NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 5 एक कम, सत्य
Class 12 Hindi Chapter 5 Question Answer Antra एक कम, सत्य
एक कम –
प्रश्न 1.
कवि ने लोगों के आत्मनिर्भर, मालामाल और गतिशील होने से किन तरीकों की ओर संकेत किया है ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कवि ने लोगों के आत्मनिर्भर, मालामाता और गतिशील होने में भ्रष्ट तरीकों की ओर संकेत किया है। लोग धोखाधड़ी का सहारा लेकर एक-दूसरे को ठगने का तरीका अपनाते हैं। चारों ओर नितांत स्वार्थपरता का माहौल बन गया है। यह पतन का रास्ता अभी भी जारी है। लोगों ने ईमानदारी को ताक पर रखकर धन बटोरना शुरू कर दिया है। ये लोग धन पाने के लिए बड़े से बड़ा झूठ बोलने को तैयार हो जाते हैं। ये विश्वासघात करने से भी बाज नहीं आते।
प्रश्न 2.
हाथ फैलाने वाले व्यक्ति को कवि ने ईमानदार क्यों कहा है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हाथ फैलाने वाले व्यक्ति को कवि ने ईमानदार इसलिए कहा है क्योंकि ईमानदारी का जीवन बिताने के कारण ही वह व्यक्ति गरीब रह गया। यदि वह भी अन्य व्यक्तियों की तरह श्रष्ट आचरण अपना लेता तो वह भी मालामाल हो जाता और उसे किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत ही नहीं रह जाती। यह उसे ईमानदार होने की सजा मिली है। वह अपनी वास्तविक स्थिति को छिपाता नहीं। यदि वह भी अन्य लोगों की तरह भ्रष्ट साधन अपना लेता तो वह भी अमीर बन जाता। अत: वह ईमानदार है।
प्रश्न 3.
कवि ने स्वयं को लाचार, कामचोर, धोखेबाज क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवि ने स्वयं को लाचार, कामचोर और धोखेबाज इसलिए कहा है क्योंकि वह अपनी आँखों से सब कुछ गलत होते हुए देखता रहता है और कुछ नहीं कर पाता। वह किसी भी गलत काम का विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। वह स्वयं को लाचार पाता है। कवि न तो स्वयं कुछ कर पाता है और न दूसरों की कुछ सहायता कर पाता है। वह स्वयं को कामचोर भी बताता है। वर्तमान माहौल में ईमानदार लोग भी दूसरों के आगे हाथ फैलाने को विवश हो गए हैं। वह स्वयं उनके जीवन-संघर्ष में सहायक नहीं बन पाता। इस प्रकार वह एक प्रकार से ईमानदारी को धोखा दे रहा है। अन्याय को चुपचाप देखते रहना और कुछ न कहना भी एक प्रकार का धोखा ही तो है। कवि स्वयं को असहाय स्थिति में पाता है।
प्रश्न 4.
‘मैं तुम्हारा विरोधी, प्रतिद्वंद्वी या हिस्सेदार नहीं’ से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
इससे कवि का यह अभिप्राय है कि वह देश में अनैतिक तरीकों से फल-फूल रहे लोगों का विरोध करके उनसे प्रतिद्वंद्विता नहीं करना चाहता। एक ईमानदार और लाचार व्यक्ति कभी किसी का विरोध नहीं कर सकता। वह किसी के लिए चुनौती भी नहीं बन सकता। उससे किसी को कोई खतरा नहीं होता। समाज में हाशिए पर चला गया व्यक्ति विकास की दौड़ से बाहर हो जाता है। असमर्थ व्यक्ति से किसी को कोई खतरा नहीं होता।
प्रश्न 5.
भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
(क) ‘1947 के बाद से …………… गतिशील होते देखा है’।
(ख) ‘मानता हुआ कि हाँ मैं लाचार हूँ ………….’एक मामूली धोखेबाज।’
(ग) ‘तुम्हारे सामने बिल्कुल ……………. लिया है हर होड़ से।’
उत्तर :
(क) 1947 अर्थात् स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत उसने बहुत सारे लोगों को भ्रष्ट तरीकों से धन एकत्रित करके धनी बनते देखा है। ये लोग स्वयं को आत्मनिर्भर और गतिशील (सक्रिय) बताते हैं। उनकी यह आत्मनिर्भरता और गतिशीलता धोखाधड़ी करने के कारण ही है।
(ख) कवि ईमानदार लोगों की लड़ाई लड़ने में स्वयं को विवश पाता है। वह चाहकर भी उनके लिए कुछ नहीं कर पाता। वह स्वयं को लाचार, कंगाल, कामचोर और मामूली धोखेबाज मानता है। वह कुछ कर नहीं पा रहा है अत: लाचार है, कुछ करता नहीं अतः कामचोर है और कथनी को कार्यरूप में न ढाल पाने का धोखा देता है अतः मामूली धोखेबाज है।
(ग) कवि ईमानदार लोगों के सम्मुख स्वयं को बिल्कुल बेशर्म और इच्छा रहित व्यक्ति के रूप में दर्शाता है। वह किसी होड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहता। वह टकराव से बचता है।
प्रश्न 6.
शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
(क) ‘कि अब जब कोई ………….. या बच्चा खड़ा है।’
(ख) ‘मैं तुम्हारा विरोधी प्रतिद्धंद्वी’…………….. निश्चित रह सकते हो।’
उत्तर :
(क) कवि यह मानता है कि गरीब व्यक्ति ही विवशतावश दूसरों के सामने हाथ फैलाता है। ‘हाथ फैलाना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है। चाय या रोटी ‘भूख’ का प्रतीक है। लाक्षणिक भाषा का प्रयोग किया गया है। ‘पच्चीस पैसे’ में अनुप्रास अलंकार है। भाषा में सरलता एवं सजीवता का समावेश है। रचना मुक्तछंद में है।
(ख) कवि जीवन-संघर्ष कर रहे व्यक्तियों के मार्ग में नहीं आता। सामने वाले व्यक्ति के तीन रूप ही. हो सकते हैं-विरोधी, प्रतिद्धंदी या हिस्सेदार। कवि इन किसी भी रूप में नहीं है। प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग है। व्यंजना शैली का प्रयोग किया गया है।
सत्य –
प्रश्न 1.
सत्य क्या पुकारने से मिल सकता है ? युधिष्ठिर विदुर को क्यों पुकार रहे हैं-महाभारत के प्रसंग से ‘सत्य’ के अर्थ खोलें।
उत्तर :
नहीं, सत्य को पुकारने से वह नहीं मिल सकता। युधिष्ठिर विदुर से सत्य कहलवाना चाह रहे थे, विदुर इससे बच कर भागे चले जा रहे थे, परंतु युधिष्ठिर के दृढ़ संकल्प को देखकर उन्हें रुकना ही पड़ा। उन्होंने एक बार अपलक नेत्रों से युधिष्ठिर की ओर देखा और उनके सत्य का प्रकाश युधिष्ठिर की अंतर्रात्मा में समा गया, जिसकी दमक से उनकी आत्मा दीप्त हो उठी। फिर भी उनके मन में संशय बना रहा कि सत्य मेरे भीतर समाया या नहीं। सत्य को पाने के लिए दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है, तभी हमारे अंदर उसका प्रकाश समाता है।
प्रश्न 2.
सत्य का दिखना और ओझल होना से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
सत्य कभी तो स्पष्ट दिखाई देता है, पर कभी हमारी दृष्टि से परे भी हो जाता है।
इससे कवि का यह तात्पर्य है कि सत्य हर समय हमारे सामने उपस्थित नहीं रहता। आज सत्य की कोई स्थिर पहचान नहीं रह गई है। उसका कोई ऐसा रूप नहीं जो उसे स्थिरता प्रदान कर सके। सत्य का रूप वस्तु स्थिति, घटनाओं तथा पात्रों के अनुसार बदलता रहता है। सत्य को रोकने की यदि हमारे अंदर दृढ़ संकल्प शक्ति नहीं है तो वह हमारी आँखों से ओझल हो जाता है। सत्य को पकड़ने के लिए हमारे अंदर युधिष्ठिर जैसी संकल्प शक्ति का होना जरूरी है।
प्रश्न 3.
