NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 2 गीत गाने दो मुझे, सरोज स्मृति
Class 12 Hindi Chapter 2 Question Answer Antra गीत गाने दो मुझे, सरोज स्मृति
गीत गाने दो मुझे –
प्रश्न 1.
‘कंठ रुक रहा है, काल आ रहा है’-यह भावना कवि के मन में क्यों आई ?
उत्तर :
कवि बताता है कि जीवन-संघर्ष बेहद कठोर है। संसार में लूट-पाट और एक-दूसरे का शोषण की भावना समायी है। विपत्तियाँ मनुष्य को चारों तरफ से घेर रही हैं। संघर्ष पथ पर चलते-चलते कवि की हिम्मत टूट गई है। उसके मन में निराशा का भाव उदय हो रहा है। बढ़ते दबाव तथा सफलता न मिलने पर कवि को ऐसा लग रहा है मानो उसका अंतिम समय नजदीक आ गया है। कवि अपने मन की टूटन को व्यक्त कर रहा है।
प्रश्न 2.
‘ठग-ठाकुरों से कवि का संकेत किसकी ओर है?
उत्तर :
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता में कवि ने उग-ठाकुरों का संकेत उन लोगों की ओर किया है जिन्होंने कवि तथा अन्य सामान्य लोगों को ठगकर लूटा है। इस प्रकार के लोगों ने अपने बाहुबल और धनबल के द्वारा गरीबों का शोषण किया है। ये लोग अपनी चालाकी और दादागीरी के बलबूते पर लोगों को धोखा देते हैं। ये लोग शोषक प्रवृत्ति के हैं। इस प्रकार के लोगों में तथा कथित ठेकेदार तथा जमींदार शामिल हैं। ये लोगों का कल्याण करने का ढोंग रचकर उनका शोषण करते हैं। प्रत्यक्ष रूप में ये लोग सज्जन प्रतीत होते हैं, पर अंदर से ये पूरे ठग होते हैं।
प्रश्न 3.
‘जल उठो फिर सींचने को ‘-इस पंक्ति का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि कहता है कि धरती की सहिष्णुता की ज्योति समाप्त हो रही है। मानव निराशा में ड़बता जा रहा है। उसके अंदर की संघर्ष की शक्ति समाप्त होती जा रही है। इस दशा में संघर्ष. क्रांति की जरूरत है। समाज को बचाने के लिए मनुष्य को निराशाजनक परिस्थितियों को समाप्त करना होगा। सद्वृत्तियों को उभारना होगा, मनुष्य को मनुष्यता बनाए रख़कर दुख-सुख सहना होगा तथा निराश एवं असहाय लोगों के मन में आशा का संचार करना होगा, तभी मानवता बच पाएगी।
प्रश्न 4.
‘प्रस्तुत कविता दुःख और निराशा से लड़ने की शक्ति देती है’-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता हमें दु:ख और निराशा से लड़ने की शक्ति देती है। वर्तमान वातावरण दुःख और निराशा से भरा हुआ है। इससे संघर्ष करना आवश्यक है। यह कविता हमारे अंदर उत्साह का संचार करती है और हमें दुःख और निराशा से लड़ने की शक्ति देती है। वह लोगों को आह्नान करता है कि पृथ्वी से निराशा के अंधकार को दूर करने के लिए नई आशा के साथ संघर्ष की ज्वाला प्रज्ज्जलित करे दें।
सरोज-स्मृति –
प्रश्न 1.
सरोज के नव-वधू के रूप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
सरोज के नववधू के रूप से सुसज्जित होकर विवाह-मंडप में उपस्थित है। उसके मन में प्रिय-मिलन का आह्ललाद है। उसके होठों पर मंद हँसी है। उसने मनभावन शृंगार कर रखा है। लाज एवं संकोच से झुकी उसकी आँखों में एक नई चमक आ गई है। उसके नत नयनों से प्रकाश उतर कर अधरों तक आ गया है। उसकी सुंदर मूर्ति वसंत के गीत के समान प्रतीत होती है।
प्रश्न 2.
कवि को अपनी स्वर्गीया पत्नी की याद क्यों आई ?
उत्तर :
पुत्री सरोज को देखकर कवि को अपनी स्वर्गीया पत्नी की याद हो आई। इसका कारण यह था कि पुत्री सरोज के रंग-रूप में उसे अपनी पत्नी की झलक दिखाई दे रही थी। कवि ने प्नी के रूप में जो शृंगारिक कल्पनाएँ की थीं, वे पुत्री सरोज के अनुपम सौंदर्य में साकार होती प्रतीत हुई। पुत्री के विवाह के अवसर पर उसकी माँ अर्थात् अपनी पत्नी की याद आना स्वाभाविक ही था।
प्रश्न 3.
