गूँगे Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 4 Summary
गूँगे – रांगेय राघव – कवि परिचय
लेखक-परिचय :
जीवन-परिचय-रांगेय राधव हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार हैं। उनकी कहानियाँ जीवन के विविध पहलुओं को छूने की विशेषता रखती हैं। उनका जन्म 17 जनवरी, 1923 ई० को आगरा में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा भी आगरा में ही हुई। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए, पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। उन्हें सन 1961 ईी० में राजस्थान साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत किया था। केवल 39 वर्ष की अल्पायु में सन 1962 ईं० में उनका निधन हो गया था।
रचनाएँ – श्री रांगेय राषव बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने सभी विधाओं में साहित्य की रचना – है। इनमें कहानी, उपन्यास, कविता तथा आलोचना मुख्य हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
कहानी-संग्रह-राम राज्य का वैभव, देवदासी, समुद्र के फेन, अधूरी मूरत, जीवन के दाने, अंगारे न बुझे, ऐयाश मुरदे, इनसान पैदा हुआ। उपन्यास-घरॉंदा, सीधा-सादा रास्ता, अँधरे के जुगनू, बोलते खंडहर, कब तक पुकारूू तथा मुरदों का टीला।
उनकी संपूर्ण रचनाओं का संग्रह दस खंडों में ‘रांगेय राघव ग्रंधावली’ नाम से प्रकाशित हो चुका है।
भाथा-शैली – रांगेय राघव की कहानियाँ जीवन के विविध पहलुओं का बड़ा सहज उद्घाटन करती हैं। उन्होंने समाज के शोषित-पीड़ित मानव के जीवन के सथार्थ का बहुत मार्मिक चित्रण किया है। रांगेय राघव की भाषा में सरलता और प्रवाह का गुण रहता है। उन्होंने तत्सम शब्दों के साथ तद्भव और विदेशी शब्दों का भी सहज रूप में प्रयोग किया है जैसे चमेली आवेश में आकर चिल्ला उठी-‘मक्कार, बदमाश!’ इसी प्रकार से क्षोभ, निष्फल, नखरे, अचरज, विरस्कार, पक्षपात, शिकायत, चेतना, परदे, परिणत, गजब आदि प्रयोग देखे जा सकते हैं। उन्होंने संवादात्मक शैली का अत्यंत सहज भाव से प्रयोग किया है। इनके संवाद सहज, स्वाभाविक,संक्षिप्त तथा भावानुकूल हैं; जैसे-
‘शकुंतला क्या नहीं जानती ?’
‘कौन? शकुंतला! कुछ नहीं जानती।’
‘क्यों साहब? क्या नहीं जानती? ऐसा क्या काम है जो वह नहीं कर सकती?’
‘वह उस गूँगे को नहीं बुला सकती।’
लेखक ने शब्दों के माध्यम से वस्तु-स्थिति का यथार्थ अंकन करने में भी सफलता प्राप्त की है, जैसे गूँगे के न बोल सकने पर उसकी दशा का यह वर्णन-‘ वह ऐसे बोलता है जैसे घायल पशु कराह उठता है, शिकायत करता है, जैसे कुत्ता चिल्ला रहा हो और कभी-कभी उसके स्वर में ज्वालामुखी के विस्फोट की-सी भयानकता थपेड़े मार उठती है।
लेखक ने पेट बजाना, छत उठाकर सिर पर रखना, नाली का कीड़ा, पत्ते चाटना, कुत्ते की दुम क्या कभी सीधी होना आदि मुहावरों और लोकोक्तियों के सहज प्रयोग द्वारा भाषा की लक्षणा शक्ति में वृद्धि की है। इस प्रकार इस कहानी की भाषा-शैली प्रवाहपूर्ण, सहज, चित्रात्मक, संवादात्मक एवं भावपूर्ण है।
Gunge Class 11 Hindi Summary
