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Class 11 Hindi Antra Chapter 5 Summary – Jyotiba Phule Vyakhya

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ज्योतिबा फुले Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 5 Summary

ज्योतिबा फुले – सुधा अरोड़ा – कवि परिचय

लेखिका-परिचय :

जीवन-परिचय-सुधा अरोड़ा का जन्म सन 1948 ई॰ में हुआ था। इन्होंने उच्च शिक्षा कोलकाता विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी तथा वहीं के दो कॉलेजों में अध्यापन कार्य भी किया था। इन्होंने ‘सारिका’ तथा ‘जनसत्ता’ में पाक्षिक तथा साप्ताहिक कॉलम भी लिखे थे जिनमें आम आदमी और महिलाओं से संबंधित विषयों को उठाया गया था। इसका संबंध विभिन्न महिला संगठनों से है तथा वे उनसे संबंधित कार्यों के प्रति सदा सक्रिय रहती हैं। इन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सन 1978 में विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। रचनाएँ-सुधा अरोड़ा की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैंकहानी संग्रह-बगैर तराशे हुए, काँसे का गिलास, काला शुक्रवार, युद्ध-विराम, महानगर की भौतिकी। संपादित-औरत की कहानी, दहलीज को लाँघते हुए, पंखों की उड़ान।

निबंध संग्रह – औरत की दुनिया बनाम दुनिया की औरत।

भाषा-शैली – सुधा अरोड़ा ने अपनी भावनाओं को अत्यंत सहज, रोचक एवं प्रभावशाली भाषा-शैली में व्यक्त किया है। जज्योतिबा फुले ‘ निबंध में लेखिका ने मुख्य रूप से तत्सम प्रधान भाषा का प्रयोग किया है जिसमें व्यावहारिक उर्दू के शब्दों का प्रयोग भी मिलता है, जैसे-‘ज्योतिबा फुले ब्राहमण वर्चस्व और सामाजिक मूल्यों को कायम रखने वाली शिक्षा और सुधार के समर्थक नहीं थे।’ इनकी शैली अत्यंत सहज तथा प्रवाहमयी है। वे घटनाओं का आँखों देखा विवरण प्रस्तुत करने में निपुण हैं, जैसे- ‘ “एक बार सावित्री शिखल गाँव के हार में गई। वहाँ कुछ खरीदकर खाते-खाते उसने देखा कि एक पेड़ के नीचे कुछ मिशनरी स्त्रियाँ और पुरुष गा रहे हैं। एक लाट साहब ने उसे खाते हुए और रुककर गाना सुनते देखा तो कहा ‘इस तरह रास्ते में खाते-खाते घूमना अच्छी बात नहीं है।’ सुनते ही सावित्री ने हाथ का खाना फेंक दिया।” इस प्रकार इस पाठ में सर्वत्र सहज तथा बोधगम्य भाषा एवं सहज वर्णनात्मक शैली का प्रयोग प्राप्त होता है।

Jyotiba Phule Class 11 Hindi Summary

‘ज्योतिबा फुले’ निबंध सुधा अरोड़ा द्वारा रचित है। लेखिका ने इस निबंध में ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री देवी द्वारा किए गए शिक्षा और सुधार संबंधी कायों का वर्णन किया है। उन्होंने समाज और धर्म के पारपरिक और अनीतिपूर्ण रूढ़ियों का विरोध किया। कुछ वरों, शोषितों और स्त्रियों की समानता के लिए अधिकारो की लड़ाई लड़ी, इसलिए उन्हें समाज का व्यापक विरोध भी सहन करना पड़ा। उनका संघर्ष दूसरों के लिए प्रेरणादायक रहा है।

भारत के सामाजिक विकास और व्यवस्था में बदलाव लानेवाले पाँच सुधारकों की सूची में महात्मा ज्योतिबा फुले का नाम नहीं है, इसका कारण यह है कि उन्होंने ब्राहमण होते हुए भी ब्राहमणवाद और पूँजीपति-समाज का डटकर विरोध किया। ब्राहमणों द्वारा यह कहने पर कि विद्या विशेष वर्गों के घर चली गई थी। महात्मा ज्योतिबा फुले के अनुसार शासक और धर्म के ठेकेदार आपस में मिलकर प्रशासन चलाते हैं, इसीलिए विशेष वर्गों और स्त्रियों को मिलकर उच्च प्रशासन व्यवस्था के विर्द्ध आंदोलन चलाना चाहिए।

