Students summarize chapters using Class 6th Science Notes and Class 6 Science Chapter 12 Notes in Hindi पृथ्वी से परे for better understanding.
Beyond Earth Class 6 Notes in Hindi
पृथ्वी से परे Class 6 Notes
कक्षा 6 विज्ञान नोट्स Chapter 12 पृथ्वी से परे – कक्षा 6 विज्ञान अध्याय 12 नोट्स
→ आकाश को क्षेत्रों में बाँटा गया है, जिन्हें तारा-मंडल कहते हैं। इनमें ऐसे तारों के समूह सम्मिलित हैं, जो पैटर्न बनाते हुए दिखाई पड़ते हैं।
→ ध्रुव तारा उत्तर दिशा में अचल दिखाई पड़ता है। यह तारा उत्तर दिशा निर्धारित करता है।
→ सूर्य एक तारा है, जो ऊष्मा और प्रकाश उत्पन्न करता है।
→ ग्रह एक विशाल, लगभग गोलाकार पिंड है, जो सूर्य के चारों ओर घूमता है।
→ सूर्य से बढ़ती दूरी के क्रम में सौर परिवार के आठ ग्रह हैं— बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और वरुण।
→ पृथ्वी लगभग एक वर्ष में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करती है।
→ ग्रहों की परिक्रमा करने वाले पिंडों को सामान्यतः उपग्रह कहा जाता है। चंद्रमा पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह है।
→ चंद्रमा लगभग 27 दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है।
→ सूर्य तथा अन्य आठ ग्रह, उनके उपग्रह तथा अनेक छोटे पिंड, जिनमें क्षुद्रग्रह और धूमकेतु सम्मिलित हैं, ये सब मिलकर सौर परिवार बनाते हैं।
→ हमारा सौर परिवार मंदाकिनी आकाश गंगा का अंग है।
नुब्रा लद्दाख का एक रमणीय क्षेत्र है। यहाँ के एक गाँव में ग्यारह वर्ष की एक बालिका यांग्डोल और उसका जुड़वाँ भाई दोरजे रहते हैं।
उन्हें उनके परिवेश के गगनचुंबी पर्वत-शिखरों और हिमनदों से तो प्रेम है लेकिन जगमगाते तारों से भरे रात्रि-आकाश को देखना उन्हें सबसे अधिक प्रिय है (चित्र)। नुब्रा में मौसम लगभग बादल रहित रहता है। यहाँ वायु प्रदूषण एवं प्रकाश-प्रदूषण न बराबर होने के कारण रात में आकाश बहुत स्पष्ट दिखाई पड़ता है। यांग्डोल और दोरजे एक के बाद एक कई रातों तक तारों का अवलोकन करते हैं और असीम विस्मय का अनुभव करते हैं।
बचपन से ही यांग्डोल एवं दोरजे अपने परिवार के बड़े सदस्यों से तारों के संबंध में रोचक कहानियाँ सुनते आए हैं। उन्होंने सुना है कि प्राचीन काल में साफ आकाश के कुछ विशिष्ट तारे नुब्रा से हो कर जाने वाले कारवाँ के लिए दिशा सूचक का काम करते थे। दोनों बच्चे सोचते रहते हैं कि तारे न जाने कितने बड़े हैं और कितनी हैं। उन्हें तारों के बीच कुछ ऐसे पैटर्न ढूँढ़ने में आनंद आता है, जो उन्हें कुछ परिचित वस्तुओं की याद दिलाते हैं। क्या आपने रात्रि-आकाश में तारों को देखकर उन्हें उसी प्रकार काल्पनिक रेखाओं द्वारा जोड़ने की कोशिश की है जैसे हम बिंदुओं और रेखाओं को जोड़कर चित्र बनाते हैं?
क्रियाकलाप 1 — आइए, बिंदुओं को जोड़कर पैटर्न बनाएँ
चित्र में रात्रि-आकाश के एक भाग में चमकीले तारों को दर्शाया गया है। इसका ध्यानपूर्वक अवलोकन कीजिए और इसमें तारों के एक समूह द्वारा बने पैटर्न की कल्पना कीजिए। तारों को रेखाओं द्वारा जोड़िए और पैटर्न बनाइए। आपके द्वारा बनाए गए पैटर्न से मिलते-जुलते जिस जंतु या वस्तु का विचार आपके मन में आता है उसका नाम अपने पैटर्न के पास लिखिए। उपरोक्त चरणों को दोहराइए और कुछ अन्य पैटर्न बनाइए। अब अपने पैटर्न से संबंधित कोई रोचक कहानी सोचिए।
आपने जो पैटर्न बनाया है उसकी तुलना अपने मित्रों द्वारा बनाए गए पैटर्न से कीजिए। क्या ये पैटर्न एक जैसे हैं या भिन्न हैं? अपनी कहानी दूसरों को सुनाइए और उनकी कहानी आप सुनिए। क्या आपके और आपके साथियों के पैटर्न, नाम और कहानी अलग-अलग हैं? अगर ऐसा है तो क्या यह रोचक बात नहीं है?
