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CBSE Class 11 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

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CBSE Class 11 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

ऐसे काष्यांश जो आपकी पाट्य-पुस्तक में संकलित कविताओं में से नहीं हैं उन्हें प्रश्न-पत्र में अपठित काव्यांश बोध के अंतर्गत पूछा जाएगा। इनमें प्राय: भाव-बोध से संबंधित प्रश्नों को पूछा जाता है इसलिए यह अति आवश्यक है कि दिए गए काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उसके भावों को समझा जाए। काव्यांश के केंद्रीय भाव को समझकर समाहित उत्तरों को लिखना आसान होता है। आपके द्वारा दिए जाने वाले उत्तरों की भाषा सरल, स्पष्ट और सटीक होनी चाहिए।
अपठित काव्यांश को हल करने की विधि-

  • काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए।
  • यदि काव्यांश समझने में कठिन हो तो उसे बार-बार तब तक पढ़ना चाहिए जब तक आपको उसका मूलभाव समझ न आ जाए।
  • काव्यांश के नीचे दिए गए प्रश्नों को पढ़िए और फिर से काव्यांश पर ध्यान देकर उन पंक्तियों और स्थलों को चुनिए जिनमें प्रश्नों के उत्तर छिपे हुए हों।
  • जिस-जिस प्रश्न का उत्तर आपको मिलता जाए उसे रेखांकित करते जाइए।
  • अस्पष्ट और सांकेतिक प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए काव्यांश के मूल-भावों को आधार बनाइए।
  • प्रत्येक उत्तर अपने शब्दों में लिखिए।
  • प्रतीकात्मक और लाक्षणिक शब्दों के उत्तर एक से अधिक शब्दों में दीजिए। ऐसा करने से आप स्पष्ट उत्तर लिख पाएँगे।

अपठित काव्यांश के महत्वपूर्ण उदाहरण –

निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

1. नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है,
वह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा है,
मेरी भी आभा है इसमें।
भीनी-भीनी खुशबू वाले,
रंग-बिंरेगे,
यह जो इतने फूल खिले हैं,
कल इनको मेरे प्राणों ने नहलाया था।
कल इनको मेरे सपनों ने सहलाया था।
पकी सुनहली फसलों से जो,
अबकी यह खलिहान भर गया,
मेरी रग-रग के शोणित की बूँदें इसमें मुसकाती हैं।
नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है,
यह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा हैं,
मेरी भी आभा है इसमें।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक दीजिए।
(ख) नए आसमान का नया सूरज क्या है?
(ग) विशाल धरती की दमक का क्या अभिप्राय है?
(घ) कवि ने रंग-बिरंगे फूल कैसे खिलाए?
(ङ) फसलों से खलिहान के भर जाने का क्या रहस्य था?
उत्तर :
(क) मेरी भी आभा है इसमें।
(ख) नए युग के नए प्रकाश को नए आसमान का क्या सूरज कहा गया है।
(ग) विशाल धरती की दमक का अभिप्राय नई सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ जीवन के लिए आवश्यक भौतिक सुख-सुविधाओं की वृद्धि करना है।
(घ) कवि ने इन्हें अपने प्राणों से नहलाया, अपने सपनों से सहलाया तथा मन की कोमलता से सींचकर खिलाया है।
(ङ) मजदूरों और किसानों के कठोर परिश्रम से अच्छी फ़सल हुई और खलिहान भर गए हैं।

(च) अबकी बार खलिहान किससे भर गया है?
(i) वर्षा से
(ii) सुनहरी फसलों से
(iii) खर-पतवारों से
(iv) मिट्टी के ढेर से
उत्तर :
(ii) सुनहरी फसलों

(छ) कवि के रग-रग में किसकी बूँबें मुसकाती हैं?
(i) वर्षा की
(ii) ओस की
(iii) शोणित की
(iv) पसीने की
उत्तर :
(iii) शोणित की

(ज) ‘भीनी-भीनी’ में अलंकार की छटा है-
(i) अनुप्रास अलंकार
(ii) पुनरुक्त-प्रकाश अलंकार
(iii) यमक अलंकार
(iv) श्लेष अलंकार
उत्तर :
(ii) पुनरक्त-प्रकाश अलंकार

2. कुछ काम करो, कुछ काम करो, जग में रहके निज नाम करो।
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो! समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को, नर हो, न निराश करो मंन को।।
सँभलो कि सु-योग न जाए चला, कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला?
समझो जग को न निरा सपना, पथ आप प्रशस्त करो अपना।
अखिलेश्वर है अवलंबन को, नर हो, न निराश करो मन को।।
जब प्राप्त तुम्हें सच तत्व यहाँ, फिर जा सकता वह सत्व कहाँ?
तुम स्वत्त्व-सुधा-रस पान करो, उठ के अमरत्व-विधान करो।
दव-रूप रहो भव-कानन को, नर हो, न निराश करो मन को।।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे, हम भी कुछ हैं-यह ध्यान रहे।
सब जा, अभी, पर मान रहे, मरणोत्तर गंह्नजित गान रहे।
कुछ हो, न तजो निज साधन को, नर हो, न निराश करो मन को।।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) तन को उपयुक्त बनाए रखने के क्या उपाय हैं?
(ग) जग को निरा सपना क्यों नहीं समझना चाहिए?
(घ) हमें अपने गौरव का कैसे ध्यान रखना चाहिए?
(ङ) ‘पथ आप प्रशस्त करो अपना’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
(क) नर हो न निराश करो मन को।
(ख) तन को उपयुक्त बनाए रखने के लिए मनुष्य को निरंतर कर्म करते रहना चाहिए। उसे व्यर्थ समय नहीं गँवाना चाहिए।
(ग) जग को निरा सपना इसलिए नहीं समझना चाहिए क्योंकि इस संसार में जो कुछ भी है वह सत्य है तथा यहाँ किया हुआ कोई भी अच्छा कार्य व्यर्थ नहीं जाता है।
(घ) हमें अपने गौरव का ध्यान अपने आत्मसमान को बनाकर रखने से प्राप्त हो सकता है। हमारा सब कुछ नष्ट हो जाए परंतु स्वाभिमान बना रहना चाहिए।
(ङ) इस पंक्ति का आशय यह है कि मनुष्य को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपना मार्ग स्वयं बनाना चाहिए।

(च) क्या कभी व्यर्थ नहीं जाता?
(i) सदुपाय
(ii) जन्म
(iii) मरण
(iv) हर्ष
उत्तर :
(i) सदुपाय

(छ) हमें किसे बिलकुल सपना नहीं समझना चाहिए?
(i) मनुष्य को
(ii) लक्ष्य को
(iii) जग को
(iv) कल्पना को
उत्तर :
(iii) जग को

(ज) अखिलेश्वर किसे कहा गया है?
(i) ईश्वर को
(ii) मनुष्य को
(iii) कानन को
(iv) निराश मन को
उत्तर :
(i) ईश्वर को

3. जग जीवन में जो चिर महान, सँददर्यपूर्ण औ सत्य-प्राण,
मैं उसका प्रेमी बनूँ नाथ! जिससे मानव हित हो समान!
जिससे जीवन में मिले शक्ति, छूटें भय-संशय, अंध-भक्ति,
मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ! मिल जावें जिसमें अखिल व्यक्ति!
दिशि-दिशि में प्रेम-प्रभा-प्रसार, हर भेद-भाव का अंधकार,
मैं खोल सकूँ चिर मुँदे, नाथ! मानव के उर के स्वर्ग-द्वार!
पाकर प्रभु, तुम से अमर दान, करके मानव का परित्राण,
ला सकूँ विश्व में एक बार, फिर से नव जीवन का विहान।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि ने प्रभु से क्या माँगा है?
(ग) कवि ‘चिर महान’ को क्यों पाना चाहता है?
(घ) कवि किस प्रकाश को पाना चाहता है?
उत्तर :
(क) नव जीवन का विहान।
(ख) कवि प्रभु से वह शक्ति प्राप्त करना चाहता है जिससे वह मानवता का कल्याण कर सके तथा सर्वत्र प्रेम-प्रभा का प्रसार करते हुए संसार में नव जीवन का विहान ला सके।
(ग) कवि ‘चिर महाना को प्राप्त कर संसार से समस्त भेदभाव, संशय, भय आदि मिटाकर प्रेमरूपी प्रभा का प्रसार करते हुए मानवता की रक्षा करना चाहता है।
(घ) कवि ऐसा प्रकाश चाहता है, जिससे उसे शक्ति प्राप्त हो और वह समस्त भय, भ्रम आदि से मुक्त होकर मानव मात्र में परस्पर प्रेम भाव उत्पन्न कर सके।

(ङ) कवि नए जीवन में नया सवेरा क्यों लाना चाहता है?
(i) रोशनी के लिए
(ii) नव जीवन के लिए
(iii) नव विहान के लिए
(iv) नव वर्ष के लिए।
उत्तर :
(ii) नव जीवन के लिए

(च) कवि मनुष्य के हृदय के स्वर्ग के चिरकाल से बंद द्वार किसके मादयम से खोलना चाहता है?
(i) शक्ति
(ii) ध्यान
(iii) प्रकाश
(iv) योग
उत्तर :
(iii) प्रकाश

(छ) कवि ने चिर महान किसे कहा है?
(i) ईश्वर को
(ii) मानव को
(iii) शक्ति को
(iv) सौंदर्यपूर्ण सत्य-प्राण को
उत्तर :
(ii) मानव को

(ज) कवि ने ‘अखिल व्यक्ति’ का प्रयोग क्यों किया है?
(i) कवि असांसारिक बात करना चाहता है।
(ii) कवि सांसारिक जनों की बात करना चाहता है।
(iii) कवि सांसारिक अमीर लोगों की बात करना चाहता है।
(iv) कवि भारतीय लोगों की बात करना चाहता है।
उत्तर :
(ii) कवि सांसारिक जनों की बात करना चाहता है।

4. एक तनी हुई रस्सी है, जिस पर मैं नाचता हूँ।
जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ।
वह दो खंभों के बीच है।
रस्सी पर मैं जो नाचता हूं।
वह एक खंभे से दूसरे खंभे तक का नाच है।
दो खंभों के बीच जिस तनी हुई रस्सी पर में नाचता हैँ,
उस पर तीख़ी रोशनी पड़ती है
जिसमें लोग मेरा नाच देखते हैं।
न मुझे देखते हैं जो नाचता है,
न रस्सी को जिस पर मैं नाचता हूँ।
न खंभों को जिस पर रस्सी तनी है,
न रोशनी को जिसमें नाच दीखता है :
लोग सिर्फ नाच देखते हैं।
पर मैं जो नाचता हूँ
जो जिस रस्सी पर नाचता हूँ
जो जिन खंभों के बीच है
जिस पर जो रोशनी पड़ती है,
उस रोशनी में उन खंभों के बीच उस रस्सी पर,
असल में मैं नाचता नहीं हूँ।
मैं केवल उस खंभे से इस खंभे तक दौड़ता हैं,
कि इस या उस खंभे से रस्सी खोल दूं।
कि तनाव चुके और ढील में मुझे हुट्टी हो जाए-
पर तनाव ढीलता नहीं।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि किस पर नाच रहा है?
(ग) रस्सी की स्थिति कैसी है?
(घ) लोग क्या देख रहे हैं और क्या नहीं देखते हैं?
उत्तर :
(क) नाच।
(ख) कवि एक तनी हुई रस्सी पर नाच रहा है जो दो खंभों के बीच कसकर बँधी हुई है।
(ग) रस्सी दो खंभों के बीच कसकर बाँधी गई है। उस पर तेज रोशनी पड़ती है।
(घ) लोग सिर्फ़ उसका नाच देखते हैं। वे उसे, रस्सी, खंभों तथा रोशनी को नहीं देखते हैं।

(ङ) कवि क्या चाहता है?
(i) कवि रस्सी का तनाव समाप्त कर खोलना चाहता है।
(ii) कवि रस्सी जलाना चाहता है।
(iii) कवि नई रस्सी खरीदना चाहता है।
(iv) कवि रस्सी को नया आकार देना चाहता है।
उत्तर :
(i) कवि रस्सी का तनाव समाप्त कर खोलना चाहता है।

(च) कवि जीवन यापन के लिए क्या करता है?
(i) कुछ-न-कुछ काम करता है।
(ii) कुछ अध्ययन करता है।
(iii) भगवान का नाम लेता है।
(iv) ये सभी।
उत्तर :
(i) कुछ-न-कुछ काम करता है।

(छ) तनी हुई रस्सी जिस पर कवि नर्तन करता है, वह स्थित है-
(i) दो नदियों के बीच
(ii) दो डगरों के बीच
(iii) दो स्तंभों के बीच
(iv) दो मनुष्यों के बीच
उत्तर :
(iii) दो स्वंभों के बीच

(ज) अंत में रस्सी का तनाव –
(i) कम हो जाता है।
(ii) ढीला नहीं होता।
(iii) ओझल हो जाता है।
(iv) ये सभी विकल्प।
उत्तर :
(ii) ढीला नहीं होता।

5. सुनता हैं, मैंने भी देखा,
काले बादल में रहती चाँदी की रेखा!
काले बादल जाति द्वेष के,
काले बादल विश्व क्लेश के,
काले बादल उउते पथ पर,
नव स्वतंत्रता के प्रवेश के !
सुनता आया हैं, है देखा,
काले बादल में हैंसती चाँदी की रेखा
आज दिशा है घोर अँधेरी,
नभ में गरज रही रण भेरी,
चमक रही चपला क्षण-क्षण पर,
झनक रही झिल्ली झन-झन कर;
नाच-नाच आँगन में गाते केकी-केका,
काले बादल में लहरी चाँदी की रेखा।
काले बादल, काले बादल,
मन भय से हो उठता चंचल!
कौन हुदय में कहता पल-पल,
मृत्यु आ रही साजे दलबल!
आग लग रही, घात चल रहे, विधि का लेखा !
काले बादल में छिपती चाँदी की रेखा !
मुझे मृत्यु की भीति नहीं है,
पर अनीति से प्रीति नहीं है,
यह मनुजोचित रीति नहीं है,
जन में प्रीति प्रतीति नहीं है !
देश जातियों का कब होगा,
नव मानवता में रे एका,
काले बादल में कल की,
सोने की रेखा !

प्रश्न :
(क) इस कविता का उच्चित शीर्षक लिखिए।
(ख) ‘काले बादल’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ग) ‘काले बादल’ का निर्माण किसने किया है?
(घ) मानवता का भविष्य कब उज्वल होगा ?
उत्तर :
(क) काले बादल।
(ख) काले बादल से कवि का अभिप्राय संकट के क्षणों से है।
(ग) काले बादल का निर्माण मानव जाति के परस्पर द्वेष तथा संसार में व्याप्त क्लेश से हुआ है।
(घ) मानवता का भविष्य मानव मात्र में परस्पर प्रेमभाव के उत्पन्न होने पर ही उज्वल होगा हैं।

(ङ) कवि मृत्यु से भयभीत क्यों नहीं है?
(i) क्योंकि उसे इर से प्यार है।
(ii) क्योंकि उसे अन्याय से लगाव नहीं है।
(iii) क्योंकि उसे घृणा से प्यार है।
(iv) क्योंकि वह मृत्यु से आकर्षित है।
उत्तर :
(ii) क्योंकि उसे अन्याय से लगाव नहीं है।

(च) इस कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
(i) समाज पर मैडराती विपत्तियों के बीच आशा की किरण
(ii) समाज में आमाद-प्रमोद का बोलबाला
(iii) समाज का बढ़ता प्रभाव
(iv) ये सभी विकल्प
उत्तर :
(i) समाज पर मैडराती विपत्तियों के बीच आशा की किरण

(छ) ‘चाँदी की रेखा’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(i) सूर्य की किरण
(ii) उम्मीद की किरण
(iii) सफलता का राज
(iv) रहस्यपूर्ण जीवन
उत्तर :
(ii) उम्मीद की किरण

(ज) कवि ने किसे मनुजोचित रीति नहीं कहा है?
(i) प्रीति प्रतीति को
(ii) अनीति से प्रीति
(iii) अस्थाई प्रीति
(iv) विधि लेख
उत्तर :
(ii) अनीति से प्रीति

6. शिशिर कणों से लदी हुई, कमली के भीगे हैं सब तार।
चलता है पश्चिम का मारूत, लेकर शीतलता का भार॥
भीग रहा है रजनी का वह, सुंदर कोमल कवरी-भार।
अरुण किरण सम, कर से छू लो, खोलो प्रियतम ! खोलो द्वार ॥
धूल लगी है पद काँटों से बिंधा हुआ है, दु:ख अपार।
किसी तरह से भूला-भटका आ पहुँचा है, तेरे द्वार॥
डरो न इतना, धूल-धूसरित होगा नहीं तुम्हारा द्वार।
धो डाले हैं इनको प्रियवर, इन आँखों से औसू ढार॥
मेरे धूल लगे पैरों से, करो न इतना घृणा प्रकाश।
मेरे ऐसे धूल कणों से, कब तेरे पद को अवकाश ॥
पैरों से ही लिपटा-लिपटा कर लूँगा निज पद निर्धार।
अब तो छोड़ नहीं सकता हैं, पाकर प्राप्य तुम्हारा द्वार।।
सुप्रभात मेरा भी होवे, इस रजनी का दुख अपार।
मिट जावे जो तुमको देखुँ, खोलो प्रियतम! खोलो द्वार॥

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि ने किस ॠतु का कैसे वर्णन किया है?
(ग) कवि की कैसी दशा है?
(घ) कवि अपने आराध्य के द्वार को कैसे स्वच्छ रखता है?
उत्तर :
(क) खोलो द्वार।
(ख) कवि ने सरदी के दिनों का वर्णन किया है। ठंडी पश्चिमी हवाएँ चल रही हैं। बर्फ़ के कण गिर रहे हैं। वातावरण बहुत ठंडा हो गया है।
(ग) कवि का सारा शरीर धूल से भरा है। उसके पैर काँटों से छलनी हो गए हैं। वह बहुत दुखी है। वह भटकता हुआ फिर रहा है।
(घ) कवि अपने आराध्य के द्वार को अपने आँसुओं से धोकर स्वच्छ रखता है।

(ङ) कवि क्या नहीं छोड़ना चाहता?
(i) बुरी लगन
(ii) आराध्य के चरणों में स्थान
(iii) प्रेम भावना
(iv) सर्व-कल्याण भावना
उत्तर :
(ii) आराण्य के चरणों में स्थान

(च) इस कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए-
(i) प्रभु पतित पावन है।
(ii) वह ईश्वर से स्वयं का उद्धार चाहता है।
(iii) वह ईश्वर से करुणा का द्वार खुला रखना चाहता है।
(iv) ये सभी विकल्प।
उत्तर :
(iv) ये सभी विकल्प

(छ) ‘सुप्रभात भी मेरा होवे’ के माध्यम से क्या कहना चाहता है?
(i) सुख का दिन आए।
(ii) समय कटे।
(iii) पर्व आए।
(iv) ताजगी मिले।
उत्तर :
(i) सुख का दिन आए।

(ज) कवि ने ‘प्रियतम’ का संबोधन किसके लिए किया है?
(i) पत्नी के लिए
(ii) प्रेमिका के लिए
(iii) ईंश्वर के लिए
(iv) भक्त के लिए
उत्तर :
(iii) ईश्वर के लिए

7. जिसका ज्ञान भावनामय हो,
सदुद्देश्य-साधन में तत्पर।
जिसका धर्म लोक-सेवा हो,
जिसका वचन कर्म का अनुचर।
सदा लोक-संग्रह में जिसकी,
हो प्रवृत्ति हो वृत्ति अचंचल।
सदा ध्येय के सम्मुख जिसका,
प्रगतिशील हो एक-एक पल।
सागर-सा गंभीर हृदय हो,
गिरि-सा ऊँचा हो जिसका मन।
ध्रुव-सा जिसका लक्ष्य अटल हो,
दिनकर-सा हो नियमित जीवन।
जिसकी आँखों में स्वदेश का,
अति उज्ज्वल भविष्य हो चित्रित।
इच्छा में कल्याण बसा हो,
चिंता में गौरव हो रक्षित।
तेज, हास्य, आनंद सरलता,
मैत्री, करुणा का क्रीड़ास्थल।
हो सच्चा प्रतिबिंब हुदय का,
प्रेमपूर्ण जिसका मुख-मंडल।
उच्च विचार-भार से जिसके,
चरण मंद पड़ते हों भू पर।
अंतर्द्षिंटि बहुत व्यापक हो,
भूमंडल हो जिसके भीतर।
वह समाज,वव, देश राष्ट्र वह,
जिसका हो ऐसा जन-नायक।
होगा क्यों न सकल सुख-संकुल,
विश्व-वंद्य आदर्श विधायक।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) जननायक का ज्ञान और धर्म कैसा होना चाहिए?
(ग) जननायक का दूदय, मन और लक्ष्य कैसा होता है?
(घ) जननायक स्वदेश के बारे में क्या सोचता है?
(ङ) जननायक का व्यक्तित्व कैसा होता है?
(च) इस कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) सच्चा जननायक।
(ख) जननायक का ज्ञान भावनामय और धर्म लोकसेवा करना होना चाहिए है।
(ग) जननायक का हदय गंभीर, मन गिरि के समान ऊँचा तथा लक्ष्य ध्रुव के समान अटल होता है।
(घ) जननायक स्वदेश के उज्ज्वल भविष्य के बारे में सोचता है।
(ङ) जननायक का व्यक्तित्व तेजस्वी, हास्ययुक्त, आनंदमय, सरल, मित्रता एवं करुणा के भाव से युक्त होता है।
(च) इस कविता में कवि ने जननायक को सदा लोक कल्याण में लीन, गंभीर, उन्नत गुणों से युक्त तथा स्वदेश हित में लगा रहने वाला चित्रित किया है। ऐसा जननायक तथा उसका देश वंदनीय है।

(छ) व्यक्ति व्वारा बोले गए वघन कैसे होने चाहिए?
(i) मन के पक्षपाती
(ii) भाग्य के अनुसरणकर्ता
(iii) कर्म के अनुसार
(iv) ये सभी विकल्प
उत्तर :
(iii) कर्म के अनुसार

(ज) कवि के अनुसार द्ववय कैसा होना चाहिए?
(i) झंझावात-सा द्रुतगामी
(ii) सागर-सा गंभीर
(iii) जल-सा चंचल
(iv) नभ-सा विशाल
उत्तर :
(ii) सागर-सा गंभीर

8. देख रहा हैं,
लंबी खिड़की पर रखे पौधे,
धूप की ओर बाहर झुके जा रहे हैं।
हर साल की तरह गॉरिया,
अब की भी कार्निस पर ला-ला के धरने लगी है तिनके
हालांकि यह वह गोरैया नहीं,
यह वह मकान भी नहीं,
ये वे गमले भी नहीं, यह वह खिड़की भी नहीं,
कितनी सही है मेरी पहचान इस धूप की।
कितने सही हैं ये गुलाब,
कुछ कसे हुए और कुछ झरने-झरने को,
और हलकी-सी हवा में और भी, जोखम से,
निखर गया है उनका रूप जो झरने को है।
और वे पौधे बाहर को झुके जा रहे हैं।
जैसे उधर से धूप इन्हें खींचे लिए ले रही है।
और बरामदे में धूप होना मालूम होता है,
जैसे ये पौधे बरामदे में धूप-सा कुछ ले आए हों।
और तिनका लेने फुर्र से उड़ जाती है चिड़िया,
हवा का एक डोलना है : जिसमें अचानक ।
कसे हुए गुलाब की गमक है और गर्मियाँ आ रही हैं,
हालाँकि अभी बहुत दिन है-
कितनी सही है मेरी पहचान इस धूप की।
और इस गॉरिया के घोंसले की कई कहानियाँ हैं,
पिछले साल की अलग और उसके पिछले साल की अलग,
एक सुगंध है।
बल्कि सुगंध नहीं एक धूप है,
बल्कि धूप नहीं एक स्मृति है।
बल्कि ऊष्मा है, बल्कि ऊष्मा नहीं,
सिर्फ़ एक पहचान है।
हलकी-सी हवा है और एक बहुत बड़ा आसमान है,
और वह नीला है और उसमें धुआँ नहीं है।
न किसी तरह का बादल है।
और एक हलकी-सी हवा है और रोशनी है,
और यह धूप है, जिसे मैने पहचान लिया है।
और इस धूप से भरा हुआ बाहर एक बहुत बड़ा,
नीला आसमान है।
और इस बरामदे में धूप और हल्की-सी हवा और एक बसंत।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि क्या देख रहा है?
(ग) गुलाब कैसे हैं?
(घ) पौधे बाहर की ओर क्यों झुके जा रहे हैं?
(ङ) चिड़िया क्या कर रही है?
(च) आकाश की दशा कैसी है?
उत्तर :
(क) धूप।
(ख) कवि देख रहा है कि लंबी खिड़की पर रखे हुए पौधे धूप की ओर बाहर झुके जा रहे हैं।
(ग) गुलाब खिले हुए हैं। कुछ बहुत कसे हुए हैं तथा कुछ की पंखुड़ियाँ झरने वाली हैं। हल्की-सी हवा के चलते ही पंखुड़ियाँ झड़ जाती हैं। वातावरण सुवासित है।
(घ) पौधे बाहर की ओर इसलिए झुक रहे हैं क्योंकि बाहर धूप है। ऐसा लगता है जैसे धूप उन्हें बाहर खींच रही है।
(ङ) चिड़िया कानिंस पर तिनके ला-लाकर धरने लगी है। वह तिनका लेकर फुर् से उड़ जाती है।
(च) आकाश नीला है। उसमें धुआँ नहीं है। आकाश में बादल भी नहीं हैं।

(छ) कवि को किस फूल की गमक प्रतीत हो रही है?
(i) बेला
(ii) गुलाब
(iii) सूरजमुखी
(iv) रातरानी
उत्तर :
(ii) गुलाब की

(ज) किस पक्षी की घोंसले की कई कहानियों का जिक्र रचनाकार द्वारा किया गया है?
(i) तोता
(ii) गौरैया
(iii) मैना
(iv) तीतर
उत्तर :
(ii) गौरैया

9. अभी न होगा मेरा अंत,
अभी-अभी ही तो आया है,
मेरे वन में मृदुल वसंत-
अभी न होगा मेरा अंत।
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ, कोमल गात।
में ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर,
फेरूँगा निद्रित कलियों पर,
जगा एक प्रत्यूष मनोहर।
पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खीच लूँगा मैं,
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
हैं मेरे वे जहाँ अनंत-
अभी न होगा मेरा अंत।
मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहाँ मृत्यु,
है जीवन ही जीवन।
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन;
स्वर्ण-किरण-कल्लोलों पर बहता रे यह बालक-मन;
मेरे ही अविकसित राग से,
विकसित होगा बंधु दिगंत-
अभी न होगा मेरा अंत।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि ने यह क्यों कहा है कि अभी उसका अंत नहीं होगा?
(ग) कवि अपना सर्वस्व कहाँ अर्पित करना चाहता है और क्यों?
(घ) कवि ने इसे अपने जीवन का प्रथम चरण क्यों कहा है?
(ङ) इस कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) अभी न होगा मेरा अंत।
(ख) कवि का मानना है कि अभी-अभी उसके मन में नवीन उत्साह का संचार हुआ है, उसे बहुत कुछ करना है, इसलिए उसका अभी अंत नहीं हो होगा।
(ग) कवि अपना सर्वस्व लोक-कल्याण में लगा देना चाहता है, जिससे संसार के समस्त प्राणियों का भला हो सके।
(घ) कवि ने हमें अपने जीवन का प्रथम चरण इसलिए कहा है क्योंकि वह यौवन की दहलीज पर खड़ा है और उत्साह तथा शक्ति से परिपूर्ण है।
(ङ) इस कविता में कवि जीवन संघषों से जूझता हुआ भी नवीन उत्साह से परिपूर्ण है। वह उमंग से भीगा संसार में नवजीवन का संचार कर देना चाहता है। वह अपना सर्वस्व लोक कल्याण में अर्पित कर देना चाहता है। वह सबको अपने प्रेम के रंग में रंग देना चाहता है। वह आशावान है, इसलिए उसके जीवन का अंत नहीं होगा।

(च) कवि किससे भयभीत है?
(i) मृत्यु से
(ii) अनंत से
(iii) स्वप्न से
(iv) राग से
उत्तर :
(i) मृत्यु से

(छ) रचनाकार अपने जीवन का कौन-सा चरण स्वीकार करता है?
(i) प्रथम चरण
(ii) द्वितीय चरण
(iii) तृतीय चरण
(iv) चतुर्थ चरण
उत्तर :
(i) प्रथम चरण

(ज) कवि जीवन के अमृत से क्या काम करेगा?
(i) दुख प्रकट करेगा।
(ii) सहर्ष सिंचन करेगा।
(iii) पान करेगा।
(iv) शांत बैठा रहेगा।
उत्तर :
(ii) सहर्ष सिंचन करेगा।

10. जग में सचर-अचर जितने हैं, सारे कर्म निरत हैं।
धुन है एक-न-एक सभी को, सब के निश्चित व्रत हैं।
जीवन-भर आतप सह वसुषा पर छाया करता है।
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।।
रवि जग में शोभा सरसाता, सोम सुधा बरसाता।
सब हैं लगे कर्म में, कोई निष्क्रिय दृष्टि न आता।
है उद्देश्य नितांत तुच्छ तृण के भी लघु जीवन का।
उसी पूर्ति में वह करता है अंत कर्ममय तन का।
तुम मनुष्य हो, अमित बुद्धि-बल-बिलसित जन्म तुम्हारा।
क्या उद्देश्य-रहित हो जग में, तुमने कभी विचारा?
बुरा न मानो, एक बार सोचो तुम अपने मन में।
क्या कर्तव्य समाप्त कर लिया तुमने निज जीवन में?
जिस पर गिरकर उदर-दरी से तुमने जन्म लिया है।
जिसका खाकर अन्न, सुधा-सम नीर, समीर पिया है।
वह स्नेह की मूर्ति दयामयी माता तुल्य मही है।
उसके प्रति कर्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है ?
केवल अपने लिए सोचते, मौज भरे गाते हो।
पीते, खाते, सोते, जगते, हैंसते, सुख पाते हो।
जग से दूर स्वार्थ-साधन ही सतत तुम्हारा यश है।
सोचो, तुम्हीं, कौन अग-जग में तुम-सा स्वार्थ विवश है?
यह संसार मनुष्य के लिए एक परीक्षा-स्थल है।
दुख है, प्रश्न कठोर देखकर होती बुद्धि विकल है।
किंतु स्वात्म बल-विज्ञ सत्पुरुष ठीक पहुँच अटकल से।
हल करते हैं प्रश्न सहज में अविरल मेधा-बल से।।
पैदा कर जिस देशजाति ने तुमको पाला-पोसा।
किए हुए है वह निज-हित का तुमने बड़ा भरोसा।
उससे होना उत्रूण प्रथम है सत्कर्तव्य तुम्हारा।
फिर दे सकते हो वसुधा को शेष स्वजीवन सारा ॥

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) जड़ और चेतन में क्या समानता है?
(ग) सूर्य और चंद्रमा किस प्रकार कर्मरत हैं?
(घ) मनुष्य का सबसे पहला कर्तव्य क्या और क्यों है?
उत्तर :
(क) सत्कर्तव्य।
(ख) संसार में सभी जड़ और चेतन किसी-न-किसी कर्म में सदा लीन रहते हैं। यही इन दोनों में समानता है।
(ग) सूर्य संसार को प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करता है। चंद्रमा चाँदनी के रूप में अमृत वर्षा करता है। इस प्रकार दोनों अपने-अपने कर्म में लीन रहते हैं।
(घ) मनुष्य का सबसे पहला कर्तव्य अपनी मातृभूमि की सेवा करना है क्योंकि यही हमारा पालन-पोषण करती है।

(ङ) मनुष्य अन्य पदार्थों और जीवों से कैसे भिन्न है?
(i) स्वभाव के कारण
(ii) शक्ति के कारण
(iii) बुद्धि के कारण
(iv) ये सभी
उत्तर :
(iii) बुद्धि के कारण

(च) मनुष्य स्वार्थी कैसे है?
(i) वह अपनी सुविधा के बारे में सोचता है।
(ii) उसे देश की चिंता नहीं होती।
(iii) वह स्वयं सब कुछ प्राप्त कर लेना चाहता है।
(iv) ये सभी।
उत्तर :
(iv) ये सभी।

(छ) संसार परीक्षा-स्थल क्यों है?
(i) क्योंकि मनुष्य को अच्छाइयों से सामना करना पड़ता है।
(ii) क्योंकि मनुष्य को कठिनाइयों से सामना करना पड़ता है।
(iii) क्योंकि मनुष्य को मनोभावों के प्रतिकूल चलना पड़ता है।
(iv) क्योंकि मनुष्य को सत्यता से सामना करना पड़ता है।
उत्तर :
(ii) क्योंकि मनुष्य को कठिनाइयों से सामना करना पड़ता है।

(ज) मनुष्य संसार की परीक्षा में कैसे उत्तीर्ण हो सकता है?
(i) आत्मशक्ति पहचान कर
(ii) बुद्धि का प्रयोग कर
(iii) कठिनाइयों का सामना कर
(iv) ये सभी
उत्तर :
(iv) ये सभी

11. हर बीज प्रयासरत है, अंकुरित होने के लिए।
हर अंकुर प्रयासरत है, फलने-फूलने के लिए।
बड़े-बड़े देवदार प्रयासरत है, गगन छूने के लिए।
नदियाँ प्रयासरत हैं, सागर में जाने के लिए।
समुद्र की लहरें प्रयासरत हैं, भाप बन उड़ जाने के लिए।
बादल प्रयासरत हैं, कहीं भी बरस जाने के लिए।
हर बच्चा प्रयासरत है, शीप्र बड़ा होने के लिए।
हर जबानी प्रयासरत है, हर प्रसन्तता पाने के लिए।
हर व्यक्ति यहाँ प्रयासरत है, कुछ न कुछ होने के लिए।
दुखी प्रयासरत है, सुखी होने के लिए।
गरीब प्रयासरत है, अमीर होने के लिए।
भिखारी भी चाहता है सम्राट बन जाना।
सम्राट भी प्रयासरत है यहाँ, महा सम्राट होने के लिए।
हर राही प्रयासरत है, अपनी मंजिल पाने के लिए।
हर कर्म हर क्रिया प्रयासरत है, कुछ अन्यथा होने के लिए।
हर नेता प्रयासरत है, देश की एकता के लिए।
हर जीवन प्रयासरत है, अमरत्व को पाने के लिए।
साधु भी प्रयासरत है, अपनी साधना में।
योगी भी प्रयासरत है, अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए।
भक्त भी प्रयासरत है, भगवान पाने के लिए।
भोगी भी प्रयासरत है, हर वस्तु भोगने के लिए।
कोई भी व्यक्ति, प्रयास से छूट नहीं सकता।
प्रयास ही घुमा रहा है, हर तन को हर मन को।
प्रयास का क्या कोई अंत नहीं है, प्रयास की गागर अंतहीन है।
सभी डूब जाते हैं इसमें, कभी कोई ‘महावीर’ नाप पाता है,
इसकी गहराइयों को।
गौतम ने भी किया था प्रयास, छह साल निरंतर, अविरल।
तब पा सका था छोर, अप्रयास का
सब खो जाता है इसमें, व्यक्ति भी, सम्राट भी।
हर जन्म प्रयासरत है, मौत को पाने के लिए।
जीवन संघर्षरत है, मौत से छूट जाने के लिए।
एक मौत है, जो प्रयासरत नही है।
न कुछ पाने के लिए, न कहीं जाने के लिए।
प्रयास से छूटना ही, हर रोग से छूटना है।
प्रयास जब पूर्ण होगा, ले जाएगा अप्रयास में।
अप्रयास असीम है, अप्रयास ठहराव है।
अप्रयास अमन है, अप्रयास अव्यक्त है।
अप्रयास धर्म है, अप्रयास नियम है।
अप्रयास ताओ है, अप्रयास ही शाश्वत है।
अप्रयास ही है, एक धम्मो सनातनो।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) बीज क्या चाहता है और अंकुर का प्रयास क्या है?
(ग) साधु की क्या कामना है और क्यो?
(घ) गौतम ने क्या किया था और क्यों?
उत्तर :
(क) प्रयास।
(ख) बीज चाहता है कि वह अंकुरित हो जाए और अंकुर फल-फूलकर पौधा अथवा वृक्ष बनना चाहता है।
(ग) साधु साधना करना चाहता है, जिससे उसे अपने आराध्य की प्राप्ति हो जाए और वह अपना जीवन सफल कर सके।
(घ) गौतम ने प्रयास किया था। वह निरंतर छह वर्षों तक तपस्या करते रहे। अंत में उनका प्रयास सफल हुआ और उन्होंने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया।

(ङ) मनुष्य का जीवन क्या है?
(i) शांत बैठकर चिंतन करना
(ii) निरंतर संघर्ष करना
(iii) प्रयास रहित रहना
(iv) कुछ न पाने का प्रयास करना
उत्तर :
(ii) निरंतर संघर्ष करना

(च) नदियाँ किस लक्ष्य को पाने के लिए प्रयासरत हैं?
(i) बाढ़ लाने के लिए
(ii) लोगों को स्नान कराने के लिए
(iii) सागर में मिलने के लिए
(iv) किसानों को समृद्ध करने के लिए
उत्तर :
(iii) सागर में मिलने के लिए

(छ) अमरत्व पाने के लिए कौन प्रयासरत हैं?
(i) सम्राट
(ii) गौतम
(iii) जीवन
(iv) जवानी
उत्तर :
(iii) जीवन

(ज) मंजिल पाने के लिए कौन प्रयासरत हैं?
(i) नेता
(ii) भक्त
(iii) बादल
(iv) राही
उत्तर :
(iv) राही

12. प्रेम क्या है?
क्या केवल एक रीता-सा शब्द,
जिसे जब जो चाहे,
अधरों पर ओढ़ ले,
और या फिर छल-कपट,
का वह बाण,
जो ले ले अटूट विश्वास,
के प्राण,
शायद रावण है प्रेम,
भिक्षुक बन है दया जगाता।
मन की सीता हर ले जाता,
नहीं । यह नहीं प्रेम की परिभाषा,
प्रेम है जीवन, जीवन की आशा।
प्रेम वह कृष्ण है,
जो करता रक्षा मीरा की।
अन्नकण है वह,
भरे उदर भगवन का।
विश्वास है जो चीर बन,
जाए लिपट अंगों से अबला के।
शक्ति है अनूसूया की,
कर दे बालक देवों को।
रश्मि से सूर्य की,
धरा का कण-कण करे उजियारा। ओस की बूँद है,
आकाश को त्याग।
ठहर राजीव-पाखुंड़ी पर एक पल,
समा जाती वसुंधरा वक्ष में।
खग नीड़ का तिनका है,
भविष्य निर्माण का बने स्तंभ।
सागर की लहर है,
बाँट देती बालू को मोती।
धवल आँचल है विधवा का,
ओढ़ कर जिसे,
कहलाती वह समर्पिता।
सिंदूर है सुहागन का,
लक्ष्मण रेखा सा।
स्नेह चुंबन है ममता का।
तीन लोक राज्य सा,
पश्चात्ताप का अश्रुकण है प्रेम।
जो देता थो,
समस्त पापों को।
प्रेम की परिभाषा कठिन तो नहीं,
मगर कहने को चाहिए,
एक जीवन का समय।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) ‘क्या केवल एक रीता सा शब्द’ से क्या तात्पर्य है?
(ग) प्रेम का जीवन से क्या संबंध है?
(घ) तीन लोक का राज्य-सा किसे और क्यों कहा गया है?
(ङ) प्रेम की परिभाषा कही क्यों नहीं जा सकती?
उत्तर :
(क) प्रेम की परिभाषा।
(ख) इस पंक्ति का तात्पर्य यह है कि ‘प्रेम’ केवल एक शब्द नहीं है। इसे मन की भावनाओं से समझा जा सकता है। केवल ‘ ‘र्रेम’ शब्द का उच्चारण करने से इसका भाव स्पष्ट नहीं होता है।
(ग) प्रेम का जीवन से अभिन्न संबंध है। प्रेम से ही जीवन सुचारु रूप से चलता है। प्रेम से जीवन में आशा का संचार होता है और मनुष्य के मन में जीवन को जीने की चाह उत्पन्न होती है।
(घ) प्रेम को तीन लोक का राज्य-सा कहा गया है क्योंकि प्रेम ही किसी प्रेमिका में अपने प्रेमी के प्रति समर्पित करने का भाव उत्पन्न करता है। माता का बालक के प्रति प्रेम उसकी ममता का सर्वोत्तम उदाहरण है। इसलिए प्रेम को तीन लोक के राज्य-सा माना गया है।
(ङ) प्रेम एक अनुभव करने की भावना है। इसे शब्दों के माध्यम से व्यक्त करना बहुत कठिन होता है। इसलिए इसकी परिभाषा भी नहीं दी जा सकती। इसे केवल महसूस किया जा सकता है।

(च) भिक्षुक बनकर दया जगाने का काम किसने किया था?
(i) विभीषण
(ii) लक्ष्मण
(iii) मारीच
(iv) रावण
उत्तर :
(iv) राबण

(छ) प्रेम रूपी कृष्ण ने किसकी रक्षा की थी?
(i) राणा जी की
(ii) मीरा की
(iii) सूर की
(iv) अनसूया की
उत्तर :
(ii) मीरा की

(ज) कविता में बालक देव किन्हें कहा गया है?
(i) ब्रहम, विष्णु, महेश
(ii) राम, लक्ष्मण, भरत
(iii) कृष्ण, सुदामा, बलराम
(iv) ये सभी
उत्तर :
(i) ब्रह्म, विष्णु, महेश