महात्मा ज्योतिबा फुले के विचार ‘गुलाम गिरी’, ‘शेतकर यांचा आसूड’, ‘सार्वजनिक सत्यधर्म’ आदि पुस्तकों में मिलते हैं। वे अपने समय से आगे की सोच रखते थे। उनके आदर्श परिवार की कल्पना में पिता को बौद्ध, माता ईसाई, बेटी मुसलमान और बेटा सत्य के मार्ग पर का अनुक्षरण करनेवाला होना चाहिए। आधुनिक शिक्षा के लिए वे कहते थे यदि विशेष वर्गों को शिक्षा का अधिकार नहीं है ऐसी शिक्षा का क्या लाभ है उनसे ही ‘कर’ के रूप में पैसा इकट्ठा करके ऊँची जाति के बच्चों की शिक्षा पर खर्च करना कहाँ तक उचित है। समाज के मुट्ठीभर लोगों का प्रतिनिधित्व करनेवाले और समाज-सुधार की बात करने वाले लोगों को महात्मा फुले की बातें पसंद नहीं थी इसलिए उनका नाम समाज-सुधारकों की सूची में शामिल नहीं किया। इससे ब्राहमण मानसिकता का पता चलता है।

1883 में ज्योतिबा फुले ने ‘शेतकर यांचा आसूड’ में कहा है कि विद्या के बिना मनुष्य के सभी काम बिगड़ जाते हैं क्योंकि विद्या प्राप्त न करने से बुद्धि का विकास नहीं होता। बुद्धि का विकास न होने पर अच्छे-बुरे की पहचान नहीं होती। जब अच्छे-बुरे का ज्ञान ही नहीं है तो समाज में किस प्रकार कार्य किया जाएगा। समाज में बिना काम किए धन नहीं मिलेगा और धन पास न होने से वर्ग, पिछड़े ही रहेंगे, अपना उद्धार नहीं कर सकेंगे। फुले जी के अनुसार स्त्रियों को भी पुरुषों के समान शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए। स्त्रियों को पुरुषों जैसी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। उनसे पक्षपात नहीं करना चाहिए। उन्होंने विवाह-विधि में से ब्राह्मण का स्थान ही हटा दिया और स्त्रियों की गुलामीवाले सभी मंत्र निकाल दिए। उनके स्थान पर विवाह-विधि के नए मंत्रों की रचना की। इन मंत्रों में स्त्री पुरुष से, उसको स्वतंत्रता देने के अधिकार की शपथ लेने को कहती है। फुले जी ने स्त्रियों की स्वतंत्रता के लिए बहुत प्रयत्त किए।

1888 में फुले जी को ‘महात्मा’ उपाधि से विभूषित किया गया। उन्होंने कहा कि उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि नहीं चाहिए। इससे समाज में फैला संघर्ष समाप्त हो जाता है। वह एक साधारण व्यक्ति के समान ही कार्य करना चाहते हैं। वे कथनी और करनी में विश्वास करते थे। स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए, इसके लिए सबसे पहले अपनी पत्नी सावित्री बाई को शिक्षित किया। सावित्री बाई को भी बचपन से शिक्षा में रुचि थी लेकिन उनके पिता ने उन्हें नहीं पढ़ाया। उनके अनुसार स्वियाँ पढ़ने से बिगड़ जाती हैं। 14 जनवरी, 1848 को पुणे में भारत की सबसे पहली कन्या पाठशाला खुली। इसके बाद उन्होंने पिछड़े वर्गों और लड़कियों के लिए पाठशाला खोलनी आरंभ कर दीं। इस काम में प्रतिष्ठित समाज ने दोनों का कड़ा विरोध किया। उन्हें ब्राहमण समाज से बाहर निकाल दिया। ज्योतिबा के पिता ने भी उसे पुरोहितों और रिश्तेदारों से डरकर अपने घर से निकाल दिया।

