Teachers often provide Class 7 Hindi Notes Malhar Chapter 3 फूल और काँटा Summary in Hindi Explanation to simplify complex chapters.
फूल और काँटा कविता Class 7 Summary in Hindi
फूल और काँटा Class 7 Hindi Summary
फूल और काँटा कविता का सारांश – फूल और काँटा Class 7 Summary in Hindi
साहित्य जगत के प्रसिद्ध कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित इस कविता में जीवन के विविध पहलुओं को सरल और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कवि ने ‘फूल और काँटा’ के माध्यम से व्यक्ति के व्यवहार के विषय में यह बताया है कि उच्च कुल में जन्म लेने के पश्चात भी यदि व्यक्ति का व्यवहार दूसरों के प्रति उचित नहीं है, तो उसकी कुलीनता उसे समाज में आदर एवं प्रतिष्ठा नहीं दिला सकती है। जन्मस्थान, पालन-पोषण और परिस्थितियाँ एक समान होने के बावजूद व्यक्तियों का स्वभाव और कर्म भिन्न होता है। अतः व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने कर्मों और स्वभाव पर ध्यान दे क्योंकि यही उसे समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाते हैं।
फूल और काँटा कीव परिचय
‘उठो लाल, अब आँखें खोलो। पानी लाई हूँ, मुँह धो लो।’ बचपन में यह प्यारी कविता आपने भी पढ़ी होगी। इस कविता को रचने वाले अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ही ‘फूल और काँटा’ के कवि हैं। बच्चों के लिए उन्होंने अनेक रोचक कविताएँ लिखी हैं। उनका जन्म आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। हरिऔध जी की चर्चित काव्य-कृति प्रियप्रवास को खड़ी बोली का पहला महाकाव्य माना जाता है। बच्चों के लिए उनके अनेक कविता संकलन प्रकाशित हैं जिनमें चंद्र – खिलौना और खेल-तमाशा उल्लेखनीय हैं।
फूल और काँटा कविता हिंदी भावार्थ Pdf Class 7
फूल और काँटा सप्रसंग व्याख्या
1. हैं जनम लेते जगह में एक ही,
एक ही पौधा उन्हें है पालता ।
रात में उन पर चमकता चाँद भी,
एक ही सी चाँदनी है डालता।
मेह उन पर है बरसता एक सा,
एक सी उन पर हवायें हैं बही।
पर सदा ही यह दिखाता है हमें,
ढंग उनके एक से होते नहीं।
(पृष्ठ सं०- 29)
शब्दार्थ :
जनम – जन्म।
पालता – पालन-पोषण करना।
चाँदनी – चाँद की रोशनी ।
मेह – बारिश ।
ढंग – कर्म ।
प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य- पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘फूल और काँटा’ से ली गई हैं। इसके रचयिता अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ हैं। ये द्विवेदी युग के प्रमुख कवि हैं। इन्होंने जीवन के अलग-अलग पहलुओं को इन पंक्तियों द्वारा सरल और प्रभावी ढंग से दर्शाया है।
व्याख्या :
कवि ने फूल और काँटे की तुलना करते हुए बताया है कि दोनों एक ही पौधे पर जन्म लेते हैं और वही उन्हें पालता है। रात्रि के समय जब आकाश में चाँद अपनी शीतल चाँदनी फैलाता है, तब फूल और काँटे दोनों को समान रूप से वह चाँदनी प्राप्त होती है। जब बादल धरती पर वर्षा करके अपना जल बरसाते हैं तो फूल और काँटे दोनों पर समान रूप से ही बरसते हैं। हवा भी दोनों के ऊपर समान रूप से बहती है। परंतु एक जैसी परिस्थितियों में पलकर भी फूल और काँटे के स्वभाव और कर्म में भिन्नता देखने को मिलती है।
2. छेद कर काँटा किसी की उँगलियाँ,
फाड़ देता है किसी का वर बसन ।
प्यार – डूबी तितलियों का पर कतर,
