ईदगाह Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 1 Summary
ईदगाह – प्रेमचंद – कवि परिचय
लेखक-परिचय :
जीवन-परिचय-प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई, सन 1880 ई० को वाराणसी ज़िले के लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। आरंभ में वे नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखते थे। युग के प्रभाव ने उन्हें हिंदी की ओर आकृष्ट किया। प्रेमचंद जी ने कुछ पत्रों का संपादन भी किया। उन्होंने ‘सरस्वती प्रेस’ के नाम से अपनी प्रकाशन संस्था भी स्थापित की।
जीवन में निरंतर विकट परिस्थितियों का सामना करने के कारण प्रेमचंद जी का शरीर जर्जर हो रहा था। देशभक्ति के पथ पर चलने के कारण उनके ऊपर सरकार का आतंक भी छाया रहता था पर प्रेमचंद जी एक साइसी सैनिक के रूप में अपने पथ पर आगे बढ़ते रहे। उन्होंने वही लिखा जो उनकी आत्मा ने कहा। वे बंबई (मुंबई) में पटकथा लेखक के रूप में अधिक समय तक कार्य नहीं कर सके क्योंकि वहाँ उन्हें फ़िल्म निर्मातओओं के निर्देश के अनुसार लिखना पड़ता था। उन्हें स्वतंत्र लेखन ही रुचिकर था। निरंतर साहित्य साधना करते हुए 8 अक्तूबर, 1936 को उनका स्वर्गवास हो गया।
साहित्यिक विशेषताएँ-प्रेमचंद जी हिंदी साहित्य के ऐसे प्रथम कलाकार थे, जिन्होंने साहित्य का नाता जन-जीवन से जोड़ा। उन्होंने अपने कथा-साहित्य को जन-जीवन के चित्रण द्वारा सजीव बना दिया। वे जीवन-भर आर्थिक अभाव की विषम चक्की में पिसते रहे। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक एवं सामाजिक वैषम्य को बड़ी निकटता से देखा था। यही कारण है कि जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति का सजीव चित्रण उनके उपन्यासों एवं कहानियों में उपलब्ध होता। प्रेमचंद जी प्रमुख रूप से कथाकार थे। उन्होंने जो कुछ भी लिखा, वह जन-जीवन का मँँर बोलता चित्र है। वे आदर्शोन्मुखी-यथार्थवादी कलाकार थे। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को अपनी रचनाओं का विषय बनाया पर निधन, पीड़ित एवं पिछड़े हुए वर्ग के प्रति उनकी विशेष सहानुभूति थी। उन्होंने शोषक एवं शोषित दोनों वर्गों का विशद चित्रण किया है। ग्राम्य जीवन के चित्रण में प्रेमचंद जी सिद्धहस्त थे।
रचनाएँ-प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
उपन्यास-वरदान, सेवा-सदन, प्रेमाश्रय, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन, कर्म भूमि, गोदान एवं मंगल-सूत्र (अपूर्ण)।
कहानी संग्रह-प्रेमचंद जी ने लगभग 400 कहानियों की रचना की। उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं। नाटक-कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी।
निबंध संग्रह-कुछ विचार।
उन्होंने ‘माधुरी’, ‘हंस’, ‘जागरण’, ‘मर्यादा’ आदि पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
भाषा-शैली – ‘ईदगाह’ कहानी भाषा-शैली की दृष्टि से मुंशी प्रेमचंद की अन्य रचनाओं की भाँति उच्चकोटि की रचना है। भाषा पूर्णत: पात्रानुकूल है। कहानी के प्रारंभ में लेखक ने काव्यात्मक भाषा के प्रयोग से ईद के त्योहार का खुशनुमा वातावरण प्रस्तुत कर दिया है। “रमज़ान के पूरे तीस रोज़ों के बाद ईद आई है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है।”