‘आकाश बदलकर बना मही’ में ‘आकाश’ और ‘मही’ शब्द किसकी ओर संकेत करते हैं ?
उत्तर :
‘आकाश बदलकर बना मही’ से कवि का तात्पर्य यह है कि उसने अपनी कविताओं में जो अद्वितीय श्रृंगारिक कल्पनाएँ की थीं, वे उसकी पुत्री सरोज के अनुपम सौंदर्य में साकार होकर मही अर्थात् धरती पर उतर आई थी। इस प्रकार ‘आकाश’ शब्द कवि की श्रृंगारिक कल्पनाओं के लिए और ‘मही’ शब्द उसकी पुत्री सरोज के सुंदर रूप की ओर संकेत करता है।
प्रश्न 4.
सरोज का विवाह अन्य विवाहों से किस प्रकार भिन्न था ?
उत्तर :
सरोज का विवाह अन्य विवाहों से कई मायने में भिन्न था। यह अत्यंत सादगीपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ था। इस विवाह के लिए आत्मीय और स्वजनों अर्थात् नाते-रिश्रेदारों को निमंत्रण नहीं भेजा गया था। केवल घर-परिवारों के लोग ही इसमें सम्मिलित हुए थे। घर में विवाह के गीत भी नहीं गाए गए। न दिन-रात सारा घर जागा, जैसा कि विवाह के अवसर पर सामान्यतः ऐसा (रतजगा) होता है। एक शांत वातावरण में यह विवाह संपन्न हुआ था। सरोज की विदाई के समय माँ द्वरा दी जाने वाली शिक्षाएँ भी पिता (कवि) ने दी थी। मातृविहिन होने के कारण सरोज की पुप्पसेज भी पिता ने ही सजाई थी।
प्रश्न 5.
शकुंतला के प्रसंग के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
शकुंतला कालिदास की नाट्यकृति ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ की नायिका है। ऋषि कण्व ने मातृविहिन कन्या शकुंतला का पालन-पोषण किया और विवाह कर उसे विदा किया। कवि भी वैसी ही स्थिति से गुजरता है। शकुंतला के विवाह में उसका पिता कण्व विलाप करता है। कवि को पिता के रूप में विलाप करते हुए शकुंतला का स्मरण हो आता है। दोनों में काफी समानता है। साथ ही कवि ने यह भी स्पष्ट किया है कि उसकी पुत्री सरोज की शिक्षा और आचरण शकुंतला से भिन्न था।
प्रश्न 6.
‘वह लता वहीं का, जहाँ कली तू खिली’ पंक्ति द्वारा किस प्रसंग को उद्घाटित किया गया है ?
उत्तर :
इस पंक्ति द्वारा इस प्रसंग को उद्घाटित किया गया है कि सरोज की माँ की असमय मृत्यु हो जाने के परिणामस्वरूप उसका पालन-पोषण ननिहाल में ही हुआ। वह वहीं लता बनी और वहीं वह कली के रूप में खिली अर्थांत् वहीं उसका बचपन बीता, युवावस्था आई और वहीं वह युवत्ती के रूप में कली की तरह खिली। उसका बचपन और किशोरावस्था नानी की गोद में ही व्यतीत हुई। वहीं रहकर वह विवाह योग्य हुई।
प्रश्न 7.
कवि ने अपनी पुत्री का तर्पण किस प्रकार किया ?
