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Class 12 Hindi Antra Chapter 7 Question Answer भरत-राम का प्रेम, तुलसीदास के पद

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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 7 भरत-राम का प्रेम, तुलसीदास के पद

Class 12 Hindi Chapter 7 Question Answer Antra भरत-राम का प्रेम, तुलसीदास के पद

भरत-राम का प्रेम – 

प्रश्न 1.
‘हारेंहु खेल जितावहिं मोही’ भरत के इस कथन का क्या आशय है ?
उत्तर :
भरत के इस कथन का आशय है कि श्रीराम में बचपन से ही बड़प्पन की भावना थी। वे अपने छोटे भाइयों को अत्यधिक स्नेह करते थे। वे कभी भी उनका दिल दुखी नहीं करते थे। खेल खेलते समय भी वे जानबूझ कर इसलिए हार जाते थे ताकि भरत के दिल को चोट न पहुँचे। वे भरत को जान-बूझकर जिता देते थे, जिससे उसका उत्साह बढ़ा रहे। जहाँ राम अपने अनुज के प्रति स्नेह रखते थे वहीं भरत के मन में बड़े भाई राम के प्रति कृतजता का भाव है। वे उस भाव का ही यहाँ प्रकटीकरण कर रहे हैं।

प्रश्न 2.
‘मैं जानड़ं निज नाथ सुभाऊ’ में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है ?
अथवा
तुलसीदास के भरत-राम का प्रेम पद में भरत ने राम के स्वभाव की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर :
इस काव्य-पंक्ति में राम के स्वभाव की निम्नलिखित विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है :

  • राम तो अपराधी व्यक्ति तक पर क्रोध नहीं करते, फिर सामान्य व्यक्ति पर क्रोध करने का प्रश्न ही नहीं उठता।
  • भरत पर उनकी विशेष कृपा रहती थी क्योक वे उनके अनुज थे।
  • राम तो खेलने में भी कभी खुनिस नहीं निकालते थे। वे अपनी अप्रसन्नता प्रकट नहीं करते थे।
  • राम ने बचपन से ही उनका साथ दिया है।
  • वे के कभी भरत का दिल नहीं दुःखा सकते थे। अतः खेल में जीतकर भी हार जाते थे और भरत को जिता देते थे।

प्रश्न 3.
भरत का आत्म परिताप उनके चरित्र के किस उज्ज्वल पक्ष की ओर संकेत करता है ?
उत्तर :
भरत अपनी माता द्वारा की गई भयंकर भूल के लिए स्वयं परिताप करते हैं। वे इस दुखद स्थिति के लिए स्वयं को दोषी ठहराते हैं। वे माता को दोषी और स्वयं को साधु के रूप में नहीं दर्शाना चाहते। वे इस स्थिति को अपने पापों का परिणाम बताते हैं। वह अपने माता के प्रति कटु वचनों के लिए भी पछताते हैं और कहते हैं कि मैंने उनको कटु वचन कहकर व्यर्थ ही जलाया। इस प्रकार भरत का आत्म परिताप दोहरा है। वह अपने स्वामी राम के समक्ष भी अपना परिताप करते हैं और माता कैकेयी के प्रति कहे गए कटु वचनों के लिए भी परिताप करते हैं। वे कहते हैं कि मैं ही सब अनर्थों का मूल हूँ। वे तो इतना दारुण दुःख झेलकर स्वयं के जीवित रह जाने पर भी हैरानी प्रकट करते हैं। भरत का यह आत्म परिताप उनके हुदय की पवित्रता तथा बड़े भाई के प्रति अथाह प्रेम एवं श्रद्धा के उज्ज्वल पक्ष की ओर संकेत करता है।