लेखक ने सामान्य बोल-चाल के शब्दों के साथ-साथ तत्सम शब्दावली के प्रयोजन, सामग्री, शास्त्रार्थ, आघात, आतंकित, मोहित, परास्त जैसे शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है। पात्रों की दृष्टि से गाँव में प्रचलित शब्दों जैसे-अब्बाजान, अम्मीजान, अल्लाह मियाँ, नियामतें, अठन्नी, जिन्नात, कानिसटिबिल, जाजिम, सिजदे, हिंडोला, घुड़कियाँ का प्रयोग यथास्थान उचित रूप से किया गया है। गाँव से मेले में जाने के लिए जब लोग निकलते हैं तो उनके साथ चल रहे बच्चों की हरकतों का लेखक ने बाल मनोविज्ञान के अनुसार सहज चित्रण किया है। “गाँव से मेला चला। और बच्चों के साथ हामिद भी जा रहा था। कभी सब-के-सब दौड़कर आगे निकल जाते। फिर किसी पेड़ के नीचे खड़े होकर साथवालों का इतज़ार करते। यह लोग क्यों इतना धीरे-धीरे चल रहे हैं। हामिद के पैरों में तो जैसे पर लग गए हैं। वह कभी थक सकता है।”
कहानी की शैली मुख्य रूप से वर्णनात्मक है किंतु संवादों के द्वारा कहानी में रोचकता तथा गति का समावेश हो गया है। संवाद संक्षिप्त,
चुस्त, पात्रानुकूल तथा सहज हैं, जैसे दुकानदार और हामिद का यह वार्तालाप –
हामिद ने दुकानदार से पूछा-‘यह चिमटा कितने का है ?’
दुकानदार ने उसकी ओर देखा और कोई आदमी साथ न देखकर कहा-‘ तुम्हारे काम का नहीं है जी!’
‘बिकाऊ है कि नहीं ?’
‘बिकाऊ क्यों नहीं है। और यहाँ क्यों लाद लाए हैं ?’
‘तो बताते क्यों नहीं, कै पैसे का है ?’
‘छह पैसे लगेंगे।’
हामिद का दिल बैठ गया।
‘ठीक-ठीक बताओ!’
‘ठीक-ठीक पाँच पैसे लगेंगे, लेना हो लो, नहीं चलते बनो।’
हामिद ने कलेजा मज़बूत करके कहा-‘ तीन पैसे लोगे ?’
इस प्रकार स्पष्ट है कि ‘ इदगाह’ कहानी की भाषा-शैली अत्त्यंत सहज, भावपूर्ण तथा प्रवाइमयी है।
Idgah Class 11 Hindi Summary
मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईंदगाह’ में इंद के अवसर पर होने वाली चहल-पहल के अतिरिक्त एक बच्चे के हदय में अपनी दादी के लिए उमड़ने वाले अपार प्रेम का मार्मिक चित्रण है जो मेले में जाकर कुछ खाने-पीने के स्थान पर अपनी दादी के लिए एक लोहे का चिमटा लेकर आता है क्योंकि रोटी बनाते समय दादी का हाथ जल जाता था।
रमज्ञान के तीस रोजों के बाद ईंद का दिन आता है। गाँव में बहुत चहल-पहल है तथा सभी ईदगाह जाने की तैयारी कर रहे हैं। कोई अपने कपड़े-जूते ठीक कर रहा है तो कोई बैलों को सानी-पानी दे रहा है क्योंकि ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो सकती है। लड़कों में इंदगाह जाने की बहुत प्रसन्नता है। महमूद तथा अन्य लड़के बार-बार अपने पैसे गिन रहे हैं जिनसे उन्होंने ईंद के अवसर पर लगने वाले मेले से अपनी-अपनी मनपसंद वस्तुएँ खरीदनी हैं। हामिद भी बहुत प्रसन्न है। वह एक गरीब दुबला-पतला-सा बिन माँ-बाप का लड़का है तथा अपनी दादी अमीना के पास रहता है। उसके पाँव में जूते नहीं हैं। सिर पर एक पुरानी टोपी है। उसके पास मेले में खर्च करने के लिए तीन पैसे हैं। अमीना को चिंता है कि वह अकेला कैसे तीन कोस चलकर मेले में जाएगा ? इस पर हामिद दादी को यह तसल्ली देकर अन्य लोगों के साथ चला जाता है कि वह सबसे पहले लौट आएगा।