13. माँ कितना प्यार करती है उसे,
अभी वह महसूस नहीं कर सकता।
क्योंकि अभी वह बहुत छोटा है।
अपने जीवन को संघर्षों के साथ,
हर खुशी व दुखों के साथ,
हैसते-हैंसते काट रही है।
हर एक होने वाली उथल-पुथल को,
स्वयं झेल रही है।
सच! कितना विशाल ह्ददय है,
जिसमें समाया रहता है उसका,
तुम्हारे प्रति प्यार।
जो दुखों में ज़रा भी विचलित नहीं होती,
लाखों कष्ट सहती है हैंसते-हैसते।
तुम्हें कुछ बनाने के लिए,
ठीक तरह से पालने-पोसने के लिए।
सब कुछ भूल जाती है वह,
क्योंकि वह तुममें (अपने बेटे में) व्यस्त है।
कहीं कोई कमी न रह जाए,
बेटे का जीवन कहीं से भी अधूरा न रह जाए।
एक पुरानी पोटली में तुम्हारे टूटे खिलौने,
और पुराने कपड़ों को बड़ा सहेजकर रखती है।
तुम्हारे बचपन को उनमें,
देखकर याद कर लेती है।
तुमसे कितना प्यार करती है।
सच! कितनी भोली है माँ,
जिसे यह मालूम नहीं कि,
कुछ ही दिन शेष हैं,
अब तुम्हारे और उसके संबंधों में,
अब पहले जैसी बात नहीं रहेगी, क्योंकि
तुम्हारे प्रति माँ का सँजोया सपना,
अब पूर्ण हो चुका है।
उसका बेटा बड़ा आदमी बन गया है।
लेकिन
तुम माँ के प्रति अपने कर्तव्य, भुला मत देना।
नहीं भूलना कि तुम्हें बनाने में,
उसके चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गई हैं।
पैरों में बिवाई फट गई है।
उसकी कमर झुक गई है।
उसके बुद़ापे का अब तुम ही सहारा हो।
वह तुम्हारी माँ है।
श्रद्ध्येया माँ।
आज केवल हड्डियों का ढाँचा मात्र
चारपाई पर लेटी है।
तुम्हारे इंतज्ञार में,
क्योंकि वह थक गई है।
तुम्हारे जीवन को बनाने में,
वह माँ है,
श्रद्धेया माँ,
आदरणीया माँ।

प्रश्न :
(क) कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) वह क्या अनुभव नहीं करता और क्यों?
(ग) माँ क्या-क्या करती है और उसका हददय कैसा है?
(घ) माँ को भोली क्यों कहा गया है?
(ङ) बेटे को माँ के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर :
(क) माँ की ममता।
(ख) वह अभी बच्चा है। उसे अभी यह अनुभव नहीं होता कि उसकी माँ उससे कितना प्यार करती है। वह उसके हर दुख-सुख में उसके साथ है।
(ग) माँ अपने बच्चे के लिए सब कुछ करती है। वह उसकी प्रत्येक सुविधा का ध्यान रखती है। प्रत्येक कष्ट को स्वयं हँसते-हँसते झेल जाती है परंतु अपने बच्चे को कष्ट नहीं होने देती। उसका हृदय बहुत विशाल है। उस के हृदय में सदा अपने बच्चे के प्रति प्यार समाया रहता है।
(घ) माँ को भोली इसलिए कहा गया है क्योंकि वह बेटे के बड़ा हो जाने पर भी उसकी बचपन की वस्तुओं को सँभाल कर रखती है और उसके बचपन को याद कर उसी में खो जाती है जबकि बेटा बड़ा होकर बड़ा आदमी बन गया है और उसे अपनी माँ की आवश्यकता महसूस नहीं होती।
(ङ) बेटे को अपनी माँ के प्रति अपना कर्तव्य भूलना नहीं चाहिए। वह अपनी बूढ़ी माँ का एकमात्र सहारा है। वह अब बहुत कमज्रोर हो गई है। जीवनभर उसने बेटे का जीवन सँवारा, अब बेटे को उसकी देखभाल करनी चाहिए।

(च) माँ को कैसा बताया गया है?
(i) चंचल
(ii) गंभीर
(iii) सख्त
(iv) भोली
उत्तर :
(iv) भोली

(छ) माँ का सँजोया सपना कब साकार हुआ?
(i) जब घर में अचानक धन मिल गया।
(ii) बेटा बड़ा आदमी बन गया।
(iii) जब खेतों में अन्न हुआ।
(iv) ये सभी।
उत्तर :
(ii) बेटा बड़ा आदमी बन गया।

(ज) ‘हड्डियों का ढाँचा मात्र’ का भाव है-
(i) कंकाल तंत्र
(ii) पतला शरीर
(iii) वृद्ध निर्बल शरीर
(iv) मांसल शरीर
उत्तर :
(iii) वृद्ध निर्बल शरीर

14. तुम्हारे रूप और साँदर्य में कशिश है
तुम्हारी बातों में अनूठा रस है
तुम्हारी हँसी का अपना जादू है
लेकिन मैं तुम्हारे प्रति आकर्षित नहीं हूँइन सबके कारण।
मैं तुम्हारी ओर आकर्षित हूँ
और लगाव महसूस करता हैँ तुम्हारे प्रति
मात्र तुम्हारे आकर्षक व्यक्तित्व के निमित्त।
तुम्हारा व्यक्तित्व ही तुम्हें,
बनाता है साधारण के बीच,
असाधारण।
ऐसे ही व्यक्तित्व की तलाश थी मुझे,
न जाने कब से,
खोजा करता उसे,
परिचित-अपरिचित सुंदरियों में,
प्रतिभासंपन्न नारियों में,
या ममतामयी देवियों में।
पर कुछ ही दिनों में,
वे प्रतीत होने लगती थीं –
अपूर्ण और विभक्त।
और उनके प्रति आकर्षण भी
हो जाता था तिरोहित।
पर जब से मिलीं तुम, कुछ संयोग से,
कुछ सौभाग्य से
मैं महसूस करने लगा तुमसे
एक आत्मीय लगाव और जुड़ाव।
अन्य सभी तरह के आकर्षण,
वय के साथ घटते जाते हैं
पर व्यक्तित्व का आकर्षण
उम्र के साथ बढ़ता ही जाता है।
फिर क्यों न मैं कामना करूँओ काम्या।
एक ऐसे आकर्षण की
जो दिनोंदिन बढ़ता ही जाएगा।
वह मृत्यु पर्यंत ही नहीं।
मृत्यु उपरांत भी साथ निभाएगा।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उच्चित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि ‘उस’ के प्रति किस कारण आकर्षित नहीं है?
(ग) कवि ‘उस’ के प्रति कैसे आकर्षित है?
(घ) कैसा आकर्षण निरंतर घटता जाता है और कैसा निरंतर बढ़ता जाता है?
(ङ) कवि को कैसी कामना है ?
उत्तर :
(क) व्यक्तित्व का आकर्षण।
(ख) कवि ‘उस’ के साँदर्य, उसकी मीठी बातों, उसकी जादूभरी हँसी आदि के कारण ‘उस ‘ के प्रति आकर्षित नहीं है।
(ग) कवि ‘उस’ के असाधारण व्यक्तित्व के कारण ‘उस’ के प्रति आकर्षित है।
(घ) आयु बढ़ने के साथ-साथ किसी के साँदर्य, हाव-भावों, हँसी, मीठी बातों आदि का आकर्षण निरंतर कम होता जाता है परंतु किसी के व्यक्तित्व का अनूठापन आयु बढ़ने के साथ ही निरंतर बढ़ता जाता है तथा और अधिक आकर्षक लगने लगता है।
(ङ) कवि की इच्छा है कि उसे ऐसा आकर्षक व्यक्तित्व अपनी ओर आकर्षित करे जिसकी शोभा दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाए। ऐसा आकर्षण उसका उसकी मृत्यु तक ही नहीं अपितु मृत्यु के बाद भी उसका साथ निभाएगा।

(च) कवि के अनुसार अनूठा रस किसमें हैं?
(i) व्यक्तित्व में
(ii) हैसी में
(iii) बात में
(iv) कार्य में
उत्तर :
(iii) हैसी में

(छ) व्यक्ति साधारण से असाधारण कैसे बनता है?
(i) शक्ति अर्जित करके
(ii) अच्छे व्यक्तित्व से
(iii) अच्छे काम से
(iv) अच्छे वेतन से
उत्तर :
(ii) अच्छे व्यक्तित्व से

(ज) व्यक्तित्व का आकर्षण उग्र के साथ-
(i) रुक जाता है।
(ii) घटता जाता है।
(iii) बढ़ता जाता है।
(iv) ठहर जाता है।
उत्तर :
(iii) बढ़ता जाता है।

15. तुम कहीं भी रहो
तुम्हें क्यों
हिमालय अपना लगता है ?
दुश्मनों की कुदृष्टि से
धवलता जब मैली होने लगती है
तो तुम क्यों सन्नद्ध हो जाते हो,
सभी कुछ भूल?
गंगा के जल की कल-कल
क्यों तुम्हें दूर-दूर से
बुलाती लगती है?
कानों में गुनगुनाती सदैव
क्यों तुम्हें अपनी बाँहों में
खींचती लगती है?
कन्याकुमारी का जल-किलोल देखते
कश्मीर के दुख में डूब जाते हो
पंजाब के गीतों को दोहराते
क्यों उदासी में सिमट जाते हो,
सुन-सुनकर असम की मरोड़
विषमता पर क्रुद्ध हो जाते हो,
क्यों-आखिर क्यों?
इसका उत्तर
वह सूत्र है-
जिसे तुम मुश्किल में याद कर
भारत को विजयश्री दिलाते हो –
फिर क्यों इसे भूल जाते हो?
क्यों मन में भ्रम उपजाते हो
अलग-अलग से अनमने हो
कहाँ भटक जाते हो?
इस महाभाव को
भारतभाव को
सूक्ष्मभाव को
हमें वह मोड़ देना है
कि यह कभी टूटे नहीं
हम से कभी छूटे नहीं,
यही वह सूत्र है
जो हमें पिरोना है
मन की माला को
इसमें संजोना है
वैर-भाव का भूत भगाकर
मनभावन मन होना है।
टूटे नहीं कभी
मन से मन का भारत-रिश्ता
क्योंकि एकता बँधा देश
कभी नहीं पिसता।
किसी से नहीं पिसता।

प्रश्न :
(क) कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) हिमालय के संबंध में हमारी भावनाएँ कैसी हैं?
(ग) गंगा की क्या विशेषता है?
(घ) हमें किस ‘ भाव’ को बनाकर रखना है?
(ङ) देश कब पराजित नहीं होता?
उत्तर :
(क) भारतभाव।
(ख) हिमालय हमें सदा अपना लगता है। इस पर जब भी कभी शत्रु आक्रमण करता है तो हम सब एक होकर इसकी रक्षा करते हैं।
(ग) गंगा भारत की सर्वोत्तम पूज्य नदी है। इसके जल की कल-कल ध्वनियाँ सदा भारतवासियों के कानों में गूँजती रहती हैं। इसका आकर्षण प्रत्येक भारतवासी को इसके पास खींच लाता है।
(घ) हमें सदा परस्पर मिल-जुलकर रहने का भाव विकसित करना है। प्रत्येक देशवासी के मन में ऐसा भारतभाव जगाना है कि वह समस्त भेदभाव भूलकर स्वयं को केवल भारतवासी ही समझे तथा भारत की रक्षा के लिए सदा तैयार रहे।
(ङ) किसी भी देश को कोई भी शत्रु तब तक पराजित नहीं कर सकता जब तक वह देश तन-मन-धन से एकता के सूत्र में बँधा रहता है। वहाँ कोई भी भेदभाव नहीं होता तथा ‘देशभाव प्रमुख’ होता है।

(च) हमें कौन दूर से बुलाती है?
(i) हिमालय की चोटी
(ii) गंगा की कलकल
(iii) विजयश्री के बोल
(iv) मन का गीत
उत्तर :
(ii) गंगा की कलकल

(छ) क्या सुन-सुनकर विषमता पर कुच्ध हो जाते हैं?
(i) पंजाब के गीत
(ii) जल किलोल
(iii) भाले की आवाज्र
(iv) ये सभी
उत्तर :
(i) पंजाब के गीत

(ज) कवि किसका भूत भगाना चाहता है?
(i) भय का भूत
(ii) वैर-भाव का भूत
(iii) ईमानदारी का भूत
(iv) सच्चाई का भूत
उत्तर :
(i) भय का भूत

16. कवि कुछ ऐसा भाव जगा दो…
काँटा मृदुल सुमन बन जाए, उज्वल मन-दर्पण बन जाए।
जीवन के उपयुक्त मनोहर, वसुधा का कण-कण बन जाए ।
वो देखो हो गई पराई, नवयुवती ले रही विदाई ॥
स्वप्न सुनहले उर में जिसके, रह-रह कर लेते अँगड़ाई ॥
उसका भी अपना घर होगा, नव पथ सुंदर सुखकर होगा॥
ममता, प्यार, नेह की वर्षा, आँगन करता जलधर होगा॥
यह कैसी आँधी चढ़ आई? जिसने चिंगारी सुलगाई।।
जली दुल्हनियाँ, जलते सपने, मुट्ठीभर बस राख बनाई ॥
क्या तन से बढ़कर कंचन है? क्या मन से बढ़कर चिंतन है?
द्रव्य नहीं आधार प्यार का, यह तो इक विनम्र अर्पण है।
कवि कुछ ऐसा भाव जगा दो…
हर मस्तक चिंतन बन जाए। पाहन भी कंचन बन जाए।
कलि से मधुकर नहीं दूर हो, मधुर-मधुर जीवन बन जाए।
हिंदु, मुस्लिम, सिख, ईसाई। भाई-भाई करें लड़ाई ।
प्रेम-एकता बंधन टूटे, कड़वाहट बढ़ रही बुराई॥
इसने जला दिया गुरुद्वारा। उसका मंदिर टूटा सारा॥
हिली चर्च, मसजिद की इटें, फिरे देवता मारा-मार॥
धर्म नहीं लड़ना सिखलाता। नहीं समझ में इनके आता।
धर्म परस्पर जुड़ें इस तरह, रवि का किरणों से ज्यूँ नाता ॥
लहू एक भगवान एक है, सबमें जीव समान एक है ॥
भाषा, धर्म, रिवाज भिन्न हों, लेकिन हिंदुस्तान एक है॥
कवि कुछ ऐसा भाव जगा दो…
जन-मन द्वेष हवन बन जाए। हर घर प्रेम-भवन बन जाए॥
उड़े चलें हिंसा के बादल, भीषण वेग पवन बन जाए।

प्रश्न :
(क) कविता का उच्चित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि कैसा भाव जगाना चाहता है?
(ग) विदाई के समय नवयुवती क्या सोचती है?
(घ) ‘तन से बढ़कर कंचन’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
(क) कवि की कामना।
(ख) कवि देशवासियों में प्रेमभाव का प्रसार करना चाहता है जिससे सर्वत्र सुख, समृद्धि एवं आनंद का साम्राज्य हो। कोई परस्पर द्वेष-भाव नहीं रखे तथा सब स्वयं को हिंदुस्तानी समझ कर रहें।
(ग) विदाई के समय नवयुक्ती सोच रही थी कि उसका भी एक सुंदर-सा अपना घर होगा। उसका वैवाहिक जीवन सुखद, प्रेमपूर्ण तथा समृद्ध होगा।
(घ) इस कथन का तात्पर्य यह है कि आज के भौतिकतावादी समाज में मनुष्यता के स्थान पर व्यक्ति के आर्थिक स्तर का अधिक महत्त्व हो गया है। लोग व्यक्ति के व्यक्तित्व को नहीं उसकी दौलत को पूजते हैं।

(ङ) धर्म क्या नहीं सिखाता?
(i) परस्पर लड़ना
(ii) मिल-जुलकर रहना
(iii) द्वेष करना
(iv) विकल्प (i) तथा (ii)
उत्तर :
(iv) विकल्प (i) तथा (ii)

(च) कवि ने द्रव्य को क्या बताया?
(i) प्यार का आधार
(ii) एकता का आधार
(iii) विनम्र अर्पण
(iv) मन का आधार
उत्तर :
(iii) विनम्र अर्पण

(छ) कवि के अनुसार पाहन को क्या बनना चाहिए?
(i) मोती
(ii) कंचन
(iii) राख
(iv) चिनगारी
उत्तर :
(ii) कंचन

(ज) किसे एक समान नहीं माना गया है?
(i) लहू
(ii) जीव
(iii) भगवान
(iv) भाषा
उत्तर :
(iv) भाषा

17. उसका गुड़ियों को
समेटकर रख देने के बाद
अपना घर बसाने का सम्मोहन
अकसर ही उन्मुक्त नदी के प्रवाह की
स्मृतियाँ हरी कर देता है,
दर्शकों की अश्रु विगलित आँखों में
पर हाँ, नदी की आँखें हैं ही कहाँ
भ्रम है उसके सहख्य नेत्री होने का।
उसके पास तो रास्ता है।
जिधर भी ढलान नज़र आ जाए
उधर ही बहते रहने के लिए।
पूछा मैंने एक दिन
लक्ष्य विहीन जीवन
क्यों जीने को विवश है नदी।
मुझे पता है लक्ष्य
मैं अगर अथाह समुद्र तक
नहीं पहुँची कभी
तो सूख जाऊँगी यहाँ।
कोई शिकवा शिकायत नहीं होगी।
खारेपन में विलीन होने से
बच जाऊँगी ना, इसी तरह।
कितना मोह है नदी को।
अपने ही मार्ग से
अपनी अस्तित्व-लीला
समेट लेने का।
ठीक उसी तरह
भारतीय कन्या
अपने पिता का घर छोड़
गतिशील नदी की तरह
मंथर गति से बढ़ जाती है,
अपना जीवन मंतव्य तलाशने।
समुद्र तक नहीं पहुँची
खारेपन का अंग बनने
बस अपने घर में ही
तलाशती रहती है अपनापन
छूट गया है जो पिता के घर
मूक गुड़ियाओं के साथ ही साथ।
नदी जग भर का विषय पी
इसी तरह विष पी-पीकर
नीलकंठी बनी वह
भारतीय कन्या भी
जीवनामृत बाँटती रहती है
आस्था की नई-नई
परिभाषाएँ लिखती रहती हैं।

प्रश्न :
(क) कविता का उच्चित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि को क्या याद आ जाता है?
(ग) नदी के पास क्या नहीं और क्या है?
(घ) नदी अपने अस्तित्व कहाँ और क्यों समाप्त कर देना चाहती है?
(ङ) भारतीय कन्या नीलकंठी क्यों है?
उत्तर :
(क) नदी की तरह।
(ख) कवि को अपनी छोटी बच्ची का गुड़ियों को समेटकर रखना याद आ जाता है। जब उसकी बेटी का विवाह होने वाला था तो वह उस अवसर को स्मरण कर आँखें नम कर लेता है।
(ग) नदी के पास आँखें नहीं हैं कि वह देख सके जबकि उसे सहस्र नेत्रा कहा जाता है। नदी तो सदा बहती रहती है। जिधर बलान नजर आ जाए, उधर बह जाती है।
(घ) नदी अपना अस्तित्व अपने मार्ग में ही समाप्त कर देना चाहती है क्योंकि वह स्वयं को सागर के खारे पानी में विलीन नहीं करना चाहती।
(ङ) भारतीय कन्या नदी की तरह संसारभर का विष पी-पीकर नीलकंठी बनकर जीवनभर नदी की तरह सबको जीवन रूपी अमृत बाँटती रहती है। नदी समस्त विकारों को धोकर सबको निर्मल जल देती है तथा भारतीय कन्या सब कष्ट सहकर सबको सुख देती है।

(च) कवि किसके सहस्त्रनेत्री होने का भ्रम उपजाता है ?
(i) गुड़िया
(ii) नदी
(iii) स्मृति
(iv) नजर
उत्तर :
(ii) नदी

(छ) कौन गतिशील नबी की तरह मंथर गति से जीवन मंतब्य तलाशने के लिए बढ़ती जाती है?
(i) भारतीय नौका
(ii) भारतीय कन्या
(iii) मूक गुड़िया
(iv) परी
उत्तर :
(ii) भारतीय कन्या

(ज) भारतीय कन्या किस पर नई-नई परिभाषाएँ लिखती रहती है?
(i) दहेज पर
(ii) पराएपन पर
(iii) शिकवा-शिकायत पर
(iv) आस्था पर
उत्तर :
(iv) आस्था पर

18. राष्ट्र के प्रहरी सजग, धोखा न खाना।
सो रहा सारा जहाँ पर तुम अकेले जग रहे हो।
राष्ट्र के खातिर अटल रह एक पल सोए नहीं तुम।
रातभर चलते ही चलते जा रहे थकते नहीं तुम।
छोड़ घर आए प्रिया औ’ दुधमुँहे बच्चे सतौने।
क्या न भर आती तुम्हारी आँख यादों को भिगोने ?
त्याग-तब की मूर्ति तुम पर नाज्त करता है ज्ञमाना।
राष्ट्र के प्रहरी सजग, धोखा न खाना।
है भयानक शोर-गुल-सा धुआँ भी उठता कहीं है।
देखना मुरझा न जाए फूलती बगिया वतन की।
देश में होंगे कहीं गद्दार भी यह भूलना मत।
देखना कोई न राँदे फूलती बगिया वतन की।
कोटि प्राणों की धरोहर राष्ट्र की, माँ भारती की।
शान को रखना कि यह मूरत सजाना।
राष्ट्र के प्रहरी सजग, धोखा न खाना।
राष्ट्र के खातिर हुए कुर्बान कितने शूरमा वे।
हो सका आज़ाद सदियों बाद ही तो यह वतन है।
अब न गफ़लत हो, न कोई उस तरह की दासता फिर।
हम रहें आज्ञाद ही, या मर मिटें यह एक प्रण है।
एक स्वर हो राष्ट्र का, बस एक ही माँ है हमारी।
हो यशस्वी प्रात चिर, नित साँध्य को दीपक जलाना।
राष्ट्र के प्रहरी सजग, धोखा न खाना।

प्रश्न :
(क) कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कौन अकेला और क्यों जाग रहा है?
(ग) कौन, किसे, कहाँ और क्यों छोड़ आया है?
(घ) किसे, क्या और क्यों नहीं भूलना है?
(ङ) हमें अपनी आजादी की रक्षा के लिए क्या करना है?
उत्तर :
(क) राष्ट्रप्रहरी।
(ख) राष्ट्र का प्रहरी देश की रक्षा के लिए जाग रहा है, जिससे देशवासी आराम से सो सकें। वह एक क्षण भी सोता नहीं है। सदा सजग रहता है।
(ग) राष्ट्र-प्रहरी अपनी पत्ली और नन्हे बच्चे को अपने घर छोड़ आया है क्योंकि उसने सीमा पर देश की रक्षा करनी है।
(घ) राष्ट्र-प्रहरी को यह नहीं भूलना है कि देश पर किसी प्रकार का आक्रमण नहीं हो तथा देश में रहने वाला कोई व्यक्ति देश से गद्दारी नहीं करे। उसे अपने देश की रक्षा के लिए सदा सजग रहना है।
(ङ) हमें अपनी आजादी की रक्षा के लिए सदा आत्मबलिदान के लिए तैयार रहना है। सबको आपसी मतभेद भुलाकर केवल भारत माता को अपनी माँ मानकर उसकी रक्षा करनी है।

(च) काव्यांश में ‘त्याग की मूर्ति’ कहकर किसका संबोधन किया गया है?
(i) किसान
(ii) सैनिक (राष्ट्र-प्रहरी)
(iii) डॉक्टर
(iv) नेता
उत्तर :
(ii) सैनिक (राष्ट्र-प्रहरी)

(छ) ‘कोई न रैंदे फूलती बगिया वतन की’ पंक्ति का भाव है-
(i) कोई भी मानव फल-फूल तोड़कर नुकसान न पहुँचाए।
(ii) कोई माली अनावश्यक हानि 7 पहुँचाए।
(iii) कोई भी देश विरोधी देश को नुकसान न पहुँचाने पाए।
(iv) ये सभी विकल्प।
उत्तर :
(iv) ये सभी विकल्प।

(ज) कोटि प्राणों की घरोहर किस कहा गया है?
(i) माँ भारती को
(ii) माँ शारदा को
(iii) माँ लक्ष्मी को
(iv) माँ धरती को
उत्तर :
(i) माँ भारती को

19. दूर बहुत दूर। बहुत दूर।
जहाँ कोई पगडंडी नहीं जाती,
इस या उस ओर,
निकल गई हैं सब,
और अब –
युग की अहिल्या-सा अभिशापित,
अयोध्या से सीता-सा निर्वासित,
अपनी ही परिधि में गलता हूँ।
सदियों से मौन,
किसी योगी-सा –
अपनी ही साँसों को सुनता हूँ।
धरती के चूनर पे
मैले सितारे-सा अंकित हूँ
मैं एक गुंबद हूँ।
ऐसा हुआ है कई बार,
कि कुछ दूर ही से निकल गई हैं बहारें,
काफ़िला कोई नहीं मेरी तरफ़ आ पाया
और मैं तरसा हूँ रातभर
कि मेरे द्वार की साँकल खटके
कोई मुझ तक आए।
मुझे कोई कहानी सुनाए
मेररे तपते हुए माथे पर हाथ धरे। मेरे पास बैठे,
मुझ पर अंकित समय के,
अनगिनत हस्ताक्षरों को पढ़े,
मेरा दर्द बाँटे पलभर को ही सही,
मेरे मन की झील में झाँक
पगडंडियों को इधर मोड़े
ताकि काफ़िले मुझ तक आ सकें।
मेरा सूनापन घटा सकें।
पर ऐसा न हो सका,
और, मे –
युग की अहिल्या-सा अभिशापित,
अयोध्या से सीता-सा निर्वासित,
अपनी ही परिधि में गलता हूँ।
सदियों से मौन किसी योगी-सा –
अपनी ही साँसों को सुनता है
धरती के चूनर पे,
मैले सितारे-सा अंकित हूँ।
मैं एक गुंबद हूँ।
में एक गुंबद हूँ॥

प्रश्न :
(क) कविता का उच्चित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि की क्या दशा है?
(ग) कवि किसके लिए और क्यों तरसा है?
(घ) कवि का सूनापन कैसे कम हो सकता था?
(ङ) कवि ने स्वयं को किन-किन के जैसा बताया है?
उत्तर :
(क) गुंबद।
(ख) कवि को ऐसा लगता है कि वह एक गुंबद के समान नदियों से मौन एक ओर चुपचाप खड़ा है, जिसका इस संसार में कोई विशेष अस्तित्व नहीं है सिर्फ इसके कि वह एक गुंबद है।
(ग) कवि चाहता है कि कोई उसके घर पर आकर उसके द्वार की साँकल खटखटाए और उसके पास बैठकर सुख-दु:ख की बातें करे तथा उसके दर्द को बाँटे। उसके मन की सुने और अपनी सुनाए। परंतु कोई भी नहीं आता इसलिए वह इस सबके लिए तरसता रहता है ।
(घ) कवि का सूनापन तब कम हो सकता है जब उससे मिलने के लिए लोग उसके पास आएँ और उससे सुख-दु:ख की बातें करें।
(ङ) कवि ने स्वयं को अहिल्या-सा अभिशापित, सीता-सा निर्वासित, किसी योगी-सा मौन तथा एक गुंबद बताया है।

(च) कौन सदियों से मौन अपनी ही साँसों को सुनता है?
(i) राही
(ii) वृक्ष
(iii) गुंबद
(iv) पक्षी
उत्तर :
(iii) गुंबद

(छ) गुंबद क्या सुनने की अपेक्षा रखता है?
(i) कोई गीत
(ii) कोई कहानी
(iii) कोई श्लोक
(iv) कोई काल्पनिक घटना
उत्तर :
(ii) कोई कहानी

(ज) गुंबद घरती के चूनर पर कैसा विखता है?
(i) चमकीले ग्रह से
(ii) मैले सितारे-सा
(iii) चमकदार चंद्रमा-सा
(iv) तीव्र सूर्य-सा
उत्तर :
(ii) मैले सितारे-सा

20. विशाल महानगर की,
सीलनयुक्त झोंपड़पट्टी में,
जब उसने तनिक होश सँभाला,
स्वयं को नंगे पाँव, नंगे बदन,
भव्य होटल के कूड़ादान के पास,
जूठन पर श्वानों की तरह,
झपटते-उलझते बच्चों की,
टोली में पाया था।
हर साँझ माँ को बापू,
अक्सर ऐसे पीटता था,
जैसे उनका पड़ोसी दीनू
दूध न देने पर,
अपनी बिंदो गाय को पीटता है।
माँ दिन भर कागज़ बीनती,
साँय घर का सारा काम करती,
बाबू की मार खाती,
रातभर रोती सिसकती।
फिर सुबह कागज़ बीनने चली जाती,
नौकरी पाने की लालसा लिए,
सदैव निकम्मा घूमने वाला बापू,
साँझ बलते ही ताड़ी पीने हेतु
माँ से पैसे ऐंठने का कारोबार करता।
और जब माँ
बच्चों की भूख का वास्ता देकर,
बापू से उलझती,
तो बाबू मार का उपहार देकर,
सारा घर सिर पर उठा लेता।
जीत बापू की ही होती,
बापू ने कभी प्यार किया हो,
ऐसा उसे याद नहीं आता,
बड़की, मँझले व उसको
बापू कुतिया के पिल्ले कहता
बड़की की चोटी खींचता,
मझले को छड़ी से पीटता,
और कई बार,
ताड़ी के नशे में,
पीट-पीटकर अधमरा कर देता।
बापू के साथ समय दौड़ता रहा,
और फिर,
ताड़ी के लिए दीवाने बापू को,
एक दिन ताड़ी ने पी लिया।
विद्यालय जाने की इच्छा मन में दबाए,
बड़की, मझला और में,
कागज़ बीनते, दुर्गंध सूँघते
जीवन की टूटी बैलगाड़ी,
धीरे-धीरे हाँकने लगे
और हर बार झोंपड़-पट्टी में,
अक्सर वोट माँगने आए,
नेताओं के भाषण फाँकने लगे।
भाइयो और बहनो!
हम आज़ाद हैं पूरे आज़ाद,
इसी आजादी के कारण,
हम प्रगति पथ पर अग्रसर हैं,
स्वतंत्रता हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है,
प्रगति के अवसर सबको समान हैं,
मेरा भारत महान है।
छोटा बड़ा कोई नहीं,
खोटा खरा कोई नहीं।
हम उपाय ढूँढ़ रहे हैं
शीघ्र मिट जाएगी दूरी,
न रहेगी कोई मजबूरी,
भारत माता की जय!
तोंदीले सफ़ेद पोरों के,
वर्षों ऐसे नारे सुनने के बाद,
बचपन से बुढ़ापे तक,
कागज बीनते, दुर्गंध सूँघते,
उसके साथियों की टोली,
लंबी हुई है बहुत लंबी।
कोई बताए उसे,
सही अर्थों में,
कब होगा वह आज्ञाद?
भूख-नंग से,
आर्थिक तंगी से,
झोंपड़पट्टी से,
कोई बताए उसे,
कोई बताए उसे।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) होश सँभालने पर बच्चे की क्या दशा थी?
(ग) बापू का माँ से कैसा व्यवहार था और क्यों?
(घ) बापू के मरने के बाद बच्चों की क्या दशा थी?
(ङ) वह क्या जानना चाहता है?
उत्तर :
(क) कैसी आजादी।
(ख) जब से बच्चे ने होश संभाला है वह स्वयं को नंगे पाँव और नंगे बदन एक बहुत बड़े होटल के कूड़ेदान के पास जूठन पर टूटते हुए कुत्तों के समान अन्य उस जैसे बच्चों के साथ जूठन बटोरते हुए देखता है।
(ग) बापू कोई काम-धाम नहीं करता। वह ताड़ी पीने के लिए माँ से पैसे माँगता है और पैसे नहीं देने पर उसे ऐसे पीटता है जैसे दूध नहीं देने पर बिंदो अपनी गाय को पीटता है। माँ बापू की मार खाकर रातभर रोती रहती है।
(घ) बापू के मरने के बाद बच्चों की विद्यालय पढ़ने जाने की इच्छा समाप्त हो जाती है। वे दिनभर कूड़ेदानों में से कागजा आदि बटोरते रहते हैं। उन्हें बेचकर जीवन चलाते हैं।
(ङ) वह नेताओं के भाषण आदि सुनकर यह जानना चाहता है कि क्या यही आज़ादी है कि वे कूडेदान की दुर्गमय क्षिंदगी को जीते रहें? उन्हें भूख से, नंगेपन से, आर्थिक तंगी से तथा झोंपड़पट्टी में पड़े रहने से मुक्ति कब मिलेगी? उसे कोई बताए कि यह सब कब होगा?

(च) वीनू की गाय का क्या नाम था?
(i) श्यामा
(ii) कपिला
(iii) बिंदो
(iv) निर्मोही
उत्तर :
(iii) बिंदो

(छ) माँ दिनभर क्या करती थी?
(i) आराम करती थी।
(ii) पढ़ाने जाती थी।
(iii) पानी भरती थी।
(iv) कूड़ा बीनती थी।
उत्तर :
(iv) कूड़ा बीनती थी।

(ज) माँ बापू से किस बात पर उलझती थी?
(i) बच्चों की पढ़ाई का वास्ता देकर
(ii) बच्चों की भूख का वास्ता देकर
(iii) खेल-कूद का वास्ता देकर
(iv) घर की सफ़ाई का वास्ता देकर
उत्तर :
(ii) बच्चों की भूख का वास्वा देकर

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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CBSE Class 11 Hindi रचना दी गई स्थिति / घटना के आधार पर दृश्य लेखन

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CBSE Class 11 Hindi रचना दी गई स्थिति / घटना के आधार पर दृश्य लेखन

1. दी गई स्थिति/घटना के आधार पर आप निष्कर्ष निकालेंगे। इससे कैसे बचा जा सकता है?

कुपोषण का शिकार कौन और कैसे

1. देश में लगभग 5.5 करोड़ बच्चे कुपोषण का शिकार। कुपोषण का शिकार हर तीसरा बच्चा भारतीय।
जानकारी-यूनिसेफ प्रतिनिध सिसीलियो एडोन्ना के अनुसार कुछ सावधानियों से बचाया जा सकता है। पाँच साल से कम आयु के 6 लाख बच्चों को विद्यमान-केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय की सचिव।
कुपोषण के कारण-भोजन की कमी कारण नहीं बल्कि अज्ञान है कारण।
उत्तर :
इस स्थिति से दयनीय प्रमाण सबके समक्ष आता है कि हमारे देश में लगभग $5.5$ करोड़ बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। वे समय से पहले मर जाते हैं। विश्व के कुपोषण के शिकार कुल $14.6$ करोड़ बच्चों के एक तिहाई से भी अधिक बच्चे भारत में रहते हैं।
परंतु नवजात शिशु को आहार को उचित तरीके से देने और चंद सावधानियाँ बरतने से हर साल पाँच वर्ष से कम 6 लाख बच्चों को बचाया जा सकता है। यह बात यूनिसेफ द्वारा किए गए विश्लेषण से सामने आई है। संवाददाताओं को इसकी जानकारी यूनिसेफ प्रतिनिधि सिसीलियो एडोन्ना ने दी। इस अवसर पर केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय की सचिव भी विद्यमान थी। इस अवसर पर सिसीलियो एड़ोन्ना ने कहा कि भारत में आज बच्चों में प्रतिवर्ष हो रही 21 लाख मौतों में से आधी मौतों का कारण कुपोषण है। उचित स्तनपान तथा समय से पूरक आहार दिए जाने से काफ़ी प्रभाव पड़ेगा। उनका मानना है कि भोजन का प्रभाव नहीं है लेकिन उचित जानकारी नहीं होने के कारण भी काम में बाधा आ रही है।

2. सूचनाएँ –
विषय-आयोडीन रहित नमक की बिक्री पर देशब्यापी प्रतिबंध।
प्रवक्ता-केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक। जारी अधिसूचना को छह मास बीते। छह महीने की अवधि मंगलवार आधी रात को समाप्त।
उत्तर :

आयोडीन रहित नमक पर आज से पूर्ण प्रतिबंध

नई दिल्ली, 18 जून
आयोडीन रहित नमक के सीधे इनसानी उपयोग से होने वाली बीमारियों के प्ररिप्रेक्य में सरकार ने कल बुधवार से देश भर में ऐसे नमक की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक ने मंगलवार को एक भेंट में बताया कि सरकार ने आयोडीन रहित नमक से सीधे मानवीय उपयोग के लिए इसकी बिक्री पर पाबंदी संबंधी अधिसूचना गत वर्ष 17 नवंबर को जारी की थी, जिसमें इसके उपयोग पर पूर्ण पाबंदी लगाने के लिए छह माह का समय दिया गया था। छह माह की अवधि मंगलवार आधी रात से समाप्त हो रही है। उसके बाद संपूर्ण देश में आयोडीन रहित नमक की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लग जाएगा।

3. पॉश कॉलोनियों में बिजली की चोरी में वृद्धि से संबंधित एक समाचार लिखिए। उचित शीर्षक भी लिखिए।

शीर्षक : पॉश कॉलोनियाँ बिजली चोरी में नंबर वन

नई दिल्ली, 18 जून
एक तरफ़ आम जनता बिजली की समस्या से बेहाल है, दूसरी ओर पॉश कॉलोनियों ने बिजली चोरी में सभी क्षेत्रों को पीछे छोड़ रखा है। इन क्षेत्रों में 50 फीसदी से भी ज़्यादा बिजली की चोरी दर्ज की गई है। बिजली अधिकारियों ने सरकारी निकायों पर बकाया मामलों के भुगतान के लिए सरकार से हस्तक्षेप करने की भी माँग की है। सूत्रों का कहना है कि पॉश कॉलोनियों और कुछ उद्योगों ने बिजली की हालत बदतर बना रखी है। सूत्रों की मानें तो राजधानी क्षेत्र में स्थित कुछ विशेष क्षेत्रों में लगभग 90 फीसदी तक बिजली चोरी की जाती है। इस क्षेत्र में रहने वाले अधिकांश लोगों के यहाँ एक से अधिक एयरकंडीशनर, वाटरकूलर और बिजली के अन्य उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। इससे साफ़ हो जाता है कि चोरी तो सफ़ेद पोशों के यहाँ भी कम नहीं होती, लेकिन बदनाम आम जनता और झुग्गी-झोपड़ी वाले होते हैं।

4. अपशिष्ट पदार्थों से एक नई कापैक्ट बायोगैस प्रौद्योगिकी के विकास से संबंधित समाचार तैयार कीजिए।
उत्तर :

कूड़े से रुक सकती है गैस किल्लत

मुंबई. 27 अप्रैल
सोमवार को इंडिया हैबिटेट सेंटर में अखिल भारतीय युवा वैज्ञानिक संगठन द्वारा आयोजित एक वैज्ञानिक सेमिनार के दौरान युवा वैज्ञानिकों ने कहा कि बायोगैस पद्धति से गैस की कमी को रोका जा सकता है। सामाजिक परिवेश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की उपयोगिता पर आधारित इस सेमिनार में पुणे के एक कोर दल एप्रोप्रिएट रुरल टैक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट ने एक अत्याधुनिक तकनीकी का प्रदर्शन किया, जिसमें अपशिष्ट पदार्थों को एकत्र कर एक नई कापैक्ट बायोगैस प्रौद्योगिकी विकसित हो गई।

5. कुछ रेलगाड़ियों के समय में परिवर्तन संबंधी समाचार तैयार कीजिए।
उत्तर :

कई ट्रेनों का समय बवला

नई दिल्ली, 4 मई
परिचालनिक कारणों के कारण कुछ गाड़ियों के समय में परिवर्तन किया गया है। 4 आरड़ी रेवाड़ी-दिल्ली पैसेंजर रेलगाड़ी सुबह 8.30 बजे के स्थान पर सुबह 8.29 बजे दिल्ली छावनी, सुबह 8.48 बजे के स्थान पर सुबह 8.38 बजे पटेल नगर, सुबह 8.56 के स्थान पर सुबह 8.44 बजे दिल्ली सराय रोहिल्ला और सुबह 9.15 बजे के स्थान पर सुबह 9.00 बजे दिल्ली जंक्शन पहुँचेगी। 2463 संपर्क क्रांति एक्सप्रेस और 9264 दिल्ली सराय रोहिल्ला-पोरबंदर एक्स्प्रेस रेलगाड़ी दिल्ली सराय रोहिल्ला से सुबह 8.20 बजे के स्थान पर सुबह 8.45 बजे प्रस्थान करेगी।

6. कुख्यात बदमाश दीपक को विल्ली पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया। इस विषय पर एक समाचार लिखिए।
उत्तर :

कुख्यात बदमाश दीपक मुठभेड़ में ठेर

नई दिल्ली, 12 जनवरी
दिल्ली पुलिस के स्पेशल टास्कफोर्स ने उत्तर प्रदेश के कुख्यात बदमाश दीपक जाट को आज रात भजनपुरा इलाके में वजीराबाद पुल के पास एक मुठभेड़ के दौरान मार गिराया। इसके खिलाफ़ 11 हत्याओं सहित कुल 50 मामले दर्ज हैं। इसकी गिरफ्तारी पर उत्तर प्रदेश सरकार ने इनाम की घोषणा की थी। स्पेशल टास्क फोर्स के संयुक्त आयुक्त ने बताया कि मंगलवार की शाम ए०सी०पी० की टीम को सूचना मिली की उत्तर प्रदेश का कुख्यात बदमाश दीपक जाट बाइक से वज्ञीराबाद पुल के पास आ रहा है।

7. पिछले वर्ष मॉनसून की तबाही से भयभीत मुंबई नगर निगम ने इस वर्ष इससे निपटने की तैयारी कर ली है। इसे आधार बनाकर समाचार लिखिए।
उत्तर :

मुंबई मॉनसून का मुकाबला करने को तैयार

मुंबई, 27 मई
मॉनसून के आगमन में केवल दो सप्ताह ही रह गए हैं और मुंबईवासियों को पिछले साल मूसलाधार बारिश से महानगर में आए जल-प्रलय की दुखदायी याद सताने लगी है। लेकिन अधिकारियों का दावा है कि वे ऐसे किसी भी हालात से निपटने को तैयार हैं। सरकारी आश्वासन के बावजूद लोगों के दिमाग में एक प्रश्न बार-बार उठ रहा है और आखिर मुंबई पिछले साल 26 जुलाई को हुए जल-प्लावन जैसी स्थिति से निपटने में किस सीमा तक सक्षम होगी?
पिछले साल 944 मिलीमीटर बारिश से शहर में अराजकता फैली थी। तब सरकार के द्वारा मॉनसून के निपटने की पूरी तैयारी धरी की धरी रह गई थी। शहर को बाढ़ से जूझना पड़ा था और हज्ञारों कार्यालय, घर स्कूल उद्योग-धंधे आदि बाढ़ की चपेट में आ गए थे। उस प्राकृतिक आपदा में सैकड़ों लोग मारे गए थे।
मुंबई नगर निगम के आपदा प्रबंधन विभाग के प्रभारी एवं अतिरिक्त आयुक्त श्रीकांत सिंह ने कहा कि वे आने वाली सभी चुनौतियों से निपटने के लिए जी-जान से पूरी तैयारी कर रहे हैं। इस पर वे लगभग अरब लाख रुपए खर्च करेंगे।
बचाव टीमों को कारला, सांता क्रूज, बांद्रा, बोरीवली, मोराल, धारावी और बायकूला अग्निशमन स्टेशनों में बचाव एवं राहत सुविधाओं के साथ तैनात किया जाएगा।

8. हिसार के निकट एक डेरे से छह भैसे चुराकर भागने वाले लुटरों से पुलिस ने भैसें तो प्राप्त कर ली पर लुटेरे फरार हो गए। इस घटना से संबंधित एक समाचार तैयार कीजिए।
उत्तर :

