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Class 11 Hindi Antra Chapter 6 Summary – Khanabadosh Vyakhya

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खानाबदोश Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 6 Summary

खानाबदोश – ओमप्रकाश वाल्मीकि – कवि परिचय

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय – प्रसिद्ध दलित लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि का जन्म सन 1950 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर ज़िले में बरला नामक स्थान पर हुआ। अपने अध्ययन काल में उन्हें अनेक सामाजिक और मानसिक के साथ-साथ आर्थिक कष्टों को भी झेलना पड़ा। इन कष्टों से जूझते हुए उन्होंने हिंदी विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि ग्रहण की। ओम प्रकाश वाल्मीकि ने महाराष्ट्र के विशेष लेखकों के संपर्क में आने के बाद बाबा साहब डॉ० भीमराव अंबेडकर की रचनाओं का खूब अध्ययन एवं चिंतन-मनन किया।

हिंदी में विशेष साहित्य को विकसित करने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। उन्हें उनकी आत्मकथा ‘जूठन’ के कारण हिंदी साहित्य में विशेष पहचान मिली है। सन 1993 में वाल्मीकि जी को डॉ॰ अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार से तथा सन 1995 में परिवेश पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वर्तमान में वे देहरादून की ऑडिनेंस फैक्टरी में अधिकारी के पद पर कार्य कर रहे हैं।

रचनाएँ – वाल्मीकि ने अपनी रचनाओं में मुख्यत: जातीय अपमान और असहायों के उत्पीड़न को आधार बनाया है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि एक असहाय की पीड़ा को असहाय ही बेहतर ढंग से समझ सकता है और उसकी अभिव्यक्ति कर सकता है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

कविता संग्रह – सदियों का संताप, बस! बहुत हो चुका।
कहानी-संग्रह – सलाम।
आत्मकथा – जूठन।
इसके अतिरिक्त उन्होंने आलोचनात्मक लेखक भी लिखे हैं।

भाषा-शैली – प्रस्तुत पाठ में लेखन अत्यंत सहज तथा साधारण बोलचाल की भाषा-शैली का प्रयोग किया है। उनकी भाषा अत्यंत तथ्यपरक तथा आवेगमयी है। भाषा में व्यंग्य का गहरा पुट भी स्पष्ट झलकता है। लेखक ने कहीं-कहीं आत्मिक, दुश्चिंता, अवसाद, आक्रोश, अवचेतन जैसे तत्सम शब्दों के साथ पाथना, गमक, बाट, हाड़, गोड़, खसम, पचड़ा जैसे देशज शब्दों का भी प्रयोग किया है। कही-कहीं लोक प्रचलित विदेशी शब्दों का प्रयोग भी देखा जा सकता है, जैसे-मुआयना, औकात, माहौल, दफ्तर, इयूटी, अर्दली, हैं डपंप, ट्रांजिस्टर, शिद्दत आदि। लेखक की भाषा-शैली में राजस्थानी का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है जिससे भट्ठे का वातावरण सजीव हो उठता है, जैसे-‘यह भट्ठा मालिक का है। हम ईटें उनके लिए बनाते हैं। हम तो मज़दूर हैं। इन इटों पर अपना कोई हक ना है।’

लेखक ने मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से इस कहानी में सरसता एवं व्यंग्य उत्पन्न कर दिया है। मानो जब अपना पक्का मकान बनाने के लिए कहती है तो सुकिया उत्तर देता है-‘पक्की ईंटों का घर दो-चार रुपए में ना बणता है। इत्ते छेर से नोट लगे हैं घर बणाने में। गाँठ में नहीं है पैसा, चले हाथी खरीदने।’ अन्यत्र भी चर्बीं चढ़ जाना, पोर-पोर टूटना, पचड़े में पड़ना आदि मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है। ‘संवादों के द्वार’ कहानी में रोचकता एवं गति उत्पन्न की गई है।