प्रश्न 4.
राम के प्रति अपने श्रद्धा भाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भरत के मन में अपने बड़े भाई राम के प्रति अगाध श्रद्धा का भाव है। वे उनके समक्ष खड़े होकर पुलकित हो जाते हैं तथा श्रद्धा भाव की अधिकता के कारण उनके नेत्रों में प्रेमाश्रुओं की बाढ़-सी आ जाती है। वे अपने बड़े भाई को श्रद्धावश बार-बार स्वामी कहते हैं। वे प्रभु के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख करके उनके प्रति अपने श्रद्धा भाव की अभिव्यक्ति करते हैं। वे सीताराम को देखकर अच्छे परिणाम की उम्मीद करते हैं। वे वन में श्रीराम की दशा देखकर अत्यंत व्याकुल होते हैं। उनकी यह व्याकुलता राम के प्रति श्रद्धा रखे के कारण ही तो है।

प्रश्न 5.
‘मही सकल अनरथ कर मूला’ पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के द्वारा भरत के विचार-भावों के बारे में यह पता चलता है कि भरत पृथ्वी पर होने वाले सभी अनर्थों के लिए स्वयं को दोषी मानते हैं। उनके मन में प्रायश्चित की भावना है। वे स्वयं को अपराधी की भाँति मानते हैं। इस पंक्ति से यह भी पता चलता है कि उनके मन में किसी के प्रति कलुष भाव शेष नहीं रह गया है। वे तो माता कैकेयी को कहे गए अपने कटु वचनों के लिए भी खेद प्रकट करते हैं। वे सारा दोष अपने ऊपर ले लेते हैं। यह उनके हृदय की विशालता का परिचायक है।

प्रश्न 6.
‘फरै कि कोदव बलि सुसाली। मुकुता प्रसव कि संबुक काली।’-पंक्ति में छिपे भाव और शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव : भरत यह दृष्टांत देकर यह स्पष्ट करना चाहते हैं जिस प्रकार कोदों की बाली में उत्तम धान (चावल) नहीं फल सकता और तालाब की काली घोंघी में मोती नहीं बनता, उसी प्रकार अच्छी बात या वस्तु के लिए वातावरण की पवित्रता आवश्यक है। गलत स्थान पर गलत किस्म की चीज ही उत्पन्न होती है। भरत के इस कथन से उसके चरित्र की उदात्र भावना प्रकट होती है।

शिल्प-सौंदर्य :

  • दृष्टांत अलंकार का सटीक प्रयोग किया गया है।
  • ‘कि कोदव’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • अवधी भाषा प्रयुक्त है।
  • चौपाई छंद है।

पद –

प्रश्न 1.
राम के वन-गमन के बाद उनकी वस्तुओं को देखकर माँ कौशल्या कैसा अनुभव करती हैं ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
राम के वन-गमन के बाद उनकी वस्तुओं को देखकर माँ कौशल्या अत्यंत भावुक हो उठती हैं। वह व्याकुलता का अनुभव करती हैं। राम से संबंधित वस्तुएँ उन्हें पुत्र राम का स्मरण करा देती हैं। वह राम के धनुष-बाण को देखती हैं, राम की जूतियों को देखती हैं और भावविहललता वश उन्हें अपने हृदय और नेत्रों से लगाती हैं। राम के घोड़े भी उन्हें आर्शंकित कर देते हैं कि कहीं वे मर न जाएँ क्योंकि वे दिन-प्रतिदिन दुर्बल होते जा रहे हैं।

प्रश्न 2.
‘रहि चकि चित्रलिखी-सी’ पंक्ति का मर्म
उत्तर :
इस पंक्ति का मर्म यह है कि राम का स्मरण करके माता कौशल्या चित्रवत् मनःस्थिति में आ जाती हैं। वह इधर-उधर हिलती-डुलती तक नहीं। वह चकित-सी रह जाती हैं। जिस प्रकार चित्र में कोई आकृति स्थिर रहती है, वही दशा कौशल्या की हो गई। जो कौशल्या अभी तक राम की वस्तुओं को देखकर और राम के बचपन का स्मरण करके मुग्धावस्था में थी, वही राम के वन-गमन को याद करके स्थिर चित्र-सी हो जाती है।