भौंर का है बेध देता श्याम तन ।
फूल लेकर तितलियों को गोद में,
भौंर को अपना अनूठा रस पिला ।
निज सुगंधों और निराले रंग से,
है सदा देता कली जी की खिला ।
(पृष्ठ सं०-29)
शब्दार्थ :
वर बसन – उत्तम वस्त्र ।
कतर – काटना,
छिन्न – भिन्न करना ।
भौंर – भँवरा ।
बेध – छेदना, भेदना ।
श्याम – काला ।
अनूठा – अद्भुत ।
रस – फूलों का रस (मकरंद) ।
जी – मन ।
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘फूल और काँटा’ से ली गई हैं। इसके रचयिता अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ हैं। ये द्विवेदी युग के प्रमुख कवि हैं। इन पंक्तियों में फूल के गुणों और काँटे के अवगुणों का बखान किया गया है।
व्याख्या :
काँटे के अवगुणों को बताते हुए कवि कहते हैं कि वह किसी की भी उँगलियों को छेदकर उन्हें घायल कर देता है। वह किसी के सुंदर वस्त्र फाड़ देता है। जब तितलियाँ फूलों से आकर्षित होकर उनके पास आती हैं, तो काँटा उनके पंखों को भी काट देता है। वह भँवरे के श्याम वर्णी शरीर को भी छेद देता है।
वहीं दूसरी ओर, फूल तितलियों को अपनी गोद में आने देता है। वह भौरे को अपने अद्भुत रस का पान कराता है, अपनी मनमोहक सुगंध और अनोखे रंगों की निराली छटा से सभी के मन को प्रसन्न करता है।
3. है खटकता एक सब की आँख में,
दूसरा है सोहता सुर शीश पर ।
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे,
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर ।
शब्दार्थ :
सोहता – सुशोभित होता ।
सुर – देवता ।
कुल – वंश ।
कसर – कमी ।
(पृष्ठ सं०- 29)
प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘फूल और काँटा’ से ली गई हैं। इसके रचयिता अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ हैं। ये द्विवेदी युग के प्रमुख कवि हैं। इन पंक्तियों में कवि ने मनुष्यों को अपने आचरण पर ध्यान देने के लिए कहा है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि अपने भीतर की कमियों के कारण काँटा सबकी आँखों में खटकता है तथा फूल देवताओं के (सिर) शीश पर सुशोभित होता है। फूल और काँटा, दोनों एक ही पौधे पर होते हुए भी अपने कार्य व प्रभाव के कारण अंतर रखते हैं। इसी प्रकार, यदि व्यक्ति के कर्म अच्छे न हों तो उच्च कुल में जन्म लेने के बाद भी समाज में उसे आदर सम्मान प्राप्त नहीं हो सकता । अतः व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने कर्म और स्वभाव पर ध्यान दे।
Class 7 Hindi Chapter 2 Summary फूल और काँटा
हैं जनम लेते जगह में एक ही,
एक ही पौधा उन्हें है पालता।
रात में उन पर चमकता चाँद भी,
एक ही सी चाँदनी है डालता।
मेह उन पर है बरसता एक सा,
एक सी उन पर हवायें हैं बही।
पर सदा ही यह दिखाता है हमें,
ढंग उनके एक से होते नहीं।
छेद कर काँटा किसी की उँगलियाँ,
फाड़ देता है किसी का वर बसन।
प्यार – डूबी तितलियों का पर कतर,
भौंर का है बेध देता श्याम तन ।
फूल लेकर तितलियों को गोद में,
भौंर को अपना अनूठा रस पिला।
निज सुगंधों औ निराले रंग से,
है सदा देता कली जी की खिला ।
है खटकता एक सब की आँख में,
दूसरा है सोहता सुर शीश पर।
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे,
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर ।
— अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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