सावित्री देवी को पाठशाला में जाने से रोकने के लिए लोगों ने उन पर थूक फेंका, पत्थर मारे और गोबर उछाला लेकिन पति-पत्नी दोनों ने धैर्य नहीं छोड़ा। दोनों ने सभी प्रकार के विरोधों का डटकर मुकाबला किया। 1840-1890 तक दोनों ने पचास वर्षों तक एक साथ मिलकर विशेष वर्ग के लिए कार्य किया। उन्होंने मिशनरी महिलाओं की तरह किसानों और उन वरों के घर जाकर लड़कियों को पाठशाला भेजने, बाल हत्या रोकने और विधवाओं को फिर से जीवन शुरू करने के कार्य किए। विशेष वर्ग की एक घूँट पानी पीकर प्यास बुझाने की तकलीफ़ को देखा। ज्योतिबा फुले ने अपने घर की पानी की टंकी सभी जतियों के लिए खोल दी।

ज्योतिबा फुले और सावित्री देवी ने सभी काम डंके की चोट पर किए। पिछड़े वर्गों और स्त्रियों को पारंपरिक रूढ़ियों से बाहर निकाला। आज के आधुनिक समाज में पढ़े-लिखे प्रतिष्ठित लोग कई साल तक साथ रहकर अलग हो जाते हैं और अपने को ठीक बताने के लिए अपने साथी पर तरह-तरह के आरोप लगाते हैं। ऐसे में ज्योतिबा और सावित्री देवी का एक-दूसरे के प्रति समर्पित जीवन भाव की भावना अन्य दंपतियों के लिए एक आदर्श है।

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • अप्रत्याशित – जिसकी उम्मीद भी न हो
  • बदलाव – परिवर्तन
  • शुमार – गिनती, शामिल
  • उच्चवर्णीय – ऊँची जाति के, उच्च वर्ग से संबौधित
  • वर्चस्व – दबदबा, प्रधानता
  • कायम रखना – बनाए रखना, स्थिर रखना
  • पूँजीवादी – जो पूँजी को सर्वाधिक महत्व प्रदान करता है
  • संगृहित – एकत्रित करना
  • अवधारणा – मान्यता, विचार
  • सत्यधर्मी – सत्य धर्म का अचरण करनेवाला
  • सर्वांगीण – सब प्रकार से
  • संभ्रांत – श्रेष्ठ, उच्चवर्ग
  • असलियत – वास्तविकता
  • पर्दाफ़ाश – उजागर करना, रहस्य या भेद खोलना
  • पक्षपात – भेदभाव, किसी एक पक्ष को बढ़ावा देना
  • गुलामगिरी – लोगों से गुलामी करवाना
  • पूर्णविराम – समाप्त करना
  • मठाधीश – किसी मठ का अधिष्ठाता या स्वामी, जो किसी धर्म या वर्ग के नाम पर समूह बनाते हैं
  • हाट – बाज़ार
  • आग बलूला होना – अत्याधिक क्रोध करना
  • कन्याशाला – लड़कियों की पाठशाला
  • व्यवधानों – अड़चनों, रुकावटों
  • मुकाम – अवसर
  • डंके की चोट पर – ख्रुले आम
  • आमादा – तैयार, उद्भत

ज्योतिबा फुले सप्रसंग व्याख्या

1. स्वतंत्रता का अनुभव हम स्त्रियों को है ही नहीं। इस बात की आज शपथ लो कि स्त्री को उसका अधिकार दोगे और उसे अपनी स्वतंत्रता का अनुभव करने दोगे।” यह आकांक्षा सिफ़़ वधू की ही नहीं, गुलामी से मुक्ति चाहनेवाली हर स्त्री की थी।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण सुधा अरोड़ा द्वारा लिखित निबंध ‘ज्योतिबा फुले’ से अवतरित किया गया है। लेखिका ने इस निबंध के माध्यम से यह बताया हैं कि ज्योतिबा फुले द्वारा समाज और धर्म के पारंपरिक और अनीतिपूर्ण विचारों का विरोध कर पिछड़े वर्गों और स्त्रियों की समानता और शिक्षा के हक के लिए लड़ाई लड़ी, जिसके कारण उन्हें समाज का विरोध भी झेलना पड़ा।

