NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 9 विद्यापति के पद
Class 12 Hindi Chapter 9 Question Answer Antra विद्यापति के पद
प्रश्न 1.
प्रियतमा के दुःख के क्या कारण हैं ?
उत्तर :
प्रियतमा के दु:ख के कारण निम्नलिखित हैं –
- सावन मास में प्रियतमा का दुःख बढ़ जाता है। यह मास वर्षा ऋतु में आता है और वर्षा ऋतु में विरह की पीड़ा असह्य हो जाती है।
- प्रियतमा के पास उसका प्रियतम नहीं है। यह सावन के महीने में भी अकेली है।
- वर्षा ऋतु में विरह की पीड़ा असहा हो जाती है।
- प्रियतमा का प्रियतम उसके मन को हराकर अपने साथ ले गया है।
- प्रियतमा अपनी प्रियतम की उपेक्षा का शिकार है। अब उसका मन इस प्रियतम की ओर नहीं रह गया है।
प्रश्न 2.
कवि ‘नयन न तिरपित भेल’ के माध्यम से विरहिणी नायिका की किस मनोदशा को व्यक्त करना चाहता है ?
उत्तर :
उपर्युक्त पंक्ति के माध्यम से नायिका के नयनों की अतृप्त दशा का वर्णन किया गया है। कवि कहता है कि नायिका कृष्ण से अति प्रेम करती है। वह जन्मभर प्रिय का रूप निहारती रही. परंतु उसकी आँखें तृप्त नहीं हुई। इस अतुप्ति का कारण उसके प्रिय का मनोहारी एवं सुंदर रूप-सौंदर्य है; जिसे जितनी भी बार देखो उसमें नयापन दिखता है। यह रूप सौददर्य नित प्रतिपल बदलता रहता है। वह मु?ा नायिका है। वह कृष्ण के साथ बिताए हुए पलों को भूल नहीं पाई है।
प्रश्न 3.
नायिका के प्राण तृप्त न हो पाने का कारण अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
नायिका के प्राण तृप्ति का अनुभव नहीं करते। इसका कारण है कि प्रेम और अनुराग क्षण-प्रतिक्षण नवीनता धारण कर लेता है। उसका न तो वर्णन किया जा सकता है और न उससे पूर्ण तृप्ति का अनुभव किया जा सकता है। प्रियतम के रूप और वाणी की चिर नवीनता नायिका के प्राण को अतृप्त बनाए रखती है। नायिका के मन में मिलन की उत्कंठा बनी ही रहती है। उसके हृदय की प्यास अभी भी वैसी ही है जैसी पहले थी।
प्रश्न 4.
‘सेह पिरित अनुराग बखानिअ तिल-तिल नूतन होए’-से लेखक का क्या आशय है ?
उत्तर :
नायिका की एक सखी उससे उसकी प्रेमानुभूति के बारे में जानना चाहती है तो नायिका इस अनुभव का वर्णन करने में स्वयं को असमर्थ पाती है। इस प्रीति (प्रेम) और अनुराग का वर्णन करना इसलिए कठिन है क्योंकि यह क्षण-क्षण नवीन होता जान पड़ता है। नवीन होती चीज में स्थिरता नहीं होती। इस कथन में लेखक का आशय यही है कि प्रेम कोई स्थिर वस्तु या भाव नहीं है, इसमें हर समय बदलाव आता रहता है।
प्रश्न 5.
कोयल और भौरा की कलरव ध्वनि का नायिका पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
कोयल की मीठी कूक और भौंरों की मधुर झंकार को सुनकर नायिका अपने हाथों से अपने कान बंद कर लेती है। इसका कारण है कि ये ध्वनियाँ नायिका को प्रियतम का स्मरण कराती हैं। नायिका प्रिय की वियोगावस्था को झेलती-झेलती दु:खी हो गई है। अब उसे ये ध्वनियाँ सहन नहीं होतीं। ये ध्वनियाँ उद्दीपन का काम करती हैं और नायिका की विरह-व्यथा की ओर बढ़ा देती है।
प्रश्न 6.
