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Class 11 Hindi Antra Chapter 15 Summary – Jaag Tujhko Door Jaana, Sab Aankho Ke Aansu Ujle Vyakhya

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जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 15 Summary

जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले – महादेवी वर्मा – कवि परिचय

जीवन-परिचय – छायावादी काव्य में दुर्गा स्वरूप महादेवी वर्मा का जन्म सन 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद कस्बे में हुआ। इनकी आरंभिक शिक्षा इंदौर में हुई। 12 वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह कर दिया गया, परंतु उन्होंने इस विवाह को स्वीकार नहीं किया। एक बार ससुराल से वापस आने के बाद फिर कभी वहाँ नहीं गई और स्वतंत्र जीवन जीती रहीं। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम० ए० पास किया। कुछ समय बाद ही उनकी नियुक्ति प्रयाग महिला विद्यापीठ में ही हो गई। उन्हें इसी संस्थान (प्रयाग महिला विद्यापीठ) की प्राचार्या के पद पर कार्य करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। गांधीवादी विचारधारा तथा बौद्ध दर्शन ने महादेवी को काफ़ी प्रभावित किया। स्वाधीनता आंदोलन में भी महादेवी वर्मा ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने कुछ वर्षों तक ‘चाँद’ नामक पत्रिका की संपादन कार्य कुशलतापूर्वक किया। सन 1987 में वर्मा जी का देहावसान हो गया।

रचनाएँ – महादेवी वर्मा की मुख्य काव्य-कृतियाँ निम्नलिखित हैं –
काव्य संग्रह – निहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत यामा दीपशिखा।
गद्य रचनाएँ – पथ के साथी, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, शृंखला की कड़ियाँ आदि।

साहित्यिक विशेषताएँ-महादेवी वर्मा छायावादी काव्य में एक प्रमुख स्तंभ हैं। उनके काव्य में जन-जागरण की चेतना के साथ स्वतंत्रता की कामना भी अभिव्यक्त की गई है। उन्होंने भारतीय समाज में नारी पराधीनता के यथार्थ और स्वतंत्रता की विवेचना की है। नारी के दुख, वेदना और करूणा की त्रिवेणी ने महादेवी को अन्य कवियों से अधिक संवेदशील एवं भानुक बना दिया है। अपनी प्रेमानुभूति में उन्होंने अज्ञात एवं असीम प्रेमी को संबोधित किया है, इसलिए आलोचकों ने उसकी कविता में रहस्यवाद को खोजा है। अपने आराध्य प्रियतम के प्रति महादेवी वर्मा ने दुख की अनुभूति के साथ करुणा का बोध भी अभिव्यक्त किया है।

छायावादी काव्य में प्रकृति का सुंदर चित्रण हुआ है। अन्य छायावादी कवियों की भाँति महादेवी की कविता में भी प्रकृति-साँदर्य के विविध चित्र अंकित हैं। प्रकृति-चित्रण के माध्यम से उन्होंने मानवीय अनुभूतियों को भी अभिव्यक्त किया है। उनके गीतों में भक्तिभाव एवं लोक काव्य का समिश्रण है। मानसिक द्वंद्व को महादेवी वर्मा के साहित्य की अन्य प्रवृत्ति माना जा सकता है।

महादेवी वर्मा एक सफल गद्यकार भी हैं। उन्होंने गद्य कृतियों में नारी स्वतंत्रता, असहाय चेतना और कमज़ोर वर्ग के प्रति संवेदनशील अनुभूतियाँ अभिव्यक्त की हैं। उन्होंने सामान्य अपनी मानवीय संवेदनाओं को अपने साहित्य की मूल प्रवृत्ति बनाया है।

भाषा-शैली – महादेवी वर्मा का काव्य-गीत और संगीत का सामंजस्य है। काव्यमय संगीत के कारण उनकी कविता अत्यंत आकर्षक एवं विशिष्ट हो गई है। उनकी काव्य-शैली में चित्रात्मकता, बिंबात्मकता एवं लाक्षणिकता का सुंदर समन्वय है। महादेवी वर्मा की कविता में बिंबों और प्रतीकों की सुंदर योजना काव्य-सौँदर्य में बढ़ोतरी करती है। उनके काव्य में तत्सम शब्दों में अत्यधिक प्रयोग हुआ है।