कहीं-कहीं चित्रात्मक शैली के भी दर्शन होते हैं; जैसे-‘भट्ठे की चिमनी धुआँ उगलने लगी थी। यह धुआँ मीलों दूर से दिखाई पड़ जाता था। हरे-भरे खेतों के बीच गहरे मटमैले रंग का यह भट्ठा एक धब्बे जैसा दिखाई देता था।’ इस प्रकार प्रस्तुत पाठ में लेखक की भाषा-शैली व्यावहारिक तथा भावानुकूल है। लेखक ने मुख्य रूप से वर्णनात्मक, भावप्रधान, चित्रात्मक एवं संवादात्मक शैलियों का प्रयोग किया है।

Khanabadosh Class 11 Hindi Summary

‘खानावदोश’ कहानी में ओमप्रकाश वाल्मीकि ने मजदूरी करके किसी तरह गुज़र-बसर कर रहे मजदूर वर्ग के शोषण और यातना को चित्रित किया है. मज्रदूर वर्ग यदि ईमानदारी से मेहनत-मजदूरी करके इक्ज़त के साथ जीवन जीना चाहता है, तो समृद्ध और ताकतवर लोग उन्हें जीने नहीं देते। मजदूर बर्ग समाज की जातिवादी मानसिकता से उबर नहीं पाया है। कहानी में ईट के भट्ठे पर काम करने वाले मजदूर अपनी जमीन से उखड़ कर मजदूरी करने के लिए वहाँ आते हैं और तरह-तरह के शोषण-चक्रों में फँस जाते हैं। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से इस शोषण-चक्र को बेनकाब करके रख दिया है।

सुकिया और मानो असगर ठेकेदार के साथ, तरक्की की आस लेकर गाँव छोड़कर, इट के भट्ठे पर काम करने आए थे। भट्ठे पर सबसे कठिन काम मोरी पर काम करना होता था। वहाँ इटें पकाने के लिए कोयला, बुरादा, लकड़ी और गन्ने की बाली को मोरियों के अंदर डालना होता था। असगर ठेकेदार ने सुकिया और मानो के एक सप्ताह के काम से खुश होकर उन्हें साँचे पर ईंट पाथने का काम दे दिया था। भट्ठे पर दिन तो गहमा-गहमी वाला होता था लेकिन रात होते ही भट्ठा अँधेरे की गोद में समा जाता था। मानो भट्ठे की जिंदगी से तालमेल नहीं बैठा पाई थी, परंतु सुकिया की दलीलों के आगे द्युक जाती थी कि गाँव में जाकर फिर से नर्क की जिदरी गुजारनी पड़ेगी। यदि तरक्की करनी है तो शहर में रहना ही पड़ेगा।

पहले महीने ही सुकिया ने कुछ रुपए बचा लिए थे, जिन्हें देखकर मानो भी खुश थी। उन दोनों ने ज़्यादा पैसे कमाने के लिए अधिक काम करना शुरू कर दिया। उनके साथ एक छोटी उम्र का लड़का जसदेव भी काम करता था। एक दिन भट्ठे के मालिक मुखतार सिंह की जगह उनका बेटा सूबे सिंह भट्ठे पर आया। सूबे सिंह के भट्ठे पर आने से भट्ठे का माहौल बदल गया। उसके सामने असगर सिंह भी भीगी बिल्ली बन जाता था। भट्ठे पर काम करनेवाली किसनी को सूबे सिंह ने अपने जाल में फंसा लिया था। किसनी उसके साथ शहर भी कई-कई दिन के लिए चली जाती थी। उसका पति महेश मन मारकर रह जाता था। असगर ठेकेदार ने उसे शराब की लत लगा दी थी। किसनी के हालात बदल गए थे। अब उसके पास ट्रांजिस्टर तथा अच्छे-अच्छे कपड़े आ गए थे।

