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मीरा के पद Class 7 Summary Explanation in Hindi Chapter 10

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मीरा के पद Class 7 Summary in Hindi

मीरा के पद Class 7 Hindi Summary

मीरा के पद का सारांश – मीरा के पद Class 7 Summary in Hindi

पहले पद में मीराबाई का अपने आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति अन्यन्य प्रेम एवं भक्ति भाव व्यक्त हुआ है। वे श्रीकृष्ण के दिव्य एवं मनमोहक रूप का चित्रण करते हुए उनसे अपने नेत्रों में बस जाने का मधुर निवेदन कर रही हैं।

दूसरे पद में मीराबाई सावन ऋतु की सौंदर्य – छटा और अपने हृदय में उठी प्रभु-प्रेम की उमंग का वर्णन करती हैं। वे कहती हैं कि जब सावन की मनभावन घटाएँ बरसने लगती हैं, तब उनका मन हर्ष और उमंग से भर जाता है।

मीरा के पद Class 7 Summary Explanation in Hindi Chapter 10 1

बादल उमड़-घुमड़ कर चारों दिशाओं से आ जाते हैं, बिजली चमकती है और बारिश झरने लगती है। नन्हीं-नन्हीं बूँदों की वर्षा और शीतल पवन वातावरण को अत्यंत मधुर और सुंदर बना देते हैं। इस प्राकृतिक सौंदर्य में उन्हें प्रभु श्रीकृष्ण के आगमन की आहट सुनाई देती है। मीरा कहती हैं कि उनके प्रिय गिरधर नागर (श्रीकृष्ण) का स्मरण होते ही उनका मन आनंद और मंगल से भर उठता है, और वे उल्लास में डूबकर प्रभु की महिमा गाने लगती हैं।

मीरा के पद Class 7 Summary Explanation in Hindi Chapter 10

मीरा के पद कीव परिचय

मीरा के पद Class 7 Summary Explanation in Hindi Chapter 10 3

आपने जो रचना अभी पढ़ी है, उसे आज से लगभग 500 वर्ष पहले रचा गया था। इसे हिंदी की महान कवयित्री, कृष्ण भक्त और संत मीरा ने रचा था। यह माना जाता है कि मीरा बचपन से ही कृष्ण की भक्ति में मगन रहती थीं। एक राजकुमारी होते हुए भी उन्होंने संतों का जीवन और महलों को त्यागकर तीर्थों की यात्राएँ करने लगीं। उन्होंने मंदिरों में भजन गाना और सत्संग करना प्रारंभ कर दिया। उनके गाए हुए भजन लोग आज भी श्रद्धा और प्रेम से गाते, पढ़ते और सुनते-सुनाते हैं।

मीरा के पद हिंदी भावार्थ Pdf Class 7

मीरा के पद सप्रसंग व्याख्या

1. बसो मेरे नैनन में नंदलाल ।
मोहनि मूरति साँवरि सूरति, नैना बने विशाल ।।
अधर सुधा रस मुरली राजति, उर वैजंती माल ।।
क्षुद्र घंटिका कटितट सोभित, नूपुर शब्द रसाल।।
मीरा के प्रभु संतन सुखदाई, भक्त वछल गोपाल ।।
(पृष्ठ सं०-128)

शब्दार्थ :

नंदलाल – श्रीकृष्ण ।
मोहनि – मन को मोहित करने वाली ।
मूरति – मूर्ति, आकृति ।
साँवरि – साँवली (रंग) ।
सूरति – छवि।
अधर – होंठ ।
सुधा रस – अमृत जैसा रस ।
राजति – शोभित होती है।
वैजंती माल – फूलों की माला (कृष्ण जी की विशेष माला)।
घंटिका – छोटी घंटियाँ।
कटितट – कमर का किनारा ।
नूपुर – पायल ।
रसाल – मधुर ।
संतन सुखदाई – संतों को सुख देने वाले ।
भक्त वछल – भक्तों से प्रेम करने वाले।
गोपाल – श्रीकृष्ण (गायों के रक्षक) ।

प्रसंग :

प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित पाठ ‘मीरा के पद’ से लिया गया है। इसके रचयिता संत ‘मीरा’ है। इस पद में मीराबाई श्रीकृष्ण के मनमोहक रूप का वर्णन कर रही हैं।

व्याख्या :

