Class 6 Sanskrit Chapter 13 Notes Summary सङ्ख्यागणना ननु सरला
सङ्ख्यागणना ननु सरला Class 6 Summary
प्रस्तुत पाठ में छात्रों को संस्कृत संख्या का ज्ञान अति सरल विधि से सिखाया गया है। जैसे एक सूर्य, एक चंद्रमा, एक ही मानवकुल, सम्पूर्ण प्राणियों के दो नेत्र । प्रतिदिन स्मरणीय शंकर त्रिनयन हैं। संसार के सृष्टा ब्रह्मा चतुर्मुखी हैं। हाथ में पाँच अंगुलियाँ होती हैं और छः मुख वाले देवताओं के सेनापति कार्तिकेय हैं। । सप्ताह में सात दिन, साल लोक और सात ऋषि
विख्यात हैं। उपकारशीला और शक्तिशाली दिग्गज आठ धरती को धारण किए हैं। विशाल आकाश में नौ ग्रह निरंतर नियमित रूप से विचरण करते हैं। दस दिशाएँ प्रसिद्ध हैं। इस प्रकार भारतीय संस्कृति का ज्ञान से संबंध स्थापित कर संस्कृत संख्या का ज्ञान सहजता से विद्यार्थियों को स्मरण रहता है।
सङ्ख्यागणना ननु सरला Class 6 Notes
मूलपाठः, शब्दार्थाः, सरलार्थाः, अन्वयाः, अभ्यासकार्यम् च
(क)
शब्दार्था:-
कक्षायां – कक्षा में ।
भवन्तः – आपकी ।
कति – कितने ।
सन्ति – हैं।
सरलार्थ:- छात्रों! यहाँ आपकी कक्षा में कितने जन हैं?
सुमित, विश्वनाथ, वीणा, उदिता, कमला, प्रीति, निरुपमा, प्रशान्त, देवेश और मैं हूँ।
(ख)
शब्दार्था:-
तर्हि – तो ।
गणयतु – गिनो।
भवन्तः- आप।
गणनां – गिनती ।
जानन्ति – जानते हो ।
अधुना – अब
संख्यागणनां – संख्या की गिनती ।
अनुगायन्तु – पीछे गाएँ।
सरलार्थ:- तो कितने छात्र हैं? गिनो।
– एक, एक, एक, एक एक एक ।
– अहो! आप संस्कृत से गिनती नहीं जानते हो । ठीक है, अब संख्या की गिनती पढ़ते हैं। मैं एक सुंदर संख्यागीत गाता हूँ। आप पीछे गाएँ ।
(ग)
एक: सूर्य: चन्द्रोऽप्येकः
मानवकुलमप्येकम्।
द्वे नयने ननु जीविनि सकले
प्रभवति सर्वो द्रष्टुम्।।
अन्वयः – एकः सूर्यः चन्द्रः अपि एक:, मानवकुलम् अपि एकम् । ननु सकले जीविनि द्वे नयने सर्वो द्रष्टुम् प्रभवति ।
शब्दार्था:-
चन्द्रोऽप्येकः – (चन्द्रः + अपि + एक चन्द्र भी, एक ।
मानवकुलमप्येकम्- (मानवकुलम् + अपि+ एकम्) मानवकुल भी एक ।
द्वे नयने – दो नेत्र ।
ननु – निश्चय ही ।
सकले सम्पूर्ण ।
जीविनि – प्राणियों में ।
सर्वो – सब
सरलार्थ:- एक सूर्य, चन्द्रमा भी एक मानव कुल भी एक । निश्चय ही सम्पूर्ण प्राणियों में दो नयन (नेत्र) सब देख सकते हैं।
(घ)
लोकशङ्करस्त्रिनयनमूर्ति:
नमाम्यहं तं प्रतिदिवसम् ।
चतुर्मुखोऽयं जगतः स्रष्टा
तेन हि सृष्टं जीवकुलम् ॥
अन्वयः – लोकशङ्करः त्रिनयनमूर्तिः, अहम् तं प्रतिदिवसम् नमामि। अयं चतुर्मुखः जगतः स्त्रष्टा, हि तेन जीवकुलं सृष्टम्।
शब्दार्था:-
त्रिनयनमूर्तिः – तीन नेत्रों वाली मूर्ति ।
नमाम्यहं – (नमामि + अहम् ) मैं
नमस्कार करता हूँ।
जगतः – संसार के ।
स्रष्टा – सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा।
सृष्टम् – रचा गया।
चतुर्मुखोऽयं – (चतुर्मुखः + अयं) चार मुख वाले।
सरलार्थ:- तीन नेत्रों वाली मूर्ति वाले भगवान् शंकर, मैं उनको प्रतिदिन नमस्कार करता हूँ। यह चार मुख वाले संसार के सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा, निश्चय ही जिनके द्वारा जीवकुल (प्राणी समुदाय) रचा गया।