उत्तर :
कवि साधनहीन था। उसके पास अपनी पुत्री का तर्पण करने के लिए किसी भी प्रकार की धन-सम्पत्ति नहीं थी। हाँ, उसने अपने जीवन में कुछ अच्छे कर्म अवश्य किए थे। वही कर्म उसकी पूँजी थी। अतः उसने अपने समस्त पुण्य कर्मों को पुत्री सरोज के लिए अर्पित कर उसका तर्पण किया। परंजरा के अनुसार मृतक के श्राद्ध के अवसर पर जल तथा अन्य वस्तुओं से उसका तर्पण किया जाता है। कवि के पास कोई वस्तु तो नहीं थी, अतः उसने अपने विगत जीवन के अच्छे कमों के फल पुत्री सरोज को अर्पित कर उसका तर्पण किया।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए :
(क) नत नयनों से आलोक उतर
उत्तर :
विवाह के अवसर पर बेटी सरोज की आँखों में रोशनी की चमक दिखाई दे रही थी। यह चमक अधरों तक आ गई थी।
(ख) शृंगार रहा जो निराकार
उत्तर :
ऐसा श्रृंगार जिसका कोई आकार न हो। ऐसे भृंगार का प्रभाव ही दृष्टिगोचर होता है। कवि की कविताओं में भी ऐसे ही निराकार सौँदर्य की अभिव्यक्ति हुई थी।
(ग) पर पाठ अन्य यह, अन्य कला
उत्तर :
वेटी को देखकर कवि को नायिका शकुंतला का स्मरण हो आता है, पर यहाँ वह दूसरे ही अर्थ में था। सरोज की शिक्षा और आचरण में भिन्नता थी।
(घ) यदि धर्म, रहे नत सदा माथ
उत्तर :
कवि अपने माथे को झुकाकर अपने पिता-धर्म का पालन करना चाहता है। वह धर्म पर अडिग रहना चाहता है।
योग्यता विस्तार –
1. निराला के जीवन से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए रामविलास शर्मा का ‘महामानव निराला’ पढ़िए।
महामानव निराला – रामविलास शर्मा
‘महामानव निराला’ श्री रामविलास शर्मा द्वारा रचित एक सफल संस्मरण है। इसका सार इस प्रकार है –
सन् 1934 से 38 तक का काल निराला जी के कवि-जीवन का सबसे अच्छा काल था। इसी काल में उनकी श्रेष्ठ रचनाएँ ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘राम की शक्ति पूजा’, ‘तुलसीदास’, ‘सरोज स्मृति’ आदि काव्य तथा ‘प्रभावती ‘ और ‘ निरुपमा’ आदि उपन्यास रचे गए। इससे पहले काल को तैयारी का और बाद के काल को सूर्यास्त के बाद का प्रकाश भर कहा जा सकता है।
निराला जी कविता लिखने से पहले उसकी चर्चा बहुत कम करते थे। वे कविता के भाव को मन में सँजोए रहते थे और धीरे-धीरे वे भाव कविता का आकार ग्रहण करते जाते थे। उनके मन की गहराई को जानना संभव न था। इस प्रक्रिया में वे किसी से बात भी न करते थे। निराला जी ने लेखक को लखनऊ में एक मकान में ‘तुलसीदास’ कविता के दो बंद (छंद) सुनाए थे। एक दिन उन्होंने ‘राम की शक्ति पूजा’ का पहला छंद सुनाकर पूछा था-” कैसा है?” तारीफ सुनकर बोले-” तो पूरा कर डालें इसे।” निरालाजी की बहुत सी कविताएँ आसानी से समझ में नहीं आतीं। लोग उन पर कई प्रकार के आक्षेप लगाते थे कि वे शब्दों को ढूँस-ढूँसकर किसी तरह कविता पूरी कर देते हैं। पर सच्चाई यह थी कि वे कविता लिखने में बहुत परिश्रम करते थे। वे एक-एक शब्द का ध्यान रखते थे। पसंद न आने पर दुबारा लिखते। उनके कई अधलिखे पोस्टकार्ड मिलते हैं।
कविताएँ पढ़ने और सुनाने में उन्हें बहुत आनंद आता था। उन्हें सैकड़ों कविताएँ याद थीं। वे भाव-विद्वल होकर हाव-भाव के साथ कविता सुनाते थे। कविता को लेकर वे अंग्रेजी व संस्कृत के आचायों की परीक्षा तक ले चुके थे। उनका घर साहित्यकारों का तीर्थ था। पंत जी प्रायः उनके घर आते थे। एक बार निरालाजी ने पंत से कविता सुनाने का आग्रह किया तो उन्होंने कोमल स्वर में ‘जग के उर्षर आँगन में, बरसो ज्योतिर्मय जीवन’ शीर्षक कविता सुनाई थी।
