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Class 11 Hindi Antra Chapter 4 Question Answer गूँगे

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 4 गूँगे

Class 11 Hindi Chapter 4 Question Answer Antra गूँगे

प्रश्न 1.
चमेली को गूँगे ने अपने बारे में क्या-क्या बताया और कैसे ?
उत्तर :
गूँगे ने अपने माता-पिता के बारे में इशारे से चमेली को बताया कि जब वह छोटा था तब माँ घूँघट काढ़ती थी। उसका बाप बड़ीबड़ी मूँछें रखता था। जब उसका बाप मर गया तो उसकी माँ उसे छोड़कर भाग गई थी। उसे जिसने पाला वे लोग उसे बहुत मारते थे। उसने अपने हाथों के इशारे से चमेली को अपनी बात समझाई।

प्रश्न 2.
गूँगे की कर्कश काँय-काँय और अस्फुट ध्वनियों को सुनकर चमेली ने पहली बार क्या अनुभव किया ?
उत्तर :
गूँगे को देखकर चमेली ने पहली बार यह अनुभव किया कि यदि गले में काकल कुछ ठीक नहीं हो तो मनुष्य को न मालूम क्या से क्या हो जाता है। वह इतना अधिक दुखी हो जाता है कि चाहते हुए भी अपने मन की भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकता।

प्रश्न 3.
गूँगे ने अपने स्वाभिमानी होने का परिचय किस प्रकार दिया ?
उत्तर :
गूँगा संकेतों के माध्यम से बताता था कि वह मेहनत करके खाता है, किसी से भीख नहीं लेता है। उसने संकेतों से बताया है कि उसने हलवाई के यहाँ लड्डू बनाए, कड़ाही माँजी, नौकरी की, कपड़े धोए। वह सीने पर हाथ मारकर इशारा करता है कि कभी हाथ फैलाकर नहीं माँगा, भीख नहीं लेता। वह भुजाओं पर हाथ रखकर संकेत करता है कि मेहनत का खाता है और पेट बजाकर दिखाया कि इसके लिए।

प्रश्न 4.
‘मनुष्य की करुणा की भावना उसके भीतर गूँगेपन की प्रतिच्छाया है।’ कहानी के इस कथन को वर्तमान सामाजिक परिवेश के संद्भर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वर्तमान सामाजिक परिवेश में भौतिकतावाद की निरंतर वृद्धि हो रही है। मनुष्य दिन-प्रतिदिन अधिक आत्मकेंद्रित होता जा रहा है। उसकी समस्त भावनाएँ और संवेदनाएँ कुंद हो गई हैं। सड़क पर किसी वाहन से टकराकर गिरे हुए व्यक्ति को सहारा देते हुए भी हम डरते हैं कि कहीं पुलिस केस हुआ तो थाने के चक्कर लगाते-लगाते उम्र बीत जाएगी इसलिए जब मनुष्य किसी के प्रति अपनी दया व्यक्त नहीं कर पाता तो उसकी यह संवेदनहीनता उसे ही गूँगा बना देती है।

प्रश्न 5.
‘नाली का कीड़ा! एक छत उठाकर सिर पर रख दी फिर भी मन नहीं भरा।’चमेली का यह कथन किस संदर्भ में कहा गया है और इसके माध्यम से उसके किन मनोभावों का पता चलता है?
उत्तर :
एक दिन गूँगा कही चला गया। चमेली ने उसे बहुत ढूँढ़ा पर उसका कुछ भी पता नहीं चला। चमेली के पति ने कहा कि भाग गया होगा। वह सोचती रही कि वह सचमुच भाग ही गया है पर यह नहीं समझ पा रही थी क्यों भाग गया। गूँगे के इस प्रकार भाग जाने से उसे क्रोध आ जाता है और वह यह शब्द कहती है। उसने गूँगे को सहारा दिया था। उसे खाना-पीना दिया था। उसके रहने का प्रबंध किया था। उसका उपकार न मानकर गूँगे का इस प्रकार भाग जाना उसे बहुत आहत कर देता है और वह उसे बुरा-भला कहने लगती है।

प्रश्न 6.
यदि बसंता गूँगा होता तो आपकी दृष्टि में चमेली का व्यवहार उसके प्रति कैसा होता ?
उत्तर :
यदि बसंता गूँगा होता तो चमेली उसके प्रति ममता और सहानुभूति का व्यवहार करती। जब गूंगे को बसंता चपत मार देता है और गूँगा रोकर चमेली को अपनी सांकेतिक भाषा में अपनी व्यथा सुनाता है तो वह इतना ही समझ पाती है कि खेलते-खेलते बसंता ने उसे मारा है परंतु बसंता के यह कहने पर कि गूँगा उसे मारना चाहता था तो चमेली ‘क्यों रे’ कहकर गूँगे की ओर देखती है तो गूँगा उसके मनोभाव समझकर उसका हाथ पकड़ लेता है। उस समय चमेली को लगा कि जैसे उसके अपने पुत्र ने उसका हाथ पकड़ लिया है। उसे लगता है कि यदि उसका अपना बेटा भी गूँगा होता तो उसे भी ऐसे ही दु:ख उठाने पड़ते। यह सोचते ही वह घबरा गई और उसके मन में गूँगे के प्रति ममता उत्पन्न हो गई।

प्रश्न 7.
‘उसकी आँखों में घानी भरा था। जैसे उनमें एक शिकायत थी, पक्षपात के प्रति तिरस्कार था।’ क्यों ?
उत्तर :
बसंता ने गूँगे को चपत जड़ दी थी। गूँगा उसे मारना चाहता था परंतु उसे मारने के स्थान पर कर्कश स्वर में रोने लगा। चमेली जब उससे कारण पूछने लगी तो उसके बताने पर भी समझ नहीं पाई पर बसंता के यह कहने पर कि गूँगा उसे मारने लगा था चमेली उसे डाँट देती है। बाद में उसे पछतावा होता है कि गूँगा बसंता के मुकाबले ताकतबर होते हुए भी उसे नहीं मारता। वह गूंगे को रोटी देने जाती है। उस समय गूँगे के हावभाव से समझ जाती है कि वह उसके बसंता का पक्ष लेने से नाराज़ है।

प्रश्न 8.
‘गूँगा दया या सहानुभूति नहीं, अधिकार चाहता है’ – सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
‘गूँग’ कहानी में गूँगा दया, ममता और सहानुभूति के पात्र के रूप में चित्रित हुआ है। सभी उसे दया का पात्र मानते हैं, लेकिन गूँगा स्वाभिमानी है। वह ऐसी भावनाओं की उपेक्षा करता है। उसने कमाकर खाना सीखा है। वह नहीं चाहता कि लोग उसे अनाथ और दया का पात्र समझकर उसकी जरुरत पूरी करें। वह अपना अधिकार चाहता है। यही कारण है कि बसंता का व्यवहार उसे अच्छा नहीं लगता। सड़क के लड़कों से भी वह नहीं दबता। उसके रूदन में उसकी विवशता है। वह चिल्लाकर और कराहकर समाज से यही कामना करता है कि उसका अधिकार उसे लौटा दिया जाए।

इसलिए जब चमेली उसे घर पर नौकर रखती है तो वह खाने के अतिरिक्त संकेत से चार रुपए भी माँगता है। उसका हलवाई के यहाँ लड्डू बनाना, कड़ाही माँजना, कपड़े धोना, सीने पर हाथ मारकर संकेत करना, भुजाओं पर हाथ रखकर इशारा करना, पेट बजाकर दिखाना यही सिद्ध करता है कि वह भीख नहीं माँगता, मेहनत करके खाता है। वह दया और सहानुभूति नहीं अपने अधिकार के बल पर जीना चाहता है।

प्रश्न 9.
‘गूँगे’ कहानी पढ़कर आपके मन में कौन-से भाव उत्पन्न होते हैं और क्यों ?
उत्तर :
‘गूँग’ कहानी पढ़ने से गूँगे की लाचारी तथा उसकी व्यथा-कथा जानकर उसके प्रति करुणा और सहानुभूति उत्पन्न होती है। उसकी मेहनत करके खाने की आदत पर गर्व होता है कि गूँगा होते हुए भी वह किसी के सामने अपने हाथ नहीं फैलाता है। बिना बताए कहीं भी भाग जाने की उसकी आदत पर क्रोध आता है। बसंता से मार खाकर गूँगे के रोने और सड़क के लड़कों से मार खाकर आने पर उसके चिल्लाने को सुनकर उसके प्रति दया का भाव उत्पन्न होता है।

प्रश्न 10.
गूँगे में ममता है, अनुभूति है और है मनुष्यत्व’ – कहानी के आधार पर इस वाक्य की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
गूँगा बोल नहीं सकता, सुन नहीं सकता परंतु अनुभव कर सकता है। वह एक मनुष्य की संतान है, इसलिए वह समस्त मानवीय गुणों से युक्त है। उसमें ममता का भाव हैं। चमेली से डाँट-फटकार सुनकर वह उसका हाथ पकड़कर उसके प्रति पुत्र का-सा भाव तथा अपना निर्दोष होना प्रकट करता है। जब कभी उसका कसूर होता है तो वह चमेली की डाँट-फटकार के आगे अपना सिर झुकाकर अपराध स्वीकार कर लेता है। जब गूँगे पर हाथ उठाने के कारण चमेली की आँखों में आँसू आ जाते हैं तो गूँगा भी रो देता है। बसंता से मार खाकर वह उसे मारना चाहता है पर सहसा यह अनुभव कर रुक जाता हैं कि मालिक के बेटे पर हाथ उठाना उचित नहीं। उसमें मनुष्यता है। वह दूसरों के सुख-दुख को अनुभव करता है।

प्रश्न 11.
कहानी का शीर्षक ‘गूँगे’ है, जबकि कहानी में एक ही गूँगा पात्र है। इसके माध्यम से लेखक ने समाज की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है ?
उत्तर :
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘गूँगे’ है, ‘गूँगा’ नहीं। इसका कारण यह है कि लेखक केवल एक ही गूँगे का चरित्रांकन नहीं बल्कि उसके माध्यम से अन्य लोगों में निहित गूँगेपन की ओर भी संकेत करता है। कहानी के प्रतिपाद्य को व्यापक बनाने के लिए ही लेखक ने कहानी का शीर्षक ‘ ‘ूँगे’ रखा है। ‘गूँगे’ शब्द में व्यंग्यात्मकता और लाक्षणिकता का गुण भी विद्यमान है। कहानी का प्रमुख पात्र गूँगा तो गूँगा है पर अन्य पात्र भी गूँगे ही सिद्ध होते हैं। वे कहीं भी अत्याचार को चुनौती नहीं देते। जिस प्रकार गूँगा मूक होने के कारण अपनी बात कहने में असमर्थ है, उसी प्रकार कहानी के अन्य पात्र भी अपनी थात कहने में असमर्थ हैं। अतः इस दृष्टि से कहानी का शीर्षक ‘गूँग’ उपयुक्त है। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से यह भी स्पष्ट किया है कि समाज के जो लोग संवेदनहीन हैं, वे भी गूँगे-बहरे हैं क्योंकि वे अपने सामाजिक दायित्वों के प्रति सचेत नहीं हैं।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
(क) “करुणा ने सबको …………………………… जी जान लड़ रहा हो।”
(ख) “वह लौटकर चूल्हे पर …………………………… आदमी गुलाम हो जाता है।”
(ग) “और फिर कौन …………………………… जिंद्रिं बिताए।”
(घ) “और ये गूँगे …………………………… क्योंकि वे असमर्थ हैं।”
उत्तर :
सप्रसंग व्याख्या के लिए इस पाठ का ‘सप्रसंग वाला’ व्याख्या भाग देखिए।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
(क) कैसी यातना है कि वह अपने हूदय को उगल देना चाहता है, किंतु उगल नहीं पाता।
(ख) जैसे मंदिर की मूर्ति कोई उत्तर नहीं देती, वैसे ही उसने भी कुछ नहीं कहा।
उत्तर :
(क) गूँगा अपने मन की भावनाओं को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करना चाहता है परंतु कर नहीं पाता। यही पीड़ा उसे सताती रहती है।
(ख) मंदिर की मूर्ति पत्थर की होने के कारण कोई उत्तर नहीं देती। गूँगा अपने गूँगे और बहरे होने के कारण कोई उत्तर नहीं दे सका।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित पंक्तियों को अपने शब्दों में समझाइए-
(क) इशारे गजब के करता है।
(ख) सड़ से एक चिमटा उसकी पीठ पर जड़ दिया,
(ग) पत्ते चाटने की आदत पड़ गई है।
उत्तर :
(क) गूँगा न सुन सकता है और न ही बोल सकता है परंतु संकेतों में अपनी बात अच्छी प्रकार से समझा देता है।
(ख) चमेली गुसे में भरकर चिमटा गूँगे की पीठ पर मार देती है।
(ग) जिसे इधर-उधर मुँह मारने की आदत पड़ जाए वह एक जगह नहीं टिक सकता।

योर्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
समाज में विकलांगों के लिए होनेवाले प्रयास में आप कैसे सहयोग कर सकते हैं ?
प्रश्न 2.
विकलांगों की समस्या पर आधारित ‘स्पर्श’, ‘कोशिश’ तथा ‘इकबाल’ फ़िल्में देखिए और समीक्षा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 4 गूँगे

प्रश्न 1.
‘गूँगे’ कहानी के आधार पर निम्नलिखित उक्तियों का स्पष्टीकरण कीजिए-
(क) पुत्र की ममता ने इस विषय पर चादर डाल दी।
(ख) इस मूक अवसाद में युगों का हाहाकार मरकर गूँज रहा है।
(ग) उसने एक पशु पाला था, जिसके हृदय में मनुष्यों की-सी वेदना थी।
उत्तर :
(क) गूँगेने मालिक के बेटे बसंता पर हाथ नहीं उठाया था फिर भी चमेली गूँगे को मारने के लिए हाथ उठाया। गूँगे ने चमेली का हाथ पकड़ लिया। गूँगा चमेली की भावभंगिमा समझ रहा था। वह जानता था कि बसंता मालिक का बेटा है, इसलिए उसपर हाथ उठाना उचित नहीं। चमेली को गूँगे में अपने पुत्र की छाया दिखाई दे गई थी। पुत्र की ममता के कारण ही उसने न तो गूँगे को मारा और न ही इस विषय को आगे बढ़ाया। उससे जो कुछ हुआ था, उसे वहीं दबा दिया।

(ख) गूँगा चमेली के घर में काम करता था। एक दिन वह बिना बताए ही घर से भागकर चला गया था। कुछ दिन बाद चमेली ने उसे अपने द्वार पर सिसकते और कराहते हुए देखा। वह लड़कों से पिट कर आया था। उसके सिर से खून की धारा बह रही थी। वह दहलीज पर सिर रखकर कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था। पिटने का कारण यह था कि वह स्वाभिमान के कारण किसी से दबना नहीं चाहता था। उसे गूँगे के माध्यम से जो वेदना और पीड़ा प्रकट हो रही थी, उसमें केवल उसका निजी अवसाद नहीं था बल्कि युगों-युगों से बेसहारा और अनाथ लोगों पर हुए अत्याचार की गूंज थी। निःसहाय व्यक्ति अपनी पीड़ा को रो-चिल्ला कर प्रकट करता है। उसके रुदन में युगों से पीड़ित असंख्य शोषितों और उपेक्षितों का रुदन होता है।

(ग) पशु एक मूक प्राणी है। वह वाणी के अभाव के कारण सार्थक ध्वनि में अपना सुख-दुख प्रकट नहीं कर सकता। गूँगा व्यक्ति भी बाहर से पशु के समान ही था लेकिन उसके भीतर मानव था। उसका सुख-दुख एक मनुष्य का सा सुख-दुख था। उसका रोना जहाँ दर्दभरी आवाज़ में प्रकट होता था वहाँ उसके हृदय में बैठा उपेक्षा का अवसाद गुराहटभरी हँसी में व्यक्त होता था। यह हँसना उसके हदय की वेदना को प्रकट कर रहा था। चमेली यही सोच रह गई कि जिसे उसने आज तक एक नौकर और गूँगा तथा मानव से भिन्न प्राणी माना था, वह वस्तुत: एक ऐसा पशु था जिसके हूदय में मानवीय संवेदना बसती थी।

प्रश्न 2.
समाज में विकलांगों के प्रति हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए ? अपना मत लिखिए।
उत्तर :
‘गूँगे’ कहानी के माध्यम से लेखक यही संदेश देना चाहता है, विकलांगों के प्रति हमें सहानुभूति दिखानी चाहिए। उनको ऊपर उठाने का प्रयल करना चाहिए। उन्हें यह अनुभव न होने दें कि वे अत्यंत हीन हैं, समाज में उनका कोई स्थान नहीं। कई लोग विकलांगों पर भी अत्याचार करते हैं, उनका शोषण कर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं। यूँगा भी तो इसी शोषण और स्वार्थ का शिकार बनकर रह जाता है। विकलांग भी संसार के अन्य प्राणियों के समान ईश्वर की रचना हैं। ईश्वर की रचना की उपेक्षा करना किसी प्रकार भी उचित नहीं। विकलांगों के प्रति हमें उदारता का परिचय देना चाहिए। उनमें निहित गुणों की ओर संकेत कर उनका आत्म-विश्वास बढ़ाना चाहिए जिससे वे अपनी क्षमता और योग्यता का परिचय दे सकें।

प्रश्न 3.
“एक गूँगे की कहानी होते हुए भी इसका आरंभ संवाद से हुआ है।” इस कथन को दुष्टि में रखकर कहानी के संवादों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘गूँगे’ कहानी का आरंभ संवादों से हुआ है। लेखक ने कहानी में गूँगे के संवादों की भी योजना की है। भला गूँगा क्या बोलेगा? अतः यहाँ विरोधाभास है। लेकिन वास्तविकता यह है कि गूँगे के संवाद गूंगे के अंतर्मन की अभिव्यक्ति हैं। इन संवादों के माध्यम से लेखक ने अपनी अनुभूति का भी प्रकाशन किया है। संवादों में चुटीलापन, व्यंग्यात्मकता तथा तीव्रता का गुण है। गूँगे के संवाद उसके हृदय की अभिव्यक्ति में सहायक हैं, यथा- ‘हलवाई के यहाँ रातभर लइडू बनाए हैं, नौकरी की है, कपड़े धोये हैं।’ इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्तुत कहानी के संवाद एक गूँगे के संवाद नहीं बल्कि इस संसार में अनेक रूपों में रह रहे गूँगों के हृदय की अभिव्यक्ति है।

प्रश्न 4.
गूँगे द्वारा अपना हाथ पकड़े जाने पर चमेली को कैसा लगा ? चमेली ने अपना हाथ क्यों छुड़ा लिया ?
उत्तर :
बसंता ने गूँगे को चपत जड़ दी थी। उसका रोना सुनकर चमेली वहाँ आई तो उसने चमेली को संकेतों से समझाया कि बसंता ने उसे मारा है। बसंता ने चमेली को कहा कि गूँगा उसे मारना चाहता था। गूँगा चमेली की भाव-भंगिमा से समझ गया कि वह उसे मारेगी इसलिए वह उसका हाथ पकड़ लेता है। चमेली को लगा जैसे उसके पुत्र ने उसका हाथ पकड़ लिया लेकिन फिर गूँगे के प्रति घृणा के भाव से तथा पुत्र बसंता के प्रेमभाव से वह अपना हाथ छुड़ा लेती है।

प्रश्न 5.
शकुंतला और बसंता दोनों क्यों चिल्ला उठे ?
उत्तर :
गूँगे को खून से भीगा हुआ देखकर शकुंतला और बसंता एक साथ अम्मा, अम्मा चिल्ला उठे थे। गूँगे का सिर फट गया था। उसे सड़क पर खेल रहे लड़कों ने मारा था। गूँगा दरवाज़े की दहलीज पर सिर रखकर कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था।

प्रश्न 6.
गूँगे ने अपने संबंध में इशारे से चमेली को क्या-क्या बताया ?
उत्तर :
गूँगे ने अपने कानों पर हाथ रखकर चमेली को इशारे से बताया कि वह बहरा होने के कारण वज्र बहरा है। जब चमेली ने अपनी अंगुलियों के संकेत द्वारा उससे पूछा कि फिर, तो उसने मुँह के आगे संकेत करके बताया कि जब वह छोटा था तो घूँघट काढ़नेवाली उसकी माँ उसे छोड़कर भाग गई थी क्योंकि उसका बड़ी-बड़ी मूँछोंवाला बाप मर गया था। उसने यह भी संकेतों द्वारा बताया कि जिन्होंने उसे पाला वे लोग उसे बहुत मारते थे। गूँगे ने अपने सीने पर हाथ रखकर संकेत किया कि वह हाथ फैलाकर कभी नहीं माँगता, भीख नही लेता और बाँहों पर हाथ रखकर संकेत करता है कि मेहनत की खाता हैँ तथा पेट बजाकर दिखाता है कि इसके लिए सब कुछ करता हूँ। वह चार उँगलियाँ दिखाकर चमेली से चार रुपये माँगता है। बसंता द्वारा चपत मारने की बात भी वह चमेली को संकेत से ही समझाता है।

प्रश्न 7.
कहानी के आधार पर गूँगे के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
गूँगे के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) कर्मठ-गूँगा श्रवण – क्षमता तथा वा कक्षयता से हीन होते हुए भी बहुत परिश्रमी है। वह भीख माँगने की अपेक्षा परिश्रम करके खाना पसंद करता है। वह संकेतों में बताता है कि उसने कभी नहीं माँगा, वह भीख नहीं लेता, मेहनत करके खाता है। उसने नौकरी की है, हलवाई के यहाँ लड्ड बनाए हैं, कड़ाही माँजी है, कपड़े धोए हैं।

(ii) स्वाभिमानी – गूँगा अत्यंत स्वाभिमानी व्यक्ति है। वह अपमान और प्रताड़ना सहन नहीं कर पाता। जिन लोगों ने उसका पालन-पोषण किया था वे उसे बहुत मारते थे इसलिए वह वहाँ से भाग आया था और नौकरी करके अपना पेट भरता था। बसंता की शिकायत पर जब चमेली उसे डाँटती है और मारना चाहती है तो वह उसका हाथ पकड़ लेता है।

(iii) संवेदनशील – गूँगा बहुत संवेदनशील और समझदार है। जब वह बिना बताए चमेली के घर से भाग जाता है और वापस आने पर चमेली की डाँट और चिमटे की मार चुपचाप सह लेता है क्योंकि अपने अपराध को वह जानता था। जब गूँगे को मारने के बाद चमेली की आँखों से आसू टपकते है तो वह भी रो पड़ता है।

(iv) ममतामय – गूँगा ममता और दया से भरपूर है। बसंता ने उसे कसकर चपत जड़ दी थी। इसपर गूँगे का हाथ भी उठ गया था पर उसने बसंता को यह सोचकर नहीं मारा था कि वह बच्चा है और उसके मालिक का पुत्र है। इस प्रकार स्पष्ट है कि गूँगा मानवीय गुणों से युक्त बालक है।

प्रश्न 8.
चमेली ने गूँगे को चिमटे से क्यों मारा ?
उत्तर :
एक दिन गूँगा कहीं चला गया। चमेली ने उसे पुकारा और दूँढ़ा पर उसका कुछ भी पता नहीं चला। चमेली के पति ने कहा कि भाग गया होगा। वह सोचती रही कि वह सचमुच भाग ही गया है पर यह नही समझ पा रही थी क्यों भाग गया ? वह सब खाकर उठ गए थे। उसे दरवाजे पर गूँगा दिखाई दिया जो हाथ के इशारे से रोटी माँग रहा था। उसने उसकी तरफ दो रोटियाँ फेंककर गुस्से से पीठ फेर ली। पहले तो गूँगा वैसे ही खड़ा रहा पर बाद में उसने रोटियाँ खा लीं। चमेली हाथ में चिमटा लेकर कठोर स्वर में उससे पूछती है कि कहाँ गया था और उसकी पाठ पर सड़ से चिमटा जड़ देती है। वह गूँगे को घर से बिना बताए भाग जाने पर मारती है।

प्रश्न 9.
‘गूँगे’ कहानी किसकी है तथा इसमें क्या कहा गया है ?
उत्तर :
‘गूँगे’ कहानी रांगेय राघव की एक प्रसिद्ध कहानी है। यह कहानी एक गूँगे लड़के की है जिसमें शोषित एवं पीड़ित मानव की असहाय स्थिति का मार्मिक चित्रण किया गया है। गूँगे में ऐसी तड़प है जो पाठक को झकझोर देती है।

प्रश्न 10.
कहानी में वर्णित ‘गूँगे’ पात्र के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर :
कहानी में वर्णित पात्र गूँगा सभी की दया का पात्र है। वह जन्म से बहरा होने के कारण गूँगा है। वह सुख-दुख सबको अनुभव करता है, लेकिन उसे संकेतों के माध्यम से प्रकट करता है। उसके संकेत एक प्रकार से दूसरों का मनोरंजन भी करते हैं। वह संकेतो से बताता था कि उसकी माँ घूँघट काढ़ती थी, छोड़ गई क्योंकि उसका बाप मर गया था। गूँगा वाणी विहीन होते हुए भी मेहनती और कर्मठ है। वह अत्यंत स्वाभिमानी है तथा इसके साथ-साथ वह अत्यंत संवेदनशील और समझदार भी है।

प्रश्न 11.
गूँगा अपने घर वापस क्यों नहीं जाना चाहता था ?
उत्तर :
गूँगा एक मेहनती और कर्मठ व्यक्ति है। उसे अपनी मेहनत और बाजुओं पर पूरा भरोसा है। उसे उसकी बुआ और फूफा ने अवश्य पाला पर वे उसे बहुत मारते थे। वे चाहते थे कि गूँगा कुछ काम करे और उन्हें कमा कर दे। बदले में बाजरे तथा चने की रोटियों पर निर्वाह करे इसलिए गूँगा अपने घर वापस नहीं जाना चाहता था।

प्रश्न 12.
गूँगे को मुँह खोलने के लिए किसने कहा और अंदर क्या पाया ?
उत्तर :
सुशीला ने गूँगे को मुँह खोलने के लिए कहा। गूँगे के मुँह में कुछ नहीं था। गले में कौआ नहीं था। बचपन में गला साफ़ करने की कोशिश में काट दिया होगा। तब से वह ऐसे बोलता है, जैसे घायल पशु कराह उठता है।

प्रश्न 13.
खाने-पीने के विषय में पूछने पर गूँगे ने क्या बताया ?
उत्तर :
खाने-पीने के विषय में पूछने पर गूँगे ने बताया कि उसने हलवाई के यहाँ रातभर लइडू बनाए हैं; कड़ाही माँजी है; नौकरी की है, कपड़े धोए हैं गूँगे का स्वर चीत्कार में बदल गया। सीने पर हाथ मारकर इशारा किया कि हाथ फ़लाकर उसने कभी नहीं माँगा। वह भीख नहीं लेता। भुजाओं पर हाथ रखकर बताया कि वह मेहनत का खाता है।

प्रश्न 14.
गूँगे को अपने घर नौकरी पर किसने और कितने वेतन पर रखा ?
उत्तर :
चमेली के हदयय में अनाथ बच्चों के लिए एक अनूठा प्रेम था। अपने इसी मातृ प्रेम की विवशता के कारण उसने ने गूँगे को चार रुपए वेतन और खाना देने का वादा कर घर में नौकर रख लिया। जबकि सुशीला ने उसे ऐसा करने से मना भी किया था कि वह इस नकारा से कौन-सा काम ले पाएगा। पर चमेली के मन में दया थी। उसने कहा और कुछ नहीं करेगा तो कम-से-कम बच्चों की तबीयत तो बहलती रहेगी।

प्रश्न 15.
गूँगे की क्या आदत थी और उसका क्या परिणाम निकला ?
उत्तर :
गूँगे की आदत थी कि वह इधर-उधर भाग जाता था। एक दिन ऐसा ही हुआ। घर के सब लोग जब खाना खा चुके तो वह अचानक दरवाजे पर दिखाई दिया। उसने इशारे से बताया कि वह भूखा है। चमेली ने उसकी ओर रोटियाँ फेंक दीं और पूछा कहाँ गया था। गूँगा अपराधी की भाँति खड़ा था। चमेली ने गुस्से में एक चिमटा उसकी पीठ पर जड़ दिया पर गूँगा रोया नहीं। चमेली की आँखों से आँसू बहने लगे। यह देखकर गूँगा भी रोने लगा। गूँगा कभी भाग जाता और कभी लौटकर फिर आ जाता। जगह-जगह नौकरी करके भाग जाना उसकी आदत बन गई थी।

प्रश्न 16.
कहानी में ऐसा कौन-सा प्रसंग आता है जो गूँगे की संवेदनशीलता को स्पष्ट करता है ?
उत्तर :
गूँगा बहुत संवेदनशील और समझदार है। जब वह बिना बताए चमेली के घर से भाग जाता है और वापस आने पर चमेली की डाँट और चिमटे की मार चुपचाप सह लेता है, क्योंकि उसे अपने अपराध की भली-भॉति जानकारी है। जब चमेली गूँगे को मारने के बाद रोने लगती है तो उसे देखकर गूँगा भी रोने लगता है। यह उसके हृदय में हुपी संवेदनशीलता को प्रकट करता है।

प्रश्न 17.
लेखक ने अपनी कहानी ‘गूँगा’ के माध्यम से क्या संदेश देना चाहा है ?
उत्तर :
लेखक ने अपनी कहानी ‘गूँगा’ में विकलांगों के प्रति समाज में व्याप्त संवेदनहीनता को रेखांकित किया है। साथ ही यह संदेश भी दिया है कि उन्हें सामान्य मानव की तरह मानना और समझना चाहिए एवं उनके साथ संवेदनशील व्यवहार करना चाहिए जिससे वे इस दुनिया से अलग-थलग न पड़ने पाएँ।

प्रश्न 18.
‘रांगेय राघव’ की भाषा पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर :
रांगेय राघव ने ‘गूँगे’ कहानी में सरल, सुबोध एवं आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इनकी भाषा आम जन की भाषा है। इसमें कहीं-कहीं विरोधाभास अलंकार देखने को मिलता है, जैसे -आग से आग बुझती है, मुहावरों के प्रयोग ने भाषा को और भी सटीक बना दिया है, जसे-चुनौती देना। भाषा संस्कृत निष्ठ होते हुए भी सरल है। ‘काँय-काँय’ आदि देशज शब्दों का प्रयोग देखते ही बनता है। लेखक ने भावात्मक, व्यंग्यात्मक, विचारात्मक तथा वर्णनात्मक शैलियों का बड़ा अनूठा प्रयोग किया है।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 5 Question Answer ज्योतिबा फुले

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 5 ज्योतिबा फुले

Class 11 Hindi Chapter 5 Question Answer Antra ज्योतिबा फुले

प्रश्न 1.
ज्योतिबा फुले का नाम समाज-सुधारकों की सूची में शुमार क्यों नहीं किया? तर्क सहित उत्तर लिखिए।
उत्तर :
भारत के सामाजिक विकास और व्यवस्था में बदलाव लानेवाले पाँच सुधारकों की सूची में महात्मा ज्योतिबा फुले का नाम नहीं है, इसका कारण बह है कि उन्होंने ब्राह्मण होते हुए भी ब्राहमणवाद और पूँजीपति समाज का डटकर विरोध किया। ब्राह्मणों द्वारा यह कहने पर कि विद्या असहायों के घर चली गई, तो उन्होंने ब्राह्मण मानसिकता पर करारा प्रहार किया। महात्मा ज्योतिबा फुले के अनुसार शासक और धर्म के ठेकेदार आपस में मिलकर प्रशासन चलाते हैं। इसलिए विशेष वर्गों और स्त्रियों को मिलकर प्रशासन व्यवस्था के विरुद्ध आंदोलन चलाना चाहिए। उनके इन्हीं विचारों के कारण इनका नाम समाज-सुधारकों की सूची में शुमार नहीं किया गया था।

प्रश्न 2.
शोषण व्यवस्था ने क्या-क्या षड्यंत्र रचे और क्यों ?
उत्तर :
समाज के व्यवस्थापकों ने वर्ण, जाति और वर्ग-भेद के आधार पर आम आदमी के शोषण के विभिन्न षड्यंत्र रचे थे। वे पिछ्छड़े वर्गों और स्त्रियों को शिक्षा से दूर रखकर उनका शोषण करते थे। जातिगत भेद-भाव उत्पन्न कर एक-दूसरे को लड़ाकर वे अपना स्वार्थ सिद्ध करते थे तथा ऊँच-नीच, अमीर-गरीब की भेद नीति से भी जन सामान्य का शोषण ही करते थे।

प्रश्न 3.
ज्योतिबा फुले द्वारा प्रतिपादित आदर्श परिवार क्या आपके विचारों के आदर्श परिवार से मेल खाता है ? पक्ष-विपक्ष में अपने उत्तर दीजिए।
उत्तर :
ज्योतिबा फुले के विचार अपने समय के रूढ़िवादी समाज और शिक्षा से बहुत आगे थे। उनके विचारों में आदर्श परिवार वह परिवार है जिसमें पिता बौद्ध होना चाहिए अर्थात परिवार का मुखिया सबको समान समझनेवाला होना चाहिए। माता ईसाई होनी चाहिए अर्थात माँ मरियम की तरह दुख सहन करके अपने बच्चों को अच्छे-बुरे का ज्ञान दे सके। परिवार में बेटी मुसलमान होनी चाहिए जो बिना भेदभाव के सभी का दुख दर्द समझे और बेटा सत्यधर्मी होना चाहिए। हम ज्योतिबा के इन विचारों से सहमत हैं क्योंकि एक आदर्श परिवार ऐसा ही होना चाहिए।

प्रश्न 4.
स्त्री-समानता को प्रतिष्ठित करने के लिए ज्योतिबा फुले के अनुसार क्या-क्या होना चाहिए ?
उत्तर :
स्त्री समानता को प्रतिष्ठित करने के लिए फुले जी के अनुसार स्त्रियों को भी पुरुषों के समान शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए। स्त्रियों को पुरुषों जैसी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। उनसे पक्षपात नहीं होना चाहिए। उन्होंने विवाह-विधि में से ब्राहमण का स्थान ही हटा दिया और स्त्रियों की गुलामी करवानेवाले सभी मंत्र निकाल दिए। उनके स्थान पर विवाह-विधि के नए मंत्रों की रचना की। इन मंत्रों में स्त्री पुरुष से, स्वतंत्रता देने के अधिकार की शपथ लेने को कहती है। फुले जी ने स्त्रियों की स्वतंत्रता के लिए उनकी शिक्षा का समुचित प्रबंध भी किया था।

प्रश्न 5.
सावित्री बाई के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन किस प्रकार आए ? क्रमबद्ध रूप से लिखिए।
उत्तर :
सावित्री बाई की बचपन से ही पढ़ने-लिखने में रुचि थी परंतु उनके पिता यह नहीं चाहते थे। विवाह के बाद ज्योतिबा ने उन्हें पढ़ने और पढ़ाने के लिए प्रेरित किया। वे जब पढ़ाने जाती तो रास्ते में लोग उन्हें गालियाँ देते, थूकते, पत्थर मारते, गोबर उछालते परंतु वे दृढ़ता से अपने मार्ग पर चलती रहीं। बाद में उन्होंने पिछड़े वर्गों की बेटियों को शिक्षित करने, बाल-हत्या रोकने, विधवाओं को जीने की राह दिखाने, अंधविश्वासों तथा रूढ़ियों को खंडन करने से संबंधित अनेक कार्य किए।

प्रश्न 6.
ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई के जीवन से प्रेरित होकर आप समाज में क्या परिवर्तन करना चाहेंगे ?
उत्तर :
ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई ने पचास वर्षों तक कंधे-से-कंधा मिलाकर, परिवार और समाज का विरोध सहते हुए, पिछड़े वर्गों और स्वियों के उत्थान के लिए कार्य किया। दोनों में एक-दूसरे के प्रति समर्पित भाव था। आज के विकसित समाज में पतिपत्नी कई साल एक साथ रहने के बाद छोटे-से मतभेद पर अलग हो जाते हैं। पति-पानी समाज में स्वयं को सही बताने के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं और बदनाम करते हैं। उन लोगों के लिए ज्योतिबा और सावित्री बाई का आदर्श दांपत्य जीवन श्रेष्ठ उदाहरण है। उन्हें उनसे प्रेरणा लेकर अपने जीवन साथी के प्रति समर्पित भाव रखने चाहिए।

प्रश्न 7.
समाज में फुले दंपति द्वारा किए गए सुधार कार्यों का किस तरह विरोध हुआ ?
उत्तर :
ज्योतिबा फुले ने जब अपनी पत्नी को दलितों की लड़कियों की पाठशाला में पढ़ाने के लिए भेजा तो लोग उन्हें गालियाँ देते, उनपर थूकते, उन पर गोबर और पत्थर फेंकते परंतु वे अपना कार्य करती रहीं। ज्योतिबा ने ब्राह्मण तथा उच्च वर्ग का विरोध सहन करते हुए स्त्रियों को समान अधिकार दिलाने के लिए विवाह-विधि में संशोधन किया तो समाज के तथाकथित ठेकेदारों ने इन्हें समाज-सुधारकों की सूची में ही नहीं आने दिया। इनके वर्ग-विशेष समर्थक कार्यों को देखकर इनके पिता ने इन्हें घर से भी निकाल दिया था।

प्रश्न 8.
उनका दांपत्य जीवन किस प्रकार आधुनिक दंपतियों को प्रेरणा प्रदान करता है ?
उत्तर :
ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई के पचास वर्षों तक कंधे-से-कंधा मिलाकर, परिवार और समाज का विरोध सहकर, वर्ग विशेष और स्त्रियों के उत्थान के लिए कार्य किया। दोनों में एक-दूसरे के प्रति समर्पित भाव था। आज के विकसित समाज में पति-पत्नी कई साल एक साथ रहकर छोटे-से मतभेद पर अलग हो जाते हैं। पति-पत्नी समाज में अपने-अपने को सही बताने के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं और बदनाम करते हैं। उन लोगों के लिए ज्योतिबा और सावित्री बाई का दांपत्य आदर्श जीवन उदाहरण है। उन्हें उनसे प्रेरणा लेकर अपने जीवन-साथी के प्रति समर्पित भाव रखने चाहिए।

प्रश्न 9.
ज्योतिबा फुले ने किस प्रकार की मानसिकता पर प्रहार किया है और क्यों ?
उत्तर :
ज्योतिबा फुले ने समाज में व्याप्त उस मानसिकता पर प्रहार किया है जो अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए समाज के विशेष वर्ग तथा स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रखकर उनका शोषण करना चाहता है। यह वर्ग अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए निर्धन तथा स्त्री वर्ग को शिक्षा से इसलिए वंचित रखना चाहता है कि कहीं पढ़-लिखकर वे भी समान अधिकारों की माँग न करने लगें। इसके लिए वे अनेक अंधविश्वासों, रूढ़ियों आदि को बल देते रहे हैं।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) ‘सच का सवेरा होते ही वेद डूब गए’, ‘विद्या शूदों के……. के घर चली गई ‘, ‘भू-देव (बाहूमण) शरमा गए।
(ख) इस शोषण-व्यवस्था के खिलाफ़ दलितों के अलावा स्त्रियों को भी आंदोलन करना चाहिए।
उत्तर :
(क) फुले जी द्वारा असहायों को शिक्षा का अधिकार देने की बात कहने पर ब्राह्मण भड़क गए। उन्होंने कहा कि ब्राह्मणों की विद्या असहायों के घर चली गई। इस बात पर ज्योतिबा फुले ने ब्राहूम मानसिकता पर करारा प्रहार करते हुए कहा कि असहायों के शिक्षित होते ही वेदों की महत्ता समाप्त हो गई है। विद्या असहायों के घर में राज करने लगी है। विद्या के असहायों के यहाँ जाने से ब्राह्मण लज्जित हो गए हैं। दलितों के शिक्षित होने से ब्राहमणों को अपना सिंहासन हिलता दिखाई देने लगा है।

(ख) फुले जी के अनुसार राजसत्ता और धर्मवादी सत्ता की आपसी मिली-भगत को समाप्त करने के लिए असहायों के साथसाथ स्त्रियों को भी आंदोलन में भाग लेना चाहिए क्योंक दोनों प्रकार की सत्ता के लोग उनका शोषण करते है।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित गद्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
(क) स्वतंत्रता का अनुभव ……..हर स्वी की थी।
(ख) मुझे महात्मा कह अलग न करें।
उत्तर :
उत्तर के लिए व्याख्या भाग देखिए।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
अपने आस-पास के कुछ सामाजिक कार्यकरताओं से बातचीत कर उसके आधार पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
प्रश्न 2.
क्या आज भी समाज में स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव किया जाता है ? कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 3.
पाठ में आए महात्मा फुले के सूक्तिबद्ध विचारों को संकलित करके उन्हें कक्षा की दीवारों पर चिपकाइए।
उत्तर :
ज्योतिबा फुले के सूक्तिबद्ध विचार निम्नलिखित हैं –
(i) स्वतंत्रता का अनुभव हमारी स्त्रियों को है ही नही। इस बात की शपथ लो कि स्त्री को उसका अधिकार दोने और उसे अपनी स्वतंत्रता का अनुभव करने दोगे।
(ii) जिस परिवार में पिता बौद्ध, माता ईसाई, बेटी मुसलमान और बेटा सत्यधर्मी है, वह परिवार एक आदर्श परिवार है।
(iii) गरीबों से कर जमा करना और उसे उच्चवर्गीय लोगों के बच्चों की शिक्षा पर खच्च करना-किसे चाहिए ऐसी शिक्षा?
(iv) स्त्री-शिक्षा के दरवाज़े पुरुषों ने इसलिए बंद कर रखे हैं कि वह मानवीय अधिकारों को समझ न पाए। जैसी स्वतंत्रता पुरुष लेता है, वैसी ही स्वतंत्रता स्त्री ले तो ? पुरुषों के लिए अलग नियम और स्त्रियों के लिए अलग नियम-यह पक्षपात है।

प्रश्न 4.
सावित्री बाई और महात्मा फुले ने समाज हित के जो काम किए, उनकी सूची बनाइए।
उत्तर :
महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई ब्राह्मण समाज से संबंध रखते थे लेकिन वे पूँजीवादी और धर्मवादी सत्ता के विरूद्ध थे। दोनों पति-पत्नी दलितों और स्त्रियों को समाज में समानता और शिक्षा का अधिकार दिलवाना चाहते थे। इस काम के लिए उन्होंने समाज और परिवार दोनों का व्यापक विरोध सहा। सावित्री बाई और महात्मा फुले ने भारत की सबसे पहली कन्या पाठशाला खुलवाई। उस पाठशाला में सावित्री बाई पढ़ाने जाती थी। किसानों और दलितों की झुग्गी-झोंपड़ी में जाकर लड़कियों को पाठशाला भेजने का आग्रह करना, बालहत्या प्रतिबंधक गृह में अनाध बच्चों और विधवाओं के लिए दरवाजे खोलना, उनके नवजात बच्चों की देखभाल करना, एक घूँट पानी पीकर प्यास बुझाने के लिए विवश दलित वर्ग के लिए अपने घर की टंकी के दरवाज़े खोलना, स्त्री को पुरुषों के समान अधिकार दिलवाना अर्थात् उन्हें भी स्वतंत्रता अनुभव करने का अधिकार देना आदि समाज-हित के लिए काम किए।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 5 ज्योतिबा फुले

प्रश्न 1.
महात्मा ज्योतिबा फुले का नाम पाँच समाज-सुधारकों की सूची में क्यों नहीं आता ?
उत्तर :
महात्मा ज्योतिबा फुले ब्राह्मण होते हुए भी ब्राह्मणत्व और सामाजिक मूल्यों को कायम रखने वाली शिक्षा के विरुद्ध थे। उन्होंने अपने क्रांतिकारी साहित्य से पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता पर हल्ला बोल दिया था। उनका संभ्रांत समाज के प्रति ऐसा विरोध प्रतिष्ठित समाज को पसंद नहीं आया था। इसीलिए उस समय के महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले का नाम पाँच समाज-सुधारकों की सूची में नहीं आता।

प्रश्न 2.
महात्मा ज्योतिबा फुले के मौलिक विच्चार कौन-कौन-सी पुस्तकों में संग्रहीत हैं ?
उत्तर :
महात्मा ज्योतिबा फुले के मॉलिक विचार ‘गुलामगिरी ‘, ‘शेतकरयांचा आसूड’ (किसानों का प्रतिशोध), ‘सार्वजनिक सत्यधर्म’ आदि पुस्तकों में संग्रहीत हैं।

प्रश्न 3.
पाठ में आई सावित्री बाई के बचपन की घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
सावित्री बाई की बचपन से शिक्षा में रुचि थी। उनके सीखने की शक्ति बहुत तेज़ थी। एक दिन सावित्री अकेली शिखल गाँव के बाजार में गई थी। रास्ते में कुछ खरीदकर खाते-खाते चल रही थी। वहाँ वह कुछ मिशनरी पुरुर्षों और स्त्रियों को गाते हुए सुनने लगी। एक लाट साहब ने रास्ते में उन्हें खाते देखा तो कहने लगे कि रास्ते में चलते हुए खाना अच्छी बात नहीं है। यह सुनकर सावित्री ने हाथ का शेष खाने का सामान फेंक दिया। लाट साहब ने उसकी इस बात से खुश होकर एक किताब दी और घर जाकर देखने के लिए कहा। उसने यह किताब घर जाकर पिता को दिखाई। पिता किताब देखकर बहुत क्रोधित हुए और कहने लगे कि ईसाइयों से चीज़ लेकर केवल तेरा ही नाश नहीं होगा, अपितु उनके पूरे कुल का नाश हो जाएगा। यह कहकर पुस्तक कूड़े के ढेर पर फेंक दी, पर सावित्री बाई ने वह पुस्तक उठाकर घर के कोने में छिपाकर रख ली थी।

प्रश्न 4.
‘शेतकर्यांचा आसूड’ (किसानों का प्रतिशोध) पुस्तक के उपोद्यात की पंक्तियाँ दोहराइए और उनका आशय लिखिए।
उत्तर :
ज्योतिबा फुले ने ब्राह्मवादी मानसिकता की असलियत को प्रकट करते हुए अपने बहुचचिंत ग्रंथ-‘ शेतकर्यांचा आसूड’ (किसानों का प्रतिशोध) के उपदद्घात में लिखा है-
‘विद्या बिना मति गई
मति बिना नीति गई
नीति बिना गति गई
गति बिना वित्त गया
वित्त बिना शुद्र गए।
इतने अनर्थ एक अविद्या ने किए।’
ब्राहमण समाज ने किसी विशेष वर्ग को विद्या का अधिकार इसलिए नहीं दिया था क्योंकि उन्हें डर था कि असहाय पढ़-लिखकर उनके बराबर आ जाएँगे तो वे वह किस पर शासन करेंगे। इसीलिए उन्होंने अपने ग्रंथ में इन पंक्तियों के माध्यम से याह बताया है कि विद्या प्राप्त नहीं करने से व्यक्ति कभी भी ऊँचा नहीं उठ सकता। सभी बुराइयों की जड़ अशिक्षा है। विद्या से ही मनुष्य ऐसी बुद्धि प्राप्त कर सकता है जिससे वह अपना अच्छा-बुरा सोच सके। शिक्षा के बिना बुद्धि का विकास संभव नहीं है। बुद्धि के विकास के बिना मनुष्य अपना और दूसरों का भला नहीं कर सकता। दूसरों का भला तभी हो सकता है जब उसमें अच्छे-बुरे का ज्ञान हो। बुद्धि के विकास के बिना मनुष्य में नैतिक मूल्यों का संचार नहीं हो सकता। नैतिक ज्ञान के बिना मनुष्य समाज में उन्नति नहीं कर सकता अर्थात् अपना तथा अपने परिवार का भला नहीं कर सकता। अच्छे-बुरे के ज्ञान के बिना वह कोई भी काम ठीक ढंग से नहीं कर सकता।

समाज में रहकर जीवन जीने के लिए धन की आवश्यकता होती है और वह बिना काम के संभव नहीं। बिना काम करे कोई कुछ नर्हीं देता। यदि धन नहीं है तो मनुष्य का जीवन अंधकारमय है अर्थात मनुष्य गरीब हो जाता है। गरीब व्यक्ति से समाज में असहायों जैसा व्यवहार किया जाता है। इन सबका कारण है। यही सारे विवाद का कारण है, इसलिए मनुष्य का शिक्षित होना अनिवार्य है। मनुष्य चाहे असहाय हो या स्त्री हो उसे अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए शिक्षित अवश्य होना चाहिए। ज्योतिबा फुले इन पंक्तियों के माध्यम से शिक्षा के महत्व को बताना चाहते थे।

प्रश्न 5.
असहायों के उत्थान के लिए ज्योतिबा ने क्या उपाय किए ?
उत्तर :
असहायों के उत्थान के लिए ज्योतिबा ने उन्हें शिक्षा प्राप्त करने पर बल दिया। शिक्षा के द्वारा ही वे अच्छे-बुरे को समझ सकते हैं और स्वयं को ऊँचे समाज में स्थापित कर सकते हैं। असहायों। को उनका अधिकार दिलाने के लिए ज्योतिबा ने ज्राहमणों और राजसत्ता के विरुद्ध आंदोलन शुरू कर दिया। उन्होंने अपने क्रांतिकारी विचारों से पारंपरिक रूढ़ियों में जकड़ी मानसिकता पर प्रहार किया। असहाय लोग एक घूँट पानी पीकर प्यास बुझाने को विवश थे। उन्होंने अपने घर की पानी की टंकी सभी के लिए खोल दी।

प्रश्न 6.
सावित्री बाई के प्रमुख कार्य क्या थे ?
उत्तर :
सावित्री बाई ज्योतिबा फुले की पत्नी थीं। वह भी अपने पति की तरह ही असहाय और स्त्रियों के उत्थान के लिए कार्य करती थी। सावित्री बाई लड़कियों की पाठशाला में पढ़ाने जाती थीं, लोगों जिसके लिए उन्हें प्रतिष्ठित समाज से तरह-तरह के आरोप सहन करने पड़े। मिशनरी महिलाओं की तरह किसानों और असहाय के घरों में जाकर लड़कियों को पाठशाला भेजने का आग्रह करना, बालहत्या को रोकना, अनाथ बच्चों और विधवाओं को समाज में फिर से जीवन जीने के लायक बनाना, विधवाओं के नवजात बच्चों की देखभाल करना और दलितें को अपने घर से पीने के लिए पानी देना आदि सावित्री बाई के प्रमुख कार्य थे।

प्रश्न 7.
ज्योतिबा फुले ने किस प्रकार से सर्वांगीण समाज की कल्पना की है ?
उत्तर :
ज्योतिबा फुले ब्राह्मण परिवार से थे। ज्योतिबा फुले के विचार ब्राह्मण समाज को बढ़ावा देनेवाले नही थे। उनके विचार तो अपने समय से बहुत आगे थे। उस समय के समाज में असहायों और स्त्रियों के अधिकारों के लिए सोचना भी पाप समझा जाता था। ज्योतिबा फुले समाज का सवांगीण विकास चाहते थे। वह असहायों और स्त्रियों के उद्धार के बिना अधूरा था। उन्होंने अपने विचारों से असहायों और स्त्रियों को पूँजीवादी और धर्मसत्ता के विरुद्ध आंदोलन के लिए प्रेरित किया।

उनके समाज में सभी को शिक्षा, समानता और स्वतंत्रता का अधिकार मिलना चाहिए। उनके अनुसार आधुनिक शिक्षा पर अधिकार केवल ऊँचे लोगों का न होकर है। असहायों और स्त्रियों को भी प्राप्त होनी चाहिए, क्योंकि शिक्षों के साधनों में गरीबों से प्राप्त ‘कर’ भी लगा होता है। समाज तभी विकसित हो सकता है जब परिवार के सभी सदस्य आदर्श हों। उनकी कल्पना के अनुसार आदर्श परिवार वह है, जिसमें “पिता बौद्ध, माता ईसाई, बेटी मुसलमान और बेटा सत्यधमीं हो” सभी को जीवन जीने के समान अवसर मिलें।

किसी से छोटा समझकर बुरा व्यवहार न किया जाए। विधवा अपने घर में घुट-घुटकर जीवित न रहे और उनके बच्चे अनाथों की तरह न पलें। इन सबके लिए उस समय के पारंपरिक और रुढ़िवादी समाज का विरोध करने का साहस चाहिए था। ज्योतिबा ने समाज को पुराने विचारों से बाहर निकालने के लिए सभी प्रकार का विरोध सहा और समाज को नया रूप दिया। अन्य लोगों को भी नए समाज के लिए प्रेरित किया, जहाँ सभी को समानता और स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हो।

प्रश्न 8.
ज्योतिबा फुले स्त्री-पुरुष के बीच किस प्रकार के संबंध चाहते थे ?
उत्तर :
पुराने समय में स्त्री को समाज में वही स्थान प्राप्त था जो स्थान असहायों को प्राप्त था। ब्राह्मण समाज में स्त्री होना बुरे कर्म का फल माना जाता था। स्त्री केवल आमोद-प्रमोद की वस्तु मानी जाती थी। ऐसे में ज्योतिबा फुले ने स्ती को समाज में स्वतंत्रता और समानता का अधिकार देने की बात कही। उन्होंने कहा कि स्त्रियाँ भी पुरुषों की तरह इनसान हैं। उन्हें भी खुली हवा में साँस लेने का अधिकार है और पुरुष के समान ही शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। पुरुषों और स्त्रियों में पक्षपात नहीं होना चाहिए।

ज्योतिबा ने पुरुष समाज में स्त्री समानता को प्रतिष्ठित करने के लिए नई विवाह विधि की रचना की, जिसमें स्त्री पुरुष से समानता और स्वतंत्रता का अधिकार माँग सके। इससे दोनों में एक-दूसरे के प्रति समर्पण भाव जागृत होगा। वे लोग समाज के उद्धार में अपना सहयोग दे सकेंगे। यदि पुरुष स्त्री को समाज में उचित स्थान देगा तो बह उसके साथ-मिलकर, हर प्रकार का विरोध सहकर, कठिन-से-कठिन परिस्थिति में उसका साथ देगी। इस प्रकार स्त्री-पुरुष दोनों में प्यार, समर्पण, त्याग और विश्वास की भावना उत्पन्न होगी। ज्योतिबा फुले स्त्री-पुरुष में मधुर एवं आदर्श संबंध देखना चाहते थे जिससे समाज में स्त्री-पुरुष संबंधों का आदर्श स्थापित हो सके।

प्रश्न 9.
ज्योतिबा ने स्त्री-शिक्षा का व्यावहारिक उदाहरण किस प्रकार प्रस्तुत किया ?
उत्तर :
ज्योतिबा फुले के विचार अपने समय से बहुत आगे थे। उनके विचारों ने समाज को नई दिशा प्रदान की। उनकी कथनी एवं करनी में कोई भेदभाव नहीं था। उन्होंने समाज में स्त्री को स्वतंत्रता और समानता के अधिकार देने को कहा। स्त्री स्वतंत्रता और समानता का अधिकार तभी प्राप्त कर सकती है जब वह शिक्षित हो। इस क्रांतिकारी आंदोलन का आरंभ उन्होंने अपने घर से किया। सबसे पहले अपनी पत्नी को शिक्षित किया। उन्हें मराठी भाषा ही नहीं, अंग्रेज़ी में भी पढ़ना-लिखना सिखाया। सावित्री बाई की भी पढ़ाई में रुचि थी।

उन्हैं अपने पिता के घर पढ़ने नही दिया गया था। उनके पिता के अनुसार पढ़-लिखकर स्त्रियों की बुद्धि खराब हो जाती है। सावित्री बाई को शिक्षित करने के उपरांत उन्होंने पुणे में 14 जनवरी, 1848 में पहली कन्या पाठशाला खोली। भारत के 3000 सालों के इतिहास में ऐसा पहले कभी नही हुआ था कि स्त्रियों के लिए अलग पाठशाला हो। इस कार्य में उन्हें परिवार और समाज दोनों का कड़ा विरोध सहन करना पड़ा। ब्राह्मण समाज जिस स्त्री को तुच्छ समझकर घर के एक कोने में रखना चाहता था, उसे फुले के प्रयासों ने घर के कोने से निकालकर समाज में आदरणीय स्थान प्रदान किया। इस कार्य के लिए ब्राहमण समाज ने उनका बहिष्कार कर दिया।

धर्म के बँधनों में जकड़े उनके पिता ने भी ब्राह्मण समाज से डरकर ज्योतिबा फुले और सावित्री देवी को घर से निकाल दिया। इस प्रकार स्त्री-शिक्षा के लिए उन्हें समाज का कड़ा विरोध सहन करना पड़ा। सावित्री बाई को शिक्षित करके उन्होंने समाज के अन्य लोगों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया और साबित्री बाई ने भी शिक्षित होने के पश्चात् पति के कायों को बढ़-चढ़कर आगे बढ़ाया।

प्रश्न 10.
ज्योतिबा और सावित्री कैसे एक और एक मिलकर ग्यारह हो गए ?
उत्तर :
ज्योतिबा और सावित्री बाई समाज के लिए एक आदर्श दंपति थे। ज्योतिबा ने स्त्रियाँ की शिक्षा, स्वतंत्रता और समानता के जो विचार समाज के समक्ष रखे, इन विचारों पर सबसे पहले अमल भी उन्होंने ही किया। अपनी पत्नी को शिक्षित करके स्वतंत्रता और समानता का अधिकार दिया। उनकी पत्नी ने भी शिक्षित होकर अपने पति के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर समाज उद्धार के प्रत्येक कार्य में पूरा सहयोग दिया। स्त्रियों और असहायों को समाज में स्थान दिलाने के लिए उन्होंने ब्राह्मण समाज से टक्कर ली। सावित्री देवी ने अपने पति ज्योतिबा फुले के समाज-बदलाव के क्रांतिकारी आंदोलनों में पूरा साथ दिया। उन्हें कभी भी अकेला नहीं होने दिया। कन्या पाठशाला में पढ़ाने जाते हुए सावित्री देवी को कई तरह से अपमानित किया गया लेकिन वे पीछे नहीं हटी। विधवाओं को फिर से जीवन शुरु करने के लिए अवसर दिए और नबजात बच्चों की देखभाल स्वयं की।

किसानों और असहायों के घरों में जाकर उनकी कन्याओं को पढ़ने के लिए आग्रह करते थे। असहायों का एक घूँट पानी पीकर प्यास बुझाने की विवशता देखकर उनके लिए अपने घर की हौद के दरवाज्जे खोल दिए। उन दोनों ने समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों और पारंपरिक अनीतिपूर्ण विचारों का डटकर मुकाबला किया और स्त्रियों और असहायों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। ज्योतिबा और सावित्री बाई ने प्रत्येक कार्य खुले रूप से किया है। दोनों का आदर्श दांपत्य सभी के लिए एक मिसाल है।

प्रश्न 11.
लेखिका ने अपने निबंध में किन-किनके कार्यों को प्रतिपादित किया है ?
उत्तर :
लेखिका सुधा अरोड़ा मूलत: कथाकार है। उनके यहाँ स्त्री-विमर्श का रूप आक्रामक न होकर सहज और संयत है। लेखिका ने ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी द्वारा समाज में किए गए शिक्षा और समाज-सुधार संबंधी कायों का महत्व बताया है कि किस प्रकार उन्होंने सामाजिक और धार्मिक रूढ़ियों का विरोध कर दलितों, शोषितों और स्त्रियों की समानता के हक की लड़ाई लड़ी। इसके कारण समाज का व्यापक विरोध भी उन्हें झेलना पड़ा।

प्रश्न 12.
आदर्श परिवार के बारे में ज्योतिबा फुले के क्या विचार थे ?
उत्तर :
ज्योतिबा फुले के विचार उनके समय से बहुत आगे थे। आदर्श परिवार के बारे में उनकी अवधारणा थी कि जिस परिवार में पिता बौद्ध, माता ईसाई, बेटी मुसलमान और बेटा सत्यधर्मी हो, वह परिवार आदर्श परिवार है।

प्रश्न 13.
आधुनिक शिक्षा के बारे में ज्योतिबा फुले के क्या विचार थे ?
उत्तर :
आधुनिक शिक्षा के बारे में ज्योतिबा फुले के विचार थे कि यदि आधुनिक शिक्षा का लाभ सिर्फ उच्च वर्ग को ही मिलता है, तो उसमें निम्न वर्ग को क्या लाभ होगा ? गरीबों से कर जमा करना और उसे उच्चवर्गीय लोगों के बच्चों की शिक्षा पर खर्च करना उचित नहीं है।

प्रश्न 14.
ज्योतिबा की सबसे बड़ी विशेषता क्या थी ?
उत्तर :
ज्योतिबा की सबसे बड़ी विशेषता उनकी कथनी और करनी में अंतर का न होना है। उनके विचार अपने समय से बहुत आगे थे। उनके विचारों ने समाज को नई दिशा प्रदान की। उन्होंने असहायों और स्तिर्यों के उत्थान के लिए अनगिनत कार्य किए। वे अक्सर भाईचारे, सौहार्द एवं सिद्धांतों की बातें करते थे। उन्होंने पहली कन्याशाला की स्थापना भी की। ज्योतिबा फुले समाज का सवांगीण विकास चाहते थे।

प्रश्न 15.
जब ज्योतिबा को ‘महात्मा’ की उपाधि से सम्मानित किया गया, तो उनके विचार क्या थे ?
उत्तर :
सन् 1888 में जब ज्योतिबा फुले को ‘महात्मा’ की उपाधि से सम्मानित किया गया, तो उन्होंने कहा, ‘मुझे ‘महात्मा’ कहकर मेरे संघर्ष को पूर्णविराम मत दीजिए। जब व्यक्ति मठाधीश बन जाता है तब वह संघर्ष नहीं कर सकता। इसलिए आप सब मुझे साधारण जन ही रहने दें। मुझे अपने बीच से अलग न करें।”

प्रश्न 16.
पाठ में वर्णित पात्र सावित्री कौन है ? आप उसके बारे में क्या जानते हैं ?
उत्तर :
पाठ में वर्णित पात्र सावित्री ज्योतिबा फुले की पत्नी थी। वह पति द्वारा किए जानेवाले समाज-सुधार के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेती है। सावित्री देवी की बचपन से ही शिक्षा में रुचि थी। वह एक निडर तथा साहसी महिला थी। वह लड़कियों की पाठशाला में पढ़ाने जाती थी। सन 1840 में इनका विवाह ज्योतिबा फुले से हो गया। 14 जनवरी, सन 1848 को पुणे में सावित्री ने अपने पति ज्योतिबा फुले की सहायता से प्रथम कन्या पाठशाला की स्थापना की।

प्रश्न 17.
सावित्री देवी को पाठशाला में जाने से रोकने के लिए लोगों ने क्या किया ?
उत्तर :
सावित्री देवी को पाठशाला में जाने से रोकने के लिए लोगों ने उनपर थूक फेंका, पत्थर मारे, गोबर उछाला, आते-जाते ताने-कसे, लेकिन सावित्री ने अपना धैर्य नहीं होड़ा अपितु सभी प्रकार के विरोधों का डटकर मुकाबला किया। उन्हें ब्राह्मण समाज से भी बाहर निकाल दिया गया। ज्योतिबा के पिता ने भी उसे पुरोहितों और रिश्तेदारों के भय से अपने घर से निकाल दिया।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 6 Question Answer खानाबदोश

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 6 खानाबदोश

Class 11 Hindi Chapter 6 Question Answer Antra खानाबदोश

प्रश्न 1.
जसदेव की पिटाई के बाद मज़दूरों का समूचा दिन कैसे बीता ?
उत्तर :
जसदेव की पिटाई के बाद मज़दूरों का समूचा दिन अदृश्य भय और दहशत में बीता था। मजदूरों को यह डर लग रहा था कि सूबे सिंह किसी भी वक्त लौटकर आ सकता है।

प्रश्न 2.
‘ईटों को जोड़कर बनाए चूल्हे में जलती लड़कियों की चिट-पिट जैसे मन में पसरी दुशिचिंताओं और तकलीफ़ों की प्रतिध्वनियाँ थीं जहाँ सब कुछ अनिश्चित था।’ यह वाक्य मानो की किस मनोस्थिति को उजागर करता है ?
उत्तर :
इस कथन से यह ज्ञात होता है कि मानो इस भट्टे पर आकर खुश नहीं है। उसका मन अनेक चिंताओं से घिरा रहता है। उसे यहाँ के वातावरण में रहते हुए एक अनजाना भय लगा रहता है तथा वह अपने भविष्य के प्रति बहुत आशंकित रहती है कि कल न जाने क्या होगा ? इस प्रकार उसकी मानसिक स्थिति अत्यंत व्यथा से संतप्त रहती है।

प्रश्न 3.
मानो अभी तक भट्ठे की ज्तिद्यी से तालमेल क्यों नहीं बैठा पाई थी ?
उत्तर :
भद्ठा शहर से दूर खेतों में था जहाँ यातायात की उचित व्यवस्था नही थी और न ही मनोरंजन का कोई साधन था। दिन के समय भट्ठे पर बहुत भीड़-भाड़ रहती थी। भट्ठे का संपूर्ण वातावरण हलचल से भरा रहता था। मज़दूर और मालिक सभी अपना काम करते हुए भविष्य के सपने बुनते हैं लेकिन जैसे ही शाम होती है भट्ठे का वातावरण सुनसान हो जाता है, मालिक शहर लौट जाते है और दिनभर की मेहनत से थके हुए लोग अपने-अपने झोंपड़ों में चले जाते हैं जहाँ वे दिनभर की थकावट उतारते हैं। भट्ठा सुनसान जगह खेतों में होने के कारण यह डर लगा रहता है कि कही अँधेरे में साँप-बिच्छू जैसे जंगली जानवर न निकल आए। मानो को रात के समय ऐसा लगता था जैसे आसपास का पूरा जंगल सिमट कर उसकी झोंपड़ी के आगे आ गया हो। ऐसे सुनसान वातावरण में उसका मन घवराने लगता था। उसने सुकिया से कई बार वापस गाँव जाने के लिए कहा लेकिन सुकिया ने उसकी बात नहीं मानी। मानो सुकिया को समझाती कि अपने गाँव में तो वह तंगी में भी गुजारा करके खुश रह सकती है क्योंकि वहाँ के सभी लोग अपनी जान-पहचान के हैं जिनके साथ सुख-दुख बाँटा जा सकता है। यहाँ भह्ठे पर तो कहने को भी अपना कोई नहीं है सभी पराए लोग है। इसलिए मानो अभी तक भट्ठे की जिंद्री से तालमेल नहीं बिठा पाई थी।

प्रश्न 4.
‘खुद के हाथ पंथी ईंटों का रंग ही बदल गया था। उस दिन ईंटों को देखते-देखते मानो के मन में बिजली की तरह एक खयाल काँधा था।’ वह खयाल क्या था जो मानो के मन में बिजली की तरह काँधा ? इस संदर्भ में सुकिया के साथ हुए उसके वार्तालाप को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
मानो और सुकिया भट्ठे पर काम करते थे। दोनों जिस गाँव से आए थे, वहाँ अधिकतर कच्चे मकान थे। मानो ने जब अपने हाथ से पथी इंटों को भट्ठे में तपने के बाद बदले हुए रंग में देखा तो उसे विश्वास नहीं हुआ। वह बहुत देर तक ईंटों का लाल रंग को देखती रही। इंटों के बदले हुए रंग ने मानो के अंदर एक तीव्र आकांक्षा को जन्म दे दिया था। वह इंटों से बने अपने छोटे-से घर का सपना देखने लगी थी। उसने सुकिया से भी घर बनाने की इच्छा प्रकट की लेकिन सुकिया उसकी बात टाल गया। मानो उस रात जितना सोने की कोशिश करती थी, उतनी ही नींद आँखों से दूर होती गई थी क्योंकि उसके दिलो-दिमाग में इंटों का लाल रंग छा गया था। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए वह कमर तोड़ मेहनत करने को तैयार थी।

प्रश्न 5.
असगर ठेकेदार के साथ जसदेव को आता देखकर सूबे सिंह क्यों बिफ़ पड़ा और जसदेव को मारने का क्या कारण था ?
उत्तर :
सूबे सिंह ने अपने दफ्तर में मानो को बुलाया था। सुकिया और जसदेव जानते थे कि सूबे सिंह अनैतिक कार्य के लिए मानो को बुला रहा है। इसलिए असगर ठेकेदार के साथ मानो के स्थान पर जसदेव चला गया। मानो के स्थान पर जसदेव को आता देखकर सूबे सिंह बिफर पड़ा और उसे गालियाँ देकर मारने लगा कि वह मानो के स्थान पर क्यों आया है।

प्रश्न 6.
‘सुकिया ने मानो की ऑखों से बहते तेज़ अधड़ों को देखा और उनकी किरकिराहटट अपने अंतर्मन में महसूस की। सपनों के टूट जाने की आवाज्त उसके कानों को फाड़ देती थी।’ प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ बताते हुए आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मानो की थापी हुई इटों को किसी ने तोड़ दिया था। असगर ठेकेदार ने साफ़-साफ़ कह दिया था कि टूटी-फूटी इँटों का कोई पैसा नहीं दिया जाएगा। इससे मानो को लगा कि जैसे उसका पक्की ईंटों का घर ही धराशायी हो गया हो। सुकिया भी शोर सुनकर वहाँ आ जाता है और मानो की आँखों से बहते हुए आँसुओं को देखकर उसका मन भी रो पड़ता है। उसे लगता है कि उन्होंने जो सपने देखे थे वे सभी चूर-चूर हो गए हैं। उसे लग रहा था कि अब तो उन्है यह भट्ठा छोड़ना ही पड़ेगा क्योंकि सूबे सिंह मानो के न मिलने से उनसे खार खाए बैठा है।

प्रश्न 7.
‘खानाबदोश’ कहानी में आज के समाज की किन-किन समस्याओं को रेखांकित किया गया है ? इन समस्याओं के प्रति कहानीकार के दुष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक ने ‘खानाबदोश’ कहानी में मालिक-मज़दर के अंतर से उत्पन्न होनेवाली समस्या, जात-पाँत की समस्या को उठाया है। मजदूर की मेहनत और ईमानदारी से भट्ठे के मालिक खूय पैसा कमा रहे हैं लेकिन उनकी सुविधा के लिए कोई भी साधन उपलब्ध नहीं कराते हैं। मज़दूरों शहर से दूर भट्ठों पर ही दबड़ेनुमा झोंपड़ियाँ बनाकर रहते है जिसमें आदमी हंग से खड़ा नहीं हो पाता है। बीमार पड़ने या चोट लगने पर दवाई की सुविधा नहीं है। सूबे सिंह जैसे मालिक लोग मजदूर स्त्रियों के आत्म-सम्मान को चोट पहुँचाते हैं। उनका कहना न मानने पर उन्हें तंग करके काम छोड़ने को मजबूर कर देते हैं।

लेखक ने कहानी में जात-पाँत की समस्या को उठाया है मज़दूरों होकर भी आपस में काम करनेवाले जात-पाँत को मानते हैं। जसदेव ब्राह्मण होने के कारण मानो के हाथ की बनी रोटी नहीं खाता है। असगर ठेकेदार के यह कहने पर कि वह ब्राहमण है क्यों इन मज़दूर के चक्कर में पड़ता है जब से जसदेव सुकिया और मानो से दूर-दूर रहने लगता है। लेखक ने कहानी में यह दिखाने का प्रयास किया है कि मज़दूर वर्ग को सपने देखने का अधिकार नहीं है। वह मेहनत और ईमानदारी का जीवन व्यतीत नहीं कर सकते हैं। दिन-रात की मेहनत-मज़दूरी के बाद उन्हें इतने पैसे भी नही मिलते कि वह अपने लिए अच्छे खाने और रहने का इंतजाम कर सकें। मानो के माध्यम से ब्राहमण मानसिकता पर चोट की है, “फिर तुम तो दिन-रात साथ काम करते हो… मेरी खातिर पिटे… फिर यह बयान म्हारे बीच कहाँ से आ गया… ?’

प्रश्न 8.
‘चल ! यो लोग महारा घर ना बणने देंगे।’ सुकिया के इस कथन के आधार पर कहानी की मूल संवेदना स्पष्ट डालिए।
उत्तर :
‘खानाबदोश’ कहानी में लेखक ने मज़दूर वर्ग का पूँजीपति वर्ग द्वारा किए जा रहे शोषण को चित्रित किया है। मज्ञदूर वर्ग यदि ईमानदारी से मेहनत मज़ूरी करके इस्ज़त के साथ जीवन बिताना चाहता है, तो सूबे सिंह जैसे समृद्ध और ताकतवर लोग उन्हें जीने नहीं देते हैं। सुकिया और मानो गाँव छोड़कर शहर से दूर भट्ठे पर, अपना ईंटों का घर बनाने का सपना पूरा करने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं। दोनों जमा किए पैसों को देख-देखकर खुश होते हैं। सूबे सिंह अपनी दौलत से मानो को खरीदना चाहता है लेकिन मानो अपने घर में, अपने परिवार के साथ इक्जत की ज़िंद्गी बिताना चाहती है इसलिए अपने पति सुकिया के साथ मिलकर सूबे सिंह की ज़्यादतियों का सामना करती हुई मेहनत से काम करती है। एक दिन मानो द्वारा बनाई गई ईटें रात को कोई तोड़ जाता है जिससे उसके सपने भी टूट जाते हैं। वे दोनों अपने टूटे सपनों को साथ लेकर, बाकी सब छोड़कर खानाबदोशों की तरह अगले पड़ाव के लिए चल पड़ते हैं।

इस कहानी के माध्यम से लेखक ने मज़दूरों पर होनेवाले अत्याचारों तथा शोषण को दिखाया है कि किस प्रकार पूँजीपति मजदूरों की मेहनत से अपने को अमीर बनाता है फिर उसी पूँजी से उनका शोषण करता है। उनके जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं करता है। मज़दूर एक बार अपनी जमीन से उखड़कर, सपने पूरे करने की आस लेकर शहर आते हैं, लेकिन वे जिंदगीभर सूबे सिंह जैसे लोगों के कारण जमीन से जुड़ नहीं पाते हैं। उम्रभर खानाबदोश ही रहते हैं।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस के पकवानों से अच्छी होती है।
(ख) इत्ते छेर-से नोट लगे हैं घर बणाने में। गाँठ में नहीं है पैसा चले हाथी खरीदने।
(ग) उसे एक घर चाहिए था पक्की इंटों का। जहाँ वह अपनी गृहस्थी और परिवार के सपने देखती थी।
(घ) फिर तुम तो दिन-रात साथ कम करते हो….मेरी खातिर पिटे…फिर यह बामन महारे बीच कहाँ से आया…. ?
(ङ) सपनों के काँच उसकी आँख में किरकिरा रहे थे।
उत्तर :
(क) मानो सुकिया के साथ गाँव छोड़कर भट्ठे पर काम करने आ जाती है लेकिन भट्ठे के माहौल में उसका दिल नहीं लगता। वह सुकिया से गाँव वापस चलने के लिए कहती है लेकिन सुकिया वापस गाँव में जाकर नर्क की जिंदगी नहीं बिताना चाहता है। मानो उससे कहती है कि गाँव में सभी लोग अपने हैं। अपनों के बीच सुख-दुख उठाते हुए हम कम खाकर भी खुश रह सकते हैं। यहाँ परदेश में अपना कोई नहीं है यदि हम यहाँ सुख-सुविधाओं में रहें तो उसका क्या लाभ ! हमारा सुख-दुख बाँटने वाला तो अपना कोई नही है, सभी पराए हैं।

(ख) भट्वे में पकी लाल इंटों को देखकर मानो के दिल में अपना पक्का घर बनाने की इच्छा जन्म लेती है। वह सुकिया को अपनी इच्छा बताती है। सुकिया उसे समझाता है कि उसकी यह इच्छा पूरी नही हो सकती है क्योंकि हम मज़दूर है। घर बनाने में केवल इंटे ही नहीं लगती, उसमें अन्य सामान रेत, सीमेंट, लकड़ी, लोहा आदि लगता है। घर दो-चार रुपयों में नहीं बनता है उसके लिए बहुत सारे रुपए चाहिए जो हमारे पास नहीं हैं। हम मेहनत मज्ञदूरी करनेवाले लोग पक्के घर का सपना देख सकते हैं। उसे पूरा करने की ताकत हमारे पास नहीं है।

(ग) सूबे सिंह मानो को किसनी की तरह अपने जाल में फँसाना चाहता था लेकिन मानो के स्वाभिमान के कारण उसे फैसा नहीं पाता। मानो में इक्ज़त से जिंदगी जीने की इच्छा बहुत अधिक थी इसलिए वह सूबे सिंह के पास नही जाती। मानो भट्ठे पर रहते हुए एक पक्के घर का सपना देखती है जहाँ वह अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी रहना चाहती है। वह अपना सपना पूरा करने के लिए कमर तोड़ मेहनत करने के लिए तैयार है लेकिन वह अपना आत्मसम्मान खोकर अपना सपना पूरा नहीं करना चाहती।

(घ) जसदेव मानो को सूबे सिंह से बचाने के लिए उसकी मार खाता है। वह घायल हो जाता है मानो उसको दवा लगाती है और उसके लिए रोटी लेकर जाती है। सुकिया उसे रोकता है लेकिन मानो उसकी बात नहीं मानती है। जसदेव ब्राहमण होने के कारण उसके हाथ की बनी रोटी खाने से इनकार कर देता है क्योकि मानो निम्न जाति की है। मानो उससे कहती है कि वह भी तो उसकी तरह एक मज्रदूर है, उसके साथ काम करता है और सूबे सिंह से उसकी इक्ज़त बचाने के लिए भिड़ गया था। उस समय तो उनके मध्य जात-पांत नहीं थी। अब रोटी खाने के समय ब्राहमण कहाँ से उनके मध्य आ गया है। वह तो औरत होने के कारण उसे रोटी खिलाने आ गई थी।

(ङ) सूबे सिंह और मानो-सुकिया में एक लड़ाई चल रही थी। सूबे सिंह उन्हें परेशान करता है लेकिन वे दोनों उसकी तरफ़ ध्यान नहीं देते, अपने काम में लगे रहते हैं। मानो के सत्र का बाँध उस दिन टूट जाता है जब वह अपनी बनी ईंटों को टूटा हुआ देखती है। ठेकेदार उनको टूटी हुई इँटों की मज़दूरी देने से मना कर देता है। मानो को लगता है कि ईटें टूटने से उसके सपने भी टूट गए हैं। सब लोग उनके विर्द्ध हो गए हैं। वह सुकिया के साथ वहाँ से चल पड़ती है। उसने भट्ठे पर रहते हुए जो पक्के घर का सपना देखा था वह टूट गया था। टूटे हुए सपने का काँच उसकी आँखों में चुभ रहा था क्योंकि उसे लग रहा था कि उसका घर का सपना अब कभी पूरा नहीं होगा।

प्रश्न 10.
नीचे दिए गए गद्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
भद्ठे से उठते ……… था, यह भट्ठा।
उत्तर :
सप्रसंग व्याख्या खंड देखिए।

योर्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
अपने आस-पास के क्षेत्र में जाकर ईंटों के भट्ठे को देखिए तथा ईंटें बनाने एवं उसे पकाने की प्रक्रिया का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
प्रश्न 2.
भट्ठा-मज़दूरों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थीं अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 6 खानाबदोश

प्रश्न 1.
‘खानाबदोश’ कहानी के आधार पर सुकिया का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
‘खानाबदोश’ कहानी ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा रचित है। इस कहानी में सुकिया शोषित समाज का प्रतिनिधित्व करता है। वह गाँव छोड़कर अपनी पत्नी मानो के साथ भट्ठे पर काम करता है।
(i) परिश्रमी – सुकिया एक मेहनती मजदूर है। वह काम करने से जी नहीं चुरता। भट्टे का मालिक मुखतार सिंह उसके एक सप्ताह के काम से प्रसन्न होकर उसे ईँटं बनाने के लिए साँचा दे देता है जिससे उसकी दिहाड़ी बढ़ जाती है यह उसकी मेहनत का फल था।
(ii) ईमानदार – सुकिया बहुत ईमानदार है। वह अपना सारा काम ईमानदारी से करता है। जल्दी उठकर वह सुबह अपने काम में लग जाता है और शाम तक लगा रहता है। वह इधर-उधर खाली नहीं बैउता।
(iii) यथार्थवादी – सुकिया को यथार्थ में जीना आता था। वह सपने नहीं देखता था क्योंकि उसे अपने हालात पता थे। जब मानो घर बनाने का सपना देखती है तो सुकिया उसे ऐसा सपना देखने के लिए मना करता है क्योंकि घर दो-चार रुपयों से नहीं बनता। उसके लिए ढेर सारा पैसा चाहिए जो उसके पास नहीं है। यदि वह सारी उम्र भी मेहनत करे तब भी घर बनाने के लिए पैसे नहीं जोड़ सकता।
(iv) सहनशील – सुकिया अपने मालिक के अत्याचारों को सहन करता है। उसे पता है कि मालिक की ताकत के सामने उसका कोई अस्तित्व नहीं है, इसलिए वह उसकी छोटी बदतमीजी को भी सहन करता है।
(v) स्वाभिमानी – सुकिया अपना स्वाभिमान खोकर जीना नहीं चाहता। जब सूबे सिंह उसकी पली मानो को सेवाटहल के लिए अपने दफ्तर में कुलाता है तो वह उसे जाने से रोकता है और उसकी जगह स्वरं जाने के लिए तैयार हो जाता है। कह मानो की इज्ज़त बचाने के लिए भट्ठा छोड़ने को तैयार हो जाता है लेकिन सूबे सिंह के गलत इरदों के सामने झुक्ता नहीं।
(vi) जात – पात में विश्वास करने वाला-सुकिया निम्न जाति का है। उसे पता है कि उच्व जाति के लोग उनके हाथ का बना तो दूर, छुआ भी नही खा सकते। इसलिए वह मानो को जसदेव के लिए रोटी ले जाने के लिए मना करता है क्योंकि जसदेव जाति का ब्राहमण था।
इस प्रकार पता चलता है कि सुकिया परिश्रमी, ईमानदार, सहनशील तथा स्वाभिमानी है वह परदेश में अपनी पत्नी की इज्ज़त करना जानता है।

प्रश्न 2.
‘खानाबदोश’ कहानी के आधार पर मानो का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
‘खानाबदोश’ कहानी में मानो सुकिया की पत्ली है वह सुकिया के साथ गाँव छोड़कर भट्ठे पर काम करने आती है।
(i) आजाकारी – मानो सुकिया की प्रत्येक बात को उसकी आज्ञा समझकर मानती है। मानो सुकिया से गाँव में अपनों के बीच चलने की बात करती है क्योंकि उसका मन भट्टे पर नहीं लगता। सुकिया उसे गाँव की नरक वाली जिंदगी की याद दिलाता है और यदि कुछ पाना चाहती हो तो कुछ छोड़ना तो पड़ेगा। सुकिया की बात सुनकर वह फिर कभी गाँव जाने की बात नहीं करती।
(ii) परिश्रमी – सुकिया की तरह मानो भी परिश्रमी है। वह भट्ठे पर दिन-रात कमर तोड़ मेहनत करती है जिससे वह अपने भविष्य के लिए कुछ पैसे जोड़ ले।
(iii) ईमानदार – वह सुकिया और अपने काम के प्रति ईमानदार है। वह अपने काम से काम रखती है। बेकार में इधर-उधर की बात नहीं करती। वह सुकिया के सिवाय किसी और के बारे में नहीं सोचती।
(iv) सपने देखनेवाली – मानो अन्य औरतों की तरह अपने घर का सपना देखती है। जिसमे उसका परिवार उसके साथ रहे तथा खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करे। भट्ठे पर रहते हुए वह लाल-लाल पक्की ईंटों के घर का सपना देखती है।
(v) कर्मठता में विश्वास – वह अपने देखे हुए सपने को पूरा करने में विश्वास रखती है उसके लिए वह अपने पति सुकिया के साथ मिलकर मेहनत करती है। उसे अपनी मेहनत से अपना घर बनाना है इसलिए वह आलस नहीं करती। दिन-रात मेहनत करने पर भी थकावट अनुभव नर्ही करती।
(vi) आत्म – सम्मान की रक्षा करनेवाली-मानो अपनी इज्जत की रक्षा करना जानती है। वह अपने सपने पूरा करने के लिए अपनी इज्जत का सौदा नहीं करती। क्योंक वह किसनी नहीं बनना चाहती, जिसने सूबे सिंह के दिखाए चमक-दमक वाले जाल में फैसकर अपना सब खो दिया और सबकी नज्ञरों से गिर गई। वह अपनी इजज़त बचाने के लिए भट्ठा छोड़ने को भी तैयार है।
(vii) ममतामयी – मानो ममतामयी औरत है। वह औरत होने के कारण जात-पात में विश्वास नहीं रखती। इसीलिए निम्न जाति के होते हुए वह घायल जसदेव के लिए रोटी बनाकर ले जाती है। वह यह नहीं देख सकती कि उसके होते हुए उसके बराबर वाली झोंपड़ी में कोई भूखा सोए।
(viii) सहनशील – जब मानो सूबे सिंह के गलत इरादों के साथ समझौता नहीं करती तो सूबे सिंह उन्हें तंग करना आरंभ कर देता है। छोटी-छोटी गलतियों के लिए उनकी मज़दूरी काट लेता है। मानो पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता, वह अपने काम से मतलब रखते हुए चुपचाप सब सहन करती है।
(ix) भावुक – मानो बात-बात पर बहुत भावुक हो जाती है वह भट्ठे से निकली लाल-लाल इंटों को देखकर भावुक हो जाती है और पक्की ईटों के घर का सपना देखने लगती है। जब उसकी बनाई ईंटों को रात के समय कोई तोड़ जाता है तो वह उनको देखकर पागलों की तरह रोने लगती है क्योंकि इटं टूटने से उसके सपने भी टूट जाते हैं। मानो एक आम औरत की तरह होते हुए भी अलग है। वह सपने देखती है, उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत करती है अपने पति के दुख-सुख की साथिन भी है। सबसे बड़ी बात बह है कि वह इक़जत का सौदा नहीं करती। इज्ज़त बचाने के लिए उसे सपनों को टूटते हुए देखना स्वीकार है।

प्रश्न 3.
भट्ठे पर रहनेवालों का जीवन कैसा था ?
उत्तर :
भट्टा शहर से दूर खेतों में था। दिन में वहाँ बहुत शोर रहता था। रात होते ही दिन का शोर सन्नाटे में डूब जाता था। भट्ठे पर तीस मज़दूर काम करते थे। भट्ठे का जीवन बहुत अजीब था। वहाँ पर काम करनेवाले अलग-अलग जगह से आए हुए थे। उनमें जात-पाँत का भेदभाव भी था। दिन में एक जगह, एक-दूसरे का हाथ बँटाने वाले मज़दूरों के मन में भी जात-पांत की भावना थी। धीरे-धीरे मज़दूरों की संख्या बढ़ने से गाँव जैसा वातावरण बन रहा था। रात के समय वहॉँ की जिंदगी नीरस और बेरंग हो जाती थी।

भट्ठे पर थोड़ी देर के लिए ताज़गी का अनुभव होता था, जब झोपड़ी के बाहर चूल्हों पर बनते हुए खाने से महक उठती थी। सारा दिन कड़ी मेहनत करनेवाले लोगों के लिए भोजन भी पर्याप्त मात्रा में नहीं होता था। वे लोग अधिकतर गुड़ या मिर्च की चटनी से खाना खाते थे। सब्जी तो बहुत कम बनती थी। यदि भट्ठे पर कोई बीमार या घायल हो जाए तो वहाँ दवाई का प्रबंध नहीं था। मज्जदूर लोग मिट्टी लगाकर ही घाव भर लेते थे। फिर भी मज़दूर वहॉँ दिनभर कड़ी मेहनत के बाद भी अपनी छोटी-छोटी बातों में खुशी दूँढ़ लेते हैं तथा वे अपने आनेवाले भविष्य के सुनहरे सपने देखते हैं जो शायद एक दिन पूरे हो जाएँ।।

प्रश्न 4.
भट्ठा छोड़ते हुए मानो की मानसिक दशा कैसी धी ?
उत्तर :
मानो ने भट्ठे पर रहते हुए पक्के मकान का सपना देखा था। उसका सपना सूबे सिंह ने अपने पैरों के नीचे रौंद दिया था। जब मानो और सुकिया के सूबे सिंह के अत्याचारों को सहने की सीमा समाप्त हो गई तो उन्होने भट्ठा छोड़ने का निर्णय लिया। मानो सुकिया का हाथ पकड़े उसके पीछे-पीछे चल रही थी लेकिन कदम उठ नहीं रहे थे क्योंकि उसके सपने पीछे छूट रहे थे। उसे सभी पराए लग रहे थे। उसने जसदेव की तरफ़ भी देखा, उसे लगा कि जसदेव उन्हें रोक लेगा लेकिन जसदेव भी चुप रहा। इससे वह और भी टूट गई। टूटे हुए सपने लिए दुखी मन से बिना कुछ शब्द बोले वह अपने पति के साथ अगले पड़ाव के लिए चल दी थी जिसका पता उसके पति को भी नहीं था।

प्रश्न 5.
उस दिन की घटना के बाद सूबे सिंह ने किस प्रकार उन्हें भट्ठा छोड़ने को मजबूर कर दिया ?
उत्तर :
सूबे सिंह ने मानो को अपने दफ़्तर में सेवाटहल के लिए बुलवाया था। सुकिया उसका मतलब जानता था। उसने मानो को वहाँ जाने नहीं दिया। इस बात को लेकर जसदेय और सूबे सिंह का झगड़ा भी हुआ था। सूबे सिंह को इसमें अपना अपभान अनुभव हुआ। उसने मानो और सुकिया को परेशान करना आरंभ कर दिया। सुकिया से ईंट बनाने का साँचा छीनकर उसे मोरी के काम पर लगा दिया था। मोरी का काम खतरेवाला था। जरा भी असावधानी से मृत्यु भी हो सकती थी। मानो को जसदेव के साथ काम करना पड़ता था। जसदेव में भी मानो निम्न जाति की है वाली भावना आ गई थी। वह उसपर हुक्म चलाने लगा था। सूबे सिंह ने असगर ठेकेदार से भी कह दिया था कि उससे बिना पूछे उन दोनों को मजदुरी नहीं देनी है।

