता है तो वह अप्रत्यक्ष रूप से स्वयं उस सम्मान का तिरस्कार करता है। इससे न सिर्फ पुष्प-माला पहनानेवालों का बल्कि उन फूलों का भी अपमान होता है जो उसमें गूँथे जाते हैं। वर्तमान लोक रीति में पुष्प-मालाओं का ऐसा अपमान शिक्षित एवं सुसंस्कृत कहे जाने वाले वर्गों में देखा जा सकता है।
किसी भी शुभ अवसर पर मुख्य अतिथि या विशिष्ट व्यक्ति को पुष्म-मालाएँ पहनाई तो जाती हैं लेकिन न जाने किस कुंठा या कुसंस्कार के कारण उसे गले से निकालकर सामने टेबल पर रख लेते हैं या स्वनामधन्य मंत्री अपने पी०ए० या सुरक्षाकर्मियों को सँप देते हैं जो जाते समय या तो छोड़ जाते हैं या रास्ते में फेंक जाते हैं। पुर्षों का, पहनानेवालों का और स्वयं खुद का वह इस प्रकार अपमान कर जाते हैं, जिससे पता चलता है कि विशिष्ट कहे जाने वाले व्यक्ति में इतनी पात्रता नहीं है कि वे उस पुष्पमाला को अपने गले में धारण कर सके। पुष्यों की माला का अपमान करने और उसके परिणामों से जुड़ी एक पौराणिक कथा है जिसके माध्यम से रचयिता ने पुष्प की मालाओं के महत्त्व को स्थापित करने की कोशिश की है।
वैसे ‘समुद्र-मंथन’ की कथा लगभग सभी भारतवासियों को मालूम है लेकिन क्यों हुआ था इसकी जानकारी कम लोगों को ही होगी। ‘विष्णुपुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित्त स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के, जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थीं, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी एरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी, उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूँड में लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था।
वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे, “अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी इंड्र! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया। न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेंर द्वारा किए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं इसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।”
प्रश्न 1.
लोग किस कारण फूलों की मालाओं को धारण नहीं करते ?
(क) कुंठा या कुसंस्कार के कारण
(ख) क्रोध के कारण
(ग) विनय के कारण
(घ) पुराणों के कारण
उत्तर :
(क) कुंठा या कुसंस्कार के कारण
प्रश्न 2.
फूलों की माला का अपमान करने के कारण किसने-किसको श्राप दिया था ?
(क) ब्रह्मा ने इंद्र को
(ख) दुर्वासा ऋषि ने देवराज इंद्र को
(ग) लक्ष्मी जी ने इंद्र को
(घ) विष्णु ने इंद्र को
उत्तर :
(ख) दुर्वासा ऋषि ने देवराज इंद्र को
प्रश्न 3.
पुष्पमालाओं का प्रयोग किन अवसरों पर किया जाता है ?
(क) मांगलिक अवसरों पर
(ख) दीक्षा के अवसर पर
(ग) सभाओं में
(घ) शोक सभाओं में
उत्तर :
(क) मांगलिक अवसरों पर
प्रश्न 4.
कौन-सी कथा अधिकांश भारतीय जानते हैं?
(क) समुद्र मंथन की
(ख) इंद्र की
(ग) दुर्वासा के क्रोध की
(घ) मांगलिक अवसरों की
उत्तर :
(क) समुद्र-मंधन की
प्रश्न 5.
दुर्वासा ऋषि ने फूलों की माला कहाँ से प्राप्त की थी ?
(क) इंद्र से
(ख) कृशांगी विद्याधरी से
(ग) त्रिलोकी से
(घ) ब्रहूमा से
उत्तर :
(ख) कृशांगी विद्याधरी से
प्रश्न 6.
कौन-सा व्यक्ति फूलों का अपमान करता है ?
उत्तर :
जिस विशिष्ट व्यक्ति को फूलों की माला पहनाई जाए और वह उसे धारण न करे वह परोक्ष रूप से स्वयं उस सम्मान का तिरस्कार करता है और फूलों का भी अपमान करता है।
प्रश्न 7.
किस के आधार पर देवताओं को समुद्र-मंथन किस कारण करना पड़ा था?
उत्तर :
विष्णु पुराण के आधार पर देवताओं को फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित्त स्वरूप समुद्र मंधन करना पड़ा था।
प्रश्न 8.
पुष्पमालाएँ किन्हें पहनाई जाती र्थीं ?
उत्तर :
पुष्पमालाएँ उन्हें पहनाई जाती थीं जिन्हें सामाजिक दृष्टि से विशिष्ट या अति विशिष्ट व्यक्ति माना जाता था।
प्रश्न 9.
देवताओं को मालाएँ क्यों पहनाई जाती हैं?
उत्तर :
देवता पूजनीय हैं इसलिए उन्हें मालाएँ पहनाई जाती हैं।
प्रश्न 10.
अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
फूलमालाएँ-अतीत और वर्तमान।
11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers
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