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Class 12 Hindi Antral Chapter 2 Question Answer आरोहण

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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antral Chapter 2 आरोहण

Class 12 Hindi Chapter 2 Question Answer Antral आरोहण

प्रश्न 1.
यूँ तो प्रायः लोग घर छोड़कर कहीं न कहीं जाते हैं, परदेश जाते हैं किंतु घर लौटते समय रूपसिंह को एक अजीब किस्म की लाज, अपनत्व और झिझक क्यों, घेरने लगी ?
उत्तर :
रूपसिंह सामान्य परिस्थितियों में घर छोड़कर परदेश नहीं गया था। वह घर से भागकर गया था। जब उसके बड़े भाई भूप दादा ने उसे घकड़कर रोकना चाहा, तब उसने उन्हें धक्का देकर गिरा दिया था। इस प्रकार वह घर से नाराज होकर भागा था। इसके अतिरिक्त उसे लज्जा इसलिए भी आ रही थी क्योंकि उसने ग्यारह वर्ष तक घर की ओर रुख नहीं किया था। यदि वह इस काल में घर और घर वालों के साथ सम्पर्क बनाए रखता तो उसे झिझक नहीं होत़ी। उसे तो अपने माता-पिता के जिंदा या मरने के बारे में भी पता नहीं था। अपनत्व का भाव इसलिए था क्योंकि यह वही गाँव था जहाँ वह पैदा हुआ था तथा 9-10 साल तक खेला-कूदा था। यहीं उसकी भेंट शैला से हुई थी। यहाँ के साथ उसके बचपन की स्मृतियाँ जुड़ी हुई थीं। वह लंबे अंतराल के बाद आने के कारण झिझक अवश्य रहा था। शेखर के सामने इसलिए लजा रहा था कि इतने सालों के बाद भी इस क्षेत्र में सड़क तक नहीं बन सकी थी।

प्रश्न 2.
पत्षर की जाति से लेखक का क्या आशय है? उसके विभिन्न प्रकारों के बारे में लिखिए।
उत्तर :
पत्थर की जाति से लेखक का यह आशय है कि पत्थर किस प्रकार का है? पत्थर कई किस्म के होते हैं -इग्नियस है, ग्रेनाइट है (कड़ा पत्थर), मेटामारफिक (रूप बदलने वाला), सैंड स्टोन (बालू रेत वाला) है या सिलिका। पत्थरों के रंग-रूप, मजबूती आदि के आधार पर उसकी जाति का पता चलता है।

प्रश्न 3.
महीप अपने विषय में बात पूछे जाने पर उसे टाल क्यों देता था?
उत्तर :
महीप रूपसिंह का ही भतीजा था। वह उसके बड़े भाई भूपसिंह का बेटा था। उसकी माँ शैला थी, जिसने नदी में छलाँग लगाकर आत्महत्या कर ली थी। वह इसके लिए अपने पिता भूपसिंह को जिम्मेदार मानता था और उनसे अलग नीचे रहता था। महीप शेखर और रूपसिंह की बातों से कुछ-कुछ जान गया था कि ये व्यक्ति कौन हैं? वह अपने परिचय को छिपाकर रखना चाहता था। वह अपने पिता के बारे में कुछ भी कहना ठीक नहीं समझता था, अत: जब भी उससे उसके विषय में पूछा जाता, वह उसे टाल देता था। वह रूपसिंह से अपनी माँ शैला का नाम भी सुन चुका था।

प्रश्न 4.
बूढ़े तिरलोक सिंह को पहाड़ पर चढ़ना जैसी नौकरी की बात सुनकर अजीब क्यों लगा?
उत्तर :
जब माही गाँव पहुँचकर रूपसिंह का सामना बूढ़े तिरलोक सिंह से हुआ तो उसने उनके पैर छुए और अपना ग्यारह साल पुराना परिचय दिया। तिरलोक सिंह ने जब यह जानना चाहा कि वह इतने सालों से कहाँ था, तब रूपसिंह बताता है कि वह पर्वतारोहण संस्थान में था। तिरलोक सिंह ने यह नाम पहली बार सुना था अतः उसके बारे में पूछा। रूपसिंह ने बताया कि वहाँ पहाड़ पर चढ़ना सिखाया जाता है। रूपसिंह के लिए यह काम कोई छोटा-मोटा नहीं है। सरकार उसे इस काम के लिए चार हजार रुपए महीना तनख्वाह देती है। तिरलोक सिंह को यह बात हजम नहीं होती। पहाड़ पर चढ़ना तो उसके लिए मामूली काम था। इसमें नौकरी और तनख्वाह की भला क्या जरूरत है। उसे यह सरकार की मूर्खता ही प्रतीत हुई। केवल पहाड़ पर चढ़ने के लिए चार हजार रुपए देना, भला कहाँ की अक्लमंदी है?

प्रश्न 5.
रूपसिंह पहाड़ पर चढ़ना सिखाने के बावजूद भूपसिंह के सामने बौना क्यों पड़ गया था?
उत्तर :
भूपसिंह अपने छोटे भाई रूपसिंह और शेखर को लेकर अपने घर की ओर चल पड़ा था। भूपसिंह हिमांग की ऊँचाई पर रहता था। वहाँ जाने की चढ़ाई शुरू हो गई। यह खड़ी चढ़ाई थी। पहले तो वे पेड़ और पत्थरों के सहारे चढ़ते रहे, फिर वे रुक गये। वे आगे चढ़ नहीं पा रहे थे। भूपसिंह ने व्यंग्य किया-‘ बस इत्ता भर पहाड़ीपन बचा है?’ यद्यपि रूपसिंह पहाड़ पर चढ़ना सिखाता था, पर यहाँ आकर वह हार गया था। अब भूपसिंह ने ही हिम्मत करके उन्हें ऊपर चढ़ाने का उपक्रम किया। उसने गले का मफलर अपनी कमर में बाँधा और उसके दोनों छोरों को रूपसिंह को दिखाते हुए पकड़ लेने को कहा।

रूपसिंह उसके पीछे-पीछे चला, बिना किसी आधुनिक उपकरण के। उन्होंने शरीर का संतुलन बना रखा था। भूपसिंह बीच-बीच में हिदायत भी देता जा रहा था। वह अपने शरीर की ताकत का सही उपयोग कर रहा था। वह रूपसिंह को भी खींचे लिए जा रहा था। इसमें एक घंटा लगा। फिर दूसरे चक्कर में वह इसी प्रकार शेखर को ऊपर चढ़ाकर ले गया। इस प्रकार भूपसिंह के सामने रूपसिंह बौना पड़ गया था। वह एक प्रशिक्षक होकर भी जिस काम को नहीं कर पाया था, उसे भूपसिंह ने सहज रूप से कर दिखाया था।

प्रश्न 6.
शैला और भूप ने मिलकर किस तरह पहाड़ पर अपनी मेहनत से नई जिंदगी की कहानी लिखी?
उत्तर :
जब रूपसिंह ने शैला भाभी के बारे में पूछा तब भूपसिंह ने उसे बताया-यहाँ खेती का काम बढ़ गया था। वह शैला को ले आया था। उसके आने से खेती और फैल गई। खेतों को ढलवाँ बनाया गया ताकि वहाँ बर्फ जमी न रहे। मगर एक समस्या उठ खड़ी हुई-खेती के लिए पानी कहाँ से आए? एक वे दोनों (भूप और शैला) पानी की खोज में हिमांग के ऊँचे हिस्से पर चढ़ गए। उन्होंने नहँँ १७़ चरना देखा। वह सूपिन नदी में गिर रहा था। यदि उसे संड़ :ःधा ज़ता तो पानी की समस्या हल हो जाती, पर बीच में पथक. जसेे काटना था। भूप और शैला ने इस काम के लिए क्या महोना चुना। उन दिनों रात को बर्फ जमने लगती थी और दिन में थोड़ी-थोड़ी पिघलती थी अर्थात् इतनी भी अधिक नहीं कि धार तेज हो जाए और इतनी भी नहीं कि बर्फ जमकर सख हो जाए। बड़ी मेहनत से वे दोनों झरने का रुख मोड़कर उसे लाने में सफल हो गए। इस प्रकार उन दोनों ने अपनी मेहनत से नई जिंदगी की कहानी लिखी।