भट्ठे में पक्की लाल ईंटों को देखकर मानो अपना पक्का घर बनाने का सपना देखने लगी। उसने सुकिया से पूछा कि एक घर बनाने में कितनी ईटें लगती हैं। सुकिया ने कहा कि इंटों के अलावा लोहा, सीमेंट, लकड़ी, रेत आदि सामान भी लगता है। यह सुनकर मानो बेचैन हो गई थी। उसके दिमाग में ईंटों का लाल रंग छा गया था। वह सुकिया से अपने घर के लिए इटें बनाने को कहती है तो सुकिया उसे समझाता है कि ये इंें तो भट्ठे के मालिक की हैं। इनपर हमारा हक नहीं है। अब मानो और सुकिया का एक ही लक्ष्य था कि पैसे इकट्ठे करके अपने लिए पक्की ईंटों का घर बनाना है, इसलिए वे पहले से अधिक मेहनत करने लगे थे।

एक दिन सूबे सिंह ने अपने दफ़्तर में मानो को बुलवाया था। सुकिया और जसदेव को यह बात अच्छी नहीं लगी। मानो के स्थान पर सूबे सिंह के पास जसदेव चला गया। जसदेव को देखकर सूबे सिंह को क्रोध आ गया और उसने उसे बहुत मारा। उस दिन की घटना से सूबे सिंह से सभी सहम गए थे। मानो और सुकिया को जसदेव पराए शहर में अपना लगने लगता था। मानो जसदेव के लिए खाना लेकर जाती थी। जसदेव ब्राहमण होने के कारण उसके हाथ की रोटी नहीं खाता क्योंकि वह उसकी जाति की नहीं थी। मानो उसे कहती है कि जब वह उसके लिए मार खा सकता है तो उसके हाथ की रोटी क्यों नहीं खा सकता ? सुकिया मानो को लेकर बेचैन हो उठा था। उसे लग रहा था कि जिन स्थितियों में उसने गाँव छोड़ा था वह स्थिति यहाँ पर भी थी।

सूबे सिंह ताकतवर आदमी था। वह कभी भी कुछ भी कर सकता था। अगले दिन असगर ठेकेदार जसदेव को उनके मामले में न पड़ने की सलाह देता है, जिसे जसदेव मान लेता है। सूबे सिंह सुकिया और मानो को तंग करने लगा था। उसने सुकिया से साँचा छीनकर जसदेव को दे दिया था। सुकिया को मोरी के काम पर लगा दिया था। मानो डरने लगी थी। उनकी मज़दूरी छोटी-छोटी बातों पर कटने लगी थी। जसदेव भी मानो पर हुक्म चलाने लगा था। एक दिन मानो ने पाथी ईटों को सूखने के लिए आड़ी-तिरछी जालीदार दीवारों के रूप में लगा दिया। वह अगले दिन सुबह जल्दी ही काम पर गई तो वहाँ पहुँचकर देखा कि पहले दिन की इंटें टूटी पड़ी थीं। वह दहाड़ें मारकर रोने लगी। उसकी आवाज़ सुनकर सभी इकट्ठे हो जाते है।

सबको मालूम है कि यह किसने किया है लेकिन इसका विरोध कोई नहीं करता है। टूटी ईटों को देखकर मानो को लग रहा था जैसे उसका पक्का मकान बनाने का सपना टूट गया हो। असगर ठेकेदार ने भी उसे टूटी इंटों के पैसे देने से इनकार कर दिया। सुकिया और मानो दोनों बुरी तरह टूट गए थे। दोनों वहाँ से अगले काम के लिए निकल पड़े थे। भट्ठा उन्हें अपनी खानाबदोश जिंदगी का एक पड़ाव लग रहा था। मानो को लग रहा था कि जसदेव उन्हें रोक लेगा। जसदेब के चुप रहने से उसका विश्वास टूट गया। टूटे हुए सपनों के काँच उसकी आँखों में चुभने लगे थे। वे एक दिशाहीन यात्रा के लिए निकल पड़े थे।

