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Class 6 Science Chapter 9 Notes in Hindi दैनिक जीवन में पृथक्करण विधियाँ

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Methods of Separation in Everyday Life Class 6 Notes in Hindi

दैनिक जीवन में पृथक्करण विधियाँ Class 6 Notes

कक्षा 6 विज्ञान नोट्स Chapter 9 दैनिक जीवन में पृथक्करण विधियाँ – कक्षा 6 विज्ञान अध्याय 9 नोट्स

→ हस्त चयन (हाथ से चुनने) प्रक्रिया का उपयोग मिश्रण में से ठोस पदार्थों को उनके आमाप, रंग और आकृति के आधार पर पृथक करने के लिए किया जाता है।

→ वह प्रक्रिया जिसमें अनाज के पूलों को पीटकर उनमें से अनाज पृथक किया जाता है, थ्रेशिंग कहलाती है।

→ बहती हवा या पवन का उपयोग करके हल्के भूसे को भारी अनाज से पृथक करने की विधि ओसाई (विनोइंग) कहलाती है।

→ एक चालनी का उपयोग करके कणों के आकार में भिन्नताओं के आधार पर मिश्रण से ठोस पदार्थों को पृथक करने की प्रक्रिया छानना कहलाती है।

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→ वाष्पीकरण या वाष्पन वह प्रक्रिया है, जिसमें एक द्रव अपने वाष्प में परिवर्तित हो जाता है। इसका प्रयोग एक द्रव में घुले ठोस को पृथक करने के लिए किया जा सकता है।

→ किसी द्रव के तल पर भारी अघुलनशील अवयव के जमा हो जाने की प्रक्रिया अवसादन (सेडीमेंटेशन) कहलाती है। जब बर्तन को तिरछा कर द्रव को निकाल दिया जाता है तो इस प्रक्रिया को निस्तारण (डीकेंटेशन) कहते हैं।

→ निस्यंदन (फिल्टरेशन) का उपयोग अघुलनशील ठोस अवयवों को द्रव से पृथक करने के लिए किया जाता है।

→ मथनी का उपयोग दही से मक्खन निकालने के लिए किया जाता है।

→ चुंबक का उपयोग करके चुंबकीय और अचुंबकीय पदार्थों का पृथक्करण करने की प्रक्रिया चुंबकीय पृथक्करण कहलाती है।

एक खेल खेलिए— बुद्धिमान मछली
स्थानीय रूप से उपलब्ध पर्यावरण-अनुकूल सामग्रियों से अपनी मछली पकड़ने की छड़ी तैयार करें। छड़ी के एक सिरे पर धागा बाँधे और धागे के मुक्त सिरे पर चुंबक बाँधें। टैंक 1 में लाल गत्ते की मछलियाँ और टैंक 2 में नीले गत्ते की पर्चियाँ हैं जिन पर लोहे के क्लिप लगे हैं। छड़ी द्वारा पहले एक लाल मछली निकालें जो किसी पृथक्करण विधि का प्रतिनिधित्व करती है, फिर इससे संबंधित नीली पर्ची निकालें। अपने मित्रों पर ध्यान दें। क्या वे इसे सही ढंग से खेल रहे हैं?

मल्ली और उसकी बहन वल्ली अपनी गरमी की छुट्टियों को लेकर उत्साहित हैं। उनके माता-पिता ने भारत के विभिन्न भागों में रह रहे अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने की योजना बनाई है। वे सदैव अपने मित्रों एवं रिश्तेदारों के संपर्क में रहते हैं। क्या आप भी अपने प्रियजनों के संपर्क में रहते हैं?

उनका पहला पड़ाव हरियाणा है जहाँ मल्ली और वल्ली की नानी जी का घर है। उनका घर बड़े-बड़े खेतों से घिरा हुआ है। वे आँगन में जमा विभिन्न प्रकार के अनाजों की ढेरियाँ देखकर खुश हो जाते हैं। उनकी मामी जी और मामा जी समुदाय के अन्य सदस्यों के साथ अपने हाथों से चावल और गेहूँ जैसे अनाजों से छोटे कंकड़ और भूसी अलग करने में व्यस्त हैं।

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मल्ली और वल्ली यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि ऐसा क्यों किया जा रहा है। उनकी नानी जी उनकी जिज्ञासा देखकर समझाती हैं, “हम इन कंकड़ों को इसलिए निकाल रहे हैं कि यह अनाज पकाने योग्य हो सके।”
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वे घर के आस-पास के क्षेत्र में घूमते हैं और खेतों तथा मवेशियों को देखते हैं। उन्हें व्यस्त रखने के लिए नानी जी उन्हें आँखें बंद करके अनाज से छोटे कंकड़ चुनने की चुनौती देती हैं।