(ङ)
पञ्चाङ्गुलयो मम करकमले
लोको विदधति गणनाम्।
सुरसेनानीः षण्मुखदेवः
सततं पात्ययममरगणम् ॥
अन्वयः – मम करकमले पञ्च अंगुलयो लोको गणनाम् विदधति। सुरसेनानी अयम् षण्मुखदेवः अमरगणम् सततम् पाति ।
शब्दार्था:-
करकमले – कमल जैसे हाथ में ।
पञ्चाङ्गुलयो – (पञ्च + अङ्गुलयो) पाँच अंगुलियाँ |
विदधति – करते हैं।
सुरसेनानी :- देवताओं के सेनापति अर्थात् कार्तिकेय ।
सततं – निरन्तर ।
पाति- रक्षा करते हैं।
सरलार्थ:-
मेरे कमल जैसे हाथ में पाँच अंगुलियाँ, संसार गिनती करता है। देवताओं के सेनापति यह छः मुख वाले देव कार्तिकेय देवों की निरन्तर रक्षा करते हैं।
(च)
सप्त वासराः सप्ताहे ननु
स्वरा: सुमधुराः सप्त ।
ऊर्ध्वमधस्तात् लोकाः सप्त
ख्याता ऋषयः सप्त ।।
अन्वयः – ननु सप्ताहे सप्त वासराः, सप्त सुमधुराः स्वराः ऊर्ध्वम् अधस्तात् सप्त लोकाः सप्त ऋषयः ख्याता ।
शब्दार्था:- सप्त-सात ।
वासरा:-दिन ।
सप्ताहे – सप्ताह में ।
ऊर्ध्वम् – ऊपर
अधस्तात् – नीचे।
लोकाः – लोक |
ख्याता – प्रसिद्ध हैं।
ऋषयः – ऋषि ।
सरलार्थ:- निश्चय ही सप्ताह में सात दिन, सुमधुर सात स्वर, ऊपर और नीचे सात लोक, सात ऋषि प्रसिद्ध हैं।
(छ)
अष्ट दिग्गजा धरन्ति धरणीम्
उपकृतिशीला अतुलबलाः ।
नव ग्रहा ननु विपुले गगने ।
चरन्ति सततं नियततया । ।
अन्वयः – उपकृतिशीला: अतुलबला : अष्ट दिग्गजा: धरणीम् धरन्ति । ननु विपुले गगने नव ग्रहाः नियततया सततं चरन्ति ।
शब्दार्था:-
अष्ट – आठ ।
धरन्ति – धारण करते हैं।
धरणीम् – धरती को ।
उपकृतिशीला – उपकार करने वाले ।
अतुलबला: – अतुलनीय बलशाली ।
ननु – निश्चय ही ।
विपुले – विशाल |
गगने – आकाश में।
नव – नौ ।
नियततया – नियमित रूप से।
सततं – निरन्तर ।
चरन्ति – विचरण करते हैं।
सरलार्थ:- उपकार’करने वाले, अतुलनीय बलशाली आठ दिग्गज धरती को धारण करते हैं। निश्चय ही विशाल आकाश में नौ ग्रह नियमित रूप से निरन्तर विचरण करते हैं।
(ज)
पूर्वाद्या दश दिशः प्रसिद्धाः
सङ्ख्यागणना ननु सरला ।
गायामो वयममितामोदं
कुर्मो बहुधा करतालम् ।।
अन्वयः – पूर्व आद्या दश दिशः प्रसिद्धाः । ननु संख्यागणना सरला । वयम् अमितामोदं गायामः बहुधा करतालम् कुर्मः।
शब्दार्था:-
पूर्वाद्या- (पूर्व + आद्या) पूर्व आदि।
दश – दस ।
दिशः – दिशाएँ ।
गायाम:- गाते हैं।
वयममितामोदं – (वयम् + अमित + आमोदम्) हम सब अत्यधिक आनन्दपूर्वक ।
करतालं – ताली ।
बहुधा – अधिकतर ।
कुर्मः- (हम) करते हैं।
सरलार्थ:- पूर्व आदि दस दिशाएँ प्रसिद्ध हैं। निश्चय ही संख्या की गिनती सरल है। हम सब अत्यधिक आनन्दपूर्वक गाते हैं। अधिकतर करतल ध्वनि करते हैं। (ताली बजाते हैं।)
(झ)
शब्दार्था:-
ऊर्ध्वम् – ऊपर। अधः- नीचे |
सरलार्थ:- घर की दस दिशाएँ (होती हैं) पूर्वदिशा, पश्चिमदिशा, उत्तरदिशा, दक्षिणदिशा, ईशानदिशा, आग्नेयदिशा, नैर्ऋत्यदिशा, वायव्यदिशा, ऊपर, नीचे।
वयं संख्यां गणयाम: (१ – ५०)
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