महादेवी की उत्कृष्ट काव्यकृति ‘यामा’ के लिए उन्हें ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ पुरस्कार प्राप्त हुआ। भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ अलंकरण से भी सम्मानित किया गया।

Jaag Tujhko Door Jaana, Sab Aankho Ke Aansu Ujle Class 11 Hindi Summary

प्रथम गीत का सार –

‘अंतरा’ पाठ्य-पुस्तक में निर्धारित महादेवी वर्मा रचित प्रथम गीत में स्वतंत्रता आंदोलन की परिस्थितियों का अंकन है। इस गीत में कवयित्री भारतीयों को भीषण कठिनाइयों की चिंता न करके निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। कोमल बंधनों को तोड़कर स्वतंत्रताप्राप्ति का लक्ष्य प्राप्त करना प्रत्येक भारतीय का प्रथम कर्तव्य है। इस गीत के माध्यम से महादेवी वर्मा यही आहवान करती है। महादेवी वर्मा उद्बोधन करते हुए संदेश देती हैं कि मानव को अपने देश के प्रति सदैव कर्तव्यनिष्ठ रहना चहिए। उन्होंने देश के नागरिकों को यह संदेश प्रतीकात्मकता के माध्यम से प्रत्तुत किया है। देश के प्रति गहरी अनुभूतियाँ गीत को अत्यंत संवेदनशील बना देती हैं।

उनका मानना है कि प्रत्येक भारतीय को कोमल रूपों में विचरण न करके स्वतंत्रता-प्राप्ति के तुफान का मुकाबला करना चाहिए। स्वतंत्रता-प्राप्ति के संघर्ष के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति आनेवाली पीढ़ियों के समय एक उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है। वे कहती हैं कि मानवीय बंधन हमें लक्ष्य पथ से विचलित कर सकते हैं इसलिए मानवीय बंधन एवं रिश्ते हमारे लिए कारागार (जेल)के समान हैं। महादेवी वर्मा ने मनुष्य को अमरता का सुत कहा है और उसे सावधान किया है कि इन सांसारिक बंधनों में पड़कर वह अपने जीवन को निरर्थक क्यों बना रहा है। उनका मानना है कि संघर्ष में अगर पराजय भी मिलती है तो उसे भी विजय की भाँति स्वीकार करना चाहिए क्योंकि एक दिन यही पराजय विजय में परिवर्तित होगी। विजय-प्राप्ति और मोह बंधनों से छुटकारा पाने के लिए महादेवी वर्मा मनुष्य का आह्वान करते हुए कहती हैं कि ‘जाग तुझको दूर जाना।’

द्वितीय गीत का सार –

महादेवी वर्मा ने दूसरा गीत ‘सब आँखों के आँसू उजले’ में उन सर्वमान्य सत्यों की व्याख्या की जिन्हें हमें प्रकृति ने प्रदान किया है। प्रकृति के अनेक चित्रों में उन्होंने मकरंद, निद्झर, तारक-समूह, मोती, नीलम, हीरा और पन्ना आदि प्रतीकों के माध्यम से नानवीय सत्य को उद्घाटित किया है। उनका मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति के आँसुओं में एक सत्य निहित होता है। मनुष्य के सुख और दुख में एक अलौकिक शक्ति होती है। जीवन के सत्य ही पर्वत का सीना चीरकर सैकड़ों चंचल झरनों के रूप में धरती को भेट करते हैं। कविता के अंत में कवयित्री कामना करती हैं कि हे परमात्मा अपनी सांसारिक जीवन-यात्रा में मैंने अनेक अच्छे-बुरे अनुभव प्राप्त किए हैं। इन्हीं-सुखों और दुखों के बीच में से मेरे प्राण अकेले चले जा रहे हैं इसलिए मेंर जीवन को नवजीवन दे दो। बस जीवन रूपी सपने की यही सच्चाई है।

जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले सप्रसंग व्याख्या

1. जाग तुझको दूर जाना !

1. चिर सजग आँखें उर्नीदी आज कैसा व्यस्त बाना !
जाग तुझको दूर जाना !
अचल हिमगिरी के द्ददय में आज चाहे कंप हो ले,
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,
जाग कर विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफ़ान बोले !
पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना
जाग तुझको दूर जाना !