किसी ठोस मिश्रण (वह पदार्थ जिसमें दो या अधिक पदार्थ मिले होते हैं, जैसे कि गेहूँ और चावल) में से हाथ द्वारा छोटे कंकड़ और भूसी अलग करने की प्रक्रिया हस्त चयन कहलाती है। यह कणों के आकार, रंग और आकृति के अंतर के आधार पर किया जाता है। यदि पृथक किए जाने वाले कण कम मात्रा में हों और सहजता से उठाए जा सकते हों तो हाथ से छाँटना एक सुविधाजनक विधि सिद्ध हो सकती है।

दोपहर के खाने में मल्ली और वल्ली को गरमागरम पुलाव परोसा जाता है। पुलाव खाते समय, नानी जी देखती हैं कि मल्ली पुलाव में से साबुत काली मिर्च निकाल कर प्लेट के किनारे रख रहा है (चित्र)। वल्ली मजाक में कहती है, “वाह! यही हाथ से चयन करने की विधि है, अच्छी है ना” नानी जी उन्हें काली मिर्च के लाभ बताती हैं और मल्ली को इसे भी खाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
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कुछ समय पश्चात्, उनके मामा जी उन्हें खेतों में ले जाते हैं। जहाँ वे काटे गए गेहूँ की पूलों के गट्ठरों का अवलोकन करते हैं। कुछ पूलों को धूप में सुखाने के लिए फैलाया गया है। दोनों एक-एक पूला उठाते हैं और उसमें लगे अनगिनत दाने देखते हैं। कुछ किसान पूलों को एक बड़े लकड़ी के लट्ठे पर पीट रहे हैं। जिज्ञासावश वल्ली मामा जी से पूछती है, “वे ऐसा क्यों कर रहे हैं?”

मामा जी समझाते हैं, “वे दाने पृथक करने के लिए पूलों को पीट रहे हैं (चित्र)। पूलों से दाने पृथक करने की यह प्रक्रिया थ्रेशिंग कहलाती है। किसान कड़ी मेहनत करते हुए अपने काम का आनंद लेते हैं। समय-समय पर, वे अपने काम के साथ लय में लोकगीत भी गाते हैं।”
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अनाज के अलग किए गए दाने भूसे की ढेरियों में मिल जाते हैं। वल्ली फुसफुसाते हुए मल्ली से कहती है, “क्या किसान इतनी सारी भूसी में से अनाज निकालने के लिए उसे हाथ से छाँटेंगे?” वह सोचती है, “किसानों को इन्हें अलग करने में कितना समय लगेगा?” आइए, वल्ली द्वारा उठाए गए प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए एक क्रियाकलाप करें।

क्रियाकलाप 1 – आइए खोजें
मुट्ठीभर भुनी हुई मूँगफली के दाने लें और उन्हें अपनी हथेलियों के बीच रगड़ें। क्या होता है?
क्या मूँगफली के दानों से छिलके पृथक करना संभव है? अब इसमें फूँक मारें। आप क्या देखते हैं?
हटाए गए मूँगफली के छिलके और मूँगफली के दानों में से कौन-सा भाग उड़ जाता है?

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आपने देखा होगा कि फूँक मारने से भारी भाग से हल्के भाग अलग हो जाते हैं।
आपके विचार में किसान इतनी सारी भूसी अनाज कैसे अलग करते हैं?

पारंपरिक रूप से किसी मिश्रण के भारी और हल्के अवयवों को अलग-अलग करने के लिए सूप (बाँस से निर्मित एक पात्र) का उपयोग किया जाता है (चित्र)।
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अगले दिन, उनके नाना जी उन्हें यह प्रक्रिया दिखाने के लिए खेतों में ले जाते हैं। मल्ली और वल्ली देखते हैं कि खेत में एक किसान ऊँचे चबूतरे पर खड़ा है। किसान उस सूप को, जिसमें थ्रेश किए गए गेहूँ के दाने हैं, वायु की दिशा में हिला रहा है (चित्र)।

चित्र से आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं? क्या गेहूँ के दाने और भूसी, दोनों अवयव एक ही स्थान पर गिरते हैं? गेहूँ के दाने और भूसी में से कौन-सा अवयव उड़कर दूर चला जाता है? क्या पवन दो अवयवों को पृथक कर सकती है?
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मिश्रण में से भारी और हल्के अवयवों को हवा या फूँक मारकर पृथक करने की यह विधि ओसाई (विनोइंग) कहलाती है। क्या आपने अपने घर पर इस प्रकार की प्रक्रिया होते हुए देखी है?