इस प्रकार छोटी-से-छोटी गलती पर मजदूरी कटने लगी थी, फिर भी दोनों अपना काम ईमानदारी से कर रहे थे। एक रात किसी ने मानो की बनाई ईटें तोड़ दी थीं सबको पता था यह काम किसका है लेकिन कोई कुछ नहीं बोला। असगर ठेकेदार ने भी टूटी हुई ईटों की मजदूरी देने से इनकार कर दिया। इस व्यवहार तथा वहाँ के पराएपन वाले वातावरण ने उन्हें भट्ठा छोड़ने के लिए मज़बूर कर दिया। इससे यह भी पता चलता हैं कि सूबे सिंह जैसे लोग अपनी मनमानी पूरी न होने पर मजदूरों को किस ढंग से परेशान करते हैं और उन्हैं जीवनभर भटकने के लिए मजबूर कर देते हैं।

प्रश्न 6.
‘खानाबदोश’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर अपने बिचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
संसार में प्रत्येक वस्तु का कोई-न-कोई नाम अवश्य होता है। बिना नाम के वस्तु की कल्पना नही की जा सकती। नाम से ही उसकी विशिष्टता बनती है। साहित्यिक क्षेत्र में भी प्रत्येक रचना का नाम उसकी अलग पहचान बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है। कहानी का शीर्षक कहानी के मूलकध्य, पात्र, उद्देश्य आदि के अनुरूप सरल, संक्षिप्त, मौलिक तथा जिज्ञासापूर्ण होना चाहिए। कहानी का शीर्षक कहानी की कथावस्तु के अनुरूप है। मानो और सुकिया गाँव की नर्क वाली जिंदगी छोड़कर शहर में कुछ सपने लेकर आते हैं। दोनों भट्ठे पर इंटें पाथने का काम करते हैं। भट्टे का मालिक सूबे सिंह मानो के आत्म-सम्मान को चोट पहुँचाना चाहता है। मानो और सुकिया इस बात का विरोध करते हैं। सूबे सिंह उन्हें छोटी-छोटी बातों के लिए तंग करना शुरू कर देता है। भट्ठे पर काम करनेवाले मज़दूर भी जात-पाँत को लेकर एक-दूसरे से खिंचे रहते हैं। बदले मानो और सुकिया वातावरण में अपने सपने बिखरते दिखाई देते हैं। कहानी के अंत में सुकिया मानो का हाथ पकड़कर, सब कुछ छोड़कर खानाबदोश की तरह अगले पड़ाव के लिए दिशाहीन यात्रा पर चल पड़ते हैं। इस प्रकार कहानी का शीर्षक ‘खानाबदोश’ सर्वथा उचचत है।

प्रश्न 7.
चूल्हे में जलती लकड़ियों की चिट-चिट से लेखक को क्या भान होता है ?
उत्तर :
लेखक को चूल्हे में जलती लकड़ियों की चिट-चिट मन में फैली दुश्चिता और तकलीफ़ों की प्रतिध्वानियाँ लगती थीं जहाँ सब कुछ अनिश्चित था।

प्रश्न 8.
सुकिया के मन में कौन-सी बात बैठ गई थी ?
उत्तर :
सुकिया के मन में यह बात घर कर गई थी कि नर्क की जिदगी से निकलना है तो कुछ तो छोड़ना पड़ेगा। यदि तरक्की करनी है तो गाँव से निकलकर शहर में काम करना होगा।

प्रश्न 9.
पाठ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यों का अर्थ अपने शब्दों मे लिखिए-
(क) भट्ठे का सबसे खतरेवाला काम था मोरी पर काम करना।
(ख) दिनभर की गहमा-गहमी के बाद यह भद्ठा अधंरे की गोद् में समा जाता था।
(ग) अब कपड़े-लत्तों की कमी नहीं थी।
(घ) नहीं …….. भट्ठा नहीं छोडना है।
(ङ) एक शीत-युद्ध जारी था उनके बीच।
(च) उसे लगने लगा था, जैसे तमाम लोग उसके खिलाफ़ हैं।
उत्तर :
(क) भट्ठे पर मिट्टी से इटें पाथने के बाद, उन्हें पक्का करने के लिए गलियारे में इकट्ठा कर दिया जाता है। ईंटों के बीच खाली जगह में ठेकेदार की निगरानी में कोयला, लकड़ी, बुरादा, गन्ने की बाली से भरने घर आग लगा दी जाती है। बीच-बीच में मोरियों से भट्ठे में कोयला बुरादा डालना पड़ता था। यह सबसे खतरनाक होता था क्योंकि आग भड़कने से फैलने का डर लगा रहता था। और जरा-सी असावधानी से मौत भी हो सकती है।

(ख) दिनभर भट्ठे पर मालिक, ठेकेदार और मज़दूरों की गहमा-गहमी रहती थी। रात होते ही मालिक और ठेकेदार शहर चले जाते थे और मज़दूर वहीं बनी अपनी झोंपड़ियों में चले जाते थे। भट्ठा शहर से दूर था इसलिए वहाँ कोई आवाजाही नहीं थी। दिन की गहमा-गहमी रात होते ही अँधेरे की गोद में समा जाती थी।

(ग) किसनी और महेश कुछ दिन पहले भट्ठे पर काम करने आए थे। सूबे सिंह ने किसनी को अपने जाल में फँसा लिया था। सूबे सिंह किसनी को तरह-तरह का सामान लाकर देता था। किसनी को अब मिट्टी गारे का काम नहीं करना पड़ता था। इज्ज़त खोने के बाद किसनी के पास अब कपड़े-लत्तों की कमी नहीं रह गई थी।

(घ) सूबे सिंह द्वारा बुलाए जाने पर मानो उसके पास नहीं जाती। मानो किसनी बनना नहीं चाहती थी। उसे लग रहा था कि यहाँ पर वह सुरक्षित नहीं है। उसे सुकिया पर विश्वास था कि यदि उसकी इज्जत बचाने के लिए भट्ठा छोड़ना पड़ा तो वह छोड़ देगा। भट्ठा छोड़ने के खयाल से मानो को अपना सपना टूटता दिखाई दिया। वह भट्ठा छोड़ने की अपेक्षा अपने को सूबे सिंह के गलत इरादों से लड़ने के लिए तैयार करने लगी थी।

(ङ) सूबे सिंइ मानो को अपने जाल में फँसता न देखकर उसे तंग करने के लिए नए-नए बहाने ढूँढ़े लगा था। सुकिया से साँचा वापिस लेकर उसे मोरी के काम पर लगा दिया था और मानो को जसदेव के साथ काम करना पड़ता था। सूबे सिंह और सुकिया मानो के बीच चुप्पी चल रही थी। सूबे सिंह ऐसा युद्ध लड़ रहा था जिसका दूसरी तरफ़ से कोई जवाब नहीं था।

(च) भट्ठे पर मानो द्वारा बनाई गई ईंटों को रात के समय कोई तोड़ गया था, जिन्हें देखकर मानो पागल हो गई थी क्योंकि उसके सपने भी टूट गए थे। सबको पता था यह किसका काम है लेकिन कोई बोल नहीं रहा था। सुकिया को ऐसा लग रहा था कि सूबे सिंह के तूफान से उसका घर टूट गया है। वह एकदम अकेला पड़ गया है। कोई भी उसके साथ नहीं है। सभी उसे अपने खिलाफ़ लग रहे थे।

प्रश्न 10.
लेखक ने ‘खानाबदोश’ कहानी के माध्यम से क्या चित्रित करना चाहा है ?
उत्तर :
लेखक ने ‘खानाबदोश’ कहानी में मज़दूरी करके किसी तरह गुज़र-बसर कर रहे मजजदूर वर्ग के शोषण और यातना को चित्रित किया है। उन्होंने यह भी बताया है कि मज़दूर वर्ग यदि ईमानदारी से मेहनत और मज़दूरी करके इज्ज़त के साथ जीवन जीना चाहता है तो कहानी में वर्णित, सूबे सिंह जैसे समृद्ध और ताकतवर लोग उन्हें जीने नहीं देते। कहानी इस बात की ओर भी संकेत करती है कि मज़दूर वर्ग हमारे समाज की जातिवादी मानसिकता से नहीं उबर पाया है।

प्रश्न 11.
भट्ठे पर सबसे कठिन काम कौन-सा और क्यों होता है ?
उत्तर :
भट्ठे पर सबसे कठिन काम मोरी पर काम करना होता है। वहाँ इंटें पकाने के लिए कोयला, बुरादा, लकड़ी और गन्ने की बाली को मोरियों के अंदर डालना होता है। थोड़ी-सी असावधानी भी मौत का कारण बन सकती है। मजदूरों को चौबीसों घंटे इ्यूटी पर यहाँ लगाया जाता है।

प्रश्न 12.
सुकिया मानो के हर सवाल का क्या उत्तर देता था ?
उत्तर :
सुकिया के मन में एक बात घर कर गई थी। नर्क की ज़िंदगी से निकलना है तो कुछ छोड़ना भी पड़ेगा। मानो की हर बात का उसके पास यही एक जवाब था। अपने उत्तर के तर्क में वह कहता है कि बड़े-बूड़े भी कहा करते हैं कि आदमी की औकात घर से बाहर कदम रखने पर होती है। घर में तो चूहा भी शेर होता है। कंधे पर लट्ठ रखकर घूमनेवाले चौधरी शहर में सरकारी अफ़सरों के आगे सीधे खड़े भी नहीं हो पाते। बकरियों के समान मिमियाने लगते हैं और गाँव में गरीब को इनसान नहीं समझते।

प्रश्न 13.
मानो और सुकिया किसके साथ और कहाँ आ गए थे ?
उत्तर :
मानो और सुकिया गाँव, देहात छोड़कर एक दिन असगर ठेकेदार के साथ भट्ठे पर आ गए। वे दिहाड़ी मज़दूर बनकर आए थे। सुकिया के हफ़्तेभर के काम से खुश होकर भट्ठे के ठेकेदार असगर ने उसे साँचे से इंट बनाने का काम दे दिया।

प्रश्न 14.
भट्ठे का मालिक कौन था तथा वहाँ पर कितने लोग काम करते थे ?
उत्तर :
भट्ठे का मालिक मुखतार सिंह था। भट्ठे पर लगभग तीस मज़दूर काम करते थे। काम के बाद वे सभी मजदूर भट्ठे पर भी रहते थे। भट्ठा मालिक मुखतार सिंह और असगर ठेकेदार साँझ होते ही शहर लौट जाते थे। शहर से दूर, दिनभर की गहमा-गहमी के बाद ईंट का भट्ठा अंधेरे की गोद में समा जाता था। चारों ओर सन्नाटा छा जाता था। रोशनी के नाम पर झोपड़ियों में टिमटिमाती ढिबरियाँ ही दिखाई पड़ती थीं।

प्रश्न 15.
किसनी सूबेसिंह के साथ कहाँ जाती थी और महेश में क्या परिवर्तन आया ?
उत्तर :
किसनी सूबेसिंह के समक्ष अपनी इइ्ज़त खो चुकी थी। वह अब सूबेसिंह की वासना को मिटाने का एक साधन थी। सूबेसिंह किसनी को अकसर शहर लेकर जाता था। किसनी केरंग-ढंग में बदलाव आ गया था। अब वह भट्ठे पर गारे मिट्टी का काम नहीं करती थी। किसनी कई-कई दिनों तक शहर से लौटती नहीं थी। जब वह लौटती तो थकी, निढाल और मुरझाई हुई होती थी। महेश रोज़ रात में शराब पीकर मन की भड़ास निकालता था। दिन में भी अपनी झोपड़ी में पड़ा रहता था।

प्रश्न 16.
भट्ठे में पक्की लाल ईंटों को देखकर मानो कौन-सा सपना देखने लगी थी ?
उत्तर :
भट्ठे में पक्की लाल इँटों को देखकर मानो अपना पक्का घर बनाने का सपना देखने लगी थी। उसने सुकिया से पूछा कि एक घर बनाने में कितनी ईटें लगती हैं। सुकिया ने कहा ईंटों के अलावा लोहा, सीमेंट, लकड़ी, रेत आदि सामान भी लगता है। यह सुनकर मानो बेचैन हो गई। उसके दिमाग में इंटों का लाल रंग छा गया था। वो सुकिया से अपने घर के लिए इटें बनाने को भी कहती है। अब मानो और सुकिया का एक ही लक्ष्य था कि पैसे इकट्ठा करके अपने लिए पक्की इँटों का घर बनाना।

प्रश्न 17.
कहानी में प्रयुक्त आँचलिक शब्दों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर :
Class 11 Hindi Antra Chapter 6 Question Answer खानाबदोश 1

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 7 Question Answer नए की जन्म कुंडली : एक

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 7 नए की जन्म कुंडली : एक

Class 11 Hindi Chapter 7 Question Answer Antra नए की जन्म कुंडली : एक

प्रश्न 1.
लेखक ने व्यक्ति को हमारी भारतीय परंपरा का विचित्र परिणाम क्यों कहा है?
उत्तर :
लेखक ने व्यक्ति को हमारी भारतीय परंपरा का विचित्र परिणाम इसलिए कहा है, क्योंकि वह परिवार मै रहता है, परिवार भारतीय परंपराओ का पालन करता है। परपराओं में जो अच्छाइयाँ या बुराइयाँ होती हैं, उन्हें ग्रहण करता है। आशय यह कि व्यक्ति के व्यक्तित्व पर परिवार की परंपराओं का ही असर होता है और वह वैसा ही बन जाता है।

प्रश्न 2.
‘साँदर्य में रहस्य न हो तो वह एक खूबसूरत चौखटा है।’ व्यक्ति के व्यक्तित्व के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि यदि कोई व्यक्ति देखने में बहुत सुंदर दिखाई देता हो, परंतु उसमें कोई गुण न हो तो उसका सौँदर्य केवल एक दर्शनीय वस्तु बनकर रह जाता है। जब तक सँददर्य विशेषताओं से युक्त न हो तब तक उस का महत्व शून्य ही रहता है। लेखक का मित्र उसे बारह बर्षों के बाद मिलता है, जिसके बाल सफेद हो गए हैं तथा माथे पर लकीरें पड़ गई हैं परंतु वह आज भी उसकी सुंदरता पर मुग्ध है, जो उसके अंतर का है।

प्रश्न 3.
अभिधार्थ एक होते हुए भी ध्वन्यार्थ और व्यंग्यार्थ अलग-अलग हो जाते हैं। दूरियों के संदर्भ में इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि जब कोई बात कही जाती है तो उसका मुख्य अर्थ एक होते हुए भी उसके ध्वन्यार्थ तथा व्यंग्यार्थ अलग-अलग हो जाते हैं। जैसे ‘वह गधा है’ वाक्य एक ऐसे जीव की ओर संकेत करता है जो ‘गधा’ है। यही वाक्य यदि किसी व्यक्ति विशेष को संबोधित करके कहा गया हो तो इसका अर्थ ‘गधा’ नामक जीव न होकर ‘गधा’ नामक जीव से संबंधित गुणों अथवा अवगुणों पर आधारित सीधा-साधा अथवा मूर्ख होगा। यह अर्थ ध्वन्यार्थ अथवा व्यंग्यार्थ कहलाएगा।

दूरियों का संदभी स्पष्ट करने के लिए लेखक ने शैले की ‘ओड टु वेस्ट विंड’ और ‘स्ववेअर रूट ऑफ़ माइनस वन’ का प्रयोगकर यह बताने के लिए किया है कि जिस प्रकार कविता और गणित में दूर-दूर तक कोई संबंध नही होता, उसी प्रकार से उसके और उसके मित्र में भी दूरियाँ हैं। उसके मित्र को काव्य से तथा लेखक को गणित से कोई लगाव नहीं है। इस प्रकार दोनों में दूरि बनी हुई हैं, जिन्हें वे पहचानते भी हैं और दोनों को यह स्थितियाँ पसंद भी हैं। इन दूरियों के होते हुए भी वे एक-दूसरे के पूरक बने हुए है।

प्रश्न 4.
सामान्य-असामान्य तथा साधारण-असाधारण के अंतर को व्यक्ति और लेखक के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
व्यक्ति के अनुसार सामान्य वह है जो आम आदमियों के समान अपना जीवन व्यतीत करता है तथा असामान्य व्यक्ति किसी-न-किसी मनोरोग से ग्रस्त होता है। व्यक्ति आम लोगों को साधारण आदमी मानता है जबकि असाधारण व्यक्ति समाज में किसी प्रतिष्ठित पद को प्राप्त आदमी होता है। लेखक ने सामान्य और साधारण उसे माना है जो अपने मन के भीतर के असामान्य के उग्र आदेशों का पालन नहीं कर सकता तथा असाधारण और असामान्य वह है जो अपनी एक धुन पर अपना सब कुछ कुर्बान कर सकता है।

प्रश्न 5.
‘उसकी पूरी ज़िदंदी भूल का एक नक्शा है।’ इस कथन के द्वारा लेखक व्यक्ति के बारे में क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
लेखक ने अपने मित्र को ‘पूरी जिंदगी भूल का एक नक्शा’ इसलिए कहा है क्योंकि वह आजीवन अपने सिद्धांतों के अनुसार चलता रहा। उसने कभी भी परिस्थितियों के साथ समझौता नहीं किया था। इसलिए वह असफल, नामहीन तथा आकारहीन रह गया। उसमें क्यावहारिकता का अभाव था। वह स्वयं को बदलते सामाजिक मूल्यों के अनुरूप ढाल नहीं सका था।

प्रश्न 6.
‘पिछले बीस वर्षों की सबसे महान घटना संयुक्त परिवार का ह्ञास है’-क्यों और कैसे ?
उत्तर :
भौतिकतावाद की दौड़ में मनुष्य इतनी तीत्र गति से दौड़ रहा है कि वह अपने सभी संबंधों को भूलता जा रहा है। आज परिवार का अर्थ पति-पत्नी और उनके बच्चों तक सीमित हो गया है। दादा-दादी, चाचा-ताऊ आदि सभी रिशे न जाने किसी अंधी दौड़ में पीछे छूट गए हैं। सभी स्वयं को एक-दूसरे के मुकाबले अधिक अमीर बनाने और दिखाने में लगे हुए हैं। इस कारण सारे संबंध गौण हो गए हैं तथा पैसा प्रधान हो गया है। व्यक्ति संकुचित होता गया तथा संयुक्त परिवार बिखरते चले गए हैं। एकल परिवार व्यवस्था और शीघ्र अमीर बनने की चाहत ने ही आज मानवी रिश्तों को तार-तार कर संयुक्त परिवारों को तोड़ दिया है। कीजिए। उत्तर लेखक का यह कथन बिलकुल सत्य है कि आज राजनीति करने वालों के पास समाज-सुधार का कोई कार्यक्रम नहीं है। वे केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए राजनीति में आते हैं। उन्हें जन-कल्याण से कुछ भी लेना-देना नहीं होता। यदि राजनीति समाज-सुधार की ओर ध्यान देती तो स्वतंत्रता के इतने दशकों के पश्चात भी देश में गरीबी, अनपढ़ता, भुखमरी, अकाल, बाढ़ जैसी विभीषिकाएँ नही होतीं।

प्रश्न 8.
‘अन्यायपूर्ण व्यवस्था को चुनौती घर में नहीं, घर के बाहर दी गई।’-इससे लेखक का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि आज हमारी कथनी और करनी में बहुत अंतर आ गया है। हम घर के बाहर तो सामाजिक क्रांति, पूँजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष छेड़ने की बातें करते हैं परंतु जहाँ यह सब हो रहा हो वहाँ अपने-पराए का भेद सामने आ जाने पर चुप्पी साधकर बैठ जाते हैं।

प्रश्न 9.
‘जो पुराना है, अब वह लौटकर आ नहीं सकता। लेकिन नए ने पुराने का स्थान नहीं लिया।’ इस नए और पुराने के अंतद्वंद्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पुराने से लेखक का तात्पर्य परंपरागत संस्कार, जीवन-मूल्य, आस्थाएँ तथा धर्म-भावना है और नए से तात्पर्य आधुनिक वैज्ञानिक बुद्धि के अनुसार भौतिकतावादी जीवन-जीना है। आज स्थिति यह है कि पुराने को छोड़कर नए को अपनाने के मोह में हम नए को भी पूरी तरह से नहीं अपना पा रहे हैं। हमें यह भी पता नहीं कि ‘नया’ है क्या ? यही कारण है कि आज नया जीवन, नए मान-मूल्य तथा नया न्याय सब कुछ परिभाषाहीन तथा आकार-रहित हो गए हैं। इनका कोई अस्तित्व दिखाई नहीं देता है। यह नए विचार, नई जीवन-पद्धति किसी नए व्यापक मानसिक सत्ता के अनुरूप अनुशासन नहीं दे सके। इन्होंने हमारी धार्मिक एवं दार्शनिक भावनाओं का स्थान भी नहीं लिया। सब कुछ गड़बड़ा गया है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित गद्यांशों की व्याख्या कीजिए-
(क) इस भीषण संघर्ष की हूदय भेदक …………… इसलिए वह असामान्य था।
(ख) लड़के बाहर राजनीति या साहित्य के मैदान में …………….. घर के बाहर दी गई।
(ग) इसलिए पुराने सामंती अवशेष बड़े मजे ……………….. शिक्षित परिवारों की बात कर रहा हूँ।
(घ) मान-मूल्य, नया इंसाफ़ वे धर्म और दर्शन का स्थान न ले सके।
उत्तर :
सप्रसंग व्याख्या भाग देखिए।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) सांसारिक समझौते से ज्यादा विनाशक कोई चीज़ नहीं।
(ख) बुलबुल भी यह चाहती है कि वह उल्लू क्यों न हुई?
(ग) मैं परिवर्तन के परिणामों को देखने का आदी था, परिवर्तन की प्रक्रिया को नहीं।
(घ) जो पुराना है, वह अब लौटकर नहीं आ सकता।
उत्तर :
(क) दुनिया में रहते हुए दुनियादारी निभाने के लिए मनुष्य को चाहे-अनचाहे अनेक प्रकार के समझाँते करने पड़ते हैं। लेखक का मानना है कि इस प्रकार के समझौते करते रहना मनुष्य के स्वाभिमान का विनाश करना है।
(ख) आधुनिकता की होड़ में मनुष्य अपनी पुरानी अच्छी परंपराओं को छोड़ता जाता है और नए की चाह में नए को पूरी तरह से अपना भी नहीं पाता। उसकी दशा उस बुलबुल जैसी हो रही है जो उल्लू बनना चाह रही है। समाज में प्रत्येक व्यक्ति अच्छाई त्याग कर बुराई की ओर अग्रसर हो रहा है।
(ग) लेखक बताता है कि आधुनिक युग में प्रत्येक सामान्य व्यक्ति का यह स्वभाव बन गया है कि वह नए परिवर्तनों के परिणाम तो देखना चाहता है परंतु यह नहीं सोचता कि इस परिवर्तन की प्रक्रिया क्या थी और उसके लिए लोगों ने क्या-क्या कुर्बानियाँ दी हैं ? सब फल खाना चाहते हैं, काम नहीं करना चाहते।
(घ) लेखक का मानना है कि युग परिवर्तन के साथ-साथ सब कुछ बदलता रहता है। जैसे बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता है उसी प्रकार से जो पुराना है, जो अतीत है, जो गत है वह भी लौटकर नहीं आता।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
‘विकास की ओर बढ़ते चरण और बिखरते मानव-मूल्य’ विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
प्रश्न 2.
‘आधुनिकता की इस दौड़ में हमने क्या खोया है और क्या पाया है ?’ अपने विद्यालय की पत्रिका के लिए इस विषय पर अध्यापकों का साक्षात्कार लीजिए।
प्रश्न 3.
“साँदद्य में रहस्य न हो तो वह एक खूबसूरत चौखटा है।” लेखक के इस वाक्य को केंद्र में रखते हुए ‘सौंदर्य क्या है’ इस पर चर्चा करें।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 7 नए की जन्म कुंडली : एक

प्रश्न 1.
‘नए की जन्म कुंडली : एक’ निबंध का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘नए की जन्म कुंडली : एक’ गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित एक विचारात्मक निबंध है, जिसमें उन्होंने वर्तमान युग में मनुष्य में आने वाले परिवर्तन को ‘नए’ जीवन का नाम दिया है। लेखक ने इस संदर्भ में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि हमम ‘नए’ के मोह में पुराने को छोड़ तो देते हैं परंतु ‘नए’ को भी उसकी संपूर्णता के साथ अपना नहीं पाते हैं। ऐसे में अपने जीवन को दाँव पर लगाकर भी अनैतिक समझौते न करने वाला व्यक्ति असफल और प्रतिपल चाहे-अनचाहे समझौते करने वाला व्यक्ति सफल हो जाता है। संयुक्त परिवारों का विषटन हो रहा है परंतु पारिवारिक परंपराओं को हम अब भी पाल रहे हैं। राजनीति और साहित्य समाज-सुधार से विमुख हो गए हैं। परिणामस्वरूप सर्वत्र जातिगत और वर्गगत भेदभावों का बोलबाला हो रहा है। नया-नया चिल्लाने वाले भी घर के अंदर जाकर पुराने ही हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
लेखक ने अपने मित्र के बारह वर्ष बाद मिलने पर उसके व्यक्तित्व का कैसे वर्णन किया है ?
उत्तर :
लेखक अपने मित्र से बारह वर्ष बाद मिलता है तो वह आनंद और आश्चर्य से भर उठता है। उसके बाल सफ़ेद्द हो गए थे। उसे वह भूतपूर्व नौजवान लग रहा था। लेखक पर उसके भूतपूर्व रंग-रूप का प्रभाव अभी भी छाया हुआ है। वह उसके बारे में रोमांटिक कल्पना करना चाहता है, पर वह समझ नहीं पा रहा था कि वह उसके रूप-सींदर्य से प्रभावित हो रहा है अथवा उसके माथे पर पड़ी हुई रेखाओं से। उसे उसके माथे पर पड़ी हुई रेखाएँ अच्छी लग रही थी। लेखक चाँदनी रात में अपने मित्र के साथ बैठा था।

प्रश्न 3.
लेखक व्यक्ति को बुद्धिमान क्यों मानता था ?
उत्तर :
लेखक उस व्यक्ति को इसलिए बुद्धिमान मानता था, क्योंकि वह व्यक्ति भारतीय परंपरा का पालन करता था और अपने विचारों को अधिक गंभीरतापूर्वक लेता था। वह अपने विचारों को पूरी ईमानदारी और स्पष्टता से व्यक्त करता था।

प्रश्न 4.
लेखक को अपने मित्र में एक मेधावी और प्रतिभाशाली पुरुष की संभावनाएँ क्यों दिखाई देती थीं ?
उत्तर :
लेखक को अपने मित्र में एक मेधावी और प्रतिभाशाली पुरुष की संभावनाएं इसलिए दिखाई देती थीं क्योंक उसका मित्र बहुत बुद्धिमान था। वह भारतीय परंपराओं का पालन करता था। वह अपने विचारों को बहुत गंभीरतापूर्वक लेता था। वह अपने विचारों को प्रकृति द्वारा प्रदत्त धूप और हवा जैसी स्वाभाविक मानता था। उसके विचार उसके मानस में उत्पन्न होने वाली उथल-पुथल के प्रतीक थे। वह जब भी अपने विचार व्यक्त करता था तो, अपने अंतर्मन की पूरी शक्ति के साथ प्रकट करता था।

प्रश्न 5.
आज साहित्य और राजनीति में किस दृष्टि का अभाव है ?
उत्तर :
आज साहित्य और राजनीति में सामाजिक सुधार से संबंधित दृष्टि का अभाव है। राजनीति के पास समाज-सुधार का कोई कार्यक्रम नहीं है। राजनीतकि केवल खोखले नारे देना तथा अपना उल्लू सीधा करने के लिए जातिवाद को प्रोत्साहन देते रहते हैं। साहित्य के पास भी सामाजिक सुधार का कोई कार्यक्रम नहीं है। इसलिए साहित्य में भी गड़बड़ है। सब अपना-अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हुए हैं।

प्रश्न 6.
अपने मित्र की किस बात से लेखक को लगा कि वह लेखक को गाली दे रहा है ?
उत्तर :
लेखक ने जब अपने मित्र से यह पूछा कि इन वर्षों में सबसे बड़ी भूल क्या हुई है, तब लेखक को उत्तर देते हुए उसके मित्र ने उसे बताया कि राजनीति और साहित्य के पास समाज-सुधार का कोई कार्यक्रम न होना ही सबसे बड़ी भूल है। इसके परिणामस्वरूप देश में जातिवाद का उदय हुआ। समाज विभिन्न वर्गों तथा श्रेणियों में विभाजित हो गया है। संयुक्त परिवार टूटे कितु इस टूटने से नए को पूरी तरह से नहीं अपनाया गया। नई पीड़ी की क्रांति और विद्रोह घर के बाहर तक ही सीमित रहे। घर के अंदर वे भी पुरानी परंपराओं का ही पालन करते रहे। इस प्रकार वे एक अनचाहा समझौता ही करते रहे हैं जो लेखक के मित्र को स्वीकार नहीं था। लेखक को लगा कि उसके मित्र का उसे इस प्रकार से समझौतावादी बनने के लिए कहना ही उसे गाली देने के समान है।

प्रश्न 7.
“मैं सामान्य उसको समझता हैं, जिसमें अपने भीतर के असामान्य के उग्र आदेश का पालन करने का मनोबल न हो। में अपने को ऐसा ही आदमी समझता हूँ…. मैं मात्र सामान्य हूँ।’ इस कथन में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो संसार में जीवित रहने के लिए प्रतिपल चाहे अनचाहे समझौते करते रहते हैं तथा अपने अंतर्मन में पनप रहे आक्रोश को दबा देते हैं। वे स्वयं को एक सामान्य व्यक्ति दिखाने के लिए अपने सिद्धांतों, मन की आवाज़ आदि की अवहेलना करते रहते हैं। उन्हें अपनी आत्मा की आवाज़ से अधिक प्रिय समाज लगता है और समाज में सामान्य दिखाई देने के लिए वे निरंतर समझौतावादी बने रहते हैं।

प्रश्न 8.
व्यक्ति ने तैश में आकर समाज और परिवार के बारे में जो विचार रखे उससे आप कहाँ तक सहमत हैं ?
उत्तर :
व्यक्ति के अनुसार समाज में वर्ग-भेद और श्रेणी-भेद है। श्रेणियों में परिवार हैं। समाज की एक बुनियादी इकाई परिवार है। समाज की अच्छाई-बुराई परिवार के माध्यम से व्यक्त होती है। मनुष्य के चरित्र का विकास, बच्चों का पालन-पोषण, उनकी संस्कृतिक शिक्षा आदि परिवार से ही होती है। हम इन विचारों से पूरी तरह से सहमत हैं।

प्रश्न 9.
स्वयं और अपने मित्र के बीच लेखक ‘दो धुवों का भेद’ क्यों मानता है?
उत्तर :
लेखक और उसके मित्र की जीवन-दृष्टि में बहुत अंतर था। लेखक जब भी कोई काम करता था तो उसके मन में यह भावना रहती थी कि उसके काम से लोग खुश होते हैं। इसके विपरीत उसका मित्र जब कोई काम करता था तो इसलिए करता था कि जो काम उसने अपने हाथ में लिया है, उस काम को उसे सही ढंग से पूरा कर देना चाहिए। लेखक अपनी सामान्य व्यावहारिक बुद्धि से सब कुछ करता था, परंतु उसका मित्र अपने ही हिसाब से चलता था। इसी को लेखक ने अपने और अपने मित्र के बीच दो ध्रुवों का भेद माना है। अपनी सहजता से लेखक सफल, प्रतिष्ठित तथा भद्र कहलाने लगा और उसका मित्र असफल, नामहीन और आकारहीन रह गया।

प्रश्न 10.
लेखक सामान्य व्यक्ति किसे मानता है?
उत्तर :
लेखक सामान्य व्यक्ति उसे मानता है जो अपने भीतर के असामान्य के उग्र आदेशों को न मानने की सामर्थ्य रखता हो। जब उसका मित्र सदा उसके भीतर के असामान्य को उकसा देता था, तब वह स्वयं को बहुत हीन अनुभव करने लगता था।

प्रश्न 11.
साहित्य की उपयोगिता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
साहित्य की उपयोगिता के बारे में किसी प्रकार भी संदेह नहीं किया जा सकता। साहित्य अतीत का ज्ञान तो कराता ही है साथ ही साथ वर्तमान काल का चित्र भी प्रस्तुत करता है और भविष्य के निर्भाण की प्रेरणा देता है। यह स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करता है। साहित्य मानव-जीवन के लिए शाश्वत मूल्यों का ज्ञान कराता है। भविष्य के निर्माण की प्रेरणा देता है। साहित्य के बिना राष्ट्र की सभ्यता एवं संस्कृति निर्जीव है।

प्रश्न 12.
जातिवाद राजनीति पर कैसे पकड़ मजबूत करता जा रहा है ?
उत्तर :
जातिवाद प्रत्येक क्षेत्र में एक बुराई के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। जातिवाद मानव को मानव से अलग करने का काम कर रहा है। आज यह राजनीति में भी आ गया है। जाति के आधार पर अनेक राजनीतिक दल बने हुए है जो जाति विशेष को बढ़ाषा देने पर बल देते हैं। उनके द्वारा ऐसा करने से लोगों में संघर्ष की भावना उत्पन्न होती है जो ऊँच-नीच के भेद बढ़ाने का काम करती है। आज समाज का प्रत्येक अंग एवं क्षेत्र जातिवाद की जकड़ में है। आज देश में कुछ प्रांत जाति के आधार पर आरक्षण की माँग कर रहे हैं तथा अलग प्रांत की माँग भी कर रहे हैं। अनेक जातिगत संगठन क्रियाशील हैं। जातिवाद समरस समाज के लिए एक कोढ़ के समान है।

प्रश्न 13.
संयुक्त परिवारों में विघटन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
आजादी के बाद से ही हमारे समाज में संयुक्त परिवार की परंपरा का प्रचलन कम होता जा रहा है। आज का युवक, युवती संयुक्त परिवार में घुटन अनुभव करने लगे हैं। उन्हें माता-पिता की रोक-टोक चोट के समान लगती है। वे किसी-न-किसी कारण को आधार बनाकर स्वर्य को संयुक्त परिवार से अलग करते जा रहे है। पहले व्यक्ति कमाकर लाता था और मुखिया को अपनी कमाई साँप देता था। तब परिवार की सभी ज्ञिम्मेदारियों से निश्चिंत हो जाता था, लेकिन अब एकल परिवार में उसे दोहरी, तिहरी और न जाने कितनी जिम्मेदारियों को निभाना पड़ रहा है।

प्रश्न 14.
लेखक अपने मित्र से डरकर बातें क्यों कर रहा था ?
उत्तर :
लेखक अपने मित्र से डरकर बातें कर रहा था, क्योंकि वह उसे किसी प्रकार की चोट नहीं पहुँचाना चाहता था। वह चुपचाप उसकी बात सुन रहा था। आवश्यकता होने पर मुसकराकर अपनी बात कह देता था। लेखक ने उससे पूछा कि पिछले बीस वर्षों की सबसे महान घटना क्या है ? इस पर उसके मित्र ने उत्तर दिया कि संयुक्त परिवारों का विघटन होना। लेखक मित्र का उत्तर सुनकर स्तब्ध रह गया।

प्रश्न 15.
गजानन माधव मुक्तिबोध की भाषा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
लेखक ने अपनी भावनाओं को अत्यंत ही सहज्र, तत्सम-प्रधान भाषा तथा आत्मकथात्मक शैली में रोचकता से प्रस्तुत किया है। लेखक ने मेधावी, स्पर्श, सूक्ष्म जैसे तत्सम शब्दों के साथ कड़ी, नामी-गिरामी, कतई जैसे देशज शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया है। लेखक का कवि-हुदय भी कुछ जगह मुखरित हुआ है। लेखक के कथन में प्रतीकात्मकता एवं लाक्षणिकता का समावेश है। लेखक ने अपने निबंध में यथार्थ का अंकन बड़ी ही कुशलता से किया है।

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Class 11 Hindi Antra Chapter 8 Question Answer उसकी माँ

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 8 उसकी माँ

Class 11 Hindi Chapter 8 Question Answer Antra उसकी माँ

प्रश्न 1.
क्या लाल का व्यवहार सरकार के विरुद्ध षड्यंत्रकारी था ?
उत्तर :
लाल देशभक्त, क्रांतिकारी युवक था। वह अपने देश को ब्रिटिश सरकार की गुलामी से आजाद कराना चाहता था। इसलिए वह अपने अन्य क्रांतिकारी मित्रों के साथ मिलकर देश को स्वतंत्र कराने की योजनाएँ बनाता रहता था। उसका यह कार्य हमारी दृष्टि से उसका स्वदेश प्रेम है। इसे त्रिटिश सरकार अपने विरदद्ध घड्यंत्र मानती थी। त्रिटिश सरकार की आलोचना करने तथा उनकी चापलूसी न करने के कारण वह उनकी नजर में षड्यंत्रकारी था।

प्रश्न 2.
पूरी कहानी में जानकी न तो शासन-तंत्र के समर्थन में है न विरोध में, किंतु लेखक ने उसे केंद्र में ही नहीं रखा बल्कि कहानी का शीर्षक बना दिया। क्यों ?
उत्तर :
शीर्षक की सार्थकता के लिए यह ज़रूरी है कि शीर्षक कहानी के मूल भाव, उद्देश्य प्रमुख घटना अथवा प्रमुख पात्र से जुड़ा हुआ हो। प्रस्तुत कहानी का शीर्षक जिज्ञासामय है। कहानी पढ़ते ही पाठक के मन में यह जानने की इच्छा होती है कि उसकी माँ कौन है ? यह किसकी माँ है ? कहानी को पढ़ते ही यह जिज्ञासा शांत हो जाती है। पाठक समझ जाता है कि इस कहानी के क्रांतिकारी युवक लाल की माँ की ममता, सरलता, दृढ़ता, सेवा और त्याग का वर्णन है। कहानी की घटनाओं में माँ का बार-बार उल्लेख हुआ है।

सर्वं्र उसी के व्यक्तित्व की छाप दिखाई देती है। वह केवल अपने इकलौते बेटे लाल से ही प्यार नहीं करती बल्कि लाल के अन्य सभी साथियों के प्रति भी वह ममतामयी है। वह भारतमाता के समान है। वह सब का कल्याण करना चाहती है। लाल तथा उसके साथियों को फाँसी होते ही उसके भी प्राण पखेरू उड़ जाते हैं। अत: कहा जा सकता है कि कहानी का शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है क्योंकि सारी कहानी में जानकी किसी-न-किसी रूप में उपस्थित है। वह परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए अपना भी बलिदान दे देती है।

प्रश्न 3.
चाचा जानकी तथा लाल के प्रति सहानुभूति तो रखता है, किंतु वह डरता है। यह डर किस प्रकार का है और क्यों है ?
उत्तर :
चाचा एक जर्मीदार है। उसे ब्रिटिश सरकार से बहुत सहायता मिलती है। वह भी उनकी चापलूसी करता रहता है। जब पुलिस सुपरिटेंेेंट उससे लाल के बारे में पूछताछ करने आता है तो जाते हुए उसे चेतावनी दे जाता है कि वह लाल और उसके परिवार से दूर ही रहे। इससे वह डर जाता है कि कही उसे भी ब्रिटिश सरकार का कोपभाजन न बनना पड़े। इसी डर से वह चाहते हुए भी लाल तथा उसके परिवार की कोई सहायता नहीं कर पाता।

प्रश्न 4.
इस कहानी में दो तरह की मानसिकता का संघर्ष, एक का प्रतिनिधित्व लाल करता है और दूसरे का उसका चाचा। आपकी नज्कर में कौन सही है ? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर :
हमारी नजर में लाल की सोच बिलकुल सही है। वह गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़े हुए अपने देश को आज़ाद कराना चाहता है। उसका मानना है कि जो व्यक्ति समाज या राष्ट्र के नाश पर जीता हो, उसका सर्वनाश हो जाना चाहिए। ब्रिटिश सरकार जोंक की तरह भारतवासियों के धर्म, प्राण और धन को चूसती चली जा रही है। इन्होंने ऐसे अपमानजनक और मानवताहीन नीति-मर्दक कानून गढ़े हैं जिससे भारतवासियों का निरंतर शोषण होता है। ऐसी सरकार का विरोध करते हुए अपने प्राणों का बलिदान देनेवाले लाल की मानसिकता का हम समर्थन करते हैं।

प्रश्न 5.
उन लड़कों ने कैसे सिद्ध किया कि जानकी सिर्फ़ माँ नहीं भारतमाता है ? कहानी के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
उन लड़कों ने जानकी को भारतमाता सिद्ध करते हुए बताया कि उसका सिर हिमालय, माथे की दोनों गहरी रेखाएँ गंगा और यमुना, नाक विंध्याचल, ठोढ़ी कन्याकुमारी, झुरियाँ-रेखाएँ पहाड़ और नदियाँ तथा बाएँ कंधे पर लहराते हुए बाल बर्मां है। इस प्रकार लाल की माँ भारत-माता बन जाती है।
जानकी के चरित्र की अन्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) परिच्रय – पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ में लाल की माँ जानकी का चरित्र-चित्रण अत्यंत प्रभावशाली रूप से किया गया है। उसके पति रामनाथ का देहांत हो चुका है। उसकी एकमात्र संतान उसका पुत्र लाल है। वह वृद्धा विधवा स्त्री है। उसके सिर के बाल सक़ेद हो घुके हैं तथा चेहरे पर अनेक झुरियाँ पड़ गयी हैं।

(ii) सरलता – लाल की माँ अत्यंत सरल महिला है। लाल और उसके मित्रों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध रचे जा रहे षड्यंत्र को वह समझ नहीं पाती। जर्मीदार द्वारा लाल और उसके मित्रों की शिकायत करने पर भी वह उन्हें निर्दोष मानती है। इसलिए ज़्मीदार को कहती है कि वह ही बच्चों को समझा दे। उसके पुत्र तथा पुत्र के मित्रों पर जब मुकदमा चलता है तो वह अपनी सरलता के कारण ही अंग्रेज सरकार को न्यायी समझकर बच्चों की रिहाई के प्रति आशावान थी। वह किसी प्रकार का छल-कपट नहीं जानती।

(iii) ममता – लाल की माँ के हदय में ममता का सागर उमड़ता रहता है। वह लाल के साथियों को भी लाल के समान ही स्नेह करती है। बंगड़ जब उसे भारतमाता प्रमाणित करता है तो वह भाव-विभोर हो उठती है। लाल तथा उसके मित्रों को वह भूखा नही देख पाती। उनके लिए सदा कुछ भी करने के लिए तैयार रहती है। जेल में उनके लिए, अपने घर की बस्तुएँ तक बेचकर, खाना बनाकर ले जाती है।

(iv) दूड़ता – लाल की माँ संकट के क्षणों में भी विचलित नहीं होती अपितु प्रत्येक मुसीबत का दृढ्तापूर्वक सामना करती है। अपने पति का देहांत होने पर भी वह सामान्य स्त्रियों के समान नहीं रोई थी। लाल तथा उसके मित्रों के जेल चले जाने पर भी उसने प्रत्येक स्थिति का दृढ़ता से सामना किया था तथा किसी-न-किसी प्रकार से वकील करके उनकी पैरवी करती रही थी।

(v) सेवा – लाल की माँ में सेवा-भाव कूट-कूटकर भरा हुआ है। लाल और उसके साथियों की सेवा करने में उसे बहुत आनंद् प्राप्त होता है। वह जेल में उनके लिए पराँठे, हलवा, तरकारी आदि बनाकर ले जाती है। बच्चों को मुक्त कराने के लिए बह वकीलों के सामने गिड़गिड़ाने से भी नहीं झिझकती थी। उसने उन्हैं जेल से छुड़ाने के लिए बहुत प्रयास किए थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि लाल माँ की एक ऐसी असाधारण नारी है जो अपनी सरलता, ममता, दृढ़ता एवं सेवाभाव से पाठक को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती है ।

प्रश्न 6.
विद्रोही की माँ से संबंध रखकर कौन अपनी गरदन मुसीबत में झालता ? इस कथन के आधार पर उस शासन-तंत्र और समाज-व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
उस समय देश ब्रिटिश सरकार का गुलाम था। उनकी शासन व्यवस्था मानवताहीन नीतियों से युक्त थी। वे भारतीय जनता का शोषण करते थे तथा गरीबों को चूसकर अपना बल बढ़ा रहे थे। देशभक्तों को वे भयंकर यातनाएँ देते थे। पुलिस मनमानी करती थी। अदालत बिना उचित सुनवाई किए मनमाना दंड दे देती थी। समाज में लोग ब्रिटिश सरकार की कार्रवाइयों से भयभीत रहते थे। सभी अपनी जान बचाने की सोचते थे। उनके अनुसार ‘आप सुखी तो जग सुखी’ कथन के अनुसार जीवन व्यतीत करना ही ठीक है। वे इतने भयभीत रहते थे कि चाहकर भी किसी स्वतंत्रता ग्रेमी की सहायता नहीं करते थे। सभी स्वार्थी तथा चापलूस बन गए थे।

प्रश्न 7.
चाचा ने लाल का पेंसिल-खचित नाम पुस्तक की छाती पर से क्यों मिटा डालना चाहा ?
उत्तर :
चाचा ने लाल का पेंसिल से पुस्तक के पहले पन्ने पर लिखा नाम इसलिए मिटा डालना चाहा कि कहीं पुलिसवाले तलाशी लेने आएँ तो उन्हैं यह किताब न मिल जाए। इसपर लिखे लाल के नाम से उसका संबंध भी लाल तथा अन्य क्रांतिकारियों के साथ जोड़कर उसे भी ब्रिटिश सरकार का विरोधी जानकर दंड मिल सकता है।

प्रश्न 8.
‘ऐसे दुष्ट, व्यक्ति-नाशक राष्ट्र के सर्वनाश में मेरा भी हाथ हो’ के माध्यम से लाल क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से लाल यह कहना चाहता है कि उसकी इच्छा है कि वह ऐसी ब्रिटिश सरकार का अंत करने में अपना पूरा योगदान देना चाहता है जो अपनी दुष्टता से भारतीय जनता को गुलाम बनाकर उनका शोषण कर रही है। वह इसके लिए आत्म-बलिदान देने के लिए भी तैयार है। इसलिए वह हँसते-हैसते फॉँसी चढ़ जाता है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) पुलिसवाले केवल संदेह पर भले आदमियों के बच्चों को त्रास देते हैं, मारते हैं, सताते हैं। यह अत्याचारी पुलिस की नीचता है। ऐसी नीच शासन-प्रणाली को स्वीकार करना अपने धर्म को, कर्म को, आत्मा को, परमात्मा को भुलाना है। धीरे-धीरे घुलाना-मिटाना है।
(ख) चाचा जी, नष्ट हो जाना तो यहाँ का नियम है। जो सँवारा गया है वह बिगड़ेगा ही। हमें दुर्बलता के डर से अपना काम नहीं रोकना चाहिए। कर्म के समय हमारी भुजाएँ दुर्बल नहीं, भगवान की सहत्र भुजाओं की सखियाँ हैं।
उत्तर :
(क) ब्रिटिश सरकार की पुलिस भारतीयों के अच्छे घर के बच्चों को मात्र संदेह के आधार पर दंड देती थी। इसलिए इस प्रकार की अत्याचारी शासन-प्रणाली को स्वीकार करना क्रांतिकारी देश-भक्त अपने धर्म, कर्म, आत्मा और परमात्मा के विरुद्ध मानकर उनका विरोध करते थे।
(ख) कहानी में लाल इस बात को स्वीकार करता है कि अंग्रेज़ों की शक्ति की तुलना में भारत को स्वतंत्र करानेवालों की शक्ति बहुत कम है किंतु इसपर भी वह देश को स्वतंत्र कराने के अपने निश्चय पर अडिग है। उसे विश्वास है कि जब कोई मनुष्य दृढ़ निश्चयपूर्वक किसी कार्य को संपन्न करने में जुए जाता है तो उसमें कार्य करने की अपार क्षमता आ जाती है। कर्म में लीन व्यक्ति को परमात्मा भी पूरी सहायता देते हैं। कर्मशील व्यक्ति को ऐसा प्रतीत होता है मानो वह अकेला नहीं है अपितु भगवान के सहस्तों के हाथ भी उसकी सहायता कर रहे हैं। भाव यह है कि शारीरिक दृष्टि से कमजोर व्यक्ति भी निष्ठा और लगन से कठिन-से-कठिन कार्य भी सफलतापूर्वक कर लेता है।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
पुलिस के साथ दोस्ती की जानी चाहिए या नहीं ? अपनी राय लिखिए।
प्रश्न 2.
लाल और उसके साधियों से आपको क्या प्रेरणा मिलती है?
प्रश्न 3.
‘उसकी माँ’ के आधार पर अपनी माँ के बारे में कहानी लिखिए।
उत्तर :
1. हमारे विचार से पुलिस से न तो दोस्ती करनी अच्छी और न ही दुश्मनी। हमें इनके साथ संतुलित व्यवहार करना चाहिए। जितनी आवश्यकता हो उतनी उनसे बातचीत करनी चाहिए। उनसे व्यर्थ में तर्क-वितर्क नहीं करना चाहिए। पुलिसवालों से अधिक घुलना-मिलना भी नहीं चाहिए। कई बार हम अनचाहे ही कुछ ऐसा कह या कर जाते हैं कि उसका वे नाज़ायज लाभ उठा सकते हैं। इसलिए पुलिसवालों से केवल उतना ही व्यवहार रखना चाहिए जिससे न तो अपनी हानि हो और न ही वे हमें कोई हानि पहुँचा सकें। वे भी प्रसन्न रहें और हम भी सामान्य जीवन जी सकें।

2. लाल और उसके साथियों से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हम राष्ट्र-विरोधी ताकतों तथा शोषणकर्ताओं का डटकर विरोध करें तथा अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए, उसे स्वाधीन बनाए रखने के लिए अपने प्राणों तक का बलिदान दे दें।

3. मेरी माँ सबसे प्यारी तथा सबसे न्यारी है। वह सुबह कब उठ जाती है मुझे पता ही नहीं चलता। उसके कोमल हाथ मुझे सहलाते हुए उठाते हैं और मैं नाटक करते हुए न उठने का बहाना किए रहती हूँ। उनका प्यार मुझे हर कदम पर उत्साहित करता रहता है। वे मेरी माँ के साथ-साथ सबसे प्यारी सखी भी हैं। मेरे मन की सब बातें बिना मेंरे कहे ही त्ये जान जाती हैं। वे मेरी शिक्षिका, पथ-प्रदर्शिका और न जाने क्या-क्या हैं ? वे मेरी सुख-दुख की घड़ियों में मेरे सबसे नजदीक हैं। मुझे अपनी माँ पर गर्व है।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 8 उसकी माँ

प्रश्न 1.
पुलिसवाले ने लाल के चाचा को लाल से सावधान और दूर रहने का सुझाव क्यों दिया ?
उत्तर :
लाल के चाचा कट्टर राजभक्त थे। पुलिस अधिकारी ने उन्हें लाल से सावधान रहने के लिए इसलिए कहा क्योंकि लाल एक क्रांतिकारी तथा राजद्रोही युवक था। वह ब्रिटिश सरकार से देश को आज्ञाद कराना चाहता था। ऐसे राजट्रोही से दूर रहने में ही लाल के चाचा की कुशलता थी नहीं तो उन्हें भी राजद्रोह के अपराध में दंड मिल सकता था।

प्रश्न 2.
इस कहानी में अंग्रेज़ सरकार को धर्मात्मा, विवेकी और न्यायी सरकार क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
इस कहानी में ज्रमींदार ने अंग्रेज़ सरकार को धर्मात्मा, विवेकी और न्यायी सरकार कहा है क्योंकि वह अंग्रेज़ सकार का कट्टर भक्त है तथा पिछली कई पीढ़ियों से उसका परिवार राजभक्त रहा था। उसे सरकार से सब प्रकार की सुख-सुविधाएँ भी प्राप्त थीं। वह इन सुविधाओं से वंचित नहीं होना चाहता था। इस कारण वह अंग्रेज़ सरकार को धर्मात्मा, विवेकी तथा न्यायी मानता है।

प्रश्न 3.
“धीरे-धीरे जोंक की तरह हमारे देश का धर्म, प्राण और धन चूसती चली जा रही है यह शासन-प्रणाली।” लाल के साथियों के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं ?
उत्तर :
हम लाल के मिश्रों के इस कथन से पूरी तरह सहमत हैं। अंग्रेज मूल रूप से व्यापारी थे जो शासक बनकर हमारा निरंतर शोषण करते रहे। लालच और भय दिखाकर उन्होंने ईसाई धर्म का प्रचार किया तथा हिंदुओं को ईसाई बना लिया। भारतवासियों पर उन्होंने अमानुषी अत्याचार किए तथा उनकी हत्याएँ भी कीं। यहाँ के उद्योग-धंधों को नष्ट कर विदेशी माल बेच-बेचकर इस देश की आर्थिक स्थिति को भी उन्होंने शोचनीय बना दिया था। इस प्रकार जन तक अंग्रेज़ भारत में रहे वे जोंक की तरह इस देश का धर्म, प्राण और धन चूसते रहे।

प्रश्न 4.
लाल के साथियों का माँ ने जो चित्र खींचा, उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
माँ के अनुसार लाल के साथी लापरवाह और बातूनी हैं। उनकी बातों का कोई अर्थ नहीं होता। वे अत्यंत सीधे-साधे तथा भोले-भाले हैं। वे सदा खुलकर हँसते रहते हैं। उसे भारत माँ कहकर पुकारते हैं। वे अपराधी नहीं हैं। वे सरल प्रकृति के तथा छल-कपट से मुक्त हैं।

प्रश्न 5.
‘उसकी माँ’ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘उग्र’ जी द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ का प्रमुख उद्देश्य परतंत्र भारत के राजनीतिक वातावरण का यथार्थ चित्रण करते हुए यह बताना है कि किस प्रकार उस युग में देश को स्वतंत्र कराने के लिए लाल जैसे नवयुवक हैंसते-हैसते अपने प्राणों को बलिदान कर देते थे। लाल जैसे युवकों की माताएँ भी जानकी के समान अपने पुत्र को भी मातृभूमि के लिए न्योछावर कर देती थीं। इस कहानी से यह भी ज्ञात होता है कि कुछ सुविधाभोगी वर्ग के लोग अपने सुखों के लिए अंग्रेजों की गुलामी करना पसंद करते थे।

प्रश्न 6.
‘उसकी माँ’ कहानी के आधार पर लाल का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ में लाल का महत्वपूर्ण स्थान है। वह लंबा, सुडौल, सुंदर तथा तेजस्वी युवक है। वह स्वर्गीय रमानाथ तथा जानकी की एकमात्र संतान है। वह कॉलेज में अध्ययन करता है। वह एक जागरूक युवक है। वह पराधीन भारत पर हो रहे अंग्रेजी सरकार के अत्याचार को सहन नहीं कर सकता अतः वह क्रांति का मार्ग अपना लेता है। उसके हृदय में देशभक्ति की भावनाएँ हिलोरें ले रही हैं। वह भारत की पराधीनता की जजीरों को छिन्न-ििन्न करने के लिए आतुर है।

उसे अपनी शक्ति और सामर्थ्य पर विश्वास है। उसमें नेतृत्व का गुण विद्यमान है। उसके साथी उसके इशारे पर अपनी जान तक न्योछावर करने के लिए तैयार रहते हैं। पुलिस-विभाग में भी वह क्रांतिकारियों के नेता के रूप में जाना जाता है। लाल के घर का घेराव करके पुलिस उसे तथा उसके साथियों को पकड़कर ले जाती है। स्वतंत्रता प्रेमी होने के कारण लाल निडर एवं साहसी है। जमीदार उसे समझाता है कि वह इन दुर्बल हाथों से शब्तिशाली सरकार से टक्कर नहीं ले सकता। टक्कर लेने का अर्थ नष्ट होना है। तभी वह निडर होकर कहता है, कर्म के समय हमारी भुजाएँ दुर्बल नहीं, भगवान की सहस्न भुजाओं की सखियाँ हैं।” लाल देश-भक्त होने के साथ-साथ मातृ-भक्त भी है। वह अपनी माँ से बहुत प्यार करता है। वह अपनी फाँसी की बात माँ से छ्छिपाकर रखता है। वह जानता है कि माँ का कोमल हूदय इतने बड़े आघात को सहन नहीं कर पाएगा। अत: लाल एक देश-भक्त, क्रांतिकारी, निर्भीक, उत्साही तथा मातृ-भक्त युवक है।

प्रश्न 7.
‘उसकी माँ’ कहानी के आधार पर लाल के चाचा अर्थात ज़र्मींदार का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर :
उग्र द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ में ज़मींदार का चरित्र विशेष महत्व रखता है। वह अंग्रेजी सरकार का पक्षधर है। पुलिस-पति जब लाल के विषय में पूछताछ करने के लिए आता है तो वह अपनी राजभक्ति स्पष्ट करता हुआ कहता है-‘ हम तो सात पुश्त से सरकार के फरमांबरदार हैं।’ वह लाल की माँ के सामने भी अंग्रेज्ज सरकार की प्रशंसा करता है। लाल भी उसे कट्टर राजभक्त कहता है। उसके पुस्तकालय में सभी पुस्तकें अंग्रेज़ी लेखकों की हैं।

ज़र्मीदार को लाल तथा उसकी माँ से सहानुभूति है। लाल का पिता रमानाथ जब तक जीवित रहा, उसकी ज्रींदारी का मैनेजर रहा। ज़र्मींदार की लाल तथा उसकी माँ के प्रति सहानुभूति तो है किंतु अंग्रेज़ सरकार के भय से वह उनकी कोई सहायता नहीं कर पाता। वह अपनी किसी पुस्तक पर लाल के हस्ताक्षर देखकर भी घबरा उठता है। वह रबड़ उठाकर उस पुस्तक पर से उसका नाम मिटाने लगता है। इस प्रकार प्रस्तुत कहानी में ज्रींदार पराधीन भारत के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है जिसने अपने स्वार्थ की पूर्ति तथा अपनी सुख-सुविधाओं के लिए सरकार का साथ दिया था।

प्रश्न 8.
लाल ने अपने पत्र में अपनी माँ को क्या लिखा था ?
उत्तर :
यह पत्र लाल ने जेल से अंतिम बार अपनी माँ को लिखा था। लाल का चाचा लाल की माँ को यह पत्र पढ़कर सुनाता है। लाल ने अपनी माँ को संबोधित करके इस पत्र में लिखा था कि माँ, जिस दिन तुम्हें मेरा यह पत्र मिलेगा उसी दिन सुबह वह प्रभातकालीन सूर्य के किरण रूपी रथ पर सवार होकर दूसरे लोक चला जाएगा अर्थात उसे फाँसी हो जाएगी। वह कहता है कि अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त कर वह उससे मिल सकता था पर उसे इस मिलन में कोई लाभ प्रतीत नही हो रहा था। उसे विश्वास है कि उसकी माँ अनेक जन्मों में भी उसकी माँ ही रहेगी। अतः वह उसे समझाता है कि वह उससे कहीं दूर नहीं जा रहा है। वह उसे विश्वास दिलाता है कि जब तक वायु बह रही है, सूर्य अपना प्रकाश फैला रहा है, सागर लहरा रहा है तब तक उसे उसकी ममतामयी गोद से कोई भी दूर नहीं कर सकता। भाव यह है कि वह सदा उसकी माँ का बेटा बनकर ही जन्म लेना चाहता है।

प्रश्न 9.
‘यह बुरा है, लाल की माँ’ यह कथन किसका है और इस कथन का अभिप्राय क्या है ?
उत्तर :
कहानी में यह कथन ज़्मीदार का है। जब ज़र्मींदार को लाल की माँ से यह ज्ञात होता है कि लाल तथा उसके साथी ब्रिटिश सरकार से देश को आज़ाद कराने की बातें करते रहते हैं तो वह लाल की माँ को समझाते हुए कहता है कि इनकी ये बारें बहुत खतरनाक हैं क्योंकि सरकार के विरुद्ध बोलने से सरकार उन्हें कभी भी दंडित कर सकती है। इस पंक्ति में लाल का चाचा लाल को समझाता है कि लाल का अंग्रेज्ञों से विरोध, उसके लिए हानिकारक है।

प्रश्न 10.
लाल के मित्र आपस में क्या बातें करते हैं ?
उत्तर :
लाल का चाचा जब लाल की माँ से पूछता है कि लाल और उसके मित्र किस प्रकार की बातें करते हैं तो लाल की माँ उन्हें बताती है कि भारतमाता की तथा अन्य अनेक प्रकार की बातें करते रहते हैं। एक दिन वे अत्यंत उत्तेजित स्वर में कह रहे थे कि सरकार लड़कों को पकड़ रही है। वे कहते थे कि पुलिस केवल संदेह के आधार पर भी अच्छे-अच्छे परिवार के लड़कों को पकड़कर ले जाती है तथा उन्हें बहुत कष्ट देती है। वे उन बच्चों को मारते, पीटते और अनेक प्रकार से सताते भी हैं। इसे वे लड़के पुलिस की अत्याचार और नीचता मानते हैं। ठन लड़कों के अनुसार इस प्रकार की नीच हरकतोंवाली शासन-प्रणाली को स्वीकार करके अपने धर्म, कर्म, आत्मा तथा परमात्मा को धोखा देना है। इस प्रकार हम अपने आपको धीरे-धीरे नष्ट कर देते हैं तथा हमारा अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है।

प्रश्न 11.
ब्रिटिश सरकार भारतीयों को शिक्षित क्यों नहीं करना चाहती ?
उत्तर :
लाल की माँ लाल के चाचा को यह बता रही है कि लाल और उसके मित्र आपस में किस प्रकार की बातें करते हैं। वह बताती है कि एक दिन लाल का एक मित्र कह रहा था कि ब्रिटिश सरकार भारतीयों को इसलिए पढ़ाना-लिखाना नहीं चाइती कि कहीं वे अपना अधिकार न माँगने लगें। वह कहता है कि लोग पढ़-लिखकर जागरूक न हो जाएँ इस कारण त्रिटिश सरकार भारतीयों को पढ़ने-लिखने नहीं देती तथा जो पढ़ते-लिखते है उन्हें भी अंग्रेजी ढंग की शिक्षा दी जाती है।

अंग्रेजी सरकार ने इस कारण ऐसे अपमानजनक तथा मानवता से रहित नीति-विरुद्ध नियम बनाए हैं जिससे लोगों में वीर भावनाएँ न पनप सके तथा वे उनकी गुलामी से आजाद न हो सकें। यह सरकार गरीबों का शोषण कर अपनी सेना को शराब, कबाब आदि खिला-पिला कर मोटा-ताजा बनाए रखती है जिससे भारतीयों पर अत्याचार किया जा सके। यह सरकार धीरि-धीरे इस देश में धर्म, मनुष्यों तथा धन संपत्ति को इस प्रकार नष्ट करती जा रही है जैसे जोंक खून चूसती है। इस प्रकार से ब्रिटिश सरकार भारतीयों का पूर्ण रूप से शोषण कर रही है।

प्रश्न 12.
‘उसकी माँ’ कहानी किसकी रचना है तथा इसमें कहानीकार ने क्या कहना चाहा है ?
उत्तर :
‘उसकी माँ’ कहानी लेखक पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा रचित है। यह कहानी लेखक की स्वाधीनता से प्रेरित कहानी है। इस कहानी में लेखक ने देश को आजाद कराने के लिए कुछ युवकों द्वारा दिए गए बलिदान का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है। साथ ही साथ यह भी बताया है कि किस प्रकार एक बूढ़ी माँ अपने इकलौते पुत्र को देश पर न्योछावर कर देती है।

प्रश्न 13.
‘उसकी माँ’ कहानी का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
‘उसकी मां’ कहानी में उग्र जी ने स्वतंत्रता संग्राम में एक माँ की ममता, युवकों का अपने देश के प्रति प्रेम, समर्पण, अंग्रेजों का दमन, ज्ञमींदारों की राजशक्ति आदि का बड़ा ही हदय चिदारक चित्रण किया है। यह कहानी लोगों में देशप्रेम की भावना जागृत करती है। यह कहानी रूस के महान लेखक मैक्सिम गोर्की की महान रचना ‘माँ’ की याद दिलाती है। यह कहानी भारतमाता और माँ दोनों की ओर हमारा ध्यान लगाती है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण यह अत्यंत मार्मिक बन पड़ी है।

प्रश्न 14.
‘उसकी माँ’ कहानी में उग्र जी की भाषा शैली स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
उग्र जी हिंदी साहित्य जगत में विद्रोही कहानीकार के रूप में विख्यात हैं। इनकी रचनाओं में राष्ट्रीय भावना कूट-कूटकर भरी हुई है। उनकी भाषा सरल, सहज एवं भाषानुकूल है। उनकी भाषा सरल, सुबोध तथा मर्मस्पर्शी भी है। उनके द्वारा गठित छोटे-छोटे वाक्य देखते ही बनते हैं। मुहावरों के प्रयोग से भाषा में रोचकता आ गई है। ‘उसकी माँ’ कहानी में उग्र जी ने आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग किया है। उन्होंने चित्रात्मक शैली का भी बड़ा सुंदर-सहज प्रयोग किया है। इनकी कहानियों की संवाद-योजना बड़ी ही सटीक है।

प्रश्न 15.
नई पीढ़ी देश की दुर्दशा का ज़िम्मेदार किसे मानती है और क्यों ?
उत्तर :
देश की युवा पीढ़ी देश की दुरावस्था का जिम्मेदार शासन-तंत्र को मानती है। वह इस शासन तंत्र को उखाड़ फेंकना चाहती है। दुष्ट, व्यक्ति-नाशक राष्ट्र के सर्वनाश में अपना योगदान ही इस पीढ़ी का सपना है। यथार्थ के तूफ़ानों से बेपरवाह यह पीढ़ी जानती है कि नष्ट हो जाना तो यहाँ का नियम है। जो सँवारा गया है वह बिगड़ेगा ही। हमें दुर्बलता के डर से अपना काम नहीं रोकना चाहिए।

प्रश्न 16.
नई पीढ़ी और पूर्ववर्ती पीढ़ी के विचारों में किस प्रकार का अंतर है ? पाठ के आधार पर समझाइए।
उत्तर :
पूर्ववर्ती पीढ़ी का बुद्धिजीवी समाज अपनी सुविधा के लिए राजसत्ता के तलवे चाटने को तैयार है। वहीं नई पीढ़ी का विद्रोही स्वर राजसत्ता के विद्रोह की मशाल लिए खड़ा है। इन दोनों के बीच एक माँ जो अपना बेटा चाहती है। समाज के दो सिरों के बीच खड़ी ममतामयी माँ लाख कोशिशों के बावजूद व्यवस्था की चक्की से अपने बेटे को बचा नहीं पाती है।

प्रश्न 17.
लाल के मित्र ने लाल की माँ को भारतमाता का स्वरूप कैसे दिया ?
उत्तर :
एक दिन जब लाल की माँ उसके मित्रों को हलवा परोस रही थी तब उसके एक मित्र ने उसकी माँ की ओर देखकर कहा-“माँ तू तो ठीक भारतमाता-सी लगती है। तू बूढ़ी, वह बूढ़ी। उसका उजला हिमालय है, तेरे केश। हाँ नक्शे से साबित करता हूँ। तू भारतमाता है। सिर तेरा हिमालय……… माथे की दोनों गहरी बड़ी रेखाएँ गंगा और यमुना, नाक विंध्याचल, ठोढ़ी कन्याकुमारी तथा छोटी बड़ी झुरिंयाँ-रेखाएँ भिन्न-भिन्न पहाड़ और नदियाँ हैं। ज़रा पास आ मेंरे । तेरे केशों को पीछे से आगे बाएँ कंधे पर लहरा दूँ। वह बर्मा बन जाएगा। बिना उसके भारत माता का शृंगार शुद्ध न होगा।”

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 9 Question Answer भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 9 भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

Class 11 Hindi Chapter 9 Question Answer Antra भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

प्रश्न 1.
पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि ‘इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाए वही बहुत कुछ है?’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
लेखक ने यह शब्द इसलिए कहे हैं क्योंकि हमारे देश के लोग बहुत आलासी हैं। अंग्रेजों के राज्य में भारतवासियों को उन्नति करने के बहुत अवसर मिले थे। परंतु हम अपनी आलसी प्रवृत्ति के कारण कुछ नहीं कर सके। इसलिए उन दिनों जो कुछ भी थोड़ा-बहुत किसी ने किया था उसी को लेखक बहुत कुछ मानने के लिए कह रहा है। उसके अनुसार कुछ न करने तथा भाग्य भरोसे बैठे रहने से तो अच्छा यही है कि जो हो रहा है, वही बहुत कुछ है।

प्रश्न 2.
‘जहाँ रॉबर्ट साहब बहादुर जैसे कलेक्टर हों, वहाँ क्यों न ऐसा समाज हो’ वाक्य में लेखक ने किस प्रकार के समाज की कल्पना की है ?
उत्तर :
रॉबर्ट साहब बहादुर कलेक्टर थे। लेखक ने अकबर के समाज के समान उनके समाज के बादशाह की कल्पना की थी। उनके वहाँ होने से बलिया का समस्त संभ्रांतवर्ग वहाँ एकत्र था। ऐसा लग रहा था मानो रॉबर्ट साहब बहादुर अकबर हैं तथा उनके मुंशी चुतर्भुज सहाय तथा बिहारीलाल अकबर के दरबारी अबुल फ़ज़ल और टोडरमल हैं। उसे यह समाज अत्यंत सभ्य, अनुशासित तथा श्रेष्ठ लग रहा था।

प्रश्न 3.
‘जिस प्रकार ट्रेन बिना इंजिन के नहीं चल सकती ठीक उसी प्रकार ‘हिंदुस्तानी लोगों को कोई चलानेवाला हो’ से लेखक ने अपने देश की खराबियों के मूल कारण खोजने के लिए क्यों कहा है ?
उत्तर :
हिंदुस्तानी लोगों की रेल की गाड़ी से तुलना इसलिए की गई है क्योंकि जैसे रेल की गाड़ी को चलाने के लिए इंजन की आवश्यकता होती है वैसे ही हिंदुस्तानी लोग स्वयं काम करने के आदी नहीं होते। उनसे काम करवाने के लिए इंजन समान मुखिया की आवश्यकता होती है। इसलिए वह देशवासियों को उन मूल कारखानों को खोजने के लिए कहता है जिनसे देश में खराबियाँ पैदा हो गई हैं। इन कमियों को ढूँढ़कर इन्हें दूर करने से ही हम अपने देश की उन्नति में सहायक हो सकते हैं तथा बिना किसी मुखिया के आगे बढ़ सकते हैं।

प्रश्न 4.
देश की सब प्रकार से उन्नति हो इसके लिए लेखक ने जो उपाय बताए हैं उनमें से किन्हीं चार का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
हर क्षेत्र में उन्नति करनी होगी, जैसे धर्म में, घर के काम में, रोजगार में, शिक्षा में और शारीरिक और मानसिक विकास में, समाज की सोच में, छोटे-बड़े में भेदभाव को दूर करने आदि, सब में उन्नति करनी होगी। ऐसी बातों और चीजों से दूर रहना होगा जो देश की उन्नति में बाधक हों। अपनी अंदर की कमियों को पहचान कर उसे पूरी आंतरिक शक्ति लगाकर दूर करना चाहिए। जिस प्रकार कोई दूसरा व्यक्ति घर में गलत विचार से घुस आता है उसे बाहर निकालने के लिए हम अपनी पूरी शक्ति लगाते हैं वैसे ही जो बातें उन्नति के मार्ग में काँटे बनती हों उन्हें जड़ से उखाड़कर फेंक देना चाहिए। इसके लिए कुछ लोग उन लोगों को जाति और धर्म का नाश करने वाले कहेंगे। कुछ लोग पागल और निकम्मा बताएँगे लेकिन उनकी बात को अनसुना करना है। केवल देश के हित के लिए सोचना है, तभी देश उन्नति कर सकेगा।

प्रश्न 5.
लेखक जनता से मत-मतांतर छोड़कर आपसी प्रेम बढ़ाने का आग्रह क्यों करता है ?
उत्तर :
लेखक जनता से मत-मतांतर के भेदभावों को छोड़कर आपस में प्रेमभाव से मिल-जुलकर रहने का आग्रह करता है क्योंक इससे आपसी भाई-चारा बढ़ेगा। इससे हम जाति तथा वर्गगत संकीर्णता से मुक्त होकर देश की उन्नति के लिए मिल-जुलकर प्रयास करेंगे तो भारतवर्ष को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकेगा अतः एकता की शक्ति के सामने कोई भी टिक नहीं सकेगा।

प्रश्न 6.
आज देश की आर्थिक स्थिति के संदर्भ में निम्नलिखित वाक्य को एक अनुच्छेद में स्पष्ट कीजिए।
“जैसे हज्ञार धारा होकर गंगा समुद्र में मिली है, वैसे ही तुम्हारी लक्क्मी हज्ञार तरह से इंग्लैंड, फरांसीस, जर्मनी, अमेरिका को जाती है।”
उत्तर :
आज हमारे देश में अनेक विदेशी कंपनियाँ अपना समान बेच रही हैं। चीन, अमेरिका, इंगलैंड, जर्मनी, जापान आदि देशों से विभिन्न प्रकार की ऐसी वस्तुएँ भी हमारे देश में बेची जा रही हैं, जिनका उत्पादन हम भी करते हैं। उदाहरण के लिए चीन से साइकिल, मूर्तियाँ, खिलौने आदि भारतीय बाजारों में भारतीय उत्पादों को मात दे रहे हैं। इससे हमारे देश का धन देश में न रहकर विदेश जा रहा है। इससे हमारी आर्थिक स्थिति तो कमज़ोर होगी ही हमारे उद्योग जगत पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। इसलिए हमें अपनी लक्ष्मी को अपने ही देश में रोकने के उपाय करने चाहिए।

प्रश्न 7.
(क) पाठ के आधार पर निम्नलिखित का कारण स्पष्ट कीजिए-
बलिया का मेला और स्नान
एकादशी का व्रत
गंगा जी का पानी पहले सिर पर चढ़ाना
दीवाली मनाना
होली मनाना
(ख) उक्त संदर्भ में क्यों कहा गया है कि ‘यही तिहवार ही तुम्हारी मानो म्युनिसिपलिटी है’ ?
उत्तर :
(क) बलिया का मेला और स्नान-पर्व इसलिए मनाया जाता है कि साल में एक बार सब लोग एक स्थान पर मिल सके तथा एक-दूसरे का सुख-दुख जान सकें। मेले से घर गृहस्थी की वह वस्तुएँ भी खरीदी जा सकती हैं जो गाँव में नहीं मिलती हैं।
एकादशी का व्रत इसलिए रखा जाता है कि शरीर शुद्ध हो जाए।
गंगा जी का पानी पहले सिर पर इसलिए चढ़ाया जाता है जिससे गंगा जी में पैर डालते हुए तलुए से गरमी सिर में चढ़कर विकार न उत्पन्न करे।
दीवाली इसलिए मनाते हैं कि इस बहाने साल में एक बार घर की सफ़ाई हो जाती है।
होली इसलिए जलाकर मनाई जाती है कि बसंत की बिगड़ी हवा स्वच्छ हो जाए।

(ख) उक्त संदर्भ में यह शब्द इसलिए कहे गए हैं क्योंकि जो कार्य म्युनिसिपैलिटी को करने होते है वे कार्य इन त्योहारों को मनाने से हो जाते है।

प्रश्न 8.
आपके विचार से देश की उन्नति किस प्रकार संभव है ? कोई चार उदाहरण तर्क सहित दीजिए।
उत्तर :
देश की उन्नति के लिए हमें आलस्य त्याग कर मिल-जुलकर काम करना होगा। जनता को शिक्षित करना होगा तथा स्वदेशी आंदोलन को बल प्रदान करना होगा। किसान खेत में परिश्रम करके ही अनाज उत्पन्न करता है। शिक्षित व्यक्ति योजना बनाकर कार्य करते हुए अपने व्यापार/कार्य में उन्नति करता है। इसी प्रकार से देश को समर्पित राजनेताओं के कायों से देश की उन्नति हो सकती है। टाटा, बिरला जैसे उद्योगपति देश में उद्योग स्थापित कर देश की उन्नति में योगदान देते हैं। विद्यार्थी मन लगाकर पड़-लिखकर भावी देश के अच्छे नागरिक बनकर देश को उन्नत कर सकते हैं, जैसे पूर्व राष्ट्रपति डॉ० ए० पौ० जे० अब्दुल कलाम ने वैज्ञानिक बनकर देश की मिसाइल तकनीक को इन्नत किया।

प्रश्न 9.
भाषण की किन्हीं चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए कि पाठ ‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है’ एक भाषण है।
उत्तर :
भाषण की प्रमुख चार विशेषताएँ निम्नलिखित है –
(क) रोचकता – अच्छा भाषण वही कहलाता है जो अपने भीतर रोचकता का गुण छिपाए हुए हों। उसमें श्रोता को अपने साथ बाँध लेने का गुण होना चाहिए। भाषण ऐसा होना चाहिए कि श्रोता का ध्यान पूरी तरह से भाषण देने वाले की ओर लगा रहे। रोचकता को बढ़ाने के लिए भाषण में काव्यांशों, चुटकलों, उदाहरणों, चटपटी बातों आदि का स्थान-स्थान पर प्रयोग किया जाना चाहिए।
(ख) स्पष्टता – भाषण में भाव, विषय और भाषा की स्पष्टता होनी चाहिए। भाषण देने वाले को पूर्ण रूप से पता होना चाहिए उससे कहाँ और क्या बोलना है। पहले से ही उसके मन में विचारों की व्यवस्था होनी चाहिए। उसे अपने विषय पर पूर्ण रूप से अधिकार होना चाहिए। उसकी भाषा में सरलता और स्पष्टता निश्चित रूप से होनी चाहिए।
(ग) ओज पूर्ण – वक्ता को भाषण देते समय उत्साह और ओज का परिचय देना चाहिए। उसकी वाणी ऐसी होनी चाहिए जो श्रोताओं की नस-नस में मनचाहा जोश भर दे। उसके भाषण में ऐसे भाव भरे होने चाहिए जिससे श्रोताओं को लगे कि वे वही तो सुनना चाहते थे जो वक्ता कर रहा है।
(घ) पूर्णता – भाषण में पूर्णता का गुण होना चाहिए। श्रोता को सदा ऐसा लगना चाहिए कि वक्ता के द्वारा कही जानेवाली बात पूर्ण है और उसमें किसी प्रकार का कोई अधूरापन नहीं है। वक्ता को किसी भी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति की ओर स्पष्ट संकेत करना चाहिए।

उपरोक्त विशेषताओं के आधार पर हम कह सकते है कि ‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है’ पाठ एक भाषण है। इसमें सर्वत्र रोचकता बनी रहती है। वक्ता ने उदाहरणों के द्वारा अपने भाषण में रोचकता बनाए रखी है। वक्ता की भाषा सहज, सरल तथा अवसरानुकूल है, जैसे-‘ हम कुएँ के मेंछक, काठ के उल्लू, पिंजडे के गंगाराम ही रहे तो हमारी कमबखत कमबख्ती फिर कमबख्ती है।’ वक्ता का यह भाषण ओजपूर्ण है जो तत्कालीन हाथ-में भारतवासियों में कुछ करने का जोश भर देता है। वक्ता जो भी बात कहता है वह स्पष्ट और अपने में पूर्ण है।

प्रश्न 10.
‘अपने देश में अपनी भाषा की उन्नति करो’ से लेखक का क्या तात्पर्य है ? वर्तमान संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
लेखक के इस कथन का यह तात्पर्य है कि हम अपनी भाषा में अपने विचारों को अच्छी प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं इसलिए हमें अपने देश की पहचान बनाने के लिए अपनी भाषा की भी उन्नति करनी चाहिए। अपनी भाषा अपनी राष्ट्रीयता के विकास में सहायक होती है। आज हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा बनाया गया है। देश के अधिकांश भागों तथा अनेक विदेशी देशों में हिंदी पढ़ी, लिखी, बोली और समझी जाती है इसलिए इसे अपने शासन, दैनिक कार्य-व्यवहार की भाषा के रूप में अपनाना चाहिए क्योंक ‘निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल।’

प्रश्न 11.
पाठ में कई वर्ष पुरानी हिंदी भाषा का प्रयोग है इसलिए चाहें, फैलावैं, सकैगा आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है जो आज की हिंदी में चाहे, फैलाएँ, सकेगा आदि लिखे जाते हैं। निम्नलिखित शब्दों को आज की हिंदी में लिखिए। जैसे-मिहनत, छिन-प्रतिछ्छि, तिहवार। इसी प्रकार पाठ में से अन्य दस शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर :

  • मिहनत – मेहनत
  • तिहवार – त्योहार
  • करें – करें
  • सुधरैगा – सुधरेगा
  • बढ़ती – बढ़ोतरी
  • कहैंगे – कहेंगे
  • फैलावैं – फैलावें
  • छिन-प्रतिछिन – क्षण-प्रतिक्षण
  • पहिनकर – पहनकर
  • पहिले – पहले
  • छोड़ – छोड़े
  • अबकी – इस बार की
  • मुझको – मुझे
  • मिहनत- मेहनत

प्रश्न 12.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) राजे-महाराजों को अपनी पूजा, भोजन, झूठी गप से छुद्टी नहीं।
(ख) सबके जी में यही है कि पाला हर्मी पहले छू लें।
(ग) हमको पेट के धंधे के मारे छुट्टी ही नहीं रहती बाबा, हम क्या उन्नति करें।
(घ) यह तो वही मसल हुई कि एक बेफ़िकरे मँगनी का कपड़ा पहिनकर महफ़िल में गए।
उत्तर :
(क) लेखक का इस पंक्ति से यह आशय है कि भारत पर ब्रिटिश सरकार का शासन था। उस समय देश की स्थिति बहुत दयनीय थी। सरकारी अधिकारी हिंदुस्तानियों के विषय में नहीं सोचते थे। हिंदुस्तानियों को भी यह आदत पड़ी हुई थी कि जब तक कोई उन्हें उनकी शक्ति का अहसास नहीं करवाता वह आगे बढ़कर कार्य नहीं करते। उस समय राजेमहाराजों के पास इतना समय नहीं था कि वे अपनी प्रजा के हित के लिए सोचें। वे लोग तो ब्रिटिश सरकार द्वारा की जा रही झूठी प्रशंसा में डूबे हुए थे। उनका पेट भर गया तो प्रजा का पेट भी भरा समझते थे। राजा-महाराजा झूठे दिखावे पसंद जीवन के आदी हो चुके थे। इसलिए प्रजा ने भी अपना हित सोचना छोड़ दिया था।

(ख) लेखक का इस पंक्ति से आशय है कि उस समय भारत पर ब्रिटिश सरकार का शासन था। उस समय लोगों के पास उन्नति के अवसर थे। नए-नए यंत्रों का निर्माण हो रहा था। पुस्तके नवीन ज्ञान से भरी हुई थी। सभी दूसरे देश उस अवसर का लाभ उठाकर उन्नति की घुड़-दौड़ में शामिल थे। सब के दिल में यही इच्छा थी कि उनका देश उन्नति करने में दूसरे देशों से पिछड़ न जाए। यहाँ तक कि जापानी भी उस समय अपने-आपको देश की उन्नति के लिए तैयार कर चुके थे। केवल हिंदुस्तानियों के दिल में उन्नति की सोच उत्पन्न नहीं हुई थी।

(ग) इस पंक्ति से लेखक का आशय है कि हिंदुस्तान में लोग उन्नति करने का अर्थ ही नहीं जानते हैं। उनके लिए उन्नति करना सिर्फ़ बातें करना है। यदि किसी को देश की उन्नति करने के लिए प्रेरित किया जाए तो वह कहेगा कि हम उन्नति कैसे कर सकते हैं हमें तो अभी अपने और परिवार का पटे भरने से ही फुरसत नहीं हैं यह काम उन लोगों का है जिनका पेट-भरा हुआ है।

(घ) इस पंक्ति से लेखक का आशय है कि हमारे देश में रोज़गार के अपार साधन हैं लेकिन हम काम नहीं करना चाहते। हमारे देश का रुपया बाहर के देशों में जा रहा है और वहाँ का बना हुआ सामान हमारे देश में आ रहा है। छोटी-से-छोटी वस्तु भी बाहर से मँगवाई जा रही है। प्रतिदिन की जरूरतों का सामान भी बाहर से आ रहा है। पहनने के लिए कपड़ा, बालों के लिए कंघी, रोशनी करने के लिए बत्ती आदि सभी सामान बाहर से आ रहा है, इसलिए लेखक यह उदाहरण दे रहा है कि हम लोग दूसरों से सामान माँगकर स्वयं को सजा रहे हैं।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित गद्यांशों की व्याख्या कीजिए –
(क) सास के अनुमोदन से ……….परदेस चला जाएगा।
(ख) दरिद्र कुटुंबी इस ……… हिंदुस्तान की है।
(ग) वास्तविक धर्म तो ……… बदले जा सकते हैं।
उत्तर :
उत्तर के लिए सप्रसंग व्याख्या भाग देखिए।

योरयता-विस्तार –

प्रश्न 1.
देश की उन्नति के लिए भारतेंदु ने जो आह्वान किया है उसे विस्तार से लिखें।
उत्तर :
पाठ का सार पढ़कर लिखें।

प्रश्न 2.
पंक्ति पूरी कीजिए, अर्थ लिखिए और इन्हें जिन कवियों-शायरों ने लिखा है, कहा है, उनका नाम लिखिए।
(क) अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम
(ख) अबकी चढ़ी कमान, को जानै फिर कब चढ़़
(ग) शौक तिफ़्ली से मुझे गुल की जो दीदार का था
उत्तर :
(क) “अजगर करे न चाकरी पंछी करै न काम दास मलूका कहि गए, सबके दाता राम।” इस पंक्ति के कवि मलूकादास हैं। इस पंक्ति का अर्थ है कि हिंदुस्तान में व्यक्ति छोटा हो या बड़ा हो, वह काम करना पसंद नहीं करता, उसे खाली बैठकर खाने की आदत हो गई है. इसलिए कवि ने कहा है कि ऐसे लोगों के मालिक भगवान ही हैं।

(ख) अबकी चढ़ी कमान, को जानै फिर कब चढ़़ै। जिनि चुक्के चौहान, इक्के मारय इक्क सर।” इस पंक्ति के कवि चंद हैं। इस पंक्ति का अर्थ है कि मनुष्य को जब भी कुछ करने का अवसर मिले उसका लाभ उठा लेना चाहिए। पता नहीं फिर अवसर मिले या न मिले। पृथ्वीराज चौहान को अंधा करके गियासुद्दीन ने शब्दभेदी बाण चलाने के लिए कहा और उसने उस अवसर का लाभ उठाकर गियासुद्दीन का ही सिर काट डाला।

(ग) “शशक तिफ़्ली से मुझे गुल की जो दीदार का था। न किया हमने गुलिस्ताँ का सबक याद कभी” इस पंक्ति के शायर मीरहसन हैं। इस पंक्ति में शापर ने नौजवान पीढ़ी को बचपन से ही गलत रास्ता दिखाने का प्रयत्त किया। उसे दुनियादारी का कोई भी सबक नहीं। इसका अर्थ है कि मैंने कभी भी दुनियादारी का सबक नहीं सीखा क्योंकि बचपन से ही मुझे बाज़ार के फूलों को देखने का शौक लग गया था।

प्रश्न 3.
भारतेंदु उर्दू में किस उपनाम से कविताएँ लिखते थे ? उनकी कुछ उर्दू कविताएँ ढूँढ़कर लिखें।
उत्तर :
विद्यार्थी इस प्रश्न का उत्तर अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं लिखें।

प्रश्न 4.
पृथ्वीराज चौहान की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
लेखक अपने भाषण में पृथ्वीराज चौहान की कथा से लोगों को यह प्रेरणा देना चाहते हैं कि यदि उन्हें कुछ करने का अवसर मिले तो उसका लाभ उठाकर अपना कार्य पूरा कर लेना चाहिए। पृथ्वीराज चौहान को गौरी युद्ध में पराजित करके कैदी बनाकर उसे अपने साथ दिल्ली ले गया था। पृथ्वीराज के साथ उसका मित्र चंद कवि भी उसके साथ कैदी था। पृथ्वीराज की आँखें फोड़ दी गई थीं। शहाबुद्दीन के भाई गियासुद्दीन को किसी ने बताया कि पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण बहुत अच्छा चलाता है।

अंधे पृथ्वीराज चौहान की परीक्षा लेने के लिए एक सभा रखी गई। लोहे के सात तावे बनवाए गए जिन्हें पृथ्वीराज ने आवाज़ सुनकर तीर से फाड़ने थे। तीर-चलाने के लिए एक संकेत निश्चित किया कि जब गियासुद्दीन ‘हूँ’ कहे तभी तीर छोड़ा जाएगा। चंद कवि पृथ्वीराज चौहान के साथ मैदान में था। चंद कवि ने उस समय पृथ्वीराज के लिए यह दोहा पढ़ा कि “अबकी चढ़ी कमान, को जानै फिर कब चढ़ै। जिनि चुक्के चौहान, इक्के मारण इक्क सर॥” चंदकवि को पृथ्वीराज का तैयार होने का इशारा समझकर गियासुद्दीन ने ‘हूँ’ कहा तो पृथ्वीराज ने उसी बाण से उसे मार दिया। इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान ने अवसर पाकर अपना काम पूरा किया। उसी प्रकार यदि उन लोगों को उन्नति करने का अवसर मिला है तो उसका लाभ उठाना चाहिए।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 9 भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