कातर दृष्टि से चारों तरफ प्रियतम को ढूँढने की मनोदशा को कवि ने किन शब्दों में व्यक्त किया है ?
उत्तर :
नायिका कातर दृष्टि से चारों तरफ प्रियतम को ढूँढती रहती है। कवि उसकी मनोदशा का वर्णन इन शब्दों में करता हैकातर दिठि करि, चौदिस हेरि-हेरि नयन गरए जल धारा। कवि बताता है नायिका का शरीर विरह दशा में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के समान क्षीण हो गया है। नयनों से अश्रुधारा बहती रहती है अर्थात् हर समय रोती रहती है और इधर-उधर प्रियतम को ढूँढने का प्रयास करती रहती है।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए :
तिरपित, छन, बिदगध, निहारल, पिरित, साओन, अपजस, छिन, तोहारा, कातिक।
उत्तर :
- तिरपित = तृप्त
- निहारल = निहारना
- अपजस = अपयश
- छन = क्षण
- पिरित = प्रीति
- छिन = क्षण, क्षीण
- विदगध = विदाध
- साओन = सावन (श्रावण)
- तोहारा = तुम्हारा
- कातिक = कार्तिक।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) एकसरि भवन पिआ बिनु रे मोहि रहलो न जाए।
सखिख अनकर दु :ख दारुन रे जग के पतिआएा।
(ख) जनम अवधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल।
सेहो मधुर बोल स्रवनहि सूनल सुति पथ परस न गेल।।
(ग) कुसुमति कानन हेरि कमलमुखि मुदि रहए दु नयनि।
कोकिल-कलरव, मधुकर-धुनि सुनि, कर देइ झाँपइ कान।।
उत्तर :
(क) इस काव्यांश का आशय यह है कि नायिका घर में अकेली है। उसका प्रियतम बाहर गया हुआ है। यह नायिका प्रोषितपतिका है। नायिका प्रिय के बिना इस सूने घर में नहीं रह पाती है। वह नायिका अपनी सखी से जानना चाहती है कि भाला ऐसा कौन व्यक्ति है जो दूसरे के दारुण (कठोर) दुःख पर विश्वास कर सके अर्थात् कोई किसी के कठोर दुझख की गंभीरता को नहीं समझता।
(ख) नायिका संयोग काल में भी अतृप्त रहती है। वह जन्म-जन्म से अपने प्रियतम के रूप को निहारती चली आ रही है फिर भी आज तक उसके नेत्र तृप्त नहीं हो सके हैं। वह प्रिय के मधुर वचनों को भी अपने कानों से सुनती चली आ रही है फिर भी उसके बोल पहले से सुने नहीं लगते। रूप एवं वाणी में सर्वथा नवीनता बनी रहती है और यही अतृप्ति के कारण हैं।
(ग) इन पंक्तियों का आशय यह है कि नायिका को संयोग कालीन प्राकृतिक वातावरण अच्छा प्रतीत नहीं होता क्योंकि वह स्वयं वियोगावस्था में है। वियोगावस्था में यही मनःस्थिति होती है। नायिका न तो विकसित अर्थात् खिलते फूलों को देखना चाहती है और न कोयल और भौँर की मधुर ध्वनि को सुनना चाहती है। वह आँख-कान बंद् कर लेती है। इन्हें देखने-सुनने से उसकी विरह-व्यथा और भी बढ़ जाती है।
योग्यता विस्तार –
1. पठित पाठ के आधार पर विद्यापति के काव्य में प्रयुक्त भाषा की पाँच विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
पठित पाठ के आधार पर विद्यापति के काव्य में प्रयुक्त भाषा की पाँच विशेषताएँ अग्रलिखित हैं :