तकनीकी विकास के परिणामस्वरूप थ्रेशर नामक थ्रेशिंग मशीनें निर्मित की गई हैं। इन मशीनों का उपयोग पूलों से भूसी और अनाज के दानों को अलग करने के लिए किया जाता है। ये मशीनें थ्रेशिंग और ओसाई दोनों कार्य एक साथ करती हैं।

अगले दिन, मल्ली और वल्ली अपने पिता जी के मित्र घनश्याम भाई से मिलने जाने के लिए अहमदाबाद के लिए ट्रेन पकड़ते हैं। वल्ली अपनी मामी जी से यात्रा के लिए मीठी पूरी बनाने का अनुरोध करती है।
वल्ली — “क्या मैं गेहूँ आटा गूंथने में आपकी सहायता करूँ?”
मामी जी — “आटे से कोई भी व्यंजन तैयार करने के लिए पहले हमें आटे में विद्यमान चोकर निकालना होता है।”
वल्ली — “हम इसे कैसे करते हैं?”
मामी जी — “हम इसके लिए चालनी का प्रयोग करते हैं।”

चालन से आटे के बारीक कण चालनी के छिद्रों से निकल जाते हैं जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। बड़े कण जैसे चोकर और छोटे कंकड़ चालनी में रह जाते हैं। ध्यान से चालनी का अवलोकन करें। क्या चालनी के सभी छिद्र एक ही आकार के हैं? यदि चालनी में छिद्र पदार्थों से बड़े हों तो क्या छानना प्रक्रिया काम करेगी? चालनी से गुजरने वाले कणों और चालनी पर रहने वाले कणों के आकार में क्या अंतर होता है? जब दो या दो से अधिक ठोसों के मिश्रण के अवयवों के कणों के आकार भिन्न होते हैं, तब चालन की विधि का उपयोग किया जाता है।
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अहमदाबाद पहुँचने पर, वे घनश्याम भाई के साथ साबरमती आश्रम जाते हैं, जहाँ वे नमक सत्याग्रह (दांडी यात्रा) के बारे में जानते हैं।
मल्ली पूछता है – “नमक कहाँ से प्राप्त होता है?”
“समुद्र-जल से”, घनश्याम भाई उत्तर देते हैं।
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समुद्री जल पानी में घुले विभिन्न लवणों एवं अन्य पदार्थों का मिश्रण है। नमक प्राप्त करने के लिए समुद्र का जल उथले गड्ढों में रखा जाता है जहाँ यह धूप और हवा के संपर्क में आता है। कुछ दिनों में, जल पूरी तरह से वाष्पित हो जाता है और ठोस नमक शेष रह जाता है (चित्र)। फिर लवण के इस मिश्रण को शोधित कर साधारण नमक प्राप्त किया जाता है। आइए, हम स्वयं क्रियाकलाप करके पता लगाएँ कि नमक के विलयन से नमक को कैसे अलग कर सकते हैं।

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क्रियाकलाप 2 – आइए, अवलोकन करें और रचनात्मक बनें
एक कटोरी या कोई भी पात्र लें और उसे जल से आधा भरें। उसमें दो से तीन चम्मच नमक डालें और तब तक हिलाते रहें जब तक वह घुल कर विलयन न बना ले। एक काले या गहरे रंग का मोटा कागज का टुकड़ा लें और उस पर नमक के इस विलयन की कुछ बूँदें डालें (चित्र क)। आप इस नमक के विलयन से कागज पर अपने पसंद की कोई भी कलाकृति बना सकते हैं। इसे सूखने दें और अवलोकन करें। (चित्र ख और ग)।
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क्या आपको कागज पर कुछ धब्बे दिखाई देते हैं? आपको क्या लगता है कि कागज पर क्या बचा है? कागज छूकर आप नमक की उपस्थिति महसूस कर सकते हैं। पानी कहाँ लुप्त हो गया? ‘जल की विविध अवस्थाओं की यात्रा’ नामक अध्याय का स्मरण करें। आइए, उत्तर प्राप्त करने के लिए आगे जाँच करें।