प्रश्न 1.
क्या भारतेंदु जी का भाषण तत्कालीन परिस्थितियों में ही नहीं अपितु आज की परिस्थितियों में भी उच्चित जान पड़ता है ? कारण लिखिए।
उत्तर :
तत्कालीन समाज में भारतेंदु जी के भाषण का अपना महत्व था। उस समय भारत पर ब्रिटिश शासन था। राजे-मह्हाराजे अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए त्रिटिश लोगों की जी-हुजूरी करते थे। आम लोग भी हाथ पर हाथ रखे बैठे थे। उन लोगों में भी उन्नति करने का साहस नहीं था। वे लोग राजाओं तथा ब्राह्मणों का मुँह देखते थे। छोटा काम करने में शर्म अनुभव करते थे। नौकरी उन लोगों को मिलती नहीं थी। लोग विदेशी माल को श्रेष्ठ समझते थे जिससे अपने देश का धन बाहर जाने लगा था। भारतेंदु जी ने अपने भाषण के माध्यम से लोगों को सचेत करने का प्रयत्न किया था।

उस समय यह कहा जाता था कि हिंदुस्तान गुलाम है इसलिए कुछ नहीं किया जा सकता था। लेकिन आज हिंदुस्तान आजाद है फिर भी देश के नवयुवक कुछ करना नहीं चाहते है। उनमें पहले के नबयुवकों की तरह ही आलस्य भरा हुआ है। छोटा काम या अपना रोज़गार करने में शर्म अनुभव करते हैं। नौकरी की प्रतीक्षा में खाली बैठकर गण्पें लगाते हैं। देश को चलानेवाली सरकार भी अपना स्वार्थ पूरा करने में लगी हुई है। बड़े-बड़े सरकारी अधिकारी, नेता लोगों की जी-हुजूरी करने में लगे रहते हैं।

आज भी विदेशी माल को देशी माल के सामने ऊँची गुणवत्ता का समझा जाता है, हिंदू-मुसलमानों में पहले की तरह मतभेद आज भी विद्यमान हैं। दोनों जातियाँ एक-दूसरे की निंदा करने में परहेज नहीं करती हैं। धर्म का स्वरूप ब्राह्मणों ने अपने स्वार्थ के लिए और भी बिगाड़ दिया है। आज भी दूसरों से माँगकर अपने को सजाना ऊँचा समझा जाता है। अब की और उस समय की परिस्थितियों में कोई अधिक अंतर नहीं आया है। इसलिए भारतेंदु जी का भाषण आज भी उतना ही उचित जान पड़ता है जितना उस समय था।

आज के नवयुवक को अपने देश की उन्नति के लिए आलस्य और जी हुजूरी की आदत का त्याग करके, हिम्मत और उत्साह से काम में लग जाना चाहिए। छोटे-से-छोटे काम से परहेज नहीं करना चाहिए। धर्म के स्वाथीं रूप को त्याग कर धर्म के वास्तविक रूप का पूजन करना चाहिए। एक ही देश में रहकर हिंदू-मुसलमानों को आपसी वैर भुलाकर देश की उन्नति के कार्य करने चाहिए। सरकार और सरकारी अधिकारियों को स्वयंहित के स्थान पर जनहित के लिए काम करना चाहिए। यदि सब लोग मिल-जुलकर काम करें तथा नवयुवक शक्ति को उत्साह और हिम्मत को साथ लेकर चलें तो भारतवर्ष की उन्नति संभव है।

प्रश्न 2.
अकबर बादशाह और रॉबर्ट साहब बहादुर में क्या समानता थी ?
उत्तर :
रॉबर्ट साहब बहादुर एक कलेक्टर थे। वे अकबर बादशाह की तरह सारे समाज को एक ही स्थान पर एकत्र होने का अवसर देते थे, जिससे समाज के लोगों में एकता का संचार हो। अकबर बादशाह के साथियों की तरह ही रॉबर्ट साहब बहादुर के साथी थे जो उन्हें आम लोगों को आपस में मिलाने में सहायक थे। अंकबर के दरबार में अबुल फ़ज़ल, बीरबल, टोडरमल आदि थे तो रॉबर्ट साहब के साथ मुंशी चतुर्भुज सहाय, मुंशी बिहारी लाल साहब आदि थे।

प्रश्न 3.
उस समय के हाकिम कैसे थे ?
उत्तर :
उस समय के हाकिम राजा-महाराजाओं की झूठी प्रशंसा में लगे रहते थे या उन्हें सरकारी काम घेरे रहते थे। जो समय उनके पास बचता उसे अपने मनोरंजन में इस्तेमाल करते थे। वे आम लोगों की समस्याओं की ओर ध्यान नहीं देते थे। जब राजा लोग अपनी प्रजा की ओर ध्यान नहीं देते थे तो वे लोग भी अपना कीमती समय आम लोगों की परेशानियाँ सुनकर खोना नहीं चाहते थे।

प्रश्न 4.
लेखक ने हिंदुस्तानियों को काठियावाड़ी घोड़े क्यों कहा है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार उस समय सारे संसार में औद्योगिक क्रांति की लहर आई हुई थी। सभी देशों के लोग, अपने देश की उन्नति में लगे हुए थे परंतु भारतीयों के सामने उन्नति के सभी साधन थे, उन्होंने साधनों का लाभ-नहीं उठाया। वे लोग केवल बातों में लगे रहे। वे जाति-पॉति, ऊँच-नीच और दिखावे की ज़िदी में उलझे रहे। भारतीयों ने दूसरे देशों को उन्नति करते हुए देखकर भी अनदेखा कर दिया। भारतीयों की स्थिति भी औद्योगिक क्रांति की लहर में जैसी थी वैसी ही बनी रही। इसलिए लेखक ने उन्हें काठियावाड़ी घोड़े कहा है जो घोड़ों की दौड़ में भागते नहीं हैं वहीं खड़े-खड़े मिद्टी खोदते रहते हैं।

प्रश्न 5.
भारतेंदु जी के अनुसार बलिया में स्नान मेला लगने का क्या कारण था ?
उत्तर :
भारतेंदु जी के अनुसार बलिया में स्नान मेला लगने से सारा समाज एक स्थान पर एकत्रित होता था जो लोग सालभर नहीं मिल पाते थे, वे ऐसे स्नान मेलों में आपस में मिल जाते थे और एक-दूसरे का सुख-दुख बाँटते थे। लोगों को अपनी ज़रूरत की जो चीजें अपने गाँव में नहीं मिलती, वे चीजें वहाँ से ले जाते थे। मेला लोगों को धर्म से और आपस में भी जोड़ता था।

प्रश्न 6.
लेखक के समय हिंदुस्तान की दशा कैसी थी ?
उत्तर :
लेखक के समय में हिंदुस्तान की स्थिति बहुत दयनीय थी। देश पर ब्रिटिश सरकार का शासन था। उस समय राजा-महाराजा, नवाबअमीर लोग अपने स्वाथ्थों में खोकर देश को हानि पँहुच रहे थे। देश के नवयुवकों में जी-हुज़ूरी की आदत पड़ गई थी। सामने उन्नति के अवसर होते हुए भी हम कुछ नहीं कर रहे थे। केवल काठियावाड़ी घोड़ों की तरह वहीं खड़े-खड़े टाप रहे थे।

प्रश्न 7.
किन लोगों को निकम्मेपन ने घेर रखा था ?
उत्तर :
लेखक बलिया में स्नान-पर्व पर एकत्रित समाज को संबोधित कर रहा था। उसके अनुसार देश में विद्या और नीति को बढ़ावा देने का कार्य राजा और ब्राह्मण का था लेकिन उस समय राजा और ब्राह्मण लोगों को सारे संसार के निकम्मेपन ने घेर रखा था। राजा लोगों को भोजन, झूठी प्रशंसा और गप्पें लगाने से फुरसत नहीं थी। ब्राह्मण लोगों को अपने स्वार्थ के लिए धर्म का स्वरूप बदलने से फुरसत नहीं थी। उन लोगों के निकम्पेपन से देश की स्थिति खराब हो गई थी।

प्रश्न 8.
हमारे देश में छाए आलस्य के विषय में भारतेंदु ने क्या कहा है ?
उत्तर :
भारतेंदु जी ने देश में छाए आलस्य के विषय में कहा है कि देश के नवयुवक, बच्चों और बूढ़ों सब पर आलस्य छाया हुआ है। कोई स्वयं से कुछ करना नहीं चाहता है। सब लोग राजा-महाराजाओं का मुँह देखते रहते हैं कि वे लोग कुछ कहेंगे तथी कुछ किया जाएगा। पंडित जी अपनी कथा में काम करने का उपाय बताएँगे। ऐसा कुछ नहीं होनेवाला है। देश की उन्नति के लिए आलस्य का त्याग करके, कमर कसकर काम करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।

प्रश्न 9.
देश का रुपया और बुद्धि बढ़े, इसके लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर :
भारतेंदु जी बलिया में र्नान पर्व पर गए हुए थे। वहॉं पर उनके कुछ मित्रों ने ‘देश की उन्नति कैसे हो’ के विषय में बोलने के लिए कहा। लेखक ने अपने भाषण में कहा कि हमारे देश में लोगों को आलस्य ने घेर रखा है। ब्रिटिश शासन में देश की उन्नति के साधन चारों ओर बिखरे पड़े हैं लेकिन लोग उसका लाभ नहीं उठाते। देश का रुपया, देश से बाहर बिदेशों में जा रहा है जिससे देश में धन की कमी हो रही है। जनगणना की रिपोर्ट देखने से पता चलता है कि देश में जनसंख्या तो बढ़ रही है रुपया कम हो रहा है।

इसका कारण है-अपना काम स्वय न करना इस बात की की प्रतीक्षा करना कि कोई हमें आदेश दे और हम काम करें। हमें यदि उन्नति करनी है तो हमें अपनी इस आदत को बदलना पड़ेगा। दूसरे देशों की बनी चीज्रों का उपयोग मत करो। अपनी ज़रूरत की वस्तुएँ अपने देश में बनाओ। इससे रोज़गार भी बढ़ेगा और देश का रुपया देश में ही रहेगा। लोगों को आलस्य और जी-हुजूरी की आदत त्याग कर, कमर कसकर देश की उन्नति के लिए अपने बल और बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए जिससे जनसंख्या के साथ-साथ देश का रुपया बढ़ेगा तथा मानव की बुद्धि का विकास होगा।

प्रश्न 10.
ऐसी कौन-सी बातें हैं जो समाज विरुद्ध मानी जाती हैं, किंतु धर्मशास्त्रों में उनका विधान है ?
उत्तर :
लेखक देश की उन्नति के लिए कुछ उपाय बता रहा है। देश की उन्नति तभी संभव है यदि धर्म के मूल रूप में उन्नति हो। धर्मनीति और समाजनीति दूध पानी की तरह मिले हुए हैं। धर्मशास्त्रों में कई ऐसी बातों का विधान है जो समाज में मान्य नहीं हैं। कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए धर्म के मूल कारण को समझे बिना ही नए-नए धर्म बनाकर शास्त्रों में लिख दिए। उनके लिए सभी तिथियाँ व्रत हो गई हैं और सभी स्थान तीर्थ बन गए हैं। उन्होंने समाज के हित में लिखी गई ऋषि-मुनियों की बातों का विरोध अपने स्वार्थ के लिए किया है। धर्मशास्त्रों में विधवा विवाह, जहाज़ में सफ़र करने तथा लड़कों का छोटी आयु में विवाह न करने का विधान था। छोटी आयु में लड़कों का विवाह करने में उनका बल, वीर्य और आयु कम हो जाते हैं।

लड़कों का विवाह करने से पहले उन्हें घर-गृहस्थी और दुनियादारी की शिक्षा देनी चाहिए। उन का बौद्धिक विकास करना चाहिए। रोज़गार के उचित अवसर प्रदान करने चाहिए। बहु-विवाह तथा सती प्रथा का विरोध किया गया है। लड़कियों को शिक्षा देने का विधान है जिससे वे अपने कुल धर्म को समझें और आनेवाली पीढ़ी का उचित मार्गदर्शन कर सके। ये बातें उस समय समाज विरोधी मानी जाती थीं। यदि उस समय के लोगों ने धर्मशास्त्रों के सही अर्थ को जाना होता तो देश उन्नति की ओर अग्रसर होता। धर्मशास्त्र में लिखी बातें समाज के विरूद्ध नहीं हैं अपितु समाज के हित में हैं।

प्रश्न 11.
‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?’ निरंध में लेखक ने क्या स्पष्ट करना चाहा है?
उत्तर :
वास्तव में “भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?” निबंध न होकर भारतेंदु का एक भाषण है। इसमें उन्होंने एक और त्रिटिश शासन की मनमानी पर एक व्यंग्य किया है, तो दूसरी ओर अंग्रेजों के परिश्रमी स्वभाव के प्रति आदर भी है। भारतेंदु ने आलसीपन, समय के अपव्यय आदि कमियों को दूर करने की बात करते हुए भारतीय समाज की रूड़ियों और गलत जीवन शैली पर भी प्रहार किया है। जनसंख्या नियंत्रण, श्रम की महत्ता, आत्मबल और त्याग भावना को भारतेंदु ने उन्नति के लिए अनिवार्य माना है।

प्रश्न 12.
लेखक ने कोचवान का उदाहरण देकर क्या स्पष्ट करना चाहा है?
उत्तर :
लेखक ने कोचवान का उदाहरण देकर विलायती लोगों की जागरूकता एवं कर्मठता को उजागर करना चाहा है वहीं दूसरी ओर भारतीयों के निकम्मेपन को भी उजागर किया है जैसे विलायत में गाड़ी का कोचवान भी अखबार पढ़ता है। जब मालिक उतरकर किसी दोस्त के यहाँ गया, तो उसी समय कोचवान गद्दी के नीचे से अखबार निकाल कर पढ़ लेता है। यहाँ भारत में उतनी देर कोचवान हुक्का पिएगा या गप मारेगा। वो गप भी निकम्मी होगी।

प्रश्न 13.
लेखक ने धर्म के संबंध में अपने कौन-से विचार प्रकट किए हैं ?
उत्तर :
लेखक ने धर्म के विषय में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा है कि लोगों ने धर्म का असली अर्थ समझने के स्थान पर धर्म को केखल ईश्वर के चरण कमल पूजने का काम समझ लिया है। धर्म के ठेकेदारों ने अपने स्वार्थ के लिए धर्म का स्वरूप बदल रखा है। आज आवश्यकता है तो सिर्फ़ धर्म के अर्थ को जानने की। जो बात मानब हित में है उसे सहज स्वीकार कर लेना चाहिए और जो बात अहित में है उसे त्याग देना चाहिए।

प्रश्न 14.
लेखक ने भारत में रहनेवाले के लिए क्या करना आवश्यक माना है ?
उत्तर :
लेखक ने भारत में रहनेवाले के लिए फिर चाहे वह किसी भी जाति, धर्म और स्थान का हो उसे केवल देश हित की सोचनी चाहिए। मिलकर रहने से काम बड़ेगा काम बढ़ने से रुपया बड़ेगा और वह रुपया हमारे देश में रहेगा। आज हमें इतना कमज़ोर नहीं होना चाहिए कि अपनी निजी आवश्यकताओं के लिए दूसरों पर निर्भर होना पड़े। विदेशी भाषा और वस्तु को अपनाने से देश की उन्नति संभव नहीं है। उसके लिए अपनी भाषा सीखनी चाहिए जिससे उन्नति हो सके।

प्रश्न 15.
लेखक के अनुसार देश का भला सोचनेवाले लोगों को क्या भूल जाना चाहिए ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार देश का भला सोचनेवाले लोगों को अपना सुख, धन तथा मान का बलिदान करना चाहिए। अपने अंदर की कमियों के मूल कारण को दूँढ़कर दूर करना चाहिए। देश की उन्नति के लिए यदि बदनामी भी गले लगानी पड़े तो तैयार रहना चाहिए। इसके बिना देश का भला नहीं हो सकता।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 10 Question Answer अरे इन दोहुन राह न पाई बालम; आवो हमारे गेह रे

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 10 अरे इन दोहुन राह न पाई बालम; आवो हमारे गेह रे

Class 11 Hindi Chapter 10 Question Answer Antra अरे इन दोहुन राह न पाई बालम; आवो हमारे गेह रे

प्रश्न 1.
‘अरे इन दोहुन राह न पाई’ से कबीर का क्या आशय है और वे किस राह की बात कर रहे हैं?
उत्तर :
कबीर ने हिंदुओं और मुसलमानों द्वारा अपनाई जानेवाली आडंबरपूर्णभकित-पद्धति की ओर संकेत किया है। उन्होंने उनके ईश्वर-प्राप्ति के इस मार्ग को गलत बताया है।

प्रश्न 2.
इस देश में अनेक धर्म, जाति, मजहब और संप्रदाय के लोग रहते थे किंतु कबीर हिंदू और मुसलमान की ही बात क्यों करते हैं ?
उत्तर :
कबीर ने हिंदु और मुसलमान की बात इसलिए की है क्योंकि उनके युग में इन दो धर्मावलंबियों की आपस में निरंतर खीच-तान होती रहती थी। दोनों ही आडंबरपूर्ण जीवन जी रहे थे। उन्होंने दोनों की नीतियाँ का खंडन करते हुए उन्हें सममार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है।

प्रश्न 3.
‘हिंदूवन की हिंदुवाई देखी तुरकन की तुरकाई’ के माध्यम से कबीर क्या कहना चाहते हैं? वे उनकी किन विशेषताओं की बात करते हैं ?
उत्तर :
अनेक धर्म-संप्रदाय अपने-अपने राग अलापते हैं तथा आडंबरपूर्ण प्रदर्शन प्रवृत्ति द्वारा अपने पक्ष को अन्य से श्रेष्ठ बताकर एक से दूसरे धर्मावलंबियों को आपस में लड़ते हैं। कबीर का मानना है कि हिंदु अपनी भक्ति की प्रशंसा करते हैं पर वे छुआदूत में विश्वास करते हैं। वे वेश्यावृत्ति में लगकर स्वयं को बुराई के गड्ढे में धकेलते है। मुसलमान पीर-अलिया पशु-वध को स्वीकृति देते हैं। वे मुर्गा-मुर्गी का मांस खाते हैं तथा संग-संबंधियों से विवाह करते हैं। हिंदु-मुसलमान दोनों ही एक जैसे है। उनकी करनी-कथनी में अंतर है।

प्रश्न 4.
‘कौन राह हूवै जाई’ का प्रश्न कबीर के सामने भी था। क्या इस तरह का प्रश्न आज भी समाज में मौजूद है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
आज के समाज की दशा भी कबीर के युग के समान ही है। अनेक धर्म-संप्रदाय अपने-अपने राग अलापते हैं तथा आडंबरपूर्ण प्रदर्शन प्रवृत्ति द्वारा अपने पथ को अन्य से श्रेष्ठ बताकर एक से दूसरे धर्मावलंबियों को आपस में लड़ाते हैं। डेरों, अखाड़ों, मठों, मजारों आदि के नाम पर लोगों को लूटने और पथभ्रष्ट करने की अनेक घटनाएँ प्रतिदिन समाचार-पत्रों में देखी-पढ़ी जा सकती हैं।

प्रश्न 5.
‘बालम आवो हमारे गेह रे’ में कवि किसका आह्वान कर रहा है और क्यों ?
उत्तर :
इस पद में कवि ने परमात्मा रूपी प्रियतम का आह्वान किया है। उनके वियोग में कवि की जीवात्मा विरह-व्यथा से व्याकुल हो रही है। उसकी विरह-संतप्त आत्मा को परमात्मा से मिलकर ही शांति मिलेगी, इसलिए वह उन्हें अपने पास बुला रहा है।

प्रश्न 6.
‘अन्न न भावै नींद न आवै’ का क्या कारण है ? ऐसी स्थिति क्यों हो रही है ?
उत्तर :
प्रियतम के वियोग में जैसे नायिका को कुछ भी अच्छा नहीं लगता। वह खाना-पीना छोड़ देती है और उसे नींद भी नहीं आती। उसी प्रकार से कवि की जीवात्मा को भी परमात्मा रूपी प्रियतम के वियोग में खाना-पीना अच्छा नहीं लगता। वह निरंतर उसी के चिंतन में डूबी रहती है, इसलिए उसे नींद भी नहीं आती है। उसकी यह स्थिति परमात्मा रूपी प्रियतम से नहीं मिलने के कारण हो गई है।

प्रश्न 7.
‘कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नीर रे’ से कवि का क्या आशय है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि जिस प्रकार से प्रेमिका को उसका प्रियतम बहुत प्रिय होता है तथा प्यासे व्यक्ति की प्यास जल से शांत होती है, उसी प्रकार से कवि की जीवात्मा की विरह-वेदना भी परमात्मा रूपी प्रियतम से मिलकर ही शांत होगी।

प्रश्न 8.
कबीर निर्गुण संत परंपरा के कवि हैं और यह पद – ‘बालम आवो, हमारे गेह रे’ साकार प्रेम की ओर संकेत करता है। इस संबंध में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
कबीर रहस्यवादी कवि थे। उन्होंने जीवात्मा-परमात्मा के संबंधों को मानवीय संबंधों के धरातल पर स्पष्ट किया है। संतों ने परमात्मा को पति और जीवात्मा को पत्नी के रूप में प्रतिपादित किया है। परमात्मा रूपी पति को न मिलने से पत्नी रूपी जीवात्मा की प्रेम-भावना तड़प उठती है। विरहिणी की विकल पुकार उसकी अंतर-व्यथा की मर्मभेदी हूक को प्रकट करती है। वह भारतीय नारी के समान अपने पति के प्रति एकांतिक प्रेम करती है और उसे पाने के लिए तड़प उठती है। प्रियतम के बिना उसे अपना तन-मन दुख और पीड़ा से भरा हुआ प्रतीत है। जब तक प्रेम मन का न हो तब तक प्रेम व्यर्थ है। प्रेम में सफलता न मिलने पर भूख नहीं लगती; नींद नहीं आती और मन कहीं नहीं लगता। जिस प्रकार किसी प्यासे की प्यास जल से बुझती है उसी प्रकार कामिनी को पति प्यारा होता है। प्रेम की अधिकता और परमात्मा रूपी प्रियतम को प्राप्त न कर पाने के कारण जीवात्मा जीवित नही रहना चाहती। कबीर की प्रेम-भावना प्रभु-भक्ति के रस की प्यासी है। उसी को प्राप्त कर सांसारिक क्लेश समाप्त हो सकते हैं।

प्रश्न 9.
उदाहरण देते हुए दोनों पदों का काव्य-साँदर्य और शिल्प-सौंदर्य लिखिए।
उत्तर :
देखिए व्याख्या भाग।

योग्यता-विस्तार – 

प्रश्न 1.
कबीर तथा अन्य निर्गुण संतों के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।
प्रश्न 2.
कबीर के पद लोकगीत और शास्त्रीय परंपरा में समान रूप से लोकप्रिय है और गाए जाते हैं। कुछ प्रमुख गायकों के नाम यहाँ दिए जा रहे हैं। इनके कैसेट्स अपने विद्यालय में मँगवाकर सुनिए और सुनाइए।
कुमार गंधर्व
प्रहूलाद् सिंह टिप्पाणियाँ
भारती बंधु
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से इसे स्वयं करें।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 10 अरे इन दोहुन राह न पाई बालम; आवो हमारे गेह रे

कथ्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘अरे इन दोहुन राह न पाई’ पद में किन आडंबरों और कुरीतियों की निंदा की गई है ?
उत्तर :
कबीर बाहयाडंबरों का खुलकर विरोध करते थे और उन्हें परमात्मा के मिलन की राह में रुकावट मानते थे। हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित उनके द्वारा रचित पहले पद में उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों की करनी-कथनी में अंतर को स्पष्ट किया है। हिंदू अपनी प्रशंसा करते हैं और छुआछूत के रास्ते पर चलते हैं। वे पानी से भरी गागर को किसी को छूने तक नहीं देते क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि किसी के द्वारा छूने से उनकी गागर अपवित्र हो जाएगी लेकिन वे स्वयं वेश्यागमन में लिप्त रहते हैं।

वेश्याओं के पैरों में सोते रहते हैं। यह कैसी हिंदुआई है उनकी ? मुसलमान जीव-हत्या करते हुए मुर्गी-मुर्गे का मांस खाते हैं और अपनी बेटियों का विवाह मौसी के घर में ही करवा देते हैं। बाहर से किसी मृत जीव को ले आते हैं और उसी को धोकर पका लेते हैं। सभी सहेलियाँ उसी को खाकर प्रशंसा करती हैं। उनकी दृष्टि में हिंदू-मुसलमान दोनों में कोई अंतर नहीं, दोनों ही एक-से हैं। दोनों का जीवन ही आडंबरपूर्ण है। इसी कारण कबीर ने दोनों की आलोचना की है।

प्रश्न 2.
‘बालम, आवो हमारे गेह रे’ में वर्णित प्रियतम के विरह में विरहिणी की दारुण दशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
कबीर रहस्यवादी संत थे। उन्होंने जीवात्मा के परमात्मा से अनेक प्रकार के संबंध स्थापित किए हैं। हमारी पाठ्य-पुस्तक में दिए गए दो पदों में से दूसरे पद में उन्होंने परमात्मा के प्रति रहस्यवादी भावना को प्रकट किया है। जीवात्मा को नारी और परमात्मा को पुरुष रूप में चित्रित किया है। जीवात्मा प्रयत्न करने के बाद भी परमात्मा की प्राप्ति कर नहीं पाती। विरहिणी जीवात्मा आग्रह-भरे स्वर में अपने प्रियतम से कहती है कि वे उसके मन रूपी घर में आएँ। क्योंकि वह उनकी प्राप्ति किए बिना वह बड़े कष्ट में है।

सभी लोग जीवात्मा को परमात्मा की पत्नी के रूप में जानते हैं पर परमात्मा है कि वे अपने दिल से उसे स्वीकार ही नहीं करते। विरह-वियोग के कारण जीवात्मा को न खाना अच्छा लगता है और न नींद आती है। उसके दुखी मन को कहीं भी धैर्य नहीं मिलता। प्यासा व्यक्ति अपनी प्यास बुझाने के लिए जिस प्रकार पानी प्राप्त करना चाहता है. उसी प्रकार नारी रूपी जीवात्मा भी परमात्मा को पाना चाहती है। जीवात्मा बेहाल है।

प्रश्न 3.
कबीर ने हिंदुओं और मुसलमानों की किस चीज़ पर प्रश्न-चिह्न लगाया है ?
उत्तर :
कबीर ने हिंदुओं और मुसलमानों के जीवन में व्याप्त अनीति और क्रूरता को प्रकट किया है तथा दोनों के भक्ति-मार्ग पर प्रश्न-चिह्न लगाया है। कबीर का कहना है कि इन हिंदुओं और मुसलमानों दोनों ने ईश्वर की भक्ति रूपी राह को ठीक प्रकार से प्राप्त नहीं किया है। इनका भक्ति-मार्ग गलत है।

प्रश्न 4.
कबीरदास किस प्रकार के व्यक्ति थे? संक्षेप में बताइए।
उत्तर :
कबीरदास मानवतावादी पुरुष थे। भगवान में अटूट विश्वास के कारण नर में नारायण की प्रतीति ने उन्हें मानवतावाद की ओर उन्मुख किया। कबीर का मुख्य स्वर विद्रोह का है, यद्यपि कबीर मूल्यहीन विद्रोही नहीं हैं। वह भक्त कवि, भक्त साधक, समाज-सुधारक कवि और लोक नेता सभी एक साथ हैं। कबीर एक सरल मनुष्य, ऊँचे संत और विकट आलोचक हैं। उनकी सरलता में भक्ति का भी योग है। उनकी कथनी और करनी में समुचित संयोग है।

प्रश्न 5.
दूसरे पद में कबीर ने क्या कहना चाहा है ?
उत्तर :
दूसरे पद में कबीर ने स्वयं को विरहिणी स्त्री के रूप में प्रस्तुत करते हुए प्रियतम से घर लौटने की आकांक्षा व्यक्त की है। दांपत्य प्रेम और घर की महत्ता इस पद के केंद्रबिंदु में हैं। कबीर ने इस पद में परमात्मा के प्रति रहस्यवादी भावना को प्रकट किया है। उन्होंने जीवात्मा को नारी और परमात्मा को पुरुष रूप में चित्रित किया है। उनके अनुसार जीवात्मा प्रयत्न के बाद भी परमात्मा की प्राप्ति नहीं कर पाती।

प्रश्न 6.
कबीर ने अपने पदों में बाह्य आड्बंबरों का विरोध किया है, कैसे ?
उत्तर :
कबीर बाह्य आडंबरों का खुलकर विरोध करते थे। उन्होंने हिंदू-मुसलमानों में प्रचलित विभिन्न अंधविश्वासों, रूढ़ियों और बाह्याडंबरों का कड़ा विरोध किया है। हिंदुओं की मूर्तिपूजा, छुआछूट, व्रत, धर्म, नियम के नाम पर की जाने वाली हिंसा आदि की आलोचना की है। मुसलमानों के रोजा, नमाज, हज, मांस खाने, जीव-हत्या आदि विधान की भी इन्हॉने कटु आलोचना की है।

प्रश्न 7.
प्रथम पद में कबीर ने हिंदुओं की किस बात पर आलोचना की है ?
उत्तर :
प्रथम पद में कबीर ने कहा है कि हिंदुओं का भक्ति-मार्ग गलत है। हिंदू सदा अपनी भकित और अपनी प्रशंसा में लीन रहते हैं। उनका छुआछूत में बड़ा ही ठोस विश्वास है। वैसे वे स्वयं वेश्यागमन बुरे कामों में लिप्त रहते हैं, तब उन्हें कोई भेद दिखाई नहीं देता, किंतु उनकी गागर कोई और छू ले तो वह अपवित्र हो जाती है।

प्रश्न 8.
प्रेमी के न मिलने पर कबीर की स्थिति कैसे हो गई है?
उत्तर :
प्रेमी के न मिलने पर कबीर की स्थिति अत्यंत दु:खदायी हो गई है। उनकी स्थिति उस प्यासे व्यक्ति के समान हो गई है जो प्यास से अत्यधिक व्याकुल है। कबीर की आत्मा ईश्वर से कहती है कि उनके बिना वह अत्यधिक परेशान है। कबीर की जीवात्मा कहती है कि परमात्मा के अभाव में उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। भोजन नीरस लगता है। नींद नहीं आती है। मन परेशान रहता है।

प्रश्न 9.
कबीर के दुखों का अंत किस प्रकार होगा ?
उत्तर :
कबीर के दुखों का अंत तब होगा जब पति रूपी परमात्मा उससे मिलकर उसके प्रति अपना प्रेमभाव प्रकट करेगा। उसे अपने हृदय में स्थान देगा। पति रूपी परमात्मा ही कबीर के जीवन को सुख-शांति प्रदान कर सक्ता है। अतः कबीर के दुखों को सदा के लिए समाप्त करने हेतु परमात्मा को उसके घर तथा हुदय में जाना होगा।

प्रश्न 10.
कबीर के कुछ पदों का संकलन कीजिए।
उत्तर :
जाति न पूछौ साध की, पूछ लीजिए ग्यान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥
आवत गारी एक है, उलटत होई अनेक।
कह ‘कबीर’ नहीं उलटिए, वही एक की एक।
माला तो कर में फिटर, जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँदिसि फिरे, यह तो सुमिरन नाहिं।।
जग में बैरी कोई नहिं, जो मन सीतल होय।
या आया को डारि दे, दया करै सब कोय॥

प्रश्न 11.
कबीर संत थे या कवि ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कबीर एक संत थे। वे संतकाव्य धारा के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं। ये घुमक्कड़ स्वभाव के थे। वे ईश्वर के निर्गुण स्वरूप को मानने वाले थे। कबीर ने संतों की परंपरा का निर्वाह करते हुए लोगों को सद्विचार प्रदान किए। निस्संदेह वे कवि भी थे लेकिन अपनी संत प्रवृत्तियों के समक्ष उनकी कवि-वृत्ति छिप जाती है, अतः कबीरदास को संत कबीरदास कहना उचित है।

प्रश्न 12.
कबीर ने अपने पदों में जाति-पाति और छुआछूत का विरोध क्यों किया है ?
उत्तर :
कबीर संत कवि थे। समाज-सुधार उनका उद्देश्य बन चुका था। अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण उन्होंने समाज में व्याप्त जाति-पौति और छुआदूत के बुरे परिणाम को महसूस किया और खुलकर उसका विरोध किया। कबीर इसे समाज के लिए एक बीमारी मानते है। उन्होंने अनुभव किया कि धर्म के ठेकेदार धर्म के नाम पर जात-पाँत और छुआछूत को बढ़ावा दे रहे है। अतः इसका विरोध कर समाज से इसे पूर्णतः समाप्त कर देना चाहिए।

काव्य-सौंदर्य पर आधारित प्रश्न – 

प्रश्न 1.
कबीर के दोनों पदों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

  1. कबीर ने पहले पद में कहा है कि हिंदुओं का व्यवहार गलत है। हिंदू सदा अपनी प्रशंसा में लीन रहते हैं। उनका हुआछूत में बड़ा गहरा विश्वास है। वैसे वे स्वयं वेश्यागमन करते हैं। उसमें उन्हे कुछ अनुचित नहीं लगता। किंतु उनकी गागर कोई और छू ले, तो वह अपवित्र हो जाती है।
  2. तद्भव शब्दावली का सटीक और भावानुकूल प्रयोग किया गया है।
  3. प्रतीक विधान और लाक्षणिक प्रयोग प्रभावपूर्ण है।
  4. दूसरे पद में भक्ति के वियोगपक्ष का निरूपण किया गया है।
  5. उपमा, रूपक तथा अनुप्रास अलंकार का प्रयोग शोभनीय है।
  6. भक्ति रस प्राधान्य है।

प्रश्न 2.
कबीर की भाषा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
कबीर ने अपने इन दोनों पदों में बोलचाल की तद्भव, देशज्ज तथा मिश्रित भाषा का प्रयोग किया है। भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। उन्हें वाणी का डिक्टेटर भी कहा जाता है। अपनी इच्छानुसार वह किसी भी बात को किसी भी रूप में कह देते थे। यदि वे बार्तें बन गई, तो सीधी-साधी, नहीं तो तुकबंदी की लय आ जाती थी। कबीर के सामने भाषा कुछ लाचार-सी जान पड़ती है। कबीर की भाषा में अनेक भाषाओं के शब्द देखने को मिलते हैं। शब्द-भंडार की दृष्टि से कबीर की भाषा अत्यंत मजबूत एवं शक्तिशाली है। कबीर की भाषा को सधुक्कड़ी या खिचड़ी भाषा भी कहा जाता है।

प्रश्न 3.
कबीर की रचना के विषय में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
कबीर संत कवि है। उन्हें निर्गुण धारा का उपासक माना जाता है। उन्होंने एक ही काव्य-रचना का सृजन किया जिसका नाम ‘बीजक’ है। ‘बीजक’ के तीन भाग हैं-साखी, सबद और रमैणी। इन तीनों में कबीर ने समाज को शिक्षा दी है। कबीर की रचना में लगभग सभी भाषाओं के शब्दों का समावेश है। उन्होंने अपनी रचना में लय और तुक का विशेष ध्यान रखा है। इनकी काव्य -भाषा सधुक्कड़ी है।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 11 Question Answer खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहिं भावति

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 11 खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहिं भावति

Class 11 Hindi Chapter 11 Question Answer Antra खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहिं भावति

प्रश्न 1.
‘खेलन में को काको गुसैयाँ’ पद में कृष्ण और सुदामा के बीच किस बात पर तकरार हुई ?
उत्तर :
कृष्ण और सुदामा (श्रीदामा) के खेल-खेल में रूठने और फिर अपने आप मान जाने के सहज-स्वाभाविक प्रसंग का वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण खेल में हार गए थे और श्रीदामा जीत गए थे, पर श्रीकृष्ण अपनी हार मानने को तैयार नहीं थे। खेल रुक गया। श्रीकृष्ण अभी और खेलना चाहते थे, इसलिए उन्होंने नंद बाबा की दुहाई देते हुए अपनी हार मान ली।

प्रश्न 2.
खेल में रूठने वाले साथी के साथ सब क्यों नहीं खेलना चाहते हैं ?
उत्तर :
खेल में तो हार-जीत होती रहती है। हर खिलाड़ी कभी न कभी अवश्य हारता है। हारकर यदि वह रूठ जाए; मुँह फुलाकर बैठ जाए और दूसरों को खेलने की बारी न दे तो खेल आगे किस प्रकार चल सकती है। इसलिए खेल में रूठने वाले के साथ उसके सभी साथी खेलना नहीं चाहते हैं।

प्रश्न 3.
खेल में कृष्ण के रूठने पर उनके साथियों ने उन्हें डाँटते हुए क्या-क्या तर्क दिए ?
उत्तर :
खेल में कृष्ण हार जाने के बाद रूठकर बैठ गए थे तब उनके साथियों ने उन्हें डाँटते हुए कहा था कि जाति-पाँति में वे उनसे बड़े नहीं थे और न ही वे सब उनकी शरण में रहते थे अर्थात् वे उनके गुलाम नहीं थे। क्या वे उनपर अधिक अधिकार इसलिए उमाते थे कि उनके पिता के पास उन लोगों की अपेक्षा अधिक गायें थ्थी। साथियों के ये तर्क बाल-बुद्धि की उपज होने पर भी समझदारी से भरे हुए थे।

प्रश्न 4.
कृष्ण ने नंद बाबा की दुहाई देकर दाँव क्यों दिया ?
उत्तर :
युगों से समाज में सच्ची-झूठी कसमें खाने का प्रचलन रहा है। कसम खाकर लोग स्वयं को सच्चा सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं। जब श्रीकृष्ण हार गए थे और श्रीदामा जीत गए थे तब भी श्रीकृष्ण का मानना था कि वे नहीं हारे और श्रीदामा नहीं जीते। खेल रुक गया था, पर श्रीकृष्ण अभी खेलना चाहते थे। खेल फि्रि से शुरू हो जाए, इसलिए नंद बाबा की दुहाई देकर श्रीकृष्ण ने दाँव दे दिया था।

प्रश्न 5.
इस पद से बाल मनोविज्ञान पर क्या प्रकाश पड़ता है ?
उत्तर :
इस पद् से यह ज्ञात होता है कि बच्चे छोटी-छोटी बातों पर आपस में रूठ जाते हैं तथा अपनी पराजय होने पर भी अपनी हार नहीं मानते। परंतु जब उन्हें अन्य साथी खिलाते नहीं तो वे अपनी हार को छिपाने के लिए कसमें खाकर अपनी हार स्वीकार कर लेते हैं। वे पल में रुष्ट और पल में तुष्ट हो जाते हैं। उनके मन अत्यंत निर्मल होते हैं।

प्रश्न 6.
‘गिरिधर नार नवावति’ से सखी का क्या आशय है ?
उत्तर :
बाँसुरी बजाने में निमग्न श्रीकृष्ण की गर्दन थोड़ी-सी झुकी रहती है। गोपियाँ मानती हैं कि श्रीकृष्ण उनकी सौत रूपी बाँसुरी के अधीन हैं और वे उसके सामने डरे-सहमे से सिर झुकाए हुए हैं।

प्रश्न 7.
कृष्ठ के अधरों की तुलना सेज से क्यों की गई है ?
उत्तर :
श्रीकृष्ण को बाँसुरी से बहुत लगाव था। जब वे बाँसुरी बजाते तो वह उनके होंठों की सेज से तुलना करती क्योंकि बाँसुरी के सातों छिद्रों पर इधर-उधर आती जाती उँगलियाँ उन्हैं ऐसा एहसास कराती थीं जैसे श्रीकृष्ण होठों रूपी शैख्या पर लेटी बँसुरी की सेवा कर रहे हों। इसीलिए अधरों की तुलना सेज से की गई है।

प्रश्न 8.
पठित पदों के आधार पर सूरदास के काव्य की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
सूरदास श्रीकृष्ग-भक्त कवि थे जिन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अगाध भक्तिभावना को प्रकट किया है। माधुर्य और साख्य भाव की भक्ति करने के कारण उनकी कविता में श्रीकृष्ग के प्रति अनन्यता का भाव विद्यमान है। गोपियों के हृदय में छिपी सौत की भावना उन्हें बाँसुरी की दुश्मन बना देती है। उन्हें बाँसुरी बजाते श्रीकृष्ण बाँसुरी के पति लगते है जैसे वे उसकी सेवा में लीन हों। वे बाँसुरी के प्रति पूरी तरह से आसक्त है। जब बाँसुरी उनके पास होती है तब वे किसी से बात तक करना पसंद् नहीं करते। अकारण ही निकट आने वालों पर क्रोध करते हैं। बाल रूप में कृष्ण अपने मित्रों के साथ खेलते हुए बालहठ प्रकट करते हैं। खेल में हार जाने पर भी वे अपनी हार नहीं मानते।

अपने साथियों के नाराज़ होने पर नंद बाबा की दुहाई देकर अपनी हार मान जाते हैं। सूरदास, बाल मनोविज्ञान के अद्भुत चितेरे हैं। औँखें न होने पर भी उनके मन की आँखें वह सब देख लेती हैं जो आंखों वाले भी नहीं देख पाते। ब्रजभाषा की कोमल कांत शब्दावली के माध्यम से चित्रात्मकता का सुंदर रूप प्रकट किया है। तत्सम और तद्भव शब्दावली का सहज-समन्वित प्रयोग सराहनीय है। माधुर्य गुण का प्रयोग दर्शनीय है। वात्सल्य और शृंगार रसों की योजना की गई है। अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को सरलता व सरसता प्रदान की है तथा लयात्मकता की सृष्टि हुई है। सूरदास श्रीकृष्ण-भक्त हैं। उन्होंने वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग की पालन करते हुए माधुर्य भाव की भक्ति को प्रमुखता दी थी। वात्सल्य रस का प्रयोग करने में उन जैसा निपुण कवि तो विश्व-भर में कभी कोई नहीं हुआ। इसीलिए कहा जाता है, सूर ही वात्सल्य है और वात्सल्य ही सूर है।’

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पद्यांशों की संद्र सहित व्याख्या कीजिए-
(क) जाति-पाँति तुम्हारौ गैयाँ।
(ख) सुनि री नवावति।
उत्तर :
देखिए सप्रसंग व्याख्या भाग।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
खेल में हारकर भी हार न मानने वाले साथी के साथ आप क्या करेंगे ? अपने अनुभव कक्षा में सुनाइए।
उत्तर :
अपने अनुभव के आधार पर स्वयं कीजिए।

प्रश्न 2.
पुस्तक में संकलित ‘मुरली तक गुपालहिं भावति’ पद में गोपियों का मुरली के प्रति ईष्या-भाव व्यक्त हुआ है। गोपियाँ और किस-किस के प्रति ईष्या-भाव रखती थीं, कुछ नाम गिनाइए।
उत्तर :
गोपियाँ मुरली के प्रति ईंष्या-भाव रखती थीं क्योंकि वे मानती थी कि मुरली तो उनकी सौत है। मुरली के अतिरिक्त गोपियाँ कुष्जा से ईँष्या-भाव रखती थी जो श्रीकृष्ण को मथुरा में मिली थी। गोपियाँ श्रीकृष्ण के मित्रों से भी कुछ इर्ष्या-भाव रखती थीं जिनके साथ खेलकूद और माखन-चोरी में वे इतने मग्न हो जाते थे कि उन्हें गोपियों की परवाह ही नहीं रहती थी। गोपियाँ यशोदा माता के भाग्य से भी ईष्ष्या करती थीं कि उन्हें श्रीकृष्ग जैसा पुत्र प्राप्त हुआ था।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 11 खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहिं भावति

कथ्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
सूरदास की भक्ति-भावना का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
उत्तर :
वल्लभाचार्य ने सूर को दीक्षा प्रदान की थी और उन्हें पुष्टि मार्ग का अनुयायी बनाया था। ये सदा ही परमात्मा की कृपा को लालायित रहते थे और उनकी कृपा की अभिलाषा करते थे। इन्होंने वात्सल्य, साख्य और माधुर्य भाव-भेदों के आधार पर भक्ति के प्रेममूलक स्वरूप का सरस चित्रण किया। उन्होंने संयोग और वियोग पक्ष की मनोहारी लीलाओं की झाँकी प्रस्तुत की। सूर की भक्ति में भक्त और भगवान एक ही सामाजिक स्तर पर हैं। सूर ने भक्ति के रूप में समतामूलक जीवन-दर्शन की स्थापना की है जिसमें भेद-भाव की खाइयाँ पट जाती हैं। उनकी भक्ति-भावना आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समतावाद की योजना थी।

प्रश्न 2.
हार जाने पर भी कृष्ण के क्रोध करने का क्या कारण था ?
उत्तर :
श्रीकृष्ण खेल में हार गए थे पर बाल-सुलभ हठ के कारण वे अपनी हार मानने को तैयार ही नहीं थे। उनके मन में कहीं न कहीं यह भाव भी छिपा हुआ था कि उनके पिता नंद बाबा के पास गाँव में सबसे अधिक गायें थीं और वे सबसे अधिक संपन्न थे। इसलिए उनके सधियों को उनकी हर बात माननी ही चाहिए।

प्रश्न 3.
‘मुरली तऊ गुपालहिं भावति’ पद में एक सखी दूसरी सखी से क्या कहती है ?
उत्तर :
एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि श्रीकृष्ण की बाँसुरी ने तो उन्हें पूरी तरह से अपना गुलाम बना रखा है। वह उन्हें मन-चाहे ढंग से नचवाती है; उन्हें एक पाँव पर खड़ा रखती है और उन पर अपना अधिकार जमाती है। श्रीकृष्ण का शरीर अति कोमल है पर वह अपनी आज्ञा से हर बात पूरी करवाती है। उसी की आज्ञा से उनकी कमर देढ़ी हो जाती है; वे त्रिभंगी मुद्रा धारण कर लेते हैं। वे तो बाँसुरी के सामने ऐसे लगते हैं जैसे उसके बड़े अहसानमंद और गुलाम हों। स्वयं तो होंठ रूपी कोमल शैंया पर लेट जाती है और उनके पत्ते जैसे कोमल ह्नाथों से पैर दबवाती है। तरह-तरह से चुगली करके वह हम पर क्रोध करवाती है। कृष्ण को एक क्षण कभी प्रसन्न जानकर धड़ से सिर हिलवाती है।

प्रश्न 4.
कुष्ण को ‘सुजान कनौड़े’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
‘सुजान’ का शाब्दिक अर्थ है ‘चतुर’ तथा कनौड़े का ‘कृपा से दबे हुए’। गोपियों के हदय में बाँसुरी के लिए सौत भाव था और वे मानती थीं कि श्रीकृष्य तो बाँसुरी के हाथों बिके हुए गुलाम हैं। चाहे वे बहुत चालाक हैं पर बाँसुरी के सामने उनकी एक नहीं चलती। श्रीकृष्ण बहुत चतुर हैं पर शायद बाँसुरी के द्वारा किए गए किसी अहसान से दबे हुए हैं। वे चाहकर भी उसका विरोध नहीं कर सकते। इसीलिए गोपियों ने कृष्ण को ‘सुजान कनौड़’ कहा है।

प्रश्न 5.
बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण की छवि किस प्रकार की हो जाती है ?
उत्तर :
बाँसुरी बजाते हुए श्रीकृष्ण का सारा ध्यान बाँसुरी की तरफ केंद्रित हो जाता है। वे भूल जाते हैं कि उनके आस-पास कौन हैं। वे नहीं चाहते कि उस समय उन्हें कोई भी परेशान करे। वे एक पाँव को तिरछा कर, कमर टेढ़ी और गर्दन झुकाकर बाँसुरी बजाते हैं तो त्रिभंगी मुद्रा में होते हैं। जब गोपियाँ उनके निकट आना चाहती हैं तो बाँसुरी बजाते-बजाते संकेत से उन्हें वहाँ से दूर जाने के लिए कहते हैं। वे अपने बाँसुरी-वादन में किसी प्रकार की बाधा पसंद नहीं करते।

प्रश्न 6.
गोपियाँ किस बात को कदापि सहन नहीं कर पाती हैं ?
उत्तर :
श्रीकृष्ण जब बाँसुरी बजाने में मग्न हो जाते हैं तो गोपियों की सुध भी नहीं लेते। इस बात को गोपियाँ कदापि सहन नहीं कर पार्ती कि बाँँुरी के कारण उनकी अवहेलना हो। उन्हें लगता है कि बाँसुरी उनकी सौत है, जो प्रिय को उनके पास आने ही नहीं देती। सूरदास ने गोपियों के द्वारा सौत भावना से बाँसुरी की आलोचना की है।

प्रश्न 7.
प्रथम पद में सूरदास ने किस बात का वर्णन किया है ?
उत्तर :
प्रथम पद में सूरदास ने बाल कृष्ण की लीला का आकर्षक वर्णन किया है। इस पद में कवि खेल-खेल में बालकों के रूठने और अपने आप मान जाने का अत्यंत स्वाभाविक तथा मनोवैज्ञानिक चित्रण प्रस्तुत किया है। सूरदास ने प्रथम पद में खेल में हार जाने पर कृष्ण द्वारा अपनी हार स्वीकार न करने का बड़ा सुदर-सजीव चित्रण किया है।

प्रश्न 8.
दूसरे पद में सूरदास ने किस बात का उल्लेख किया है ?
उत्तर :
दूसरे पद में गोपियाँ अपनी सखियों से जो बात कहती हैं, उससे कृष्ण की मुरली के प्रति उनका कृष्ण के प्रति प्रेम प्रकट होता है। वे एक-दूसरे से कहती हैं कि यह मुरली तो बड़ी दुष्ट है। यह कृष्ण से अत्यंत अपमानजनक व्यवहार करती है, पर फिर भी उन्हें अच्छी लगती है। यह नंदलाल को अनेक प्रकार से नचाती है। उन्हें एक पैर पर खड़ा रखती है। उनसे अपनी आज्ञा का पालन करवाती है। इसी से उनकी कमर भी टेढ़ी हो जाती है। वह हम गोपियों की कृष्ण का कोप-भाजन बनवाती है। सदैव उनके साथ होने के कारण वह उनकी आत्मीय बन बैठी है।

प्रश्न 9.
मुख्य रूप से दूसरे पद में गोपियों का कौन-सा भाव प्रकट हुआ है ?
उत्तर :
दूसरे पद से मुख्य रूप से गोपियों का मुरली के प्रति ईप्या-भाव प्रकट हुआ है। उसका मानना है कि यह मुरली ही उन्हें कृष्ण से दूर करती है। इसी के कारण उन्हें कृष्ण के क्रोध का शिकार बनना पड़ता है। मुरली ने पूर्ण रूप से कृष्ण को अपना दास बना लिया है। वो उसके वश में वशीभूत हो गए हैं। गोपियाँ तो मुरली को अपनी सौत तक मानने लगी हैं।

प्रश्न 10.
दोनों पदों में से आपको कौन-सा पद अच्छा लगा और क्यों ?
उत्तर :
सूरदास के दोनों पदों में से प्रथम पद ‘खेलन में को काको गुसैयाँ’ मुझे बहुत अच्छा लगा। अच्छा लगने का कारण यह है कि इसमें श्रीकृष्ण के बाल-सुलभ रूप को अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। पद में सूरदास ने मनोवैज्ञानिक दृष्टि का सहारा लेकर समवय आयु साथियों के खेल और झगड़े का वर्णन किया है। वे आपस में खेलते हैं, झगड़ते हैं, मानते हैं, मनाते हैं।

प्रश्न 11.
‘श्रीकृष्ण’ के लिए पाँच पयार्यवाची शब्द लिखिए।
उत्तर :
श्याम कन्हैया नंदलाल देवकीनंदन मुरलीधर

काव्य-साँदर्य पर आधारित प्रश्न – 

प्रश्न 1.
सूरदास की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए?
उत्तर :
भक्ति-भावना – सूरदास पुष्टिमार्ग में दीक्षित थे। उन्हें ‘पुष्टिमार्ग का जहाज़’ कहा जाता है। इसी को आधार बनाकर इन्होंने वात्सल्य, साख्य और माधुर्य भाव की पद रचना की है।
वात्सल्य-चित्रण – सूर-काव्य में वात्सल्य वर्णन का स्वरूप अनूठा है। सूर से पहले किसी भी ब्रज के कवि ने बाल-वर्णन नही किया था। काव्य रूप-सूर ने अपना सारा काव्य गेय मुक्तक रूप में लिखा। कृष्ण के जीवन को जिस छंग से इन्होंने प्रस्तुत करने का प्रयास किया, उसके लिए मुक्तक विधा ही सबसे अधिक उपयुक्त थी।
शैली – सूर ने मुख्य रूप से गीति-शैली का व्यवहार किया है। इसमें भावात्मक्ता, संगीतात्मकता, संक्षिप्तता, वैयकितता और कोमलता के गुण हैं। गोपियों के प्रेम के माध्यम से इन्होने वैयक्तिकता को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है।
छंद – भावात्मकता के कारण सूर-काव्य में गीत-पदों का प्रयोग किया गया है। चौपाई, चौबोला, सार, सारसी, दोहा, भक्ति, सवैया, कुंडलियाँ, गीतिका आदि छंदों का प्रयोग यत्र-तत्र किया गया है।
भाषा – सूर की भाषा ब्रजभाषा के साहित्यिक रूप का सुंदर उदाहरण है। उन्होंने परिस्थितियों के अनुसार शब्दों को चुना। इनकी भाषा में संस्कृत, खड़ी बोली, पूर्वी हिंदी, बुंदेलखंडी, राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी, अरबी और फ़तरसी के शब्द प्रयुक्त हुए हैं। इनकी वाक्य-व्यवस्था गठी हुई है। मुहावरे-लोकोक्तियों तथा अलंकारों के सफल प्रयोग से इनके काव्य के में साँदर्य में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 2.
सूरदास ने श्रृंगार रस और प्रकृति चित्रण किया है स्पष्ट करें।
उत्तर :
शृंगार के दोनों पक्ष-सूर काव्य में श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का सुंदर परिपाक हुआ है। गोपियाँ श्रीकृष्ण की रूप माधुरी पर मुग्ध हैं।
प्रकृति चित्रण – सूर का भक्ति-काव्य भावात्मक काव्य है। इसमें प्रकृति का चित्रण भावों की पृष्ठभूमि में हुआ है या उद्दीपन भाव के लिए अथवा अलंकारों के अप्रस्तुत विधान के रूप में। इन्होंने प्रकृति का स्वतंत्र रूप में चित्रण नहीं किया। जैसे-
‘बिन गुपाल बैरि भई कुंजै।
तब ये लता लगति अति सीतल,
अब भई विषम ज्वाल की पुंजै।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 12 Question Answer हँसी की चोट, सपना, दरबार

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 12 हँसी की चोट, सपना, दरबार

Class 11 Hindi Chapter 12 Question Answer Antra हँसी की चोट, सपना, दरबार

प्रश्न 1.
‘हैसी की चोट’ सवैये में कवि ने किन पंच तत्वों का वर्णन किया है तथा वियोग में वे किस प्रकार विदा होते हैं ?
उत्तर :
इस सैैये में कवि ने पृथ्वी, जल, वायु, तेज तथा आकाश तत्वों का वर्णन किया है। प्रेम में विरह की पीड़ा बहुत दुःखदायी होती है जो श्मशान की आग से भी बुरी होती है। श्मशान की आग तो कुछ ही समय में सब कुछ जला कर मिटा देती है लेकिन वियोग की पीड़ा तो तिल-तिल कर जीवन लेती है। गोपी ने जिस दिन से श्रीकृष्ण को अपनी तरफ़ मुसकराकर देखते हुए देखा है उस दिन से वह वियोग की आग में जल रही है। वह सूख-सी गई है। उसकी साँसों का आना-जाना बंद हो गया है। आँखों से अब आँसू बहने बंद हो गए हैं। उसकी आँखों में आँसू शेष बचे ही नहीं हैं। उसके शरीर का तेज समाप्त हो चुका है। विरह-अग्नि ने उसके शरीर की कृशता को अत्यधिक बढ़ा दिया है। उसके शरीर के पाँचों तत्व-पृथ्वी, जल, वायु, तेज तथा आकाश धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। प्रिय से मिलने की आशा में जीवन रूपी आकाश तत्व को अभी बनाए हुए है। गोपी का शरीर सूख गया है; तेज समाप्त हो गया है तथा जल तत्व खत्म हो गया है।

प्रश्न 2.
‘हँसी की चोट’ सवैये की अंतिम पंक्ति में यमक और अनुप्रास का प्रयोग करके कवि क्या मर्म अभिव्यंजित करना चाहता है ?
उत्तर :
इस पंक्ति में कवि ने यमक और अनुप्रास के प्रयोग के द्वारा अपने कथन में चमत्कार तथा गंभीरता उत्पन्न करते हुए स्पष्ट करना चाहता है कि जिस दिन से नायक ने नायिका की ओर हँसकर देखा है उस दिन से ही नायिका की हँसी समाप्त हो गई है। वह नायक के विरह में जल रही है। उस दिन से ही नायिका का हुदय नायक ले गया है।

प्रश्न 3.
नायिका सपने में क्यों प्रसन्न थी और वह सपना कैसे टूट गया ?
उत्तर :
जब नायक ने नायिका के सपने में स्वयं आकर यह कहा कि आओ झूला झूलने चलें, तो अपने प्रियतम को सामने देख और उसका निमंत्रण पाकर वह फूली नहीं समाई थी लेकिन जैसे ही उसकी आँखें खुलीं वैसे ही उसका सपना टूट गया था। वहाँ न तो श्रीकृष्ण थे और न ही आकाश में घने बादल थे। उसकी आँखें आँसुओं से भर गई थीं।

प्रश्न 4.
‘सपना’ कवित्त का भाव-सँददर्य लिखिए।
उत्तर :
‘सपना’ कवित्त में गोपी का श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम और मिलन की इच्छा का भाव व्यक्त हुआ है। मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि मानव के अब चेतन मन में छिपी बातें ही सपनों के रूप में प्रकट होती हैं। गोपी श्रीकृष्ण से मिलना चाहती थी; वर्षा में उनके साथ झूले पर झूलना चाहती थी और उनकी निकटता को अनुभव करना चाहती थी। रिमझिम वर्षा की झड़ी लगी थी। घने काले बादल आकाश में उमड़–ुमड़कर आए थे। श्रीकृष्ण ने स्वयं गोपी के पास आकर कहा कि आओ, आज झुला झूलने चलें। गोपी यह सुन फूली नहीं समाई। प्रसन्नता में भरकर जैसे ही वह उठी, उसकी नींद खुल गई। उसके जागने से उसके भाग्य ही मानों सो गए। न तो आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे और न ही वहाँ श्रीकृष्ण थे। वियोग की पीड़ा के कारण उसकी ऑँखें आँसुओं से भर गई थीं।

प्रश्न 5.
‘दरबार’ सवैये में किस प्रकार के वातावरण का वर्णन किया गया है ?
उत्तर :
देव के द्वारा रचित इस सवैया में रीतिकालीन पतनशील सामंती व्यवस्था और दरबारी वातावरण की ओर संकेत किया गया था। दरबारियों को अपने राजा की हाँ में हाँ मिलानी पड़ती थी। तत्कालीन शासक बुद्धिहीन और भ्रष्ट बुद्धि थे। मूखों वाली हरकतें करना और देखना उन्हें प्रिय था और दरबारियों को भी वैसा ही करना पड़ता था। बुद्धिमान दरबारी सब देख-सुनकर चुप रहते थे। छोटी, तुच्छ और हीन बातों को महत्व दिया जाता था। व्यर्थ ही तुच्छ और हेय बातें बुद्धिहीन शासकों को अच्छी लगती थीं। वे ओछे और बाज़ारू प्रवृत्ति के थे। उन्हें अच्छो-बुरे के बीच अंतर करना ही नहीं आता था। वे समझाने पर समझते नहीं थे और सुनाने पर सुनते नहीं थे। उनकी जैसी पसंद थी, वे वैसा ही सुनते थे। इसलिए अपनी कला और प्रतिभा को छोड़ सारी रात वे राजा की पसंद के कारण नाचते रहते थे।

प्रश्न 6.
दरबार में गुणग्राहकता और कला की परख को किस प्रकार अनदेखा किया जाता है ?
उत्तर :
‘दरबार’ सवैये में कवि ने बताया है कि ‘साहिब’ तत्कालीन शासक है जो बुद्धिमान और विवेकी नहीं है। तुच्छ सोच और हेय मानसिकता का परिचायक होने के कारण उसके दरबार का वातावरण बिगड़ चुका है। वह अपने दखबारियों की अच्छी सलाह न सुनता है और न ही मानता है। ओछी और बाजारू बातें ही उसे अच्छी लगती हैं। गहरी सोच और कठिन विषयों पर तो वह विचार करता ही नहीं इसलिए दरबार में गुणवान तथा कलावान व्यक्ति की अनदेखी की जाती है तथा चापलूसी को प्रधानता दी जाती है।

प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि।
(ख) सोए गए भाग मेरे जानि वा जगन में।
(ग) वेई छाई बूंदें मेरे आसु हूवै दृगन में।
(घ) साहिब अंध, मुसाहिब मूक, सभा बहिरी।
उत्तर :
(क) नायक ने जब से नायिका को हैसकर देखा है तब से नायिका को ऐसा लगता है जैसे उस नायक ने हैसकर देखने मात्र से ही उस का हदयय चुरा लिया है। वह नायक से मिलने के लिए व्याकुल रहने लगती है और निरंतर उससे नहीं मिल पाने की वियोगाग्नि में जलती रहती है।

(ख) लाक्षणिकता से युक्त इस पंक्ति में गोपिका की पीड़ा स्पष्ट रूप से व्यक्त हुई है। जब वह सो रही थी और सपने में श्रीकृष्ण की रूप माधुरी और सान्निध्य को पा रही थी तब संयोग अवस्था के सुखों में डूबी हुई थी लेकिन जगते ही; आँखें खोलते ही उसका सपना टूट गया। जब आँखें खुलीं तो न तो वहाँ श्रीकृष्ण थे और न ही आकाश में छाए बादल। वह तो दुख के सागर में मानो डूब-सी गई। उसकी आँखें औसुओं से भर गई । उसकी किस्मत उसके जागने से सो गई। हर मानव अपने सपनों में अवचेतन के कारण उन सुखों को पा लेता है जो चाहे उसे जीवन में उपलब्ध न हो। गोपिका श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी पर उन्हें प्राप्त नर्ही कर पा रही थी इसलिए सपने में उसे अपने भाग्य पर गर्व हो रहा था कि उसने श्रीकृष्ण को पा लिया था, पर नींद खुलते ही जीबन का यथार्थ सामने आ गया। उसके जागने से उसके भाग्य ही मानो सो गए।

(ग) श्रीकृष्ण ने गोपिका को उसके सपने में जब झूले पर झूलने का आग्रह किया था तब बाहर रिमझिम बारिश की झड़ी लगी हुई थी। गोपिका की नींद खुलते ही उसे वास्तविकता का पता चला कि वह तो सपना देख रही थी। न तो बाहर वर्षा हो रही थी और न ही श्रीकृष्ण वहाँ थे। उसकी आँखों से आँसू बह निकले। गोपी को लगा कि वही वर्षा की बूँदे उसकी आँखों में ऑसू की बूँदों के रूप में दिखाई देने लगी हैं।

(घ) तत्कालीन विलासी तथा चापलूसी-पसंद राजाओं की दशा का वर्णन करते हुए कवि लिखता है कि सद्बुद्धि और विवेक से रहित राजा अक्ल का अंधा है। उसके चापलूस दरबारी अच्छा-बुरा देखते हुए भी राजा की जी हजूरी करने के कारण चुप रहते हैं तथा सभा में उपस्थित अन्य लोग भी राजा की नाराजगी मोल न लेने के कारण देखते-सुनते हुए भी बहरे-गूँगे बने रहते हैं तथा कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नही करते।

प्रश्न 8.
देव ने दरबारी चाटुकारिता और दंभपूर्ण वातावरण पर किस प्रकार व्यंग्य किया है ?
उत्तर :
रीतिकालीन महाकवि देव स्वयं दरबारी कवि थे। जीवनभर वे अनेक राजाश्रयों को प्राप्त करते रहे थे। उन्होने किसी दरबार के चाटुकारिता और दंभपूर्ण वातावरण का चित्रण करते हुए उस पर व्यंग्य किया है कि यदि राजा मूख्य हो तो बुद्धिमान और विवेकी दरबारी भी अपने राजा जैसे ही हो जाते हैं। राजा के समझदार दरबारी चुप हो जाते है और शेष राजा के मूर्खतापूर्ण व्यवहार का समर्थन करते हुए स्वयं भी वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। ऐसे दरबार में कोई किसी की सलाह नहीं सुनता और न ही कोई सलाह देता है। उन्हें जिस प्रकार नचाया जाए वे मूर्खों की भाँति वैसे ही नाचते हैं।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
(क) साँसनि करि।
(ख) झहरि गगन में।
(ग) साहिब अंधा बाच्यो।
उत्तर :
देखिए सप्रसंग व्याख्या भाग।

प्रश्न 10.
देव के अलंकार-प्रयोग और भाषा के प्रयोग के कुछ उदाहरण पठित पदों से लिखिए।
उत्तर :
‘हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि’ में अनुप्रास और यमक अलंकार है।
‘झहरि-झहरि झीनी बूँद’ में अनुप्रास और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
‘घहरि-घहरि घटा घेरी’ में अनुप्रास तथा पुनरक्ति प्रकाश अलंकार है।
‘झहरी- झहरि झीनी बूँद हैं परति मनो,
‘घहरि-घहरि घटा घेरी है गगन में-में उत्रेक्षा अलंकार है।
‘रंग रीझ को माच्यो’ में अनुप्रास अलंकार है।
‘फूली न समानी’ ‘सोए गए भाग’ और मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है। सर्वत्र ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया गया है। ‘साहिब ग्रंथ, मुसाहिब मूक, सभी बहिरी’ में लाक्षणिक तथा प्रतीकात्मक प्रयोग देखे जा सकते है।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
‘दरबार’ सवैया को भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक अंधेर नगरी के समक्ष रखकर विवेचना कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

प्रश्न 2.
देव के समान भाषा प्रयोग करने वाले किसी अन्य कवि के पदों का संकलन कीजिए।
उत्तर :
यहाँ तीन कवियों का एक-एक पद दिया जा रहा है। अन्य पदों का संकलन विद्यार्थी स्वयं अपने विद्यालय के पुस्तकालय से करें-

(i) फाग के भीर अभीरन कें, गहि गोबिंद लै गई भीतर मोरी।
माई करी मन की पद्माकर, ऊपर नाई अबीर की झोरी।
छीन पितंबर कम्मर तें, सु विदा दई मीड़ि कपोलन रोरी।
नैन नचाई, कही मुसकाइ, लला फिरि आइयौ खेलन होरी।
– पद्माकर

(ii) सब जाति फटी दुख की दुपटी कपटी न रहै जहँ एक घटी।
निघटी रूच मीचु घटी हूँ घटी जगजीव जतीन की छूटी चटी।
अघओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरज्ञान-गटी।
चहुँ ओरनि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी जटी पंचबटी॥
– केशवदास

(iii) तब तौ छबि पीवत जीवन है, अब सोचन लोचन जात जरे।
हित-पोष के तो सु प्रान पले, विललात महा दु:ख दोष भरे।
घनआनँद मीत सुजान बिना, सब ही सुख-साज-समाज टरे।
तब हार पहार से लागत है, अब आनि कै बीच पहार परे।।
-घनानंद

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कथ्य पर आधारित प्रश्न – 

प्रश्न 1.
देव की कविता में वियोग श्रूंगार को बहुत अधिक स्थान दिया गया है-इस कथन के आधार पर कवि पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
देव रीतिकालीन श्रेष्ठ रस-सिद्ध कवि हैं जिन्होंने जीवन-भर दरबारी वातावरण में रहकर काव्य-रचना की थी। उन्होंने दरबारों की मानसिकता के आधार पर कविता रची थी। तब रसराज भृंगार ही कविता में प्रधान था। इसके संयोग और वियोग पक्षों को समान रूप से महत्व दिया गया था, पर प्रेम की सच्चाई और पराकाष्ठा वियोग शूंगार में निहित है। देव ने नाबिका के वियोग का सूक्ष्म चित्रण किया है। उनके द्वारा किया गया वियोग-वर्णन और उसकी अवस्थाएँ अनेक प्रकार की हैं। जब नायक नायिका को यह बतलाता है कि वह प्रवास पर जाने वाला है तब नायिका परेशान हो जाती है और वह उनके जाने से पहले ही वियोग की अंग्न में जलने लगी है –

विरह की ज्वाला से नायिका की अवस्था अत्यंत सोचनीय हो गई है-पता नहीं वह वियोगावस्था को सहन भी कर पाएगी या नहीं। वर्षा की ॠतु उस विरहिनी को निरंतर जला रही है। वह विरह की आग में जलकर भी अपनी पीड़ा से नायक को पीड़ित नहीं करना चाहती –

पीर सही घर ही में रही कविदेव दियौ नहीं दूतिनि को दुख।
भाहूक बात कही न सुनी मन मारि विसारी दियोँ सिमरौ सुख।

प्रश्न 2.
‘नट की बिगरी मति’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर :
नट अपनी कला और प्रतिभा से लोगों का मनोरंजन किया करते थे। वे दूसरों को प्रसन्न कर धन, मान और मर्यादा प्राप्त करते थे इसलिए वे वही कार्य करते थे जो देखने-सुननेवाले को अच्छा लगता था। जब श्रासक की रचचि ही अच्छी न हो तो उसके दरबार में नट से कला की श्रेष्ठता की प्राप्ति की कल्पना भी उचित नहीं है। वे अपनी कला और प्रतिभा से भटककर रातभर नाचते थे; दूसरों को नाचने के लिए प्रेरित करते थे। ${ }^{+}$नट की बिगरी मति’ से यह प्रकट होता है।

प्रश्न 3.
कृष्ण के हैसते हुए मुँह फेरकर चले जाने से गोपिका ने क्या कुछ खो दिया और क्या उसके पास शेष रह गया ?
उत्तर :
जब श्रीकृष्ण ने गोपिका की ओर हैंसते हुए देखा और फिर मुँह फेरकर चले गए तो जिन पाँच तत्वों से मानवीय शरीर बनता है उनमें से पृथ्वी, जल, वायु तथा तेज तत्व तो समाप्त हो गए। केवल आकाश तत्व थोड़ा-सा शेष रह गया जो धौरे-धीरे समाप्त होता जा रहा था।

प्रश्न 4.
‘हँसी की चोट’ पद का सार लिखिए।
उत्तर :
‘हैंसी की चोट’ पद महाकवि देव द्वारा रचित काव्य ग्रंथ ‘सुखसागर तरंग’ से अवतरित है। एक दिन नायिका को नायक ने हँसकर देखा और नायिका नायक की हैंसी पर उसे अपना दिल दे बैठी। नायिका के इस बदलाव पर नायक ने कोई ध्यान नहीं दिया। नायक के ध्यान न देने के कारण नायिका अत्यधिक उद्विग्न एवं व्याकुल है। नायिका को लगता है कि अब वह मूर्चिछहोने वाली है। उसकी साँसों से हवा का आना जाना बंद हो गया है। आँखों से अश्रुओं का बहना समाप्त हो गया है। उसके शरीर में विद्यमान पाँचों तत्व, जल, वायु, तेज अगिन तथा आकाश धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। नायिका को अब अपने प्रिय से मिलने की आशा है। वही आशा उसके जीवन रूपी आकाश को स्थिर बनाए हुए है।

प्रश्न 5.
‘दरबार’ सवैये में देव ने मूल रूप से क्या कहना चाहा है ?
उत्तर :
रीतिकालीन कवि देव ने ‘दरबार’ सवैये में मूर्ख राजा की सभा का सजीव चित्रण करते हुए उस समय के युग का चित्र खींचा है। मूर्ख राजा के समक्ष बुद्धिमत्ता यही है कि चुप रहो। कवि देव ने दरबार की अव्यवस्था का वर्णन किया है। पतनशील और निष्क्रिय सामंती व्यवस्था के प्रति कवि ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

प्रश्न 6.
सिद्ध कीजिए कि देव दरबारी कवि थे ?
उत्तर :
रीतिकालीन देव का पूरा नाम देवदत्त था। ये दरबारी कवि थे। इन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक आश्रयदाताओं के पास आश्रय लेकर काव्य-रचना की। इनके सभी छंदों में दरबारी चमक देखी जा सकती है। देव की कविता का प्रमुख वर्य-विषय शृंगार था। इन्हें आचार्य का पद भी प्राप्त है। देव ने गुण और रीति को समानार्थक माना है। दरबारी कवि होने के कारण उनको आचार्य होने के बजाय कवि रूप में अधिक सफलता मिली। दरबारी साँदर्य-बोध के कारण इन्हें दरबारी कवि कहना गलत न होगा।

कथ्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘सपना’ कवित्त का भाव-सौंदर्य और शिल्प-सौंदर्य लिखिए।
उत्तर :
‘सपना’ कवित्त में विरही मन की इच्छाएँ और उन इच्छाओं के पूरा न होने से उत्पन्न पीड़ा के भावों को कवि ने अति सूक्ष्मता और कोमलता से प्रकट किया है। सारा आकाश घने काले बादलों से भरा था। छोटी-छोटी बूँदे घने काले बादलों से गिर रही थीं। श्रीकृष्ण ने गोपिका से एक साथ झुला झूलने का आग्रह किया। प्रसन्नता से भरकर जैसे ही गोपिका ने अपनी आँखें खोलीं उसका सपना टूट गया। वहाँ न तो श्रीकृष्ण थे, न घने बादल, न ही झीनी-झीनी बूँदे। विरह की पीड़ा से गोपिका की आँखें आँसुओं से भर गई।

कवि ने ब्रज भाषा को कोमलकांत शब्दावली के द्वारा संयोग एवं वियोग भृंगार को प्रकट किया है। अभिधा शब्द-शक्ति तथा प्रसाद गुण ने कवि के कथन को सरलता, सरसता और भाव प्रबलता प्रदान की है। कवित्त छंद ने कवि के कथन को संगीतात्मकता प्रदान की है। अनुप्रास, पुनरक्ति प्रकाश, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण, विरोधाभास और मानकीकरण का सुंदर-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है। तद्भव शब्दों में लयात्मकता और कोमलता विद्यमान है। गतिशील बिंब योजना है। कवि ने प्रेम की व्यापकता को प्रकट किया है जो गोपिका के माध्यम से उसके सोतेजागते प्रकट होता है।

प्रश्न 2.
कवित्त छंद का परिचय दीजिए।
उत्तर :
कवित्त एक वार्षिक सम छंद है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के पंद्रहवें और सोलहवें वर्ण पर यति होती है। इसके अंदर सामान्य रूप से अंतिम वर्ण गुरु होता है।

उदाहरण –
साँसनि ही सौँ समीर गयो अरु, आँसुन ही सब नीर गयो ढरि।
तेज गयो गुन लै अपनो, अरु भूमि गई तनु की तुलना करि॥

प्रश्न 3.
चौपाई छंद का लक्षण तथा उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
चौपाई के प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं। चरण के अंत में जगण तथा तगण का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
उदाहरण –
Class 11 Hindi Antra Chapter 12 Question Answer हँसी की चोट, सपना, दरबार 1

प्रश्न 4.
सवैया छंद का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
कवित्त के समान सवैया एक सम वार्णिक छंद है। प्रत्येक चरण में इसके वण्णों की संख्या 22 से 26 तक होती है।
उदाहरण – पाँयनि नुपूर मंजु बजै, करि किंकिनि कै धुनि की मथुराई। साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।।

प्रश्न 5.
‘हँसी की चोट’ सवैया का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘हँसी की चोट’ सवैया महाकवि देव द्वारा रचित काव्य ग्रंथ ‘ सुखसागर तरंग’ से अवतरित है। इसमें कवि ने नायिका की विरहावस्था को अति मार्मिक डंग से प्रस्तुत किया है। कवि ने इस सबैया में विरह की दशम अवस्था का उल्लेख किया है।
कला पक्ष की दृष्टि से सवैये की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. वियोग शृंगार का अंकन किया गया है।
  2. यमक, अनुप्रास और स्वर मैत्री अलंकारों का सहज प्रयोग है।
  3. लाक्षणिक और प्रतीकात्मक प्रयोगों ने कवि के शब्दों को गहनता प्रदान की है।
  4. सवैया छंद है।
  5. अभिधा शब्द-शक्ति है।
  6. ब्रजभाषा की कोमलकांत शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
  7. बिंबात्मकता विद्यमान है।

प्रश्न 6.
देव ने अपने छंदों में किस रस का सर्वाधिक प्रयोग किया है और क्यों ?
उत्तर :
देव रीतिकालीन कवि है। रीतिकाल का प्रभाव उनपर देखते ही बनता है। शृंगार रस के दोनों पक्ष इस काल में छाए रहे। देव की रचनाओं में विषयविविधता बहुत व्यापक है। प्राय: राधा-कृष्ण के माध्यम से इन्होंने अपनी शृंगारिक भावनाओं को प्रकट किया है। इन्होंने शृंगार रस के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है। नायक-नायिका का रूप माधुर्य मिलन और हाव-भाव का चित्रण बहुत मनोहारी है। इनकी प्रवृत्ति भी अन्य रीतिकालीन कवियों के समान संयोग श्रृंगार में अधिक रमी है।

प्रश्न 7.
देव की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
देव रीतिकालीन कवि हैं। उन्होंने भृंगार के दोनों पर्षों का खूब प्रयोंग किया है। उन्हेंने अपने काव्य को सफल अभिव्यकित प्रदान करने के लिए शब्द शक्तियों का अच्छा प्रयोग किया है। इन्होंने माधुर्य और प्रसाद गुण का अच्छा प्रयोग किया है। इनके काव्य में तत्सम शब्दावली का प्रयोग अधिक दिखता है। ब्रजभाषा की कोमलकांत शब्दावली का इन्होंने सुंदर प्रयोग किया है।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 13 Question Answer औरै भाँति कुंजन में गुंजरत, गोकुल के कुल के गली के गोप, भाैंरन को गुंजन बिहार

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 13 औरै भाँति कुंजन में गुंजरत, गोकुल के कुल के गली के गोप, भाैंरन को गुंजन बिहार

Class 11 Hindi Chapter 13 Question Answer Antra औरै भाँति कुंजन में गुंजरत, गोकुल के कुल के गली के गोप, भाैंरन को गुंजन बिहार

प्रश्न 1.
पहले कवित्त में कवि ने किस ऋतु का वर्णन किया है ?
उत्तर :
पद्माकर ने हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा’ में संकलित पहले कवित्त में बसंत ऋतु का प्रभावशाली वर्णन किया है।

प्रश्न 2.
इस ऋतु में प्रकृति में क्या परिवर्तन होते हैं ?
उत्तर :
वसंत ऋतु में वृक्षों के झुंडों में भँवरे गुंजार करने लगते हैं। आम का बौर अपनी सुगंध से सारे वातावरण को मादक बना देता है। पक्षियों का समूह आनंदमय ध्वनियाँ उत्पन्न करने लगता है। वनस्पतियाँ रस-रंग से परिपूर्ण हो जाती हैं। युवावर्ग आनंद में झूमने लगता है तथा सर्वत्र स्फूर्ति, उमंग और उत्साह दिखाई देता है।

प्रश्न 3.
‘और’ की बार-बार आवृत्ति से अर्थ में क्या विशिष्टता उत्पन्न हुई है ?
उत्तर :
प्रकृति के रंगों का प्रभाव सामान्य रूप में सभी पर पड़ता है, पर कवि ने अपने कवित्त में ‘औरै’ शब्द की आवृत्ति से प्रकट किया है कि ऋतुराज वसंत का प्रभाव तो अति विशिष्ट है; बिलकुल अलग प्रकार का है; वैसा प्रभाव तो किसी ऋतु का हो ही नहीं सकता।

प्रश्न 4.
‘पद्माकर के काव्य में अनुप्रास-योजना अनूठी बन पड़ी है।’ उक्त कथन को प्रथम पद के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर पद्माकर ने अनुप्रास अलंकार का सहज-स्वाभाविक प्रयोग तो किया ही है, पर कहीं-कहीं उन्हॉने जान-बुझकर संकुचित विचार से भी इसका प्रयोग किया है। जिससे भाषा को फड़कन, एक अजीब-सी तड़पन और ओज प्राप्त हुआ है। अनुप्रास के उदाहरण के लिए उनके किसी भी पद को प्रस्तुत किया जा सकता है। वर्ण्य-सामग्री की स्फुट-योजना में कोई रमणीयता न होने के कारण उन्होंने वर्ण-मैत्री के द्वारा उसमें चमत्कार उत्पन्न करने का प्रयत्न किया है-
उदाहरण –

  1. छलिया छबीले छैल और छवि छ्वै गए।
  2. और रस औरे रीति और राग और रंग।
  3. और भाँति कुंजन में गुंजरत भीर भौर।

प्रश्न 5.
होली के अवसर पर सारा गोकुल गाँव किस प्रकार रंगों के सागर में डूब जाता है ? पद के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
गोकुल की गालियों में सभी लोग होली के रंगों में डूबकर किसी को कुछ भी कह देते हैं अर्थात अविवेक पूर्ण बातें करते हैं। कोई किसी के गुणों-अवगुणों की परवाह नहीं करता। एक गोपी अपने रंगों में भीगे कपड़ों को अभी निचोड़ भी नहीं पाई थी कि दूसरी गोपी ने फिर से उस पर रंग उलेड़ दिए। श्रीकृष्ण के साथ होली खेलकर गोपियाँ तो अपने मन को उनके प्रेम में रंगा गया अनुभव करती हैं। उसने प्रेम का रंग इतना गहरा है कि कभी भी वह नहीं उतरेगा।

प्रश्न 6.
कृष्ण प्रेम में डूबी गोपी क्यों श्याम रंग में डूबकर भी उसे निचोड़ना नहीं चाहती?
उत्तर :
गोपी ने गोकुल क्षेत्र में होली खेली। उसने अपनी सखियों के साथ तो होली खेली ही पर उसने श्रीकृष्ण की रूप माधुरी को भी कहीं देख लिया। उनकी रूप माधुरी ने गोपिका के हुदय को ऐसा प्रभावित किया कि वह स्वयं को उनके रंगों में रंगा हुआ अनुभव करती है। वह नहीं चाहती कि श्रीकृष्ण के प्रेम का रंग कभी भी उसके चित से उतरे इसलिए वह अपने चित को स्याम रंग में डूब जाने के बाद कभी नहीं निचोड़ना चाहती।

प्रश्न 7.
पद्माकर ने किस तरह भाषा-शिल्प से भाव-सौँदर्य को और अधिक बढ़ाया है ? सोदाहरण लिखिए।
उत्तर :
पद्माकर ने अपना सारा काव्य ब्रजभाषा में रचा है जिसमें अलंकारों की अधिकता है। इनकी भाषा अलंकारिक है। अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि इनके प्रिय अलंकार हैं। वर्ण-मैत्री के द्वारा इन्होंने चमत्कार की सृष्टि की है। इन्हें भाषा पर पूरा अधिकार था। कहीं-कहीं इन्होंने फ़ारसी शब्दावली का प्रयोग भी किया है। लाक्षणिक भाषा का प्रयोग करने में ये अतिनिपुण थे। इन्होंने मुहावरे और लोकोक्तियों का सुंदर और सहज प्रयोग किया है। ‘छलिया छबीले, छैल औरैै छबि हव गए’ पंक्ति में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है। इसी प्रकार से बसंत वर्णन के पद में कवि ने ‘औरै’ शब्द की बार-बार आवृत्ति द्वारा वसंत ऋतु के प्रभाव को विशिष्टता प्रदान कर दी है। ‘होली वर्णन’ के पद में कवि ने चाक्षक बिंब का आकर्षक विधान किया है तथा ‘ हाँ तो स्याम-रंग में चुराई चित चोरा चोरी’ में अनुप्रास तथा ‘स्याम-रंग’ में श्लेष अलंकार का सहज भाव से प्रयोग किया गया है। इसी कवित्त मैं ‘बोरत तों बोरूयौ पै निचोरत बन्नी नहीं’ में विशेषोक्ति अलंकार है। वसंत वर्णन के अंतर्गत कवि ने गुंजार करते हुए भैवरों के स्वरों को मल्हार राग का आलाप बताते हुए आकर्षक दृश्य उपस्थित किया है। सावन मनभावन सर्बत्र प्रेम की वर्ष करता प्रतीत होता है। मानवीकरण अलंकार की छटा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि कवि ने अपने भाषा-शिल्प से अपने काव्य के भाव-सौँदर्य में वृद्धि की है।

प्रश्न 8.
तीसरे पद में कवि ने सावन ऋतु की किन-किन विशेषताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है ?
उत्तर :
सावन ऋतु में आकाश घने काले बादलों से घिर जाता है। सब दिशाओं में भँवरे मस्ती में भर गुजार करने लगते हैं। भौंरों के बोलने की आवाज़ सभी दिशाओं में गूँजने लगती है। भँवरों की गुँजार राग मल्हार की तरह मधुर लगती है। झूलों पर प्रेमी जन झूलने लगते है। माननियों का मान भंग हो जाता है। सब तरफ़ प्रेम-ही-प्रेम बरसने लगता है।

प्रश्न 9.
‘गुमानहूँ तें मानहुं तें में क्या भाव-साँदर्य छिपा है?
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि सावन की ऋतु इतनी अधिक मद्मस्त होती है कि इसके प्रभाव से माननियों का मान भी भंग हो जाता है और वे प्रियतम के साथ प्रेम-रस में डूब जाती हैं।

प्रश्न 10.
संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
(क) और भाँति कुंजन ………… छवि छ्वै गए।
(ख) तौ लौं चलित ………… बनै नहीं।
(ग) कहें पद्माकर ………… ताहि करत मनै नहीं।
उत्तर :
देखिए सप्रसंग व्याख्या भाग।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
वसंत एवं सावन संबंधी अन्य कवियों की कविताओं का संकलन कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

प्रश्न 2.
पद्माकर के भाषा-सौंदर्य को प्रकट करनेवाले अन्य पद संकलित कीजिए।
उत्तर :
पद्माकर के भापा-सँददर्य को प्रकट करनेवाला एक पद यहाँ दिया जा रहा है –

चंचला चलाकें चहूँ ओरन तें चाहभरी,
चर्रज गई तीं फेरि चरजन लामीं री।
कहै पद्माकर लवंगन की लोनी लता,
लराजि गई तीं फेरि लरजन लागीं री।
कैसे धरँ धीर वीर त्रिविधि समीर तन,
तरजि गई तीं फेरि तरजन लार्गी री।
घुमड़ि घुमड़ि घटा घन की घनेरी अबै,
गरजि गई तीं फेरि बरजन लागीं री॥

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 13 औरै भाँति कुंजन में गुंजरत, गोकुल के कुल के गली के गोप, भाैंरन को गुंजन बिहार

कथ्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
पद्माकर द्वारा किए गए प्रकृति-चित्रण का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
पद्माकर रीतिकालीन कवि हैं। इन्होंने शृंगार रस के आलंबन और उद्दीपन रूप में प्रकृति का बड़ा ही मनोरम चित्रण किया है। पद्माकर ने ऋतुओं का वर्णन तो बड़े ही मनोरम और प्रभावशाली ढंग से किया है। इन्होंने ॠतुओं की महत्ता पर ध्यान न देकर उनकी उद्दीपन सामग्री पर ध्यान दिया है। इनके द्वारा चित्रित किया गया वसंत ऋतु का वर्णन बड़ा ही सुंदर और मादक बन पड़ा है। इसका एक उदाहरण देखिए –

और भांति कुंजन में गुंजरत भीर भाँर,
औरे डौर झौरन पैं बौरन के हवँ गए।

प्रश्न 2.
पद्माकर ने कवित्त में प्रकृति में आए परिवर्तन का क्या कारण बताया है ?
उत्तर :
पद्माकर कवित्त में परिवर्तन का कारण बताते हुए कहते हैं कि अभी तो वसंत को आए दो दिन हुए हैं और दो दिन में ही यह परिवर्तन की छया चारों ओर दिखाई देने लगी है। गलियों में घूमनेवाले सुंदर छलिया नायक भी अब बदल गए हैं। वसंत त्र में और ही भाँति का रस वनस्पतियों में आ गया है और रातें बदल गई हैं। राग-रंग तक में परिवर्तन आ गया है। इस परिवर्तन का एक ही मूल कारण वसंत का आगमन है।

प्रश्न 3.
कवि के अनुसार प्रिय के सम्मुख कौन-से तत्व फीके पड़ जाते हैं?
उत्तर :
रीतिकालीन कवि पद्माकर ने शृंगार रस में अधिक रुचि ली है। पद्माकर ने अपने काव्य में भृंगार और प्रेम के सुंदर चित्र अंकित किए हैं। अपने प्रियतम के पास जाने की इच्छुक नायिका को किसी प्रकार की मर्यादा का कोई भय नहीं रहता। वह तो बस अपने प्रेमी को पाना चाहती है। उसे इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि उसके प्रेमी ने उसका मान किया या फिर अपमान किया है। प्रिय के अभाव में उसे वसंत ऋतु, पक्षियों का चहचहाना, बादल का गरजना, वर्षा की टप-टप करती बूँदें, फूलों का महकना, कलियों का खिलना आदि सब फीके लगते हैं। प्रिय से मिलन की लालसा के कारण कही-कहीं पद्माकर के काव्य में सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन भी हुआ है।

