Quantcast
Channel: Learn CBSE
Viewing all articles
Browse latest Browse all 9955

CBSE Class 12 Hindi Elective अपठित बोध अपठित काव्यांश

$
0
0

CBSE Class 12 Hindi Elective अपठित बोध अपठित काव्यांश

1. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

तुम तो, हे प्रिय बंधु, स्वर्ग-सी,
सुखद, सकल विभवों की आकर।
धरा शिरोमणि मातृभूमि में,
धन्य हुए हो जीवन पाकर।
जब तक साथ एक भी दम हो,
हो अवशिष्ट एक भी धड़कन।

रखो आत्मगौरव से ऊँची,
पलकें ऊँची सिर, ऊँचा मन।
सच्चा प्रेम वही है जिसकी,
तृप्ति आत्मबलि पर हो निर्भर।
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,
करो प्रेम पर प्राण निछावर।

प्रश्न :
(i) भारत-भूमि की दो विशेषताएँ बताइए।
(ii) भारत में जन्म लेना गौरव की बात क्यों है?
(iii) कवि ने सच्चे प्रेम की क्या पहचान बताई है?
(iv) जीवन के अंत तक हमें किस प्रकार रहना चाहिए?
(v) कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
(i) भारत-भूमि की दो विशेषताएँ इस प्रकार हैं :
(क) भारत-भूमि स्वर्ग के समान सुंदर है।
(ख) भारत-भूमि सुखदायक तथा सभी वैभवों की खान है।
(ii) भारत में जन्म लेना इसलिए गौरव की बात है क्योंक यहाँ की भूमि धरा-शिरोमणि है अर्थात् भूमि का सबसे अच्छा भाग भारत में है। यहाँ जन्म लेकर जीवन सफल हो जाता है।
(iii) कवि ने सच्चे प्रेम की यह पहचान बताई है कि इसमें आत्मबल होता है और इसके कारण हमें तृप्ति का अनुभव होता है।
(iv) जीवन के अंत तक हमें आत्मगौरव के साथ रहना चाहिए। हमें अपनी पलकों, सिर और मन को ऊँचा रखना चाहिए। अपने आत्मसम्मान की रक्षा अंत तक करनी चाहिए।
(v) कविता का केंद्रीय भाव यह है कि स्वर्ग के समान सुंदर, सुखद, धन-वैभव से संपन्न भूमि पर जन्म लेकर धन्य हो गए हैं। हमें इस पर रहते हुए आत्मसम्मान बनाए रखना चाहिए। इस पर अपने प्राण न्यौछावर करने को तैयार रहना चाहिए।

2. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

‘सर। पहचाना मुझे?’
बारिश में भीगता आया कोई
कपड़े कीचड़ सने और बालों में पानी
बैठा, छन भर सुस्ताया। बोला, नभ की ओर देख-
‘गंगा’ मैया पाहुन बन कर आई थीं,
झोपड़ी में रहकर लौट गई।
नैहर आई बेटी की भाँति
चार दीवारों में कुदकती-फुदकती रहीं
खाली हाथ वापस कैसे जाती।
घरवाली तो बच गई-
दीवारें बही, चूल्हा बुझा, बरतन-भांडे
जो भी था सब चला गया।

प्रसाद रूप में बचा है नैनों में थोड़ा खारा पानी
पत्नी को साथ ले, सर अब लड़ रहा हूँ
बही दीवार खड़ी कर रहा हूँ
कादा-कीचड़ निकाल फेंक रहा हूँ
मेरा हाथ जेब की ओर जाते देख
वह उठा, बोला-‘सर, पैसे नहीं चाहिए।
जरा अकेलापन महसूस हुआ तो चला आया
घर-गृहस्थी चौपट हो गई पर
रीढ़ की हड्डी मजबूत है सर।
पीठ पर हाथ थपकी देकर
आशीर्वाद दीजिए लड़ते रहो।

प्रश्न :
(i) बाढ़ की तुलना मायके आई हुई बेटी से क्यों की गई है?
(ii) बाढ़ का क्या प्रभाव पड़ा?
(iii) ‘सर’ का हाथ जेब की ओर क्यों गया?
(iv) आगंतुक ‘सर’ के घर किसलिए गया था?
(v) कैसे कह सकते हैं कि आगंतुक एक स्वाभिमानी व संघर्षशील व्यक्ति है?
उत्तर :
(i) बाढ़ की तुलना मायके में आई हुई बेटी से इसलिए की गई है क्योंकि शादी के बाद बेटी कभी-कभार ही मायके में आती है और कुछ दिन मौज-मस्ती करके तथा घर का कुछ सामान लेकर लौट जाती है। बाढ़ भी कुछ समय के लिए आती है और घर का सामान बहाकर ले जाती है।
(ii) बाढ़ का यह प्रभाव पड़ा कि घर की दीवारें ढह गई, चूल्हा बुझ गया, बर्तन-भांडे पानी में बहकर चले गए। अब तो नयनों में आँसू बचे हैं या घरवाली (पत्नी) बची है।
(iii) ‘सर’ का हाथ जेब की ओर इसलिए गया ताकि वह अपने विपदाग्रस्त सहायक की कुछ आर्थिक मदद कर सके। वह मानवीय आधार पर कुछ मदद करना चाहता था।
(iv) आगंतुक ‘सर’ (अपने बॉस) के घर इसलिए गया था ताकि वह उनसे विपदा को झेलने और घर के पुनर्निर्माण के लिए शक्ति पाने का आशीर्वाद ले सके।
(v) आगंतुक एक स्वाभिमानी और संधर्षशील व्यक्ति है। इसका पता हमें इस बात से चलता है कि वह अपने ‘सर’ के द्वारा दी जाने वाली आर्थिक सहायता को लेने से मना कर देता है। वह तो जीवन में संघर्ष करने के लिए सर से केवल आशीर्वाद चाहता है। वह परिस्थिति से लड़ने की शकित चाहता है।

3. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

जीवन में एक सितारा था,
माना, वह बेहद प्यारा था,
वह डूब गया तो डूब गया।
अंबर के आनन को देखो;
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई।

जीवन में वह था एक कुसुम,
थे उस पर नित्य निछावर तुम,
वह सूख गया तो सूख गया;
मधुबन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी बल्लरियाँ,
जो मुरझाई फिर कहाँ खिलीं,
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई।

प्रश्न :
(i) ‘जो बीत गई सो बात गई’ कथन का भाव समझाइए।
(ii) आकाश का उदाहरण क्यों दिया गया है?
(iii) प्रिय पात्र के बिछुड़ने पर शोक क्यों नहीं मनाना चाहिए?
(iv) कलियों और बेलों के मुरझाने से कवि का क्या तात्पर्य है?
(v) प्रस्तुत काव्यांश के मुख्य भाव को दो-तीन वाक्यों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(i) इस कथन का भाव यह है कि हमें बंती हुई बातों के बारे में ज्यादा सोच-विचार नहीं करना चाहिए। जो समय चला गया, उस पर चर्चा करके न तो समय गँवाना चाहिए और न दुःख मनाना चाहिए।
(ii) आकाश का उदाहरण इसलिए दिया गया है क्योंकि आकाश से तो तारे टूटते रहते हैं, पर उन पर कोई शोक नहीं मनाता। यह उदाहरण देकर कवि हमें यह कहना चाहता है कि हमें भी बिद्छुड़े साथियों के लिए दु:खी नहीं होना चाहिए।
(iii) प्रिय पात्र के बिछुड़ने पर शोक इसलिए नहीं करना चाहिए. क्योंकि इसका कोई लाभ नहीं है। बिद्छुड़ने वाला प्रिय व्यक्ति लौटकर फिर आने वाला नहीं है। मरा व्यक्ति कभी जीवित नहीं होता।
(iv) कलियों और बेलों के मुरझाने से कवि का यह तात्पर्य है प्रकृति में नाश का दौर चलता रहता है। उस पर मधुबन कभी शोक नहीं मनाता। शोक मनाने से कलियाँ पुन: नहीं खिल सकतीं। इसी प्रकार मृत व्यक्ति पुन: जीवित नहीं हो सकता।
(v) प्रस्तुत काव्यांश का मुख्य भाव यह है कि जीवन आगे चलने का नाम है। गत स्मृतियों को याद करके दुझखी होने का कोई लाभ नहीं है। बीती बातों को भुला देने में ही भलाई है।

4. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

कम देकर, ज्यादा पाने की आदत बहुत बुरी है;
तन का पूरा पड़ भी जाए, मन रीता रहता है !
कभी न चुकने वाला ऋण है, जीना बहुत कठिन है;
यों मरने तक हर जीने वाला जीता रहता है !
आते हैं फल उन वृक्षों पर जो न उन्हें खाते हैं;
छाँह जहाँ मिलती औरों को छत्र वहाँ छाते हैं;
गाते हैं जो गीत, कभी अपने न गीत गाते हैं;
हेम-हिमावत कब अपने हित हिम-आतप सहता है!

प्रश्न :
(i) किस आदत को बुरा कहा गया है ? क्यों ?
(ii) ‘तन का पूरा पड़ भी जाए, पर मन रीता रहता है’-काव्य-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(iii) प्रस्तुत कविता से क्या संदेश मिलता है ?
(iv) वृक्ष मनुष्य के लिए क्या-क्या करते हैं ? किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए।
(v) जीवन को कैसा ऋण कहा गया है ? क्यों ?
उत्तर :
(i) जब हग कम देकर ज्यादा पाने की इच्छा करते हैं तो यह बुरी आदत है। कवि ने इस आदत को बुरी आदत कहा है।
(ii) जब हम कम देकर ज्यादा पा लेते हैं तब हम शरीर से तो संतुष्ट हो जाते हैं पर हमारा मन संतुष्ट नहीं होता। वह खाली-खाली रहता है। हम मन से संतुष्ट नहीं हो पाते क्योंकि लगता है कि कुछ गलत हुआ है।
(iii) कवि इस कविता में संदेश देना चाहता है कि यों तो हर व्यक्ति जब तक नहीं मरता तब तक जीता रहता है पर असली जीना वह है जो दूसरों को लिए जिया जाता है।
(iv) वृक्ष पर फल लगते हैं, उसके घने पत्ते होते हैं। वृक्ष न तो अपने फल स्वयं खाते हैं और न ही स्वयं अपने पत्तों की छाया में रहते हैं। इसका उपभोग अन्य करते हैं। वृक्ष अपने में फल पैदा करते हैं पर स्त्रयं नहीं खाते, इस धरती के मनुष्य खाते हैं। वे अपने पत्तों से मनुष्य के लिए छाया देते हैं। स्वयं धूप में तपते हैं। अतः वृक्ष परोपकारी हैं।
(v) यह जीवन ऐसा है जिसका ऋण कभी चुकता नहीं हो सकता। इस संसार में उसने जन्म लिया है पर अपने लिए नहीं दूसरों के लिए लिया है। जो व्यक्ति अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीवन जीता है वह अपने जीवन जीने का ऋण उतार रहा है और यह वह मरते दम तक उतारता है।

5. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

हरा-हरा कर, हरा-
हरा कर देने वाले सपने।
कैसे कहूँ पराये, कैसे
गरब करूँ कह अपने !
भुला न देवे यह ‘पाना’-
अपनेपन का खो जाना,
यह खिलना न भुला देवे
पंखड़ियों का धो जाना,
आँखों में जिस दिन यमुना-
की तरुण बाढ़ लेती हूँ
पुतली के बंदी की
पलकों नज़र झाड़ लेती हूँ।
दूर न रह, धुन बंधने दे

मेरे अन्तर की तान,
मन के कान, अरे प्राणों के
अनुपम भोले भान।
रे कहने, सुनने, गुनने
वाले मतवाले यार
भाषा, वाक्य, विराम-बिन्दु
सब कुछ तेरा व्यापार,
किन्तु प्रश्न मत बन,
सुलझेगा-
क्योंकर सुलझाने से ?
जीवन का कागज कोरा मत
रख, तू लिख जाने दे।

प्रश्न :
(i) आँसू बहने और फिर पोछ लिए जाने पर कवयित्री ने क्या कल्पना की है ? अपने शब्दों में लिखिए।
(ii) पराजित करके भी मन को प्रसन्न कर देने वाले सपनों को लेकर कवयित्री के मन में क्या द्वंद्व है ?
(iii) मन में स्वयं प्रश्न न बनने का आग्रह क्यों किया गया है ?
(iv) अलंकार पहचानिए और मुहावरे का भाव स्पष्ट कीजिए :
‘हरा-हरा कर हरा-हरा कर देने वाले सपने’
(v) आशय स्पष्ट कीजिए : “जीवन का कागज कोरा मत रख, तू लिख जाने दे।”
उत्तर :
(i) जब विरही प्रेम में कवयित्री के आँसू बहते हैं तो उसे ऐसा प्रतीत होता है मानो यमुना की वेगवती धारा प्रवाहित हो रही हो और जब उन्हें पोंछती है तो ऐसा प्रतीत होता है मानो पुतली ने बंद बंदी को झाड़ दिया है, निकाल दिया है।
(ii) कवयित्री कहती है कि मैं प्रेम में बार-बार हारती हूँ। लेकिन मेरे पास सपने भी हैं जिन्हें स्मरण कर मन आनंद में निमग्न हो जाता है। उसके मन का द्वंद्व यह है कि न तो वह उन्हें पराये मानने को तैयार है और न ही उन्हें अपना कहकर उन पर गर्व कर सकती है। इसी द्वंद्व में वह डूबी हुई है और कोई ठोस निर्णय नहीं ले पा रही है।
(iii) कवयित्री कहती है कि हे मतवाले मन ! तेरे पास सभी साधन उपलब्ध हैं। प्रेममय भाषा है, अनगिनत वाक्य हैं, विराम चिह्न हैं। सब कुछ तो तेरे पास है। ऐसे में तुम प्रश्न बनकर मेरे सामने मत खड़े हो, सक्रिय हो जाओ।
(iv) ‘हरा हरा’ कर में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। अनुप्रास भी है। ‘हरा हरा कर हरा कर देने वाले सपने ‘मुहावरे का भाव आनंद प्रदान करने से है। इसमें यमक अलंकार भी है।
(v) कवयित्री कहती है कि जीवन रूपी पृष्ठ से मुँह मत मोड़। इस पर अनन्य भाव लिख जाने दो। क्योंकि शून्य जीवन में निराशा भर देता है और दुखद बना देता है।

6. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

प्रात: बेला
टटके सूरज की ओर देखे कितने दिन बीत गए
नहीं देख पाया पेड़ों के पीछे
उसे छिप-छिप कर उगते हुए
नहीं सुन पाया भोर होने से पहले चिड़ियों का कलरव
नहीं पी पाया दुपहरी की बेला
आम के बगीचे की झुर-झुर बहती शीतल बयार
आज भी जाता होगा
किसानों, औरतों, बच्चों-बेटियों का जत्था
होते ही उजास गेरूँ काटने
घर के पिछवाड़े डालियों पत्तियों में झिलमिलाता
डूबता सूरज बहुत याद आता है।
अपने चटक रंगों को लिए गाँव के बगीचे में
झड़ते हुए पीले-पीले पत्ते कब देखूँगा ?
उसकी डालियों शाखाओं पर
आत्मा को तृप्त कर देने वाली
नई-नई कोपलें कब देखूँगा ?