समग्र स्वास्थ्य और चिकित्सा की पारंपरिक भारतीय प्रणाली आयुर्वेद में उपचार के लिए जड़ी-बूटियों या पौधों के भागों का उपयोग करने की सलाह दी जाती है। प्राय: इन सामग्रियों (जैसे विभिन्न औषधीय पौधों की जड़ों, पत्तियों, फूलों या बीजों) को छाया में सुखाते हैं। इस प्रक्रिया में अतिरिक्त जल का वाष्पीकरण हो जाता है जिससे औषधि का महत्वपूर्ण भाग बचा रहता है।

क्रियाकलाप 3 – आइए, जाँच करें
यह क्रियाकलाप शिक्षक द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। एक चीनी मिट्टी की डिश में कुछ नमक का विलयन (क्रियाकलाप 2 में तैयार किया गया) लें। यदि चीनी मिट्टी की डिश उपलब्ध नहीं है तो किसी अन्य उपयुक्त पात्र का उपयोग किया जा सकता है।
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इसे गरम करें और जल उबलकर उड़ जाने दें जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है। चीनी मिट्टी की डिश को ठंडा होने दें। आप क्या देखते हैं? चीनी मिट्टी की डिश में क्या बचा है?क्या आपको नमक वापस प्राप्त हुआ? आप चीनी मिट्टी की डिश में नमक की उपस्थिति को अपनी अँगुलियों से रगड़कर महसूस कर सकते हैं।
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अब समय आ गया है कि मल्ली और वल्ली दक्षिण भारत के पुडुचेरी में रहने वाले अपने दादा जी और दादी जी से मिलने जाएँ। वे अपने पुराने पड़ोसी मित्र बालन से मिलने के लिए उत्साहित हैं। पुडुचेरी पहुँचने के बाद, वे पुराने समय की बातें याद करने लगते हैं और उन्हें पता ही नहीं चलता कि शाम हो गई है और दादी जी की चाय का समय हो गया है।
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दादा जी — “मैं आपके लिए चाय बनाता हूँ।”
बच्चे — “हम भी आपकी सहायता करेंगे।”
चाय बनाते समय दादा जी ने एक कप चाय बनाने के तरीके के बारे में कुछ सुझाव दिए।
बालन — “चाय बनाने के बाद आप चाय की पत्तियों को कैसे अलग करते हैं?”
दादा जी — “स्पष्ट है, चालनी के द्वारा आप जानते हैं कि यदि हमारे पास चालनी नहीं है तो भी हम अधिकांश चाय की पत्तियों को अलग कर सकते हैं।”
वल्ली — “वह कैसे?”
दादा जी — “चाय वाले बर्तन (पात्र) को कुछ समय के लिए स्थिर छोड़ दें और फिर चाय को धीरे-धीरे कप में उड़ेलें (चित्र)।”
वल्ली – “अरे हाँ ! और तब चाय की पत्तियाँ नीचे रह जाएँगी।”
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ठोस और द्रव के मिश्रण में भारी अवयव नीचे बैठ जाता है। इस प्रक्रिया को अवसादन (सेडीमेंटेशन) कहते हैं। जब बर्तन को तिरछा कर जल (द्रव) को हटाया जाता है, तो यह प्रक्रिया निस्तारण (डीकेंटेशन) कहलाती है।

दादा जी — “लेकिन फिर भी मेरे मुँह में चाय की कुछ पत्तियाँ आ सकती हैं क्योंकि निस्तारण की प्रक्रिया से पूरी तरह चाय की पत्तियाँ चाय से अलग नहीं होती हैं।”

बालन— “अच्छा! इसका अर्थ यह है कि इसको अलग करने के लिए यह उपयुक्त विधि नहीं है।”

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दादा जी — “बिल्कुल, सही! तुम ठीक कह रहे हो। अच्छा बच्चों अब चाय तैयार है।”
मल्ली ताक से चाय की चालनी उठाता है और अपने दादा जी को देता है।

दादा जी — आइए अब मैं चाय को इस चालनी से छानता हूँ। तुम देख सकते हैं कि सारी चाय की पत्तियाँ चालनी में रह जाती हैं। चाय से चाय की पत्तियाँ पृथक करने की इस प्रक्रिया को निस्यंदन (फिल्टर करना) कहते हैं।

बालन मल्ली से पूछता है कि क्या वह मटमैले जल के निस्यंदन के लिए चाय की चालनी का उपयोग कर सकता है। आओ, क्यों न हम स्वयं करके इसका पता लगाएँ।

दादा जी — “साथ ही मटमैले जल को कपड़े के एक टुकड़े से भी छानने का प्रयास कीजिए और अंतर देखिए।”
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मल्ली —“हमें कपड़े का टुकड़ा क्यों उपयोग करना चाहिए?”