प्रश्न 4.
कवि ने वर्षा ऋतु के उद्दीपन प्रभाव को नर-नारियों के हृदय पर कैसे प्रकट किया है ?
उत्तर :
कवि पद्माकर एक शृंगारिक कवि हैं। इन्होंने शृंगार के आलंबन और उद्दीपन दोनों रूपों का बड़ा सुंदर वर्णन किया है, लेकिन उद्दीपन रूप में इन्हें अधिक सफलता मिली है। कवि वर्षा ऋतु में वनों की सुंदरता का वर्णन करते हुए कहता है कि गुंजार करते भँवरों के वनों तथा बागों में उड़ने से ऐसा लगता है जैसे वे मधुर मल्हार राग का आलाप कर रहे हों। सावन के महीने में बरसते बादलों के बीच झूला-झूलना और आपसी प्रेम के भावों को प्रकट करना अति सुहाना लगता है।

प्रश्न 5.
किस ऋतु में प्रियतम का मान प्राणों से प्यारा लगता है और क्यों ?
उत्तर :
वर्षा क्रतु में अपने प्रियजन से नाराज़ होकर झूठा मान और अभिमान करने वाले प्रेमी उनसे दूर नहीं रह सकते। इस ऋतु उनके मन में अपने प्रिय के प्रति गहरा आकर्षण बढ़ जाता है। चारों दिशाओं में पशु-पक्षी उनके आकर्षण को ओर बढ़ावा देते हैं। जब मान समाप्त हो जाता है तो मिलन का आनंद दुगना हो जाता है।

प्रश्न 6.
कवि पद्माकर ने सावन ॠतु का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर :
कवि ने ऋलुओं का सुंदर चित्रण अपने काव्य में किया है। अपने तीसरे पद में उन्होंने सावन ऋलु में झूला झूलने का चित्रात्मक वर्णन बड़े ही सुंदर ढंग से किया है। सावन वर्णन के दौरान कवि ने गुंजार करते हुए भँवरों के स्वरों में मल्हार राग की कल्पना की है। इसके लिए उन्होंने अनेक आकर्षक दुश्य उपस्थित किए हैं। सावन मनभावन सर्वत्र प्रेम की वर्ष करता हुआ प्रतीत होता है। स्वर मैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। कवि ने इस ऋल में काले घने बादलों को आसमान में आते हुए दिखाया है। भँवरे के बोलने की आवाजें सर्वत्र सुनाई पड़ती है। मानवीकरण अलंकार ने सावन ऋ्तु का वर्णन करने में कवि पद्माकर की बहुत सहायता की है।

प्रश्न 7.
पद्माकर के समकालीन किसी एक कवि के कुछ छंद लिखिए।
उत्तर :
देव पद्माकर के समकालीन कवि माने जाते हैं। उनके कुछ छंद निम्नलिखित हैं-
(i) राधा कृष्ण किसोर जुग, पद बंदौ जग बंद।
मूरति रति सिंगार की, सुद्ध सच्चिदानंद।

(ii) पीर सही घर ही मैं रही केविदेव दियौ नहीं दुतिनि को दुख।
भाहूक बात कही न सुनी मन मारि विसारी दियौ सिमरौ सुरज॥

प्रश्न 8.
पद्माकर द्वारा रचित रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
पद्माकर रीतिकालीन के सुप्रसिद्ध कवि माने जाते हैं। पद्माकर के नाम अनेक रचनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है –

  1. हिम्मतबहादुर विरूदावली
  2. जगद्-विनोद
  3. प्रतापसिंह विरूदावली
  4. राम रसायन
  5. पद्माभरण
  6. गंगा लहरी।
  7. प्रबोध पचासा

प्रश्न 9.
पद्माकर के हृदय में छुपि भक्ति-भावना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पद्माकर शृंगारिक कवि होने के साथ-साथ भक्ति भाव से युक्त कवि भी थे। राम भक्ति में इनका पूर्ण विश्वास था। इनकी भक्ति सगुण और निर्गुण दोनों रूपों में दिखाई देती है। इनकी राम और कृष्ण दोनों के प्रति गहरी आस्था थी। ‘गंगा’ नदी के प्रति इनका अनन्य विश्वास देखते ही बनता है। इन्होंने अपने काव्य में ‘गंगा’ के मनोरम दृश्य का अंकन भी किया है। इसी संदर्भ में इन्होंने ‘गंगालहरी’ काव्य-रचना भी की है। इनमें लोक कल्याण की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है।

प्रश्न 10.
पद्माकर के जीवन के अंतिम दिनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
पद्माकर रीतिकाल के एक श्रेष्ठ कवि थे। अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे कष्ट से लगातार ग्रस्त रहे। अपने जीवन के अंतिम समय को नज़ीक जानकर वे कानपुर चले आए। यही अपने जीवन के अंतिम सात वर्ष पूरे किए। इन सात वर्षों में पद्माकर ने ‘रामरसायन’ तथा ‘गंगालहरी’ की रचना भी की, जो उनकी भक्तिशील भावना का साक्षात प्रमाण हैं।

प्रश्न 11.
पद्माकर के जगद्-विनोद के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर :
पद्माकर का जगद्-विनोद काव्य रसिकों और कवियों का कंठाहार है। वास्तव में यह श्रृंगार रस का सार ग्रंथ-सा प्रतीत होता है। इसकी मधुर कल्पना ऐसी स्वाभाविक और हाव-भावपूर्ण मूर्ति-विधान करती है कि पाठक मानो प्रत्यक्ष अनुभूति में मग्न हो जाता है।

प्रश्न 12.
सखी स्याम रंग में भीगी क्यों रहना चाहती है ?
उत्तर :
स्याम रंग में सखी इसलिए डूबी रहना चाहती है। क्योंकि यह रंग अपने प्रियतम को पास अनुभव करने वाला है। भले ही उसे अपने प्रेमी से मिलन का सुख न मिले लेकिन अपने प्रेमी के रंग से उसका सारा शरीर रंगमय हो गया है। इन सबसे हटकर कृष्ण के प्रेम का रंग तो श्याम रंग ही है। इसलिए नायिका अपने अपने प्रियतम के रंग में डूबी रहना चाहती है।

काव्य-सौंदर्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
भाषा की दुष्टि से पद्माकर की कविता का परीक्षण कीजिए।
उत्तर :
प्राय: माना जाता है कि रीतिकालीन कवियों में से अधिकांश की भाषा दूषित है पर उस युग में हिंदी में समर्थ, स्वच्छ और प्रांजल भाषा लिखने वाले चार-छह कवियों में पद्माकर को स्थान प्राप्त है। भाषा प्रयोग की दृष्टि से वे इस काल के बड़े समर्थ कवि है। इनकी भाषा ब्रज है। कही-कहीं इन पर बुंदेली और अंतर्वेदी का प्रभाव भी है। फ़ारसी के प्रचलित शब्द इनकी भाषा में पर्याप्त मात्रा में हैं। भाषा के विभिन्न रूपों के प्रयोग में ये तुलसीदास से टक्कर लेते हैं। वीर रस के प्रसंग में इनकी वृत्ति-योजना सीमा को पार कर गई है।

संयुक्ताक्षरों और द्वित्व वर्णों के प्रयोग से इन्होंने भाषा में कृत्रिमता का समावेश किया है। भाषा चयन तथा सजीवता की दृष्टि से इनकी तुलना रीति-कालीन कवियों में मतिराम तथा अंग्रेज़ी साहित्य में वड्र्सवर्थ से की जाती है। जिस स्थान पर जैसी भाषा का प्रयोग होना चाहिए, यह भली-भाँति जानते थे। इनकी भाषा में लोच है, प्रवाहमयता है जो पाठकों के हृदय को बरबस आकृष्ट कर लेती है। कुछ कवियों और समीक्षकों का मानना है कि रीतिकाल में भाषा की दृष्टि से पद्माकर सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इनकी भाषा में लाक्षणिकता का गुण है और ये लाक्षणिकता से चित्र को सजीव बना देते हैं। इनकी भाषा में अनुप्रास तो मनचाही चाल चलता दिखाई देता है –

आम को कहत अमली है, अमली को आम,
आम ही अनारन को आंकिबो करति है।
यहै पद्माकर तमालन को ताल कहै,
तालनि तमाल कहि ताकिबेर करति है।

मुहावरों का प्रयोग इन्होंने बड़ी सफलता से किया है। उनमें स्वाभाविकता का गुण है।
वास्तव में पद्माकर भाषा-प्रयोग की दृष्टि से अनूठे हैं और रीतिकालीन कवियों में उनके सामने कोई और कवि सरलता से नही टिकता।

प्रश्न 2.
कवित्त छंद का परिचय दीजिए।
ऊत्तर :
कवित्त एक वार्णिक सम छंद है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते है। प्रत्येक चरण के पंद्रहवें और सोलहवें वर्ण पर यति होती है। इसके अंदर सामान्य रूप से अंतिम वर्ण गुरु होता है।

प्रश्न 3.
पद्माकर के तीनों पदों का कलापक्ष व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
पद्माकर ने अपनी काव्य रचनाओं में ब्रजभाषा के साहित्यिक रूप को अपनाया। भाषा की सब प्रकार की शक्तियों का प्रभाव इस कवि पर दिखाई पड़ता है। कहीं पर तो इनकी भाषा स्निग्ध, मधुर शब्दावली द्वारा एक सजीव भावभरी प्रेममूर्ति खड़ी करती है। कहीं रस की धारा बहाती है। कहीं अनुप्रासों से मीलित झंकार उत्पन्न करती हैं। इनकी भाषा में अनेकरूपता है जो एक बड़े कवि में होनी चाहिए।
कलापक्ष की दृष्टि से पद्माकर के तीनों छंदों की निम्नलिखित विशेषताएँ है-

  1. तद्भव शब्दावली की अधिकता है।
  2. पदमैत्री, अनुप्रास और मानवीकरण का प्रयोग सराहनीय है।
  3. अभिधा शब्द-शक्ति और प्रसादगुण ने काव्य को सरलता प्रदान की है।
  4. चाक्षुक बिंब विद्यमान है।
  5. कवित्त छंद का प्रयोग हुआ है।
  6. बसंत की मादकता का चित्रण हुआ है।

प्रश्न 4.
मानवीकरण अलंकार का लक्षण एवं उदाहरण लिखिए।
उत्तर :
जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप होता है वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है। जैसे –
भौँरन को गुंजन बिहार बन कुंजन में,
मंजुल मलारन को गावनो लगत है।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 14 Question Answer संध्या के बाद

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 14 संध्या के बाद

Class 11 Hindi Chapter 14 Question Answer Antra संध्या के बाद

प्रश्न 1.
संध्या के समय प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
संध्या के समय अस्त होते हुए सूर्य की किरणें जब वृक्षों के पत्तों पर पड़ती हैं तो उनका रंग ताँबाई और झरनों से बहनेवाले जल का वर्ण स्वर्णिम हो जाता है। ये किरणें गंगाजल को स्वर्णिम करती हुई उसके किनारे की रेत पर धूपछाँही बना देती है। जैसे-जैसे सूर्य डूबता जाता है वैसे-वैसे प्राकृतिक परिवेश बदलता रहता है। तांबाई से स्वर्णिम, फिर सुरमई और सूर्य के डूबते ही अँधेरा छा जाता है।

प्रश्न 2.
पंत जी ने नदी के तट का जो वर्णन किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कवि कहता है कि जब सूर्य अस्त हो रहा होता है, तो उसकी स्वर्णमम किरणें गंगा के किनारे दूर तक पहले रेत में धूपछाँही बना देती हैं। लगातार बहती हवा के कारण रेत में साँपों की आकृति-सी बन जाती है। गंगा के नीले जल में लहरें ऐसी प्रतीत होती है, मानो बादलों की चाँदी के समान परछाई जल में प्रतिबिंबित हो रही है। रेत, जल और मंद-मंद बहती हवा मानो तीनों मोह-पाश में बँधकर उज्ज्वल प्रतीत होती हैं। हवा पिछलकर जैसे जल बन गई हो और जल जैसे द्रव्य-गुण त्यागकर एकाकार हो गया है।

प्रश्न 3.
शाम होते ही कौन-कौन घर लौट पड़ते हैं ?
उत्तर :
संध्या के समय और गायें अपने घर लौट रही हैं। दिनभर की मेहनत के कारण थके हुए किसान भी घर लौट रहे हैं। व्यापारी भी अपने कारोबार को समेटकर नाब द्वारा नदी पार कर अपने घरों को लौट रहे हैं। कुछ खानाबदोश अपने ऊँटों और घोड़ों के साथ खाली बोरियों को ही बिस्तर बना उसपर बैठे हुक्का पी रहे हैं।

प्रश्न 4.
संध्या के दुश्य में किस-किसने अपने स्वर भर दिए हैं ?
उत्तर :
संध्या के समय मंदिरों से शंख और घंटे की ध्वनि आने लगती है। अपने-अपने घोंसलों को लौटते हुए पक्षियों की ध्वनि से वातावरण गूँज उठता है। पंक्तियों में जाते हुए सोन-पक्षियों की द्रवित कर देनेवाली ध्वनियों सुनाई दे रही है। नदी तट पर वृद्धाओं और विधवाओं के भाक्ति गीतों का स्वर सुनाई देता है। सूर्य अपनी अस्ताचलगामी किरणों से प्रकृति को स्वर्णिम बना देता है।

प्रश्न 5.
बस्ती के छोटे-से गाँव के अवसाद को किन-किन उपकरणों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है ?
उत्तर :
कवि ने गाँव के अवसाद को कुत्तों के भौकने, गीदड़ों की हुआँ-हुआं, धुआं देती ढिबरी, परचून की दुकान पर उपलब्य थोड़े-से सामान, सर्दी की ठिठुरन, मिट्टी से बने घरौदि नुमा घरों, फटी हुई हुई कथड़ी आदि के द्वारा अभिव्यक्त किया है।

प्रश्न 6.
लाला के मन में उठने वाली दुविधा को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
लाला की दयनीय आर्थिक स्थिति का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि अपनी छोटी एवं संकुचित दुकान को देखकर वह स्वयं को दयनीय, दुखी और अपमानित अनुभव करता है। यह संकुचित आय उसकी भूख और प्यास को खत्म नहीं कर पा रही है। उसके जीवन की सभी आकांक्षाएँ लगभग मृतप्राय हो चुकी हैं। बिना किसी आय के उसका अंधकारमय जीवन उसकी दयनीय आर्थिक स्थिति को प्रदर्शित कर रहा है, वह जीवन-भर अपनी दुकान की गद्दी पर बैठा हुआ ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी निर्जीव और बेकार अनाज का ढेर हो अर्थात् उसके जीवन में सजीवता नहीं बची है। वह थोड़ी-सी आय के लिए बात-बात में झूठ बोलता है तथा अपने ही वर्ग के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण अपने जीवन को तबाह कर रहा है।

प्रश्न 7.
सामाजिक समानता की छवि की कल्पना किस तरह अभिव्यक्त हुई है ?
उत्तर :
कवि कहता है कि ग्रामीण परिवेश में लगभग सभी परिवार अपने-अपने मिट्टी के घरों में अलग-अलग विचारधारा के साथ जीवन जी रहे हैं। कवि का कहना है कि आपसी वैमनस्य और विरोधों के बजाए उन्हें सभी मिल-जुलकर सामाजिक जीवन जीना चाहिए अर्थात अलग-अलग वर्गों में न रहकर उन्हें आपसी भाई-चारे के साथ जीवनयापन करना चाहिए। उन्हें मिल-जुलकर सामाजिक सद्भावना के साथ समाज का निर्माण करना चाहिए। तभी सभी सुंदर और सरल जीवन का आनंद पाए। समाज को बिलकुल शोषण मुक्त बनाएँ और समाज में प्रत्येक व्यक्ति धन-धान्य से परिपूर्ण हो।

प्रश्न 8.
‘कर्म और गुण के समान …… हो वितरण’ पंक्ति के माध्यम से कवि कैसे समाज की ओर संकेत कर रहा है ?
उत्तर :
भारतवर्ष में संपूर्ण आय-व्यय का बँटवारा व्यक्ति के गुण और कार्य के आधार पर नहीं होता है। ग्रामीण परिवेश में लोग सारा दिन काम करते हैं, परंतु फिर भी उन्हें ठीक से तीन समय का खाना नहीं प्राप्त होता। बस्ती का व्यापारी लाला सुबह निकलने से पहले ही दुकान पर बैठ जाता है परंतु उसकी आर्थिक दशा अभी भी दयनीय बनी हुई है और शहरी क्षेत्र में रहनेवाले व्यापारी अब महाजन बन गए हैं। शहरी और ग्रामीण आर्थिक दशा में इतना बड़ा अंतर देखकर कवि का यह मानना है कि व्यक्ति को उसके कर्म और गुण के आधार पर ही आय प्राप्त होनी चाहिए।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-साँदर्य स्पष्ट कीजिए-
तट पर बगुलों-सी वृद्धाएँ
विधवाएँ जप ध्यान में मगन,
मंथर धारा में बहता
जिनका अदुश्य, गति अंतर-रोदन।
उत्तर :
काव्य-साँदर्य-प्रस्तुत पंक्तियां कविवर सुमित्रानंदन की कविता ‘संध्या के बाद’ से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में कवि ने सांध्यकालीन वातावरण में नदी के तट पर बैठी बूढ़ी स्त्रियों और विधवाओं की दशा का वर्णन किया है जो ऐसे ध्यान मग्न होकर परमात्मा का नाम जप रही हैं जैसे बगुले ध्यानपूर्वक पानी देख रहे हों। नदी के बहते पानी में इन बूढ़ी स्त्रियों और विधवाओं की न दिखने वाली पीड़ा जैसे धीरे-धीरे बह रही हो अर्थात् कवि ने बूढ़ी स्त्रियों और विधवाओं की पीड़ाजन्य स्थिति का वास्तविक वर्णन किया है। भाषा में भावुकता एवं माधुर्य है। उपमा अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग है।

प्रश्न 10.
आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) ताम्रपर्ण, पीपल से, शतमुख/झरते चंचल स्वर्णिम निईर।
(ख) दीपशिखा-सा ज्वलित कलश/नभ में उठकर करता नीराजन।
(ग) सोन खगों की पाँति/आर्र्र ध्वनि की नीरव नभ करती मुखरित।
(घ) मन से कढ़ अवसाद श्रांति/आँखों के आगे बुनती जाला।
(ङ) क्षीण ज्योति ने चुपके ज्यों/गोपन मन को दे दी हो भाषा।
(च) बिना आय के क्लांति बन रही/उसके जीवन की परिभाषा।
(छ) व्यक्ति नही, जग की परिपाटी/दोषी जन के दु:ख क्लेश की।
उत्तर :
(क) संध्या के समय अस्ताचलगामी सूर्य की रक्तिम किरणें जब वृक्षों के पत्तों पर पड़ती हैं तो उनका रंग ताँबई हो जाता है, साथ ही सैकड़ों धाराओं में बहते हुए झरनों के जल का वर्ण स्वर्णिम हो जाता है।
(ख) कवि का मानना है कि दीपों की ज्योति के समान मंदिरों के शिखरों पर चमक्ता हुआ कलश ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वह आकाश में सिर उठाकर जोर-जोर से परमात्मा का नाम जप रहो हो।
(ग) अस्ताचलगामी सूर्य के कारण वातावरण में धीरे-धीर अंधकार फैल रहा है जिसे देखकर पंक्ति में जाते हुए सोन पक्षियों की द्रवित कर देने वाली ध्वनि आकाश की खामोशी को भंग कर रही है।
(घ) कबि बस्ती के छोटे व्यापारियों की दयनीय आर्थिक दशा का वर्णन करते हुए लिखता है कि वे दिन निकलने से पहले ही टिन की ढिबरी जलाकर ग्राहकों के आने की प्रतीक्षा करने लगते हैं। उस ढिबरी से रोशनी से अधिक धुआँ निकलता है। इसी धुएँ के समान उनके मन में उत्पन्न अंतद्वर्वद्व के कारण उनके जीवन में भी दुख और पीड़ा रूपी धुआँ उनकी आँखों में भर जाता है।
(ङ) कवि बस्ती के छोटे व्यापारियों की दयनीय आर्थिक दशा का वर्णन करते हुए लिखता है कि अपनी दयनीय आर्थिक स्थिथि के कारण उनके हृदय की मूक वेदना और पीड़ा ढिबरी की कॉपती लौ के समान काँप रही है। इस कंपित ढ़िबरी की ज्योति में मानो उसके हुदय की छिपी पीड़ा और वेदना स्वयं ही मुखरित हो रही है।
(च) कवि कहता है कि बस्ती के छोटे व्यापारी की आर्थिक स्थिति दयनीय है। बिना किसी आय के उसका जीवन अंधकारमय तथा कष्टों से भरा हो गया है। उसे अपने जीवन की परिभाषा यही लगती है कि सदा अभावों से ग्रस्त रहना ही उसकी नियति है।
(छ) कवि का मानना है कि किसी व्यक्ति विशेष के दुखी रहने, कष्ट सहने तथा अभाव में जीने का दोषी केवल वह व्यक्ति ही नहीं बल्कि वह समाज भी है जिस समाज की व्यवस्था ने उस व्यक्ति को दुख सहते रहने योग्य बना दिया है।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
कविता में निम्नलिखित उपमान किसके लिए आए हैं ?
(क) ज्योति स्तंभ-सा …………..
(ख) केचुल-सा …………..
(ग) दीप शिखा-सा …………..
(घ) बगुलों-सी …………..
(ङ) स्वर्ण चूर्ण-सी …………..
(च) सनन् तीर-सा …………..
उत्तर :
(क) अस्त होते सूर्य के लिए
(ख) गंगा के बहते जल
(ग) मंदिर के कलश लिए
(घ) नदी तट पर ध्यान मग्न वृद्धाओं के लिए
(ङ) गायों के पैरों से उठती धूल के लिए
(च) पक्षियों के पंखों और कंठों का स्वर।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 14 संध्या के बाद

कथ्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
विधवाओं का अंतर-रोदन से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
विधवाओं का अंतर-रोदन से कवि का तात्पर्य है कि भारतवर्ष में विधवाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय एवम् पीड़ाजन्य है। विधवाओं का सारा जीवन संघर्ष और दुखों में ही व्यतीत होता है। संध्या समय विधवाएँ नदी के किनारे परमात्मा के ध्यान में मग्न हो रही हैं और कवि को ऐसा लगता है, मानो उनके मन की पीड़ा और स्दन दोनों अदृश्य होकर नदी की धीर-धीर धारा में बह रहे हैं।

प्रश्न 2.
खेत, बाग, गृह, तरु इत्यादि निष्रभ विषाद में क्यों डूब रहे हैं ?
उत्तर :
खेत, बाग, घर और वृक्ष आदि निष्रभ दुख में इसलिए डूबे हुए हैं क्योंकि संपूर्ण वातावरण में जाड़ों की सुनसान रात ने अपने आगोश में घेर लिया है। चारों ओर सन्नाटा है। ऐसे वातावरण में खेत, बाग, गृह और तरु इत्यादि की अन्य क्रियाएँ लगभग शिथिल पड़ गई हैं। इसी सन्नाटे और शिथिलता में ये सभी अपने दुख और विषाद में डूब जाते हैं।

प्रश्न 3.
गोपन मन को भाषा देने से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर :
सूर्य अभी उदय नहीं हुआ है। जल्दी सुबह अभी धुँधलका छाया हुआ है। बस्ती का व्यापारी अभी से यीन की ढिबरी जलाकर अपनी दुकान पर आ बैउा है। दुकान पर अभी कोई ग्राहक नहीं आया है। ऐसे वातावरण में उसका मन आर्थिक दुर्दशा के कारणों पर विचार करने लगता है। उसका मन इसी बेबसी के कारण मूक निराश और हददय में दुख क्रंदन लगने लगता है। ढिबरी के मद्धम प्रकाश में उसके मन में छिपे दुख एवं विषाद परिभाषित हो जाते हैं।

प्रश्न 4.
कवि सभी के सुंदर अधिवास की कामना क्यों करता है ?
उत्तर :
ग्रामीण परिवेश में कम आटा के कारण ग्रामीण लोग पूरा जीवन कार्य करके भी अपने लिए एक सुंदर और स्वच्छ घर नहीं बना सकते। वे झोंपड़ियों में निवास करते हैं। उनके घरों में अंधकार छाया रहता है। वे अपने संपूर्ण जीवन में दुखी, पीड़ित और भयग्रस्त रहते हैं। सुंदर घर को कवि मूलभूत आवश्यकता मानता है इसलिए कवि संसार के प्रत्येक प्राणी के लिए सुंदर अधिवास (घर) की कामना करता है।

प्रश्न 5.
‘पीला जल रजत जलद से बिंबित’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर :
सूर्य जब अस्त हो रहा है तो उसकी स्वर्णिम किरणें जब नीले पानी की लहरों पर पड़ती है तो नदी का जल पीले रंग में परिवर्तित हो जाता है। यही बहता पीला जल ऐसा प्रतीत होता है मानो चाँदी जैसे बादलों की छाया पानी में दिखाई पड़ रही है।

प्रश्न 6.
सिकता, सलिल-समीर किसके स्हेह-सूत्र में बँधे हुए हैं ?
उत्तर :
साँझ के समय सूर्य की स्वर्णिम किरणें नदी के किनारे पड़ी सपों के आकार की रेत और पानी में नीले रंग की लहरों पर भी पड़ती हैं। रेत पर सर्पांकार और पानी नीले रंग की लहरियाँ बनाने में बहती हवा ही बड़ा कारण है। इस प्रकार सिकता (रेत) सलिल (पानी) और समीर (हवा) तीनों ही साँझ के स्नेह-सूत्र में बँधे हुए हैं।

प्रश्न 7.
‘संध्या के बाद’ कविता में चित्रित संध्या का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
‘संध्या के बाद’ शीर्षक कविता में पंत जी ने संध्याकालीन ग्राम्य प्रकृति की शोभा का चित्र खींचा है। अस्त होते हुए सूर्य की किरणें वृक्षों की चोटियों पर नृत्य करती हैं। पीपल के पत्तों से छन-छनकर आने वाली किरणें ऐसी लगती हैं, मानो ताँबे के पत्तों से सोने के सौ-सौ झरने फूट पड़े हों। प्रकाश एवं छाया के संयोग से गंगा की जल-धारा साँप की चितकबरी केंचुली के समान लगती है। मंदिरों में शंख तथा घंटें की ध्वनियाँ गूँजती हैं। गंगा-तट पर जप-ध्यान में लीन वृद्धाएँ बगुलों की-सी लगती हैं। पक्षियों का स्वर वातावरण में संगीत भर देता है। किसान तथा व्यापारी थके-हारे वापस लौटते है। सूर्य के डूबते ही सारा ग्राम प्रदेश निराशा तथा उदासी से भर जाता है।

प्रश्न 8.
इस कविता में कवि ने विधवाओं के अंतर-रोदन को अदृश्य क्यों कहा है ?
उत्तर :
भारतीय समाज में विधवा का जीवन बड़ा दुखपूर्ण तथा शोचनीय होता है। वह खुलकर रो भी नहीं सकती। वह अपने पति की याद को हदय से सँजोए घुटनभरा जीवन व्यतीत करती रहती है। उसके दुख को बाँटनेवाला भी कोई नहीं। वह मन-ही-मन रोती है। उसके आँसू प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देते, इसलिए कवि ने विधवाओं के अंतररोदन को अदृश्य कहा है।

प्रश्न 9.
गाँव का साहूकार अपने जीवन से असंतुष्ट क्यों है ?
उत्तर :
गाँव का साहूकार अपने जीवन से असंतुष्ट इसलिए है क्योंकि उसको धंधे से कुछ लाभ नहीं होता। शहर के बनियों की तुलना में वह अपने आपको अत्यंत तुच्छ समझता है। उसका जीवन निर्धनता और विवशता में बीतता है। वह झूठ का भी सहारा लेता है, कम भी तोलता है, फिर भी वह अपने परिवार का भरण-पोषण अच्छी तरह नहीं कर सकता। न तो अच्छे कपड़े जुटा सकता है और न रहने के लिए अच्छे भवन का निर्माण कर सकता है। उसके पास अपने धंधे को आगे बढ़ाने के भी साधन नह्ही –
शहरी बनियों-सा वह भी उठ, क्यों बन जाता नहीं महाजन ?
रोक दिए हैं किसने उसकी, जीवन उन्नति के सब साधन ?
इस तरह, अभावग्रस्त जीवन के कारण ही गाँव का साहूकार अपने जीवन से असंतुष्ट है।

प्रश्न 10.
सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए कविता में क्या विचार व्यक्त किए गए हैं ?
उत्तर :
हमारे समाज में ऊँच-नीच तथा अमीर-गरीब के बीच गहरी खाई का कारण अर्थ (धन) का अनुचित विभाजन है। सारी पूँजी पर पूँजीपतियों का अधिकार है। शोषक ऐश्वर्य का जीवन जीता है जबकि निर्धन शोषण की चक्की में पिस रहा है। समाजवाद के उदय द्वारा ही इस विषमता को समाप्त किया जा सकता है। समाजवाद उस सामाजिक व्यवस्था को कहते हैं जिसमें सबको जीवनोपयोगी वस्तुएँ सरलता से प्राप्त हो जाती हैं। गाँव के लाला के माध्यम से कवि ने यही कामना की है –
जन का श्रम जन में बँट जाए, प्रजा सुखी हो देश-देश की।

प्रश्न 11.
देश में समाजवाद लाने में हमारी कथनी और करनी का अंतर किस प्रकार बाधक होता है?
उत्तर :
समाजवाद के द्वारा समाज में समता का उदय होता है। इससे ऊँच-नीच का, छोटे-बड़े का तथा अमीर-गरीब का अंतर समाप्त हो जाता है। सभी को अपने श्रम का उचित फल मिलता है। लेकिन व्यक्तिगत लाभ तथा स्वार्थ का मोह समाजवाद में बाधा उपस्थित करता है। गाँव का लाला भी समाजवाद का सपना देखता है, पर अवसर मिलते ही वह इस सपने का गला घोंट देता है और ठगी का सहारा लेता है। इस प्रकार कथनी और करनी का अंतर समाजवाद में बाधा उपस्थित करता है।

प्रश्न 12.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) शंख घंट बजते मंदिर में, लहरों में होता लय-कंपन,
दीप-शिखा सा ज्वलित कलश, नभ में उठकर करता नीरांजन !
(ख) दरिद्रता पापों की जननी, मिटें जनों के पाप, ताप, भय,
सुंदर हों अधिवास, वसन, तन, पशु पर फिर मानब की हो जय।
उत्तर :
(क) पहाड़ी कस्बे की संध्या का वर्णन करते हुए कवि लिखता है कि मंदिर में शंख और घंटे बज रहे हैं। उनकी गंभीर ध्वनि से लहरों में कंपन हो रहा है। मंदिर का कलश संध्याकालीन सूर्य के रक्तिम प्रकाश में दीपक की लौ के समान जगमगाता हुआ आकाश में खड़ा आरती कर रहा हो।
(ख) गरीबी समस्त पापों की जननी है। इसलिए कवि चाहता है कि प्रत्येक व्यक्ति पाप, संकट, भय आदि से मुक्त हो जाए तथा उसका घर, वस्त्र, शरीर आदि सब कुछ सुंदर बन जाए। कवि पाशविकता पर मानवता की विजय का संदेश देकर ‘सर्वें भवंतु सुखिनः’ का संदेश दे रहा है।

प्रश्न 13.
सुमित्रानंदन पंत का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन 1900 ई० में अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में हुआ था।
प्रश्न 14.
पंत जी ने कब, कौन-सी पत्रिका, किस उद्देश्य से निकाली थी ?
उत्तर :
पंत जी ने सन् 1938 ई० में ‘रूपाभ’ नामक पत्रिका प्रगतिशील साहित्य के विकास और प्रचार के उद्देश्य से निकाली थी।

प्रश्न 15.
पंत जी को कौन-कौन से पुरस्कार प्राप्त हुए ?
उत्तर :
पंत जी को सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुए थे।

प्रश्न 16.
पंत जी की साहित्यिक यात्रा के तीन उत्थान कौन-से थे ?
उत्तर :
पंज जी की साहित्यिक यात्रा का प्रथम चरण छायावादी काव्य, दूसरा प्रगतिवादी काव्य और तीसरा चरण अरविंद दर्शन से प्रभावित अध्यात्मवादी काव्य था।

प्रश्न 17.
संध्या के समय गाँव में लौटते हुए पशु-पक्षियों, व्यक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर :
संध्या के समय पक्षी अपने घोंसलों, गाएँ अपने ठिकानों पर तथा किसान अपने घरों में लौट आए हैं। पैठ से व्यापारी भी ऊँटों, घोड़ों पर अपने खाली बोरे लादे वापस आ गए हैं। गाँव में आकर सभी अपने-अपने घरों में छिप गए हैं तथा गाँव में खामोशी-सी छा गई है।

प्रश्न 18.
कवि ने रात की भयानकता का कैसे चित्रण किया है ?
उत्तर :
कुत्ते परस्पर लड़-झगड़कर रात की भयानकता को और अधिक भयानक बना रहे हैं। झोंपड़ों से निकलता हुआ धुआँ तथा हलका प्रकाश वातारण में उदासी भर रहा है। चारों ओर व्याप्त निस्तब्धता वातावरण को और भी भयानक बना रही है।

प्रश्न 19.
बुढ़िया के आने पर व्यापारी क्या करता है ?
उत्तर :
बुढ़िया के आने पर ऊँचता हुआ व्यापरी सचेत हो जाता है। वह अपनी समाजवादी कल्पनाओं पर विराम लगाकर बुढ़िया को आधा पाव आया देते हुए भी डंडी मारकर अपनी स्वार्थी मानसिकता का परिचय दे देता है।

काव्य-सौंदर्य पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नोक्त पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) दूर तमस रेखाओं-सी
उड़ती पंखों की गाति-सी चित्रित्र।
सोन खणों की पाँति,
आर्द्र ध्वनि से नीख नभ करती मुखरित।
(ख) माली की मंडई से उठ
नभ के नीचे नभ-सी धूमाली।
मंद पवन में तिरती
नीली रेशम की सी हलकी जाली।
उत्तर
(क) इन पर्तियों में कवि ने संध्या समयषर लौटते हुए पक्षियों की पंक्ति को अंधकार की काली रेखा के समानबताया है। अंधकार की तरह पक्षियों का रंग भी काला होता है इसलिए पक्षियों की पंक्ति की समानता अंधकार की काली रेखा से की गई है। पद्षियों के मधुर स्वर शांत आकाश मे गूँजते रहते हैं।

(ii) ‘तमस रेखाओं-सी’ में उपमा अलंकार का सरहनीय प्रयोग है।
(iii) ‘नीरव-नभ’ में अनुप्रास अलंकार की शोभा है।
(iv) तमस, आर्द्र, ध्वनि, नीख चित्रित, मुखरित-तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।
(v) भाषा सहज, सरल एवं प्रभावशाली है।
(vi) चित्रात्मक शैली का प्रयोग हैं।
(vii) ‘खगो’ के लिए ‘सोन’ विशेषण का सटीक प्रयोग है।

(ख) इन पंक्तियों में कवि ने अंधियारी सुखह का वर्णन किया है।

(ii) आसमान में छाई धुँध का वर्णन किया है।
(iii) आकाश मे धुएँ की पंक्ति कवि को रेशम की जाती के समान प्रतीत हो रही है।
(iv) ‘माली की मंडई’ नभ के नीचे नभ’ में अनुप्रास अंलकार है।
(v) ‘नभ-सी धूमाली’, रेशम की-सी जाली’ में उपमा अलंकार है।
(vi) चित्रात्मक शैली का प्रयोग है।

प्रश्न 2.
पंत की भाषा-शैली के विषय में लिखिए।
उत्तर :
इसके उत्तर के लिए कवि-परिचय में ‘भाषा-चैली’ वाला भाग देखें।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 15 Question Answer जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 15 जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले

Class 11 Hindi Chapter 15 Question Answer Antra जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले

1. जाग तुझको दूर जाना

प्रश्न 1.
‘जाग तुझको दूर जाना’ कविता में कवयित्री मानव को किन विपरीत स्थितियों में आगे बढ़ने के लिए उत्साहित कर रही है ?
उत्तर :
इस कविता में कवयित्री मानव को आँधी, तूफ़ान, भूकंप की चिंता न करते हुए सांसारिक माया-मोह के बंधनों को त्यागकर, समस्त सुखों, भोग-विलासों को छोड़कर, समस्त कष्टों को भूलकर और कठिनाइयों का सामना करते हुए निरंतर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रही हैं। वे उसे आलस्य त्याग कर जाग उठने के लिए कहती हैं।

प्रश्न 2.
‘मोम के बंधन’ और ‘ तितलियों के पर’ का प्रयोग कवयित्री ने किस संदर्भ में किया है और क्यों ?
उत्तर :
‘मोम के बंधन’ कथन में कवयित्री का आशय है कि हे मनुष्य ! तेरी मंज़ल अभी बहुत दूर है अर्थात स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए अनेक संघर्ष अभी बाकी हैं। तुझे अभी बहुत सफ़र तय करना है, इसलिए स्वतंत्रता-प्राप्ति की यात्रा पर जब तू चल पड़ेगा फिर तुझे ये मानवीय रिश्ते और आपसी संबंध नहीं रोक सकते अर्थात आज़ादी की लड़ाई में तुम्हें अपनों से मुँह मोड़ना होगा। ‘तितलियों के पर’ कथन में भी कवयित्री कहती है कि हे मानव । स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए तेरी संघर्षपूर्ण यात्रा अभी बाकी है, तेरी मंज़िल अभी दूर है, इसलिए जब तक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो जाती तब तक तुम्हें ‘तितलियों के पर’ अर्थात ऐश्वर्यपूर्ण रंगीन जीवन से नाता तोड़ना होगा अर्थात खुशी और वैभवपूर्ण ज़िंदगी से दूर रहना होगा। इस प्रकार ‘मोम के बंधन’ का अर्थ रिश्ते-नाते अथवा आपसी सामाजिक संबंधों से हैं और ‘तितलियों के पर’ कथन में ऐश्वर्यपूर्ण ज़िंदगी की रंगीनियों (सुख-सुविधाएँ) का अर्थ निहित है।

प्रश्न 3.
कवयित्री किस मोहपूर्ण बंधन से मुक्त होकर मानव को जागृति का संदेश दे रही है ?
उत्तर :
कवयित्री मानव का सांसारिक माया-मोह, सुख-सुविधाओं, भोग-विलास, नाते-रिश्ते आदि के बंधनों से मुक्त होकर निरंतर अपने लक्य की ओर बढ़ते रहने के लिए जागृति का संदेश दे रही है।

प्रश्न 4.
कविता में ‘अमरता-सुत’ का संबोधन किसके लिए और क्यों आया है ?
उत्तर :
कविता में ‘अमरता-सुत’ संबोधन मानव के लिए आया है क्योंकि उसे अमर रहकर संसार की वेदनाओं और पीड़ाओं को समाप्त है। इसलिए कवयित्री उसे मृत्यु को हुदय में नहीं बसाने के लिए कहती है तथा अमरता का पुत्र बनकर निंरतर समस्त कठिनाइयों से जूझते हुए आगे बढ़ते रहने के लिए कहती है।

प्रश्न 5.
‘जाग तुझको दूर जाना’ स्वाधीनता आंदोलन की प्रेरणा से रचित एक जागरण गीत है। इस कथन के आधार पर कविता की मूल संबेदना को लिखिए।
उत्तर :
महादेवी द्वारा रचित कविता ‘जाग तुझको दूर जाना’ में स्वतंत्रता आंदोलन की परिस्थितियों का वर्णन किया गया है। इस कविता में भारतीयों का आह्वान किया गया और कहा है कि वे स्वतंत्रता-प्राप्ति के संघर्ष में प्राणों की चिंता न करें। संसार के मोह-माया के बंधन तुम्हें रोक नहीं पाएँगे। तुम अपने कर्तव्य का निर्वाह सदैव सच्चाई के साथ करो। महादेवी वर्मा की देश के प्रति गहरी संवेदनशीलता कवि को अत्यंत भावुक बना देती है। वे कहती हैं कि प्रत्येक भारतीय का यह परम कर्तव्य है कि स्वतंत्रता-प्राप्ति में अगर उन्हें आँधी-तूफ़ान का भी सामना करना पड़े तो वे नहीं घबराएँ क्योंकि उन्हें ‘अमरता का सुत’ बनना है। कवयित्री मनुष्य को सावधान भी करती है कि वह संसार के मोह-माया के बंधनों में न पड़कर विजय प्राप्त करे, इसलिए उसे रुकना नहीं है, निरंतर चलते जाना है क्योंकि उसकी मंजिल अभी दूर है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-साँदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) विश्व का क्रंदन ……….. अपने लिए कारा बनाना।
(ख) कह न ठंडी साँस ………… सजेगा आज पानी।
(ग) है तुझे अंगार-शय्या ………… कलियाँ बिछाना।
उत्तर :
(क) प्रस्तुत पंक्ति में महादेवी वर्मा मानव का आह्वान करते हुए कहती है कि हे मानब! संपूर्ण संसार पीड़ाओं और वेदनाओं से ग्रस्त होकर रो रहा है। जब चारों ओर से दुखों का रुदन सुनाई पड़ेगा क्या तू जीवन की मौज-मस्ती में पड़कर भँवरों की मधुर गुंजार में कहीं खो जाएगा। प्रश्न यह भी है कि फूल्लों पर पड़े हुए ओस के कण क्या तुम्हें डूबो देंगे ? अर्थात् तू भावुकता के कारण संसार की पीड़ाओं से मुँह मोड़ लेगा ? हे मानव! तू अपने सांसारिक बंधनों के कारण अपने जीवन को ही अपने लिए कारागार मत बना लेना अर्थात मोह-माया में पड़कर सांसारिक दुखों को मत भूल जाना। प्रश्न तथा रूपक अलंकार है। चित्रात्मकता, गेयता तथा उद्बोधनात्मकता विद्यमान है। भाषा तत्सम प्रधान एवं भावपूर्ण है।

(ख) प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री महादेवी वर्मा मानव को प्रेरित करते हुए कहती है कि हे मनुष्य । जब तेरे हृदय में आग धधक रही होगी तभी तेरी आँखों में आँसू आएँगे अर्थात तू संसार की पीड़ाओं के कारण अवश्य रोएगा। अगर जीवन संघर्ष में तेरी ह्वार भी हो गई तो उसे विजय मानना क्योंकि दीपक की लौ ही अमर होती है और उसपर मँडराने वाला पतंगा उस लौ में जलकर राख हो जाता है अर्थात् पतंगे की भौँति बंधनों में पड़कर तू अपने जीवन को समाप्त मत करना। तुझे अंगारों की शैय्या पर दूसरों के लिए मृदुल कलियाँ बिछानी होंगी अर्थात स्वयं जलकर दूसरों के दुख खत्म करने होंगे। विरोधाभास अलंकार है। भाषा तत्सम-प्रधान है। लार्षणिकता एवं प्रतीकात्मकता विद्यमान है। ‘ठंडी साँस लेना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग किया गया है। गेयता का गुण है। उद्बोधनात्मक शैली है।

(ग) कवयित्री मानव को निरंतर संघर्षरत रहने तथा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने की प्रेरणा देते हुए कहती है कि उसे सदा अंगारों की शय्या अथवा कठिनाइयों से भरे मार्ग पर चलना है। उसे स्वयं कष्ट सहन कर दूसरों को सुख प्रदान करना है। वह मानव को परमार्थ के लिए प्रेरित कर रही है। भाषा तत्सम-प्रधान, प्रतीकात्मक तथा लाक्षणिक है। रूपक अलंकार है। गेयता का गुण विद्यमान है। उद्बोधनात्मक शैली है।

प्रश्न 7.
कवयित्री ने स्वाधीनता के मार्ग में आनेवाली कठिनाइयों को इंगित कर मनुष्य के भीतर किन गुणों का विस्तार करना चाहा है ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवयित्री ने इस कविता में मनुष्य को अपने भीतर निम्नलिखित गुणों का विस्तार करने की प्रेरणा दी है –
(i) ‘चिह्न अपने छोड़ आना’ पंक्ति के माध्यम से कवयित्री ने मनुष्य को कहा है कि मंज़िल प्राप्त करने में तुम्हें अगर प्राण कुर्बान भी करने पड़ें तो तू मत घबराना अपनी कुर्बानी देकर आनेवाली पीढ़ियों के लिए अपने पैरों के निशान छोड़ जाना ताकि आनेवाली पीढ़ियाँ तुम्हें अपना प्रेरणा स्रोत बना सकें।
(ii) ‘अपने लिए कारा बनाना’ पंक्ति में कवयित्री ने मनुष्य के गुणों का वर्णन करते हुए कहा है कि उसे संसारिक मोह-माया और बंधनों रूपी जीवनकारा में न बैधना चाहिए अर्थात मोह-माया और संसारिक बंधनों का त्यागकर अपनी मंज्जिल प्राप्त करनी चाहिए।
(iii) ‘मृत्यु को डर में बसाना’ पंक्ति के माध्यम से महादेवी वर्मा मनुष्य को कहना चाहती है कि वह मृत्यु से न डरे बलिक अगर मंज़िल प्राप्त करते समय उसे अपने प्राणों का बलिदान भी करना पड़े वह न घबराए।
(iv) ‘मृदुल कलियाँ बिछाना’ पंक्ति के माध्यम से कवयित्री ने कहा है कि हे मनुष्य । तुझे जीवन-संघर्ष में अनेक कठिनाइयों से गुज़रना पड़ेगा। तुम्हें आनेवाली पीढ़ियों को सुखद बनाने के लिए उनकी अंगार-शख्या पर मृदुल कलियों को बिछाना होगा अर्थात दूसरों के लिए रास्ता आसान बनाना होगा।

2. सब आँखों के आँसू उजले

प्रश्न 8.
महादेवी वर्मा ने ‘आँसू’ के लिए ‘उजले ‘ विशेषण का प्रयोग किस संदर्भ में किया है और क्यों ?
उत्तर :
कवयित्री ने ‘आँसू’ के लिए ‘उजले’ विशेषण का प्रयोग इसलिए किया है क्योंक वे मन की सत्य भावनाओं के प्रतीक हैं। अत्यधिक दुख होने पर अथवा बहुत अधिक सुख मिलने पर ये स्वयं ही मनुष्य की आँखों से छलछला आते हैं।

प्रश्न 9.
सपनों को सत्य रूप में छालने के लिए कवयित्री ने किन यथार्थपूर्ण स्थितियों का सामना करने को कहा है ?
उत्तर :
कवयित्री का मानना है कि सपनों को सत्य रूप में ढालने के लिए मनुष्य को जीवन में आनेवाली कठिनाइयों, सुख-दुखों आदि का साहसपूर्वक सामना करना चाहिए ताकि किसी भी स्थिति में विचलित नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 10.
‘नीलम मरकत के संपुट हो, जिनमें बनता जीवन-मोती ‘ पंक्ति में ‘नीलम मरकत’ और ‘जीवन-मोती’ के अर्थ को कविता के संद्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘नीलम मरकत’ से कवयित्री का आशय जीवन की कठोर सच्चाइयों से है जिनका साहसपूर्वक सामना करने से ही मनुष्य के जीवन रूपी मोती का निमाण होता है।
‘जीवन-मोती’ का अर्थ मनुष्य का सत्य पर आधारित जीवन है।

प्रश्न 11.
प्रकृति किस प्रकार मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायक सिद्ध होती है ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘सब ऑँखों के आसू उजले’ नामक कविता में कवयित्री ने प्रकृति के उपादानों के माध्यम से स्वप्न बुने है और इन स्वप्नों में सत्य को उद्घाटित किया है। फूलों में मकरंद भरना, सूर्य के प्रकाश से संसार को आलोकिक करना, झरने का बहना, दीपक का जलकर सृष्टि को प्रकाशवान करना तथा फूलों का सुगंध बिखेरकर संसार को सुगंध से भर देना प्रकृति के स्वप्न हैं जिनमें सत्य निहित होता है। मृत्यु के बाद पुनर्जीवन प्राप्त करना स्वप्न को साकार करना है। कविता के अंत में कवयित्री भी कामना करती है कि हे प्रभु ! संसार के सुख-दुख को भोगकर अब मेरे प्राण मुझे छोड़कर जा रहे हैं मेरा यह स्वप्न है कि तू इन्हें नवजीवन दे दो। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि इस कविता में ‘स्वप्न’ और ‘सत्य’ को संपूर्णता के साथ चित्रित किया गया है।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) आलोक लुटाता वह ………… कब फूल जला?
(ख) नभ तारक-सा ………….. हीरक पिघला ?
उत्तर :
(क) कवयित्री का मानना है कि परमात्मा ही इस संसार के प्राणियों को सुख-दुख देता है। कभी वह संसार को सूर्य के प्रकाश से तो कभी फूलों की सुगंध से भर देता है। दोनों ही संसार में आनंद बिखेरते हैं परंतु ये सब कब और कैसे होगा यह उस परमात्मा पर ही निर्भर करता है।

(ख) कवयित्री कहती है कि सूर्य के अस्त होते ही वातावरण अंधकारमय हो जाता है फ्लस्वरूप दिन का सूर्य रूपी सत्य रात को चाँद-सितारे बनकर आकाश को चूमता प्रतीत होता है। यही सत्य दिन की गरमी को खत्म कर ठंडक रूपी मधुर रस में परिवर्तित कर देता है। चाँद-सितारे वातावरण को शीतलता प्रदान करते हुए ऐसे प्रतीत होते हैं मानो केशर किरणों के समान झूम रहे हों। स्वयं को अमूल्य बनाने के लिए स्वप्न कब शीशे के समान टूटकर स्वयं को कब हीरा बना लेते हैं यह जीवन की सच्चाई केवल परमात्मा ही जानता है। अर्थात् जीवन के स्वप्न को सत्य में परिवर्तित केवल परमात्मा ही कर सकता है।

प्रश्न 13.
काव्य-सॉंदर्य स्पष्ट कीजिए :
संसृति के प्रति पग में मेरी. एकाकी प्राण चला।
उत्तर :
इन पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि हे परमात्मा ! मेरा जीवन अब अंतिम चरण में है अर्थांत मेंरे शरीर से प्राण निकलनेवाले हैं अब तुम मेरे जीवन को नवजीवन में परिवर्तित कर दो। मेरे प्रतिपल परिवर्तित होते जीवन में तुमने कितनी साधनाएँ की होंगी उन सभी को गिन लीजिए। इस दुखी संसार में सुख-दुख एकाकार होकर मेरे प्राण अकेले चले जा रहे हैं अर्थात मेरे जीवन का अंत होनेवाला है और मैंने यह जान लिया है कि जीवन के प्रत्येक स्वप्न में सत्य समाहित होता है। अनुप्रास अलंकार है। भाषा तत्सम प्रधान, लाक्षणिक एवं प्रतीकात्मक है। उद्बोधनात्मक शैली है। गेयता का गुण विद्यमान है।

प्रश्न 14.
‘सपने-सपने में सत्य ढला’ पंक्ति के आधार पर कविता की मूल संवेदना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘सपने-सपने में सत्य बला’ महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविता ‘सब आँखों के आँसू उजले’ की अंतिम पंक्ति है। इस कविता की मूल संवेदना यह है कि प्रकृति के प्रत्येक क्रिया-कलाप में सत्य निहित होता है। कवयित्री का मानना है कि फूलों में मकरंद का होना, दिन का प्रकाशमय होना, सूर्य की स्वर्णिम किरणों में घुल-मिलकर झरने का बहना, दीपक का जलना तथा फूल का चारों ओर सुगंध बिखेर देना सभी प्रकार के प्रकृति क्रिया-कलापों में सत्य ही प्रदर्शित होता है। जीवन के प्रत्येक-कदम पर मनुष्य को सच्चाई का सामना करना पड़ता है। कवयित्री कविता के अंत में कहती है कि हे परमात्मा ! मेरी जीवन यात्रा में मैने अनेक अच्छे बुरे अनुभव प्राप्त किए। अब इन्हीं सुखों और दुखों के बीच मेंर प्राण निकल रहे हैं। तुम इन्हें नवजीवन दे दो।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
स्वाधीनता आंदोलन के कुछ जागरण गीतों का एक संकलन तैयार कीजिए।
प्रश्न 2.
महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताओं को पढ़िए और महादेवी वर्मा की पुस्तक ‘पथ के साथी’ से सुभद्रा कुमारी चौहान का संस्मरण पढ़िए तथा उनके मैत्री-संबंधों पर निबंध लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने विद्यालय के पुस्तकालय की संबंधित पुस्तकों से ज्ञात करें।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 15 जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले

कथ्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ना किसको संबोधित है ?
उत्तर :
नाश-पथ पर अपने चिहन छोड़ना मानव को संबोधित किया गया है।

प्रश्न 2.
‘तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना’ का क्या आशय है ?
उत्तर :
‘तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना’ का आशय है कि है मनुष्य । जीवन की मौज-मस्ती और मोह-बंधन तुम्हें अपने मोह पाश में बाँध लेंगे। चूंकि तुम्हें अभी बहुत दूर जाना है इसलिए इन मोह-माया के बंधनों को तुम अपने लिए कारा (जेल) मत बना लेना अर्थात् मोह-माया के बंधनों को तोड़कर ही मनुष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 3.
इस कविता में महादेवी ने आँसू को किन-किन रूपों में प्रस्तुत किया है ?
उत्तर :
महादेवी वर्मा ने आँसू के बारे में कहा है कि किसी के आँसू तेरे हदयय की कठोरता को पिषला नहीं सक्ते ? मंजिल-प्राप्ति की आग जो तैरे हदयय में जगी है और संघर्ष के बाद जब तुझे जीत प्राप्त होगी तभी तेर आँखों में खुशी के आसू आएँगे। इस प्रकार मंज़िल प्रापित में आँसुओं की भावुक्ता और जीत के बाद आँखों में आए आँसुओं का वर्णन किया गया है।

प्रश्न 4.
‘जिसने उसको ज्वाला सौंपी …….. कब फूल जला’ छंद में फूल और सौरभ के माध्यम से क्या भाव प्रकट किया गया है ?
उत्तर :
उपर्युक्त छंद में फूल और सौरभ के माध्यम से भाव प्रकट किया गया है कि दीपक को ज्वाला प्रदान करनेवाला और फूल को सुगंध प्रदान करनेवाला परमात्मा ही होता है। दीपक प्रकाश के माध्यम से संसार को आलौकिक कर देता है और फूल सारे संसार में सुगंध भर देता है। इन दोनों का स्वभाव एक-सा होता है परंतु कब दीप जलेगा और कब फूल खिलेगा यह केवल परमात्मा जानता है।

प्रश्न 5.
निझर सुर-धारा और मोती को महादेवी ने किस तरह आँसू से जोड़ा है ?
उत्तर :
निईर को सौ-सौं धाराओं में बहले चंचल जल के माध्यम से आँसुओं से जोड़ा गया है।
जीवन के सत्य मिलकर तारों का समूह बनकर सुरधारा को आँसुओं के रूप में चूमते हैं।
जीवन रूपी मोती की चमक भी आँसुओं के रूप में चित्रित की गई।

प्रश्न 6.
“हार भी तेरी बनेगी ………. कलिया बिछाना” पंक्तियों में पतंग और दीपक की किन विशेषताओं को महादेवी वर्मा ने रेखांकित किया है ?
उत्तर :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने पतंगा के बारे कहा है कि पतंगा ज्योति पुंज पर राख होने के लिए ही चक्कर काटता रहता है अर्थात पतंगे का जीवन क्षणिक होता है वह अपनी मंजिल को प्राप्त नहीं कर सकता। दीपक की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कवयित्री कहती हैं कि दीपक की जलती हुई लौं अमरता की प्रतीक है क्योंकि दीपक की इसी लौ को पाने के लिए पतंगा अपने जीवन को खत्म कर देता है इस प्रकार पतंगा क्षीण जीवन जीता है और दीपक अमर हो जाता है।

प्रश्न 7.
प्रेम में हार भी जीत की निशानी बन जाती है-इस उदाहरण को किस उदाहरण पुष्ट किया गया है ?
उत्तर :
कवयित्री महादेवी का मानना है कि मानवीय जीवन संघवों, दुखों और असफलताओं का जीवन है। यहाँ पग-पग पर हार का सामना करना पड़ता है। अगर तुम्हें देश के प्रति प्रेम है तो स्वतंत्रता-प्रापि के लिए तुम्हें बार-बार संघर्ष करना पड़ेगा। देश-प्रेम और स्वतंत्रता-प्राप्ति इतनी आसान नहीं है। देश की स्वतंत्रता-प्राप्ति की लड़ाई अगर तू हार भी गया तो वह तुम्हारी पराजय नहीं बल्कि विजय होगी क्योंकि हार में भी जीत के लक्षण निहित होते हैं। जिस प्रकार जो जवान आजादी की लड़ाई में शहीद हो गए हैं वे मरे नहीं हैं बल्कि अमर हो गए हैं। वे हारकर भी जीत गए हैं। इस प्रकार देश-प्रेम में हार भी जीत की निशानी बन जाती है।

प्रश्न 8.
मार्ग की बाधाओं को कवयित्री ने किन-किन प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया है ?
उत्तर :
कवयित्री महादेवी के अनुसार जीवन एक मार्ग है। दुख एवं पीड़ाएँ इस मार्ग की बड़ी बाधाएँ हैं। संधर्ष और असफलताएँ इस मार्ग को और भी अवरुद्ध कर देती हैं। मनुष्य को बार-बार दुखों और संघषों का सामना करना पड़ता है। मार्ग की बाधाओं को कवयित्री ने हिमालय की बर+फ से ढकी बर+फीली चोटियों, प्रकृति में आँधी और तु+फान का आना, चारों ओर काली आँधी से प्रचंड अंधकार छा जाना, मोम के बंधन, तितालियों के पर, मधुप की मधुर गुनगुन, फूलों पर पड़ी ओस की बूँदे, अपने प्रति मोह की धारा बनना, ठंडी साँसें तथा अंगार शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना आदि प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया है।

प्रश्न 9.
महादेवी की वेदनानुभूति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
महादेवी वर्मा के काव्य का प्रमुख तत्व विरह वेदना है। इन्हें ‘वेदना की कवयित्री’ भी कहा जाता है। इनके काव्य में वेदना के लिए आत्म-समर्पण, सँदर्य तथा आनंद है। इन्हें ‘ वेदना की सामग्री’ भी कहा जाता है। महादेवी वर्मा ने स्वयं अपने बारे में लिखा। ”दुख मेंर निकट जीवन का ऐसा काव्य है जो सारे संसार को एक सूत्र में बाँधे रखने की क्षमता रखता है। हमारे असंख्य सुख हमें चाहे मनुष्यता की पहली सीढ़ी तक न पहुँचा सकें। किंतु हमारा एक बूँद आँसू भी जीवन को अधिक मधुर, अधिक उर्वर बनाए बिना नहीं गिर सक्ता।” महादेवी को स्वयं पर पूरा भरोसा है कि वेदना की सहायता से अपने प्रिय का साक्षात्कार किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
‘जाग तुझको दूर जाना’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘जाग तुझको दूर जाना’ महादेवी वर्मा का एक गीत है। इस गीत के माध्यम से कवयित्री मानव को निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। कवयित्री मनुष्य का आह्वान करते हुए कहती है कि मनुष्य को सदैव जीत के लिए तत्पर रहना चाहिए। कवयित्री ने ये गीत स्वाधीनता आंदोलन की प्रेरणा से रचित जागरण गीत है। कवयित्री ने अपने इस गीत द्वारा भीषण कठिनाइयों की चिंता न करते हुए कोमल बंधनों के आकर्षण से मुक्त होकर अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहने का आहवान किया है। मोह-माया के बंधन में जकड़े मानव को जगाते हुए महादेवी ने कहा है जाग तुझको दूर जाना है।

प्रश्न 11.
महादेवी वर्मा के दूसरे गीत ‘सब आँखों के आँसू उजले’ का संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवयित्री ने अपने दूसरे गीत ‘सब आँखों के आँसू उजले’ गीत में जीवन के सत्य को प्रकृति के माध्यम से उद्धाटित किया है। प्रकृति के उस स्वरूप की चर्चा की है जो सत्य है, यथार्थ है और जो लक्ष्य तक पहुँचने में मानव की मदद करता है। महादेवी वर्मा मानव को संदेश देना चाहती है कि प्रकृति के इस परिवर्तनशील यथार्थ से जुड़कर मनुष्य अपने सपनों को साकार करने की राहें चुने।

प्रश्न 12.
कवयित्री ने किसे और कैसे विनाश के मार्ग पर अपने पद चिह्न-छोड़ने को कहा है ?
उत्तर :
कवयित्री ने मानब को निरंतर जागृत रहने की प्रेरणा दी है कि चाहे अंधकार की प्रचंड छाया संपूर्ण प्रकाश को अंधकार में परिवर्तित कर दे। चाहे निष्टुर तू+फान संपूर्ण आकाश में आकाशीय बिजलियों की वर्षा कर दे किंतु तुम्हें निरंतर चलते हुए विनाश के रास्ते पर अपने पैरों के निशान छोड़ते जाना है, इसलिए तुम्हें निरंतर जागना होगा तथा चलना होगा।

प्रश्न 13.
कवयित्री किसे अपनी कहानी ठंडी साँसों से कहने की बात करती है ?
उत्तर :
कवयित्री मानव को सचेत करते हुए उसे जीत के लिए सदैव तत्पर रहने को कहती है। वह मानव से कहती है कि उसका जीवन आग में जलती कहानी है तथा उसका सारा जीवन दुखों और संघर्षों से भरा पड़ा है। इसलिए मानव तुम इस अपनी संघर्षमय कहानी को ठंडी साँसों से मत कहो। अगर तू जीवन संघर्ष में हार भी गया तो वह तेरी पराजय न होकर विजय होगी क्योंकि हार में जीत के लक्षण दिखाई पड़ते है।

प्रश्न 14.
कवयित्री ने प्रकृति के माध्यम से जीवन की सच्चाई को कैसे प्रकट किया है ?
उत्तर :
कवयित्री ने ‘सब आँखों के आँसू उजले’ गीत के माध्यम से जीवन की सच्चाई को प्रकृति के माध्यम से प्रकट किया है। महादेवी का मानना है कि जीवन का सत्य ही सौ-सौ धाराओं को बनाकर चंचल झरने के रूप में स्थिर धरती से मिलकर एक हो जाता है। परमात्मा द्वारा प्रदान जीवन की सच्चाई ही सागर का करुण जल बनकर संपूर्ण पृथ्वी को चारों और से घेर लेती है। ये सभी सत्य परिवर्तन मात्र परमात्मा की इच्छा पर निर्भर हैं।

काव्य-सौंदर्य पर आधारित प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
आधुनिक गीतकारों में महादेवी वर्मा का स्थान निर्धारित कीजिए।
उत्तर :
गीतिकाव्य वह होता है जो संगीत की माधुरी से युक्त आत्मपूरक होता है। इस प्रकार का काव्य कल्पना प्रधान होते हुए अनुभूति से भी युक्त होता है। हिंदी में गीतिकाव्य की परंपरा ‘बीसलदेव रासो’ से आरंभ होती है जो नरपति नाल्ह द्वारा रचित है। महादेवी का गीत सरस, स्वाभाकिक तथा रोचक है। इसमें प्रतीकात्मकता तथा रागात्मकता का सुंदर निरूपण हुआ है। इनका गीतिकाव्य आत्मनिवेदन के रस से सराबोर है। जितनी विशेषताएँ महादेवी के काव्य में देखने को मिलती है उतनी किसी ओर अन्य कवि के काव्य में नहीं मिलती हैं। महादेवी की गीतियाँ विरहिणी के प्रिय के प्रति आत्मनिवेदन, याचना, दैन्यता आदि भावों से अनुप्राणित एवं तरलायित हैं। वहाँ सामान्य से सामान्य भाव का भी गहन, स्वाभाविक गीतिमय चित्रण उपलब्ध होता है।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 16 Question Answer नींद उचट जाती है

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 16 नींद उचट जाती है

Class 11 Hindi Chapter 16 Question Answer Antra नींद उचट जाती है

कथ्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
कविता के आधार पर बताइए कि कवि की दुष्टि में बाहर का अंधेरा भीतरी दुस्वप्नों से अधिक भयावह क्यों है ?
उत्तर :
कवि ने भीतर के दुःस्पपों से भयावह समाज में व्याप्त कुल्यवस्था एवं कुरीतियों के अंधकार को माना है क्योंकि अंतर्मन का दुख तो उनका निजी दुख है, परंतु समाज की पीड़ाओं की रात समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है। संसार में सुख और समृद्धि की सुबह कब होगी यही सोचकर कवि का मन बेचैन है।

प्रश्न 2.
अंदर का भय कवि के नयनों को सुनहली भोर का अनुभव क्यों नहीं होने दे रहा है?
उत्तर :
कवि का अंतर्मन संसार में व्याप्त विभिन्न विसंगतियों रूपी अंधकार को देख-देखकर अनेक दुश्चिताओं में घिर जाता है, जिस कारण वह रातभर करवटें बदलता रहता है और सो नहीं पाता। उसके अनिद्रित नयन फिर से अलसाकर बंद हो जाते हैं। उसका मन एक अनजाने भय से ग्रस्त हो जाता है और वह चाहकर भी सुनहली भोर अथवा सुखों का अनुभव नहीं कर पाता क्योंकि संसार में अभी भी दुख-दर्द रूपी अँधेरा समाप्त नहीं हुआ है।

प्रश्न 3.
कवि को किस प्रकार की आस रात-भर भटकाती है और क्यों ?
उत्तर :
रात-भर करवटें बदलने के कारण कवि सो नहीं पाते। वे अपने दुख के साथ संसारिक दुखों के कारण बेचैन है। उनकी पलकें स्थिर हो जाती हैं, परंतु दुखों का अँधेरा उनकी आँखों में समाया हुआ है। कवि को आशा है कि सुबह का प्रकाश न केवल मेरे अंतर्मन के दुख को बल्कि सांसारिक दुखों को भी समाप्त कर देगा। कवि को यही आशा रातभर भटकाती है।

प्रश्न 4.
कवि चेतन से फिर जड़ होने की बात क्यों कहता है ?
उत्तर :
कवि चेतन से जड़ होने की बात इसलिए कहता है क्योंकि चेतन मनुष्य पर सांसारिक वातावरण अपना प्रभाव डालता है। जब कवि समाज की कुव्यवस्था और सांसारिक दुखों के बारे में सोचता है तो और अधिक दुखी हो जाता है। वह बाहर के अँधेर को देखकर भयभीत हो जाता है। उनका मन दुश्चिंताओं से घिर जाता है। इन्ही दुखों और चिंताओं से छुटकारा पाने के लिए कवि एक बार फिर सजीव से निर्जीव बन जाना चाहता है अर्थात् एक बार फिर नींद की गोद में चले जाना चाहता है।

प्रश्न 5.
अंधकार-भरी धरती पर ज्योति चकफेरी क्यों देती है?
उत्तर :
कवि संसार में व्याप्त विसंगतियों रूपी अंधकार को दूर करना चाहता है। इसी समस्या को लेकर वह सदा चिंतित रहता है। उसे लगता है जैसे अनेक समस्याओं रूपी अंधकार से घिरी हुई धरती पर कहीं से कोई आशा रूपी प्रकाश की किरण चक्कर लगा रही है, जिससे संसार में व्याप्त विसंगतियों रूपी अंधकार नष्ट हो सकें तथा दुनिया के लोग सुखी हो सकें। वह संसार के संतप्त प्राणियों में आशा का संचार कर उन्हें सुख-समृद्धि से संपन्न करना चाहता है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) आती नहीं उषा …………. आहट आती है।
(ख) करवट नहीं ……………. में अक्षम।
उत्तर :
(क) कवि के अंतर्मन और सांसारिक जीवन दोनों में दुखों का अँधेरा व्याप्त है। कई बार उन्हें इन दुखों के अँधेरे को खत्म करनेवाली सुबह के आगमन का आभास होने लगता है। वे आशा करते हैं कि एक सुबह प्रकाश मेरे अंतर्मन और संसार के दुखों को समाप्त कर देगा। वास्तव में ऐसा होता नहीं है। फलस्वरूप कवि का मन जीवन की निराशा में जूझता रहता है।

(ख) इन पंक्तियों में कवि का आशय है कि जीवन में जब दुख रूपी अंधकार का साम्राज्य छा जाता है तो फिर वह स्थायी-सा लगने लगता है। सुख की सुबह का बस अहसास-सा होता है, परंतु सुख कभी भी स्थायी नहीं रहता। मन और संसार में निरंतर दुख का अंधकार छा जाने के कारण कवि का मन इस स्थिति में उतावलेपन का शिकार हो जाता है तथा इस स्थिति से निपटने में असमर्थ हो जाता है तथा एक बार किर कवि के मन में निराशा छा जाती है।

प्रश्न 7.
‘जागृति नहीं अनिद्रा मेरी, नहीं गई भवनिशा अँधेरी।’ इस पंक्ति में ‘जागृति, अनिद्रा और भवनिशा अँधेरी’ से कवि का सामाजिक संदर्भों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
कवि के लिए अंतर्मन और संसार दोनों में सर्वत्र अँधेर-ही-अँधेरा है। उन्हें केवल अंधकार ही दिखाई देता है। वे सोचते हैं कि मेरी नींद टूटने का अर्थ जागृति अथवा जागरण नहीं है बल्कि यह अनिद्रा की समस्या है। जागृति अथवा जागरण सुख और समृद्धि का प्रतीक होता जबकि अनिद्रा कष्टदायक होती है जागृति में आशा का संचार होता और अनिद्रा में निराशा व्याप्त होती है।

प्रश्न 8.
‘अंतनर्यनों के आगे से शिला न तम की हट पाती है’ – पंक्ति में ‘अंतर्नयन’ और ‘तम की शिला’ से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
‘अंतर्नयन’ से अभिप्राय है-मन की आँखें। ये अंतर्नयन कवि को स्वप्नलोक में ले जाते हैं। अंतर्नयन को ‘अंतदृष्टि’ भी कहा जा सकता है। ‘तम की शिला’ से तात्पर्य है-अंधकार की चट्टान। कवि का मानना है कि रातभर करवटें बदलने के कारण जब उसकी नींद खराब हो जाती है वे आँखें खोलना चाहते हैं। जब वे औँखें खोलते हैं तो सांसारिक दुख उनकी आँखों के सामने चक्कर काटने लगते हैं अर्थात कवि और अधिक बेचैन एवं दुखी हो जाते हैं। इसलिए कवि कहते हैं कि मेरे ‘अंतर्नयनों के आगे से शिला न तम की हट पाती है।

योग्यता-विस्तार – 

प्रश्न 1.
क्या आपको लगता है कि बाहर का अँधेरा भीतर के अँधेरे से ज्यादा घना है ? चर्चा करें।
प्रश्न 2.
संगीत-शिक्षक की सहायता से इस गीत को लयबद्ध कीजिए।
उत्तर :
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर की समीक्षा के लिए अपनी कक्षा के अध्यापक/अध्यापिका के साथ चर्चा करें।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 16 नींद उचट जाती है

कथ्य पर आधारित प्रश्न – 

प्रश्न 1.
कवि के व्यक्तिगत जीवन में निराशा क्यों है ?
उत्तर :
कवि कहते हैं कि रात में अचानक बुरे और डरावने सपने देखने के कारण मेरी नींद खराब हो जाती है और जब यह नींद खराब हो जाती है तो फिर रात लंबी लगने लगती है तथा रात समाप्त होने का नाम नहीं लेती। नीद उचट जाने के बाद कवि अनुभव करता है कि हदय में जो डर समाया हुआ है उससे कही अधिक डरावना अंधकार तो बाहर बहुत दूर तक फैला हुआ है। बाहर का अंधकार हमें अधिक भयभीत करता है। जीवन में सुबह का आगमन नहीं होता है। रात लंबी होती चली जाती है। ऐसा संकेत मिलता है कि सुबह होनेवाली है, परंतु एक बार फिर अँधेरा गहरा होने लगता है। अथांत जीवन में सुख की अपेक्षा दुख अधिक गहरा है। ऐसा लगता है कि सुख बस आने ही वाला है, परंतु सदैव दूर चला जाता है। इस प्रकार कवि के व्यक्तिगत जीवन में सर्वत्र निराशा है।

प्रश्न 2.
बाहर के अंधेरे को देखकर कबि की क्या दशा होती है ?
उत्तर :
कवि कहते हैं कि जब मैं बाहर के डरावने अंधकार को देखता हूँ तो मेरी आँखें दुखने लगती हैं। दुख की चिंता के कारण में प्राण निकलने लगते है। अनेक बुरी चिंताएँ मुझे चारों ओर से घेर लेती हैं। बाहर अँधेर में चुप्पी समाई हुई है, चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ है। इस गहरे और सुनसान अँधेर में जब कुत्ते और गीदड़ अजीब तरह की डरावनी भौंकने की आवाज़ निकालते हैं तो यह रात और अधिक भयानक लगने लगती है तथा सुंदर और आशावादी सुबह औँखों के पास तक नहीं आ पाती है अर्थात सुख के क्षण दूर होते चले जाते हैं तथा इन्हीं सुखी क्षणों की ओर अधिक प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

प्रश्न 3.
नींद उचट जाने पर कवि की क्या दशा होती है ?
उत्तर :
नींद उचट जाने के कारण रातभर कवि ठीक से नहीं सो पाते। सामाजिक व्यवस्थाओं और कुरीतियों के बारे में सोचकर वे फिर सो जाना चाहते हैं। उनका मन चाहता है कि मुझे एक बार भी गहरी नींद अपनी आगोश में भर से। वे चाहते है कि जब तक धरती पर रात का अँधेरा व्याप्त है तब तक में सजीव से एक बार में निर्जीव बन जाऊँ अर्थात नींद की गोद में जाकर मैं इस अव्यवस्था को भूल जाना चाहता हूँ। जिस करवट वे लेटे हुए थे उस करवट उन्हें बेचैनी थी, परंतु दूसरी करवट बदलने पर भी बेचैनी उनका पीछा नहीं छोड़ती अर्थांत् किसी भी करवट नींद नहीं आ रही है। अर्थात वे न केवल अपने बारे में सोचकर परेशान हैं, बल्कि समाज के दुख एवम् पीड़ाएँ भी उन्हें सोने नहीं दे रही हैं।

प्रश्न 4.
कवि को रातभर कौन-सी आशा भटकाती है ?
उत्तर :
कवि बेचैनी के कारण सारी रात करवटें बदलते रहते हैं। वे कहते हैं कि मेरा बार-बार करवटें बदलना मेरे मन के उतावलेपन को दर्शाता है जिसके कारण मेरा मन इस बेचैनी से पार पाने में सक्षम नहीं है। मैं अपलक जागता रहता हैं, औँखों में पागलपन-सा छा गया है। मेरी पुतलियाँ स्थिर हो गई हैं और समय भी कुछ रुका-सा प्रतीत हो रहा है। कवि का मानना है कि इस बेचैनी में भी मेरी साँसे इसी आशा में अटकी है कि सब ठीक हो जाएगा और यही आशा कवि को रात भर भटकाती है।

प्रश्न 5.
‘र्नीद उचट जाती है’, कविता में कवि नरेंद्र शर्मा ने किसका वर्णन किया है ?
उत्तर :
‘नींद उचट जाती है’ कविता नरेंद्र शर्मा द्वारा रचित है। कवि ने इस कविता में एक ऐसी लंबी रात का वर्णन किया है जो समाप्त होने का नाम नहीं लेती। इस लंबी रात में कवि अनेक भयानक एंव डरावने सपने देखता है। फलस्वरूप उसकी नींद उचट जाती है। उन्हें चारों ओर अँधेरा-ही-अँधेरा दिखाई पड़ता है। वह अनुभव करता है कि अंतर्मन में समाए हुए डर के बजाय बाहर का डर अधिक भयानक है।

प्रश्न 6.
कविता में किस कारण कवि के मन में बेचैनी है ?
उत्तर :
सामाजिक व्यवस्था के कारण कवि के अंतर्मन में बेचैनी है। वह न केवल अपने बारे में सोचकर परेशान है, बल्कि समाज के दुख एवम् पीड़ा भी उसे सोने नहीं देती। वह जिस वक्त भी सोता है उसे बेचैनी होती है। करवट बदलने पर भी उसकी बेचैनी समाप्त नहीं होती है। कवि चाहता है कि जब तक पृथ्वी पर रात का अँधेरा व्याप्त है तब तक वह सजीव से निर्जीव बन जाए। वह नींद की गोद में जाकर अव्यवस्था को भूल जाना चाहता है।

प्रश्न 7.
कवि नरेंद्र शर्मा किस विचारधारा के कवि हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि नेंद्र शर्मां हिंदी साहित्य में प्रगतिवादी विचारधारा के कवि हैं। यधार्थवाद उनके जीवन का आधार बिंब है। वे माक्सवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक हैं। इनके अधिकतर गीत यथार्थवाद से जुड़े हैं। इनके काव्य में निर्धन, असहाय, शोषित आदि लोगों का शब्द-चित्र देखा जा सकता है। समाज की दयनीय दशा देखकर इनका मन अशांत और वेदना से भर जाता है। कवि बाहर के अंधकार को समाज में व्याप्त कुंठा, निराशा, बेईमानी एवं भय का नाम देता है।

प्रश्न 8.
कवि ने सांसारिक जीवन रूपी रात को क्या कहा है और क्यों ?
उत्तर :
कवि नेंद्र शर्मा ने सांसारिक जीवन रूपी रात को अँधेर और भय का पर्याय माना है। रात में बेचैनी के कारण नींद खराब हो जाती है। कवि के अंतर्मन और समाज में व्याप्त अँधेरा समाप्त होने का नाम नहीं लेता जिससे उसका न केवल मन दुखी होता हैं अपितु समाज की समस्याएँ भी उसे बेचैन करती है। फलस्वरूप वह रात-भर करवटें बदलता रहता है।

काव्य-सौंदर्य पर आधारित प्रश्न – 

प्रश्न 1.
नेरेंद्र शर्मा द्वारा रचित कविता ‘नींद उचट जाती है’ का काव्य-साँदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
नेंद्र शर्मा प्रगतिशील विचारधारा से जुड़े कवि हैं। इनके विचारों पर मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव देखा जा सकता है। इनके काव्य का शिल्पसँददर्य निम्नलिखित है –

  1. अँधेरा दुख का प्रतीक है।
  2. प्रश्नालंकार, अनुप्रास, उपमा आदि अलंकारों का प्रयोग है।
  3. गेयता एवं लयात्मकता विद्यमान है।
  4. लाक्षणिकता एवं प्रतीकात्मकता है।
  5. भाषा सरल, सहज एवं प्रसंगानुकूल है।

प्रश्न 2.
नरेंद्र शर्मा की भाषा-शैली पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
नेंद्र शर्मा प्रगतिवादी विचार-धारा से जुड़े कवि हैं। उनकी भाषा में भावों को अभिव्यक्त करने की पूर्ण क्षमता है। पाठक इनके भाव से बहुत ही सहज ढंग से जुड़ जाता है। गीतिका, हरि-गीतिका उनके प्रिय छंद हैं। इनके काव्य में तत्सम, तद्भव शब्दों का मिला-जुला रूप है। अलंकारों ने इनकी भाषा में सरसता तथा रोचक्ता उत्पन्न कर दी है। वस्तुतः नंँंद्र शर्मा की भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 17 Question Answer बादल को घिरते देखा है

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Class 11 Hindi Chapter 17 Question Answer Antra बादल को घिरते देखा है

प्रश्न 1.
इस कविता में बादलों के सौंदर्य-चित्रण के अतिरिक्त और किन दूश्यों का चित्रण किया है ?
उत्तर :
कवि नागार्जुन ने इस कविता में वर्णन किया है कि मानसरोवर में खिले कमलों पर पड़ी वर्षा की बूँदे छोटे-छोटे मोतियों जैसी लगती हैं। अनेक बड़ी-छोटी झीलों में समतल देशों की उमस से व्याकुल पक्षियों द्वारा कमल नाल के कड़वे मीठे तंतु खाते भी दिखाया है। साथ चकवा-चकई का प्रणय-कलह तथा किन्नर जाति के नर-नारियों के सौंदर्य और मादकता आदि दृश्य-बिंबों का सजीव वर्णन किया है।

प्रश्न 2.
‘प्रणय-कलह’ से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
‘प्रणय-कलह’ से कवि का तात्पर्य है कि जब प्रेमी और प्रेमिका अथवा नायक और नायिका परस्पर सच्चा प्रेम करते हैं और किसी कारणवश उन्हें बिद्डड़ना पड़ता है तो वे जब अलग-अलग होते हैं तो उन्हें विरह-वेदना में दिन व्यतीत करने पड़ते हैं तो परंतु जब वे एक बार फिर मिलते हैं तो वे प्यार व्यक्त करने के साथ-साथ एक-दूसरे के प्रति गुस्सा भी प्रकट करते हैं। उनका यही प्यार और गुस्सा ‘प्रणय-कलह’ कहलाता है। कवि ने प्रस्तुत कविता में चकवा और चकई के माध्यम से यही दर्शाया है। जब चकवा और चकई रात होते ही एक-दूसरे से बिछुड़ जाते हैं तथा सुबह होते ही एक-दूसरे को एक बार फिर मिल जाते हैं तो ‘प्रणय-कलह’ की क्रिया से गुज़रते है।

प्रश्न 3.
कस्तूरी मृग के अपने पर ही चिढ़ने के क्या कारण हैं ?
उत्तर :
कवि हिमालय पर्वत में स्थित सैकड़ों-हज्ञारों फुट की ऊँचाई पर गहरी एवं दुर्गम बफ़ीली घाटी में अलख नाभि से उठने वाली फूलों की-सी सुगंध को सूँघकर कस्तूरी मृग उसके पीछे-पीछे दौड़ता-सा प्रतीत होता है परंतु वहाँ वह कहीं भी उस सुर्ंध को नहीं पकड़ पाता। वह बार-बार चक्कर काटता है और फिर वहीं आकर खड़ा हो जाता है। एक अजीब-सी सुगंध के पीछे दौड़ते कस्तूरी मृग को देखकर कवि को लगता है कि वह अपने-आप से ही चिढ़ रहा है।

प्रश्न 4.
बादलों का वर्णन करते हुए कवि को कालिदास की याद क्यों आती है ?
उत्तर :
जब कवि हिमालय की ऊँची चोटियों पर बादल को छिरकर बरसते देखता है तो वह कालिदास को याद करता हैं और सोचता है कि यहों चारों तरफ बादल-ही-बादल हैं। धन का देवता कुलेर और उसकी अलका नगरी बादलों में कही लुप्त हो जाती है। कालिदास मेषदूत में वर्णन करते हैं कि वर्षा का पानी (गंगाजल) अत्यधिक तीव्र वेग से आकाश में घूमने लगता है। जब वह पर्वत की चोटी पर बादलों को घिरते देखता हैं तो उसे कालिदास का मेघदूत कहीं भी दिखाई नहीं देता। कवि उसे कोरी कल्पना समझकर छोड़ने की बात करता है। इसी दृश्य को देखकर कवि को कालिदास की अचानक याद आ जाती है।

प्रश्न 5.
कवि ने ‘मामेघ को झंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवि ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि उसने शीत ॠत्तु की तेज हवाओं में बादलों को आपस में टकरा-टकराकर गरजते और बरसते हुए देखा है। कवि को ऐसा लगता था कि मानो तेज़ तुफान में बड़े-बड़े बादल आपस में टकराकर बरस रहे हैं।

प्रश्न 6.
‘बादल को घिरता देखा है’-पंक्ति को बार-बार दोहराए जाने से कविता में क्या साँदर्य आया है ?
उत्तर :
इस कविता में ‘बादल को घिरते देखा है’ पंक्ति को बार-बार दोहराए जाने का सर्वाधिक उपयुक्त कारण यह है कि कवि ने इस कविता में जितने भी दृश्य चित्र बनाए हैं उन सबमें बादल को घिरते दिखाया गया है। हिमालय की ऊँची सफ़ेद चोटियों पर मानसरोवर और अन्य झीलों में पावस, शीत, ग्रीष्म और वसंत ऋतु के साथ-साथ तथा किन्नर जाति के वर्णन में बादल घिरकर आते हैं।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) निशाकाल से चिर-अभिशापित-बेबस उस चकवा-चकई का/बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें । उस महान सरवर के तीरे/शैवालों की हरी दरी पर प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
(ख) अलख नाभि से उठनेवाले/निज के ही उन्माद परिमल/के पीछे धावित हो-होकर / तरल तरुण कस्तूरी मृग को/अपने पर चिढ़ते देखा है।
उत्तर :
(क) कवि कहता है कि हिमालय की ऊँची स्वर्णिम चोटियों के बीच मानसरोवर झील है। वसंत ऋतु में उदय होते सूर्य की स्वर्णिम किरणें बर्फ़ की सफ़ेद चादर से ढकी चोटियों पर पड़ती हैं। मंद-मंद गति से हवा चल रही है। इस सुंदर एवं स्वच्छ वातावरण में चकवा और चकई एक-दूसरे से रात भर अलग-अलग रहने का सदा से अभिशाप है। परंतु सुबह होते ही उन बेबस और व्याकुल चकवा और चकई की विरह-चीखें बंद हो जाती हैं। कवि कहता हैं कि मैने चकवा – चकई को हिमालय स्थित मानसरोवर के किनारे शैवाल की हरी चादर पर प्यारा-भरी छेड़छाड़ करते देखा है अर्थात् रात-भर विरह वेदना से उभरकर सुबह जब दोनों मिलते हैं, तो, वे एक-दूसरे के साथ प्रेम भरी क्रीड़ाएँ करते हैं।

(ख) कवि कहता है कि हिमालय पर्वत में स्थित सैकड़ो-हजारों फुट की ऊँचाई पर गहरी और दुर्गम बफ़ीली घाटी में अनेक प्रकार के फूलों की सुगंध-सी बिखरी हुई है। चारों ओर सुंंधमय वातावरण है परंतु मृग जिसके पास स्वयं कस्तूरी की सुगंध होती है, वह इस नशीली सुंध के पीछे-पीछे दौड़ रहा है तथा ऐसा प्रतीत होता है जैसे बेचैन होकर कस्तूरी मृग अपने ही ऊपर चिढ़ रहा हो। यह सारा घटनाक्रम मैने अपनी आँखों से देखा है।

प्रश्न 8.
संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए :
(क) छोटे-छोटे मोती जैसे …………………. कमलों पर गिरते देखा है।
(ख) समतल देशों से आ-आकर …………………….. हंसों को तिरते देखा है।
(ग ) ऋतु वसंत का सुप्रभात था …………. अगल-बगल स्वर्णिम शिखर थे।
(घ) बूँड़ा बहुत परंतु लगा क्या .जाने दो, वह कवि-कल्पित था।
उत्तर :
इसी कविता का सप्रसंग व्याख्या भाग देखिए।

योर्यता-विस्तार –

1. अन्य कवियों की ऋतु संबंधी कविताओं का संग्रह कीजिए।
2. कालिदास के ‘मेघदूत’ का संक्षिप्त परिचय प्राप्त कीजिए।
3. बादल से संबंधित अन्य कवियों की कविताएँ याद कर अपनी कक्षा में सुनाइए।
4. एन० सी० ई० आर० टी० ने कई साहित्यकारों, कवियों पर फिल्में तैयार की हैं। नागार्जुन पर भी फिल्म बनी है। उसे देखिए और चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने पुस्तकालय से पुस्तकों / फ़िल्मों के लिए संपर्क करें।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 17 बादल को घिरते देखा है

कध्य पर आधारित प्रश्न – 

प्रश्न 1.
कविता में चित्रित प्रकृति एवं जन-जीवन को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कवि नागार्जुन द्वारा रचित कविता ‘बादल को घिरते देखा है’ में प्रकृति के साथ-साथ जन-जीवन का भी सुंदर चित्रण हुआ है। कवि कहता हैं कि मैने हिमालय की ऊँची बर्फीली निर्मल एवं सफ़ेद चोटियों पर बादलों को घिरते देखा है। उन्होंने मानसरोवर झील के साथ हिमालय में स्थित अन्य बड़ी-छोटी झीलों का भी सुंदर वर्णन किया है। वसंत ऋत्तु में संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र फूलों से भर जाता है। मंद-मंद समीर बहती है। सूर्य की किरणें बर्फ़ीली चोटियों पर जब पड़ती हैं तो उन्हें भी स्वर्णिम बना देती हैं। रात-भर एक-दूसरे से अलग रहने के कारण चकवा-चकई पुनः जब सुखा मिलते हैं तो वे ‘प्रणय-कलह’ की अनेक क्रियाएँ करते है।

कैलाश पर्कत के गगनचुंबी शिखरों पर मूसलाधार एवं भीषण वर्षा का भी कवि ने सुंदर एवं स्वाभाविक चित्रण किया है। हिमालय से निकलने वाले सौ छोटे-बड़े झरने देवदार के जंगलों में कल-कल करते हुए बहते हैं। इन्हीं देवदार के जंगलों में किन्नर जाति के लोग भोज पत्रों की कुटिया बनाकर रहते हैं। किन्नर जाति की स्त्रियाँ रंग-बिंगे फूलों की मालाएं बनाकर अपने बालों में गुँथती हैं। इंदनील की मणियों की मालाएँ उन्होंने अपने सुंदर एवं सुघड़ गलों में डाल रखी हैं। कानों में नील कमल के कुंडल लटकाए हुए हैं। लाल कमलों से अपनी वेणी को गुँथा हुआ है। दूसरी ओर नर चाँदी और मणियों से बनी सुराही में अंगूरों की शराब भरकर चंदन की तिपाई पर रखकर बाल कस्तूरी मृगों की छालों पर पालथी मारकर बैठे है। उनकी आँखों में शराब की मस्ती है। कवि कहता है कि ये मदमस्त किन्नर और किन्नरियां अपनी कोमल अँगुलियों को बांसुरी पर फेरकर मधुर तान छेड़ते है। इस प्रकार कवि ने प्रकृति के साथ पर्कतीय क्षेत्रों में जन-जीवन का बहुत ही सुंदर एवं स्वाभाविक चित्रण किया है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियाँ किन-किन ऋतुओं से संबंधित हैं ?
(क) तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते हंसों को तिरते देखा है।
(ख) निशाकाल से चिर अभिशापित प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
(ग) महामेघ को झंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है।
उत्तर :
(क) उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने वर्षा क्तु का वर्णन किया है। जब समतल देशों में गर्मी के कारण उमस हो जाती है तो इसी उमस से व्याकुल होकर पक्षियों के समूह हिमालय की ओर पलायन कर जाते हैं। हिमालय में अनेक छोटी-बड़ी झीलें हैं। वहाँ मौसम बहुत ही सुहावना होता है। वहाँ ये पक्षी झीलों में खिले कमल की नाल के कड़वे-मीठे तंतु खाते हैं।