– विद्यापति ने मैथिली भाषा का प्रयोग किया है। मैथिली भाषा के कुछ शब्द-गेल, भेल, अनकर, राखल, मीलल आदि। – विद्यापति की काव्य-भाषा में अलंकारों का सटीक प्रयोग हुआ है। जैसे :
हरि हर (यमक)
धनि धरु, मोर मन (अनुप्रास)
लाख ‘गेल ( विरोधाभास)
कत “एक (अतिशयोक्ति)
- चित्रात्मकता-कोकिल कलरव, मधुर धुनि सुन
- तद्भव शब्दों का प्रयोग – दिठि, चौदसि
- पुनरुक्त शब्द : गुनि-गुनि, सुन-सुन।
2. विद्यापति के गीतों का ऑडियो रिकॉर्ड बाजार में उपलब्ध है, उसको सुनिए।
विद्यार्थी बाजार से खरीदकर सुनें।
3. विद्यापति और जायसी प्रेम के कवि हैं। दोनों की तुलना कीजिए।
जायसी और विद्यापति दोनों प्रेम के कवि हैं। जायसी के प्रेम में अलौकिकता का समावेश है। उन्होंने लोकाकथा के माध्यम से अलौकिक प्रेम की व्यंजना की है।
विद्यापति की व्यंजना शुद्ध रूप में लौंकिक है। यह शृंगार-वर्णन है। इसमें संयोग और वियोग दोनों दशाओं का वर्णन है।
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काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न –
प्रश्न : निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
(क) मोर मन हरि हर लए गेल रे, अपनो मन गेल
उत्तर :
भाव सौंदर्य – इस काव्य-पंक्ति में विरहिणी नायिका की मनोदशा का मार्मिक अंकन किया गया है। नायिका बड़ी विचित्र स्थिति में फँस जाती है। उसके मन को तो प्रिय (कृष्ण) हर कर ले गए और उनका मन भी उनके पास है अर्थात् नायिका पूरी तरह खाली है। वह नायक (कृष्ण) की उपेक्षा का भी शिकार बन रही है।
शिल्प सौंदर्य :
- ‘मोर मन’ तथा ‘हरि हर’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
- ‘हरि हर’ में यमक अलंकार भी है। (हरि = कृष्ण, हर = हर लेना)
- मैथिली भाषा का प्रयोग है।
- वियोग शृंगार रस का चित्रण है।
(ख) जनम अवधि हम रूप निहारल, नयन न तिरपित भेल।
सेह्रो मधुर बोल स्रवनहि सूनल पथ परस न गेल॥
उत्तर :
भाव सौंदर्य – इन काव्य-पंक्तियों में नायिका की दशा की विचित्रता का उल्लेख है। वह लंबे से प्रियतम को निहारती चली आ रही है पर उसके नयन तृप्त नहीं होते। वह कानों में प्रियतम की मधुर वाणी निरंतर सुनती आ रही है फिर भी हर बार उसकी वाणी अनसुनी लगती है अर्थात् वस्तु है फिर भी अतुप्ति है। यह सब प्रेम की नवीनता का परिचायक है। इसी कारण क्षण-क्षण परिवर्तन आता रहता है।
शिल्प सौंदर्य :
- वस्तु के उपस्थित होने पर भी काम न बनने के कारण यहाँ विशेषोक्ति अलंकार का सुंदर प्रयोग है।
- निहारल नयन, स्रवनहि सूनल, पथ परस में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
- संयोगकाल में भी अतृप्ति की अनुभूति है।
- भाषा : मैथिली।
(ग) तोहर बिरह दिन छन छन तनु छिन चौदसि चाँद समान
उत्तर :
भाव्य सौंदर्य – इस काव्यांश में विरहिणी नायिका की मनोद्शा का मार्मिक अंकन किया गया है। वियोगिनी नायिका प्रियतम के विरह में प्रतिदिन प्रतिक्षण क्षीण होती चली जा रही है। अब तो उसकी दशा कृष्ण पक्ष की चौदहवीं के चाँद के समान हो गई है अर्थात् वह बहुत दुर्बल हो गई है।