शब्दार्थ – सजग-सचेत, जागृत। उनींदी-नींद से भरी हुई। बाना-वेशभूषा, पहनावा।अचल-स्थिर, अटल। हिमगिरी-पर्वत, हिमालय। प्रलय-तूफ़ान। मौन-चुपचाप। क्योम-आकाश। आलोक-प्रकाश। तिमिर-अंधेरा।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा’ में संकलित गीत ‘जाग तुझको दूर जाना’ से उद्धृत है। यह गीत महादेवी वर्मा द्वारा रचित है। इस गीत के माध्यम से कवयित्री मानव को निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।

व्याख्या – कवयित्री कहती हैं कि हे मानव ! तुम नींद को त्यागकर जागृत हो जाओ क्योंकि तुम्हारी मंजिल अभी बहुत दूर है। इस मंज़ल को पाने के लिए तुम्हे निरंतर सचेत एवं जागरूक बने रहना है परंतु तुम्हारी आँखों में तो अभी नीद छाई हुई है और तुम्हारी वेशभूषा भी उचित नहीं है। तुम अभी से थक गए तो तुम्हें मंज़िल कैसे प्राप्त होगी, इसलिए तुम्हें जागना ही होगा। आज स्थिर हिमालय पर्वत के हृदय में चाहे कितने ही कंपन हो जाएँ अर्थात कितने ही भूकंप आएँ। चाहे आँधी और तूफ़न के कारण आकाश चुपचाप आँसू बहाता रहे, परंतु तुम्हें नहीं रुकना हैं क्योंकि तुम्हें बहुत दूर जाना है इसलिए तुम्हें निरतर जागरूक एवं सचेत रहना है, इसी में ही तुम्हारा जीवन है। आगे वर्णन करते हुए महादेवी वर्मा कहती हैं कि आज चाहे अंधकार की प्रचंड छाया संपूर्ण प्रकाश को अंधकार में परवर्तित कर दे, चाहे निष्ठुर तूफ़ान संपूर्ण आकाश में आकाशीय बिजलियों की वर्षा कर दे, परंतु तुम्हें निरंतर चलते हुए इस विनाश के रास्ते में अपने पैरों के निशान छोड़ते जाना है, इसलिए तुम्हें निरंतर जागना ही होगा, चलना ही होगा।

विशेष :

  1. कवयित्री ने मानव को निरंतर जागृत रहने की प्रेरणा दी है।
  2. मनुष्य को संघर्ष में भी जीवन को चलायमान रखना चाहिए।
  3. चित्रात्मक शैली है।
  4. वीर, भयानक और करूण रस मुखर हुए हैं।
  5. रूपक और मानवीकरण अलंकार की शोभा दर्शनीय है।
  6. भाषा, सरल, सुबोध एवं गंभीर हैं।
  7. तत्सम शब्दों की अधिकता है।

2. बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले ?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले ?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबा देंगे तुझे बह फूल के दल ओस-गीले ?
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना !
जाग तुझको दूर जाना !

शब्दार्थ सजीले-सुंदर, आकर्षक। पंथ-रास्ता। क्रंदन-पीड़ा, दुख। मधुप-भैवरा। मधुर-मिठास। दल-समूह । कारा-कारागार, जेल।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘ अंतरा’ में संकलित ‘ जाग तुझको दूर जाना!’ नामक गीत से अवतरित है । इस गीत की रचयिता छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा हैं। इस गीत के माध्यम से उन्होंने मानव को निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्या – कवयित्री मानव को संबोधित करते हुए कहती हैं कि है मानव ! जब से तूने जन्म लिया है तू संसार के मोह-माया के बंधनों में बँध गया है और अपने रास्ते से विचलित हो गया है परंतु प्रश्न यह है कि ये मोम के समान पिघल जाने वाले सुंदर सांसारिक बंधन क्या तुम्हें बाँध लेंगे ? अर्थात् क्या तू मोहमाया के बंधनों में पड़कर अपनी मंंज़िल से भटक जाएगा, ये तितलियों के रंग-बिरंगे पंखों रूपी जीवन की सुख-सुविधाएँ क्या तुम्हारी मंज़िल के रास्ते में रुकावटें बन पाएँगी ? क्या तुम्हें भँवरों की यह मधुर गुंजार विश्व की पीड़ाओं, वेदनाओं और दुखों को नज़र अंदाज कर देगी ? अर्थात क्या भैवरों के मीठे-गीत सुनकर तुम विश्व की पीड़ा को भूल जाओगे ? तुम्हारे जीवन पथ में फूलों के गुच्छों पर ठंडी और मुलायम ओस की बूँदे क्या तुम्हें डूबो देंगी ? अर्थात क्या तुम्हें पथभ्रष्ट कर देंगी ? कवयित्री का मानना है कि नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। एक बार फिर वे मानव को सचेत करते हुए कहती हैं कि तुम अपने जीवन की सुख-सुविधाओं रूपी छाया को अपने लिए कारागार मत बनाना अर्थात अपनी इच्छाओं में स्वयं को मत बाँधना, क्योंकि तुम्हें बहुत दूर जाना है अर्थात तुम्हें अपने जीवन में अभी बहुत कुछ करना है।