(ख) उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने वसंत ऋत्तु का वर्णन किया है। पर्वतीय क्षेत्रों में बसंत में मंद-मंद हवा बह रही है। उदय होते सूर्य की कोमल किरणें शिखरों के बीच से निकल रही हैं। चकवा और चकई दोनों रात-भर एक-दूसरे से अलग रहने के कारण दु:खी थे, परंतु सुबह होते ही उनका पुनर्मिलन होता है। वे खुशी और दु:ख के कारण ‘प्रण्य-कलह’ की क्रीड़ाएँ करते हैं।

(ग) उपर्युक्त पंक्तियों में शरद ॠतु में होनेवाली वर्षा का वर्णन किया गया है। कवि कहते हैं कि कैलाश पर्वत की चोटियों पर बादल आपस में टकरा-टकराकर घनघोर वर्षा करते हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पद्यांशों का आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) एक-दूसरे से विरहित प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
(ख) अलख नाभि से उठने वाले अपने पर चिढ़ते देखा है।
(ग) बूंढ़ा बहुत परंतु लगा क्या जाने दो, वह कवि कल्पित था।
(घ) मैंने तो भीषण जाड़ों में गरज-गरज भिड़ते देखा है।
उत्तर :
(क) कवि कहता हैं कि वसंत ॠतु में पर्वतीय क्षेत्रों में मौसम अत्यंत सुहावना हो जाता है। चकवा-चकई रात-भर अलग-अलग रहकर दुखी हैं। वे रातभर क्रंदन करते हैं परंतु जैसे ही सुबह होती है वे दोनों एक बार फिर मिलते हैं तथा झील में स्थित शैवाल की दरी पर ‘प्रणयकलह’ करते हैं अर्थात बिहुड़े की पीड़ा और पुनर्मिलन की खुशी उन्हें उद्वेलित कर देती है।

(ख) कवि के अनुसार हिमालय पर्वत पर सैकड़ों हजारों फुट ऊँचाई पर स्थित दुर्गम घाटी में अनेक प्रकार के फूल खिले हुए हैं। संपूर्ण घाटी खुशबू से लबालब है। कस्तूरी मृग फूलों की सुगंध को पकड़ना चाहता है, परंतु वह उसे नहीं पकड़ सकता जबकि उसकी नाभि में कस्तूरी की सुगंध होती है। वह सुगंध न पकड़ने से बेचैन हो जाता है। उसे इधर-उधर दौड़ते देखकर ऐसा लगता है जैसे वह स्वयं ही चिढ़ रहा हो।

(ग) कवि जब हिमालय पर्वत में जाड़ों की मूसलाधार घनषोर वर्षो को देखता हैं तो उसे लगता है कि देखता है कवित कालिदास ने भी अपने मेघदूत में ऐसा ही वर्णन किया है। वे पर्वतीय क्षेत्र में मेघदूत को ढूँढतेत हैं परंतु कालिदास का मेघदूत उन्हें कहीं दिखाई नहीं पड़ता इसलिए कवि इसे कालिदास की कल्पना मानकर छोड़ देते हैं।

(घ) कवि हिमालय पर शरद ॠत्तु में घनघोर वर्षा का वर्णन करते हुए कहता हैं कि मैं कैलाश पर्वत की ऊँंची चोटियों पर महामेघ को झंझावात करते तथा आपस में टकरा-टकराकर बरसते देखा है अर्थात् कवि ने कैलाश पर्कत पर आपस में टकराकर गरजते बादलों का स्वाभाविक चित्रण किया है।

प्रश्न 4.
‘बादल को घिरते देखा है’ कविता में कवि ने प्रकृति के जिन उपकरणों का प्रयोग किया है, उनपर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
कवि ने हिमालय की ऊँची बर्फीली निर्मल एवं सफेदद चोटियों पर बादलों को घिरते देखा है। उसने मानसरोवर झील के साथ हिमालय में स्थित अन्य बड़ी-छोटी झीलों का भी सुंदर वर्णन किया है। वसंत ऋ्तु में संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र फूलों से भर जाता है। मंद्द-मंद समीर बहती है। सूर्य की किरणें बर्फीली चोटियों पर जब पड़ती हैं तो उन्हें भी स्वर्णिम बना देती हैं। रात-भर एक-दूसरे से अलग रहने के कारण चकवा-चकई पुन: जब सुबह मिलते हैं तो वे ‘प्रणय’ की अनेक क्रियाएँ करते हैं। कैलाश पर्वत के गगनवुंबी शिखरों पर मूसलाधार एवं भीषण वर्षा का भी कवि ने सुंदर एवं स्वाभाविक चित्रण किया है। हिमालय से निकलने वाले सौकड़ों छोटे-बड़े झरने देवदार के जंगलों में कल-कल करते हुए बहते हैं।

प्रश्न 5.
कवि ने प्रस्तुत कविता में बादल को किस ॠतु में घिरते देखा है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने बादल को वर्षा ऋतु में घिरते देखा है। कवि ने अपनी इस कविता में इस संदर्भ में स्पष्ट किया है कि जब समतल क्षेत्रों में उमस हो जाती है तो पक्षी हिमालय की ओर जाते हैं। कवि ने लिखा है –
‘पावस की उमस से आकुल, तिक्त-मधुर वसतंतु खोजते,
हंसों को तिरते देखा है, बादल को घिरते देखा है।’

प्रश्न 6.
कविता में ‘चकवा-चकई’ के प्रसंग द्वारा कवि क्या कहना चाहता है? विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘चकवा-चकई’ के से कवि यह कहना चाहता है कि जब प्रेमी और प्रेमिका अथवा नायक और नायिका आपस में सच्चा प्रेम करते हैं और किसी कारणवश उन्हें बिद्ुड़ान पड़ता है तो वे जब अलग-अलग होते हैं, तो उन्हें विरह-वेदना में दिन व्यतीत करने पड़ते हैं। परंतु जब वे एक बार फिर मिलते हैं तो वे प्यार व्यक्त करने के साथ-साथ एक-दूसरे के प्रति गुस्सा भी प्रकट करते हैं। उनका यही प्यार और गुस्सा ‘प्रणय-कलह’ कहलाता है। कवि ने प्रस्तुत कविता में चकवा और चकई के माध्यम से यही दर्शाया है। चकवा और चकई रात होते ही एक-दूसरे से बिछुड़ जाते हैं तथा सुबह होते ही एक-दूसरे को एक बार फिर जाते हैं और जब वे मिलते हैं तो ‘ ‘र्रणय-कलह’ की क्रिया से गुजरते हैं।

प्रश्न 7.
बादल के घिरते समय वातावरण कैसा था ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
बादलों के घिरते समय हिमालय पर्वत की चोटियाँ स्वच्छ और निर्मल बर्फ से ढकी हुई थीं। मैदानी क्षेत्रों की उसम से व्याकुल होकर पक्षी हिमालय की झीलों में तैरने लगे थे। मानसरोवर में खिले हुए कमलों पर बादलों से निकलने कर पड़नेवाली बूँदे मोतियों जैसी लग रही थीं।

प्रश्न 8.
कविता में किन्नर-किन्नरियों की वेषभूषा और साज-सज्जा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
इन्हीं देवदार के जंगलों में किन्नर जाति के लोग भोज पत्रों की कुटिया बनाकर रहते हैं। किन्नर जाति की स्त्रियाँ रंग-बिंगे फूलों की मालाएँ बनाकर अपने बालों में गूँथती हैं। इंद्रनील की मणियों की मालाएँ उन्होने अपने सुंदर एवं सुषड़ गलों में छल रखी हैं। कानों में नील कमल के कुंडल लटकाए हुए हैं। लाल कमलों से अपनी वेणी को गूँथा हुआ है। नर चाँदी और मणियों से बनी सुराही में अंगूरों की शराब भरकर चंदन की तिपाई पर रखकर बाल कस्तूरी मृरों की छालों पर पालथी मारकर बैठे हैं। उनकी आँखों में शराब की मस्ती है। कवि कहता हैं कि ये मदमस्त किन्नर और किन्नरियाँ अपनी कोमल अंगुलियों को बाँसुरी पर फेर्रकर मधुर तान छेड़ते हैं।

प्रश्न 9.
नागार्जुन का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
नागार्जुन का जन्म बिहार के सतलखा नामक गाँव में सन् 1911 में हुआ था।

प्रश्न 10.
नागार्जुन ने कब और कहाँ से किस धर्म की दीक्षा ली थी ?
उत्तर :
नागार्जुन ने सन 1936 में ग्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।

प्रश्न 11.
नागार्जुन ने किस मासिक और साप्ताहिक पत्रिका का संपादन किया था ?
उत्तर :
नागार्जुन ने ‘दीपक’ मासिक और ‘विश्वंधु’ साप्ताहिक पत्रिका का संपादन किया था।

प्रश्न 12.
नागार्जुन की प्रमुख काव्य रचनाएँ कौन-सी हैं ?
उत्तर :
नागार्जुन की प्रमुख काव्य कृतियाँ-युगधारा, भस्मांकर, प्यासी पथराई आँखें तथा सतरंगे पंखोवाली है।’

प्रश्न 13.
कवि ने बादलों को घिरते हुए कहाँ देखा था ?
उत्तर :
कवि ने बादलों को घिरे हुए निर्मल, स्वच्छ, उज्ज्वल बर्फ से ढके हिमालय पर्कत की चोटियों पर देखा था।

प्रश्न 14.
हंस हिमालय की झीलों में कहाँ से और क्यों आकर तैरते हैं?
उत्तर :
मैदानी क्षेत्रों में पावस त्रु की उमस से व्याकुल होकर हंस हिमालय की ओर आ जाते हैं तथा यहाँ की झीलों में तैरते हैं।

प्रश्न 15.
वसंत ऋतु की प्रभात की वेला का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
वसंत ऋतु के प्रभात के समय मंद-मंद वायु चलती है। प्रभातकालीन सूर्य की कोमल स्वर्णिम किरणों से आस-पास के पर्वों की चोटियाँ भी स्वर्णिम दिखाई देती हैं।

प्रश्न 16.
‘चकवा-चकई’ क्यों क्रंदन कर रहे थे और उनका यह क्रंदन कैसे बंद हुआ ?
उत्तर :
रात होते ही चकवा-चकई एक-दूसरे से अलग होकर रात व्यतीत करते हैं, इसलिए वे क्रंदन कर रहे थे। परंतु दिन निकलते ही वे आपस में मिल जाते हैं तो उनका क्रंदन भी बंद हो जाता है।

प्रश्न 17.
मानसरोवर के कमल कैसे हैं ? उनपर वर्षा की बूँदें कैसे गिरती हैं ?
उत्तर :
मानसरोवर के कमल स्वर्णिम रंग के हैं। उनपर वर्षा की बूँदे छोटे-छोटे मोतियों के समान गिरती हैं।

प्रश्न 18.
नागार्जुन द्वारा रचित दो उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर :
रतिनाथ की चाची, बलचनमा, नई पौध, उप्रतारा तथा कुंभीपाक नागार्जुनन के प्रमुख उपन्यास हैं।

काव्य-सौंदर्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
कविता का काव्य-साँदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि नागार्जुन ने अपनी कविता ‘बादल को घिरते देखा है’ में भावनाओं का सुंदर वर्णन किया है। कवि हिमालय की बर्फ से ढकी सुंदर एवं सफेेद चोटियों का सुंदर वर्णन करते हैं। जब समतल देशों में वर्षा ऋहु में उमस हो जाती है तो पक्षियों के समूह हिमालय में स्थित अनेक झीलों की ओर चले जाते हैं। वहाँ वे कमल के कड़वे और मीठे तंतुओं को खाते हैं। बसंत ॠलु में मंद-मंद समीर बहती है। चकवा-चकई रातभर अलग होकर विरह वेदना से पीड़ित हैं परंतु सुबह एक बार फिर उनका मिलन होता है। इसी मिलन की बेला में वे प्रणय-क्लह की क्रीड़ाएँ करते हैं। देवदार के घने जंगलों में छोटे-बड़े अनेक झरने बहते हैं।

कवि ने इन्हीं जंगलों में रहने वाले किन्नर-किन्नयियों की जीवन-शैली का भी सुंदर वर्णन किया है। किन्नियों के रूप सँददर्य का वर्णन अत्यंत मनोरम एवं सुंदर है। वे अपने वेणी में कमल के फूलों को गूँथती हैं। कानों में उन्होंने नील कमल के कुंडल लटकाए हुए हैं। उनके सुंदर गलों में इंद्र नील के मनकों की मालाएँ हैं। पुरुष वर्ग के लोग सुखपान करने में मस्त हैं। वे मृगों की छाल पर पालथी मारे बैंे हैं तथा चाँदी और मणियों से बनी सुखही को चंदन से बनी तिपाई पर रखते हैं। किन्नर जाति के नर-नारियों की आँखों में अजीब तरह की मस्ती है। वे अपनी कोमल और मुलायम अँगुलियों से बाँसुरी की तान छेड़कर संपूर्ण वातावरण को संगीतमय बनाते हैं।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 18 Question Answer हस्तक्षेप

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 18 हस्तक्षेप

Class 11 Hindi Chapter 18 Question Answer Antra हस्तक्षेप

प्रश्न 1.
मगध के माध्यम से ‘हस्तक्षेप’ कविता किस व्यवस्था की ओर इशारा कर रही है ?
उत्तर :
हस्तक्षेप कविता मगध के बहाने जनतांत्रिक प्रणाली में सत्तासीन लोगों की आम जनता के प्रति क्रूरता और तानाशाही के विरोध का संकेत करती है। कविता में कवि यही कहता है कि आम जंनता केवल आँख मूँदकर जनतांत्रिक व्यवस्था स्वीकार न करे, बल्कि इस व्यवस्था में गलत निर्णयों के विस्द्ध आवाज भी उठाए।

प्रश्न 2.
व्यवस्था को ‘निरंकुश’ प्रवृत्ति से बचाए रखने के लिए उसमें ‘हस्तक्षेप’ ज़रूरी है-कविता को दृष्टि में रखते हुए अपना मत दीजिए।
उत्तर :
व्यवस्था को निरकुश प्रवृत्ति से बचाए रखने के लिए यह ज़रूरी है कि जब भी व्यवस्था आम आदमी की आवाज्ञ दबाने लगे तथा अपने स्वार्थ के लिए उनका शोषण करने लगे तो व्यवस्था के गलत निर्णयों के विर्द्ध सबको एक-जुट होकर अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए, क्योंकि एकता में बल होता है। आम आदमी अपनी एकता की शक्ति के द्वारा व्यवस्था को भी पलट सकता है। व्यवस्था की निरंकुशता को आँख मूँसकत स्वीकार नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 3.
मगध निवासी किसी भी प्रकार से शासन-व्यवस्था में हस्तक्षेप से क्यों कतराते हैं ?
उत्तर :
मगध निवासी हस्तक्षेप से इसलिए कतराते हैं क्योंक उन्हें यह आशंका लगातार बनी रहती है कि कहीं इस व्यवस्था के विरुद्ध आवाज़ उठाने में अकेला न रह जाए और राजनेताओं की आँखों की किरकिरी न बन जाए। अगर आम व्यक्ति ने उसका साथ नहीं दिया तो उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।

प्रश्न 4.
‘मगध अब कहने का मगध है, रहने को नहीं’ के आधार पर मगध की स्थिति का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
‘मगध’ को कवि ने जनतांत्रिक व्यवस्था का प्रतीक बनाया है। भारतीय जनतांत्रिक व्यवस्था में अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, सभी धर्मों के लिए सुख और सुरक्षा की व्यवस्था की गई, परंतु धीरे-धीरे यह जनतांत्रिक व्यवस्था राजनेताओं के गलत निर्णयों के कारण निरकुशता में परिवर्तित हो गई है। आम आदमी खुली हबा में साँस लेने की जगह दमघोंटू वातावरण में जीवनयापन करता है। आम जनता के ऊपर गलत नीतियाँ थोप दी जाती हैं। ये गलत निर्णय आम जनता के लिए दुख के कारण बनते हैं। कई बार ऐसी स्थिति आ जाती है कि आम आदमी इन सत्ताधारियों के विरुद्ध आवाज़ उठाने की स्थिति में भी नहीं होता। इसी स्थिति और वातावरण में आम आदमी का जीना दूभर हो आता है। भारतवर्ष में भी कुछ विलासी और निरकुश शासकों के कारण यही स्थिति पैदा हो जाती है। इसी अव्यवस्था पर व्यंग्य करते हुए कवि कहता है कि ‘मगध’ अब कहने का मगध है, रहने का नहीं अर्थात जनतांत्रिक ख्यवस्था तो केवल कहने के लिए है, उसमें जीवन जीना आसान नहीं है।

प्रश्न 5.
मुर्दे का हस्तक्षेप क्या प्रश्न खड़ा करता है ? प्रश्न की सार्थकता को कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कविता के अंत में कवि यह कहता है कि जब जनतांत्रिक व्यवस्था में सत्तासीन लोगों द्वारा गलत निर्णय लिए जाते हैं और जनता द्वारा आँख मूँदकर स्वीकार कर लिए जाते है, तब यही गलत निर्णय आम आदमी के लिए पीड़ाजन्य सिद्ध होते हैं। उसका इस व्यवस्था में जीना दूभर हो जाता है। इसलिए सभी इन निर्णयों को स्वीकार कर लेते हैं परंतु मुर्दा इस व्यवस्था के प्रति प्रश्न उठाता है तथा इस अव्यवस्था का विरोध करता है। उसका कहना है कि जब वह मुर्दा होकर भी इस अव्यवस्था का विरोध कर सक्ता है तो जो सजीव प्राणी इस अव्यवस्था का विरोध क्यों नहीं करते ? उन्हें भी इस अव्यवस्था के विरुद्ध एकजुट होकर उसकी अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए।

प्रश्न 6.
‘मगध को बनाए रखना है, तो मगध में शांति रहनी ही चाहिए’ – भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति में कवि श्रीकांत वर्मा मानते है कि जनतांत्रिक व्यवस्था में तानाशाही और गलत निर्णयों के कारण आम आदमी दुखी एवं पीड़त है। आम आदमी को राजनेताओं द्वारा गुमराह कर दिया जाता है कि वह सत्तासीन व्यक्तियों और उनकी सत्ता के विरोध में एक शब्द भी न कहे। यदि कहीं से भी कोई आवाज्र आई, तो यह जनतांत्रिक व्यवस्था के लिए अशांति का कारण बन जाएगी। इस जनतांत्रिक व्यवस्था में ही उन्हें जीवन जीना है। इसी व्यवस्था में उनका जीवन एवं भविष्य सुरक्षित है। फलस्वरूप आम आदमी इन सत्ताधारियों के खिलाफ़ न होकर बल्कि इनके द्वारा लिए गए गलत निर्णययों को भी स्वीकार कर लेता है और ये सत्ताधारी ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीते है। इस व्यवस्था पर व्यंग्य करते हुए कवि कहता है कि ‘मगध को बनाए रखना है, तो मगध में शांति रहनी ही चाहिए।

प्रश्न 7.
‘हस्तक्षेप’ कविता सत्ता की कूरता और उसके कारण पैदा होने वाले प्रतिरोध ही कविता है’ – स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जनतांत्रिक व्यवस्था में सत्ताधारियों के अत्याचारों और क्रूरता के कारण आम आदमी दुखी एवं पीड़ित है। वह इन सत्ताधारियों द्वारा भ्रमित एवं गुमराह कर दिया गया है। सत्तासीन लोग अपने ऐश्वर्य एवम् विलासिता के लिए आम जनता पर गलत निर्णय थोपते रहते हैं। आम आदमी इन गलत निर्णयों से भयभीत है परंतु वह अपने अंद्र इतनी शक्ति नहीं जुटा पाता कि वह इस अव्यवस्था के विरोध में आवाज़ बुलंद कर सके बस, औँख मूंदकर इस व्यवस्था को स्वीकार करना और दुख सहना ही उसकी नियति है। इसी पीड़ाजन्य सामाजिक अव्यवस्था को ही वह अपना भाग्य समझ बैठा है। फलस्वरूप वह इस दमघोंटू वातावरण में जीवन जीने के लिए अभिशप्त है तथा एक दिन इसी वातावरण में दम तोड़ देता है। कवि आम आदमी को अपनी एकता के बल के प्रयोग करने की सलाह देते हुए कहता है कि यदि वे सब इस अव्यवस्था के विर्द्ध मिलकर आवाज बुलंद करें, तो वे इस अन्यायपूर्ण सत्ता को पलटकर व्यवस्थित शासन व्यवस्था स्थापित कर सकते हैं।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित लाक्षणिक प्रयोगों को स्पष्ट कीजिए :
(क) कोई छींकता तक नहीं,
(ख) कोई चीखता तक नहीं,
(ग) कोई टोकता तक नहीं।
उत्तर :
(क) ‘कोई छींकता तक नहीं में कवि ने लाक्षणिक प्रयोग किया है कि छीकना अव्यवस्था के विरोध में उठती एक चिंगारी है। अगर यह चिंगारी एक बार सुलग गई तो इस अव्यवस्था के प्रति खतरा साबित होगा।
(ख) ‘कोई चीखता तक नहीं’ में कवि कहता हैं कि प्राय: लोग सत्तासीन लोगों द्वारा लिए गए गलत निर्णयों के विरुद्ध आवाज नहीं उठाते अर्थात् इन गलत निर्णयों के कारण वे दु:खी एवं पीड़ित हैं परंतु उसे केवल सहन करते रहते हैं, परंतु चीखने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।
(ग) ‘कोई टोकता तक नहीं’ में कवि ने लाक्षणिकता का प्रयोग करते हुए संकेत किया है कि आम जनता केवल गलत निर्णयों को सहन करती है, दुख झेलती है परंतु इन गलत निर्णयों को थोपने वाले राजनेताओं को टोकने का साहस नही करती। बस उसे आँख मूँदकर स्वीकार करती रहती है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पद्यांशों की व्याख्या कीजिए –
(क) मगध को बनाए रखना है, तो …………. मगध है, तो शांति है।
(ख) मगध में व्यवस्था रहनी चाहिए क्या कहेंगे लोग ?
(ग) जब कोई नहीं करता …………….. मनुष्य क्यों मरता है?
उत्तर :
(क) मगध को बनाए रखना है, तो…………मगध है, तो शांति है।
प्रस्तुत पक्तियों में कवि श्रीकांत वर्मा जनतांत्रिक अव्यवस्था पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि सत्ताधारियों की क्रूरता और अत्याचारों से आम जनता इतनी भयभीत है कि वह इनके सामने छींकने तक का भी साहस नहीं जुय पाती। आम जनता जनतंत्र (मगध) की शांति को भंग न कर दे, इसलिए ये सत्ताधारी आम जनता को भ्रमित कर देते हैं। सत्ताधारी उसे इस तरह गुमराह करते हैं कि आम व्यक्ति यह मानने लगता है कि जनतंत्र बनाए रखने के लिए शांति जरूीी है अर्थात् जनतांत्रिक व्यवस्था के विरोध में कुछ भी नहीं कहना है।

(ख) मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए……क्या कहेंगे लोग ?
कवि जनतांत्रिक अव्यवस्था पर व्यंग्य करते हुए एक बार फिर कहता हैं कि अगर जनतंत्र की व्यवस्था अव्यवस्थित हो गई तो यह विश्व हमें क्या कहेगा। भारत वर्ष विश्व में सबसे बड़ा जनतंत्रिक देश माना जाता है। आम व्यक्ति के सामने यही प्रश्न खड़ा कर दिया गया है कि कम-से-कम मेरे कारण तो इस व्यवस्था में कोई विरोध पैदा न हो, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति आँख मूँदकर इस अव्यवस्था को स्वीकार कर लेता है और दुखपूर्ण जीवन जीने के लिए विवश है।

(ग) जब कोई नहीं करता……….मनुष्य क्यों मरता है ?
कवि का मानना है कि जब सभी आँख मूँदकर सत्तासीन लोगों के अत्याचारों और क्रूरता को सहन करते रहेंगे तब व्यवस्था और भी बिगड़ जाएगी। और में आम आदमी का जीना दूभर हो जाएगा। परंतु आज उनमें इतनी शक्ति नहीं है कि वह इस अव्यवस्था के विस्द्ध आवाज़ बुलंद कर सके। कवि संपूर्ण समाज पर व्यंग्य करते हुए कहता हैं कि जब सारा समाज इस अव्यवस्था के विर्द्ध आवाज़ नहीं उठाएगा और दिन प्रतिदिन मनुष्य मरता रहेगा तब मुर्दा खड़ा होकर इस अव्यवस्था के विर्द्ध आवाज् बुलंद करेगा और प्रश्न उठाएगा कि आखिर आम आदमी इस व्यवस्था के कारण कब तक मरता रहेगा।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
‘एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप’
इस पंक्ति को केंद्र में रखकर परिचर्यां आयोजित करें।
प्रश्न 2.
‘व्यक्तित्व के विकास में प्रश्न की भूमिका’ विषय पर कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 18 हस्तक्षेप

कथ्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
मगध के लोगों में किस तरह का डर समाया हुआ है ?
उत्तर :
जनतंत्रिक व्यवस्था में सत्ता का सुख भोगने के लिए राजनेता आम जनता को गुमराह एवं भ्रमित करते हैं। वे यह चर्चा आम करते हैं कि अगर आप लोगों (जनता) ने इस व्यवस्था में कोई आवाज़ उठाने की कोशिश की तो व्यवस्था अव्यवस्था में तबदील हो जाएगी। इसलिए तुम्हारा छींकना, चिल्लाना और हस्तक्षेप करना जनतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा साबित हो सकता है। आम जनता में समाए इसी डर के कारण सत्ताधारी गलत निर्णय लेकर अपने लाभ का प्रबंध करते हैं और आम लोगों में यही डर समाया होता है कि उनके विरोध करने के कारण कहीं जनतंत्रिक व्यवस्था (मगध) की शांति में अशांति न आ जाए।

प्रश्न 2.
मगध में व्यवस्था क्यों और किसलिए रहनी चाहिए ?
उत्तर :
मगध में व्यवस्था सत्ताधारियों द्वारा लिए गए गलत निर्णयों के कारण अव्यवस्था में परिवर्तित हो जाती है। इन्ही गलत निर्णयों के कारण आम जनता दुखी एवं पीड़ित है। वह इस तंग व्यवस्था में बदहाल जीवन जीती है। इसके विपरीत सत्तासीन व्यक्ति इसी गुमराह जनता पर राज करते हैं तथा ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीते हैं। आम जनता इतनी निर्बल हो जाती है कि मगध (जनतंत्र) में न कोई छीकता है, न कोई चीखता है और न कोई टोकता है अर्थांत सारी जनता आँख मूँदकर इस अव्यवस्था को स्वीकार कर लेती है। आम जनता की यही स्वीकृति समाज के लिए घातक सिद्ध होती है। कहीं यह आम जनता सत्ताधारियों के ऐश्वर्यपूर्ण और विलासिता का विरोध न कर दे, इसलिए कवि व्यंग्य करते हुए कहता है कि मगध में व्यवस्था और शांति बनी रहनी चहिए।

प्रश्न 3.
‘मनुष्य क्यों मरता है ?’ मुर्द यह प्रश्न किससे करता है?
उत्तर :
जनतांत्रिक व्यवस्था में आम जनता त्रस्त एवं पीड़ित है परंतु फिर भी वह इस अव्यवस्था का विरोध नहीं करती। जब आम जनता इसी अव्यवस्था को स्वीकृति देती है और अव्यवस्था और गलत निर्णयों के विल्द्ध आवाज़ बुलंद नहीं करती, तो मुर्दा ही उठकर इस अव्यवस्था में हस्तक्षेप करता है अर्थात इस कुव्यवस्था में उठ खड़ा होता है। मुर्दा यह प्रश्न आम आदमी के समक्ष खड़ा करता है। वह प्रश्न करते हुए कहता है कि जब में इस अव्यवस्था के खिलाफ़ खड़ा हो सकता हूँ तो तुम क्यों नहीं ?

प्रश्न 4.
‘तुम कितना भी कतराओ। बच नहीं सकते हस्तक्षेप से’ इन पंक्तियों के संदर्भ में बताएँ कि क्या सामाजिक दायित्व और कर्तव्य से विमुख व्यक्ति का स्वतंत्र अस्तित्व रह पाएगा ?
उत्तर :
उपर्युक्त पंक्तियों के संदर्भ में कवि यह संकेत देते हैं कि आम जनता सत्तासीन व्यक्तियों द्वारा अपने लाभ के लिए गलत निर्णय आँख मूँदकर स्वीकार कर लेती है। यह गलत परंपरा है क्योंकि इसी कारण सत्तासीन व्यक्ति आम जनता की समस्याओं के बारे में नहीं सोचते। इसी कारण जनतांत्रिक व्यवस्था भी अव्यवस्था में तबदील हो जाती है। कविता के अंत में कवि आम जनता को कहता है कि उन्हें सामाजिक दायित्व और अपने कर्तव्य के प्रति विमुख नहीं होना चाहिए, बल्कि सभी को मिल-जुलकर इस अव्यवस्था के विरोध में आवाज़ बुलंद करनी चाहिए।

प्रश्न 5.
‘हस्तक्षेप’ कविता के द्वारा कवि ने क्या कहा है ?
उत्तर :
‘हस्तक्षेप’ कविता श्रीकांत वर्मा द्वारा रचित है। वे आधुनिक काल के कवि हैं। अपनी कविता के माध्यम से कवि ने सत्तासीन व्यक्तियों की क्रूरता और जनतांत्रिक प्रणाली का निंकुश व्यवस्था में परिवर्तित होने के कारण उपजे दुष्परिणामों का वर्णन किया है। कवि ने व्यंग्यात्मक टिपणी द्वारा जनतांत्रिक प्रणाली को मजबूत एवं शांति प्रिय बनाए रखने की कोशिश की है। कवि राजनेताओं के गलत निर्णयों पर भी व्यंग्य करने के है साथ-ही-साथ आम आदमी को गलत निर्णयों के विस्द्ध आवाज उठाने के लिए प्रेरित भी किया है।

काव्य-सौंदर्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
श्रीकांत वर्मा की-भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
श्रीकांत वर्मा की भाषा आम आदमी की भाषा है। उनकी भाषा में सरल तद्भव और तद्भव शब्दों की भरमार है। इनके काव्य में लक्षण शब्द-शक्ति का प्रयोग अधिक देखा जा सकता है। इनमें गागर में सागर भरने की क्षमता विद्यमान है। इन्होंने अपने काव्य में समाज में व्याप्त विषमताओं को व्यंग्यपूर्ण शैली में व्यक्त किया है। चित्रात्मक्ता, संवादात्मकता और नाटकीयता उनके काव्य की अन्य विशेषताएँ हैं।

प्रश्न 2.
श्रीकांत वर्मा की कविताओं से क्या ज्ञात होता है ?
उत्तर :
श्रीकांत वर्मा की काव्य-कृतियों से ज्ञात होता है कि मानव की चिंता का एक ही मूल कारण है और वो है भविष्य और आत्म -गौरव की चिंता। इनकी कविताओं में स्थान-स्थान पर आक्रोश और विद्रोह का स्वर मुखरित हुआ है। इनकी अधिकांश कविताओं में मानव के आत्म-गौरव का भी चित्रण हुआ है। कवि ने अपनी प्रारंभिक कविताओं में शहरी जीवन की अपेक्षा गाँव के लोगों के जीवन को अधिक चित्रित किया है। इनकी कविताओं में पाठक इसलिए सोचने को मजबूर हो जाता है, क्योंकि इनकी कविताओं में यथार्थ की अभिव्यक्ति होती है।

प्रश्न 3.
‘हस्तक्षेप’ कविता के द्वारा कवि क्या संदेश देना चाहता है ?
उत्तर :
कवि श्रीकांत वर्मा की कविता ‘हस्तक्षेप’ में सत्ता की क्रूरता और उसके कारण पैदा होने वाले प्रतिरोध को दिखाया गया है। व्यवस्था को जनतांत्रिक बनाने के लिए समय-समय पर उसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता है। इसके अभाव में व्यवस्था निरंकुश हो जाती है। कवि बार-बार कहना चाइता है कि जहाँ मुर्दे का भी हस्तक्षेप करना संभव है, उस समाज में जीता-जागता मानव चुप क्यों है ?

प्रश्न 4.
‘हस्तक्षेप’ मगध राज्य के लिए क्यों नहीं स्वीकार किया जा सकता ?
उत्तर :
मगध राज्य में हस्तक्षेप इसलिए स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि एक बार स्वीकार कर लेने पर बाद में हस्तक्षेप करने की नई परंपरा आरंभ हो जाएगी। कवि मगध के लोगों को चेताते हुए कहता है कि आज नहीं तो कल उन्हें इसे स्वीकार ही करना होगा, क्योंकि प्रकृति का नियम ही हस्तक्षेप करना है। बिना हस्तक्षेप के कोई भी व्यवस्था निंकुश एवं तानाशाही हो जाती है।

प्रश्न 5.
कविता में कवि ने किस ऐतिहासिक राज्य की बात की है और क्यों ?
उत्तर :
कविता में कवि ने ऐतिहासिक रुज्य ‘मगध’ का वर्णन किया है। मगध का वर्णन उन्होंनि इसलिए किया हैं क्योंकि पर समूह अशोक, चंंगुप्त और राज्यसंघ जैसे कई महान हुए हैं और उनकी राजधानी मगध रही है।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 19 Question Answer घर में वापसी

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 19 घर में वापसी

Class 11 Hindi Chapter 19 Question Answer Antra घर में वापसी

प्रश्न 1.
घर एक परिवार है, परिवार में पाँच सदस्य हैं, किंतु कबि पाँच सदस्य नहीं उहें पाँज की़ी आँखें मानता है। क्यों ?
उत्तर :
कवि उन्हें परिवार के पाँच सदस्य नहीं मानकर पाँच जोड़ी आँखें इसलिए मानता है क्योंकि गरीबी के कारण वे पाँचों परस्पर खुलकर संबाद नहीं करते। उनके समस्त रिश्तों-नातों, स्नेह और अपनत्व के बीच गरीबी की दीवार खड़ी हो गई है। गरीबी से निंतर संघर्ष करते-करते उनमें अब इतनी भी शक्ति शेष नहीं रह गई कि वे आपसी रिश्तों में गरमाहट पैदा कर सकें। वे बेबस होकर एक-दूसरे को देखते रह जाते हैं। उनकी आँखंं भी निस्तेज तथा आशा-रहित हो गई हैं।

प्रश्न 2.
‘पत्नी की आँखें, आँखें नहीं हाथ हैं, जो मुझे थामे हुए हैं’ से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
कवि इस कथन के माध्यम से यह स्पष्ट करता है कि उसकी पत्नी उसके अभावग्रस्त जीवन में उसे बहुत सहारा देती है। वह उसे निरंतर उत्साहित करती रहती है तथा अभावों में भी निराश नहीं होने देती। उससे प्रेरणा प्राप्त करके ही वह अपनी गरीबी से संघर्ष कर रहा है।

प्रश्न 3.
‘वैसे हम स्वजन हैं, करीब हैं
बीच की दीवार के दोनों ओर
क्योंकि हम पेशेवर गरीब हैं’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से कवि स्पष्ट करता है कि निस्संदेह वे स्वजन हैं, करीब हैं पर वे अत्यधिक गरीब हैं, अभाषग्रस्त हैं। गरीबी ने उनके पारिवारिक संबंधों में बिखराव और टूटन की दीवार-सी खींच दी है। वे अपने हुदय के सुख-दुख को भी ठीक से एक-दूसरे से कह नहीं पाते। इसलिए उनके संबंध वास्तव में होकर भी नहीं होने जैसे हैं। इसका मुख्य कारण उनकी गरीबी है।

प्रश्न 4.
‘रिश्ते हैं, लेकिन खुलते नहीं’-कवि के समाने ऐसी कौन-सी विवशता है जिससे आपसी रिश्ते भी नहीं खुलते ?
उत्तर :
कवि कहता है कि एक उसके घर में यद्यपि पाँच सदस्य रहते हैं पर वे स्वजन होकर भी स्वजन-सा व्यवहार नहीं करते। उनके ब्ददयों में गरीबी ने अलगाव की दीवारें खड़ी कर दी हैं। वे अपने सुख-दु:ख को एक-दूसरे के समक्ष प्रकट नहीं कर पाते। गरीबी के तनाष के कारण सभी के मुँह अलग-अलग दिशाओं में हैं।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित का काव्य-साँदर्य स्पष्ट कीजिए –
(क) माँ की आंखें पड़ाव से पहले ही
तीर्थ-यात्रा की बस के
दो पंचर पहिए हैं।
(ख) पिता की आँखें
लोहसाँय की ठंडी शलाखें हैं।
उत्तर :
(क) कवि ने ‘पड़ाव से पहले ही तीर्थ-यात्रा की बस के दो पंचर पहिए’ प्रतीक मँं की औंखों के लिए प्रयुक्त किया है। इसके द्वारा कवि ने सारा जीवन पवित्र कर्मों को करते हुए भी माँ की आँखों की असमय रोशनी चले जाने की ओर संकेत है। तीर्थ-यात्रा वाली बस जिस प्रकार रास्ते में ही पंचर होकर विषम स्थिति उत्पन्न कर देती है, उसी प्रकार असमय ही माँ की औँखों ने रोशनी खोकर घर में विषमता उत्पन्न कर दी है। भाषा सहज, सरल और भावपूर्ण है। लाक्षणिक्ता और प्रतीकात्मकता विद्यमान है। मुक्त छंद है।

(ख) कवि ने ‘लोहसाँय की ठंडी सलाखें प्रतीक पिता की आँखों के लिए प्रतीक रूप में प्रयुक्त किया है। अपनी यौवनावस्था में पिता तेजस्वी और रौबदार रहे होंगे पर बुढ़ापे और गरीबी ने उनके तेज को उनसे छीन लिया है और उनका तेज मंद पड़ गया है। वे अपने दुर्भाग्य के हाथों हार गए हैं। इसलिए उनके लिए कवि लोहसाँय की ठंड़ी सलाखें कहा है। भाषा सहज, सरल और भावपूर्ण है। लाक्षणिकता एवं प्रतीकात्मक्ता विद्यमान है। मुक्त छंद है।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
घर में रहनेवालों से ही घर, घर कहलाता है। पारिवारिक रिश्ते खून के रिश्ते हैं फिर भी उन रिश्तों को खोल पाना कैसी विवशता है, अपनी राय लिखिए।
उत्तर :
मेरा मानना है कि परिवार में जब किसी प्रकार का तनाव बना रहता है, उस समय आपस में खुलापन नहीं आ पाता। यह तनाव आर्थिक, मानसिक अथवा शारीरिक प्रताड़ना का हो सकता है। पारिवारिक गरीबी खुल कर आत्माभिव्यक्ति इसलिए नहीं करने देती कि कहीं कुछ ऐसा न कह बैठे कि परिवार में कलह हो जाए। किसी के भय के कारण भी आपसी रिश्ते खुल नहीं पाते हैं।

प्रश्न 2.
आप अपने पारिवारिक रिश्तों-संबंधों के बारे में एक निबंध लिखिए।
उत्तर :
मेरे पारिवारिक संबंधों का एक आदर्श परिवार
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसी कारण वह जहाँ भी रहता है अपने आस-पास रहने वालों के संपर्क में आकर कुछ उनके और कुछ अपने संस्कार एक दूसरे से लेता-देता रहता है। हमारे परिचित अनेक परिवार होते हैं जिनमें से कुछ के साथ हमारे औपचारिक तथा एक-दो के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित हो जाते हैं। जो परिवार हमारे आदर्शों के अनुरूप होता है वह हमें बहुत प्रभावित करता है और उस परिवार के साथ हमारे संबंध भी सुदृढ़ होते जाते हैं। इसी प्रकार का एक आदर्श परिवार हमारे संपर्क में भी है। डॉक्टर विनोद कुमार और डॉक्टर साधना का परिवार एक ऐसा आदर्श परिवार हैं, जिसे मैंने अपनी आँखों से देखा और जाना है।

डॉक्टर विनोद कुमार एक सुप्रसिद्ध शल्य चिकित्सक हैं तथा उनकी पत्नी डॉक्टर साधना बाल-रोग विशेषज्ञ हैं। दोनों की आयु क्रमश: पैतालीस तथा चालीस वर्ष की है। इनके दो बच्चे हैं- एक लड़कासुहास तथा एक लड़की नेहा। सुहास मेरे साथ बारहवी कक्षा में पढ़ता है तथा नेहा सातवीं कक्षा में पढ़ती है। इस प्रकार इस दंपति ने भारत सरकार की आदर्श परिवार की परिकल्पना को सत्य करने के लिए ‘हम दो, हमारे दो’ मूल मंत्र को सार्थकता प्रदान की है।

इस परिवार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आर्थिक रूप से संपन्न होते हुए भी इनमें अभिमान नहीं है अपितु ये सभी बहुत विनम्र हैं। नेहा और सुहास के पालन-पोषण में लड़की अथवा लड़का होने के कारण कोई भी भेद-भाव नहीं किया जाता है। सभी कार्य परस्सर विचार-विमर्श द्वारा संपन्न किए जाते हैं। अवकाश के दिनों में सैर-सपाटे कार्यक्रम भी आपसी सहयोग से बनाया जाता है।

इनके परिवार में घरेलू काम-काज करने के लिए नौकर हैं फिर भी माता-पिता के साथ बच्चे भी घर के काम में हाथ बँटाते हैं। डॉक्टर विनोद कुमार अपने बगीचे की देखभाल करते हैं, सुहास घर को साफ़-सुथरा रखने में सहायता करता है तथा नेहा अपनी माता का रसोई के कायों में हाथ बँटाती है। सबका दैनिक कार्यक्रम एक निश्चित समय-सारिणी के अनुसार होता है। केवल इतनी ही नहीं किसी अतिथि के आने पर यह सभी समुचित आदर-सत्कार करते हैं यह परिवार भी जब कभी किसी दूसरे के घर जाता है तो वहाँ उस परिवार के साथ ही पूरी तरह से घुल-मिल जाते हैं तथा उनके साथ पूरा सहयोग करते हैं जिससे उन्हें यह अनुभव न हो कि वे उनपर बोझ हैं।

जब कभी इनके नाना-नानी अथवा दादा-दादी इनसे मिलने आते हैं तो वे उनके छोटे-मोटे काम करने में आनंद का अनुभव करते हैं तथा उनकी समस्त सुख-सुविधाओं का स्वयं ध्यान रखते हैं। जब कभी कहीं किसी को विपत्ति में देखते हैं तो अपने सब काम छोड़ कर उनकी सहायता करना इस परिवार का विशेष गुण है। सुहास और नेहा भी अपनी जेब-खर्चीं से किसी भी ज़रूरतमंद की सहायता करने के लिए सदा तैयार रहते हैं। इस प्रकार मैं कह सकता हूँ कि यह एक ऐसा आदर्श परिवार है, जिसका अनुसरण करने से हम एक आदर्श समाज की स्थापना करके अपने देश को भी महान बना सकते हैं।

प्रश्न 3.
‘यह मेरा घर है’ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि आपका अपना घर है।
उत्तर :
मेरा घर, मेरा घर है। यह केवल मेरा ही नहीं, हमारा प्यारा घर है। इस घर में मैं, मेरा छोटा भाई सोमेश, मेरी मम्मी और मेंरे पापा रहते हैं। मेरे पापा बैंक में मैनेजर हैं तथा मम्मी कॉलेज में पढ़ाती हैं। मैं ग्यारहवीं कक्षा में और मेरा भाई सातवीं कक्षा में पढ़ता है। सबको अपने-अपने काम पर जाना होता है, इसलिए हम सब मिल-जुलकर काम करते हैं। अपनी समस्याओं का समाधान एक स्थान पर बैठकर करते हैं। अपने मन की बात एक-दूसरे से खुलकर करते हैं। हैसी-खुपी में हमारा दिन बीत जाता है। हमारा घर बहुत प्यारा है।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 19 घर में वापसी

कथ्य पर आधारित प्रश्न –

प्रश्न 1.
कवि किस प्रकार के घर में वापसी की आकाँक्षा करता है ?
उत्तर :
कवि अपने घर में वापस आने की आकाँक्षा करता है जिसमें गरीबी और अभाव के कारण बिखराव न हो। पारिवारिक संबंधों में टूटन न हो और न ही उसमें दिखावट हो। घर के सभी सदस्य प्रेम-भावना से परस्पर बँधे हुए हों। सभी एक-दूसरे से सहजतापूर्वक बोल सकें, अपने दुख-दर्द को एक-दूसरे के सामने वाणी दे सकें।

प्रश्न 2.
इस वापसी में उसके मार्ग में क्या व्यवधान है ?
उत्तर :
‘घर में वापसी’ नामक कविता में कवि के मार्ग में एक ही बड़ा व्यवधान है और वह है-गरीबी। गरीबी के बंधनों ने परिवार के सभी सदस्यों की भावनाओं और विचारों को अपने बंधन में बँधा हुआ है, जिस कारण उनके मन नहीं खुल पाते।

प्रश्न 3.
“हम अपने खून में इतना भी लोहा
नहीं पाते
कि हम उससे एक ताली बनवाते
और भाषा के भुन्नासी ताले को खोलते ” का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि कहता है कि गरीबी ने उन्हें विवश कर दिया है। उनके रक्त में इतनी शक्ति शेष नहीं बची कि उससे चाबी बनवाकर मौन हो गए भाषा रूपी ताले को खोल पाते। वे एक-दूसरे के सुख-दुख को बाँटकर पारस्परिक संबंधों का अहसास कर पाते। वे हदययों में खिंची दीवारों को गिराकर एक-दूसरे के समक्ष अपने सुख-दुख के भावों को व्यक्त कर पाते। वे एक-दूसरे के साथ प्रेमपूर्वक बोल पाते। अपनत्व के भावों में एक-दूसरे के साथ बोलते।

प्रश्न 4.
कवि ने इस कविता में पाँच जोड़ी आँखों की चर्चा की है जबकि उसने चार जोड़ी आँखों का ही विवरण दिया है। पाँचर्वीं जोड़ी आँखें किसकी हैं ? वे आँखें कैसे होंगी, इसकी कल्पना कीजिए। उनके लिए भी उपयुक्त प्रतीक प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
कविता में वर्णित पाँच जोड़ी आँखों में से पाँचवीं जोड़ी आँखें स्वयं कवि की अपनी हैं। वे आँखें दुख-पीड़ा विवशता से भरी होंगी। वे चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते, अतः उनमें पीड़ा का भरा होना सहज स्वाभाविक ही है। कवि ने माँ की आँखों को तीर्थ-यात्रा पर जाने वाली बस के पंचर पहिए कहा है तो पिता की आँखों को लोहसाँय की ठंडी सलाखें। बेटी की आँखें मंदिर की दीवट पर जलते दीये की पवित्र लौ है तो पल्ली की आँखें-आँखें नहीं बल्कि हाथ प्रतीत होते हैं। कवि की अपनी आँखें तेज हवा में टिमटिमाते दीप-सी हैं जिसकी लौ गरीबी के प्रचंड वेग में बुझना चाहती है, पर मन की आशा के कारण फिर से जगमगाती हैं। सारे परिवार के लिए दुख और पीड़ा में डूबा वह टिमटिमाता दीया ही तो उनके जीवन का एकमात्र आधार है।

प्रश्न 5.
‘घर में वापसी’ कविता का मूल भाव क्या है ?
उत्तर :
‘घर में वापसी’ कविता में कवि यह कहना चाहता है कि आम आदमी गरीबी के कारण अपने पारस्परिक प्रेम-संबंधों को भुला बैठा है, उनमें बिखराव आ गया है। गरीबी की मार ने उनकी संवेदनाओं को दबा दिया है, उनकी सुख-दुख की अभिव्यक्ति पर अंकुश लगा दिया है। वे एक-दूसरे से अपने हदय के भाव भी व्यक्त नहीं कर पाते। वे सब समय से पहले ही बूढ़े होते जा रहे हैं। समय और गरीबी की मार उनके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रही है। आवश्यक्ता इस बात की है कि प्रयास करके संबंधों के जंग लगे तालों को खोला जाए। गरीबी न मिटने पर भी स्नेह-संबंध बढ़ाए जाएँ।

प्रश्न 6.
कवि ने भुन्ना-सी ताला किसे कहा है ? उसे तोड़ने का क्या उपाय बताया है ?
उत्तर :
कवि ने पारिवारिक संबंधों की जड़ता को भुना-सी ताला कहा है। यही परिवार के सदस्यों के मन में बिखराव और टूटन का कारण बनता है। इसका कारण गरीबी है। इस भुना-सी ताले को हिम्मत और ऊर्जा की चाबी से खोला जा सकता है।

प्रश्न 7.
पारिवारिक रिश्तों के न खुलने का क्या कारण है ?
उत्तर :
कवि ने निम्न मध्यवर्गीय परिवार में धन के अभाव को पारिवारिक रिश्तों के न खुलसे का कारण बताया है। कवि को अनुसार इसी कारण वे परस्पर बातचीत के द्वारा एक-दूसरे के दुख-दर्द को बांट नहीं पाते। उनका आपसी प्रेम मर चुका है। उसमें इतनी गमीं नहीं रही है कि वे एक-दूसरे के प्रति अपने हदयय के प्रेम को प्रकट कर पाते। उन सभी के मुँह पर मानो चुपी के ताले लगे हुए हैं। केवल गरीबी ही एकमात्र कारण है जो पारिवारिक रिश्तों को खुलने नहीं देती।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों में आँखों के लिए प्रयुक्त प्रतीक स्पष्ट कीजिए :
(क) मंदिर में दीवट पर जलते घी के दो दीये
(ख) आँखें आँखें नहीं हाथ हैं।
उत्तर :
(क) मंदिर के दीवट पर चलने वाले पवित्र दीये जैसी उसकी बेटी की आँखें हैं। इस प्रतीक द्वारा कवि ने अपनी बेटी की आँखों की पवित्रता और सेह का प्रतिपादन किया है कि उनमें निष्कपटता और भोलापन है।
(ख) कवि ने आँखें नहीं बल्कि उन्हें हाथ का माना है और इस प्रतीक अपनी पली के लिए प्रयुक्त किया है। वे उसे सब प्रकार से हौसला देती रहती हैं, इसलिए वे उसे सहारा और सहयोग देने वाले हाथों के समान प्रतीत होती हैं।

प्रश्न 9.
‘घर में वापसी’ कविता द्वारा कवि ने क्या दर्शाना चाहा है ?
उत्तर :
‘घर में वापसी’ कविता सुदामा पांडेय धूमिल द्वारा रचित है। इसमें कवि ने अभाव-ग्रस्त पारिवारिक संबंधों में आए बिखराव का अंकन किया है। उनके अनुसार आधुनिक-भौतिकवादी युग में धन के अभाव ने उनके आपसी रिस्तों को तोड़ दिया है, जिसके परिणामस्वरूप एक ही छत के नीचे रहते हुए भी परिवार के सदस्य एक-दूसरे से अनजान बने रहते हैं।

काव्य-सौंदर्य पर आधारित प्रश्न – 

प्रश्न 1.
हिंदी साहित्य के कवियों में धूमिल का स्थान निर्धारित कीजिए।
उत्तर :
हिंदी साहित्य जगत में सुदामा पांडेय ‘ धूमिल’ साठोत्तरी कविता के मुख्य कवियों में आते हैं। साठोत्तरी कविता के कवियों में धूमिल जी का स्थान सबसे आगे है। इस काल के कवियों ने कविता के साथ-साथ काव्य की आलोचना के मानदंडों पर विचार किया है। कविता पर विस्तारपूर्वक विचार करने वाले कवि धूमिल काव्य के उत्स, प्रभाव, उद्देश्य पर ही विचार नहीं करते बल्कि उसकी शाब्दिक संरचना को भी विश्लेषित करते हैं। धूमिल की सपाट बयान-बाजी उन्हें दूसरे कवियों से अलग करती है।

प्रश्न 2.
धूमिल के काव्य का शिल्प-साँदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
धूमिल ने अपनी काव्य-रचना ‘घर में वापसी’ का काव्य निरूपण अत्यंत मनोरम ढंग से किया है। उनकी शिल्पगत विशेषताएँ निम्न निम्नलिखित हैं-

  1. कवि ने गरीबी के कारण पारिवारिक विखराव और विघटन का सजीव अंकन किया है।
  2. कवि की प्रतीक-योजना सार्थक और समर्थ है।
  3. लाक्षणिकता और मार्मिकता का प्रयोग हुआ है।
  4. मुक्तक छंद है।
  5. कवि ने प्रयोगवादी शैली का अनुकरण करते हुए प्रतीक चिह्नों का प्रयोग किया है।
  6. तत्सम और तद्भव शब्दों का मिला-जुला प्रयोग हुआ है।
  7. भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

प्रश्न 3.
‘हम पाँच अभावग्रस्त कभी खुल नहीं पाए’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि धूमिल का कहना है कि एक ही छा के नीचे रहनेवाले हम पाँच अभावग्रस्त कभी एक-दूसरे से खुल नहीं पाए। हम लोगों के संबंध वैसे नहीं हैं जैसे होने चाहिए। निर्धनता, अभाव और विवशता ने हमारे रक्त को शक्ति-विहीन कर दिया है। हमारे रक्त में अब इतनी भी लोहे रूपी शक्ति नहीं है कि हम उससे चाबी बनाकर भाषा रूपी ताले को खोल पाएँ।

प्रश्न 4.
धूमिल की काव्य-भाषा पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर :
धूमिल साठोत्तरी कविता के कवियों में से एक हैं। इनकी कविता में शोषित वर्ग के लिए करणण और शोषक वर्ग के लिए आक्रोश भरा हुआ है। इनकी भाषा में चिकोटी काटने का भाव है। इन्होने मुहावरे, लोकोक्तियों और सूक्तियों का सुंदर प्रयोग किया है। कविता में संवादात्मक शैली का प्रयोग करके भाषा में जान पूँक दी है। इनकी प्रतीकात्मकता में अर्थात सँददर्य हिपा हुआ है।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antral Chapter 1 Question Answer अंडे के छिलके

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 1 अंडे के छिलके

Class 11 Hindi Chapter 1 Question Answer Antral अंडे के छिलके

प्रश्न 1.
“पराया घर तो लगता ही है, भाभी” अपनी भाभी-भाई के कमरे में श्याम को पराएपन का अहसास क्यों होता है ?
उत्तर :
श्याम गोपाल के कमरे के बाहर से वीना भाभी को आवाज लगाता है। वीना उसे कहती है कि वह पराए की तरह क्यों आवाज लगा रहा है। उस समय श्याम कहता है कि उसे उनका कमरा पराया लगता है क्योंकि वीना ने आते ही कमरे का नक्शा बदल दिया है जिससे उसकी कमरे में पैर रखने की हिम्मत नहीं होती। पहले इस कमरे की स्थिति ऐसी थी जैसे आजकल उसके कमरे की है। सब चीज़ बिखरी रहती है। अब इस कमरे में केवल एक वह कोना गोपाल भैया का नजजर आता है जहाँ पतलूनें और कोट एक-दूसरे के ऊपर टेंग है। अब इस कमरे की सरकार बदल चुकी है। सभी चीज़ें ऐसे चमक रही हैं जैसे नई-नई पालिश होकर आई हों। बह सब देखकर उसे अपने भाभी-भाई के कमरे में पराएपन का अहसास होता है।

प्रश्न 2.
एकांकी में अम्माँ की जो तस्वीर उभरती है, अंत में वह बिलकुल बदल जाती है-टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
एकांकी में अम्माँ जी की तसवीर परंपरावादी विचारोंवाली महिला के रूप में उभरती है। घर में परिवार के सभी सदस्यों में कुछ ऐसी आदतें हैं जो उनके अनुसार अम्माँ जी को बुरी लगती हैं, जैसे-वीना, गोपाल, श्याम का अंडे खाना और राधा भाभी का रामायण-महाभारत की बजाय ‘चंद्रकांता संतति’ पढ़ना। एकांकी में एक स्थान पर वीना अपने कमरे में गोपाल और श्याम के लिए अंडों का हलुआ बना रही है, तभी कमरे में अम्माँ जी आ जाती हैं और सभी लोग गुमसुम हो जाते हैं। गोपाल अंडों के छिलकों पर वीना का कुरता डाल देता है।

हलुआ ढककर रख देते हैं। सभी घबराए हुए हैं कि अम्माँ को पता चला गया तो अंत में अम्माँ की तसवीर बिल्कुल बदल जाती है। वे परिवार के सदस्यों द्वारा अंडे रगने और चंद्रकांता स्मृति पढ़े जाने की बात को जानते हुए भी नज़रअंदाज करती हैं। और सबको छाँट पड़ सकती हैं। इसलिए सभी सदस्य एक-दूसरे की गलती छुपाते हुए अम्पाँ की बातों को सफ़ाई से टाल देते हैं, इससे पता चलता है कि अम्माँ एक परंपरावादी विचारों की महिला है।

वह सब जानते हुए भी चुप है। इससे पता चलता है कि घर के बुजुर्ग घर में शांति और प्यार बनाए रखने के लिए समय के अनुसार अपने विचार बदल लेते हैं और बच्चों की छोटी-छोटी गलतियों को देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। इससे पता चलता है कि पुराने विचारों की अम्माँ ने भी नए समय के अनुसार चलना सीख लिया है।

प्रश्न 3.
अंडे खाना, ‘चंद्रकांता संतति’ पढ़ना आदि किन्हीं संद्रीं में गलत नहीं हैं, फिर भी नाटक के पात्र इन्हें छिपकर करते हैं। क्यों ? आप उनकी जगह होते तो क्या करते ?
उत्तर :
अंडे खाना, ‘चंद्रकांता संतति’ पढ़ना गलत नहीं है, फिर भी लेखक ने एकांकी में पात्रों के द्वारा यह कार्य छिपकर करते हुए दिखाया है। इसका कारण यह है कि घर के सभी सदस्य अम्माँ से डरते हैं। अम्माँ पुराने विचारों की धार्मिक प्रवृत्ति की महिला हैं। वे अंडे को जीव का रूप मानती है और’ं चंधकांता संतति’ को बेकार के किस्से कहानियाँ मानती हैं जिससे मनुष्य बिगड़ जाता है। अम्माँ की भावना को वेस न लगे, इसलिए सभी लोग अंडे खाना और ‘चंद्रकांता संतति’ पढ़ना अम्माँ से छिपाते हैं।

यदि हम उन पात्रों के स्थान पर होते तो यह कार्य छिपकर नहीं करते, क्योंकि घर के बुजुगों को किसी और से पता चलने पर या फिर चोरी पकड़े जाने पर मन में अपराध-बोध की भावना पैदा हो जाती है। ऐसी बातों से हम अपने बड़ों का विश्वास भी खो बैठते हैं। हम घर के बुजुर्गों को अंडे की उपयोगिता के विषय में बताते कि इसमें प्रोटीन होते हैं। यह बच्चों और बड़ों की सेहत के लिए लाभकारी है। चंद्रकांता संतति जैसा साहित्य पढ़ने से बच्चे खराब नहीं होते बल्कि उनका ज्ञान बढ़ता है। घर के बड़ों का विश्वास जीत कर सभी कार्य उनके सामने करते।

प्रश्न 4.
राधा के चरित्र की ऐसी कौन-सी विशेषताएँ हैं जिन्हें आप अपनाना चाहेंगे ?
उत्तर :
एकांकी ‘अंडे के छिलके’ में राधा का विशेष स्थान है। राधा माधव की पत्नी है। वह घर की बड़ी बहू है। वह घर में एकता और प्यार को बनाए रखने के लिए ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती, जिससे किसी को ठेस लगे। राधा भाभी अवसर पड़ने पर छोटों की गलतियों को अपनी बुद्धिमत्ता से छिपा जाती हैं। राधा के चरित्र में ऐसी कई विशेषताएँ हैं, जिन्हें हम अपनाना चाहते हैं-
(i) कुशल गृहिणी – राधा एक कुशल गृहिणी है। वह खाने की हर चीज को सूँघकर पहचान लेती है। राधा वीना से कहती है कि उसे पता है कि उनके कमरे में हर-रोज अंडे से कुछ न कुछ बनाया जाता है। उसने अंडा कभी खाया नहीं हैं, परंतु वह उसकी खुशबू से पहचान लेती है कि क्या बन रहा है।

(ii) व्यवहार कुशल – राधा में व्यवहार कुशलता का गुण है। वह अपने व्यवहार के कारण सबमें प्रिय है। वह ऐसा कोई व्यवाहर नहीं करती जिससे किसी को ठेस लगे। वह सभी की भावनाओं का ध्यान रखती है।

(iii) संस्कारशील – राधा संस्कारशील स्त्री है। वह अम्माँ के विचारों का ध्यान रखते हुए घर में रामायण, महाभारत पढ़ती है। वह घर की एकता को बनाए रखने के लिए गोपाल और श्याम की गलतियों को अनदेखा कर देती है। यह सब वह अपने संस्कारों के कारण करती है।

(iv) जिज्ञासु – राधा में स्त्री-सुलभ जिज्ञासा की भावना है। वह ‘चंद्रकांता संतति’ पढ़ती है। जब उसे बता चलता है कि वीना ने चंद्रकांता संतति पहले से ही पढ़ रखी है तो राधा वीना से आगे की कहानी जानने के लिए तरह-तरह के प्रश्न पूछती है जिससे पता चलता है कि वह जिज्ञासु प्रवृत्ति की महिला है।

(v) बुद्धिमान – राधा व्यवहार कुशल के साथ-साथ बुद्धिमान है। वीना अपने कमरे में श्याम के लिए अंडे का हलुआ बना रही थी कि अचानक अम्माँ आ जाती हैं। अम्माँ के बह पूछने पर कि इस समय कमरे में क्या बनाया जा रहा है, उस समय राधा अपनी युद्धिमत्ता से काम लेती हुई कहती है कि श्याम के टखने में चोट लगी है, इसलिए वीना से कहकर पुलटिस बनवाई है। राधा की बुद्धिमत्ता से ही अम्माँ के सामने सबकी पोल खुलने से बच जाती है।

(vi) ममतामयी-राधा का चरित्र एकांकी में ममतामयी स्त्री के रूप में उभरकर आता है। वह गोपाल, श्याम और वीना से स्नेह की भावना रखती है। राधा अम्माँ के सामने सबकी गलतियों को छिपा लेती है। वह किसी को भी दुखी नहीं देखना चाहती, इसलिए अम्माँ के सामने झुठ का सहारा लेती है जिससे उसके ममतामयी होने का पता चलता है।

(vii) सहयोग की भावना – घर को बनाए रखने के लिए सहयोग की भावना का होना आवश्यक है। राधा में सहयोग की भावना है। राधा जानती है कि गोपाल सिगरेट पीता है, तथा और वीना, श्याम और गोपाल अंडे खाते हैं। वह यह बात किसी से नहीं बताती। यहाँ तक कि अपने पति से भी सब कुछ छिपाकर रखती है। वह गोपाल, वीना और श्याम को उनकी कमियाँ छिपाने में सहयोग देती है।

(viii) धार्मिक – विचार-राधा धार्मिक-विचारों वाली स्त्री है। वह घर के काम से बचे समय में रामायण-महाभारत पढ़ती है। उसने अपने धार्मिक विचारों के कारण कभी अंडे नहीं खाए हैं। चंद्रकाता संतति भी वह कौशल्या भाभी की जिद्द के पढ़ती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि एकांकी में राधा के चरित्र में एक ऐसी स्त्री की छवि उभरकर सामने आती है, जो घर में एकता और प्यार बनाए रखने के लिए सभी से सहयोग करती है।

प्रश्न 5.
(क) सरकार की धूम्रपान न करने की वैधानिक चेतावनी और बड़े-बुजुर्गों की धूम्रपान की मनाही के पीछे कौन-से कारण हैं?
(ख) यदि आप अपने घनिष्ठ मित्र को चोरी-छिपे सिगरेट पीते देखें, तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी ?
उत्तर :
(क) सरकार की धूमपान न करने की वैधानिक चेतावनी और बड़े-बुजुगों की धूम्रपान की मनाही के पीछे निम्न कारण हैं-
(i) धुग्रपान मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
(ii) धुम्रपान करने से फेफड़े खराब हो जाते हैं। सिगरेट का विषैला धुआँ साँस के साथ अंदर जाता है जिससे फेफड़े में खराबी और साँस संबंधी बीमारी होने का डर रहता है। यह फेफड़ों के केंसर का बड़ा कारण है।
(iii) धूम्रपान के धुएँ से पीने वाले के साथ-साथ रहने वालों के स्वास्थ्य को भी हानि पहुँचती है।
(iv) धुम्रपान वायु प्रदूषण का भी एक बड़ा कारण है।

(ख) मैंने एक दिन अपने घनिष्ठ मित्र को चोरी-छिपे सिगरेट पीते देखा, तो मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। आज के युग में युवा पीढ़ी का सिगरेट पीना आश्चर्य नहीं है परंतु उसे सिगरेट पीते देखकर आश्चर्य इसलिए हुआ, क्योंकि वह नशे संबंधी जन चेतना अभियान में बढ़-चढ़कर भाग लेता है। लोगों को सिगरेट के धुएँ से उत्पन्न होने वाली व्यक्तिगत और सामाजिक हानियों से अवगत कराता है। सभी लोग उसे देश का जागरूक नागरिक समझते हैं। उसे मुझे देखकर शर्मिदगी अनुभव हुई। मैने उसे समझाया तो उसने आगे कभी भी सिगरेट न पीने का प्रण लिया।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antral Chapter 1 अंडे के छिलके

प्रश्न 1.
वीना का अंडे का नाम लिए जाने पर श्याम की क्या प्रतिक्रिया होती है ?
उत्तर :
वीना श्याम को समोसे और कचौरी लाने को मना करती है। वह उसे चार-छह अंडे लाने को कहती है जिनसे वह श्याम के लिए अंडे का हलुआ बना सके। वीना के मुँह से अंडों का नाम सुनकर श्याम कहता है कि इस घर में अंडों का नाम लेने से मुँह भ्रष्ट हो गया है, इसलिए पहले कुल्ला करके आओ। वह वीना से संयम से काम लेने के लिए कहता है क्योंकि यदि अम्माँ को पता चल गया तो इस बरसात में सारे घर का गंगा-स्नान करवाना पड़ेगा।

प्रश्न 2.
वीना श्याम को बिजली का स्टोव लाने के पीछे क्या कारण बताती है ?
उत्तर :
श्याम की बात सुनकर वीना उसे बताती है कि वह और गोपाल हर रोज़ सुबह अंडों का नाश्ता करते हैं, इसलिए उसने गोपाल से कहकर अपने कमरे में बिजली का स्टोव मँगवा लिया है। वीना ने अम्माँ से स्टेव मँगाने के पीछे यह कारण बताया कि सुबह बेड-टी लेनी होती है। रसोई घर से बेड-टी बनाकर लाने में ठंडी हो जाती है। अम्माँ जी ने उसकी बात मान ली। अब वह अपने कमरे में हर रोज्ज अंडे बनाकर खाती है।

प्रश्न 3.
वीना और श्याम में किस बात को लेकर समझौता होता है ?
उत्तर :
श्याम वीना को बताता है कि वह भी सुबह दूध के साथ कच्चा अंडा अपने कमरे में खाता है। वीना कहती है कि इस प्रकार तो वह रसोई के बरतन हर रोज़ भ्रष्ट करता है। वह अम्माँ जी से कहकर उसका गिलास अलग रखवा देगी। श्याम वीना से कहता है कि वह भी अम्मां को बता देगा कि वह अपने कमरे में अंडे खाती है। दोनों एक-दूसरे का भेद न खोलने पर समझौता कर लेते हैं। समझौता करने की खुशी में श्याम अंडे के पैसे भी अपने पास से देता है।

प्रश्न 4.
राधा ‘चंद्रकांता संतति’ क्यों नहीं पढ़ना चाहती ?
उत्तर :
राधा चंदकांता संतति अम्माँ के डर से नहीं पढ़ना चाहती क्योंकि यदि अम्माँ ने देख लिया तो यह सोचेंगी कि रामायण-महाभारत छोड़कर दिनभर किस्से-कहानियाँ पढ़ती है। यह किताब उसे कौशल्या भाभी ने जबरदस्ती पकड़ा दी थी इसलिए वह पढ़ने बैठ गई थी, नहीं तो वह समय मिलने पर अपनी ‘गुटका रामायण’ पढ़ती है।

प्रश्न 5.
राधा और वीना ‘चंद्रकांता संतति’ की कहानी की तुलना किस कहानी से करती है ?
उत्तर :
राधा वीना से कहती है कि ‘चंद्रकांता संतति’ में शूरवीरता की ही कहानी है जिस तरह भगवान राम सीता के लिए वन-वन में घूमते-फिरते थे उसी तरह कुँअर वीरेंद्र सिंह चंद्रकांता के लिए तिलिस्म के अंदर घूमता-फिरता है। वीना कहती है कि जिस प्रकार भगवान राम समुद्र लांघकर सीता का उद्धार करते हैं, उसी तरह कुँअर वींंद्र सिंह तिलिस्म तोड़कर चंदकांता का उद्धार करता है।

प्रश्न 6.
गोपाल किस प्रकार राधा को आदर देता है ?
उत्तर :
गोपाल वीना से कहता है कि राधा भाभी एक देवी हैं। वह वीना की तरह ‘संज एडं लवर्ज’ नहीं पढ़ती। उनके पास गुटका रामायण है। इससे उनके मन में कम-से-कम रामायण पढ़ने की भावना बनी रहती है। वीना को भी राधा से अच्छी बातें सीखनी चाहिए। उसे राधा से ऐसी विद्या मिल सक्ती है जो स्कूल-कॉलेजों में नहीं सिखाई जाती। राधा उसकी बात सुनकर कहती है कि वह वीना को क्या सिखा सकती है। वह स्वयं तो वीना से सीखने आई है। गोपाल कहता है कि भाभी उलटी रीत नहीं चलानी चाहिए। बड़ा बड़े की जगह होता है और छोटा छोटे की जगह होता है। इससे पता चलता है कि गोपाल के मन में अपनी भाभी के प्रति बहुत आदर है।

प्रश्न 7.
राधा को कैसे पता है कि गोपाल के कमरे में हर रोज्ञ सुबह अंडे बनते हैं?
उत्तर :
गोपाल राधा के सामने अंडे खाने और बनाने की बात स्वीकार करने से हिचकिचाता हैं। राधा उसे कहती है कि उसे पता है कि उसके कमरे में प्रतिदिन सुबह अंडे बनते हैं। अंडे बनाने की गंध उनके कमरे तक जाती है तो वह पहचान जाती है कि उनके कमरे में क्या बन रहा है। आज सुबह वीना ने आमलेट बनाया था। यदि उसने कभी अंडे खाए नहीं, फिर भी वह सूँषकर चीज़ की खुशबू पहचान लेती है। इस कारण उसे प्ता है कि गोपाल और वीना हर रोज़ अंडे खाते हैं।

प्रश्न 8.
परिवार के सदस्य अम्माँ से अंडे खाने की बात क्यों छिपाते हैं ?
उत्तर :
परिवार के सभी सदस्यों में एक-दूसरे के प्रति प्यार और आदर की भावना है। सभी लोग अम्माँ से बहुत प्यार करते है। अम्माँ पुरानी मान्याताओं को माननेवाली स्ती हैं। यदि उन्हें पता चल गया कि घर में अंडे बनते हैं तो उन्हें दुख होगा। अम्माँ के अनुसार धर्म भी भ्रष्ट हो जाएगा। इसी कारण परिवार के सदस्य अपने-अपने ढंग से अम्माँ से अंडे खाने की बात छिपाते है।

प्रश्न 9.
अंडे के छिलके एकांकी से क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर :
‘अंडे के छिलके’ एकांकी में परिवार के सदस्य एक-दूसरे की भावनाओं की परवाह करते हुए अपने शौक सबसे छ्छिपकर पूरा करते हैं। इस एकांकी में यह दिखाया है कि बच्चे घर के बड़ों का ध्यान रखते हैं। उनके सामने ऐसा कोई काम नहीं करते जिससे उनकी भावनाओं को ठोस लगे। घर के बुजुर्ग भी अपने बच्चों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए उनके शौक को जानते हुए भी अनदेखा कर देते हैं। इससे घर में आत्मीयता का वातावरण बना रहता है तथा घर की एकता और शाति भंग नहीं होती।

प्रश्न 10.
पराया घर तो लगता ही है, भाभी। तुमने आते ही वह नक्शा बवला है इस कमरे का, कि मेरा अंदर पैर रखने का हौसला ही नहीं पड़ता।
(क) कमरे की पहले और अब की दशा में क्या अंतर है?
(ख) हमें अपना कमरा कैसा और क्यों रखना चाहिए?
उत्तर :
(क) पहले कमरा अत्यंत अस्त-व्यस्त रहता था। कहीं जूते तो कहीं वस्व, पुस्तरें आदि बिखरी रहती थीं। पलंग और मेज़ व्यर्थ की चीजों से भरे रहते थे। अब कमरा व्यवस्थित है। प्रत्येक वस्तु अपने सही स्थान पर है। मेज़, पलंग आदि सभी साफ़-सुथरे हैं। जूते अपने स्थान पर तथा पुस्तर्के रैक में हैं।
(ख) हमें अपना कमरा साफ़-सुथरा तथा व्यवस्थित रखना चाहिए। वस्त्र, पुस्तकें, जूते आदि अपने सही स्थान पर रखने चाहिए। पलंग साफ़ चादर से सुसज्जित होना चाहिए। पढ़ने की मेज़ पर ढंग से पुस्तके सजी होनी चाहिए। वस्त्र खँंटी अथवा अलमारी में होने चाहिए। इससे हमारी हर वस्तु हमें सही स्थान पर मिल जाती है।

प्रश्न 11.
अम्माँ के कान में भनक पड़ गई़ तो सारे घर का गंगा इश्नान हो जाएगा।
(क) ‘गंगा इश्नान’ क्यों होगा?
(ख) क्या घर के बुत्तुर्गों से कुछ छिपा रहता है? वे उनका विरोध क्यों नहीं करते?
उत्तर :
(क) अम्माँ यदि घर के बच्चों के अंडे खाने की बात जान लेगी तो सब को शुद्ध होने के लिए गंगा-स्नान करना पड़ेगा, क्योंकि वे शुद्ध शाकाहारी हैं। उन्हें अंडे आदि का सेवन करना पसंद नहीं है। वे इन्हें अस्पर्शी मानती हैं।
(ख) घर के बड़े-बुजुर्गों से कोई बात छिपी नहीं रहती है। वे अपनी संतान की सभी हरकतों से परिचित होते हैं, परंतु उनकी उन्हें नापसंद आनेवाली हरकतों को भी वे नजरअंदाज़ कर जाते हैं। उन्हें अपने बच्चों की खुशी में ही खुशी मिलती है।

प्रश्न 12.
इज्ञाज़त हो तो..अ…अ..यह जरा…यह सिगरेट सुलगा लूँ।
(क) धूम्रपान की आज्ञा देना कहाँ तक उचित है?
(ख) धूम्रपान से क्या हानियाँ हैं?
उत्तर :
(क) धूम्रपान की आश्चा देना बिलकुल अनुचित है क्योंकि इससे धूम्रपान की आदत बन जाती है। इससे वह इस लत का बुरी तरह से शिकार बन जाता है तथा आजा न मिलने पर छिपकर धूम्रपान करता है।
(ख) धूम्रपान से कैंसर, दमा जैसी बीमारियाँ हो जाती है। इससे धूम्रपान न करने वालों पर भी बुरा असर पड़ता है। पैसों का अपव्यय होता हैं तथा व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति भी क्षीण हो जाती है।

निबंधातमक प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
‘अंडे के छिलके’ एकांकी का उद्रेश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘मोहन राकेश’ द्वारा लिखित एकांकी ‘अंडे के छिलके’ में एक परिवार के सदस्यों की एक-दूसरे के प्रति भावनाओं को व्यक्त किया है। सभी सदस्य एक-दूसरे से छिपाकर अपने वे शौक पूरा करते हैं जिन्हें समाज तथा पुराने विचारों के लोगों में बुरा समझा जाता है, जैसे सिगरेट पीना, अंडे खाना, और ‘चंद्रकांता संतति’ जैसा साहित्य पढ़ना। एकांकी के माध्यम से यह भी दिखाया है कि घर के बुजुर्ग भी बच्चों के लिए अपने पुराने विचारों को छोड़कर नए जमाने की चाल के साथ चलने लगते हैं।

गोपाल, वीना और श्याम घर के अन्य सदस्यों से छिपकर अंडे खाते हैं। राधा ‘चंड्रकांता संतति’ किताब सबके सो जाने पर रात को मोमबत्ती जलाकर पढ़ती है। घर के सभी लोग एक-दूसरे की कमज़ोरी को जानते हैं परंतु किसी को बताते नहीं। इसके पीछे कारण यह है कि घर में सबसे बड़ी अम्माँ पुराने विचारों की हैं। उनको पता चल गया तो उनके मन को डेस लगेगी। एक डिन वीना श्याम के

लिए अंडों का हलुआ बना रही थी। वहाँ पर गोपाल और राधा भी बैंठे थे। अचानक वहाँ अम्माँ आ जाती है। सभी उनसे अंडे का हलुआ बनाने की बात छिपाते हैं। राधा अम्माँ से कहती है कि वीना श्याम के लिए पुलटिस बना रही है, क्योंकि उसके टखने में चोट लगी है। अम्माँ के जाने के बाद वहाँ पर माधव भैया आते हैं, वह सबकी बाते जानते हैं और बताते है कि अम्माँ भी सब कुछ जानती हैं।

वह अपने बच्चों से प्यार करती हैं इसलिए उनकी बार्तों को अनदेखा कर देती हैं। इससे पता चलता है कि घर की एकता और प्यार को बनाए रखने के लिए सभी सदस्य सब कुछ जानते हुए भी चुप रहते हैं। इससे सभी में एक-दूसरे के प्रति घनिष्ठता और आत्मीयता दिखाई देती है। अम्माँ भी अपने प्रति बच्चों की भावनाओं को समझते हुए सब कुछ अनदेखा कर देती है। इन्हीं छोटी-छोटी बातों को अनदेखा करने से घर के सदस्यों में एकता बनी रहती है।

प्रश्न 2.
अम्माँ के बीच के कमरे में आ जाने से सब लोग ‘अंडे के हलुए’ को अम्माँ से क्या कहकर छिपाते हैं?
उत्तर :
वीना के कमरे में अम्माँ से छिपकर अंडे का हलुआ बनाया जा रहा था। अचानक अम्माँ वीना के कमरे में आती हैं। श्याम उन्हें दरवाजे पर रोकता है परंतु श्याम को धकेलकर अम्माँ अंदर आ जाती हैं। गोपाल जल्दी से मेज़ पर पड़े अंडों के छिलकों पर वीना का कुरता डाल देता है और फ्राइंग-पैन पर चीनी की प्लेट रख देता है। अम्माँ को देखकर सब घबराकर अपने-अपने स्थान पर गुम-सुम से खड़े हो जाते हैं। वीना के हाथ में चम्मच देखकर अम्माँ को पूछती है कि इस समय वह क्या बना रही है और गोपाल कोने-में क्यों खड़ा है।

गोपाल बताता है कि श्याम के लिए चाय बनाते समय वीना का हाथ जल गया था। वह उसके लिए मरहम ढूँढ रहा है। अम्माँ स्टोव पर फ्राइंग-पैन रखा हुआ देखती है तो पूछती है कि इसमें वीना क्या बना रही थी। राधा झुठ का सहारा लेती हुई कहती है कि श्याम के टखने पर किक्रेट खेलते समय चोट लगी थी इसलिए वीना ने फ्राइंग-पैन में पुलटिस बनाई है। अम्मौं की सभी बातों का सभी लोग चतुराई से जवाब देते है। श्याम राधा की चंद्रकांता संतति को रमायण का नया एडीशन बताता है। अम्माँ सबकी बातों पर विश्वास करती हुई वापस अपने कमरे में चली जाती है। राधा, वीना और श्याम राहत की साँस लेते हैं।

प्रश्न 3.
एकांकी के आधार पर वीना के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
एकांकी ‘अंडे के छिलके’ में वीना गोपाल की पत्नी है। वह शिक्षित तथा नाए विचारों की युवती है। वीना का चरित्रांकन निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है –
(i) सुशिक्षित – वीना बी० ए० तक पढ़ी है। वह हर कार्य सोच-समझकर करती है। वह ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहती जिसे दूसरों से छिपाना पड़े, इसलिए वह चाहती है कि उसके और गोपाल के अंडे खाने का पता घर के अन्य सदस्यों को भी होना चाहिए।

(ii) सफ़ाई-पसंद – वीना सफाई-पसंद् स्त्री है। शादी से पहले गोपाल का कमरा बिखरा रहता था परंतु शादी के बाद गोपाल का कमरा साफ-सुथरा रहता है। सभी वस्तुएँ ठीक ढंग से कमरे में लगी हुई हैं।

(iii) साहित्य में रुचि-वीना की हर प्रकार के साहित्य में रुचि बचपन से ही है। उसने ‘चंद्रकांता संतति’, ‘भूतनाथ’ जैसी पुस्तकें पढ़ रखी है। वह राधा को भी रामायण, महाभारत के साथ-साथ ‘चंद्रकांता संतति’ पढ़ने के लिए प्रेरित करती है।

(iv) आधुनिक विचार – बीना नए विचारों की युवती है। उसे अंडे खाने और ‘चंद्रकांता संतति’ जैसी किताबें पढ़ने से परहेज़ नहीं है। उसे दूध और अंडों में कोई अंतर नहीं लगता है। उसके अनुसार कोई भी कार्य छिपकर नही करना चाहिए।

(v) संस्कारशील – वीना नए विचारों की पढ़ी-लिखी संस्कारशील युवती है। वह अंडे खाती है। उसकी इस बात से अम्माँ की भावना को ठेस न लगे इसलिए वह अपने कमरे में अलग बर्तन में बनाकर खाती है। वह भी घर के अन्य सदस्यों से प्यार करती है इसलिए घर की एकता और शांति बनाए रखने के लिए अपने पति का सहयोग देती है। वह अम्माँ से ‘चंद्रकांता संतति’ को ‘गुटका रामायण’ बताती है, जिससे अम्माँ से राधा की किस्से कहानी पढ़ने की बात छुपी रहे।

(vi) हास – परिहास में निपुण-वीना हास-परिहास में निपुण है। वह सबकी बातों को हैसी में लेती है। गोपाल के यह कहने पर कि वह आजकल श्याम पर बहुत मेहरबान है तो वह राधा की ओर संकेत करके कहती है, “जीजी बैठी हैं, ये तो मुझसे ज्यादा जानती होंगी।” गोपाल वीना को राधा से रामायण पढ़ना सीखने की बात कहता है तो वह कहती है कि बह आज राधा की गुटका रामायण (चंद्रकांता संतति) अपने कमरे में ले आई है।

प्रश्न 4.
आपको एकांकी का अंत कैसा लगा? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
मोहन राकेश लिखित एकांकी “अंडे के छिलके एक ऐसे परिवार की कहानी है, जिसके सदस्य एक-दूसरे की भावनाओं का ध्यान रखते हुए अपने-अपने शौक सबसे छिपकर पूरा करते है। इस एकांकी का अंत हमारे लिए ही नहीं अपितु एकांकी के पात्रों के लिए आश्चर्यजनक और सुखद अनुभव होता है। वीना, गोपाल, राधा और क्याम अम्माँ से छिपाकर जिस प्रकार अंडे खाते है और चंद्रकाता संतति पढ़ते है, उससे पता चलता है कि वे अम्माँ की पुरानी और धार्मिक मान्यताओं को ठेस नहीं पहुँचाना चाहते क्योंकि वे लोग अम्माँ से बहुत प्यार करते हैं। परंतु वे लोग यह नहीं जानते अम्माँ भी उनकी सभी बातों की जानकारी रखती है।

इस बात से पर्दा राधा का पति माधव उठाता है कि अम्माँ को सब पता है कि गोपाल और वीना ने अपने कमरे में बिजली का स्टोव क्यों रखा हुआ है। उसके कमरे में हर-रोज सुबह क्या बनता है, श्याम अपने कमरे में ही सुबह का दूध क्यों लेता है, और उसकी बीवी रात को सबके सो जाने पर मोमबत्ती जलाकर क्या पढ़ती है, इसलिए गोपाल को अब अंडे के छिलके कोट की जेब में छिपाकर रखने की आवश्यकता नहीं है। अम्माँ सब कुछ जानते हुए भी कुछ नहीं देखती है। अब आगे से किसी को छिपाकर कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है।

एकांकी के इस प्रकार के अंत से ऐसा लगता है कि अम्माँ ने अपने परिवार को बनाए रखने के समय के अनुसार स्वयं को बदल लिया है। जिस प्रकार बच्चे उनकी भावनाओं का ध्यान रखते हैं, उसी प्रकार अम्माँ उनकी कमियों को अनदेखा करके घर में आत्मीयता का वातावरण बनाए रखती है।

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Class 11 Hindi Antral Chapter 2 Question Answer हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 2 हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी

Class 11 Hindi Chapter 2 Question Answer Antral हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी

प्रश्न 1.
लेखक ने अपने पाँच मित्रों के जो शब्द-चित्र प्रस्तुत किए हैं, उनसे उनके अलग-अलग व्यक्तित्व की झलक मिलती है। फिर भी वे घनिष्ठ मित्र हैं, कैसे?
उत्तर :
लेखक की बड़ैदा के बोडिंग स्कूल में पाँच लड़कों से मित्रता होती है। दो साल में वे लोग इतने नजदीक आ गए थे कि आज भी वे एक-दूसरे से दूर होते हुए दिल से दूर नहीं हैं। उन लोगों का व्यक्तित्व और कार्य-क्षेत्र अलग-अलग थे, फिर भी एक सूत्र ऐसा था जो उन सबको मित्रता के रिश्ते में बॉँधे हुए था। वह सूत्र था-उन सभी के अंदर एक कलाकार का छिपा हुआ होना। एक कलाकार दूसरे कलाकार का मन अच्छी तरह पढ़ लेता है। मोहम्मद इब्राहीम के व्यापारी थे, उन्हें खुशबुओं की अच्छी पहचान थी। एक दोस्त सियाजी रेडियो की आवाज़ थी। एक कराँची का नागरिक बन गया था। हामिद कंवर हुसैन को कुश्ती और दंड-बैठक लगाने का शौक था। वह गयें हाँकने में निपुण था। अब्बासजी अहमद मोतियों की तलाश में कुवैत पहुँच गया था और पाँचवाँ मित्र अब्बास अली फ़िदा अबा-कबा पहन मस्जिद का मेंबर बन गया और मकबूल फ़िदा हुसैन एक प्रसिद्ध पेंटर बन गए। इससे पता चलता है कि सब मित्रों के अंदर के कलाकार ने उन्हें कभी एक-दूसरे अलग नहीं होने दिया।

प्रश्न 2.
आप इस बात को कैसे कह सकते हैं कि लेखक का अपने दादा से विशेष लगाव रहा ?
उत्तर :
लेखक अपने दादा जी के देहांत के पश्चात उनके कमरे में बंद रहता था। उन्हीं की भूरी अचकन ओढ़कर उन्हीं के बिस्तर पर सोया रहता था। वह घर में किसी से बातचीत नहीं करता था और सदा गुमसुम रहता था।

प्रश्न 3.
“‘लेखक जन्मजात कलाकार है”‘-आत्मकथा में सबसे पहले यह कहाँ उद्घटित होता है ?
उत्तर :
“लेखक जन्मजात कलाकार है,” ‘इस बात का पता इस पाठ में उस समय चलता है जब बड़ौदा के बोडिंग स्कूल में ड्राइंग मास्टर मोहम्मद अथर की ब्लैक-बोई पर बनाई चिड़िया को मकबूल ने हूबहू अपनी स्लेट पर उतार दी। उस चिड़िया को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे ब्लैक-बोर्ड से उड़कर चिड़िया मकबूल की स्लेट पर आ बैठी हो। इससे उसके जन्मजात कलाकार होने का पता चलता है।

प्रश्न 4.
दुकान पर बैठे-बैठे भी मकबूल के भीतर का कलाकार उसके किन कार्यकलापों से अभिव्यक्त होता है?
उत्तर :
दुकान पर बैठे-बैठे मकबूल के भीतर का कलाकार मचलता रहता था। जनरल स्टोर के सामने से जो भी गुज़र जाता, मकलूल उसके स्केच तैयार करता रहता था। जैसे दुकान के आगे से अकसर गुज़रनेवाली मेहतरानी (नौकरानी) जो हमेशा घूँषट ताने रहती थी, गेहूँ की बोरी उठाए मज़दूर की पेंचवाली पगड़ी का स्केच, पठान की दाढ़ी और माथे पर सिजदे के निशान, बुरका पहने औरत और बकरी का बच्या। उसने इन सबका बारीकी से निरीक्षण करके स्केच बना रखे थे। दुकान पर मेहतरानी अकसर कपड़े धोने का साबुन लेने आती थी। मकबूल ने उसके कई स्केच बनाए, थे। इससे पता चलता है कि दुकान पर बैठे-बैठे मकबूल के भीतर का कलाकार दुकान के कायों में भी कलाकारी दूँढ़ लेता था।

