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नहीं होना बीमार Class 7 Summary in Hindi
नहीं होना बीमार Class 7 Hindi Summary
नहीं होना बीमार का सारांश – नहीं होना बीमार Class 7 Summary in Hindi
यह पाठ ‘स्वयं प्रकाश’ द्वारा रचित एक आत्मकथात्मक कहानी है, जिसमें एक बच्चे ने स्कूल से छुट्टी पाकर, आराम करने और साबूदाने की खीर खाने के लिए खुद के बीमार होने का बहाना बनाया।
कहानी में बच्चा अपनी नानीजी के साथ सुधाकर काका को अस्पताल में देखने जाता है, जहाँ वह अस्पताल का माहौल और काका की देखभाल देखकर बहुत खुश होता है। उसे यह सब बहुत अच्छा लगता है और वह सोचता है कि बीमार होने पर उसे भी ऐसी ही देखभाल मिलेगी। कुछ दिनों बाद, बच्चा होमवर्क नहीं करता है तो उसका स्कूल जाने का मन नहीं करता है किंतु उसे डर है कि वह सजा पाएगा, अतः वह खुद के बीमार होने का बहाना बनाता है।
वह रजाई ओढ़कर लेट जाता है और नानीजी से कहता है कि उसे सिर में दर्द, और बुखार पेट में तकलीफ हो रही है। नानीजी और नानाजी उसकी तबियत देखने आते हैं, लेकिन वह जानता है कि घर में कोई थर्मामीटर नहीं है, इसलिए वह आसानी से खुद को बीमार साबित कर सकता है।
बच्चे को यह उम्मीद है कि वह घर में आराम करेगा और स्वादिष्ट चीज़ें विशेष रूप से साबूदाने की खीर खाएगा, लेकिन नानाजी उसे कड़वी दवाइयाँ और काढ़ा पिलाते हैं। वह दिनभर भूखा ही रहता है और सोचता है कि अगर वह बीमार का बहाना न बनाकर स्कूल ही जाता तो कितना अच्छा होता।
कहानी के अंत में, जब उसका परिवार खाना खाने बैठता है और उसे खाने को कुछ नहीं मिलता, तो वह महसूस करता है कि बीमारी के बहाने से कुछ हासिल नहीं हुआ, बल्कि उसे दिनभर की बोरियत और भूख सहनी पड़ी। अंतत: वह यह निर्णय लेता है कि भविष्य में वह बीमारी का बहाना कभी नहीं बनाएगा, स्कूल जाकर सजा भले ही खा लेगा।
यह कहानी बच्चों के लिए एक संदेश देती है कि कभी भी बीमारी का बहाना नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि यह न केवल गलत आचरण है बल्कि इसके साथ बोरियत, भूख जैसी समस्याएँ भी हो सकती हैं।
नहीं होना बीमार शब्दार्थ
पृष्ठ संख्या – 57: गुनगुन- धीमी आवाज़ में गाना या बोलना।
पृष्ठ संख्या-59: थर्मामीटर – तापमान मापने का यंत्र । काढ़ा – उबाला हुआ जुड़ी-बूटी या मसालों वाला पानी । चहल-पहल – रौनक,
धूम-धाम ।
पृष्ठ संख्या-60: अक्लमंद – बुद्धिमान
नहीं होना बीमार पाठ लेखक परिचय
स्वयं प्रकाश हिंदी के जाने-माने लेखक थे। उनकी कहानियाँ बच्चों और बड़ों के दिलों को छू जाती हैं। स्वयं प्रकाश की कहानियाँ पढ़ते हुए लगता है मानो वे हमारे ही जीवन की कहानियाँ हैं, हमारे ही अनुभव उन्होंने लिख दिए हैं। उन्होंने बच्चों के लिए कई (1947-2019) मनोरंजक कहानियाँ लिखीं हैं, जिनमें उनके साहसिक कारनामे, मित्रता और जीवन के छोटे-छोटे लेकिन महत्वपूर्ण पहलुओं को बड़ी रोचकता से प्रस्तुत किया गया है।
स्वयं प्रकाश की कहानियों की विशेषता यह है कि उन्हें पढ़ते समय ऐसा लगता है, जैसे कोई पुराना मित्र बातें कर रहा हो। उनकी कहानियाँ न केवल मनोरंजन करती हैं बल्कि सोचने-समझने के लिए नई दिशाएँ भी देती हैं। मात्रा और भार, अगली किताब, ज्योति रथ के सारथी, फीनिक्स आदि इनकी कई रचनाएँ हैं।
Class 7 Hindi Chapter 5 Summary नहीं होना बीमार
एक दिन मुझे साथ लेकर नानीजी हमारे पड़ोसी सुधाकर काका को देखने गईं, जो बीमार थे। वे अस्पताल में भर्ती थे। अस्पताल जाने का यह मेरा पहला अवसर था।