तारे और तारा-मंडल Class 6 Notes
हमें रात्रि-आकाश में अनेक तारे दिखाई देते हैं। कुछ तारे चमकीले होते हैं और कुछ धुँधले होते हैं। तारे स्वयं के प्रकाश से चमकते हैं।
कुछ तारों के समूह ऐसे पैटर्न बनाते हुए प्रतीत होते हैं जिनकी आकृतियाँ कुछ जानी-पहचानी वस्तुओं से मिलती-जुलती होती हैं। बहुत समय पूर्व, जब रात्रि – आकाश का अवलोकन हमारे पूर्वजों का एक प्रमुख मनोरंजन साधन था, उन्होंने तारों के इन पैटर्न की पहचान जंतुओं, वस्तुओं अथवा कहानियों के पात्रों के रूप में की। अनेक सभ्यताओं में पैटर्न के नाम उनकी अपनी कहानियों पर आधारित थे। इन काल्पनिक आकृतियों ने आकाश में तारों को पहचानने में उनकी सहायता की।
तारों और उनके पैटर्न की पहचान प्राचीन काल में यात्रियों के लिए एक उपयोगी कौशल था। आधुनिक प्रौद्योगिकी के आगमन से पहले, बल्कि चुंबकीय दिक्सूचक के आविष्कार से भी पहले, इन पैटर्नो नें नाविकों और अन्य यात्रियों की सागर में और पृथ्वी पर दिशा ज्ञात करने में सहायता की। अभी भी आपातकालीन स्थितियों में इसका उपयोग वैकल्पिक विधि के रूप में होता है।
पूर्वकाल में तारा समूहों के पैटर्न को तारा-मंडल कहा जाता था। वर्तमान में आकाश के उन भागों को तारा-मंडल कहा जाता है जिनमें ये पैटर्न हैं। क्योंकि आकाश के इन भागों में प्रायः तारों के पैटर्न की ही प्रधानता होती है इसलिए सामान्यत: तारा मंडल शब्द का उपयोग तारों के समूह के रूप में भी किया जाता है।
विभिन्न संस्कृतियों ने तारा-मडंल की परिसीमाओं को अलग-अलग ढंग से निर्दिष्ट किया। बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन – आई.ए.यू.) ने अंतरराष्ट्रीय सहमति से तारा-मडल की परिसीमाओं को परिभाषित किया। आधिकारिक रूप से 88 तारा-मडंल सूचीबद्ध किए गए और इस प्रकार संपूर्ण आकाश को 88 क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। आकाश के इन क्षेत्रों को अब तारा मंडल के रूप में परिभाषित किया जाता है।
चित्र में कुछ तारा-मंडल दर्शाए गए हैं। इनकी सहजता से पहचान की जा सके इसके लिए तारों को काल्पनिक रेखाओं द्वारा जोड़ दिया गया है। तारा मंडल ओरायन को प्राय: शिकारी के रूप में निरूपित किया जाता है। इस तारा मंडल के बीचों-बीच जो तीन तारे हैं वे शिकारी की पेटी (बेल्ट) कहलाते हैं। कुछ लोग कल्पना करते हैं कि शिकारी ओरायन एक बैल (तारा-मंडल वृष या टॉरस) से युद्ध कर रहा है तथा ओरायन का कुत्ता (तारा-मंडल कैनिस मेजर) उसके पीछे चल रहा है। कैनिस मेजर तारा मंडल का तारा लुब्धक (सिरियस) रात्रि-आकाश का सबसे चमकीला तारा है।
भारतीय खगोलशास्त्र में ‘नक्षत्र’ शब्द का उपयोग किसी तारे या तारा मंडल के लिए किया जाता है, जैसे- आर्द्रा नक्षत्र (ओरायन तारा-मंडल में बीटलजूज नाम का तारा), कृत्तिका नक्षत्र (वृष तारा मंडल में प्लायोडिज नाम का तारा समूह)। अल्डेबरान, वृष तारा-मंडल में एक तारा है जिसे रोहिणी के रूप में जाना जाता है।
चित्र में तारों के दो पैटर्न बिग डिपर और लिटिल डिपर दर्शाए गए हैं। इसी चित्र ध्रुव तारा भी दर्शाया गया है जो कि लिटिल डिपर का अंग है। ध्रुव तारा उत्तर दिशा में अचल दिखाई पड़ता है, जिसकी सहायता से उत्तरी गोलार्ध उत्तर दिशा की पहचान की जा सकती है।
बिग डिपर तारा मंडल अर्सा मेजर का अंग है जबकि लिटिल डिपर तारा मंडल अर्सा माईनर में है। भारत बिग डिपर को सप्तर्षि के नाम से जाना जाता है और पोल स्टार को ध्रुव तारा कहते हैं।