सत्य और संकल्प के अंतर्संबंध पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
सत्य को पाने के लिए दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। बिना संकल्प के सत्य को नहीं पाया जा सकता। दोनों में गहरा संबंध है। ज्यों-ज्यों हमारी संकल्प शक्ति क्षीण होती चली जाती है, सत्य हमसे दूर होता चला जाता है। सत्य को दृढ़ संकल्प के बलबूते पर ही पाया जा सकता है।
प्रश्न 4.
‘युधिष्ठिर जैसा संकल्प’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
कवि का युधिष्ठिर जैसा संकल्प से यह अभिप्रायः है-
युधिष्ठिर एक दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति थे। उनमें सत्य को पकड़ने की दृढ़ इच्छा शक्ति थी। वे किसी भी स्थिति में सत्य और धर्म के मार्ग से विचलित नहीं हुए। हमें भी उनके साथ संकल्पित दृढ़ व्यक्ति होना चाहिए।
युधिष्ठिर ने जय और पराजय की चिंता किए बिना अपने पूरे जीवन में दृढ़ संकल्प शक्ति का परिचय दिया। उनके दृढ़ संकल्प के कारण ही विदुर की सत्य दृष्टि उनमें समा पाई थी।
अत: यदि मनुष्य युधिष्ठिर के समान दृढ़ संकल्प कर ले तो वह अपने उद्देश्य को अवश्य प्राप्त कर लेगा।
प्रश्न 5.
सत्य की पहचान हम कैसे करें ? कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सत्य की पहचान के लिए हमें अपने मन में युधिष्ठिर जैसा दृढ़ संकल्प पैदा करने की आवश्यकता होती है। इसे हम अपनी आत्मा में खोज सकते हैं। वैसे सत्य की पहचान आसान नहीं है, क्योंकि सत्य का कोई स्थिर रूप या आकार या पहचान नहीं है। वर्तमान समय में बदलते हालात और मानवीय संबंधों में हो रहे परिवर्तन सत्य की पहचान में बाधक बन रहे हैं। सत्य को पाने के लिए हमें वैसी ही गुहार लगानी पड़ती है, जैसी युधिष्ठिर ने विदुर को रोकने के लिए लगाई थी। ऐसे में सत्य की पहचान के लिए कवि ने कविता में यह संकेत किया है कि किसी समय जिस बात, घटना या विचार पर हमारी आत्मा विशेष आभा के लिए दमक उठे, उस समय हमें समझना चाहिए कि सत्य ने हमारा स्पर्श कर लिया है। इस प्रकार हमारी अंतरात्मा ही सत्य को पहचानने में हमारी सहायता करती है।
प्रश्न 6.
कविता में बार-बार प्रयुक्त ‘हम’ कौन हैं और उसकी चिंता क्या है ?
उत्तर :
कविता में बार-बार प्रयुक्त ‘हम’ उन व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त है जो सत्य को जानना चाहते हैं। व्यक्ति की चिंता यह है कि सत्य का एक स्थिर रूप, आकार या पहचान नहीं है। ऐसा होने पर ही वह स्थायी बन सकता है। जो बात एक व्यक्ति के लिए सत्य है वही दूसरों के लिए सत्य नहीं है। सत्य का रूप वस्तु स्थिति, घटनाओं एवं पात्रों के अनुसार बदलता रहता है। अतः सत्य की पहंचान और पकड़ मुश्किल होती जा रही है। ऐसे में सत्य को कैसे पहचानें यही आज के मनुष्य की चिंता है।
प्रश्न 7.