प्रश्न 3.
गीतावली से संकलित पद ‘राघौ एक बार फिरि आवौ’ में निहित करुणा और संदेश को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘राघौ एक बार फिरि आवौ’ में माता कौशल्या की करुणा और संदेश निहित है। माता कौशल्या इस पंक्ति के माध्यम से राम को पुनः अयोध्या लौटने का आग्रह करती हैं। अबकी बार वह अपने लिए न कहकर घोड़ों के लिए आने को कहती हैं। राम के वियोग में उनके अश्वों का दु:ख उससे देखा नहीं जाता और वे दिन-प्रतिदिन दुर्बल होते जा रहे हैं। अपने स्वामी राम के हाथों का स्पर्श पाकर वे भली प्रकार जी सकेंगे। इस पद में पशुओं के प्रति करुणा भाव दर्शाया गया है। इस पद में राघौ (रघुपति राम) को अयोध्या लौट आने का संदेश दिया गया है। हमारे लिए यह संदेश है कि पशुओं के प्रति भी हमें दया का भाव रखना चाहिए।

प्रश्न 4.
(क) उपमा अलंकार के दो उदाहरण छाँटिए।
उत्तर :
उपमा अलंकार के दो उदाहरण –
1. रहि चकि चित्रलिखी-सी
2. लागति प्रीति सिखी-सी।

(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग कहाँ और क्यों किया गया है ? उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
जब उपमेय में उपमा की संभावना प्रकट की जाती है तब उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग माना जाता है।
‘गीतावली’ से संकलित दूसरे पद में अश्वों की मुरझाई दशा में हिम की मार झेलते कमलों की संभावना प्रकट की गई है’…’मनहुँ कमल हिममारे।’

प्रश्न 5.
पठित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था।
उत्तर :
हमने ‘गीतावली’ के दो पद पढ़े हैं। इन पदों को पढ़कर पता चलता है कि तुलसी का भाषा पर पूरा अधिकार है। उन्होंने जहाँ ‘रामचरितमानस’ में अवधी भाषा का प्रयोग किया है वहीं गीतावली में ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है। तुलसीदास का अवधी और ब्रज-दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। ‘गीतावली’ की रचना उन्होंने पद-शैली में की है।
गीतावली के पदों की भाषा में ब्रजभाषा का माधुर्य उभर कर आया है। उन्होंने इन पदों की भाषा में अलंकारों का सटीक प्रयोग किया है।
उदाहरणार्थ : उपमा अलंकार – चित्रलिखी-सी, सिखी-सी
अनुप्रास अलंकार – बंधु बोलि, चकि चित्रलिखी
उत्रेक्षा अलंकार – “मनहु कमल हिम मारे
तुलसी की भाषा में भावों की गहराई है।

प्रश्न 6.
पाठ के किन्हीं चार स्थानों पर अनुप्रास के स्वाभाविक एवं सहज प्रयोग हुए हैं, उन्हें छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
अनुप्रास अलंकार के चार प्रयोग स्थल –

  1. नीरज नयन नेह जल बाढ़े। (‘न’ वर्ण की आवृत्ति)
  2. प्रेम प्रपंचु कि” (‘प’ वर्ण की आवृत्ति)
  3. दुसह दुःख दैव सहावइ (‘द’ वर्ण की आवृत्ति)
  4. ज्यों जाइ जगावत” (‘ज़’ वर्ण की आषृत्ति)

योग्यता विस्तार –

1. ‘महानता लाभ-लोभ से मुक्ति तथा समर्पण, त्याग से हासिल होती है’ को केंद्र में रखकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।