तारा-मंडलों में तारों के साथ जुड़ी सामान्य क्षेत्र कहानियों के अतिरिक्त, भारत के अनेक वनवासी समुदायों एवं जनजातियों की भी उनके संबंध में अपनी स्वयं की कहानियाँ हैं, उदाहरण के लिए- सप्तर्षि के वे चार तारे जो लगभग एक आयत जैसी आकृति बनाते हैं। मध्य भारत की जनजातियाँ उन्हें दादी माँ की चारपाई के रूप में देखती हैं और ऐसा मानती हैं तीन चोर (अन्य तीन तारे) इसे चुरा रहे हैं। कोंकण-तट के मछुआरे इन्ही चार तारों की कल्पना एक नाव के रूप में करते हैं, जिनके अंतिम के तीन तारे उस नाव की ग्रीवा हैं।
रात्रि-आकाश का अवलोकन Class 6 Notes
यदि किसी रात आकाश में बादल न हों तो वहाँ बड़ी संख्या में तारे दिखाई दे सकते हैं। दूसरी ओर, यदि आप किसी बड़े नगर में रहते हैं तो आप पाएँगे कि आकाश कभी-कभार ही साफ होता है और रात्रि-आकाश में केवल कुछ तारे ही दिखाई देते हैं। यह प्रकाश प्रदूषण, धुएँ और धूल की विद्यमानता के कारण होता है। रात्रि के समय अत्यधिक कृत्रिम प्रकाश की उपस्थिति को प्रकाश प्रदूषण कहा जाता है। गाँवों अथवा उन क्षेत्रों में जहाँ प्रकाश प्रदूषण कम होता है वहाँ बड़ी संख्या में तारे देखे जा सकते हैं। यह भी हो सकता है कि आपका घर ऊँचे भवनों और वृक्षों से घिरा हो, जिसके कारण आप अधिक बड़े क्षेत्र का अवलोकन कर ही न पाते हों। रात्रि-आकाश का सर्वोत्तम अवलोकन खुले और अँधेरे स्थान से किया जाता है।
विश्व स्तर पर प्रकाश प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। अतः रात्रि आकाश के पिंडों के अध्ययन और अवलोकन के आनंद में कमी आती जा रही है। विश्वभर में कुछ अँधेरे आकाश वाले संरक्षित क्षेत्र एवं उद्यान स्थापित किए गए हैं। इन संरक्षित क्षेत्रों अनुसंधान हेतु आकाश में अँधेरा बनाए रखने के लिए प्रकाश प्रदूषण नियंत्रित किया जाता है। कुछ संगठन प्रकाश प्रदूषण के संबंध में लोगों को शिक्षित करने का काम कर रहे हैं।
सभी तारे और तारा मंडल पृथ्वी के सभी स्थानों से और वर्ष की प्रत्येक रात में दिखाई नहीं देते हैं, उदाहरण के लिए- ध्रुव तारा पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध से नहीं देखा जा सकता है। किसी तारे या तारा मंडल को पहचानने के लिए आपको यह जानने की आवश्यकता होती है कि यह तारा मंडल कैसा दिखाई देता है और रात्रि-आकाश में इसको कहाँ देखना चाहिए। किसी तारा-मंडल के पैटर्न से परिचित होने के लिए आप चित्र एवं चित्र जैसे चित्रों का उपयोग कर सकते हैं। यह जानने के लिए कि आपकी स्थिति अनुसार कोई तारा मंडल आकाश के किस भाग में और कब दिखाई पड़ेगा, आप किसी आकाश मानचित्रण ऐप की सहायता ले सकते हैं जिन्हें मोबाइल फोन पर डाउनलोड किया जा सकता है या फिर किसी अन्य ऑनलाइन संसाधन का उपयोग भी कर सकते हैं।
तारों, तारामडंलों एवं ग्रहों की मोबाईल फोन से पहचान हेतु स्काइ मैप एक अत्यंत सुविधाजनक ऐप है। स्टेलैरियम इसी प्रकार का एक अन्य ऐप है। स्टेलैरियम का कंप्यूटर रूपांतर अनेक विशेषताओं से युक्त है और इसे निःशुल्क डाउनलोड किया जा सकता है।
रात्रि-आकाश दर्शन के लिए तैयारी
वयस्कों के मार्गदर्शन में रात्रि-आकाश अवलोकन हेतु किसी खुले और अँधेरे स्थान की पहचान कीजिए। यह स्थान कृत्रिम प्रकाश, ऊँचे भवनों और वृक्षों से कहीं होना चाहिए।