“सत्य की राह पर चल। अगर अपना भला चाहता है तो सच्चाई को पकड़।” इन पंक्तियों के यथार्थ में कविता का मर्म खोलिए।
उत्तर :
कवि भी इस कविता में यही चाहता है कि सत्य के रास्ते पर चलने से ही व्यक्ति का भला हो सकता है। हमें सच्चाई को पकड़कर रखना चाहिए। आज के समय और समाज में सत्य की पहचान और उसकी पकड़ मुशिकल होती जा रही है। यह कविता उसी का प्रमाण है। इसका कारण यह भी है कि सत्य कभी दिखाई देता है तो कभी ओझल हो जाता है। सत्य की कोई स्थिर पहचान होनी चाहिए। सत्य हमारी आत्मा की शक्ति है।
योग्यता विस्तार –
1. आप ‘सत्य’ को अपने अनुभव के आधार पर परिभाषित कीजिए।
सत्य (ईश्वर) की खोज, उसकी आराधना मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। हमारा प्रत्येक कार्य सत्य प्रेरित हमारे जीवन का प्रत्येक क्षण सत्य की आराधना में व्यतीत होना चाहिए। हम सत्य की आराधना के लिए ही जिएं तथा सत्य के लिए ही मरें। हमारा संसार में अस्तित्व ही सत्य की प्राप्ति के लिए होना चाहिए। सत्य की प्राप्ति ही हमारे जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। यदि हम सत्य के लिए जीना सीख जाते हैं तो अन्य सभी नियम आसानी से हमारे काबू में आ जाते हैं। ऐसा करने पर अन्य नियम भी हमारी समझ में आ जाते हैं। सत्य के बिना किसी भी नियम का पालन नहीं किया जा सकता। भाव यह है कि सत्य ही जीवन का आधार है।
2. आजादी के बाद बदलते परिवेश का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करने वाली कविताओं का संकलन कीजिए तथा एक विद्यालय पत्रिका तैयार कीजिए।
विद्यार्थी पत्रिका तैयार करें।
3. ‘ईमानदारी और सत्य की राह आत्म सुख प्रदान करती है’ इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
4. गाँधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ की कक्षा में चर्चा कीजिए।
5. ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ फिल्म पर चर्चा कीजिए।
6. कविता में आए महाभारत के कथा-प्रसंगों को जानिए।
ये सभी कार्य विद्यार्थी स्वयं करें।
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काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न –
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
1. 1947 के बाद से
इतने लोगों को इतने तरीकों से
आत्मनिर्भर मालामाल और गतिशील होते देखा है।
उत्तर :
काव्य-सौंदर्य :
भाव-सौंदर्य : इन पंक्तियों में यह भाव प्रकट किया गया है कि देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद देश की आस्थावान, ईमानदार और संवेदनशील जनता का मोहभंग हुआ है।
स्वार्थी तत्वों ने झूठ बोलकर, विश्वासघात तथा धोखाधड़ी
करके धन-संपत्ति तथा मान-सम्मान को हथिया लिया है। अब वे आत्मनिर्भर, धनी एवं गतिशील दिखाई देने लगे हैं।
शिल्प-सौंदर्य :
- व्यंजनापूर्ण भाषा का प्रयोग हुआ है।
- ‘इतने तरीकों शब्द का प्रयोग कर कवि ने अमूर्त भावों की अभिव्यक्ति अत्यंत आकर्षक रूप में की है।
- सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. मानता हुआ कि हाँ मैं लाचार हूँ कंगाल या कोढ़ी
या मैं भला चंगा हूँ और कामचोर और
एक मामूली धोखेबाज।
उत्तर :
काव्य-सौंदर्य :
भाव-सौंदर्य : इन पंक्तियों में कवि ने मदद के लिए हाथ फैलाने वाले व्यक्ति की ईमानदारी का भावपूर्ण चित्रण किया है।
- यह स्पष्ट किया गया है कि ऐसे लोग अपनी स्थिति को प्रकट करने में ईमानदारी का परिचय देते हैं।
- माँगने वाले की दो स्थिति हो सकती हैं – या तो वह गरीब अथवा अपंग है।
- यदि वह स्वस्थ है तो वह कामचोर एवं मामूली किस्म का धोखेबाज हो सकता है।
- पर ऐसा व्यक्ति भ्रष्ट एवं बेईमान नहीं हो सकता। शिल्प-सौंदर्य :-सरल एवं सुबोध शब्दों का प्रयोग किया गया है।
- कंगाल, कोढ़ी में अनुप्रास अलंकार है।
- लाक्षणिकता का समावेश है।
3. कि अब जब आगे कोई हाथ फैलाता है
पच्चीस पैसे एक चाय या दो रोटी के लिए तो जान लेता है
