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Class 11 Hindi Antra Chapter 8 Summary – Uski Maa Vyakhya

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उसकी माँ Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 8 Summary

उसकी माँ – ओमप्रकाश वाल्मीकि – कवि परिचय

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय – पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का जन्म सन् 1900 ई० में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले की चुनार तहसील के सदद्दुर मुहल्ले में हुआ था। इनके पिता का नाम बैजनाथ पांडे तथा माता का नाम जयकली था। अभी इन्होंने तुतलाना भी नहीं सीखा था कि इनके पिता का देहांत हो गया। आर्थिक कठिनाइयों के कारण इन्होंने व्यवस्थित शिक्षा नहीं प्राप्त की थी। रामलीलाओं में विभिन्न भूमिकाएँ करते हुए इन्हें तुलसीकृत रामचरितमानस कंठाग्र तक हो गया था। अपनी जन्मजात प्रतिभा और साधना से वे प्रसिद्ध पत्रकार और गद्यकार बने। निराला जी इनके विशिष्ट मित्र थे। इन्होंने ‘आज,’ विश्वामित्र’, स्वदेशी, वीणा, ‘स्वराज्य’ और ‘विक्रम’ पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया था। सन 1967 ई० में इनका निधन हो गया था।

रचनाएँ – उग्र जी की प्रमुख रचनाएँ ‘चॉकलेट, अपनी खबर, चंद हसीनों के खतूत, फागुन के चार दिन, घंटा, दिल्ली का दलाल, शराबी, पौली इमारत, काल कोठरी, चित्र-विचित्र, कला का पुरस्कार’ आदि हैं।

भाषा-शैली – पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ सहज एवं भावपूर्ण भाषा में अपने विचारों को व्यक्त करनेवाले कथाकार कहे जाते हैं। ‘उसकी माँ’ कहानी की भाषा में बोल-चाल की हिंदी भाषा के दर्शन होते हैं जिसमें लेखक ने उर्द, अंग्रेजी, देशज शब्दों का पर्याप्त प्रयोग किया है। जैसे-ज़रूत, तलाश, मिनट, सुपरिटेंडेंट, सुरमई, अंट-संट, अल्हड़-बिल्हड़ आदि। ध्यनि अर्थ व्यंजन ‘पो-पो’ आदि शब्दों के प्रयोग से कहानी का वातावरण सजीव हो उठा है। कहीं-कहीं भाषा काव्यमय भी हो गई है। जैसे- ” तू बूढ़ी, वह बूढ़ी। उसका उजला हिमालय है, तेरे केश”‘! लेखक की शैली वर्णनात्मक, आत्मकथात्मक तथा संवादात्मक है। छोटे-छोटे वाक्यों तथा चुस्त संवादों ने इनकी शैली को रोचकता प्रदान की है। संवाद पात्रानुकूल हैं एवं इनकी भाषा पात्रों की मानसिक एवं सामाजिक स्थितियों के अनुरूप है। समग्र रूप से इनकी भाषा-शैली सहज, सरल तथा मन को छूने वाली है।

Uski Maa Class 11 Hindi Summary

‘उसकी माँ’ लेखक की स्वाधीनता-संग्राम से प्रेरित कहानी है। इस कहानी में लेखक ने देश को आजाद कराने के लिए कुछ युवकों द्वारा दिए गए बलिदान का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है तथा यह भी बताया है कि किस प्रकार एक बूड़ी माँ अपने इकलौते पुत्र को देश पर न्योछावर कर देती है।

एक दिन दोपहर के समय आराम करने के पश्चात जरींदार कुछ पढ़ने के विचार से अपने पुस्तकालय में जाता है कि इतने में नगर का पुलिस सुपरिेेंडेंट उससे मिलने आता है। पुलिस अधिकारी के अचानक आने से वह कुछ घबरा जाता है किंतु जब पुलिस अधिकारी उसे लाल की फोटो दिखाकर लाल के विषय में पूछता है तो वह उसे लाल के संबंध में बता देता है कि वह उसके मृत मैनेजर रामनाथ का पुत्र है, कॉलेज में पढ़ता है तथा उसके बंगले के सामने अपनी बूढ़ी माँ के साथ एक-दो मंज़िले मकान में रहता है। पुलिस अधिकारी ज़रींदार को लाल से सावधान रहने के लिए कहकर चला जाता हैं।