शिल्प सौंदर्य –
- वियोग की चरमावस्था का अंकन है।
- ‘छन-छन’ में वीप्सा अलंकार है।
- ‘चौदसि चाँद समान’ में उपमा अलंकार है।
- ‘चौदसि चाँद’ में अनुप्रास अलंकार है।
- मैथिली भाषा का प्रयोग है।
(घ) कुसुमित कानन हेरि कमलमुखि, मूदि रहए दु नयान।
कोकिल-कलरव, मधुकर-धुनि सुनि, कर देइ झाँपइ कान।।
उत्तर :
भाव सौंदर्य : इन पंक्तियों में दूतिका अपनी स्वामिनी की विरह-दशा का वर्णन कृष्ण के सम्मुख करती है। वियोगिनी प्रफुल्लित वन के सौंदर्य को निहार नही पाती क्योंकि इससे उसे कष्ट पहुँचता है। वियोगावस्था में सुखकारी वस्तुएँ दुख को बढ़ा देती है। नायिका दिन-प्रतिदिन क्षीण होती जा रही है।
शिल्प-सौंदर्य :
- प्रकृति का उद्दीपन रूप चित्रित हुआ है।
- कुसुमित कानन, कोकिल कलख में अनुप्रास अलंकार है।
- ‘कमलमुखि’ में रूपक अलंकार है।
- अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग है।
- मैथिली प्रयुक्त हुई है।
(ङ) धरनी धरि धनि कत बेरि बइसइ
पुनि तहि उठइ न पारा
कातर दिठिकरि चौदिस हेरि-हेरि
नयन गरए जलधारा।
उत्तर :
इस काव्यांश में नायिका (राधा) की वियोगावस्था का मार्मिक अंकन किया गया है। राधा सुंदरी अत्यंत दुर्बल हो गई है। उसकी दुर्बलता का यह हाल है कि पृथ्वी को पकड़कर बड़ी कठिनाई से बैठ तो जाती है, पर पुन: चेष्टा करने पर भी उठ नहीं पाती। वह दैन्यपूर्ण कातर दृष्टि से तुम्हें चारों ओर खोजती है तथा उसके नेत्रों से लगातार आँसुओं की धारा बहती रहती है। हे कृष्ण! तुम्हारे विरह में राधा का शरीर कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के समान प्रतिदिन, प्रतिक्षण क्षीण होता चला जा रहा है।
शिल्य सौंदर्य :
- अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
- ‘हेरि-हेरि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- प्रोषित पतिका नायिका का चित्रण है।
- भाषा : ब्रज भाषा।
अन्य प्रश्न –
प्रश्न 1.
विद्यापति के पहले पद की नायिका किस प्रकार की नायिका है ? वह क्यों दु:खी है ? कवि उसे क्या आशा दिलाता है ?
उत्तर :
विद्यापति के पहले पद की नायिका प्रोषितपतिका नायिका है। इस प्रकार की नायिका का प्रियतम बाहर रहता है। नायिका वियोग की पीड़ा झेलने को विवश होती है। नायिका एकाकी जीवन बिताने में असमर्थ है। उसका मन भी उसके पास नहीं है। कवि उसे यह आशा दिलाता है कि उसका प्रियतम कार्तिक मास में लौट आएगा।
प्रश्न 2.
प्रेम के अनुभव को बताना कठिन क्यों है ?
उत्तर :
नायिका के लिए प्रेम के अनुभव को बताना अत्यंत कठिन है। प्रेम का स्वरूप प्रतिक्षण बदलता रहता है। नवीनता के कारण मन में उत्सुकता बनी रहती है। प्रेम कोई स्थिर वस्तु तो है नहीं इसमें आने वाले क्षण-क्षण परिवर्तन के कारण प्रेम में अतृप्ति बनी रहती है। अतः प्रेम के अनुभच का वर्णन कठिन है।
प्रश्न 3.