मेरे सामने एक ईमानदार आदमी, औरत या बच्या खड़ा है।
उत्तर :
काव्य-सौंदर्य :
भाव-सौंदर्य : इन पंक्तियों में समाज में माँगकर खाने वाले व्यक्ति की विवशता एवं ईमानदारी का यथार्थ चित्रण किया गया है। उनके प्रति सहानुभूति प्रकट की गई है। यदि वह ईमानदार न होता तो उसे हाथ फैलाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती, वह भी प्रष्ट तरीकों को अपनाकर धनी बन सकता था।
शिल्प-सौंदर्य :
- ‘पच्चीस पैसे’ में अनुप्रास अलंकार है।
- ‘हाथ फैलाना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।
- चाय या रोटी ‘भूख’ का प्रतीक है।
- लाक्षणिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
4. मैं तुम्हारा विरोधी प्रतिद्धंदी या हिस्सेदार नहीं
मुझे कुछ देकर या न देकर भी तुम
कम से कम एक आदमी से तो निश्चित
रह सकते हो।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य-आज के धोखाधड़ी, आपसी खींचतान, स्वार्थपरता के वातावरण में कवि हाथ फैलाने वाले ईमानदार व्यक्ति के प्रति सहानुभूति रखता है। यद्यपि वह कुछ कर नहीं पाता, पर वह उस व्यक्ति के जीवन-संघर्ष में बाधक नहीं बनना चाहता। उसकी ओर से निश्चिंत रहा जा सकता है। वह प्रतिद्वंद्विता से बाहर है।
शिल्प-सौंदर्य –
- ‘प्रतिद्वंद्वी’ शब्द में गहरी अर्थव्यंजना निहित है।
- भापा में गंभीरता है।
- व्यंजनात्मक शैली का अनुसरण किया गया है।
- शब्द-चयन सटीक है।
- कविता छंद-बंधन से मुक्त है।
5. अंतिम बार देखता-सा लगता है वह हमें
और उसमें से उसी का हल्का-सा
प्रकाश जैसा आकार
समा जाता है हममें।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य-इस काव्यांश में कवि ‘सत्य’ को आत्मा का प्रकाश बताता है, उसे आत्मा की आंतरिक शक्ति बताता है। सत्य कई बार हमारी तरफ इस तरह से देखता है कि मानो वह हमें अंतिम बार देख रहा हो। इस प्रकार सत्य से हमारा अंतिम साक्षात्कार होता है। उस समय उसी का हल्का-सा प्रकाश फैल जाता है और वह हमारे अंदर प्रवेश कर जाता है अर्थात् जब हम सत्य का अनुभव कर लेते हैं, तब सत्य हमें अपने प्रकाश से भर देता है। फिर उसे कहीं ढूँढने की आवश्यकता नहीं रह जाती है।
शिल्प-सौंदर्य –
- इसमें सत्य (अमूर्त भाव) को मानवीय क्रियाएँ करते हुए दर्शाया गया है। अत: यह मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है।
- अनुप्रास अलंकार का भी प्रयोग है।
- शब्द-चयन सटीक है।
- कविता छंद-बंधन से मुक्त है।
प्रतिपाद्य संबंधी प्रश्न –
प्रश्न 1.
‘एक कम’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘एक कम’ कविता के माध्यम से कवि ने स्वांतत्र्योत्तर भारतीय समाज में प्रचलित हो रही जीवन-शैली को रेखांकित किया है। आजादी हासिल करने के बाद सब कुछ वैसा नहीं रहा जैसा स्वतंत्रता सेनानियों ने सोचा था। इस स्थिति से आस्थावान, ईमानदारी और संवेदनशील जनता का मोहभंग हुआ है। अब सर्वत्र स्वार्थपरता का वातावरण बनता जा रहा है। इस माहौल में कवि स्वयं को असमर्थ पाते हुए भी ईमानदारी के प्रति सहानुभूति रखता है। वह उनके जीवन-संघर्ष में बाधक नहीं बनना चाहता। इस प्रकार वह एक व्यवधान तो कम कर ही सकता है।
प्रश्न 2.
‘सत्य’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर :
इस कविता में कवि ने जीवन में सत्य की महत्ता को स्पष्ट करना चाहा है। कवि और हम जिस समय और समाज में रह रहे हैं, उसमें सत्य की पहचान और उसकी पकड़ मुशिकल होती जा रही है। सत्य कभी दिखाई देता है तो कभी ओझल हो जाता है। आज सत्य का कोई स्थिर रूप, आकार या पहचान नहीं है जो उसे स्थायी बना सके। सत्य के प्रति संशय का विस्तार होने के बावजूद वह हमारी आत्मा की आंतरिक शक्ति है। जो एक व्यक्ति के लिए सत्य है, वही शायद दूसरे के लिए सत्य नहीं है। बदलते हालात और मानवीय संबंधों में हो रहे निरंतर परिवर्तनों से सत्य की पहचान और पकड़ भुशिकल होती जा रही है।
प्रश्न 3.