ज़रींदार लाल की माँ को समझाता है कि वह लाल को क्रांतिकारियों से दूर रहने की बात समझा दे अन्यथा उसे दंड भोगना पड़ेगा। तभी लाल अपनी माँ को बुलाने आ जाता है तो ज्मींदार लाल को कहता है कि तुम ब्रिटिश सरकार के विस्द्ध पइयंत्र करना छोड़ दो। लाल देश को पराधीन नहीं देख सकता तथा ज़रीदार से तर्क-वितर्क करने लगता है। वह देश को स्वतंत्र कराने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। एक दिन लाल की माँ तथा मींदार की पत्नी बैठी हुई बातें कर रही थी कि ज़मींदार वहाँ पहुँच गया तथा लाल की माँ से लाल और उसके मित्रों के विषय में पूछा। उसने उसे बताया है कि लाल के सभी साथी मस्त, हैसोड़ तथा ज्ञिदादिल थे। वे उसे भारत-माता कहते थे तथा खूब बहस करते रहते थे। वे परदेसियों से देश को स्वतंत्र करवाना चाहते थे। जमीदार इस सबको बहुत बुरा मानता था।

जमींदार अपने कार्य के संबंध में बाहर चला गया था। जब वह लौटकर आया तो उसकी पल्नी ने उसे बताया कि लाल की माँ पर भयानक विपत्ति टूट पड़ी थी। पुलिस ने उसके घर की तलाशी ली थी जिसमें पिस्तौलें, कारतूस, खुफ़िया-पत्र आदि मिले थे। पुलिस लाल और उसके साथियों को पकड़कर ले गई थी तथा उनपर अब मुकदमा चल रहा था। सरकार की ओर से उनपर षड्यंत्र आदि के अनेक आरोप लगाए गए थे। सरकार के डर से कोई वकील भी उनकी पैरवी के लिए नहीं आया। लाल की माँ ने घर का सामान बेचकर किसी प्रकार एक मामूली वकील पैरवी के लिए वैयार किया किंतु अंत में अदालत ने लाल, बंगड़ तथा दो अन्य लड़कों को फांसी तथा अन्य दस लड़कों को दस से सात वर्ष तक की कड़ी सज़ा सुना दी। लाल की माँ के समस्त प्रयत्न व्यर्थ गए।

जब से लाल और उसके साथी पकड़े गए थे, लाल की माँ के मुहल्ले का कोई भी व्यक्ति बात नहीं करता था क्योंकि वह एक विद्रोही की माँ थी। जमींदार एक दिन अपने पुस्तकालय में कोई पुस्तक देख रहा था जिस पर पेंसिल से लाल ने अपने हस्ताक्षर कर रखे थे। पुलिस अधिकारी की चेतावनी याद आते ही उसने रबड़ से उसके हस्ताक्षर मिटाने चाहे कि तभी लाल की माँ एक पत्र लेकर उसके पास आती है। यह लाल का अंतिम पत्र था। ज़मींदार ने वह पत्र उसे पढ़कर सुना दिया। लाल की माँ पत्र लेकर चुपचाप चली जाती है किंतु जमींदार व्याकुल हो उठा। वह रातभर सो भी न सका। उसे ऐसा लगा मानो लाल की माँ कराह रही हो। वह नौकर को लाल की माँ को देख आने के लिए भेजता है। नौकर ने आकर बताया कि वह तो अपने हाथ में पत्र लिए घर के द्वार पर ही पाँव पसारे मरी पड़ी है।