प्रश्न 7.
सैलानी (शेखर और रूपसिंह) घोड़े पर चलते हुए उस लड़के के रोजगार के बारे में सोच रहे थे जिसने उनको घोड़े पर सवार कर रखा था और स्वयं पैदल चल रहा था। क्या आप भी बाल मजदूरों के बारे में सोचते हैं?
उत्तर :
सैलानी अर्थात् शेखर और रूपसिंह घोड़ों पर सवार थे। उनके साथ महीप नाम का लड़का पैदल चल रहा था। उन्हें नदी से बचते हुए पहाड़ से सटे बेहद संकरे रास्ते पर चलना पड़ रहा था। शेखर उस लड़के के रोजगार के बारे में सोच रहा था। इतनी कच्ची उम्र और उस पर यह घोड़े वाला धंधा और ये खतरनाक रास्ते। कितनी खतरे भरी जिंदगी है इन लोगों की। उन्होंने सोचा कि वे जवान होकर भी घोड़े पर सवार हैं जबकि यह बालक हमारे साथ पंद्रह किलोमीटर पैदल चलकर जाएगा तथा लौटकर भी आएगा। रूपसिंह उसे बताता है कि पेट भरने की खातिर यह सब करना पड़ता है। शेखर तो एक बार उस लड़के से कहता भी है कि वह कुछ देर के लिए घोड़े पर बैठ जाए और वह पैदल चल लेगा, पर बालक महीप माना नहीं। हम भी बाल मजदूरों के बारे में सोचते हैं। इन बालकों को पढ़ाई और खेल के स्थान पर मजदूरी करनी पड़ती है। उनका बचपन छीना जा रहा है। इन बाल मजदूरों के सामने अन्य कोई विकल्प है भी नहीं। उनकी समस्या को कोई समाधान होना ही चाहिए।

प्रश्न 8.
पहाड़ों की चढ़ाई में भूप दादा का कोई जवाब नहीं। उनके चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
अथवा
‘आरोहण’ कहानी के आधार पर ‘पहाड़ की चढ़ाई में भूप दादा का कोई जवाब नहीं। इस कथन के संदर्भ में भूपसिंह के व्यक्तित्व पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
हमें भूपसिंह के जीवन से निम्नलिखित जीवन-मूल्य प्राप्त होते हैं-
आत्मविश्वासी – भूपदादा में गजब का आत्मविश्वास है, उन्होंने आत्मविश्वास के बलबूते पर अपनी उजड़ी गृहस्थी को फिर से जमा दिया। खेतों में झरने का पानी लाकर सिंचाई का प्रबंध कर दिया, रूप और शेखर को ऊपर चढ़ाकर ले आए।

धैर्यशाली : भूपदादा धैर्यशाली व्यक्ति हैं। वे विपत्तियों से घबराने वाले नहीं हैं। उन्होंने अनेक विपत्तियों का धैर्यपूर्वक सामना किया है। विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने धैर्य नहीं खोया।

आत्मसम्मानी : भूपदादा के व्यक्तित्व में आत्मसम्मान कूट-कूट कर भरा हुआ है। जब रूप उन पर तरस खाकर अपने साथ चलने को कहता है तब वे मना करते हुए कहते हैं- “अब माफ करो भुइला। मेरी खुद्दारी को बखस दो। अब तो जिंदा रहणे तकन ई बल्द उतर सकदिन न हम।”

स्नेहशील : भूपदादा के मन में अपने छोटे भाई रूप के प्रति स्नेह का भाव है। जब वह उसे धक्का दे देता है तब भी वह उस पर गुस्सा नहीं होते अपितु उसकी खरोंच पर पत्ते का रस लगाते हैं। जब वह ग्यारह वर्ष बाद लौटता है तब भी वह बिना किसी शिकायत के उसे प्रेमपूर्वक घर लिवा लाते हैं।

परिश्रमी : भूपदादा कठोर परिश्रम का जीता-जागता उदाहरण हैं। उन्होंने रूपसिंह के भागने के बाद आई प्राकृतिक आपदाओं से टक्कर लेने में परिश्रम के बलबूते पर ही सफलता पाई। इस जीवन-मूल्य को हम सभी को अपनाना चाहिए। परिश्रम से सभी समस्याओं का हल निकल आता है।

प्रश्न 9.
इस कहानी को पढ़कर आपके मन में पहाड़ों पर स्त्री की स्थिति की क्या छवि बनती है ? उस पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
अथवा
‘आरोहण’ कहानी के आधार पर नारी-जीवन के संघर्ष पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
इस कहानी को पढ़कर हमारे मन में पहाड़ों पर स्त्री की स्थिति की यह छवि बनती है :
– पहाड़ों पर रहनेवाली स्त्री सीधे-सरल स्वभाव की होती है। वह प्रेम करने के मामले में भी कोई छल-कपट नहीं करती।
– वह परिश्रमी होती है। इस कहानी में भी शैला ने भूप दादा के साथ मिलकर परिश्रम की एक कहानी लिखी। उसने भूप दादा के साथ मिलकर झरने का रुख ही बदलकर रख दिया। पहाड़ों का जीवन वैसे ही बड़ा कठोर होता है। वहाँ के इस जीवन में स्त्री की भूमिका भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है।
– वहाँ की स्त्री बड़ी स्वाभिमानी होती है। वह सब कुछ सहन कर लेती है, पर अपने स्वाभिमान पर चोट सहन नहीं कर सकती।

Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antral Chapter 2 आरोहण

प्रश्न 1.
‘पहाड़ों में जीवन अत्यंत कठिन होता है।’ पाठ के आधार पर उक्त विषय पर एक निबंध लिखिए।
अथवा
‘आरोहण कहानी के आधार पर ‘पहाड़ों में जीवन-संघर्ष’ उत्तर-पहाड़ों का जीवन अत्यंत कठिन होता है-पहाड़ सभी को आकर्षित करते हैं, पर वहाँ जाकर पता चलता है कि पहाड़ों का जीवन-अत्यंत कठिन होता है। पहाड़ों पर जन सुविधाओं का अभी भी बहुत अभाव है। दो-चार हिल स्टेशनों को छोड़कर बाकी पहाड़ों का जीवन अभी भी कष्टपूर्ण है। पहाड़ों तक सड़कें नहीं बन पाई हैं। यहाँ हिमस्खलन होता रहता है। मार्ग अत्यंत सँकरे एवं खतरनाक हैं। यहाँ तक पहुँचना सुगम नहीं है।

पहाड़ों पर खाने-पीने की चीजों का भी भारी अकाल रहता है। यहाँ बहुत कम मात्रा में चीजें उपलब्ध हो पाती हैं। यहाँ बेरोजगारी की भी समस्या है। शिक्षा की भी उचित व्यवस्था नहीं है। यहाँ चिकित्सालयों का भी अभाव है। ये लोग भगवान के भरोसे अपना जीवन बिताते हैं। यहाँ फसल भी कम ही हो पाती है। सर्दी भी यहाँ खूब पड़ती है। यहाँ का जीवन अभावों एक कष्टों से भरा होता है।

प्रश्न 2.
पर्वतारोहण की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
पर्वतारोहण-पर्वतारोहण आज भी प्रासंगिक है, पर पर्वतों पर चढ़ने के लिए केवल निर्भीकता, परिश्रम और कष्ट झेलने की क्षमता की ही आवश्यकता नहीं होती। वास्तव में पर्वतारोहण एक कला है। पुराने जमाने में लोग विशेष तैयारी या साज-सामान के बिना, केवल भक्तिभाव से देवी-देवताओं के पुण्यधाम, इन दुर्गम चोटियों के दर्शन के लिए जाते रहे किंतु इस युग में अनेक संस्थाओं में पर्वतारोहण की शिक्षा दीं जाती है। वहाँ शिक्षार्थियों को बर्फीले पहाड़ों की परिस्थितियों और कठिनाइयों की जानकारी कराई जाती है। उन्हें नवीन उपकरणों की प्रयोग-विधि बताई जाती है। दार्जिलिंग का ‘हिमालय पर्वतारोहण संस्थान’ एक ऐसा ही आदर्श शिक्षा केन्द्र है। पर्वतारोहण में सबसे उपयोगी उपकरण बर्फ काटने की कुल्हाड़ी अथवा हिम कुठार होता है। इसे आरोही की तीसरी टाँग ही समझना चाहिए। इसी के सहारे आरोही अपने को अचानक फिसल जाने से बचाता है, सपाट चढ़ाई पर इसे बर्फ में घुसाकर अपना संतुलन कायम रखता है। इसी से रास्ते की बर्फ काट-काट कर सीढ़ियाँ बनाई जाती हैं।

दूसरा महत्त्वपूर्ण उपकरण रस्सी है। ऊँचाई पर हवा बहुत तेज चलती है। उसके सामने कोई सीधा खड़ा नहीं हो पाता। पर्वतारोही इसीलिए रस्सी से एक-दूसरे को बाँधकर आगे बढ़ते हैं कि यदि एक गिरे तो दूसरा उसे संभाल ले। कभी-कभी बर्फ में पाँव रखते ही पर्वतारोही हिमगर्त या दरारों में फँस जाता है, तब उसका साथी खींचकर उसे बाहर निकालता है। गहरे हिमगतों को पार करने के लिए कामचलाऊ पुल भी प्रायः रस्सियों के ही बनाए जाते हैं। आजकल नाइलोन की मजबूत रस्सी प्रयोग में लाई जाती है। बर्फ पर फिसलने से बचाने के लिए विशेष जूते तो होते ही हैं, उनके नीचे लगाने के लिए धातु के बने नुकीले काँटों वाले ऐसे तलवे भी होते हैं जिन्हें जूतों से अलग से लगा लिया जाता है।

