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CBSE Class 12 Hindi Elective रचना समाचार लेखन / आलेख लेखन

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CBSE Class 12 Hindi Elective Rachana समाचार लेखन / आलेख लेखन

1. समाचार लेखन

प्रश्न 1.
समाचार क्या है?
उत्तर :
हम हर रोज समाचार पत्र पढ़ते हैं या टी.वी, रेडियो पर समाचार सुनते हैं। अब तो इंटरनेट पर भी समाचार पढ़ते-देखते हैं। इन विभिन्न संचार माध्यमों के जरिए दुनिया भर के समाचार हमारे घरों तक पहुँचते हैं। समाचार-संगठनों में काम करने वाले पत्रकार देश-विदेश में घटित होने वाली घटनाओं को समाचार के रूप में परिवर्तित करके हम तक पहुँचाते हैं। वे रोज सूचनाओं का संकलन करते हैं और उन्हें समाचार के प्रारूप में ढालकर प्रस्तुत करते हैं।
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं:

  • प्रेरक और उत्तेजित कर देने वाली हर सूचना समाचार होती है।
  • समय पर दी जाने वाली हर सूचना समाचार का रूप धारण कर लेती है।
  • किसी घटना की रिपोर्ट ही समाचार है।
  • समाचार जल्दी में लिखा गया इतिहास है।

समाचार को हम इन शब्दों में भी परिभाषित कर सकते हैं: “समाचार किसी भी ऐसी ताजा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट हैं, जिसमें अधिक से अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका अधिक से अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो।”

प्रश्न 2.
समाचार के तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
समाचार के तत्त्व निम्नलिखित हैं :

प्रश्न 3.
समाचार कैसे लिखा जाता है?
उत्तर :

  • पत्रकारीय लेखन का सबसे जाना-पहचाना रूप है-समाचार-लेखन।
  • आमतौर पर अखबारों में समाचार-लेखन का कार्य पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकार करते हैं। अब कुछ स्थानीय संवाददाता भी घटना का सचित्र विवरण अपने मोबाइल पर खींचकर समाचार पत्र कार्यालय को प्रेषित कर देते हैं।
  • अखबारों में प्रकाशित अधिकांश समाचार एक खास शैली में लिखे जाते हैं। इस शैली को ‘उल्टा पिरामिड शैली’ कहा जाता है।

प्रश्न 4.
उल्टा पिरामिड शैली में समाचार कैसे लिखा जाता है ?
उत्तर :
उल्टा पिरामिड शैली (इंवर्टेड पिरामिड स्टाइल) समाचार-लेखन की सबसे लोकप्रिय, उपयोगी और बुनियादी शैली है।
CBSE Class 12 Hindi Elective रचना समाचार लेखन आलेख लेखन 1

यह शैली कहानी या कथा-लेखन की शैली के ठीक उल्टी है। इसमें क्लाइमेक्स बिल्कुल आखिर में आता है। इसे उल्टा पिरामिड शैली इसीलिए कहा जाता है क्योंकि इससे सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना ‘यानी क्लाइमेक्स’ पिरामिड के सबसे निचले हिस्से में नहीं होती बल्कि इस शैली में पिरामिड को उल्टा दिया जाता है। उल्टा पिरामिड शैली में किसी भी घटना, समस्या या विचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे पहले पैराग्राफ में लिखा जाता है। इसके बाद उस पैराग्राफ में उससे कम महत्त्वपूर्ण सूचना या तथ्य की जानकारी दी जाती है। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक समाचार खत्म नहीं हो जाता।

प्रश्न 5.
समाचार-लेखन के छह ककार कौन-से हैं?
उत्तर :
किसी भी समाचार को लिखते हुए मुख्यतः छह सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है। इन्हें छह ककार कहा जाता है। ये छह ककार हैं :

CBSE Class 12 Hindi Elective रचना समाचार लेखन आलेख लेखन 2

क्या हुआ ?
किसके साथ हुआ ?
कहाँ हुआ ?
कब हुआ ?
कैसे हुआ ?
क्यों हुआ ?

किसी भी घटना, समस्या या विचार से संबंधित खबर लिखते समय इन छह ककारों को ही ध्यान में रखा जाता है।
समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ या शुरूआती 2-3 पंक्तियों में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैं-क्या, कौन, कब और कहाँ? इसके बाद समाचार की बॉडी और समापन में बाकी दो ककारों – कैसे, क्यों का जवाब दिया जाता है।
इस तरह छह ककारों के आधार पर समाचार तैयार होता है। इनमें पहले चार ककार (क्या, कौन, कब, कहाँ) सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं, जबकि बाकी दो ककार (कैसे, क्यों) में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है।