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • निहार – देख
  • सुरमई – सुरमे के रंग वाली
  • आगमन – आने
  • स्मरण – याद
  • पुश्त – पीढ़ी
  • पाजीपन – दुष्टता, नीचता
  • रंग उड़ना – घबरा जाना
  • दुरवस्था – बुरी अवस्था
  • सर्वनाश – सब कुछ नष्ट होना
  • लेना – मुकाबला करना
  • छोर – किनारा
  • छाती फूल उठना – गर्व होना
  • श्रृंगार – सजावट, साज, सज्जन
  • त्रास – कष्ट
  • नीति-मर्दक – नीजि को तोड़नेवाले
  • विपत्ति – मुसीबत
  • चेष्टा – कोशिश
  • दोषारोपण – दोष लगाना
  • नहीं का भाई – बेकार
  • बातूनी – अधिक या व्यर्थ बोलनेवाला
  • टुकुर-टुकुर देखना – लगातार देखना
  • वज्ञपात – अचानक मुसीबत आना
  • सिवान – गाँव की सीमा
  • बाल अरूण – प्रभातकालीन सूर्य
  • विकलता – व्याकुलता
  • स्मृति – याद।
  • धूमिल – धुंधला, कम होना
  • कृति – रचना
  • बेवक्त – असमय
  • नम्रता – विनयभाव से।
  • देहांत – मृत्यु।
  • फृरमाबरदार – आज्ञाकारी
  • विवेकी – समझदार
  • उबल उठना – गुस्सा करना
  • पराधीनता – गुलामी
  • दुर्बल – कमज़ोर पंजा
  • चर्र-मर्र होना – नष्ट होना
  • मुग्ध – मोहित
  • बली – बलवान
  • गप हॉंकना – व्यर्थ बातें करना
  • उत्तेजित – भड़काया हुआ
  • मिज्ञाज – स्वभाव
  • विस्तृत – विस्तार से अस्वीकार
  • नकार – मना करना
  • पीठ पर होना – सहायता करना
  • दाँत निपोरना – खुशामत करना
  • दूध का दूध और पानी का पानी – उचित न्याय।
  • ब्यालू – रात का भोजन
  • ऊजड़ – उजड़ा हुआ
  • पीली पड़ना – कमज़ोर होना
  • दिवाकर – सूर्य
  • स्तब्ध – जड़
  • खचित – खीचा हुआ, लिखा हुआ
  • क्षितिज – धरती आकाश का मिलन स्थल

उसकी माँ सप्रसंग व्याख्या

1. इस पराधीनता के विवाद में, चाचा जी, मैं और आप दो भिन्न सिरों पर हैं। आप कट्टर राजभक्त, मैं कट्टर राजविद्रोही। आप पहली बात को उचित समझते हैं-कुछ कारणों से, मैं दूसरी को-दूसरे कारणों से। आप अपना पद छोड़ नहीं सकते अपनी प्यारी कल्पनाओं के लिए, मैं अपना भी नहीं छोड़ सकता।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए युवकों द्वारा दिए गए बलिदान तथा उनके माता-पिता के त्याग का मार्मिक वर्णन किया है।

व्याख्या – इस कहानी में यह कथन लाल का है। उसके चाचा उसे ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध पड्यंत्र न करने की चेतावनी देते है क्योंकि वह ब्रिटिश सरकार को धर्मात्मा, विवेकी तथा न्यायी सरकार मानता है, किंतु लाल उसकी बात नहीं मानता। वह अपने देश को स्वतंत्र कराने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है। अतः अपने चाचा को कहता है कि उनकी तथा उसकी विचारधाराएँ अलग-अलग हैं। इस कारण वह उनसे कोई समझौता नहीं कर सकता। उसके चाचा जी ब्रिटिश सरकार के पक्के वफ़ादार हैं जबकि वह देश को गुलाम बनानेवाली ब्रिटिश सरकार का घोर विरोधी है। इस कारण वह राजद्रोही कहलाता है। उसके चाचा सरकार की वफ़ादारी को अपने कुछ कारणों से उचित मानते हैं, परंतु वह देशभक्त होने के कारण इसे ठीक नहीं मानता है। उसके चाचा अपनी सुख-सुविधाओं के लिए अपना पद छोड़ना नहीं चाहते और वह अपना देश-सेवा का व्रत त्याग नहीं सकता।

विशेष – (i) लेखक की मान्यता है कि देश को स्वतंत्र कराने वाले युवक किसी भी शर्त पर ब्रिटिश सरकार से कोई समझौता नहीं करना चाहते।
(ii) भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण तथा शैली, ओजपूर्ण उद्बोधनात्मक है।

2. ‘चाचा जी, नष्ट हो जाना तो बहाँ का नियम है। जो सँवारा गया है, वह बिगड़ेगा ही। हमें दुर्बलता के डर से अपना काम नहीं रोकना चाहिए। कर्म के समय हमारी भुजाएँ नहीं भगवान की सहस्त भुजाओं की सखिया है।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शमा ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए युवकों द्वारा दिए गए बलिदान तथा उनके माता-पिता के त्याग का मार्मिक चित्रण किया गया है।