इनके अतिरिक्त पचासों और भी विशेष प्रकार की चीजों से लैस होकर ही पर्वतारोही चलता है; जैसे, बर्फ की धूप के चश्मे, ऑक्सीजन, बड़ी कीलें, तंबू, स्टोव, रबर की दरी, स्लीपिंग बैग, पीठ पर लादा जानेवाला बड़ा झोला आदि। सभी आवश्यक सामान को भारवाहकों से उठवाकर पर्वतारोही ऊपर की यात्रा शुरू करते हैं। पूरा दल कई टोलियों में बँट जाता है। यात्रा के बीच-बीच में ही वे पड़ाव बनाते जाते हैं। प्रत्येक पड़ाव पर खेमे लगाकर कुछ सामान, जिसकी आवश्यकता लौटने पर या पीछे आने वाली टोली के वहाँ आ जाने पर पड़ेगी छोड़कर आगे बढ़ा जाता है। इस प्रकार जितना ही ऊपर चढ़ते हैं, सामान और व्यक्ति कम होते जाते हैं। अंत तक पहुँचने वाले प्रायः दो-तीन व्यक्ति ही होते हैं जिनमें एक मार्ग दर्शक होता है।

प्रश्न 3.
आपकी दृष्टि में ‘आरोहण’ कहानी की मूल समस्या क्या है ?
उत्तर :
‘आरोहण’ कहानी में पर्वतीय प्रदेशों में रहने वाले लोगों के जीवन के यथार्थ को दर्शाया है। वहाँ का जीवन अत्यंत संघर्षमय एवं कठिन होता है। वहाँ प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता है। वहाँ की भौगोलिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियाँ निरंतर बदलती रहती हैं। पर्वतीय प्रदेशों में प्राकृतिक आपदा, भूस्खलन, पत्थर के खिसकने से यहाँ के लोगों का जीवन तथा समाज नष्ट हो जाता है। यहाँ के लोगों का जीवन यहीं के परिवेश तक बँध कर रह जाता है। प्रकृति के प्रति असीम लगाव भी इनको बाहर जाने से रोकता है। यदि कोई व्यक्ति यहाँ से शहर चला भी जाता है तो उसका मन यहीं भटकता रहता है। पर्वतीय लोग कठिन परिश्रम करके भी सुखी जीवन नहीं बिता पाते हैं। भूप दादा का लड़का भी कम आयु का होने पर घोड़े के साथ काफी पैदल चलकर रोटी-रोजी कमाता है। यहाँ के लोग बहुत भावुक होते हैं। मैदानी इलाकों की तुलना में पर्वतीय प्रदेशों की जिंदगी की कठिनाई जटिलता, दुखपूर्ण स्थिति को इस कहानी में उभारा गया है।

प्रश्न 4.
यूँ तो प्राय: लोग घर छोड़कर कहीं न कहीं जाते हैं, परदेश जाते हैं किन्तु घर लौटते समय रूपसिंह को एक अजीब किस्म की लाज, अपनत्व और झिझक क्यों घेरने लगी? क्या कभी आपको भी ऐसा अनुभव हुआ है ?
उत्तर :
प्राय: लोग रोजगार की तलाश में अपना घर छोड़कर बाहर जाते ही रहते हैं और रोजगार पाकर समय-समय पर अपने घर लौटते रहते हैं। तब उनके मन में हर्ष और गर्व का भाव होता है। पर रूपसिंह जब ग्यारह वर्ष पश्चात् अपने घर लौटता है तब उस पर एक अजीब किस्म की लाज, अपनत्व और झिझक की भावना हावी होने लगती है।

वह मसूरी के पर्वतारोहण संस्थान में चार हजार रुपए महीने की अच्छी नौकरी पा गया था। जब वह गाँव लोटता है तब उसके साथ उसके गॉड फादर कपूर साहब का बेटा शेखर कपूर भी होता है। वे दोनों देवकुंड के स्टॉप पर उतरते हैं और रूपसिंह के गाँव माही जाने की योजना बनाते हैं। रूपसिंह के मन में कई भाव मिश्रित से हैं, उसे घर लौटते हुए लज्जा आ रही है क्योंकि एक लंबा अंतराल हो गया, अपनत्व की भावना इसलिए, क्योंकि गाँव उसका अपना परिवार रहता है, झिझक इसलिए कि घर-गाँव के लोग क्या कहेंगे। उसकी इस मनःस्थिति के कारण निम्नलिखत हैं: -वह घर से सामान्य परिस्थितियों में नहीं गया था, बल्कि बड़े भाई भूपदादा को धक्का मारकर घर से भपाग गया था।
-उसे घर से गए एक लंबा समय (ग्यारह वर्ष) हो गया था।
-उसे शेखर के सामने इसलिए झिझक हो रही थी कि ग्यारह वर्ष बीत जाने के बावजूद अभी तक उसके गाँव के लिए पक्की सड़क नहीं बन पाई थी। उसकी यह झिझक स्वाभाविक ही थी।
एक बार मैं भी घर छोड़कर कहीं चला गया था, पर तीन दिन में ही मेरे होश ठिकाने आ गए। मैं भी झिझक के साथ घर लौट आया। घर पर सभी ने मुझे प्यार दिया।

प्रश्न 5.
शैला और भूप ने अपने परिश्रम से पहाड़ पर अपने जीवन की एक नई कहानी लिखी। क्या आपने भी कभी ऐसा प्रयास किया है ? उनके श्रम को आप कैसे देखते हैं ?
उत्तर :
रूपसिंह घर से भाग गया था। उसके जाने के बाद अत्यधिक बर्फ पड़ने के कारण हिमांग पहाड़ नीचे धसक गया। इससे भूपदादा के खेत, घर, माँ-बाबा सब मलबे में दब गए। किसी तरह वही बचा रह गया। कहीं कोई सहारा नहीं मिला। वह हिम्मत करके इसी पहाड़ की पीठ पर आ बैठा। धीरे-धीरे मलबा हटाया और थोड़ी बहुत खेती शुरू की। अकेला लगने पर वह नीचे से एक औरत ले आया। इस औरत का नाम ही शैला था। उन दोनों ने मिलकर मेहनत की। दोनों के संयुक्त प्रयासों से खेती बढ़ती चली गई। बर्फ जमी न रहे, इसके लिए उन्होंने खेतों को ढलवाँ बनाया। फिर समस्या उठी कि पानी कहाँ से आएगा। एक दिन वे पानी की खोज में हिमांग के साबुत हिस्से पर चढ़ गए।

उन्होंने देखा कि एक झरना यूँ ही उस तरफ से सूपिन नदी में गिर रहा था। उसे मोड़ लेने से पानी की समस्या हल हो सकती थी। इसके लिए बीच का पहाड़ काटना था। इसके लिए उन्होंने क्वार का महीना चुना। उन दिनों रातों को बर्फ जमने लगती थी और दिन को पिघलने लगती थी। दोनें ने कड़ी मेहनत करके झरने के बहाव को मोड़ने में सफलता पाई। शैला के आने से खेती का काम बढ़ता ही चला गया। उन्होंने अपनी मेहनत से नयी जिंदगी की कहानी लिख डाली। हम उनके श्रम को सलाम करते हैं। श्रम से ही कोई नई कहानी लिखी जा सकती है। हम मित्रों ने भी स्कूल में श्रम करके खेल के मैदान को ठीक-ठाक किया तथा वृक्षारोपण करके इसे आकर्षक रूप प्रदान किया।

प्रश्न 6.
जब रूपसिंह देवकुंड बस स्टॉप पर उतरा तब उसकी मनःस्थिति किस प्रकार की थी?
उत्तर :
जब रूपसिंह शेखर के साथ देवकुंड बस स्टॉप पर उतरा और अपने गाँव माही की ओर जाने को उद्यत हुआ तब उसे एक अजीब किस्म की लाज, अपनत्व और झिझक घेरने लगी थी। कोई उससे पूछे कि वह इते साल कहाँ रहा, या कि इत्ते सालों बाद लौटकर आया ही क्यों, तो वह क्या जवाब देगा। कोई खतों-किताबत भी नहीं। पता नहीं कौन कहाँ हो, कौन कहाँ। ग्यारह साल कम भी तो नहीं होते। एक दिक्कत और थी। ग्यारह साल बाद भी कोई मुकम्मिल सड़क न बन पाई थी। माही के लिए अकेले जाना होता, तो अपने गाँव के लिए क्या सड़क और क्या पगडंडी ! मगर साथ कोई और हो, तो सोचना पड़ता है कि अगला क्या सोचेगा। फिर साथ वाला भी कोई ऐसा-वैसा नहीं, शेखर कपूर था। एक तो उसके गॉड फादर कपूर साहब का लड़का, दूसरे आई.ए.एस. ट्रेनी! अब ऐसे खासमखास मेहमान को पाँव पैदल अपने गाँव लिवा जाना अपनी और अपने गाँव की तौहीन कराना ही तो हुआ न!