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • निगरानी – देख-रेख
  • वामन – ब्राह्मण
  • थारी – तुम्हारी
  • ताड़ लेना – अंदाज़ लगाना
  • अंतर्मन – हुदय, दिल
  • मुआयना – निरीक्षण, जाँच
  • कतार – पंंक्ति
  • प्रतिध्वनियाँ – गूँज
  • औकात – हैसियत
  • जिस्म – शरीर
  • गमकना – महकना
  • स्याहपन – अँधेरा
  • पुख्ता – मज़बूत
  • उथल-पुथल – उलट-पुलट
  • बसंत खिल उठना – सुखद विचार आना
  • घिघ्यी बँधना – कुछ बोल न पाना
  • वजूू – अस्तित्व
  • लालसा – इच्छा
  • तरतीब – ढ़ंग
  • जिनावर – जानवर
  • दहशत – भय
  • अटकलें – अंदाज़े
  • टीस – कसक
  • साँझ – संध्या
  • दुश्चिता – बुरी चिता
  • माहौल – वातावरण
  • दिहाड़ी – दैनिक मजदूरी
  • अस्तित्व – वजूद
  • सन्नाटा – खामोशी
  • शिद्दत – तीव्रता
  • बवंडर – हलचल,
  • टेम – समय
  • अंजाम – नतीजा, परिणाम
  • कातरता – अधीरता, दुख से होनेवाली
  • अदम्य – जिसे रोका न जा सके

खानाबदोश सप्रसंग व्याख्या

1. भट्ठे से उठते काले धुएँ ने आकाश तले एक काली चादर फैला दी थी। सब कुछ छोड़कर मानो और सुकिया चल पड़े थे एक खानाबदोश की तरह, जिन्हें एक घर चाहिए था रहने के लिए। पीछे छूट गए थे कुछ बेतरतीब पल, पसीने के अक्स जो कभी इतिहास नहीं बन सकेंगे। खानाबदोश ज़िदगी का एक पड़ाव था, यह भट्ठा।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश ‘ओमप्रकाश वाल्मीकि’ द्वारा लिखित कहानी ‘खानाबदोश’ से उद्धृत किया गया है। लेखक ने इस पाठ में बताया है कि समृद्ध और ताकतवर लोगों द्वारा मज़दूर वर्ग का शोषण किस प्रकार होता है। यदि मज़दूर मेहनत-मज़दूरी करके सम्मान का जीवन व्यतीत करना चाहता है तो उसे जीने नहीं दिया जाता।

व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक कहता है कि सुकिया और मानो को सूबे सिंह तंग करता है । दोनों अपने सपनों को पूरा करने के लिए उसके अत्याचार सहन करते रहते हैं लेकिन जब सूबे सिंह मानो की बनाई इंें तोड़ देता है, टूटी इंटों को देखकर मानो की मानसिक दशा खराब हो जाती है तो सुकिया भट्ठा छोड़ने का निर्णय लेता है। सुकिया मानो का हाथ पकड़कर भट्ठे से निकल जाता है। सुकिया भट्ठे से निकलता काला धुआँ देखता है। उसे लगता है जैसे भट्ठे के धुएँ ने आकाश के उजलेपन को समाप्त कर दिया है वैसे ही सूबे सिंह ने उनके भविष्य पर अपनी ताकत की काली चादर फैला दी है।

सुकिया और मानो ने रहने के लिए एक स्थायी पकके घर का सपना देखा था लेकिन सूबे सिंह ने उन्हें भट्ठे पर सब कुछ छोड़कर जाने के लिए और खानाबदोश की तरह भटकने के लिए मजबूर कर दिया। उनके भट्ठा छोड़कर जाने से भट्ठे पर उनके बिताए वह पल वहीं रह गए जिनमें उन्होंने कुछ सपने देखे थे और मेहनत करके जो पसीना बहाया था वह भी वहीं छूट गया उनके कुछ भी काम नहीं आया। सुकिया और मानो के लिए भट्ठा तो केवल एक पड़ाव था जहाँ उन्होंने कुछ पल बिताए और सपने देखे। खानाबदोश अर्थात मज्ञदूरों की ज़िंदगी में ठहराब नहीं होता।

विशेष :