विशेष :

  1. कवयित्री ने मानव को सुख-सुविधाएँ छोड़कर सदैव कर्म-क्षेत्र में चलते रहने की प्रेरणा दी है।
  2. मनुष्य को अपने जीवन के सुखों के कारण संसार के दुखों को नहीं भूलना चाहिए।
  3. प्रश्न एवं रूपक अलंकार का प्रयोग सराहनीय है।
  4. चित्रात्मक शैली विद्यमान है।
  5. भाषा सरल, सुबोध एवं ओजपूर्ण है।

3. वज्र का उर एक छोटे अश्रुकण में धो गलाया,
दे किसे जीवन-सुधा दो यूँट मदिरा माँग लाया ?
सो गई आँधी मलय की वात का उपधान ले क्या ?
विश्व का अभिशाप क्या चिर नींद बनकर पास आया?
अमरता-सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना ?
जाग तुझको दूर जाना !

शब्दार्थ – वज्र-चट्टान। उर-हुदय। अश्रुकण-आँसू। गलाया-खत्म करना। सुधा-अमृत। मदिरा-शराब, नशा। मलय-चंदन। वात-वायु, हवा। सुत-सपुत्र, बेटा।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा’ में संकलित महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘जाग तुझको दूर जाना’ नामक गीत से उद्धृत है। इन पंक्तियों में कवयित्री ने मनुष्य को निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या – मानव को संबोधित करते हुए महादेवी वर्मा कहती हैं कि हे मानव ! क्या तूने अपने चट्टान के समान हृदय को एक छोटे-से आँसू में गलाकर खत्म कर दिया है अर्थात् तेरा चट्टान-सा हृदय एक थोड़े से आँसुओं में द्रवित हो गया। फलस्वरूप तू अपने रास्ते से विचलित हो गया है। तू अपने जीवन रूपी अमृत को किसी को देकर उसके बदले में शराब माँग लाया है अर्थात् क्या तू अपने जीवन के उद्देश्य को छोड़कर जीवन की विषय-वासनाओं में खो गया है।

क्या तेरे मेरे अंतर्मन में चलनेवाली संसार की पीड़ाओं की आँधी चंदन की सुगंधित, मंद-मंद बहती वायु में खो गई है ? अर्थात् संसार की मोहमाया ने तेरे जीवन के उद्श्य को भूला दिया है और संसार का अंधकारमय अभिशाप तेरे लिए क्या लंबी नीद बनकर तुझपर छा गया है ? कवयित्री एक बार फिर कहती हैं है मानव ! तू अमरता का बेटा है, अर्थात तुम्हें अमर रहकर संसार की वेदनाओं और पीड़ाओं को खत्म करना है, परंतु तू अपने रास्ते से भटककर मौत को गले लगाना चाहता है। तू ऐसा कदापि नहीं कर सकता क्योंकि तुम्हें अभी बहुत दूर जाना है अर्थात् अभी संसार में अनेक कार्य करने हैं।

विशेष :

  1. कवयित्री संसार के दुखों को दूर करने का आह्वान करती है।
  2. मनुष्य को सदैव दूसरों के दुख दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
  3. प्रश्न एवं रूपक अलंकार हैं।
  4. चित्रात्मक एवं वर्णनात्मक शैली है।
  5. तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।
  6. भाषा सरल, सुबोध एवं गंभीर है।
  7. संबोधन शैली मुखर है।

4. कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी;
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग को है अमर दीपक की निशानी !
है तुझे अंगार-शख्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना !
जाग तुझको दूर जाना।