भैंस चुराकर भाग रहे लुटेरों ने किया पुलिस पर हमला

हिसार, 17 जून
कल रात कुछ अज्ञात लुटे एक डेरे में घुस गए। वहाँ स्थित कृपाल सिंह के घर में बँधी छह भैसे चुराकर जब वह वाहन में लादकर फरार हो रहे थे तो इसकी भनक मकान मालिक को लग गई। उसने तुरंत पुलिस को सूचना दी। लुटेरों ने घर में बँधी भैसों को टाटा- 407 में लाद दिया और उसे चुराकर भाग गए। सूचना मिलते ही पुलिस लुटेरों के पीछे लग गई।

जानकारी के मुताबिक डेरे के पास देर रात लुटेरों ने पुलिस की गाड़ी पर पत्थरों से हमला किया। इस मामले में पुलिस वाहन भी क्षतिग्रस्त हो गया। मगर पुलिस ने भी हार नहीं मानी। पुलिस ने तुरंत ज़िला पुलिस से संपर्क साधा और देर रात पूरे क्षेत्र में नाकेबंदी कर दी गई। बताया जा रहा है कि पुलिस की कारंवाई से घबराए लुटेरों ने पहले दो भैसें जल्दबाजी में सड़क पर उतार दीं, जिससे दोनों भैसें काफ़ी चोटिल हो गई हैं। पुलिस ने लुटेों का दूर तक पीछा किया और हड़बड़ाए लुटेरे अपना वाहन भी छोड़कर भाग गए।

पुलिस लुटेरों की तलाश कर रही है। एक साल पहले भी इसी डेरे के निकट गाँव शामगढ़ के समीप एक डेरे से आधा दर्जन लुटेरों ने डेढ़ लाख रुपए का पशुधन चुरा लिया था। मगर बाद में पुलिस ने लुटेरे काबू में कर लिए थे। अब तक अधिकांश लुटेरों ने अपना निशाना डेरों में बसे किसानों पर ही साधा है।

9. लाहौर में महाराजा रणजीत सिंह की समाधि का जीर्णोंद्धार करने की परम आवश्यकता है जो गत वर्ष आए भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गई थी। इसे आधार बनाकर एक समाचार लिखिए।
उत्तर :

लाहौर में महाराजा रणजीत सिंह की समाधि की दुर्वशा

इस्लामाबाद, 27 मई
भारत समाचार ने लाहौर स्थित महाराजा रणजीत सिंह की समाधि की जीण-शीर्ण दशा पर भारी चिंता जताई है। पिछले वर्ष 8 अक्टूबर को आए भूकंप में क्षतिप्रस्त हुई इस समाधि की उपेक्षा की जाती रही है। इससे यूनेस्को भी चितित है।

भारत की पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री अंबिका सोनी ने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान इस समाधि की दुर्दशा पर गहरी चिंता जताई थी। उन्होंने पाकिस्तानी अधिकारियों से इस ऐतिहासिक धरोहर की भव्यता लौटाने की बात कही। यह ऐतिहासिक धरोहर लाहौर किले एवं बादशाही मस्जिद के पास स्थित है। यूनेस्को ने इस समाधि की रक्षा और जीर्णोद्धार के लिए जो योजना बनाई थी, उस पर पाकिस्तान की पंजाब सरकार के अधिकारी अमल करने से परहेज कर रहे हैं। यूनेस्को ने अपने इस प्रस्ताव में इस समाधि को ऐतिहासिक लाहौर किले के भौगोलिक दायरे में लाने का सुझ़ाव देते हुए कहा था कि समाधि को लाहौर किले के दायरे में लाए जाने से विश्व धरोहर का दर्जा देने में आसानी हो जाएगी।

डेली टाइम्स अखबार के मुताबिक यूनेस्को के इस प्रस्ताव में पंजाब सरकार की कोई रचचि नहीं है। रणजीत सिंह के उत्तराधिकारियों ने उस स्थान पर इस समाधि का निर्माण कराया था जहाँ रणजीत सिंह की अंतयेष्टि की गई थी। यह सिक्ख वास्तुकला का श्रेष्ठ उदाहरण है। समाधि के अंदर स्थित संगमरमर पात्र में रणजीत सिंह की अस्थियाँ तथा अनेक अन्य संगमरमर के पात्रों में रणजीत सिंह की चार पलियों और सात उप पतियों की राख रखी है, जिन्होंने रणजीत सिंह की चिता पर छलाँग लगाकर जान दे दी थी।

10. वेश के इस गैर महानगरीय हवाई अड्डों के आघुनिकीकरण पर 1500 करोड़ रुपये खर्च करने को आधार बनाकर एक समाचार लिखिए।
उत्तर :

हवाई अड्डों पर होगा 1500 करोड़ का निवेश

नई दिल्ली, 28 मई
समाचार-भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण देश के दस गैर महानगरीय हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण पर करीब 1500 करोड़ रुपये का निवेश करेगा। आधुनिकीकरण का यह काम अगले वर्ष तक पूरा कर लिया जाएगा। सूत्रों ने बताया कि प्राधिकरण ने 12 शहरों की पहचान की है, जिनमें जयपुर, उदयपुर, श्रीनगर, अमृतसर, अंबाला, तिरुवनंतुरम, विशाखापट्टनम, मंगलौर, नागपुर, गोवा, वाराणसी और त्रिची शामिल हैं। उन्होंने बताया कि इन 12 में से दस हवाई अड्डों का चयन आधुनिकीकरण परियोजना के लिए किया जाएगा। आधुनिकीकरण के काम में हवाई अड्डों के आसपास की जगह का विकास सार्वजनिक-निजी साझेदारी में किया जाएगा। हवाई अड्डों का आधुनिकीकरण टर्मिनल, पार्किंग वे, टैक्सी वे तथा रन वे का आधुनिकीकरण सम्मिलित होगा। हवाई अड्डों का आधुनिकीकरण संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार और उसे बाहर से सहयोग कर रहे राजनीतिक दलों के बीच काफ़ी विवादास्पद विषय बन गया था।

11. जयपुर के ज़िला कारागार में मच्छरों का प्रकोप है जो मलेरिया का कारण बन रहा है। इस सूचना का आघार बनाकर एक समाचार लिखिए।
उत्तर :

जेल में मलेरिया फैलने का खतरा

जयपुर, 28 मई
जिला कारागार में मच्छरों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। दिन और रात दोनों समय में मच्छर भिनभिनाते रहते हैं। ऐसे में दर्जन भर कैदियों को बुखार की शिकायत भी हो गई है। इनके रक्त की जाँच से यह जानने का प्रयास किया जा रहा है कि इन कैदियों को मलेरिया है या नहीं।
जेल अधिकारियों ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए सी०एम०ओ० से बातचीत की है, ताकि जेल में समय रहते मच्छरमारक दवाई का स्रे किया जा सके। जेल में बनी बैरकों में मच्छर अधिक उत्पात मचाते हैं, यहाँ मच्छों से निपटने के लिए जेल प्रशासन की ओर से कुछ प्रबंध अवश्य किए गए हैं। लेकिन यह प्रबंध मच्छरों को मारने के लिए काफ़ी नहीं है। मच्छरों को मारने के लिए दवाई का स्रे ज़रूरी है।
जेलर का कहना है कि सरकार को चाहिए कि यहाँ स्र्रे कराए, जिससे मलेरिया को फैलने से रोका जा सके। यदि स्रे नहीं किया गया तो मलेरिया जेल में बंद 1800 कैदियों को चपेट में ले लेगा, जिससे बड़ी कठिनाई हो सकती है।

12. पंजाब की अधिकांश नहरें सफ़ाई न होने के कारण कूड़े-कचरे से भरी पड़ी हैं, जो मॉनसून के मौसम में बाढ़ों का कारण बन गई हैं। इस आधार बनाकर एक समाचार लिखिए।
उत्तर :

पानी के लिए बनाई नहरें बनीं कूड़े का डम्प

जालंधर, 27 मई
पंजाब राज्य की अधिकांश नहरें पानी के लिए तरस रही हैं। सफ़ाई का प्रबंध न होने के कारण नहरें कूड़ा-कर्कट, गाद और गंदगी से भर गई हैं। सिंचाई क्षेत्र में अहम भूमिका निभाने वाली इन नहरों को लोग घरों की गंदगी, प्लास्टिक और खाली लिफ़ाफ़े फेंकने के लिए कचरा घर के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। इसी कारण नहरों की पानी सँभालने की शक्ति एक तिहाई भी नहीं रही। सिंचाई विभाग द्वारा भी नहरों में पानी छोड़ा जाता है लेकिन वह भी गंदगी के कारण रास्ते में बर्बाद हो जाता है। इसका सीधा असर किसानों के खेत-खलिहारों पर पड़ता है। सबसे बुरी दशा शहरों के पास निकलती नहरों की है। इन नहरों का प्रयोग कूड़ा-कर्कट फेंकने के लिए ही किया जा रहा है। सिंचाई विभाग कई वर्षों से नहरों की सफ़ाई नहीं करवा रहा।

विभाग के अधिकारी कहते हैं कि धान की फसल से पूर्व सफ़ाई का कार्य होना चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है। अधिकतर सफ़ाई तो कागजों में ही हो जाती है। फिरोज्जुर, फरीदकोट, मोगा, अमृतसर, तरनतारन, जालंधर, कपूरथला, होशियारपुर की हज़ारों एकड़ भूमि की सिंचाई हेतु नहरों को तैयार किया गया। लुधियाना और जालंधर जैसे विकसित शहरों के पास से निकलने वाली नहरें अपनी कहानी स्वयं ही कहती हैं। शहर के लोगों ने भी पानी को बर्बाद और दूषित करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। इन नहरों से पानी खेतों में पहुँचता भी है तो भी यह हानिकारक सिद्ध हो सकता है। यदि पहाड़ों में भरपूर बर्फ़ गिरती है और आने वाले समय में अच्छी बरसात होती है तो नदियों का पानी खतरे के निशान से ऊपर हो सकता है। ऐसे में नहरें साफ़ न हुई तो यह पानी उत्पात मचा देगा। बाढ़ के रूप में यह अपार जान-माल की क्षति का कारण बनेगा।

13. अच्छी उपज के लिए 98-476 नामक नई किस्म अगले वर्ष से अधिक अनाज के लिए बाज़ार में आ जाएगी। इसे आधार बनाकर संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :

धूम मचाएगा अगले वर्ष हरियाणा का बासमती

करनाल, 18 जून
हरियाणा के बासमती की नई किस्म अब देश में ही नहीं बस्कि विदेशों में भी धूम मचाएगी। धान अनुसंधान केंद्र कौल ने बा. समती की ऐसी नई किस्म तैयार की है जो अपने स्वाद व फ्लेवर के कारण परंपरागत बासमती से श्रेष्ठ होगी। कृषि वैज्ञानिकों ने इसे 98-476 नाम दिया है। अनेक वर्ष के रिसर्च के बाद अगले मौसम में इस किस्म को रिलीज किया जाएगा।

इस मौसम में यह किस्म केवल कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, करनाल, कौल व कैथल के कृषि-विज्ञान केंद्रों में ही लगाई जाएगी। इस किस्म से नैक ब्लास्ट नामक बीमारी से बचने की प्रतिरोधी क्षमता भी ज्यादा है। इसलिए इसकी पैदावार प्रति एकड़ लगभग 16 क्विंटल होगी। यह अन्य बासमती चावल की अन्य किस्मों से मोटी और लंबी है। पकने के बाद उसका पुलाव भी अच्छा बनता है। इस किस्म की बिजाई से किसान प्रति एकड़ 25 हज्ञार रुपए तक कमा सकेंगे।

धान अनुसंधान कौल ने एचकके० आर० $-47$ नामक नई किस्म ईंजाद की है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस किस्म की रोपाई से किसानों को अच्छा लाभ होगा। कृषि यूनिवर्सिटी हिसार और हरियाणा बीज विकास निगम ने इसका बीज बेचना भी शुरू कर दिया है। धान अनुसंधान केंद्र कौल में इस किस्म पर पिछले अनेक वर्षों से रिसर्च चल रही थी। कृषि विज्ञान केंद्र के मुख्य विज्ञानी डॉ० राजेंद्र ने बताया कि बासमती 98-476 से जहाँ किसानों को अच्छा लाभ होगा, वहीं विदेशों में भी इसे ज्यादा पसंद किया जाएगा। बासमती की अन्य किस्मों से इसका दाना मोटा है तथा खाने में भी स्वादिष्ट है। इसके अतिरिक्त पी०आर० की नई किस्म की उपज भी अच्छी है।

14. आपके लिए मॉनसून वर्ष समय से छह दिन पहले आरंभ हो गई है। इसे आधार बनाकर एक समाचार लिखिए।
उत्तर :

देश में मॉनसून पहुँचा एक सप्ताह पहले

तिरुवनंतुपर 26 मई : भारतीय मौसम विभाग के अनुसार दक्षिण पश्चिमी मॉनसून ने केरल के तटवर्ती इलाकों में निर्धारित तिथि 1 जून से एक सप्ताह पहले आज दस्तक दे दी।
मौसम विभाग के निदेशक के० संतोष ने बताया कि मॉनसून में अचानक आए परिवर्तन के कारण इसके देश के विभिन्न भागों में शीप्र पहुँचने की संभावना है। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष 7 प्रतिशत कम बारिश होने की संभावना है। मौसम विभाग द्वारा जारी सेटेलाइट चित्र में मॉनसून दक्षिणी भारत के ऊपर सक्रिय है।
मॉनसून की उत्तरी सीमा कोच्चि से चेन्नई की ओर अग्रसर हो गई है। दक्षिणी अरब सागर के ऊपर मॉनसूनी हवाओं का शक्तिशाली दक्षिण ती-पश्चिमी बहाव जारी है। कम दबाव के कारण पिछले दो दिनों से केरल में बारिश हो रही है।
विभाग का कहना है कि अगले 48 घंटों में कर्नाटक और उत्तर पश्चिमी प्रदेशों में मॉनसून के अनकूल स्थितियाँ रहेंगी। केरल, लक्षद्वीप और तटवर्ती कर्नाटक में भारी बारिश होने की संभावना है।

1. शीर्षक दीजिए।
2. केरल में वर्षा लाने का काम किसने किया?
3. कैसी वर्षा का अनुमान किया गया?
उत्तर :
1. समय से पहले पहुँचा मानसून।
2. मॉनसून ने
3. कम वर्षा होने की।

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CBSE Class 11 Hindi रचना औपचारिक पत्र

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CBSE Class 11 Hindi रचना औपचारिक पत्र

आज के वैज्ञानिक युग में चाहे दूरभाष, वायरलैस, एस० एम० एस० ई-मेल आदि के प्रयोग से दूर स्थित सगे-संबंधियों, सरकारी-गैर सरकारी संस्थानों तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों से पल भर में बात की जा सकती है पर फिर भी पत्र-लेखेन का अभी भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। पत्र-लेखन विचारों के आपसी आदान-प्रदान का सशक्त, सुगम और सस्ता साधन है। पत्र-लेखन केवल विचारों का आदान-प्रदान ही नहीं है बल्कि इससे पत्र-लेखक के व्यक्तित्व, दृष्टिकोण, चरित्र संस्कार, मानसिक स्थिति आदि का ज्ञान हो जाता है। पत्र लिखने समय अनेक सावधानियाँ अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं –

  1. सरल और स्पष्ट भाषा का प्रयोग।
  2. स्नेह, शिष्टता और भद्रता का निर्वाह।
  3. पत्र प्राप्त करने वाले का पद, योग्यता, संबंध, सामर्थ्य, स्तर, आयु आदि।
  4. अनावश्यक विस्तार से बचाव।
  5. विपय-वस्तु की पूर्णता।
  6. कड़वे अशिष्ट और अनर्गल भावों तथा शब्दों का निषेध।
  7. समापन शिष्टता
  8. प्रेषक के हस्ताक्षर
  9. प्रेषित का पद / नाम / पता

1. भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की ओर से महाराष्ट्र-सरकार को नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए पत्र लिखिए।
रजत शर्मा
सचिव, भारत सरकार
शिक्षा मंत्रालय
दिनांक : 12 मार्च, 20…
सेवा में
सचिव
शिक्षा विभाग
महाराष्ट्र राज्य
मुंबई
विषय – नई शिक्षा नीति लागू करना
महोदय
मुझे आपको यह सूचित करने का निर्देश दिया गया है कि भारत सरकार के निश्चयानुसार शिक्षा सत्र 20…. से संपूर्ण देश में नई शिक्षा नीति को लागू कर दिया जाए। महाराष्ट्र में भी इस नीति को क्रियान्वित किया जाए तथा इस योजना को लागू करने के लिए किए गए प्रयासों से मंत्रालय को भी परिचित कराया जाए।
आपका विश्वासपात्र
ह० रजत शर्मा
(रजत शर्मा)
सचिव, शिक्षा मंत्रालय।

2. उपायुक्त, सिरसा की ओर से मुख्य सचिव हरियाणा सरकार को एक पत्र लिखकर बाढ़-पीड़ितों की सहायता के लिए अनुरोध कीजिए।
बी० एस० यादव
उपायुक्त, सिरसा
दिनांक : 16 अगस्त, 20…..
सेवा में
मुख्य सचिव
हरियाणा राज्य
चंडीगढ़
विषय – बाढ़-पीड़ितों की सहायता हेतु पत्र
महोदय
1. मैं आपको सूचित करता हूँ कि इन दिनों हुई भयंकर वर्षा के परिणामस्वरूप सिरसा के आसपास के गाँवों में भीषण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है। खड़ी फ़सलें नष्ट हो गई हैं तथा जन-धन और संपत्ति की भी बहुत हानि हुई है। मैंने अन्य ज़िला अधिकारियों के साथ स्थिति का निरीक्षण भी किया है।
2. जिला-स्तर पर बाढ़-पीड़ितों की यथासंभव सहायता की जा रही है, जो अपर्याप्त है। आपसे प्रार्थना है कि बाढ़-पीड़ितों को राज्य सरकार की ओर से विशेष आर्थिक सहायता प्रदान की जाए, जिससे वे अपने टूटे-फूटे मकान बना सकें तथा नष्ट हुई फ़सल के स्थान पर अगली फ़सल की तैयारी कर सकें।
3. बाढ़ के कारण बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ गया है। जिला स्वास्थ्य अधिकारी इन बीमारियों पर नियंत्रण करने में पूर्णरूप से सक्षम नहीं हैं। अत: विशेष चिकित्सकों के दल को भी भेजने का प्रबंध करें।
भवदीय
बी० एस० यादव
उपायुक्त, सिरसा

3. भारत सरकार के उद्योग मंत्रालय की ओर से हिमाचल प्रदेश सरकार के उद्योग सचिव को राज्य में उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित करने के लिए एक पत्र लिखिए।
भारत सरकार
उद्योग मंत्रालय
नई दिल्ली
22 सितंबर, 20
श्री पी० एस० यादव
सचिव, उद्योग विभाग, हिमाचल प्रदेश
विषय-उद्योग धंधों को प्रोत्साहित करने हेतु पत्र
प्रिय श्री यादव जी
विगत दिनों हिमाचल प्रदेश के कुछ उद्योगपतियों ने इस मंत्रालय को राज्य में उद्योग-धंधों की दयनीय स्थिति से अवगत कराया। मुझे बहुत दुख हुआ कि उद्योग-धंधों की उपेक्षा के कारण जहाँ हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति को आघात पहुँचा है, वहीं देश की प्रगति भी अवरूद्ध हो रही है। इस संबंध में आप व्यक्तिगत रूप से रुचि लें तथा प्रदेश में उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ चलाएँ। इस संदर्भ में विस्तृत योजनाएँ आपको अलग से भेजी जा रही हैं।
इन योजनाओं को लागू करने में यदि आपको कोई कठिनाई हो तो मुझसे संपर्क कर सकते हैं।
शुभकामनाओं सहित,
आपकी सद्भावी
पूनम शर्मा
शिमला

4. शारदा विद्या मंदिर, लखनऊ के प्राचार्य की ओर से महर्षि दयानंद विद्यालय के प्राचार्य को वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह में मुख्य अतिधि पद को स्वीकार करने हेतु एक पत्र लिखिए।
शारदा विद्या मंदिर
लखनऊ
18 अक्तूबर, 20….
सेवा में
डॉ० नरेश चंद्र मिश्र
प्राचार्य
महर्षि दयानंद विद्यालय
लखनऊ
विषय – मुख्य अतिथि पद के निमंत्रण हेतु पत्र
प्रिय डॉ० मिश्र जी
हमारे विद्यालय का वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह 18 जनवरी, $20 \ldots$ को आयोजित करने का निश्चय किया गया है। इसमें मुख्य अतिथि पद को सुशोभित करने हेतु आपसे निवेदन है कि आप अपने अति व्यस्त समय में से कुछ अमूल्य क्षण प्रदान कर हमें अनुगृहीत करें। इस समारोह में विद्यार्थियों को शैक्षणिक तथा विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों में श्रेष्ठता प्रदर्शित करने के लिए पुरस्कृत किया जाएगा। यदि आप इस विषय में अपनी सुविधानुसार मुझे समय दे सकें तो में आपका विशेष रूप से आभारी होऊँगा।
शुभकामनाओं सहित
शुभाकांक्षी
डॉ० के० के० मेनन

5. अपने क्षेत्र में मलेरिया फैलने की संभावना को देखते हुए स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए।
14/131, सुभाष नगर
सेलम
तिधि : 17 मई, 20…
स्वास्थ अधिकारी
नगर-निगम
सेलम
विषय-मलेरिया की रोकथाम हेतु पत्र।
आदरणीय महोदय
इस पत्र के द्वारा मैं अपने क्षेत्र ‘सुभाष नगर’ की सफ़ाई व्यवस्था की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ। आप जानते हैं कि यह क्षेत्र पर्याप्त ढलान पर बसा हुआ है। बरसात में यहाँ स्थान-स्थान पर पानी रुक जाता है। यही नहीं सड़कों के दोनों ओर गंदगी के ढेर लगे रहते हैं। सफ़ाई कर्मचारी कोई ध्यान नहीं देते। परिणामस्वरूप यहाँ मक्खियों और मच्छरों का जमघट बना रहता है। रुका हुआ पानी मच्छरों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि करता है। अतः इस तरफ़ ध्यान न दिया गया तो इस क्षेत्र में मलेरिया फैलने की पूरी संभावना है। अतः आपसे प्रार्थना है कि इस क्षेत्र की तुरंत सफ़ाई करवाने का आदेश दें और मलेरिया की रोकथाम के लिए समुचित व्यवस्था करें। यही नहीं यहाँ के निवासियों को आवश्यक दवाइयाँ भी मुफ़्त उपलब्ध करवाई जाएँ।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान देंगे और उचित प्रबंध द्वारा इस क्षेत्र के निवासियों को मलेरिया के प्रकोप से बचा लेंगे।
भवदीय
अनुराग छाबड़ा

6. अपने नगर के जलापूर्ति अधिकारी को पर्याप्त और नियमित रूप से पानी न मिलने की शिकायत करते हुए पत्र लिखिए।
512, शास्त्री नगर
रोहतक
तिथि : 14 मार्च, 20….
जलापूर्ति अधिकारी
नगरपालिका
रोहतक
विषय-पेयजल की कठिनाई हेतु शिकायती पत्र।
मान्यवर
बड़े खेद की बात है कि पिछले एक मास से ‘शास्त्री नगर’ क्षेत्र में पेयजल की कठिनाई का अनुभव किया जा रहा है। नगरपालिका की ओर से पेयजल की सप्लाई बहुत कम होती जा रही है। कभी-कभी तो पूरा-पूरा दिन पानी नलों में नहीं आता। मकानों की पहली-दूसरी मंजिल तक तो पानी चढ़ता ही नहीं। आप पानी की आवश्यकता के विषय में जानते हैं।
पानी की कमी के कारण यहाँ के लोगों का जीवन कष्टमय बन गया है। आप से प्रार्थना है कि इस क्षेत्र में पेय-जल की समस्या का समाधान करें।
आशा है कि आप इस विषय पर ध्यान देंगे और शीप्र ही उचित कार्यवाही करेंगे।
भवदीय,
राम सिंह चौटाला

7. अपने मोहल्ले में वर्षा के कारण उत्पन्न हुए जल-भराव की समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए नगरपालिका अधिकारी को पत्र लिखिए।
4 / 307, जगाधरी गेट
अंबाला
दिनांक : 18 सितंबर, 20….
स्वास्थ्य अधिकारी
नगरपालिका
अंबाला
विषय-जलभराव की समस्या हेतु शिकायती-पत्र।
महोदय
निवेदन यह है कि मैं जगाधरी गेट का निवासी हैँ। यह क्षेत्र सफ़ाई की दृष्टि से पूरी तरह उपेक्षित है। वर्षा के दिनों में तो इसकी और बुरी हालत हो जाती है। इन दिनों प्रायः सभी गलियों में वर्षा का जल भरा हुआ है। नगरपालिका इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही। इस जल-भराव के कारण आवागमन में ही कठिनाई नहीं होती बल्कि बीमारी फैलने का भी खतरा है।
आपसे नम्र निवेदन है कि आप स्वयं एक बार आकर इस जल भराव को देखें। तभी आप हमारी कठिनाई को समझ पाएँगे। कृपया इस क्षेत्र से जल निकास का शीच्र प्रबंध करें।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना की तरफ ध्यान देंगे।
भवदीय,
महेश बजाज

8. चुनाव के दिनों में कार्यकर्ता घर, विद्यालयों और मार्गदर्शक आदि पर बेतहाशा पोस्टर लगा जाते हैं। इससे लोगों को होने वाली असुविधा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए ‘दैनिक लोक वाणी’ समाचार-पत्र के ‘जनमत’ कॉलम के लिए पत्र लिखिए।
480 , नई बस्ती
चंबा
दिनांक : 22 जनवरी, 20 ….
संपादक
दैनिक लोकवाणी
चेन्नई
विषय-जगह-जगह राजनीतिक पोस्टर लगाने हेतु शिकायती पत्र।
आदरणीय महोदय
मैं आपके लोकप्रिय पत्र के ‘जनमत कॉलम’ के लिए एक पत्र लिख रहा हूँ। इसे प्रकाशित करने की कृपा करें। आप जानते हैं कि चुनाव के दिनों में कार्यकतां बिना सोचे-समझे, विद्यालयों, घरों तथा मार्गदर्शन चित्रों आदि पर अत्यधिक पोस्टर लगा जाते हैं। घर अथवा विद्यालय कोई राजनीतिक संस्थाएँ नहीं। उन पर लगे पोस्टरों से यह भ्रम हो जाता है कि घर तथा विद्यालय भी किसी राजनीतिक दल से संबद्ध है। इन पोस्टरों से मार्गदर्शन चित्र इस तरह ढक जाते हैं कि अजनबी को रास्ते के बारे में कुछ पता नहीं चलता। इन पोस्टरों को लगाने वालों की भीड़ के कारण आम लोगों को तथा छात्रों को असुविधा होती है। अतः मैं सरकार तथा राजनीतिक दलों का ध्यान इस तरफ़ दिलाना चाहता हूँ।
आशा है कि आप लोगों की सुविधा का ध्यान रखते हुए मेरे इस पत्र को प्रकाशित करने का आदेश देंगे।
भवदीय
मोहन मेह्हता

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CBSE Class 11 Hindi रचना स्ववृत्त लेखन और रोज़गार संबंधी आवेदन-पत्र

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CBSE Class 11 Hindi रचना स्ववृत्त लेखन और रोज़गार संबंधी आवेदन-पत्र

प्रश्न 1. :
उम्मीदवार के चयन में स्ववृत्त की क्या भूमिका रहती है?
उत्तर :
किसी भी उम्मीदवार का स्ववृत्त उसके नियोक्ता पर गहरा प्रभाव डालता है। उम्मीदवार के द्वारा भेजा गया स्ववृत्त यदि अच्छा है तो उसके चयन की संभावना बढ़ जाती है। एक अच्छा स्ववृत्त दूसरे उम्मीदवारों को सरलता से पीछे छोड़ सकता है। जिस प्रकार लुभावने विज्ञापनों के द्वारा निर्माता, ग्राहकों को आकर्षित करने में सफल होता है, उसी प्रकार एक अच्छी तरह तैयार किए गए स्ववृत्त से उम्मीदवार अपना चयन करवाने में सफल हो सकता है। उम्मीदवार का स्ववृत्त उसके दूत अथवा प्रतिनिधि के रूप में होता है।

जिस प्रकार एक दूत अथवा प्रतिनिधि अपने स्वामी का सुंदर और आकर्षक चित्र प्रस्तुत करता है, उसी प्रकार एक स्ववृत्त नियोक्ता के मन में उम्मीदवार की अच्छी और सकारात्मक तस्वीर पेश करता है। एक अच्छा स्ववृत्त चुंबक की तरह होता है। स्ववृत्त रूपी चुंबक किसी भी नियोक्ता को अपनी ओर आकर्षित करने में सरलता से सफल हो जाता है। अतः नौकरी में सफलता के लिए योग्यता के साथ-साथ स्ववृत्त निर्माण कला में भी निपुणता आवश्यक है। यदि स्ववृत्त भली-भाँति तैयार किया गया हो तो उम्मीदवार के चयन की संभावनाएँ काफी बढ़ जाती हैं।

प्रश्न 2.
स्ववृत्त का आकार कैसा होना चाहिए?
उत्तर :
स्ववृत्त एक विशेष प्रकार का लेखन है, जिसमें व्यक्ति विशेष के बारे में किसी विशेष प्रयोजन को ध्यान में रखकर सिलसिलेवार ढंग से सूचनाएँ संकलित की जाती हैं। अतः स्ववृत्त में अभी सूचनाएँ अत्यंत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत की जानी चाहिए। स्ववृत्त के आकार के विषय में कोई निश्चित नियम नहीं है। इतना अवश्य है कि स्वबृत्त न तो जरूरत से अधिक लंबा होना चाहिए और न ही अधिक छोटा होना चाहिए। यदि स्ववृत्त छोटा हो तो उसमें अनेक ज़रूरी चीजों के छूटने की संभावना रहती है। इसी प्रकार यदि स्ववृत्त लंबा हो तो उसे पढ़ने वाला अनेक पहलुओं को नज़रअंदाज़ कर सकता है। अत: स्ववृत्त का आकार मध्यम होना चाहिए। स्ववृत्त का आकार पद के अनुसार भी होता है। यदि वह बहुत बड़ा हो तो उसके लिए उम्मीदवारों की संख्या कम होती है। ऐसे में उम्मीदवार अच्छी योग्यता और व्यापक अनुभव वाले होते हैं। ऐसे पदों के लिए स्ववृत्त का आकार नौ-दस पृष्ठों तक हो सकता है। यदि पद छोटा है तो स्ववृत्त अधिक लंबा नहीं होना चाहिए। ऐसे पदों के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवार का स्ववृत्त दो-तीन पृष्ठों से अधिक लंबा नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 3.
स्ववृत्त में शैक्षणिक योग्यताओं और अनुभव के साथ-साथ कार्येतर गतिविधियों की चर्चा करने से क्या लाभ होता है?
उत्तर :
स्ववृत्त में शैक्षणिक योग्यताओं और अनुभव के साथ-साथ कार्येतर गतिविधियों का भी बहुत महत्व होता है। जब कोई नियोक्ता किसी उम्मीदवार को चुनने का निर्णय लेता है तो उसके संपूर्ण व्यक्तित्व को ध्यान में रखता है। कार्यतर गतिविधियों के द्वारा उम्मीदवार के व्यक्तित्व की काफ़ी जानकारी प्राप्त होती है। इसी के आधार पर कई बार उम्मीदवार के पद के लिए योग्यता भी तय की जाती है। कायेंतर गतिविधियाँ उम्मीदवार के व्यक्तित्व का दर्पण होती हैं। इनसे उम्मीदवार के व्यक्तित्व की विशेषताओं की साफ़ झलक मिलती है। उदाहरण के रूप में यदि कोई उम्मीदवार फुटबॉल का अच्छा खिलाड़ी है तो यह स्पष्ट है कि उसके व्यक्तित्व में टीम भावना का गुण अवश्य होगा। इसी प्रकार यदि किसी को भाषण या वाद-विवाद में कई पुरस्कार मिल चुके हैं तो यह स्पष्ट है कि उसमें वाक्पटुता और संभाषण की कला अवश्य विद्यमान होगी। कई बार तो शैक्षणिक योग्यताओं और अनुभव के बाद उम्मीदवारों की कार्येतर गतिविधियों की कार्यतर गतिविधियों का आंकलन किया जाता है। जो उम्मीदवार कार्येतर गतिविधियों में निपुण होता है, नियोक्ता उसी का चयन करते हैं। कार्येतर गतिविधियाँ भी कई बार उम्मीदवार के चयन का कारण बनती हैं।

प्रश्न 4.
स्ववृत्त के साथ-साथ आवेदन-पत्र की क्या आवश्यकता होती है?
उत्तर :
स्ववृत्त का तो बना-बनाया प्रारूप होता है जिसे प्रत्येक विज्ञापन के साथ भेज दिया जाता है। स्ववृत्त में यद्यपि समस्त सूचनाएँ होती हैं किंतु इससे यह पता नहीं चलता कि उम्मीदवार पद और संबंधित संस्थान को लेकर कितना गंभीर है। स्ववृत्त में भाषा का वैयक्तिक स्पर्श भी नहीं होता। अत: आवेदन-पत्र की आवश्यकता पड़ती है। आवेदन-पत्र के माध्यम से उम्मीदवार के भाषा-ज्ञान और अभिव्यक्ति की जानकारी प्राप्त होती है। इसके साथ-साथ आवेदन-पत्र से यह भी पता चलता है कि उम्मीदवार पद और संस्थान के प्रति कितना गंभीर है। उम्मीदवार आवेदन-पत्र के माध्यम से पद के लिए अपनी योग्यता और गंभीरता का विश्वास नियोक्ता को दिलाता है। इस प्रकार एक अच्छे स्ववृत्त के साथ यदि आवेदन-पत्र भी लगा दिया जाए तो उम्मीदवार की सूझ-बूझ से प्रभावित होकर नियोक्ता उसकी नियुक्ति कर सकता है। अतः स्ववृत्त के साथ आवेदन-पत्र की भी आवश्यकता होती है।

प्रश्न 5.
आवेदन-पत्र की विषय-वस्तु को कितने भागों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर :
आवेदन-पत्र की विषय-वस्तु को मुख्यत: चार भागों में बाँटा जाता है। पहले भाग में उम्मीदवार विज्ञापन और विज्ञापित पद के विषय में बताते हुए अपनी उम्मीदवारी की इच्छा व्यक्त करता है। इस पहले भाग को भूमिका कहा जा सकता है। दूसरे भाग में उम्मीदवार अपने विषय में बताता है। वह विज्ञापन में वर्णित योग्यताओं और आवश्यकताओं को पूरा करने में पूरी तरह सक्षम हैं। आवेदन-पत्र के तीसरे हिस्से में उम्मीदवार पद और संस्थान के प्रति अपनी गंभीरता और रुचि को व्यक्त करता है। चौथे भाग में उम्मीदवार आवेदन-पत्र की विषय-वस्तु को सुंदर ढंग से समाप्त करता है। इस प्रकार के चार भागों में बँटा हुआ आवेदन-पत्र संपूर्ण माना जाता है।

पाठ से संवाद –

प्रश्न 1.
कल्पना कीजिए कि आपने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना अध्ययन पूरा कर लिया है और किसी प्रसिद्ध अखबार में पत्रकार पद के लिए आवेदन भेजना है। इसके लिए एक आवेवन-पत्र लिखिए।
सेवा में
संपादक
दैनिक भास्कर
पानीपत।
विषय : पत्रकार पद के लिए आवेदन।
महोदय,
आज दिनांक 20 मार्च ……… को प्रकाशित दैनिक भास्कर से प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ है कि आपके कार्यालय को पत्रकार की आवश्यकता है। मैं इस पद के लिए अपना आवेदन-पत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ।
मेरा स्ववृत्त इस आवेदन-पत्र के साथ संलग्न है। इसका अवलोकन करने पर आपको विश्वास होगा कि मैं इस पद के लिए पूर्णतः उपयुक्त उम्मीदवार हूँ। मैं आपके विज्ञापन में वर्णित सभी योग्यताओं को पूरा करता हूँ। संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
नाम : नरेंद्र कुमार
पिता का नाम : रमेश चंद
जन्मतिथि : 13-03-…….
वर्तमान पता : 72, विकास नगर, करनाल
स्थायी पता : 100 , कर्ण पुरी, दिल्ली,
दूरध्वनि : 0184-2228180
चलध्वनि : 96184-82215
ई-मेल : 1980narendra@yahoo.com
शैक्षणिक योग्यताएँ
CBSE Class 11 Hindi रचना स्ववृत्त लेखन और रोज़गार संबंधी आवेदन-पत्र 1

इस योग्यता के साथ-साथ मैं कई वर्षों से स्वतंत्र लेखन से भी जुड़ा हुआ हूँ। मुझे पत्रकारिता में बेहद रुचि है। मैं आपको पूर्ण विश्वास दिलाता हूँ कि मैं अपना कार्य सत्यनिष्ठ एवं पूर्ण कर्तव्यपरायता से करूँगा।
आपसे अनुरोध है कि उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए मेरे आवेदन-पत्र पर सकारात्मक विचार करते हुए मुझे पत्रकार पद पर नियुक्त करें। सधन्यवाद।
भवदीय,
(हस्ताक्षर)
नरंद्र कुमार

प्रश्न 2.
राजीव गांधी फाउंडेशन उच्च शिक्षा हेतु स्कॉलरशिप प्रदान करती है। अतः उसे भेजने के लिए अपना बायोडॉटा तैयार कीजिए।
स्ववृत्त
नाम : प्रिंस
पिता का नाम : श्री अक्षय
जन्मतिथि : 12-05-……..
वर्तमान पता : 1490 , अर्बन एस्टेट, जालंधर।
स्थायी पता : यथावता
टेलीफ़ोन नं० : 0181-2228222
मोबाइल नं० : 9416820220
ई-मेल : 1980 prince@yahoo.com
शैक्षणिक योग्यताएँ

CBSE Class 11 Hindi रचना स्ववृत्त लेखन और रोज़गार संबंधी आवेदन-पत्र 2

अन्य संबधित योग्यताएँ
-कंप्यूटर का अच्छा ज्ञान
-अंग्रेज़ी व्याकरण का श्रेष्ठ ज्ञान
तिथि : 20-03-20…….
हस्ताक्षर
स्थान : जालंधर

प्रश्न 3.
स्ववृत्त में कौन-कौन से बिंदुओं को शामिल किया जाता है और उनकी प्रस्तुति का क्या प्रभाव पड़ता है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
स्ववृत्त में निम्नलिखित बिंदुओं को शामिल किया जाता है-
(1) स्ववृत्त में ईमानदारी होनी चाहिए।
(2) स्ववृत्त में सीधी सादी, सटीक भाषा-शैली का प्रयोग करना चाहिए।
(3) यह न तो ज़रूरत से अधिक लंबा हो न ही ज्यादा छोटा।
(4) स्ववृत्त में जानकारी देते समय अतिशयोक्ति से बचना चाहिए।
(5) स्ववृत्त साफ़ स्वच्छ और सुंदर ढंग से लिखा अथवा टंकित होना चाहिए।
उपर्युक्त बिंदुओं की प्रस्तुति का नियोक्ता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। एक अच्छा स्ववृत्त किसी चुंबक की तरह होता है जो नियुक्तिकर्ता को आकर्षित कर लेता है। यह एक श्रेष्ठ प्रतिनिधि के समान अपने स्वामी का सुंदर एवं आकर्षक चित्र प्रस्तुत करता है। जैसे हम कहीं भी नौकरी की तलाश में जाते हैं तो सर्वप्रथम अपना स्ववृत्त। उस कार्यालय को भेजते हैं। यदि हमारा स्ववृत्त उत्तम और श्रेष्ठ होगा तो वह नियोक्ता को अपनी ओर अवश्य प्रभावित करेगा।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित श्रेणी लिपिक (हिंदी) के पद के लिए आवेदन का प्रारूप कीजिए।
उत्तर :
CBSE Class 11 Hindi रचना स्ववृत्त लेखन और रोज़गार संबंधी आवेदन-पत्र 3
(1) नाम : सुरेश चंद्र
(2) पिता का नाम और व्यवसाय : दिनेशचंद्र-(नौकरी)
(3) जन्म-तिधि (अंकों में) : 19.12…….
शब्दों में : उन्नीस दिसंबर उन्नीस नौ नब्बे
(4) वर्तमान पता : 44, विजय ब्लॉक, लक्ष्मी नगर, दिल्ली-110092
(5) स्थायी पता : 44, विजय ब्लॉक, लक्ष्मी नगर, दिल्ली-110092
(6) क्या आप अनुसूचित जाति/जनजाति/पिछड़ी जाति के हैं? : नहीं
(7) यदि हाँ, तो जाति का नाम लिखिए : ×
(8) क्या आप भारतीय नागरिक हैं : हाँ
(9) यदि नहीं तो अपनी नागरिकता लिखिए : ×
(10) योग्यताएँ
CBSE Class 11 Hindi रचना स्ववृत्त लेखन और रोज़गार संबंधी आवेदन-पत्र 4

मैं प्रमाणित करता हूँ कि आवेदित पद के लिए निर्धारित आर्हताएँ मुझ में हैं। जो सूचनाएँ इस आवेदन-पत्र में मैंने दी हैं वे सही हैं।
(11) पोस्टल आर्डर संलग्न की संख्या – 05924
(12) संलग्नकों की संख्या : 2
आवेदक के हस्ताक्षर
दिनांक : 25 मई, 20……
(सुरेश चंद्र)

प्रश्न 5.
भारत सरकार के भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई में सुरक्षा गार्ड की रिक्तियों के लिए आवेवन-पत्र भरिए।
उत्तर :
CBSE Class 11 Hindi रचना स्ववृत्त लेखन और रोज़गार संबंधी आवेदन-पत्र 5
भारत सरकार
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र
ट्रांबे, मुंचई-400085