एक बार जब उनके यहाँ जयशंकर प्रसाद जी पधारे तो उन्होंने उनके साथ ऐसे बातें कीं मानो उनका बड़ा भाई आ गया हो। वे प्रसाद जी की कविताओं के प्रशंसक थे। वे अन्य साहित्यकारों का भी बहुत सम्मान करते थे। हाँ, वे स्वाभिमानी बहुत थे। राजा साहब के सामने अपना परिचय इस प्रकार दिया- “हम वो हैं जिनके दावा के दादा के दादा की पालकी आपके दावा के दादा के दादा ने उठाई थी।” एक साधारण से कहानीकार
‘बलभद्र दीक्षित पढ़ीस’ को उन्होंने लेखक से सम्मानपूर्वक परिचित कराया। नई पीढ़ी के लेखकों पर उनकी विशेष कृपा रहती थी। जिससे प्रसन्न होते थे उसे कालिका भंडार में रसगुल्ले खिलाते थे। वे मुँहदेखी प्रशंसा से चिढ़ते थे।
निरालाजी अपने तकों से विरोधियों को पछाड़ देते थे। कहानियाँ लिखने से पूर्व उनकी चर्चा किया करते थे। वे अपनी बात अभिनय करके समझाने की कला में पारंगत थे। हर चीज का सक्रिय प्रदर्शन ही उन्हें पसंद था। उन्हें बेईमानी से चिढ़ थी। वे कुछ प्रकाशकों की बेईमानी से चिढ़कर उनकी पूजा कर चुके थे। वैसे वे बहुत व्यवहार-कुशल थे। विरोधी का सम्मान करते थे। एक साहित्यकार ने उन पर व्यक्तिगत आक्षेप लिखा था। इस पर उनका संदेश था- “तुम्हारे लिए चमरौधा भिगो रखा है।” पर उसके लखनऊ आने पर केले-संतरों से उसका सत्कार किया।
निरालाजी खेलों के भी शौकीन थे। कबड्डी और फुटबॉल खेल लिया करते थे। जवानी में उनका शरीर बड़ा सुडौल था। वे गामा और ध्यानचंद के कौशल की तुलना रवींद्रनाथ ठाकुर से किया करते थे। उनमें तंबाकू फाँकने का व्यसन था, जिसे वे चाहकर भी नहीं छोड़ पाए। निरालाजी पाक-कला में सिद्धहस्त थे। वे अपनी कविता की आलोचना तो सह जाते थे, पर अपने बनाए भोजन की निंदा सुनना उन्हे बहुत बुरा लगता था।
वे गरीबी में रहे पर ख्वाब देखा महलों का। एक बार प्रकाशक से दस-द्स के पाँच नोट लेकर उनसे पंखे का काम लेते हुए सड़क पर जा रहे थे कि एक विरोधी कवि ने अपना दुखड़ा रोकर उनसे एक नोट झटक ही लिया। वे नाई को भी बाल कटवाने के धोती या लिहाफ दे देते थे।
अच्छी पोशाक पहनने और अपनी तारीफ सुनने का उन्हें शौक था। वैसे चाहे गंदे कपड़े पहने रहते पर कवि सम्मेलन में
जाते समय साफ कुरता-धोती पहनते थे तथा चंदन के साबुन से मुँह धोना व बालों में सेंट डालना नहीं भूलते थे। वे खाने-पीने तथा पहनने-ओढ़ने के शौकीन थे। अपने को वे साधारण आदमियों में गिनते थे। महामानव बनने तथा पूजा-वंदना से उन्हें चिढ़ थी। वे चतुरी चर्मकार के लड़के को अपने घर बुलाकर पढ़ाते थे। फुटपाथ पर पड़ी रहने वाली भिखारिन से उन्हें सहानुभूति थी।
इतना सब होते हुए भी उनका मन एकांत में दुःख में डूबा रहता था। उन्हें जीवन में लगातार विरोध और अपने प्रियजनों का विद्रोह सहना पड़ा था। अपनी पुत्री सरोज की अकाल मृत्यु ने उन्हें बुरी तरह झकझोर दिया था। वे दूसरों के दु:ख से भी दुःखी रहते थे। निरालाजी हिंदी प्रेमियों के हृदय-सम्राट् थे। वे साहित्यकार और मनुष्य दोनों रूपों में महान् थे।
2. अपने ‘बचपन की स्मृतियाँ’ को आधार बनाकर एक छोटी-सी कविता लिखने का प्रयास कीजिए।
मेरा बचपन