शब्दार्थ – उर-हृद। दुग-आँखें। मानिनी-गरिमापूर्ण, स्वाभिमानी। जय-विजय, जीत। पताका-झंडा /ध्वज। क्षणिक-थोड़ा समय। पतंग-कीट। शय्या-सेज, बिस्तर। मृदुल-कोमल।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा’ में संकलित ‘जाग तुझको दूर, जाना’ गीत से उद्धृत है। यह गीत महादेवी वर्मा द्वारा रचित है। इस कविता में महादेवी वर्मा मनुष्य का आह्वान करते हुए कहती है कि मनुष्य को सदैव जीत के लिए तत्पर रहना चाहिए।

व्याख्या – कवयित्री महादेवी वर्मा मानव का आह्वान करते हुए कहती हैं कि हे मानव ! तेरा जीवन आग में जलती कहानी है अर्थात् दुखों और संघर्षों से भरा पड़ा हैं, इसलिए इस संघर्षमय कहानी को ठंडी साँसों से मत कह। अर्थात जीवन ठंडी आहें भरने का नाम नहीं बल्कि जलती हुई चिंगारी है। जब मनुष्य के हदय में दुखों और संघर्षों की ज्वाला भड़कती है तभी उसकी आँखें अभ्नु से पूरित होती हैं। अगर तू इस जीवन-संघर्ष में हार भी गया तो वह तेरी पराजय न होकर विजय होगी क्योंकि हार में ही जीत के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। दीपक की लौ के चारों ओर चक्कर काटकर जलना और राख बनना तो केवल क्षणभर जीवन जीने वाले पतंगे के लिए होता है, परंतु दीपक की लौ सदा जलती रहती है अर्थात् अमर होती है। है मानव ! तुझे सदैव अंगारों भरी शैव्या (बिस्तर)पर कोमल कलियों को बिछाना है अर्थात तुम्हें अपने जीवन-पथ में कष्टों और संघर्षों को झेलकर दूसरों को सुखों के अवसर पैदा करने हैं। तुम्हें रूकना नहीं है क्योंकि तुम्हारी मंज़िल अभी बहुत दूर है अर्थात तुम्हें जीवन में अभी दूसरों के लिए बहुत काम करने शेष हैं।

विशेष :

  1. कवयित्री ने मनुष्य को सदा दूसरों के लिए काम करने की प्रेरणा दी है।
  2. संबोधन, चित्रात्मक एवं ओजपूर्ण शैली है।
  3. तत्सम शब्दावली का प्राधान्य है।
  4. ‘तुकबंदी’ का प्रयोग है।
  5. रूपक एवं विरोधाभास अलंकार की शोभा दर्शनीय है।
  6. भाषा सरल, सुबोध, एवं गंभीर है।

2. सब आँखों के आँसू उजले

1. सब आँखों के आँसू उजले सबके सपनों में सत्य पला!
जिसने उसको ज्वाला साँपी
उसने इसमें मकरंद भरा,
आलोक लुटाता वह घुल-घुल
देता झर यह सौरभ बिखरा !
दोनों संगी पथ एक किंतु कब दीप खिला कब फूल जला ?

शब्दार्थ – मकरंद-फूलों का रस। आलोक-प्रकाश। सौरभ-सुगंध। संगी-मित्र। पथ-रास्ता।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा’ में संकलित महादेवी वर्मा द्वारा रचित गीत ‘सब आँखों के आँसू उजले’ से उद्धृत है। इस गीत में कवयित्री ने जीवन की सच्चाइयों को प्रकृति के माध्यम से उद्धाटित किया है।

व्याख्या – महादेवी वर्मा का मानना है कि जीवन रूपी सपने में सुख और दुख निरंतर आते-जाते रहते हैं । इन्हीं सुख और दुख के कारण मनुष्य की आँखों में आँसू आते रहते हैं अर्थात कभी सुखों और कभी दुखों के कारण मनुष्य की आँखें आँसुओं से भर जाती हैं। ये सब सुख और दुख प्रदान करने वाला परमात्मा है। यही इस ज़िदगी रूपी स्वप्न की सच्चाई है। संसार को आग देनेवाला और फूलों को मधुर रस प्रदान करनेवाला परमात्मा ही है अर्थात कभी वह दुख देता और कभी वह सुख प्रदान करता है । कभी वह संसार को सूर्य के प्रकाश से भर देता है और कभी चारों तरफ़ फूलों की सुगंध भर जाती है । दीपक और फूल दोनों का रास्ता एक है अर्थात दीपक संसार को प्रकाशवान बनाता है और फूल संसार को सुगंध से भर देता है परंतु दीप कब जलेगा और कब कलियाँ फूल बनकर संसार को सुगंध से भर देंगी यह केवल परमात्मा ही जानता है।