आवेदन-पत्र का प्रोफोर्मा

पद हेतु आवेदन-पत्र-सूरक्षा गार्ड ……
(1) विज्ञापन संख्या : 1 / 20….. (भर्ती II)
(2) क्या रोज़गार कार्यालय द्वारा नामित किया गया है यदि हाँ तो सूचित करें : नहीं
(क) रोज़गार कार्यालय का नाम : शोलापुर
(ख) रोजगार कार्यालय की पंजीकरण संख्या : 501/20
(3) आवेदन-पत्र प्राप्त करने की अंतिम तिथि : 26-12-20…..
(4) पूरा नाम, उप नाम पहले (स्पष्ट अक्षरों में) : बापट, मुरलीधर वंशीधर
(5) राष्ट्रीयता : भारतीय
(6) जन्मतिथि : 17-11-20…..
(7) पत्राचार के लिए पत्ता, स्पष्ट अक्षरों में (पिन कोड सहित) : 910 -भोंसला गली, शोलापुर (महाराष्ट्र)
(8) स्थायी पता, पिन कोड सहित : उपर्युक्त
(9) (क) क्या आप अनुसुचित जाति/अनुसुचित : अनुसूचित जाति …….. अनुसूचित जनजाति …….. अन्य पिछड़ी जाति-जन जाति अथवा अन्य पिछड़ी जाति के सदस्य हैं? नहीं (कृपया संबधित खाने में हाँ या नहीं लिखिए।)
(ख) यदि हाँ तो अनुसूचित जाति/अनुसूचित
जनजाति/अन्य पिछड़ी जाति का नाम लिखें।
(10) क्या आप भूतपूर्व रक्षा कर्मी हैं? यदि हाँ तो कृपया विवरण दें :
(11) शैक्षणिक योग्यताएँ :
(अ) परीक्षा विश्वविद्यालय/बोर्ड/संस्थान उत्तीर्ण करने का वर्ष महाराष्ट्र बोर्ड-शासकीय 20……. विद्यालय, शोलापुर
(ब) शारीरिक मापदंड : कद 190 सेमी०
सीना : सामान्य 100 सेमी० फुलाकर : 105 सेमी०
(12) अनुभव (पिछली और वर्तमान सभी नौकरियों का विवरण दे)-
नियोक्ता का पद
केंद्रीय या राज्य
सेवा अवधि स्थायी या छोड़ने का कारण नाम व पता सरकार या सार्वजनिक से……. तक अस्थायी उपक्रम के अधीन
कोई नहीं
(13) परमाणु ऊर्जा विभाग या इसकी संघटक इकाइयों में कार्यरत संबंधियों का विवरण :
क्र०सं० नाम संबंध इकाई पद
(14) दस्तावेजों की सूची : मैट्रिक प्रमाण-पत्र की प्रतिलिपि
(15) घोषणा
मैं घोषणा करता हूँ कि ऊपर दिए गए विवरण वास्तविक और मेरी अधिकतम जानकारी के अनुसार सत्य हैं। मुझे ज्ञान है कि कोई भी सूचना के असत्य पाए जाने पर मुझे अयोग्य माना जाएगा।
स्थान : शोलापुर
दिनांक : 14-12-20…… अभ्यार्थी का हस्ताक्ष्ष : मु० ब० बापर

प्रश्न 6.
समाचार-पत्र में विज्ञापन-कर्ता को नौकरी के लिए आवेवन-पत्र लिखिए।
उत्तर :
83. नौरोजी नगर
दिल्ली।
12 दिसंबर, 20…..
सेवा में
प्रबंधक
गायत्री कॉलेज
नई दिल्ली।
मान्यवर महोदय,
दिनांक 10 दिसंबर, 20…. के दैनिक ‘हिंदुस्तान’ से ज्ञात हुआ है कि आपके यहाँ हिंदी विषय के तीन प्राध्यापकों के स्थान रिक्त हैं। प्राध्यापक के पद की नियुक्ति के लिए आपने जो शैक्षणिक योग्यताएँ माँगी हैं, मैं उसके लिए अपने आपको पूर्ण समर्थ समझता हूँ। अतः मैं आपकी सेवा में यह प्रार्थना-पत्र भेज रहा हूँ। मेरी शैक्षणिक योग्यता तथा अनुभव का विवरण इस प्रकार है-
(i) मैंने 20……. ईव में पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में एम०ए० प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है। मैंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की योग्यता परीक्षा भी उत्तीर्ण की है।
(ii) मैंने एक वर्ष तक डी०ए॰ी० कॉलेज, चंडीगढ़ में अस्थायी रूप से रिक्त प्रध्यापक के पद पर भी कार्य किया है।
(iii) स्कूल तथा कॉलेज जीवन में क्रिकेट तथा बैडमिंटन में विशेष रुचि रही है।
(iv) भाषण तथा वाद-विवाद प्रतियोगिता में भी अनेक बार प्रथम स्थान प्राप्त किया है। आवश्यक प्रमाण-पत्र इस प्रार्थना-पत्र के साथ भेज रहा हूँ। मुझे पूर्ण आशा है कि आप मेरे प्रार्थना-पत्र पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे और मुझे अपनी ख्याति प्राप्त संस्था में काम करने का अवसर प्रदान करेंगे।
धन्यवाद सहित,
संलग्न : प्रमाणपत्रों की प्रतिलिपियाँ
भवदीय,
जगमोहन सहगल

प्रश्न 7.
दिल्ली नगर निगम के अध्यक्ष को एक आवेवन-पत्र लिखिए जिसमें लिपिक के पद के लिए आवेदन किया गया हो।
उत्तर :
4 / 19, अशोक नगर गुड़गाँच।
15 दिसंबर, 20……
सेवा में
अध्यक्ष
नगर निगम
दिल्ली।
मान्यवर महोदय,
निवेदन है कि मुझे विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ कि आपके कार्यालय में एक क्लर्क की आवश्यकता है। मैं इस रिक्ति के लिए अपनी सेवाएँ प्रस्तुत करता हूँ। मेरी योग्यताएँ इस प्रकार हैं-
(i) बी०ए० द्वितीय श्रेणी
(ii) टाइप का पूर्ण ज्ञान-गति 50 शब्द प्रति मिनट
(iii) अनुभव-एक वर्ष
(iv) आयु-24 में वर्ष में प्रवेश
मुझ्ने अंग्रेज़ी एवं हिंदी का अच्छा ज्ञान है। पंजाबी भाषा पर भी अधिकार है।
आशा है कि आप मेरी योग्यता को देखते हुए अपने अधीन काम करने का अवसर प्रदान करेंगे। मैं सच्चाई एवं ईमानदारी के साथ काम करने का आश्वासन दिलाता हूँ।
योग्यता एवं अनुभव संबंधी प्रमाण-पत्र इस प्रार्थना-पत्र के साथ संलग्न कर रहा हूँ।
धन्यवाद सहित,
भवदीय,
सुखदेव गोयल।
संलग्न : उपर्युक्त

प्रश्न 8.
कॉलेज प्रबंधक को प्राध्यापक की नीकरी के लिए आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर :
83, नौरोजी नगर
दिल्ली
12 दिसंबर, 20….
प्रबंधक
गायत्री कॉलेज
नई दिल्ली
विषय-प्राध्यापक की नौकरी हेतु आवेदन-पत्र।
मान्यवर महोदय
दिनांक 10 दिसंबर, 20… के दैनिक ‘हिंदुस्तान’ से ज्ञात हुआ है कि आपके यहाँ हिंदी विषय के तीन प्राध्यापकों के स्थान रिक्त हैं। प्राध्यापक के पद की नियुक्ति के लिए आपने जो शैक्षणिक योग्यताएँ माँगी हैं, मैं उसके लिए अपने आपको पूर्ण समर्थ समझता हूँ। अत: मैं आपकी सेवा में यह प्रार्थना-पत्र भेज रहा हूँ। मेरी शैक्षणिक योग्यता तथा अनुभव का विवरण इस प्रकार है –
1. मैंने 2005 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में एम० ए० प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है। सन 2006 में मैने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की योग्यता परीक्षा उत्तीर्ण की है।
2. मैंने एक वर्ष तक डी० ए० वी० कॉलेज, चंडीगढ़ में अस्थायी रूप से रिक्त प्राध्यापक के पद पर भी कार्य किया है।
3. स्कूल तथा कॉलेज जीवन में मेरी क्रिकेट तथा बैडमिंटन में विशेष रुचि रही है।
4. मैंने भाषण तथा वाद-विवाद प्रतियोगिता में भी अनेक बार प्रथम स्थान प्राप्त किया है। आवश्यक प्रमाण-पत्र इस प्रार्थना-पत्र के साथ भेज रहा हूँ। मुझे पूर्ण आशा है कि आप मेरे प्रार्थना-पत्र पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे और मुझे अपनी ख्याति प्राप्त संस्था में काम करने का अवसर प्रदान करेंगे।
धन्यवाद सहित
भवदीय
जगमोहन सहगल
संलग्न : प्रमाण-पत्रों की प्रविलिपियाँ

प्रश्न 9.
दिल्ली नगर-निगम के अध्यक्ष को एक आवेदन-पत्र लिखिए, जिसमें लिखिक के पद के लिए आवेदन किया गया हो।
उत्तर :
4 / 19, अशोक नगर
नई दिल्ली
15 दिसंबर, 20….
अध्यक्ष
नगर-निगम
दिल्ली
विषय-लिपिक के पद हेतु आवेदन-पत्र।
मान्यवर महोदय
निवेदन है कि मुझे विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि आपके कार्यालय में एक क्लर्क की आवश्यकता है। मैं इस रिक्ति के लिए अपनी सेवाएँ प्रस्तुत करता हूँ। मेरी योग्यताएँ इस प्रकार हैं-
(i) बी० ए० द्वितीय श्रेणी
(ii) टाइप का पूर्ण ज्ञान-गति 50 शब्द प्रति मिनट
(iii) अनुभव-एक वर्ष
(iv) आयु-24वें वर्ष में प्रवेश
मुझे अंग्रेज़ी एवं हिंदी का अच्छा ज्ञान है। पंजाबी भाषा पर भी अधिकार है।
आशा है कि आप मेरी योग्यता को देखते हुए अपने अधीन काम करने का अवसर प्रदान करेंगे। मैं सच्चाई एवं ईमानदारी के साथ काम करने का आश्वासन दिलाता हूँ।
योग्यता एवं अनुभव संबंधी प्रमाण-पत्र इस प्रार्थना-पत्र के साथ संलग्न कर रहा हूँ।
धन्यवाद सहित
भवदीय
सुखदेव गोयल
संलग्न : उपर्युक्त

प्रश्न 10.
‘जनसंख्या विभाग’ को घर-घर जाकर सूचनाएँ एकत्रित करने वाले ऐसे सबेंककों की आवश्यकता है, जो हिंदी और अंग्रेज़ी में भलीभाँति बात कर सकते हों और सूचनाओं को सही-सही दर्ज कर सकते हों। इसके साथ ही आवेदकों में विनग्रतापूर्वक बात करने की योग्यता होनी चाहिए। इस काम में अपनी रुचि प्रदर्शित करते हुए जनसंख्या विभाग के सचिव को आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर :
7, रामलीला मार्ग
हमीरपुर
दिनांक : 14 दिसंबर, 20….
प्रशासनिक अधिकारी
जनसंख्या विभाग
कोयंबटूर
विषय – सर्वेक्षक की नौकरी हेतु आवेदन-पत्र।
आदरणीय महोदय
मुझे आज के दैनिक समाचार-पत्र में प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ है कि आपको घर-घर जाकर सूचनाएँ एकत्रित करने के लिए सर्वेक्षकों की आवश्यक्ता है। मैं आपके कार्यालय द्वारा निर्धारित योग्यताओं को पूर्ण करता हूँ।
मैंने इसी वर्ष (20….) बारहवी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की है। कुछ समय तक मैंने स्थानीय कारालय में कार्य भी किया है। में हिंदी तथा अंग्रेज़ी भाषा समझने तथा इन दोनों भाषाओं में वार्तालाप करने में दक्ष हूँ।

मैं अपनी सेवाएँ प्रदान करना चाहता हूँ। आशा है कि आप मुझे अवसर प्रदान करेंगे। मैं भेंटवार्ता के अवसर पर आवश्यक प्रमाण-पत्र साथ लेकर आँगा।
भवदीय
महेश महाजन

प्रश्न 11.
‘प्रचंड भारत’ दैनिक समाचार-पत्र को खेल-विभाग के लिए संवाददाताओं की आवश्यकता है। पद के लिए खेलों का ज्ञान और रुचि के साथ-साथ हिंदी भाषा में अच्छी गति से लिखने का अभ्यास अनिवार्य है। इस पद के लिए आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर :
14, पश्चिम विहार
कोटा
दिनांक : 15 सितंबर, 20….
संपादक
दैनिक ‘प्रचंड भारत’
कोटा
विषय-खेल संवाददाता के पद हेतु आवेदन-पत्र।
मान्यवर महोदय
आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र में प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ कि आपको खेल-विभाग के लिए संवाददाताओं की आवश्यकता है। इस पद के लिए में अपनी सेवाएँ अर्पित करना चाहता हूँ।
मेरी योग्यताओं का विवरण इस प्रकार है-
शैक्षिक योग्यता बी० ए० प्रथम श्रेणी-2020, पत्रकारिता में डिप्लोमा-2021
विद्यालय की क्रिकेट टीम का कप्तान-अवधि 2 वर्ष
मुझे खेलों की सामग्री का पर्याप्त अनुभव है। मुझे हिंदी भाषा का अच्छा ज्ञान है। विद्यालय तथा महाविद्यालय की पत्रिका में मेरे लेख भी प्रकाशित होते रहे हैं।
आवश्यक प्रमाण-पत्र इस आवेदन-पत्र के साथ संलग्न हैं।
आशा है कि आप मुझे सेवा का अवसर प्रदान करेंगे।
आपका आज्ञाकारी
प्रतीक राय

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CBSE Class 11 Hindi रचना प्रतिवेदन

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CBSE Class 11 Hindi रचना प्रतिवेदन

प्रायः अंग्रेजी शब्द ‘रिपोर्ट’ (Report) और हिंदी शब्द ‘प्रतिवेदन’ को समानार्थी माना जाता है जिसका संबंध सरकारी या ग़ैर-सरकारी कार्यालयों, संगठनों, संस्थानों आदि में घटित होने वाली विभिन्न घटनाओं, गतिविधियों आदि के विवरण से होता है। इसका मूल उद्देश्य आवश्यक सूचनाओं, आँकड़ों आदि को विश्लेषित करने के पश्चात विभिन्न निष्कपों पर पहुँचना होता है जिसमें अनेक लोगों के अनेक प्रकार के सुझाव सम्मिलित रहते हैं। रिपोर्ट और प्रतिवेदन में अंतर है। रिपोर्ट का प्रयोग समाचार, संवाद, सूचना, रपट, विवरण, इतिवृत्त, विज्ञापन आदि के लिए किया जाता है। रेडियो, दूरदर्शन, समाचार-पत्रों आदि में समाचारों के लिए रिपोर्टर अपनी रिपोर्ट भेजते हैं। किसी दुर्घटना, अपराध, चोरी, झगड़े-फ़साद आदि की भी पुलिस-स्टेशन में रिपोर्ट की जाती है।

प्रतिवेदन से तात्पर्य अनुभव से युक्त विस्तृत तथ्यपूर्ण जानकारी है। इसे किसी घटना, कार्य योजना आदि का विवरण देने के लिए तैयार किया जाता है तथा उचित समय पर किसी अधिकारी या सभा के सामने प्रत्तुत किया जाता है। यह विभिन्न तथ्यों का व्यवस्थित लेखा-जोखा है, जो लिखित रूप में प्रस्तुत किया जाता है। ‘प्रतिवेदन’ शब्द ‘प्रति’ उपसर्ग और ‘विद्’ धातु के संयोजन से बनता है जिसका अर्थ है-सम्यक जानकारी । आज के औद्योगिक और व्यावसायिक युग में प्रतिवेदन का विशेष महत्व है। व्यापारिक क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित करने या पहली बार किसी कार्य को आरंभ करने से पहले दूसरों को कुछ जानकारी देना आवश्यक होता है। इस कार्य को करने के लिए जो विवरण तैयार किया जाता है, उसे ही प्रतिवेदन कहते हैं।

  • प्रतिवेदन का मूल कार्य किसी नए या पुराने कार्य या विषय की पूरी जानकारी देना है।
  • प्रतिवेदन से निष्कर्ष, सुझाव और संस्तुतियाज दी जाती हैं।
  • प्रतिवेदन किसी सरकारी या गैर-सरकारी संस्था की स्थिति के विषय में लिखे जाते हैं।
  • प्रतिवेदन दैनिक, साप्ताहिक, मासिक और वार्षिक हो सकते हैं।
  • प्रतिवेदन विभिन्न जाजच समितियों के द्वारा प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
  • विभिन्न अधिवेशनों, सम्मेलनों और संगोष्ठियों के समापन के प्रतिवेदनों के द्वारा कार्य विशेष की जानकारी दी जाती है।

प्रतिवेदन के तत्व –

  1. प्रामाणिकता-प्रतिवेदन की प्रमाणिकता अति महत्वपूर्ण है। यह साक्ष्यों पर आधारित होती है। इसका रूप लिखित होता है। यदि मौखिक साक्य्यों की प्रस्तुति हो तो उन्हें रिकॉर्ड किया जाता है।
  2. विशिष्ट प्रकरण पर आधारित-प्रतिवेदन सदा किसी विशिष्ट प्रकरण पर आधारित होता है। जिस प्रकरण के अध्ययन की आवश्यकता होती है, उसी को आधार बनाकर इसे प्रस्तुत किया जाता है, चाहे वह कोई शिकायत हो या विवाद, घटना हो या दुर्घटना, नीति हो या आचरण।
  3. प्रतिवेदक की निष्पक्षता-प्रतिवेदन लिखने वाले को पूर्ण रूप से निष्मक्ष होना चाहिए। उसका प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध उस घटना या विवाद से नहीं होना चाहिए। प्रतिवेदक विषय का अच्छा जानकार और भाषा का अच्छा ज्ञाता होना चाहिए।
  4. अवधि निर्धारण-प्रतिवेदन की समय सीमा पूर्व निर्धारित होती है। उसका अव्वधि निर्धारण पूर्व योजना के अनुसार होता है।
  5. अभिमत-प्रतिवेदन में लिखित निष्कर्ष या मंतव्य का संस्तुति पाना आवश्यक होता है।

प्रतिवेदन के प्रकार –

प्रतिवेदन अनेक प्रकार के होते हैं पर अध्ययन की सुविधा के लिए उन्हें प्रमुख रूप से दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

1. औपचारिक प्रतिवेदन-वे प्रतिवेदन जो किसी सरकारी या गौर-सरकारी संस्था के अधिकारी के आदेश के अनुसार तैयार किए जाते हैं, उन्हें औपचारिक प्रतिवेदन कहते हैं। इनमें निष्कर्षों के साथ-साथ सुझाव दिए जाते हैं और संस्तुतियाँ भी की जाती हैं।
2. अनौपचारिक प्रतिवेदन-ये प्रतिवेदन किसी एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्तियों के पास भेजे जाने वाले पत्रों के समान होते हैं। कोई अकेला व्यक्ति अपनी इच्छा से इसका लेखन कार्य करता है। वही इस का उत्तरदायी होता है। ऐसे प्रतिवेदन उत्तम पुरुष में ‘मै’ और ‘हम’ की शैली में लिखे जाते हैं।
प्रतिवेदन तैयार करते समय ध्यान देने योग्य बातें-
एक अच्छे प्रतिवेदन में निम्नलिखित बातों का समावेश होना चाहिए-

  1. प्रतिवेदन की भाषा सरल और साधारण होनी चाहिए।
  2. प्रतिवेदन अनुच्छेदों में विभाजित होना चाहिए।
  3. यह उन लोगों के नाम संबोधित होना चाहिए जिनके लिए यह लिखा गया है।
  4. इसमें में तब तक कोई सलाह नहीं देनी चाहिए जब तक सलाह माँगी न गई हो।
  5. प्रतिवेदन लिखते समय उन सभी कागज़-पत्रों, विवरण-पत्रों और टिप्पणियों का सहारा लेना चाहिए जिनका प्रयोग प्रतिवेदन की तैयारी में किया था।
  6. प्रतिवेदन में मर्यादा का पूर्ण पालन किया जाना चाहिए।
  7. यह तथ्यों पर आधारित होना चाहिए तथा उसमें कोई गोपनीय बात नहीं होनी चाहिए।
  8. यह पक्षपात से रहित होना चाहिए।
  9. इसमें की गई आलोचना किसी व्यक्ति विशेष को हानि पहुँचाने वाली नही होनी चाहिए।
  10. प्रतिवेदन संक्षिप्त होना चाहिए पर उसमें किसी भी तथ्य को छोड़ना नहीं चाहिए।
  11. इसमें बहुअर्थी शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
  12. प्रतिवेदन के अंत में बाई और स्थान का नाम तथा तिधि तथा दाहिनी तरफ हस्ताक्षर होने चाहिए।

प्रतिवेदन के कुछ उदाहरण –

1. आपके स्कूल में हिंदी साहित्य परिषद की एक सभा हिंदी दिवस समारोह को मनाने हेतु आयोजित की गई। उसका प्रतिवेदन लिखिए।

‘हिंदी-दिवस समारोह’ संबंधी प्रतिवेदन

स्कूल में हिंदी भाषा के प्रति विद्यार्थियों के हृदय में इसका निरंतर प्रयोग करने के भाव जगाने और इसकी वैज्ञानिक प्रकृति को समझाने के लिए 14 सितंबर को व्यापक स्तर पर कार्यक्रम आयोजित करने की आवश्यकता हिंदी साहित्य परिषद् के द्वारा अनुभव की गई है। अंग्रेज़ी माध्यम में शिक्षा प्राप्त करने के कारण विज्ञान और वाणिज्य विषय पढ़ने वाले विद्यार्थियों की सामान्य बोलचाल की भाषा में अंग्रेज़ी का प्रभाव निरंतर बढ़ता जा रहा है, जो किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। हिंदी हमारे देश की राजभाषा है और इस का मान-सम्मान बनाकर रखना अति आवश्यक है। किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के लिए अपनी भाषा की पहचान और प्रयोग गर्व की बात है।
स्कूल में हिंदी दिवस पर भाषण, कविता-पाठ और प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएज आयोजित की जाएँगी। हिंदी के गौरव को प्रकट करने वाली उक्तियाज स्कूल परिसर में लिखी जाएंगी। गत वर्ष की वार्षिक हिंदी परीक्षा विषय में अधिकतम अंक प्राप्त करने वाले प्रत्येक कक्षा के विद्यार्थी को स्कूल की सभा में सम्मानित किया जाएगा।

डॉं० सुनीता कौशल
प्राचार्या

दिनांक : 12 अगस्त, 20….

2. इस वर्ष ग्रीष्म ऋतु में राज्य में विद्युत उत्पादन बहुत कम हुआ है। इस संबंध में जाँच करने के बाद अधिकारी को प्रतिवेदन लिखिए।

‘राज्य में कम विद्युत उत्पादन’ संबंधी प्रतिवेदन

इस वर्ष ग्रीष्म ऋतु में राज्य के सभी जिलों में विद्युत का गंभीर संकट अनुभव किया गया जिस कारण जनता को भीषण कष्ट उठाना पड़ा। इससे खेतों में फ़सलों को अपार क्षति हुई और राज्य की औद्योगिक इकाइयों की उत्पादन क्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा। राज्य के विभिन्न नगरों-कस्बों में विद्युत विभाग को जनता का आक्रोश झेलना पड़ा।
राज्य की विद्युत क्षमता को कोयले की कम आपूर्ति ने प्रभावित किया। राज्य सरकार के द्वारा समय पर भुगतान न होने के कारण कोयला खानों से समय पर कोयला थर्मल प्लांटों में नहीं पहुजचा। पानीपत के चार में से दो यूनिट तो पिछले दो महीने से बंद पड़े हैं। शेष दो अपनी क्षमता से आधा विद्युत उत्पादन कर रहे हैं। भाखड़ा के जल-स्तर में कमी हो जाने के कारण राज्य को अपने पूल में कम बिजली प्राप्त हुई। उत्तर भारत ग्रिड पर अधिक लोड़ होने के कारण भी विद्युत संकट की स्थिति बिगड़ी।
मानसून आने तक यह स्थिति बनी रहने की संभावना है। थर्मल प्लांटों को पूरी क्षमता से विद्युत प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त कोयले को मंगवाना होगा। यदि कोयले की देश में कमी है तो उसे आयात करने का प्रबंध किया जाए।
राजस्थान सीमा के निकट राज्य में कुछ क्षेत्रों पर सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पन्न की जा सकने की स्थितियाँ हैं। नवीकरणीय कर्जा प्रबंधन के केंद्रीय विभाग से सहायता प्राप्त करके सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन की प्रक्रिया आरंभ की जाए।

महीप गोस्वामी
चेयरमैन

18 जुलाई, 20…

3. मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के लिए आंशिक सरकारी सहायता प्राप्त संस्था कल्याण की स्थिति स्पष्ट करने हेतु जिम्मेदारी उपायुक्त महोदय ने चार सदस्यों की एक जाँच समिति को साँपी थी। इसका एक प्रतिवेदन लिखिए।

मॉडल टाउन में स्थित संस्था ‘कल्याण’ की स्थिति से संबंधित प्रतिवेदन

उपायुक्त महोदय के द्वारा गठित जाँच समिति नगर के मॉडल टाउन में स्थित मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के लिए आंशिक सरकारी सहायता से चलने वाली संस्था की पूर्ण जाँच करके निम्नलिखित प्रतिवेदन प्रस्तुत करती है –
(i) ‘कल्याण’ पूर्ण रूप से सरकारी संस्था नहीं है। इसे सरकारी सहायता अवश्य प्राप्त होती है पर यह पूर्ण रूप से उससे न चलकर नगर के दानी और उपकारी लोगों के सहयोग से चलती है।
(ii) ‘कल्याण’ की निश्चित आय का स्रोत कोई नहीं है। यह संस्था अपने प्रयलों से अपने लिए कुछ आर्थिक आधार तैयार करने योग्य है।
(iii) ‘कल्याण’ में तीन वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की आयु के 200 मानसिक रूप से विक्षिप्त लोग रहते है। इनमें से तीस लोग शारीरिक रूप से विकलांग भी हैं।
(iv) ‘कल्याण’ में विक्षिप्तों और विकलांगों की देखभाल करने के लिए 24 लोग हैं, जिन्हें संस्था निश्चित वेतन देती है। वह वेतन संस्था के द्वारा ही निर्धारित किया जाता है और उसमें प्रतिवर्ष वृद्धि नहीं होती। इस पर भविष्य निधि का प्रावधान भी नहीं है।
(v) आर्थिक अभाव के कारण वहाँ रहने वालों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।
(vi) संस्था के पास केवल आठ मध्यम आकार के कमरे हैं जहाँ सुबह के समय उन्हें पढ़ाने के लिए कक्षाएं लगती हैं और रात को वे वहीं जमीन पर दरी बिछाकर सोते हैं।
(vii) इनके पास चिकित्सा सुविधाएँ नाम-मात्र की हैं। आवश्यकता पड़ने पर नगर के सेवाभावी चिकिसक उनकी मुक्त देखभाल करते हैं।
(viii) संस्था समाज सेवा के इस कार्य का बढ़ाना चाहती है पर आर्थिक संकट और नाममात्र सरकारी सहायता के कारण ऐसा हो पाना संभव नहीं हो पा रहा।
संस्था का यह भवन 5000 प्रति मास किराए पर है।
सुझाव-समिति यह अनुभव करती है कि –
(i) सरकार को इस समाज सेवी संस्था कल्याण का आर्थिक अनुदान बढ़ाना चाहिए।
(ii) निश्चित योजना के अनुसार इसका किसी खुले स्थान पर भवन बनवाना चाहिए जहां खुली हवा, पानी का समुचित प्रबंध हो।
(iii) इस संस्था की आर्थिक सहायता के लिए जनजागरण के उपाय किए जाने चाहिए।
(iv) यहाँ काम करने वाले कर्मचारियों के नियमित वेतन और भविष्यनिधि की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए।
(v) मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांगों को आजीविका प्राप्ति के लिए योग्य बनाने हेतु छोटे-मोटे काम सिखाने का प्रबंध किया जाना चाहिए।
दिनांक : 29 दिसंबर 20 ….

हस्ताक्षर
………
(अध्यक्ष)

हस्ताक्षर
……..
(सदस्य)

हस्ताक्षर
………
(सदस्य)

हस्तक्षर
……..
सदस्य

4. दालों के दाम बड़ी तेज़ी से आकाश को छूने लगे हैं। इन्हें नियंत्रित करने के सुझाव देते हुए एक प्रतिवेदन लिखिए।

‘दालों के बढ़ते दामों’ पर प्रतिवेदन

सारे देश में दालों के दाम बड़ी तेज़ी से बढ़े हैं, जो चिंता का विषय है। ‘दाल-रोटी’ को किसी भी निर्धन या मध्यवर्गीय का सस्ता भोजन स्वीकार किया जाता रहा है पर अब तो दालों का दाम किसी महँगे से महँगे फल से भी महाँगा हो गया है। निर्धन तो क्या, ये तो मध्यवर्गीय लोगों की पहुँच से बाहर हो गई हैं। इनका दाम शीप्र अति शीघ्र नियंत्रित करना होगा ताकि आम आदमी इन्हें खरीद सके।
सुझाव –
(i) दाल व्यापारियों पर कड़ी नजर रखकर जमाखोरी करने वालों को कठोरतापूर्बक नियंत्रित करना चाहिए।
(ii) दालों का निर्यात पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
(iii) जिन दालों की अधिक कमी अनुभव की जा रही है उनका सीमित मात्रा में कुछ समय के लिए आयात किया जाना चाहिए।
(iv) किसानों को दालों की खेती अधिक करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
(v) जनता के द्वारा अधिक मात्रा में प्रयुक्त की जाने वाली मूँग, अरहर, चने और उड़द दालों को सरकारी उपभोक्ता दुकानों पर कम दाम पर तब तक बेचने का प्रबंध किया जाए जब तक इनके दाम नियंत्रित नहीं हो जाते। ये सभी कार्य तब तक जारी रहने चाहिए जब तक दालों के मूल्यों पर पूर्ण रूप से नियंत्रण नहीं होता।

26 मई, 20 ….

दलजीत सिंह
अध्यक्ष
कंज्यूमर प्रोटेकशन सेल

5. नगर सुधार समिति ने नगर में स्वच्छता अभियान चलाने से पूर्व तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था। समिति के द्वारा दिए प्रतिवेदन को प्रस्तुत कीजिए।

नगर में स्वच्छता प्रबंधन संबंधी प्रतिवेदन

हमारा नगर प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व का है, जिसकी स्वच्छता का ध्यान रखना अनिवार्य है। यह राष्ट्रीय धरोहर के रूप में देश भर में प्रतिष्ठित है। इसकी स्वच्छता और देखभाल के लिए निम्नलिखित प्रयास किए जाने चाहिए –
(i) मुख्य मंदिर की ओर जाने वाली सड़क की चौड़ाई बहुत कम है। आवासीय क्षेत्र होने के कारण उसे चौड़ा करना भी संभव प्रतीत नहीं होता पर उसके दोनों ओर बनी नालियाँ अधिक गहरी और पक्की की जानी चाहिए ताकि उनसे बहने वाला गंदा पानी सड़क पर इकट्ठा न हो।
(ii) धार्मिक स्थलों पर चढ़ाई गई फूल मालाओं, पत्तों, छिलकों आदि को इधर-उधर बिखराने या नदी में प्रवाहित करने की अपेक्षा खेतों में दबाकर खाद बनाने के लिए प्रयुक्त किया जाए।
(iii) मुख्य मार्ग से रेहड़ी वालों को हटाकर उन्हें अन्यत्र भेजा जाना चाहिए।
(iv) सड़कों के किनारों पर कुछ-कुछ दूरी पर कूड़ा-कचरा फेंकने के लिए धातुप्लास्टिक के ढक्कनदार ड्रमों आदि का प्रबंध किया जाना चाहिए।
(v) दुकानदारों ने अपनी-अपनी दुकानों के बाहर दूर तक जगह घेर रखी है जहाँ वे ग्राहकों को आकृष्ट करने हेतु सामान सजाते हैं पर इससे लोगों का रास्ता रुकता है। दुकानदारों को समझा-बुझाकर या बलपूर्वक ऐसा करने से रोका जाए।
(vi) टूरी-फूटी सड़कों की मरम्मत कर पटरियों की स्थिति को सुधारा जाए।
(vii) पुराने जर्जर होते धार्मिक स्थलों की देख-रेख हेतु भारतीय पुरातत्व विभाग की सेवाएँ प्राप्त की जाएँ।
(viii) चौराहों का पुनर्निर्माण कर उन पर पेड़-पौधे तथा आकर्षक मूर्तियां आदि लगाई जाएं।
(ix) टेलीफोन के खंभों को तंग सड़कों के दोनों ओर से हटाने का प्रबंध किया जाए। तारों को भूमिगत कर दिया जाए।
(x) टी॰वी॰ केबल लगाने वालों को निर्देश दिए जाएँ कि वे सड़कों पर तारों के जाल न फैलाएँ। इससे नगर की सड़कें मकड़ी के जाल-सी लगती हैं।
(xi) अधिक व्यस्त चौराहों पर यातायात नियंत्रण संबंधी बत्तियों की व्यवस्था की जाए।
दिनांक : 14 अप्रैल, 20….
हस्ताक्षर
……..
(अध्यक्ष)

हस्तक्षार
………
(सदस्य)

हस्ताक्षर
………
(सदस्य)

6. महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कर्ज़ में डूबे निर्धन किसानों की आत्पहत्या करने की घटनाएँ निरंतर बढ़ती जा रही हैं। उन पर नियंत्रण हेतु एक प्रतिवेदन लिखिए।

‘विदर्भ क्षेत्र में कर्ज़ में डूबे किसानों द्वारा आत्पहत्या’ संबंधी प्रतिवेदन

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के छह जिलों में अतिशय कर्ज्ज में डूबे किसानों की दशा दिन-प्रतिदिन शोचनीय होती जा रही है। समुचित सिंचाई व्यवस्था न होने तथा मानसून की अनिश्चितता के कारण किसानों को बैंकों तथा अन्य ॠणदाता एजेंसियों से उधार लेकर खेती करनी पड़ी लेकिन फ़सल न हो पाने के कारण मानसिक प्रताड़ना ने उन्हें आत्महत्या के लिए विवश कर दिया। पिछले पाँच वर्ष में इस क्षेत्र के 530 किसान अब तक इसी कारण आत्महत्या कर चुके हैं, जो किसी को भी विचलित कर सकने वाली त्रासदी है।
किसानों को इस संकट से उबराने के लिए शीघ्र ठोस कदम सरकार के द्वारा उठाए जाने चाहिए ताकि पीड़ित किसानों, विधवाओं और अनाथ बच्चों को सहारा मिल सके।
सुझाव –
(i) इस क्षेत्र के किसानों के बकाया ऋण माफ़ कर दिए जाने चाहिए।
(ii) इस क्षेत्र में सिंचाई की वैकल्पिक सुविधाएँ दी जानी चाहिए।
(iii) कपास उत्पादकों को बेहतर दाम दिलाने की प्रभावी योजनाएँ बनाई जानी चाहिए।
(iv) पीड़ित बच्चों की शिक्षा का भार सरकार को उठाना चाहिए।
(v) पढ़े-लिखे किसानों की नौकरी की व्यवस्था करनी चाहिए।

प्रभा शंकर मुले
सरपंच
यवतमाल (महाराष्ट्र)

19 जून, 20…

7. राज्य सरकार के द्वारा भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए सीधा ग्राम पंचायतों के द्वारा काम कराने हेतु एक प्रतिवेदन प्रस्तुत कीजिए।

‘ग्राम पंचायतों से विकास कार्य कराने’ संबंधी प्रतिवेदन

राज्य में विकास कार्यों को गति देने हेतु सरकारी दप्तरों में फैली लाल फीताशाइी को समाप्त करने की परम आवश्यकता है। केंद्र और राज्य सरकरों गाँवों के लिए जितनी योजनाएँ बनाती हैं और उनके लिए धन की व्यवस्था करती हैं, वे गाँव तक पहुँचते-पहुँचते आधी से भी कम रह जाती हैं। ऐसा आवश्यक हो गया है कि सरकार कुछ विकास कार्यों को ग्राम पंचायतों के माध्यम से कराने के निर्देश दे ताकि विकास कायों में तेज़ी आए एवं भ्रष्टाचार को कम किया जा सके।

सुझाव –

(i) विकास कार्य ग्राम पंचायतों के द्वारा किए जाएँ।
(ii) उन कार्यों का खंड एवं जिला-स्तर पर गठित सतर्कता समितियों द्वारा परिवेक्षण किया जाए।
(iii) किसी भी पंचायत के द्वारा किए जाने वाले विकास कायों के लिए निर्धारित राशि पाँच लाख से अधिक नहीं होनी चाहिए।
(iv) विकास कायों के लिए ग्राम पंचायतों को धन सीधा मुहैया कराया जाना चाहिए।
(v) विकास कायों के लिए तकनीकी रूप से दक्ष व्यक्तियों की सेवा ली जानी चाहिए।
(vi) परियोजना की लागत का अधिकतम कुल 2 प्रतिशत जिला उपायुक्त द्वारा तकनीकी रूप से दक्ष व्यक्तियों को दक्षता पैनल के आधार पर खर्च किया जाए।
(vii) विकास कार्यों में आम आदमियों को शामिल किया जाए।

सेवा राम
अध्यक्ष
ग्राम सुधार समिति
मंगलपुर, करनाल

27 मई, 20….