दादा जी — “कपड़े के टुकड़े की बुनाई में धागों के बीच छोटे-छोटे रंध्र या छिद्र होते हैं। कपड़ों के इन छिद्रों का उपयोग छानने के लिए किया जा सकता है। प्राचीन काल में भी लोगों ने इस पद्धति को अपनाया।”

यदि जल एक बार छानने के बाद भी गंदा है, तो अशुद्धियाँ फिल्टर-पत्र का उपयोग करके अलग की जा सकती हैं, जिसमें और भी छोटे रंध्र या छिद्र होते हैं। फिल्टर-पत्र एक ऐसा निस्यंदक होता है, जिसमें अत्यंत सूक्ष्म छिद्र होते हैं।

क्रियाकलाप 4 – आइए, प्रयोग करें
चित्र में दिखाए अनुसार आप स्वयं फिल्टर-पत्र मोड़कर उसका एक शंकु (कोन) बनाने का प्रयास करें।
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इसे एक शंक्वाकार फ्लास्क पर रखी कीप (फनल) के अंदर रखें और इसमें मटमैला पानी डालें (चित्र)।
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आपने क्या अवलोकन किया? क्या मिट्टी के कण फिल्टर-पत्र से होकर निकल जाते हैं?

कीप से निकलने वाला जल शंक्वाकार फ्लास्क में एकत्रित हो जाएगा।

आपको फिल्टर-पत्र पर अवशेष के रूप में मिट्टी और शंक्वाकार फ्लास्क में निस्यंद के रूप में स्वच्छ जल मिलेगा।

फिल्टर-पत्र के अतिरिक्त कपास, चारकोल, रेत इत्यादि अनेक सामग्रियों का उपयोग निस्यदंक के रूप में किया जा सकता है। निस्यदंक का चुनाव पृथक की जाने वाली सामग्रियों के कणों के आकार पर निर्भर करता है।

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क्रियाकलाप 5 – आइए, डिजाइन करें और बनाएँ
वल्ली अपनी दादी जी के साथ प्रकृति की सैर पर जाती है और एक तालाब से थोड़ा जल एकत्रित करती है। उसे जल में कुछ अवांछित पदार्थ दिखाई देते हैं। कम लागत की सामग्रियों का उपयोग करके जल के निस्यंदन के लिए एक कार्यकारी मॉडल की योजना बनाएँ और इसका निर्माण करें।

टी-बैग (चाय की पत्ती की थैली) पहले रेशम जैसे मुलायम कपड़ों से बनाई जाती थीं क्योंकि ये चाय की पत्ती को रोक लेती थीं और जल इनके आर-पार निकल सकता था। रेशम मजबूत होने के कारण गरम जल के संपर्क में आने पर फटता नहीं था। बाद में लोग जाली या मलमल के कपड़े का उपयोग करने लगे। अंतत: उन्होंने फिल्टर-पत्र का उपयोग करना आरंभ किया जिससे आजकल अधिकांश टी-बैग बनाए जाते हैं।
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मल्ली और वल्ली अपने दादा जी और उनके मित्र ओटुक्कम के साथ पास की नदी में नौका विहार के लिए जाते हैं। ओटुक्कम एक मछुआरे हैं। जैसे ही वे मछली पकड़ने का जाल डालते हैं तो पानी जाल से बाहर बह जाता है। वल्ली को पहले सीखी हुई निस्यंदन की विधि का स्मरण हो आता है और वह समझती है कि मछली पकड़ने की यह विधि बहुत कुछ उसी के समान है। मल्ली जाल में फँसी मछलियों के साथ प्लास्टिक की थैलियाँ, टूटी बोतलें, खाद्य सामग्रियों के पैकेट और एक बड़ी मछली के मुँह में फँसी प्लास्टिक की नली देखकर स्तब्ध हो जाता है।
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मल्ली और वल्ली अपने दादा-दादी जी का आशीर्वाद लेते हैं और बालन को शुभकामनाएँ देकर मध्यप्रदेश के नगर भोपाल की यात्रा पर निकल पड़ते हैं।
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रेलगाड़ी जब भोपाल पहुँचती है उस समय तीव्र धूप के कारण गर्मी बढ़ रही है। वे मौसी के घर की ओर जाते समय एक ढाबे में छाछ पीते हैं। मल्ली ढाबे की दीवार पर लटकी बड़ी-सी पेंटिंग के बारे में दुकानदार से पूछता है। दुकानदार बताता है कि चित्र में घरों में एक बड़ी मथनी से दही मथकर मक्खन प्राप्त करने की प्रक्रिया को दर्शाया गया है, जिसे मथना कहते हैं। इस प्रक्रिया में हल्का होने के कारण मक्खन ऊपर तैरता है जबकि छाछ नीचे रह जाती है।
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मौसी के घर पर उनका प्रवास आनंदमय रहा और वे घर लौटने पर अपनी सभी यादें अपने मित्रों के साथ साझा करने के लिए उत्सुक हैं। अब उनक अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव मेघालय की राजधानी शिलांग पहुँचने का समय आ गया है।