प्रश्न 7.
शेखर ने अपने बाइनोक्यूलर से वहाँ क्या दृश्य देखा?
उत्तर :
शेखर अपने बाइनो क्यूलर से पहाड़ों और घाटियों में रमा हुआ था, मगर रूप…? आँखें बंद करके भी वह पंद्रह किलोमीटर और ग्यारह साल की दूरी से देख सकता था अपने गाँव को। यह दीगर बात थी कि उसके और माही के बीच अभी कई पहाड़, कई नदियाँ और कई घाटियाँ थीं। उसने अपने सामने किसी विशाल डायनोसोर की तरह पसरे पहाड़ को देखा। फिर उसके पीछे की जर्द परतों को, जिन पर बादल और धुंध की फफूंदियाँ जड़ी हुई थीं। उसके हिसाब से अभी वह छः हजार फीट की ऊँचाई पर था और यहाँ से पन्द्रह किलोमीटर चलकर दस हजार फीट की ऊँचाई पर पहुँचना था उसे। उसने कलाई पर बँधी अपने इम्पोरेंड घड़ी पर नजर गड़ाई अभी सुबह के दस बजे थे। मगर पैदल चलना हो तो शाम तो होनी ही है।

प्रश्न 8.
शेखर और रूपसिंह की चढ़ाई का क्या प्रबंध हुआ?
उत्तर :
शेखर और रूपसिंह की पन्द्रह किलोमीटर की चढ़ाई के लिए चाय वाले ने एक लड़के महीप से बात की और माही जाने के लिए पूछा। उस लड़के ने, जो किसी बुजुर्ग की तरह पत्थर की सीढ़ियों पर अकेला बैठा हुआ था, अपनी उदासीन-सी गर्दन फेरी, मगर कुछ बोला नहीं। उड़े हुए नीले रंग की पहाड़ी पतलून और सलेटी स्वेटर में समेटी अपनी तमाम गंभीरता के बावजूद अपने सुंदर गोरे चेहरे की मासूमियत को अभी झटक नहीं पाया था वह।। “ये जा सकेगा भला?” शेखर ने अपना संदेह प्रकट किया- “जायेगा साब! कैसे नहीं जाएगा? यहाँ सवारियाँ मिलती कहाँ हैं। आप लोग चले गए तो बैठ के मक्खी तो मारेगा।”

चाय वाले का अनुमान सही था। लड़का वहाँ से चुपचाप उठकर चला गया, मगर थोड़ी ही देर में दो घोड़ों के साथ चढ़ाई चढ़ता हुआ दिखा। मेहनताना चाय वाले ने ही तय कर दिया था-दो घोड़ों के सौ रुपये। वे चल पड़े। एक घोड़े पर शेखर, दूसरे पर रूप। महीप शेखर वाले घोड़े के साथ आगे-आगे पैदल चल रहा था। पहले पहाड़ तक रास्ता ठीक-ठाक था, मगर उससे उतरते ही धूप का उजला चंदोव जहाँ-तहाँ दरकने लगा था-धूप की सुनहरी पट्टियों के बीच छाया की स्याह पट्टियाँ, मानो धारीदार खालों वाला वह विशाल जानवर बैठ कर पगुरा रहा था।

प्रश्न 9.
रूपसिंह ने अपने साथ बीती ग्यारह साल पुरानी घटना के बारे में शेखर को क्या बताया?
उत्तर :
रूपसिंह ने बताया-” वो, मैं भाग गया था घर से देवकुंड। भूप दादा मुझे खोजते हुए आए और मैं पकड़ा गया। कहीं मैं फिर न भाग जाऊँ, सो लौटते वक्त उन्होंने मेरी कलाई पकड़ रखी थी। उनसे छुटकारा पाने को मुझे कुछ नहीं सूझा, तो मैंने धक्का दे दिया उन्हें-यहाँ इसी जगह! वे संभल न सके, फिसल गए। मेरा हाथ उनके हाथ में था। सो मैं भी खिंच गयाए इस ढलान पर हम दोनों ही लुढ़कने लगे। नीचे एक पेड़ था। अब नहीं है, उसने जैसे थाम लिया हम दोनों को। पेड़ के इस तरफ भूप, उस तरफ मैं, झूलने लगे हम दोनों, बीच में थे हमारे हाथ।

बहोडडत सख्त जान थे भूप दादा। बहोडsडत मजबूत पकड़ थी उनकी, मगर वे ऊपर से जितनी सख्त जान थे, अंदर से उतने ही नरम। उन्होंने समझा कि वे यूँ ही अपनी गफलत से फिसले थे, खुद को कसूरवार भी समझ रहे थे कि अगर उन्होंने मेरा हाथ छोड़ रखा होता तो शायद मैं गिरने से बच जाता। खैर, जैसे-तैसे हमें खींच कर ऊपर ले आए और हाथ छोड़ दिया।” भूप दादा ने पूछा”ज्यादा चोट तो नहीं लगी, भुइला ?” वे खीझ भरी हँसी हैँ ने थे और मेरे बदन को परख रहे थे। पत्ते निचोड़ कर उन्होंन और अपनी खरोचों पर लगाया। ये दाग अभी भी रह गए हैं। जिप ने बाहों की ओर इशारा किया, “उन्होंने उस दिन से जो ह्राथ छोड़ा कि फिर नहीं पकड़ा।”

प्रश्न 10.
रूपसिंह ने अपने पहले प्रेम के बारे में क्या बताया?
उत्तर :
रूपसिंह ने बताया कि उसका पहला प्रेन अपने से बड़ी लड़की शैला के साथ हुआ था। शैला इतनी सुंदर थी कि उसकी गुलामी बजा लाने में ही वह खुद को धन्य मानता, जबकि वो खुद बैठ कर स्वेटर बुना करती। मैं उसकी भेड़ें हाँका करता, उसके लिए बुरुंस के फूल तोड़ लाता, जो उसे बेहद पसंद थे, सेब या आडू कहीं मिल गए तो सबसे पहले उसे लाकर देता। कभी-कभी जब देवता पर बलि चढ़ती, तो वह माँस का प्रसाद, मक्की की रोटी वगैर भी देती थी। उसे बाद में मालूम पड़ा कि वह स्वेटर भूप दादा के लिए बुना जा रहा था। फल, फूल, माँस और रोटी भी उन्हीं के लिए आती व राम-सीता की जोड़ी का वह सिर्फ लक्ष्मण था और जिस दिन भूप दादा न आते, आखिर तक उसे खुश रखने की उसकी तमाम कोशिशें बेकार चली जातीं। यह बताकर रूप एक झेंप भरी हँसी हँस कर चुप हो गया।

प्रश्न 11.
माही गाँव के निकट आते ही कैसा दृश्य दिखाई देने लगा? लड़का वहाँ पहुँचकर क्या करने लगा?
उत्तर :
वहाँ के बहुत पुराने लोगों में से किसी-किसी ने लाल पलटन के अंग्रेजों को देखा था, नयों ने नहीं। सो दो गोरे संभ्रांत अजनबियों के आगमन पर गाँव के कुछ लोग अपने-अपने घरों से निकल आए थे। हालांकि यह सितंबर का महीना था और दिन के अभी तीन ही बजे थे, मगर यहाँ ठंड काफी थी और लोगों ने ठंड से बचने के लिए ‘चुस्ती’ या ऊन का ‘लावा’ पहन रखा था। उनकी आँखों में भय, संशय और कौतूहल थे। रूप की नजरें इनमें से एक-एक चेहरे को टटोल रही थी। लड़का एक सयाने सईस-सा अपनी थकान भूलकर अपने हीरू-वीरू की पीठ, पुट्टों और टांगों को थपथपा रहा था। रूप ने सौ का एक नोट निकाला और कुछ सोचकर रख लिया और दस की गड्डी से बारह कड़क नोट निकालकर लड़के को थमाते हुए बोला, “देखो, तुम भी थके हो और तुम्हारे घोड़े भी। फिर बच्चे हो, शाम होने वाली है, रास्ता खतरनाक है। ऐसा करो, आज रात यहीं रुक जाओ, सुबह चले जाना।”

प्रश्न 12.
भूप दादा के साथ हिमांग के ऊपर पहुँचकर रूप ने क्या दृश्य वेखा ?
उत्तर :
ऊपर पहुँचकर रूप ने देखा कि पहाड़ की पीठ कुछ दूर तक जमीन प्राय: समतल बनी हुई थी, जिसमें मकई की फसल खड़ी हुई थी। क्षेत्र के चारों ओर सेब और देवदार के पेड़ थे। सेब के पेड़ों में तो फल भी लगे हुए थे। पेड़ ज्यादा दिनों के नहीं थे, यह देखने से ही लग रहा था। उसने गौर किया, ऐसे ही पेड़ नीचे भी कुछ दूर तक फैलते चले गए थे। पूरे क्षेत्र की परिक्रमा करता हुआ वह आधी दूरी तक पहुँचा होगा कि उसे एक गुफानुमा आश्रम दिखा। उसी के बगल में दो छानी (छण्पर का झोंपड़ा) भी।