प्रश्न 5.
समाचार-लेखन के कुछ नमूने।
समाचार-लेखन के नमूने

CBSE Class 12 Hindi Elective रचना समाचार लेखन आलेख लेखन 3

2. आलेख लेखन

खेल
अर्थ-व्यापार
विज्ञान-प्रौद्योगिकी
विदेश
रक्षा
पर्यावरण
शिक्षा
स्वास्थ्य
फ़ल्म-मनोरंजन
अपराध
सामाजिक मुद्दे
कानून आदि।

प्रश्न :
आलेख क्या होता है ?
उत्तर :
आलेख एक प्रकार के लेख होते हैं, जो संपादकीय पृष्ठ पर ही प्रकाशित होते हैं। ये संपादकीय से हटकर होते हैं। इन लेखों की अनिवार्य शर्त यह होती है कि वे किसी समाचार अथवा घटना क्रम पर आधारित होते हैं। ये लेख किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो सकते हैं-राजनीति, विज्ञान, समाज, साहित्य, खेल, फैशन, फिल्म, व्यापार, पर्यटन आदि। इनमें सूचनाओं का होना अनिवार्य है। आजकल सभी अखबारों की यह कोशिश रहती है कि ऐसे लेख प्रकाशित किए जाएँ, जिनमें समाचारों और सूचना का अधिक से अधिक समावेश हो।

सी.बी.एस.ई. की विभिन्न परीक्षाओं में पूछे गए आलेख संबंधी प्रश्न

प्रश्न :
किसी एक विषय पर आलेख लिखिए।
1. गोदामों में सड़ता अनाज

आज गरीब लोग भुखमरी का शिकार होकर मर रहे हैं और सरकार दावा कर रही है कि हमारे गोदाम अनाज से भरे हुए हैं। यह कितनी हास्यास्पद स्थिति है। गोदामों में अनाज सड़ रहा है और सरकार उसे जरूरतमंदों में वितरित तक नहीं पा रही है। सड़े अनाज को सरकार फिकवा देगी, पर उसे भूखे गरीबों को मुप्त में नहीं देगी। यह कैसी विडंबना है। पिछले दिनों मध्य प्रदेश में किसानों से प्याज तो खरीदा गया, पर रख-रखाव के अभाव में वह वर्षा में सड़ गया और उसे फेंकना पड़ा। ऐसा प्रतीत होता है सरकार पर लालफीताशाही पूरी तरह से हावी है और सरकार मूकदर्शक बनकर बैठी हुई है। उसकी संवेदनहीनता आश्चर्य और दुःख का विषय है। यह तो गरीबों के साथ क्रूर मजाक हो रहा है। सरकार का गरीबों का हमदर्द होने का दावा कितना खोखला है, यह गोदामों में सड़ते अनाज से उजागर हो जाता है।

2. चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता

विभिन्न राजनैतिक दल चुनावों को लेकर तरह-तरह के प्रश्न उठाते रहते हैं। उनकी दृष्टि में चुनाव आयोग की निष्षक्षता भी संदेह के घेरे में है। चुनावों में प्रयुक्त इलेक्ट्रॉंनिक वोटिंग मशीन में प्रश्नचिह्द लगाए जाते हैं। अत: चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता का प्रश्न उठना पूरी तरह स्वाभाविक है। चुनाव व्यवस्था का पारदर्शी होना नितांत आवश्यक है। चुनाव व्यवस्था का पारदर्शी होना और दिखना दोनों बहुत जरूरी हैं। वैसे चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्था है और उस पर प्रत्यक्ष रूप से सरकार का कोई नियंग्रण नहीं है, फिर भी वह कुछ वर्षों से चर्चा का विषय बनी हुई है। चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता लाकर ही आयोग की विश्वसनीयता स्थापित हो सकेगी। लोकतंत्र की सफलता में चुनावों का पारदर्शी होना बहुत आवश्यक है। चुनाव आयोग को अधिक सख्ती के साथ नियमों का क्रियान्वयन करके अपनी पारदिर्शता सिद्ध करनी होगी। इस बात पर सभी सहमत हैं कि चुनाव व्यवस्था पारदर्शी होनी चाहिए।

3. अँधेरे में डूबता गाँव

इक्कीसवी सदी में भी यह कल्पना करना कि कोई गाँव अभी तक अँधरे में डूबा रहता है। विज्ञान की उन्नति अपने चरम पर है और गाँव अँधेरे में डूबा हुआ है। अभी तक अनेक ऐसे गाँव हैं जहाँ तक बिजली की रोशनी नहीं पहुँच पाई है। आदिवासी क्षेत्रों में ऐसे अनेक गाँव हैं जो अभी तक रात के समय अँधरे में डूबे रहते हैं। आजादी को आए 72 वर्ष बीत गए, पर इन गाँवों में अभी तक बिजली की रोशनी नहीं पहुँच पाई है। यह स्थिति अत्यंत चिताजनक है। सरकार दावा कर रही है कि उसने हजारों गाँवों तक बिजली पहुँचा दी है, पर घरों तक बिजली अभी भी नहीं पहुँच पाई है। यदि एक गाँव भी अभी अँधेरे में डूबा रहता है तो यह देश की तरक्की पर प्रश्नचिह्न लगाने के लिए पर्याप्त है। अँधेरा गाँव की प्रगति में बाधक है। बिजली के अभाव में कृषि कार्य भी कुशलतापूर्वक सम्पन्न नहीं हो पाता है। सरकार को ऐसी ठोस योजना बनानी और क्रियान्वित करनी होगी कि कोई गाँव अँधेरे में डूबा न रहे। तभी सच्चे अर्थों में विकास की कहानी सार्थक मानी जाएगी।