  1. लेखक कहता है कि मजदूरों को सपने देखने का अधिकार नहीं है। उनके भविष्य पर सूबे सिंह जैसे ताकतवर लोगों की ताकत का धुआँ छाया रहता है।
  2. खानाबदोश लोगों के जीवन में ठहराव नहीं होता है। वह जीवन भर छोटे-छोटे पड़ाव लेते रहते हैं।
  3. भाषा सहज, सरल प्रवाहमय है और शैली भावात्मक है।

2. साँझ होते ही सारा माहौल भाँय-भाँय करने लगता था। दिन-भर के थके-हारे मज़दूर अपने-अपने दड़बों में घुस जाते थे। साँप-बिच्छू का डर लगा रहता था। जैसे समूचा जंगल झोंपड़ी के दरवाज़े पर आकर खड़ा हो गया है। ऐसे माहौल में मानो का जी घबराने लगता था। लेकिन करे भी तो क्या ! न जाने कितनी बार सुकिया से कहा था मानो ने, “अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस के पकवानों से अच्छी होती है।”

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा लिखित कहानी ‘खानाबदोश’ से अवतरित किया गया है। लेखक ने इस पाठ में मज़दूरों के जीवन का वर्णन किया है। यदि मज़दूर वर्ग इमानदारी और मेहनत की जिदगी व्यतीत करना चाहे तो सूबे सिंह जैसे स्वार्थी और ताकतवर लोग उन्हें करने नहीं देते। विभिन्न प्रकार से उनका शोषण करते हैं।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक कहता है कि भट्ठा शहर से दूर खेतों में था जहाँ यातायात की उचित व्यवस्था नहीं थी और न ही मनोरंजन का कोई साधन था। दिन के समय भट्ठे पर बहुत भीड़-भाड़ रहती थी। भट्ठे का सारा वातावरण हलचल से भरा रहता था। मज़दूर और मालिक सभी अपना काम करते हुए भविष्य के सपने बुनते हैं लेकिन जैसे ही शाम होती है भट्ठे का वातावरण सुनसान हो जाता है, मालिक शहर लौट जाते हैं और दिनभर की मेहनत से थके हुए लोग अपने-अपने झोंपड़ों में चले जाते हैं जहाँ वे दिनभर की थकावट उतारते हैं।

भट्ठा सूना जगह खेतों में होने के कारण यह भय लगा रहता है कि कहीं अँधेरे में साँप-बिच्छू जैसे जंगली जानवर न निकल आए। मानो को रात के समय ऐसा लगता था जैसे आस-पास का पूरा जंगल सिमट कर उनकी झोंपड़ी के आगे आ गया हो। ऐसे सुनसान वातावरण में उनका मन घबराने लगता था। उसने सुकिया से कई बार वापस गाँव जाने के लिए कहा लेकिन सुकिया ने उसकी बात नहीं मानी। मानो सुकिया को समझाती कि अपने गाँव में तो वह तंगी में भी गुज्ञारा करके खुश रह सकती है क्योंकि वहाँ के सभी लोग अपनी जान-पहचान के हैं जिनके साथ सुख-दुख बाँटा जा सकता है। यहाँ भट्टे पर तो कहने को भी अपना कोई नहीं है सभी पराए लोग हैं। यदि वे लोग उन्नति कर भी लें तो उसे किसके साथ बाँटेंगे। सुख-दुख तो अपनों के साथ बाँटा जाता है और उन्हीं के साथ अच्छा लगता है।

विशेष :

  1. लेखक ने यह बताया है कि भट्ठे का जीवन नीरस तथा डरावना है। लोग अपनी मजबूरी के कारण वहाँ आते हैं।
  2. सहज, सरल और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग है।
  3. भाषा-शैली विवरणात्मक है।