महानता हासिल करने के लिए लोभ से मुक्ति पाना आवश्यक है। अपने कार्य के प्रति समर्पण तथा दूसरों के लिए त्याग की भावना भी आवश्यक है। महानता ऐसे ही नहीं मिल जाती। इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। लोभ से छुटकारा पाना तथा दूसरों के लिए त्याग करना ही इसकी कीमत है।

2. भरत के त्याग और समर्पण के अन्य प्रसंगों को भी जानिए।

भरत ने अयोध्या के राजसिंहासन पर भाई राम की चरण-पादुकाएँ रखकर ही राज-काज चलाया। कभी स्वयं को अयोध्या का राजा नहीं माना। उन्होंने अत्यंत साधारण जीवन बिताया। वे राम के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थे। वन से लौटने पर उन्हीं को अयोध्या की सत्ता सौंप दी।

3. आज के संदर्भ में राम और भरत जैसा भातृप्रेम क्या संभव है ? अपनी राय लिखिए।

यद्यपि आज सर्वत्र स्वार्थ का बोल-बाला है फिर भी राम और भरत जैसे भातृप्रेम की संभावना को सिरे से नकारा नहीं जा सकता। कई स्थानों पर भाई-भाइयों में गहरा प्रेम देखा जा सकता है।

Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 7 भरत-राम का प्रेम, तुलसीदास के पद

काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न – 

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित भाव-सौंदर्य और शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) पुलकि समीर सभाँ भए ठाढे।
नीरज नयन नेह जल बाढ़े॥
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इस चौपाई में भरत की मनोदशा का मार्मिक चित्रण हुआ है। मुनि वशिष्ठ के परामर्श पर भरत अपनी बात कहने के लिए जब प्रभु के राम के समक्ष खड़े होते हैं तो उनके शरीर में पुलक का अनुभव होता है। इस पुलक को समीर (वायु) की भॉँति बताया गया है। भरत की भावाकुल मनोदशा का पता उनकी आँखों में उमड़ती अश्रुधारा से भली प्रकार चल जाता है।

शिल्प-सौंदर्य :

  • ‘पुलकि समीर’ में रूपक अलंकार का प्रयोग है।
  • नीरज नयन (कमल के समान नेत्र) में उपमा अलंकार है। (यहाँ वाचक शब्द लुप्त है।)
  • ‘नीरज नयन नेह’ में ‘न’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।.
  • अवधी भाषा प्रयुक्त है।
  • चौपाई छंद है।

(ख) फरै कि कोदव बालि सुसाली।
मुकुता प्रसव कि संबुक काली।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इस चौपाई में कवि ने दो दृष्टांत देकर अपने कथ्य को स्पष्ट किया है-
1. कोदों की बाली में अच्छा धान नहीं फलता।
2. तालाब की काली घोंघी में मोती उत्पन्न नहीं होता। कवि भरत के माध्यम से यह स्पष्ट करना चाहता है कि बड़ी चीज़ें बड़े स्थानों पर ही जन्म लेती हैं। तुच्छ वस्तु बड़ी चीज़ नहीं बना सकती। कवि ने यह बात माता कैकेयी के बुरे व्यवहार को ध्यान में रखकर ही कही है।

शिल्प-सौंदर्य :

  • ‘मुकुता प्रसव’ में शिशु के जन्म की कल्पना की है।
  • ‘कि कोदव’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • दृष्टांत अलंकार का प्रयोग है।
  • भाषा-अवधी, छंद-चौपाई।

(ग) कबहुँ समुझि वन-गमन राम को रहि चकि चित्रलिखी सी।
उत्तर :
उपर्युक्त काव्य-पंक्ति में कवि तुलसी ने माता कौशल्या की मनोदशा का मार्मिक चित्रण किया है। माता को जब याद आता है कि राम तो वन को गया है तब वह चित्र के समान स्थिर हो जाती है। वह चकित होकर देखती रह जाती है।

  • ‘चकि चित्रलिखी’ में ‘च’ वर्ण की आवृत्ति है अतः अनुप्रास अलंकार है।
  • ‘चित्रलिख-सी’ में उपमा अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  • ब्रज भाषा का प्रयोग है।