गाँव के सभी लड़कों के साथ हँसते-खेलते हामिद शहर पहुँचता है। पहले अदालत, कॉलेज, क्लब-घर आदि की बड़ी-बड़ी इमारतें आती हैं, फिर हलवाइयों की दुकान आती हैं और फिर घने इमली के वृक्षों की छाया के नीचे ईंदगाह दिखाई देता है जहाँ रोज़ारों की एक के बाद एक पंक्तियाँ लगी हुई थीं। यहाँ अमीर-गरीब का कोई भेदभाव नहीं था। सब मिलकर एक साथ में झुक रहे थे और फिर एक साथ ही खड़े हो जाते थे। भाईचारे का बहुत ही सुंदर दृश्य यहाँ उपस्थित था। नमाज के बाद सब आपस में गले मिलते हैं।
बच्चे मिठाई और खिलौनों की दुकानों की ओर जाते हैं। वहीं हिंडोला भी था जिसपर एक पैसा देकर पच्चीस चक्करों का आनंद लूटने का अवसर मिलता था। महमूद, मोहसिन, नूरे और सम्मी चक्करों का मज़ा लेते हैं परंतु हामिद दूर खड़ा देखता रहता है, वह अपने तीन पैसों में से एक पैसा व्यर्थ के चक्कर खाने के लिए खर्च नहीं करना चाहता। बच्चे खिलौने की दुकान से सिपाही, भिश्ती, वकील आदि खरीदते हैं पर हामिद को इन मिट्टी के खिलौनों को लेने में कोई रचच नहीं है क्योंकि ये गिरते ही चकना-चूर हो
जाते हैं। खिलौनों के बाद बच्चे मिठाई की दुकान से रेवड़ियाँ, गुलाब जामुन, सोहनहलवा आदि लेकर मजे से खाते हैं पर हामिद कुछ भी नहीं लेकर खाता केवल ललचाई आँखों से देखता रह जाता है। वहीं कुछ लोहे, गिलट, नकली गहनें आदि बेचने की दुकानें भी थी। हामिद लोहे की एक दुकान पर कई चिमटे देखकर रुक जाता है और सोचता है कि दादी जब तवे से रोटियाँ उतारती हैं तो उसका हाथ जल जाता है। क्यों न वह दादी के लिए चिमटा ले ले। हामिद के साथी मिठाइयाँ खाकर छबील पर सब शर्बत पी रहे थे। उसे इस बात का बहुत बुरा लग रहा था कि बे लोग उससे काम तो करा लेते हैं पर मिठाई के लिए उसे किसी ने भी नहीं पूछा। उसने दुकानदार से चिमटे का मूल्य पूछा तो उसने पाँच पैसे बताए। हामिद ने उससे कहा कि तीन पैसे लोगे? तो दुकानदार ने उसे वह चिमटा दे दिया। हामिद ने चिमटे को लेकर कंधे पर इस प्रकार रखा मानो बंदूक हो और अकड़ता हुआ साथियों के पास जा पहुँचा।
मोहसिन और महमूद ने उसके चिमटे का यह कहकर मज़ाक उड़ाया कि यह कोई खिलौना है ? तब हामिद उन्हें बताता है कि खिलौना ही तो है जैसे कंधे पर रखे तो बंदूक, हाथ में लिया तो फकीरों का चिमटा, मँजोरे का काम भी देता है और तुम्होरे सभी खिलौनों की जान भी निकाल सकता है और इसका बाल भी बाँका नहीं होगा। सम्मी चिमटे को लेने के लिए हामिद को अपनी दो आने की खँँजरी देना चाहता है और वह नहीं बदलता। चिमटे ने सब लड़कों का मन मोह लिया था पर अब कोई चाहकर भी चिमटा नहीं खरीद सकता था, क्योंकि उन सबके पैसे खर्च हो चुके थे तथा मेले से भी दूर आ गए थे। सब मिन्नते करके हामिद का चिमटा देखते हैं तथा अपना-अपना खिलौना उसे दिखाते हैं। रास्े में महमूद को भूख लगी तो उसके पिता ने उसे खाने के लिए केले दिए जिनमें से उसने हामिद को भी खिलाए। अन्य मुँह ताकते रह गए क्योंकि महमूद हामिद के चिमटे से बहुत प्रभावित हुआ था।