व्याख्या – लाल एक क्रांतिकारी युवक है। उसकी माँ विधवा है। वह जहाँ रहता है उसके पास के घर में रहनेवाले जरींदार का लाल के परिवार के प्रति बहुत मोह है। अतः वह लाल को क्रांतिकारियों का साथ न देने के लिए कहता है क्योंकि त्रिटिश सरकार के सम्मुख वे अत्यंत दुर्बल तथा असहाय हैं। इससे उनकी मृत्यु भी हो सकती है। तब लाल उन्हें उत्तर देते हुए कहता है कि यह तो सृष्टि का नियम है जो जन्म लेता है वह एक दिन मरता भी है। अतः वह मृत्यू से नहीं डरता क्योंकि जिसका आज निर्माण हुआ है कल उसका विनाश भी होगा। वह दुर्बल होने के कारण अपना कार्य रोकना नहीं चाहता। उसकी मान्यता है कि जब हम कर्म करने लगते हैं तो हमारी भुजाएँ दो न होकर भगवान की सहसों भुजाओं के समान हो जाती हैं अर्थात कर्म करनेवाले व्यक्ति की सहायता ईश्वर भी करता है।

विशेष – (i) इन पंक्तियों में लेखक ने कर्म करने पर बल दिया है क्योंकि कर्मशील व्यक्ति का सहायक ईंश्वर भी होता है।
(ii) भाषा सरल, स्वाभाविक तथा प्रसंगानुकूल है। शैली उद्बोधनात्मक है।

3. पुलिसवाले केवल संदेह पर भले आदमियों के बच्चों को त्रास देते हैं, मारते हैं, सताते हैं। यह अत्याचारी पुलिस की नीचता है। ऐसी नीच शासन-प्रणाली को स्वीकार करना अपने धर्म को, कर्म को, आत्मा का परमात्मा को भुलाना है। धीरे-धीरे चुलाना-मिटाना है।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पंडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से उद्धृत की गई हैं। इस कहानी में लेखक ने स्वाधीनता संग्राम में क्रांतिकारी युवकों के बलिदान और उनके माता-पिता के त्याग का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या – लाल के चाचा जब लाल की माँ से पूछती है कि लाल और उसके मित्र किस प्रकार की बाते करते हैं तो लाल की माँ उन्हें बताती है कि भारत-माता की तथा अन्य अनेक प्रकार की बातें करते रहते हैं। एक दिन वे अत्यंत उत्तेजित स्वर में कर रहे थे कि सरकार लड़कों को पकड़ रही है। वे कहते थे कि पुलिस केवल संदेह के आधार पर ही अच्छे-अच्छे परिवार के लड़कों को पकड़कर ले जाती है तथा उन्हें बहुत कष्ट देती है। वे उन बच्चों को मारते, पीटते और अनेक प्रकार से सताते भी हैं। इसे वे लड़के पुलिस का अत्याचार और नीचता मानते हैं। उन लड़कों के अनुसार इस प्रकार की नीच हरकतोंवाली शासन-प्रणाली को स्वीकार करना अपने धर्म, कर्म, आत्मा तथा परमात्मा को धोखा देना है। इस प्रकार हम अपने आप को धीरे-धीरे नष्ट कर देते हैं तथा हमारा अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है।

विशेष – (i) वे लड़के क्रांतिकारी विचारधारा के हैं। अत: ब्रिटिश सरकार का अत्याचारी शासन स्वीकार करना वे अपने स्वाभिमान के विरुद्ध मानते हैं।
(ii) भाषा सहज, सरल, भावानुकूल तथा शैली उद्बोधनात्मक है।

4. “लोग ज्ञान न पा सकें, इसलिए इस सरकार ने हमारे पढ़ने-लिखने के साधनों को अज्ञान से भर रखा है। लोग वीर और स्वाधीन न हो सकें, इसलिए अपमानजनक और मनुष्यहीनता नीति-मर्दक कानून गढ़े हैं। गरीबों को चूसकर, सेना के नाम पर पले हुए पशुओं को शराब से, कबाब से, मोटा-ताज़ा रखती है-यह सरकार। धीरे-धीरे जोंक की तरह हमारे देश का धर्म, प्राण और धन चूसती चली जा रही है -यह शासन प्रणाली।”

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शर्म ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से उद्धृत की गई हैं। इस कहानी में लेखक ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए क्रांतिकारी युवकों द्वारा दिए गए बलिदान तथा उनके माता-पिता के त्याग का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लाल की माँ लाल के चाचा को लाल और उसके मित्रों बातों के विषय में बता रही हैं। वे बताती है कि एक दिन लाल का एक मित्र कह रहा था कि ब्रिटिश सरकार भारतीयों को इसलिए पढ़ाना-लिखाना नहीं चाहती कि कहीं वे अपना अधिकार न माँगने लगें। वह कहता है कि लोग पढ़-लिखकर जागरूक न हो जाऐं। इस कारण ब्रिटिश सरकार भारतीयों को पढ़ने-लिखने नहीं देती तथा जो पढ़ते-लिखते हैं उन्हें भी अंग्रेज़ी ढंग की शिक्षा दी जाती है।