आप रात्रि आकाश में जिस पिंड का अवलोकन करना चाहते हैं, उसी के तिथि एवं समय का चयन कीजिए।
एक ऐसी रात का चयन कीजिए जिसमें आकाश में न तो बादल हों और न ही चंद्रमा दिख रहा हो, विशेषकर तब, जब आपको ध्रुव तारा देखना हो, क्योंकि ध्रुव तारा बहुत चमकीला तारा नहीं है।
आकाश के मानचित्र से युक्त कोई मोबाइल ऐप अथवा जिन तारा-मंडलों को आप देखना चाहते हैं उनकी आकृतियों के प्रिंटआउट अपने पास रखना उपयोगी होगा। दिशाएँ ज्ञात करने के लिए एक चुंबकीय दिक्सूचक तथा प्रेक्षण लिखने एवं चित्र बनाने के लिए एक नोटबुक भी अपने साथ ले जाना अच्छा रहेगा।
नियत दिन एवं समय पर किसी वयस्क के साथ उस निर्धारित स्थान पर जाइए जहाँ रात्रि आकाश का अवलोकन करना है।
वहाँ पहुँचने के पश्चात लगभग आधा घंटा प्रतीक्षा कीजिए ताकि आपके नेत्र अंधेरे के अनुसार समंजित हो जाएँ। इससे आप रात्रि-आकाश (चित्र) का और अच्छे से अवलोकन कर पाएँगे।
रात्रि-आकाश में आप सप्तर्षि और ध्रुव तारे की पहचान आसानी से कर सकते हैं।
क्रियाकलाप 2 – आइए, स्थिति का पता लगाने का प्रयास करें
सप्तर्षि को देखने के लिए ग्रीष्म ऋतु के दौरान, रात्रि के लगभग 9 बजे आकाश का अवलोकन करें। इसके लिए आकाश के उत्तरी भाग में क्षितिज के ऊपर देखें और सप्तर्षि को पहचानें। सप्तर्षि पहचान में आ जाए तो ध्रुव तारे की स्थिति जानने का प्रयास कीजिए। बिग डिपर के कप के अंतिम दो तारों को देखिए और इन्हें जोड़ने वाली एक सरल रेखा की कल्पना कीजिए। इस काल्पनिक रेखा को उत्तर की ओर आगे बढ़ाइए। इन तारों के बीच की दूरी के लगभग पाँच गुनी दूरी पर इस काल्पनिक रेखा पर एक तारा दिखेगा जो बहुत चमकीला नहीं है। यही ध्रुव तारा है। इसी प्रकार, आप रात्रि-आकाश में चमकीले तारा-मंडल ओरायन एवं इसमें लुब्धक तारे की पहचान भी कर सकते हैं।
क्रियाकलाप 3 – आइए, पहचानने का प्रयास कीजिए
भारत में ओरायन को ज्यादा अच्छी तरह दिसंबर से अप्रैल महीनों में सूर्यास्त के बाद देखा जा सकता है। अत: इसे इसी दौरान देखिए। ओरायन के लगभग बीच में एक छोटी सरल रेखा में तीन चमकदार तारे स्थित हैं (जिनकी कल्पना शिकारी की बेल्ट के रूप में की जाती है)। सबसे पहले इन तीन तारों को पहचानिए क्योंकि ओरायन तारा मंडल की पहचान का यही सबसे सरल विधि है।
एक बार आपने ओरायन को पहचान लिया तो इसके पास स्थित अत्यंत चमकदार तारे लुब्धक को पहचानना आसान हो जाएगा। ओरायन के बीच के तीन तारों से गुजरती हुई सरल रेखा की कल्पना कीजिए और इस रेखा के अनुदिश पूर्व की ओर देखिए। वहीं पर आपको लुब्धक तारा दिखाई देगा।
हमारा सौर परिवार Class 6 Notes
सूर्य
सूर्य एक तारा है। यह हमारे सबसे निकट का तारा है। यह गैसों का एक अत्यंत गर्म गोला है। सूर्य अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित करता है और यही कारण है कि यह इतना चमकदार होता है। सूर्य (चित्र) ऊष्मा एवं प्रकाश उत्पन्न करता है जो पृथ्वी पर ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है।
सूर्य कितना विशाल है? व्यास में यह पृथ्वी से लगभग 100 गुना बड़ा है। फिर भी यह हमें इतना छोटा दिखाई देता है क्योंकि यह पृथ्वी से बहुत अधिक दूरी पर है।
पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है। यह दूरी एक ‘खगोलीय मात्रक’ (एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट या au) कहलाती है। इसका उपयोग सामान्यत: सौर-परिवार में बड़ी-बड़ी दूरियों को सुविधापूर्वक व्यक्त करने के लिए होता है।