(घ) जे पय च्याइ पोखि, कर-पंकज वार वार चुचुकारे।
उत्तर :
उपर्युक्त काव्य-पंक्ति में राम के अश्वों की दशा का उल्लेख है। उन अश्वों को पानी पिलाकर कमल जैसे कोमल हाथों से पुचकारा जाता है। इसके बावजूद इनकी दशा बिगड़ती जा रही है। ये राम के हाथों का स्पर्श चाहते हैं।

  • ‘पय प्याइ पोखि’ में ‘प’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
  • ‘कर-पंकज’ में रूपक अलंकार है।
  • ‘वार वार’ में वीप्सा अलंकार है।
  • ब्रज भाषा प्रयुक्त हुई है।

(ङ) तेइ रघुनंदन लखनु सिय अनहित लागे जाहि। तासु तनय तजि दुसह दुख दैउ सहावड काहि॥
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : यहाँ पर भरत की आत्म परिताप स्वयं पर कंटाक्ष के रूप में दर्शाया गया है। भरत स्वयं को अधम मानकर कष्ट सहने के लिए उपयुक्त मानते हैं। देव उस जैसे अधम को दुख देगा ही।

शिल्प-सौंदर्य :

  • ‘तासु तनय तजि’ में ‘त’ वर्ण की आवृत्ति तथा ‘ दुसह दुख दैउ’ में ‘द’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
  • शब्द चयन जटिल किंतु प्रभावोत्पादक है।
  • अवधी भाषा की दुरूहता लक्षित होती है।
  • दोहा, छंद प्रयुक्त है।

(च) भरत सौगुनी सार करत हैं अति प्रिय जानि तिहारे। तदपि दिनहिं दिन होत झाँवरे मनहुँ कमल हिममारे॥
उत्तर :
माता कौशल्या राम के अश्व की दुर्दशा के बहाने अपने मन की व्यथा को व्यंजित करती है। यद्यपि भरत उसकी सौ गुनी देखभाल करते हैं पर आपका यह घोड़ा मुरझाता चला जा रहा है। लगता है मानो कमल पर हिमपात हो गया है।

  • ‘तदपि …. मारे’ में उत्र्रेक्षा अलंकार है ।
  • ‘सौगुनी सार’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • भाषा ब्रज है।

(छ) भरत सौगुनी सार करत हैं अति प्रिय जानि तिहारे। तदपि दिनहिं दिन होत झाँवरे मनहुँ कमल हिममारे।।
उत्तर :
माता कौशल्या राम के अश्व की दुर्दशा के बहाने अपने मन की व्यथा को व्यंजित करती है। यद्यपि भरत उसकी सौ गुनी देखभाल करते हैं पर आपका यह घोड़ा मुरझाता चला जा रहा है। लगता है मानो कमल पर हिमपात हो गया है।

  • ‘तदपि …. मारे’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
  • ‘सौगुनी सार’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • भाषा ब्रज है।

(ज) जननी निरखति बान धनुहियाँ।
बार-बार उर नैननि लावति प्रभुजू की ललित पनहियाँ।
कबहुँ प्रथम ज्यों जाइ जगावति कहि प्रिय वचन सवारे।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : माता कौशल्या राम के बचपन की चीजों को देखकर और स्मरण करके अत्यंत व्याकुल हो जाती हैं। ये चीजें उनकी वेदना को बढ़ाने में उद्दीपन का काम करती हैं। वे श्रीराम के बचपन के छोटे-छोटे धनुषबाण को देखती हैं। श्रीराम की शैशवकालीन जूतियों को देखकर उन्हें बार-बार अपने हृदय और नेत्रों से लगाती हैं। वे यह भूल जाती हैं कि अब उनके पुत्र श्रीराम यह नहीं हैं और वे पहले की तरह प्रिय वचन बोलती हुई राम के शयन कक्ष में जाती हैं और उन्हें जगाते हुए कहती हैं हे पुत्र। उठो। तुलसीदास जी का कहना है कि माता कौशल्या की इस स्थिति का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। उनकी हालत तो उस मोरनी के समान है जो प्रसन्न होकर नाचती रहती है पर जब अंत में वह अपने पैरों की ओर देखती हैं तो रो पड़ती है। यही दशा कौशल्या का है।