प्रश्न 5.
प्रचार-प्रसार के पुराने तरीकों और वर्तमान तरीकों में क्या क़रक आया है ? पाठ के आधार पर बताएँ।
उत्तर :
प्रचार-प्रसार के पुराने तरीकों और वर्तमान तरीकों में बहुत अंतर है। पहले समय में फ़िल्मों के प्रचार-प्रसार के लिए पोस्टरों का सहारा लिया जाता था। फिल्म का पोस्टर ताँगे में ब्रास बैंड के साथ शहर की गालियों में गुज्जरता था। फिल्मी पोस्टर रंगीन पतंग के कागज़ पर हीरो-हिरोइन की तस्वीरों के साथ छापे जाते थे। उन पोस्टरों को फ़िल्म के प्रचार के लिए गली-गली बांटा जाता था। बदलते समय के साथ जहाँ फ़िल्मों की तकनीक में बदलाव आया है, वहीं उसके प्रचार-प्रसार के तरीकों में भी अंतर आया है।

आज फिल्मों के पोस्टर तो बनते हैं परंतु उनकी पहले जैसी अहमियत नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक्स युग में प्रचार-प्रसार के साधनों न क्रांति ला दी है। अब किसी भी वस्तु का प्रसार-प्रचार अखबार, मैगजीन, रेडियो, टेलीविजन और फ़ोन के द्वारा चारों ओर एक ही समय में किया जा सकता है। प्रचार-प्रसार के नए और पुराने तरीकों में एक अंतर यह भी आया है कि पहले लोग फ़िल्म की कहानी जानने के लिए उत्पुकता से प्रतीक्षा करते थे, अब लोगों को फ़िल्म के रिलीज होने से पहले ही उसके अच्छे और न अच्छे होने का पता चल जाता है। यह बदलते समय के प्रचार-प्रसार की बदलती तकनीक से ही संभव हुआ है।

प्रश्न 6.
कला के प्रति लोगों का नज्ञरिया पहले कैसा था ? उसमें अब क्या बदलाव आया है ?
उत्तर :
पहले लोग कला को राजे-महाराजे और अमीरों का शौक मानते थे। आर्ट का केंद्र में वे लोग रहते थे जिनके पास खाली समय होता था और जिन्हें रोटी कमाने की चिंता नहीं होती थी। इसीलिए आर्ट की कलाकृतियाँ राजे-महाराजों और अमीरों की दीवारों की शोभा बनकर रह गई थी, इसी कारण आम लोगों में इसे अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता था। अब समय के बदलाव ने लोगों की सोच बदल दी है। आर्ट बड़े लोगों का कैंद्र नहीं रह गया। आम लोगों में भी आर्ट की समझ आने लगी है। आर्ट ने एक व्यवसाय का रूप ले लिया है और इसने आम लोगों में अपना विशेष स्थान बना लिया। अब कलाकृतियाँ बड़े घरों की ही नहीं, आम घरों के दीवारों की शोभा बनने लगी हैं। घरों में पेंटिग करना और लगाना सम्मान की बातें समझी जाने लगी है। अब कलाकारों को समाज में हेय दृष्टि से नहीं, सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

प्रश्न 7.
इस पाठ में मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी बारेते उभरकर सामने आती हैं ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार मकबूल के पिता का व्यक्तित्व उस समय के आम लोगों से भिन्न था। मकबूल के पिता ने अपने भाइयों और बच्चों की उन्नति के लिए हमेशा पुरानी मान्यताओं को तोड़ा था। वे एक तरक्की-पसंद इनसान थे। उन्हें नौकरी करना एक सज़ा लगती थी, इसीलिए उन्होंने अपने भाइयों तथा बच्चों को हमेशा व्यापार करने के लिए प्रेरित किया। मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(i) यथार्थवादी – मकबूल के पिता यथार्थ में जीनेवाले इनसान थे, इसीलिए उन्होंने मकबूल को अपने पिता के मृत्यु के उपरांत बड़ौदा के बोडिंग स्कूल में भेज दिया। मकबूल अपने दादा से बहुत प्यार करता था। उनके मरने के बाद वह उनके कमरे में जाकर चुपचाप बैठा रहता था। मकबूल के पिता ने उसे दादा की यादों से दूर करने के लिए और उसके अच्छे भविष्य के लिए अपने से दूर बड़ौदा पढ़ने के लिए भेज दिया।
(ii) धर्म में विश्वास – मकबूल के पिता का धर्म में विश्वास था। उन्होंने मकबूल को बड़ौदा पढ़ाई के साथ अपने धर्म की शिक्षा, रोजा, नमाज़, अच्छे आचरण के चालीस सबक, पाकीज्ञागी के बारह सबक के लिए भेजा।
(iii) नौकरी एक सज्ञा – मकबूल के पिता सर करौम भाई की मालवा टेक्सटाइल में टाइमकीपर थे। उन्हें नौकरी करना अच्छा नहीं लगता था। नौकरी को वे एक सजा मानते थे। उन्हॉने यह सजा अट्ठाईस साल तक भुगती अर्थात नौकरी की।
(iv) व्यापार में रुचि – मकबूल के पिता तरक्की-पसंद इनसान थे। नौकरी करते हुए भी वे व्यापार में रुचि रखते थे। व्यापार संबंधी कई तरह की किताबें इकट्ठी कर रखी थी। उन्होंने अपने भाई मुरादअली को कई बार काम खुलवाकर दिया। यदि एक काम न चलता तो वे दूसरा काम खुलवा देते थे। अपने भाई के साथ टुकान पर खाली समय या छुट्टी के दिन मकबूल को बैठने के लिए जरूर भेजते थे, जिससे मकबूल बिज्जनेस के गुण सीख सके।
(v) नई सोच के इनसान – मकबूल के पिता काजी और मौलवियों के पड़ोस में रहते थे जहाँ पेंटिंग या पेंटर को अच्छी नज़ों से नहीं देखा जाता था। परंतु अपने बेटे मकबूल की प्रतिभा को नई रोशनी देने के लिए उन्होंने सभी पुरानी मान्यताओं को तोड़ दिया और अपने बेटे को जिंदगी में रंग भरने की इज्ञाज़त दे दी।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि उस समय के वातावरण में मकबूल के पिता की सोच आजाद विचारोंवाली थी। उसकी इस सोच ने आगे चलकर मकबूल की ज़िंदगी बदल दी।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antral Chapter 2 हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी

प्रश्न 1.
मकबूल के अब्बा ने उसे बड़ौदा के बोडिंग स्कूल भेजने का निर्णय क्यों लिया ?
उत्तर :
मकबूल के दादा जी का देहांत हो गया था। उसे अपने दादा जी से बहुत प्यार था। दादा जी के देहांत के बाद वह पूरा दिन दादा जी के कमरे में बंद रहता था। घर में किसी से बात नहीं करता था। गुमसुम-सा रहने लगा था। रात को दादा जी के बिस्तर पर उनकी भूरी अचकन ओढ़कर सोता था। उस समय उसे देखकर ऐसा लगता था, जैसे दादा की बगल में सोया हो। उसकी ऐसी स्थिति देखकर, उसके अब्या ने उसे इस वातावरण से दूर करने के लिए बड़ौदा के बोडिंग स्कूल में डाल दिया।

प्रश्न 2.
पाठ में बड़ौदा के किस मूर्ति का वर्णन किया गया है ?
उत्तर :
बड़ैदा शहर महाराजा सियाजीराव गायकवाड़ का शहर था। इस शहर का राजा मराठा था और प्रजा गुजराती थी। शहर में दाखिल होने पर ‘ हिज हाइनेस’ की पाँच धातुओं से बनी मूर्ति दिखाई देती थी। वह मूर्ति शानदार घोड़े पर सवार ‘दौलते बरतानिया’ के मेडल लटकाए हुए थी।’

प्रश्न 3.
मकबूल ने अपने उस्तादों के साथ किस प्रकार फोटो खिंचवाए ?
उत्तर :
स्कूल में वार्षिक समारोह मनाया जा रहा था। उस समारोह में खास मेहमानों और उस्तादों का गुरुप फोटोग्राफ खींचा जा रहा था। मकबूल उनके साथ फोटो खिंचवाना चाहता था। इसके लिए वह अवसर दूँढ़ रहा था। फोटोग्राफर ने ट्राइपॉड पर रखे कैमरे पर काला कपड़ा ढका और उसके अंदर जा घुसा। उसने अपने कैमरे का फोकस जमाया। जैसे ही उसने ‘रेडी’ कहा, मकबूल दौड़कर ग्रुप के कोने में खड़ा हो गया। इस प्रकार उसने उस्तादों की बिना इजाज़त के अपनी कई फोटो उस्तादों के साथ खिंचवाई।

प्रश्न 4.
स्कूल के समारोह में मकबूल ने किस विषय पर भाषण दिया ?
उत्तर :
स्कूल के समारोह के लिए मौलवी अकबर ने मकबूल को इलम (ज्ञान) पर दस मिनट का भाषण तैयार करवाया। उसमें एक फ़ारसी का शेर था-‘कस्बे कमाल कुन कि अज्ञीजे जहाँ शवी’। कस बेकमाल नियारजद अज़ीजे मन। दुनिया का चहेता वही बन सकता है जिसके पास कोई हुनर का कमाल हो। वही लोगों के दिलों को भी जीत सकता है। जिसके पास हुनर नहीं वह कभी भी लोगों के दिलों को जीत नहीं सकता।

प्रश्न 5.
मकबूल के पिता ने अपने छोटे भाई को कौन-कौन से काम खुलवा कर दिए ?
उत्तर :
मकबूल के पिता को नौकरी करना एक सज़ा की तरह लगती थी। उनकी बिजनेस में दिलचस्पी थी। इसीलिए उन्होंने अपने भाई मुरादअली की पहलवानी छुड़वाकर उसे जनरल स्टोर खुलवाकर दिया। जनरल स्टोर न चला तो फिर कपड़े की दुकान खुलवाकर दी, वह भी नहीं चली, तो तोपखाना रोड पर आलीशान रेस्तराँ खुलवाकर दिया। उन्होंने इन सभी कामों पर मकबूल को भी बिजनेस के गुण सीखने के लिए बैठाया।

प्रश्न 6.
मकबूल ने पहली ऑयल पेंटिंग कैसे बनाई ?
उत्तर :
मकबूल दुकान के सामने से गुजरने वाले सभी लोगों पर स्केच बनाया करता था। एक दिन दुकान के सामने से फिल्मी इस्तिहार का ताँगा गुज़ा। उसमें कोल्हापुर के शांताराम की फिल्म ‘सिंहगढ़’ के पोस्टर थे। यह पोस्टर रंगीन पतंग के कागज पर छपे होते थे। पोस्टर पर मराठा योद्धा की फोटो थी, जिसके एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में ढाल थी। उस पोस्टर के चित्र देखकर मकबूल का मन किया कि उसकी ऑयल पेंटिंग बनाई जाए। उसने कभी ऑयल कलर का प्रयोग नहीं किया था। वह अब्बा से ऑयल कलर के लिए पैसे नहीं माँग सकता था, क्योंकि अब्बा का सपना उसे बिज्जनेसमैन बनाना था। मकबूल ने ऑयल कलर ट्यूब खरीदने के लिए अपने स्कूल की दो किताबें बेच दीं। ऑयल कलर ट्यूब से दुकान पर बैठकर ऑँयल पेंटिंग बनाई। उसके अब्बा ने उसकी पेंटिंग देखी तो डाँटने के स्थान पर उसे गले लगा लिया।

प्रश्न 7.
लेख में लेखक ने किन-किन पेंटरों का नाम लिया ? जिन्होंने पेंटिंग की दुनिया में अपना प्रभाव दिखाया।
उत्तर :
लेखक ने लेख में बेंद्रे, राजा रविवर्मा और गजेंद्रनाथ टैगोर का वर्णन किया है। इन लोगों ने हिंदुस्तान के शुरू के मॉडर्न आर्ट में प्रयोग किए थे। बेंद्रे का प्रयोग मोंडन आर्ट का हिंदुस्तान में पहला क्रांतिकारी कदम था। बेंद्रे की पेंटिंग में जवानी का गुलाबीपन कुछ समय तक लोगों के जेहन में तरोताजा रहा। राजा रविवर्मा ने पेंटिंग में पश्चिमी सेकेंड हैंड रियलिज्म का प्रयोग किया। गगनेंद्रनाथ टैगोर ने क्यूबिस्टिक तजुर्बे से पेंिंग से शुरुआत की, लेकिन ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाए। बेंद्रे के जादू ने अपना प्रभाव लोगों पर ज्यादा छोड़ा था।

प्रश्न 8.
मकबूल अब लड़का नहीं रहा, क्योंकि उसके दादा चल बसे।
(क) दादा के चल बसने से मकबूल लड़का क्यों नहीं रहा?
(ख) आपके अपने दादा जी के साथ कैसे संबंध हैं?
उत्तर :
(क) दादा जी की मृत्यु के बाद् मकबूल ने बच्चों जैसी शरारतें करना छोड़ दिया था। वह गुमसुम-सा रहने लगा था तथा हर समय दादा जी के कमरे में बैठा रहता था। वह सोता भी दादा जी के पलंग पर था और साथ में उनकी भूरी अचकन ओढ़ लेता था। उसकी बालपन की हरकतों के न होने से वह अब लड़का नहीं रह गया था।
(ख) मेरे अपने दादा जी के साथ अत्यंत मधुर संबंध हैं। वे मुझे अनेक अच्छी और नीतिगत बातें बताते हैं। उनके साथ सुखह की सैर पर भी जाता हूँ। में अपनी प्रत्येक समस्या का समाधान उनसे प्राप्त कर लेता हूँ। वे मेरे सबसे अच्छे मित्र भी हैं। उनका साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है।

प्रश्न 9.
दो अक्तूबर, स्कूल गांधीजी की सालगिरह मना रहा है। क्लास शुरू होने से पहले मकबूल गांधीजी का पोट्रेट बलैकबोर्ड पर बना चुका है।
(क) इस कथन से मकबूल की किस विशेषता का पता चलता है?
(ख) आपको किस कला में रुचि है और क्यों?
उत्तर :
(क) इस कथन से ज्ञात होता है कि चित्रकला में मकबूल को बहुत रुचि थी। इसलिए वह चित्रकला में दस में से दस नंबर प्राप्त करता था। उसके बनाए गांधीजी के इस पोट्रेट की उसके अध्यापक ने भी प्रशंसा की थी।
(ख) मुझे संगीतकला में बहुत रुचि है। बचपन से ही मैं भजनों, गानों को बहुत ध्यान से सुनता था। बड़े होने पर मैंने गिटार बजाना सीखा। जब भी मेरा मन व्याकुल होता है तब मैं गिटार बजाता हैँ और अपनी प्रिय धुनें निकालकर अत्यंत शांति का अनुभव करता हूँ। संगीत मुझे अपार आनंद प्रदान करता है।

प्रश्न 10.
मकबूल के अब्बा की रोशनखयाली न जाने कैसे पचास साल की दूरी नज्रअंदाज़ कर गई।
(क) मकबूल के अख्या की रोशनखयाली क्या थी?
(ख) कला के प्रति तब और अब के लोंगों के क्या विचार हैं?
उत्तर :
(क) मकबूल के पिता ने मकबूल की चित्रकला के प्रति रुचि देखते हुए उस समय की कला के प्रति दकियानूसी विचारधारा का विरोध करते हुए मकबूल को जिंद्गी को संगों से भरने के लिए कह दिया। उन्हें विश्वास था कि आनेवाले समय में मकबूल एक सुप्रसिद्ध चित्रकार बन जाएगा।
(ख) पहले समय में लोग कला को व्यर्थ और विलास की वस्तु मानकर कलाकारों का तिरस्कार ही करते थे तथा उन्हें विशेष महत्व नहीं देते थे, परंतु अब कला के प्रति लोगों की सोच में परिवर्तन आया है और वे कला तथा कलाकार को सम्मान देते हुए उन्हें विशेष महत्व देते हैं। कला को एक श्रेष्ठ व्यवसाय भी माना जाने लगा है।

निंधधात्मक प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
लेख के आधार पर बताएँ कि मकबूल ने पेंटर बनने का सफ़र कैसे तय किया ?
उत्तर :
मकबूल में आर्ट को समझने की प्रतिभा जन्मजात थी। सबसे पहले उन्होंने बड़ौदा के बोडिंग स्कूल के ड्राइंग मास्टर की ब्लैक-बोई पर बनाई चिड़िया की हूबहू नकल की। उस चिड़िया को देखकर ऐसा लगता था जैसे ब्लैक-बोर्ड से उड़कर चिड़िया मकबूल की स्लेट पर आ बैठी हो। दो अक्तूबर को मकबूल ने क्लास शुरू होने से पहले ब्लैक-बोई पर गांधी जी का पोट्रेट बनाया जिसकी तारीफ़ अब्बास तैयबजी ने की। बड़ौदा का स्कूल छोड़ने पर मकबूल अपने चाचा के साथ खाली समय उनकी दुकान पर बैठता था।

मकबूल का ध्यान दुकान की चीजों के नाम और दाम पर कम रहता था। उसका सारा ध्यान दुकान की अन्य क्रियाकलापों में अधिक लगता था। अकसर वह जनरल स्टोर के सामने से गुज़रने वाले राहगीरों के स्केच बनाता रहता था। घूँघट निकाले मेहतरानी का स्केच, गेहूँ की बोरी उठाए मज़दूर की पेंचवाली पगड़ी का स्केच, पठान की दाढ़ी और माथे पर सिजदे के निशान वाला स्केच, बुरका पहने औरत और बकरी के बच्चे का स्केच। इस तरह मकबूल अपने पेंटिंग के शौक को पूरा करता रहा।

एक दिन दुकान के आगे से फ़िल्मी इश्तिहार (पोस्टर) का ताँगा गुज़रा, जिसमें कोलहापुर के शांताराम की फ़िल्म ‘सिंहगढ़’ के पोस्टर थे। उस पोस्टर पर एक मराठा योद्धा का चित्र था जिसके एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में ढ्वाल थी। उस पोस्टर को देखकर मकबूल के मन में उसकी ऑयल पेंटिंग बनाने का विचार आया। उसने तब तक कोई ऑयल पेंटिंग नही बनाई थी। अपने शौक को पूरा करने के लिए उसने अपनी दो किताबें बेचकर ऑयय कलर द्यूब खरीदी और चाचा की दुकान पर बैठकर ऑयल पेंटिंग बनाई। चाचा ने इस बात की शिकायत अपने बड़े भाई मकबूल के पिता से की।

उन्होंने पेंटिंग देखकर उसे गले लगा लिया। मकबूल की मुलाकात इंदौर में बेंद्रे साहब से हुई। वह उनसे अकसर मिलने लगा और पेंटंग के गुर सीखने लगा। उसकी लगन देखकर एक दिन बेंद्रे ने उसके कहने पर उसके पिता से मुलाकात की और उसके काम पर बात की। मकबूल के पिता ने भी सारी पुरानी परंपराओं को तोड़ते हुए मकबूल को अपनी जिंद्यी में रंग भरने की इज्ञाजत दे दी। इस प्रकार मकबूल ने अपना पेंटर बनने का सफ़र तय किया।

प्रश्न 2.
मकबूल के पाँचों मित्रों के व्यक्तित्व का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
मकबूल की बड़ौदा के बोर्डिग स्कूल में पाँच लड़कों से मुलाकात हुई। वहाँ की दो साल की नजदीकियाँ इतनी गहरी हो गई कि वे लोग दिल से कभी दूर नहीं हुए। वे सभी लोग अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य करते हुए, एक-दूसरे से अलग रहते हुए भी दिल से एक-दूसरे के पास थे। लेखक ने अपने पाँचों मित्रों के व्यक्तित्व का वर्णन इस प्रकार किया है-
(i) मोहम्मद इब्राहीम गोहर अली डभोई के अत्तर व्यापारी का बेटा था। उसका कद छोटा था। नजरों में एक ठहराव था। उसमें गुणों का भंडार था। वह सदा से अंबर और मुश्क के अत्तर में डुबा हुआ था। वह आगे अत्तर का ही व्यापारी बना।
(ii) अरशद डॉक्टर मनव्वरी का लड़का था। उसके चेहरे पर हमेशा हैंसी रहती है। उसे खाने-पीने और गाने का शौक था, परंतु उसका शरीर कसरती पहलवान वाला था।
(iii) हामिद कंबर हुसैन मकबूल का तीसरा मित्र था; उसे कुश्ती और दंड-बैठक का शौक था। वह खुए-मिजाज स्वभाव का था। वह बातें मिलाने और गण्पे हाँकने में उस्ताद था।
(iv) चौथा मित्र अब्बासजी अहमद था। उसका शरीर मजबूत था। उसका रंग खिला हुआ था। उसकी आँखें जापानियों की तरह खिंची-खिंची थी। उसके हैंसने का ढंग दूसरों को लुभाने वाला था। वह स्वभाव से बिज़नेसमैन था।
(v) अब्बास अली फििदा मकबूल का पाँचवाँ मित्र था। उसके बोलने का ढंग बहुत नर्म था। उसका माथा बहुत ऊँचा था। वह वक्त का बहुत पाबंद था। उसे खामोश रहना परंद था। उसके हाथों में हमेशा किताब रहती थी। उसे पढ़ने का बहुत शौक था।

प्रश्न 3.
मकबूल की बेंद्रे से हुई मुलाकात का वर्णन कीजिए और बेंद्रे की पेंटिंग पर उसके क्या विचार थे?
उत्तर :
मकबूल की बेंद्रे साहब से मुलाकात इंदौर के सर्राफ़ा बाजार के पास ताँबे-पीतल की दुकानोंवाली गली में हुई थी। वहाँ पर लँंडस्केप बना रहा था। बेंद्रे साहब वहाँ पर ऑनस्पॉट पेंटिंग करते थे। मकबूल को उनकी तकनीक बहुत परंद आई। वे टिंटेड पेपर पर ‘गोआश वोंटर कलर’ का प्रयोग करते थे। इस मुलाकात के बाद मकबल अकसर बैंद्रे के साथ लैंडस्केप पेंट करने जाया करता था। 1933 में बेंद्रे ने अपने घर में कैनवास ‘बैगबांड’ नाम की पेंटिग पेंट की। उस पेंटिंग का मोंडल अपने छोटे भाई को बनाया।

उसे एक पठान का रूप दे दिया जिसमें फ्रैंच इंप्रेशन की इलक थी। उस पेंटिंग ने बेंद्रे ने रॉयल अकादमी के रुखे रियालिज्म के साथ, उस पर एक्सप्रेशानिस्ट ब्रश स्ट्रोक का प्रयोग किया। बेंद्रे के इस प्रयोग पर बंबई आर्ट सोसाइटी ने चाँदी का मेडल दिया। बेंद्रे की पेंटिंग हिंदुस्तान में मॉडर्न आर्ट का पहला कदम थी। इस पेटिंग में जोश की सुखी कम थी। उसमें जवानी का गुलाबीपन ज्यादा था। बेंद्रे का यह गुलाबीपन कुछ समय तक आर्ट की दुनिया में अपनी छाप छोड़ गया। उन्हें बड़ौदा के ‘फ़ैकल्टी ऑफ फ़ाइन आर्ट’ का डीन बना दिया गया, जहाँ वे हर दिल अज़ीजा बन गए। बेंद्रे ने मकबूल को पेंटिंग की दुनिया में आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया।

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Class 11 Hindi Antral Chapter 3 Question Answer आवारा मसीहा

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

Class 11 Hindi Chapter 3 Question Answer Antral आवारा मसीहा

प्रश्न 1.
“उस समय वह सोच भी नहीं सकता था कि मनुष्य को दु:ख पहुँचाने के अलावा भी साहित्य का कोई उद्देश्य हो सकता है।” लेखक ने ऐसा क्यों कहा ? आपके विचार से साहित्य के कौन-कौन से उद्देश्य हो सकते हैं ?
उत्तर :
लेखक ने ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि उन दिनों स्कूलों में बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा के बाद ‘सीता वनवास,’ ‘चारुपाठ,’ ‘सद्भाव-सद्युरु’ और ‘प्रकांड व्याकरण’ आदि पढ़ाया जाता था। शरत् ने देवानंदुर में ‘बोधोदय’ तक पढ़ा था। भागलपुर आने पर नाना के मंत्री होने के कारण उसे स्कूल की छात्रवृत्ति कलास में दाखिल कर दिया गया, जो उसके लिए बड़ी क्लास थी। उन दिनों स्कूल में किताब को पढ़ लेना ही काफ़ी नहीं था, अपितु पंडित जी के सामने उसकी परीक्षा भी देनी पड़ती थी। शरत् अपनी पढ़ाई से आगे वाली कलास में होने के कारण अवश्य ही पंडित जी से मार खाता होगा इसीलिए लेखक ने उसका साहित्य से प्रथम परिचय दु:ख देने वाला बताया है।

साहित्य का उद्देश्य प्रत्येक मनुष्य के लिए अलग होता है। साहित्य मनुष्य के लिए एक प्रेरणा-स्रोत है, जिसे पढ़कर मनुष्य अपने जीवन को अँधेर से निकाल प्रकाश में लाता है। अच्छा साहित्य मनुष्य को सत्कर्मों के लिए प्रेरित करता है। उसे देश-भक्ति, वीरता, भाईचारे, एकता तथा आपसी सहयोग का मार्ग दिखाता है। साहित्य के माध्यम से मनुष्य अपने मन के भावों को दूसरों तक पहुँचाता है। एक छोटी सी कविता भी मनुष्य के जीवन को बदल देती है। इसलिए कह सकते हैं कि साहित्य वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य स्वर्य को शक्ति प्रदान करता है और उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है।

प्रफ्न 2.
पाठ के आधार पर बताइए कि उस समय के और वर्तमान समय के पढ़ने-पढ़ाने के तौर-तरीकों में क्या अंतर और समानताएँ हैं ? आप पढ़ने-पढ़ाने के कौन-से तौर-तरीकों के पक्ष में हैं और क्यों ?
उत्तर :
पहले समय और वर्तमान समय की पढ़ाई में अंतर आने से पढ़ने और पढ़ाने के तौर-तरीकों में भी अंतर आ गया है। पहले बच्चों को पाँच-छह साल की उम्र में स्कूल में पढ़ने भेजा जाता था। प्रारंभिक शिक्षा के उपरांत स्कूलों में साहित्य पढ़ाया जाता था जिसमें बच्चों को देश की संस्कृति का ज्ञान करवाया जाता था। स्कूलों में ‘सीता बनवास’, ‘चारु पाठ’, ‘सद्भाव-सदगुरु’ और ‘प्रकांड व्याकरण’ जैसा साहित्य पढ़ाते थे। उस समय पुस्तक पढ़ लेना ही काफी नहीं होता था, उसकी प्रतिदिन पंडित जी के सामने परीक्षा देनी पड़ती थी।

इससे बच्चों को सब कुछ याद हो जाता था और वे उसे अपने दैनिक व्यवहार में भी शिक्षा का उपयोग करते थे। आज के समय में स्कूलों की पढ़ाई व्यावहारिक हो गई है। बच्चों को आज की तकनीक के अनुसार शिक्षा दी जाती है। बाई-तीन साल के बच्चों को स्कूल में भेज दिया जाता है-शुरू से ही बच्चों पर किताबों का बोझ डाल दिया जाता है। बच्चों को नैतिक और मर्यादा की शिक्षा नहीं दी जाती। नैतिक शिक्षा का विषय स्कूलों में पढ़ाया तो जाता है परंतु उस शिक्षा को अपनाने के लिए बल नहीं दिया जाता। गुरु-विद्यार्थियों के संबंधों में भी अंतर आ गया है। आज की व्यावहारिक पढ़ाई ने गुरु की मर्यादा और विद्यार्थियों का प्यार और सम्मान सब समाप्त कर दिया है।

पढ़ते-पढ़ाने के तौर-तरीकों में बदलते समय के साथ बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। आज की शिक्षा बदलते समय की तकनीक के साथ है जो कि आज के सपाज की आवश्यकता बन गई है। परंतु बदलती हुई शिक्षा-प्रणाली के साथ यदि पहले की तरह बच्चों को नैतिक, संस्कृति, मयांदा की शिक्षा पर बल दिया जाना चाहिए। देश की उन्नति और भविष्य को देखते हुए हम लोग आज की शिक्षा प्रणाली के पक्ष में हैं। आज विज्ञान में नई-नई तकनीक आ रही है। दिन-प्रतिदिन नई-नई खोजें हो रही हैं। उनकी जानकारी हमें इस नई शिक्षा प्रणाली से मिल सकती है। नई शिक्षा प्रणाली को व्यावहारिक के साथ-साथ यदि मर्यादित भी बना दिया जाए तो यह नई शिक्षा प्रणाली विद्यार्थियों, शिक्षकों और देश के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

प्रश्न 3.
पाठ में अनेक अंश बाल सुलभ चंचलताओं, शरारतों को बहुत रोचक बंग से उजागर करते हैं। आपको कौन-सा अंश अच्छा लगा और क्यों ? वर्तमान समय में इन बाल-सुलभ क्रियाओं में क्या परिवर्तन आए हैं ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार बालक शरत् बचपन में बहुत शरारती था। उसमें निडरता, बुद्धिमता, समझदारी और आजादी के गुण थे। शरत् को अपनी स्वतंत्रता बहुत प्रिय थी। वह अधिक समय तक एक जगह टिककर नहीं रह पाता था। एक बार देवानंदपुर के स्कूल में उसकी शरारतों के कारण पंडित जी ने उसकी आधी छुट्टी बंद कर दी थी। पंडित ने भोलू नाम के लड़के को उसकी देखरेख के लिए बैठा दिया।

शरत पाठशाला के कमरे के एक कोने में फटी हुई दरी पर बैठा था, उसके हाथ में स्लेट थी। वह कभी औँखें खोलता और कभी बंद करता था। अंत में वह गहरी सोच में डूब गया कि यह समय तो गुड्डी उड़ाने के लिए है। उसे बाहर निकलने के लिए एक युक्ति सूझ गई। वह स्लेट लेकर भोलू के पास गया और कहने लगा कि उसे यह सबाल नहीं आता। भोलू जिस बेंच पर बँठा था वह टूटी हुई थी और पास में चूने का ढेर लगा हुआ था। भोलू उसका सवाल देखने लगा। उसी समय एक घटना घट गई-भोलू चूने के ठेर पर गिर पड़ा और शरत गायब हो गया। इस घटना से यह पता चलता है कि बालक शरत् अपनी आजादी के लिए कुछ भी कर सकता था। शरत को बंधन में रहना पसंद नहीं था। उसे एक आजाद पक्षी की तरह खुले वातावरण में रहना पसंद था।

वर्तमान समय में इन बाल सुलभ क्रियाओं में बहुत परिवर्तन आया है। गाँवों और छोटे शहरों में तो बच्चे छोटी-छोटी बाल-सुलभ क्रियाएँ करते दिख जाते हैं, परंतु बड़े शहरों में बाल-सुलभ क्रियाएँ देखने को नहीं मिलती। आज बच्चों के शारीरिक रूप से खेले जाने वाले खेल कम हो रहे है। उनकी जगह टेलीविजन, कंप्यूटर ने ले ली है। वर्तमान समय में सामाजिक परिवेश में परिवर्तन आने से बच्चों का बचपन समाप्त होता जा रहा है। बच्चों को खेलने के लिए पहले की तरह खुली जगह और वातावरण नहीं मिलता है। आज की शिका प्रण्चली ने भी बच्चों के बचपन की क्रियाओं को समाप्त कर दिया है।

प्रश्न 4.
नाना के घर किन-किन बातों का निघेध था ? शरत् को उन निघिद्ध कार्यों को करना क्यों प्रिय था ?
उत्तर :
बालक शरत् के नाना के घर कठोर अनुशासन का पालन किया जाता था। उसके नाना के घर में बच्चों का प्यार करना और पतंग उड़ाना, लट्दू घुमाना, गुल्ली-डंडा खेलना, तितली पकड़ना, उपवन लगाना आदि ऐसे सभी कार्यों की मनाही थी, जिनमें बच्चों को स्वतंत्रता का अनुभव होता था और मज्ञा आता था। यहाँ तक कि अखबार पढ़ना, बंगदर्शन साहित्य पढ़ना भी मना था। ये सभी कार्य घर में लुक-छिपकर किए जाते थे। यदि कोई बच्चा इन निषिद्ध कार्यों को करता हुआ पकड़ा जाता था, उसे कठोर दंड दिया जाता था जिससे दूसरे बच्चे-कायों को करते हुए डरें। उनके अनुसार बच्चों को केवल पढ़ना चाहिए। खेल-कूद बच्चों का जीवन नष्ट कर देता है।

वालक शरत जब नाना के घर रहने भागलपुर गया तो वह ऐसे कठोर शासन में रहने का आदी नहीं था। उसे वे सभी कार्य करने प्रिय थे जिसे नाना के घर में करना मना था। उसे पतंग उड़ाना, गंगा-स्नान, लट्रु चलाना, गोली खेलना, तितली पकड़ना और साहित्य पढ़ना अच्छा लगता था। उसे इन कार्यों को करने में स्वतंत्रता का अनुभव होता था। उसे अपने जीवन में ताज़गी अनुभव होती थी। शरत् के अनुसार खेलने से शरीर बनता है। बुद्धि तेज होती है इसीलिए नाना से दंड मिलने के डर की परवाह किए बिना वह खेलने चला जाता था।

प्रश्न 5.
आपको शरत और उसके पिता मोतीलाल के स्वभाव में क्या समानताएँ नजर आती हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
शरत् और उसके पिता के स्वभाव में बहुत समानताएँ हैं। दोनों की साहित्य में राचि थी, साँदर्य-बोध था और प्रकृति से प्रेम था। दोंनों कल्पनाशील और यायावर प्रकृति के थे। दोनों के स्वभाव की समानताएँ इस प्रकार हैं-
(i) साहित्य में रुचि – शरत् और उसके पिता मोतीलाल दोनों की साहित्य में रुचि थी। मोतीलाल को लिखने का बहुत शौक था परंतु उन्होंने जो लिखा, उसे कभी पूरा नहीं किया। उनकी कहानियों की शुरुआत जितनी अधिक महत्वपूर्ण होती थी अंत उतना ही महत्वहीन होता था। भागलपुर में रहते हुए मोतीलाल ‘बंकिम चंद्र’ का ‘बंग दर्शन’ बड़े उत्साह से पढ़ते थे। कभी-कभी रवींद्रनाथ का साहित्य भी पढ़ते थे। भागलपुर में गांगुली परिवार में साहित्य पढ़ना मना था। वह ये सब लुक-छिपकर पढ़ते थे। शरत ने अपने स्कूल के पुस्तकालय से लेकर उस युग के सभी प्रसिद्ध लेखकों की रचनाएँ केवल पढ़ी ही नर्ही अपितु वह उनका सूक्ष्म अध्ययन भी करता था।

(ii) सांदर्य-बोध – शरत् और उसके पिता दोनों में सॉंदर्य-बोध की प्रचुरता थी। मोतीलाल सभी काम सुंदर बंग से करते थे। वे लिखने से पहले सुंदर कलम में नया निब लगाकर बढ़िया कागज पर मोती जैसे अक्षरों में लिखते थे। भागलपुर में भी वह बच्चों को सुंदर अक्षर में लिखना सिखाते थे। शरत् में भी अपने पिता की तरह सभी कार्य सुंदर दंग से करने की आदत थी। वह अपने कमरे को खूब सजाकर रखता था, चौकी और उस पर सुंदर-सी तिपाई, एक बंद डेस्क, और उसमें पुस्तकें व कापियाँ, कलम, दवात, सभी वस्तुएँ बड़े सुंदर बंग से लगाकर रखता था। उसकी पुस्तकें झक-झक करती थीं। कापियों को करीने से काटकर बहुत ही सुंदर ढंग से तैयार करता था।

(iii) प्रकृति-प्रेमी – दोनों को प्रकृति से बहुत प्यार था। मोतीलाल को गंगा-घाट, वन, पेड़-पौधों से बहुत प्यार था। भागलपुर में इन जगहों पर जाना मना था, परंतु वे फिर भी चले जाते थे। ऐसे ही शरत् को गंगा-घाद पर स्नान करना, मछली पकड़ना और तितली पकड़ना बहुत प्रिय था। उसने अपना एक उपवन भी बना रखा था जिसमें तरह-तरह के फूल थे और उसमें एक छोटी तलैया भी बना रखी थी। शरत् ने अपने एकांत के लिए भागलपुर में एक तपोवन की खोज कर रखी थी जो गंगा के किनारे लताओं से घिरा हुआ था जिसमें बैठकर उसे बहुत अच्छा लगता था।

(iv) संवेदनशील – मोतीलाल और शरत् स्वभाव से संवेदनशील थे। वे दोनों दूसरों के दु:ख से दु:खी हो उठते थे। दुखियों के दु:ख दूर करने के लिए वे दोनों सदा तैयार रहते थे। मोतीलाल भागलपुर में सजा पाने वाले बच्चों के लिए तरह-तरह के खिलौने बनाते थे और गोदाम से बाहर निकलने पर उसका स्वागत फूलों की माला से करते थे। शरत् के संवेदनशील स्वभाव ने उसे कहानीकार बना दिया।

(v) कल्पनाशील-दोनों में कल्पना करने की अपार शक्ति थी। मोतीलाल बच्चों को अपनी कल्पना से तरह-तरह की कहानियाँ सुनाते थे। शरत् भी अपनी सूझ-बूझ से तरह-तरह की कहानियाँ गढ़ता था जिसे सुनकर सामने वाला चकित रह जाता था।

(vi) यायावार प्रकृति – दोनों को एक स्थान पर टिककर रहना पसंद नहीं था। उन्हें घूमना-फिरना अच्छा लगता था। मोतीलाल ने अपने इसी स्वभाव के कारण कई जगह नौकरी की। शरत् का भी जब एक स्थान से मन उखड़ जाता था तो वह कई-कई दिन के लिए घर से गायब हो जाता था। कई बार उसके पिता मोतीलाल उसे पूछ-पूछ कर ढूँढ़कर लाते थे। इस तरह हम कह सकते है कि दोनों के स्वभाव में बहुत समानताएँ थीं।

प्रश्न 6.
शरत की रचनाओं में उनके जीवन की अनेक घटनाएँ और पात्र सजीव हो उठे हैं। पाठ के आधार पर विवेचना कीजिए।
उत्तर :
शरत ने जीवन को बहुत नजदीक से देखा था। उसमें बचपन से ही आस-पास के वातावरण की सृक्ष्म विवेचना करने की अपार प्रतिभा थी। शरत् ने कराशिल्पी शरत्चंद्र बनने के उपरांत अपने जीवन की उन घटनाओं और पात्रों का बहुत सूक्ष्म विवेचन करके उनको अपनी रचनाओं का आधार बनाया। देवानंदपुर में रहते हुए शरत की बाल संगिनी धीरू थी जो उसके हर कार्य में साथ देती थी।

कई बार वह शरत् के क्रोध का भी शिकार बनती थी। शरत की यह संगिनी उनके कई उपन्यासों में नायिका के रूप में साकार हो उठी है-जजैसे ‘देवदास’ की पारो, ‘बड़ी दीदी’ की माधवी और ‘श्रीकांत’ की राजलक्ष्मी। ये सब धीरु ही का तो विकसित और विराट रूप हैं। ‘देवदास’ में तो कथाशिल्पी शरत्चंद्र ने जैसे अपने बचपन को ही मूर्त रूप दे दिया था। शरत बाग से फल चुरने की कला में कुशल था। उसे कभी कोई पकड़ नहीं पाया था। उसकी तीक्ष्ण बुद्धि के आगे मालिकों के सब उपाय व्यर्थ हो जाते थे। कथाशिल्पी शरत्चंद्र के सभी प्रसिद्ध पात्र देवदास, श्रीकांत, दुराततराम और सध्यसायी इस कला में निष्णात थे। शरत् बचपन से ही स्वल्पाहारी था। बड़े होने पर कथाशिल्पी शरत्चंद्र की ‘बड़ी बहू’ सबसे अधिक इसलिए तो परेशान रहती थी।

शरत अपने पिता के साथ ‘डेहरी आन सोन’ गया था। वहाँ उसके पिता को नौकरी मिली थी। उस प्रवास के समय जुड़ी यादों के सहारे कथाशिल्पी ने ‘गृहदाह ‘ में इस नगव्य स्थान को भी अमर कर दिया। शरत का जब देवानंदपुर रहते हुए मन उखड़ जाता था तो वह कभी अकेले या फिर कभी मित्रों को साथ लेकर कृष्पपुर गाँव के रघुनाथदास गोस्वामी के अखाड़े में पहुँचकर कीर्तन का आनंद लेता था। यहाँ उसका मित्र गाँहहर रहता था। ‘श्रीकांत’ चतुर्थ पर्व का वह आधा पागल कवि कीर्तन भी करता था। ‘श्रीकांत’ चतुर्थ पर्व में कथाशिल्पी शरत्चंद्र ने बचपन में स्कूल जाने वाले मार्ग को बड़े होकर स्टेशन से जोड़ा है।

स्टेशन जाते हुए वह मार्ग बहुत जाना-पहचाना लगता है। ऐसी ही कई बातों को अपने साहित्य का आधार बनाकर बचपन को जी लिया था। ‘काशीनाथ’ शरत् के गुरुभाई का नाम था। उसके नाम को नायक बनाकर एक घर-जँवाई का जीवन का वर्णन किया है। शरत ने अपने पिता मोतीलाल को ससुराल में रहते देखकर जाना था कि घर-ज”ँवाई कैसा होता है। ‘काशीनाथ’ को ससुराल में मानसिक सुख नहीं है।’काशीनाथ’ में एक जगह कथाशिल्पी ने लिखा है, “‘कभी-कभी वह ऐसा महसूस करने लगता है जैसे अचानक किसी ने गर्म पानी के कड़ाहे में छोड़ दिया हो। मानो सबने मिलकर, सलाह करके उसकी देह को खरीद लिया हो।

मोतीलाल जैसे स्वच्छंद व्यक्ति की गांगुली जैसे अनुशासित और कठोर नियमों वाले परिवार में मानसिक स्थिति ऐसी ही रही होगी। ‘शुभदा’ के हारान बाबू की तरह मोतीलाल भी भुवनमोहिनी के क्षुव्ध होने पर रात-रात भर घर नहीं आते थे। ‘विलासी’ का कायस्थ मृत्युंजय शरत् का तीसरी कक्षा का सहपाठी था, जिसे उसके चाचा बड़े बाग को हड़पने के लिए तंग करते थे। एक बार बीमार पड़ने पर एक बूढ़ा ओझा और उसकी बेटी उसे अपनी सेवा से ठीक करते हैं।

समाज की परवाह किए बिना मृत्युंजय उसे पत्नी बनाकर रख लेता है और उसके साथ रहते हुए संपेरा बन जाता है। शरत् भी कई बार उससे साँप पकड़ने की विद्या सीखने गया था। पुरी से आते हुए उसे बुखार आ गया था। उस समय एक बाल विधवा ने उसकी सेवा की। उस विधवा का देवर और बहनोई दोनों उस पर अपना अधिकार सिद्ध कर रहे थे। वह उनसे बचकर भागती है परंतु पकड़ी जाती है। शरत् ने इस घटना को आधार बनाकर ‘चरित्रहीन’ उपन्यास की रचना की।’ शुभदा’ की कृष्णा बुआ की तरह उसकी दादी ने सदा ही घर की इज्जत की रक्षा की थी। कथाशिल्पी शरत चंद देवानंदपुर गाँब में गुजारे अभाव और दारिड्य के दिनों को भी भूल नहीं पाया था। उन्होने ‘शुभदा’ में दरिदता के भयानक चित्र खींचे हैं। इसके पीछे निश्चय ही यह कारण होगा कि इसी यातना की नींव में उसकी साहित्य साधना का बीजारोपण हुआ। उनके जीवन की ऐसी घटनाओं का अंत नहीं है। इन्हीं घटनाओं की संवेदना ने उन्हें कहानीकार बना दिया।

प्रश्न 7.
“जो रुदन के विभिन्न रुपों को पहचानता है वह साधारण बालक नही है। बड़ा होकर वह निश्चय ही मनस्तत्व के व्यापार में प्रसिद्ध होगा।” अघोर बाबू के मित्र की इस टिप्पणी पर अपनी टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
बालक शरन् में स्कूल के पुस्तकालय से उस समय के प्रसिद्ध लेखकों की रचनाएँ पढ़कर उनका सूक्ष्म विश्लेषण करने की सहज प्रतिभा थी। एक दिन बालक शरत् अवकाश प्राप्त अध्यापक अघोरनाथ अधिकारी के साथ गंगाघाट पर स्नान के लिए जा रहा था। रास्ते में एक टूटे हुए घर से एक स्त्री के धीरे-धीरे रोने की आवाज आ रही थी। अधिकारी महोदय ने पूछा कि कौन रो रहा है ? शरत् ने बताया कि रोने वाली स्री का स्वामी अंधा था।

वह कल रात मर गया इसलिए वह बहुत दुःखी है। दु:खी लोग बड़े आदमियों की तरह दिखाने के लिए जोर-जोर से नही रोते। उनका रोना दु:ख से विदीर्ण प्राणों का क्रंदन है, यह सचमुच का रोना है। शरत् के मुँह से रोने का इतना सूक्ष्म विवेचन सुनकर अघोर बाबू हैरान रह गए। उन्होंने इसकी चर्चा अपने मित्र से की। उन्होंने कहा कि जो रोने के विभिन्न रूपों को पहचानता है, वह निश्चय ही विद्या के क्षेत्र में प्रसिद्ध होगा।

बालक शरत् का दु:खों से सामना बचपन से ही हो गया था। उसका बचपन घोर दारिद्य, अभाव और दूसरों के सहारे गुजरा था। इसलिए उसका स्वभाव अंतर्मुखी हो गया था। वह अपने आस-पास के वातावरण का सूक्ष्म अध्ययन करता था, जिससे उसमें हर वस्तु को समझने की अपार शक्ति पैदा हो गई थी। उसके मुँह से रोने का ऐसा विचित्र वर्णन सुनकर लगा कि बालक को उसके परिवार के दु:खों ने उम्र से पहले बड़ा बना दिया था। उसकी यह प्रतिभा उसके असाधारण व्यक्तित्व को दर्शाती थी जिससे लगता था कि आगे जाकर साहित्य के क्षेत्र में वह जरूर अपना नाम रौशन करेगा।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

प्रश्न 1.
शरत का मन भारी क्यों था ?
उत्तर :
शरत को भागलपुर में नाना के घर रहते हुए तीन साल हो गए थे। अब उसके वहाँ से जाने का समय आ गया था। वह अपने मामा सुरेंद को लेकर बाग में पहुँचा था। पेड़ों के आसपास घूमते मानो उनसे मन-ही-मन विदा ले रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि पता नहीं, यहाँ वापस आना हो या न हो। वह अपनी उदासी छिपाने के लिए लगातार बातें कर रहा था। उसे भागलपुर से बहुत लगाव था। यही सोचकर कि अब वह यहाँ से चला जाएगा, उसका मन भारी हो गया था।

प्रश्न 2.
शरत को अपनी माँ और पिता के साथ तीन वर्ष पूर्व भागलपुर क्यों आना पड़ा ?
उत्तर :
शरत के पिता मोतीलाल कल्पनाशील व्यक्ति थे। उन्हें एक स्थान पर टिककर रहना पसंद नहीं था। परिवार के पालन के लिए कई जगह नौकरी की परंतु उनके शिल्पी मन का दासता के बंधन के समय कोई सामंजस्य न हो पाता था। उनका हर काम अधूरा रहता था। कुछ दिन नौकरी में मन लगता, फिर एक दिन अचानक बड़े साहब से झगड़ा कर बैठते और नौकरी छोड़ देते थे।

कुछ दिन बाद उनका मन पढ़ने-लिखने में व्यस्त हो जाता। उन्हें कहानी, उपन्यास, नाटक सभी कुछ लिखने का शौक था। वे बड़े उत्साह से रचना लिखनी आरंभ करते थे। उनकी रचनाओं का आरंभ महत्वपूर्ण होता था परंतु अंत महत्वहीन होता था। उन्होंने अंत की अनिवार्यता को कभी महत्व नहीं दिया था। उनके इसी व्यवहार से उनकी पत्नी भुवनमोहिनी क्षुब्ध रहती थी। जब परिवार का भरण-पोषण असंभव हो गया तो वह अपने पिता केदारनाथ के पास भागलपुर रहने चली गई।

प्रश्न 3.
देवी मामा को किसके अपराध की सज़ा मिली थी ? वह अपराध क्या था ?
उत्तर :
एक दिन मामा देवी और नाना केदारनाथ सोए हुए थे। वही पास में बच्चे बँठे थे। उसी समय तक चमगादड़ का बच्चा कमरे में घुसकर बच्चों के सिर मँडराने लगा। बच्चे पढ़ाई छोड़कर चमगादड़ से बचने लगे। शरत और मणि के हाथों में चमगादड़ को मारने की खुजली होने लगी। दोनों लाठियाँ लेकर चमगादड़ को मारने के लिए दौड़ने लगे। चमगादड़ का बच्चा खिड़की में से निकल गया।

बच्चों की लाठी पर में जा लगी। दीये का तेल चादर पर गिर गया और दीया बुझ गया। मणि और शरत यह देखकर कमरे से भाग गए। नाना केदारनाथ ने कमरे में अँधेरा देखकर पूछा कि यह किसका काम है। नौकर को वहाँ मणि और शरत दिखाई नहीं दिए। उसने वहीं सो रहे देवी का नाम लगा दिया। नाना केदारनाथ ने देवी मामा को कान पकड़कर खड़ा कर दिया और उसे अस्तबल में बंद करने की सज़्रा मिली। देवी मामा को शरत् और मणि के अपराध की सज्ञा मिली थी।

प्रश्न 4.
बालक शरत के उपवन में कौन-कौन से फूल लगे थे ?
उत्तर :
बालक शरत के नाना के घर पशु-पक्षी पालना, उपवन लगाना, पतंग उड़ाना जैसे बाल सुलभ-कार्य करने मना थे। बालक शरत ने अपने नाना और मामा से छिपकर अपना उपवन लगा रखा था। उस उपवन में अनेक प्रकार के फूल-गाछ और लता-गुल्म थे। ऋतु के अनुसार उपवन में जूही, बेला, चंद्र माल्लिका और गेंदा के फूल के पौधे लगा रखे थे। जब उन पौधों में फूल खिलते थे तो वह और उसके दल के बच्चे उन्हें देखकर प्रसन्न होते थे।

प्रश्न 5.
बालक शरत ने शारीरिक कसरत के लिए अखाड़ा कहाँ बना रखा था ? उस अखाड़े को किस प्रकार तैयार किया गया ?
उत्तर :
अंग्रेज्जी स्कूल में पढ़ते समय उसे अपने शरीर का बड़ा ध्यान रहता था। शरत् ने अभिभावकों से छिपकर नाना के घर के उत्तर में गंगा के पास एक खाली पड़े मकान के आँगन को अखाड़े के लिए तैयार किया। गोला फेंकने के लिए गंगा के गर्भ से बड़ेबड़े गोल पत्थर आ गए थे। बच्चों के पास पैसों का अभाव था इसलिए पैरेलल बार की व्यवस्था नहीं हो सकी। शरत ने इस पर सोच-विचार करके कहा कि पैरेलल बार के स्थान पर बाँस की बार तैयार की जाए। उसी संध्या बच्चों ने बाँस काटा और पैरेलल बार तैयार की। सब बच्चे वहाँ पर बिना शोर मचाए कुश्ती लड़ते, गोला फेंकते और पैरेलल बार पर झूलते थे।

प्रश्न 6. मणि और शरत् द्वारा गंगा-स्नान करने पर पकड़े जाने पर उनके साथ घर पर कैसा व्यवहार हुआ ?
उत्तर शरत् का विश्वास था कि तैरने पर शरीर बनता है। गंगा घर के पास थी। कई बार गंगा का जल कम हो जाने पर उसमें छोटे-छोटे ताल बन जाते थे जिसमें लाल-लाल जल भर जाता था। शरत् उस लाल जल में नहाना चाहता था परंतु नाना के यहाँ गंगा-स्नान के लिए जाना मना था। एक दिन शरत मणि मामा के साथ गंगा में स्नान के लिए कूद पड़ा। उस दिन अघोरनाथ नाना जल्दी घर आ गए थे। मणि को घर पर न पाकर उसके बारे में पूछा तो पता चला कि वह और शरत गंगा पर स्नान के लिए गए है। अघोरनाथ क्रोध से भर गए। दोनों बालक खुशी-खुशी स्नान करके घर लौँटे ही थे कि अघोरनाथ नाना मणि पर सिंह के समान गर्जन करते हुए टूट पड़े। उस दिन मणि की जो दुर्गति हुई उससे उसको टीक होने में पाँच सात दिन लग गए। शरत को उस समय छोटी नानी ने छिपा दिया था जिससे वह बच गया था।

प्रश्न 7.
शरत ने साँप वशीकरण मंत्र की परीक्षा कैसे ली ? क्या वह उसमें र्तफल रहा ?
उत्तर :
शरत को अपने पिता की अलमारी में से ‘संसार कोश’ नाम पुस्तक मिली थी। उस पुस्तक में उसे गुरुजनों के दंड से मुक्ति पाने के मंत्र के साथ साँप को वश में करने का मंत्र भी मिला। शरत उस मंत्र की परीक्षा करने को आतुर हो उठा। कोश में लिखा था कि एक हाथ लंबी बेल की जड़ किसी भी विषाक्त साँप के फण के पास रख देने पर पल-भर में वह साँप सिर नीचा कर निर्जीव हो जाएगा। शरत ने बेल की जड़ दूँढ़ ली, परंतु उसे साँप कहीं नहीं मिला। शायद साँपों को इस मंत्र का पता लग गया था। एक दिन अभरूद के पेड़ के नीचे एक गोखरु साँप का बच्चा मिला। शरत अपने दल सहित वहाँ जा पहुँचा और उसे बिल से बाहर निकालने के लिए छेड़ने लगा। साँप ने बालकों के अत्याचारों से दुखी होकर अपना फण उठा लिया। फण के उठाते ही शरत ने बेल की जड़ उसके आगे कर दी। सबका विश्वास था कि अभी साँप वश में हो जाएगा और सिर झुकाकर सबसे क्षमा प्रार्थना करेगा। शरत का साँप वशीकरण का यह उपाय विफल हो गया। साँप जड़ को ही डसने लगा। बच्चे यह देखकर डर गए। मणि ने लाठी से उस साँप को मार दिया।

प्रश्न 8.
शरत की सुरेंद्र मामा से क्यों पटती थी ?
उत्तर :
सुंदु शरत् से उम्र में छोटा था परंतु रिश्ते में उसका मामा लगता था। वह सुंदंद मामा से कोई भी बात नहीं छिपाता था। इसके पीछे शायद यह कारण था कि शरत की माँ ने सुरेंद को अपना दूध पिलाया था। सुंदु अभी छोटा ही था कि उसकी मॉँ के फिर से संतान होने की संभावना दिखाई दी। उधर शरत का छोटा भाई शैशव में ही चल बसा था, तब उसकी माँ ने सुरेंद को अपना दूध पिलाकर पाला था, इसीलिए शरत की सुंरुद मामा से बहुत पटती थी।

प्रश्न 9.
शरत में आस-पास के वातावरण को अध्ययन करने की सहज प्रतिभा थी, हमें इसका पता कैसे चलता है ?
उत्तर :
शरत ने अपने स्कूल के छोटे-से पुस्तकालय से उस समय के प्रसिद्ध लेखकों की सभी किताबें लेकर पढ़ ली थीं। वह केवल किताबें पढ़ता ही नहीं था बल्कि उसको समझने और हर वस्तु को पास से जानने का प्रयास करता था। उसमें अपने आस-पास के वातावरण का सूक्ष्म अध्ययन करने की सहज प्रतिभा थी। इसका पता इस घटना से लगता है-
एक बार वह अपने अवकाश-प्राप्त अध्यापक अघोरनाथ अधिकारी के साथ घाट पर जा हा था। रास्ते में एक घर से धीरे-धीरे करुण स्वर में एक स्त्री के रोने की आवाज़ सुनाई दी। अधिकारी महोदय ने पूछा कि कौन रो रहा है ? उस प्रश्न का उत्तर शरत ने इस प्रकार दिया कि रोने वाली स्त्री का आदमी अंधा था। कल रात वह मर गया, इसलिए वह दुखी थी। दुखी लोग बड़े आदमियों की तरह दिखाने के लिए ज्रोर-ज्रोर से नहीं रोते। उनका रोना प्राणों को चीर देता है। मास्टर जी इस स्त्री का रोना सचमुच का है। इस उत्तर को सुनकर कह सकते हैं कि शरत में आस-पास के वातावरण का सूक्ष्म अध्ययन करने की प्रतिभा सहज थी।

प्रश्न 10.
गांगुली परिवार में ऐसा कौन व्यक्ति था, जिस पर नवयुग की हवा का प्रभाव था ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
गांगुली परिवार की कठोरता और कट्टरता के मध्य एक व्यक्ति ऐसा था, जिस पर नवयुग की हवा का प्रभाव हुआ था। वे केदारनाथ के चौथे भाई अमरनाथ थे। वे शौकीन तबीयत के थे। कबूतर पालते थे। उस युग में कंघा, शीशा और वृश इत्यादि का प्रयोग करते थे। सिर पर अंग्रेज्री फ़ैशन के बाल रखते थे। दफ़तर से लौटकर बच्चों को पीपरमेंट की गोलियाँ इत्यादि देते थे। उनकी पढ़ने में भी बहुत रुचि थी। उनके द्वारा ही गांगुली परिवार में बंकिम चंद्र के ‘बंगदर्शन’ का प्रवेश हुआ था। वह इस अखबार को चोरी-छिपे लाते थे। उनसे ‘बंगदर्शन’ भुवनमोहिनी के द्वारा मोतीलाल के पास पहुँचता था। दुर्भाग्य से अमरनाथ बहुत दिन जी नहीं सके। बच्चों को उनसे बहुत प्यार था। उनके जाने का सबसे अधिक दुख बच्चों को हुआ था।

प्रश्न 11.
पाठ के आधार पर कुसुमकामिनी का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
कुसुमकामिनी सबसे छोटे नाना अघोरनाथ की पत्नी थी। उनसे छात्रवृत्ति की परीक्षा पास करने पर ईश्वरचंद्र विद्यासागर के हाथों पुरस्कार प्राप्त किया था। वह बंकिमचंद्र के गाँव ‘कांठालपाड़ा’ की रहने वाली थी परंतु गांगुली परिवार में बंकिमचंद्र की ज़रा-सी भी प्रतिष्ठा नहीं थी। कुसुमकामिनी की साहित्य में रुचि थी। अमरनाथ के द्वारा लाया गया ‘बंगदर्शन’ कमरे में मँगवाकर छिपकर पढ़ती थी। अमरनाथ के मरने के बाद बच्चों को उन्होंने और मोती लाल ने मिलकर सँभाला था। कुसुमकामिनी रसोई और गृहस्थी के अन्य कार्य समाप्त करने के बाद अन्य स्त्रियों की तरह पर परनिंदा में रस नहीं लेती थी।

जिस दिन उनके रसोई में काम करने की बारी नहीं होती थी उस दिन उनकी बैठक या छत पर छोटी-मोटी गोष्ठी होती थी। उसमें वे बंगदर्शन के अतिरिक्त ‘मृणालिनी’, ‘वीयांगना’, ‘बृजांगना’, ‘मेघनाद वध’ और नीलरदर्पण पढ़कर सुनाती थी। उनका स्वर और पढ़ने की शैली मर्मस्पर्शी थी जिसे सुनकर सभी बेजुबान हो जाते थे। शरत ने साहित्य का पहला पाठ उनकी गोष्ठियों में ही पढ़ा था। कुसुमकामिनी का अपराजेय कथाशिल्पी शरतचंद् के निर्माण में जो योगदान है, उसे भुलाया नहीं जा सकता।

प्रश्न 12.
शरत् जीवनभर अपना पहला गुरु किसे मानते रहे ? क्यों ?
उत्तर :
बालक शरत लेखक को असाधारण व्यक्ति मानता था। वह लेखक को आम आदमी से ऊपर मानता था। उस समय उसने लेखक बनने की नहीं सोची थी। बहुत दिन बाद् उसने ‘बंगदर्शन’ में कविगुरु रवीद्रनाथ ठाकुर की युगांतकारी रचना ‘आँख की किराकिरी’ पढ़ी। उस रचना को पढ़कर उस किशोर शरत को गहरे आनंद की अनुभूति हुई। उस आनंद को वह जीवनभर नहीं भूल सका था। अब तक वह भूत-प्रेतों की कहानियों से आतंकित रहता था। परंतु इस रचना के नए जीवन-दर्शन ने उसे प्रकाश और सौंदर्य के एक नए जादू-भरे संसार में पहुँचा दिया। शरत ने उन्हें उसी दिन से अपना गुरु मान लिया था, और जीवनभर उन्हें अपना गुरु मानते रहे थे।

प्रश्न 13.
शरत का अपने नाना के परिवार भागलपुर में रहना असंभव क्यों हो गया था ?
उत्तर :
शरत के पिता मोती लाल न केवल स्वप्नदर्शी थे, बल्कि उनमें कई और दोष भी थे। वे हुक्का पीते थे। वे बच्चों की शरारतों में सदा अपरोक्ष रूप से सहायता करते थे। जब किसी बच्चे को गोदाम में बंद होने की सजा मिलती थी तो वे चुपचाप उन्हें खाना दे आया करते थे। जब बच्चे गोदाम से छृटते तो फूलों की माला तैयार करके वह बच्च्चों को प्रसन्न कर देते थे। उनके बनाए कागज़ के खिलौने बच्चों में लोकप्रिय थे। वे बच्चों के लिए गंगा-स्नान का प्रबंध कर देते थे। बच्चों के लिए वे मरस्थल में शाद्वल के समान थे। इसी कारण कठोर अनुशासन वाले परिवार में ऐसा व्यवहार करने पर उनकी स्थिति अच्छी नहीं थी। उन दिनों गांगुली परिवार की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी, इसलिए शरत् का अपने नाना के घर भागलपुर में रहना संभव हो गया था।

प्रश्न 14.
राजू का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
राजू गांगुली परिवार के पड़ोस में रहने वाले मजूमदार परिवार का लड़का था। राजू का रंग श्याम, स्वस्थ चेहरा, आजानबाहु, मुख पर चेचक के सामान्य निशान थे। उसके शरीर में जिनती शक्ति थी उतना ही मन में साहस था। राजू के पिता रामरतन मजूमदार भागलपुर डिस्टिर्ट इंजीनियर थे। राजू के पिता का गांगुली परिवार से घर के आसपास की जमीन को लेकर मनमुटाव था। राजूू का परिवार नए युग का समर्थक था, इसलिए उनके परिवार को बंगाली समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था। राजू भी शरत् की तरह पतंगबाजी के द्वंद्वयुद्ध में पारंगत था। एक दिन राजू शरत् से पतंगबाजी के द्वंद्वयुद्ध में हार गया।

उसी दिन उसने अपना सरंजाम गंगा में अर्पित कर दिया। पतंगबाजी की प्रतियोगिता और संघर्ष ने राजू और शरत् को एक-दूसरे के नजदीक कर दिया था। राजू असाधारण प्रवृत्ति का बालक था। उसमें अमिट साहस था, अपूर्व प्रत्युत्पन्नमति थी तथा उसे सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती थी। वह शरत् की स्थिर-धीर और शांत बुद्धि से प्रभावित था। राजू के आजाद विचारों ने शरत् के सवागीण विकास में योगदान दिया। वह उसके सभी दु:साहसिक कार्यों का मंत्रदाता बन गया। राजू को संगीत और अभिनय का भी शौक था। राजू का व्यक्तित्व शरत् के लिए अदभुत और प्रेरणादायक था।

प्रश्न 15.
मोतीलाल के पिता बैकुंठनाथ का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
बैकुंठनाथ चौबीस परगना जिले में कांचड़पाड़ा के पास मामूदपुर के रहने वाले थे। उनका संबंध संभ्रांत राढ़ी ब्राह्मण परिवार से था। वे निर्भीक और स्वाधीनचेता व्यकि थे। उनके समय में जर्मींदारों का बहुत अत्याचार था, लेकिन वे कभी जमींदारों से दबकर नहीं रहे। उन्होंने सदा प्रजा का ही पक्ष लिया था। एक बार जर्मींदार ने उन्हें एक मुकदमे में झूटी गवाही देने के लिए कहा। उन्होंने इनकार कर दिया क्योंकि उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला था। बैकुंठनाथ का एक बेटा था। उसका नाम मोतीलाल था। एक दिन जर्मीदार ने उनके साहस और ईमानदारी की सजा मृत्यु के रूप में दी। बैकुंउनाथ आदर्शों पर चलने वाले एक साहसी व्यकित थे।

प्रश्न 16.
बैकुंठनाथ की मृत्यु के उपरांत उनकी पत्नी मोतीलाल को लेकर कहाँ गई ?
उत्तर :
बैकुंठनाथ की पत्नी को उनके मारे जाने का समाचार मिला तो वह अपनी सुधबुध खो बैठी। उसे कुछ समझ में नहीं आया कि वह क्या करे। जमींदार के डर से वह अपना दु:ख रोकर प्रकट नहीं कर सकी थी। यदि वह रोती तो उसे अपने पुत्र से भी हाथ धोना पड़ता। उसने गाँव के बड़े लोगों के परामर्श से जल्दी-जल्दी पति का दाहसंस्कार किया और रातो-रात मामूदपुर छोड़ दिया। वह मोतीलाल को लेकर देवानंदपुर अपने भाई के पास चली गई।

प्रश्न 17.
पहले समय में कन्या की शादी के समय वर के परिवार का क्या देखा जाता था ?
उत्तर :
पहले समय में कन्या की शादी के समय परिवार की संपन्नता की आवश्यक्ता नहीं होती थी। उस समय वंश की मर्यादा और कुलीनता देखी जाती थी। केदारनाथ ने मोतीलाल को सद्वंश की कुलीन संतान जानकर अपनी दूसरी पुत्री भुवनमोहिनी की शादी उसके साथ कर दी थी। केदारनाथ संपन्न और बंगाली समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति थे।

प्रश्न 18.
भुवनमोहिनी का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
भुवनमोहिनी भागलपुर के केदारनाथ गांगुली की दूसरी पुत्री थी। उनकी शादी देवानंदुर के मोतीलाल चट्टोपाध्याय से हुई थी। वे कथाशिल्पी शरतचंद्र की माँ थीं। वह स्वभाव से शांत प्रकृति की थी। उनका चरित्र निर्मल था। वे उदारवृत्ति की महिला थीं। वे देखने में अधिक सुंदर नहीं थी परंतु वैदूर्यमणि की तरह अंतर के रूप में रूपसी थी। वे हमेशा दूसरों की सहायता करने को तैयार रहती थीं। भागलपुर में रहते हुए सबके छोटे बच्चे वे अपनी छाती से लगाकर रखती थीं। किसको कब क्या चाहिए, इसका पता भुवनमोहिनी को ही रहता था। उनके सहज पतिव्रत्य और प्रेम की छया में स्वपदर्शी पति की गृहस्थी चलने लगी थी। उन्होंने कभी भी अपने पति से गहनों या महँगे कपड़ों की माँग नहीं की थी। भुवनमोहिनी घर की शोभा बनाए रखने के लिए अत्यंत अभाव में भी शांत रहकर गुजारा करती थीं।

प्रश्न 19.
देवानंदपुर गाँव की क्या विशेषता है ?
उत्तर :
देवानंद्पुर बंगाल का एक साधारण-सा गाँव था। यह गाँव हरा-भरा ताल-तलैयों, नारियल और केले के वृर्षों से परिपूर्ण था। यहाँ मलेरिया की प्रचुरता भी कम नहीं थी। नवाबी शासन में यह फ़ारसी भाषा की शिक्षा का केंद्र था। डेढ़ सौ वर्ष पहले रायगुणाकर कवि भारतचंद्र राय फ़ारसी भाषा का अध्ययन करने देवानंद्पुर गाँव आए थे। उन्होंने अपना कैशोर्यकाल यहाँ बिताया था। इस गाँव की गणना प्राचीन सप्त ग्रामों में होती थी। उस समय यह गाँव समृद्ध भी रहा होगा। भारतर्चंद्र के समय इस गाँव में हरिराम राय और रामचंद्र दत्त मुंशी पढ़ाने-लिखाने का काम करते थे। इन्हीं से उन्होंने फ़ारसी पढ़ी। भारतचंद्र राय ने दो पद्य-देवानंदपर, हरिरामराय और रामरंद्ध दत्त मुंशी पर लिखकर उसे अमर कर दिया।

प्रश्न 20.
शरत की दादी शरत की कोई भी शिकायत सुनने के बाद क्या कहती थी ?
उत्तर :
शरत बचपन से ही बहुत शरारती था। स्कूल जाने के बाद उसकी शरारतें बहुत बढ़ गई थी। प्रतिदिन स्कूल से पंडित शिकायत लेकर घर आते थे। एक दिन शरत ने पंडित जी की चिलम में तंबाकू हटाकर इंटों के छोटे-छोटे टुकड़े भर दिए। पंडित जी ने जैसे ही चिलम पीनी शुरू की उसमें से धुआँ नहीं निकला। उन्होंने चिलम को उलटा करके देखा तो उसमें से ईंटों के टुकड़े मिले। पंडित जी ने कक्षा के विद्यार्थियों से पूछा तो एक ने शरत का नाम ले दिया। पंडित जी जैसे शरत को मारने आए, वह उस लड़के को धक्का देते हुए बाहर भाग गया। पंडित जी की शिकायत पर उसकी माँ ने उसे बहुत मारा। उस समय दादी ने कहा कि बहू इसे मत मारा करो। यह अभी छोटा है, इसलिए नासमझ है। एक दिन यह बड़ा होकर बहुत बड़ा आदमी बनेगा। वह दिन देखने के लिए वे तो जीवित नहीं होगी परंतु देख लेना उनका कहा सच होगा। शरत् ने दादी के विश्वास को आगे चलकर सच कर दिखाया।

प्रश्न 21.
यह बात कौन जानता था कि भोलू को चोट पहुँचाने के बाद शरत् कहाँ छिपा होगा ?
उत्तर :
एक दिन शरत की जलपान की छुट्टी बंद थी। उसकी निगरानी क्लास में भोलू नाम का लड़का कर रहा था। शरत को बंधन पसंद नहीं था, इसलिए उसने एक युक्ति सोची। वह भोलू के पास एक सवाल का हल पूछने गया। भोलू सवाल निकालने लगा। इतने में ही एक घटना घट गई। भोलू अपने बेंच से पास पड़े चूने के ढेर पर जा गिरा। शरत इतने में वहाँ से भाग गया। पंडित जी ने सब बच्चों को शरत् को दूँढने के लिए लगा दिया परंतु वह कहीं नही मिला। केवल एक प्राणी ऐसा था जिसे यह पता था कि इस समय शरत कहाँ मिलेगा। वह थी धीरू। धीरू उसके बारे में सब कुछ जानती थी। धीरू को पता था कि इस समय शरत जर्मीदार के आम वाले बाग में छुपा होगा।

प्रश्न 22.
‘डेहरी आन सोन’ में शरत की दिनचर्या कैसी थी ?
उत्तर :
शरत के पिता मोतीलाल को ‘डेहरी आन सोन’ में एक नौकरी मिल गई थी। शरत का पढ़ाई में मन नहीं लगता था, इसलिए पिता अपने साथ ‘डेहरी आन सोन’ ले लगाए। वहाँ पर उसका सारा समय खेलकूद में ही बीतता। वहाँ एक नहर थी जिसके किनारे पक्की खिरनियाँ बटोरता था। फंदा डालकर गिरगिट पकड़ना उसका मुख्य काम था। कभी-कभी वह घाट पर जाकर बैठ जाता और कल्पनाओं के आलजाल में डूब जाता। ‘डेहरी आन सोन’ आकर उसका स्वभाव अधिक अंतर्मुखी हो गया था। कथाशिल्पी शरतचंद्र ने इस अल्पकालिक डेहरी प्रवास को ‘गृहदाह’ में स्थान देकर उसे अमर कर दिया है।

प्रश्न 23.
शरत नयन बागदी के पीछे-पीछे क्यों गया ?
उत्तर :
शरत को मछलियाँ पकड़ने का बहुत शौक था। नयन बागदी बसंतपुर अपनी बुआ के पास गाय लेने जा रहा था। बसंतपुर में छीप बनाने के लिए अच्छा बाँस मिलता है। कहने पर नयन बागदी उसे अपने साथ लेकर नहीं जाता क्योंकि रास्ते में घना जंगल था और अँधेरा होने पर जंगल में लुटेरे आ जाते हैं। इसीलिए शरत् चुपचाप नयन बागदी के पीछे-पीछे चल पड़ा।

प्रश्न 24.
उस समय पुलिस के विषय में लोगों के क्या विचार थे?
उत्तर :
बसंतपुर से लौटते हुए अँधेरा हो चला था। अंधरे में जंगल भी अधिक भयानक हो गया था। ऐसे भयानक जंगल में लुटेर आद्मी को मारकर गाड़ देते थे और पुलिस उधर मुँह भी नहीं करती थी। गाँव के आदमी भी लुटेरों की रिपोर्ट करने थाने नहीं जाते थे, क्योंकि उन्हें यह शिक्षा मिली हुई थी कि पुलिस के पास जाना आफ़त बुलाना है। बाच के सामने पड़ने से आदमी के दैव संयोग से कभी-कभी प्राण बच सकते है. परंतु पुलिस के पल्ले पड़ने से प्राणों को कोई नहीं बचा सकता।

प्रश्न 25.
नयन बागदी ने लुटेरों का मुकाबला कैसे किया ? अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर :
नयन बागदी और शरत गाय लेकर बसंतपुर से लौट रहे थे। नयन की जेब में शरत की दादी के लिए पाँच रुपए भी थे। वे अभी जंगल में थोड़ी दूर गए थे कि उन्हें किसी के चीखने की आवाज सुनाई दी। शरत डर से कौपने लगा। उसी समय किसी के कदमों की आवाज़ सुनाई दी। नयन ने उन लोगों से चीखकर कहा कि उसके साथ ब्राह्मण का लड़का है। यदि इसे कुछ हो गया तो वह किसी को जीवित नहीं छोड़ेगा। उधर से कोई जवाब न पाकर वे लोग आगे बढ़े। जिस व्यक्ति के चीखने की आवाज् सुनी थी वह उन्हें मृत अवस्था में मिला। वह एक भिखारी था। नयन बागदी को यह देखकर क्रोध आ गया।

उसने उन लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि उन लोगों ने एक वैष्णव भिखारी को मार डाला है, वह इस बात का उनसे बदला लेगा। लुटरे उन दोनों को डराने लगे। नयन बागदी ने निभीकता से कहा कि उसके पास रुपए भी हैं, यदि हिम्मत हो तो आकर ले जाओ। जब कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी तो वे दोनों आगे बढ़ गए। उन्होंने रास्ते में पड़े पाबड़े उठा लिए। नयन बागदी कुछ दूर गया था कि वह वापस लौट आया। वह कायरों की तरह वहाँ से जाना नहीं चाहता था। वह एक-दो लुटरों को मारकर जाना चाहता था। मारने की बात सुनकर शरत खुशी-खुशी उसका साथ देने को तैयार हो गया। वे दोनों चुपचाप पेड़ की ओट में खड़े हो गए।

लुटेरों को जब कोई आहट नहीं मिली तो वे बाहर आए और भिखारी की जेबों की तलाशी लेने लगे। एक लुंटरे ने नयन को देख लिया। उसके चिल्लाने पर सभी भाग गए परंतु चिल्लाने बाला लुटेरा पकड़ा गया। नयन ने उसे पकड़कर मारना शुरू कर दिया। शरत से भी मारने को कहा लेकिन शरत डर गया था। उसने उस लुटेर को नयन से छोड़ने के लिए प्रार्थना की। नयन बागदी उस लुटरो को छोड़कर शरत के साथ निभीकता से आगे बढ़ गया।

प्रश्न 26.
देवानंदपुर लौटने पर शरत की पढ़ाई क्यों छूट गई ?
उत्तर :
भागलपुर में नाना के परिवार में कठोर अनुरासन था। परंतु देवानंदपुर में अनुशासन के नाम पर कुछ नहीं था। उसकी पथभ्रष्टता निरंतर बढ़ती जा रही थी। शरत को उसके माता-पिता ने किसी तरह हुगली ब्रांच की चौथी श्रेणी में दाखिल करवाया। स्कूल घर से दो कोस दूर था। वहाँ पैदल जाना पड़ता था। स्कूल जाने का रास्ता भी कच्चा था। गर्मी में धूल उड़ती थी और वर्षा ऋतु में कीचड़ भर जाता था। उसका परिवार इतना गरीब था कि फ़ीस का प्रबंध करना भी मुश्किल था। परिवार का अभाव घर के आभूषण बेच देने और घर को गिरवी रखने से भी नहीं मिट सका था। शरत किसी तरह प्रथम श्रेणी के स्कूल में पहुँच गया था। उस समय तक पिता पर बहुत कर्ज चढ़ गया था। वे फ़ीस का प्रबंध नहीं कर सके थे। फ़ीस के अभाव में शरत का स्कूल छूट गया था।

प्रश्न 27.
शरत को राबिनहुड के समान परोपकारी और दुस्साहसी क्यों समझा जाता था ?
उत्तर :
शरत का स्कूल छूटने पर उसकी आवारगी बढ़ गई थी। उसके हाथ में दोधारी छुरी आ गई थी जिसे लेकर वह दिन-रात घूमता रहता था। लोग उससे भय खाने लगे थे। वह दूसरों के बागों के फल-फूल चोरी करके दोस्तों और गरीबों में बाँट देता था। दूसरों के तालाब से मछलियाँ पकड़कर भी वह दूसरों में बाँट देता था। आसपास के लोग उससे दुखी थे परंतु वह उसे पकड़कर दंड देने में असमर्थ थे।

वह फल आर महलियों के अतिरिकत किसी भी वस्तु को हाथ नहीं लगाता था। बहुत-से गरीब लोग उसकी लूट के सामान पर पलते थे। गाँवों में गरीबों की संख्या अधिक होती है। वह गरीबों को उनकी बीमारी में डॉक्टर और दवा का प्रबंध कर देता था। वह उपेक्षित, अनाश्रित और रोगियों की स्वयं भी यथाशक्ति सेवा करता था, इसलिए जहाँ कुछ लोग परेशान थे, वहीं अधिकांश लोग उससे मन-ही-मन प्यार करते थे। शरत ने कंगाल होते हुए कभी भी अपनी चिंता नहीं की, इसलिए उसे राबिनहुड के समान दुस्साहसी और परोपकारी कहा गया था।

प्रश्न 28.
शरत को कहानियाँ लिखने के लिए किसने प्रेरित किया ?
उत्तर :
शरत में कहानी गढ़कर सुनाने की जन्मजात प्रतिभा थी। वह पंद्रह वर्ष की आयु में इस कला में पारंगत हो चुका था। इस कारण उसकी ख्याति गाँच-भर में फैल चुकी थी। इसी कारण स्थानीय ज्रमींदार और गोपालदत्त मुंशी उससे बहुत स्नेह रखते थे। उनका पुत्र अतुलचंद्र शरत की कहानी गढ़ने की कला से बहुत प्रसन्न था। वह उसे छोटे भाई की तरह प्यार करता था। अतुलचंद्र उसे थियेटर दिखाने के लिए अपने साथ कलकत्ता लेकर जाता था। थियेटर दिखाने के बाद वह उस पर कहानी लिखने के लिए कहता। शरत् ऐसी बढ़िया कहानी लिखता कि अतुल चकित रह जाता था। ऐसे ही अतुल के लिए कहानी लिखते-लिखते उसने एक दिन मौलिक कहानी लिखनी आरंभ कर दी।

प्रश्न 29.
‘विलासी’ कहानी के मृत्युंजय से शरत का क्या संबंध था ?
उत्तर :
‘विलासी’ कहानी का मृत्युंजय शरत का कक्षा तीसरी का सहपाठी था। वह कायस्थ परिवार से संबंधित था। उसका चाचा के अतिरिक्त कोई रिश्वेदार नहीं था। चाचा भी उसके बाग के कारण उसका दुश्मन बन गया था। एक बार मृत्युंजय बीमार पड़ गया। उसकी खोज-खबर किसी ने नहीं ली। एक बूड़े ओझा और उसकी बेटी विलासी ने मृत्युंजय की सेवा की। मृत्युंजय ने ठीक होने पर विलासी को पत्नी बनाकर अपने घर रख लिया परंतु समाज को यह सहन नहीं हुआ। उन्होंने उसे समाज से बाहर निकाल दिया। मृत्युंजय विलासी के साथ जंगल मे संपेरा बनकर रहने लगा था। जीविका के लिए साँप पकड़ना और जहर उतारना सीखता था। एक दिन मृत्युंजय को जहरीला साँप काट गया और उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के सात दिन उपरांत विलासी ने भी आत्महत्या कर ली थी। शरत को मृत्युंजय और विलासी की मृत्यु पर बहुत दुख हुआ।

प्रश्न 30.
भुवनमोहिनी ने दुबारा भागलपुर जाने का निर्णय क्यों लिया ?
उत्तर :
शरत के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी। दादी का देहांत हो चुका था। वे किसी तरह परिवार के मान की रक्षा करती आ रही थी। उनके जाने के बाद सबके सामने एक बहुत बड़ा शून्य आ खड़ा हुआ। कर्ज मिलने की भी एक सीमा थी। इस प्रकार की दरिद्रता और अपमान को सहन करने की शक्ति सीमा भुवनमोहिनी में समाप्त हो चुकी थी। भागलपुर में भी माता-पिता का देहांत हो चुका था। भाइयों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी लेकिन उन लोगों का देवानंद्पुर में भी रहना असंभव हो गया था। उन्होंने अघोरनाथ काका को चिट्ठी लिखी। अघोरनाथ काका ने उन्हें अपने पास भागलपुर बुला लिया। भागलपुर जाने के पश्चात फिर कभी वे लोग देवानंदपुर वापस नहीं आए।

प्रश्न 31.
“इस गाँव के ॠण से वह कभी मुक्त नही हो सका।” लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा ?
उत्तर :
देवानंदपुर में रहते हुए शरत की अपने आस-पास के वातावरण को गहराई से जानने की भामता बढ़ गई थी। यहाँ उसका सारा जीवन घोर दारिद्य और अभाव में बीता था। माँ और दादी के रक्त और औसतुओं से इस गाँच के पथ-घाट भीगे हुए थे। इसी यातना की नींव में उसकी साहित्य-साधना का बीजारोपण हुआ। देवानंद्पुर में रहते हुए हर घटना और स्थिति उसके मस्तिष्क में अंकित हो गई थी जो कि आगे जाकर उसके साहित्य सुजन का आधार बनी। यहीं उसने संघर्ष और कल्पना से प्रथम परिचय प्राप्त किया। ‘शुभदा’ में वर्णित दरिदता के भयानक चित्र देवानंदपुर में रहते हुए उसके परिवार की स्थिति का वर्णन है। यह सब उसकी सूक्ष्म पर्यवेकण के कारण हुआ होगा। इसीलिए वह कभी गाँव के ऋण से मुक्त नहीं हो पारा था।

प्रश्न 32.
कथाशिल्पी शरत चंद्र ने किस प्रकार के नरक में जाने की इच्छा प्रकट की ?
उत्तर :
विलासी और मृत्युज्जय शरत् के जान-पहचान वाले थे। शरत विलासी के सेवा-भाव से बहुत प्रभावित था। उन दोनों की मृत्यु के वर्षों बाद कथा शिल्पी शरतचंद्र ने लिखा था कि मृत्युजंय की सेवा करते हुए अच्डे घर की स्त्रियों और पुरुषों ने उसका मज्ञाक उड़ाया था। उन लोगों को अच्छे घरों से संबंधित होने के कारण अवश्य ही अक्षय स्वर्ग और सती लोक मिला होगा। शरतचंद्र कहते हैं, संपेरे की लड़की की विलासी ने अपनी सेवा से एक रोगी, जो मरने की स्थिति में था, उसको ठीक करके जीत लिया था।

उसका गौरव उस समय किसी ने नहीं देखा। उस लड़की का अपनी सेवा और प्यार से किसी का दिल जीत लेना मामूली बात नहीं थी। शास्त्रों के अनुसार वह निश्चय ही नरक में गई होगी क्योंकि वह बिना शादी किए एक पुरुष की सेवा में रहने लगी थी। शरतचंद्र कहते हैं कि अब उनके जाने का समय आया और विलासी जैसे किसी व्यक्ति के साथ नरक में जाने का प्रस्ताव मिला, तो वह उस नरक में जाने से पीछे नहीं हटेंगे। उनके कहने का भाव यह था कि यदि सेवा-भाव और अत्यंत प्यार करने वाली स्ती जिस नरक में गई होगी, उस नरक में जाने में उन्हें कोई भी ऐताराज़ नहीं था।

प्रश्न 33.
लेकिन तीन वर्ष पहले का वह आना कुछ और ही तरह का था।
(क) तीन वर्ष पहले का आना कैसा था?
(ख) अब आना तीन वर्ष पहले आने से कैसे और क्यों अलग तरह का है?
उत्तर :
(स) तीन वर्ष पहले जब उसकी माँ उसे यहॉं लेकर आई थी, तो नाना-नानियों ने उस पर धन और आभूषणों की वर्षा की थी। तब नाना केदारनाथ ने उसकी कमर में सोने की तगड़ी पहनाकर उसे गोद में लिया था, क्योंकि वह उस परिवार में इस पीढ़ी का पहला लड़का था।

(ख) अब वह अपनी माँ के साथ नाना के घर इसलिए आया है क्योंकि उसके पिता परिवार का भरण-पोषण नहीं कर पा रहे थे। वे किसी भी काम को टिककर नही करते थे। उसकी माता की उसके पिता से कहा-सुनी होती रहती थी। तब उसने अपने मिता केदारनाथ से याचना की और सबको लेकर यहौं आ गई।

प्रश्न 34.
नाना लोग कई भाई थे और संयुक्त परिवार में एक साथ रहते थे।
(क) संयुक्त परिवार से क्या तात्पर्य है? इसके क्या लाभ हैं?
(ख) वर्तमान में परिवार की क्या स्थिति है?
उत्तर :
(क) संयुक्त परिवार से तात्पर्य ऐसे परिवार से होता है, जिसमें परिवार के सभी लोग एक साथ मिलकर रहते हैं। इसमें दादा उसके पुत्र, पुत्रों का परिवार, भाई-बहन, नाती-पोते, सभी एक साथ रहते हैं। ऐसे परिवारों में की संख्या काफ़ी होती है। संयुक्त परिवार में सब एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ देते हैं तथा किसी को कष्ट में नहीं देख सकते।

(ख) वर्तमान में परिवार अत्यंत सीमित हो गए हैं। पति-पत्नी और उनके एक-दो बच्च्वों तक ही परिवार की सीमा है। दादा-दादी अलग रहते हैं। नाना-नानी से कभी-कभार मुलाकात हो जाती है। एक-दूसरे के सुख-दुख में तुरंत सहभागी नहीं बन पाते। सब अपने में ही मस्त रहते हैं।

प्रश्न 35.
उनकी मान्यता थी कि बच्चों को केवल पढ़ने का ही अधिकार है। प्यार, आदर और खेल से उनका जीवन नष्ट हो जाता है।
(क) उनकी से किनसे तात्पर्य है? वे बच्चों से कैसी पढ़ाई चाहते थे?
(ख) क्या आप इस मान्यता से सहमत हैं? यदि नहीं, तो क्यों?
उत्तर :
(क) उनकी से तात्पर्य शरत के नाना लोगों से है। वे चाहते थे कि बच्चे सवेरे स्कूल जाने से पहले घर के बरामदे में चिल्ला-चिल्लाकर पढ़े तथा संध्या के समय स्कूल से आने के बाद चेडी-मंडप में दीप की रोशनी में बैठकर पाठ का अभ्यास करें। नियम तोडनने वाले बच्चे को दंड दिया जाता था।

(ख) हम इस मान्यता से सहमत नहीं हैं क्योंकि निरंतर पढ़ते ही रहने से ज्ञान में वृद्धि नहीं होती। खेल भी स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। खेल से परस्पर मैत्री भाव बढ़ता है तथा शरीर चुस्त रहता है। स्वस्थ शरीर से ही पढ़ाई भी अच्छी तरह से हो सकती है। बच्चों को प्यार से समझाने तथा उनकी विशेषताओं का सम्मान करने से वे अधिक मेधावी बनते हैं।

निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पाठ के आधार पर ‘आवारा मसीहा’ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘आवारा मसीहा’ के लेखक ‘विष्णु प्रभाकर’ हैं। इस पाठ में ‘आवारा मसीहा’ के प्रथम पर्व ‘दिशाहारा’ का वर्णन है। दिशाहारा में कथाशिल्पी शरत्चंद्र के बाल्यकाल का वर्णन है। उनका बाल्यकाल घोर गरीबी और दूसरों के सहारे बीता। पाठ में उन सभी परिस्थितियों को भी उजागर किया गया है जो उनके रचनाकार बनने की आधारभूमि और प्रेरणास्त्रोत हैं। शरत्चंद्र के पिता मोतीलाल यायावार प्रकृति के व्यक्ति थे। उनका मन किसी भी कार्य में ज्यादा समय तक टिक नहीं पाता था। इस कारण उन्होंने कई नौकरियाँ की और छोड़ी। उनका शिल्पी मन किसी की दासता को स्वीकार नहीं करता था। उन्हें नाटक, कहानी, उपन्यास आदि लिखने का शौक था।

वे रचना को लिखना आरंभ तो करते थे परंतु उसे पूरा नहीं करते थे। उन्होने कभी पूर्णता की आवश्यकता नहीं समझी थी। उनकी पत्नी भुवनमोहिनी उनके इस व्यवहार से तंग आ चुकी थी। जीजिका के सभी साधन समाप्त होने पर वह अपने पिता के पास भागलपुर जाती है। मोतीलाल घरजँवाई बन रहने लगते हैं। शरत् का लालन-पालन नाना के अनुशासित नियमों में होने लगता है। शरत् ने कभी भी नियमों की पालना नहीं की थी। उसे सभी वो कार्य करने अचे लगते थे जो नाना के परिवार में करना मना था। एक दिन नाना ने उन्हें देवानंदपुर वापस जाने के लिए कह दिया। नाना ने परिवार की अर्थिक स्थिति कमजोर हो गई थी।