ग्यारह वजे ये लोग गाँव पहुँचे। मोहसिन की बहन ने उसके हाथ से भिश्ती छीन लिया और खुशी से जैसे ही वह उछली तो भिश्ती उसके हाथ से बूटकर नीचे गिरा और टूट गया। नूरे का वकील भी मिट्टी में मिल गया। हामिद के हाथ में चिमटा देखकर दादी ने उससे पूछ्ध कि चिमटा कहाँ से आया? तो उसने बताया कि वह तीन पैसे देकर लाया है। दादी को गुस्सा आ गया कि मेले में जाकर कुछ खाने-पीने के स्थान पर वह चिमटा क्यों ले आया है ? इसपर हामिद के यह कहने पर कि तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं इसलिए लाया हूँ। दादी गद्गद होकर आँसू बहाती हुई हामिद को दुआएँ देने लगती है कि उसे उसकी कितनी चिंता है।
कठिन शब्दों के अर्थ :
- रमज़ान – इस्लाम का नौवाँ महीना
- मनोहर – सुंदर
- सौनक – शोभां, चमक
- प्रयोजन – मतलब
- ईं मुहर्रम होना – खुशियाँ गम में बदलना
- अनगिनत – न गिने जाने योग्य
- राई का पर्वत बनाना – बढ़ा-चढ़ा कर कहना
- निगोड़ी – अभागी
- विल कचोटन – भय लगना
- चटपट – तुरंत
- बिसात – हैसियत
- उल्लू बनाना – मूख बनाना
- मवरसा – विद्यालय
- जिन्न – भूत, प्रेत
- काबू – वश में
- हराम का माल – मुफ्त का माल, रिश्वत
- उमंग – उत्साह
- जाजिम – फर्श पर बिछ्छाने वाली दरी
- प्रदीप्त – प्रकाशित
- अनंतता – जिस का अंत न हो
- भ्रातृत्व – भाईचारा
- रोज़े – व्रत
- सुहावना – सुख्
- अजीब – विचित्र
- आँखें बदल लेना – नाराज़ होना
- हैज़े की भेंट होना – हैज़े से मरना
- नियामते – दुल्लभ पदार्थ
- विपत्ति – मुसीबत
- सिर पर सवार होन – बहुत अड़ना
- आँखों नहीं लगना – अच्छा न लगना
- खैरियत – कुशलता
- तकदीर – भाग्य
- तीन कौड़ी का – व्यर्थ का
- बैट – बल्ला
- बछवा – बछड़ा
- प्रतिवाद – विरोध
- लेई पूँजी – जमा रकम
- विपन्नता – गरीबी
- कतार – पोक्ति
- अपूर्व – अद्भुत
- आत्मानंद – आत्मा की प्रसन्नता
- धावा बोलना – दौड़ना
- कोष – खजाना।
- फ़ैर करना – गोली दागना
- नेमत – अलभ्य पदार्थ, दुर्लभ वस्तु
- फायदा – लाभ
- मिज्ञाज – स्वभाव
- बाल भी बाँका न होना – कोई हानि न होना
- एड़ी-चोटी का ज्ञोर लगाना – पूरी शक्ति लगा देना
- कुमुक – सेना
- कनकोआ – पतंग
- सुरलोक सिधारना – मर जाना
- माटी का चोला माटी में मिलना – नष्ट होना, मर जाना
- आनन-फानन – तुरंत
- ज़ब्त – काबू पाना
- बामन – आँचल
- विद्वत्ता – बुद्धिमानी
- पृथक – अलग
- आकर्षण – खिंचाव
- सबील – प्याऊ
- सलूक – व्यवहार
- विधर्मी – धर्म बदलने वाला
- परास्त – पराजित, हारा हुआ
- बावर्चीखाना – रसोई घर
- मैदान मारना – विजय प्राप्त करना
- प्रतिष्ठानुकूल – मान-मर्यादा के अनुसार
- विकार – दोष
- विवेक – समझदारी
- विचित्र – अजीब
- दुआएँ – आशीर्वाद
ईदगाह सप्रसंग व्याख्या
1. अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन और उसके घर में दाना नहीं! आज आबिद होता तो क्या इसी तरह ईंद आती और चली जाती! इस अंधकार और निराशा में वह डूबी जा रही है। किसने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को ? इस घर में उसका काम नहीं; लेकिन हामिद ! उसे किसी के मरने-जीने से क्या मतलब ? उसके अंदर प्रकाश है, बाहर आशा। विपत्ति अपना सारा दलबल लेकर आए, हामिद की आनंद-भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने इद के त्योहार के आधार पर ग्रामीण मुस्लिम जीवन का यथार्थ अंकन करते हुए बाल मनोविज्ञान के विभिन्न पक्षों तथा अमीना की मनोस्थिति को भी उजागर किया है।