शिल्प सौंदर्य :

  • माता कौशल्या की अर्धविक्षिप्तावस्था का मार्मिक चित्रण हुआ है।
  • वात्सल्य रस का प्रभावी चित्रण है।
  • बार-बार में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैं।
  • ब्रज भाषा का प्रयोग है।

(झ) निम्नलिखित दोहे का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए:
तेइ रघुनंदन लखनु सिय अनहित लागे जाहि।
तासु तनय तजि दुसह दुःख दैउ सहावइ काहि।।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य – यहाँ भरत का परिताप व्यंजित हुआ है। इसमें वे कटाक्ष भी करते जान पड़ते हैं। वे स्वयं को दुख का भागी मानते हैं क्योंकि वे उसी माता कैकेयी के पुत्र हैं जिसे रघुनंदन राम, लक्ष्मण और सीता शत्रु मालूम हुए। अतः दैव मुझे ही कठिन दुख सहावेगा।

शिल्प-सौंदर्य –

  • ‘तनय तजि’ तथा’ दुसह दुख’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
  • दोहे की भाषा अवधी है, पर उसमें तत्सम शब्दों (तनय, दुसह) का मणिकांचन संयोग है।
  • शब्द-चयन जटिल पर प्रभावशाली है।
  • भाषा, भाव, अलंकार के गुंफन के कारण यह दोहा शिल्प की दृष्टि से विशिष्ट बन पड़ा है।

अन्य प्रश्न –

प्रश्न 1.
राम के जूतों को देखकर कौशल्या पर क्या प्रतिक्रिया होती है?
उत्तर :
राम वनवास को चले गए। कौशल्या उनकी चीजों को देखकर व्याकुल हो जाती है। वह राम की सुंदर जूतियों को कभी आँखों से छूती है और कभी उसे हृदय से लगा लेती है। जूतों के माध्यम से कौशल्या को राम की निकटता, स्पर्श, महसूस होता है। ये जूते राम की स्मृति के लिए उद्दीपन का कार्य करते हैं।

प्रश्न 2.
भरत और राम के प्रेम को वर्तमान के लिए आप कितना प्रासंगिक मानते हैं?
उत्तर :
भरत और राम के काल को आस्था और विश्वास का काल कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। लोग परस्पर प्रेम-सौहार्द्र बनाए हुए भातृवत रहते थे। दो सहोदर भाइयों में यह भावना और भी घनिष्ठ हुआ करती थी। भरत और राम का परस्पर प्रेम सराहनीय और अनुकरणीय था। वर्तमान युग भौतिकवादी है। लोग धन के लिए हर अच्छे-बुरे कर्म करने को तैयार हैं। ज़मीन-ज़ायदाद के लिए भाई-भाई की हत्या करता है। रिश्ते-नाते अपनी मर्यादा खोते जा रहे हैं। ऐसे समय में भरत और राम का प्रेम और भी प्रासंगिक हो जाता है। यदि सभी मनुष्य ऐसा ही प्रेम करने लगे तो बहुत-सी सामाजिक समस्याएँ समाप्त हो जाएँगी।