प्रश्न :
(i) उगते सूर्य के बारे में कवि ने क्या कल्पना की है ?
(ii) गाँव में सुबह होने वाली हलचल का वर्णन कीजिए।
(iii) कवि के मन में डूबते सूरज का कैसा चित्र है ?
(iv) गाँव के बगीचे में दुपहरी और पतझड़ की कवि मन की स्मृतियाँ अपने शब्दों में लिखिए।
(v) भाव स्पष्ट कीजिए-
आत्मा को तृप्त कर देने वाली-
नई कोपलें कब देखूँगा ?
उत्तर :
(i) सुबह के उगते सूरज के बारे में कवि ने कल्पना की है कि ऐसा कब अवसर आएगा जब वह पेड़ों के पीछे छिप-छिप कर उगते टटके सूरज को देखेगा।
(ii) कवि को याद आती है गाँव की सुबह। उस सुबह की हलचल मनभावनी होती थी। भोर होने से पहले चिड़िया का कलरव सुनाई देने लगता था। उसे किसानों-औरतों व बच्चों-बेटियों का जत्था याद आता है जब सुबह होते ही सुनहरी गेहूँ काटने के लिए निकल पड़ता था।
(iii) कवि को घर का पिछवाड़ा याद आता है जब वह वहाँ से डालियों व पत्तियों में झिलमिलाता डूबता सूरज देखा करता था।
(iv) कवि को दुपहरी याद आती है जब आम के बगीचों की झुर-झुर बहती शीतल बयार मन भा जाती थी। उसे याद आती है पतझड़। जब गाँव के बगीचों में शाखाओं-प्रशाखाओं से चटक रंग लिए पीले पत्ते झरा करते थे।
(v) ‘आत्मा को तृप्त कर देने वाली नई-नई कोपलें कब देखूँगा’ का आशय है-कवि गाँव का वसंत याद करता है। सोचता है कि आखिर कब वसंत के दिन आएँगे जब पेड़-पौधों से नई-नई कोपलें फूटेंगी जिन्हें देखकर व अनुभव कर उसकी आत्मा तृप्त हो जाया करती थी।

7. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

किस भाँति जीना चाहिए किस भाँति मरना चाहिए,
सो सब, हमें निज पूर्वजों से याद करना चाहिए।
पद-चिह्न उनके यत्नपूर्वक खोज लेना चाहिए।
आओ, मिलो सब देश-बांधव हारा बनकर देश के
साधक बने सब प्रेम से सुख शांतिमय उद्देश्य के।
क्या सांप्रदायिक भेद से है ऐक्य मिट सकता अहो,
बनती नहीं क्या एक माला विविध सुमनों की कहो।
प्राचीन हों कि नवीन, छोड़ों रूढ़ियाँ जो हों बुरी,

बनकर विवेकी तुम दिखाओ हंस जैसी चातुरी।
प्राचीन बातें ही भली हैं-यह विचार अलीक है
जैसी अवस्था हो जहाँ वैसी व्यवस्था ठीक है॥
मुख से न होकर चित्त से देशानुरागी हो सदा।
हैं सब स्वदेशी बंधु, उनके दुख भागी हो सदा।
देकर उन्हें साहाय्य भरसक सब विपत्ति व्यथा हरो.
निज दुख से ही दूसरों के दुख को अनुभव करो॥

प्रश्न :
(i) हमें अपने पूर्वजों का अनुसरण क्यों करना चाहिए ?
(ii) कवि देश के सभी बंधुओं का आह्नान क्यों कर रहा है ?
(iii) माला के उदाहरण से कवि ने क्या प्रतिपादित करना चाहा है ?
(iv) हमें अंधविश्वासों और रूढ़ियों को छोड़कर क्या करने की प्रेरणा दी गई है ?
(v) आशय स्पष्ट कीजिए- “मुख से न होकर चित्त से देशानुरागी हो सदाI”
उत्तर :
(i) हमें अपने पूर्वजों का अनुसरण इसलिए करना चाहिए, क्योंकि हमें किस प्रकार जीना चाहिए और किस प्रकार मरना, यह ज्ञान अपने पूर्वजों से ही प्राप्त होता है।
(ii) कवि देश के सब बंधुओं का आह्वान इसलिए कर रहा है, क्योंकि वह देशवासियों को फिर से एकता के सूत्र में बाँधकर देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने के लिए प्रेरित करना चाहता है।
(iii) कवि माला का उदाहरण देकर भारतीयों को फिर से एकता के सूत्र में बँधध जाने का आह्नान करता है, ताकि सभी देशवासी उसी तरह एक हो जाएँ जिस तरह माला में फूल होते हैं।
(iv) हमें अंधविश्वासों और रूढ़ियों को छोड़कर अपने विवेक से अच्छे बुरे कमों को पहचानने तथा हंस की तरह चतुर बनने की प्रेरणा दी गई है।
(v) काव्यांश में ” मुख से न होकर चित्त से देशानुरागी हो सदा” कहने का आशय यह है कि हमें केवल अपने शब्दों से ही देश-प्रेम नहीं दर्शाना चाहिए, बल्कि अपने आचरण और कर्मों से सच्चे अर्थों में अपनी मातृभूमि की सेवा करनी चाहिए।

8. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

खोल सीना, बाँघकर मुद्ठी कड़ी
में खड़ा ललकारता हूँ।
ओ नियति!
तू सुन रही है?
मैं खड़ा तुझको स्वयं ललकारता हूँ
आज खोले वक्ष, उन्नत शीश, रक्तिम नेत्र
तुझको दे रहा हूँ, ले चुनौती
गगनभेदी घोष में
दूढ़ बाहुदंडों को उठाए।
क्योंकि मैंने आज पाया है स्वयं का ज्ञान

क्योंकि में पहचान पाया हूँ कि मैं हूँ मुक्त बंधहीन
और तू है मात्र श्रम, मन-जात, मिथ्या वंचना
इसलिए इस ज्ञान के आलोक के पल में
मिल गया है आज मुझको सत्य का आभास
और ओ मेरी नियति!
मैं छोड़कर पूजा
(क्योंकि पूजा है पराजय का विनत स्वीकार-)
बाँधकर मुट्ठी तुझे ललकारता हूँ।

प्रश्न :
(i) कवि किसे ललकार रहा है और क्यों ?
(ii) कवि की चुनौती देने वाली मुद्रा पर टिप्पणी कीजिए।
(iii) कवि ने नियति को भ्रम और मिथ्या वंचना क्यों कहा है ?
(iv) कवि ने अपनी पहचान क्या बताई है?
(v) भाव स्पष्ट कीजिए- “पूजा है पराजय का विनत स्वीकार।”
उत्तर :
(i) कवि नियति को ललकार रहा है, क्योंकि वह पहचान गया है कि नियति मात्र भ्रम, मिथ्या और वंचना है।
(ii) कवि की चुनौती देने वाली मुद्रा इस प्रकार है कि कवि छाती खोलकर, सिर ऊँचा उठाकर और गुस्से से नेत्र लाल कर नियति को चुनौती देते हुए ललकार रहा है।
(iii) कवि ने नियति को भ्रम और मिथ्या वंचना इसलिए कहा, क्योंकि उसे स्वयं का ज्ञान हो गया था। जान गया कि नियति और कुछ नहीं, बल्कि पहले से विचार किए जाने वाला भ्रम मात्र है।
(iv) कवि ने अपनी पहचान यह बताई है कि वह मुक्त है और बंधनहीन है।
(v) ‘पूजा है पराजय़ का विनत स्वीकार’ इस पंक्ति का भाव यह है कि केवल वही व्यक्ति किसी के आगे झुकेगा, जो सामर्थ्य से हीन होगा, जिसे स्वयं पर विश्वास नहीं है। किसी के आगे झुकने वाला व्यक्ति अपनी हार मान लेता है।

9. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

तरुणाई है नाम सिंधु की उठती लहरों के गर्जन का,
चट्टानों से टक्कर लेना लक्ष्य बने जिनके जीवन का।
विफल प्रयासों से भी दूना वेग भुजाओं में भर जाता,
जोड़ा करता जिनकी गति से नव उत्साह निरंतर नाता।
पर्वत के विशाल शिखरों-सा यौवन उसका ही है अक्षय,
जिसके चरणों पर सागर के होते अनगिन ज्वार सदा लय।

अचल खड़े रहते जो ऊँचा, शीश उठाए तूफानों में,
सहनशीलता, दृढ़ता हैसती, जिनके यौवन के प्राणों में।
वहीं पंथ-बाधा को तोड़े बहते हैं जैसे हों निईर्र,
प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर।
आज देश की भाली आशा बनी तुम्हारी ही तरुणाई
नए जन्म की श्वास तुम्हारे अंदर जगकर है लहराई।

प्रश्न :
(i) यौवन की तुलना किससे की गई है और क्यों ?
(ii) काव्यांश के आधार पर युवकों की क्षमताओं पर प्रकाश डालिए।
(iii) यौवन की सार्थकता कब मानी गई है ?
(iv) पर्वतों और युवकों में साम्य दर्शाइए।
(v) काव्यांश का केंद्रीय भाव लिखिए।
उत्तर :
(i) यौवन की तुलना समुद्र की उठती लहरों की गर्जना से की गई है। ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि लहरों का स्वभाव है-चट्टानों से टक्कर लेना। यौवन भी चुनौतियों से ट़क्कर लेता है।
(ii) काव्यांश के आधार पर युवकों में चट्टान जे पी मुसीबतों से टकराने की क्षमता होती है। वे प्रयासों के विफल हो जाने पर भी स्वयं में दुगुने बल-वेग का अनुभव करते हैं।
(iii) यौवन की सार्थकता तब मानी गई है जब युवकों में संघर्ष की दृढ़ता होती है। जब उनका यौवन पर्वत के विशाल शिखर के समान होता है।
(iv) पर्वतों और युवकों में यह समानता है कि ये दोनों तूफान में अडिग खड़े रहते हैं। दोनों अपना सिर ऊपर उठाए रहते हैं अर्थात् अपने आत्म सम्मान को बनाए रहते हैं।
(v) काव्यांश का केंद्रीय भाव यह है कि आज देश की निगाहें युवा वर्ग पर टिकी हुई हैं। उन्हें कठिनाइयों से संघर्ष करके देश को प्रगति के मार्ग पर आगे ले जाना है।

10. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

चंचल पग दीपशिखा के धर
गृह, मग, वन में आया वसंत!
सुलगा फाल्गुन का सूनापन
सौंदर्य शिखाओं में अनंत!
सौरभ की शीतल ज्वाला से
फैला उर-उर में मधुर दाह
आया वसंत, भर पृथ्वी पर
स्वर्गिक सुंदरता का प्रवाह!
पल्नव-पल्लव में नवल रुधिर
पत्रों में मांसल रंग खिला,
आया नीली-पीली लौ से
पुष्पों के चित्रित दीप जला!

अधरों की लाली से चुपके
कोमल गुलाब के गाल लजा
आया, पंखुड़ियों को काले
पीले धब्बों से सहज सजा!
कलि के पलकों में मिलन स्वप्न
अलि के अंतर में प्रणय गान
लेकर आया, प्रेमी वसंत
आकुल जड़ चेतन स्नेह प्राण!
काली कोकिल! सुलगा उर से
स्वरमयी वेदना का अंगार,
आया वसंत, घोषित दिगंत
करती, भर पावक की पुकार!

प्रश्न :
(i) इस कविता में किस ऋतु का वर्णन है ? यह कहाँ-कहाँ दिखाई दे रहा है ?
(ii) ‘सुलगा फागुन का सूनापन’-आशय स्पष्ट कीजिए।
(iii) इस ऋतु ने फूल-पतों के स्वरूप में क्या-क्या परिवर्तन ला दिया है ?
(iv) प्रेमी के रूप में वसंत क्या कर रहा है ?
(v) इस कविता में प्रकृति-चित्रण की कौन-सी विशंषता आपको आकर्षित करती है ?
उत्तर :
(i) इस कविता में वसंत ऋतु का वर्णन है। वसंत का प्रभाव घर, मार्ग एवं वन में सर्वत्र दिखाई देता है।
(ii) फागुन मास में वसंत के आने से हृदय में कोमल भावनाएँ सुलग उठती हैं, दिल में शीतल-सी ज्वाला (विरोधाभास) जलती है, जिसकी जलन अच्छी लगती है।
(iii) वसंत ऋतु ने फूल-पत्तों में अनेक परिवर्तन ला दिए हैं। पत्तों में नई लालिमा दिखाई देती है, फूलों में पीली-नीली लौ की दीप्ति दिखाई देती है. गुलाब की लाली होठों की लाली-सी दिखाई देती है. फूलों की पंखुड़ियाँ तरह-तरह की दिखाई देती हैं।
(iv) वसंत प्रेमी के रूप में कलियों की आँखों में मिलन के स्वप्न (आकांक्षा) जगाता है। उनके हूदयों में प्रेम-गीत की गुनगुनाहट उत्पन्न करता है।
(v) इसमें प्रकृति का उद्दीपन रूप बहुत मनोहारी है। वसंत ऋतु में प्रकृति हमारे मन की कोमल भावनाओं को जागृत करती है तथा प्रेममय वातावरण का निर्माण करती जान पड़ती है।

11. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

चले चलो, बढ़े चलो, बढ़े चलो, चले चलो !
प्रचंड सूर्य-ताप से, न तुम जलो, न तुम गलो !
ह्रदय से तुम निकाल दो अगर हो पस्तहिम्मती,
नहीं है खेल मात्र ये, ये जिन्दगी है जिंदगी।
न रक्त है, न स्वेद है, न हर्ष है, न खेद है,
ये जिंदगी अभेद है, यही तो एक भेद है।
समझ के सब चले चलो, कदम-कदम बढ़े चलो !
पहाड़ से चली नदी, रुकी नहीं कहीं जरा,
गई जिधर, उधर किया जमीन को हरा-भरा।
चली समान रूप से, जमीन का न ख्याल कर,
मगन रही निनाद में, जमीन पर, पहाड़ पर।
उसी तरह चले चलो, उसी तरह बढ़े चलो !
अखंड दीप से जलो, सदा बहार से खिलो !