8. देश-विदेश में रोज़गार प्रदान कराने हेतु नई युवा नीति संबंधी प्रतिवेदन लिखिए।

रोज़गार प्राप्ति हेतु नई युवा नीति की आवश्यकता

हमारा राज्य आर्थिक सबलता और प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा कुछ बेहतर है पर अभी भी राज्य के युवाओं को देश-विदेश में रोज़गार के समुचित अवसर उपलब्ध कराने के लिए नई युवा नीति बनाए जाने की आवश्यकता है। राज्य के कॉलेज प्रतिवर्ष लगभग 15000 इंजीनियर तैयार करते हैं। हजारों की संख्या में उच्च शिक्षित युवा रोज़गार ढूँढ़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। इनकी आकाँक्षाओं और इच्छओओं को समुचित दिशा देने के लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए ताकि इनकी ऊर्जा और कौशल का सदुपयोग किया जा सके।
सुझाव-
(i) देश-विदेश रोज़गार ब्यूरो विभिन्न देशों के विभिन्न संस्थानों में उपलब्ध रोज़गारोन्मुखी पाठ्यक्रमों तथा रोज़गार के विभिन्न अवसरों के संबंध में युवाओं को आवश्यक जानकारी नि:शुल्क मुहैया कराएँ।
(ii) विदेश जाने के लिए पासपोर्ट तथा वीजा लेने की प्रक्रिया के संबंध में समुचित मार्ग-दर्शन उपलब्ध कराया जाए।
(iii) राज्य में विभिन्न विभागों में रिक्त पदों को योग्यता के अनुसार भरा जाए।

राजेश्वर शुक्ला
सचिब युवा संगठन

19 अगस्त, 20…

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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CBSE Class 11 Hindi रचना कार्य सूची

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CBSE Class 11 Hindi रचना कार्य सूची

प्रत्येक स्कूल, कॉलेज, कार्यालय, संस्थान, सभा आदि में तरह-तरह के कार्य किए जाते हैं, समस्याएँ सुलझाई जाती हैं; निर्णय लिए जाते हैं और नई योजनाएँ बनाई जाती हैं। इसके लिए गंभीर विचार-विमर्श की आवश्यकता होती है। विभिन्न कायों को करने के लिए अनेक समितियाँ बनाई जाती हैं जो अलग-अलग स्तरों पर अपनी सभाएँ करती हैं। इनके सदस्य निश्चित स्थान और निश्चित समय पर मिलते हैं और विषय के प्रत्येक पक्ष पर गंभीरतापूर्वक चर्चा करते हैं। हर विषय के अच्छे-बुरे पक्ष पर सोच-विचार करते हैं और फिर किसी निर्णय पर पहुँचते हैं।

प्रत्येक सभा के लिए विवरण तैयार करना आवश्यक होता है। एक सभा में जो-जो कार्य किए जाते हैं, उनका सूक्ष्म लेखा कार्य-सूची (Agenda) के नाम से जाना जाता है। अत: कार्य-सूची किसी भी सभा की कार्यवाही का लिखित क्रमबद्ध वर्णन होता है। जब भी कोई सभा आरंभ होती है तब पूर्व सचिव या संयोजक विचार योग्य विषयों का संक्षिप्त परिचय देता है।

व्यापारिक प्रतिष्ठानों के लिए तो किसी भी सभा के लिए कार्य-सूची तैयार करना आवश्यक होता है।

कार्य-सूची की विशेषताएँ –

कार्य-सूची की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. प्रत्येक कार्यसूची के प्रारंभ में सभा के स्वभाव का विवरण होना चाहिए। इसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए कि सभा में किनकी चर्चा होगी। साथ ही सभा की तिथि, स्थान, अध्यक्ष का नाम, उपस्थित अधिकृत व्यक्तियों के नाम और उनकी संख्या का उल्लेख प्रारंभ में करना होता है।
  2. कार्य-सूची में केवल वास्तविक विचार-विमर्श के विषयों का वर्णन होता है।
  3. कार्य-सूची में संक्षिप्त परंतु स्पष्ट और सरल भाषा में लिखा जाता है।
  4. कार्य-सूची निष्मक्ष भाव से लिखी जाती है और उसमें उचित तथ्यों को प्रस्तुत किया जाता है।
  5. कार्य-सूची में आवश्यकता होने पर विचारणीय विषयों पर संक्षिप्त टिपणणी दी जाती है।
  6. विचारणीय विषयों को क्रमानुसार दिया जाता है।

कार्य-सूची के उपयोग –

  1. सभा का समय अनावश्यक रूप से खराब नहीं होता।
  2. सदस्य केवल उन्हीं विषयों पर विचार-विमर्श करते हैं जो कार्य-सूची में निर्दिष्ट होते हैं।
  3. सदस्यों का विषय-भटकाव नहीं होता।

कार्य-सूची संबंधी वैधानिक व्यवस्थाएँ –

  1. विभिन्न समितियों की सभी सभाओं की कार्य-सूची अलग-अलग होनी चाहिए।
  2. कार्य-सूची के प्रत्येक पृष्ठ पर क्रमानुसार पृष्ठ संख्या अंकित होनी चाहिए।
  3. कार्य-सूची पर अध्यक्ष के संक्षिप्त या पूर्ण हस्ताक्षर होने चाहिए।

कार्य-सूची की प्रेषण विधि –

कार्य-सूची पूरी हो जाने के पश्चात अध्यक्ष और सचिव का अनुमोदन लिया जाता है तथा समिति के सभी सदस्यों को सभा की अग्रिम तिथि, समय, स्थान आदि की सूचना के साथ कार्य सूची की एक प्रति भेज दी जाती है ताकि सभी सदस्य सभा में भाग लेने से पहले संबंधित विषयों पर चिंतन-मनन कर सकें तथा आवश्यक सामग्री तैयार कर सकें। ऐसा करने से उन्हें सभी विषयों पर सटीक और सार्थक विचार-विनिमय में सहायता मिलती है।

कार्य-सूची के कुछ उदाहरण –

1. दिल्ली पब्लिक स्कूल की प्रबंधक समिति की बैठक के लिए कार्य-सूची।

बैठक की तिथि : 12 नवंबर, 20 ……
बैठक का समय : दोपहर 12.00 बजे
स्थान : विद्यालय का कान्फ्रेंस रूम
कार्य-सूची : i. सदस्यों का स्वागत
ii. पिछली बैठक के कार्यों की संपुष्टि
iii. नए भवन-निर्माण की योजना
iv. विज्ञान अध्यापकों की नियुक्ति
v. अध्यक्ष महोदय की अनुमति से अन्य विषयों पर चर्चा
vi. धन्यवाद ज्ञापन

हस्ताक्षर सचिव
दिल्ली पब्लिक स्कूल प्रबंधक समिति

2. विद्यालय की हिंदी-साहित्य-परिषद के द्वारा आयोजित किए जाने वाले अंतर्वर्य्यालय कविता-पाठ-प्रतियोगिता के आयोजन की तैयारी हेतु बुलाई गई बैठक की कार्य-सूची।

बैठक की तिथि : 12 नवंबर, 20..
समय : दोपहर 1.00 बजे
स्थान हिंदी विभाग का कक्ष
कार्य-सूची : i. परिषद के सदस्यों का स्वागत
ii. पिछली बैठक के कार्यवृत्त की संपुष्टि
iii. अंतर्विद्यालय कविता-पाठ-प्रतियोगिता का आयोजन
iv. मुख्य अतिथि के नाम पर विचार
v. समितियों का गठन
vi. अध्यक्ष महोदय की अनुमति से अन्य विषय पर चर्चा
vii. धन्यवाद ज्ञापन

हस्ताक्षर
(……..)
अध्यक्ष
हिंदी साहित्य परिषद

3. अर्बन एस्टेट, सेक्टर-7 की वेल्फेयर समिति की कार्यकारिणी की बैठक हेतु कार्य-सूची।

बैठक की तिथि : 6 दिसंबर, 20 ………
समय : सायं : 5.00 बजे
स्थान : कम्मूनिटी हॉल का सेमिनार कक्ष
कार्य-सुची : i. समिति के सदस्यों का स्वागत
ii. पिछली बैठक के कार्यवृत्त की संपुष्टि
iii. वार्षिक-चुनाव का कार्यक्रम
iv. पिछले वर्ष के कार्यक्रमों का लेखा-जोखा
v. पिछले वर्ष की आय-व्यय का विवरण
vi. अन्य विषय अध्यक्ष की अनुमति से
vii. धन्यवाद ज्ञापन

अर्बन एस्टेट,
सेक्टर-7

हस्ताक्षर
अध्यक्ष
वेल्फेयर समिति

4. राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल, जयपुर की वार्षिक खेल-कूद प्रतियोगिता के लिए बुलाई गई बैठक हेतु कार्य-सूची।

बैठक की तिथि : 20 जनवरी, 20 …
समय : दोपहर 2.30 बजे
स्थान : प्राचार्य-कक्ष
कार्य-सूची : i. सदस्यों का स्वागत
ii. पिछ्ली बैठक के कार्यवृत्त की संपुष्टि
iii. खेल-कूद प्रतियोगिता पर विचार
iv. खेल-कूद प्रतियोगिता के अंतिम दिन के लिए मुख्य अतिथि के नाम पर विचार
v. पुरस्कारों, मेडलों और स्मृति-चिहनों का क्रय
vi. जलपान के आयोजन पर विचार
vii. प्राचार्य की अनुमति से किसी अन्य विषय पर विचार
viii. धन्यवाद ज्ञापन

हस्ताक्षर
राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल इंचार्ज
खेल-कूद विभाग

5. विद्यालय में संस्थापक दिवस पर श्रद्धांजलि और रक्त-दान शिविर के आयोजन हेतु बुलाई गई बैठक संबंधी कार्य-सूची।

बैठक की तिथि : 11 अगस्त, 20….
समय : सायं 4.00 बजे
स्थान : पुस्तकालय कक्ष
कार्य-सूची : i. सदस्यों का स्वागत
ii. पिछली बैठक के कार्यवृत्त की संपुष्टि
iii. संस्थापक दिवस समारोह पर विचार-विमर्श
iv. रक्तदान शिविर के आयोजन पर विचार-विमर्श
V. रक्तदाताओं के लिए अल्पाहार
vi. रक्तदाताओं को सम्मान और स्मृति-चिहून
vii. प्राचार्य की अनुमति से किसी अन्य विषय पर विचार
viii. धन्यवाद ज्ञापन

हस्ताक्षर
…….
प्राचार्य

6. स्कूल की पत्रिका के लिए विद्यार्थी-संपादक चुनने हेतु अध्यापक संपादकों की होने वाली बैठक के लिए कार्य-सूची।

बैठक की तिथि : 22 मईं, 20 …..
समय : दोपहर 2.00 बजे।
स्थान : पुस्तकालय का गोष्ठी कक्ष
कार्य-सूची : i. सदस्यों का स्वागत
ii. पिछली बैठक के कार्यवृत्त की सुंपष्टि
iii. विद्यार्थी संपादकों के चयन पर विचार-विमर्श
iv. विद्यार्थी-संपादकों की जिम्मेदारियों पर विचार
v. अध्यक्ष महोदय की अनुमति से अन्य विषयों पर चर्चा
vi. धन्यवाद ज्ञापन

हस्ताक्षर
प्रधान संपादक
स्कूल पत्रिका

7. स्कूल की कैंटीन के लिए आगामी वर्ष हेतु रूपरेखा और निविदाएँ आमंत्रित करने से पहले समिति की बैठक के लिए कार्य-सूची।

बैठक की तिथि : 24 फरवरी, 20…
समय : सायं 4.00 बजे
स्थान : प्राचार्य-कक्ष
कार्य-सूची : i. सदस्यों का स्वागत
ii. पिछली बैठक के कार्यवृत्त की संपुष्टि
iii. पिछले वर्ष कैंटीन की स्थिति और ठेकेदार के व्यवहार पर विचार-विमर्श
iv. अगले सत्र से कैंटीन के ठेके के लिए न्यूनतम राशि तय करने पर विचार-विमर्श
v. निविदाओं को आमंत्रित करने के लिए विचार
vi. अध्यक्ष महोदय की अनुमति से अन्य विषयों पर चर्चा
vii. धन्यवाद ज्ञापन

हस्ताक्षर
प्राचार्य

8. अपनी कॉलोनी के पार्क की स्थिति सुधारने के लिए बुलाई गई कॉलोनीवासियों की बैठक के लिए कार्य-सूची।

बैठक की तिथि : 4 जुलाई, 20…..
समय : सायं 7.30 बजे।
स्थान : 746, आदर्श कॉलोनी
कार्य-सूची : i. सदस्यों का स्वागत
ii. पिछली बैठक के कार्यवृत्त की संपुष्टि
iii. पार्क की स्थिति पर विचार
iv. नए माली की नियुक्ति
v. बच्चों के लिए झूलों का प्रबंध
vi. अध्यक्ष महोदय की अनुमति से अन्य विषय पर चर्चा
vii. धन्यवाद ज्ञापन

हस्ताक्षर
सचिव,
आदर्श कॉलोनी सुधार समिति

9. दुर्गा पूजा समिति द्वारा कार्यकारिणी के सदस्यों की बैठक के लिए कार्य-सूची।

बैठक की तिथि : 29 सितंबर, 20….
समय : रात्रि 9.00 बजे।
स्थान : दुर्गा मंदिर, रेलवे रोड
कार्य-सूची : i. सदस्यों का स्वागत
ii. पिछली बैठक के कार्यवृत्त की संपुष्टि
iii. दुर्गा-पूजा की तैयारियों की योजना पर विचार
iv. सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रस्तुतियों पर विचार
v. भंडारा और प्रसाद वितरण पर विचार
vi. प्रतिमा विसर्जन के स्थान पर विचार
vii. अध्यक्ष महोदय की अनुमति से अन्य विषय पर चर्चा
viii. धन्यवाद ज्ञापन

हस्ताक्षर
सचिव,
दुर्गा पूजा समिति

10. सनातन धर्म सीनियर सेकेंडरी विद्यालय की प्रबंधक समिति की नए शैक्षणिक सत्र को आरंभ होने से पूर्व बुलाई गई सभा के लिए कार्य-सूची।

बैठक की तिथि : 28 फरवरी, 20…..
समय : सायं 7.00 बजे
स्थान : स्कूल का कॉन्फ्रेंस हॉल
कार्य-सूची : i. समिति के सदस्यों का स्वागत
ii. पिछली बैठक के कार्यवृत्त की संपुष्टि
iii. होस्टल शुल्क में $5 \%$ वृद्धि
iv. होस्टल वार्डन की नियुक्ति
v. पुस्तकालय अध्यक्ष का त्याग-पत्र
vi. नए वर्ष के बजट पर चर्चा
vii. अध्यक्ष महोदय की अनुमति से अन्य विषय पर चर्चा
viii. धन्यवाद ज्ञापन

हस्ताक्षर
प्रबंधक
विद्यालय प्रबंधक समिति

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CBSE Class 11 Hindi रचना कार्यवृत्त

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CBSE Class 11 Hindi Rachana कार्यवृत्त

जब किसी बैठक की कारवाई समाप्त हो जाती है तब संयोजक या सचिव उसके प्रारूप को लिखित रूप में तैयार करता है, इसे कार्यवृत्त कहते हैं। बैठक में जितने भी निर्णय लिए जाते हैं या प्रस्ताव पारित किए जाते हैं उन सबका विवरण इसमें दिया जाता है। इसमें सदस्यों के विचार-विमर्श तथा लिए गए विभिन्न निर्णयों का उल्लेख भी होता है।

कार्यवृत्त की विशेषताएँ –

  1. यह संक्षिप्त लेकिन स्पष्ट और सरल भाषा में होना चाहिए।
  2. इसे निष्पक्ष भाव से लिखा जाना चाहिए।
  3. इसमें प्रस्तावों के नाम तथा इन प्रस्तावों का अनुमोदन करने वालों के नाम का विवरण होना चाहिए।

कार्यवृत्त संबंधी वैधानिक व्यवस्थाएँ –

  1. इसके प्रत्येक पृष्ठ पर क्रमानुसार पृष्ठ संख्या अंकित होनी चाहिए।
  2. इसे बैठक होने के 30 दिन के अंदर लिखा जाना चाहिए।
  3. प्रत्येक बैठक की कार्यवाही के कार्य-विवरण के पृष्ठ पर अध्यक्ष के संक्षिप्त या पूर्ण हस्ताक्षर होने चाहिए तथा अंतिम पृष्ठ पर हस्ताक्षर के साथ तिथि भी लिखी जानी चाहिए।
  4. यदि किसी बैठक में कोई नियुक्तियाँ की गई हों या अधिकार प्रदान किए गए हों तो उनके कार्य-विवरण का उल्लेख किया जाना चाहिए।
  5. इसे समिति की अगली बैठक में संपुप्टि के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  6. यदि अगली बैठक होने की संभावना न हो तो इसकी एक-एक प्रति समिति के सदस्यों को भेजी जानी चाहिए।

कार्यवृत्त की उदाहरण –

1. विद्यालय की प्रबंधक समिति की बैठक 18 जून, 20… को संपन्न हुई थी। इसका कार्यवृत्त लिखिए।

सेंट लुइस कानवेंट स्कूल की प्रबंधक समिति की बैठक का कार्यवृत्त

विद्यालय के पुस्तकालय कक्ष में बुधवार, 18 जून 20… को प्रबंधक समिति की एक बैठक संपन्न हुई। इसमें निम्नलिखित सदस्यों ने भाग लिया-

  1. श्री जॉर्ज फिलिप (अध्यक्ष)
  2. श्री मैथ्यू आरनॉल्ड (सचिव)
  3. श्रीमती मारिया (कोषाध्यक्ष)
  4. श्री राजेश्वग्रसाद (सदस्य)
  5. श्री मनजीत सिंह (सदस्य)
  6. श्री पल्लव कुमार (सदस्य)

बैटक आरंभ होने से पहले सचिव ने सभी का स्वागत किया।
इसके पश्चात 28 दिसंबर 20… में हुई पहली बैठक का कार्यवृत्त प्रस्तुत किया गया, जिसकी सदस्यों ने सर्वसम्मति से संपुष्टि की।
निरंतर बढ़ती महँगाई पर चिंता व्यक्त करते हुए होस्टल वार्ड के सुझाव को स्वीकृति दी गई कि खर्चे को ठीक प्रकार से चलाने के लिए इसी सत्र से होस्टल फीस में 10% वृद्धि की जाए।

श्री सिंद राम (गणित अध्यापक) और श्रीमती कमलेश मल्होत्रा (भौतिकशास्त्र अध्यापिका) के बोर्ड परीक्षा-परिणाम अच्छे न रहने को गंभौरता से लिया गया और दोनों को अपने परीक्षा परिणाम सुधारने का परामर्श दिया गया।
स्कूल के मैदानों और क्यारियों की देखभाल के लिए एक नए माली की नियुक्ति की आवश्यकता अनुभव की गई तथा इस कार्य हेतु स्थानीय समाचार-पत्रों में विज्ञापन देने पर सहमति प्रकट की गई।
यह निर्णय किया गया कि अगले वर्ष विद्यालय का स्वर्ण जयंती-समारोह धूमधाम से मनाया जाएगा। इससे संबंधित क्रिया-कलापों की योजना अगली सभा में तैयार की जाएगी।
अंत में अध्यक्ष महोदय ने सभी सदस्यों के प्रति आभार प्रकट किया।

हस्ताक्षर
(अध्यक्ष)

हस्ताक्षर
(सचिव)

2. आपके मुहल्ले की सुधार समिति की कार्यकारिणी की बैठक 26 जुलाई, 20 … को संपन्न हुई। सचिव के रूप में आप इसका कार्यवृत्त लिखिए।

चौड़ा बाज्ञार करनाल के मिट्ठन मोहल्ले की सुधार समिति की कार्यकारिणी की बैठक आज बुधवार, 25 नवंबर, 20 … को श्री महेश कठपालिया के घर में संपन्न हुई। इसमें निम्नलिखित सदस्य उपस्थित थे –

  1. श्री विजय सहगल (अध्यक्ष)
  2. श्री मोहन वालिया (सदस्य)
  3. श्री विक्रमजीत सिंह (उपाध्यक्ष)
  4. श्री नरेश कुमार (सदस्य)
  5. श्री मनमोहन सहगल (सचिव)
  6. श्रीमती सुनंदा गोयल (सदस्य)
  7. श्री कम्मवीर (कोषाध्यक्ष)
  8. श्रीमती गोमती त्रिपाठी (सदस्य)

बैठक आरंभ होने से पहले सचिव ने सभी सदस्यों का स्वागत किया। इसके पश्चात 10 सितंबर, 20… को संपन्न हुई पिछली बैठक का कार्यवृत्त प्रस्तुत किया गया, जिसकी सर्वसम्मति से पुष्टि की गई।
इसके बाद सचिव ने मोहल्ले की टूटी-फूटी सड़कों और उखड़ी हुई पटरियों की स्थिति की ओर ध्यान आकृष्ट किया। यह निर्णय लिया गया कि नगर-निगम को इस विषय में लिखा जाए और शीं्र अतिशीघ्र इनकी मरम्मत कराई जाए।
रात के समय मोहल्ले की चौकीदारी करने वाले चौकीदार को बदलने का निर्णय लिया गया क्योंकि उसे कई बार ड्यूटी के समय सोते हुए पकड़ा गया है। किसी पूर्व फौजी को नया चौकीदार नियुक्त करने पर सभी ने सर्वसम्मति जताई।
मुहल्ले के बीचों-बीच बने पार्क के चारों ओर बनी छोटी-छोटी दीवार को ऊँचा करने का निर्णय किया गया ताकि आवारा कुत्ते कूदकर अंदर न पहुँच सकें।
अंत में अध्यक्ष ने सभी सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त किया।

हस्ताक्षर
(अध्यक्ष)

हस्ताक्षर
(सचिव)

3. दयालसिंह पब्लिक स्कूल में संस्थापक दिवस पर आयोजित किए जाने वाले श्रद्धांजलि समारोह संबंधी बैठक का कार्यवृत्त तैयार कीजिए।

द्यालसिंह पब्बिक स्कूल में संस्थापक दिवस पर श्रद्धांजलि समारोह

स्कूल की सलाहकार समिति की आवश्यक बैठक सोमवार, 2 सितंबर, 20… को प्राचार्य कक्ष में संपन्न हुई। इसमें निम्नलिखित सदस्यों ने भाग लिया-

  1. श्री आर० एल० सैनी (प्राचार्य)
  2. श्री आशुतोष गर्ग (सदस्य)
  3. श्रीमती सुमन अरोड़ा (उप प्राचाया)
  4. श्रीमती विनीता शर्मा (सदस्या)
  5. श्रीमती पूनम (सांस्कृतिक कार्यक्रम संयोजिका)
  6. सुश्री सिम्मी खुराना (सदस्या)
  7. श्री रमेश भाटिया (सदस्य)

बैठक प्रारंभ होने से पहले सांस्कृतिक कार्यक्रम संयोजिका ने सभी सदस्यों का स्वागत किया। इसके पश्चात 12 अगस्त, 2000 को संपन्न हुई पिछली बैठक का कार्यवृत्त प्रस्तुत किया गया। सदस्यों ने सर्वसम्मति से इस कार्यवृत्त की संपुष्टि की।
प्राचार्य महोदय ने बताया कि 9 सितंबर को स्कूल में संस्थापक दिवस समारोह मनाया जाएगा, जिसमें सरदार दयालसिंह मजीठिया को श्रद्धांजलि दी जाएगी। इस अवसर पर भक्ति संगीत का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। श्री रमेश भाटिया ने इस अवसर पर रक्तदान शिविर लगाने का सुझाव दिया, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। इस कार्य के लिए आशुतोष गर्ग रेड क्रॉस सोसाइटी से संपर्क करके सभी प्रबंध करेंगे।
इस अवसर पर प्रबंधक समिति के प्रधान को मुख्य अतिधि के रूप में आमंत्रित किया जाएगा। अंत में प्राचार्य महोदय ने सभी सदस्यों के प्रति आभार प्रकट किया।
हस्ताक्षर
(प्राचार्य)

हस्ताक्षर
(संयोजिका : सांस्कृतिक कार्यक्रम)

4. विद्यालय में हिंदी-दिवस मनाने के लिए हिंदी-साहित्य परिषद की बैठक 2 सितंबर, 20… को संपन्न हुई थी। उसमें जिन विषयों पर चर्चां हुई और जो निर्णय लिए गए उनका कार्यवृत्त तैयार कीजिए।

विद्यालय की हिंदी-साहित्य की बैठक का कार्यवृत्त

विद्यालय की हिंदी-साहित्य-परिषद् की बैठक मंगलवार, 21 सितंबर, 20… को हिंदी-विभाग में संपन्न हुई थी। इसमें निम्नलिखित सदस्यों ने भाग लिया-

  1. श्रीमती मनोरमा राजवंशी (अध्यक्ष)
  2. श्री राजबीर सिंह (सचिव)
  3. श्रीमती सविता ठाकुर (कोषाध्यक्ष)
  4. श्रौमती रजनी मदान (सदस्या)
  5. श्री परमजीत सिंह (सदस्य)
  6. श्री राघव जैन (सदस्य)

बैठक आरंभ होने से पहले सचिव ने सभी सदस्यों का स्वागत किया।
इसके पश्चात 20 मई, 20… को संपन्न हुई पिछली बैठक का कार्यवृत्त प्रस्तुत किया गया। सदस्यों ने सर्वसम्मति से कार्यवृत्त की संपुष्टि की।
सचिव ने 14 सितंबर को मनाए जाने वाले हिंदी-दिवस की जानकारी दी। इस अवसर पर विद्यालय में कनिष्ठ और वरिष्ठ वर्गों के आधार पर आयोजित की जाने वाली निबंध-लेखन, कहानी-लेखन और कविता-लेखन प्रतियोगिताओं को सर्वसम्मति से स्वीकृति दी गई।
विद्यालय के प्रांगण में महत्वपपूर्ण स्थलों पर पे काडों पर हिंदी-संबंधी उक्तियों को विद्यार्थियों से तैयार करवाकर लगाया जाएगा। श्रीमती सविता उाकुर ने हिंदी संबंधी प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम करने का सुझाव दिया, जिसे एकमत से स्वीकार किया गया। श्रीमती ठाकुर इस कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करेंगी।
विभिन्न कार्यक्रमों के लिए पुरस्कारों की व्यवस्था करने का जिम्मा श्री राघव जैन को साँपा गया। वे विभिन्न प्रतिष्ठानों के सौजन्य से इस कार्य को पूरा करेंगे।
इस दिन शाम 7.00 बजे विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों के लिए हिंदी-कविता-पाठ का आयोजन किया जाएगा, जिसमें स्थानीय कवियों को भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। इसमें मंच संचालन श्री राजबीर सिंह करेंगे।
अंत में अध्यक्ष महोदय ने सभी सदस्यों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की।
हस्ताक्षर
(अध्यक्ष)

हस्ताक्षर
(सचिब)

5. विद्यालय की ‘भमण कमेटी’ ने गर्मी की छुट्टियों में विद्यार्थियों के लिए तीन शैक्षणिक भ्रमणों का आयोजन करने हेतु 17 अप्रैल, 20…. को एक बैठक का आयोजन किया। इसका कार्यवृत्त तैयार कीजिए।

विद्यालय की ‘भ्रमण कमेटी’ की बैठक का कार्यवृत्त

विद्यालय की ‘भ्रमण कमेटी’ ने गर्मीं की छुट्टियों में शैक्षणिक भ्रमणों के आयोजन के लिए 17 अप्रैल, 20… को सायं 4.00 बजे लाइड्रेरी कक्ष में एक बैठक आयोजित की। इसमें निम्नलिखित सदस्य उपस्थित थे –

  1. श्री राम शरण अग्रवाल (अध्यक्ष)
  2. श्री नंरंद्र गुलाटी (सचिब)
  3. श्री श्यामलाल (कोषाध्यक्ष)
  4. श्रीमती कौशल्या श्रीवास्तव (सदस्या)
  5. श्री निपुण अवस्थी (सदस्य)
  6. श्रीमती सुरेखा बाली (सदस्या)

बैठक आरंभ होने से पहले सचिव ने सभी सदस्यों का स्वागत किया।
इसमें 12 अप्रैल, 20….को संपन हुई पिछली बैठक का कार्यवृत्त प्रस्तुत किया गया। सदस्यों ने सर्वसम्मति से इसकी संपुष्टि की। अगले महीने से होने वाली गर्मी की छुट्टियों में स्कूल के विद्यार्थियों के लिए तीन शैक्षणिक भ्रमणों का आयोजन करने के प्राचार्य महोदय के प्रस्ताव पर विचार किया गया। सर्वसम्मति से इन भ्रमणों की आवश्यकता को स्वीकार किया गया। बैठक में उपस्थित सभी सदस्यों ने विचार-विमर्श के बाद निर्णय लिया कि-
(i) छठी से आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों की भ्रमण योजना इन कक्षाओं से संबंधित अध्यापकों से सलाह कर श्री निपुण अवस्थी बनाएँगे।
(ii) नौवीं और दसवीं कक्षा के विद्यार्थियों का भ्रमण ऐतिहासिक स्थलों पर केंद्रित होगा जिसकी रूप-रेखा श्री श्यामलालअन्य सहयोगियों की सहायता से वैयार करेंगे।
(iii) ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों को भ्रमण के लिए दक्षिण भारत में भेजा जाएगा। इसकी योजना श्रीमती सुरेखा बाली तैयार करेंगी।
इन तीनों प्रस्तावित भ्रमणों में किराये के रूप में कुल व्यय का 50 विद्यालय वहन करेगा। कोई भी भ्रमण दस दिन से अधिक अवधि का नहीं होगा। विद्यार्थियों के साथ जाने वाले अध्यापक/अध्यापिकाओं को यात्रा और महँगाई भत्ता प्राप्त होगा।
अंत में अध्यक्ष महोदय ने सदस्यों के प्रति कृतजता ज्ञापित की।

हस्ताक्षर
(अध्यक्ष)

हस्ताक्षर
(सचिव)

6. राष्ट्रीय सेवा योजना (N.S.S.) के यूनिट-I की कार्यकारिणी की एक बैठक विद्यालय के प्राचार्य की उपस्थिति में 8.5.20… को हुई। इसका कार्यवृत्त तैयार कीजिए।

राष्ट्रीय सेवा योजना-यूनिट-I की बैठक का कार्यवृत्त

आज प्रातः 10.00 बजे प्राचार्य कक्ष में (सोमवार 25 मई, 20…) को राष्ट्रीय सेवा योजना यूनिट- की कार्यकारिणी की एक बैठक संपन्न हुई जिसमें निम्नलिखित सदस्य उपस्थित थे-

  1. डॉ० रामनरेश गुप्ता (प्राचार्य)
  2. श्री अखतर महमूद (समन्वयक)
  3. श्री राधारमण जायसवाल (सदस्य)
  4. श्री बंकिम सेनगुप्ता (सदस्य)
  5. श्रीमती निर्मला चौधरी (सदस्या)
  6. श्री निर्मल सिंह (सदस्य)

बैठक आरंभ होने से पहले समन्वयक ने सभी उपस्थित सदस्यों का स्वागत किया।
इसके पश्चात 14 अप्रैल, 20…. को संपन्न हुई पिछली बैठक का कार्यनृत्त प्रस्तुत किया गया, जिनकी सर्वसम्मति से संपुष्टि की गई। राष्ट्रीय सेवा-योजना से संबंधित राज्य सरकार के पत्र के आदेशानुसार दस दिवसीय कैप किसी निकटवर्ती गाँव में लगाया जाना है। इसके लिए सर्व-सम्मति से उचानी गाँव को केंप-स्थल के लिए चुना गया।

इस कैंप में विद्यालय के 120 विद्यार्थी भाग लेंगे। केंप के लिए सारे प्रबंध श्री सुखबीर सिंह करेंगे।
कैंप की गतिविधियों के साथ-साथ विद्यार्थी गाँववासियों के साथ मिलकर सेवा-भाव से ग्रामीण संस्कृति को निकट से जानने का प्रयास करेंगे।
बैठक के अंत में प्राचार्य महोदय ने सबके प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
हस्ताक्षर
(प्राचार्य)

हस्ताक्षर
(समन्वयक)

7. विद्यालय में वार्षिक खेल-कूद प्रतियोगिता के आयोजन हेतु एक बैठक 28 अगस्त को संपन्न हुई। इसका कार्यवृत्त तैयार कीजिए।

‘वार्षिक खेल-कूद प्रतियोगिता’ के आयोजन से संबंधित बैठक का कार्यवृत्त

विद्यालय के पुस्तकालय के कंप्यूटर कक्ष में शुक्रवार 28 अगस्त, 20… को दोपहर 1.00 बजे वार्षिक खेल-कूद प्रतियोगिता के आयोजन से संबंधित एक बैठक संपन्न हुई। इसमें निम्नलिखित सदस्यों ने भाग लिया-

  1. श्री रमेश अरोड़ा (प्राचार्य)
  2. श्री बेद प्रकाश भाटिया (सदस्य)
  3. श्री आत्म प्रकाश पसरीचा (सदस्य)
  4. श्री अवतार सिंह (सदस्य)
  5. श्री हंसराज अरोड़ा
  6. श्री विनय कुमार (सदस्य) (खेल-कूद इंचार्ज)
  7. श्री अनीस मुहम्मद (सदस्य)

बैठक आरंभ होने से पहले खेल-कूद इंचार्ज ने सभी का स्वागत किया।
इसके पश्चात 19 जून, 20… को संपन्न हुई पिछली बैठक का कार्यवृत्त प्रस्तुत किया गया। सर्वसम्भति से इसकी संपुष्टि की गई। विद्यालय में वार्षिक खेल-कूद प्रतियोगिताओं का आयोजन 20 नवंबर, 2000 को किया जाएगा। इसकी तैयारियों के लिए विचार-विमर्श किया गया और निम्नलिखित समितियाँ गठित कीं-
(i) खेल-कूद समिति-

इंचार्ज : श्री विनय कुमार
सदस्य : श्री महेश कुमार, श्रीमती उषा अनेजा

(ii) पुरस्कार समिति-

इंचार्ज : श्री महेश शर्मा
सदस्य : श्री गोबिंद दास, सुश्री निकिता गुप्ता

(iii) रिफ्रेशमेंट समिति-

इंचार्ज : श्री कैलाश अग्रवाल
सदस्या : श्रीमती रोमिला, श्रीमती अंजना

(vi) टेंटिग और सीटिंग समिति-

इंचार्ज : श्री गगन अनेजा
सदस्य : श्री अरुण बवेजा, श्री अनंत दास

(vi) प्रेस समिति –
इंचार्ज : श्री अशोक शर्मा
सदस्य : श्री अरुण गोयल

ये सभी समितियाँ अपने-अपने क्षेत्रों से संबंधित गतिविधियों को चलाने हेतु, इसी महीने अपनी सुविधानुसार बैठकें करेंगी। सभी समितियों के इंचार्ज प्राचायं की अनुमति से कार्यालय से अग्रिम धनराशि प्राप्त कर सकते हैं। प्रतियोगिता की समाप्ति के एक सप्ताह के भीतर उन्हें खर्चे की रिपोर्ट दक्त्तर में जमा करानी होगी।
बैठक के अंत में प्राचार्य महोदय ने सभी उपस्थित सदस्यों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
हस्ताक्षर
(प्राचार्य)

हस्ताक्षर
(खेल-कूद इंचार्ज)

8. कॉलोनी के पार्क में गुंडातत्वों की गतिविधियों से निपटने हेतु कॉलोनी वेलफेयर कमेटी की 18 जून, 20…. को एक बैठक आयोजित की गई। इसका कार्यवृत्त तैयार कीजिए।
‘कॉलोनी वेलफेयर कमेटी’ की एक बैठक श्री मान सिंह के निवास 712 -सुभाष कॉलोनी में 18 जून, 20… रात्रि 8.00 बजे संपन्न हुई। इसमें कार्यकारणी के निम्नलिखित सदस्य उपस्थित थे –

  1. श्री आदेश गुप्ता (अध्यक्ष)
  2. श्री मान सिंह (सचिव)
  3. श्री विक्रम गोयल (सदस्य)
  4. श्री अरविंद खन्ना (सदस्य)
  5. श्री गोबिंद त्रिगुनायत (सदस्य)
  6. श्री मुहम्पद अली (सदस्य)

बैठक आरंभ होने से पहले सचिव ने सभी उपस्थित सदस्यों का स्वागत किया।
इसके पश्चात् 10 जून, 20… को संपन्न हुई बैठक का कार्यनृत्त प्रस्तुत किया गया। सदस्यों के द्वारा सर्वसम्मति से इसकी संपुष्टि की गई। कॉलोनी के पार्क में गुंडातत्व अपनी असभ्य और उच्छभृंखल हरकतें पिछले एक मास से कर रहा है। उन्हें समझाने के सभी प्रयल व्यर्थ सिद्ध हुए हैं। सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया कि उन सबकी शिकायत पुलिस के पास की जाए ताकि कॉलोनी से उन्हें दूर हटाया जा सके।
बैठक के अंत में अध्यक्ष ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।

हस्ताक्षर
(अध्यक्ष)

हस्ताक्षर
(सचिव)

9. गाँव को निकटवती नगर से पक्की सड़क द्वारा जोड़ने हेतु की गई बैठक का कार्यवृत्त लिखिए।

गाँव सफीदों कलाँ को निकटवर्ती नगर से पक्की सड़क द्वारा जोड़ने के लिए संपन्न बैठक का कार्यवृत्त

आज सोमवार 28 मार्च, 20… को प्रातः 10.00 बजे गाँव सफीदों कलाँ के पंचायत भवन में एक बैठक संपन्न हुई। इसमें पंचायत के निम्नलिखित सदस्य उपस्थित थे-

  1. श्री हवा सिंह (सरपंच)
  2. श्री गिरधारी लाल (कोषाध्यक्ष)
  3. श्री राम नागर (सचिव)
  4. श्री मेहरचंद (सदस्य)
  5. श्री भूपेश कुमार (सदस्य)
  6. श्री रामस्वरूप (सदस्य)
  7. श्री उमर शरीफ़ (सदस्य)

बैठक आरंभ होने से पहले सचिव ने सभी का स्वागत किया। इसके पश्चात 18 फरवरी, 20… में हुई पहली बैठक का कार्यवृत्त प्रस्तुत किया गया, जिसकी सदस्यों ने सर्वसम्मति से संपुष्टि की।
सभी सदस्यों ने इस बात पर खेद प्रकट किया कि अब तक उनके गाँव और निकटवर्ती नगर के बीच पक्की सड़क से संबंध नहीं हो पाया है। सर्वसम्मति से पारित किया गया कि गाँववासी स्वयं अपने परिश्रम और सामूहिक रूप से एकत्रित धन से पक्की सड़क बनाएँगे। बे इस कार्य को अगले तीन महीने में वर्षा ऋतु, आरंभ होने से पहले पूरा कर लेंगे।
इस सड़क का उद्घाटन गाँव के किसी किसान या मजदूर से कराया जाएगा। बैठक के अंत में सरपंच जी ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
हस्ताक्षर
(सरपंच)

हस्ताक्षार
(सचिव)

10. विद्यालय की पर्यावरण संरक्षण समिति के द्वारा वनमहोत्सव मनाने संबंधी बैठक 16 जुलाई, 20… को संपन्न हुई। उसका कार्यवृत्ल लिखिए।

परांांवरण संरक्षण समिति की वनमहोत्सव मनाने संबंधी बैठक का कार्यवृत्त

विद्यालय की जीव-विज्ञान प्रयोगशाला में पर्यावरण संरक्षण समिति की एक बैठक बुधवार, 16 जुलाई, 20… को सायं 5.00 बजे संपन्न हुई। इसमें कार्यकारिणी के निम्नलिखित सदस्य उपस्थित थे-

  1. श्री राधा रमण वर्मा (अध्यक्ष)
  2. श्रीमती मोनिका चौधरी(सचिव)
  3. श्रीमती अनुष्का त्रेहन (कोपाध्यक्ष)
  4. श्री गोपाल कृष्ण (सदस्य)
  5. श्री बेणु गोपाल (सदस्य)
  6. श्री मुरलीधर (सदस्य)

बैठक आरंभ होने से पहले सचिव ने सभी का स्वागत किया। इसके पश्चात 12 मई, 20 … को हुई पहली बैठक का कार्यवृत्त प्रस्तुत किया गया। इसकी सदस्यों के द्वारा सर्वसम्मति से संपुष्टि की गई।
कार्यकारिणी ने प्रस्तावित एवं पारित किया कि इस वर्ष विद्यालय परिसर में वनमहोत्सब के अवसर पर फलों और फूलों के छायादार वृक्ष बाहरी दीवार के साथ-साथ लगाए जाएँगे। सर्वसम्मति से निर्णय किया गया कि नगर और गाँव को जोड़ने वाली सड़क के दोनों ओर शीशम और नीम के 100 पौधे लगाएँ जाएँगे।
बैठक के अंत में अध्यक्ष महोदय ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
हस्ताक्षर (अध्यक्ष)

हस्ताक्षर (सचिव)

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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CBSE Class 11 Hindi रचना प्रेस विज्ञप्ति

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CBSE Class 11 Hindi Rachana प्रेस विज्ञप्ति

प्रेस विझ्ञात –

प्रश्न 1.
प्रेस विज्ञप्ति किसे कहते हैं?
उत्तर :
किसी संस्थान, सरकार या व्यक्ति द्वारा किसी विषय अथवा बैठक में जो निर्णय लिए जाते हैं। उन्हें जिस माध्यम से सर्व साधारण तक पहुँचाया जाता है, उसे प्रेस विज्ञप्ति कहते हैं। संक्षेप में प्रेस विज्ञाप्ति जन सामान्य तक सूचना संप्रेषित करने का माध्यम है। सरकार अपनी किसी भी सूचना को जन-जन तक पहुँचाने हेतु प्रेस विज्ञाप्ति का ही सहारा लेती है। यह माध्यम निर्णय में विलंब का कारण तथा उससे होने वाले लाभ के संबंध में भी जानकारी प्रदान करती है।

प्रश्न 2.
नगर निगम नई दिल्ली द्वारा कर्मचारियों के पारिश्रमिक में बढ़ोतरी के संबंध में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कीजिए।
उत्तर :

नगर निगम नई दिल्ली
प्रेस विज्ञप्ति

नगर निगम नई दिल्ली द्वारा अनुबंध आधार पर लगे कर्मचारियों के पारिश्रमिक में बढ़ोतरी।
नगर निगम ने नई दिल्ली ने यह निर्णंय लिया है कि नगर निगम नई दिल्ली के अंतर्गत अनुबंध कर्मचारियों के पारिश्रमिक में तत्काल प्रभाव से दो हज़ार रुपए प्रतिमास बढ़ोतरी की कर दी जाए।
गत वर्ष से इन कर्मचारियों द्वारा यह शिकायत की जा रही थी कि निगम द्वारा उन्नें बहुत कम पारिश्रमिक दिया जा रहा है जिससे वे हताश हो रहे थे। इसलिए इन कर्मचारियों की शिकायतों को ध्यान में रखते हुए निगम ने पारिश्रमिक में बढ़ोतरी की है। साथ ही यह विश्वास व्यक्त किया है कि अब कर्मचारी पूर्ण निष्ठा एवं ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे।

प्रश्न 3.
अखिल भारतीय पर्यावरण संरक्षण समिति द्वारा पर्यावरण को बचाने हेतु एक प्रेस विज्ञप्ति लिखिए।
उत्तर :

‘अखिल भारतीय पर्यावरण संरक्षण समिति’
प्रेस विज्ञप्ति

अखिल भारतीय पर्यावरण संरक्षण समिति द्वाारा यह निर्णय लिया गया है कि पर्यावरण को बचाने हेतु जन-जन को जागृत और प्रेरित होना अति आवश्यक है।
भारत सरकार के सहयोग से ‘पेड़ लगाओ पर्यावरण बचाओ’ का नारा जन-जन पहुचकर सार्थक हो। इसके लिए हम सभी भारतवासियों को एक-एक पेड़ अवश्य लगाना चाहिए।
समिति जन-जन से पर्यावरण संरक्षण की विनम्र अपील करती है कि इस आंदोलन में अपनी भागीदरी सुनिश्चित करे।

प्रश्न 4.
भारतीय खेल परिष्् नई दिल्ली द्वारा खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने हेतु राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय पदक विजेताओं के पुरस्कार वृद्धि संबंधी प्रेस विज्ञप्ति लिखिए।
उत्तर :

‘भारतीय खेल परिषद, नई दिल्ली’
प्रेस विज्ञप्ति

भारतीय खेल परिषद नई दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पदक विजेताओं की पुरस्कार राशि में वृद्धि।
भारतीय खेल परिषद नई दिल्ली ने निर्णय लिया है कि राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय पदक विजेताओं की पुरस्कार राशि में तत्काल प्रभाव से वृद्धि कर दी जाए। गत वर्ष से पदक विजेताओं द्वारा शिकायतें की जा रही थीं कि उन्हें मिलने वाली राशि बहुत कम है। जिससे अच्छे खिलाड़ी विमुख हो रहे थे।
खिलाड़ियों के सम्मान एवं भविष्य को ध्यान में रखते हुए परिषद ने पुरस्कार राशि में वृद्धि को मंजूरी दी है। इसके साथ यह विश्वास भी व्यक्त किया है कि इससे खिलाड़ियों को प्रेरणा मिलेगी साथ ही खिलाड़ी पदक जीतने के प्रति आकर्षित होंगे।

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CBSE Class 11 Hindi रचना परिपत्र

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CBSE Class 11 Hindi Rachana परिपत्र

परिपत्र –

प्रश्न 1.
परिपत्र से क्या आशय है?
उत्तर :
जब किसी सरकार, संस्थान अथवा कार्यालय द्वारा कोई पत्र एक साथ अनेक लोगों अथवा विभागों को बिना संबोधन के भेजा जाता है, उसे परिपत्र कहते हैं।

प्रश्न 2.
स्वास्थ्य मंत्रालय नई दिल्ली व्वारा कर्मचारियों के लिए सरकारी चिकित्सालयों में मुफ्त इलाज के संबंध में परिपत्र लिखिए।
उत्तर :
स्वास्थ्य मंत्रलय, नई दिल्ली।
पत्रांक: 13/13/स्वा॰20XX

नई दिल्ली, 13 मई 20XX

परिपत्र

विषयः कर्मचारियों के लिए सरकारी चिकित्सालयों में मुप्त इलाज स्वास्थ्य मंत्रलय नई दिल्ली द्वारा कर्मचारियों की सुविधा के लिए यह निर्णय लिया गया है कि कर्मचारियों को देश के सरकारी चिकित्सालयों में मुज्त इलाज की सुविधा उपलब्ध की जाएगी। सभी कर्मचारी अपने निकटस्य चिकित्सालय से चिकित्सा संबंधी सुविधा का लाभ उठा सकते हैं। यह निर्णय तत्काल प्रभाव से लागू होगा।
डॉ० सुभाष भारती
सचिव, स्वास्थ्य मंत्रालय
भारत सरकार, नई दिल्ली।

प्रश्न 3.
अखिल भारतीय साहित्य, शिक्षा एवं संस्कृति परिषव के महानिदेशक की तरफ़ से कार्यालयों में मोबाइल फ़ोन पर होने वाले व्यय के लिए निर्धारित सीमा पर परिपत्र लिखिए।
उत्तर :
अखिल भारतीय साहित्य, शिक्षा एवं संस्कृति परिषद
महानिदेशालय
पत्र क्रमांक: 11 / 19 / अ०भा० 20XX

नई दिल्ली, 11 जनवरी 20XX

विषय: मोबाइल फ़ोन पर होने वाले व्यय हेतु निर्धारित सीमा।
महानिदेशालय ने उपर्युक्त विषय के संदर्भ में 10 दिसंबर, 20XX को एक परिपत्र जारी किया था। जिसमें मोबाइल फ़ोन पर होने वाले व्यय की सीमा चार हज़ार रुपए प्रतिमास निर्धारित की गई थी।
अखिल भारतीय साहित्य, शिक्षा एवं संस्कृति परिषद द्वारा इस संदर्भ में पुनर्विचार करते हुए संशोधन किया गया है। परिपद द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि सभी क्षेत्रीय कार्यालयों के लिए यह सीमा पाँच हज़ार रुपए प्रतिमास होगी। उपर्युक्त परिपत्र के अन्य प्रावधान पूर्ववत ही रहेंगे। यह निर्णय तत्काल प्रभाव से लागू किया जाएगा।