आशय स्पष्ट कीजिए :
कभी विखता है सत्य
और कभी ओझल हो जाता है।
उत्तर :
इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए कवि कहता है कि सत्य का कोई स्थिर रूप नहीं है। वह कभी हमें दिखाई देता है और कभी आँखों के आगे से ओझल हो जाता है। हम उससे यह कहते ही रह जाते हैं कि रुको, यह हम हैं अर्थात् सत्य को कोई एक स्थिर रूप, आकार या पहचान नहीं है। जब तक हम उसे अनुभूति कर पाते हैं तब तक वह लुप्त हो चुका होता है और हम उसे रुकने के लिए पुकारते ही रक जाते हैं।
प्रश्न 4.
सत्य को पुकारने से कवि का क्या तात्पर्य है? पुकारने पर सत्य दूर क्यों चला जाता है ? ‘सत्य’ कविता के आधार पर बताइए।
उत्तरः
सत्य को पुकारने से कवि का तात्पर्य है-अपने अंदर सत्य को धारण करने के लिए उसकी तलाश करना। कवि का ऐसा मानना है कि जब हम सत्य को पुकारते हैं, तब वह हमसे दूर हटता चला जाता है। इसका आशय यह है कि दूँढने पर सत्य हमारी पकड़ से बाहर हो जाता है। सत्य के दूर चले जाने का कारण यह है कि वह जानना चाहता है कि हम उसके पीछे कितनी दूर तक भटक सकते हैं अर्थात् सत्य हमारे संकल्प की दृढ़ता की परीक्षा लेता है।
प्रश्न 5.
‘सत्य’ कविता में मिथकों/पौराणिक संदर्भों का प्रयोग कवि ने क्यों किया है? कविता का संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘सत्य’ कविता में कवि ने मिथकों और पौराणिक संद्भों का प्रयोग किया है। इसमें विदुर और युधिष्ठिर का प्रयोग है। विदुर ‘सत्य’ का तथा युधिष्ठिर ‘सत्य के अन्वेषक’ के रूप हैं।
‘सत्य’ कविता में कवि ने महाभारत के पौराणिक संद्भों और पात्रों के द्वारा जीवन में सत्य की महत्ता को स्पष्ट करना चाहा है। अतीत की कथा का आधार लेकर अपनी बात प्रभावशाली ढंग से कही जा सकती है, यह कविता इसका प्रमाण है। युधिष्ठिर, विदुर और खांडवप्रस्थ-इंद्रप्रस्थ के द्वारा सत्य को, सत्य की महत्ता को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य के साथ प्रस्तुत करना ही यहाँ कवि का अभीष्ट है।
कविता का संदेश स्पष्ट है –
जिस समय और समाज में कवि जी रहा है उसमें सत्य की पहचान और उसकी पकड़ कितनी मुश्किल होती जा रही है यह कविता उसका प्रमाण है। सत्य कभी दिखता है और कभी ओझल हो जाता है। आज सत्य का कोई एक स्थिर रूप आकार या पहचान नहीं है जो उसे स्थायी बना सके। सत्य के प्रति संशय का विस्तार होने के बावजूद वह हमारी आत्मा की आंतरिक शक्ति है-यह भी इस कविता का संदेश है। उसका रूप वस्तु, स्थिति और घटनाओं, पात्रों के अनुसार बदलता रहा है। जो एक व्यक्ति के लिए सत्य है वही शायद दूसरे के लिए सत्य नहीं है। बद्लते हालात और मानवीय संबंधों में हो रहे निरंतर परिवर्तनों से सत्य की पहचान और उसकी पकड़ मुश्किल होते जाने के सामाजिक यथार्थ को कवि ने जिस तरह ऐतिहासिक, पौराणिक घटनाक्रम के द्वारा प्रस्तुत करने का प्रयास किया है वह प्रशंसनीय है।
12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers
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