शिलांग में अपनी बुआ के घर पहुँचते ही वे एक बढ़ई को लकड़ी का द्वार बनाते देखते हैं। काम करते समय उससे अचानक कुछ लोहे की कीलें लकड़ी के बुरादे में गिर जाती हैं।
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बढ़ई हाथ से लोहे की कीलों को निकालने लगता है। बच्चे बढ़ई से रुकने के लिए कहते हैं। वे अपनी बुआ से चुंबक लेते हैं। वे बढ़ई से कहते हैं कि इस चुंबक को लकड़ी के बुरादे पर घुमाइए। सारी कीलें चुंबक से आकर्षित होकर उस पर चिपक जाती हैं (चित्र)। बढ़ई ने पृथक्करण की किस विधि का उपयोग किया? ‘चुंबकों को जानें ‘ अध्याय का स्मरण करें।

वे पदार्थ जो चुंबक के प्रति आकर्षित होते हैं, उन्हें चुंबकीय पदार्थ कहा जाता है। लोहा चुंबकीय पदार्थ का एक सामान्य उदाहरण है। चुंबक का उपयोग करके चुंबकीय और अचुंबकीय पदार्थों को पृथक करने को चुंबकीय पृथक्करण कहते हैं।

आजकल, पुनर्चक्रणकर्ता (रिसाइक्लर) अपशिष्ट के ढेर से लोहे की वस्तुओं को अलग करने के लिए विद्युत चुंबक का उपयोग करते हैं। कई उद्योगों के अपशिष्ट में प्रायः अनुपयोगी लोहे की कतरनें (स्क्रैप आयरन) होती हैं। इसे क्रेन में लगे चुंबक का उपयोग करके अपशिष्ट सामग्री के ढेर से अलग किया जाता है। अनुपयोगी लोहे की कतरनों का पुनर्चक्रण करके उन्हें पुनः उपयोग में लाया जा सकता है।
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मल्ली और वल्ली की छुट्टियाँ आनंदमय रहीं। उनकी यह मनोरंजक ‘भारत की यात्रा’ उनकी स्मृतियों में स्थायी रूप से रहेगी। उन्होंने न केवल भारत के विभिन्न क्षेत्रों को जानने का आनंद लिया बल्कि पदार्थों को पृथक करने की विभिन्न विधियों का भी ज्ञान प्राप्त किया।

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क्रियाकलाप 6 — आइए, खेल खेलें
निम्नलिखित वाक्यांशों को कागज की छोटी पर्चियों पर लिखें—

  • दालों से छोटे कंकड़ पृथक करना।
  • दही मथकर मक्खन प्राप्त करना।
  • पके हुए दलिये या पोहे से हरी मिर्च निकालना।
  • तरबूज से बीज निकालना।
  • निर्माण सामग्री के मिश्रित ढेर से लकड़ी के बुरादे और लोहे की कीलों को पृथक करना।
  • माला बनाने के लिए विभिन्न फूलों के ढेर में से गेंदे के फूल चुनना।
  • रेत से कंकड़ पृथक करना।
  • चावल के आटे में से नारियल के टुकड़े पृथक करना।
  • पानी से तेल पृथक करना।
  • नमक के विलयन से नमक पृथक करना।

दो टोकरियाँ लें, इनमें से प्रत्येक उन दो प्रयोजनों में से एक को प्रदर्शित करती है, जिनके लिए हम पदार्थों का पृथक्करण करते हैं। दो दल बनाएँ और देखें कि कौन-सा दल अधिकतम सही प्रविष्टियाँ प्रस्तुत कर पाता है।
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यह क्रियाकलाप आपके इस बोध का आकलन करने में सहायता करेगा कि हम पदार्थों को पृथक क्यों करते हैं?

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