वीर विक्रमजीत
निदेशक
अखिल भारतीय साहित्य शिक्षा एवं संस्कृति परिषद, नई दिल्ली।

प्रश्न 4.
केंद्रीय शिक्षा बोर्ड नई दिल्ली के महानिदेशक की तरफ़ से अगामी परीक्षाएँ नकल मुक्त करवाने हेतु परिपत्र लिखिए। उत्तर :
केंद्रीय शिक्षा बोर्ड
निदेशालय
पत्रांक: 15 / 05 / के०शि॰20XX

नई दिल्ली, 7 दिसंबर 20XX

परिपत्र

विषय: अगामी परीक्षाएँ नकल रहित करवाने हेतु
केंद्रीय शिक्षा बोर्ड नई दिल्ली के महानिदेशक द्वारा अगामी परीक्षाओं के संबंध में यह निर्णय लिया गया है कि सभी परीक्षाएँ नकल रहित करवाई जाएँगी। किसी भी तरह की गड़बड़ी के लिए संबंधित के खिलाफ़ कठोर कार्यवाही की जाएगी। परीक्षा केंद्र के चारों तरफ़ धारा 144 लागू की जाएगी। यह निर्णय तत्काल प्रभाव से लागू हो जाएगा।
दामोदर राव
महानिदेशक
केंद्रीय शिक्षा बोर, नई दिल्ली।

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CBSE Class 11 Hindi रचना शब्दकोश परिचय

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CBSE Class 11 Hindi Rachana शब्दकोश परिचय

प्रश्न 1.
दिए गए कथनों को पूरा कीजिए-
(क) शब्दकोश न केवल शब्दों के अर्थ बताता है बल्कि
(ग) शब्दकोश का सबसे बड़ा लाथ यह है कि
उत्तर :
(क) शब्दकोश न केवल शब्दों के अर्थ बताता है बल्कि सभी शब्दों की विस्तृत जानकारी भी प्रदान करता है। उनकी उत्पत्ति का भी ज्ञान देता है।
(ख) शब्दकोश में शब्दों का क्रम हिंदी वर्णमाला के अक्षरों के क्रम के अनुसार ही होता है।
(ग) शब्दकोश का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें किसी भी शब्द को सरलता से ढूँढ़कर उसके विषय में पूरी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए शब्दों को शब्दकोशीय क्रम में लिखिए-
परीक्षण, परिक्रमण, परिक्रम, विश्वामित्र, हिमाश्रया, दृदयंगम, ग्वालिन, घंटा, योगांत, घटक, इच्छित, इक्षु, अंतः, अंत, अकंपित, उदाहन, उद्योग, जिज्ञासु।
उत्तर :
इन शब्दों को शब्दकोशीय क्रम में इस प्रकार लिखा जाएगा-अंत:, अंत, अकंपित, इक्षु, इच्छित, उदाहन, उद्योग, ग्वालिन, घंटा, घटक, जिज्ञासु, परिक्रम, परिक्रमण, परीक्षण, योगांत, विश्वामित्र, हिमाश्रया, हदययंगम।

प्रश्न 3.
शब्दकोश के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
शब्दकोश शब्दों का खजाना होता है। इसमें एक भाषा-भाषी समुदाय में प्रयोग होने वाले शब्दों को एक जगह इकट्ठा प्रस्तुत किया जाता है। शब्दकोश में शब्दों की व्युत्पत्ति, स्रोत, लिंग के साथ-साथ उसके शब्द रूपों और विभिन्न संदर्भपरक अर्थों की जानकारी होती है। हिंदी शब्दकोश में शब्द हिंदी वर्णमाला के अनुसार दिए होते हैं। किंतु ‘अं से शुरू होने वाले शब्दों को सबसे पहले स्थान दिया गया है। इसके साथ-साथ हिंदी वर्णमाला के अंत में आने वाले संयुक्त व्यंजनों को शब्दकोश में उन व्यंजनों के साथ रखा जाता है जिनसे वे मिलकर बने होते हैं। जैसे – क् + ष् = क्ष, त् + र् – त्रा इसके अतिरिक्त शब्दकोश में स्वर रहित व्यंजनों से प्रारंभ होने वाले शब्द उस व्यंजन में प्रयोग होने वाले सभी स्वरों के बाद आते हैं। जैसे- ‘क्या’ शब्द ‘कौस्तुभ’ के बाद आएगा। शब्दकोश का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें किसी भी प्रकार के शब्द की विस्तृत जानकारी बड़ी सरलता से प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित का अर्थ स्पष्ट कीजिए-
संदर्भ ग्रंथ, विश्व ज्ञानकोश, साहित्यकोश, चरित्रकोश।
उत्तर :
संदर्भ ग्रंध-जिस प्रकार शब्दों के अर्थ शब्दकोश में दिए होते हैं उसी प्रकार संदर्भ ग्रंथ में मानव द्वारा संचित ज्ञान को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जाता है। संदर्भ ग्रंथ गागर में सागर का कार्य करते हैं। संदर्ध ग्रंधों से किसी भी विषय की जानकारी तुरंत प्राप्त की जा सकती है। संदर्भ ग्रंधों में जानकारियों का क्रम भी ‘शब्दकोश’ के नियमों के अनुसार ही होता है।

विश्व ज्ञान कोश-विश्व ज्ञान कोश में पूरे विश्व की जानकारियों का भंडार होता है। मानव ज्ञान से संबधित सभी सूचनाएँ और जानकारियाँ विश्व ज्ञान कोश से सहज ही प्राप्त की जा सकती हैं। इसमें मानव द्वारा संचित प्रत्येक जानकारी एवं सूचना संक्षिप्त रूप में होती है। विश्व ज्ञान कोश में भी शब्दकोश के नियमों को ही अपनाया जाता है।

साहित्य कोश-साहित्य कोश में साहित्यिक विषयों से संबंधित जानकारियाँ होती हैं इसमें समस्त साहित्यिक रचनाओं के साथ-साथ उनके लेखनों आदि के नाम क्रम में लिखे होते हैं।

चरित्र कोश-चरित्र कोश में साहित्य, संस्कृति, विज्ञान आदि क्षेत्रों के महान व्यक्तियों के व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी होती है। इसमें विचारकों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों आदि के संक्षिप्त परिचय और उपलब्धियों को सिलसिलेवार दिया होता है। चरित्र कोश को ‘व्यक्ति कोश’ भी कहते हैं तथा इसमें भी जानकारियों का क्रम शब्दकोश के अनुसार ही होता है।

प्रश्न 5.
शब्दकोश में निम्नलिखित संक्षेप चिह्नों का क्या अर्थ होता है?
स्त्री०, पु०, सर्व॰, अ॰ क्रि॰, स० क्रि०, प्रे० क्रि०, बहु०, वि०, उप०, प्र०, अ०, सं० हिं०, अं०, फा०, साहि०, ज्यो०, व्या०। उत्तर :
शब्दकोश में इन संक्षेप चिह्नों को निम्नलिखित ढंग से पढ़ा जाना चाहिए-

CBSE Class 11 Hindi रचना शब्दकोश परिचय 1

प्रश्न 6.
संदर्भ-ग्रंध के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके कितने प्रकार हैं?
उत्तर :
जिस प्रकार ‘शब्दकोश’ में शब्दों के अर्थ दिए होते हैं उसी प्रकार ‘संदर्भ-ग्रंथों’ में मनुष्य द्वारा संचित ज्ञान को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जाता है। संदर्भ ग्रंथ अनेक प्रकार के होते हैं। संदर्भ ग्रंध गागर में सागर के समान हैं। जब भी किसी विषय पर तुरंत जानकारी की आवश्यकता होती है। ये ग्रंथ हमारे काम आते हैं। इन ग्रंथों में जानकारियों का क्रमानुसार संकलन शब्दकोश के नियमों के अनुसार ही होता है। इनके निम्नलिखित प्रकार हो सकते हैं –

  1. विश्व ज्ञान कोश-यह संदर्भ ग्रंथ का सबसे विराट रूप है।
  2. साहित्य कोश-इस कोश में साहित्यिक विषयों से संबंधित जानकारियाँ संकलित होती हैं।
  3. चरित्रकोश-इस कोश में साहित्य, संस्कृति, विज्ञान आदि क्षेत्रों के महान व्यक्तियों के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में जानकारी संकलित होती है।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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CBSE Class 11 Hindi रचना जनसंचार माध्यम और पत्रकारिता के विविध आयाम

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CBSE Class 11 Hindi Rachana जनसंचार माध्यम और पत्रकारिता के विविध आयाम

लघूत्तात्मक प्रश्न –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
मुद्रण माध्यम के अंतर्गत कौन-कौन से माध्यम आते हैं?
उत्तर :
मुद्रण माध्यम के अंतर्गत समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि आते हैं।

प्रश्न 2.
फ्लैश या ब्रेकिंग न्यूज्ञ का क्या आशय है?
उत्तर :
जब कोई विशेष समाचार सबसे पहले दर्शकों तक पहुँचाया जाता है तो उसे फ्लैश अथवा ब्रेकिंग न्यूज़ कहते हैं।

प्रश्न 3.
ड्राई एंकर क्या है?
उत्तर :
ड्राई एंकर वह होता है जो समाचार के दृश्य नज़र नहीं आने तक दर्शंकों को रिपोर्टर से मिली जानकारी के आधार पर समाचार से संबंधित सूचना देता है।

प्रश्न 4.
फोन-इन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
एंकर का घटनास्थल पर उपस्थित रिपोर्टर से फ़ोन के माध्यम से घटित घटनाओं की जानकारी दर्शकों तक पहुँचाना फ़ोन-इन कहलाता है।

प्रश्न 5.
लाइव से क्या आशय है?
उत्तर :
किसी समाचार का घटनास्थल से दूरदर्शन पर सीधा प्रसारण लाइव कहलाता है।

प्रश्न 6.
जनसंचार के प्रमुख माध्यम कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
जनसंचार के प्रमुख माध्यम समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, रेडियो, दूरदर्शन तथा इंटरनेट हैं।

प्रश्न 7.
इंटरनेट पर समाचार से संबंधित क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं?
उत्तर :
इंटरनेट पर समाचार पढ़ने, सुनने और देखने की तीनों सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

प्रश्न 8.
मुद्रित माध्यमों की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं ?
उत्तर :
मुद्रित माध्यमों को सुरक्षित रख सकते हैं। इन्हें जब चाहे और जैसे चाहे पढ़ा जा सकता है। इनसे लिखित भाषा का विस्तार होता है। इसमें गूढ़ और गंभीर विषयों पर लिखा जा सकता है।

प्रश्न 9.
रेडियो कैसा जनसंचार माध्यम है ? इसमें किसका मेल होता है?
उत्तर :
रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें ध्वनि, स्वर और शब्दों का मेल होता है।

प्रश्न 10.
रेडियो समाचार-लेखन के लिए आवश्यक बिंदु क्या हैं?
उत्तर :
रेडियो समाचार की समाचार कॉपी साफ़-सुथरी और टंकित होनी चाहिए।

प्रश्न 11.
दूरदर्शन जनसंचार का कैसा माध्यम है ?
उत्तर :
दूरदर्शन जनसंचार माध्यमों में देखने और सुनने का माध्यम है।

प्रश्न 12.
रेडियो और दूरदर्शन समाचार की भाषा-शैली कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर :
भाषा अत्यंत सरल होनी चाहिए। वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट हों। भाषा प्रवाहमयी तथा आ्रामक शब्दों से रहित हो। एक वाक्य में एक बात कही जाए। मुहावरों, सामाजिक भाषा, अप्रचलित शब्दों, आलंकारिक शब्दावली आदि प्रयोगों से बचना चाहिए।

प्रश्न 13.
इंटरनेट पत्रकारिता को अन्य किन नामों से जाना जाता है ?
उत्तर :
इंटरनेट पत्रकारिता को ऑन लाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता तथा वेब पत्रकारिता के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 14.
इंटरनेट पत्रकारिता क्या हैं?
उत्तर : इंटरनेट पर समाचार-पत्रों को प्रकाशित करना तथा समाचारों का आदान-प्रदान करना इंटरनेट पत्रकारिता कहलाता है।

प्रश्न 15.
इंटरनेट पत्रकारिता के कितने दौर हुए हैं ?
उत्तर :
इंटरनेट पत्रकारिता के तीन दौर हुए हैं। पहला दौर 1982 से 1992 तक, दूसरा दौर 1993 से 2001 तक और तीसरा और 2002 से शुरू हुआ है।

प्रश्न 16.
भारत में इंटरनेट का आरंभ कब हुआ था ?
उत्तर :
भारत में इंटरनेट का आरंभ सन 1993 में हुआ था।

प्रश्न 17.
वेबसाइट पर विशुद्ध इंटरनेट पत्रकारिता आरंभ करने का श्रेय भारत में किसे दिया जाता है ?
उत्तर :
भारत में इंटरनेट पर विशुद्ध पत्रकारिता आरंभ करने का श्रेय ‘तहलका डॉट काम’ को दिया जाता है।

प्रश्न 18.
इंटरनेट पत्रकारिता आजकल बहुत लोकप्रिय क्यों है ?
उत्तर :
इंटरनेट पत्रकारिता से न केवल समाचारों का संत्रेषण, पुष्टि, सत्यापन होता है बल्कि समाचारों के बैकग्राउंडर वैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है। इसलिए यह आजकल बहुत लोकप्रिय है ।

प्रश्न 19.
पत्रकारीय लेखन में किस बात का सबसे अधिक ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन आम लोगों को ध्यान में रखकर सीधी-सादी आम बोलचाल की भाषा में होना चाहिए।

प्रश्न 20.
उलटा पिरामिड-शैली क्या है ?
उत्तर :
इसमें सबसे पहले महत्वपूर्ण तथ्य तथा जानकारियाँ दी जाती हैं तथा बाद में कम महत्वपूर्ण बातें देकर समाप्त कर दिया जाता है। इसकी सूरत उलटे पिरामिड जैसी होने के कारण इसे उलटा पिरामिड-शैली कहते हैं।

प्रश्न 21.
पूर्णकालिक पत्रकार किसे कहते हैं?
उत्तर :
पूर्णकालिक पत्रकार किसी समाचार-संगठन में काम करने वाला नियमित वेतन-भोगी कर्मचारी होता है।

प्रश्न 22.
अंशकालिक पत्रकार कौन होता है ?
उत्तर :
अंशकालिक पत्रकार वह होता है जो किसी समाचार-संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय के आधार पर काम करता है।

प्रश्न 23.
फ्रीलांसर पत्रकार से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
फ्रीलांसर पत्रकार किसी समाचार-पत्र से संबंधित नहीं होता। वह समाचार-पत्रों में लेख भुगतान के आधार पर लिखता है।

प्रश्न 24.
समाचार-लेखन के कितने ककार हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर :
समाचार-लेखन के छह ककार हैं। ये हैं-क्या, कौन, कब, कहाँ, कैसे और क्यों।

प्रश्न 25.
विचारपरक लेखन में क्या-क्या आता है?
उत्तर :
विचारपरक लेखन में लेख, टिप्पणियाँ, संपादकीय तथा स्तंभ लेखन आता है।

प्रश्न 26.
उलटा पिरामिड में समाचार का बाँचा कैसा होता है?
उत्तर :
इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य अथवा सूचना को सबसे पहले लिखा जाता है और इसके बाद घटते हुए महत्वक्रम में लिखा जाता है।

प्रश्न 27.
‘क्लाइमेक्स’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
समाचार के अंतर्गत किसी घटना का नवीनतम और महत्वपूर्ण पक्ष क्लाइमेक्स कहलाता है।

प्रश्न 28.
फ़ीचर किसे कहते हैं ?
उत्तर :
किसी सुव्यवस्थित, सुजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन को फ़ीचर कहते हैं, जिसके माध्यम से सूचनाओं के साथ-साथ मनोरंजन पर भी ध्यान दिया जाता है।

प्रश्न 29.
विशेष रिपोर्ट क्या होती है?
उत्तर :
किसी घटना, समस्या या मुद्दे की गहन छानबीन और विश्लेषण को विशेष रिपोर्ट कहते हैं।

प्रश्न 30.
संपादकीय क्या है?
उत्तर :
वह लेख जिसमें किसी मुद्दे के प्रति समाचार-पत्र की अपनी राय प्रकट होती है, संपादकीय कहलाता है।

प्रश्न 31.
विशेष लेखन क्या है ?
उत्तर :
किसी विशेष विषय पर सामान्य लेखन से डटकर लिखा गया लेख विशेष लेखन कहलाता है।

प्रश्न 32.
बीट रिपोर्टिंग क्या होती है?
उत्तर :
जो संवाददाता केवल अपने क्षेत्र विशेष से संबंधित रिपोटों को भेजता है, वह बीट रिपोटिंग कहलाती है।

प्रश्न 33.
व्यापार-कारोबार की रिपोर्टिंग की भाषा कैसी होनी चाहिए?
उत्तर :
व्यापार-कारोबार से संबंधित रिपोटिंग में व्यापार जगत में प्रचलित शब्दावली का प्रयोग होना चाहिए।

प्रश्न 34.
समाचार-पत्रों में विशेष लेखन के क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
समाचार-पत्रों में विशेष लेखन के क्षेत्र व्यापार जगत, बेल, विज्ञान, कृषि, मनोरंजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, अपराध, कानून आदि हैं।

प्रश्न 35.
समाचार-पत्रों के लिए सूचनाएँ प्राप्त करने के स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
समाचार-पत्रों के लिए सूचनाएँ विभिन्न मंत्रालयों, प्रेस कफफ्रेंसों, विज्ञाप्तियों, साक्षात्कारों, सर्वे, जाँच-समितियों, संबंधित विभागों, इंटरनेट, विशिष्ट व्यक्तियों, संस्थाओं आदि से प्राप्त की जाती हैं।

प्रश्न 36.
भारत में विज्ञान के क्षेत्र में कौन-सी संस्थाएँ कार्य कर रही हैं ?
उत्तर :
भारत में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कार्पोरशशन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, भाभा परमाणु संस्थान, राष्ट्रीय भौतिकी शोध संस्थान आदि संस्थाएँ विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रही हैं।

प्रश्न 37.
पर्यावरण से संबंधित पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
पर्यावरण एबस्ट्रेक्ट, डाउन टू अर्थ, नेशनल ज्योग्रॉफ़ी।

प्रश्न 38.
खोजी पत्रकारिता से क्या आशय है?
उत्तर :
खोजी पत्रकारिता में पत्रकार मौलिक शोध और छानबीन के द्वारा ऐसी सूचनाएँ तथा तथ्य उजागर करता है जो सार्वजनिक रूप से पहले उपलब्ध नहीं थे।

प्रश्न 39.
भारत में पहला छापाखाना कहाँ और कब खुला था?
उत्तर :
भारत में पहला छापाखाना गोवा में सन 1556 ई० में खुला था।

प्रश्न 40.
पत्रकारीय लेखन में पत्रकार को किन दो बातों से बचना चाहिए।
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन में पत्रकार को कभी भी लंबे-लंबे वाक्य नहीं लिखने चाहिए। उसे किसी भी अवस्था में अनावश्यक विशेषणों और उपमाओं का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 41.
मुद्रण का प्रारंभ कहाँ से माना जाता है ?
उत्तर :
मुद्रण का प्रारंभ चीन से माना जाता है।

प्रश्न 42.
वर्तमान छापेखाने के आविष्कार का श्रेय किसे है ?
उत्तर :
वर्तमान छापेखाने का श्रेय जर्मनी के गुटेनबर्ग को है।

प्रश्न 43.
जनसंचार का मुद्रित माध्यम किनके लिए किसी काम का नहीं है ?
उत्तर :
निरक्षरों के लिए जनसंचार का मुद्रित माध्यम किसी काम का नहीं है।

प्रश्न 44.
साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में कितनी बार प्रकाशित होती है ?
उत्तर :
साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में एक बार प्रकाशित होती है।

प्रश्न 45.
रेडियो में क्या सुविधा नहीं है?
उत्तर :
रेडियो में अखबार की तरह पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं है।

प्रश्न 46.
आजकल टेलीप्रिंटर पर एक सेकेंड में कितने शब्द भेजे जा सकते हैं?
उत्तर :
आजकल टेलीप्रिंटर पर एक सेकेंड में 56 किलोबाइट अर्थात लगभग 70 हज़ार शब्द भेजे जा सकते हैं।

प्रश्न 47.
नई वेब भाषा को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
नई वेब भाषा को ‘एच.टी.एम.एल.’ अर्थात हाइपर टेक्स्ट माक्ड्डप लैंग्वेज कहते हैं।

प्रश्न 48.
भारत की प्रमुख वेबसाइटें कौन-सी हैं ?
उत्तर :
भारत की प्रमुख वेबसाइटें रीडिफ डॉटकॉम, इंडिया इंफोलाइन, सीफी, हिंदू, तहलका डॉटकॉम आदि हैं।

प्रश्न 49.
हिंदी की सर्वश्रेष्ठ इंटरनेट पत्रकारिता की साइट कौन-सी है ?
उत्तर :
पत्रकारिता के लिहाज़ से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ इंटरनेट साइट बी.बी.सी. है।

प्रश्न 50.
इंटरनेट पर उपलब्ध हिंदी का वह कौन-सा समाचार-पत्र है जो प्रिंट रूप में नहीं है?
उत्तर :
‘प्रभासाक्षी’ नामक समाचार-पत्र केवल इंटरनेट पर उपलब्ध है।

प्रश्न 51.
उलटा पिरामिड में समाचार का ढाँचा कैसा होता है?
उत्तर :
उलटे पिरामिड ढाँचे में सबसे पहले इंट्रो या मुखड़ा, फिर बाडी और अंत में समापन होता है।

प्रश्न 52.
उलटा पिरामिड-शैली का प्रयोग कब से शुरू हुआ था?
उत्तर :
उलटा पिरामिड-शैली का प्रयोग उन्नीसवीं सदी के मध्य से शुरू हुआ था।

प्रश्न 53.
समाचार-पत्रों में छपने वाले फ़ीचरों की शब्द-संख्या कितनी होती है ?
उत्तर :
समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में छपने वाले फ़ीचरों की शब्द-संख्या 250 शब्दों से लेकर 2000 होती है।

प्रश्न 54.
एक अच्छे और रोचक फ़ीचर के साथ क्या होना आवश्यक है ?
उत्तर :
एक अच्छे और रोचक फ़ीचर के साथ फोटो, रेखांकन, ग्राफिक्स आदि का होना आवश्यक है।

प्रश्न 55.
समाचार-पत्र कैसा माध्यम है ?
उत्तर :
समाचार-पत्र केवल छपे हुए शब्दों का माध्यम है।

प्रश्न 56.
जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना माध्यम कौन-सा है ?
उत्तर :
मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना माध्यम है।

प्रश्न 57.
यूरोप में छापेखाने की महत्वपूर्ण भूमिका कब रही ?
उत्तर :
यूरोप में पुनर्जागरण के ‘रेनसा’ के आरंभ में छापेखाने की भूमिका महत्वपूर्ण रही थी।

प्रश्न 58.
मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
उत्तर :
मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता उसमें छपे हुए शब्दों के स्थायीपन की है। इन्हें जब जैसे चाहे पढ़ सकते हैं।

प्रश्न 59.
मुद्रित माध्यम के अंतर्गत समाचार-पत्र में क्या कमियाँ हैं?
उत्तर :
इसे निरक्षर नहीं पढ़ सकते। इसमें तुरंत घटी हुई घटनाएँ प्रस्तुत नहीं की जा सकर्तीं।

प्रश्न 60.
रेडियो प्रसारण की क्या कमियाँ हैं?
उत्तर :
रेडियो पर प्रसारण के समय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। कार्यक्रम आरंभ से सुनना पड़ता है। कार्यक्रम के दौरान कहीं जा नहीं सकते। उसी कार्यक्रम को फिर से नहीं सुन सकते।

प्रश्न 61.
समाचार-पत्रों की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर :
समाचार-पत्र जनता को समाचार देकर उन्दें जागरूक, शिक्षित और सचेत करते हैं। इनसे पाठकों का मनोरंजन भी होता है। ये लोकतंत्र के पहरेदार माने जाते हैं। ये जनमत जगाने का कार्य भी करते हैं।

प्रश्न 62.
पत्रकारीय लेखन का संबंध किनसे होता है ?
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन का संबंध देश-विदेश में घटित विभिन्न घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों से होता है।

प्रश्न 63.
संपादक के नाम पत्र कौन लिखता है ?
उत्तर :
संपादक के नाम पत्र समाचार-पत्र को पढ़ने वाले पाठक लिखते हैं। वे इन पत्रों में विभिन्न मुद्दों और समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 64.
समाचार-पत्र में साक्षात्कार का क्या महत्व है ?
उत्तर :
समाचार-पत्र में साक्षात्कार का बहुत महत्व है। साक्षात्कार के माध्यम से ही पत्रकार अपने समाचार-पत्र के लिए समाचार, फीचर, लेख, विशेष रिपोर्ट आदि तैयार कर सकता है।

प्रश्न 65.
स्तंभ-लेखन क्या है ?
उत्तर :
स्तंभ लेखन विचारपरक लेखन होता है। स्तंभकार समसामयिक विषयों पर नियमित रूप से अपने समाचार-पत्र के लिए लिखते हैं।

प्रश्न 66.
बीट किसे कहते हैं?
उत्तर :
समाचार-पत्र में राजनीति, आर्थिक, खेल, अपराध, फ़िल्म, कृषि आदि से संबंधित समाचार होते हैं। जो पत्रकार जिस क्षेत्र से संबंधित समाचार लिखता है, वह उसकी बीट होती है।

प्रश्न 67.
‘डेस्क’ किसे कहते हैं?
उत्तर :
समाचार-पत्रों में किसी विशेष लेखन के लिए कार्य करने वाले पत्रकारों के समूह के निश्चित समय को डेस्क कहते हैं, जैसे खेल डेस्क।

प्रश्न 68.
व्यापार से जुड़ी खबरों की शब्दावली कैसी होती है ?
उत्तर :
व्यापार से जुड़ी खबरों में व्यापार जगत से संबंधित तेजड़िए, घाटा, गिरावट, आवक आदि शब्द होते हैं।

प्रश्न 69.
कारोबारी जगत की खबरें किस शैली में लिखी जाती हैं?
उत्तर :
कारोबारी जगत की खबरें उलटा पिरामिड-शैली में लिखी जाती हैं।

प्रश्न 70.
भारत के लोकप्रिय हिंदी दैनिक समाचार-पत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर :
दैनिक हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, दैनिक ट्रिब्यून, पंजाब केसरी, नई दुनिया, नवभारत टाइम्स आदि।

प्रश्न 71.
बीट से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
समाचार-पत्र या अन्य समाचार माध्यमों द्वारा अपने संवाददाता को किसी क्षेत्र या विषय यानी बीट की दैनिक रिपोटिंग की जिम्मेदारी दी जाती है। यह एक तरह के रिपोर्टर का कार्यक्षेत्र निश्चित करना है।

प्रश्न 72.
सीधा प्रसारण (लाइव) कैसा होता है ?
उत्तर :
रेडियो और टेलीविजन में जब किसी घटना या कार्यक्रम को सीधा होते हुए दिखाया या सुनाया जाता है तो उस प्रसारण को सीधा प्रसारण (लाइव) कहते हैं। रेडियो में इसे आँखोंदेखा हाल भी कहते हैं जबकि टेलीविज़न के परदे पर सीधे प्रसारण के समय लाइव लिख दिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि उस समय आप जो भी देख रहे हैं, वह बिना किसी संपादकीय काट-छाँट के सीधे आप तक पहुँच रहा है।

प्रश्न 73.
स्टिग आपरेशन किसे कहते हैं?
उत्तर :
जब किसी टेलीविज़न चैनल का पत्रकार छुपे टेलीविज़न कैमरे के ज़रिए किसी गैर-कानूनी, अवैध और असामाजिक गतिविधियों को फ़िल्माता है और फिर उसे अपने चैनल पर दिखाता है तो इस स्टिग ऑपरेशन कहते हैं। कई बार चैनल ऐसे आपरेशनों को गोपनीय कोड दे देते हैं। जैसे आपरेशन दुयोंधन या चक्रव्यूह। हाल के वर्षों में समाचार चैनलों पर सरकारी कार्यालयों आदि में भ्रष्टाचार के खुलासे के लिए स्टिग आपरेशनों के प्रयोग की प्रवृत्ति बढ़ी है।

प्रश्न 74.
सूचनाओं के विभिन्न स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर :

  1. मंत्रालय के सूत्र
  2. प्रेस कॉफ्रेंस और विज्ञप्तियाँ
  3. साक्षात्कार
  4. सर्वे
  5. जाँच समितियों की रिपोर्ट्स
  6. क्षेत्र विशेष में सक्रिय संस्थाएँ और व्यक्ति
  7. संबंधित विभागों और संगठनों से जुड़े व्यक्ति
  8. इंटरनेट और दूसरे संचार के माध्यम
  9. स्थायी अध्ययन प्रक्रिया

प्रश्न 75.
विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रही भारत की पाँच संस्थाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :

  1. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (ICAR)
  2. मिनरल्स एंड मेटल्स कार्पोरेशन (MMTC)
  3. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)
  4. नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कार्पोरशश (NRDC)
  5. केंद्रीय इलेक्ट्रोंनिक्स लिमिटेड (CEL)

प्रश्न 76.
पर्यांवरण पर छपने वाली पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :

  1. पर्यावरण एबस्ट्रेक्ट
  2. एन्वायरो न्यूंज
  3. डाउन टू अर्थ
  4. जू प्रिंट
  5. सेंकुचरी
  6. नेशनल ज्योग्रॉफ़ी

प्रश्न 77.
व्यावसायिक शिक्षा के दस विभिन्न संस्थानों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  1. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान
  2. भारतीय प्रबंधन संस्थान
  3. भारतीय विज्ञान संस्थान
  4. भारतीय सूचना प्रौद्योगिक एवं प्रबंधन संस्थान
  5. भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान
  6. राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान
  7. मनिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलोजी
  8. राष्ट्रीय फ़ैशन टेक्नॉलोजी संस्थान
  9. राष्ट्रीय डिफँस अकादमी
  10. अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान

प्रश्न 78.
अपडेटिंग से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
विभिन्न वेबसाइटों पर उपलब्ध सामग्री को समय-समय पर संशोधित और परिवर्धित किया जाता है। इसे ही अपडेटिंग कहते हैं।

प्रश्न 79.
ऑंडियंस किसे कहते हैं?
उत्तर :
जनसंचार माध्यमों के साथ जुड़ा एक विशेष शब्द, जिसका प्रयोग जनसंचार माध्यमों के दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों के लिए सामूहिक रूप से होता है।

प्रश्न 80.
समाचार-पत्रों में ऑप-एड क्या होता है ?
उत्तर :
यह समाचार-पत्रों में संपादकीय पृष्ठ के सामने प्रकाशित होने वाला वह पन्ना है जिसमें विश्लेषण, फ़ीचर, स्तंभ, साक्षात्कार, विचारपूर्ण टिप्पणियाँ आदि प्रकाशित की जाती हैं। हिंदी के बहुत कम समाचार-पत्रों में ऑप-एड पृष्ठ प्रकाशित होता है, लेकिन अंग्रेज़ी के हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबारों में ऑप-एड पृष्ठ देखा जा सकता है।

प्रश्न 81.
डेडलाइन किसे कहते हैं ?
उत्तर :
किसी समाचार को प्रकाशित या प्रसारित करने के लिए उसके समाचार माध्यमों तक पहुँचने की आखिरी समय-सीमा को डेडलाइन कहते हैं। अगर कोई समाचार डेडलाइन निकलने के बाद मिलता है, तो आमतौर पर उसके प्रकाशित या प्रसारित होने की संभावना कम हो जाती है।

प्रश्न 82.
न्यूज़पेग क्या होता है ?
उत्तर :
न्यूज्रपेग का अर्थ है ‘किसी मुद्दे पर लिखे जा रहे लेख या फ़ीचर में उस ताज़ा घटना का उल्लेख, जिसके कारण वह मुद्दा चर्चा में आ गया है’। जैसे अगर आप माध्यमिक बोर्ड की परीक्षाओं में सरकारी स्कूलों के बेहतर हो रहे प्रदर्शन पर एक रिपोर्ट लिख रहे हैं तो उसका न्यूज़पेग सीबीएसई का ताज़ा परीक्षा परिणाम होगा। इसी तरह शहर में महिलाओं के खिलाफ़ बढ़ रहे अपराध पर फ़ीचर का न्यूज़पेग सबसे ताज़ी वह घटना होगी जिसमें किसी महिला के खिलाफ़ अपराध हुआ हो।

प्रश्न 83.
‘पीत पत्रकारिता’ किसे कहते हैं?
उत्तर :
इस शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल उन्नीसर्वी सदी के उत्तराद्ध में अमेरिका में कुछ प्रमुख समाचार-पत्रों के बीच पाठकों को आकर्षित करने के लिए छिड़े संघर्ष के लिए किया गया था। उस समय के प्रमुख समाचारों ने पाठकों को लुभाने के लिए झूठी अफ़वाहों, व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोपें, प्रेम-संबंधों, भंडाफोड़ और फ़िल्मी गपशप को समाचार की तरह प्रकाशित किया। उसमें सनसनी फैलाने का तत्व अहम था।

प्रश्न 84.
‘पेज श्री पत्रकारिता’ कैसी पत्रकारिता है ?
उत्तर :
पेज थ्री पत्रकारिता का तात्पर्य ऐसी पत्रकारिता से है जिसमें फ़ैशन, अमीरों की पार्टियों, महफ़िलों और जाने-माने लोगों के निजी जीवन के बारे में बताया जाता है। ऐसे समाचार आमतौर पर समाचार-पत्रों के पृष्ठ तीन पर प्रकाशित होते रहे हैं, इसलिए इसे ‘पेज थ्री पत्रकारिता’ कहते हैं। हालाँकि अब यह ज़ूरी नहीं है कि यह पृष्ठ तीन पर ही प्रकाशित होती हो लेकिन इस पत्रकारिता के तहत अब भी ज़ोर उन्हीं विषयों पर होता है।

प्रश्न 85.
‘फ्रीक्वेंसी मॉँडयूलेशन’ तकनीक क्या है?
उत्तर :
यह रेडियो प्रसारण की एक विशेष तकनीक है जिसमें फ्रीक्वेंसी को मॉइ्यूलेट किया जाता है। रेडियो का प्रसारण दो तकनीकों के ज़रिए होता है जिसमें एक तकनीक एमप्लीच्यूड मॉइयूलेशन (ए,एम.) है और दूसरा फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेश (एफ.एम.)। एफ.एम. तकनीक अपेक्षाकृत नई है और इसकी प्रसारण की गुणवत्ता बहुत अच्छी मानी जाती है। लेकिन ए.एम. रेडियो की तुलना में एफ.एम. के प्रसारण का दायरा सीमित होता है।

प्रश्न 86.
मानव सभ्यता के विकास में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका किसकी रही है?
उत्तर :
मानव सभ्यता के विकास में की सबसे महत्तवपूर्ण भूमिका संचार की रही है।

प्रश्न 87.
संचार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
संचार दो अथवा दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य सूचनाओं, विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान है।

प्रश्न 88.
संचार किसकी निशानी है?
उत्तर :
संचार जीवन की निशानी है।

प्रश्न 89.
छोटा बच्चा कैसे संचार करता है?
उत्तर :
छोटा बच्चा रोकर अथवा चिल्लाकर संचार करता है।

प्रश्न 90.
संचार के माध्यमों की खोज किसलिए की गई?
उत्तर :
संचार के माध्यमों को खोज संदेशों के आदान-प्रदान में लगने वाले समय में बचत करने के लिए की गई थी।

प्रश्न 91.
संचार और जनसंचार के प्रमुख माध्यम कौन-से हैं?
उत्तर :
टेलीफ़ोन, इंटरनेट, फ़ैक्स, समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविज्जन, सिनेमा आदि संचार और जनसंचार के प्रमुख माध्यम हैं।

प्रश्न 92.
अमेरिका के वर्न्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमला कब हुआ था?
उत्तर :
11 सितंबर, सन् 2001 ईं० को अमेरिका के वल्ड्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमला हुआ था।

प्रश्न 93.
संचार शास्त्री विल्बर श्रैम के अनुसार संचार क्या है?
उत्तर :
संचार शास्ती विल्बर श्रैम के अनुसार संचार अनुभवों की साझेदारी है।

प्रश्न 94.
संचार कैसी प्रक्रिया है?
उत्तर :
संचार अंतर क्रियात्मक प्रक्रिया है।

प्रश्न 95.
संचार प्रक्रिया के प्रमुख तत्त्व कौन-से हैं?
उत्तर :
संचार प्रक्रिया के प्रमुख तत्त्व स्रोत, संदेश, माध्यम तथा प्राप्तकर्ता हैं।

प्रश्न 96.
अंतःवैयक्तिक संचार क्या है?
उत्तर :
जब कोई व्यक्ति किसी विषय पर सोचता अथवा विचारों का मंथन करता है, तो उसे अंतःवैयक्तिक संचार कहते हैं।

प्रश्न 97.
जब दो व्यक्ति आपस में और आमने-सामने संचार करते हैं तो उसे क्या कहते है?
उत्तर :
जब दो व्यक्ति आपस में और आमने-सामने संचार करते हैं, तो इसे अंतरवैयक्तिक संचार कहते हैं।

प्रश्न 98.
समूह-संचार क्या है?
उत्तर :
जब एक समूह आपास में विचार-विमर्श अथवा चर्चा करता है तो उसे समूह-संचार कहते हैं।

प्रश्न 99.
जनसंचार क्या है?
उत्तर :
जब हम व्यक्तियों के समूह के साथ प्रत्यक्ष संवाद के स्थान पर किसी तकनीकी अथवा यांत्रिक माध्यम से संवाद स्थापित करते हैं, तो उसे जनसंचार कहते हैं।

प्रश्न 100.
जनसंचार के प्रमुख कार्य क्या हैं?
उत्तर :
जनसंचार के प्रमुख कार्य सूचना देना, शिक्षित करना, मनोरंजन करना, एजेंड़ तय करना, निगरानी करना तथा विचार-विमर्श के लिए मंच तैयार करना है।

प्रश्न 101.
भारत का पहला समाचार-वाचक किसे माना जाता है?
उत्तर :
देवर्ष नारद को भारत का पहला समाचार-वाचक माना जाता है।

प्रश्न 102.
जनसंचार के प्राचीन माध्यम क्या थे?
उत्तर :
प्राचीनकाल में शिलालेख, गुफ़ाचित्र, कठपुतली, लोकनाटक, नौटंकी, यात्रा, तमाशा, लावनी, सांग, कथावाचन, यक्षगान आदि जनसंचार के माध्यम थे।

प्रश्न 103.
जनसंचार के आधुनिक माध्यम कौन-से हैं?
उत्तर :
समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज्तन, सिनेमा, इंटरनेट आदि जनसंचार के आधुनिक माध्यम हैं।

प्रश्न 104.
जनसंचार की सबसे मज़बूत कड़ी किसे माना जाता है?
उत्तर :
जनसंचार की सबसे मज़बूत कड़ी पत्र-पत्रिकाओं अथवा प्रिंट-मीडिया को माना जाता है।

प्रश्न 105.
संसार में अखबारी पत्रकारिता को अस्तित्व में आए कितने वर्ष हो गए है?
उत्तर :
संसार में अखबारी पत्रकारिता को अस्तित्व में आए चार सौ वर्ष हो गए हैं।

प्रश्न 106.
भारत में अखबारी पत्रकारिता की शुरुआत कब हुई थी?
उत्तर :
भारत में अखबारी पत्रकारिता की शुरुआत सन् 1780 ई० में हुई थी।

प्रश्न 107.
भारत का पहला अखबार कौन-सा था?
उत्तर :
भारत का पहलला अखबार जेम्स ऑंगस्ट हिकी का कलकत्ता से प्रकाशित ‘बंगाल गजट’ था।

प्रश्न 108.
हिंदी का पहला साप्तहिक-पत्र कौन-सा था?
उत्तर :
हिंदी का पहला साप्ताहिक-पत्र पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में कलकत्ता से सन 1826 ई० में प्रकाशित ‘उंद्त मातंड था।

प्रश्न 109.
हिंदी के विकास में अग्रणी भूमिका निभाने वाली पत्रिका कौन-सी थी?
उत्तर :
‘सरस्वती’ हिंदी के विकास में अग्रणी भूमिका निभाने वाली पत्रिका थी।

प्रश्न 110.
आज्तादी के पहले के प्रमुख पत्रकार कौन थे?
उत्तर :
गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, बाबूरवव पराड़कर, प्रताप नारायण मिश्र, शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी, बालमुकुंद गुप्त आदि हैं।

प्रश्न 111.
आज़ादी से पहले के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर :
केसरी, हिंदुस्तान, सरस्वती, हंस, कर्मवीर, आज, प्रताप, प्रदीप, विशाल भारत आदि आज़ादी से पहले के प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँ थीं।

प्रश्न 112.
आज़ादी के बाद के हिंदी के प्रमुख पत्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर :
अक्षेय, धर्मवीर भारती, रघुवीर सहाय, मनोहर श्याम जोशी, प्रभाष जोशी, राजेंद्र माथुर, सर्वेश्वर द्याल सक्सेना आदि आज़ादी के बाद के हिंदी के प्रमुख पत्रकार हैं।

प्रश्न 113.
आज्तादी के बाद के प्रमुख हिंदी के समाचार-पत्र कौन-से है?
उत्तर :
आज़ादी के बाद के हिंदी के प्रमुख समाचार-पत्र हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, जनसत्ता, नई दुनिया, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण आदि है।

प्रश्न 114.
आज़ादी के बाद की हिंदी की पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
आज़ादी के बाद की हिंदी की पत्रिकाओं के नाम-धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान, रविवार, इंडिया टुडे, आउटलुक, ज्ञानोदय, कादम्बिनी, सारिका आदि हैं। इनमें से कुछ का प्रकाशन बंद भी हो गया है।

प्रश्न 115.
वायरलेस का आविष्कार कब और किसने किया था?
उत्तर :
सन् 1895 में इटली के इलेक्ट्रिक इंजीनियर जी॰ माकॉनी ने वायरलेस का आविष्कार किया था।

प्रश्न 116.
प्रारंभिक रेडियो स्टेशन कहाँ और कब खुला?
उत्तर :
प्रारंभिक रेडियो स्टेशन सन् 1892 ई० में अमेरिका के पिट्सबर्ग, न्यूयॉर्क और शिकागो में खुला था।