यही घर है शायद! एक छप्पर के नीचे एक औरत खड़ी थी, नाटी गोरी जवान चुस्त और लाल फुल स्वेटर में। वह उसे हैरानी से घूर रही थी। उसने अनुमान लगाया कि यह भाभी हो सकती है, मगरं झिझकवश आगे बढ़ गया। आगे हिमांग के ऊपर वाले अंश से कोई झरना झर रहा था, जो खेतों से गुजरते हुए सूपिन में गिरता था। हवा में बर्फीली शाम की ठंडक बढ़ गई और देखते ही देखते कोहरा इतना घना हो गया कि लगता था, पृथ्वी पर पहाड़ की इस पीठ को छोड़कर बाकी कुछ भी नहीं, कहीं भी नहीं।

प्रश्न 13.
भूप दादा ने रूप को बाबा की सुनाई किस कहानी की याद दिलाई? उन्हीं के शब्दों में लिखो।
उत्तर :
भूप दादा ने रूप से पूछा-” तुझे बचपन में बाबा की सुनाई गई कहानी याद है ?” वे रूप की ओर मुखातिब हुए, तो उनकी आँखें कुछ ज्यादा ही चटक हो आई थीं, “‘वो एक नन्हीं चिड़िया वाली, जिसे गीध ने कहा था, ‘मैं तुझे खा जाऊँगा’ नहीं? खैर, मैं याद दिलाता हूँ। गीध के ऐसा कहने पर चिड़िया डर गई। पूछा ‘क्यों?’ गीध बोला, ‘ इसलिए कि तू मुझसे ऊँचा नहीं उड़ सकती।’ यह अजीब जबर्दस्ती का तर्क था। नन्हीं चिड़िया ने धीरज धर कर पूछा, ‘और अगर मैं तुझसे ऊँचा उड़ कर दिखा दूँ तो?’ गीध उसके बचकानेपन पर हँसा, ‘तो नहीं खाऊँगा।’ फिर तो दोणों में ठण गया मुकाबला। गीध के सामने भला उस नन्हीं चिड़िया की क्या बिसात! लंबे-लंबे डैने फहराए और उड़ गया ऊपर, ऊपर और-और ऊपर। चिड़िया डर गई। फिर भी उसने धीरज न छोड़ा। ऐसे भी मरणा है वैसे भी, तो क्यों न मौत से दो-दो हाथ करके-ई मरुँ। कम-से-कम मरणे का मलाल तो नहीं रहेगा। फिर तो पूरी ताकत लगा दी उसने उड़ने में, लगा कि पराण ही निकल जावेंगे। जाण पे खेल गई चिड़िया और सारी ताकत लगाकर उड़कर जा बैठी गीध की पीठ पर। गीध अपणी बेहिसाब ताकत के गुरूर में उड़ता रहा, आकाश से भी ऊँचा, लेकिन चिड़िया को अब कोई डर न था। वह हर हाल में उससे ऊँचाई पर थी, मौत की पीठ पर ही जो जा बैठी थी।

प्रश्न 14.
पहाड़ों की चढ़ाई और प्रेम की चढ़ाई में क्या अंतर है? शेखर रूप सिंह से क्या जानना चाहता है?
उत्तर :
पहाड़ों की चढ़ाई बड़े तकनीकी ढंग से होती है। इसके लिए पहाड़ों की जानकारी का होना आवश्यक है। इसे अभ्यास एवं अनुभव से सीखा जा सकता है। पहाड़ों के रहने वाले तो आदतन पहाड़ों की चढ़ाई करते हैं। प्रेम की चढ़ाई जरा दूसरे प्रकार की होती है। इसका संबंध हृदय की भावनाओं से होता है। चढ़ाई के दौरान शेखर रूपसिंह की पहाड़ों की चढ़ाई की जानकारी से तो प्रभावित हो ही गया था, साथ ही वह उससे यह भी पूछता है-“कभी प्रेम की भी चढ़ाई चढ़ी कोई?” इस प्रश्न के द्वारा वह जानना चाहता है कि रूपसिंह ने अपनी युवावस्था में क्या किसी लड़की से प्रेम किया या नहीं। वह फिर पूछता है-‘अरे, कोई तो मिली होगी, जिस देखकर मन में कुछ-कुछ हुआ होगा कभी?’ अर्थात् किसी लड़की को देखकर उसका मन धड़का अवश्य होगा। इस प्रकार वह रूपसिंह के पहले प्यार के बारे में जानना चाहता था। रूपसिंह शैला के प्रति अपने आकर्षण को बताता है जो बाद में उसके बड़े भाई भूपसिंह की पत्नी बनी।

प्रश्न 15.
‘राम और सीता की जोड़ी में मैं सिर्फ लक्ष्मण था।’ इस कथन के पीछे रूपसिंह की कौन सी पीड़ा छिपी थी?
उत्तर :
रूपसिंह सबसे पहले जिस लड़की की ओर आकर्षित हुआ था वह थी-शैला। वह उससे आयु में बड़ी थी। उसकी उससे मुलाकात भेड़ें चराने के दौरान हुई थी। शौला टननी अधिक संदर थी कि रूपसिंह उसकी गुलामी करके भी स्वय कां धन्य मiंनत।। था। वह उसकी भेड़ें हाँकता था, उसके पसंद के बुरुंस के फूल तोड़कर लाता था, सेब या आडू लाकर देता था अर्थात् हर प्रकार से उसे प्रसन्न रखने का प्रयास करता था। वह स्वेटर बुनती रहती थी। बाद में उसे पता चला कि यह स्वेटर उसके बड़े भाई भूपसिंह के लिए बना रही थी। वह सब फल, फूल, माँस और रोटी उन्हीं के लिए लाती थी असल में भाई उसके राम थे वह उनकी सीता थी। वह तो केवल लक्ष्मण (देवर) की भूमिका में रह गया था। वह भूप दादा से ही प्रेम करती थी। जिस दिन भूप दादा न आते, उस दिन वह उसकी लाख कोशिशों के बावजूद खुश नहीं हो पाती थी। इस कथन में रूपसिंह की यह पीड़ा छिपी हुई है कि उसका पहला प्यार एकतरफा था। वह इसमें पहले स्थान पर न होकर दूसरे स्थान पर रह गया। प्यार की इस असफलता ने उसे भीतर तक व्यथित कर दिया था।

प्रश्न 16.
‘आरोहण’ कहानी की मूल समस्या क्या है?
उत्तर :
‘आरोहण’ कहानी में पर्वतीय प्रदेशों में रहने वाले लोगों के जीवन के यथार्थ को दर्शाया है। वहाँ का जीवन अत्यंत संघर्षमय एवं कठिन होता है। वहाँ प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता है। वहाँ की भौगोलिक, सामाजिक एवं साँस्कृतिक परिस्थितियाँ निरंतर बदलती रहती है। पर्वतीय प्रदेशों में प्राकृतिक आपदा, भूस्खलन, पत्थरों के खिसकने से यहाँ के लोगों का जीवन तथा समाज नष्ट हो जाता है। यहाँ के लोगों का जीवन यहीं के परिवेश तक बँधकर रह जाता है। प्रकृति के प्रति असीम लगाव भी इनको बाहर जाने से रोकता है। यदि कोई व्यक्ति यहाँ से शहर चला भी जाता है तो उसका मन यही भटकता रहता है। पर्वतीय लोग कठिन परिश्रम करके भी सुखी जीवन नहीं बिता पाते हैं। भूप दादा का लड़का भी कम आयु का होने पर घोड़े के साथ काफी पैदल चलकर रोटी-रोजी कमाता है। यहाँ के लोग बहुत भावुक होते हैं। मैदानी इलाकों की तुलना में पर्वतीय प्रदेशों की जिंदगी की कठिनाई, जटिलता, दुखपूर्ण स्थिति को इस कहानी में उभारा गया है।

प्रश्न 17.
अपने ही घर लौटते हुए रूपसिंह को एक अजीब किस्म की लाज और झिझक क्यों हो रही थी ? ‘आरोहण’ कहानी के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर :
प्रायः लोग रोज़गार की तलाश में अपना घर छोड़कर बाहर जाते ही रहते हैं और रोज़गार पाकर समय-समय पर अपने घर लौटते रहते हैं। तब उनके मन में हर्ष और गर्व का भाव होता है। पर रूपसिंह जब ग्यारह वर्ष पश्चात् अपने घर लौटता है तब उस पर एक अज़ीब किस्म की लाज़, अपनत्व और झिझक की भावना हावी होने लगती है।