‘गूरेगे’ कहानी रांगेय राघव की एक प्रसिद्ध कहानी है। यह कहानी एक गूँगे लड़के की है जिसमें शोषित एवं पीड़ित मानव की असहाय स्थिति का मार्मिक चित्रण किया गया है। गूँगे में ऐसी तड़पन है जो पाठक के हृदय को झकझोर देती है।
गूँगा बालक सभी का दया का पात्र है। वह जन्म से बहरा होने के कारण गूँगा है। वह सुख-दुख जो कुछ भी अनुभव करता है, उसे इशारों के माध्यम से प्रकट करता है। उसके इशारे एक प्रकार से दूसरों का मनोरंजन भी करते थे। वह इशारों से बताता था कि उसकी माँ घूंषट काढ़ती थी, छोड़ गई, क्योंकि बाप मर गया। उसका पालन-पोषण किसने किया यह तो समझ में नहीं आया। लेकिन उसके इशारों से इतना अवश्य स्पष्ट हो गया कि जिन्होंने उसे पाला, वे मारते बहुत थे। वह बोलने की बड़ी कोशिश करता है, लेकिन नतीजा कुछ नहीं, केवल कर्कश काँय-काँय का ढेर। अस्फुट ध्वनियों का वमन, जैसे आदिम मानव अभी भाषा बनाने में जी-जान से लड़ रहा हो। कैसी विडंबना है कि वह अपने हदय के उद्गार प्रकट करना चाहता है, पर कर नहीं पाता।
सुशीला गूँगे को मुँह खोलने के लिए कहती है। गूँगे के मुँह में कुछ नहीं। गले में कौअ है। किसी ने बचपन में गला साफ करने की कोशिश में काट दिया और वह ऐसे बोलता है, जैसे घायल पशु कराह उठता है।
खाने-पीने के विषय में पूछने पर बताता है-हलवाई के यहाँ रातभर लड्डू बनाए है, कड़ाही माँजी है, नौकरी की है, कपड़े धोए हैं-गूँगे का स्वर चीत्कार में बदल गया। सीने पर हाथ मारकर इशारा किया कि हाथ फैलाकर उसने कभी नहीं माँगा। वह भीख नहीं लेता। भुजाओं पर हाथ रखकर बताया कि वह मेहनत का खाता है।
चमेली के हृदय में अनाथ बच्चों के लिए दया थी। लेकिन वह इस गूँगे को घर में नौकर रखकर क्या करेगी ? लेकिन पूँगे ने इशारे से स्पष्ट किया कि वह सब कुछ समझता है। केवल इशारों की जरूरत है। चमेली ने उसे चार रुपए वेतन और खाना देने का वादा कर घर में नौकर रख लिया। सुशील ने चमेली को समझाया कि गूंगे को नौकर रखकर क्या करोगी ? पर चमेली के मन में दया थी। उसने कहा और कुछ नहीं करेगा तो कम-से-कम बच्चों की तबीयत तो बहलती रहेगी।
गूँगा अपने घर वापस नहीं जाना चाहता। उसे बुआ और फूफा ने पाला अवश्य था पर वे मारते बहुत थे। वे चाहते थे कि गूँगा कुछ काम करे और उन्हें कमा कर दे और बदले में बाजरे तथा चने की रोटियों पर निर्वाह करे।
गूँगे की यह आदत थी कि वह इधर-उधर भाग जाता था। घर के सब लोग जब खाना खा चुके तो वह अचानक दरवाजे पर दिखाई दिया और इशारे से बताया कि वह भूखा है। चमेली ने उसकी तरफ़ रोटियाँ फेंक दीं और पूछा कहाँ गया था। गूँगा अपराधी की भाँति खड़ा था। चमेली ने एक चिमटा उसकी पीठ पर जड़ दिया पर गूँगा रोया नहीं। चमेली की आँखों से आँसू गिरने लगे। वह देखकर गूँगा भी रोने लगा। गूँगा कभी भाग जाता और कभी लौटकर फिर आ जाता। जगह-जगह नौकरी करके भाग जाना उसकी आदत बन गई थी। एक दिन चमेली के बेटे बसंता ने गूँगे को चपत मार दी। गूँगे ने भी उसे मारने के लिए हाथ उठाया पर रुक गया।