प्रश्न 117.
भारत में रेड्डियो का प्रारंभ कब हुआ?
उत्तर :
भारत में रेडियो लगभग सन् 1892 ई० में प्रारंभ हो गया था।

प्रश्न 118.
भारत में रेडियो पर संगीत कार्यक्रम का प्रारंभ कब और कहाँ से हुआ?
उत्तर :
भारत में रेडियो पर संगीत कार्यक्रम मुंबई में सन् 1921 ई० में टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने ड्डाक-तार विभाग के सहयोग से प्रसारित किया था।

प्रश्न 119.
ऑल इंडिया रेडियो की स्थापना कब हुई?
उत्तर :
ऑल इंडिया रेडियो की स्थापना सन् 1936 ई० में हुई थी।

प्रश्न 120.
आज्ञादी से पूर्व भारत में कितने और कहाँ रेडियो स्टेशन थे?
उत्तर :
आजादी के समय तक देश में नौ रेडियो स्टेशन लखनक, दिल्ली, बंबई, कलकत्ता, मद्रास, तिरुचिरापल्ली, ढाका, लाहौर और पेशावर में थे।

प्रश्न 121.
आज आकाशवाणी देश की कितनी आबादी तक पहुँच गई है?
उत्तर :
आकाशवाणी की पहुँच देश की 96 प्रतिशत आबादी तक हो गई है।

प्रश्न 122.
आकाशवाणी का प्रसारण कितनी भाषाओं और बोलियों में होता है?
उत्तर :
आकाशवाणी 24 भाषाओं और 146 बोलियों में कार्यक्रम प्रस्तुत करती है।

प्रश्न 123.
एफ० एम० की शुुुआत कब हुई थी?
उत्तर :
एफ० एम० की शुरुआत सन् 1993 से हुई थी।

प्रश्न 124.
आकाशवाणी और दूरदर्शन को प्रसार भारती कब से बनाया गया?
उत्तर :
सन् 1997 ईै० से।

प्रश्न 125.
एफ० एम० के देश में कितने चैनल हैं?
उत्तर :
देश में 350 से अधिक एफ० एम० चैनल 90 शहरों में चल रहे हैं।

प्रश्न 126.
रेडियो कैसा माध्यम है?
उत्तर :
रेडियो ध्वानि और श्रव्य माध्यम है।

प्रश्न 127.
सर्वप्रथम टेलीविज़न प्रसारण कब और कहाँ हुआ?
उत्तर :
सन् 1927 में टेलीफ़ोन लेबोंरेट्रीज़ ने न्यूयोर्क और वाशिंगटन के बीच सर्वप्रथम प्रायोगिक टेलीविज्ञन कार्यक्रम प्रसारित किया था।

प्रश्न 128.
बी० बी० सी० ने टेलीविज़न सेवाएँ कब प्रारंभ की?
उत्तर :
सन् 1936 ई० से बी० बी० सी० ने टेलीविज्जन सेवाएँ प्रारंभ की।

प्रश्न 129.
भारत में टेलीविज़न प्रसारण की शुरुआत कब से और किसके सहयोग से हुई?
उत्तर :
भारत में 15 सितंबर, सन् 1959 से टेलीविजन का प्रसारण यूनेस्को के सहयोग से हुआ था।

प्रश्न 130.
भारत में टेलीविज्ञन का विधिवत प्रसारण कब से प्रारंभ हुआ?
उत्तर :
भारत में टेलीविज्तन का विधिवत प्रसारण 14 अगस्त, सन् 1965 इं० से प्रारंभ हुआ।

प्रश्न 131.
सन् 1991 के खाड़ी युद्ध का सीधा प्रसारण लोगों ने कैसे देखा था?
उत्तर :
सन् 1991 के खाड़ी युद्ध का सीधा प्रसारण लोगों ने केबल टी० बी० के द्वारा देखा था।

प्रश्न 132.
आज देश में कितने निजी चैनल हैं?
उत्तर :
आज देश में दो सौ से अधिक निजी चैनल हैं।

प्रश्न 133.
सिनेमा का आविष्कारक कौन था?
उत्तर :
सिनेमा के आविष्कार का श्रेय थॉमस अल्वा एडिसन को दिया जाता है, जिसने सन् 1883 ई० में मिनेरिस्कोप की खोज की थी।

प्रश्न 134.
पहली फ़िल्म कहाँ और कब बनी थी?
उत्तर :
पहली फ़िल्म सन् 1894 ई० में फ्रांस में बनी थी, जिसका नाम ‘द आइवल ऑफ़ ट्रेन’ था।

प्रश्न 135.
भारत की पहली फ़िल्म कब और किसने बनाई थी?
उत्तर :
भारत की पहली फ़िल्म सन् 1913 ई० बनी थी, जिसे दादा साहेब फ़ाल्के ने बनाया था। इसका नाम ‘राजा हरिश्चंद्र’ था और यह मूक फ़िल्म थी।

प्रश्न 136.
भारत की पहली बोलती फ़िल्म कौन-सी थी और कब बनी थी?
उत्तर :
भारत की पहली बोलती फ़िल्म सन 1931 ईं० में बनी ‘आलम आरा’ थी।

प्रश्न 137.
भारत हर साल कितनी फ़िल्मों का निर्माण करता है?
उत्तर :
भारत हर साल लगभग आठ सौ फ़िल्मों का निर्माण करता है।

प्रश्न 138.
जनसंचार का सबसे नया माध्यम क्या है?
उत्तर :
इंटरनेट जनसंचार का सबसे नया माध्यम है।

प्रश्न 139.
पत्रकारिता क्या है?
उत्तर :
विभिन्न सूचनाओं को संकलित एवं संपादित कर आम पाठक तक पहुँचाना पत्रकारिता है।

प्रश्न 140.
समाचार क्या है?
उत्तर :
समाचार किसी भी ऐसी ताज़ी घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है, जिसमें अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका अधिकांश लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो।

प्रश्न 141.
समाचार के प्रमुख तत्व कौन-से हैं?
उत्तर :
समाचार के प्रमुख तत्व दस हैं-नवीनता, निकटता, प्रभाव, जनरुचि, टकराव या संघर्ष, महत्त्वपूर्ण लोग, उपयोगी जानकारियाँ, अनोखापन, पाठकवर्ग और नीतिगत बाँचा।

प्रश्न 142.
संपादन का क्या अर्थ है?
उत्तर :
संपादन का अर्थ किसी सामग्री से उनकी अशुद्धियाँ दूर करके उसे पठनीय बनाना है।

प्रश्न 143.
संपादन के प्रमुख सिद्धांत क्या हैं?
उत्तर :
संपादन के प्रमुख सिद्धांत पाँच तथ्यों की शुद्धता, वस्तुपरकता, निष्पक्षता, संतुलन और स्रोत हैं।

प्रश्न 144.
संपादकीय पृष्ठ किसे कहते हैं?
उत्तर :
किसी समाचार-पत्र के जिस पृष्ठ पर समाचार-पत्र विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय व्यक्त करता है, उसे संपादकीय पृष्ठ कहा जाता है।

प्रश्न 145.
खोजपरक पत्रकारिता क्या है?
उत्तर :
जिन तथ्यों एवं सूचनाओं को दबाने अथवा छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो, उन्हें गहराई से छानबीन कर प्रस्तुत करना खोजपरक पत्रकारिता कहलाता है।

प्रश्न 146.
वायडॉग पत्रकारिता से क्या आशय है?
उत्तर :
सरकारी तंत्र में किसी प्रकार की गड़बड़ी का पर्दाफ़श करना वायड़ग पत्रकारिता है।

प्रश्न 147.
पीत-पत्रकारिता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
किसी समाचार के माध्यम से किसी प्रकार की सनसनी फैलाना अथवा अनाम के नाम से किसी को ब्लेकमेल करना पीत पत्रकारिता है।

प्रश्न 148.
हिंदी के चार प्रमुख टी० वी० समाचार चैनलों के नाम लिखिए।
उत्तर :
ज़ी-न्यूज्ञ, आज तक, एन॰डी, टी॰वी, एबीपी-न्यूज़।

प्रश्न 149.
हिंदी के चार राष्ट्रीय समाचार-पत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर :
हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण।

प्रश्न 150.
डायरी-लेखन क्या है?
उत्तर :
व्यक्ति दिन भर की अपनी गतिविधियों का जो लेखा-जोखा अपनी डायरी के पृष्ठों पर प्रत्येक तिथि के अनुसार लिपिबद्ध करता है, वह डायरी-लेखन कहलाता है।

प्रश्न 151.
पिछली सदी की सर्वाधिक पढ़ी गई डायरी कौन-सी है?
उत्तर :
पिछली सदी की सर्वाधिक पढ़ी गई डायरी सन् 1924 से 1944 के बीच लिखी गई थी। यह ऐनी फ्रैक की डायरी है, जो उसने नाज़ी अत्याचारों के समय एम्रर्डम में लिखी थी।

प्रश्न 152.
हिंदी के प्रसिद्ध डायरी लेखकों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर :
मोहन राकेश, रमेशचंद्र शाह, रामवृक्ष बेनीपुरी, राहुल सांकृत्यायन, मुक्तिबोध।

प्रश्न 153.
‘लद्दाख यात्रा की डायरी’ किसकी रचना है?
उत्तर :
कर्नल सञ्जन सिंह की।

प्रश्न 154.
‘सुदूर दक्षिण पूर्व’ किसके द्वारा रचित यात्रा-डायरी है?
उत्तर :
सेठ गोविंददास।

प्रश्न 155.
डायरी-लेखन क्या सोचकर करना चाहिए?
उत्तर :
डायरी बिलकुल निजी वस्तु है यह सोचकर डायरी लिखनी चाहिए।

प्रश्न 156.
डायरी-लेखन की भाषा-शैली कैसी होनी चाहिए?
उत्तर :
डायरी-लेखन की भाषा-शैली डायरी-लेखक की अपनी सहज एवं स्वाभाविक भाषा-शैली होनी चाहिए। इसके लिखने के लिए परिष्कृत तथा मानक भाषा-शैली की आवश्यकता नहीं होती।

प्रश्न 157.
पटकथा का क्या अर्थ है?
उत्तर :
पटकथा वह कथा होती है, जो परदे पर दिखाई जाती है।

प्रश्न 158.
फ़्लैशबैक से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
यह वह तकनीक है जिसके द्वारा भूतकाल में हुई किसी घटना को दिखाया जाता है।

प्रश्न 159.
फ़्लैश फ़ारवर्ड से क्या आशय है?
उत्तर :
यह वह तकनीक है जिसके द्वारा भविष्य में होने वाली किसी घटना को पहले दिखादिया जाता है।

प्रश्न 160.
पटकथा की मूल इकाई क्या है?
उत्तर :
पटकथा की मूल इकाई दृश्य है।

प्रश्न 161.
एक दृश्य का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर :
एक स्थान पर, एक ही समय में लगातार चल रहे कार्य व्यापार के आधार पर एक दृश्य का निर्माण होताहै।

प्रश्न 162.
दृश्य संख्या के साथ क्या लिखना आवश्यक होता है?
उत्तर :
दृश्य संख्या के साथ उस दुश्य के घटनास्थल का विवरण देना आवश्यक होता है।

प्रश्न 163.
औपचारिक-पत्र क्या होता है?
उत्तर :
जिन लोगों से हमारे व्यक्तिगत संबंध नहीं होते केवल औपचारिक संबंध होते हैं, उन्हें लिखे जाने वाले पत्र को औपचारिक-पत्र कहते हैं। सरकारी तथा अन्य संस्थानों का लिखे गए पत्र औपचारिक-पत्र होते हैं।

प्रश्न 164.
टिप्पणी क्या है?
उत्तर :
किसी भी विचाराधीन पत्र अथवा प्रकरण को निपटाने के लिए उस पर जो राय, मंतव्य, आदेश/निर्देश दिया जाता है, उसे टिप्पणी कहते हैं।

प्रश्न 165.
टिप्पणी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर :
टिप्पणी का उद्देश्य किसी मामले को तर्कसंगत तथा नियमानुसार निपटाना है।

प्रश्न 166.
आनुषंगिक टिप्पणी किसे कहते हैं?
उत्तर :
आरंभिक टिप्पणी पढ़ने पर जब अधिकारी अपना कोई मंतव्य उस टिप्पणी के नीचे लिखता है, तो उसे आनुषंगिक टिप्पणी कहते हैं।

प्रश्न 167.
अनुस्मारक क्या है?
उत्तर :
जब किसी पत्र आदि का उत्तर समय पर प्राप्त नहीं होता तो उक्त पत्र के उत्तर के लिए याद दिलाने वाला लिखा गया पत्र अनुस्मारक अथवा स्मरण-पत्र कहलाता है।

प्रश्न 168.
अर्ध-सरकारी पत्र क्या होता है?
उत्तर :
अर्ध-सरकारी पत्र में अनौपचारिकता का भाव होता है तथा संबंधित विषय पर व्यक्तिगत रूप से संज्ञान लेते हुए शीघ्र कार्यवाही करने का अनुरोध होता है।

प्रश्न 169.
कार्य-सूची क्या होती है?
उत्तर :
किसी सभा में किए जाने वाले कार्यों की संक्षिप्त सूची को कार्य-सूची कहते हैं।

प्रश्न 170.
कार्य-वृत्त से क्या आशय है?
उत्तर :
किसी सभा अथवा बैठक की कारवाई के बाद उस बैठक में लिए गए निर्णयों अथवा पारित किए गए प्रस्तावों का लेखा-जोखा कार्य वृत्त कहलाता है।

प्रश्न 171.
प्रेस-विज्पप्ति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
किसी संस्थान द्वारा किसी विषय अथवा बैठक में जो निर्णय होता है, उसे सर्वसामान्य तक पहुँचाने का माध्यम प्रेस-विज्ञाप्त कहलाता है।

प्रश्न 172.
स्वपृत्त किसे कहते हैं?
उत्तर :
स्ववृत्त, व्यक्ति की अपनी योग्यताओं, उपलब्धियों आदि का विवरण होता है, जिसे वह नियोक्ता को भेजता है।

प्रश्न 173.
स्ववृत्त के कितने और कौन-कौन से पक्ष हैं?
उत्तर :
स्ववृत्त के दो पक्ष उम्मीदवार और नियोक्ता होते हैं।

प्रश्न 174.
स्ववृत्त की भाषा-शैली कैसी होनी चाहिए?
उत्तर :
स्ववृत्त की भाषा-शैली सरल, सीधी, सटीक और सा़़ होनी चाहिए।

प्रश्न 175.
शब्दकोश क्या होता है?
उत्तर :
शब्दकोश शब्दों का खज्ञाना होता है, जिसमें एक भाषा-भाषी समुदाय में प्रयुक्त शब्दों का संचय कर उनके अर्थ, सोत, व्याकरणिक कोटियाँ आदि बताई जाती हैं।

प्रश्न 176.
‘संदर्भ ग्रंध’ किसे कहते हैं?
उत्तर :
जिन ग्रंथों में मानव द्वारा संचित ज्ञान को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जाता है, उन्हें ‘संदर्भ ग्रंथ’ कहते हैं।

प्रश्न 177.
शब्दकोश में शब्दों का क्रम किस प्रकार होता है?
उत्तर :
शब्दकोश में शब्दों का क्रम वर्णमाला के अनुसार होता है।

प्रश्न 178.
मानव द्वारा संचित हर प्रकार की जानकारी का संक्षिप्त संकलन किस ग्रंथ में होता है?
उत्तर :
विश्व ज्ञान-कोश में।

प्रश्न 179.
‘चरित्र-कोश’ में क्या जानकारी होती है?
उत्तर :
चरित्र-कोश में साहित्य, संस्कृति, विज्ञान आदि क्षेत्रों के महान व्यक्तियों का विवरण होता है।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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CBSE Class 11 Hindi रचना मौखिक अभिव्यक्ति

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CBSE Class 11 Hindi Rachana मौखिक अभिव्यक्ति

I. सुनना

अर्थग्रहण करना –

हम सब मानव सामाजिक प्राणी हैं। हम बोल-सुनकर अपने भावों का आदान-प्रदान करते हैं। लिखकर तथा संकेतों से भी हम स्वयं को अभिव्यक्त कर सकते हैं पर सुनने-बोलने से हमारी अभिव्यक्ति अधिक सहजता और सरलता से होती है। हमारे दैनिक जीवन में बोलने-सुनने से ही आपसी व्यवहार अधिक होता है।

सुनना एक कला है। हम सब इसके महत्व को समझते हैं। ईश्वर ने इसीलिए तो हमें दो कान दिए हैं। एक छोटा बच्चा बोलना बाद में सीखता है पर सुनना और समझना पहले आरंभ करता है। वास्तव में हम सुनने से ही तो बोलना सीखते हैं। तभी तो जन्म से बहरे लोग प्राय: गूँगे भी होते हैं। सुनना किसी के द्वारा बोले गए शब्दों का कानों में जाना मात्र नहीं है। उसका वास्तविक अर्थ उनका तात्पर्य समझना है; उसे मन-मस्तिक्क में बिठाना है और उसके अनुसार जीवन में अपनी प्रतिक्रियाओं को प्रकट करना है। किसी की बात को सुनकर उसे बाहर निकाल देना किसी भी प्रकार से सार्थक नहीं हो सकता। यदि किसी के द्वारा कही गई किसी बात का अनुपालन हमें बाद में करना हो तो उसे लिखकर अपने पास रख लेना अधिक अच्छा रहता है। ऐसा करने से प्रत्येक बात हमारे ध्यान में बनी रहती है।

सुनने से संबंधित प्रश्नों का स्वरूप –

आपके अध्यापक/अध्यापिका आपको कोई गद्य या पद्य सुनाएँगे और उस पर आधारित प्रश्न आप से पूछेंगे। आपको उन प्रश्नों के उत्तर सुने गए गद्य या पद्य के आधार पर देने होंगे। जिन प्रश्नों को आप से पूछा जाएगा उससे संबंधित प्रश्न-पत्र आपको कुछ सुनाने से पहले दिया जाएगा। ये प्रश्न व्याकरण, रिक्त स्थान पूर्ति, शब्द-अर्थ, नाम, निष्कर्ष आदि से संबंधित हो सकते हैं। अध्यापक/अध्यापिका आपको गद्य या पद्य केवल एक ही बार सुनाएँगे। आपको स्मरण के आधार पर उत्तर देने होंगे। प्रत्येक प्रश्न-पत्र में दस प्रश्न होंगे।

उदाहरण –

1. आपको परीक्षक एक अनुच्छेद सुनाएँगे। उसे ध्यानपूर्वक सुनिए और अनुच्छेद पर आधारित दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए। अनुच्छेद दोबारा नहीं पढ़ा जाएगा।
दक्षिण भारत में कन्याकुमारी के आसपास स्थित ऐतिहासिक स्थल भी दर्शनीय हैं। यहाँ से कुछ दूर एक गोलाकार दुर्ग है, जिसे सर्कुलर फोर्ट कहा जाता है। यह सागर के किनारे बना हुआ है। यहाँ समुद्र की लहरें शांत गति से बहती हैं। कुछ किलोमीटर पर कानुमलायन मंदिर, नागराज मंदिर, पद्मनाभपुरम मंदिर भी देखने योग्य हैं।

कन्याकुमारी के छोटे से खोकेनुमा बाजारों में ताड़पत्तों और नारियल से निर्मित हस्तशिल्प की वस्तुएँ तथा सागर से प्राप्त शंख और सीप की मालाएँ और दूसरी वस्तुएँ पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती हैं। यहाँ तीनों समुद्रों से अलग-अलग रंग की रेत निकलती है। यह रेत इन बाज़ारों में प्लास्टिक की छोटी-छोटी थैलियों में बिक्री के लिए मिल जाती है, जिसे पर्यटक खरीदना नहीं भूलते। कन्याकुमारी में ठहरने की अच्छी व्यवस्था है। विवेकानंद शिला स्मारक समिति ने विवेकानंदपुरम आश्रम का निर्माण किया है, जहाँ यात्रियों के रहने और खाने-पीने की व्यवस्था है। यहीं एक ऐसा स्थान है जहाँ उत्तर भारत के यात्रियों को अपने घर-जैसा खाना प्राप्त हो जाता हैं।

कन्याकुमारी यद्यपि तमिलनाडु प्रदेश में है लेकिन यहाँ पहुँचने और लौटने का रास्ता केरल प्रदेश की राजधानी त्रिवेदेंद्रम से है। केरल को भारत का हरिियाला जादू कहा जाता है क्योंकि इस प्रदेश में चारों ओर हरियाली ही हरियाली नज़र आती है। इसलिए कन्याकुमारी से यदि टैक्सी या निजी कार अथवा बस द्वारा त्रिवेंद्रम लौटा जाए तो यात्रा का पूरा मार्ग हरियाली की सुखद छाया को ओढ़कर चलता है। इसी रास्ते पर हाथियों की सुरक्षित वनस्थली और अरब सागर तट पर स्थित कोवलम बीच भी दर्शनीय है। कोवलम सागर तट पर सागर-स्नान की सुखद अनुभूति प्राप्त करने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आकर स्नान करते हैं और नारियल का मीठा पेय पीकर परम तुष्टि भाव से यात्रा की परिपूर्णवा का आनंद लाभ करते हैं।

प्रश्न :
1. इसमें किसकी सुंदरता का वर्णन किया गया है?
2. गोलाकार दुर्ग का नाम क्या है ?
3. बाज़ारों में बिकने वाली हस्तशिल्प की वस्तुएँ बनी होती हैं-
(क) रेशम की (ख) ताड़-पत्तों की (ग) पत्थर की (घ) चीनी-मिट्टी की
4. बहाँ कितने समुब्रों की रंग-बिरंगी रेत मिलती है ?
5. विवेकानंद शिक्षा स्मारक समिति ने किस आश्रम का निर्माण किया है ?
6. आश्रम में किन यात्रियों को घर जैसा खाना प्राप्त होता है?
7. कन्याकुमारी किस राज्य में है?
8. कन्याकुमारी पहुँचने और लौटने का रास्ता किस राज्य से है ?
9. अरब सागर का कौन-सा तट दर्शनीय है ?
10. यात्री यहाँ क्या पीना पसंद करते हैं?
उत्तर :
1. कन्याकुमारी की सुंदरता का वर्णन।
2. सर्कुलर फोर्ट।
3. (ख) ताड़पत्तों की।
4. तीन समुद्रों की रंग-बिरंगी रेत।
5. विवेकानंदुुरम आश्रम का निर्माण।
6. उत्तर भारत के यात्रियों को।
7. तमिलनाडु प्रदेश में।
8. केरल राज्य से।
9. कोवलम बीच।
10. नारियल का मीठा पेय।

2. अनुच्छेद को ध्यानपूर्वक सुनकर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर अनुच्छेद में खोजकर लिखिए।
सर्कस अब घाटे का सौदा हो चुका है। अब जहाँ कहीं भी सर्कस लगाया जाता है सर्कस मालिक को चार गुना दाम पर ज्ञमीन, बिजली तथा अन्य सुविधाएँ प्राप्त हो पाती हैं। इसके अतिरिक्त पुलिस और प्रशासन का रैया भी प्राय: असहयोगात्मक ही रहता है। ‘इंडियन सर्कस फेडरेशन’ का मानना है कि सर्कस के लिए सबसे बड़ी समस्या उसे लगाने वाले मैदान की है। एक दशक पहले तक शहरों में खाली भूखंड आसानी से मिल जाते थे। अब वहाँ व्यावसायिक कॉम्पलेक्स बन गए हैं। अधिकांश शहरों में आबादी से काफ़ी दूर ही जगह मिल पाती है। इससे काफ़ी कम दर्शक ‘शो’ देखने आते हैं। कई सर्कस मालिक अब सर्कस को समाप्त होती कला मानने लगे हैं, जिसे सरकार और समाज हर कोई मरते देखकर भी खामोश है। पिछले कुछ वर्षों में जैमिनी, भारत, ओरिएंटल और प्रभात सर्कस को बंद होना पड़ा। कुछ वर्ष पूर्व सरकार ने केरल में ‘जमुना स्टिर सेंटर’ की स्थापना की है। ताकि इस व्यवसाय में आने वाले बच्चों के प्रशिक्षण की व्यवस्था हो सके। सर्कस उस्ताद चुन्नी बानू कहते हैं कि सर्कस संकट के दौर से गुजर रहा है। अगर सरकार ने इसकी मदद नहीं की तो जिन हज्ञारों लोगों को इसके माध्यम से दो जून की रोटी मिल रही है, वह भी बंद हो जाएगी।

सर्कस के कलाकारों का ‘शो’ के दौरान अधिकांश खाली सीटें देखकर मनोबल टूट गया है। जब कभी. सीटें भरी होती हैं, खेल दिखाने में मज़ा आ जाता है। सर्कस का एक प्रमुख हिस्सा है-जोकर। आमतौर पर बिना किसी काम का लगने वाला कद-काठी में छोटा-सा इनसान जो किसी काम का नहीं लगता सर्कस की ‘रिंग’ में अपनी अजीब हरकतों से किसी को भी हँसा देता है। तीन घंटे के ‘ शो’ में दर्शकों को हैसाते रहने का आकर्षण ही कलाकारों को बाँधे रखता है।

प्रश्न :
1. सर्कस अब आर्थिक दृष्टि से कैसा सौदा है?
2. सर्कस मालिकों को सुविधाएँ अब किस दाम पर प्राप्त हो पाती हैं?
3. सर्कस के प्रति पुलिस और प्रशासन का रवैया रहता है-
(क) सहयोगात्मक
(ख) असहयोगात्मक
(ग) उदासीन
(घ) नृशंस
4. खाली भूखंडों पर अब क्या बन गए हैं ?
5. सर्कस को समाप्त होता देखकर कौन-कौन खामोश हैं?
6. पिछले वर्षों में कौन-कौन सी सर्कसें बंद हुई हैं?
7. बच्चों को सर्कस हेतु प्रशिक्षण की व्यवस्था किसने की है ?
8. किसने कहा है कि सर्कस संकट के दौर से गुजर रहा है ?
9. सर्कस के कलाकारों का मनोबल क्यों दूट रहा है ?
10. रिंग में अपनी हरकतों से कौन हैंसाता है?
उत्तर :
1. घाटे का सौदा।
2. चार गुना दाम पर
3. (ख) असहयोगात्मक।
4. व्यावसायिक कॉम्पलेक्स।
5. जनता और सरकार।
6. जैमिनी, भारत, ओरिएंटल और प्रभात सर्कसें।
7. केरल में ‘जमुना स्टिर सेंटर’ ने।
8. उस्ताद चुन्नी बाबू ने।
9. अधिकांश शो में खाली सीटों को देखकर।
10. अपनी हरकतों से जोकर हँसाता है।

भाषण –

3. भाषण को ध्यानपूर्वक सुनकर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर भाषण के आधार पर दीजिएयुगों से गुरु का स्थान भारतीय समाज में अत्यंत ऊँचा माना जाता रहा है। भक्ति का साधन कृपा है और गुरकृषा के बिना उसकी प्राप्ति नहीं होती। नारायण तीर्थ ने प्राचीन आचायों के आधार पर भक्ति के जो तेईस अंग गिनाए हैं उनमें गुरु को भक्ति का प्रथम अंग माना गया है। रामचरित मानस में गुरु शंकर रूपी हैं; हरि का नर रूप हैं; यही नहीं भगवान राम से भी बढ़कर है। विधाता के रुष्ट हो जाने पर गुरु रक्षा कर लेता है किंतु गुरु के रुष्ट हो जाने पर कोई ऐसा साधन नहीं बचता जो रक्षा का आधार बन सकता हो। गुरु की इस गरिमा का कारण यह है कि वही जीव के मोह-अंधकार को दूर करता है और उसे ज्ञान प्रदान करता है। गुरु की शरण में जाकर उससे शिक्षा प्राप्त करना ही ज्ञान की प्राप्ति करना है-

श्री गुरु पद नख मनि गन जोती।
सुमिरत दिव्य दुष्टि हिय होती॥

तुलसी के राम ने शबरी को उपदेश देते समय गुरु सेवा को राम-कृपा का स्वतंत्र और अमोष साधन माना है।
प्राचीन साहित्य में गुरु का स्वरूप और उसके कार्यक्षेत्र समय, स्थान और परिस्थिति के अनुसार बदलते रहे हैं पर उसका विवेक, ज्ञान, दूरदर्शिता और निष्ठा बदलती हुई दिखाई नहीं देती। देवताओं के गुरु बृहस्पति यदि देवताओं के हित और कल्याण के विषय में कार्य करते रहे तो दानवों के गुरु शुक्राचार्य दानवों की मानसिकता के आधार पर सोचते-विचारते रहे। वशिष्ठ मुनि और विश्वामित्र ने यदि श्री राम को शिक्षित किया तो संदीपन गुरु ने श्रीकृष्ण को ज्ञान ही नहीं दिया अपितु सहज-सरल जीवन जीने का भी पाठ पढ़ाया। द्रोणाचार्य ने कौरवों-पांडवों को अस्त्रशस्त्र चलाने के अभ्यास के साथ-साथ धर्म और नीति का भी ज्ञान दिया था।

चाणक्य ने चंद्रगुप्त को शिक्षित कर देश के इतिहास को ही बदल दिया था। यदि सिकंदर के गुरु अरस्तु ने उसे सारे विश्व को जीतने के लिए उकसाया था तो चाणक्य ने अपने शिष्य को धर्म और देश की रक्षा करना सिखाकर उसके कमजोर इरादों को मिट्टी में मिला दिया था। गुरु कुम्हार की तरह कार्य करता हुआ शिष्य रूपी कच्ची मिट्टी को मनचाहा आकार प्रदान कर देता है। यह ठीक है कि हर माँ अपने बच्चे की पहली गुरु होती है। वह उसे जीवन के साथ-साथ अच्छे संस्कार देती है पर किसी भी छोटे बच्चे के मन पर अपने अध्यापक का जैसा गहरा प्रभाव पड़ता है, वैसा किसी अन्य व्यक्ति का नहीं पड़ता।

वह उसे अपना आदर्श मानने लगता है और उसी का अनुकरण करने का प्रयत्न करता है। इसलिए यह अति आवश्यक है कि वह वास्तव में ही आदर्श जीवन जीने का प्रयत्न करे। अध्यापक ही ऐसा केंद्रबिंदु है जहाँ से बौद्धिक परंपराएँ तथा तकनीकी कुशलता एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को संचारित होती हैं। वह सभ्यता के दीप को प्रज्वलित रख्रने में योगदान प्रदान करता है। वह केवल व्यक्ति का ही मार्गदर्शन नहीं करता बल्कि सारे राष्ट्र के भाग्य का निर्माण करता है। इसलिए उसे समाज के प्रति अपने विशिष्ट कर्तव्य को भली-भाँति पहचानना चाहिए। अध्यापक का

जितना महत्त्व है, उतने ही व्यापक उसके व्यापक कार्य हैं। शिक्षण, गठन, निरीक्षण, परीक्षण, मार्गदर्शन, मूल्यांकन और सुधारात्मक कार्यों के साथ-साथ उसे विद्यार्थियों, अभिभावकों और समुदाय से अनुकूल संबंध स्थापित करने पड़ते हैं।

कोई भी अध्यापक अपने छात्र-छात्राओं में लोकप्रिय तभी हो सकता है जब उसमें उचित जीवन-शक्ति विद्यमान हो। मार-पीट, डाँट-डपट का विद्यार्थियों के कोमल मन पर सदा ही विपरीत प्रभाव पड़ता है। छात्रों के भावात्मक विकास के लिए अध्यापक का संवेगात्मक संतुलन बहुत आवश्यक होता है। उसमें सामाजिक चातुर्य, उत्तम निर्णय की क्षमता, जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण, परिस्थितियों का सामना करने का साहस और व्यावसायिक निष्ठा निश्चित रूप से होनी चाहिए। कोई भी व्यक्ति विषय के ज्ञान के अभाव में शिक्षक नहीं हो सकता। प्राय: माना जाता है कि एक अयोग्य चिकित्सक मरीज के शारीरिक हित के लिए खतरनाक है परंतु एक अयोग्य शिक्षक राष्ट्र के लिए इससे भी अधिक घातक है क्योंकि वह न केवल अपने छात्रों के मस्तिष्क को विकृत बनाता तथा हानि पहुँचाता है बल्कि उनके विकास को अवरुद्ध भी करता है तथा उनकी आत्मा को विकृत कर देता है।

अध्यापक में नेतृत्व की क्षमता होना आवश्यक है पर उसे जिस प्रकार के नेतृत्व की क्षमता की आवश्यकता है वह अन्य प्रकार के नेतृत्व से भिन्न है। उसका नेतृत्व उसके चरित्र, शक्ति, प्रभावशीलता तथा दूसरों से प्राप्त आदर पर निर्भर है। यह भी ध्यान रखने योग्य है कि अति दृढ़ व्यक्तित्व नेतृत्व के लिए उसी प्रकार की अयोग्यता है जिस प्रकार का निर्बल व्यक्तित्व व्यर्थ होता है। उसका मानसिक रूप से सुसज्जित होना आवश्यक है।

एक समय था जब अध्यापक राज्याश्रम में पलते थे और गुरकुलों में विद्यार्थियों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करते थे। इस भौतिकतावादी युग में शिक्षा का व्यावसायीकरण हो चुका है पर फिर भी अध्यापक को किसी भी अवस्था में शिक्षा के प्रति अपनी निष्ठा को नहीं त्यागना चाहिए और उसे जीवन-मूल्यों को बनाकर रखना चाहिए। व्यावसायीकरण के कारण अध्यापकों-छात्रों के संबंधों में परिवर्तन आया है जो समाज के समुचित विकास के लिए अच्छा नहीं है। अध्यापक को विद्यार्थियों की भावनाओं को मानवीय रूप प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए। यदि वह स्वयं जलता हुआ दीप नहीं है तो वह दूसरों में ज्ञान के प्रकाश को प्रसारित करने में सदैव असमर्थ रहेगा। समाज के विकास के लिए आदर्श अध्यापक अति आवश्यक है। उनके अभाव में सभ्यता और संस्कृति की कल्पना करना भी अत्यंत कठिन है।

प्रश्न :
1. भारतीय समाज में गुरु का स्थान कब से अति ऊँचा माना जाता रहा है ?
2. नारायण तीर्थ ने भक्ति के तेईस अंगों में गुरु को भक्ति का कौन-सा अंग माना है ?
(क) पहला
(ख) दसवाँ
(ग) चौदहवाँ
(घ) बीसवाँ
3. तुलसी ने राम-कृपा का स्वतंत्र और अमोघ साधन किसे माना है ?
4. देवताओं के गुरु कौन थे?
5. सिकंदर को विश्व-विजय के लिए किसने उकसाया था ?
6. सारे राष्ट्र के भाग्य का निर्माण कौन करता है ?
7. छात्रों के विकास के लिए अध्यापकों में किसकी अति आवश्यकता होती है ?
8. अध्यापक का नेतृत्व किन विशेषताओं पर निर्भर करता है?
9. गुरुकुलों में विद्यार्थी शिक्षा-प्राप्ति के लिए क्या दिया करते थे?
10. भौतिकतावादी युग में शिक्षा का क्या हो गया है?
उत्तर :
1. युगों से।
2. (क) पहला।
3. गुरु की शरण में जाकर उससे शिक्षा प्राप्त करने को।
4. बृहस्पति।
5. सिकंदर के गुरु अरस्तु ने।
6. अध्यापक।
7. संवेगात्मक संतुलन की।
8. अध्यापक के चरित्र, शक्ति और प्रभावशीलता तथा दूसरों से प्राप्त आदर पर।
9. विद्यार्थी निःशुल्क शिक्षा प्राप्त किया करते थे।
10. व्यावसायीकरण।

वार्तालाप / संवाद –

4. नीचे दिए गए वार्तालाप को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(वार्तालाप):
राम्या – मुझे जल्दी से मम्मी को बताना है कि मेरा परीक्षा परिणाम आज शाम तक आ जाएगा।
शर्मिष्ठा – तो बता दे। देर क्यों कर रही है ?
राम्या – मेरा मोबाइल तो घर पर ही रह गया है। क्या करूँ?
शर्मिष्ठा – करना क्या है ? मेरा मोबाइल ले और मम्मी से बात कर ले।
राम्या – हाँ, यह तो है। कितना सुख हो गया है मोबाइल का अब।
शर्मिष्ठा – अरे, इसने सारी दुनिया को गाँव बनाकर रख दिया है।
राम्या-क्या मतलब ?
शर्मिष्ठा – मतलब यह है कि अब पल भर में संसार के किसी भी कोने में किसी से भी बात कर लो। लगता है कि हर कोई बिलकुल पास है। ऐसा तो गाँवों में ही होता था।
राम्या – मोबाइल लोगों के पास पहुँचा भी बहुत तेज़ी से है।
शर्मिष्ठा-कभी सोचा भी नहीं था कि मोबाइल इतनी तेज्जी से लोगों की जेब में अपना स्थान बनाएगा।
राम्या – बहुत लाभ हैँ इसके।
शर्मिष्ठा – लाभ तो हैं तभी तो हर अमीर-गरीब के पास दिखाई देने लगा है यह।
राम्या – अब तो यह मज़दूरों और रिक्शा चलाने वालों के पास भी दिखाई देता है।
शर्मिष्ठा – उनके लिए यह और भी जरूरी है। वे छोटे शहरों और गाँवों से काम करने बड़े शहरों में आते हैं। मोबाइल से वे अपने घर से सदा जुड़े रहते हैं।
राम्या – नुकसान भी तो हैं इसके।
शर्मिष्ठा – वे क्या हैं? मेंरे विचार से तो मोबाइल का कोई नुकसान नहीं है।
राम्या – इससे अपराध बढ़े हैं। बच्चे भी क्लास में इसे लेकर बैठे रहते हैं। उनका ध्यान पढ़ाई की ओर कम और मोबाइल पर अधिक रहता है।
शर्मिष्ठा – हाँ, आतंकवादी तो इससे विस्फोट तक करने लगे हैं।
राम्या – ओह! फिर तो बड़ा खतरनाक सिद्ध हो सकता है।
शर्मिष्ठा – जेलों में भी अपराधी छिप-छिप कर इनका प्रयोग करते हुए पकड़े जा चुके हैं।
राम्या – अरे, हर अच्छाई में बुराई तो सदा ही छिपी रहती है। वह इसमें भी है।
शर्मिष्ठा – वह तो है। अच्छा यह ले मोबाइल और कर ले बात।

प्रश्न :
1. वार्तालाप किस-किस के बीच हुआ ?
2. किसने किससे मोबाइल पर बात करनी थी ?
3. मोबाइल ने दुनिया को बना दिया है-
(क) नगर
(ख) कस्बा
(ग) गाँव
(घ) महानगर
4. मोबाइल की पहुँच किस-किस के पास हो चुकी है?
5. अपराधों की वृद्धि में किसने सहायता दी है?
6. क्लास में बच्चे मोबाइल से क्या करते रहते हैं?
7. आतंकवादी मोबाइल का प्रयोग किस कार्य के लिए करने लगे हैं?
8. अपराधी छिप-छिप कर कहाँ से मोबाइल का प्रयोग करने लगे हैं?
9. सदा अच्छाई में क्या छिपी रहती है ?
10. किसने मम्मी से बात करने के लिए अपना मोबाइल दिया ?
उत्तर :
1. राम्या और शर्मिष्ठा के बीच।
2. राम्या को अपनी मम्मी से बात करनी थी।
3. (ग) गाँव।
4. हर गरीब-अमीर के पास।
5. मोबाइल के प्रयोग ने।
6. एस०एम०एस० करते रहते हैं।
7. विस्फोट करने में।
8. जेलों से।
9. बुराई।
10. शर्मिष्ठा ने।

कविता –

5. कविता को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

उस दिन
वह मैंने थी देखी
कॉलेज के निकट, कच्ची सड़क के पास
गंदी नाली पर पड़ी-
जहाँ से गुज़र नहीं सकता
कोई भी बिना नाक पर डाले कपड़ा-
गंदे काले चिथड़ों औ’ फटी-पुरानी गुदड़ी में लिपटी,
देखकर आती जिसको घिन,
पौष के तीव्र शीत में करती क्रंदन-
“हाय मार गया, पकड़ो, पकड़ो,
धत्त तेरे की!
क्या लिया तुम्हारा मैंने मूज़ी ?
क्यों मुझ को व्यर्थ सताता ?
भागो-भागो, हाय मार गया वह मुझको”
सताए कूकर सी कटु कर्कश वाणी में चिल्लाती
वह कुबड़ी काली सी पगली नारी।

सोचा मैने,
पर मैं समझ न पाया-
क्या वह है दैव की मारी?
या समाज की, जो है अत्याचारी
दीनों, दलितों, असहायों पर ?
या संबंधियों की निज
छीन लेते हैं जो दलित बंधुओं से
सूखी रोटी का टुकड़ा भी?
या वह है हुई शिकार बेचारी
किसी धूर्त लंपट व्यभिचारी की,
जो जघन्य कर्म करने में,
पर-जीवन-रस हरने में
नहीं कम उन वन्य पशुओं से
जो करते आखेट क्षुद्र जंतुओं का
केवल उदर-भरण के कारण ?