व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ने हामिद की पारिवारिक स्थिति पर प्रकाश डाला है । हामिद के माता-पिता का निधन हो गया है। उसका पालन-पोषण उसकी बूढ़ी दादी अमीना कर रही है। ईद के दिन भी उसके पास पर्याप्त भोजन की सामग्री नहीं है। इस अभाव की स्थिति में वह अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। वह सोचती है आज यदि उसका बेटा आबिद जीवित होता तो इस तरह काली इंद न मनानी पड़ती। उसे इस प्रकार की उत्साहरहित तथा निराशाभरी इद का आना अच्छा नहीं लग रहा था। वह सोच रही थी कि ऐसी ईद न ही आती तो अच्छा था। इस अभावग्रस्त घर में ईद का कोई स्थान नहीं है। इसके विपरीत हामिद को किसी के मरने-जीने का कोई अर्थ ज्ञात नहीं था। वह तो ईद के आने के उल्लास में खुशी से फूला नहीं समा रहा था। हामिद को लगता था कि यदि बहुत सारी मुसीबतें एक साथ भी आ जाएँ तो भी वह उसका आनंदपूर्वक सामना करके उन्हें नष्ट कर देगा। उसके मन की उमंग के सामने विपत्तियाँ भी टिक नहीं सकती हैं।
विशेष – (i) लेखक ने ईद के आने पर अभावग्रस्त परिवार की दयनीय स्थिति तथा बच्चों के मन में ईद के उल्लास का सजीव अंकन किया है।
(ii) भाषा सहज, सरल तथा देशज शब्दों से युक्त है। शैली वर्णनात्मक है।
2. जिन्नात को रुपए की क्या कमी ? जिस खज़ाने में चाहें चले जाएँ। लोहे के दरवाज़े तक उन्हें नहीं रोक सकते जनाब, आप हैं किस फेर में ! हीरे जवाहरात तक उनके पास रहते हैं। जिससे खुश हो गए उसे टोकरों जवाहरात दे दिए। अभी बहीं बैठे हैं, पाँच मिनट में कलकत्ता पहुँच जाएँ।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ “्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने ईद के अवसर पर मुस्लिम परिवारों के उल्लास तथा बच्चों की उमंग का वर्णन किया है।
व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ने उस समय का वर्णन किया है जब गाँव के बच्चे इद के अवसर पर लगे मेले में घूमते हुए विभिन्न दुकानों को देखते हैं। सजी हुई दुकानों को देखकर मोहसिन हामिद को बताता है कि कैसे इन दुकानों का बचा हुआ माल आधी रात को जिन्नात खरीद लेते हैं। उसके अनुसार जिन्नात के पास रुपये-पैसे की कमी नहीं होती है। वे जहाँ चाहे जा सकते हैं। वे किसी भी खज़ाने से रुपये ले सकते हैं। उन्हें लोहे के दरवाज़े तक खज्ञाने में जाने से नहीं रोक सकते। जिन्नात बहुत शक्तिशाली होते हैं। उनके पास हीरे-जवाहरात के भंडार होते हैं। जिस भी व्यक्ति से वे प्रसन्न हो जाते हैं, उसे ढेरों जवाहरात दे देते हैं, वे कहीं भी आ-जा सकते हैं। वे अभी यहाँ हैं तो पाँच मिनट में कलकत्ता पहुँच सकते हैं।
विशेष – (i) लेखक ने बाल कल्पना का सजीव अंकन किया है, जो जिन्नात को सर्वशक्तिमान मानते हैं।
(ii) भाषा सहज, सरल तथा उर्दू शब्दों से युक्त है। शैली वर्णनात्मक है।