सूर्य को आकाश का सबसे अधिक चमकदार पिंड और पृथ्वी पर प्रकाश एवं ऊष्मा का स्रोत होने के कारण अधिकांश प्राचीन सभ्यताओं में देवता के पद पर प्रतिष्ठित किया गया है। सूर्य द्वारा प्रदान की गई ऊष्मा पृथ्वी को ऐसे ताप पर बनाए रखती है जिस पर जीवन संभव हो जाता है। सूर्य का प्रकाश पौधों की वृद्धि के लिए अनिवार्य है, जो मानवों एवं जंतुओं को भोजन एवं ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। सूर्य जलवायु, ऋतुओं, मौसम, जलचक्र एवं पवन का कारण है, जो पृथ्वी पर जीवन के संपोषण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
अन्य तारों की तुलना में सूर्य हमारे बहुत समीप है इसलिए यह अन्य तारों की तुलना में बहुत बड़ा दिखता है। सूर्य के अतिरिक्त अन्य सभी तारे हमसे बहुत अधिक दूरी पर हैं। वे बिंदुओं जैसे दिखाई देते हैं, यद्यपि इनमें से अनेक तारे सूर्य की तुलना में बहुत बड़े हैं। दिन के समय सूर्य की चमक के कारण अन्य तारों को देख पाना संभव नहीं हो पाता है।
सूर्य के बाद हमारे सबसे अधिक निकट का तारा प्रोक्सिमा सेंटाओ है, जो लगभग 269000 au की दूरी पर स्थित है। इसका तात्पर्य है कि इसकी दूरी सूर्य से हमारी दूरी की लगभग 269000 गुना है।
आकाश में अन्य अनेक पिंड विद्यमान हैं। इनमें से कुछ पिंडों के साथ हमारी पृथ्वी और सूर्य मिलकर सौर-परिवार निर्मित करते हैं। इनमें से अधिकांश पं सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। किसी पिंड सूर्य के चारों ओर घूमना परिक्रमण कहलाता है।
ग्रह
ग्रह एक विशाल और लगभग गोलाकार पिंड होता है, जो सूर्य की परिक्रमा करता है। हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह है क्योंकि यह सूर्य के चारों ओर घूमती है (जैसा चित्र में दर्शाया गया है)। सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी को लगभग एक वर्ष का समय लगता है। पृथ्वी की ही तरह अन्य ग्रह भी हैं, जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
सूर्य की परिक्रमा करने के साथ-साथ पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन भी करती है। अपने अक्ष पर एक बार पूरा घूम जाने में पृथ्वी को लगभग 24 घंटे का समय लगता है, जो एक दिन कहलाता है। पृथ्वी की तरह ही अन्य ग्रह भी सूर्य की परिक्रमा करने के साथ-साथ अपने-अपने अक्ष पर घूर्णन करते हैं। इस विषय में और अधिक ज्ञान आप अगली कक्षा में प्राप्त करेंगे।
सूर्य से बढ़ती दूरी के क्रम में सौर परिवार के आठ ग्रह (चित्र) हैं– बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस एवं वरुण। सूर्य के सबसे निकट के चार आंतरिक ग्रह हैं– बुध, शुक्र, पृथ्वी एवं मंगल। ये चारों आकार में छोटे हैं। इनकी सतह ठोस और चट्टानी हैं।
चित्र को एक पृष्ठ में समाहित करने के लिए विभिन्न पिंडों के आकारों और उनके बीच की दूरियों को उनके वास्तविक आकारों व दूरियों के अनुपात में नहीं रखा गया है अर्थात् चित्र में पिंडों के आकार और उनके बीच की दूरियाँ किसी स्केल द्वारा निर्धारित नहीं की गई हैं।
प्राचीनकाल से ही बिना किसी प्रकाशिक यंत्र की सहायता के केवल आँख से दिखने वाले ग्रहों के लिए भारत के विभिन्न भागों एवं भाषाओं में भिन्न-भिन्न नामों का उपयोग किया जाता रहा है, उदाहरण के लिए– बुध (मर्करी), शुक्र (वीनस), पृथ्वी (अर्थ), मंगल (मार्स), बृहस्पति अथवा गुरु (ज्यूपिटर) तथा शनि (सेटर्न) आदि।