द्रेवानंदपुर में शरत् पर किसी का नियंत्रण नहीं रहा जिससे उसकी पथभ्रष्टता बढ़ती गई। पढ़ाई के स्थान पर वह बागों और तलाबों पर जाकर फलों और मछलियों की लूट-पाट करने लगा था। वह लूटी चीजों को गरीबों में बाँट देता था। बह गरीबों में राबिनहुड्ड की तरह प्रसिद्ध था। उसमें अपने आस-पास के वातावरण के सूक्म्म अध्ययन की सहज प्रतिभा थी। उसने छोटी-सी उम्र में बहुत अभाव देखा था जिससे वह हर किसी के दुख को समझने लगा था।

उसके जीवन में ऐसे कई पात्र आए जो आगे चलकर उसके साहित्य स्जन का आधार बने और वे पात्र स्वर्य में अमर हो गए। दादी के मरने के बाद कर्ज मिलना बंद हो गया था। पिता ने कभी छंग से कमाया नहीं था। उसकी माँ भुवनमोहिनी एक बार फिर उसे लेकर भागलपुर चली गई थी। शरत्चंद्र ने कथाशिल्पी बनने से पहले संघर्षशील और अभावग्रस्त जीवन की हर चोट का सामना किया, जिससे ठनके जुझारु व्यक्तित्व का परिचय मिलता है।

प्रश्न 2.
“तीन वर्ष पहले का यह आना कुछ और तरह का था।” लेखक ने ऐसा क्यों कहा ?
उत्तर :
शरत को नाना के घर भागलपुर में अपनी माँ भुवनमोहिनी और पिता मोतीलाल के साथ रहते हुए तीन वर्ष हो चुके थे। वह पहले भी अपनी माँ के साथ वहाँ आ चुका था। उस समय उसके नाना केदारनाथ और परिवार के अन्य सदस्य उसके आगे-पीछे घूमते थे। उसके पिता मोतीलाल यायावार प्रकृति के स्वप्नदर्शी व्यक्ति थे। परिवार और जीविका का कोई साधन उन्हें एक स्थान पर ज्यादा देर के लिए बाँधकर रख नहीं सका था। नौकरी उनके शिल्पी मन को दासता लगती थी। वे कुछ दिन नौकरी करते थे,फिर किसी बात पर बड़े साहब से झगड़ पड़ते थे, जिस कारण नौकरी छोड़नी पड़ती थी।

नौकरी छोड़कर लिखने-पढ़ने बैठ जाते थे। उन्हें कहानी, उपन्यास, नाटक सभी कुछ लिखने का शौक था। उन्होंने अंत की अनिवार्यता को भी माना ही नहीं था। इस तरह मोतीलाल के व्यवहार के कारण परिवार का भरण-पोषण असंभव हो गया था। परिवार की बिगड़ती स्थिति देखकर भुवनमोहिनी ने पहले तो अपने पति मोतीलाल से काफ़ी कुछ कहा-सुना, परंतु मोती लाल पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो भुवनमोहिनी ने अपने पिता केदारनाथ से प्रार्थना की कि उसे भागलपुर रहने के लिए बुला लें। इस प्रकार तीन साल पहले भुवनमोहिनी पति और पुत्र के साथ भागलपुर पिता के घर रहने चली गई थी। किंतु इस बार उसका स्वागत उस तरह नहीं हुआ, जैसा तीन साल पहले हुआ करता था। इसी कारण लेखक ने उक्त बात कही है।

प्रश्न 3.
भागलपुर में शरत् की पढ़ाई किस प्रकार हुई ?
उत्तर :
भागलपुर में शरत् को दुर्गाचरण एम० ई० स्कूल की छात्रवृत्ति क्लास में दाखिल कर दिया गया। शरत् के नाना स्कूल के मंत्री थे, इसलिए उसकी पिछली पढ़ाई की जानकारी किसी ने नहीं ली थी। देवानंदपुर में शरत् ने ‘बोधोदय’ ही पढ़ा था। यहाँ उसे, ‘ सीता वनवास, ‘चारु पाठ, ‘ ‘सद्भावसद्युरु और ‘प्रकांड व्याकरण’ जैसा साहित्य पढ़ना था। यहाँ केवल पढ़ना ही कफ़ी नहीं था, बल्कि उसकी प्रतिदिन पंडित जी के सामने खड़े होकर परीक्षा भी देनी पड़ती थी। वह कक्षा में अन्य बच्चों से पीछे चल रहा था।

यह बात उसे सहन नहीं होती थी। इसलिए उसने परिश्रमपूर्वक पढ़ना आरंभ कर दिया। उसकी मेहनत सफल हुई और जल्दी ही उसकी गिनती कक्षा के अच्छे विद्यार्थियों में होने लगी थी। उसके छोटे नाना अघोरनाथ का लड़का मर्णींद्र उसका सहपाठी था। उन दोनों को घर पर अक्षय पंडित पढ़ाने आते थे। उनके अनुसार विद्या का निवास गुरु के डंडे में होता है। छत्रवृत्ति की शिक्षा पास करने के उपरांत उसे अंग्रेजी स्कूल में दाखिल करवा दिया गया। वहाँ वह अपनी कक्षा में प्रथम आया था जिससे स्कूल और घर में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ गई थी। शरत् जब तक भागलपुर रहा, उसकी पढ़ाई नियमित रूप से चलती रही।

प्रश्न 4.
गांगुली परिवार के घर का वातावरण कैसा था ?
उत्तर :
गांगुली परिवार आरंभ में बहुत गरीब था। उनके परिवार ने समाज में संपन्नता और प्रतिष्ठा अपने परिश्रम और अनुशासिन जीवन से प्राप्त की थी। गांगुली परिवार अनुशासित परिवार था। उनके यहाँ खेलना, गप्पबाजी करना, तंबाकू पीना और साहित्य पढ़ना मना था। उनके यहाँ मान्यता थी कि बच्चों को केवल पढ़ने का अधिकार होता है, खेलने से बच्चे बिगड़ जाते हैं। इसलिए सवेरे स्कूल जाने से पहले बच्चे घर के बरामदे में चिल्ला-चिल्लाकर पढ़ते थे और संध्या को स्कूल से लौटकर रात्रि भोजन तक चंडी मंडप में दीये के चारों ओर बैठकर पढ़ते थे। जो नियम तोड़ता था, उसे आयु के अनुसार दंड दिया जाता था।

दंड में चाबुक खाना ही नहीं था बल्कि अस्तबल में भी बंद होना पड़ता था। नाना अघोरनाथ और मामा ठाकुरदास कट्टरता और कठोरता के सच्चे प्रतिनिधि माने जाते थे। एक बार शरत् और मणि गंगा-स्नान करने गए थे। नाना अघोरनाथ को इसका पता चल गया था। दोनों के घर लौटने पर मणि की बहुत पिटाई हुई। उसे ठीक होने में पाँच-सात दिन लग गए थे। शरत् को छोटी नानी ने कहीं छिपा दिया था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि गांगुली परिवार के घर का वातावरण कठोर नियमों में बँधा हुआ था। नियमों को तोड़ने वाले को दंड अवश्य दिया जाता था।

प्रश्न 5.
बालक शरत् शरारत करने के बाद पकड़े जाने पर कैसे बच निकलता था ? कोई एक उदाहरण देकर बताएँ।
उत्तर :
बालक शरत् बहुत शरारती था। वह असीम साहस और सूझ-बूझ से पकड़े जाने पर बच निकलता था। स्कूल में अक्षय पंडित को तंबाकू खाने की आदत थी। वह दो घंटे पढ़ाने के बाद सेवक जगुआ की पाठशाला में तंबाकू खाने पहुँच जाते थे। उनकी अनुपस्थिति में शरत् की प्रेरणा से दूसरे छात्र स्कूल की घड़ी को दस मिनट आगे कर देते थे। कई दिन तक उनकी चोरी पकड़ी नहीं गई तो बच्चों का साहस बढ़ गया। अब वे घड़ी को आधा घंटा आगे करने लगे थे। कभी-कभी घड़ी एक घंटा भी आगे हो जाती थी।

जिस कारण एक घंटे पहले छुट्टी हो जाती थी। बच्चों के अभिभावकों ने पंडित अक्षय से शिकायत की। पंडित जी ने कहा कि घड़ी की देखभाल तो वह स्वयं करते हैं। पंडित जी ने कहने को तो कह दिया, परंतु शंका उनके मन में भी होने लगी थी। इसलिए इस रहस्य का पता लगाने के लिए एक दिन पंडित जी पाटशाला से जल्दी आ गए। उन्हॉने देखा कि बच्चे एक-दूसरे के कंधे पर चढ़कर घड़ी को आगे कर रहे हैं। उनको देखकर सब बच्चे भाग गए। वहॉं केवल एक बालक शरत् रह गया था।

वह भले लड़के का अभिनय करते हुए बैठा रहा। उसने पंडित जी से कहा कि उसे कुछ मालूम नहीं है। वह तो चुपचाप बैठा सवाल निकाल रहा था। पंडित जी और अन्य लोग कभी भी यह नहीं जान सके कि इस घटना का निदेशक शरत् ही था। पंडित जी का उस पर विश्वास गहरा हो गया था। इससे हम कह सक्ते हैं कि बालक शरत् शरारत करने के बाद अपनी सूझ-बूझ से पकड़े जाने पर बच निकलता था।

प्रश्न 6.
बालक शरत का तपोवन कैसा था ?
उत्तर :
बालक शरत कभी-कभी खेलते-खेलते गायब हो जाता था। बच्चे उसे ढूँहने लगते परंतु वह कहीं नहीं मिलता था। फिर अचानक स्वर्य प्रकट हो जाता था। पूछने पर बताता कि वह तपोवन गया था। उसने तपोवन का रहस्य किसी को नहीं बताया, परंतु सुंद्र मामा से वह कुछ नहीं छिपाता था। इसका कारण यह था कि उसकी माँ ने सुंद्र को दूध पिलाया था। एक दिन वह सुंद्र को कई तरह की कसम दिलवाकर अपने साथ तपोवन ले गया। शरत् का तपोवन घोष परिवार के मकान के उत्तर में गंगा के बिलकुल पास एक कमरे के नीचे था। उस जगह को नीम और करॉदे के पेड़ों ने घेर रखा था। उस स्थान को नाना प्रकार की लताओं ने ढक रखा था जिससे वहाँ प्रवेश करना कठिन था।

शरत् ने उन लताओं को बड़ी सावधानी से हटाया और सुंद्र को लेकर अंदर चला गया। वहॉं थोड़ी-सी साफ़ जगह थी। हरी-भरी लताओं के भीतर से सूर्य की उज्ञल किरणें छन-छनकर आ रही थीं, जिस कारण चारों ओर स्निग्ध हरित प्रकाश फैल गया था। उस स्थान को देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे स्वप्न लोक में आ गए हों। वहाँ बैठने के लिए एक बड़ा-सा पत्थर था। पत्थर के नीचे खर-सोता गंगा बह रही थी।

ठंडी-ठंडी पवन शरीर को पुलकित कर रही थी। सुंँंद्र को वह जगह देख ऐसा लगा, जैसे वह सच में ही किसी तपोवन में आ गया हो। प्रकृति का ऐसा साँद्य थके तन-मन को स्टूर्ति प्रदान करता है। सुरेंद्र ने शरत् के तपोवन में बैठकर प्रतिज्ञा की कि वह सदा साँद्य की पूजा करेगा। वह जीवर-भर अन्याय के विर्द्ध लड़ेगा तथा कभी भी छोटा काम नहीं करेगा। शरत् के तपोवन ने सुंरंद का जीवन बदल दिया था।

प्रश्न 7.
राजू के परिवार को बंगाली समाज से क्यों बहिष्कृत किया गया था ? राजू और शरत की मित्रता कैसे हुई ?
उत्तर :
राजू उर्फ़ राजेंद्रनाथ के पिता रामरतन मजूमदार डिस्टिक्ट इंजीनियर होकर भागलपुर आए थे। उनका घर गांगुली परिवार के घर के पास था। दोनों परिवारों में किसी बात को लेकर मनमुटाव था। रामरतन ने अपने सात बेटों के लिए सात कोठियाँ बनवाईं, परंतु बंगाली समाज में उनके परिवार को सम्मानजनक दृष्टि से नहीं देखा जाता था। इसका कारण यह था कि वे आधुनिक समाज के पक्ष में थे। वे चीनी-मिट्टी के प्यालों में खाना खा लेते थे। मुसलमान के हाथ से पानी पी लेते थे।

छोटे भाई की विधवा पत्नी से बात करने में उन्हें कोई परहेज नहीं था। वे मोजे पहनते, दाढ़ी रखते, क्लब जाते और नए समाज की बातें करते थे। उनकी इन्हीं बतों के कारण बंगाली समाज ने उन्हें कभी क्षमा नहीं किया था। उनके परिवार में हर किसी को आजादी थी। राजू भी इन्हीं आजाद विचारों में पला था, इसलिए उसमें साहस था। राजू शरत् की तरह पतंगबाजी के द्वंद्वयुद्ध में पारंगत था। दोनों एक-दूसरे को हराने की कामना करते थे। राजू ने अपने पैसों से पतंग और बढ़िया माँझा खरीदा।

शरत् ने अपना माँझा घर में ही तैयार किया। शनिवार की शाम को शरत की गुलाबी पतंग और राजू की सफ़ेद पतंग आसमान छूने लर्गी। दोनों में पेंच लगे और राजू की पतंग कट गई। राजू ने उसी शाम अपना माँझा गंगा में अप्पित कर दिया। राजू और शरत् एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हुए। राजू शरत् की स्थिर, धीर और शांत बुद्धि देखकर उससे मित्रता करने को उत्सुक हो गया। राजू ने शरत् के उन गुणों को सराहा, जिन्हें उसके परिवार ने कभी पहचचाना ही नहीं था। दोनों में मित्रता का एक कारण यह भी था कि दोनों का संगीत और अभिनय के प्रति प्रेम था। राजू का साथ उसके कार्यों के लिए प्रेरणा-स्रोत बन गया।

प्रश्न 8.
देवानंदपुर में शरत के बचपन की मित्र कौन थी ? उन दोनों में कैसी मित्रता थी ? कथाशिल्पी शरत चंद्र ने अपनी बालसंगिनी का वर्णन साहित्य में किस प्रकार किया है ?
उत्तर :
देवानंदपुर गाँव के स्कूल में पढ़ते हुए शरत् की मित्रता अपने मित्र की बहन धीरू से हुई। यह मित्रता इतनी गहरी हो गई कि दोनों हर जगह इकट्ठे दिखाई देते थे। दोनों एक-दूसरे को जितना चाहते थे, उतना ही झगड़ते थे। नदी या तालाब पर मछली पकड़ना, बाग में से फल चुराना, पतंग के साजो-सामान तैयार करना, वन, जंगल, घूमना आदि बाल-सुलभ कामों में धीरु शरत् की संगिनी थी। धीरु करॉँदों की माला तैयार करती और शरत् को अर्पण कर देती थी। दोनों में रहस्यमय संबंध था। धीरू शरत के हर कार्य को जानती थी। जब वह शरारत करके भागता था तो उसके छिपने के स्थान का धीरू के अतिरिक्त किसी को भी मालूम नहीं होता था।

शरत धीरू पर अपना पूरा अधिकार रखता था। वह उसे मारता भी था, परंतु इस पर भी दोनों में मित्रता कम नहीं होती थी। वह मित्रता निरंतर प्रगाढ़ ही होती गई। कथाशल्पी शरत्चंद्र ने बाद में शैशव की इस संगिनी को आधार बनाकर उपन्यासों की नायिकाओं का सृजन किया था। ‘देवदास’ की पारो, ‘बड़ी दीदी’ की माधवी और ‘श्रीकांत’ की राजलक्ष्मी, ये सब धीरू ही का तो विकसित और विराट रूप थे। ‘देवदास’ में तो शरत्चंद्र ने अपने बंचपन को मूर्त रूप दे दिया था। शरत्चंद्र ने अपने उपन्यासों की नायिकाओं के माध्यम से अपनी बालसंगिनी को सद्व याद रखा था।

प्रश्न 9.
शरत को ऐसा क्यों लगता था कि नीरु दीदी ने स्वयं को सजा दी है ?
उत्तर :
शरत् को बचपन से ही अपने आस-पास के वातावरण के सूक्म पर्यवेक्षण की प्रतिभा थी। वह जो देखता था, उसकी गहराई में जाने का प्रयल करता था। उसके गाँव में नीरू नाम की बाल विधवा रहती थी। वह ज्राह्मण परिवार से थी। शरत उसे दीदी कहकर बुलाता था। बत्तीस साल की उम्र तक उसके चरित्र को कलंक छू नहीं पाया था। वह बहुत सुशीला, परोपकारिणी, धर्मशीला और कर्मर होने के कारण गाँव-भर में प्रसिद्ध थी। वह गाँव वालों की रोग में सेवा, दुख में सांत्चना, अभाव में सहायता और आवश्यक्ता पड़ने पर महरी का काम करने के लिए भी तैयार रहती थी। गाँव में एक भी घर ऐसा नहीं था जिसने उससे सहायता प्राप्त न की हो।

एक बार गाँव के स्टेशन का परदेसी मास्टर उसके जीवन को कलंकित कर चला गया। उस समय गाँव वाले उसके द्वारा किए गए सभी उपकार भूल गए और लोगों ने उसका बहिष्कार कर दिया। वह एकदम असहाय हो गई थी। वह बीमार रहने लगी थी। उसकी ऐसी स्थिति में भी कोई पानी की बूँद तक उसके मुँह में डालने नहीं आया। वह गाँव वालों के लिए ऐसी हो गई थी जैसे कभी थी ही नहीं। शरत् को भी वहाँ आने की मनाही थी, परंतु शरत ने कभी किसी की बात नहीं मानी थी। इसलिए वह वहाँ जरूर आता था और जितना बनता था दीदी की सेवाटहल कर जाता था।

नीरू दीदी ने गाँव वालों से ऐसा अपमानित दंड पाकर भी कभी उनसे शिकवा-शिकायत नहीं की थी। वह अपने द्वारा किए गए कार्य को लज्जास्पद मानती थी इसलिए स्वर्य को अपराधी मानते हुए हैंसते-हैंसते दंड स्वीकार कर लिया था। शरत का चिंतातुर मन यह बात समझ गया था कि गाँव के लोग तो उपलक्ष्य मात्र थे। दीदी ने अपने अपराध का दंड स्वयं ही अप्ने को दिया था। उसने सबको माफ़ कर दिया परंतु स्वयं को वह मरते दम तक क्षमा नहीं कर पाई थी। इसलिए शरत को लगता था कि दीदी ने स्वयं को सज्ञा दी थी।

प्रश्न 10.
“पिता का यह अधूरापन भी उसकी प्रेरक शक्ति बन गया।'” लेखक ने ऐसा क्यों कहा ?
उत्तर :
शरत के पिता मोतीलाल यायावर प्रकृति के स्वपदर्शी व्यक्ति थे। उन्हें परिवार और जीविका का कोई भी धंधा कभी बाँधकर नहीं रख सका था। मोतीलाल को कहानी, उपन्यास, कविता, नाएक सभी कुछ लिखने का शौक था। उनकी रचना का आरंभ जितना महत्वपूर्ण होता था अंत उतना ही महत्चहीन होता था। उन्होंने अंत की अनिवार्यता को कभी भी स्वीकार नहीं किया था। आरंभ की रचना को बीच में ही छोड़कर नाई रचना आरंभ कर देते थे। ऐसा लगता था, जैसे उनका आदर्श बहुत ऊँचा था या फिर उनमें अंत तक पहुँचने की क्षमता नहीं थी। वह कभी कोई भी रचना पूरी नहीं कर सके थे। उनके सभी कार्य अधूरे रह जाते थे।

शरत ने बड़े होकर उनकी लिखी हुई अधूरी कहानियाँ पिता की टूटी हुई अलमारी से खोज निकाली थी। उसने उत्सुक होकर अपने पिता द्वारा लिखी कहानियों को पढ़ना शुरू किया तो अंत तक पहुँचने का कोई मार्ग उन रचनाओं में नहीं मिला था। जिससे वह परेशान हो उठता था कि बाबा ने इन कहानियों को पूरा क्यों नहीं किया ? यदि पूरा करते तो कहानी का अंत कैसा होता ? यह सोच-सोचकर वह कहानियों के अंत सोचता था। इसी अंत की खोज ने और आसपास के वातावरण को जानने की इच्छा ने शरत को कथाशिल्पी शरत्चंद्र बना दिया। इसी कारण लेखक ने कहा, “पिता का यह अधूरापन भी उसकी प्रेरक शक्ति बन गया।”

प्रश्न 11.
नीचे शरतचंद्र के चरित्र की कुछ विशेषताएँ दी गई हैं, पाठ के आधार पर इन्हें सिद्ध कीजिए-संवेदनशील, प्रतिभाशाली, दुस्साहसी, प्रकृतिप्रेमी, परोपकारी, नृढ़-निश्चयी।
उत्तर :
कथाशिल्पी शरतचंद्र के चरित्र का वर्णन करना सरल नहीं है। लेखक के अनुसार पाट के आधार पर हम उनके चरित्र की कुछ विशेषताओं का वर्णन कर रहे हैं। वे निम्न प्रकार से हैं –
(i) संवेदनशील – कथाशिल्पी शरत्चंद्र अपरिसीम संवेदनशील थे। यह संवेदना उन्हें अपने पिता से विरासत में मिली थी। वे किसी को भी दु:खी देखते तो स्वयं दुःखी हो उठते थे। उसके दुख को दूर करने का उपाय करते थे। उनके लिए कोई भी छोट-बड़ा नहीं था। सबका दु:ख उनके लिए समान था। शास्त्रों के विरूद्ध चलने पर उन्हें नरक में जाना भी मंजूर था, परंतु किसी को दु:खी देखना नहीं। उनकी इन्हीं संवेदनाओं के सूक्ष विवेचन की तीत्र शकित ने उन्हें महान कहानीकार बना दिया।

(ii) प्रतिभाशाली – शरतचंद्र में प्रतिभा कूट-कूटकर भरी हुई थी। ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं था, जिस पर उनका अधिकार नहीं था। भागलपुर नाना के यहाँ उन्हें अपनी पढ़ाई से आगे वाली कक्षा में दाखिल करवा दिया था। उन्होंने अपनी तीक्ष्ण बुद्धि से कुछ ही दिनों में उस कक्षा के सारे विषय समझ लिए थे और उनकी गिनती अच्छे बच्यों में होने लगी थी। छात्रवृत्ति की शिक्षा पास करने पर उन्हें अंग्रेज्री स्कूल में दाखिल करवाया गया। वहाँ भी उसकी गिनती अच्छे विद्यार्थियों में होने लगी थी।

गुरुजनों के मध्य उसका विशेष स्थान बन गया था। नाना के यहाँ कई प्रकार के कार्य करना मना था। वह उन कायों को इस प्रकार करता था जिसका किसी को पता भी नहीं चलता था। उसने अपना शरीर बनाने के लिए मामा से छुपकर अखाड़ा बना रखा था। कहानी बनाकर सुनाने की प्रतिभा जन्मजात थी। उसकी इस प्रतिभा को अतुल चंद्र ने पहचाना और उसे लिखने के लिए प्रेरित किया।

(iii) दुस्साहसी – बचपन का शरत बड़ा दुस्साहसी था। उसे वह सभी कार्य करने पसंद् थे जिन्हें करने के लिए मना किया जाता था। अकेले ही डोंगी लेकर देवानंदपुर से कृष्पपुर अखाड़े में चला जाता था। बाग से सबके लिए फल चुराकर लाना और गंगा घाट से मछली पकड़ने में उसे डर नहीं लगता था। छोटा-सा बालक शरत अकेले ही नयन बागदी के पीछे-पीछे जंगल पार करके उसके साथ बसंतपुर पहुँच गया था। उसमें डर का नाम भी नहीं था। वह अपने दुस्साहसी स्वभाव के कारण गरीब लोगों में प्रिय था। उसके इसी स्वभाव के कारण लोगों में यह बात फैल गई थी कि वह चोर-ड्डाकुओं के दल में चला गया है।

(iv) प्रकृति-प्रेमी – शरत्चंद्र को अपने पिता की तरह प्रकृति से बहुत प्यार था। उसने भागलपुर में अपना एक उपवन बना रखा था जिसमें तरह-तरह के फूल लगा रखे थे तथा उसमें छोटा-सा ताल बना रखा था जिस पर टूटा हुआ शीशा लगा हुआ था। उस शीशे पर मिट्टी पोत रखी थी। जब कोई उपवन देखने आता तो वह शीशे से मिट्टी हटाकर उसको आश्चर्यचकित कर देता था। बालक शरत् ने अपने लिए एक तपोवन बना रखा था। गंगा के पास नीम और करौँदे के पेड़ों और नाना प्रकार की लताओं से ढका एक स्थान था जहाँ सूर्य की रोशनी छन-छन कर आती रही थी जिससे स्निभ हरित प्रकाश चारों ओर फैल रहा था। वहाँ मंद-मंद शीतल पवन बहती थी। वहाँ जाकर शरत को बैठना अच्छा लगता था। इन बातों से पता चलता है कि शरत् बचपन से ही प्रकृति-प्रेमी था।

(v) परोपकारी – शरतचंद्र स्वभाव से परोपकारी था। उन्हें बचपन से ही दूसरों के लिए कार्य करना और अपना धन दूसरों का देना अच्छा लगता था। वह खेल में जितना भी सामान जीतता था वह सभी बच्चों में बाँट देता था। देवानंदपुर में वह गरीब लोगों में राबिनहुड की तरह प्रसिद्ध था। वह लोगों के बागों से फल चुराकर और ताल से मछलियाँ पकड़कर गरीब लोगों में बाँट देता था। वह गरीब बीमार व्यक्ति के इलाज के लिए भी सदा तैयार रहता था। अँधेरी रातों में मीलों दूर शहर से डॉक्टर लाना, दवा लाना जैसे कार्य करने में पौछे नहीं हटता था। जहाँ उसके दुस्साहसी स्वभाव से लोग दुखी थे, वहीं कुछ लोग उसके परोपकारी स्वभाव से प्रसन्न भी।

(vi) दुढ़-निश्चयी – शरत् दृढ़-निश्चयी था। बालक शरत जिस कार्य को करने का निश्चय कर लेता था, उसे अवश्य पूरा करता था। भागलपुर के स्कूल में दाखिल होने से पहले देवानंदपुर में उसने केवल ‘बोधोदय’ तक की शिक्षा प्राप्त की थी। भागलपुर में उसे साहित्य पढ़ना पड़ा जिससे वह क्लास में पीछे रह गया था। उसे क्लास में पीछे रहना अच्छा नहीं लगा। उसने क्लास में अच्छे विद्यार्थियों की गिनती में आने का दृढ़ निश्चय किया और परिश्रमपूर्वक पढ़ने लगा, जिस कारण उसकी गिनती अच्छे बच्चों में होने लगी। लेखक के अनुसार बालक शरत गुणों का खज्ञाना था। अपने इन्हीं गुणों के कारण वह आगे चलकर एक महान कथाशिल्पी बना।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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CBSE Class 11 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

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CBSE Class 11 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

विद्यार्थी को किसी अपठित गद्यांश को पढ़कर उसपर आधारित प्रश्नों का उत्तर देना होता है। इन प्रश्नों का उत्तर देने से पूर्व अपठित को अच्छी प्रकार से पढ़कर समझ लेना चाहिए। जिन प्रश्नों के उत्तर पूछे गए हैं वे उसी में ही छिपे रहते हैं। उन उत्तरों को अपने शब्दों में लिखना चाहिए। अपठित गद्यांश के अंतर्गत यदि कोई कठिन शब्द, वाक्य, उक्तियाँ आदि दिए गए हों, जो आप को समझ न आ रहे हों, तो बिना घबराए उनके अर्थ को अवतरण के भावों से संबंधित करके सोचना चाहिए। सावधानीपूर्वक सोचने से आपको दिए गए सभी प्रश्नों के उत्तर अवतरण में अवश्य मिल जाएँगे। अपठित गद्यांश का शीर्षक भी पूछा जाता है। शीर्षक अपठित में व्यक्त भावों के अनुरूप होना चाहिए। शीर्षक कम-से-कम शब्दों में लिखना चाहिए। शीर्षक से अपठित का मूल-भाव भी स्पष्ट होना चाहिए। शीर्षक संक्षिप्त, आकर्षक और सार्थक होना चाहिए। अपठित गद्यांश को हल करते समय आपको जिन आवश्यक तत्वों की आवश्यकता होगी, वे हैं-

  • एकाग्रता
  • मूलभावों की स्पष्टता
  • विवेचन-क्षमता
  • अभिव्यक्ति की स्पष्टता
  • विषय की स्पष्टता

अपठित गद्यांश के महत्वपूर्ण उदाहरण –

निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

1. काशी में रहते समय भारती बहुधा नौकारूढ़ होकर गंगा की प्राकृतिक छटा देखा करते थे। भारती के अंतर्मन पर इसका भी गहरा प्रभाव पड़ा था। काशीवास का इनके बाद के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। इसने ही उनको व्यापार दृष्टि दी थी, अन्यथा भारती संकुचित दायरे में सीमित रहकर आँचलिक बन जाते।

भारती को अध्ययन के प्रति, विशेषकर प्राचीन-काव्य-साहित्य के अध्ययन में विशेष रुचि थी। इस संबंध में एक घटना उल्लेखनीय है। क्रिसमस तथा प्रथम जनवरी आदि के त्योहार मनाने के लिए एट्टयपुरम के राजा अपने मित्रों के साथ एक बार मद्रास आए। उनके साथ भारती भी थे। घर से चलते समय भारती की पत्नी ने राजा द्वारा दिए गए पुरस्कार से अच्छी साड़ियाँ और कपड़े लाने की प्रार्थना की थी। मद्रास से लौटते समय भारती अपने साथ दो गाड़ी सामान भरकर लाए। दूर से देखकर चेल्लमा अत्यधिक आनंदित हुई। पास आने पर जो देखा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। दोनों गाड़ियाँ प्राचीन तमिल साहित्य से संबंधित पुस्तकों से भरी थीं। भारती ने पत्नी के कुछ न कहने पर भी उनकी आंतरिक वेदना को भाँपकर कहा, “‘मुझे खेद है कि तेरे लिए केवल एक ही साड़ी ला सका। ये साहित्यिक कृतियाँ ही वास्तविक स्थायी संपत्ति हैं, शेष सब क्षणभंगुर हैं।” अपनी व्यथा को दबाते हुए चेल्लमा ने भी इस कथन का समर्थन किया, क्योंकि पति की प्रसन्नता ही उनकी प्रसन्नता थी।

सन 1905 ई० के बंग-भंग आंदोलन के बाद तीन ऐतिहासिक घटनाएँ घटीं जिनका भारती के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। पहला लाला लाजपतराय को क्रांतिकारी घोषित करके सरकार ने उन्हें देश-निकाला दिया। दूसरा गरम दल और नरम दल में आपसी मतभेद हो जाने के कारण ‘सूरत कांग्रेस’ का अधिवेशन बिना किसी निर्णय के संघर्षमय वातावरण में समाप्त हो गया। तीसरा तमिलनाडु के देशभक्त व० उ० चिदंबरम् पिल्ले को अंग्रेजी सरकार द्वारा कठोर कारावास की सज़ा दी गई। इन घटनाओं से क्षुब्ध होकर भारती बंगाल के क्रांतिकारी नेता विपिनचंद्र पाल, सुंद्रनाथ बनर्जी आदि को मद्रास में आमंत्रित करके विशाल जनसभाएँ करने लगे।

प्रश्न 1.
भारती को किसमें अधिक रुच्चि थी ?
(क) अर्थशास्त्र में
(ख) काव्य-साहित्य के अध्ययन में
(ग) लेखन में
(घ) योग में
उत्तर :
(ख) काव्य-साहित्य के अध्ययन में

प्रश्न 2.
भारती मद्रास से दो गाड़ियाँ किससे भरकर लाए थे ?
(क) सोना
(ख) चाँदी
(ग) अनाज
(घ) प्राचीन तमिल साहित्य से संबंधित पुस्तकें
उत्तर :
(ख) प्राचीन तमिल साहित्य से संबंधित पुस्तकें

प्रश्न 3.
भारती नौका पर बैठकर क्या देखा करते थे ?
(क) मछलियाँ
(ख) हंस
(ग) प्राकृतिक घटा
(घ) कौए
उत्तर :
(ग) प्राकृतिक घटा

प्रश्न 4.
भारती के जीवन को कहाँ के वास ने गहरा प्रभावित किया था ?
(क) मथुरावास
(ख) अयोध्यावास
(ग) वृंदावनवास
(घ) काशीवास
उत्तर :
(घ) काशीवास

प्रश्न 5.
भारती की पत्नी ने पति से क्या लाने के लिए कहा था ?
(क) फल
(ख) अच्छी साड़ियाँ और कपड़े
(ग) सब्तित्रियाँ
(घ) राशन
उत्तर :
(ख) अच्छी साड़ियाँ और कपड़े

प्रश्न 6.
गंगा में नौका-विहार ने भारती पर क्या प्रभाव डाला था ?
उत्तर :
भारती काशी में गंगा नदी में प्राय: नौका विहार किया करते थे, जिसने उन्हें व्यापक दृष्टि प्रदान की थी। ऐसा न होने की स्थिति में संभवत: वे संकुचित दायरे में सीमित रह कर आँचलिक बन जाते।

प्रश्न 7.
भारती की दृष्टि में वास्तविक स्थाई संपत्ति क्या थी ?
उत्तर :
भारती की दृष्टि में वास्तविक स्थायी संपत्ति तो साहित्यिक कृतियाँ ही थीं। शेष सब कुछ तो क्षण भंगुर था; व्यर्थ था।

प्रश्न 8.
देश-निकाला में कौन-सा समास है?
उत्तर :
अपादान तत्पुरुष समास

प्रश्न 9.
‘संबंधित’ में किस प्रत्यय का प्रयोग किया गया है ?
उत्तर :
‘इत’ प्रत्यय।

प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उच्चित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
महाकवि भारती।

2. ‘उत्साह की गिनती अच्छे गुणों में होती है। किसी भाव के अच्छे या बुरे होने का निश्चय अधिकतर उसकी प्रवृत्ति के शुभ या अशुभ परिणाम के विचार से होता है। वही उत्साह जो कर्तव्य कमों के प्रति इतना सुंदर दिखाई पड़ता है। अकर्तव्य कमों की ओर होने पर वैसा श्लाघ्य नहीं प्रतीत होता। आत्म-रक्षा, पर-रक्षा, देश-रक्षा आदि के निमित्त साहस की जो उमंग देखी जाती है, उसके सौददर्य तक परपीड़न, डकैती आदि कमों का साहस कभी नहीं पहुँच सकता। यह बात होते हुए भी विशुद्ध उत्साह या साहस की प्रशंसा संसार में थोड़ी-बहुत होती ही है। अत्याचारियों या डाकुओं के शौर्य और साहस की कथाएँ भी लोग तारीफ़ करते हुए सुनते हैं।

अब तक उत्साह का प्रधान रूप ही हमारे सामने रहा, जिसमें साहस का पूरा योग रहता है। पर कर्ममात्र के संपादन में जो तत्परतापूर्ण आनंद देखा जाता है यह भी उत्साह ही कहा जाता है। सब कामों में साहस अपेक्षित नहीं होता, पर थोड़ा-बहुत आराम, विश्राम, सुभीते इत्यादि का त्याग सबमें करना पड़ता है और कुछ नहीं तो उठकर बैठना, खड़ा होना या दस-पाँच कदम चलना ही पड़ता है। जब तक आनंद का लगाव किसी क्रिया, व्यापार या उसकी भावना के साथ नहीं दिखाई पड़ता तब तक उसे ‘उत्साह’ की संज्ञा प्राप्त नहीं होती। यदि किसी प्रिय मित्र के आने का समाचार पाकर हम चुपचाप ज्यों-के-त्यों आनंदित होकर बैठे रह जाएँ या थोड़ा हँस भी दें तो यह हमारा उत्साह नहीं कहा जाएगा।

हमारा उत्साह तभी कहा जाएगा जब हम अपने मित्र का आगमन सुनते ही उठ खड़े होंगे, उससे मिलने के लिए दौड़ पड़ेंगे और उसके ठहरने आदि के प्रबंध में प्रसन्न-मुख इधर-उधर आते-जाते दिखाई देंगे। प्रयत्न और कर्म-संकल्प उत्साह नामक आनंद के नित्य लक्षण हैं।

प्रत्येक कर्म में थोड़ा या बहुत बुद्धि का योग भी रहता है। कुछ कर्मों में तो बुद्धि की तत्परता और शरीर की तत्परता दोनों बराबर साथ-साथ चलती है। उत्साह की उमंग जिस प्रकार हाथ-पैर चलवाती है उसी प्रकार बुद्धि से भी काम कराती है। ऐसे उत्साह वाले को कर्मवीर कहना चाहिए या बुद्धिवीर-यह प्रश्न मुद्राराक्षस-नाटक बहुत अच्छी तरह हमारे सामने लाता है। चाणक्य और राक्षस के बीच जो चोटें चली हैं वे नीति की है-शस्त्र की नहीं।

प्रश्न 1.
उत्साह में सबसे अधिक योगदान किसका रहता है ?
(क) साहस का
(ख) धन का
(ग) बुव्धि का
(घ) चरित्र का
उत्तर :
(क) साहस का

प्रश्न 2.
प्रत्येक कर्म में किस का योग रहता है?
(क) साहस का
(ख) बुद्धि का
(ग) धन का
(घ) क्रोध का
उत्तर :
(ख) बुद्धि का

प्रश्न 3.
चाणक्य और राक्षस के बीच किस प्रकार की चोटें चली थी ?
(क) मन की
(ख) बुद्धि की
(ग) नीति की
(घ) अनीति की
उत्तर :
(ग) नीति की

प्रश्न 4.
उत्साह की गिनती किस प्रकार के गुणों में होती है?
(क) तामसिक गुणों में
(ख) साहसिक गुणों में
(ग) बुरे गुणों में
(घ) अच्छे गुणों में
उत्तर :
(घ) अच्छे गुणों में

प्रश्न 5.
लोग क्या करते हुए अत्याचारियों की कथाएँ सुनते हैं?
(क) तारीफ करते हुए
(ख) निंदा करते हुए
(ग) दुख जताते हुए
(घ) प्रसन्नता जताते हुए
उत्तर :
(क) तारीफ़ करते हुए

प्रश्न 6.
किसी भाव का अच्छा या बुरा होना किस पर निर्भर करता है?
उत्तर :
किसी भाव का अच्छा या बुरा होना उसकी प्रवृत्ति के शुभ या अशुभ परिणाम के विचार से होता है, जो उत्साह कर्त्तव्यों-कर्मों के प्रति सुंदर दिखाई देता है वही अकत्त्तव्य के कारण वैसा प्रतीत नहीं होता।

प्रश्न 7.
आनंद को कब उत्साह नहीं माना जाता ?
उत्तर :
जब तक आनंद का लगाव किसी क्रिया, व्यापार या उसकी भावना के साथ नहीं होता तब तक उसे उत्साह नहीं माना जाता।

प्रश्न 8.
प्रयत्न और कर्म-संकल्प क्या हैं ?
उत्तर :
प्रयत्न और कर्म-संकल्प उत्साह नामक आनंद के नित्य लक्षण हैं।

प्रश्न 9.
‘विशुद्ध’ में से उपसर्ग छाँटिए।
उत्तर :
‘वि’ उपसर्ग।

प्रश्न 10.
अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
उत्साह के प्रयोजन।

3. हिंदी की वर्तमान दशा पर प्रकाश डालने से पूर्व मे इसके उद्भव और विकास से आपका परिचय कराना चाहती हूं। हिंदी के उद्भव की प्रक्रिया बहुत प्राचीन है। संस्कृत दो रूपों में बँटी-वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत। संस्कृत के लौकिक रूप से प्राकृत भाषा आई। प्राकृत से अपभ्रंश तथा अपश्रंश से शौरसैनी भाषा उत्पन्न हुई जिससे आज प्रयुक्त होनेवाली पश्चिमी हिंदी भाषा का आविर्भाव हुआ। तुलसीदास और जायसी ने जिस अवधी भाषा का प्रयोग किया वह अर्ध मागधी प्राकृत से विकसित हुई। सूरदास, नंददास और अष्टछाप के कवियों ने जिस ब्रज भाषा में काव्य-रचना की वह शौरसैनी अथवा नगर अपभ्रंश से विकसित हुई।

भौगोलिक दृष्टि से खड़ी बोली उस बोली को कहते हैं जो रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, देहरादून, अंबाला और पटियाला के पूर्वी भागों में बोली जाती है। चौदहवीं शताब्दी में सर्वप्रथम अमीर खुसरो ने इसे “‘भारत के मुसलमानों की भाषा” कहकर इसमें काव्य-रचना की थी। तत्पश्चात् भारतेंदु हरिश्चंद्र, महाबीर प्रसाद द्विवेदी, मैथिलीशरण गुप्त, प्रसाद, निराला, पंत आदि ने इसे अपने साहित्य में प्रयुक्त किया और आज देश के लाखों साहित्यकार इसमें साहित्य रचना कर रहे हैं। भाषा विज्ञान की दृष्टि से पश्चिमी हिंदी को ही हिंदी कहा जाता है। यह उस भू-भाग की भाषा थी जिसे प्रार्चीन काल में अंतर्वेद कहते थे।

इस भाषा में अरबी-फारसी के शब्दों को भी स्वीकार किया गया। इस भाषा का मानक रूप सीमित करने के लिए पारिभाषिक शब्दावली के कई कोश तैयार किए गए। आज इसे खड़ी बोली हिंदी कहते हैं। इसमें संस्कृत, उर्दू, अरबी, फारसी और अंग्रेज्जी के शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इस पश्चिमी हिंदी भाषा में ब्रज भाषा, कन्नौजी, बाँगरू, बुंदेली आदि अनेक उपभाषाएँ हैं और यह संसार के कुल 12 भाषा परिवारों में से “भारोपीय परिवार” की भाषा है।

यह सरल, सुबोध एवं नवीन क्षमता से युक्त है। इसकी लिपि वैज्ञानिक एवं सरल है तथा देश की भावनात्मक एकता बनाए रखने की अदम्य क्षमता से युक्त है। देश की आज्ञादी से पूर्व महात्मा गांधी ने उद्घोष किया था कि “राष्ट्रभाषा हिंदी के बिना सारा राष्ट्र गूँगा है।” देश की स्वतंत्रता प्राप्त होते ही जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि “हिंदी का विकास देश का विकास है”। राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन का मत था कि हिंदी ही देश की एकता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।”

तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने हिंदी को विश्व की महानतम भाषा कहा है। डॉ॰ चटर्जी ने इसे “सत्य, संस्कृति एवं भारत की अखंडता का प्रतीक” माना है। हिंदी को लेकर और भी कई बड़ी-बड़ी बातें कही गई हैं। लेकिन आज भी व्यवहार के स्तर पर यह राष्ट्रभाषा होते हुए भी दासी का जीवन जी रही है। हिंदी के नाम पर रोज्जी-रोटी कमाने वाले लोग आम व्यवहार में इसका प्रयोग करना सामाजिक हीनता का प्रतीक और अपमानजनक समझते हैं। अनेक लोग इस गुलाम मानसिकता के स्पष्ट उदाहरण हैं।

प्रश्न 1.
हिंदी के प्रति अनेक लोगों की मानसिकता कैसी है ?
(क) प्रशंसनीय
(ख) अशोभनीय और निंदनीय
(ग) गर्वित
(घ) सम्मानजनक
उत्तर :
(ख) अशोभनीय और निंदनीय

प्रश्न 2.
प्राकृत भाषा किससे बनी थी?
(क) तमिल से
(ख) तेलुगु से
(ग) संस्कृत के लौकिक रूप से
(घ) अवधी से
उत्तर :
(ग) संस्कृत के लौकिक रूप से

प्रश्न 3.
अष्टछाप के दो कवियों के नाम चुनिए-
(क) सूरदास और नंबदास
(ख) तुलसी और जायसी
(ग) कबीर और रहीम
(घ) अमीर खुसरो और वृंद
उत्तर :
(क) सूरदास और नंददास

प्रश्न 4.
अमीर खुसरो ने खड़ी बोली को क्या कहा था ?
(क) भारत के मुसलमानों की भाषा
(ख) भारत के हिंदुओं की भाषा
(ग) दक्षिण भारतीयों की भाषा
(घ) पहाड़ियों की भाषा
उत्तर :
(क) भारत के मुसलमानों की भाषा

प्रश्न 5.
तुलसी और जायसी की अवधी किससे विकसित हुई थी ?
(क) ब्रज से
(ख) अर्ध मागधी प्राकृत से
(ग) हिंदी से
(घ) संस्कृत से
उत्तर :
(ख) अर्ध मागधी प्राकृत से

प्रश्न 6.
हिंदी के उद्भव से पहले संस्कृत कितने भागों में बँट गई थी?
उत्तर :
हिंदी के उद्भव से पहले संस्कृत भाषा वैदिक संस्कृत, लॉकिक संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भागों में बँट गई थी।

प्रश्न 7.
सर्वप्रथम हिंदी में काव्य-रचना किसने और कब की थी?
उत्तर :
हिंदी में सर्वप्रथम अमीर खुसरो ने चौदहवीं शताब्दी में काव्य-रचना की थी।

प्रश्न 8.
‘अदम्य’ में किस उपसर्ग का प्रयोग किया गया है ?
उत्तर :
‘अ’ उपसर्ग।

प्रश्न 9.
‘स्वतंत्रता’ में किस प्रत्यय का प्रयोग है?
उत्तर :
‘ता’ प्रत्यय।

प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
मेरे देश की भाषा-हिंदी।

4. स्वाधीनता-संग्राम में संलग्न रहने के साथ-साथ भारती साहित्य-सृजन में भी लगे रहे व वे बहुमुखी प्रतिभासंपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने खंडकाव्य, मुक्तक, गद्यगीत, निबंध, कहानियाँ आदि अनेक विधाओं में श्रेष्ठ रचनाएँ की। इन सभी रचनाओं में उनका प्रगतिशील और राष्ट्रीय दृष्टिकोण झलकता है। उनके खंडकाव्यों में पांचालीशपथम्, कंणन पाट्दु (कान्हा के गीत) और कुयिल पाद्यु (कोयल के गीत) विशेष प्रसिद्ध हैं। तमिल में गद्यगीत लिखने का श्रीगणेश भी भारती ने ही किया। उन्होंने लगभग 400 गद्यगीत लिखे हैं। वे एक श्रेष्ठ पत्रकार भी थे। स्वदेशमित्रन के संपादक की प्रार्थना पर भारती ने अविरल रूप से लेख, कविता, कहानी आदि लिखे। स्वतंत्रता-आंदोलन के पचास वर्षों के इतिहास को भी भारती ने धारावाहिक रूप से स्वदेशमित्रन में लिखा था।

भारती की संपूर्ण रचनाएँ तमिलनाडु सरकार द्वारा भारती ग्रंथावली के नाम से तीन भागों में प्रकाशित हो चुकी हैं। इन सभी रचनाओं में भारतीय स्वतंत्रता और राष्ट्रीयता का स्वर ओजस्वी भाषा में मुखरित हुआ है। ब्रिटिश दासता के विरूद्ध संघर्ष, राष्ट्रीय एकता, स्वतंत्र भारत का अभ्युदय, सामाजिक अन्याय, शोषण और विषमता को दूर कर समतामूलक समाज की स्थापना, भारतीय संस्कृति की गरिमा आदि भावों को उन्होंने अपनी सशक्त वाणी में व्यक्त किया है, इसलिए उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की संज्ञा से विभूषित किया जाता है।

कहा जाता है कि एक बार वे तिरुवनंतपुरम में अजायबघर देखने गए। विभिन्न प्रकार के पशुओं को देखते हुए जब वे सिंह के समक्ष पहुँचे, तो अकड़कर खड़े हो गए और कहने लगे “सिंह राजा! देखो तुम्हारे सामने कविराजा खड़ा है। तुम अपने समान शारीरिक बल इसे दो। भीतरबाहर एक समान अपने स्वभाव को भी अगर तुम दे सको तो अच्छा होगा।” ऐसी प्रभावपूर्ण घटनाएँ भारती के पग-पग के जीवन में भरी पड़ी हैं। भारती तिरुल्लिक्केणी के मंदिर नित्यप्रति जाते थे और वहाँ के हाथी को गन्ना, नारियल आदि खिलाते थे।

एक दिन की घटना है कि हाथी मतवाला हो गया था। लोगों द्वारा उसके पागल होने की बात जानकर और बार-बार मना करने पर भी भारती उसे फल खिलाने के लिए चले गए। पागल हाथी के धक्का मार देने के कारण उनकी हड्डियाँ टूट गई। सौभाग्यवश उनके मित्र ‘कुवलै’ वहाँ अचानक आ गए। वे मूर्च्छित अवस्था में उन्हें चिकित्सालय ले गए। जब भारती चिकित्सालय में थे, उन्हीं दिनों अली बंधु (मुहम्मद अली और शौकत अली) मद्रास आए थे। उनके साथ महात्मा गांधी जी भी थे। भारती को देखने के लिए ये लोग उनके यहाँ गए। उनसे मिलकर भारती को बड़ी प्रसन्नता हुई।

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ भारती क्या करने लगे थे?
(क) व्यवसाय का
(ख) अध्यापन
(ग) साहित्य-सुजन
(घ) काव्य-रचना
उत्तर :
(ग) साहित्य-सृजन

प्रश्न 2.
भारती कैसे साहित्यकार थे?
(क) अंतर्मुखी
(ख) बहुमुखी प्रतिभासंपन्न
(ग) श्रेष्ठतम साहित्यकार
(घ) महान साहित्यकार
उत्तर :
(ख) बहुमुखी प्रतिभासंपन्न

प्रश्न 3.
तमिल में गद्य-गीत लिखना किसने प्रारंभ किया था ?
(क) भारती ने
(ख) फणीश्वरनाथ रेणु’ ने
(ग) चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने
(घ) केदारनाथ सिंह ने
उत्तर :
(क) भारती ने

प्रश्न 4.
भारती ग्रंथावली के कितने भाग हैं?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर :
(ख) तीन

प्रश्न 5.
अली बंधुओं के नाम चुनिए-
(क) मुहम्मद अली और शौकत अली
(ख) मुख्तार अली और जफ्फार अली
(ग) हाकिम अली और अहमद अली
(घ) अमज़द अली और रहमान अली
उत्तर :
(क) मुहम्मद अली और शौकत अली।

प्रश्न 6.
भारती ने किन विधाओं में साहित्य-रचना की थी?
उत्तर :
भारती ने खंड-काव्य, मुक्तक, गद्यगीत, निबंध, कहानियाँ आदि की रचना करने के साथ पत्रकारिता की थी।

प्रश्न 7.
भारती ने धारावाहिक रूप में किसे लिखा था ?
उत्तर :
भारती ने ‘स्वदेश मित्रन’ में स्वतंत्रता-आंदोलन के पचास वर्षों के इतिहास को धारावाहिक के रूप में लिखा था।

प्रश्न 8.
‘नित्यप्रति’ में प्रयुक्त समास का नाम लिखिए।
उत्तर :
‘अव्ययीभाव’ समास।

प्रश्न 9.
‘स्वतंत्रता’ में से प्रत्यय छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
‘ता’ प्रत्यय।

प्रश्न 10.
अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
भारती की महानता।

5. कर्म के मार्ग पर आनंदपूर्वक चलता हुआ उत्साही मनुष्य यदि अंतिम फल तक न पहुँचे तो भी उसकी दशा कर्म न करने वाले की अपेक्षा अधिकतर अवस्थाओं में अच्छी रहेगी, क्योंकि एक तो कर्मकाल में उसका जीवन बीता, वह संतोष या आनंद में बीता, उसके उपरांत फल की अप्राप्ति पर भी उसे यह पछतावा न रहा कि मैने प्रयत्न नहीं किया। फल पहले से कोई बना-बनाया पदार्थ नहीं होता। अनुकूलन प्रयत्न-कर्म के अनुसार, उसके एक-एक अंग की योजना होती है। बुद्धि द्वारा पूर्ण रूप से निश्चित की हुई व्यापार परंपरा का नाम ही प्रयत्न है। किसी मनुष्य के घर का कोई प्राणी बीमार है।

वह वैद्यों के यहाँ से जब तक औषधि ला-ला कर रोगी को देता जाता है और इधर-उधर दौड़ धूप करता जाता है तब तक उसके चित्त में जो संतोष रहता है-प्रत्येक नए उपचार के साथ जो आनंद का उन्मेष होता रहता है यह उसे कदापि न प्राप्त होता, यदि वह रोता हुआ बैठा रहता। प्रयत्न की अवस्था में उसके जीवन का जितना अंश संतोष, आशा और उत्साह में बीवा, अप्रयत्न की दशा में उतना ही अंश केवल शोक और दु:ख में कटता। इसके अतिरिक्त रोगी के न अच्छे होने की दशा में भी वह आत्मग्लानि के उस कठोर दु:ख से बचा रहेगा जो उसे जीवन भर यह सोच-सोचकर होता कि मैंने पूरा प्रयत्न नहीं किया।

कर्म में आनंद अनुभव करने वालों ही का नाम कर्मण्य है। धर्म और उदारता के उच्च कर्मों के विधान में ही एक ऐसा दिव्य आनंद भरा रहता है कि कर्ता को वे कर्म ही फलस्वरूप लगते हैं। अत्याचार का दमन और क्लेश का शमन करते हुए चित्त में जो उल्लास और पुष्टि होती है वही लोकोपकारी कर्म-वीर का सच्चा सुख है। उसके लिए सुख तब तक के लिए रुका नहीं रहता जब तक कि फल प्राप्त न हो जाए, बल्कि उसी समय से थोड़ा-थोड़ा करके मिलने लगता है जब से वह कर्म की ओर हाथ बढ़ाता है।

कभी-कभी आनंद का मूल विषय तो कुछ और रहता है, पर उस आनंद के कारण एक ऐसी स्कूर्ति उत्पन्न होती है जो बहुत-से कामों की ओर हर्ष के सांथ अग्रसर रहती है। इसी प्रसन्नता और तत्परता को देख लोग कहते हैं कि वे काम बड़े उत्साह से किए जा रहे हैं। यदि किसी मनुष्य को बहुत-सा लाभ हो जाता है या उसकी कोई बड़ी भारी कामना पूर्ण हो जाती है तो जो काम उसके सामने आते हैं उन सबको वह बड़े हर्ष और तत्परता के साथ करता है। उसके इस हर्ष और तत्परता को भी लोग उत्साह ही कहते हैं।

इसी प्रकार किसी उत्तम फल या सुख-प्राप्ति की आशा या निश्चय से उत्पन्न आनंद, फलोन्युख प्रयत्नों के अतिरिक्त और दूसरे व्यापारों के साथ संलग्न होकर, उत्साह के रूप में दिखाई पड़ता है। यदि हम किसी ऐसे उद्योग में लगे हैं, जिससे आगे चलकर हमें बहुत लाभ या सुख की आशा है तो हम उस उद्योग को तो उत्साह के साथ करते ही हैं, अन्य कार्यों में भी प्राय: अपना उत्साह दिखा देते हैं।

यह बात उत्साह में नहीं, अन्य मनोविकारों में भी बराबर पाई जाती है। यदि हम किसी बात पर क्कुद्ध बैठे हैं और इसी बीच में कोई दूसरा आकर हमसे कोई बात सीधी तरह भी पूछता है तो भी हम उस पर झुझला उठते हैं। इस झुझलाहट का न तो कोई निर्दिष्ट कारण होता है, न उद्देश्य। यह केवल क्रोध की स्थिति के व्याघात को रोकने की क्रिया है, क्रोध की रक्षा का प्रयत्न है। इस झुंझलाहट द्वारा हम यह प्रकट करते हैं कि हम क्रोध में हैं और क्रोध में ही रहना चाहते हैं। क्रोध को बनाए रखने के लिए हम उन बातों से भी क्रोध ही संचित करते हैं जिनसे दूसरी अवस्था में हम विपरीत भाव प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार यदि हमारा चित्त किसी विषय में उत्साहित रहता है तो हम अन्य विषयों में भी अपना उत्साह दिखा देते हैं।

प्रश्न 1.
मनुष्य को कौन कर्म की ओर अग्रसर कराती है ?
(क) आलस्य
(ख) ताज्तगी
(ग) बुद्धि
(घ) स्फूर्ति
उत्तर :
(ग) स्फूर्ति

प्रश्न 2.
उत्साही मनुष्य किस मार्ग पर चलता है?
(क) कर्म के मार्ग पर
(ख) धर्म के मार्ग पर
(ग) सत्य के मार्ग पर
(घ) असत्य के मार्ग पर
उत्तर :
(क) कर्म के मार्ग पर

प्रश्न 3.
अप्रयत्न की दशा में जीवन कैसे कटता है?
(क) खुशी में
(ख) उल्लास में
(ग) मज़े में
(घ) शोक और दुख में
उत्तर :
(घ) शोक और दु:ख में

प्रश्न 4.
दिव्य आनंद किसमें भरा रहता है?
(क) अधर्म के कार्यों में
(ख) व्यवसाय में
(ग) धर्म और उदारता के उच्च कार्यों में
(घ) देश के कार्यों में
उत्तर :
(ग) धर्म और उदारता के उच्च कार्यों में

प्रश्न 5.
क्रोध क्या है ?
(क) मनोविकार
(ख) कर्मण्यता
(ग) अकर्मण्यता
(घ) मानसिकता शांति
उत्तर :
(क) मनोविकार

प्रश्न 6.
फल क्या है ?
उत्तर :
फल कोई पहले से बना बनाया पदार्थ नहीं होता। वह बुद्धि द्वारा सुविचारित और कर्मों का परिणाम है जो कोई व्यक्ति साहस से प्राप्त करता है।

प्रश्न 7.
कर्मण्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कर्म में आनंद अनुभव करने वालों का नाम ही कर्मण्य है। यह उच्च कर्मों के विधान में निहित रहता है।

प्रश्न 8.
‘कर्म-काल’ में समास का भेद छांटिए।
उत्तर :
‘संबंध तत्पुरुष’ समास।

प्रश्न 9.
‘तत्परता’ में प्रयुक्त प्रत्यय कौन-सा है?
उत्तर :
‘ता ‘प्रत्यय।

प्रश्न 10.
अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
उत्साह।

6. दु:ख के वर्ग में जो स्थान भय का है, वही स्थान आनंद-वर्ग में उत्साह का है। भय में हम प्रस्तुत कठिन स्थिति के नियम से विशेष रूप में दु:खी और कभी-कभी उस स्थिति से अपने को दूर रखने के लिए प्रयत्तवान भी होते हैं। उत्साह में हम आने वाली कठिन स्थिति के भीतर साहस के अवसर के निश्चय द्वारा प्रस्तुत कर्म-सुख की उमंग से अवश्य प्रयत्नवान होते हैं। उत्साह से कष्ट या हानि सहने की दृढ़ता के साथ-साथ कर्म में प्रवृत्ति होने के आनंद का योग रहता है। साहसपूर्ण आनंद की उमंग का नाम उत्साह है। कर्म-साँदर्य के उपासक ही सच्चे उत्साही कहलाते हैं।

जिन कर्मों में किसी प्रकार कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है उन सबके प्रति उत्क्ंठापूर्ण आनंद उत्साह के अंतर्गत लिया जाता है। कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं। साहित्य-मीमांसकों ने इसी दृष्टि से युद्ध-वीर, दान-वीर, दया-वीर इत्यादि भेद किए हैं। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा क्या मृत्यु तक की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यंत प्राचीन काल से पड़ता चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुँचते हैं। केवल कष्ट या पीड़ा सहन करने से साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता।

उसके साथ आनंदपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कंठा का योग चाहिए। बिना बेहोश हुए भारी फोड़ा चिराने को तैयार होना साहस कहा जाएगा, पर उत्साह नहीं। इसी प्रकार चुपचाप, बिना हाथ-पैर हिलाए, घोर प्रहार सहने के लिए तैयार रहना साहस और कठिन-से-कठिन प्रहार सहकर भी जगह से न हटना वीरता कही जाएगी। ऐसे साहस और वीरता को उत्साह के अंतर्गत तभी ले सकते हैं जब कि साइसी या वीर उस काम को आनंद के साथ करता चला जाएगा जिसके कारण उसे इतने प्रहार सहने पड़ते हैं। सारांश यह है कि आनंदपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कंठा में ही उत्साह का दर्शन होता है, केवल कष्ट सहने के निश्चेष्ट साहस में नहीं। वृति और साहस दोनों का उत्साह के बीच संचरण होता है।

दानवीर और अर्थ-त्याग का साहस अर्थात उसके कारण होने वाले कष्ट या कठिनता को सहने की क्षमता अंतर्निहित रहती है। दानवीरता तभी कही जाएगी जब दान के कारण दानी को अपने जीवन-निर्वाह में किसी प्रकार का कष्ट या कठिनता दिखाई देगी। इस कष्ट या कहिनता की मात्रा या संभावना जितनी ही अधिक होगी, दानवीरता उतनी ही ऊँची समझी जाएगी, पर इस अर्थ-त्याग के साहस के साथ ही जब तक पूर्ण तत्परता और आनंद के चिह्न न दिखाई पड़ेंगे तब तक उत्साह का स्वरूप न खड़ा होगा।

प्रश्न 1.
भय का स्थान किस वर्ग में है?
(क) दुख के वर्ग में
(ख) सुख के वर्ग में
(ग) क्रोध के वर्ग में
(घ) चिंता के वर्ग में
उत्तर :
(क) दु:ख के वर्ग में

प्रश्न 2.
उत्साह के बीच किनका संचरण होता है ?
(क) माया और मोह का
(ख) वृत्ति का साहस का
(ग) काम और क्रोध का
(घ) भय और क्रोध का
उत्तर :
(ख) वृत्ति और साहस का

प्रश्न 3.
मृत्यु तक की परवाह किस प्रकार की वीरता में नहीं होती?
(क) धर्मवीरता में
(ख) कर्मवीरता में
(ग) युद्धवीरता में
(घ) दानवीरता में
उत्तर :
(ग) युद्धवीरता में

प्रश्न 4.
उत्साह के भेद किन्होंने किए हैं ?
(क) कवियों ने
(ख) नेताओं ने
(ग) चिकित्सकों ने
(घ) साहित्य-मीमांसकों ने
उत्तर :
(घ) साहित्य-मीमांसकों ने

प्रश्न 5.
सच्चे उत्साही कौन होते हैं?
(क) कर्म सौँदर्य के उपासक
(ख) धर्म के उपासक
(ग) धर्मवीर
(घ) युद्धवीर
उत्तर :
(क) कर्म-सॉंदर्य के उपासक

प्रश्न 6.
उत्साह में किसका योग रहता है ?
उत्तर :
उत्साह में कष्ट या नुकसान सहने की दृढ़ता के साथ कर्म में प्रवृत्ति होने के आनंद का योग रहता है। कर्म सौंद्य में उत्साह का योग बना रहता है।

प्रश्न 7.
दानवीरता किसे कहा जा सकता है?
उत्तर :
दानवीरता उसे कहा जा सकता है जब दान देने वाले को अपने जीवन-निर्वाह में किसी प्रकार का कष्ट दिखाई देगा।

प्रश्न 8.
‘आनंद वर्ग’ में किस समास का प्रयोग है?
उत्तर :
‘तत्पुरुष’ समास

प्रश्न 9.
कठिनता का विपरीतार्थक लिखिए।
उत्तर :
सरलता

प्रश्न 10.
अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
उत्साह।

7. व्यापार और वाणिज्य ने यातायात के साधनों को सुलभ बनाने में योग दिया है। यद्यपि यातायात के साधनों में उन्नति युद्धों के कारण भी हुई है, तथापि युद्ध स्थायी संस्था नहीं हैं। व्यापार से रेलों, जहाज़ों आदि को प्रोत्साहन मिलता है और इनसे व्यापार को। व्यापार के आधार पर हमारे डाक-तार विभाग भी फले-फूले है। व्यापार ही देश की सभ्यता का मापदंड है। दूसरे देशों से जो हमारी आवश्यकताओं की पूरि होती है, वह व्यापार के बल-भरोसे पर ही होती है। व्यापार में आयात और निर्यात दोनों ही सम्मिलित हैं।

व्यापार और वाणिज्य की समृद्धि के लिए व्यापारी को अच्छा आचरण रखना बहुत आवस्यक है। उसे सत्य से ग्रेम करना चाहिए। अकेला यही गुण उसे अनेक सांसारिक झंझटों से बचाने में सफल हो सकेगा और उसे एक चतुर व्यापारी बना सकेगा, क्योंकि जो आदमी सच्चा होता है वह अपने काम-काज और व्यवहार में सादगी से काम लेता है। फल यह होता है कि उससे ग़लती कम होती है और नुकसान उउने के अवसर बहुत कम आते हैं। जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं, उनके अपने रोज़ाना के काम-काज और व्यवहार में उचित-अनुचित और अच्छे-बुरे का ध्यान अवश्य बना रहता है।

व्यापारी को आशावादी और शांत स्वभाव का होना चाहिए। उसे न निराश होने की आवश्यकता है और न क्रोध करने की। यदि आज थोड़ा नुकसान हुआ है तो कल फ़ायदा भी जरूर होगा, यह सोचकर उसे घबराना नहीं चाहिए। सेवा की पतवार के सहारे अपने व्यापार अथवा व्यवसाय की नाव को उत्साह सहित भैवर से निकाल ले जाने में बुद्धिमानी है। हारकर हाथ-पैर छोड़ देने से यश नहीं मिलता।

व्यापार ने हमारे सुख-साधनों को बढ़ाकर हमारे जीवन का स्तर ऊँचा किया है। हमारे विशाल भवन, गगनचुंबी अट्टालिकाएँ, स्वच्छ दुग्ध, फेनोण्ज्वल कटे-फटे वस्त्र, विद्युत्-प्रकाश, रेडियो, तार, टेलीविजन, रेल और मोटें सब हमारे क्यापार पर ही आश्रित हैं।

व्यापार में दूसरे देशों पर हमारी निर्भरता अभी बढ़ी हुई है। जब तक यह निर्भरता रहेगी तब तक हम सच्चे अर्थ में स्वतंत्र नहीं हो सकते हैं। हमें अपनी आवश्यकताओं को कम करके जीवन का स्तर नीचे गिराने की आवश्यकता नहीं है, वरन् हमको अपने देश का उत्पादन बढ़ाकर अन्य देशों की भाँति आत्मनिर्भरता प्राप्त कर लेना वांछनीय है। विलास की वस्तुओं के लिए धन बाहर भेजना लक्ष्मी का अपमान है। हम सभ्य तभी कहे जा सकते हैं, जब हम अपनी सभ्यता के प्रसाधनों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर करते रहें।

प्रश्न 1.
युद्ध कैसी संस्था नहीं हैं ?
(क) स्थाई
(ख) अस्थाई
(ग) लगातार चलने वाली
(घ) कभी नहीं होने वाली
उत्तर :
(क) स्थाई

प्रश्न 2.
डाक-तार विभाग किससे फले-फूले हैं?
(क) सरकार के कारण
(ख) व्यापार के कारण
(ग) जनता के कारण
(घ) कर्मचारियों के कारण
उत्तर :
(ख) व्यापार के कारण

प्रश्न 3.
देश की सभ्यता का मापदंड क्या है ?
(क) सरकार
(ख) जनता
(ग) व्यापार
(घ) समाज
उत्तर :
(ग) व्यापार

प्रश्न 4.
व्यापार में क्या-क्या सम्मिलित है?
(क) आयात
(ख) निर्यात
(ग ) क्रय-विक्रय
(घ) (क) तथा (ख) दोनों
उत्तर :
(घ) (क) तथा (ख) दोनों

प्रश्न 5.
हमारे जीवन को किसने ऊँचा किया है ?
(क) व्यापार
(ख) समाज
(ग) धर्म
(घ) सरकार
उत्तर :
(क) व्यापार ने

प्रश्न 6.
यातायात के साधनों को प्रोत्साहन किस कारण दिया गया था ?
उत्तर :
यातायात के साधनों को प्रोत्साहन व्यापार और वाणिज्य के साथ-साथ युद्धों ने अधिक दिया था।

प्रश्न 7.
किसी व्यापारी का आचरण कैसा होना चाहिए ?
उत्तर :
व्यापार और वाणिज्य की समृद्धि के लिए किसी भी व्यापारी को सत्य प्रेमी, सादगी पसंद, चतुर और व्यवहारकुशल होना चाहिए। उसे उचित-अनुचित में भेद की समझ होनी चाहिए। उसे विवेकी और आशावादी होना चाहिए।

प्रश्न 8.
डाक-तार में कौन-सा समास है ?
उत्तर :
द्वंदव समास।

प्रश्न 9.
‘प्रसाधनों’ में उपसर्ग छाँटिए।
उत्तर :
‘प्र’ उपसर्ग।

प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उच्चित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
व्यापारी की सफलता का रहस्य।

8. आज की मौत कल पर बकेलते-ढकेलते एक दिन ऐसा आ जाता है कि उस दिन मरना ही पड़ता है। यह प्रसंग उन पर नहीं आता, जो ‘मरण के पहले’ मर लेते हैं। जो अपना मरण आँखों से देखते हैं, जो मरण का ‘अगाऊ’ अनुभव कर लेते हैं उनका मरण है। और, जो मरण के अगाऊ अनुभव से जी चुराते हैं, उनकी छाती पर मरण आ पड़ता है। सामने खंभा है, यह बात अंधे को उस खंभे का छाती में प्रत्यक्ष धक्का लगने के बाद मालूम होती है। आँख वाले को यह खंभा पहले ही दिखाई देता है। अतः उसका धक्का उसकी छाती को नहीं लगता। ज़िंदगी की जिम्मेदारी कोई गिरी मौत नहीं है और मौत कौन ऐसी बड़ी मौत है ? जीवन और मरण दोनों आनंद की वस्तु होनी चाहिए। कारण, अपने परम प्रिय पिता ने-ईश्वर ने-वे हमें दिए हैं।

ईश्वर ने जीवन दुखमय नहीं रचा। पर, हमें जीवन जीना आना चाहिए। कौन पिता है, जो अपने बच्चों के लिए परेशानी की जिंदगी चाहेगा ? तिस पर ईश्वर के प्रेम और करुणा का कोई पार है ? वह अपने लाडले बच्चों के लिए सुखमय जीवन का निर्माण करेगा कि परेशानियों और झंझटों से भरा जीवन रचेगा? कल्पना की क्या आवश्यकता है, प्रत्यक्ष ही देखिए न, हमारे लिए जो चीज़ जितनी जरूरी है, उसके उतनी ही सुलभता से मिलने का इंतज्ञाम ईश्वर की ओर से है। पानी से हवा ज्यादा ज़रूरी है, तो ईश्वर ने हवा को अधिक सुलभ किया है।

जहाँ नाक है, वहाँ हवा मौजूद है। पानी से अन्न की ज्ञरूरत कम होने की वजह से पानी प्राप्त करने की बनिस्बत अन्न प्राप्त करने में अधिक परिश्रम करना पड़ता है। आत्मा सबसे अधिक महत्त्व की वस्तु होने के कारण, वह हर एक को हमेशा के लिए दे डाली गई है। ईश्वर की ऐसी प्रेमपूर्ण योजना है। इसका ख्याल न करके हम निकम्मे, जड़-जवाहरात जमा करने में जितने जड़ बन जाएँ, उतनी तकलीफ़ हमें होगी। पर, यह हमारी जड़ता का दोष है, ईश्वर का नहीं।

प्रश्न 1.
हमारी तकलीफों का ज्ञिम्मेदार कौन है ?
(क) स्वयं हम
(ख) पड़ोसी
(ग) रिश्तेदार
(घ) दुकानवार
उत्तर :
(क) स्वयं हम

प्रश्न 2.
प्रत्येक व्यक्ति को निश्चित रूप से कभी-न-कभी क्या मिलनी है?
(क) संपत्ति
(ख) मृत्यु
(ग) दुख
(घ) खुशी
उत्तर :
(ख) मृत्यु

प्रश्न 3.
ईश्वर ने जीवन कैसा नहीं रचा ?
(क) सुखमय
(ख) व्यर्थ
(ग) दुखमय
(घ) कठिन
उत्तर :
(ग) दुखमय

प्रश्न 4.
ईश्वर ने हमें क्या दिया है ?
( क) सुख
(ख) मन की शांति
(ग) चिंता
(घ) सुख प्रदान करने वाली सभी वस्तुएँ
उत्तर :
(घ) सुख प्रदान करने वाली प्रत्येक वस्तु

प्रश्न 5.
हमारे दुख किसका परिणाम हैं?
(क) हमारी जड़ता का
(ख) हमारे आलस्य का
(ग) हमारी बुद्धिमत्ता का
(घ) हमारी मेहनत का
उत्तर :
(क) हमारी जड़ता का

प्रश्न 6.
जीवन के लिए आवश्यक सुख-दुख कौन प्रदान करता है ?
उत्तर :
जीवन के लिए सभी आवश्यक सुख-दुख ईश्वर ही प्रदान करता है। उसी ने हवा दी और उसी ने पानी।

प्रश्न 7.
सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण वस्तु कौन-सी है ? वह कहाँ है ?
उत्तर :
सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु आत्मा है जो परमात्मा ने सभी को सदा के लिए दे दी है।

प्रश्न 8.
‘जिप्मेदारी’ में किस प्रत्यय का प्रयोग किया गया है ?
उत्तर :
‘ई’ प्रत्यय।

प्रश्न 9.
‘अभाव’ में से उपसर्ग छाँटिए।
उत्तर :
‘अ’ उपसर्ग।

प्रश्न 10.
अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
ईश्वर की अनुपम देन।

9. हिंदी अपना भविष्य किसी से दान में नहीं चाहती। वह तो उसकी गति का स्वाभाविक परिणाम होना चाहिए। जिस नियम से नदी-नदी की गति रोकने के लिए शिला नहीं बन सकती, उसी नियम से हिंदी भी किसी सहयोगिनी का पथ अवरुद्ध नहीं कर सकती। यह आकस्मिक संयोग न होकर भारतीय आत्मा की सहज चेतना ही है, जिसके कारण हिंदी के भावी कर्त्तव्य को जिन्होंने पहले पहचाना, वे हिंदी-भाषी नहीं थे। राजा राममोहन राय से महात्मा गांधी तक प्रत्येक सुधारक, साहित्यकार, धर्म-संस्थापक, साधक और चिंतक हिंदी के जिस उत्तरदायित्व की ओर संकेत करता आ रहा है, उसे नतशिर स्वीकार कर लेने पर ही हिंदी लक्ष्य तक नहीं पहुँच जाएगी, क्योंकि स्वीकृतिमात्र न गति है, न गंतव्य।

वस्तुत: संपूर्ण भारत संघ को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए उसे दोहरे संबल की आवश्यकता है। एक तो आंतरिक, जो मन के द्वारों को उन्मुक्त कर सके और दूसरा बाह्य, जो आकार को सबल और परिचित बना सके। अन्य प्रदेशों के लोकहृय के लिए तो वह अपरिचित नहीं है, क्योंकि दीर्घकाल से संत-साधकों की मर्मबानी बनकर ही नहीं, हाट-बाज्ञार की व्यवहार बोली के रूप में भी देश का कोना-कोना घूम चुकी है।

यदि आज उसे अन्य प्रदेशों से अविश्वास मिले, तो उसका वर्तमान खंडित और अतीत मिथ्या हो जाएगा। उसकी लिपि का स्वरूप भी मतभेदों का केंद्र बना हुआ है। सुदूर अतीत की ब्राहम से नागरी लिपि तक आते-आते उसके बाह्य रूप को समय के प्रवाह ने इतना माँजा और खरादा है कि उसे किसी बड़ी शल्य-चिकित्सा की आवश्यकता नहीं है। नाममात्र के परिवर्तन से ही वह आधुनिक युग के मुद्रण-लेखन यंत्रों के साथ अपनी संगति बैठा लेगी, परंतु तत्संबंधी विवादों ने उसका पथ प्रशस्त न करके उसके नैसर्गिक सौष्ठव को भी कुंठित कर दिया है। यदि चीनी जैसी चित्रमयी दुरूह लिपि अपने राष्ट्र-जीवन का संदेश वहन करने में समर्थ है, तो हमारी लिपि के मार्ग की बाधाएँ दुर्लघ्य कैसे मानी जा सकती हैं।

स्वतंत्रता ने हमें राजनीतिक मुक्ति देकर भी न मानसिक मुक्ति दी है और न हमारी दृष्टि को नया क्षितिज। हमारा शासन तंत्र और उसके संचालक भी उसके अपवाद नहीं हो सकते, परंतु हमारे पथ की सबसे बड़ी बाधा यह हमारी स्वतंत्र कार्य-क्षमता राज्यमुखापेक्षी होती जा रही है। पर अंधकार आलोक का त्योहार भी तो होता है। दीपक की लौ के ददय में बैठ सके ऐसा कोई बाण अँघेर के तूणीर में नहीं होता है। यदि हमारी आत्मा में विश्वास की निष्पक्ष लौ है, तो मार्ग उज्ज्वल रहेगा ही।

भाषा को सीखना उसके साहित्य को जानना है, और साहित्य को जानना मानव-एकता की स्वानुभूति है। हम जब साहित्य के स्वर में बोलते हैं, तब वे स्वर दुस्तर समुद्रों पर सेतु बाँधकर, दुलंघ्य पर्वतों को राजपथ बनाकर मनुष्य की सुख-दु:ख की कथा मनुष्य तक अनायास पहुँचा देते हैं। अस्त्रों की छाया में चलने वाले अभियान निष्फल हुए हैं, चक्रवर्तियों के राजनीतिक स्वप्न टूटे हैं, पर मानव-एकता के पथ पर खड़ा कोई चरण-चिहन अब तक नहीं मिटा है। मनुष्य को मनुष्य के निकट लाने का कोई स्वप्न अब तक भंग नहीं हुआ है। भारत के लोक-हदयय और चेतना ने अनंत युगों में जो मातृभूमि गढ़ी है, वह अथर्व के पृथ्वीसूक्त से वंदेमातरम् तक एक, अखंड और अक्षत रही है। उस पर कोई खरोंच हमारे अपने अस्तित्व पर चोट है।

प्रश्न 1.
हिंदी किनका मार्ग अवरुद्ध नहीं कर सकती ?
(क) अपनी सहयोगिनी भाषाओं की
(ख) देशी भाषाओं की
(ग) विवेशी भाषाओं की
(घ) आगत भाषाओं की
उत्तर :
(क) अपनी सहयोगिनी भाषाओं का

प्रश्न 2.
हिंदी का कौन-सा स्वरूप मतभेदों का केंद्र बना हुआ है?
(क) बोली का स्वरूप
(ख) लिपि का स्वरूप
(ग) व्याकरण का स्वसूप
(घ) विभाग का स्वरूप
उत्तर :
(ख) लिपि का स्वरूप

प्रश्न 3.
चीन की लिपि क्या है?
(क) देवनागरी
(ख) गुरुमुखी
(ग) चित्रमयी
(घ) फारसी
उत्तर :
(ग) चित्रमयी

प्रश्न 4.
मानव-एकता की स्वानुभूति क्या है ?
(क) साहित्य को पढ़ना
(ख) साहित्य को लिखना
(ग) साहित्य को वेखना
(घ) साहित्य को जानना
उत्तर :
(घ) साहित्य को जानना

प्रश्न 5.
पृथ्वीसूक्त किस ग्रंथ में मिलता है?
(क) अथर्ववेव
(ख) बजुवेवेंद
(ग) सामवेव
(घ) ऋग्वेद
उत्तर :
(क) अथर्ववेद

प्रश्न 6.
हिंदी का भविष्य कैसा होना चाहिए?
उत्तर :
हिंदी का भविष्य उसकी गति का स्वाभाविक परिणाम होना चाहिए। उसे किसी दूसरी भाषा का विरोध किए बिना अपना स्थान मिलना चाहिए।

प्रश्न 7.
हिंदी की भारतीय आत्मा को किसने पहचाना था ?
उत्तर :
हिंदी की भारतीय आत्मा को जिन महापुरुषों ने पहचाना था वे स्वयं अहिंदी भाषी थे। राजा राममोहन राय से महात्मा गांधी तक ने इसे नतशिर स्वीकार किया था।

प्रश्न 8.
‘फर्म-संस्थापक’ में कौन-सा समास है?
उत्तर :
‘संबंध तत्पुरुष’ समास।

प्रश्न 9.
‘अविश्वास’ में प्रयुक्त उपसर्ग लिखिए।
उत्तर :
‘अ’ उपसर्ग।

प्रश्न 10.
अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
मातृभाषा हिंदी।

10. हमारा हिमालय से कन्याकुमारी तक फैला हुआ देश, आकार और आत्मा दोनों दृष्टियों से महान और सुंदर है। उसका बाहय साँदर्य विविधता की सामंजस्यपूर्ण स्थिति है और आत्मा का सॉददर्य विविधता में छिपी हुई एकता की अनुभूति है।

चाहे कभी न गलने वाला हिम का प्राचीर हो, चाहे कभी न जमने वाला अतल समुद्र हो, चाहे किरणों की रेखाओं से खचित हरीतिमा हो, चाहे एकरस शून्यता ओढ़े हुए मरु हो, चाहे साँवले भरे मेष हों, चाहे लपटों में साँस लेता हुआ बवंडर हो, सब अपनी भिन्नता में भी एक ही देवता के विग्रह को पूर्णता देते हैं। जैसे मूर्ति के एक अंग का टूट जाना संपूर्ण देव-विग्रह को खंडित कर देता है, वैसे ही हमारे देश की अखंडता के लिए विविधता की स्थिति है।

यदि इस भौगोलिक विविधता में क्याप्त सांस्कृतिक एकता न होती, तो यह विविध नदी, पर्वत, वनों का संग्रह-मात्र रह जाता। परंतु इस महादेश की प्रतिभा ने इसकी अंतरात्मा को एक रसमयता में प्लावित करके इसे विशिष्ट व्यक्तित्व प्रदान किया है, जिससे यह आसमुद्र एक नाम की परिधि में बँध जाता है।

हर देश अपनी सीमा में विकास पाने वाले जीवन के साथ एक भौतिक इकाई है, जिससे वह समस्त विश्व की भौतिक और भौगोलिक इकाई से जुड़ा हुआ है। विकास की दृष्टि से उसकी दूसरी स्थिथि आत्म-रक्षात्मक तथा व्यवस्थापरक राजनीतिक सत्ता में है। तीसरी सबसे गहरी तथा व्यापक स्थिति उसकी सांस्कृतिक गतिशीलता में है, जिससे वह अपने विशेष व्यक्तित्व की रक्षा और विकास करता हुआ विश्व-जीवन के विकास में योग देता है। यह सभी बाह्य और स्थूल तथा आंतरिक और सूक्ष्म स्थितियाँ एक-दूसरे पर प्रभाव डालती और एक-दूसरी से संयमित होती चलती हैं।

एक विशेष भूखंड में रहने वाले मानव का प्रथम परिचय, संपर्क और संघर्ष अपने वातावरण से ही होता है और उससे प्राप्त जय, पराजय, समन्वय आदि से उसका कर्म-जगत ही संचालित नहीं होता, प्रत्युत अंतर्जगत और मानसिक संस्कार भी प्रभावित होते हैं।

प्रश्न 1.
किसी स्थान पर रहने वाले मानव का सबसे पहला परिचय किससे होता है?
(क) अपने वातावरण से
(ख) अपने परिवार से
(ग) शिक्षा से
(घ) अपने बेश से
उत्तर :
(क) अपने वातावरण से

प्रश्न 2.
हमारा देश कहाँ से कहाँ तक फैला हुआ है ?
(क) गुजरात से नागालैंड तक
(ख) हिमालय से कन्याकुमारी तक
(ग) कश्मीर से केरल तक
(घ) हिमाचल से आंध्रप्रदेश तक
उत्तर :
(ख) हिमालय से कन्याकुमारी तक

प्रश्न 3.
हमारे देश की भौगोलिक विविधता में क्या व्याप्त है ?
(क) अनेकता
(ख) सांस्कृतिक विविधता
(ग) आर्थिक अनेकता
(घ) सांस्कृतिक एकता
उत्तर :
(घ) सांस्कृतिक एकता

प्रश्न 4.
प्रत्येक देश अपनी सीमा में विकास पाने वाले जीवन के साथ क्या है?
(क) एक आर्थिक इकाई
(ख) एक सामाजिक इकाई
(ग) एक भौतिक इकाई
(घ) एक भौगोलिक इकाई
उत्तर :
(ग) एक भौतिक इकाई

प्रश्न 5.
हमारे देश की अंतरात्मा किसमे डूबी हुई है?
(क) एकता में
(ख) अनेकता में
(ग) विभिन्नता में
(घ) रसमयता में
उत्तर :
(घ) रसमयता में

प्रश्न 6.
हमारे देश की सुंदरता किसमें निहित है?
उत्तर :
हमारे देश की बाह्य सुंदरता विविधता के सामंजस्य और आत्मा की सुंदरता विविधता में छिपी एकता में निहित है।

प्रश्न 7.
कौन एक ही देवता के विग्रह को पूर्णता प्रदान करते हैं ?
उत्तर :
ऊँचे-ऊँचे बर्फ़ से ढके पर्वत, अतल गहराई वाले सागर, रेगिस्ताम, घने-काले बादल, बवंडर आदि देवता के विग्रह को पूर्णता प्रदान करते हैं।

प्रश्न 8.
‘आंतरिक’ में प्रत्यय छॉटिए।
उत्तर :
‘इक’ प्रत्यय।

प्रश्न 9.
‘विश्व-जीवन’ में कौन-सा समास है ?
उत्तर :
संबंध तत्पुरुष समास।

प्रश्न 10.
अवतरण को उच्चित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
देश की सांस्कृतिक एकता।

11. हमारे देश ने आलोक और अंधकार के अनेक युग पार किए हैं, परंतु अपने सांस्कृतिक उत्तराधिकार के प्रति वह नित्तांत सावधान रहा है। उसमें अनेक विचारधाराएँ समाहित हो गई, अनेक मान्यताओं ने स्थान पाया, पर उसका व्यक्तित्व सार्वभौम होकर भी उसी का रहा। उसके अंतर्गत आलोक ने उसकी वाणी के हर स्वर को उसी प्रकार उद्भासित कर दिया, जैसे आलोक हर तरंग पर प्रतिबिंबित होकर उसे आलोक की रेखा बना देता है। एक ही उत्स से जल पाने वाली नदियों के समान भारतीय भाषाओं के बाहय और आंतरिक रूपों में उत्सगत विशेषताओं का सीमित हो जाना ही स्वाभाविक था। कूप अपने अस्तित्व में भिन्न हो सकते हैं, परंतु धरती के तल का जल तो एक ही रहेगा। इसी से हमारे चिंतन और भावजगत में ऐसा कुछ नहीं है, जिसमें सब प्रदेशों के हृदय और बुद्धि का योगदान और समान अधिकार नहीं है।

आज हम एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थिति पा चुके हैं, राष्ट्र की अनिवार्य विशेषताओं में दो हमारे पास हैं-भौगोलिक अखंडता और सांस्कृतिक एकता परंतु अब तक हम उस वाणी को प्राप्त नहीं कर सके हैं, जिसमें एक स्वतंत्र राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के निकट अपना परिचय देता है। जहाँ तक बहुभाषा-भाषी होने का प्रश्न है, ऐसे देशों की संख्या कम नहीं है जिनके भिन्न भागों में भिन्न भाषाओं की स्थिति है। पर उनकी अविच्छिन्न स्वतंत्रता की परंपरा ने उन्हें सम-विषम स्वरों से एक राग रच लेने की क्षमता दे दी है।

हमारे देश की कथा कुछ दूसरी है। हमारी परतंत्रता आँधी-तूफ़ान के समान नहीं आई, जिसका आकस्मिक संपर्क तीव्र अनुभूति से अस्तित्व को कंपित कर देता है। वह तो रोग के कीटाणु लाने वाले मंद समीर के समान साँस में समाकर शरीर में व्याप्त हो गई है। हमने अपने संपूर्ण अस्तित्व से उसके भार को दुर्वह नहीं अनुभव किया और हमें यह ऐतिहासिक सत्य भी विस्मृत हो गया कि कोई भी विजेता विजित कर राजनीतिक प्रभुत्व पाकर ही संतुष्ट नहीं होता, क्योंकि सांस्कृतिक प्रभुत्व के बिना राजनीतिक विजय न पूर्ण है, न स्थायी। घटनाएँ संस्कारों में चिर जीवन पाती हैं और संस्कार के अक्षयवाहक, शिक्षा, साहित्य, कला आदि हैं।

दीर्घकाल से विदेशी भाषा हमारे विचार-विनिमय और शिक्षा का माध्यम ही नही रही, वह हमारे विद्ववान और संस्कृत होने का प्रमाण भी मानी जाती रही है। ऐसी स्थिति में यदि हममें से अनेक उसके अभाव में जीवित रहने की कल्पना से सिहर उठते हैं, तो आश्चर्य की बात नही। परलोक की स्थिति को स्थायी मानकर तो चिकित्सा संभव नहीं होती। राष्ट्र-जीवन की पूर्णता के लिए उसके मनोजगत को मुक्त करना होगा और यह कार्य विशेष प्रयत्न-साध्य है, क्योंकि शरीर को बाँधने वाली शृंखला से आत्मा को जकड़ने वाली शृंखला अधिक दृढ़ होती है।