4. भारतीय कृषक की असहायता

यद्यपि भारत एक कृषि प्रधान देश है, पर भारत के कृषक भारी असहायता का दंश झेल रहे हैं। उनकी सहायता करने वाला कोई नहीं है। सभी दल स्वयं को किसानों का हमदर्द बताने में पीछे नहीं रहते, पर उनकी दशा सुधारने वाला कोई नहीं है। वैसे किसान को अन्नदाता कहकर उसके गुणगान किए जाते हैं, पर उन्हें असहाय अवस्था में छोड़ दिया जाता है। पिछले वर्षो में हजारों किसानों ने आत्महत्या कर अपनी असहाय स्थिति को दर्शा दिया है। किसान भारी कर्जे के बोझ तले दबे रहते हैं। हाँ, चुनावों के समय उनसे लंबे-चौड़े वादे अवश्य किए जाते हैं, पर चुनाव जीते के बाद उन्हें पूरी तरह से भुला दिया जाता है। किसानों की असहायता का एक बड़ा नमूना यही है कि उन्हें औने-पौने दामों पर अपनी फसल बेचने को विवश होना पड़ता है। न उनके खेतों की सिंचाई की उचित व्यवस्था है और न खाद-बीज का संतोषजनक प्रबंध है। वह कठिन परिश्रम करके भी मोहताज बना हुआ है। सरकार को यह समझना होगा कि किसानों की दशा सुधारे बिना देश की कभी तरक्की नहीं होगी। उन्हें असहाय नहीं बने रहने देना है। हमें उन्हें समर्थ बनाना होगा।

5. रोजगार के बढ़ते अवसर

भारत की एक प्रमुख समस्या है-बेरोजगारी। इस समस्या ने युवा वर्ग को दिशाहीन बना दिया है। अब सरकार का ध्यान इस समस्या के समाधान की ओर गया है। यद्यपि उसने प्रति वर्ष 2 करोड़ युवक-युवतियों को रोजगार दिलाने का वादा किया था, यह वादा तो पूरा होता नहीं दिख रहा, पर इस दिशा में प्रयास अवश्य जारी हैं। रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। रोजगार से तात्पर्य केवल नौकरी पा जाने से नहीं लिया जाना चाहिए, बल्कि आय के साधन उपलब्ध कराए जाने से लिया जाना चाहिए। सरकार बेरोजगार युवक-युवतियों को बैंकों से बहुत कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध करा रही है ताकि वे अपना कोई काम-धंधा शुरू कर सकें। इससे वे स्वयं तो कमाएँगे ही, साथ अन्य लोगों को भी रोजगार दे सकते हैं। ऐसा होता दिखाई भी दे रहा है। लाखों युवक-युवतियों ने बैंक से ऋण लेकर अपना छोटा-मोटा उद्योग स्थापित किया है और इसके माध्यम से अन्य बेरोजगारों को रोजगार दिया है। स्कूल-कॉलेजों में तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती दिखाई दे रही है। अब कम शिक्षित युवक-युवतियों को कौशल विकास (Skill Development) के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराए जा रहे हैं। आशा की जा सकती है कि शीघ्र ही स्थिति में गुणात्मक सुधार होगा।

6. भारी बस्तों के बोझ से दबता बचपन

हमारे स्कूल के बच्चे भारी बस्ते के बोझ तले दबकर अपना बचपन खोते जा रहे हैं। विशेषकर पब्लिक स्कूल छोटे-छोटे बच्चों के बस्तों में इतनी अधिक किताबों का बोझ लाद देते हैं कि वह बस्ता उनसे उठाया तक नहीं जाता। यहाँ तक कि नर्सरी, के.जी. और पहली कक्षा के बच्चों को अपने वजन के बराबर का बस्ता अपनी पीठ पर लादकर स्कूल ले जाना पड़ता है। स्कूल प्रबंधन अपने कमीशन के चक्कर में अधिक से अधिक किताबें कोर्स में लगा देता है और उनके लालच का दुष्परिणाम छोटे बच्चों को भोगना पड़ता है। यद्यपि सी.बी.एस.ई. ने इस बोझ को घटाने के निर्देश अनेक बार दिए हैं, पर स्कूल हैं कि मानते नहीं। पिछले दिनों एक कमेटी ने कक्षावार बस्ते के भार की एक सूची भी जारी की थी। छोटी कक्षा के बस्ते का भार 2.5 किलो से अधिक नहीं होना चाहिए। बच्चों को टाइम टेबल के अनुसार ही किताबें और कापियाँ लेकर स्कूल जाना चाहिए। बच्चों पर अनावश्यक किताब-कापियों का बोझ लाद दिया जाता है। इससे उनका बचपन गायब होता जा रहा है। न बच्चों को खेलने का समय मिल पाता है और न मौज-मस्ती करने का। इस अनावश्यक बोझ से उन्हें मुक्ति दिलाई जानी चाहिए।