प्रश्न 3.
पठित कविता के आधार पर तुलसी की काव्य-भाषा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
हमारी पाठ्यपुस्तक ‘रामचरितमानस’ के अयोध्या कांड का कुछ अंश तथा ‘गीतावली’ के दो पद संकलित हैं। इनके आधार पर तुलसी की काव्य भाषा के बारे में यह कहा जा सकता है कि भाषा पर तुलसी का असाधारण अधिकार है। तुलसीदास ने क्रज एवं अवधी दोनों भाषाओं का अधिकारपूर्ण प्रयोग किया है। ‘रामचरितमानस’ में अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है, तो ‘कवितावली’, ‘गीतावली’, ‘ दोहावली’ और ‘विनयपत्रिका’ में ब्रजभाषा प्रयुक्त हुई है। तुलसी की भाषा सुगठित, भावानुकूल तथा परिमार्जित है। उनकी काव्यगत विशेषताएँ इस प्रकार हैं –

1. अलंकार विधान : तुलसीदास ने काव्य में भावों का उत्कर्ष करने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया है। उन्होंने रूपक, सांगरूपक, रूपकातिशयोक्ति, उपमा, उत्र्रेक्षा, अनुप्रास आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं –

  • उपमा अलंकार : चित्रलिखी-सी, सिखी-सी
  • रूपक अलंकार : कर-पंकज
  • उत्र्रेक्षा अलंकार : मनहुँ कमल हिममारे
  • अनुप्रास अलंकार : बाजि बिलोकि, नीरज नयन, मातु
  • मंदि दृष्टांत : मुकुता ‘काली

2. छंद-विधानः तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ में चौपाई-दोहा छंद शैली को अपनाया है। ‘गीतावली’ में पद है। अन्य काव्यों में सवैया और छप्पय छंद भी अपनाए गए हैं।

3. काव्य-रूप : तुलसीदास ने प्रबंध एवं मुक्तक दोनों काव्य-रूपों में रचना की। ‘रामचरितमानस’ प्रबंध काव्य है तो ‘दोहावली’, ‘गीतावली’ मुक्तक शैली में हैं।

प्रश्न 5.
व्याख्या कीजिए :
मातु मंबि मैं साधु सुचाली। उर अस आनत कोटि कुचाली॥ फरइ कि कोदब बालि सुसाली। मुकुता प्रसब कि संबुक काली।
सपनेहुँ दोसक लेसु न काहू। मोर अभाग उदधि अवगाहू॥ बिनु समुझें निज अघ परिपाकू। जारेउँ जायं जननि कहि काकू॥
व्याख्या : भाव विद्धल होकर भरत कहते हैं कि मुझे आज यह कहना शोभा तो नहीं देता क्योंकि अपनी समझ में कौन साधु और कौन पवित्र है, यह कहा नहीं जा सकता। इसका निर्णय दूसरे लोग ही करते हैं अर्थात् माता नीच है और मैं सदाचारी या साधु हूँ. ऐसी बात हृदय में लाना भी करोड़ों दुराचारों के समान है । मैं स्वप्न में भी किसी को दोष देना नहीं चाहता। क्या कोदों की बाली से उत्तम धान पैदा हो सकता है ? क्या काली घोंघी उत्तम कोटि के मोती उत्पन्न कर सकती है ? अर्थात् नहीं। वास्तव में मेरा दुर्भाग्य ही अथाह समुद्र और प्रबल है। मैंने अपने पूर्व जन्म के पापों का परिणाम समझे बिना ही माता को कटु वचन कहकर उन्हें बहुत जलाया या दुखी किया है।

विशेष :

  1. भरत जी अपनी इस स्थिति के लिए विधाता को दोषी ठहराते हैं।
  2. दृष्टांत अलंकार (मुकुता ……. काली) का सटीक प्रयोग है ।
  3. अनेक स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छटा है-मातु मंदि, समुझि साधु, सुचि, जारहिं जायँ जननि, गुरु गोसाँइ, साहिब सिय आदि।
  4. भाषा : अवधी।
  5. छंद : चौपाई-दोहा।
  6. रस : करुण रस।