वह मसूरी के पर्वतारोहण संस्थान में चार हज़ार रुपए महीने की अच्छी नौकरी पा गया था। जब वह गाँव लौटता है तब उसके साथ उसके गॉड फादर कपूर साहब का बेटा शेखर कपूर भी होता है। वे दोनों देवकुंड के स्टॉप पर उतरते हैं और रूपसिंह के गाँव माही जाने की योजना बनाते हैं। रूपसिंह के मन में कई भाव मिश्रित से हैं; उसे घर लौटते हुए लज्जा आ रही है क्योंकि एक लंबा अंतराल हो गया, अपनत्व की भावना इसलिए, क्योंकि गाँव में उसका अपना परिवार रहता है, झिझक इसलिए कि घर-गाँव के लोग क्या कहेंगे। उसकी इस मनःस्थिति के कारण निम्नलिखित हैं-

  • वह घर से सामान्य परिस्थिति में नहीं गया था, बल्कि बड़े भाई भूपदादा को धक्का मारकर घर से भाग गया था।
  • उसे घर से गए एक लंबा समय (ग्यारह वर्ष) हो गया था।
  • उसे शेखर के सामने इसलिए झिझक हो रही थी कि ग्यारह वर्ष बीत जाने के बावजूद अभी तक उसके गाँव के लिए पक्की सड़क नहीं बन पाई थी।

प्रश्न 18.
‘बचपन में बाबा के द्वारा सुनाई गई नन्हीं चिड़िया की कहानी भूपसिंह के जीवन-संघर्ष की भी कहानी है।’ ‘आरोहण’ पाठ के आधार पर सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
उत्तर :
भूपसिंह अपने छोटे भाई रूप को बचपन में बाबा द्वारा सुनाई गई कहानी का स्मरण कराता है-एक नन्हीं चिड़ियावाली कहानी। गीध ने कहा था, “मैं तुझे खा जाऊँगा।” गीध के ऐसा कहने पर चिड़िया डर गई। उसने पूछा-क्यों ? तब गीध बोला, ‘इसलिए कि तू मुझसे ऊँचा नहीं उड़ सकती।’ यह अजीब जबर्दस्ती का तर्क था। नन्हीं चिड़िया ने धीरज धरकर पूछा, “और मैं अगर तुझसे ऊँचा उड़कर दिखा दूँ तो?” गीध उसके बचकाने पर हैँसा और बोला-‘ तो नहीं खाऊँगा।’ दोनों का मुकाबला शुरू हुआ। गीध लंबे-लंबे डैने फहराकर ऊपर से ऊपर उड़ता चला गया।

पर चिड़िया ने धीरज नहीं छोड़ा। उसने सोचा जब मरना ही है तो क्यों न मौत से दो-दो हाथ करके मरूँ। कम-से-कम कोई मलाल तो नहीं रहेगा। चिड़िया पूरी ताकत लगाकर उड़ी और गीध की पीठ पर जा बैठी। गीध ऊपर उड़ता रहा, पर चिड़िया तो गीध की पीठ पर थी, अब उसे कोई डर नहीं था। वह हर हालत में उससे ऊँचाई पर थी। यही कहानी भूपसिंह के जीवन-संघर्ष की भी थी। जब भूपसिंह का सब कुछ चला गया तब वह भी चिड़िया की भांति मौत की पीठ पर जा बैठा। धीरे-धीरे अपने प्रयास से खेती शुरू की तथा घर-बार बसा लिया।

प्रश्न 19.
‘आरोहण’ कहानी के आधार पर भूपसिंह पर आई उन विपत्तियों का उल्लेख कीजिए जिन्हें झेलते हुए भी भूपसिंह नहीं घबराया और अपना अलग संसार बनाने में लगा रहा।
उत्तर :
‘आरोहण’ कहानी में पता चलता है कि छोटे भाई रूपसिंह के जाने के बाद भूपसिंह पर अनेक विपत्तियाँ आई, पर वह विपत्तियों से घबराया नहीं और अपना अलग संसार बनाने के प्रयासों में लगा रहा। भूपसिंह ने स्वयं रूपसिंह को अपने विपत्ति भरे दिनों के बारे में बताते हुए कहा-
तेरे जाने के बाद अगले साल यहाँ बहुत बर्फ ग़री। हिमांग पहाड़ धसक गया। माँ-बाबा भी दब गए। मैं किसी तरह बच गया। चारों ओर तबाही थी। तुझे बचपन में बाबा की सुनाई कहानी याद होगी-‘ नन्हीं चिड़िया वाली’। उसे गीध ने कहा था-मैं तुझे खा जाऊँगा। चिड़िया डर गई। चिड़िया ने धीरज रखकर पूछा-और, अगर मैं तुझसे ऊँचा पहाड़ उड़कर दिखा दूँ तो,” गीध उसके बचकाने पर हँसा। उसने पूरी ताकत लगा दी उड़ने में ; और उड़कर जा बैठी गीध की पीठ पर।

अब चिड़िया को कोई डर न था। वह हर हालत में उससे ऊँचाई पर थी। इसी तरह भूप भी मौत की पीठ पर था। थोड़ी-बहुत खेती शुरू की। वह शैला को नीचे ले आया। उसके आने से खेती फैल गई। वे पानी की समस्या हल करने के लिए एक झरने को मोड़कर लाने में सफल भी हो गए। रूप ने शैला भाभी के बारे में पूछा। भूप ने बताया कि काम काफी बढ़ गया है और शैला को बच्चा होने वाला था। फिर मै एक दूसरी औरत (यह भाभी) ले आया। शैला से एक बेटा हुआ-महीप। महीप अभी नौ साल का था कि शैला यहीं से नदी में कूद गई। बेटा जो नीचे उतरा तो लाख समझाने पर भी ऊपर नहीं आया। वह अपनी माँ की मौत के लिए मुझे ही गुनाहगार समझता है। इन विपत्तियों के बावजूद भूप दादा दूसरी शादी करके अपना अलग संसार बनाने में लगा रहा।

प्रश्न 20.
‘मेरी खुद्दारी को बखा दो। अब तो जिंदा रहने तक न ये बैल उतर सकते हैं, न हम।’ ‘आरोहण’ में भूप के उपर्युक्त कथन के आलोक में उसके व्यक्तित्व का चित्रण कीजिए।
उत्तर :
भूपदादा अत्यंत खुद्दार किस्म का व्यक्ति है। वह छोटे भाई महीप का शहर चलने का प्रस्ताव ठुकरा देता है। ‘आरोहण’ कहानी से स्पष्ट है कि पहाड़ों की चढ़ाई में भूप दादा का कोई जवाब नहीं है। इस क्षेत्र में उन्हें कोई हरा नहीं सकता। यद्यपि उनका छोटा भाई रूपसिंह पहाड़ों पर चढ़ना सिखाता है, पर भूप दादा के सामने वह भी बौना सिद्ध होता है। वे पहाड़ों पर चढ़ने की कला में अत्यंत कुशल हैं। भूप दादा अत्यंत परिश्रमी हैं। वे अपनी पहली पत्नी शैला के साथ मिलकर झरने के रुख को बदलने में कामयाब हो जाते हैं। खेती को बढ़ाने में भी उन्होंने खूब परिश्रम किया। भूप दादा अत्यंत स्वाभिमानी प्रकृति के हैं। वे माही गाँव के लोगों से इसलिए बात नहीं करते क्योंकि उन्होंने उनकी बकरी के बच्चे की देवता को बलि चढ़ा दी थी। भूपसिंह अपने छोटे भाई के अनुरोध को भी ठुकरा देता है और कहता है-मेरी खुद्दारी को बख्श दो । अब वे जिंदा रहने तक पहाड़ से नीचे नहीं उतरेंगे।

प्रश्न 21.
‘आरोहण’ कहानी के आधार पर भूप दादा के जीवन की कठिनाइयों और उसकी खुद्दारी पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
उत्तर :
भूप दादा ने पहाड़ों पर जीवन बिताते हुए अनेक कठिनाइयाँ झेलीं। वह रूपसिंह के चले जाने पर बिल्कुल अकेला पड़ गया था। खेती का काम बढ़ जाने के कारण वह शैला को ले आया था। दोनों ने मिलकर खेती के लिए पानी की समस्या का हल जुटाने में लग गए। वे एक झरने का रुख मोड़ने में सफल रहे। पर भूप दादा जीवन में कभी हार नहीं मानता। वह किसी से मदद नहीं माँगता।

भूप दादा अत्यंत खुद्दार किस्म का व्यक्ति है। वह छोटे भाई का शहर चलने का प्रस्ताव ठुकरा देता है। ‘आरोहण कहानी से स्पष्ट है कि पहाड़ों की चढ़ाई में भूप दादा का कोई जवाब नहीं है। इस क्षेत्र में उन्हें कोई हरा नहीं सकता। यद्यपि उनका छोटा भाई रूपसिंह पहाड़ों पर चढ़ना सिखाता है, पर भूप दादा के सामने वह भी बौना सिद्ध होता है। वे पहाड़ों पर चढ़ने की कला में अत्यंत कुशल है।
भूप दादा अत्यंत परिश्रमी हैं। वे अपनी पहली पत्नी शैला के साथ मिलकर झरने के रुख को बदलने में कामयाब हो जाते हैं। खेती को बढ़ाने में भी उन्होंने खूब परिश्रम किया।