7. प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग और उसके दुष्परिणाम

देश में प्लास्टिक का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। आज बाजार में अनेक वस्तुएँ प्लास्टिक से बनी बिक रही हैं। पहले जिन वस्तुओं में धातुओं का उपयोग होता था, अब वे प्लास्टिक से बन रही हैं। यहाँ तक कि पानी की पाइपें भी प्लास्टिक की आ रही हैं और दावा किया जा रहा है कि ये धातु से अधिक मजबूत और जंगरोधी हैं। घरों की रसोई में भी प्लास्टिक से बनी चीजों की भरमार हो रही है। अव तो पीने वाली अधिकांश दवाइयाँ भी प्लास्टिक की बोतलों में आ रही हैं। शीतल पेय की तो अधिकांश बोतलें प्लास्टिक से ही बनी होती हैं। तर्क दिया जाता है कि ये हल्की एवं टिकाऊ हैं। प्लास्टिक के फर्नीचर का प्रचलन भी निरतर बढ़ता चला जा रहा है। अधिकांश चीजों की पैकिंग भी प्लस्टिक से ही की जा रही है।

जहाँ प्लास्टिक इतना बहुउपयोगी है, वहीं इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। प्लास्टिक में रखी चीजें स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक मानी जाती हैं। प्लास्टिक का पतला रूप पॉलीथीन है। इसकी बनी थैलियाँ सामान लाने-ले जाने के लिए प्रयुक्त होती हैं। इन थैलियों को उपयोग के बाद कूड़े या सड़क पर फेंक दिया जाता है। इन्हें पशु, विशेषकर गाएँ खाद्य पदार्थों के साथ निगल जाती हैं। ये थैलियाँ उनके पेट में चली जाती हैं। प्लास्टिक के प्रयोग से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। प्लास्टिक और पॉलिथीन कभी पूरी तरह से नष्ट नहीं होती। सरकार ने इसके प्रयोग पर प्रतिबंध तो लगाया है, पर अभी भी इसका प्रयोग चल रहा है। हमें इसका उपयोग तत्काल प्रभाव से बंद करना ही होगा।

8. कहाँ नहीं है भ्रष्टाचार !

‘कहाँ नहीं है भ्रष्टाचार !’ शीर्षक यह बताने के लिए काफी है कि देश में ऐसा कोई कोना नहीं बचा है जहाँ भ्रष्टाचार देवता उस क्षेत्र की कुर्सी पर आसीन न हो। चाहे राजनीति का क्षेत्र हो, चाहे धर्म का; चाहे आर्थिक क्षेत्र हो और चाहे साहित्य का; चाहे संस्कृति का क्षेत्र हो और चाहे कला का और चाहे पुलिस का क्षेत्र हो या खाद्य का। मतलब यह है कि इंसान के जर्रे-जर्र में भ्रष्टाचार ने अपनी जड़े जमा ली हैं। यों अगर कोई भ्रष्टाचार को परिभाषित करना चाहे तो कर सकता है कि जब मर्यादा से बाहर रहकर काम किया जाने लगता है तो वह भ्रष्टाचार की सीमा में आ जाता है।

आप छोटा-सा काम करवाने के लिए किसी सरकारी दप्तर जाइए। सरकारी कर्मचारी आपका काम टालने की नई युक्तियाँ गढ़ता नज़र आएगा। अब आप जरा उस पर सुविधा शुल्क का राम-बाण छोड़ेंगे, आपका काम मिनटों में छोड़िए, सेकेण्डों में हो जाएगा। अगर आप शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं तो शिक्षक महोदय धन या यौन भावना से छात्र-छात्रा का शोषण का रास्ता निकाल लेगा। कक्षा में ज्यादा नंबर देने, या बोर्ड़ की परीक्षा में पास कराने जैसे सब्ज दिखाकर भ्रष्टाचार-व्याभिचार कर बैठेगा। यानी भ्रष्ट आचरण का परिचय देगा। आर्थिक क्षेत्र में खाद्य पदार्थों की मिलावट में भ्रष्टाचार मिल जाएगा।