प्रश्न :
(i) कविता किसं संबोधित है ? ऐसा आप किस आधार पर मानते हैं ?
(ii) ‘पस्तहिम्मती’ किसे कहते हैं ? उन्हें क्या ध्यान में रखने को कहा गया है ?
(iii) प्रगतिशील की तुलना नदी से क्यों की गई है ?
(iv) ‘अखंड दीपक’ और ‘फूल’ का उल्लेख क्यों हुआ है ?
(v) आशय स्पष्ट कीजिए :
‘ये जिंदगी अभेद है, यही तो एक भेद है।’
उत्तर :
(i) यह कविता देश की युवा पीढ़ी को संबोधित है। कवि उन्हें निरंतर आगे बढ़ने के लिए आह्वान कर रहा है। हम ऐसा इसी आधार पर मानते हैं।
(ii) ‘पस्तहिम्मती’ उसे कहते हैं जो हिम्मत हार बैठा है। निराश व्यक्तियों को निराशा का भाव मन से निकाल देने को कहा है। उन्हें जिंदगी को खेल मात्र न समझकर, इसे जिंदगी की तरह ही लेना चाहिए।
(iii) प्रगतिशील व्यक्ति निरंतर आगे बढ़कर तरक्की करता है। नदी भी निरंतर आगे बढ़कर अपने गंतव्य तक जाती है। दोनों में काफी समानता है। नदी धरती को हरा-भरा करती है।
(iv) ‘अखंड दीपक’ निरतर जलकर प्रकाश फैलाता है और फूलों से बहार आती है। उनका उदाहरण देकर कवि ने निरतर क्रियाशील रहने और खिलने (फलने-फूलने) की प्रेरणा दी है। इसीलिए इनका यहाँ उल्लेख हुआ है।
(v) इस पंक्ति का आशय यह है कि जिंदगी का रहस्य इसी बात में छिपा है कि यह अभेद है। इसका भेद नहीं पाया जा सकता। जिंदगी को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता।

12. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

“धर्मराज, यह भूमि किसी की नहीं क्रीत है दासी,
हैं जन्मना समान परस्पर इसके सभी निवासी।
है सबका अधिकार मृत्तिका पोषक-रस पीने का,
विविध अभावों से अशंक होकर जग में जीने का।
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए, सबको मुक्त समीरण
बाधा-रहित विकास, मुक्त आशंकाओं से जीवन।
लेकिन, विघ्न अनेक अभी इस पथ में पड़े हुए हैं,
मानवता की राह रोक कर पर्वत अड़े हुए हैं।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं जब तक मानव-मानव को,
चैन कहाँ धरती पर, तब तक शांति कहाँ इस भव को?
जब तक मनुज-मनुज का यह सुख-भाग नहीं सम होगा,
शमित न होगा कोलाहल, संघर्ष नहीं कम होगा।
था पथ सहज अतीव, सम्मिलित हो समग्र सुख पाना,
केवल अपने लिए नहीं, कोई सुख-भाग चुराना॥”

प्रश्न :
(i) “यह धरती किसी की खरीदी हुई दासी नहीं है” -इस कथन से कवि का क्या तात्पर्य है ?
(ii) इस धरती पर सभी को क्या-क्या अधिकार प्राप्त हैं ?
(iii) भाव स्पष्ट कीजिए- “सबको मुक्त प्रकाश चाहिए, सबको मुक्त समीरण।”
(iv) आज मानव-समाज में किस बात को लेकर संघर्ष हो रहा है ?
(v) मनुष्य इस धरती पर केवल अपने लिए ही सुख क्यों चाहता है ?
उत्तर :
(i) इस कथन से कवि का आशय यह है कि धरती पर किसी का भी एकछत्र अधिकार नहीं है। यह सभी की है। इस पर सभी का समान अधिकार है।
(ii) इस धरती पर सभी को मिट्टी का पोषक रस पीने का, निर्भय होकर जीने का तथा प्राकृतिक उपादानों के भरपूर उपयोग करने के अधिकार प्राप्त हैं।
(iii) इस पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को बंधन रहित प्रकाश एवं वायु चाहिए। इनको पाने का उसे प्रकृति-प्रदत्त अधिकार है।
(iv) आज का मानव-समाज संघर्षरत है। व्यक्ति-व्यक्ति के स्वार्थ टकरा रहे हैं। सभी सुख भोगना चाहते हैं। सभी की दृष्टि अपने तक सीमित है।
(v) मनुष्य स्वार्थी हो गया है अतः वह केवल अपने तक ही सुख चाहता है। उसे किसी दूसरे के सुख की चिंता नहीं है।

13. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

असहाय किसानों की किस्मत को खेतों में, क्या जल में
बह जाते देखा है?
क्या खाएँगे? यह सोच निराशा से पागल, बेचारों को
नीरव रह जाते देखा है?
देखा ग्रामों की रंभाओं को, जिनकी आभा पर
धूल अभी तक छाई है?
रेशमी देह पर जिन अभागिनों की अब तक रेशम क्या,
साड़ी सही नहीं चढ़ पाई है।
पर तुम नगरों के लाल, अमीरों के पुतले, क्यों व्यथा
भाग्यहीनों की मन में लाओगे,
जलता हो सारा देश, किंतु होकर अधीर तुम दौड़-दौड़कर
क्यों यह आग बुझाओगे?
चिंता हो भी क्यों तुभ्हें, गाँव के जलने से, दिल्ली में तो
रोटियाँ नहीं कम होती हैं।
धुलता न अश्रु-बूँदों से आँखों का काजल, गालों पर की
धूलियाँ नहीं नम होती हैं।
जलते हैं तो ये गाँव देश के जला करें, आराम नई दिल्ली
अपना कब छोड़ेगी,
या रखेगी मरघट में भी रेशमी महल, या आँधी की खाकर
चपेट सब छोड़ेगी।
चल रहे ग्राम-कुंजों में पछिया के झकोर, दिल्ली, लेकिन,
ले रही लहर पुरवाई में,
है विकल देश सारा अभाव के तापों से, दिल्ली सुख से
सोई है नरम रजाई में।

प्रश्न :
(i) राजधानी में और ग्रामीण भारत में क्या अंतर है ?
(ii) ग्रामीणों को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ?
(iii) दिल्लीवासियों को गाँवों के कष्ट क्यों नहीं दिखाई पड़ते ?
(iv) ‘ग्राम की रंभा’ किन्हें कहा है? उन्हें अभागिन क्यों माना है ?
(v) भाव स्पष्ट कीजिए – “है विकल देश सारा अभाव के तापों से, दिल्ली सुख से सोई है नरम रजाई में।”
उत्तर :
(i) राजधानी में जहाँ लोग सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण वैभवपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण भारत में किसानों के पास सुख-सुविधाओं का अभाव होता है, वे निराशा एवं चिंता में अपना जीवन व्यतीत करते हैं।
(ii) ग्रामीण की खेती बाढ़ से नष्ट हो जाती है, उन्हें भोजन एवं वस्त्रों के अभाव में जीना पड़ता है। उन्हें भीषण ताप एवं शीत का सामना करना पड़ता है।
(iii) दिल्लीवासियों को गाँवों के कष्ट इसलिए नहीं दिखाई पड़ते, क्योंकि उनके जीवन में सुख के सभी साधन एवं ऐशो-आराम विद्यमान होते हैं। वे उन्हीं सुख-सुविधाओं और दिखावे की दुनिया में खोए रहते हैं और स्वार्थवश दूसरों के कष्टों को देख नहीं पाते।
(iv) ‘ग्राम की रंभा’ ग्रामीण स्त्रियों को कहा गया है। उन्हें अभागिन इसलिए कहा गया है, क्योंकि उनकी स्थिति ऐसी है कि उनके शरीर पर वस्त्र ही नहीं, अपितु तन ढकने के लिए साड़ी भी उचित रूप से उपलब्ध नहीं है।
(v) प्रस्तुत पंक्तियों का भाव यह है कि जब समस्त देश के अधिकतर क्षेत्रों में ग्रामीण अभावों से व्याकुल हैं अर्थात् रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या से जूझ रहे हैं उस समय दिल्लीवासी सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण होकर अपने-अपने महलों में विश्राम कर रहे हैं एवं विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

14. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

कितने ही कटुतम काँटे तुम मेरे पथ पर आज बिछाओ,
और अरे चाहे निष्ठुर कर का भी धुँधला दीप बुझाओ।
किंतु नहीं मेरे पग ने पथ पर बढ़कर फिरना सीखा है।
मैंने बस चलना सीखा है।
कहीं छुपा दो मंजिल मेरी चारों ओर निमिर-घन छाकर,
चाहे उसे राख कर डालो नभ से अंगारे बरसाकर,
पर मानव ने तो पग के नीचे मंजिल रखना सीखा है।
मैंने बस चलना सीखा है।
कब तक ठहर सकेंगे मेरे सम्मुख ये तूफान भयंकर
कब तक मुझसे लड़ पाएगा इंद्रराज का वज्ञ प्रखरतर
मानव की ही अस्थिमात्र से वज्रों ने बनना सीखा है।
मैने बस चलना सीखा है।

प्रश्न :
(i) इस काव्यांश में किसकी महिमा बताई गई है ?
(ii) मानव के सामने क्या नहीं टिक पाता और क्यों ?
(iii) साहसी मानव की मंजिल कहाँ रहती है और क्यों ?
(iv) इस काव्यांश का मूल संदेश क्या है ?
(v) ‘अस्थिमात्र से वज्र बनना’ इस पंक्ति से किस कथा की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर :
(i) इस काव्यांश में मानव के अदम्य साहस व शक्ति की महिमा बताई गई है। इसी के सहारे मानव निड़ होकर मार्ग की कठिनाइयों पर विजय पाकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करके हो दम लेता है।
(ii) मानव के सामने भयंकर तूफान नहीं टिक पाता। वे भी मानव के अदम्य साहस के सामने हार मान जाते हैं।
(iii) साहसी मानव की मंजिल उसके पैरों तले रहती है। उसकी इच्छाशक्ति के सामने प्राकृतिक आपदाएँ भी शरमा जाती हैं। वह अपनी मंजिल अंधकार में भी ढूँढकर निकाल लेता है।
(iv) इस काव्यांश का मूल संदेश यह है कि मानव के बढ़ते कदमों को कोई भी शक्ति रोक नहीं पाती। रास्ते में आने वाली मुसीबतें उसके बढ़ते कदमों को पीछे लौटा नहीं सकतीं।
(v) दधीचि ऋषि द्वारा मानवता के लिए अपनी अस्थियाँ भी दान में दे देना – इस कथा की ओर संकेत है। उनकी अस्थियों से बने वज्र से ही वृत्रासुर नामक राक्षस का वध किया गया था।

15. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

जहाँ भूमि पर पड़ा कि
सोना धँसता, चाँदी धँसती,
धँसती ही जाती पृथ्वी में
बड़ों-बड़ों की हस्ती।

शक्तिहीन जो हुआ कि
बैठा भू पर आसन मारे,
खा जाते हैं उसको
मिट्टी के ढेले हत्यारे !

मातृभूमि है उसकी, जिसको
उठ जीना होता है,
दहन-भूमि है उसकी, जो
क्षण-क्षण गिरता जाता है।
भूमि खीचती है मुझको
भी, नीचे धीरे-धीरे
किंतु लहराता हूँ मैं नभ पर
शीतल-मंद-समीरे।

काला बादल आता है
गुरु गर्जन स्वर भरता है,
विद्रोही-मस्तक पर वह
अभिषेक किया करता हैं।
विद्रोही हैं हमीं, हमारे
फूलों में फल आते,
और हमारी कुर्बानी पर,
जड़ भी जीवन पाते।

प्रश्न :
(i) ‘विद्रोही हैं हमी’-पेड़ अपने आपको विद्रोही क्यों मानते हैं ?
(ii) “धँसती ही जाती पृथ्वी में बड़ों-बड़ों की हस्ती”‘काव्य पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(iii) इस काव्यांश में कवि ने किसे ‘मातृभूमि’ के लिए उपयुक्त और किसे ‘दहन-भूमि’ के योग्य बताया है ?
(iv) काला बादल किसका अभिषेक किया करता है और क्यों ?
(v) काव्यांश का मुख्य भाव क्या है ?
उत्तर :
(i) पेड़ अपने आपको विद्रोही इसलिए मानते हैं क्योंकि भले ही भूमि उसे अपनी ओर खींचती हो. पर वह अपनी डालियों पर फूलों से फल ले आता है। उसकी कुर्बानी से जड़ को भी जीवन मिल जाता है। पेड़ में त्याग और समर्पण है।
(ii) इस काव्य-पंक्ति का आशय यह है कि समय आने पर सभी का अस्तित्व तक धरती में समा जाता है अर्थात् मिट जाता है। घमंड कभी किसी का नहीं रहता चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न रहा हो।
(iii) इस काव्यांश में कवि ने उस व्यक्ति को मातृभूमि के लिए उपयुक्त माना है जो निरंतर प्रगति कर ऊपर उठता जाता है। दहन भूमि के योग्य उसे माना है जो निरंतर अवनति की ओर जाता है।
(iv) काला बादल हमेशा विद्रोही मस्तक अर्थात् पेड़ों का अभिपेक किया करता है। वह अपना बलिदान कर दूसरों का कल्याण करता है।
(v) काव्यांश का मुख्य भाव यह है कि अहंकार का अंत अवश्य होता है तथा शक्तिहीन (कमजोर) व्यक्ति को दुनिया जीने नहीं देती। इस दुनिया में वही सफल होता है जो अदम्य साहस, दृढ़ इच्छा शक्ति से जीता है।

16. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

इस समाधि में छिपी हुई है
एक राख की ढेरी।
जल कर जिसने स्वतंत्रता की
दिव्य आरती फेरी॥
यह समाधि, यह लघु समाधि है
झाँसी की रानी की।
अंतिम लीला-स्थली यही है
लक्ष्मी मर्दानी की॥
यहीं कहीं पर बिखर गई वह
भग्न विजय-माला-सी।
उसके फूल यहाँ संचित हैं
है यह स्मृति-शाला-सी।

सहे वार पर वार अंत तक
लड़ी वीर बाला-सी।
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर
चमक उठी च्चाला-सी।
बढ़ जाता है मान वीर का
रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की
भस्म यथा सोने से॥
रानी से भी अधिक हमें अब
यह समाधि है प्यारी।
यहाँ निहित है स्वतंत्रता की
आशा की चिनगारी॥

इससे भी सुंदर समाधियाँ
हम जग में हैं पाते।
उनकी गाथा पर निशीथ में
क्षुद्र जंतु ही गाते।

पर कवियों की अमर गिरा में
इसकी अमिट कहानी।
स्नेह और श्रद्धा से गाती
है वीरों की बानी।