व्याख्या – लेखिका कहती हैं कि ज्योतिबा फुले ने स्त्री की समानता और स्वतंत्रता को प्रतिष्ठित करने के लिए नई विवाह विधि की रचना की। उन्होंने इसमें से विचारधारा का निकाल दिए जिन के अनुसार स्त्री को गुलाम समझा जाता था। उन मंत्रों के स्थान पर ऐसे मंत्र बनाए जिनमें वधू वर से अपने लिए स्वतंत्रता की माँग करती हुई कहती है कि उन्होंने अपनी आज्ञादी कभी महसूस ही नहीं की है अर्थात स्त्रियों को समाज में स्वतंत्र रूप से अपने लिए सोचने का अधिकार नहीं है। इसलिए नए जीवन का आरंभ करते हुए वह इस बात की कसम ले कि अपनी स्त्री को समाज में अपने ही समान स्वतंत्र रूप से रहने का अधिकार देंगे। इस अधिकार से स्त्री स्वयं को बंधनों से मुक्त अनुभव करेगी। केवल समाज में इस प्रकार की इच्छा करने वाली वधू ही नहीं थी अपितु हर वह नारी थी जो पुरुष की दासता से आजादी चाहती थी। नारी भी समाज में पुरुषों से अलग अपना अस्तित्व बनाना चाहती थी।

विशेष – (i) लेखिका के अनुसार ज्योतिबा फुले स्त्री को पुरुषों के समान स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार देने के पक्ष में थे।
(ii) उस समय की स्त्री भी समाज में पुरुष की दासता से मुक्ति चाहती थी।
(iii) भाषा तत्सम प्रधान है। शैली विचारात्मक है।

2. ‘मुझे ‘महात्मा’ कहकर मेरे संघर्ष को पूर्ण-विराम मत दीजिए। जब व्यक्ति मठाधीश बन जाता है तब वह संघर्ष नहीं कर सकता। इसलिए आप सब साधारण जन ही रहने दें, मुझे अपने बीच से अलग न करें।”

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ सुधा अरोड़ा द्वारा लिखित निबंध ‘ज्योतिबा फुले’ से ली गई हैं । लेखिका ने इस पाठ में ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई द्वारा निर्धनों, शोषितों और स्त्रियों के उद्धार के लिए किए गए कार्यों का वर्णन बड़े प्रेरणाप्रद ढंग से किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखिका उस समय का वर्णन कर रही हैं जब ज्योतिबा फुले को उनके कायों के फलस्वरूप ‘महात्मा’ की उपाधि से सम्मानित किया जा रहा था अर्थात ज्योतिबा फुले ने विशेष वर्गों और स्त्रियों को समाज में उचित स्थान दिलवाने में बहुत संघर्ष किया था। ज्योतिबा फुले ने महात्मा की उपाधि से सम्मानित करने पर कहा था कि उन्हें महात्मा नहीं बनना है। महात्मा बनने से संघर्ष समाप्त हो जाता है क्योंकि जब मनुष्य किसी समाज का मुखिया बन जाता है तो वह किसी के अधिकार के लिए लड़ाई नहीं लड़ सकता। इसलिए सब लोग उन्हें आम व्यक्ति ही बना रहने दें क्योंकि विशेष बनने से वह उन लोगों से दूर हो जाएँगे जिनके लिए उन्होंने संघर्ष किया। वह उन लोगों से अलग रहना नहीं चाहते अर्थात ज्योतिबा फुले आम व्यक्ति की तरह उन लोगों के बीच में रहना चाहते थे।

विशेष – (i) लेखिका कहती हैं कि ज्योतिबा फुले के अनुसार महान बनने पर आम व्यक्ति संघर्ष नहीं कर सकता।
(ii) ज्योतिबा फुले बड़े-बड़े कार्य करने के उपरांत भी साधारण जीवन जीना पसंद करते थे।
(iii) भाषा तत्सम, प्रधान है और शैली प्रभावोत्पादक है।