मिर्च का पाउडर ले रहे हों या दूध और दूध से बनी मिठाइयाँ, मिलावट भ्रष्टाचार के रूप में साथ लगी मिलेगी। कला के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए धन और यौवन का उपयोग हो रहा है। पुलिस के महकमे की भी यही बात है। आपका थाने में काम पड़ जाए। एक अदद रिपोर्ट के लिए आपको अपनी जेब ढीली करनी पड़ जाती है। एक साधारण सिपाही जिसकी तनख्वाह का साधारण आदमी भी अंदाज लगा सकता है कैसे कुछ सालों में अकूत संपत्ति जोड़ लेता है इसकी जाँच की कभी किसी सरकार को जरूरत नहीं पड़ी। जब व्यक्ति अपनी महत्वाकांक्षा बढ़ा लेता है, तब भ्रष्टाचार का आश्रय लेकर उन्हें पूरा करता है। धार्मिक क्षेत्र में यंत्र, मंत्र और तंत्र के बल पर कथित धार्मिक नेता लोगों को बहकाकर उनसे धन ऐंठते हैं और महिलाओं से दुराचार करते हैं। राजनीति में आगे बढ़ने के लिए प्रायः ये सब चीजें इस्तेमाल करते हैं। आए दिन नेता भ्रष्टाचार-व्याभिचार में फँसते नज़र आते हैं। यह कहिए कि ‘जहाँ जहाँ पाँव पड़े भ्रष्टाचारिन के तहाँ तहाँ बंटाधार।’

9. चुन लिए जाने पर अपने चुनाव क्षेत्र की अनदेखी करने की प्रवृत्ति

भारतीय राजनीति अब देशहित से ज्यादा स्वार्थहित पर निर्भर हो गई है। चुनाव आते हैं, चुनाव में उम्मीदवार जनता के पास वोट माँगने आते हैं। उनके हित का तरह-तरह से ख़्याल रखने के आश्वासन देते हैं। इन आश्वासनों के बल पर जनता भी उन्हें चुनाव में जीत दर्ज करा देती है। चुनकर संसद, विधान सभाओं में आसीन हो जाते हैं। चुनावों में किए वादे याद रखकर भी भूल जाते हैं। जनता उनसे उम्मीद लगाए बैठे रहती है, कथित नेता उनके आश्वासन तो क्या दूर करेंगे, अपने निर्वाचन क्षेत्र में ही नहीं आते। यह प्रवृत्ति आज छोटे-बड़े सभी नेताओं की हो गई है।

चुनाव जीतकर उन्हें जनहित नहीं स्वहित दिखाई देता है। दो करोड़ रुपए चुनाव में खर्च करते हैं, और पाँच साल के भीतर बीस करोड़ अर्जित कर लेते हैं। ऐसा इसलिए है कि इन नेताओं के लिए चुनाव व्यवसाय बन गया है। यह देशहित नहीं रह गया है। राजनेता चुनाव जीतने के लिए हर हथकंडा अपनाते हैं। जब 2014 के चुनाव हुए तब उसमें करोड़ों रुपए नकद पकड़े गए, कई लीटर नशीले पदार्थ पकड़े गए। हज़ारों लीटर शराब पकड़ी गई। इन सबका उपयोग चुनाव में मतदाताओंसे वोट पाने के लिए ही तो करना था। निर्वाचन आयोग ने कुछ स्वार्थी नेताओं की यह चाल कामयाब न होने दी। जीते तो अधिकांश नेताओं को जनता ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में कभी नहीं देखा। जो नेता अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जनता की तकलीफों को न आकर सुनें, उनकी परेशानियों का हल न करें, उनकी संसद व विधान सभा से सदस्यता रद्द की जानी चाहिए। जब इस तरह का कानून बन जाएगा तब ये नेता स्वार्थहित के साथ-साथ जनहित की बात सोचेंगे।

10. मौसम की मार झेल रहे किसान

भारतवर्ष कृषि प्रधान देश है। इसकी 70 प्रतिशत आबादी गाँवों में निवास करती है। इनका व्यवसाय खेती है। भारतीय किसान का जीवन परिश्रम तथा त्याग की कहानी है। ये कठिन परिश्रम करके खेतों में अन्न उत्पन्न करते हैं। किसान का अन्न नगर एवं विदेशों तक पहुँचता है। इसी कारण से उसे अन्नदाता कहा जाता है। सूर्य की किरणों के निकलने से पूर्व ही किसान एक सजग प्रहरी की भाँति जाग उठता है। ये खेत को अपनी कर्म भूमि मानते हैं। किसानों को फसल की सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर होना पड़ता है क्योंकि अभी भी सारे गाँवों में सिंचाई के साधनों की व्यवस्था नहीं है।