शुक्र प्रायः भोर और संध्या के समय चमकता हुआ दिखाई देता है। अत: इसे सामान्यत: भोर का तारा या संध्या का तारा कहा जाता है, हालाँकि यह तारा नहीं हैं। मंगल को लाल-ग्रह कहा जाता है क्योंकि यह लाल रंग का दिखाई पड़ता है। इसका कारण यह है कि मंगल ग्रह की मृदा का रंग लाल है।
पृथ्वी की सतह का एक बड़ा भाग पानी से ढका है इसीलिए अंतरिक्ष से यह नीले रंग की दिखाई देती है। इस कारण पृथ्वी को नीला ग्रह भी कहा जाता है। सबसे बाहर के चार ग्रह हैं– बृहस्पति, शनि, यूरेनस एवं वरुण। पृथ्वी की तुलना में यह बहुत बड़े हैं और अधिकांशतः गैसों से बने हैं। इन विशाल गैसीय ग्रहों के चारों ओर विशाल, चपटी वलयाकार संरचनाएँ हैं, जो धूल एवं शैल पदार्थों से बनी हैं।
ग्रह अपनी अधिकांश ऊर्जा सूर्य से प्राप्त करते हैं। अतः जो ग्रह सूर्य से जितनी अधिक दूरी पर होता है, सामान्यतः वह ग्रह उतना ही अधिक ठंडा होता है। किसी ग्रह पर यदि वायुमंडल होता है तो वह ऊष्मा को बाहर जाने से रोक सकता है, जिसके कारण उस ग्रह के ताप में बड़ा परिवर्तन आ सकता है। इसी कारण से शुक्र ग्रह बुध ग्रह की सूर्य से अधिक दूरी पर होने के बाद भी, उससे अधिक गरम होता है।
प्लूटो नाम का एक अन्य पिंड भी है, जो वरुण ग्रह की तुलना में दूर अवस्थित है और सूर्य की परिक्रमा कर रहा है। इसका आकार पृथ्वी के चंद्रमा के आकार से भी छोटा है। जब इसकी खोज हुई थी तो इसे सौर-परिवार का एक ग्रह कहा गया था किंतु बाद में जब उसके जैसे अन्य छोटे-छोटे पिंडों की खोज हुई तो अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (आई.ए.यू.) ने 2006 में किसी पिंड को ग्रह कहलाने के लिए आवश्यक शर्तों को पुनर्परिभाषित किया। इस परिभाषा के अनुसार प्लूटो सहित इन छोटे पिंडों को अब वामन ग्रह कहा जाता है।
ग्रहों में सबसे आसान शुक्र ग्रह को पहचानना होता है क्योंकि यह बहुत चमकदार है। सूर्य और चंद्रमा के बाद शुक्र ग्रह आकाश का सबसे अधिक चमकदार पिंड है। बुध, मंगल, बृहस्पति एवं शनि को भी बिना किसी प्रकाशिक उपकरण की सहायता के देखा जा सकता है। ये ग्रह इतनी अधिक दूरी पर हैं कि तारों की तरह ही चमकते हुए बिंदुओं जैसे दिखाई पड़ते हैं। फिर हम इन ग्रहों और तारों में भेद कैसे करते हैं? ग्रहों के विपरीत तारे अधिक टिमटिमाते हुए प्रतीत होते हैं।
क्रियाकलाप 4 – आइए, पहचानने का प्रयास कीजिए
वर्ष में अधिकतर समय आप शुक्र ग्रह को भोर अथवा संध्या के समय देख सकते हैं। अगर आप भोर के समय इसे देख रहे हैं तो सूर्योदय से पहले पूर्व दिशा में देखिए। जब आप संध्या के समय में इसे देख रहे हैं तो सूर्यास्त के पश्चात् पश्चिम दिशा में देखिए।
आकाश के कुछ पिंडों को बिना किसी सहायता के केवल आँखों से देखा तो जा सकता है किंतु द्विनेत्री दूरबीन (बाइनॉक्युलर) अथवा दूरदर्शक (टेलीस्कोप, चित्र) नामक यंत्र का उपयोग करने से ये अधिक चमकदार और बड़े दिखाई देने लगते हैं। दूरदर्शक यंत्र ऐसे अनेक धुँधले पिंडों को देखने में भी हमारी सहायता करता है, जो बिना किसी उपकरण के केवल आँखों द्वारा दिखाई नहीं देते हैं।
जब भी आपके क्षेत्र में कोई रात्रि-आकाश दर्शन का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है तो आपको दूरदर्शक यंत्र के द्वारा आकाश का अवलोकन करने का अवसर प्राप्त हो सकता है।