पठित पदों के आधार पर विद्यापति की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
महाकवि विद्यापति के इन तीनों पदों की भाषा मैथिली है। उनका भाषा पर पूर्ण नियंत्रण है। उन्होंने संस्कृत के क्लिष्ट शब्दों के स्थान पर देशी शब्दों का अधिक प्रयोग किया है। उन्होंने सर्वत्र भाषा की कोमलता पर ध्यान रखा है। उनके पदों की भाषा श्रुतिकटुत्व के दोष से मुक्त है। विद्यापति शब्दों के पारखी प्रतीत होते हैं।
विद्यापति की भाषा मैधिली है। उन्होंने अपनी काव्य-भाषा में अलंकारों का सटीक प्रयोग किया है। यथा :
- ‘चौदसि चाँद समाना’ (उपमा-अनुप्रास)
- ‘गुनि-गुनि, सुन-सुन’ (वीप्सा अलंकार)
- ‘कमल मुखि’ (उपमा अलंकार)
विद्यापति ने विशेषोक्ति, अतिशयोक्ति, रूपक आदि अलंकारों का भी प्रयोग किया है।
प्रश्न 4.
तीसरे पद की नायिका का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
तीसरे पद की नायिका भी प्रोषितपतिका है। उसका प्रियतम भी अन्यत्र जा बसा है। उसके वियोग में नायिका को कुछ भी अच्छा नहीं लगता। वह सुखकारक वस्तुओं को न तो देखती
- ‘चौदसि-चाँद’ में अनुप्रास अलंकार है।
- मैथिली भाषा का प्रयोग है।
- वियोग शृंगार रस का परिपाक हुआ है।
अन्य प्रश्न –
प्रश्न 1.
विद्यापति के पहले पद की नायिका किस प्रकार की नायिका है ? वह क्यों दु:खी है ? कवि उसे क्या आशा दिलाता है ?
उत्तर :
विद्यापति के पहले पद की नायिका प्रोपितपतिका नायिका है। इस प्रकार की नायिका का प्रियतम बाहर रहता है। नायिका वियोग की पीड़ा झेलने को विवश होती है। नायिका एकाकी जीवन बिताने में असमर्थ है। उसका मन भी उसके पास नहीं है। कवि उसे यह आशा दिलाता है कि उसका प्रियतम कार्तिक मास में लौट आएगा।
प्रश्न 2.
प्रेम के अनुभव को बताना कठिन क्यों है ?
उत्तर :
नायिका के लिए प्रेम के अनुभव को बताना अत्यंत कठिन है। प्रेम का स्वरूप प्रतिक्षण बदलता रहता है। नवीनता के कारण मन में उत्सुकता बनी रहती है। प्रेम कोई स्थिर वस्तु तो है नहीं इसमें आने वाले क्षण-क्षण परिवर्तन के कारण प्रेम में अतृप्ति बनी रहती है। अतः प्रेम के अनुभव का वर्णन कठिन है।
प्रश्न 3.
पठित पदों के आधार पर विद्यापति की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
महाकवि विद्यापति के इन तीनों पदों की भाषा मैथिली है। उनका भाषा पर पूर्ण नियंत्रण है। उन्होंने संस्कृत के क्लिष्ट शब्दों के स्थान पर देशी शब्दों का अधिक प्रयोग किया है। उन्होंने सर्वत्र भाषा की कोमलता पर ध्यान रखा है। उनके पदों की भाषा श्रुतिकटुत्व के दोष से मुक्त है। विद्यापति शब्दों के पारखी प्रतीत होते हैं।
विद्यापति की भाषा मैथिली है। उन्होंने अपनी काव्य-भाषा में अलंकारों का सटीक प्रयोग किया है। यथा :
- ‘चौदसि चाँद समाना’ (उपमा-अनुप्रास)
- ‘गुनि-गुनि, सुन-सुन’ (वीप्सा अलंकार)
- ‘कमल मुखि’ (उपमा अलंकार)
विद्यापति ने विशेषोक्ति, अतिशयोक्ति, रूपक आदि अलंकारों का भी प्रयोग किया है।
प्रश्न 4.