प्रश्न 6.
राम के वन-गमन के बाद उनकी माँ की दशा का वर्णन तुलसीदास के पद के आधार पर कीजिए।
उत्तर :
राम के वन-गमन के बाद उनकी वस्तुओं को देखकर माँ कौशल्या अत्यंत भावुक हो उठती हैं। वह व्याकुलता का अनुभव करती हैं। राम से संबंधित वस्तुएँ उन्हें पुत्र राम का स्मरण करा देती हैं। वह राम के धनुष-बाण को देखती हैं, राम की जूतियों को देखती हैं और हृदय तथा नेत्रों से लगाती हैं। माता कौशल्या चित्रवत् मनःस्थिति में आ जाती हैं। वह इधर-उधर हिलती-डुलती तक नहीं। वह चकित-सी रह जाती हैं। जिस प्रकार चित्र में कोई आकृति स्थिर रहती है, वही दशा कौशल्या की हो गई। जो कौशल्या अभी तक राम की वस्तुओं को देखकर और राम के बचपन का स्मरण करके मुग्धावस्था में थी, वही राम के वन-गमन को याद करके स्थिर चित्र-सी हो जाती हैं।

प्रश्न 7.
‘गीतावली’ के पद ‘जननी निरखति बान ध नुहियाँ” के आधार पर राम के वन-गमन के पश्चात् माँ कौशल्या की मनःस्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
माता कौशल्या राम के बचपन की चीजों को देखकर और स्मरण करके अत्यंत व्याकुल हो जाती हैं। ये चीजें उनकी वेदना को बढ़ाने में उद्दीपन का काम करती हैं। वे श्रीराम के बचपन के छोटे-छोटे धनुष बाण को देखती हैं। श्रीराम की शैशवकालीन जूतियों को देखकर उन्हें बार-बार अपने हुदय और नेत्रों से लगाती हैं। वे यह भूल जाती हैं कि अब उनके पुत्र श्रीराम यहाँ नहीं हैं और वे पहले की तरह प्रिय वचन बोलती हुई राम के शयन कक्ष में जाती हैं और उन्हें जगाते हुए कहती हैं-हे पुत्री ! उठो। तुम्हारी माता तुम्हारे मुख पर बलिहारी जाती है। उठो, दरवाजे पर तुम्हारे सभी सखा और अनुज खड़े होकर तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। कभी वे कहती हैं-भैया, महाराज के पास जाओ, तुम्हें बहुत देर हो गई है। अपने भाइयों तथा साथियों को बुला लो, जो रुचिकर लगे वह खा लो। तुम्हारी माँ तुम पर न्यौछावर जाती है। किन्तु जैसे ही उनको स्मरण होता है कि राम यहाँ नहीं हैं, वे तो वन को चले गए हैं, तब वे चित्रवत् होकर रह जाती हैं अर्थात् चित्र के समान स्तब्ध और चकित रह जाती हैं।

प्रश्न 8.
‘गीतावली’ में संकलित पद ‘राधौ ! एक बार फिरि आवौ’ में निहित करुणाजनक संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘राधौ एक बार फिरि आवौ’ में माता कौशल्या की करुणा और संदेश निहित है। माता कौशल्या इस पंक्ति के माध्यम से राम को पुनः अयोध्या लौटने का आग्रह करती हैं। अब की बार वह अपने लिए न कहकर घोड़ों के लिए आने को कहती हैं। राम के वियोग में उनके अश्वों का दु:ख उससे देखा नहीं जाता और वे दिन-प्रतिदिन दुर्वल होते जा रहे हैं। अपने स्वामी राम के हाथों का स्पर्श पाकर वे भली प्रकार जी सकेंगे। इस पद में पशुओं के प्रति करुणा भाव दर्शाया गया है। इस पद में राघौ (रघुपति राम) को अयोध्या लौट आने का संदेश दिया गया है। हमारे लिए यह संदेश है कि पशुओं के प्रति भी हमें दया का भाव रखना चाहिए।

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