विशेष :

  1. कवयित्री ने संसार के सत्य को प्रकृति के माध्यम से चित्रित किया है।
  2. ‘घुल-घुल’ पुनरक्ति प्रकाश अलंकार है।
  3. तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग है।
  4. वर्णनात्मक शैली है।
  5. भाषा सरल, सहज और बोधगम्य है।

2. वह अचल धरा को भेंट रहा
शत-शत निर्झर में हो चंचल,
चिर परिधि बना भू को घेरे
इसका नित उर्मिल करुणा-जल !
कब सागर उर पाषाण हुआ, कब गिरी ने निर्मम तन बदला ?

शब्दार्थ – अचल-स्थिर। धरा-धरती। शत-शत-सौ-सौ। निई्ईर-झरना। परिधि-गोलाकार। भू-धरती। पाषाण-पत्थर। गिरी-पर्वत।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाट्य-पुस्तक ‘अंतरा’ में संकलित गीत ‘सब आँखों के आँसू उजले’ से अवतरित है । इस गीत की रचयिता ‘महादेवी वर्मा’ हैं। कवयित्री ने इस गीत द्वारा जीवन की सच्च्वाई को प्रकृति के माध्यम से प्रस्तुत किया है।

व्याख्या – कवयित्री कहती हैं कि जीवन का सत्य ही सौ-सौ धाराएँ बनकर चंचल झरने के रूप में स्थिर धरती से मिलकर एकाकार हो जाता है। परमात्मा द्वारा प्रदान जीवन की सच्चाई ही सागर का करुणा जल-बनकर संपूर्ण पृथ्वी को चारों ओर से घेर लेती है। यह परमात्मा के बाद कोई नहीं जानता कि कब चंचल सागर का हृदय पत्थर जैसा कठोर हो जाए और कब स्थिर एवं कठोर पर्वत अपने रूप को परवर्तित कर समतल रूप धारण कर ले। ये सभी सत्य परिवर्तन केवल परमात्मा की इच्छा पर निर्भर करते हैं।

विशेष :

  1. भारतीय अध्यात्म के अनुसार बड़े-बड़े भौगोलिक परिवर्तन परमात्मा की इच्छा पर ही निर्भर करते हैं।
  2. मानवीकरण और पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार हैं।
  3. वर्णनात्मक शैली से युक्त पद है।
  4. तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।
  5. भाषा सरल और गंभीर है।

3. नभ-तारक-सा खंडित पुलकित
यह क्षुर-धारा को चूम रहा,
वह अंगारों का मधु-रस पी
केशर-किरणों-सा झूम रहा !
अनमोल बना रहने को कब टूटा कंचन हीरक, पिघला ?
शब्दार्थ नभ-आकाश। तारक-सा-तारों जैसा।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्युप्तक ‘अंतरा’ में संकलित कविता ‘सब आँखों के आँसू उजले’ से उद्धृत है। यह कविता महादेवी वर्मा द्वारा रचित है। इस कविता में कवयित्री ने जीवन सत्यों को प्रकृति के माध्यम से चित्रित किया है।

व्याख्या – कवयित्री कहती हैं कि सूर्य के अस्त होते ही वातावरण अंधकारमय हो जाता है फलस्वरूप दिन का सूर्य रूपी सत्य रात को चाँद सितारे बनकर आकाश को चूमता प्रतीत होता है। यही सत्य दिन की गरमी को खत्म कर ठंडक रूपी मधुर रस में परिवर्तित कर देता है । चाँद सितारे वातावरण को शीतलता प्रदान करते हुए ऐसे प्रतीत होते हैं मानो केसर किरणों के समान झूम रहे हों। स्वयं को अमूल्य बनाने के लिए स्वप्न कब शीशे के समान टूटकर स्वयं को कब हीरा बना लेते हैं। जीवन की इस सच्चाई को केवल परमात्मा ही जानता है। अर्थात जीवन के स्वप्न को सत्य में परिवर्तित केवल परमात्मा ही कर सकता है।