अंग्रेज़ी सरकार ने इस कारण ऐसे अपमानजनक तथा मानवता से रहित नीति-विर्द्ध नियम बनाएँ हैं जिससे लोगों में वीर भावनाए न पनप सकें तथा वे उनकी गुलामी से आजाद न हो सकें। यह सरकार गरीबों का शोषण कर अपनी सेना को शराब, कबाब आदि खिला-पिलाकर मोटा-ताज़ा बनाएँ रखती है जिससे भारतीयों पर अत्याचार किया जा सके। यह सरकार धीरे-धीरे इस देश में धर्म, मनुष्यों तथा धन-संपत्ति को इस प्रकार नष्ट करती जा रही है जैसे जोंक खून चूसती है। इस प्रकार से ब्रिटिश सरकार भारतीयों का पूर्ण रूप से शोषण कर रही है।

विशेष – (i) इन पंक्तियों में स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश सरकार के तानाशाही रूप का यथार्थ अंकन किया गया है तथा उसकी शोषण-प्रवृत्ति को उजागर किया गया है।
(ii) भाषा सहज, सरल तथा शैली व्यंग्यात्मक है।

5. यह बुरा है, लाल की माँ।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से ली गई है। इस कहानी में लेखक ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए युवकों के दिए गए बलिदान तथा उनके माता-पिता के त्याग का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या – कहानी में यह कथन जमींदार का है। जब-जमींदार को लाल की माँ से यह ज्ञात होता है कि लाल तथा उसके साथी ब्रिटिश सरकार से देश को आजाद कराने की बातें करते रहते हैं तो वह लाल की माँ को समझाते हुए कहता है कि इनकी ये बातें बहुत खतरनाक हैं क्योंकि सरकार के विरूद्ध बोलने से सरकार उन्हें कभी भी दंडित कर सकती है। विशेष इस पंक्ति में लाल के चाचा लाल की माँ को समझाते हैं कि लाल का अंग्रेज़ों से विरोध उसके लिए हानिकारक है।

6. उधर उन लड़कों की पीठ पर कौन था ? प्रायः कोई नहीं। सरकार के डर के मारे पहले तो कोई वकील ही उन्हें नहीं मिल रहा था, फिर वह बेचारा मिला भी, तो ‘नहीं’ का भाई । हाँ, उनकी पैरवी में सबसे अधिक परेशान वह बूड़ी रहा करती।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शर्म ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से उद्धृत की गई हैं। इस कहानी में लेखक ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए क्रांतिकारी युवकों द्वारा दिए गए बलिदान तथा उनके माता-पिता के त्याग का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ने उस समय का वर्णन किया है जब लाल तथा उसके साथियों को पुलिस पकड़ कर ले जाती है तथा उनपर झूठे मुकदमे चलाऐ जाने लगते हैं। लाल तथा उनके साधियों की पैरवी करने के लिए कोई वकील तैयार नहीं होता क्योंकि उनकी सहायता करनेवाला कोई नहीं था। सरकार के प्रकोप से भयभीत होकर कोई भी वकील उनकी पैरवी नहीं करना चाहता था। बाद में उन्हें ऐसा वकील मिला जो न होने के बराबर ही था। अर्थात उस वकील की अदालत में कोई साख नहीं थी। केवल लाल की माँ ही लाल तथा उसके मित्रों की पैरवी में बहुत अधिक परेशान रहती थी तथा जिस किसी के पास उनकी फ़रियाद लेकर जाती थी।

विशेष – (i) लेखक यह बताना चाहता है कि स्वतंत्रता से पूर्व क्रांतिकारियों को झूठे मुकदमों में फँसा दिया जाता था तथा उनका मुकदमा लड़ने के लिए कोई वकील भी नहीं मिलता था क्योंकि वकील ब्रिटिश सरकार के प्रकोप से भयभीत रहते थे।
(ii) भाषा सहज, सरल तथा व्यावहारिक है। शैली नाटकीय तथा व्यंग्यात्मक है।

7. “तू भी जल्द वहीं आना जहाँ हम लोग जा रहे हैं। यहाँ से थोड़ी ही देर का रास्ता है, माँ एक साँस में पहुँच जाएगी। वहीं हम स्वतंत्रता से मिलेंगे। तेरी गोद में खेलेंगे। तुझे कंधे पर उठाकर इधर-से-उधर दौड़ते फिरेंगे ? समझती है ? वहाँ बड़ा आनंद है।”