3. कड़ी मेहनत और दिन-रात भट्ठे में जलती आग के बाद जब भट्ठा खुलता था तो मजदूर से लेकर मालिक तक की बेचैन साँसों को राहत मिलती थी। भट्ठे से पकी इटों को बाहर निकालने का काम शुरू हो गया था। लाल-लाल पक्की ईंटों को देखकर सुकिया और मानो की खुशी की इंतहा नहीं थी। खासकर मानो तो ईटों को उलट-पुलटकर देख रही थी। खुद के हाथ की पथी इंटों का रंग ही बदल गया था।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा लिखित कहानी ‘खानाबदोश’ से अवतरित किया गया है। इस पाठ में लेखक ने बताया है कि मज़दूर लोग मेहनत और ईमानदारी से जीवन व्यतीत करने का सपना देखते हैं लेकिन ताकतवर और समृद्ध लोग उनके सपनों को अपने अत्याचारों के द्वारा तोड़ देते हैं। उन लोगों को उनकी मेहनत का उचित फल नहीं मिलता।

व्याख्या – लेखक भट्ठे पर पकी ईटों के बोरे में कहता है कि भट्ठे पर मिट्टी से ईंट पाथी हुई जाती हैं। उन पथी इंों को सुखा लिया जाता है। सूखी इंटों को पकाने के लिए भट्ठे में ड्डाल दिया जाता है। भट्ठे पर सबसे खतरनाक काम इंटं पकाने का होता है। जरा-सी असावधानी से मृत्यु भी हो सकती है। कई दिनों की मेहनत के बाद दिन-रात जलते हुए भट्ठे को खोला जाता है तो भट्ठ मालिक और मजदूरों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती है क्योंकि जब तक भट्ठा नहीं खुलता तब तक मालिक और मजदूर दोनों को बेचैनी लगी रहती है।

कहीं कुछ अप्रिय घटना न घट जाए। भर्ठा खुलने पर पकी हुई ईटों को बाहर निकालने का काम शुरू हो गया था। सुकिया और मानो ने जीवन में पहली बार लाल-लाल पक्की इंटं देखी थी। उन इंटों को देखकर दोनों को बहुत खुशी हो रही थी। मानो की खुशी तो सुकिया की खुशी से भी अधिक थी। वह इंटों को बार-बार उलट-पुलट कर देख रही थी। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये उसकी बनाई इंटे हैं क्योंकि उनका तो रंग ही बदल गया था।

विशेष :

  1. मज़ूरों को जब अपनी मेहनत का फल मिलता है तो उन्हें मालिकों से अधिक प्रसन्नता अनुभव होती है।
  2. भाषा में तद्भव तथा उर्दू. शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
  3. लेखक ने कहीं-कहीं युग्म शब्दों का प्रयोग किया है।
  4. भाषा-शैली विवरणात्मक तथा भावात्मक है।

4. मानो भी गुमसुम अपने-आपसे ही लड़ रही थी। बार-बार उसे लग रहा था कि वह सुरक्षित नहीं है। एक सवाल उसे खाए जा रहा था-क्या औरत होने की यही सजा है। वह जानती थी कि सुकिया ऐसा-वैसा कुछ नहीं होने देगा। वह महेश की तरह नहीं है। भले ही यह भट्ठा छोड़ना पड़े।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘ओमप्रकाश वाल्मीकि’ द्वारा लिखित कहानी खानाबदोश से ली गई हैं। लेखक ने इस पाठ में समृद्ध और ताकतवर लोगों द्वारा मज़दरों पर होने वाले अत्याचारों का वर्णन किया है। अपनी जमीन से उखड़कर मजदूर लोग दूसरी जगह काम करने आते हैं और पूँजीवादी लोगों द्वारा चलाए गए शोषण चक्रों में फँस जाते हैं।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक मानो की उस समय की मानसिक दशा का वर्णन कर रहा है जब भट्ठे का मालिक सूबे सिंह मानो को सेवा-टहल के लिए आफ़िस में बुलाता है। मानो के स्थान जसदेव चला जाता है। जसदेव को देखकर सूबे सिंह उसे बहुत मारता है। यह सब देखकर भट्ठे के सभी मज़दूरों के साथ-साथ मानो और सुकिया भी डर जाते हैं। सभी लोग चुपचाप अपनी-अपनी झोंपड़ियों में चले जाते हैं। मानो को भी भट्टे पर घटी घटना ने विचलित कर दिया था। वह अपनी झोपडड़ी में चुपचाप अपने आपसे लड़ रही थी।