मीरा श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुई उन्हें अपनी आँखों में बस जाने का निवेदन कर रही हैं। मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण के आकर्षक रूप की प्रशंसा करते हुए कहती हैं कि उनकी साँवली सूरत और बड़ी-बड़ी आँखें मन मोहने वाली हैं। उनके अधरों पर अमृत रस बरसाने वाली मुरली सुशोभित हो रही है। हृदय पर वैजंती माला और कमर पर छोटी-छोटी घंटियों वाली करधनी शोभायमान है। उनके पैरों में बँधे घुँघरू अत्यंत मधुर ध्वनि उत्पन कर रहे हैं।

मीरा अंत में कहती हैं कि ऐसे श्रीकृष्ण ही मेरे आराध्य हैं, जो संतों को सुख देने वाले और भक्तों के प्रति स्नेह रखने वाले गोपाल हैं।

2. बरसे बदरिया सावन की, सावन की मन भावन की ।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवन की ।।
उमड़ घुमड़ चहुँ दिश से आया, दामिन दम कै झर लावन की ।

नन्हीं नन्हीं बूँदन मेहा बरसे, शीतल पवन सोहावन की ।।
मीरा के प्रभु गिरधरनागर, आनंद मंगल गावन की ।।
(पृष्ठ सं०-128)

शब्दार्थ :

बरसे – वर्षा की रिमझिम ध्वनि (संगीतात्मक प्रभाव देती है) ।
बदरिया – बादलों की गड़गड़ाहट की ध्वनि, ताल जैसा प्रभाव
उमड़ घुमड़ – बादलों की गरजने और मँडराने की गूँज, रिदम उत्पन्न करती है।
दामिन दम – बिजली की चमक और उसकी आवाज़ – एक तीव्र ध्वनि।
झर लावन की – झरने की तरह गिरती वर्षा की रुनझुन ध्वनि ।
नन्हीं-नन्हीं बूँदन- वर्षा की कोमल बूँदों की टपकती हुई मधुर आवाज़
शीतल पवन-ठंडी हवा की सरसराहट – हल्की, लयात्मक ध्वनि ।
गावन की – गाने की क्रिया, संगीत से सीधा संबंध।

प्रसंग :

प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित पद ‘मीरा के पद’ से लिया गया है। इसके रचयिता ‘मीरा’ हैं। इस पद में मीराबाई ने सावन श्रीकृष्ण के अगमन का संकेत कैसे करता है; इसका वर्णन किया है।

व्याख्या :

मीराबाई कहती हैं कि सावन की सुंदर – सुहावनी घटाएँ बरसने लगी हैं। यह ऋतु मन को अत्यंत प्रसन्न करने वाली है। जब वर्षा ऋतु का यह दृश्य उनके सामने आता है, तो उनका मन प्रभु श्रीकृष्ण के आगमन की आशा से भर जाता है। उन्हें ऐसा लगता है जैसे बादलों की गरज और बूँदों की रिमझिम में श्रीकृष्ण के आने की आहट छुपी है।

सावन की उमड़-घुमड़ कर छाई घटाएँ, बिजली की चमक (दामिन) और बूँदों की झड़ी मानो उनके मन में प्रभु की उपस्थिति का संकेत देती हैं। ठंडी-ठंडी शीतल पवन से मन आनंदित हो उठता है। मीरा के अनुसार, यह मौसम उनके प्रिय गिरधर गोपाल की स्मृति को और अधिक सजीव कर देता है, जिससे वे आनंद और भक्ति में मग्न होकर प्रभु के मंगल गीत गाने लगती हैं।

मीरा के पद Class 7 Summary Explanation in Hindi Chapter 10

मीरा के पद Class 7 Summary Explanation in Hindi Chapter 10 2

Class 7 Hindi Chapter 10 Summary मीरा के पद

(1)

बसो मेरे नैनन में नंदलाल ।
मोहनि मूरति साँवरि सूरति, नैना बने विशाल ॥
अधर सुधा रस मुरली राजति, उर वैजंती माल ॥
क्षुद्र घंटिका कटितट सोभित, नूपुर शब्द रसाल ॥
मीरा के प्रभु संतन सुखदाई, भक्त वछल गोपाल॥

(2)

बरसे बदरिया सावन की, सावन की मन भावन की ।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवन की ॥
उमड़ घुमड़ चहुँ दिश से आया, दामिन दम कै झर लावन की ।
नन्हीं नन्हीं बूँदन मेहा बरसे, शीतल पवन सोहावन की ॥
मीरा के प्रभु गिरधरनागर, आनंद मंगल गावन की॥

– मीरा

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