प्रश्न 22.
‘आरोहण’ पाठ के आधार पर ‘पर्वतारोहण’ की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
पर्वतारोहण : पर्वतारोहण आज भी प्रासंगिक है, पर पर्वतों पर चढ़ने के लिए केवल निर्भीकता, परिश्रम और कष्ट झेलने की क्षमता की ही आवश्यकता नहीं होती। वास्तव में पर्वतारोहण एक कला है। पुराने जमाने में लोग विशेष तैयारी या साज-सामान के बिना, केवल भक्तिभाव से देवी-देवताओं के पुण्यधाम, इन दुर्गम, चोटियों के दर्शन के लिए जाते रहे किंतु इस युग में अनेक संस्थाओं में पर्वतारोहणों की शिक्षा दी जाती है। वहाँ शिक्षार्थियों को बर्फीले पहाड़ों की परिस्थितियों और कठिनाइयों की जानकारी कराई जाती है। उन्हें नवीन उपकरणों की प्रयोग-विधि बताई जाती है। दार्जिलिंग का ‘हिमालय पर्वतारोहण संस्थान’ एक ऐसा ही आदर्श शिक्षा केंद्र है। पर्वतारोहण में सबसे उपयोगी उपकरण बर्फ काटने की कुल्हाड़ी अथवा हिम कुठार होता है। इसे आरोही की तीसरी टाँग ही समझना चाहिए। इसी के सहारे आरोही अपने को अचानक फिसल जाने से बचाता है। सपाट चढ़ाई पर इसे बर्फ में घुसाकर अपना संतुलन कायम रखता है। इसी से रास्ते की बर्फ काट-काट कर सीढ़ियाँ बनाई जाती हैं।

प्रश्न 23.
‘आरोहण’ कहानी के आधार पर भूपसिंह और रूपसिंह के स्वभाव और परिस्थितियों के अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भूपसिंह और रूपसिंह दोनों सगे भाई हैं पर दोनों के स्वभाव में बड़ा भारी अंतर है। भूपसिंह कठोर परिश्रमी है तो रूपसिंह आराम का जीवन जीने का आदी है। भूपसिंह पहाड़ों पर रहकर ही कठोर परिस्थितियों से संघर्ष करता है जबकि रूपसिंद घर से भागकर मसूरी के पर्वतारोहण संस्था में नौकरी कर लेता है। भूपसिंह का पहाड़ पर चढ़ना उसकी दिनचर्या का अंग है तो रूपसिंह का पर्वतारोहण एक शौक और आजीविका का साधन मात्र है। भूपिंह ने पहाड़ों पर अपने जीवन की एक नई गाथा रच डाली। इस प्रवृत्ति ने उसे स्वाभिमानी एवं खुद्दार बना दिया जबकि रूपसिंह के स्वभाव में खुद्दारी नहीं आ पाई। भूपसिंह स्वयं में एक संतोषप्रिय व्यक्ति है। उसे अधिक सुख सुविधाओं की कोई लालसा नहीं है। वह अपने पशुओं तक को छोड़कर अन्यत्र नहीं जाना चाहता, जबकि रूपसिंह में यह बात नहीं है।

प्रश्न 24.
“-पहाड़ धसक गया और अपने तीस नाली खेत, मकान, माँ-बाबा सब दब गए मलबे में। मैं ही किसी तरह बच गया, घानी पर था, इसलिए वहीं से तबाही देखी थी, मैंने लाचार, असहाय…….” “-इस कथन के आलोक में पहाड़ों पर प्राय: आने वाली प्राकृतिक आपदाओं तथा पहाड़वासियों की जिजीविषा और साहस पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
भूपसिंह अपने छोटे भाई रूपसिंह को अपने गत जीवन-संघर्ष के बारे में बताते हुए कहता है कि उस सच्चाई को मैं ही जानता हूँ जिसने उसे भुगता है। तेरे (रूपसिंह) के चले जाने के बाद अगले साल बहुत बर्फ पड़ी। हिमांग पहाड़ उसका बोझ उठा नहीं सका और नीचे धसक गया। इस दुर्घटना में मेरे तीस नाली खेत, मकान, माँ-बाबा सब दब गए। मैं तो इसलिए बच पाया क्योंकि मैं छानी पर था।

इस घटना के आधार पर कहा जा सकता है कि पहाड़ों प्रायः प्राकृतिक आपदाएँ आती रहती हैं और पहाड़ों पर रहने वाले लोगों को इन्हें झेलना ही पड़ता है। इन्हें झेलना लोगों की विवशता है। पहाड़ दूर से भले ही सुंदर प्रतीत होते हों, पर वहाँ का जीवन अत्यंत कठिन होता है। पहाड़ों पर जन-सुविधाओं का घोर अकाल रहता है।

पहाड़ों पर भू-स्खलन तथा हिम स्खलन की घटनाएँ प्राय: घटित होती रहती हैं। इनसे वहाँ व्यापक विनाश होता है। वहाँ के रास्ते अवरुद्ध हो जाते हैं, आवागमन में बाधा आती है। यहाँ सड़कों का भी अभाव है। यहाँ आने-जाने के रास्ते तंग होते हैं। वहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं का भी अभाव रहता है। पहाड़ों पर बारहों महीने ठंड पड़ती है। गरम कपड़े पर्याप्त मात्रा में नहीं होते हैं। यहाँ तक खाद्य-सामग्री ले जाना भी कठिन है। कुल मिलाकर पहाड़वासियों का जीवन कठिनाइयों से भरा होता है। यह तो पहाड़वासियों की ही जिजीविषा है जो उन्हें विषम परिस्थितियों में भी जिंदा रखती है। पहाड़ी लोग बड़े साहसी होते हैं। वे प्राकृतिक आपदाओं को अपने साहस के बलबूते पर झेलते हैं।

प्रश्न 25.
महीप कौन है और वह अपने विषय में बात पूछे जाने पर उसे टाल क्यों देता है ?
उत्तर :
महीप भूपसिंह का बेटा है। वह अपने पिता भूपसिंह से नाराज़ होकर अलग रहता है। वह अपना जीवन-यापन स्वयं करता है। वह घोड़ा चलाने का काम करता है। वह अपने और अपने परिवार के बारे में किसी से बात नहीं करना चाहता। वह 9-10 साल का बालक है। वह नीचे से सवारियों को अपने घोड़े पर बिठाकर पहाड़ पर ऊपर ले जाने का काम करता है।

उसके घोड़े पर दो सैलानी शेखर और रूपसिंह बैठते हैं। बालक महीप उनके साथ-साथ पैदल चलता है। यह एक बड़ी विचित्र स्थिति है। किसी बालक के लिए 15 कि.मी. पैदल जाना और फिर लौटना कितना कठिन काम होता होगा, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है। वह मजदूरी करके पेट पालता है। शेखर और रूपसिंह उसके बारे में बातचीत करते चलते हैं। वे महीप से उसके बारे में पूछते हैं तो वह यह कहकर टाल देता है- “साब, बात मत करो। रास्ता भौत खराब है।” जब उससे पूछा जाता है-” तुमने बताया नहीं, तुम क्यों भाग आए थे अपने घर से ?” तो महीप जैसे सुनता ही नहीं। महीप रूप के प्रश्नों पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता है। बातचीत से संभवत: वह जान जाता है कि यह रूपसिंह उसका चाचा है। पर वह अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहता।

प्रश्न 26.
“जब भूपसिंह के भाई रूपसिंह ने उसे अपने साथ चलने का प्रस्ताव किया तब भूप ने अपनी भीगी पलकें ऊपर उठाई तो वे अंदर जल रही थी, “भौत इंसाफ किया तुम सबी ने मेरे साथ भौत। अब माफ़ करो भुइला। मेरी खुद्यारी को बखस दो। अब तो जिंदा रहणे तक न ई बल्य उत्तर सकदिन; न हम।”‘-भूपसिंह इतने दुखों को उठाकर भी वहाँ से जाना नहीं चाहता, बल्कि अपनी जड़ों से जुड़ा रहना चाहता है। क्या आप भी ऐसा सोचते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
‘आरोहण’ कहानी का प्रमुख पात्र भूपसिंह अत्यंत आत्म-सम्मानी व्यक्ति है। वह कभी भी स्वयं को अकेला नहीं मानता। जब रूपसिंह उससे कहता है-” मगर यहाँ आप अकेले हैं।” तब वह कहता है- “‘कौण कैता है, अकेला हूँ? हयाँ माँ है, बाबा हैं, शैला है-सोये पड़े हैं सब। हयाँ महीप है, बल्द है, मेरी घरवाली है। मौत के मुँह से निकाले गए खेत हैं, पेड़ हैं, झरणा है। इन पहाड़ों में मेरे पुरखों, मेरे प्यारों की आत्मा भटकती रहती है। मैं उनसे बात करता हूँ।” जब रूपसिंह बची-खुची जिंदगी के साथ इंसाफ करने की बात कहता है तब भूपसिंह फट पड़ता है और कह उठता है-” भौत इंसाफ किया तुम लोगों ने मेरे साथ। अब मेरी खुद्दारी को बखस दो। अब मैं यहीं रहूँगा और कही नहीं जाऊँगा।” भूपसिंह अपनी जड़ों से जुड़ा रहना चाहता है। वह पहाड़ी जीवन का अभ्यस्त है। वह शहर की सुख-सुविधाओं को भोगने के लिए यहाँ से नहीं जाना चाहता। हमें भूपसिंह की खुद्दारी की भावना बहुत अच्छी लगी। हमें भी अपना घर छोड़ना अच्छा नहीं लगता। हमें भी अपने जड़ों से सदा जुड़े रहना चाहिए।