कभी-कभी तो किसान अपने खेतों में कोई भी फसल उगा नहीं पाते। पर्यावरण असंतुलन से फसल बर्बाद हो जाती है। प्राकृतिक आपदाओं जैसे, बाढ़ एवं सूखा के कारण इनकी फसल बर्बाद हो जाती है। फसल बर्बाद होने के कारण किसान ऋण के बोझ में दब जाते हैं। बढ़ती महँगाई के कारण उनका जीवन कष्टमय ही बीतता है। आज भी 50 प्रतिशत किसान गरीब हैं। उनको दोनों समय खाने के लिए भरपेट भोजन नहीं है। टूटे-फूटे भकान एवं झोंपड़ी में रहते हैं। किसानों को फसल का उचित दाम नहीं मिलता है। अपने खुशहाल जीवन के लिए वे हर समय संघर्ष करते रहते हैं। सरकार का ध्यान किसानों पर ‘कागजी घोड़ा दौड़ाना’ के आधार पर है। किसान को समुचित बीज, खाद की पूर्ति नहीं हो पाती है। इनकी स्तिति में सुधार के लिए शिक्षा का प्रसार एवं सस्ती दर पर ऋण उपलब्ध कराना अति आवश्यक है।

11. बंधुआ मजदूर की समस्या

बंधुआ मजदूर वे होते हैं जिन्हें कोई व्यक्ति (प्रायः शक्तिप्राप्त) अपना काम करने के लिए विवश किए रहता है। इन व्यक्तियों का अपना स्वतंत्र जीवन नहीं होता। इन मजदूरों ने अपने मालिक से थोड़ा-बहुत कर्ज लिया होता है और मालिक इन्हें बंधुआ मजदूर बना लेता है और इनसे मनचाहा काम करवाता है। कई बार तो किसी व्यक्ति की कई पीढ़ियाँ बंधुआ मजदूरी करते-करते बीत जाती हैं। इन मजदूरों के सिर पर चढ़ा कर्ज कभी खत्म होने का नाम नहीं लेता।मजदूर की मजदूरी तो इस कर्ज के सूद में ही चली जाती है। यह कर्ज लाइलाज बीमारी की तरह बढ़ता चला जाता है। ये बंधुआ मजदूर खेतों पर, ईंटों के भट्ठों पर कल-कारखानों में काम करते हुए मिल जाते हैं। यद्यपि अनेक स्थानों से इन बंधुओं मजदूरों को मुक्त कराया गया है, पर मुक्त कराना ही पर्याप्त नहीं है. इनका पुनर्वास कराना आवश्यक है। बंधुआ मजदूरों का जीवन नारकीय हो जाता है। उनका किसी भी प्रकार का विकास नहीं होता है। स्वामी अग्नवेश आदि लोग बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराने की दिशा में सक्रिय हैं। उनके प्रयास सफल भी हो रहे हैं। पर अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है।

12. हम और हमारा पर्यावरण

बहुत-से विज्ञानियों का मानना है कि द्वितीय विश्व युद्ध से पहले वायु शुद्ध थी। इस युद्ध के बाद पर्यावरण प्रदूषित होने लगा। लेकिन सच्चाई यह है कि पर्यावरण दूषित होना द्वितीय युद्ध से पहले ही आरम्भ हो गया था। यह कभी से होना शुरू हुआ हो पर इसके लिए साफ तौर पर ‘हम’ ही जिम्मेदार हैं। लकड़ी, कोयला जलाने के प्रचलन से प्रदूषण दूषित होना शुरू हुआ। इससे बचने के लिए चिमनी का आविष्कार हुआ। बाद में पता चला कि सल्फर डाइ-ऑक्साइड गैस पर्यावरण प्रदूषित कर रही है। अब तो पूरे देश खासतौर पर नगरों व महानगरों का पर्यावरण दूषित हो रहा है।

वायु प्रदूषण का प्रभाव लंबे समय तक रहता है। इससे अस्थमा, एम्फीसीमा, इसोफेगस जैसे रोग हो रहे हैं। इस वातावरण में हर जीव प्रभावित हो रहा है। पर्यावरण का प्रभाव वनस्पति, पेड़-पौधे पर पड़ रहा है। इस कारण पौधे सूखने और मुरझाने लगते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड के कारण बर्फ कम पड़ रही है। गर्मी की मात्रा बढ़ गई है। वायु शुद्ध रखने से पर्यावरण शुद्ध हो सकता है। शरीर में साँस न जाए तो व्यक्ति कुछ पल जीवित रह सकता हैं, शरीर में जल न जाए तो लोग दस-बीस या तीस दिन भी जिंदा रह सकते हैं।

वस्तुतः शरीर में वसा पिघलकर भोजन की आपूर्ति करता है। औद्योगिक क्रान्ति ने जल प्रदूषित कर दिया है। छोटे-बड़े कुटीर उद्योगों ने जल पीने लायक नहीं छोड़ा है। इस कारण व्यक्ति नाना बीमारियों से ग्रसित हैं। जल प्रदूषित न हो. इसके लिए बड़े पैमाने पर काम किया जा रहा है और भी जरूरत है। अंधाधुंध औद्योगिकीकरण पर नियंत्रण से जल प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। पर्यावरण को दूषित करने वाला ध्वनि प्रदूषण है। यह हमें असमय बहरा बना रहा है। कानफोड़ गाड़ियों पर नियंत्रण कर ध्वनि प्रदूषण से बचा जा सकता है।