तीसरे पद की नायिका का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
तीसरे पद की नायिका भी प्रोषितपतिका है। उसका प्रियतम भी अन्यत्र जा बसा है। उसके वियोग में नायिका को कुछ भी अच्छा नहीं लगता। वह सुखकारक वस्तुओं को न तो देखती है और न सुनती है। वह प्रिय वियोग में इतनी क्षीण हो गई है कि बड़ी कठिनाई से धरती को पकड़कर बैठ पाती है और उद्न नहीं पाती। उसके नेत्रों से अविरल अश्रुधारा बहती रहती है। वह तो कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के चाँद के समान क्षीण हो गई है। उसकी दशा देखी नहीं जाती।
प्रश्न 5.
“जनम अवधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल” काव्य-पंक्ति में विद्यापति ने विरहिणी नायिका की किस मनोदशा को व्यक्त किया है?
उत्तर :
‘जनम अवधधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल ‘ के माध्यम से कवि नायिका की इस मनोदशा को व्यक्त करना चाहता है कि सच्चे प्रेम में कभी तृप्ति की अनुभूति नहीं होती। जन्म-जन्मांतर तक साथ रहने के बावजूद तृप्ति न होना ही प्रेम की प्रवृत्ति बने रहने का सूचक है। नायिका लंबे काल से अपने प्रियतम के निकट है फिर भी उसे अभी तक पूर्ण तृप्ति का अनुभव नहीं हुआ। इसका कारण है रूप क्षण-क्षण परिवर्तित होता है। उसमें स्थिरता नहीं होती। नायिका तृप्ति का वर्णन करने में भी स्वयं को असमर्थ पाती है। प्रेम में कभी भी पूर्ण तृप्ति संभव नहीं है।
प्रश्न 6.
आशय स्पष्ट कीजिए।
“कोकिल-कलरव, मधुकर धुनि सुनि,
कर देड झाँपइ कान॥”-
उत्तर :
इन पंक्तियों का आशय यह है-कोयल की मीठी कूक और भौंरों की मधुर झंकार को सुनकर नायिका अपने हाथों सें अपने कान बंद कर लेती है। इसका कारण है कि ये ध्वनियाँ नायिका को प्रियतम का स्मरण कराती हैं। नायिका प्रिय की वियोगावस्था को झेलती-झेलती दु:खी हो गई है। अब उसे ये ध्वनियाँ सहन नहीं होतीं।
प्रश्न 7.
“कुसुमित कानन हेरि, कमलमुखि मुंदि रहए दु नयनि” पद में चित्रित वियोगिनी नायिका की मनोदशा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
विकसित प्रफुल्लित वन को देखकर वह कमल मुखी नायिका अपने दोनों नेत्रों को मूँद लेती है। कोयल की मीठी कूक और भौंरों की मधुर झंकार को सुनकर वह (राधा) अपने हाथों से अपने कान बंद कर लेती है। हे कृष्ग ! जरा मेरी बात सुनो! तुम्हारे गुणों एवं प्रेम का स्मरण करके राधा सुंदरी अत्यंत दुर्बल हो गई है। उसकी दुर्बलता का यह हाल है कि पृथ्वी को पकड़कर बड़ी कठिनाई से बैठ तो जाती है, पर पुन: चेष्टा करने पर भी उठ नहीं पाती। वह दैन्यपूर्ण कातर दृष्टि से तुम्हें चारों ओर खोजती है तथा उसके नेत्रों से लगातार आँसुओं की धारा बहती रहती है। हे कृष्ण ! तुम्हारे विरह में राधा का शरीर कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के समान प्रतिदिन, प्रति क्षण क्षीण होता चला जा रहा है।
12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers
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