अनेक उच्च शिक्षा संस्थान, विद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए रात्रि आकाश अवलोकन गतिविधियों का आयोजन करते हैं। देशभर में ऐसे अनेक अव्यावसायिक खगोलीय संगठन भी हैं, जो समय-समय पर आकाश दर्शन कार्यक्रम आयोजित करते है। संग्रहालय (म्यूजियम) एवं कृत्रिम नभमंडल (प्लैनेटेरियम) भी इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
प्राकृतिक उपग्रह
ग्रहों की परिक्रमा करने वाले पिंडों को सामान्यतः उपग्रह कहा जाता है। वे आकार में ग्रहों की तुलना में छोटे होते हैं। ग्रहों के प्राकृतिक उपग्रहों को चंद्रमा कहा जाता है। पृथ्वी का एक चंद्रमा है जबकि मंगल के दो चंद्रमा हैं। बृहस्पति, शनि, यूरेनस एवं वरुण ग्रहों कई चंद्रमा हैं।
सामान्यत: कोई ऐसा पिंड. जो अपने से बहुत बड़े पिंड की परिक्रमा करता हो, उसे भी उपग्रह कहा जाता है। उदाहरण के लिए – पृथ्वी को सूर्य का उपग्रह कहा जा सकता है। चंद्रमा पृथ्वी से लगभग 3,84,000 किलोमीटर की दूरी पर है।
चंद्रमा
पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करने में लगभग 27 दिन का समय लेता है। यह अंतरिक्ष में हमारा निकटतम पड़ोसी है। पृथ्वी के विपरीत चंद्रमा पर वायुमंडल न के बराबर है। पृथ्वी की तुलना में चंद्रमा कितना बड़ा है? चंद्रमा का व्यास पृथ्वी के व्यास का लगभग एक चौथाई है। चंद्रमा की सतह पर वृत्ताकार कटोरेनुमा संरचनाएँ दिखाई पड़ती हैं, जिन्हें गर्त (क्रेटर) कहते हैं (चित्र)। इनमें से अधिकांश गर्त अंतरिक्ष से आई चट्टानों अथवा क्षुद्र ग्रहों के आघात से बने हैं। चंद्रमा पर वायुमंडल, जल अथवा जीवन विद्यमान न होने के कारण ये विशिष्ट संरचनाएँ उसकी सतह पर लंबे समय से बनी हुई हैं।
यद्यपि चंद्रमा बहुत दूर है फिर भी मनुष्य ने चंद्रमा को अधिक अच्छी तरह से समझने और खोजबीन करने के लिए इस पर अंतरिक्ष यान भेजे हैं। भारत ने भी चंद्रमा के अध्ययन के लिए 3 चंद्रयान अभियान पूरे कर लिए हैं और चौथे की तैयारी चल रही है।
चंद्रमा संबंधी हमारी जानकारी में वृद्धि के लिए चंद्रमा पर भारत का पहला अभियान चंद्रयान-1 सन् 2008 में छोड़ा गया था और दूसरा मिशन चंद्रयान-2 सन् 2019 में भेजा गया। तीसरे मिशन के अंतर्गत चंद्रयान-3 को जुलाई 2023 में प्रक्षेपित किया गया। इसका लैंडर ‘विक्रम’ जो अपने साथ रोवर ‘प्रज्ञान’ को लेकर गया था, आसानी से 23 अगस्त 2023 को चंद्रमा की सतह पर उतर गया। इस मिशन के साथ ही भारत चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव के निकट उपकरण उतारने वाला विश्व का पहला देश बन गया। इस सफलता को रेखांकित करने के लिए भारत सरकार द्वारा घोषणा की गई कि 23 अगस्त भारत में ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। एक चौथे मिशन, चंद्रयान-4 की योजना बनाई जा चुकी है, जिसका लक्ष्य चंद्रमा से मिट्टी और पत्थर के टुकड़ों को लेकर आना है।
क्षुद्रग्रह
सूर्य और ग्रह लगभग गोलाकार आकृति के होते हैं। सौर परिवार में ऐसे अनेक छोटे पिंड हैं, जो चट्टानी हैं और अनियमित आकार के हैं। ये क्षुद्रग्रह कहलाते हैं। इनमें से अनेक क्षुद्रग्रह मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच अपने-अपने पथों पर सूर्य की परिक्रमा करते हैं। यह क्षेत्र क्षुद्रग्रह पट्टी (चित्र) कहलाता है। कभी-कभी क्षुद्रग्रह पृथ्वी के बहुत पास से गुजरते हैं। क्षुद्रग्रहों का आकार 10 मीटर से लेकर लगभग 500 किलोमीटर तक होता है।