प्रश्न :
(i) प्रस्तुत काव्यांश में किसकी समाधि का उल्लेख किया गया है ? उसे अंतिम लीला स्थली क्यों कहा गया है ?
(ii) आशय स्पष्ट कीजिए- ‘यहीं कहीं पर बिखर गई वह भग्न विजय-माला-सी।’
(iii) व्यक्ति का मान कब बढ़ जाता है ?
(iv) इससे भी सुंदर समाधियाँ होने पर भी यह समाधि विशेष क्यों बताई गई है ?
(v) रानी से भी अधिक उसकी समाधि प्रिय होने का कारण आपके विचार से क्या हो सकता है ?
उत्तर :
(i) प्रस्तुत काव्यांश में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की समाधि का उल्लेख किया गया है। इसे रानी की अंतिम लीलास्थली इसलिए कहा गया है क्योंकि रानी ने इस स्थान पर अंग्रेजों से अंतिम बार लड़ते-लड़ते अपना अमर बलिदान दिया था।
(ii) इस कथन में रानी लक्ष्मीबाई के जीवन की माला बिखर जाने अर्थात् बलिदान देने की ओर संकेत किया गया है। उस वीरांगना का जीवन भग्न विजय माला के समान भेंट चढ़ गया था।
(iii) व्यक्ति का मान तब बढ़ जाता है जब वह युद्धक्षेत्र में अपना बलिदान दे देता है। सोना भी आग में तपकर मूल्यवान बन जाता है। सोने की भस्म अधिक कीमती हो जाती है।
(iv) अन्य समाधियाँ साज-सज्जा तथा बनावट में इस समाधि से अधिक सुंदर हो सकती हैं, पर यह रानी लक्ष्मीबाई की समाधि सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। अतः यह समाधि विशेष है।
(v) रानी से भी अधिक रानी की समाधि के प्रिय होने का कारण यह हो सकता है कि यह समाधि अन्य देशभक्तों के लिए सदा-सदा के लिए प्रेरणा-स्रोत बन गई है। यह समाधि सर्वस्व बलिदान की प्रेरणा दीर्घकाल तक देती रहेगी।

17. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

आज की दुनिया विचित्र, नवीन;
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।
हैं बँधे नर के करों में वारि, विद्युत्, भाप,
हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप।
है नहीं बाकी कहीं व्यवधान,
लाँघ सकता नर सरित्, गिरि, सिंधु एक समान।
शीश पर आदेश कर अवधार्य,
प्रकृति के सब तत्त्व करते हैं मनुज के कार्य;
मानते हैं हुक्म मानव का महा वरुणेश,
और करता शब्दगुण अंबर वहन संदेश।

नव्य नर की सृष्टि में विकराल,
हैं सिमटते जा रहे प्रत्येक क्षण विकराल।
यह प्रगति निस्सीम ! नर का अपूर्व विकास !
चरण-तल भूगोल ! मुट्ठी में निखिल आकाश !
किंतु, है बढ़ता गया मस्तिष्क ही नि:शेष,
छूट कर पीछे गया है रह हृदय का देश;
मोम-सी कोई मुलायम चीज़
ताप पाकर जो उठे मन में पसीज-पसीज।

प्रश्न :
(i) आधुनिक युग को कवि ने विचित्र और नवीन क्यों कहा है ?
(ii) ‘कहीं कोई रुकावट शेष नहीं रही’-इसकी पुष्टि में कवि ने क्या तर्क दिया है ?
(iii) मानव द्वारा की गई वैज्ञानिक प्रगति के अद्भुत विकास को देखकर भी कवि संतुष्ट क्यों नहीं है ?
(iv) ‘प्रकृति के सब तत्व करते हैं मनुज के कार्य’-प्रमाण में एक उदाहरण दीजिए।
(v) मन में रहने वाली ‘मोम-सी कोई मुलायम चीज’ क्या हो सकती है ? उसका अभाव क्यों दिखाई पड़ता है ?
उत्तर :
(i) आज व्यक्ति ने प्रकृति पर विजय प्राप्त कर ली है इसलिए कवि ने इस संसार को नवीन और विचित्र कहा है।
(ii) कवि कहना चाहता है कि इस समय व्यक्ति की मुट्ठी में जल, बिजली, भाप आदि हैं। वायु भी उसके संकेत पर बहता-रुकता है। वह पर्वत नदी और समुद्र आदि सभी को लांघ सकता है। इसलिए अब व्यक्ति के मार्ग में ऐसा कुछ नहीं है जो उसका रास्ता रोक सकता है।
(iii) कवि वैज्ञानिक उन्नति देखकर संतुष्ट नहीं है। वह यह मानता है कि व्यक्ति के मस्तिष्क का विकास तो हो गया है परन्तु उसके हृदय की भावुकता खत्म हो रही है। वह कोसें पीछे छूट गई है।
(iv) इस समय प्रकृति व्यक्ति के संकेत पर काम कर रही है। जल-देवता वरुण उसके आदेश का पालन करता है, गगन भी मानव के संदेश का अनुपालन करता है। इन सब को व्यक्ति ने अपने वश में कर लिया है।
(v) कवि दिनकर कहते हैं कि व्यक्ति की भावनाएँ उसी तरह मुलायम होती हैं जिस तरह मोम होता है। वैज्ञानिक प्रगति तो चहुँमुखी हो रही है परन्तु भावनाएँ नगण्य हैं। विज्ञान ने मस्तिष्क पर कब्जा कर लिया है परंतु हदयय पीछे छूट गया है।

18. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

अरे! चाटते जूठे पत्ते जिस दिन देखा मैंने नर को
उस दिन सोचा : क्यों न लगा दूँ आज आग इस दुनिया भर को?
यह भी सोचा : क्यों न टेंटुआ घोटा जाए स्वर्य जगपति का?
जिसने अपने ही स्वरूप को रूप दिया इस घृणित विकृति का।
जगपति कहाँ? अरे, सदियों से वह तो हुआ राख को ढेरी;
वरना समता-संस्थापन में लग जाती क्या इतनी देरी?
छोड़ आसरा अलखशक्ति का, रे नर, स्वयं जगत्पति तू है,
तू यदि जूठे पत्ते चाटे, तो मुझ पर लानत है, थू है।
ओ भिखमंगे, अरे पराजित, ओ मजलूम, अरे चिर दोहित,
तू अखंड भंडार शक्ति का, जाग अरे निद्रा-सम्मोहित,
प्राणों को तड़पाने वाली हुँकारों से जल-थल भर दे,
अनाचार के अंबारों में अपना ज्चलित पलीता भर दे।
भूखा देख तुझे गर उमड़े आँसू नयनों में जग-जन के
तो तू कह दे : नहीं चाहिए हमको रोने वाले जनखे;
तेरी भूख, असंस्कृति तेरी, यदि न उभाड़ सके क्रोधानल,
तो फिर समझूँगा कि हो गई सारी दुनिया कायर, निर्बल।

प्रश्न :
(i) भूखे मनुष्य को जूटे पत्ते चाटते देखकर कवि के मन में क्या विचार उठा ?
(ii) राख की ढेरी कौन हो गया है? कवि ने ऐसा क्यों कहा है ?
(iii) कवि शोषित-पराजित मनुष्य को क्या कहकर प्रेरित करता है ?
(iv) आशय स्पष्ट कीजिए- “अनाचार के अंबारों में अपना ज्वरित पलीता भर दे।”
(v) किन पंक्तियों का आशय है कि दलित-शोषित भारतीय को सहानूभुति के आँसू नहीं, व्यवस्था को बदलने वाले गुस्से की ज़रूरत है ?
उत्तर :
(i) भूखे मनुष्य को जूठे पत्ते चाटते देखकर कवि के मन में यह विचार उठा कि वह पूरी दुनिया को आग लगा दे। उसने यह भी सोचा कि वह जगपति ईश्वर का गला भी घोंट दे।
(ii) कवि ने जगपति ईश्वर को राख की ढेरी होना कहा है। उसने ऐसा इसलिए कहा है उसने समाज में समानता स्थापित करने में बहुत देरी लगा दी है। वह सभी के साथ न्याय नहीं कर पाया है।
(iii) कवि शोषित पराजित मनुष्य को यह कहकर प्रेरित करता है कि वह ईश्वर का आसरा छोड़ दे और अपनी क्षमता-सामर्थ्य को पहचाने। अपनी अखंड शक्ति से वह अपना भाग्य बदल सकता है।
(iv) इस काव्य-पंक्ति का आशय यह है कि इस संसार में जहाँ-जहाँ अनाचार-अत्याचार हो रहा है, उनको जलाकर समाप्त कर दें। इन्हें जड़ से समाप्त करना होगा।
(v) यह आशय निम्नलिखित पंक्तियों का है-
“भूखा देख तुझे गर उमड़े आँसू नयनों में जग-जन के
तो तू कह दे : नहीं चाहिए हमको रोने वाले जनखे;
तेरी भूख, असंस्कृति तेरी, यदि न उभाड़ सके क्रोधानल,
तो फिर समझूँगा कि हो गई सारी दुनिया कायर, निर्बल।”

19. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

कविताओं में
पेड़-चिड़ियाँ-फूल-पौधे
और मौसम का अब जिक्र नहीं होता
कविताओं में होते हैं
संवेदनहीन लोग
जो धन के बल पर
सच-झूठ को नकारते हुए
जीवन जी रहे हैं।
कविताएँ सदा सच बोलती हैं
झूठ का भंडा फोड़ती हैं
और सच यह है कि आज का मानव
छल से, बल से लूट रहा है,
उसने काट डाले हैं
सारे के सारे वन-उपवन
धरती का चप्या-चप्पा
पट गया है भवनों से।
और लोगों ने ड्राइंग रूम में लगा दी हैं
बौना साइ़ज प्रजातियाँ पौधों की
और सजा दी हैं असंख्य पक्षियों की

कृत्रिम आकृतियाँ
कैलेंडर-पेंटिंग्स के रूप में
जिन्हें देखकर
बच्चे पूछते होंगे-
कैसे होते हैं
विशालकाय पेड़?
चिड़ियाँ कैसे चहचहाती हैं?
आकाश इतना खाली क्यों है?
पर्वत इतने निर्वस्त्र क्यों?
हवाएँ सहमी-सहमी हैं?
बादल क्यों नहीं बरसते ?
तब तुम्हारा उत्तर क्या होगा?
मैं तुम्हीं से पूछता हूँ?
तुम्हारे ड्राइंग-रूम की चिड़िया
पौधों की किस्में
प्लास्टिक के फूल
खोज पाएँगे इन सभी
प्रश्नों का समाधान?

प्रश्न :
(i) कवि की दृष्टि मे अब कविताओं में किन बातों की चर्चा नहीं होती ?
(ii) आज का मानव छल-बल से किसे लूट रहा है और क्यों ?
(iii) ड्राइंग-रूमों को देखकर बच्चों की जिज्ञासा का कारण आप क्या मानते हैं ?
(iv) ‘तब तुम्हारा उत्तर क्या होगा ?’ बताइए ऐसी स्थिति में आपका उत्तर क्या होगा ?
(v) किन पंक्तियों का संकेत बिगड़ते पर्यावरण की और है ?
उत्तर :
(i) कवि की दृष्टि में अब प्रकृति की चर्चा नहीं होती। न पेड़ की चर्चा होती है, न चिड़िया की। न फूल की चर्चा होती है. न पौधों की और न ही मौसम की चर्चा होती है।
(ii) आज का व्यक्ति प्रकृति का दुश्मन हो गया है। वह छल-बल कर प्राकृतिक संपदाओं को लूटने में लगा है। पेड़-पौधे काट रहा है और उनका इस्तेमाल कर रहा है। ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ खड़ी करने में लगा है। इस प्रकार वह प्रकृति का दोहन करने में लगा है।
(iii) बच्चों के मन में पेड़ों, चिड़िया या अन्य पक्षियों की देखने-जानने की जिज्ञासा रहती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने इन सब चीजों को अभी तक चित्र में देखा है, प्रत्यक्ष नहीं देखा है।
(iv) ऐसी स्थिति में हम बच्चों को कोई उत्तर नहीं दे सकेंगे और स्वयं को दोषी समझेंगे।
(v) इन पंक्तियों में बिगड़ते पर्यावरण का संकेत मिल सकता है-
आकाश खाली क्यों है?
पर्वत इतने निर्वस्त्र क्यों?
हवाएँ सहमी-सहमी हैं
बादल क्यों नहीं बरसते ?

20. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

मातृभूमि के पहरेदारो, हिमवानो, तुम जागो तो!
आसमान को छूने वाले पाषाणों, तुम जागो तो!
तुम जागो तो, नव भारत के जन-जन का जीवन जग जाए,
तुम जागो, तो जन्मभूमि की माटी का काण-कण जग जाए,
तुम जागो तो, जग का आँगन दीपों से जगमग हो जाए,
बैरी के पैरों के नीचे से धरती डगमग हो जाए।
युग-तरुणाई ले अंगड़ाई, तूफानो, तुम जागो तो!
मातृभूमि के पहरेदारो, हिमवानो, तुम जागो तो!
खेत-खेत में सोना बरसे, आँगन-आँगन में मोती,
शिखर-शिखर पर नई किरण की आज सरस वर्षा होती।
नव उमंग जागे प्राणों में, स्वर नवीन हुँकार उठे।
जन-भारत वनराज जागकर आज विमुक्त दहाड़ उठे।
कर जागे, करवाल जगे, ओ दीवानो, तुम जागो तो!
मातृभूमि के पहरेदारो, हिमवानो, तुम जागो तो!

प्रश्न :
(i) ‘मातृभूमि के पहरेदारो’ से कवि किन्हें संबोधित कर रहा है ? उन्हें क्यों जगाया जा रहा है ?
(ii) जब देश के प्रहरियों की चर्चा होती है तो ‘हिमवान’ का उल्लेख अवश्य होता है, ऐसा क्यों ?
(iii) युवाशक्ति जागृत हो जाए तो देश को क्या-क्या लाभ होगा ?
(iv) आशय स्पष्ट कीजिए-
खेत-खेत में सोना बरसे, आँगन-आँगन में मोती,
शिखर-शिखर पर नई किरण की आज सरस वर्षा होती।
(v) काव्यांश का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(i) कवि बर्फ से ढके हिमालयी पहाड़ों को मातृभूमि का पहरेदार कहकर संबोधित कर रहा है क्योंकि हिमालय भारत का रक्षक है इसलिए उसे सावधान रहने के लिए कह रहा है।
(ii) जब देश में भारत के पहरेदारों की चर्चा होती है तब हिमालय का नाम अवश्य लिया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हिमालय भारत का सशक्त पहरेदार की तरह उपस्थित है। उसे पार कर आना संभव नहीं है।
(iii) अगर देश की युवाशक्ति जागृत हो जाए तो कोई भी देश पर आक्रमण की नहीं सोच सकता। युवाशक्ति देश के भ्रष्ट नेताओं को ठिकाने लगा देगी। देश भी द्रुत गति से प्रगति के मार्ग पर बढ़ता चला जाएगा।
(iv) यदि युवा शक्ति जागृत हो जाएगी तो देश धन-धान्य से संपन्न हो जाएगा। किसान मनचाही फसलें उगाएँगे। धरती सोना उगलेगी। हिमवान् के शिखरों पर नई किरणों का सौन्दर्य उभर जाएगा। देश सुखी और सपन्न हो जाएगा।
(v) भारत का पहरेदार सो रहा है। कवि चाहता है कि उसे पुन: जगाना होगा। पहरेदार के जागने से देश में नवीन चेतना का अभ्युदय होगा। धरती दिव्य हो उठेगी। चारों ओर उन्नति का प्रकाश होगा। शत्रु पराजित होंगे और देश प्रगति के पथ पर निरन्तर अग्रसर होता चला जाएगा।

12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers

The post CBSE Class 12 Hindi Elective अपठित बोध अपठित काव्यांश appeared first on Learn CBSE.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 9955

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>