प्रश्न 27.
‘आरोहण’ कहानी में लेखक ने क्या रेखांकित किया है ?
उत्तर :
‘आरोहण’ कहानी में लेखक ने पर्वतारोहण की जरूरत और वर्तमान समय में उसकी उपयोगिता को रेखांकित किया है। पर्वतीय प्रदेश के रहने वालों के जीवन-संघर्ष तथा वहाँ के प्राकृतिक परिवेश से उनके संबंधों को रेखांकित किया है। किस तरह पर्वतीय प्रदेशों में प्राकृतिक आपदा, भूस्खलन, पत्थरों के खिसकने से पूरा जीवन तथा समाज नष्ट हो जाता है, ‘आरोहण’ कहानी इसका जीवंत उदाहरण है। आरोहण पहाड़ी लोगों की जीवनचर्या का एक भाग है, कितु उन्हें आश्चर्य तब होता है, जब यह पता चलता है कि वही आरोहण किसी को नौकरी भी दिला सकता है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने पर्वतीय प्रदेशों की बारीकियों, उनके जीवन के सूक्ष्म अनुभवों, परंपराओं, रीति-रिवाज़ों, उनके संघर्षों, यातनाओं की संजादगी के साथ प्रस्तुत किया है। मैदानी इलाकों की तुलना में पर्वतीय प्रदेशों की जिंदगी कितनी कठिन, जटिल, दुखद और संघर्षमय होती है, इसका विशद-चित्रण इस कहानी में हुआ है।

प्रश्न 28.
देवकुंड के स्टॉप पर उतरकर रूपसिंह ने क्या दृश्य देखा ?
उत्तर :
बस से देवकुंड के स्टॉप पर उतरकर रूपसिंह की नज़र सबसे पहले अपने गाँव की ओर गई। वह पूरे 11 साल बाद अपने गाँच माही लौट रहा था। उसने देखा कि ग्यारह साल बीत जाने के उपरांत भी अभी तक माही गाँव जाने के लिए कोई पूरी सड़क नहीं बन पाई थी। उसके साथ कोई और व्यक्ति भी था-गॉड फादर कपूर साहब का बेटा शेखर। शेखर बाइनोक्यूलर से पहाड़ों और घाटियों की ओर देख रहा था। रूपसिंह आँखें बंद करके पंद्रह किलोमीटर दूर अपने गाँव को देखने लगा। उसके और माही गाँव के बीच अभी कई पहाड़, कई नदियाँ और कई घाटियाँ थीं।

उसने अपने सामने किसी विशाल डायनासॉर की तरह पसरे पहाड़ को देखा। उसके पीछे की जर्द परतों को देखा जिन पर बादल और धुंध की फफूँदियाँ जड़ी हुई थीं। उसके हिसाब से अभी वह छह हज़ार फीट की ऊँचाई पर था और उसे यहाँ से 15 कि. मी. चलकर दस हजार फ़ीट की ऊँचाई पर पहुँचना था। उसने अपनी कलाई पर बँधी अपनी इंपोर्टेड घड़ी पर नज़र गड़ाई। अभी सुबह के दस बज रहे थे। चाय का गिलास थामते हुए उसने आस-पास एक उड़ती-सी नज़र डाली और चायवाले से पूछ्छ-” यहाँ कोई घोड़ा-वाड़ा नहीं मिलता क्या ?” चायवाले ने माही को पुकार कर घोड़ा दिलवा दिया।

प्रश्न 29.
शेखर और रूपसिंह दो अलग-अलग घोड़ों पर सवार होकर जब माही गाँव की ओर जा रहे थे, तब उनके रास्ते के दृश्य का वर्णन अपने शब्दों में करो।
उत्तर :
शेखर और रूपसिंह अलग-अलग घोड़ों पर सवार थे। महीप शेखर वाले घोड़े के साथ पैदल चल रहा था। पहाड़ तक रास्ता ठीक-ठाक था। धूप का उजला चँदोबा दरकने लगा था। धूप की सुनहरी पट्टियों के बीच छाया की स्याह पट्टियाँ किसी धारीदार जानवर की तरह लग रही थीं। चढ़ाइयाँ और ढलानें आ रही थीं। बीच-बीच में छोटे-छोटे घरौंदे, जैसे मशरुम सेंटर के कुकुरमुत्तों की फसल दूर तक छिटक गई हो। सामने पहाड़ों पर बादलों के पंख लग गए थे, जो झर-झर कर उनके अगल-बगल में उड़ रहे थे। नीचे घास, लताएँ और पेड़ों की कहीं फीकी, तो कहीं चटक हरियाली समेट पहाड़ कहीं कच्चे और पक्के थे। नीचे कोई नदी बह रही थी, शायद सूपिन नहीं थी। घाटी से किसी अदृश्य नारी-कंठ से गीत उमड़ता सुनाई दे रहा था जो पतले दर्दीले स्वर में था। दोनों यात्री पहाड़ के नीचे नदी के बगल के पथरीले रास्ते पर चले जा रहे थे। कोई घास काटने वाली पहाड़ी लड़की गा रही थी।

प्रश्न 30.
शेखर और रूपसिंह के बीच हुई प्रेम संबंधी बातचीत को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
शेखर के पूछने पर रूपसिंह बताता है कि मेरी शैला से भेड़ें चराने के दौरान ही मुलाकात हुई थी। वह बहुत सुंदर थी। में तो उसकी गुलामी करने में ही स्वयं को धन्य समझता था। वह खुद बैठकर स्वेटर बुना करती थी और मैं (रूप) उसकी भेडें हाँका करता था। मैं उसके लिए बुरूंस के फूल तोड़ लाता। उसे ये फूल बहुत पसंद थे। उन दिनों मुझे यदि कहीं से सेब या आड् मिल जाते थे तो मैं सबसे पहले उसी को लाकर देता था। बदले में वह मुझे कभी-कभी देवता का प्रसाद, मक्की की रोटी वगैरह देनी थी। बाद में मुझे पता चला कि वह स्वेटर भूप दादा के लिए बुना जा रहा था। जब शेखर ने मज़ाक में कहा-तेरी इस लव-स्टोरी में तो कोई दम नहीं, कोई और नहीं मिली क्या कभी? रूपसिंह बोला-“मिली क्यों नहीं; उस दौरान कइयों से वास्ता पड़ा, पर अब तो वे सब ब्याहकर अपने-अपने घर चली गई होंगी”‘

प्रश्न 31.
“कुहासे का होना क्या मायने रखता है, इन पहाड़ों में, इसे तो कोई पहाड़ी ही समझ सकता है।” ‘आरोहण’ में रूपसिंह के उक्त कथन को स्पष्ट करते हुए उसकी वेदना समझाइए।
उत्तर :
रूपसिंह और शेखर पहाड़ी रास्ते से चले जा रहे थे। तभी उन्हें घास गढ़ने वाली पहाड़ी लड़की के दर्द भरे गीत के स्वर सुनाई देते हैं। उस गीत का भाव था-ऐ कुहरे, ऊँची-नीची पहाड़ियों में तुम न लगो जाकर। इस भाव को समझाते हुए रूपसिंह की आवाज भर्रा जाती है। वह शेखर को पूछने पर बताता है-” यह एक दर्द की टेर है….आपने वो गीत सुना होगा- ” छुप गया कोई रे दूर से पुकार के।” शेखर गीत पूरा करता है-” दर्द अनोखे हाय दे गया प्यार के।”

यह कह-सुनकर रूपसिंह पुरानी यादों में खो जाता है। वह बड़े भाई भूपसिंह का साथ छोड़कर शहर चला गया। इस प्रकार से यह रिश्तों पर कुहासे (कोहरे) का होना है। इसमें रिश्ते धुँधला जाते हैं। प्रेम के नाते तक नजर नहीं आते। पास में खड़े व्यक्ति को पहचान तक नहीं पाते। इस दर्द को पहाड़ी व्यक्ति ही भली प्रकार समझ सकता है। रूपसिंह के मन की वेदना इस कथन में उभरकर सामने आती है। भूपसिंह और रूपसिंह के रिश्तों पर भी कुहासा छा जाता है।

12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers

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