धूमकेतु
कभी-कभी सौर परिवार के बाहरी क्षेत्रों से कुछ आगंतुक पिंड हमारे सौर परिवार में आते हैं। लंबी पूँछ वाले इन पिंडों को धूमकेतु (कॉमेट, चित्र) कहते हैं। ये धूल, गैसों, पत्थर के टुकड़ों और बर्फ के बने होते हैं। जैसे ही कोई धूमकेतू सूर्य के निकट पहुँचता है, इसमें जमे हुए पदार्थ वाष्पीकृत होने लगते हैं। यह वाष्पित पदार्थ धूमकेतु की बनाता है। जैसे—जैसे धूमकेतू सूर्य से दूर जाते हैं, वे धुँधले दिखाई देने लगते हैं और एक सीमा के बाद उन्हें बिना किसी प्रकाशिक उपकरण के केवल आँख से देख पाना संभव नहीं हो पाता है।
सूर्य की परिक्रमा करने वाले कई धूमकेतुओं का पता लगाया जा चुका है। ये धूमकेतु नियत समयावधि के बाद सूर्य के निकट आते हैं। तथापि, कुछ ऐसे धूमकेतु भी हैं, जो सौर परिवार से पलायन कर जाते हैं। कुछ अन्य धूमकेतु टूट जाते हैं या सूर्य अथवा अन्य ग्रहों के पास पहुँचने पर उनमें गिर जाते हैं। हमने उन पिंडों के बारे में जाना जो मिलकर सौर परिवार बनाते हैं। वह पिंड कौन-कौन से हैं? सूर्य, आठ ग्रह, उनके उपग्रह और अनेक अपेक्षाकृत छोटे पिंड, जिनमें क्षुद्रग्रह, धूमकेतु शामिल हैं, ये सब मिलकर सौर परिवार कहलाते हैं (चित्र)।
एक प्रसिद्ध धूमकेतु हेली धूमकेतु है, जो प्रत्येक 76 वर्ष के बाद दिखाई देता है। पिछली बार यह 1986 में दिखाई दिया था। संस्कृत तथा कुछ अन्य भारतीय भाषाओं में कॉमेट को धूमकेतु कहते हैं। भारत में विभिन्न जनजातियाँ इसे पुच्छया तारो (पूँछ वाला तारा) अथवा झेंड्या तारो (झंडे जैसा तारा) भी कहती हैं।
अनेक सभ्यताओं में लोग धूमकेतु से भयभीत होते थे। यह भी माना जाता था कि धूमकेतु अपने साथ दुर्भाग्य लेकर आते हैं। तथापि वैज्ञानिकों का आभार मानना चाहिए कि आज हम जानते हैं कि ये मात्र बर्फीली चट्टानों वाले आगंतुक हैं, जो सूर्य के पास से होकर गुजरते हैं।
हमारा तारा सूर्य, सौर परिवार का सबसे बड़ा और सबसे भारी पिंड है। सौर परिवार में उपलब्ध लगभग संपूर्ण ऊर्जा का जनक सूर्य ही है। हमारे सौर परिवार के अन्य सभी पिंड सूर्य के प्रकाश को अपने सतहों से परावर्तित करते हैं और इसी कारण से चमकते हैं।
मंदाकिनी आकाश गंगा Class 6 Notes
चंद्रमा विहीन रात्रि आकाश में, शहर की रोशनी से दूर, किसी अंधेरे स्थान से अवलोकन करें तो आकाश में उत्तर के पास से दक्षिण तक व्याप्त प्रकाश की एक धुँधली पट्टी (चित्र) दिखाई देती है। यह आकाश गंगा नाम की वह मंदाकिनी है जिसमें हम रहते हैं। एक मंदाकिनी में करोड़ों से लेकर अरबों तक तारे होते हैं। हमारा सौर परिवार मंदाकिनी आकाश गंगा का ही भाग है।
ब्रह्माण्ड Class 6 Notes
हमारी मंदाकिनी से परे बाहुय अंतरिक्ष में बहुत सारी मंदाकिनियाँ हैं। तारों, मंदाकिनियों और ब्रह्माण्ड के रहस्यों को समझने के लिए वैज्ञानिक उनका अध्ययन करते हैं।
हम अभी तक नहीं जानते कि ब्रह्माण्ड में कहीं और जीवन है या नहीं। हमारी मंदाकिनी में अनेक ग्रहों की खोज की गई है जो अपने तारों की परिक्रमा कर रहे हैं। अभी तक वैज्ञानिक अपने तारों की परिक्रमा करते हुए इन बाह्य ग्रहों में कहीं भी जीवन के अस्तित्व का कोई प्रमाण प्राप्त नहीं कर पाए हैं किंतु जीवन की खोज अभी भी जारी है।
Class 6th Science Notes
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