मेरा बचपन बीता
खेतों खलिहानों में,
मैं एक किसान का बेटा हूँ।
बचपन से ही मैंने सीखा है
परिश्रम करना।
खेतों में मिला मुझे
प्राकृतिक खुला वातावरण
और मैं बना स्वस्थ, सुंदर।
3. ‘सरोज-स्मृति’ पूरी पढ़कर आम आदमी के जीवन-संघर्ष पर चर्चा कीजिए।
विद्यार्थी इस लंबी कविता को पुस्तकालय से पुस्तक लेकर पढ़ें और जीवन-संघर्ष पर चर्चा करें।
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काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न –
प्रश्न – निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर इनमें निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
1. चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे,
हाथ जो पाथेय थे, ठग
ठाकुरों ने रात लूटे,
कंठ रुकता जा रहा है,
आ रहा है काल देखो।
उत्तर :
इस काव्यांश में कवि जीवन की उस स्थिति की ओर संकेत करता है जब वह चोट खाते-खाते, संघर्ष करते-करते हार स्वीकार करने की मनःस्थिति में आ जाता है। इस जीवन-संघर्ष में होश बनाए रखने वाले लोग भी होश खो बैठे हैं अर्थात् जीवन जीना अत्यंत कठिन हो गया है। जिन हाथों पर अर्थात् लोगों पर विश्वास था उन्हीं ने लूट लिया अर्थात् रक्षक ही भक्षक बन गए। अब तो जिजीविषा दम तोड़ने के कगार पर है।
- ‘ठग-ठाकुर’ में लाक्षणिकता का समावेश है। ये शोषक वर्ग के प्रतीक हैं।
- ‘होश के होश छूटना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।
- कंठ का राकना, काल का आना-में प्रतीकात्मकता है।
- सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग है।
2. भर गया है जहर से
संसार जैसे हार खाकर
देखते हैं लोग लोगों को,
सही परिचय न पाकर,
बुझ गई है लौ पृथा की,
जल उठो फिर सींचने को।
उत्तर :
‘गीत गाने दो मुझे’ नामक कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘ निराला’ ने संसार में व्याप्त लूट-खसोट से निराश लोगों को अपनी व्यथा को भुलाकर पुन: व्यवस्था स्थापित करने का आह्वान किया है। सर्वत्र फैली विषमता तथा निराशा को त्यागकर मानवीय संदेवनाओं की अपनी ज्योति से इस धरती को पुन: सींचना होगा।
शिल्प-सौंदर्य : प्रस्तुत पंक्तियों में मानवता के कल्याण की सद्भावना से युक्त गीतों को रचने की कामना अभिव्यक्त हुई है।
कवि का मानवतावादी दृष्टिकोण स्पष्ट होता है।
अनुप्रास, उत्प्रेक्षा और विरोधाभास अलंकार का प्रयोग है।
सहज-स्वाभाविक खड़ी बोली का प्रयोग है।
छंद मुक्त कविता है।
कविता में प्रसाद गुण है।
3. इस पथ पर, मेरे कार्य सकल
हों भ्रष्ट शीत के-से शतदल
कन्ये, गत कर्मों का अर्पण
कर, करता मैं तेरा तर्पण।
उत्तर :
इन काव्य-पंक्तियों में कवि पुत्री के लिए कुछ न कर पाने पर अकर्मण्यता के पाप-बोध से ग्रसित जान पड़ता है। वह अपने समस्त कामों को इसी प्रकार भ्रष्ट होते देखना चाहता है जैसे शीत ऋतु में कमल की दशा हो जाती है। गीत की मार से कमल मुरझा जाते हैं। कवि अपना प्रायश्चित करते हुए अपने सभी कर्मों का सुफल पुत्री को अर्पित करके उसका तर्पण करना चाहता है।
- ‘शीत के-से शतदल’ में उपमा अलंकार है।
- ‘कर करता’ में अनुप्रास अलंकार है।
- तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
4. दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ आज जो नहीं कही !