गूँगा रोने लगा उसका रुदन इतना कर्कंश था कि चमेली चूल्हा छोड़कर वहाँ आई। पूछने पर पता चला कि खेलते-खेलते बसंता ने उसे मारा था। बसंता ने शिकायत की कि गूँगा उसे मारना चाहता था। गूँगा चमेली की भावभंगिमा से सब कुछ समझ गया था। उसने चमेली का हाथ पकड़ लिया। एक क्षण के लिए चमेली को लगा जैसे उसके पुत्र ने ही उसका हाथ पकड़ रखा है। एकाएक चमेली ने घृणा का भाव व्यक्त करते हुए अपना हाथ छुड़ा लिया। अपने बेटे का ध्यान आते ही चमेली के हृदय में गूँगे के प्रति दया का भाव भर आया। वह लौटकर चूल्हे पर जा बैठी, जिसके अंदर आग थी लेकिन उसी आग से वह सभी पक रहा था जिससे सब भयानक आग बुझती हैं-पेट की आग जिसके कारण आदमी गुलाम हो जाता है।
चमेली की समझ में आ गया कि गूँगा यह समझता है कि बसंता मालिक का बेटा है, इसलिए उसने बसंता पर हाथ नहीं उठाया। उसे अपनी हीन स्थिति का पूरा ज्ञान था। गूँगे पर चोरी का आरोप लगाया गया। चमेली ने उसे घर से निकाल दिया और चिल्लाकर कहा ‘मक्कार’ बदमाश! रोज़-रोज़ भाग जाता है, पत्ते चाटने की आदत पड़ गई है। नहीं रखना है हमें, जा त, इसी वक्त निकल जा।’ गूँगे ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। चमेली ने उसका हाथ पकड़कर उसे दरवाजे से बाहर धकेल दिया। गूँगा वहाँ से चला गया। चमेली देखती रही।
लगभग घंटे-भर बाद शकुंतला और बसंता दोनों चिल्ला उठे। चमेली ने नीचे उतर कर देखा गूंगा खून से लथ-पथ था। उसका सिर फट गया था। उसे सड़क के लड़कों ने पीट दिया था क्योंकि गूँगा होने के नाते वह उनसे दबना नहीं चाहता था। दरवाजे की दहलीज पर सिर रखकर वह कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था। चमेली चुपचाप देखती रही कि इस मूक अवसाद में युगों का हाहाकर भरकर गूंज रहा है और वे गूँगे -अनेक-अनेक हो संसार में भिन्न-भिन्न रूपों में हो गए हैं-जो कहना चाहते हैं पर कह नहीं पाते। जिनके हदय की प्रतिहिंसा न्याय और अन्याय को परखकर भी अत्याचार को चुनौती नहीं दे सकते, क्योंक बोलने के लिए स्वर होकर भी स्वर में अर्थ नहीं है, क्योंकि वे असमर्थ हैं।
कठिन शब्दों के अर्थ :
- गूँगे – जो बोल नहीं सकते
- वज्र बहरा – जिसे बिलकुल सुनाई न देता हो
- इंगित – इशारा
- कर्कश – कठोर
- चीत्कार – चीख
- पल्लेदारी – कुली का काम, बोझ उठाना
- रोष – क्रोध
- विस्मय – हैरानी
- पक्षपात – भेदभाव
- विक्षुब्ध – दुखी
- मूक – खामोश
- कृत्रिम – बनावटी, दिखावटी
- द्वेष – वैर
- कुतूहल – हैरानी, उत्सुकता
- जबर्दस्त – बहुत अधिक
- अस्पुट – अस्पष्ट
- परिणत – बदल
- प्रतिच्छाया – प्रतिबिंब
- भाव-भंगिमा – हाव-भाव
- विक्षोथ – दुख
- तिरस्कार – उपेक्षा
- निष्कल – बेकार
- अवसाद – दीनता
- वमन – डगलना
गूँगे सप्रसंग व्याख्या
1. करुणा ने सबको घेर लिया। वह बोलने की कितनी ज़बर्देस्त कोशिश करता है । लेकिन नतीजा कुछ नहीं, केवल कर्कश काँय-काँय का ठेर ? अस्फुट ध्वनियों का वमन, जैसे आदिम मानव अभी भाषा बनाने में जी-जान से लड़ रहा हो।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ रांगेय राघव द्वारा रचित कहानी ‘गूँग’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने एक गूँगे बालक के माध्यम से शोषित एवं पीड़ित मनुष्य की उस असहाय अवस्था का चित्रण किया है जो मूक भाव से सब अत्याचार सहन करता है और कभी इन अत्याचारों के विरोध में अपना आक्रोश भी व्यक्त करता है।