विशेष :

  1. प्रकृति परिवर्तन का सहज चित्रण है।
  2. प्रकृति परिवर्तन में ही सत्य समाहित होता है।
  3. उपमा और विरोधाभास अलंकार का प्रयोग है।
  4. तत्सम और तद्भव शब्दों का मिश्रण है।
  5. पद वर्णनात्मक शैली से युक्त है।
  6. भाषा बोधगम्य एवं गंभीर है।

4. नीलम मरकत के संपुट दो
जिनमें बनता जीवन-मोती,
इसमें बलते सब रंग-रूप
उसकी आभा स्पंदन होती !
जो नभ में विद्युत मेघ बना वह रज में अंकुर हो निकला !

शब्दार्थ – नीलम-नीले रंग का बहुमूल्य पत्थर। मरकत-पन्न।।आभा-चमक।स्पंदन-किसी वस्तु का धीर-धीरे हिलना या कॉँपना। विद्युत-बिजली। मेघ-बादल। रज-धूल, मिट्टी।

प्रसंग – प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा’ में संकलित महादेवी वर्मा द्वारा रचित गीत ‘सब आँखों के आँसू उजले ‘से अवतरित है। इस गीत के माध्यम से कवयित्री ने जीवन की सच्चाई को प्रकट किया है।

व्याख्या – कवयित्री कहती हैं कि परमात्मा नीले रंग के बहुमूल्य पत्थर और पन्ना सच्चाइयों की चमक को जोड़कर जीवन रूपी मोती का निर्माण करता है। इसी जीवन रूपी मोती में ही सभी प्रकार के रूप-रंग निर्मित होते हैं। इस जीवन में ही सत्य की चमक स्पंदित होती है अर्थात सत्य ही जीवन होता है। यह सत्य ही आकाश में बिजली के रूप में चमक जाता है और धरती का हदयय फोड़कर अंकुरित होनेवाला बीज भी सत्य का ही अंश है। अर्थात जीवन के प्रत्येक घटनाक्रम में परमात्मा की सच्चाई निहित होती है।

विशेष :

  1. कवयित्री ने जीवन की सच्चाई को प्रकृति के माध्यम से अभिव्यक्त किया है।
  2. रूपक अलंकार की शोभा है।
  3. तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  4. भाषा सरल, सहज एवं गंभीर है।

5. संसुति के प्रति पग में मेरी
साँसों का नव अंकन चुन लो,
मेरे बनने-मिटने में नित
अपनी साधों के क्षण गिन लो।
जलते खिलते बढ़ते जग में घुलमिल एकाकी प्राण चला !
सपने-सपने में सत्य बला !

शब्दार्थ – संसुति-संसार। पग-कदम। एकाकी-अकेला।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश पाठ्य-पुस्तक ‘ अंतरा’ में संकलित कविता ‘सब आँखों के आँसू उजले’ से उद्धृत है। यह कविता महादेवी वर्मा द्वारा रचित है। इस कविता में कवयित्री ने जीवन के सत्यों को प्रकृति के माध्यम अभिव्यक्त किया है।

व्याख्या – कविता की अंतिम पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि हे परमात्मा ! मेरी इस सांसारिक जीवन-यात्रा में मेरी साँसों ने प्रतिपग मेरा साथ दिया है। अब मेरे जीवन का अंत निकट है इसलिए मेरे जीवन को नवजीवन दे दो। मेरे प्रतिपल परिवर्तित होते जीवन में तुमने कितनी साधनाएँ की होंगी, ज़रा उन्हें भी गिन लीजिए। अब दुख और सुख एकाकार होकर मेरे प्राण को ले जा रे हैं अर्थात मेरे जीवन का अंत आ गया है। अपनी जीवन-यात्रा के माध्यम से मैंने यह जान लिया है कि जीवन के प्रत्येक स्वप्न में सत्य निहित होता है। अर्थात सत्य ही स्वप्न बनकर जीवन को रोमांचित बनाए रखता है।

विशेष :

  1. कवयित्री ने जीवन की सच्चाई को व्यक्त किया है।
  2. संबोधन एवं वर्णनात्मक शैली है।
  3. तत्सम शब्दावली है।
  4. तुकबंदी प्राधान्य है।
  5. भाषा सरल, सहज, बोधगम्य एवं गंभीर है।

Hindi Antra Class 11 Summary

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