हो इसी कर्म पर वज्रपात
यदि धर्म, रहे नत सदा माथ
इस पथ पर मेरे कार्य सकल
हों भ्रष्ट शीत के-से शतदल।
उत्तर :
इस काव्यांश में कवि निराला का जीवन-संधर्ष मुखरित हुआ है। कवि कहता है कि मैंने अपनी स्मृतियों को काफी लंबे समय तक हृदय में संजोए रखा, परंतु अब मैं अत्यधिक व्याकुल हो गया हूँ। अतः उसे प्रकट कर रहा हूँ। मेरा तो सारा जीवन ही दुखों की कहानी बनकर रह गया है । मैं अपने दुख की कथा को आज इस कविता के माध्यम से प्रकट कर रहा हूँ, जिसे मैं आज तक नहीं कह पाया था। मेरे कर्म पर वज्रपात भी हो जाए तब भी मेरा सिर इसी मार्ग पर झुका रहेगा 1 मैं अपने मानवीय धर्म की रक्षा करता रहूँगा। मैं अपने मार्ग से विचलित नहीं हूँगा। यदि अपने कर्तव्य और धर्म का पालन करते हुए मेरे समस्त सत्कार्य शीत के कमल दल की भाँति नष्ट हो जाएँ तब भी मुझे कोई चिंता नहीं है।
- कवि-हृदय की असीम वेदना को अभिव्यक्ति मिली है।
- ‘शीत के से शतदल’ में उपमा अलंकार है।
- ‘क्या कहूँ आज, जो नहीं कही’ में वक्रोक्ति अलंकार है।
- क्या कहूँ, पथ पर, कर करता, तेरा तर्पण में अनुप्रास अलंकार है।
- तत्सम शब्द प्रधान भाषा का प्रयोग है।
5. नत नयनों से आलोक उतर
काँपा अधरों पर थर-थर-थर।
देखा मैंने वह मूर्ति-धीति
मेरे वसंत की प्रथम गीति-
उत्तर :
भाव-सौंदर्य – अपनी पुत्री सरोज के विवाह के अवसर पर कवि निराला को ऐसा प्रतीत होता है कि पुत्री की लज्जा और संकोच से झुकी आँखों में एक नवीन प्रकाश उत्तर आया है। इसी कारण उसके अधरों पर एक स्वाभाविक कंपन हो रहा है। उस समय कवि देखता है कि उसके जीवन के वसंत की प्रथम गीति की प्यास उस मूर्ति (पुत्री) में साकार हो उठी है। कवि को उस समय अपनी प्रिया का स्मरण हो आता है।
शिल्प-सौंदर्य –
- स्मृति-बिंब साकार हो उठा है।
- ‘नत-नयनों’ में अनुप्रास अलंकार है।
- मूर्ति-धीति में मानवीकरण है।
- संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
- ‘थर-थर-थर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- शब्द-चयन अत्यंत सटीक है।
- कविता छंद-बंधन से मुक्त है।
6. शृंगार रहा जो निराकार
रस कविता में उच्छवसित-धार
गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग
भरता प्राणों में राग-रंग।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य-पुत्री सरोज के विवाह के अवसर पर कवि निराला अपनी पुत्री को संबोधित कर कहता है कि अब तक मैंने अपनी कविताओं के शृंगार रस वर्णन में सौंदर्य के जिस निराकार भाव की अभिव्यक्ति की है, वही भाव तुम्हारे रूप-सौंदर्य में साकार हो उठा है। उस समय कवि को अपनी स्वर्गीया पत्नी का स्मरण हो आता है। कवि ने पत्नी के साथ मिलकर जिस प्रेम-गीत को गाया था, वह आज भी उसके प्राणों में अनुराग-पूर्ण उत्साह का संचार कर रहा है।
शिल्प-सौंदर्य – निराला जी की कल्पना शक्ति का चमत्कार देखने ही बनता है।
- शृंगार रस का मूर्तिमान रूप व्यंजित हुआ है।
- ‘स्मृति-बिंब’ साकार हो उठा है।
- ‘राग-रंग’ में अनुप्रास अलंकार है।
- मानवीकरण हुआ है।
- भाषा सरल एवं सुबोध है।
- शैब्दे-चयन सटीक बन पड़ा है।
प्रतिपाद्य संबंधी प्रश्न –
प्रश्न 1.
‘गीत गाने दो’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘इस कविता के माध्यम से कवि लोगों के मन में घनीभूत हुई निराशा में आशा का संचार करना चाइता है। वह ऐसे समय को बता रहा है जिसमें मनुष्य संघर्ष करते हुए थक जाता है। उसका हौसला टूटने लगता है। वह बताता है कि जो कुछ मूल्यवान था, वह लुट रहा है। सारे संसार में मानवता परास्त दिखाई दे रही है। मनुष्य में संघर्ष करने की क्षमता समाप्त हो रही है। कवि इसी संघर्ष क्षमता को जागृत करना चाहता है। इसके लिए वह अपने गीतों को माध्यम बनाना चाहता है।
प्रश्न 2.
‘सरोज-स्मृति’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘यह कविता निराला जी की दिवंगता पुत्री सरोज की स्मृतियों पर आधारित है। यह एक शोकगीत है। इस कविता में कवि ने पुत्री की असामयिक मृत्यु के बाद पिता के हृदय की पीड़ा एवं उसका प्रलाप व्यक्त किया है। कवि को कभी शकुंतला की याद आती है तो कभी अपनी पत्नी की। वह विवाह की पारंपरिक रीति तोड़ कर अपनी पुत्री का विवाह दहेज एवं आडंबर के बिना करता है। वह अपनी अकर्मण्यता को भी व्यक्त करता है। अंत में वह अपने सभी कर्मों से अपनी पुत्री का तर्पण करता है।
अन्य प्रश्न –
प्रश्न 1.