3. दोनों पति-पत्नी सारी बाधाओं से जूझते हुए अपने काम में डटे रहे। 1840-1890 तक पचास वर्षों तक, ज्योतिबा और सावित्री बाई ने एक प्राण होकर अपने मिशन को पूरा किया। कहते हैं-एक और एक मिलकर ग्यारह होते हैं, ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले ने हर मुकाम पर कंधे-से-कंधा मिलाकर काम किया।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘सुधा अरोड़ा’ द्वारा लिखित ‘ज्योतिबा फुले’ निबंध से ली गई हैं। लेखिका ने इस पाठ में बताया है कि ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई ने समाज और धर्म की अनीतिपूर्ण रूढ़ियों का विरोध कर विशेष वर्गों, शोषितों और स्त्रियों की समानता के अधिकारों की लड़ाई लड़ी जिसके कारण दोनों को समाज का व्यापक विरोध भी सहना पड़ा। लेकिन दोनों ने साइस नहीं छोड़ा।

व्याख्या – लेखिका कहती हैं कि ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई को विशेष वर्गों तथा स्त्रियों के अधिकारों के लिए ब्राह्मण और पूँजीवादी समाज का विरोध सहना पड़ा और समाज से निष्कासित होना पड़ा। उनके परिवारवालों ने भी समाज और रिश्तेदारों के भय से दोनों को घर से निकाल दिया। दोनों ने सभी प्रकार के विरोधों का डटकर मुकाबला किया। सभी प्रकार की कठिनाइयों को पार करते हुए अपने लक्ष्य को पूरा करने में जुटे रहे।

पचास वर्षों तक दोनों ने साथ रहकर एक-दूसरे के प्रति समर्पित होकर अपने मिशन को पूरा किया अर्थात दोनों समाज के तमाम विरोधों से टूटे नहीं। एक-दूसरे का साथ देते हुए अपने समाज-सुधार के मार्ग पर चलकर मंज़िल प्राप्त की।ऐसे लोगों के लिए कहा गया है कि साथ-साथ चलनेवाले लोग एक और एक मिलकर ग्यारह हो जाते हैं अर्थात ऐसे लोगों को किसी अन्य के साथ की ज़रूरत नहीं होती क्योंकि उनके साथ उनके हर कदम में साथ देने वाला साथी होता है। ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले ने हर क्षेत्र में एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य किया है।

विशेष – (i) लेखिका के अनुसार दोनों ने जीवन-पयंत एक-दूसरे का साथ देते हुए अपना लक्ष्य प्राप्त किया। ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले के एक-दूसरे के प्रति समर्पित भाव का प्रदर्शन है।
(ii) भाषा सहज एवं व्यावहारिक है । शैली वर्णनात्मक है। मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है।

4. महात्मा ज्योतिबा फुले ने लिखा है ” स्त्री-शिक्षा के दरवाज़े पुरुषों ने इसलिए बंद कर रखे हैं कि वह मानवीय अधिकारों को समझ न पाए, जैसी स्वतंत्रता पुरुष लेता है, वैसी ही स्वतंत्रता स्त्री ले तो ? पुरुषों के लिए अलग नियम और स्त्रियों के लिए अलग नियम-यह पक्षपात है।”