आज राष्ट्रभाषा की स्थिति के संबंध में विवाद नहीं है, पर उसे प्रतिष्ठित करने के साधनों को लेकर ऐसी विवादैषणा जागी है कि साध्य ही दूर से दूरतम होता जा रहा है। विवाद जब तर्क की सीधी रेखा पर चलता है, तब लक्ष्य निकट आ जाता है, पर जब उसके मूल में आशंका, अविश्वास और अनिच्छा रहती है, तब कहीं न पहुँचना ही उसका लक्ष्य बन जाता है।

प्रश्न 1.
अनेक विच्चारधाराएँ किसमें समाहित हो गई हैं ?
(क) हमारे वातावरण में
(ख) देश में
(ग) हमारे समाज में
(घ) हमारी संस्कृति में
उत्तर :
(घ) हमारी संस्कृति में

प्रश्न 2.
हमें आँधी-तूफ़ान की तरह क्या प्राप्त नहीं हुआ ?
(क) वेग
(ख) धूल
(ग) स्वतंत्रता
(घ) परतंत्रता
उत्तर :
(ग) स्वतंत्रता

प्रश्न 3.
कोई स्वतंत्र राष्ट्र किस माध्यम से अपना परिचय दूसरे स्वतंत्र राष्ट्रों को देता है ?
(क) अपनी उन्नति से
(ख) अपनी मातृभाषा से
(ग) अपने व्यवहार से
(घ) अपने देशवासियों से
उत्तर :
(ख) अपनी मातृभाषा से

प्रश्न 4.
राजनीतिक विजय किसके बिना अधूरी रहती है ?
(क) सास्कृतिक प्रभुत्व के बिना
(ख) राजनीतिक प्रभुत्व के बिना
(ग) भौतिक प्रभुत्व के बिना
(घ) भौगोलिक प्रभुत्व के बिना
उत्तर :
(क) सांस्कृतिक प्रभुत्व के बिना

प्रश्न 5.
घटनाएँ किसमें चिरजीवन प्राप्त करती हैं ?
(क) व्यवहार में
(ख) विचारों में
(ग) मन में
(घ) संस्कारों में
उत्तर :
(घ) संस्कारों में

प्रश्न 6.
हमारा देश प्रमुख रूप से किसके प्रति सावधान रहा है ?
उत्तर :
हमारे देश ने अनेक संकटों को झेला है। उसे अनेक विचारधाराएँ और मान्यताएँ मिली हैं पर फिर भी वह सदा अपने सांस्कृतिक उत्तराधिकार की रक्षा के प्रति सावधान रहता है।

प्रश्न 7.
राष्ट्र की कौन-सी दो अनिवार्य विशेषताएँ हमारे पासं हैं ?
उत्तर :
हमारे पास भौगोलिक अखंडता और सांस्कृतिक एकता है।

प्रश्न 8.
‘व्यक्तित्व’ में किस प्रत्यय का प्रयोग है ?
उत्तर :
‘त्व’ प्रत्यय।

प्रश्न 9.
‘राष्ट्र-जीवन’ में कौन-सा समास है ?
उत्तर :
‘संबंध तत्पुरुष’ समास।

प्रश्न 10.
अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
राष्ट्रभाषा की स्थिति।

12. जातियाँ इस देश में अनेक आई हैं। लड़ती-झगड़ती भी रही हैं, फिर प्रेमपूर्वक बस भी गई हैं। सभ्यता की नाना सीढ़ियों पर खड़ी और नाना ओर मुख करके चलने वाली इन जातियों के लिए एक सामान्य धर्म खोज निकालना कोई सहज बात नहीं थी। भारतवर्ष के ऋषियों ने अनेक प्रकार से अनेक ओर से इस समस्या को सुलझाने की कोशिश की थी पर एक बात उन्होंने लक्ष्य की थी। समस्त वर्णों और समस्त जातियों का एक सामान्य आदर्श भी है। वह है अपने ही बंधनों से अपने को बाँधना। मनुष्य पशु से किस बात में भिन्न है ? आहार-निद्रा आदि पशुसुलभ स्वभाव उसके ठीक वैसे ही हैं, जैसे अन्य प्राणियों के लेकिन वह फिर भी पशु से भिन्न है।

उसमें संयम है, दूसरे के सुख-दु:ख के प्रति संवेदना है, श्रद्धा है, तप है, त्याग है। यह मनुष्य के स्वयं के उद्भावित बंधन हैं। इसीलिए मनुष्य झगड़े-टंटे को अपना आदर्श नहीं मानता, गुस्से में आकर चढ़ दौड़ने वाले अविवेकी को बुरा समझता है और वचन, मन और शरीर से किए गए असत्याचरण को गलत आचरण मानता है। यह किसी खास जाति या वर्ण या समुदाय का धर्म नहीं है। वह मनुष्य-मात्र का धर्म है। महाभारत में इसीलिए सत्य और अक्रोध को सब वर्णों का सामान्य धर्म कहा है –
एवद्धि त्रितयं श्रैष्ठं सर्वभूतेषु भारत।
निर्वेरत महाराज सत्यमक्रोध एव च॥

अन्यत्र इसमें निरंतर दानशीलता को भी गिनाया गया है। गौतम ने ठीक ही कहा था कि मनुष्य की मनुष्यता यही है कि यह सब के दुःख-सुख को सहानुभूति के साथ देखता है। यह आत्म-निर्मित बंधन ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है। अहिंसा, सत्य और अक्रोधमूलक धर्म का मूल उत्स यही है। मुझे आश्चर्य होता है कि अनजाने में भी हमारी भाषा से यह भाव कैसे रह गया है। लेकिन मुझे नाखून के बढ़ने पर आश्चर्य हुआ था अज्ञान सर्वत्र आदमी को पछाड़ता है। और आदमी है कि सदा उससे लोहा लेने को कमर कसे है।

मनुष्य को सुख कैसे मिलेगा ? बड़े-बड़े नेता कहते हैं, वस्तुओं की कमी है, और मशीन बैठाओ, और उत्पादन बढ़ाओ, और धन की वृद्धि करो, और बाहय उपकरणों की ताकत बढ़ाओ। एक बूढ़ा था। उसने कहा था—बाहर नहीं, भीतर की ओर देखो। हिंसा को मन से दूर करो, मिथ्या को हटाओ, क्रोध और द्वेष को दूर करो, लोक के लिए कष्ट सहो। आराम की बात मत सोचो, प्रेम की बात सोचो, आत्म-पोषण की बात सोचो, काम करने की बात सोचो। उसने कहा-प्रेम ही बड़ी चीज़ है, क्योंकि वह हमारे भीवर है। उच्छृंखलता पशु की प्रवृत्ति है, ‘स्व’ का बंधन मनुष्य का स्वभाव है। बूढ़े की बात अच्छी लगी या नहीं, पता नहीं। उसे गोली मार दी गई। आदमी के नाखून बढ़ने की प्रवृत्ति ही हावी हुई। मैं हैरान हो कर सोचता हूँ-बूढ़े ने कितनी गहराई में पैठ कर मनुष्य की वास्तविक चरितार्थता का पता लगाया था।

प्रश्न 1.
पशु की मूल प्रवृत्ति क्या है ?
(क) जड़ता
(ख) लालच
(ग) उच्छृंखलता
(घ) बढ़ना
उत्तर :
(ग) उच्छृंखलता

प्रश्न 2.
विभिन्न जातियाँ पहले क्या कर रहीं थीं ?
(क) मेल-जोल बढ़ाना
(ख) आपस में लड़ाई-झगड़ा
(ग) अपनी जाति का प्रचार
(घ) दूसरी जाति का प्रचार-प्रसार
उत्तर :
(ख) आपस में लड़ाई-झगड़ा

प्रश्न 3.
तरह-तरह की ज्ञातियों के लिए क्या खोजना कठिन था ?
(क) एक सामान्य धर्म
(ख) एक जाति
(ग) एक समाज
(घ) एक वर्ग
उत्तर :
(क) एक सामान्य धर्म

प्रश्न 4.
मनुष्य किसे अपना आदर्श नहीं मानता ?
(क) धर्म को
(ख) झगड़े-टंटे को
(ग) समाज को
(घ) परिवार को
उत्तर :
(ख) झगड़े-टंटे को

प्रश्न 5.
‘स्व’ का बंधन किसका स्वभाव है?
(क) पशु का
(ख) व्यापार का
(ग) मानव का
(घ) जाति का
उत्तर :
(ग) मानव का

प्रश्न 6.
ऋषियों ने क्या किया था ?
उत्तर :
प्राचीन काल में ऋषियों ने समस्याओं को सुलझाने की अनेक प्रकार से कोशिश की थी और सभी के लिए आदर्श स्थापित किया था।

प्रश्न 7.
मनुष्य में पशु से भिन्न क्या है?
उत्तर :
मनुष्य में पशुओं से संयम, सुख-दु:ख के प्रति संवेदना, श्रद्धा, तप और त्याग की भावनाएँ भिन्न हैं। यही उन्हें पशुओं से श्रेष्ठ बनाती हैं।

प्रश्न 8.
‘लड़ती-झगड़ती’ में समास का नाम बताइए।
उत्तर :
‘द्वंदव’ समास।

प्रश्न 9.
‘उच्छंखलता’ में प्रत्यय कौन-सा है ?
उत्तर :
‘ता’ प्रत्यय।

प्रश्न 10.
अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
मनुष्य जीवन में सुख के आधार।

13. मैं घहरते हुए सावन-भादों में भी वहाँ गया हूँ और मैंने इस प्रपात के उद्गम यौवन के उस महावेग को भी देखा है जो सौ-डेढ़-सौ फीट की अपनी चौड़ी धारा की प्रबल भुजाओं में धरती के चटकीले धानी आँचर में उफनाते सावन को कस लेने के लिए व्याकुल हो जाता है और मैने देखा है कि जब अंबर के महलों में घनालिंगन करने वाली सौदामिनी धरती के इस सौभाग्य की ईर्ष्या में तड़प उठती है, तब उस तड़पन की कौँध में इस प्रपात का उमड़ाव फूलकर दुगुना हो जाता है।

शरद की शुभ्र ज्योत्सा में जब यामिनी पुलकित हो गई है और जब इस प्रपात के यौवन का मद खुमार पर आ गया है और उस खुमारी में इसका सौँदर्य मुग्धा के वदनमंडल की भौति और अधिक मोहक बन गया है, तब भी मैने इसे देखा है और तभी जाकर मैंने शरदिंदु को इस प्रपात की शांत तरल स्फटिक-धारा पर बिछलते हुए देखा है।

पहली बार जब मैं गया था तो वहाँ ठहरने के लिए कोई स्थान नहीं बना था और इसलिए खड़ी दुपहरी में चट्टानों की ओट में ही छाँह मिल सकी थी। ये भूरी-भूरी चट्टानें पानी के आघात से घिस-घिसकर काफ़ी समतल बन गई हैं और इनका ढाल बिल्कुल खड़ा है। इन चट्टानों के कगारों पर बैठकर लगभग सात-आठ हाथ दूर प्रपात के सीकरों का छिड़काव रोम-रोम से पिया जा सकता है। इन शिलाओं से ही कुंड में छलाँग मारने वाले धवल जल-बादल पेंग मारते से दिखाई देते हैं और उनके मंद गर्जन का स्वर भी जाने किस मल्हार के राग में चढ़ता-उतरता रहता है कि मन उसमें खो-सा जाता है।

एक शिला की शीतल छाया में कगार के नीचे पैर डाले मैं बड़ी देर तक बैठे-बैठे सोचता रहा कि मृत्यु के गहन कूप की जगत पर पैर लटकाए भले ही कोई बैठा हो, किंतु यदि उसे किसी ऐसे सँददर्य के उद्रेक का दर्शन मिलता रहे तो वह मृत्यु की भयावह गहराई भूल जाएगा। मृत्यु स्वयं ऐसे उन्मादी सौँदर्य के आगे हार मान लेती है, नहीं तो समय की कसौटी पर यौवन का गान अमिट स्वर्ण-रेखा नहीं खींच सकता था। मिट्टी में खिले हुए गुलाब की पंबुड़ियाँ भर जाती हैं और उनको झरते देख मृत्यु हैसना चाहती है, पर उस मिट्टी में से जब गुलाब की गंध ओस पड़ने पर उसाँस की भाँति निकल पड़ती है, तब मृत्यु गलकर पानी हो जाती है।

मैं सोचता रहा कि यहाँ जो अजर-अमर साँदर्य उमड़ा चला जा रहा है, वह स्वयं विलय का साँदर्य है-विलय मटमैली धारा का शुभ्र जल-कणों में, शुभ्र जल-कणों की राशि का शुभ्रतर वाण में और वाष्य का साँदर्य के रस-भरे जूही-लदे घुँघराले और लहरीले चूड़ापाश में। यह चूड़ापाश जूहियों से इस तरह सज जाता है कि उसके निचले छोर की श्यामलता भर दिखाई पड़ सकती है। एक अद्वितीय चाँदनी उसे ऊपर से छाप लेती है। मैंने देखा कि साँझ हो आई है। सूर्य की तिरछी किरणें जाते-जाते इस सॉददर्य का रहस्य-भेदन करते जाना चाहती हैं। पर जैसे प्रपात जाने कितने कवच-मंत्र-उच्चारण करता हुआ और मुखर हो रहा है और अपने को इस प्रकार समेट रहा है कि रवि-रशिमयों का प्रयत्न आप से आप विफल हो रहा है।

प्रश्न 1.
जब लेखक पहली बार वहाँ गया था तो कहाँ रुका था ?
(क) होटल में
(ख) मित्र के घर पर
(ग) सराय में
(घ) चद्टानों की ओट में
उत्तर :
(घ) चट्टानों की ओट में

प्रश्न 2.
सूर्य की किरणें जल-प्रपात को क्या प्रदान करती हैं?
(क) अपार सुंवरता
(ख) रोशनी
(ग) प्रकाश
(घ) किरणें
उत्तर :
(क) अपार सुंदरता

प्रश्न 3.
लेखक जल-प्रपात को देखने किन महीनों में गया था ?
(क) माध में
(ख) सावन-भादों में
(ग) फाल्गुन में
(घ) अषाढ़ में
उत्तर :
(ख) सावन-भादों में

प्रश्न 4.
लेखक कहाँ बैठकर सोच रहा था ?
(क) नदी किनारे
(ख) कमरे में
(ग) कगार के नीचे
(घ) झरने के पास
उत्तर :
(ग) कगार के नीचे

प्रश्न 5.
चद्टानों के कगारों से प्रपात के सीकरों की दूरी कितनी है ?
(क) लगभग सात-आठ हाथ
(ख) लगभग पाँच-छह हाथ
(ग) दस फीट
(घ) दस मीटर
उत्तर :
(क) लगभग सात-आठ हाथ।

प्रश्न 6.
जल-प्रपात का फैलाव वर्षा ऋतु में कैसा हो जाता है ?
उत्तर :
जल-प्रपात का फैलाव वर्षा ऋतु में बढ़कर दुगुना हो जाता है और वह उफनते सावन को कस लेने के लिए व्याकुल-सा हो उठता है।

प्रश्न 7.
शरद की चाँदनी में जल-प्रपात लेखक को कैसा प्रतीत हुआ था ?
उत्तर :
लेखक को शरद की चाँदनी में जल-प्रपात ऐसा लगा था जैसे वह शांत रूप में स्फटिक धारा पर फैला हुआ हो। वह चाँदनी में जगमगा रहा था।

प्रश्न 8.
‘स्वर्ण-रेखा’ में कौन-सा समास है ?
उत्तर :
‘संबंध तत्पुरुष’ समास।

प्रश्न 9.
‘श्यामलता’ में प्रत्यय छाँटिए।
उत्तर :
‘ता’ प्रत्यय।

प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
जल-प्रपात का साँदर्य।

14. निराला जी के त्याग की कहानियाँ तो अनंत हैं। उनकी डायरी लिखी जा सकती है। मतवाला प्रति शनिवार को निकलता था। उस दिन प्रात:काल को कई बंगाली स्नातक युवक अपनी साइकिल लेकर पहुँच जाते थे। वे प्रति सप्ताह आखबार बेचकर अपना कमीशन ले लेते थे। मतवाला की काफ़ी धूम और धाक थी। गरीब छात्रों को उसकी बिक्री से पर्याप्त सहायता मिल जाती थी। एक दिन एक अत्यंत दीन-मलीन छात्र से निराला जी हाल-चाल पूछने लगे। उसे फटेहाल देख ऐसे द्रवित हुए कि डेढ़ सौ रुपए की नई साइकिल तो खरीद ही दी, उसके लिए डबल सूट भी बनवा दिया और कहा कि स्वावलंबन का सहारा मत छोड़ो तथा पुस्तकें खरीदने के लिए पैसे मुझसे लेते जाओ।

मतवाला कार्यालय का दरबान गोरखपुर-बस्ती की ओर का रहने वाला एक नौजवान था। वह निराला जी को ‘गुरु जी’ कहा करता था। उसकी शादी तय हुई, तब निराला जी ने रेशमी साड़ी, मखमली कुर्ती, सोने का इयर-रिंग (कर्णाभूषण) इत्र-फुलेल आदि खरीदकर दस रुपए नेवते के साथ भेज दिया। यह काम उन्होंने बिल्कुल गुपचुप किया। उनकी कमाई के अधिकांश पैसे मौन भाव से परोपकार में ही खर्च होते।

सुद्द-संघ (मुजफ्फरपुर) के वार्षिकोत्सव से लखनऊ लौटते समय मुझसे मिलने के लिए बीच में छपरा उतरे, तो रिक्शे वाले की फ्टी गंजी देख उससे हाल-चाल पूछने लगे और एक नई गंजी तथा एक नया अँगोछा खरीदकर अपने सामने ही फटी गंजी निकलवाई और नई पहनाई। वह बेचारा रोता हुए उनके चरणों में लोटने लगा।

निराला जी वास्तव में निराला ही थे। अंगूर का गुच्छा या मीठे खजूर की पुड़िया किसी भिखारी के हाथ में देते समय हँसकर कह भी देते थे कि इसे मेरे सामने चखकर देखो तो कैसा है। एक दिन एक कंगले को लाल सेब देकर उसे सीख देने लगे कि इसे तू खाएगा तो तेरा चेहरा ऐसा ही सुर्ख हो जाएगा, जिसपर उसने दीनतापूर्वक हँसकर कहा कि एक दिन आप की मर्जीं से यह खाने को मिल ही गया तो क्या इतने से ही मेरे सूखे बदन में खून आ जाएगा, मालिक ! यह सुनकर निराला जी ने सेठ जी से कहा कि इसे दो रुपए दे दीजिए, यह और भी खरीद कर खाएगा। सेठ जी ने भी बिना हिचक वैसा ही किया और जब मुंशी जी ने ठहाके के साथ यह कह दिया कि इतने पैसे से भी नया खून लाने भर सेब नहीं खा सकता, तब अपनी जेब से झट निकाल कर एक रुपया फिर दिया।

निराला जी संसार से ऐसे निस्संग रहे कि जीवन भर फक्कड़शाह बने रहे। उनके पास न अपना कोई संदूक था, न ताला-कुंजी थी। कपड़ेलत्ते और रुपए-पैसे की मोह ममता तो थी ही नहीं। अपनी धुन में मस्त रहने से फुरसत ही कहाँ थी। रुपए-पैसे का हिसाब-किताब रखने का अभ्यास ही नहीं था। तकिए के नीचे नंबरी नोट पड़े रहते, पर इन नोटों को उनके पास पड़े रहने का अवकाश कहाँ मिलता था। पूरे चौबीस घंटे तक उनके पास जो द्रव्य ठहर जाए, उसका अहोभाग्य!

निराला जी की ये कहानियाँ आज के युग में उपन्यास की मनगढ़ंत बातें भले ही समझी जाएँ, पर आज जो निराला की पूजा-प्रतिष्ठा हो रही है, उससे उनकी साधना स्वत: सिद्ध हो रही है। पुण्यबल के बिना कीर्ति-प्रसार कदापि नहीं होता। निस्पृह त्याग से बढ़कर कोई पुण्य भी नहीं। व्यास वचनानुसार “परोपकाराय पुण्याय” तभी मनुष्य कर पाता है जब उसकी प्रकृति में त्याग-वृत्ति की प्रधानता रहती है।

प्रश्न 1.
निराला जी अपनी कमाई का अधिकांश भाग किस पर खर्च कर देते थे?
(क) परोपकार में
(ख) पुस्तकों पर
(ग) छात्रों पर
(घ) परिवार पर
उत्तर :
(क) परोपकार में

प्रश्न 2.
मतवाला कब निकला करता था ?
(क) प्रत्येक रविवार को
(ख) प्रत्येक शनिवार को
(ग) प्रत्येक सोमवार को
(घ) प्रत्येक शुक्रवार को
उत्तर :
(ख) प्रत्येक शनिवार को

प्रश्न 3.
बंगाली युवक मतवाला बेचकर क्या प्राप्त करते थे?
(क) भोजन
(ख) आश्रय
(ग) अपना कमीशन
(घ) पूरा पैसा
उत्तर :
(ग) अपना कमीशन

प्रश्न 4.
मतवाला का दरबान कहाँ का रहने वाला था ?
(क) दिल्ली
(ख) छपरा
(ग) मुजफ्फरपुर
(घ) गोरखपुर बस्ती की ओर का
उत्तर :
(घ) गोरखपुर बस्ती की ओर का

प्रश्न 5.
निराला लेखक से मिलने के लिए कहाँ गए थे ?
(क) छपरा
(ख) मुजफ्फरपुर
(ग) गोरखपुर
(घ) बलिया
उत्तर :
(क) छपरा

प्रश्न 6.
निराला जी के त्याग की कहानियाँ कितनी हैं?
उत्तर :
निराला जी के त्याग की कहानियाँ अनंत हैं। उनकी तो डायरी लिखी जा सकती है।

प्रश्न 7.
निराला जी की किस पत्रिका की धूम थी?
उत्तर :
निराला जी की पत्रिका ‘मतवाला’ की धूम थी।

प्रश्न 8.
‘सुहद’ में किस उपसर्ग का प्रयोग है?
उत्तर :
‘सु’ उपसर्ग।

प्रश्न 9.
‘ताला-कुंजी’ में कौन-सा समास है?
उत्तर :
‘द्वंद्व’ समास।

प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उच्चित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
महाप्राण निराला।

15. कवियों, शायरों तथा आम आदमी को सम्मोहित करने वाला ‘पलाश’ आज संकट में है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर इसी पलाश का विनाश जारी रहा तो यह ‘डाक के तीन पात’ वाली कहावत में ही बचेगा। अरावली और सतपुड़ा पर्वत शृंखलाओं में जब पलाश वृक्ष चैत (वसंत) में फूलता था तो लगता था कि वन में आग लग गई हो अथवा अग्निदेव फूलों के रूप में खिल उठे हों।

पलाश पर एक-दो दिन में ही संकट नहीं आ गया है। पिछले तीस-चालीस वर्षों में दोना-पत्तल बनाने वालों, कारखाने बढ़ने, गाँव-गाँव में चकबंदी होने तथा वन माफियाओं द्वारा अंधाधुँध कटान कराने के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में पलाश के वन घटकर दस प्रतिशत से भी कम रह गए हैं। वैज्ञानिकों ने पलाश वनों को बचाने के लिए ऊतक संवद्धन (टिशू कल्चर) द्वारा परखनली में पलाश के पौधों को विकसित कर एक अभियान चलाकर पलाश वन रोपने की योजना प्रस्तुत की है। हरियाणा तथा पुणे में ऐसी दो प्रयोगशालाएँ भी खोली हैं।

एक समय था जब बंगाल का पलाशी का मैदान, अरावली की पर्वत-मालाएँ टेसू के फूलों के लिए दुनिया भर में मशहूर थी। विदेशों से लोग पलाश के रक्तिम वर्ण के फूल देखने आते थे। महाकवि पद्माकार का छंद-‘ कहै पद्माकर परागन में, पौन हूँ में, पानन में, पिक में, पलासन पगंत है।’ लिखकर पलाश की महिमा बखान की थी। ब्रज, अवधी, बुंदेलखंडी, राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी, लोकगीतों में पलाश के गुण गाए गए हैं। कबीर ने तो ‘खांखर भया पलाश’ – कहकर पलाश की तुलना एक ऐसे सुंदर-सजीले नवयुवक से की है, जो अपनी जवानी में सबको आकर्षित कर लेता है किंतु बुढ़ापे में अकेला रह जाता है। वसंत व ग्रीष्म ऋतु में जब तक टेसू में फूल व हरे-भरे पत्ते रहते हैं, उसे सभी निहारते हैं किंतु शेष आठ महीने वह पतझड़ का शिकार होकर झाड़-झंखाड़ की तरह रह जाता है।

पर्यावरण के लिए प्लास्टिक-पालीथीन की थैलियों पर रोक लगने के बाद पलाश की उपयोगिता महसूस की गई, जिसके पत्ते, दोनों, थैले, पत्तल, थाली, गिलास सहित न जाने कितने काम में उपयोग में आ सकते है। पिछले तीस-चालीस साल में नब्बे प्रतिशत वन नष्ट कर डाले गए। बिन पानी के बंजर, ऊसर तक में उग आने वाले इस पेड़ की नई पीढ़ी तैयार नहीं हुई। यदि यही स्थिति रही और समाज जागरूक न हुआ तो पलाश विलुप्त वृक्ष हो जाएगा।

प्रश्न 1.
किन लोकगीतों में पलाश का वर्णन किया गया है?
(क) ब्रज्ज
(ख) अवधी
(ग) पंजाबी
(घ) इन सभी में
उत्तर :
(घ) इन सभी में

प्रश्न 2.
पलाश की उपयोगिता कब अनुभव की गई?
(क) चकबंदी के बाद
(ख) ऊतक संवर्धन द्वारा पलाश उगान के बाद
(ग) प्लास्टिक की थैलियों पर रोक लगाने के बाद
(घ) जमीन बंजर होने के बाद
उत्तर :
(ग) प्लास्टिन,पॉलीथीन की थैलियों पर रोक लगने के बाद

प्रश्न 3.
पलाश पर अधिक संकट कब से आया है?
(क) पिछले दो-तीन वर्षों से
(ख) पिछले दस-बीस वर्षों से
(ग) पिछले बीस-तीस वर्षों से
(घ) पिछले तीस-चालीस वर्षों से
उत्तर :
(घ) पिछले तीस-चालीस वर्षों से

प्रश्न 4.
पलाश के वन घट कर कितने रह गए हैं?
(क) पचास प्रतिशत से भी कम
(ख) तीस प्रतिशत से भी कम
(ग) बीस प्रतिशत से भी कम
(घ) दस प्रतिशत से भी कम
उत्तर :
(घ) दस प्रतिशत से भी कम

प्रश्न 5.
पलाश किन स्थितियों में उग सकता है?
(क) उपजाक स्थान में
(ख) केवल नमी वाले स्थानों
(ग) बंजर और ऊसर स्थान में भी
(घ) केवल लाल मिद्टी
उत्तर :
(ग) बंजर और ऊसर स्थान में भी

प्रश्न 6.
अरावली और सतपुड़ा में पलाश के वृक्ष कैसे लगते थे ?
उत्तर :
अरावली और सतपुड़ा पर्वत शृंखलाओं में फूले हुए पलाश के वृक्ष ऐसे लगते थे जैसे जंगल में आग लग गई हो या अंग्निदेव फूलों के रूप में खिल उठे हों।

प्रश्न 7.
पलाश के वृक्ष कम क्यों रह गए हैं?
उत्तर :
पलाश के वृक्षों की अंधाधुँध कटाई, गाँवों की चकबंदी आदि के कारण इनकी संख्या बहुत कम रह गई है।

प्रश्न 8.
‘सम्मोहित’ में प्रत्यय छॉटिए।
उत्तर :
‘इत’ प्रत्यय।

प्रश्न 9.
‘दोना-पत्तल’ में समास का भेद छॉटिए।
उत्तर :
दोना और पत्तल = ‘द्वंद्व’ समास।

प्रश्न 10.
अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
पलाश।

16. भाषा और धर्म किसी भी संस्कृति के मूलाधार होते हैं। धर्म वह मूल्य तय करता है जिनसे जनसमूह संचालित होते हैं और भाषा सनातन मानव परंपराओं की वाहक और नई अभिव्यक्ति का वाहन दोनों है। निर्मल के रचना संसार में भारतीय धर्मों और भाषाओं की अचरजपूर्ण भिन्नता के प्रति एक सहज उत्सुकता और आदर का भाव हर कहीं है लेकिन इसी के साथ एक त्रासद एहसास भी है कि असली लड़ाई बाहरी युद्ध क्षेत्रों में नहीं, मनुष्यों के मनों में चलती है और आवश्यकता नहीं कि उस लड़ाई में जीत हमेशा उदात्त, धर्यवान और क्षमाशील तत्वों की ही हो। “मैं उस क्षण जार्ज से डरने लगा। खुद अपने से डरने लगा।

मुझे लगा, जैसे मैं अब कभी उसकी और नहीं देख सकूँगा। उस क्षण में कोई भयंकर चीज़ कर सकता है। मैं उससे बहुत कुछ कहना चाहता था, कुछ भी…..किंतु अब हम दोनों एक संग होते हुए भी अचानक अकेले पड़ गए थे और मैं कुछ भी नहीं कर सकता था…। शायद इससे भयंकर और कोई चीज़ नही जब दो व्यक्ति एक संग होते हुए भी यह अनुभव कर लें कि उनमें से कोई भी एक-दूसरे को नहीं बचा सकता….. ।”‘ (लंदन की एक रात)

इस दर्शन के कारण आदमी, देवता, नदी, पर्वत, वनोपवन से जुड़े मिथकों की एक धुंध हमेशा उनके मन को आधुनिक जीवन जीने के बीच स्वदेश, परदेश हर कहीं घेरे रहती है। ‘मिथक मनुष्य की ‘सर्जना’ उतनी नहीं, जितना वह मनुष्य की अज्ञात, अनाम, सामूहिक चेतना का अंग हैं इसके द्वारा अर्थ-ग्रहण किया जाता है …कला चेतना की उपज है (जो) …..उदात्ततम क्षणों में मिथक होने का स्वप्न देखती है….जिसमें व्यक्ति और समूह का भेद मिट जाता है।” (कला, मिथक और यथार्थ)

अंतत: एक लेखक में ऐसद्धो सच्चे और कठोर आत्मालोचन की क्षमता भी संस्कृति के गहरे अनुशासन से ही उपजती है और देर से ही सही, यह एक कलाकार को मानव नियति को ठीक से समझकर संस्कृति के नए आयाम रचने की ताकत भी प्रदान करती है। व्यक्ति और समाज के अंतरसंबंध कैसे बनते हैं और उनके बीच संप्रेषण के सहज तार कभी कैसे टूट भी जाते हैं, उन्हें किस हद तक टूटने से बचाया जा सकता है ? संस्कारित, सभ्य किंतु निष्कवच कला को, उसकी विनम्र और अहिंसापरक विचारशीलता को सर्वग्रासी सुरसाकार आक्रामक विचारधाराओं के जबड़ों से क्योंकर बचाया जाना जरूरी है ? इन सवालों को लेकर निर्मल का स्वर विनम्र भले हो लेकिन उसे हमेशा आदर से सुना जाएगा।

प्रश्न 1.
निर्मल वर्मा के व्यक्तित्व की क्या पहचान है?
(क) सांस्कृतिकता
(ख) सभ्यता
(ग) विनम्रता
(घ) ये सभी
उत्तर :
(घ) ये सभी

प्रश्न 2.
भाषा किसका वाहन है ?
(क) नई परंपराओं का
(ख) नई अभिव्यक्ति का
(ग) नई विचारधारा का
(घ) नए सप्नों का
उत्तर :
(ख) नई अभिव्यक्ति का

प्रश्न 3.
भाषा किसकी वाहिका है ?
(क) अभिव्यक्ति की
(ख) सनातन मानव परंपराओं का
(ग) नए विचारों की
(घ) नए लक्ष्यों की
उत्तर :
(ख) सनातन मानव परंपराओं की

प्रश्न 4.
कला किसकी उपज है ?
(क) चेतना की
(ख) बुद्धि की
(ग) सोच की
(घ) विचारों की
उत्तर :
(क) चेतना को

प्रश्न 5.
निर्मल वर्मा के स्वरों को किस प्रकार सुना जाएगा ?
(क) ध्यान से
(ख) आवर से
(ग) निरादर से
(घ) समान भाव से
उत्तर :
(ख) आदर से

प्रश्न 6.
संस्कृति के मूलाधार किसे माना जाता है ?
उत्तर :
संस्कृति के मूलाधार भाषा और धर्म को माना जाता है क्योंकि इन्हीं के द्वारा जीवन-मूल्य और सनातन परंपराओं का वहन और जीवन का संचालन होता है।

प्रश्न 7.
निर्मल वर्मा के साहित्य में क्या उपलब्ध होता है?
उत्तर :
निर्मल वर्मा के साहित्य में भारतीय धर्मों और भाषाओं की आश्चर्यजनक उत्सुकता और आदर का भाव विद्यमान है। साथ ही मानव के मन में उत्पन्न होने वाले भिन्न-भिन्न भाव भी उपलब्ध होते हैं।

प्रश्न 8.
‘उत्तुकता’ में प्रत्यय छाँटिए।
उत्तर :
‘ता’ प्रत्यय।

प्रश्न 9.
‘अनाम’ में उपसर्ग छाँटिए।
उत्तर :
‘अ’ उत्सर्ग

प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
‘निर्मल वर्मा की कला-साधना की पहचान’।

17. इस कदर बढ़ती अपसंस्कृति के घनघोर अँधेरे में मानवता को राह दिखाने के लिए साहित्यिक पत्रिकाओं के जलते हुए मशाल की आवश्यकता होती है जो अंधकार में भटकते मानव को राह दिखा सके। विशाल बाँध और कारखाने निर्मित कर संसार की गहराई नापकर, मंगल में पाँव रखकर हम विकास के डंके भले ही पीट लें, यदि आदमी को आदमी बनाने की जुगत नहीं कर सके तो यह विनाश है। बौद्धिकता और भौतिकता की दानवीय शक्ति मानव को निगल जाएगी। ईंट, पत्थर के भवनों में दमदमाहट लाने के लिए कितने रंग-रोगन किए जाते हैं, किंतु हाँड़-मांस के पुतले मानव में दया, क्षमा, कर्णादि, ममता, समसरसता और विश्वबंधुत्व का भाव संचरण करने के लिए तंत्र भी मौन है।

इसके लिए दधीचि सरीखे दान और कर्णादि सरीखे त्याग की आवश्यक्ता होती है। मानवता को यह उपहार सत्ता के आधारकों से नहीं सच्चे साहित्य साधकों से ही मिल सकता है। जब इतिहास कंदराओं में भटक जाता है, राजमार्ग से रक्त-स्नान में फिसल जाता है, तब साहित्यकार वीथिकाओं में कराहती मनुष्यता की बाँह धाम लेता है और जिन प्रतिमाओं पर समय की धूल पड़ जाती है उसे साहित्यकार ही साफ़ करता है, सँवारता-सजाता है और उनके गीत गाता है। जबकि साहित्य प्रत्येक युग के लिए समान रूप से आनंददायक होता है और हृदय का स्पंदन एक-सा रहता है। उसका रहस्य यह है कि वह हदय का विषय है।

हमारे अंत:करण में उठने वाली आशा और निराशा, हर्ष और विषाद, क्रोध और क्षमा, वाल्मीकि और व्यास, कालिदास और भवभूति, सूरदास और तुलसीदास, होमर और दांते, शेक्सपीयर और गेटे, मीर और गालिब जैसे साहित्यकारों की लोकप्रियता का कारण एक विशाल सहददय समाज के लिए उनके साहित्य की संवेद्यता ही है। किसी समीक्षक ने लिखा भी है कि संसार की किसी भी भाषा के नाटक, कालिदास के हों या शेक्सपीयर के हों, टाल्सटॉय का कथा साहित्य हो या प्रेमचंद का, कविताएँ एकबाल की हों, इलियट की या जयशंकर प्रसाद की, साहित्य शास्त्र अभिनव गुप्त का हो या कालीराज का या रामचंद्र शुक्ल का, इनके सबके कृतित्व के कालजयी होने का कारण है-उनका रचनात्मक प्रतिभा से संपन्न होना, जिसके कारण इनकी उद्भाविका क्रिया के इनकी रचनाओं में प्रभूत प्रमाण मिलते हैं, वर्तमान काल में यह सवाल अकसर पूछा जाता है कि बढ़ते हुए संचार माध्यमों के युग में केबल, चैनलों की भरमार के इस दौर में साहित्यिक पत्रिकाओं की क्या भूमिका होगी ? वैसे भी बहुत कम लोगों की रुचि साहित्यिक पत्रिकाएँ पढ़ने में है।

इधर बढ़ते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स तरक्की ने इसमें और भी कमी ला दी। नतीजन साहित्यिक पत्रिकाओं की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है। बहुत से प्रकाशकों का यह मन बनने लगा है कि अब साहित्यिक पत्रिकाएँ नहीं प्रकाशित हो पाएँगी। लोगों का तर्क यह है कि चलती, बोलती, फिरती तस्वीरों के आगे लिखे हुए शब्द अपनी महत्ता खो बैठे हैं। बहुत-सी पत्रिकाएँ, साहित्यिक पत्रिकाएँ, गंभीर लघु पत्रिकाएँ एक-एक करके बंद हो गई हैं। हालांकि इससे पड़ते विपरीत प्रभावों से साहित्यिक पत्रिकाओं की भूमिका सिद्ध हो जाती है।

लोगों में संवेदनशीलता बढ़ रही है। मीडिया के लिए दुर्घटना, विपदा आदि सब सनसनी फैलाने वाला, बिकने वाला माल है, इससे अधिक कुछ नहीं। इधर कुछ वर्षों से पाठकों की रुचियों के नाम पर आए साहित्य से बरसों से साहित्यिक पत्रिकाओं को काटा जा रहा है और देखते ही देखते वे सच्ची कथाओं वाले बाजारू साहित्य पर उत्र आए हैं। यह सब बहुत चिंताजनक और भयावह हैं। पढ़े-लिखे लोग इस दौर के महत्वपूर्ण साहित्यकारों की कृतियों के बारे में तो छेड़िए, उनके नाम तक नहीं जानते। नागार्जुन, शमशेर बहादुर सिंह, मुक्तिबोध जैसे कवियों को भला कितने लोग जानते हैं ?

प्रश्न 1.
मानव में कौन-कौन से गुण होने चाहिए?
(क) दया
(ख) क्षमता
(ग) ममता
(घ) ये सभी
उत्तर :
(घ) ये सभी

प्रश्न 2.
आज का मानव कहाँ भटक रहा है ?
(क) अपसंस्कृति के अंधकार में
(ख) माया के अंधकार में
(ग) धन के लाभ में
(घ) संसार के मायाजाल में
उत्तर :
(क) अपसंस्कृति के अंधकार में

प्रश्न 3.
मानव को कौन निगल जाएगी?
(क) माया
(ख) बौधिकता और भौतिकवादी की शक्ति
(ग) चिंता
(घ) क्रोधागिन
उत्तर :
(ख) बौद्धिकता और भौतिकतावादी की शक्ति

प्रश्न 4.
आज किसके जैसे त्याग की आवश्यकता है?
(क) हरिश्चंद जैसे
(ख) गांधी जैसे
(ग) दधीचि और कर्ण जैसे
(घ) भगत सिंह जैसे
उत्तर :
(ग) दधीचि और कर्ण जैसे

प्रश्न 5.
कौन मानवजाति को सजा-सँवारकर उसके गीत गाता है?
(क) कथाकार
(ख) कवि
(ग) गायक
(घ) साहित्यकार
उत्तर :
(घ) साहित्यकार

प्रश्न 6.
किस अवस्था में विनाश निश्चित है?
उत्तर :
यदि मनुष्य को मनुष्य बनाने का प्रयास नहीं किया गया तो विनाश निश्चित है।

प्रश्न 7.
आज के तीन प्रसिद्ध कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर :
आज के तीन प्रसिद्ध कवि नागारुज, मुक्तिबोध और शमशेर बहादुर सिंह हैं।

प्रश्न 8.
‘अपसंस्कृति’ शब्द में से उपसर्ग छाँटिए।
उत्तर :
‘अप’ उपसर्ग।

प्रश्न 9.
रंग-रोगन में समास का भेद छाँटिए।
उत्तर :
द्वंद्व समास।

प्रश्न 10.
अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
साहित्य और साहित्यिक पत्रिकाएँ।

18. सतलुज का पुराना नाम कितना सुंदर था। देश के ऋषि-मुनि इसे शतदू नाम से पुकारते थे। ऋग्वेद में ऋषि-मुनियों ने शतदू का यशगान किया है। तब भारतवर्ष हिम वर्ष नाम से जाना जाता था। भारत के राजा होने पर इसे भारतवर्ष कहा जाने लगा। शतदू के किनारे भरत ने अपने राज्य का विस्तार किया। इससे सभ्यता का भी विकास हुआ। वह पूर्व वैदिक काल की सभ्यता थी। शतदू के तट पर ही विश्वामित्र और वशिष्ठ के बीच युद्ध हुआ। वशिष्ठ अपने ज्ञान और तप के कारण ब्रहमर्षि कहलाते थे। विश्वामित्र अपने को किसी से कम नहीं समझते थे। वे चाहते थे लोग उन्हें भी ब्रह्मर्षि कहें। वशिष्ठ को नीचा दिखाने के लिए विश्वामित्र सेना लेकर आ पहुँचे। वशिष्ठ ने उनका सत्कार करना चाहा। विश्वामित्र घमंड से बोले तू हमारा क्या सत्कार करेगा। हमारे लाखों लोग हैं। हम शाही भोजन के अभ्यस्त हैं।

वशिष्ठ जी ने कामधेनु गाय की कृपा से विश्वामित्र की सारी आकाँक्षाएँ पूरी कर दी। इस पर विश्वामित्र ने कामधेनु की ही माँग रख दी। माँग पूरी न होती देख विश्वामित्र युद्ध ठान बैठे। इस प्रकार शतद्रू के किनारे यह पहला युद्ध हुआ था।

शिष्कीला से थोड़ा आगे जाकर पर्वतमाला के बीच सतलुज आगे बढ़ती है। हिंदुस्तान-तिब्यत सड़क शिफ्कीला तक बनाई गई थी। पुरनी हिंदुस्तानतिब्धत सड़क तो अब उपयोग में नहीं लाई जाती। हाँ सतलुज के प्रवाह पथ के साथ-साथ नई हिंदुस्तान-तिब्यत सड़क बन गई है। अब इसे शिप्कीला से आगे खाबो होते हुए रोहतांग से जोड़ दिया गया है। शिप्कीला के पास खाबो से पहले सतलुज का संगम स्पिती से होता है। यहीं सतलुज का एक पुल बना दिया गया है जिससे किन्नौर के जिला मुख्यालय रिकांगपियो से खाबो, काजा आदि के लिए बसें आती-जाती हैं।

शिप्कीला से भारत में प्रवेश करने के बाद सतलुज करछम पहुँचने से पहले किन्नर कैलाश तथा हिमालय के गल क्षेत्र (ग्लेसियर) से आने वाले अनगिनत होतों का जल अपने में समाहित कर क्षिप्र से क्षिप्रतर वेग से बहती है। करहम के पास बस्पा से इसका संगम होता है। यहाँ तक सतलुज देवदारू, चीड़ की जिस घनी हरीतिमा के बीच रहती है वह विरल होता है। रामपुर बुशहर पहुँचने तक घाटियों में हरियाली कम होती जाती है। लेकिन नदी के जल की उपयोगिता बढ़ती जाती है।

नाथपा-झाखड़ी जल विद्युत् परियोजना के द्वारा पूह से लेकर रामपुर, बुशहर तक सतलुज के वेग के दोहन की कोशिश की जा रही है। पूह के पास सतलुज पाँच हज्ञार फुट की ऊँचाई पर बहती है। अतः पानी को केवल मोड़ने की ज़रूरत है-बिजली उत्पादन अपेक्षाकृत आसानी से हो जाता है। करछम के पास से रामपुर, बुशहर तक कई किलोमीटर लंबी सुरंग बनाई गई है। इसमें से बस्पा-सतलुज का पानी छोड़ा जाएगा तथा रामपुर-बुशहर के पास जलशक्ति से संयंत्र चलेंगे। बिजली पैदा होगी। सतलुज पर जहाँ भी यांत्रिकी अनुकूलता है छोटे-बड़े संयंत्र स्थापित कर जल विद्युत् का उत्पादन हो रहा है।

पूरी सतलुज घाटी में निर्माण गतिविधियाँ जारी हैं। एक उत्सव जैसा वातावरण है। सतलुज पर सबसे बड़ा बाँध तो भाखड़ा पर है किंतु भाखड़ा बाँध बाहरी विशेषज्ञों की देख-रेख में बनाया था। जबकि नाथपा-झाखड़ी भारतीय इंजीनियरों की देन है। यह ज़रूर है कि सड़क को चौड़ा करना, भारी परिवहन तथा उत्खनन आदि के कारण-किन्नर लोक का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। यहाँ से अपनी भेड़-बकरियाँ लेकर पशुपालक यायावर मैदानों की ओर जाया करते थे। सड़क परिवहन और निर्माण के कारण ये पशुपालक यायावर परेशान हैं।

भेड़-बकरियों का पालन कम हो रहा है। शायद यह सतलुज के तीव्र वेग का परिणाम है कि रामपुर-बुशहर जैसे अपेक्षाकृत गम्म स्थान पर भी नदी स्नान की परंपरा नहीं है। करछम-पूह आदि तो अत्यंत उंडे स्थान हैं, जहाँ नदी स्नान की कल्पना भी मुश्किल है। तथापि सतलुज का पानी स्नानार्थियों को भले ही न आकर्षित करे किंतु गाँव-गाँव को बिजली अवश्य दे रहा है ताकि वे अपने उज्ज्वल भविष्य की ओर उन्मुख हो सकें।

प्रश्न 1.
वैदिक काल में भारतवर्ष किस नाम से जाना जाता था?
(क) भारत
(ख) इंडिया
(ग) हिंदुस्तान
(घ) हिमवर्ष
उत्तर :
(घ) हिमवर्ष

प्रश्न 2.
विश्वामित्र और वशिष्ठ के बीच युद्ध कहाँ हुआ था ?
(क) गंगा किनारे
(ख) शतनु के किनारे
(ग) यमुना के किनारे
(घ) नर्मदा के किनारे
उत्तर :
(ख) शतद्यू के किनारे

प्रश्न 3.
वशिष्ठ बहमर्षि क्यों कहलाते थे ?
(क) ज्ञान और तप के कारण
(ख) सत्यवादी होने के कारण
(ग) उदार होने के कारण
(घ) दानवीरता के कारण
उत्तर :
(क) ज्ञान और तप के कारण

प्रश्न 4.
विश्वामित्र ने वशिष्ठ से युद्ध क्यों किया था ?
(क) कामधेनु के कारण
(ख) दानवीरता के कारण
(ग) ज्ञान के कारण
(घ) कर्पवृक्ष के कारण
उत्तर :
(क) कामधेनु के कारण

प्रश्न 5.
हिंदुस्तान-तिख्यत सड़क कहाँ तक बनाई गई थी?
(क) खाघो तक
(ख) शिष्टिला तक
(ग) काजा तक
(घ) बस्पा तक
उत्तर :
(ख) शिप्कीला तक

प्रश्न 6.
ऋ्रृ्वेव में किसका गुणगान कियाग या है?
उत्तर :
ऋम्वेद में सतलुज का ऋषियों के द्वारा गुणगान किया गया है जिसे पहले शतद्रू नाम से जाना जाता था।

प्रश्न 7.
पूर्व वैदिक काल में सक्यता का विकास कहाँ हुआ था?
उत्तर :
पूर्व वैदिक काल में शतदू के किनारे महाराज भरत ने अपने राज्य का विस्तार किया था और यहीं सभ्यता का विकास हुआ था।

प्रश्न 8.
‘ऋषि-मुनियों’ में समास का भेद छॉटिए।
उत्तर :
‘द्वंद्व’ समास।

प्रश्न 9.
‘उपयोगिता’ में से प्रत्यय छाँटिए।
उत्तर :
‘ता’ प्रत्यय।

प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
सतलुज।

19. भारत के संविधान में सभी को उन्नति के बराबर अवसर देने की बात कही गई है। बाद में आपातकाल में संविधान में समाजवाद लाने की बात भी जोड़ी गई। समाजवाद की बात को फिलहाल भूल भी जाएँ तो भी समान अवसर की बात तो भूली नहीं जा सकती जिस पर देश के संविधान-निर्माताओं ने अपनी मोहर लगाई थी लेकिन इस समय जो राजनीतिक और आर्थिक माहौल है उसमें संविधान की इस बुनियादी बात को लोग भूले हुए हैं और उन्हें आज कोई इसकी याद दिलाने वाला भी नहीं है।

अतः विश्व बैक या कोई और संस्था अगर आर्थिक असमानता बढ़ने की बात करती है तो इसे इस तरह दरगुजर कर दिया जाता है, जैसे यह बात कही ही नहीं गई हो या गलती से कह दी गई हो। वैसे यह सच भी है कि विश्व बैंक या अंतराष्ट्रीय मुद्राकोष जैसी संस्थाओं को किसी भी देश में आर्थिक असमानता बढ़ने की वास्तविक चिंता नहीं है। ऐसी बातें अकसर क्षेपक या प्रसंग के रूप में ही आती हैं। इस देश में अभी भी लगभग चालीस करोड़ लोग ऐसे हैं जो गरीबी की हालत में जी रहे हैं।

यानी जिनके पास खाने-कपड़े रहने का कोई पुखता इंतजाम नहीं है। भारत में आज सत्तर हज्ञार से ज्यादा परिवार ऐसे ज्ञरूर हो गए हैं जिनके पास दस लाख रुपये से ज्यादा की दौलत है लेकिन इसी के साथ यह भी एक सच्चाई है कि आज औसत भारतीय परिवार 1991 के मुकाबले साल में सौ किलोग्राम अनाज कम खा रहा है। आँकड़ों के अनुसार 2002-03 में प्रति व्यक्ति अनाज की खपत उस समय से भी कम रही, जब आज़ादी से पहले बंगाल का सबसे भीषण अकाल पड़ा था।

इस सच्चाई से भी हम वाकिफ हैं कि यही भारत जो विश्व अर्थव्यवस्था को चुनौती देता बताया जाता है, संयुक्त राष्ट्र मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार 124 वें स्थान से भी पिछड़कर 12 वें स्थान पर चला गया है। यहाँ पिछले दस वर्षों में बाल-मृत्यु दर में गिरावट इतनी धीमी रही है कि आज बांग्लादेश भी-जो हमसे इस मामले में पीछे रहा करता था-आगे बढ़ चुका है। भारत विश्व के उन कुछ देशों में से है जहाँ बच्चों के पोषण का स्तर सबसे अधिक गिरा हुआ है। इस मामले में भारत की बदनामी इतनी ज्यादा है कि उसकी तुलना अफ्रीका के कुछ बेहद ही गरीब देशों से की जाती है।

कुल मिलाकर हम एक ऐसे देश के निवासी बनते जा रहे हैं जिसमें अर्थव्यवस्था तो प्रगति कर रही है मगर लोग पिछड़ते जा रहे हैं जबकि दिलचस्प यह है कि इंदिरा गांधी के जमाने में जब अर्थव्यवस्था की गति तेज़ नहीं थी, जब अर्थव्यवस्था आज के मुहावरों में जंजीरों में जकड़ी हुई थी तब लोग ज्यादा तेजी से प्रगति कर रहे थे। आज थोड़ी-सी जगमगाहट ने घने अंधेरे को इस तरह ढक दिया है कि अच्छे अच्छों को अँधेरे का आभास तक नहीं होता। वास्तव में आर्थिक असमानता, सामाजिक असमानता को भी बरकरार रखने में मदद करती है क्योंकि आर्थिक समानता ही वह पहली सीढ़ी है जोकि व्यक्ति को सामाजिक समानता की ओर ले जा सकती है।

इसके बगैर सामाजिक असमानता मिटाने के बारे में सोचा भी नही जा सकता लेकिन हमारे यहाँ पिछले वर्षों में सामाजिक असमानता को खत्म करने के आधे-अधूरे राजनीतिक प्रयास ही हुए हैं। इसलिए इसका बहुत असर हमारे आर्थिक ढाँचे पर नहीं पड़ा है। इसी का असर है कि आज लगभग सर्वसम्मति से यह मान लिया गया है कि बिहार-जैसे राज्य का कुछ नहीं किया जा सकता और वहाँ जो आज स्थिति है, उसे खुदा भी ठीक नहीं कर सकता यानी वहाँ की सरकार पर भी यह नैतिक दायित्व अब नहीं रहा कि वह बिहार को फिर से आर्थिक और सामाजिक रूप से खड़ा करे। अगर वह मात्र इतना भी कर लेती है कि जो स्थिति इस समय वहाँ है उसे और बिगड़ने न दे तो इससे भी हमारे देश का आला वर्ग प्रसन्न हो जाएगा और इसे भी एक उपलब्धि माना जाएगा।

प्रश्न 1.
भारत के संविधान में क्या बात कही गई है?
(क) अपराध की सजा की
(ख) उन्नति के बराबर अवसर देने की
(ग) नौकरी वेने की
(घ) घर देने की
उत्तर :
(ख) उन्नति के बराबर अवसर देने की

प्रश्न 2.
वर्तमान में लोग क्या भूले हुए हैं?
(क) अर्थव्यवस्था को
(ख) स्वतंत्रता-संग्राम को
(ग) शहीदों के बलिदान को
(घ) संविधान की बुनियादी बातों को
उत्तर :
(घ) संविधान की बुनियादी बातों को

प्रश्न 3.
आज औसत भारतीय परिवार सन 1991 के मुकाबले कितना अनाज कम खा रहा है ?
(क) 10 किलोग्राम
(ख) 100 किलोग्राम
(ग) 100 किलोग्राम
(घ) 10000 किलोग्राम
उत्तर :
(ख) 100 किलोग्राम

प्रश्न 4.
देश की आज्ञादी से पहले कहाँ अकाल पड़ा था ?
(क) गुजरात में
(ख) बंगाल में
(ग) महाराष्ट् में
(घ) राजस्थान में
उत्तर :
(ख) बंगाल में

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र मानव विकास रिपोर्ट में भारत किस स्थान पर है ?
(क) पहले स्थान पर
(ख) 100 वें स्थान पर
(ग) 120 वें स्थान पर
(घ) 127 वें स्थान पर
उत्तर :
(घ) 12 गवें स्थान पर

प्रश्न 6.
आपातकाल में हमारे संविधान में किस बात को जोड़ा गया ?
उत्तर :
आपातकाल में हमारे संविधान में समाजवाद लाने की बात जोड़ी गई थी।

प्रश्न 7.
विश्व बैंक या अंतराष्ट्रीय मुद्राकोष को किसकी चिंता नहीं है ?
उत्तर :
विश्व बँक या अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष को किसी भी देश में आर्थिक असमानता बढ़ने की कोई चिंता नही है, ऐसी बातें तो कभी-कभी प्रसंग के रूप में कही जाती है।

प्रश्न 8.
‘विश्व बैंक’ में कौन-सा समास है ?
उत्तर :
संबंध तत्पुरुष समास।

प्रश्न 9.
‘बेहद’ में कौन-सा उपसर्ग है ?
उत्तर :
‘बे’ उपसर्ग।

प्रश्न 10.
अवतरण के लिए उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
भारत की अर्थव्यवस्था।

20. जर्मनी के सुप्रसिद्ध विचारक नीत्रे ने, जो विवेकानंद का समकालीन था, घोषणा की कि ‘ईश्वर मर चुका है’ नीत्शे के प्रभाव में यह बात चल पड़ी कि अब लोगों को ईश्वर में दिलचस्पी नही रही। मानवीय प्रवृत्तियों को संचालित करने में विज्ञान और बौद्धिकता निर्णायक भूमिका निभाते हैं-यह स्वामी विवेकानंद को स्वीकार नहीं था। उन्होंने धर्म का बिलकुल नया अर्थ दिया। स्वामी जी ने माना कि ईश्वर की सेवा का वास्तविक अर्थ गरीबों की सेवा है।

उन्होंने साधुओं-पंडितों, मंदिर-मस्जिद, गिरिजाघरों-गोंपाओं की इस परंपरागत सीच को नकार दिया कि धार्मिक जीवन का उद्देश्य संन्यास के उच्चतर मूल्यों को पाना या मोक्ष-प्राप्ति की कामना है। उनका कहना था कि ईश्वर का निवास निर्धनदरिद्र-असहाय लोगों में होता है क्योंकि वे ‘दरिद्र-नारायण’ हैं। ‘दरिद्र नारायण’ शब्द ने सभी आस्थावान स्ती-पुरुषों में कर्तव्य-भावना जगाई कि ईंश्वर की सेवा का अर्थ दीन-हीन प्राणियों की सेवा है।

अन्य किसी भी संत-महात्मा की तुलना में स्वामी विवेकानंद ने इस बात पर ज्यादा बल दिया कि प्रत्येक धर्म ग़रीबों की सेवा करे और समाज के पिछड़े लोगों को अज्ञान, दरिद्रता और रोगों से मुक्त करने के उपाय करे। ऐसा करने में स्त्री-पुरुष, जाति-संप्रदाय, मत-मतांतर या पेशे-व्यवसाय से भेदभाव न करे। परस्पर वैमनस्य या शत्रुता का भाव मिटाने के लिए हमें घृणा का परित्याग करना होगा और सबके प्रति प्रेम और सहानुभूति का भाव जगाना होगा।

प्रश्न 1.
नीत्शे कौन था?
(क) वैज्ञानिक
(ख) विचारक
(ग) साहित्यकार
(घ) कवि
उत्तर :
(ख) विचारक

प्रश्न 2.
स्वामी विवेकानंद के अनुसार ईश्वर की सेवा का वास्तविक अर्थ किसकी सेवा था?
(क) वास्तविकता की
(ख) गरीबों की
(ग) गुरुजनों की
(घ) अपनी
उत्तर :
(ख) गरीबों की

प्रश्न 3.
स्वामी विवेकानंद के अनुसार ‘दरिद्र नारायण’ कौन है?
(क) ईए्वर
(ख) माता नर्मदा
(ग) धनवान लोग
(घ) गरीब लोग
उत्तर :
(घ) गरीब लोग

प्रश्न 4.
विवेकानंद ने किस बात पर ज्ञोर दिया?
(क) गरीबों की सेवा पर
(ख) ईश्वर की आस्था पर
(ग) मूर्तिपूजा पर
(घ) शिक्षा पर
उत्तर :
(क) गरीबों की सेवा पर

प्रश्न 5.
स्वामी विवेकानंद के अनुसार शत्रुता मिटाने के लिए हमें किसका परित्याग करना होगा?
(क) घृणा का
(ख) ईं्य्या का
(ग) क्रोध का
(घ) भेद-भाव का
उत्तर :
(क) घृणा का

प्रश्न 6.
नीत्रो ने क्या घोषणा की थी?
उत्तर :
नीत्शो ने घोषणा की कि ईश्वर मर चुका है।

प्रश्न 7.
नीत्शे की घोषणा के पीछे क्या थी?
उत्तर :
नीत्शे की घोषणा के पीछे यह सोच थी कि मानवीय प्रवृत्तियों की संचालित करने में विज्ञान और बुद्धि का योगदान है।

प्रश्न 8.
उपसर्ग और प्रत्यय अलग कीजिए-संचालित अथवा निर्धनता।
उत्तर :
संचालित = सम् उपसर्ग, निर्धनता = ता प्रत्यय।

प्रश्न 9.
सरल वाक्य में बदलिए-स्वामी जी ने माना कि ईश्वर सेवा का वास्तविक अर्थ ग़रीबों की सेवा है।
उत्तर :
स्वामी जी ईश्वर सेवा का वास्तविक अर्थ ग़रीबों की सेवा मानते हैं।

प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश के लिए एक उपुयक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
धर्म का सत्य स्वरूप।

21. सिने जगत के अनेक नायक-नायिकाओं, गीतकारों, कहानीकारों और निर्देशकों को हिंदी के माध्यम से पहचान मिली है। यही कारण है कि गैर-हिंदी भाषी कलाकार भी हिंदी की ओर आए हैं। समय और समाज के उभरते सच को परदे पर पूरी अर्थवत्ता में धारण करने वाले ये लोग दिखावे के लिए भले ही अंग्रेजी के आग्रही हों, लेकिन बुनियादी और ज़मीनी हकीकत यही है कि इनकी पूँजी, इनकी प्रतिष्ठा का एकमात्र निमित्त हिंदी ही है। लाखों-करोड़ों दिलों की धड़कनों पर राज करने वाले ये सितारे हिंदी फ़िल्म और भाषा के सबसे बड़े प्रतिनिधि हैं।

‘छोटा परदा’ ने आम जनता के घरों में अपना मुकाम बनाया तो लगा हिंदी आम भारतीय की जीवन-शैली बन गई। हमारे आद्यग्रंधोंरामायण और महाभारत को जब हिंदी में प्रस्तुत किया गया तो सड़कों का कोलाहल सन्नाटे में बदल गया। ‘बुनियाद’ और ‘हम लोग’ से शुरू हुआ सोप ऑपेरा का दौर हो या सास-बहू धारावाहिकों का, ये सभी हिंदी की रचनात्मकता और उर्वरता के प्रमाण हैं। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ से करोड़पति चाहे जो बने हों, पर सदी के महानायक की हिंदी हर दिल की धड़कन और हर धड़कन की भाषा बन गई। सुर और संगीत की प्रतियोगिताओं में कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, असम, सिक्किम जैसे ग़ैर-हिंदी क्षेत्रों के कलाकारों ने हिंदी गीतों के माध्यम से पहचान बनाई। ज्ञान गंभीर ‘डिस्कवरी’ चैनल हो या बच्चों को रिझाने-लुभाने वाला ‘टॉम ऐंड जेरी’-इनकी हिंदी उच्चारण की मिठास और गुणवत्ता अद्भुत, प्रभावी और ग्राह्य है। धर्म-संस्कृति, कला-कौशल, ज्ञान-विज्ञान भी कार्यक्रम हिंदी की संप्रेषणीयता के प्रमाण हैं।

प्रश्न 1.
सिने जगत के अनेक नायक-नायिकाओं, गीतकारों आदि को किसके माध्यम से पहचान मिली?
(क) हिंदी
(ख) अंग्रेज़ी
(ग) मराठी
(घ) बंगाली
उत्तर :
(क) हिंदी

प्रश्न 2.
आम जनता के घरों को किसने अपना मुकाम बनाया?
(क) सिनेमा ने
(ख) हिंदी गीतों ने
(ग) छोटे परदे ने
(घ) फिल्मों ने
उत्तर :
(ग) छोटे परदे ने

प्रश्न 3.
हिंदी आम जनता की क्या बन गई?
(क) पहली पसंद
(ख) भाषा
(ग) जीवन-शैली
(घ) शत्रु
उत्तर :
(ग) जीवन-शैली

प्रश्न 4.
गैर-हिंदी क्षेत्रों के कलाकारों ने किसके माध्यम से अपनी पहचान बनाई?
(क) हिंदी के
(ख) अंग्रेज़ी के
(ग) तमिल के
(घ) संस्कृत के
उत्तर :
(क) हिंदी के

प्रश्न 5.
‘टॉम ऐंड जैरी’ किस प्रकार का कार्यक्रम है?
(क) ज्ञान गंभीर
(ख) भक्ति
(ग) बच्चों का
(घ) न्यूज्ञ
उत्तर :
(ग) बच्चों का

प्रश्न 6.
गैर-हिंदी भाषी कलाकारों के हिंदी सिनेमा में आने के दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
गैर-हिंदी भाषी कलाकार हिंदी सिनेमा मे इसलिए आते हैं क्योंकि हिंदी सिनेमा से इन्हें लोकप्रियता और प्रतिष्ठा मिलती है तथा आर्थिक लाभ मिलता है।

प्रश्न 7.
छोटा परदा से क्या तात्पर्य है ? इसका आम जन-जीवन की भाषा पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
छोटा परदा से तात्पर्य दूरदर्शन है। इस पर प्रसारित हिंदी भाषी कार्यक्रमों ने हिंदी को आम जन-जीवन की भाषा बना दिया है, जिसे हर कोई समझ और बोल सकता है।

प्रश्न 8.
आशय स्पष्ट कीजिए-सड़कों का कोलाहल सन्नाटे में बदल गया।
उत्तर :
इस कथन से यह आशय है कि जब दूरदर्शन पर हिंदी भाषा में रामायण और महाभारत जैसे कार्यक्रम प्रसारित होते थे तो लोग घरों से दूरदर्शन पर इन कार्यक्रमों को देखते थे तथा सड़कें सुनसान हो जाती थीं।

प्रश्न 9.
‘सन्नाटा’ और ‘ज्ञान’ शब्दों के विलोम लिखिए।
उत्तर :
सन्नाटा – कोलाहल, ज्ञान – अज्ञान

प्रश्न 10.
उपर्युक्त अवतरण के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
हिंदी की लोकप्रियता।

22. बाज्ञार ने, विज्ञापन ने हिंदी को एक क्रांतिकारी रूप दिया, जिसमें रवानगी है, स्वाद है, रोमांच है, आज की सबसे बड़ी चाहत का अकूत संसार है। इस तरह हिंदी भविष्य की भाषा, समय का तकाजा और रोज़गार की ज़रूरत बनती जा रही है।

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकारिता है। सूचना-क्रांति ने विश्व को ग्राम बना दिया है। मीडिया की जागरूकता ने समाज में एक क्रांति ला दी है और इस क्रांति की भाषा हिंदी है। इतने सारे समाचार चैनल हैं और सभी चैनलों पर हिंदी अपने हर रूप में नए कलेवर, तेवर में निखरकर, सँवरकर, लहरकर, ‘बोले तो बिंदास बनकर छाई रहती है।’ तुलनात्मक अर्थों में आज अंग्रेज़ी-पत्रकारिता का मूल्य, बाज़ार, उत्पादन, उपभोग और वितरण बहुत बड़ा है।

प्रिंट मीडिया की स्थिति ज्यादा बेहतर है, पत्र-पत्रिकाओं की लाखों प्रतियाँ रोज़ाना बिकती हैं। चीन के बाद सबसे अधिक अखबार हमारे यहाँ पढ़े जाते हैं, हिंदी के संत्रेक्षण की यह मानवीय, रचनात्मक और सारगर्भित उपलब्धि है। पत्र-पत्रिकाएँ हिंदी की गुणवत्ता और प्रचार-प्रसार के लिए कृतसंकल्प हैं। यह भ्रम फैलाया गया था कि हिंदी रोज्तगारोन्दुखी नहीं है। आज सरकारी, गैर-सरकारी क्षेत्रों में करोड़ों हिंदी पढ़े-लिखे लोग आजीविका कमा रहे हैं। भविष्य में हिंदी का बाज़ार-माँग और अधिक होगी।

पसीनों में, प्रार्थनाओं में, सिरहानों की सिसकियों में और हमारे सप्नों में जब तक हिंदी रहेगी तब तक वह बिना किसी पीड़ा या रोग के सप्राण, सवाक् और सस्वर रहेगी।

प्रश्न 1.
सूचना क्रांति ने विश्व को क्या बना विया है?
(क) बाज्वार
(ख) छत
(ग) शहर
(घ) ग्राम

प्रश्न 2.
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ किसे कहा गया है?
(क) पत्रकारिता को
(ख) लोकतंत्रीय शासन-प्रणाली
(ग) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को
(घ) अधिकार को

प्रश्न 3.
लेखक ने किसे व्यापक माना है?
(क) हिंदी पत्रकारिता को
(ख) अंग्रेज़ी पत्रकारिता को
(ग) हिंदी के पाठक को
(घ) हिंदी पत्र-पत्रिकाओं को

प्रश्न 4.
भविष्य में किसकी बाज्ञार माँग और अधिक होने की संभावना है?
(क) सरकारी एवं गैर सरकारी क्षेत्रों की
(ख) अंग्रेज्जी पढ़े-लिखे लोगों की
(ग) हिंदी की
(घ) आजीविका की

प्रश्न 5.
विश्व को ग्राम बना देने का आशय क्या है?
(क) सारे विश्व को ग्रामीण वेश-भूषा पहनाना
(ख) विश्व के किसी कोने में होने वाली घटना का पता लगाना
(ग) विश्व के सभी लोगों को किसान बनाना
(घ) विश्व में सबको ग्रामीण परिवेश में रखना

प्रश्न 6.
‘प्रिंट मीडिया’ से क्या तात्पर्य है ? हिंदी के लिए उसकी पत्र-पत्रिकाएँ क्या कर रही हैं?

प्रश्न 7.
बाज्वार ने हिंदी के स्वरूप को क्या विशेषताएँ दीं जिनसे वह रोज़गार की ज़रूरत बनती जा रही है?

प्रश्न 8.
‘सरकारी’ और ‘अतीत’ शब्दों के विलोम लिखिए।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची बताइए-‘समय’ तथा ‘प्रार्थना’।

प्रश्न 10.
उपर्युक्त अवतरण के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।

उत्तर :
1. (घ) ग्राम
2. (क) पत्रकारिता को
3. (ग) हिंदी के पाठक को
4. (ग) हिंदी को
5. (ख) विश्व के किसी कोने में होने वाली घटना का पता लगाना।

6. प्रिंट मीडिया से तात्पर्य मुद्रित माध्यम जैसे अखबार, पत्र-पत्रिकाएँ आदि हैं। हिंदी के पत्र-पत्रिकाओं की लाखों प्रतियाँ रोज़ बिकती हैं। इससे हिंदी का प्रचार-प्रसार निरंतर बढ़ रहा है।
7. बाज़ार ने मीडिया के माध्यम से हिंदी को एक क्रांतिकारी रूप दिया। सभी चैनलों पर हिंदी के प्रयोग ने इसके रोज़गार के अवसरों में बहुत वृद्धि की है।
8. सरकारी × निजी, अतीत × वर्तमान।
9. समय-काल, प्रार्थना-खंदना।
10. ‘हिंदी’ सब की भाषा।

23. यह संतोष और गर्व की बात है कि देश वैज्ञानिक और औद्योगिक क्षेत्र में आशातीत प्रगति कर रहा है। विश्व के समृद्ध अर्थव्यवस्था वाले देशों से टक्कर ले रहा है और उनसे आगे निकल जाना चाहता है। किंतु इस प्रगति के उजले पहलू के साथ एक धुँधला पहलू भी है, जिससे हम छुटकारा चाहते हैं। वह है नैतिकता का पहलू। यदि हमारे हुदय में सत्य, ईमानदारी, कर्त्तव्यनिष्ठा और मानवीय भावनाएँ नहीं हैं; देश के मान-सम्मान का ध्यान नहीं है; तो सारी प्रगति निरर्थक होगी। आज यह आम धारणा है कि बिना हथेली गर्म किए साधारण-सा काम भी नहीं हो सकता।

श्रष्ट अधिकारियों और श्रष्ट जनसेवकों में अपना घर भरने की होड़ लगी है। उन्हें न समाज की चिंता है, न देश की। समाचार-पत्रों में अब ये रोज्ञमर्रा की घटनाएँ हो गई हैं। लोग मान बैठे हैं कि यही हमारा राष्ट्रीय चरित्र है, जबकि यह सच नहीं है। नैतिकता मरी नहीं है, पर प्रचार अनैतिकता का हो रहा है। लोगों में यह धारणा घर करती जा रही है कि जब बड़े लोग ही ऐसा कर रहे हैं तो हम क्या करें ? सबसे पहले तो इस सोच से मुक्ति पाना ज्ररूरी है और उसके बाद यह संकल्प कि श्रष्टाचार से मुक्त समाज बनाएँगे। उन्हें बेनकाब करेंगे जो देश के नैतिक चरित्र को बिगाड़ रहे हैं।

प्रश्न 1.
यदि हमें देश के मान-सम्मान का ध्यान नहीं है तो क्या निरर्थक है?
(क) अहिंसा
(ख) संस्कार
(ग) प्रगति
(घ) नैतिकता
उत्तर :
(ग) प्रगति

प्रश्न 2.
साधारण-सा काम कब तक नही होता?
(क) बिना औसू बहाए
(ख) बिना हथेली गरम किए
(ग) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को
(घ) अधिकार को
उत्तर :
(ख) बिना हथेली गरम किए

प्रश्न 3.
भ्रष्ट अधिकारियों में किस बात की होड़ लगी है?
(क) पानी भरने की
(ख) साधन चुराने की
(ग) विदेश घूमने की
(घ) अपना घर भरने की
उत्तर :
(घ) अपना घर भरने की

प्रश्न 4.
सबसे पहले क्या संकल्प लेने की जरूरत है?
(क) सरल समाज का
(ख) संपन्न समाज का
(ग) भ्रष्टाचारमुक्त समाज् का
(घ) निर्धन समाज का
उत्तर :
(ग) श्रष्टाचार-मुक्त समाज का

प्रश्न 5.
देश की आशातीत प्रगति से जुड़ा धुंधला पक्ष किससे जुड़ा है?
(क) नैतिकता से जुड़ा है
(ख) रिश्वत से जुड़ा है
(ग) काम से जुड़ा है
(घ) भ्रष्टाचार से जुड़ा है
उत्तर :
(क) नैतिकता से जुड़ा है

प्रश्न 6.
नैतिक चरित्र से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर :
नैतिक चरित्र से लेखक का आशय देशवासियों में अपने देश के मान-सम्मान का ध्यान होना चाहिए। वे सत्य, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठा से अपना कार्य करें तथा उनमें मानवीय संवेदना होनी चाहिए।

प्रश्न 7.
देशवासियों के लिए गर्व की बात क्या है ?
उत्तर :
देश वैज्ञानिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में बहुत अधिक प्रगति कर रहा है और विश्व के समृद्ध देशों से टक्कर लेकर उनसे आगे निकल जाना चाहता है।

प्रश्न 8.
उपसर्ग अलग कीजिए-निरर्थक, अधिकारी
उत्तर :
निर्, अधि।

प्रश्न 9.
सरल वाक्य में बदलिए-लोग मान बैठे हैं कि यही हमारा राष्ट्रीय चरित्र है।
उत्तर :
लोगों ने इसे ही हमारा राष्ट्रीय चरित्र मान लिया है।

प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
भ्रष्टाचार मुक्त समाज।

24. कुछ लोगों को अपने चारों ओर बुराइयाँ देखने की आदत होती है। उन्हें हर अधिकारी श्रष्ट, हर नेता बिका हुआ और हर आदमी चोर दिखाई पड़ता है। लोगों की ऐसी मनःस्थिति बनाने में मीडिया का भी हाथ है। माना कि बुराइयों को उजागर करना मीडिया का दायित्व है, पर उसे सनसनीखेज्र बनाकर चैनलों में बार-बार प्रसारित कर उनकी चाहे दर्शक-संख्या बढ़ती हो, पर आम आदमी इससे अधिक शंकालु हो जाता है और यह सामान्यीकरण कर डालता है कि सभी ऐसे हैं। आज भी सत्य और ईमानदारी का अस्तित्व है। ऐसे अधिकारी हैं जो अपने सिद्धांतों को रोज़ी-रोटी से बड़ा मानते हैं। ऐसे नेता भी हैं जो अपने हित की अपेक्षा जनहित को महत्व देते हैं।

वे मीडिया-प्रचार के आकाँक्षी नहीं हैं। उन्हें कोई इनाम या प्रशंसा के संट्टिफ़िकेट नहीं चाहिए, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे कोई विशेष बात नहीं कर रहे, बस कर्तव्यपालन कर रहे हैं। ऐसे कर्तव्यनिष्ठ नागरिकों से समाज बहुत-कुछ सीखता है। आज विश्व में भारतीय बेईमानी या भ्रष्टाचार के लिए कम, अपनी निष्ठा, लगन और बुद्धि-पराक्रम के लिए अधिक जाने जाते हैं। विश्व में अग्रणी माने जाने वाले देश का राष्ट्रपति बार-बार कहता सुना जाता है कि हम भारतीयों-जैसे क्यों नहीं बन सकते। और हम हैं कि अपने को ही कोसने पर तुले हैं। यदि यह सच है कि नागरिकों के चरित्र से समाज और देश का चरित्र बनता है, तो क्यों न हम अपनी सोच को सकारात्मक और चरित्र को बेदाग बनाए रखने की आदत डालें।

प्रश्न 1.
उपसर्ग अलग कीजिए-अधिकारी
(क) अधि
(ख) अ
(ग) धि
(घ) अधिक
उत्तर :
(क) अधि

प्रश्न 2.
प्रत्यय अलग कीजिए-नागरिक
(क) इक
(ख) इ
(ग) क
(घ) ईय
उत्तर :
(क) इक

प्रश्न 3.
लेखक भारतीय नागरिकों से क्या अपेक्षा करता है?
(क) वे अपनी सोच को नकारात्मक बनाएँ
(ख) वे अपने चरित्र को उज्ज्वल बनाएँ
(ग) वे कायर बनें
(घ) वे निर्दयी बनें
उत्तर :
(ख) वे अपने चरित्र को उज्जवल बनाएँ

प्रश्न 4.
किसी संपन्न देश के राष्ट्पति को अपने नागरिकों से भारतीयों जैसा बनने के लिए कहना क्या सिद्ध करता है?
(क) भारतीय श्रेष्ठ एवं सकारात्मक चरित्र वाले होते हैं।
(ख) भारतीय वीर होते हैं।
(ग) भारतीय गरीब होते हैं।
(घ) भारतीय कर्मठ होते हैं।
उत्तर :
(क) भारतीय श्रेष्ठ एवं सकारात्मक चरित्र वाले होते हैं

प्रश्न 5.
आज दुनिया में भारतीय किन गुणों के लिए जाने जाते हैं?
(क) निष्ठा, लगन, बुद्धि और पराक्रम
(ख) छल, दंभ, द्वेष और प्रेम
(ग) लगन, पराक्रम, वीरता और घृणा
(घ) वीरता, प्रेम, ईष्ष्या और द्वेष
उत्तर :
(क) निष्ठा, लगन, बुद्धि और पराक्रम

प्रश्न 6.
‘आज भी सत्य और ईमानदारी का अस्तित्व है’-पक्ष या विपक्ष में अपनी ओर से दो तर्क दीजिए।
उत्तर :
हम इस कथन का समर्थन करते हैं क्योंकि कुछ अधिकारी अपने सिद्धांतों को रोजी-रोटी से भी बड़ा मानकर ईमानदारी से काम करते हैं तथा विदेशी भी भारतीयों की निष्ठा एवं लगन की प्रशंसा करते हैं।

प्रश्न 7.
अपनी टी०आर०पी० बढ़ाने के लिए कुछ चैनल क्या करते हैं? उसका आम नागरिक पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
अपनी टी०आर॰पी० बढ़ाने के लिए कुछ चैनल बुराइयों को उजागर करने के लिए उन्हें सनसनीखेज बनाकर अपने चैनल पर बार-बार प्रसारित करते हैं जिससे आम नागरिक यही सोचता है कि सभी बुरे ही हैं।

प्रश्न 8.
लोगों की सोच को बनाने-बदलने में मीडिया की क्या भूमिका है ?
उत्तर :
लोगों की सोच को बनाने-बदलने में मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है, वे जैसा दिखाते हैं लोगों पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 9.
लेखक ने क्यों कहा है कि कुछ लोगों को अपने चारों ओर बुराइयाँ देखने की आदत है ?
उत्तर :
क्योंकि उन्हें हर अधिकारी भ्रष्ट, हर नेता बिका हुआ तथा हर आदमी चोर दिखाई देता है। उनकी सोच नकारात्मक होती है, वे अच्छाई में भी बुराई देखते हैं।

प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
सकारात्मक सोच।

25. आज किसी भी व्यक्ति का सबसे अलग एक टापू की तरह जीना संभव नहीं रह गया है। भारत में विभिन्न पंथों और विविध मत-मतांतरों के लोग साथ-साथ रह रहे हैं। ऐसे में यह अधिक जरखूरी हो गया है कि लोग एक-दूसरे को जानें; उनकी जजरूरतों को, उनकी इच्छाओं-आकाँक्षाओं को समझें; उन्हें तरजीह दें और उनके धार्मिक विश्वासों, पद्धतियों, अनुष्ठानों को सम्मान दें। भारत जैसे देश में यह और भी अधिक जजरूरी है, क्योंकि यह देश किसी एक धर्म, मत या विचारधारा का नहीं है।

स्वामी विवेकानंद इस बात को समझते थे और अपने आचार-विचार में अपने समय से बहुत आगे थे। उनका दृढ़ मत था कि विभिन्न धर्ंो-संप्रदायों के बीच संवाद होना ही चाहिए। वे विभिन्न धर्मों-संप्रदायों की अनेकरूपता को जायज और स्वाभाविक मानते थे। स्वामीजी विभिन्न धार्मिक आस्थाओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने के पक्षधर थे और सभी को एक ही धर्म का अनुयायी बनाने के विरदद्ध थे। वे कहा करते थे-यदि सभी मानव एक ही धर्म को मानने लगें, एक ही पूजा-पद्धति को अपना लें और एक-सी नैतिकता का अनुपालन करने लगें तो यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात होगी। क्योंकि यह सब हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक विकास के लिए प्राणघातक होगा तथा हमें हमारी सांस्कृतिक जड़ों से काट देगा।

प्रश्न 1.
आज किसी व्यक्ति का सबसे अलग किसकी तरह जीना संभव नहीं है ?
(क) सागर की तरह
(ख) नहर की तरह
(ग) टापू की तरह
(घ) गगन की तरह
उत्तर :
(ग) टापू की तरह

प्रश्न 2.
अवतरण में किस देश में विभिन्न मतों के लोगों के साथ रहने की बात कही गई है?
(क) स्वीडन
(ख) अमरीका
(ग) चीन
(घ) भारत
उत्तर :
(घ) भारत

प्रश्न 3.
अपने आचार-विचार में कौन अपने समय से आगे थे?
(क) ईश्वरचंद विद्यासागर
(ख) राजा राममोहन राय
(ग) विवेकानंद
(घ) दयानंद सरस्सती
उत्तर :
(ग) विवेकानंद

प्रश्न 4.
स्वामी जी किनके बीच सामंजस्य स्थापित करने के पक्षधर थे?
(क) धार्मिक आस्थाओं के बीच
(ख) विभिन्न संस्थाओं के मध्य
(ग) लोगों के विचारों के बीच
(घ) विविध वेशों के बीच
उत्तर :
(क) धार्मिक आस्थाओं के बीच

प्रश्न 5.
एक ही धर्म व पूजा-पद्धति को मानने से हमारी कौन-सी जड़ें कट जाएँगी?
(क) वैज्ञानिक
(ख) सांस्कृतिक
(ग) बौद्धिक
(घ) राजसी
उत्तर :
(ख) सांस्कृतिक

प्रश्न 6.
टापू किसे कहते हैं ? ‘टापू की तरह’ जीने से लेखक का क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
टापू वह भूखंड होता है, जो चारों ओर से पानी से घिरा होता है तथा जिसका मुख्य धरती से कोई संपर्क नहीं होता। ‘टापू की तरह’ जीने से लेखक का आशय समाज के सब लोगों से अलग रहकर जीने से है। दुनियावालों से कोई संपर्क नहीं रख कर जीना टापू की तरह जीना है।

प्रश्न 7.
‘भारत जैसे देश में यह और भी अधिक ज्ररूरी है।’ क्या ज्रूरूी है और क्यों?
उत्तर :
भारत जैसे देश में यह और भी अधिक ज्रूरी है किं लोग एक-दूसरे को जानें, समझें और उनके धार्मिक विश्वासों, पद्धतियों एवं अनुष्ठानों को सम्मान दें क्योंकि भारत विभिन्न धर्मों, मतों एवं विचारधाराओं का देश है।

प्रश्न 8.
स्वामी विवेकानंद को ‘अपने समय से बहुत आगे’ क्यों कहा गया है?
उत्तर :
स्वामी विवेकानंद को अपने समय से बहुत आगे इसलिए कहा गया था क्योंकि वे इस बात को समझते थे कि विभिन्न धर्म-संप्रदायों के बीच ताल-मेल होना चाहिए, जिससे इनमें सामंजस्य स्थापित किया जा सके।

प्रश्न 9.
स्वामीजी के मत में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति क्या होगी और क्यों ?
उत्तर :
स्वामीजी के अनुसार यदि सभी मनुष्य एक ही धर्म, पूजा-पद्धति को अपना कर एक-सी नैतिकता का पालन करने लगें तो यह सबसे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी।

प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
सर्वधर्म-समभाव

26. मांगलिक अवसरों पर पुष्ष-मालाओं का महत्व कोई नया नहीं है। पुष्ष-मालाएँ उन्हें ही पहनाई जाती थीं जिन्हें सामाजिक दृष्टि से विशिष्ट या अति विशिष्ट माना जाता था। देवताओं पर पुष्प-मालाएँ अर्पित करने के पीछे मनुष्य की ऐसी ही भावनाएँ थी। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण है फूलों की मालाओं को धारण करना। जितना सम्मान, फूलों की माला पहनाकर, किसी अति विशिष्ट व्यक्ति को दिया जाता है उसकी सार्थकता तभी है जब वह व्यक्ति अपने गले में धारणकर उसे स्वीकार करे। यदि वह विशिष्ट व्यक्ति उसे धारण नहीं करता है तो वह अप्रत्यक्ष रूप से स्वयं उस सम्मान का तिरस्कार करता है। इससे न सिर्फ पुष्प-माला पहनानेवालों का बल्कि उन फूलों का भी अपमान होता है जो उसमें गूँथे जाते हैं। वर्तमान लोक रीति में पुष्प-मालाओं का ऐसा अपमान शिक्षित एवं सुसंस्कृत कहे जाने वाले वर्गों में देखा जा सकता है।

किसी भी शुभ अवसर पर मुख्य अतिथि या विशिष्ट व्यक्ति को पुष्म-मालाएँ पहनाई तो जाती हैं लेकिन न जाने किस कुंठा या कुसंस्कार के कारण उसे गले से निकालकर सामने टेबल पर रख लेते हैं या स्वनामधन्य मंत्री अपने पी०ए० या सुरक्षाकर्मियों को सँप देते हैं जो जाते समय या तो छोड़ जाते हैं या रास्ते में फेंक जाते हैं। पुर्षों का, पहनानेवालों का और स्वयं खुद का वह इस प्रकार अपमान कर जाते हैं, जिससे पता चलता है कि विशिष्ट कहे जाने वाले व्यक्ति में इतनी पात्रता नहीं है कि वे उस पुष्पमाला को अपने गले में धारण कर सके। पुष्यों की माला का अपमान करने और उसके परिणामों से जुड़ी एक पौराणिक कथा है जिसके माध्यम से रचयिता ने पुष्प की मालाओं के महत्त्व को स्थापित करने की कोशिश की है।

वैसे ‘समुद्र-मंथन’ की कथा लगभग सभी भारतवासियों को मालूम है लेकिन क्यों हुआ था इसकी जानकारी कम लोगों को ही होगी। ‘विष्णुपुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित्त स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के, जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थीं, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।

तभी एरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी, उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूँड में लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था।

वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे, “अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी इंड्र! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया। न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेंर द्वारा किए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं इसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।”

प्रश्न 1.
लोग किस कारण फूलों की मालाओं को धारण नहीं करते ?
(क) कुंठा या कुसंस्कार के कारण
(ख) क्रोध के कारण
(ग) विनय के कारण
(घ) पुराणों के कारण
उत्तर :
(क) कुंठा या कुसंस्कार के कारण

प्रश्न 2.
फूलों की माला का अपमान करने के कारण किसने-किसको श्राप दिया था ?
(क) ब्रह्मा ने इंद्र को
(ख) दुर्वासा ऋषि ने देवराज इंद्र को
(ग) लक्ष्मी जी ने इंद्र को
(घ) विष्णु ने इंद्र को
उत्तर :
(ख) दुर्वासा ऋषि ने देवराज इंद्र को

प्रश्न 3.
पुष्पमालाओं का प्रयोग किन अवसरों पर किया जाता है ?
(क) मांगलिक अवसरों पर
(ख) दीक्षा के अवसर पर
(ग) सभाओं में
(घ) शोक सभाओं में
उत्तर :
(क) मांगलिक अवसरों पर

प्रश्न 4.
कौन-सी कथा अधिकांश भारतीय जानते हैं?
(क) समुद्र मंथन की
(ख) इंद्र की
(ग) दुर्वासा के क्रोध की
(घ) मांगलिक अवसरों की
उत्तर :
(क) समुद्र-मंधन की

प्रश्न 5.
दुर्वासा ऋषि ने फूलों की माला कहाँ से प्राप्त की थी ?
(क) इंद्र से
(ख) कृशांगी विद्याधरी से
(ग) त्रिलोकी से
(घ) ब्रहूमा से
उत्तर :
(ख) कृशांगी विद्याधरी से

प्रश्न 6.
कौन-सा व्यक्ति फूलों का अपमान करता है ?
उत्तर :
जिस विशिष्ट व्यक्ति को फूलों की माला पहनाई जाए और वह उसे धारण न करे वह परोक्ष रूप से स्वयं उस सम्मान का तिरस्कार करता है और फूलों का भी अपमान करता है।

प्रश्न 7.
किस के आधार पर देवताओं को समुद्र-मंथन किस कारण करना पड़ा था?
उत्तर :
विष्णु पुराण के आधार पर देवताओं को फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित्त स्वरूप समुद्र मंधन करना पड़ा था।

प्रश्न 8.
पुष्पमालाएँ किन्हें पहनाई जाती र्थीं ?
उत्तर :
पुष्पमालाएँ उन्हें पहनाई जाती थीं जिन्हें सामाजिक दृष्टि से विशिष्ट या अति विशिष्ट व्यक्ति माना जाता था।

प्रश्न 9.
देवताओं को मालाएँ क्यों पहनाई जाती हैं?
उत्तर :
देवता पूजनीय हैं इसलिए उन्हें मालाएँ पहनाई जाती हैं।

प्रश्न 10.
अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
फूलमालाएँ-अतीत और वर्तमान।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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