इसके अतिरिक्त असमय और गैरजरूरी लाउडस्पीकर बजाने पर नियंत्रण से यह समस्या सुलझाई जा सकती है। ध्वनि प्रदूषण का सबसे बड़ा नुकसान दिल और दिमाग पर होता है। लगातार शोर सुनने से श्रवण शक्ति निर्बल होती है और हृदयाघात के खतरे बढ़ते हैं। ईंधन से प्राप्त ऊर्जा हमारे जीवन का आधार है। इसके लिए सघन वन काटे जा रहे हैं। यह काम पर्यावरण बिगाड़ रहा है। अगर पेड़ काटे जा रहे हैं तो उतनी तेजी से लगाए भी जाने चाहिए। अधिक वन वर्षा करते हैं और पर्यावरण शुद्ध रखने में सहायक हैं। अगर हम स्वस्थ रहना चाहते हैं तो पर्यावरण प्रदूषित होने से बचाना होगा। अगर इस और तेजी से कदम नहीं उठाया गया तो ऐसा दिन आ सकता है जब व्यक्ति व्यक्ति के लिए तरसेगा।

13. अजेंडे पर आए किसान

हाल में देश भर में हुए किसान आंदोलनों ने आखिरकार खेती को सरकार के अजेंडे पर ला दिया है। पिछले कुछ समय से केन्द्र सरकार किसानों को राहत देने के उपायों पर चर्चा कर रही हैं नीति आयोग ने इस संबंध में नए सुझाव पेश किए हैं, जिनका मकसद किसानों की आय बढ़ाना है। आयोग का कहना है कि न्यूनतम समर्धन मूल्य (एमएसपी) से किसानों की समस्या पूरी तरह नहीं सुलझने वाली। लिहाजा कृषि लागत-मूल्य आयोग की जगह उसने एक न्यायाधिकरण की स्थापना करने और मंडियों में बोली लगाकर कृषि उपज की खरीदारी की व्यवस्था बनाने की सिफारिश की है। उसके ये सुझाव वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा जारी ‘नये भारत @ 75 के लिए रणनीति’ दस्तावेज में दर्ज हैं।

नीति आयोग ने कहा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की जगह न्यूनतम आरक्षित मूल्य (एमआरपी) तय किया जाना चाहिए, जहां से बोली की शुरुआत हो। इससे किसानों को अपनी उपज की एमएसपी से ज्यादा कीमज मिल सकेगी। एमआरपी तय करने के लिए उसने एक समूह के गठन की अनुशंसा की है। नीति आयोग का विचार है कि वायदा कारोबार को प्रोत्साहित किया जाए और बाजार को विस्तार देने के लिए उसमें प्रवेश से जुड़ी बाधाएँ हटाई जाएँ। नीति आयोग अनुबंध खेती को बढ़ावा देने के पक्ष में है। उसका सुझाव है कि सरकार को अगले पाँच से दस वर्षों को ध्यान में रखकर कृषि निर्यात नीति बनानी चाहिए, जिसकी मध्यावधि समीक्षा का भी प्रावधान हो। दस्तावेज में सिंचाई सुविधाओं. विपणन सुधार, कटाई बाद फसल प्रबंधन और बेहतर फसल बीमा उतपादों आदि में सुधार के माध्यम से कृषि क्षेत्र का आधुनिकीकरण करने जैसे सुझाव भी हैं। निश्चय ही ये प्रस्ताव बेहद अहम हैं। कृषि उपजों की बिडिंग जैसे उपाय को लागू करने पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।

14. अब लड़कियाँ माँगेंगी मोटा दहेज

अब दहेज चक्र उल्टा चलने वाला है। इसका कारण है लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या का कम होना। आबादी में लैंगिक असंतुलन से सामाजिक रिश्तों में बदलाव आ रहा है। भारत में एक हजार पुरुषों पर सिर्फ 943 स्त्रियाँ हैं। भारत में 0 से 6 वर्ष की आयु के प्रति एक हजार लड़कों पर सिर्फ 919 लड़कियाँ जीवित रहती हैं। भारत में 3 करोड़ 70 लाख व्यक्ति बिना जोड़े के रहने को अभिशप्त हैं। जब इन कुँआरे युवाओं को स्त्री-संसर्ग की इच्छा होगी, तब इन्हें स्त्री नहीं मिलेगी। तब इसकी परिणति मानव-तस्करी, बलात्कार, यौन-शोषण और स्त्री उत्पीड़न में होगी।