एक बड़े से वार्ड में कई एक जैसे पलंग लाइन से लगे हुए थे। सब पर एक जैसी सफेद चादर और लाल कंबल । सफेद दीवारें, ऊँची छत, खिड़कियों पर हरे परदे और फर्श एकदम चमकता हुआ। एक पलंग पर सुधाकर काका लेटे हुए थे। एकदम पास पहुँचने पर दिखाई दिया।
हमें देखकर सुधाकर काका जैसे खुश हो गए। नानीजी ने उनके सिर पर हाथ फेरा और उनके सिरहाने खड़ी हो गईं और हालचाल पूछने लगीं।
अस्पताल का माहौल मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था। बड़ी-बड़ी खिड़कियों के पास हरे-हरे पेड़ झूम रहे थे। न ट्रैफिक का शोरगुल, न धूल, न मच्छर-मक्खी…। सिर्फ लोगों के धीरे-धीरे बातचीत करने की धीमी-धीमी गुनगुन । बाकी एकदम शांति।
तभी सफेद कपड़ों में एक नर्स आई। नर्स ने नानीजी को देखकर अभिवादन में सिर हिलाया
और काका को दवा खिलाई। नानीजी काका लिए साबूदाने की खीर बनाकर लाई थीं। नर्स से पूछा कि खिला दूँ क्या? नर्स के हाँ कहने पर उसके जाने के बाद नानीजी ने चम्मच से धीरे-धीरे काका को साबूदाने की खीर खिलाई। काका ने बहुत स्वाद लेकर खीर खाई ।
क्या ठाठ हैं बीमारों के भी। मैंने सोचा … ठाठ से साफ-सुथरे बिस्तर पर लेटे रहो और साबूदाने की खीर खाते रहो! काश! सुधाकर काका की जगह मैं होता! मैं कब बीमार पडूंगा!
कुछ रोज बाद एक दिन मेरा स्कूल जाने का मन नहीं किया। मैंने होमवर्क भी नहीं किया था। स्कूल जाता तो जरूर सजा मिलती। मैंने सोचा बीमार पड़ने के लिए आज का दिन बिलकुल ठीक रहेगा। चलो बीमार पड़ जाते हैं।
मैं रजाई से निकला ही नहीं। नानीजी उठाने आईं तो मैंने कहा, “मैं आज बीमार हूँ।”
“क्या हो गया?”
“मेरे सिर में दर्द हो रहा है। पेट भी दुख रहा है और मुझे बुखार भी है।”
नानीजी चली गईं।
मैं रजाई में पड़ा – पड़ा घर में चल रही गतिविधियों का अनुमान लगाता रहा। अब छोटे मामा नहाकर निकले। अब कुसुम मौसी रोज की तरह नाश्ता छोड़कर कॉलेज बस पकड़ने भागीं। अब मुन्नू अपना जूता ढूँढ़ रहा है। अब छोटे मामा ने साइकिल उठाई। अब सब चले गए। अब घर में मैं अकेला रह गया। पता नहीं कब झपकी-सी आ गई।
तभी नानाजी आए । “क्या हो गया? क्या हो गया?”
“बुखार आ गया।” मैंने कराहते हुए कहा।
“देखें !” नानाजी ने रजाई हटाकर मेरा माथा छुआ। पेट देखा और नब्ज देखने लगे।
इस बीच नानीजी भी आ गईं। “क्या हुआ ?”, नानाजी ने पूछा।
“बुखार तो नहीं है।” नानाजी बोले ।
“आपको पता नहीं चल रहा । थर्मामीटर लगाकर देखिए।” मैंने कहा ।
मुझे पता था घर में कोई नहीं है। थर्मामीटर लगा भी लिया तो देखेगा कौन? पर खुद को बीमार साबित करने के लिए यह चाल अच्छी थी। बहुत ढूँढ़ा गया पर थर्मामीटर मिला ही नहीं। शायद कोई माँगकर ले गया था।
फिर नानाजी की आवाज आई, “ले, पुड़िया खा ले।” न चाहते हुए भी मुझे कड़वी पुड़िया खानी पड़ी और काढ़े जैसी चाय पीनी पड़ी। फिर नानाजी बोले, “आज इसे कुछ खाने को मत देना। आराम करने दो। शाम को देखेंगे।”
दोनों चले गए।
मैं पता नहीं कब नींद में गुडुप हो गया।
कुछ देर बाद जब मेरी आँख खुली मुझे बड़ी तेज इच्छा हुई कि इसी समय बाहर निकलकर दिन की रोशनी में अपनी गली की चहल-पहल देखेँ। देखा जाए कि चंदूभाई ड्राइक्लीनर क्या कर रहे हैं? तेजराम की दुकान पर कितने ग्राहक बैठे हैं? महेश घी सेंटर ने मलाई का भगोना आँच पर चढ़ाया या नहीं और टेलीफोन के तारों पर कितनी चिड़िया बैठी हैं? लेकिन मजबूरी थी। चाहे जितनी ऊब हो, लेटे ही रहना था।
कुछ देर इधर-उधर की, स्कूल की, दोस्तों की बातें सोचता रहा… फिर लेटे-लेटे पीठ दुखने लगी तो उठकर बैठ गया। लेकिन बाहर कुछ आहट होते ही फिर से लेट गया।