3. कई बार यही क्रिया होती है, जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएँ और यही क्रम चलता रहे। कितना अपूर्व दूश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाएँ, विस्तार और अनंतता हूदय श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं, मानो भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने ईद के अवसर पर होने वाले धार्मिक आयोजन तथा बच्चों के उल्लास का वर्णन किया है।
व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ईदगाह में होने वाली नमाज का वर्णन करते हुए लिखता है कि नमाज पढ़ते हुए सभी श्रद्धालु एक साथ पंक्तिबद्ध होकर प्रार्थना करते हैं। वे बार-बार झुककर, खड़े होकर तथा घुटनों के बल बैठकर नमाज पढ़ते हैं। उनका यह कार्य ऐसे प्रतीत होता है जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ जल-बुझ रही हों। लेखक को यह सारा दृश्य अत्यंत आकर्षक तथा मनोहारी लगता है। इतने अधिक लोगों का सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ना देखने वाले के मन को श्रद्धा, गर्व और आत्मिक आनंद से भर देता था। यह दृश्य ऐसा लग रहा था जँसे सब लोग भाईचारे के एक सूत्र में बँधे हुए हों।
विशेष – (i) लेखक ने ईंगाह में नमाज पढ़ने वाले श्रद्धालुओं का सजीव वर्णन किया है।
(ii) भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण, सहज तथा शैली चित्रात्मक है।
4. हामिद खिलौनों की निंदा करता है-मिट्टी ही के तो हैं, गिरे तो चकनाचूर हो जाएँ; लेकिन ललचाई हुई आँखों से खिलौनों को देख रहा है। और चाहता है कि ज़रा देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता। उसके हाथ अनायास ही लपकते हैं; लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते हैं, विशेषकर जब अभी नया शौक है। हामिद ललचाता रह जाता है।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने ईद के अवसर पर बच्चों में व्याप्त उल्लास तथा ईंद के मेले का वर्णन किया है।
व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक इंद के मेले में बच्चों द्वारा की गई खरीदारी का वर्णन करते हुए बताता है कि हामिद को खिलौने खरीदना पसंद नहीं है। उसका मानना है कि खिलौने तो मिट्टी से बने हुए होते हैं जो गिरते ही चकनाचूर हो जाते हैं । हामिद कह तो यह रहा था पर उसका बाल मन चाह रहा था कि वह भी उन खिलौनों, को हाथ में लेकर देख सकता। वह ले नहीं सका इसलिए ललचाई आँखों से खिलौनों की ओर देख रहा था। न चाहते हुए भी उसके हाथ अपने आप खिलौनों की ओर फैलते हैं परंतु कोई भी बच्चा उसे अपना खिलौना देखने के लिए नहीं देता क्योंकि बच्चे इस प्रकार के त्यागी नहीं होते कि अपनी वस्तु किसी को दे सकें। वह भी तब जब कि वह वस्तु उन्होंने हाल ही में ली हो। इस प्रकार हामिद खिलौनों को देखने के लिए ललचाता ही रह जाता है।
विशेष – (i) लेखक ने बालमनोविज्ञान का यथार्थ अंकन किया है। यह एक वास्तविकता है कि बच्चे एक-दूसरे को अपनी वस्तु नहीं देते हैं।
(ii) भाषा सहज, सरल तथा देशज शब्दों से युक्त हैं। चित्रात्मक शैली है।
5. हामिद को स्वीकार करना पड़ा कि खिलॉनों को देखकर किसी की माँ इतनी खुश न होगी, जितनी दादी चिमटे को देखकर होंगी। तीन पैसों ही में तो उसे सब कुछ करना था और उन पैसों के इस उपयोग पर पछतावे की बिलकुल जरूरत न थी। फिर अब तो चिमटा रुस्तमे-हिंद है और सभी खिलौनों का बादशाह!