व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक उस समय का वर्णन कर रहा है जब गूँगा बालक अपनी दयनीय दशा का वर्णन संकेतों के माध्यम से करता है जिसे समझकर उपस्थित महिलाएँ उसके प्रति दया से भर उठती हैं। गूँगे को बोलने में असमर्थ देखकर उन सब महिलाओं को उसपर बहुत दया आई। वे देख रही थीं कि वह बोलने के लिए बहुत प्रयत्न करता है परंतु बोल नहीं पाता। उसके सभी प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं। उसके मुख से कठोर तथा कर्णकटु काँय-काँय की आवाजों के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं निकलता है। ऐसा लगता था जैसे वह अस्पष्ट ध्वनियों की उलटी कर रहा हो या प्राचीनकाल का मनुष्य अभी-अभी भाषा बनाने की पूरी कोशिश कर रहा है।
विशेष – (i) लेखक ने गूँगे-बहरे व्यक्ति की बोलने में असमर्थता का सजीव चित्रण करते हुए उसके न बोल सकने की स्थिति में लोगों की उसके प्रति करुणा की भावना का वर्णन किया है।
(ii) भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण तथा शैली भावात्मक है।
2. वह लौटकर चूले पर जा बैठी, जिसमें अंदर आग थी, लेकिन उसी आग से वह सब पक रहा था जिससे भयानक आग बुझती है-पेट की आग, जिसके कारण आदमी गुलाम हो जाता है।
प्रसंग – प्रस्तुत पक्तियाँ रांगेय राघव द्वारा रचित कहानी ‘गुँगे’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने एक गूँगे-बहरे व्यक्ति की मानसिक दशा का चित्रण किया है जो अपनी श्रवण क्षमता न होने की यातनाओं को सहन करने के लिए विवश है।
व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ने उस समय का वर्णन किया है जब बसंता गूंगे को चपत मार देता है और गूंगे की सांकेतिक बातों पर ध्यान न देकर चमेली बसंता की शिकायत पर गूँगे को डाँटती है तो गूँगा उसकी बाँह पकड़ लेता है कि कहीं वह उसे भी न मारे। चमेली उससे अपना हाथ छुड़ा लेती है। वह यह सोचकर गूँगे के प्रति ममता से भर उठती है कि कहीं उसका अपना बेटा गूँगा होता तो क्या उसकी भी यही दशा न होती। वह फिर से चूले के पास जा बैठती है जिसमें आग जल रही थी और उसी आग से वह भोजन पक रहा था जिससे पेट की आग अर्थात भूख मिटती है जिसके लिए मनुष्य को मनुष्य की गुलामी तक करनी पड़ती है।
विशेष – (i) लेखक ने इस तथ्य की ओर संकेत किया है कि मनुष्य को अपनी भूख मिटाने के लिए मनुष्य की गुलामी करनी पड़ती है।
(ii) भाषा मुहावरों से युक्त लाक्षणिक तथा भावपूर्ण है। शैली व्यंग्यात्मक तथा विचार प्रधान है।