नानाजी आए। बोले – “अब कैसा है सिरदर्द ?” मैंने कहा, “ठीक है” फिर भी एक पुड़िया और खिला गए ।
अचानक मुझे भूख-सी लगी। फल या साबूदाने की खीर मिलने की उम्मीद की तो सुबह ही हत्या हो चुकी थी। अब नानीजी से जाकर कहूँ कि भूख लग रही है तो वे क्या करेंगी? ज्यादा से ज्यादा यही कि दूध पी ले। या नानाजी से पूछने चली जाएँगी – वो कह रहा है भूख लगी है। और फिर नानाजी क्या कहेंगे? वही जो सुबह कह रहे थे – तबियत ढीली हो तो सबसे अच्छा उपाय है भूखे रहना। इससे सारे विकार निकल जाएँगे।
क्या मुसीबत है! पड़े रहो! आखिर कब तक कोई पड़ा रह सकता है? इससे तो स्कूल चला जाता तो ही ठीक रहता। सजा मिलती तो मिल जाती। कितना मजा आता जब रिसेस में ठेले पर जाकर नमक मिर्च लगे अमरूद खाते कटर-कटर ।
फिर झपकी लग गई।
लेकिन भूख के कारण ठीक से नींद भी नहीं आ रही थी। और आँख जरा लगती भी तो खाने ही खाने की चीजें दिखाई देतीं। गरमागरम खस्ता कचौड़ी…. मावे की बर्फी… बेसन की चिक्की….. गोलगप्पे। और सबसे ऊपर साबूदाने की खीर ! पता नहीं क्यों साबूदाने की खीर सिर्फ उपवास और बीमारी में ही बनाई जाती है। जैसे गुझिया सिर्फ होली – दिवाली और पंजीरी सिर्फ पूर्णिमा दिन ही बनाई जाती है। क्यों? क्या ये चीजें जब इच्छा हो तब नहीं बनाई जा सकतीं। कोई मना करता है?
हे भगवान! यह तो अच्छी खासी बोरियत हो गई । पूरा दिन कोई कैसे लेटा रहे? और शाम को…। क्या शाम को भी नानाजी बाहर जाने देंगे? सारे बच्चे हल्ला मचाते हुए आँगन में खेल रहे होंगे और मैं बिस्तर में पड़ा झख मार रहा होऊँगा। अक्लमन्द ! और बनो बीमार। और आज दिया गया होमवर्क ! किससे कॉपी माँगोगे? मैं रुआँसा हो गया।
पास के कमरे में होती खटर पटर से अंदाजा हुआ कि मुन्नू स्कूल से आ गया है। तो क्या एक बज गया? अब बरतनों की आवाज आ रही है। शायद सब लोग खाना खाने बैठ रहे हैं। मुन्नू एक बार भी मुझे देखने नहीं आया। आया भी होगा तो दबे पाँव आया होगा और मुझे सोता लौट गया होगा।
…..वो खाना खा रहे हैं। चबाने की आवाजें आ रही हैं। देखो ! उन्होंने एक बार भी आकर नहीं पूछा कि तू क्या खाएगा? पूछते तो मैं साबूदाने की खीर ही तो माँगता । कोई ताजमहल तो नहीं माँग लेता। लेकिन नहीं। भूखे रहो !! इससे सारे विकार निकल जाएँगे। विकार निकल जाएँ बस। चाहे इस चक्कर में तुम खुद शिकार हो जाओ।
…. आज क्या खाना बना होगा? खुशबू तो दाल-चावल की आ रही है। अरहर की दाल में हींग -जीरे का बघार और ऊपर से बारीक कटा हरा धनिया और आधा चम्मच देसी घी। फिर उसमें उन्होंने नीबू निचोड़ा होगा। थोड़ा-सा इस बीमार को भी दे दे कोई।
…..लेकिन खुशबू तो किसी और चीज की है। क्या हरी मिर्च तली गई है? उसे दाल-चावल में मसलकर खा रहे हैं। जब रहा नहीं गया तो मैं रजाई फेंककर खड़ा हो गया। दबे पाँव दरवाजे तक गया और चुपके से झाँककर देखा।
हाँ, दाल-चावल, तली हुई हरी मिर्च |
लेकिन मुन्नू आम चूस रहा था। आम ! इस मौसम में ! जरूर बंबई वाले चाचाजी ने भेजे होंगे। कैसे चूस रहा है। पूरी गुठली मुँह में ठूंसे। जैसे आम कभी देखे न हों। भुक्कड़ कहीं का पूरा भी सान रहा है।
मैं जलन, गुस्से और कुढ़न में पाँव पटकता वापस बिस्तर में आ गया। उस पूरे दिन मुझे भूखे पेट ही रहना पड़ा। सारे विकार निकल गए।
इसके बाद स्कूल से छुट्टी मारने के लिए मैंने बीमारी का बहाना कभी नहीं बनाया।
– स्वयं प्रकाश
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