कवि निराला की कविताओं में शृंगारिक कल्पना किस रूप में साकार हुई है ? ‘सरोज-स्मृति’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए?
उत्तर :
कवि निराला ने अपनी कविताओं में सौंदर्य के जिस निराकार भाव को अभिव्यक्ता किया है। वह अनुपम सौंदर्य कल्पना रूपी आकाश से उतरकर पृथ्वी पर मूर्तिमान हो उठा था।
कवि के राग-रंग के शृंगारिक कल्पनाएँ रति के समान आकर्षक व दिव्य-सौंदर्य लिए हुए उसकी पुत्री सरोज के रूप में साकार हो उठी थीं।
प्रश्न 2.
स्पष्ट कीजिए कि ‘सरोज स्मृति’ एक शोकगीत है।
उत्तर :
‘सरोज स्मृति’ कवि निराला के शोक संतप्त हृदय का मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी उद्गार है, जो पाठकों के मन में करूणाभाव पैदा कर देता है। कवि की पत्नी का असामयिक निध न हो चुका था, जिसका दुख कवि अपने सीने पर पत्थर रखकर ढो रहा था। ऐसे में उसकी एकमत्र पुत्री सरोज ही उसका जीवन-संवल थी। विवाह के कुछ ही समय बाद पुत्री की मृत्यु ने कवि हृदय को झकझोर कर रख दिया। यूँ तो कवि ने आजीवन दुख-ही-दुख झेला था पर इस दुख से वह इतना दुखी हुआ कि उसके हृदय की पीड़ा ‘सरोज स्मृति’ के रूप में मुखरित हो उठी। इस प्रकार कह सकते हैं कि निस्संदेह ‘सरोज स्मृति’ शोकगीत है।
प्रश्न 3.
‘निराला’ की कविता ‘सरोज-स्मृति’ की काव्य-पंक्ति ‘दुःख ही जीवन की कथा रही, कया कहूँ, जो नहीं कही।”‘ के आलोक में कवि हुदय की पीड़ा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
इस काव्यांश में कवि निराला का जीवन-संघर्ष मुखरित हुआ है। कवि कहता है कि मैंने अपनी स्मृतियों को काफी लंबे समय तक हृदय में संजोए रखा, परन्तु अब मैं अत्यधिक व्याकुल हो गया हूँ। अतः उसे प्रकट कर रहा हूँ। मेरा तो सारा जीवन ही दुखों की कहानी बनकर रह गया है। में अपने दुख की कथा को आज इस कविता के माध्यम से प्रकट कर रहा हूँ, जिसे मैं आज तक नहीं कह पाया था। मेरे कर्म पर वज्रपात भी हो जाए तब भी मेरा सिर इसी मार्ग पर झुका रहेगा। मैं अपने मानवीय धर्म की रक्षा करता रहूँगा। मैं अपने मार्ग से विचलित नहीं हूँगा। यदि अपने कर्तव्य और धर्म का पालन करते हुए मेरे समस्त सत्कार्य शीत के कमल दल की भाँति नष्ट हो जाएँ तब भी मुझे कोई चिता नहीं है।
प्रश्न 4.
‘कन्ये, गत कर्मों का अर्पण कर, करता मैं तेरा तर्पण’।-इस कथन के पीछे छिपी वेदना और विवशता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
‘सरोज-स्मृति’ कविता एक शोक-गीत है। इसमें कवि अपनी दिवंगत पुत्री सरोज की आकस्मिक मृत्यु पर शोक प्रकट करने के साथ-साथ अपनी विवशता को प्रकट करता है। वह स्वयं को एक पिता के रूप में अकर्मण्य पाता है। वह पुत्री के प्रति कुछ भी न कर पाने को कोसता है। इस कविता के माध्यम से कवि का अपना जीवन-संघर्ष भी प्रकट हुआ है। पिता के रूप में कवि के विलाप में उसे कभी शकुंतला की याद आती है तो कभी अपनी स्वर्गीया पत्नी की। उसे पुत्री के रंग-रूप में अपनी पत्नी के रंग-रूप की इलक मिलती है। कवि पुत्री का पालन-पोषण स्वयं नहीं कर पाया। इसके लिए उसे अपनी ससुराल (सरोज की नानी, मामा-मामी) की शरण में जाना पड़ा। यह भी कवि के मानसिक दुःख का कारण है। कवि का समस्त जीवन दुःख की कथा बनकर रह गया और वह उसे कहने में असमर्थता का अनुभव करता है।
प्रश्न 5.