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण ‘सुधा अरोड़ा’ द्वारा लिखित ‘ज्योतिबा फुले’ से अवतरित किया गया है। इस पाठ में लेखिका ने ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई द्वारा किए गए समाज-सुधार के कार्यों के विषय में बताया है। ज्योतिबा फुले ने शोषितों, विशेष वर्गों और स्त्रियों को शिक्षा और समानता के अधिकार दिलाने के लिए प्रतिष्ठित समाज से संघर्ष किया। उनका संघर्ष सभी के लिए एक आदर्श उदाहरण है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखिका ने ज्योतिबा फुले के शिक्षा संबंधी विचारों का वर्णन किया है। ज्योतिबा फुले के अनुसार सभी को शिक्षा-प्राप्ति के समान अवसर मिलने चाहिए। शिक्षित व्यक्ति ही समाज में उन्नति कर सकता है तथा उचित सम्मान प्राप्त कर सकता है। उनके अनुसार पुरुषों ने स्त्रियों के शिक्षा-प्राप्ति के सभी रास्ते बंद कर रखे थे। वह स्त्रियों को शिक्षा प्राप्ति के अवसार नहीं देना चाहते थे। यदि स्त्रियाँ शिक्षित हो जाएँगी तो उन्हें अपने अधिकारों का पता चल जाएगा और वह पुरुषों के समान स्वतंत्रता से निर्णय लेने तथा अपने अस्तित्व के बारे में विचार करने लगेंगी और पुरुष वर्ग ऐसा नहीं चाहता। इसीलिए समाज़ ने पुरुषों के लिए अलग नियम बनाए हैं और स्त्रियों के लिए अलग नियम बनाए हैं। उन्होंने ही समाज में स्त्रियों और पुरुपों में भेदभाव किया है। ज्योतिबा फुले इस पक्षपात के विरुद्ध आवाज उठाने के पक्ष में थे।

विशेष – (i) ज्योतिबा फुले स्त्री शिक्षा के पक्ष में थे। वे समाज में स्त्रियों और पुरुषों में उत्पन्न भेदभाव के विरुद्ध थे।
(ii) भाषा तत्सम-प्रधान तथा उर्दू के शब्दों से युक्त है। शैली वर्णन प्रधान है।

5. आज के प्रतिस्पद्धात्मक समय में, जब प्रबुद्ध वर्ग के प्रतिष्ठित जाने-माने, दंपती साथ रहने के कई बरसों के बाद अलग होते ही एक-दूसरे को संपूर्णतः नष्ट-भ्रष्ट करने और एक-दूसरे की जड़ें खोदने पर आमादा हो जाते हैं, महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले का एक-दूसरे के प्रति और एक लक्ष्य के प्रति समर्पित जीवन एक आदर्श दांपत्य की मिसाल बनकर चमकता है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश ‘सुधा अरोड़ा’ द्वारा लिखित ‘ज्योतिबा फुले ‘ से अवतरित किया गया है। लेखिका ने इस पाठ में ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई के आदर्श जीवन का वर्णन किया है। उन दोनों ने एक साथ मिलकर समाज और धर्म के पारंपरिक और अनीतिपूर्ण रूढ़ियों का विरोध किया तथा विशेष वर्गों, शोषितों और स्त्रियों की शिक्षा और समानता की लड़ाई लड़ी। उनका संघर्ष आज के समाज के लिए प्रेरणाप्रद है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखिका ने ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई के आदर्श जीवन का वर्णन किया है। दोनों ने पचास वर्ष तक समाज और परिवार का व्यापक विरोध एक-दूसरे का साथ देकर सहा तथा पिछड़े वर्गों और शोषितों के उत्थान के लिए कार्य किए। लेखिका कहती है कि आज के आधुनिक और भौतिकवादी युग में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी हुई है। ऐसे समय में समाज के पढ़े-लिखे और प्रतिष्ठित परिवारों के पति-पत्नी कई सालों तक साथ रहकर कुछ मतभेदों के कारण अलग हो जाते हैं।

अलग होने के बाद दोनों पति-पत्नी समाज में स्वयं को सही सिद्ध करने के चक्कर में एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं तथा उसका सम्मान नष्ट करने के लिए दृढ़ संकल्प हो जाते हैं। ऐसे समय में ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई का दांपत्य जीवन एक आदर्श प्रस्तुत करता है। वे दोनों पूरी तरह से एक-दूसरे को सर्मर्पित थे। उनकी मंज्ञिल भी एक थी तथा उस मंजिल को पाने का मार्ग भी एक था। इस प्रकार दोनों का पूरा जीवन आज के दंपत्तियों के लिए एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।

विशेष – (i) लेखिका ने ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई के पूरे जीवन को आज के भौतिकवादी पति-पतियों के लिए आदर्श बताया है। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति समर्पित जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
(ii) भाषा उर्दू शब्दों से युक्त-तत्सम प्रधान है। शैली उपदेशात्मक है।

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