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने ईद के अवसर पर बच्चों के उल्लास का वर्णन किया है।
व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक बताता है कि ईंद के मेले में जब सब बच्चे खिलौने, मिठाई आदि खरीदते हैं तो हामिद चिमटा खरीदता है क्योंकि उसे लगता है कि यह एक उपयोगी वस्तु है जबकि खिलौने तो टूट जाएँगे। सब बच्चों को यह आभास होने लगता है कि उन्होंने खिलौने व्यर्थ ही में खरीदे। हामिद को भी लगा कि खिलौनों को देखकर किसी की भी माँ इतनी प्रसन्न नहीं होगी जितनी कि उसकी दादी उसके लाए हुए चिमटे को देखकर खुश होगी। उसके पास केवल तीन पैसे थे। इन्हीं तीन पैसों से उसने सब कुछ खरीदना था। उसे लगा कि तीन पैसे में चिमटा खरीदकर उसने कोई गलती नहीं की है। उसे अपनी इस खरीदरी पर कोई अफ़सोस नहीं था बल्कि अब तो सब लड़के उसके चिमटे की तारीफ़ कर रहे थे। इसलिए उसे अपना चिमटा स्ततमे-हिंद और सभी खिलौनों का बादशाह लग रहा था।
विशेष – (i) लेखक ने बच्चे की मनोदशा का यथार्थ अंकन किया है जो अपनी वस्तु को सबसे श्रेष्ठ मानकर बहुत प्रसन्न है।
(ii) भाषा उर्दू, देशज शब्दों से युक्त तथा शैली आत्मकथात्मक है।
6. बुढ़िया का को तुरंत स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ईंदगाह से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने ग्रारीण क्षेत्र में ईद के त्योहार पर व्याप्त उत्साह एवं उल्लास का यथार्थ अंकन किया है।
व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक हामिद की दादी अमीना की मनोदशा का वर्णन करता है जो हामिद द्वारा तीन पैसे में खरीदे हुए चिमटे को देखकर दुखी हो उठती है यह कैसा बेसमझ लड़का है जो मेले में दोपहर तक बिना खाए-पिए घूमता रहा और चिमटा खरीद लाया है। जब हामिद ने यह बताया कि उनकी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं इसलिए वह चिमटा खरीदकर लाया है तो दादी का क्रोध तुरंत शांत हो जाता है। वह हामिद के प्रति ममता से भर उठी। उसका यह स्नेह मूकस्नेह था। इसमें कोई चतुराई नहीं थी। वह शब्दों के माध्यम से अपनी इस ममता को व्यक्त नहीं कर पा रही थी। उसका यह स्नेह खामोश, बहुत गंभीर तथा भावनाओं से परिपूर्ण था।
विशेष – (i) लेखक ने वात्सल्य रस से भरी हुई ममतामयी दादी की मनोदशा का सजीव अंकन किया है।
(ii) भाषा तत्समप्रधान, सहज तथा शैली भावपूर्ण है।
Class 11 Hindi Summary
The post Class 11 Hindi Antra Chapter 1 Summary – Idgah Vyakhya appeared first on Learn CBSE.