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता में ‘निराला’ के जीवन में व्याप्त निराशा को आशा का स्वर और मनुष्य में समाप्त हो रही जिजीविषा को पुन: प्रकाश देने की बात कहकर हमें जीने की प्रेरणा दी है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? तर्कयुक्त उत्तर दीजिए।
उत्तर :
हाँ, हम इस कथन से सहमत है क्योंकि ‘गीत गाने दो’ कविता के माध्यम से कवि निराशा के मध्य भी आशा का संचार करनाचाहता है। यह सही है कि इस समय वातावरण प्रतिकूल है। कवि इस वातावरण में संघर्ष करते-करते थक गया है। अब जीवन जीना सरल नहीं रह गया है। यही दशा अन्य लोगों की भी है। जीवन-मूल्यों का पतन हो रहा है। इस समय पूरा संसार हार मानने की मनःस्थिति में है क्योंकि उसके जीवन में अमृत के स्थान पर जहर भर गया है। इस समय पूरी मानवता हा-हाकार कर रही है। ऐसा लगता है कि पृथ्वी की लौ ही बुझ गई है। इस वातावरण में मनुष्य की जिजीविषा ही मिटती जा रही है। कवि इस कविता के माध्यम से इसी लौ को जगाने का प्रयास करता है। वह चाहता है कि हम अपनी वेदना-पीड़ा को अपने मन में छिपाए रखें और गीत गाने का प्रयास करें। कवि इस कविता के माध्यम से निराशा के मध्य आशा का संचार करना चाहता है।
प्रश्न 6.
‘दुख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज, जो नहीं कही।’ के आलोक में कवि हुदय की पीड़ा का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
महाकवि निराला को आजीवन संघर्षरत रहना पड़ा। वे जीवन-भर अभावों को झेलते रहे। सामाजिक कुरीतियों और रूढ़ियों की बुराई करने के कारण उन्हें स्वजातीय बंधुओं और समाज की अवहेलना झेलनी पड़ी। एक-एक कर अपने निकट संबंधियों और पत्नी की मृत्यु ने उन्हें दुखों में डुबो दिया था, किंतु अपनी एकमात्र पुत्री सरोज की मृत्यु ने उन्हें अंदर तक हिला दिया था। वे इतने दुखी थे कि वे चाहकर अपनी व्यथा को कह नहीं पा रहे थे। उनसे केवल यही कहा जा रहा था कि दुखों में आजीवन पलना ही उनकी समस्त कथा है।
प्रश्न 7.
‘सरोज-स्मृति’ कविता में कवि निराला की वेदना के सामाजिक संदर्भो को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘सरोज-स्मृति’ कविता एक शोकगीत है। यह गीत निराला जी की दिवंगता पुत्री सरोज पर केंद्रित है। यह कविता निराला के कवि-हृदय का विलाप है। निराला की वेदना दोहरी है। पिता निराला का विलाप उसे पत्नी शकुंतला की याद उभार देता है। कवि को अपंनी पुत्री सरोज के रूप-रंग में पत्नी का रूप-रंग दिखाई देने लगता है। इस कविता में कवि ने एक भाग्यहीन पिता के संघर्ष के साथ-साथ, समाज से उसके संबंध, अपनी पुत्री के प्रति कुछ न कर पाने पर अपनी अकर्मण्यता का बोध भी उजागर हुआ है। यह कविता केवल एक भाग्यहीन पिता की वेदना की अभिव्यक्ति ही नहीं है, वरन् समाज की बेहतरी के लिए काम करने वाले युगचेता निराला के प्रति समाज की उपेक्षा को भी व्यंजित किया है।
प्रश्न 8.
‘सरोज-स्मृति’ कविता में स्वयं को ‘भाग्यहीन’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
‘सरोज-स्मृति’ कविता में कवि ने स्वयं को भाग्यहीन कहा है। वह ऐसा इसलिए कहता है कि वह एक असहाय पिता बनकर रह गया। वह अपनी पुत्री सरोज के लिए कुछ भी नहीं कर पाया। वह न तो सही ढंग से उसका पालन-पोषण कर पाया और न ढंग से उसका विवाह ही कर पाया। उसकी अंतिम अवस्था में भी वह पुत्री को बचाने के लिए कुछ भी नहीं कर पाया। उसे अपनी भाग्यहीनता और अकर्मण्यता पर बड़ा पछतावा होता है। पुत्री सरोज ही उसका एकमात्र संबल था, पर वह उसकी रक्षा करने में असफल रहा। इस प्रकार वह भाग्यहीन ही प्रमाणित हुआ।
12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers
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