वह सोच रही थी कि औरत होना एक अभिशाप है। वह कहीं भी सुरक्षित नहीं है। उसंके चारों ओर वासना रूपी साया सदा मँडराता रहता है। उसके मन में यह प्रश्न बार-बार उठ रहा था कि औरत होना एक सजा है जो उसके कारण जसदेव को मिली है। मानो को सुकिया पर पूरा विश्वास था कि सुकिया सूबे सिंह के हाथों उसकी इज्ज़त खराब नहीं होने देगा। सुकिया महेश की तरह कायर नहीं था। महेश ने सूबे सिंह के डर से किसनी को सूबे सिंह के पास छोड़ दिया था लेकिन सुकिया ऐसा नहीं करेगा। सुकिया को उसकी इज्ज़त बचाने के लिए यदि भट्ठा भी छोड़ना पड़ गया तो वह भट्ठा भी छोड़ देगा।

विशेष :

  1. लेखक ने मानो के माध्यम से औरत के अंतद्र्वद्व को दिखाया है।
  2. लेखक ने दैनिक भाषा का प्रयोग करके एक औरत के मन की बात को सफल ढंग से दिखाया है।
  3. भाषा-शैली भावात्मक और विचारात्मक है।

5. सुकिया भी चुपचाप लेटा हुआ था। उसकी भी नींद उड़ चुकी थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था, कि क्या करे, इन्हीं हालात में गाँव छोड़ा था। वे ही फिर सामने खड़े थे। आखिर जाएँ तो कहाँ ? सूबे सिंह से पार पाना आसान नहीं था। सुनसान जगह है कभी भी हमला कर सकता है। या फिर मानो को…….विचार आते ही वह काँप गया था।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश ‘ओमप्रकाश वाल्मीकि’ द्वारा लिखित कहानी ‘खानाबदोश’ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में लेखक ने मज़दूरी करके किसी तरह गुज़ारा कर रहे मजदूर वर्ग के शोषण और यातना को चित्रित किया है। ईमानदारी से मेहनत मजदूरी करके इज्ज़त से जीवन जीनेवाले मज़दूर को समृद्ध और ताकतवर लोग जीने नहीं देते।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ने सुकिया की मानसिक दशा का वर्णन किया है। सुकिया मानो को लेकर घटी घटना से डर गया था। उसे उम्मीद नहीं थी कि सूबे सिंह जसदेव को मारने की नीयत करेगा। सभी मज़दूर डर गए थे। सुकिया और मानो भी अपनी झोंपड़ी में चुपचाप लौट गए थे। दोनों ही डरे हुए थे। सुकिया भी चुपचाप लेटा हुआ मन-ही-मन दिन में घटी घटना को लेकर विचार कर रहा था। सूबे सिंह के डर के कारण उसकी नींद उड़ गई थी। उसे अपनी और मानो के भविष्य के बोरे में कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वह उस स्थिति के बारे में सोच रहा था जिससे मजबूर होकर उसने गाँव छोड़ा था।

गाँव में भी मानो सुरक्षित नहीं थी और आज फिर भट्ठे पर वही हालात पैदा हो गए थे। उसे लग रहा था कि औरत और मजदूरों के लिए सभी जगह एक-सा वातावरण है। ऐसे हालात में वह कहाँ जाए ? सूबे सिंह समृद्ध और ताकतवर आदमी था। इसलिए उससे झगड़ा करना ठीक नहीं था। भट्ठा भी सुनसान जगह पर था जहाँ वह कभी भी हमला करके मानो को उठाकर ले जा सकता था। मानो का खयाल आते ही सुकिया काँप उठा कि कहीं मानो के साथ कुछ बुरा न हो जाए।

विशेष – (i) लेखक ने सुकिया के माध्यम से आदमी के अंतद्वर्वद्व को दिखाया है कि घर हो या बाहर औरत कहीं भी सुरक्षित नहीं है।
(ii) भाषा भावानुकूल, सरल, सहज और प्रवाहमय है तथा शैली विचारात्मक है।

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