भारत में अभी वर पक्ष की ओर से वधू पक्ष को दहेज देने की प्रथा शुरू नहीं हुई है, लेकिन शादी के लिए लड़कियों को खरीदने की खबरें जरूर आने लगी हैं। अब लड़कियाँ हर पुरुष को वर के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं और न ही उनके माता-पिता उन्हें किसी के पल्ले बाँधने को विवश हैं। वे उसके लिए विकल्प देखते हैं कि कौन ज्यादा पढ़ा-लिखा है, कौन बेहतर कमाता है, लैंगिक असंतुलन का असर विवाह पर भी पड़ना निश्चित है। अब वह दिन दूर नहीं जब लड़कियाँ अपने विवाह के लिए लड़कों से दहेज की माँग करेंगी।

15. स्वच्छ भारत-अभियान में नवयुवकों का योगदान

भारत के प्रधानमंत्री की एक महत्व्वाकांक्षी योजना है-‘स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत’। इस योजना को लागू करने का मुख्य उद्देश्य विश्व में भारत को सुधारना तो है ही, साथ ही भारत के लोगों में स्वच्छता के प्रति चेतना का प्रसार करना है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी भारत को स्वच्छ बनाना बहुत आवश्यक है। गत 3-4 वर्ष से सरकार ने स्वच्छता अभियान जोर-शोर से चला रखा है। इसी अभियान के अंन्तर्गत गाँवों के घरों में लाखों शौचालयों का निर्माण किया गया है।

स्वच्छता अभियान के साथ नवयुवकों को जोड़ा गया है। युवा वर्ग इसमें काफी योगदान कर रहा है। सरकार ने युवा कलाकारों, खिलाड़ियों और समाज-सेवकों को स्वच्छता की जिम्मेदारी सौपी है। अनेक युवक इस काम के लिए आगे आए भी हैं। गत वर्षों में इसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं। नवयुवक इस काम में बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं। अभी उन्हें इस काम में अधिक सक्रिय होने की आवश्यकता है। इस काम में शर्म आने जैसी कोई बात नहीं। स्वयं प्रधानमंत्री सफाई करते दिखाई देते हैं। भारत को स्वस्थ बनाने के लिए स्वच्छता पर ध्यान देना ही होगा। नवयुवकों में असीम शक्ति होती है। वे मन में जो कुछ ठान लें, उसं पूरा करके ही रहते हैं। इस दिशा में भी उनकी सक्रियता काफी कुछ कर सकती है।

6. सैकड़ों यात्री किसी प्लेटफार्म पर रेलगाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे। अचानक उद्घोषणा में बताया गया कि वह गाड़ी किसी अन्य प्लेटफार्म पर आ रही है। उसके बाद के घटनाक्रम का चित्रण करते हुए एक आलेख लगभग 150 शब्दों में लिखिए।

मैं सोमवार की सुबह ठीक 5:30 बजे प्रातः नई दिल्ली स्टेशन पर प्लेटफार्म नं. । पर भोपाल शताब्दी का इंतजार कर रहा था। मैं अपने कोंच के निकट तीन बड़े बैग लेकर खड़ा था। कभी इधर देखा तो कभी उधर फिर घड़ी की तरफ देखकर प्रतीक्षा की सांस लेता। समय धीरे-धीरे आगे चला। लोगों की भीड़ भी बढ़ी। साथ ही सामानों का बोझ भी देखने को मिला। मैं तथा अन्य यात्री भी अब्ब बेसब्री से प्लेटफार्म की तरफ देख रहे थे कि अचानक एक आवाज कानों में सुनाई पड़ी।

भोपाल शताब्दी जो ठीक 6:00 बजे प्लेटफार्म नं. 1 पर आने वाली गाड़ी प्लेटफार्म न. 3 पर पहुँच रही है। सभी यात्रियों का हाल देखने वाला था कि कौन पहले पहुँचे, कहीं गाड़ी निकल न जाए। सीढ़ी पर भीड़-आपस में आगे निकलने की दौड़, फिर घबराने वालीं स्थिति मुझे तथा अन्य लोगों को विचलित कर रही थी। ऐसी स्थिति में लोग अपना संयम खत्म कर देते हैं उन्हें प्रथम स्थान पर गाड़ी को पकड़ना होता है। ऐसी स्थिति में कई बैग रह जाते हैं कई यात्री गिर भी पड़ते हैं। कई कमजोर दिल वालों की साँसे फूलने लगती है। अगर कोई यात्री पहली बार यात्रा कर रहा है तो बस उसका बुरा हाल होता है क्योंकि पहली कोई भी परीक्षा सबक का सबसे बड़ा उदाहरण होता है। लेकिन सच तो यह है कि अगर मन में स्थिरता व धर्यपूर्वक कार्य करने की क्षमता है तो ऐसी स्थिति संयम का श्रेष्ठ उदाहरण होता है।

12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers

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