3. सोचा-मारने से यह ठीक नहीं हो सकता। अपराध को स्वीकार करा दंड न देना ही शायद कुछ असर करे और फिर कौन मेरा अपना है। रहना हो तो ठीक से रहे, नहीं तो फिर जाकर सड़क पर कुत्तों की तरह जूठन पर ज़िंदगी बिताए, दर-दर अपमानित और लाँछित….।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ रांगेय राघव द्वारा रचित कहानी ‘गूँगे’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने एक मूक-बधिर बालक की दयनीय दशा का सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक उस समय का वर्णन करता है जब चमेली गूँगे को खाने के लिए बासी रोटी देती है तो अचानक ही उसे गूँगे के मुख से गुरंहट-सी सुनाई देती है। उसे लगता है कि उसने एक ऐसा पशु पाला है जिसके हृदय में मानवों की-सी वेदना है। वह उससे पूछती है कि क्या उसने चोरी की है ? गूँगा चुप रहता है। चमेली क्रोध से उसे घूरती है और सोचती है कि मारपीट करने से यह ठीक नहीं हो सकता। इसे इसके किए हुए अपराध का बोध कराकर इसे दंड न देने पर ही शायद इसपर कोई प्रभाव पड़ेगा। फिर वह सोचती है कि वह उसका कौन-सा अपना संबंधी हैं। यदि वह यहाँ रहना चाहता है तो उसे ठीक तरह से रहना चाहिए अन्यथा फिर इधर-उधर भटकते हुए कुत्तों के समान लोगों की फेंकी हुई जूठन को खाकर अपना जीवन व्यतीत करे और हर किसी से अपमान और लाँछन सहन करता रहे।
विशेष – (i) लेखक ने लोगों की उस मानसिक स्थिति को उजागर किया है जो अपने स्वार्थ के लिए मूक-बधिरों का प्रयोग करते हैं तथा आवश्यकता न होने पर उन्हें घर से निकाल देते हैं।
(ii) भाषा तत्सम-प्रधान, प्रवाहमयी तथा भावपूर्ण है। शैली वर्णनात्मक तथा विचार प्रधान है।
4. और ये गूंगे-अनेक-अनेक हो संसार में भिन्न-भिन्न रूपों में छा गए हैं-जो कहना चाहते हैं, पर कह नहीं पाते। जिनके द्दयय की प्रतिहिंसा न्याय और अन्याय को परखकर भी अत्याचार को चुनौती नहीं दे सकती, क्योंकि बोलने के लिए स्वर होकर भी-स्वर में अर्थ नहीं है…क्योंकि वे असमर्थ हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ रांगेय राघव द्वारा रचित कहानी ‘गूँगे’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने एक मूक-बधिर बालक की मनोदशा का वर्णन करते हुए उसकी व्यथा, शोषण तथा आक्रोश का वर्णन किया है।
व्याख्या – इन पंक्तियों में उस समय का वर्णन किया गया है जब सड़क के लड़के गूँगे का सिर फाड़ देते हैं और वह खून में लथपथ चमेली की दहलीज पर सिर रखकर कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था। उसकी सहायता करने कोई नहीं आता है। तब चमेली सोचती है कि केवल यही गूँगा नहीं है जो समाज से इस प्रकार की उपेक्षा सहन कर रहा है। इस संसार में और भी गूँगे हैं जो अलग-अलग रूप में समाज में विचरण कर रहे हैं। वे सामाजिक अन्यायों को देखकर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पाते। उनका मन न्याय और अन्याय में भेद करके भी अत्याचारों का विरोध नहीं कर पाता। उन्हें पता है कि उनके बोलने से कुछ नहीं हो सकता। उनमें इतनी शक्ति नहीं है कि वे समाज में होनेवाले अत्याचारों का विरोध कर सकें।
विशेष – (i) लेखक ने आज के समाज में व्याप्त संवेदनहीनता पर चिंता व्यक्त की है। किसी को दुखी देखकर भी कोई किसी की सहायता नहीं करता है। सब अपने तक ही सीमित हो गए हैं।
(ii) भाषा तत्सम-प्रधान, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है। शैली विचार प्रधान तथा व्यंग्यात्मक है।
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