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा रचित कह्नानी ‘उसकी माँ’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने भारत के स्वाधीनता संग्राम के दिनों में क्रांतिकारी युवकों के बलिदान एवं उनके माता-पिता के त्याग का मार्मिक वर्णन किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ने उस समय का वर्णन किया है जब लाल तथा उसके तीन मित्रों को फाँसी की तथा अन्य को दस से सात वर्ष की सज़ा सुनाई जाती है। लाल की माँ अदालत के बाहर खड़ी ज़जीरों में जकड़े बच्चों को देख रही थी, तब लाल अपनी माँ को कहता है कि माँ, तुम चिंता न करो, तुम भी शीम्र ही वहाँ आ जाना जहाँ हमें भेजा जा रहा है। वह माँ को बताता है कि जहाँ वे जा रहे हैं वह स्थान विशेष दूर नहीं है।

यहाँ पर वहाँ पहुँचने में केवल एक साँस का अंतर है अर्थात प्राण निकलते ही मनुष्य दूसरे लोक में पहुँच जाता है। वह माँ को सांत्वना देते हुए कहता है कि उस लोक में कोई रोक-टोक नहीं होगी, तथा हम पूरी आजादी से वहाँ तुम्हें मिल सकेंगे। वहाँ हम तेरी गोद में खेलेंगे। तुझे कंधे पर उठाकर इधर-उधर मस्ती करेंगे। वह पुन: माँ को समझाते हुए कहता है कि उस लोक में बहुत आनंद हैं।

विशेष – (i) इन पंक्तियों में सांकेतिक रूप से लाल अपनी माँ को बता देता है कि उन्हें फांसी की सजा मिल गई है। अतः अब वे मरकर दूसरे लोक में ही माँ से मिलेंगे।
(ii) भाषा सहज, सरल तथा काव्यात्मक है। शैली भावात्मक है।

8. जिस दिन तुम्हें यह पत्र मिलेगा उसके ठीक सवेरे मैं बाल-अरुण के किरण-पथ पर चड़कर उस ओर चला जाऊँगा। में चाहता तो अंत समय तुझसे मिल सकता था, मगर इससे क्या फ़ायदा! मुझे विश्वास है, तुम मेरी जन्म-जन्मांतर की जननी ही रहेगी। मैं तुमसे दूर कहाँ जा सकता हूं! माँ! जब तक पवन साँस लेता है, सूर्य चमकता है, समुद्र लहराता है, तब तक कौन मुझे तुम्हारी करुणामयी गोद से दूर खींच सकता है।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में युवकों के बलिदान एवं उनके परिवार जनों के त्याग का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ने लाल के डस पत्र का वर्णन किया है जो उसने जेल से अंतिम बार अपनी माँ को लिखा था। लाल का चाचा लाल की माँ को यह पत्र पढ़कर सुनाता है । लाल ने अपनी माँ को संबोधित करके इस पत्र में लिखा था कि माँ, जिस दिन तुम्हें मेरा यह पत्र मिलेगा उसी दिन सुबह वह प्रभातकालीन सूर्य के किरणों रूपी रथ पर सवार होकर दूसरे लोक चला जाएगा, अर्थात उसे फाँसी हो जाएगी।

वह कहता है कि अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त कर वह उससे मिल सकता था पर उसे इस मिलन में कोई लाभ प्रतीत नहीं हो रहा था। उसे विश्वास है कि उसकी माँ अनेक जन्मों में भी उसकी माँ ही रहेगी। अतः वह उसे समझाता है कि वह उससे कहीं दूर नहीं जा रहा है। वह उसे विश्वास दिलाता है कि जब तक वायु बह रही है, सूर्य अपना प्रकाश फैला रहा है, सागर लहरा रहा है तब तक उसे उसकी ममताभरी गोद से कोई दूर नहीं कर सकता। भाव यह है कि वह सदा उस माँ का बेटा बनकर ही जन्म लेना चाहता है।

विशेष – (i) इन पंक्तियों में भारतीय पुनर्जन्म के सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया है।
(ii) देश-प्रेमी युवक अपनी माँ से मिलने के लिए भी ब्रिटिश सरकार का ऊहसान नहीं लेना चाहते थे। अतः लाल माँ से अंतिम बार भी मिलने नहीं आया था।
(iii) भाषा, सहज, सरल काव्यमय तथा शैली भावपूर्ण है।

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