प्रश्न :
1. कवि ने पगली को कहाँ देखा था?
2. नाक को ढके बिना कहाँ से नहीं गुजरा जा सकता था ?
(क) गंदी नाली के पास से
(ख) कूड़े के ठेर के पास से
(ग) गंदे कपड़ों के पास से
(घ) सड़े हुए फलों के पास से
3. कवि ने किस महीने में पगली को देखा था?
4. पगली का शरीर किससे ढका हुआ था ?
5. पगली क्यों चिल्ला रही थी ?
6. पगली की वाणी थी-
(क) कोमल
(ख) कटु-कर्कश
(ग) सहज
(घ) शांत
7. पगली का खूप-आकार क्या था?
8. ‘दैव की मारी’ से तात्पर्य है-
(क) किस्मत की मारी
(ख) भूख की मारी
(ग) रिश्तेदारों की सताई हुई
(घ) गरीबी की मारी
9. कवि ने पगली के पागलपन का कारण किसे माना है ?
10. कवि का स्वर कैसा है?
उत्तर :
1. कॉलेज के निकट, कच्ची सड़क के पास।
2. (क) गंदी नाली के पास से।
3. पौष के महीने में।
4. गंदे काले चिथड़ों से।
5. पगली पागलपन के कारण चिल्ला रही थी। उसके अवचेतन मन में पागल हो जाने के दुखदायी कारण छिपे हुए थे।
6. (ख) कटु-कर्कश।
7. वह कुबड़ी काली थी।
8. (क) किस्मत की मारी।
9. कवि ने किसी एक को पगली के पागलपन का कारण नहीं बताया। उसने अनेक संभावनाएँ प्रकट की हैं।
10. मानवतावादी।

II. बोलना

(i) भाषण, वाद-विवाद –
भाषण देना एक अनूठी कला है जिसे थोड़े से अभ्यास से सीखा जा सकता है। अच्छा भाषण देने वाला व्यक्ति आज के युग में शीप्र ही ख्याति प्राप्त कर लेता है। राजनीति, धर्म आदि तो ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ अच्छा भाषण देने वालों ने बहुत नाम कमाया है।
भाषण देने की कला मुख्य रूप से दो आधारों पर टिकी हुई है-

  • उच्चारण और वाक्य संरचना
  • शारीरिक छवव-भाव।

अच्छे भाषण के गुण –

1. रोचकता – अच्छा भाषण वही कहलाता है, जो अपने भीतर रोचकता का गुण छिपाए हुए हो। उसमें श्रोता को अपने साथ बाँध लेने का गुण होना चाहिए। भाषण ऐसा होना चाहिए कि श्रोता का ध्यान पूरी तरह से भाषण देने वाले की ओर लगा रहे। रोचकता को बढ़ाने के लिए भाषण में काव्यांशों, चुटकलों, उदाहरणों, चटपटी बातों आदि का स्थान-स्थान पर प्रयोग किया जाना चाहिए।

2. स्पष्टता – भाषण में भाव, विषय और भाषा की स्पष्टता होनी चाहिए। भाषण देने वाले को पूर्ण रूप से पता होना चाहिए कि उसने कहाँ और क्या बोलना है। उसके मन में विचारों की व्यवस्था पहले से ही होनी चाहिए। उसे विषय पर पूर्ण रूप से अधिकार होना चाहिए। उसकी भाषा में सरलता और स्पष्टता निश्चित रूप से होनी चाहिए।

3. ओजपूर्ण – वक्ता को भाषण देते समय उत्साह और ओज का परिचय देना चाहिए। उसकी वाणी ऐसी होनी चाहिए जो श्रोताओं की नस-नस में मनचाहा जोश भर दे। उसके भाषण में ऐसे भाव भरे होने चाहिए कि श्रेताओं को लगे कि वे वही तो सुनना चाहते थे, जो वक्ता कह रहा है।

4. पूर्णता – भाषण में पूर्णता का गुण होना चाहिए। श्रोता को सदा ऐसा लगना चाहिए कि वक्ता के द्वारा कही जाने वाली बात बिलकुल पूरी है और उसमें किसी प्रकार का कोई अधूरापन नहीं है। वक्ता को किसी भी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति की ओर स्पष्ट संकेत करना चाहिए।

5. श्रोताओं की रुचि के अनुसार – भाषण का औचित्य सीधा श्रोता से जुड़ा होता है। वक्ता को ऐसे विषय और उदाहरण चुनने चाहिए जो श्रोताओं की रुचि के अनुसार हों। श्रोताओं की आयु, मनोदशा और परिस्थितियों को समझ कर ही उसे बोलना चाहिए। उसे दैनिक जीवन से विभिन्न प्रसंगों को लेकर उन्हें अपने भाषण का हिस्सा बनाना चाहिए। विषय से जुड़ी विभिन्न समस्याओं को श्रोताओं के सामने उठाना चाहिए और उन समस्याओं का तर्कपूर्ण समाधान बताना चाहिए। उसे वही बात कहनी चाहिए जो कोरी कल्पना पर आधारित न होकर यथार्थ जीवन से जुड़ी हुई हो।

6. स्वर में आरोह-अवरोह – भाषण देते समय वक्ता को सीधी-सपाट भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उसे श्रोताओं को संबोधित करते समय अपने स्वर में आरोह और अवरोह की ओर विशेष ध्यान रखना चाहिए। उसे स्थान-स्थान पर प्रश्न उपस्थित करके उनका समाधान प्रस्तुत करना चाहिए।

7. तध्यात्मकता – भाषण में तथ्यों और सूचनाओं को प्रस्तुत करके श्रोताओं को अपनी ओर सरलता से आकृष्ट किया जा सकता है। इससे जिञ्ञासा तो बढ़ती ही है पर साथ-ही-साथ वक्ता के ज्ञान का परिचय भी मिलता है।

8. क्रियात्मक अभिनय – वक्ता अपने चेहरे पर आए भावों, हाथों के संकेतों और गर्दन की गति से भावों के प्रकाशन में नए आयाम जोड़ सकता है। क्रियात्मक अभिनय स्वाभाविक होना चाहिए। इसकी अति कृत्रिमता को जन्म देती है जो श्रोताओं को कदापि सहन नहीं हो पाती।

9. संभाव्यता – भाषण कल्पना के आधार पर टिका हुआ नहीं होना चाहिए। वक्ता मंच से जो भी कहे वह प्रामाणिक होना चाहिए। किसी पर झूठे आक्षेप तो कभी नहीं लगाए जाने चाहिए।

भाषणों के कुछ उदाहरण –

1. आइए, हम भी बनें जल-मित्र

मंच पर आसीन मुख्य अतिथि महोदय, सम्माननीय प्राचार्य जी, आदरणीय अध्यापकगण और मेरे प्रिय साथियो! आज की प्रतियोगिता में मेरे संभाषण का विषय है-‘ आइए हम भी बनें जल-मित्र।’
जल हमारा जीवन है। हम भोजन के बिना तो कुछ दिन या कुछ सप्ताह जीवित रह सकते हैं पर जल के बिना अधिक देर तक जीवित नहीं रह सकते। हमारे देश में जल-संकट बढ़ता जा रहा है। हम इस संकट का जिस स्तर पर अनुमान लगा रहे हैं, संकट उससे कहीं अधिक गंभीर है। एक रिपोर्ट के अनुसार गंगा, भागीरथी और अलकनंदा बेसिन के 564 ग्लेशियर तेज़ी से सिमट रहे हैं। इनमें से आधे से अधिक सन 2075 तक पूरी तरह समाप्त हो जाएँगे। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के अनुसार दिल्ली के भू-जल भंडार सन 2015 तक पूरी तरह समाप्त हो जाएँगे। केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2006 में भाखड़ा सहित उत्तर भारत के प्रमुख बाँधों में क्षमता से 70 \%-90 \% तक पानी की कमी थी। मध्य प्रदेश के गांधी सागर बाँध में जल का स्तर शून्य पर था।
साधियो, निश्चित रूप से इसके लिए ज़िम्मेदार हम हैं। हमने जल को सहेज कर नहीं रखा। हमने बड़ी बेरहमी से भू-जल का दोहन किया है पर इतना निश्चित है कि प्रकृति हमें लंबे समय तक ऐसा नहीं करने देगी। जब जल ही नहीं रहेगा तो हम उसका दोहन कैसे कर सकेंगे ? पर ज़रा सोचो तो, तब हम सबका क्या होगा ? हमारी आने वाली पीढ़ियों का क्या होगा ?
स्पष्ट है कि जल के अनियंत्रित उपयोग पर अंकुश लगाना होगा और स्थिति को अधिक बिगड़ने से पहले हमें एक साथ दो मोर्चों पर काम करना होगा-वर्षा के जल का संग्रहण तथा उपलब्ध जल का बेहतर प्रबंधन।
हमें वर्षा के जल को सीधा भू-गर्भ में उतार देने का रास्ता अपनाना चाहिए क्योंकि वर्षा-जल बिलकुल स्वच्छ होता है। देश में कई स्थानों पर ऐसा किया गया है और वहाँ भू-जल की गुणवत्ता में सुधार आया है। हमें बोरवेल तरीके का प्रयोग करना चाहिए। इस तरीके से जमीन में रेतीली सतह की गहराई तक पाइप ड्रलकर जल-संग्रहण किया जाता है।

साथियो, जल-संग्रहण से भी अधिक जरूरी है उपलब्ध जल का समझदारी से उपयोग करना। हम अपने दैनिक जीवन में कुछ आदतों को बदलकर घर में पानी की खपत को पचास प्रतिशत तक बचा सकते हैं। हम बचे हुए पेयजल को गमलों में उगे पौधों को डाल सकते हैं। कपड़े धोने का बचा पानी पोछे में इस्तेमाल कर सकते हैं। वाहनों की धुलाई बालटी में पानी लेकर करनी चाहिए न कि पाइप से। घर में लॉन की सतह शेष पक्के फर्श से नीचे रखकर, छत का पानी लॉन में छोड़ना चाहिए। प्याऊ या हैंडपंप के व्यर्थ पानी के लिए गइटा खुदवाना चाहिए।

भाइयो! हमें चाहिए कि पानी की बूँदें जहाँ गिरें उन्हें वहीं रोक लिया जाए। जल-संरक्षण का यही मूलमंत्र है। इसके अनगिनत समाधान आप स्वयं भी सोच सकते हैं। भू-जल भंडार एक बैंक के समान है, जिसमें पानी जाता रहता है तों निकलता भी रहता है। यदि हमने इस बँक से केवल निकासी ही जारी रखी तो उसका परिणाम हम समझ सकते हैं। समय आ चुका है कि हम सब जल के महत्त्व को समझें और जी-जान से उसकी रक्षा करें ताकि हमारा भविष्य सुखद बना रहे।

2. जीवन

मान्यवर अध्यक्ष महोदय और आज की इस सभा में उपस्थित महानुभावो! हम सबके मन में हमेशा ही एक प्रश्न चक्कर काटता रहता है कि जीवन क्या है ? जीवन का उद्देश्य क्या है ? जीवन को देखकर कोई इसे नश्वर कहता है और इसकी क्षण-भंगुरता को देखकर परेशान रहता है। किसी को यह सुंदर सपना लगता है और कोई इसकी वास्तविकता पर मुग्ध है। कोई इसे सुखद बनाने के लिए प्रयत्न करता है तो कोई इससे परेशान होकर अपने शरीर को भी त्याग देने की ठान लेता है।

सच में तो जीवन तर्क-वितर्क का विषय नहीं है। यह हमारे अनुभव की वस्तु है। इसका उद्देश्य कहीं बाहर नहीं बल्कि इसमें ही छिपा हुआ है। यह तो हम सब के भीतर वैसे ही है जैसे दीपक की लौ में रोशनी और फूल में सुगंध और सुंदरता छिपी रहती है। प्रकाश के रहस्य को समझना

ही दीपक को समझना है। सुगंध और सौँदर्य को समझना फूल को समझना है पर बुद्धि के प्रयोग से जीवन को समझने का रहस्य तो और अधिक उलझता जाता है। तब हमारा हृदय हम से महादेवी वर्मा की तरह पूछने लगता है-

किन उपकरणों का दीपक, किसका जलता है तेल ?
किसकी बाति कौन करता इसका ज्वाला से मेल?

दीपक के जलने में ही जीवन का आनंद है। हमारी भावनाएँ ही इसे सुखद बनाती हैं या परेशान कर देती हैं तभी तो महादेवी वर्मा अपने जीवन रूपी दीपक से मधुर-मधुर जलने को कहती है-

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल!

पर वहीं यह भी मान लिया जाता है कि फूल की हँसी उसकी मौत से पहले का रूप है-

धूल हाय! बनने को ही खिलता है फूल अनूप।
वह विकास मुरझा जाने का ही है पहला रूप॥

साथियो, सबका अपना-अपना दृष्टिकोण है जीवन के प्रति। फारसी के कवि उमर खय्याम का कहना है कि-
“मरने से पहले, आओ, हुम जीवन का आनंद उठा लें। फिर तो हमें मिद्टी में मिलकर मिट्टी के नीचे दब जाना है।” तो प्रसिद्ध अंग्रेज़ी ड्राइडन का मानना है-
“जब मैं ज़िदगी के बारे में सोचता हूँ तो मुझे सरासर धोखा प्रतीत होता है। फिर भी आशा ने लाखों को इस प्रकार उलझा रखा है कि वे इस मिध्या प्रवचनों से किसी तरह छूट नहीं पाते। वे सोचते हैं कि आने वाला कल उनकी कामनाओं को फल देगा। पर वास्तव में कल आज से भी असत्य होता है।”
मान्यवर, पाल लॉरंस का कहना है- “घड़ी भर के लिए हैंसना और घंटों रोना, थोड़ा-सा आनंद और भारी दुख, बस यही जीवन है।” हैनरी वाइल्ड ने जीवन की तुलना पतझड़ के उस पत्ते से की है जो चाँद की धुँधली किरणों में काँपता है और शींघ्र ही झड़कर गिर पड़ता है।
यदि हम ध्यान से सोचें तो लगता है कि जीवन हमारे अनुभव का शास्त्र है। यह लेने के लिए नहीं है बल्कि देने के लिए है। जीवन केवल खाने और सोने का नाम नहीं है। यह तो नाम है, सदा आगे बढ़ने की लगन का। जीवन विकास का सिद्धांत है, स्थिर रहने का नहीं। जीवन तो कर्म का दूसरा नाम है। जो कर्म नहीं करता, उसका अस्तित्व तो है किंतु वह जीवित नहीं होता। इस बात का कोई महत्त्व नहीं कि मनुष्य मरता किस प्रकार है, महत्त्व की बात यह है कि वह जीवित किस प्रकार रहता है।
साधियो, हमें याद रखना चाहिए कि जीवन एक गतिशील छाया मात्र है। इसका द्वार तो सीधा है पर मार्ग बहुत संकीर्ण है। आत्मज्ञान, स्वाभिमान और आत्मसंयम जीवन को अलौकिक शक्ति की तरफ़ ले जाते हैं। स्वेट मार्डेन का कहना है-‘जो दूसरों के जीवन के अंधकार में सूर्य का प्रकाश पहुँचाते हैं, उनका इस मृत्युलोक में कभी नाश नहीं होगा।’ तभी तो रवींद्रनाथ ठाकुर कवितामयी भाषा में लिखते हैं- पत्तों पर नृत्य करती हुई ओस के समान अपने जीवन को भी समय के दलों पर नृत्य करने दो।
असल में, जीवन एक गंभीर सत्य है। ईश्वर ने इसे हमें प्रदान किया है। मृत्यु इसकी मंजिल नहीं है। वह तो एक मार्ग का दूसरी तरफ मुड़ जाना मात्र है। पता नहीं कब तक हमें इस मार्ग पर आगे बढ़ते रहना है।

(ii) सस्वर कविता-वाचन –

कविता सुनना किसे अच्छा नहीं लगता ? कविता-पाठ से बरसता रस सहज ही मन को मुग्ध कर लेता है पर कविता का पाठ करना बहुत सरल नहीं है। कुछ लोगों में इसकी जन्म-जात प्रतिभा होती है। इसके लिए अभ्यास और सूक्ष्म दृष्टि की आवश्यकता होती है। कविता-पाठ सामान्य गानों के गायन से कुछ भिन्न है। गायन में संगीत की प्रधानता होती है, स्वर लहरियों का जादू होता है और मिठास का लहलहाता सागर होता है। कोई भी कविता इन गुणों को पाकर गीत बन जाती है। जब कोई व्यक्ति कविता-पाठ करता है तो उसे श्रोताओं की मानसिकता और स्थिति को समझकर अपनी कविता चुननी चाहिए। हर कविता कवि के अलग मूड को प्रतिबिंबित करती है और श्रोताओं पर उसका प्रभाव भी उसी प्रकार पड़ना चाहिए। हँसी-खुशी के अवसर पर करुणा से भरी कविता का कोई औचित्य नहीं है तो दुख-भरे माहौल में शृंगार रस से भरी कविता सुनाने वाला उपहास का कारण ही बनता है। उसकी बुद्धि पर सभी को तरस आता है।
कविता-पाठ करते समय जिन बातों की तरफ़ ध्यान रखा जाना चाहिए वे हैं –

  • अवसरानुकूल कविता-पाठ का स्वर।
  • लयात्मकता और गेयता।
  • उच्चारण की स्पष्टता और शुद्धता।
  • हस्त-संचालन।
  • स्वर में समुचित आरोह-अवरोह।
  • कंठस्थता।
  • चेहरे और आँखों से भावों की अभिव्यक्ति।
  • भावानुसार स्वर की गति-योजना।

प्रत्येक कविता-पाठ करने वाले को कविता में छिपे भावों को स्वरों से उभारने का प्रयत्न करना चाहिए। उसे भावों में छिपे गूढ़ अर्थ को व्यक्त करने के लिए शब्दों और वाक्यों के बीच उचित ठहराव के महत्त्व को कभी नहां भूलना चाहिए। काव्य-रस के अनुसार उसके चेहरे पर कठोरता, कोमलता, करुणा, श्रद्धा आदि के भाव आने चाहिए। उसकी वाणी को कोमल, कठोर, मंद, उच्च, करुण आदि रूपों में प्रकट होना चाहिए। इसका श्रोता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कविता-पाठ करने वाले को स्वयं कविता में पूरी तरह डूब जाना चाहिए। जहाँ तक संभव हो कविता को बिना कहीं से पढ़े प्रस्तुत करना चाहिए। इससे भावों को प्रकट होने में स्वाभाविकता मिलती है।

उदाहरण 1

मैंने जीवन के प्याले में आसस का विषपान किया है,
और बरसते नयनों से भी सुबक-सुबक कर गान किया है।

करुण रस से भरी इन दो पंक्तियों का श्रोता के हदय पर तब प्रभाव पड़ेगा जब स्वर में करुणा का भाव हो। स्वर में बहुत अधिक उच्चता न हो और चेहरे पर बहुत उत्साह के भाव न हों। इनसे ऐसा लगना चाहिए जैसे कवि अपने हृदय में छिपी पीड़ा को व्यक्त करना चाहता हो। अपने शब्दों को प्रभावात्मकता का गुण देने के लिए उसे इस प्रकार बोलना चाहिए –
मैंने-
जीवन के प्याले में……
आँसू का
विषपान किया है,
और!
बरसते नयनों से भी
सुबक-सुबक कर……
गान
किया है।
‘मैंने’ के पश्चात् पल भर रुक कर अपने प्रति ध्यान आकृष्ट करना चाहिए।
‘जीवन के प्याले में’ के बाद विराम से जिज्ञासा उत्पन्न करनी चाहिए।
‘आँसू का’ के साथ दुख का भाव व्यक्त होना चाहिए।
‘विषपान किया है’ में असह्काता प्रकट होनी चाहिए।
‘और’ के द्वारा कथन को आगे बढ़ाने पर बल होना चाहिए।
‘बरसते नयनों से भी’ से निराशा जगनी चाहिए।
‘सुबक-सुबक कर’ में व्यथा का भाव जागृत होना चाहिए।
‘गान’ में पीड़ा से भरे व्यंग्य को प्रकट होना चाहिए।
‘किया है’ में विवशता विद्यमान रहनी चाहिए।
जब कोई कवि कविता का पाठ आरंभ करता है तो उसे कविता का शीर्षक बताने के साथ कविता में निहित भाव संक्षेप में बताने चाहिए।

उदाहरण 2
में आपके समक्ष राष्ट्र कवि मैधिलीशरण गुप्त की कविता सुनाने जा रहा हूँ जिसका शीर्षक है-मातृभूमि। कवि ने अपनी इस कविता में भारत-भूमि का गुणगान अति स्वाभाविक रूप से किया है।

(iii) वार्तालाप और उसकी औपचारिकताएँ –
इस संसार में कोई भी इनसान किसी दूसरे से कड़वी बात नहीं सुनना चाहता। किसी के द्वारा बोले गए मीठे शब्द दूसरों के ब्वदय पर भीषण गर्मी में ठंडी हवा के झोंकों-सा काम करते हैं। जो व्यक्ति स्वयं कड़वा और कठोर बोल लेते हैं वे भी अपने लिए दूसरों से मीठी आवाज ही सुनना चाहते हैं। कड़वी बातचीत सीधे मन पर ऐसा प्रभाव ड्ञालती है कि वह चाहकर भी कभी नहीं भूलती। अधिकांश लड़ाई-झगड़े कड़वी ज़ुबान से ही शुरू होते हैं और अनेक बड़ी गलतियाँ मीठी जुबान से क्षमा हो जाती हैं। सभ्यता की पहचान ही सद्व्यवहार और मीठी बातचीत है। जो व्यक्ति जितना मधुर व्यवहार और मीठी बातचीत करता है उतना ही वह समाज में प्रतिष्ठा पा जाता है। चेहरे पर आई मुस्कराहट और मधुर बातचीत सबके हूदय को जीत लेने की क्षमता रखती है।

वार्तालाप की मधुरता से आपसी संबंध घनिष्ठ होते हैं। कई तरह के भेदभाव और झगड़े मिट जाते हैं। इसके लिए न तो कुछ खर्च करना पड़ता है और न ही कोई परिश्रम करना पड़ता है। इसके लिए निम्न औपचारिकताएँ हैं-

  • मीठे शब्द
  • अपनेपन और सहयोग का भाव
  • चेहरे पर मुस्कान
  • संवेदना
  • विनम्र व्यवहार
  • मृदुता

मधुर वार्तालाप दूसरों के हृदय को ही जीतने में सहायता नहीं देता बल्कि अपने मन को भी सुख-शांति प्रदान करता है। इससे व्यक्ति तनाव रहित जीवन जीने में सफलता प्राप्त कर लेता है।

शिष्ट वार्तालाप से संबंधित कुछ उदाहरण –

उदाहरण 1-माँ-बेटे का वार्तालाप

  • माँ – ओह! मेरी पीठ – ।
  • शुभम – (घबरा कर) क्या हुआ मम्मी ?
  • माँ – पता नहीं बेटा ? पीठ में दर्द है।
  • शुभम – कब से है यह ?
  • माँ – आज दोपहर से।
  • शुभम – क्या पापा को बताया था आपने ?
  • माँ – नहीं “वे तो सुबह ही चले गए थे अपने काम पर।
  • शुभम – मेरे साथ अभी डॉक्टर के पास चलो।
  • माँ – रहने दे बेटा। अपने आप ठीक हो जाएगा।
  • शुभम – नहीं, माँ। हम दोनों अभी जाएँगे। आपका चेहरा दर्द से कितना पीला पड़ गया है।
  • माँ – तू बहुत ध्यान रखता है, मेरा। भगवान तुझे लंबी उमर दे।

उदाहरण 2 – अध्यापक-अध्यापक का वार्तालाप

  • गुप्ता सर – (बैठते हुए) पहले कभी देखा नहीं आप को, स्टॉफ रूम में।
  • जैन सर – सर, मैं इस स्कूल में आज ही नियुक्त हुआ हूँ।
  • गुप्ता सर – (हाथ आगे बढ़ाते हुए) यह तो बहुत अच्छा है।
  • जैन सर – (हाथ मिलाते हुए) मैं मनोज जैन हूँ। इससे पहले जयपुर में था।
  • गुप्ता सर – किस विभाग में आए हैं, आप ?
  • जैन सर – गणित में।
  • गुप्ता सर – अरे, वाह! मैं भी गणित में हूँ।
  • जैन सर – फिर तो बहुत अच्छा हो गया। मुझे आपका सहारा मिल जाएगा।
  • गुप्ता सर – सहारा तो मुझे आपका मिलेगा। शर्मा सर के जाने के बाद उनकी सारी कक्षाएँ भी मैं ले रहा था।
  • जैन सर – हाँ, मुझे उन्हीं का टाइम-टेबल दिया गया है।
  • गुप्ता सर – मैं आपको सब बता दूँगा कि किस-किस कक्षा में क्या-क्या हो चुका है और शेष क्या रह गया है।
  • जैन सर – धन्यवाद सर।

उदाहरण 3 – अध्यापक-छात्र का वार्तालाप

  • छात्र – (हाथ जोड़ते हुए) नमस्कार सर!
  • अध्यापक – नमस्कार बेटा। आज बहुत दिन बाद दिखाई दिए।
  • छात्र – सर, मुझे टाइफॉइड हो गया था। तीन सप्ताह बाद आज स्कूल आ सका हूँ।
  • अध्यापक – ओह! अब तो पूरी तरह से ठीक हो न ?
  • छात्र – जी हाँ।….. पर मुझे आपसे कुछ पूछना है।
  • अध्यापक – पूछो, जो पूछना है।
  • छात्र – सर, मेरा बहुत-सा सिलेबस पूरा नहीं हो पाया है।
  • अध्यापक – हाँ, वह तो है। उसे अब अपने मम्मी-पापा की सहायता से पूरा कर लो।
  • छात्र – सर, उन्हें तो इक्नॉमिक्स नहीं आती। उन्होंने कभी यह विषय पढ़ा ही नहीं।
  • अध्यापक – कोई बात नहीं। तुम कुछ दिन के लिए अपनी आधी छुट्टी के समय स्टॉफ रूम में आ जाया करो। मैं तुम्हारा पिछला काम पूरा करा दूँगा।
  • छात्र – (प्रसन्न होकर) धन्यवाद सर। आपने तो मेरी समस्या पल भर में सुलझा दी।

उदाहरण 4 – फल-विक्रेता से एक ग्राहुक का वार्तालाप

  • ग्राहक – भैया, सेब किस भाव दिए हैं ?
  • फल-विक्रेता – चालीस रुपए किलो।
  • ग्राहक – ताज़े तो हैं ये ?
  • फल-विक्रेता – आज सुबह ही आए हैं। बहुत मीठे हैं।
  • ग्राहक – तुम्हारा भाव थोड़ा ज़्यादा है।
  • फल-विक्रेता – नहीं साहब। भाव तो बिलकुल ठीक है।
  • ग्राहुक – वह सामने रेहड़ी वाला तो तीस रुपए किलो दे रहा है।
  • फल-विक्रेता – साहब, उसे अपने माल का भाव पता है। पिछले सप्ताह का बासी माल बेच रहा है।
  • ग्राहक – तो तुम भाव कम नहीं करोगे ?
  • फल-विक्रेता – नहीं साहब। मैं तो सभी से एक ही भाव लगाता हूँ। में अच्छा माल रखता हूँ और मोल-भाव नहीं करता।
  • ग्राहक – ठीक है। दो किलो तोल दो।

उदाहरण 5 – बच्ची और डॉक्टर का वार्तालाप

  • डॉक्टर – क्यों बेटी ? क्या हो गया ?
  • बच्ची – डॉक्टर साहब, कल शाम से बुखार है।
  • डॉक्टर – तो कल ही दवाई लेने क्यों नहीं आई ?
  • बच्ची – डर लगता था।
  • ङॉवदर – डर, मुझसे ? क्यों ?
  • बच्ची – आप इंजेक्शन लगा देंगे, इसलिए।
  • डॉक्टर – तो इंजेक्शन से डर लगता है तुम्हें।
  • बच्ची – हाँ! मुझे तो इंजेक्शन देखकर ही डर लगता है। इंजेक्शन तो नहीं लगाएँगे, न ?
  • डॉक्टर – नहीं, बिलकुल नहीं। दवाई देंगे और वह भी मीठी।
  • बच्ची – धन्यवाद। मैं तो डरते-डरते यहाँ तक आई थी।

उदाहरण 6 – यात्री और कंडक्टर का वार्तालाप

  • यात्री – एक टिकट देना।
  • कंडक्टर – कहाँ का ?
  • यात्री – चंडीगढ़ का।
  • कंडक्टर – अरे साहब, यह बस चंडीगढ़ नहीं जाएगी।
  • यात्री – तो ?
  • कंडक्टर – तो क्या ? यह पटियाला जाएगी। आप अंबाला तक का टिकट ले लीजिए। वहाँ से बस बदल लेना।
  • यात्री – ठीक है। एक टिकट दे दो।
  • कंडक्टर – यह लो टिकट।
  • यात्री – धन्यवाद।

उदाहरण 7 – गृहिणी और भिखारी का वार्तालाप

  • भिखारी – बीबी जी, रोटी दे दो। दो दिन से भूखा हूँ।
  • गृहिणी – रोटी तो दे दूँगी पर तुम कोई काम-धंधा क्यों नहीं करते ?
  • भिखारी – हमें काम देता कौन है ?
  • गृहिणी – क्यों ?
  • भिखारी – हम पढ़े-लिखे तो हैं नहीं।
  • गृहिणी – अरे, हट्टे-कट्टे तो हो। मेहनत-मज़दूरी नहीं कर सकते?
  • भिखारी – बीबी जी, आपने रोटी देनी है तो दो, नहीं तो में अगले घर जाऊँ।
  • गृहिणी – बात तो यही है। जब बिना काम किए पेट भरता हो तो काम क्यों करोगे ?

(iv) कार्यक्रम प्रस्तुति –
मंच से किसी कार्यक्रम को प्रस्तुत करना अपने आप में एक कला है। अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया गया कोई भी कार्यक्रम श्रोताओं पर जादुई प्रभाव डालता है। कोई अच्छा मंच संचालक या कलाकार उनके मन-मस्तिष्क को झकझोर सकता है, उन्हें अपने साथ झूमने या रुलाने के लिए तैयार कर सकता है। कार्यक्रम की प्रस्तुति के दो भाग होते हैं-

  • मंच-संचालन करना
  • स्वयं अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करना

1. मंच-संचालन
मंच-संचालन करने वाला व्यक्ति अपने व्यक्तित्व, ज्ञान और शब्दों के कुशल प्रयोग से किसी कार्यक्रम की सफलता में अनूठा योगदान देता है। वह श्रोताओं और कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले कलाकार के बीच कड़ी का कार्य करता है। वही दो कार्यक्रमों के बीच के खाली समय को अपने कौशल से भरता है। उसमें जिन गुणों का होना आवश्यक है, वे हैं-

  • शब्दों और भाषा का अच्छा ज्ञान
  • हाजिर-जवाब
  • श्रोताओं के मूड को बदलने की क्षमता
  • भाषा के आरोह-अवरोध की शक्ति का ज्ञाता

मंच-संचालक श्रोताओं को कार्यक्रमों की मंच से जानकारी देता है। वह कलाकारों के उत्साह को बढ़ाता है और श्रोताओं के मन में कार्यक्रमों के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करता है। वही कलाकारों के द्वारा कार्यक्रमों की प्रस्तुति से पहले उनका परिचय श्रोताओं तक पहुँचाता है।
मंच-संचालन से पहले प्रत्येक मंच-संचालक के लिए आवश्यक है कि वह प्रस्तुत किए जाने वाले सभी कार्यक्रमों की पूरी जानकारी प्राप्त कर ले और उनको लिखित रूप में अपने पास व्यवस्थित रूप में रख ले। उसे सभी कलाकारों की विशेषताओं का परिचय ज्ञात होना चाहिए। प्रस्तुत किए जाने वाले कार्यक्रमों के विषय और उनमें निहित मुख्य भावनाओं का ज्ञान भी उसे होना चाहिए ताकि वह श्रोताओं को उनका पूर्व परिचय दे सके। किसी भी कार्यक्रम की प्रस्तुति से पहले और अंत में मंच-संचालक की भूमिकाएँ महत्त्वपूर्ण होती हैं।

(क) कार्यक्रम प्रस्तुति से पहले – मंच-संचालक को कार्यक्रम की प्रस्तुति से पहले से कलाकार का परिचय और उसकी प्रस्तुति की जानकारी नपे-तुले और संतुलित शब्दों में श्रोताओं को देनी चाहिए। अतिशयोक्ति का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।

(ख) कार्यक्रम प्रस्तुति के बाद – कार्यक्रम प्रस्तुति के बाद मंच-संचालक को श्रोताओं के सामने प्रस्तुति का प्रभाव प्रकट करना चाहिए। इसका कलाकार पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

उदाहरण –

1. कक्षा की साप्ताहिक-सभा में अंकुर के द्वारा एक देशभक्ति के भावों से परिपूर्ण कविता का सस्वर पाठ किया जाता है। आप मंच से इसकी घोषणा कीजिए तथा प्रस्तुति के बाद प्रशंसा में कुछ शब्दों को कहिए।
उत्तर :
कविता तो है-मन के कोमल भाव। जब भावों में देशभक्ति की गूँज छिपी हो तो उनमें वीर रस का मिल जाना सहज-स्वाभाविक ही है। ऐसे ही वीर रस से परिपूर्ण देश-भक्ति की एक कविता सुनाने के लिए आपके सामने आ रहे हैं-अंकुर।
प्रस्तुति के बाद प्रशंसा-कितना ओज भरा था अंकुर के स्वर में। यह तो सचमुच ही हमें सेना में भर्ती हो जाने की प्रेरणा दे रहे थे और यह हमारे लिए है भी अच्छा कि हम बड़े होकर देश की सेवा के मार्ग में आगे बढ़ें।

2. विद्यालय के वार्षिक उत्सव में ‘उर्वशी’ नामक एक नृत्य-नाटिका की प्रस्तुति की जानी है। इसे रमा, पल्लवी, माधवी, अनुष्का, तनुज और गौरव प्रस्तुत करेंगे। मंच से इसकी प्रस्तुति की घोषणा कीजिए और बाद में प्रस्तुति की प्रशंसा कीजिए।
उत्तर :
नृत्य-नाटिका वह विधा है जिससे एक साथ नृत्य, संगीत और नाटक की त्रिवेणी बह निकलती है, जो दर्शकों के हदय को अपने रस में पूरी तरह डुबो देती है। अब प्रस्तुत है आप के लिए एक नृत्य-नाटिका-उर्वशी। इसे प्रस्तुत कर रहे हैं विद्यालय की नरीं कक्षा के विद्यार्थी-रमा, पल्लवी, माधवी, अनुष्का, तनुज और गौरव। तो लीजिए, आप के सामने प्रस्तुत है-‘उर्वशी’।
प्रस्तुति के बाद प्रशंसा-सच ही, हम तो नहा गए नृत्य, संगीत और नाट्य की त्रिवेणी में। कितना सुंदर, कितना मोहक, कितना मधुर। कमाल कर दिया आपने।

2. स्वयं अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करना
जब कोई कलाकार मंच पर अपना कोई भी कार्यक्रम प्रस्तुत करने आता है तब वह विशेष औपचारिकता का निर्वाह करता है, जिसे मंचीय शिष्टाचार कहा जाता है। उसके लिए आवश्यक होता है कि –

  • कार्यक्रम की गरिमा के अनुसार उसके चेहेरे पर भाव हों।
  • वह सहज हो।
  • मंच की ओर बढ़ते समय उसकी चाल और आंगिक क्रियाएँ स्वाभाविक हों।

कलाकार को अपना कार्यक्रम आरंभ करने से पहले मंच पर बैठे विशेष अतिथियों, निर्णायकों और श्रेताओं की ओर देखते हुए उन्हें संबोधित करना चाहिए। संबोधन में कभी भी व्यंग्य का पुट नहीं होना चाहिए। गरिमा का बना रहना अनिवार्य है, जैसे –

माननीय अध्यक्ष महोदय।
आदरणीय सभापति जी!
सम्मान्य नेता जी!
परम पूजनीय गुरुवर !
पूज्यवर!
पूजनीय गुरु जी!
प्यारे सहपाठियो !
प्रिय मित्रो!
मेरे प्रिय साथियो!
प्रातः स्मरणीय आचार्यवर!
माताओ और बहनो !
श्रद्धा योग्य मातृ-शक्ति!
श्रद्धेय विद्वजन!

यदि मंच पर अनेक महानुभाव विराजमान हों तो उन सब की ओर देखते हुए उन्हें संबोधित किया जाना चाहिए। जैसे-
माननीय नेता जी! आदरणीय मुख्याध्यापक जी!
श्रद्धेय गुरुवर!
बाहर से पधारे अतिथिगण!
और मेरे प्यारे साधियो!
अपना परिचय – यदि मंच-संचालक ने आपका परिचय श्रोताओं को नहीं दिया हो तो आप अपना संक्षिप्त परिचय दें। आपके द्वारा दिया गया परिचय विस्तृत नहीं होना चाहिए। उसमें किसी भी बात को बढ़ा-चढ़ा कर तो कभी नहीं कहा जाना चाहिए। अपने परिचय के साथ आपको अपने द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले कार्यक्रम का संक्षिप्त परिचय भी देना चाहिए।
उदाहरण –
1. मैं भारती जुनेजा। में दसर्वी ‘ए’ की छात्रा हूँ। मुझे कविता लिखने का शॉक है। मैं आपको अपनी एक कविता सुनाने आई हैं जिसका शीर्षक है-‘ हम भारतीय’।
2. मैं रोहन अग्रवाल। नरीं कक्षा में पढ़ता है। बचपन से ही मुझे तरह-तरह के पशु-पक्षियों की आवाज़ें निकालने का शौक रहा है। आज मैं आपको ऐसी ही कुछ आवाज़ें सुनाने जा रहा हूँ।

(v) कथा/कहानी/घटना/संस्मरण को सुनाना –
कहानी सुनने-सुनाने की कहानी उतनी ही पुरानी है जितनी मानव-सभ्यता। जब इनसान सभ्य हुआ होगा तब उसने अवश्य अपने जीवन से जुड़े हुए प्रसंगों को कल्पना से जोड़ कर दूसरों को सुनाया होगा और उनसे उनकी कहानियों को सुना होगा। कहानी सुनाना एक कला है। यह कला सब में नहीं होती पर इस कला को थोड़े अभ्यास से सीखा जा सकता है।
हर कहानी सुनाई जा सकती है पर कहानी सुनाने वाले को कहानी सुनने वाले की रचि, स्थिति, मानसिकता और बौद्धिक-स्तर का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। जो भी कहानी किसी को सुनानी हो उसमें निम्नलिखित गुण अवश्य होने चाहिए –

  • कहानी चाहे सच्ची हो या काल्पनिक, पर उसे रोचक अवश्य होना चाहिए।
  • कहानी में सहजता, स्वाभाविकता और गतिशीलता होनी चाहिए।
  • कहानी की भाषा अति सरल होनी चाहिए। उसमें मुहावरे-लोकोक्तियों का यथासंभव प्रयोग नही होना चाहिए।
  • कहानी में उपदेशात्मकता और भाषणात्मकता नहीं होनी चाहिए।
  • कहानी में जिज्ञासा और उत्सुकता बनी रहनी चाहिए।
  • कहानी का अंत चरम बिंदु पर होना चाहिए।
  • कहानी में अनावश्यक विस्तार, भूमिका आदि नहीं होने चाहिए।
  • कहानी को अपना संदेश स्वयं प्रकट करना चाहिए।

उदाहरण –

1. भीड़ से भरे बाज़ार में एक बहेलिया बैठा था। उसके पास दो पिंजरे थे। दोनों में एक-एक तोता था। दोनों तोते बहुत सुंदर थे। उनके लंबे हरे पंख, लाल चोंच, सुंदर पंजे और गले पर काली.गोल रेखाएँ तो मन को मोह लेने वाली थीं। बहेलिए ने एक तोते के पिंजरे पर उसका दाम एक हज़ार रुपए लिख रखा था तो दूसरे तोते का केवल दस रुपए।

लोग पिंजरों के पास आ खड़े होते। तोतों को देखते। उन्हें खरीदने के लिए मोल-भाव करते। बहेलिया सबसे एक ही बात करता था’दाम इतना ही लगेगा और दोनों तोते एक साथ लेने पड़ेंगे। मुझे कोई भी एक अकेला तोता नहीं बेचना।’ कोई भी तोते ख़रीदने को तैयार नहीं था। उन्हें उनके दामों में इतने बड़े अंतर का रहस्य समझ में नहीं आ रहा था।

उन्होंने उससे उस अंतर के बारे में पूछा। तोते वाले ने कहा-‘ आप इन्हें ले जाएँ। आपको अंतर स्वयं मालूम हो जाएगा।’ एक व्यक्ति ने कुछ देर सोचकर दोनों तोते ख़रीद लिए। वह उन्हें अपने घर ले गया। उसने एक हज्ञार वाले तोते के पिंजरे को अपने कमरे में एक खिड़की के पास टाँग दिया। रात को जब सोने से पहले उसने कमरे की रोशनी बंद की तो तोता बोला, ‘शुभ रात्रि’। उस व्यक्ति को यह सुनना अच्छा लगा।

अगली सुबह जैसे ही उसकी आँख खुली वैसे ही तोता बोला-‘राम, राम!’ उसने सुंदर श्लोक भी पढ़े। व्यक्ति प्रसन्न हो गया। दूसरे दिन उस व्यक्ति ने दूसरे पिंजरे को अपने कमरे में टाँगा। रात को जैसे ही अंधेरा हुआ, वैसे ही तोता पिंजरे से बोला-‘अबे, बंद कर रोशनी। सोने भी दे। क्या उल्लू है तू ? रात भर भी जागेगा क्या ?’ व्यक्ति यह सुन कर गुस्से से भर उठा पर कुछ सोचकर उसने रोशनी बंद कर दी।

जैसे ही सवेरा हुआ, उस तोते ने गंदी-गंदी गालियाँ बकनी आरंभ कर दीं। व्यक्ति की नौंद खुली। उसने गालियाँ सुन्नी। उसे बहुत बुरा लगा और गुस्सा भी आया। उसने अपने नौकर को आवाज़ दी और कहा-‘इस दुष्ट का गला अभी मरोड़ कर इसे बाहर फेंक दो।’ पहला तोता पास ही था। उसने नम्रता से कहा-‘ ग्रीमान! इसे मत मरवाओ। यह मेरा सगा भाई है। हम एक साथ जाल में फँसे थे। मुझे एक महात्मा जी ले गए थे। मैने उनके यहाँ इश्वर का नाम लेना सीख लिया। इसे एक बदमाश ने ले लिया था। इसने वहाँ गंदा बोलना और गाली देना सीख लिया। इसमें इसका कोई दोष नहीं है। यह तो बुरी संगत का नतीजा है।

व्यक्ति ने पल भर सोचा और फिर अपने नौकर से कहा-‘इस गाली देने वाले तोते को बाहर ले जाकर उड़ा दो। इसे घर में मत रखो।’

2. गाँव में पिछले कई दिनों से लगातार बारिश हो रही थी। वह रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। एक साधु बारिश के कारण गाँव के बाहर बने पुराने मंदिर में फँसा हुआ था। वह मंदिर बिलकुल जर्जर हो रहा था। उसकी दीवारों में जगह-जगह दरारें पड़ी थीं। कुछ दीवारें पुरानी होने के कारण झुकी हुई थीं। अचानक रात के समय मंदिर का एक बड़ा भाग ज़ोर की आवाज़ के साथ गिर गया। जहाँ साधु बैठा था, वह कोना गिरने से बच गया। साधु को चोट नहीं लगी। वह रात भर सोचता रहा-‘मेंरे यहाँ रहते भगवान का मंदिर गिरा है। मुझे इसे बनवा कर ही कहीं और जाना चाहिए।’

साधु ने अगले दिन बारिश रुकने के बाद घर-घर जाकर मंदिर के निर्माण के लिए चंदा इकट्ठा करना शुरु किया। लोगों में मंदिर के प्रति श्रद्धा थी और साधु का समझाने का तरीका भी बहुत अच्छा था। साधु विद्वान भी था। गाँव के लगभग सभी लोगों ने चंदा दिया।

मंदिर बन गया। भगवान की मूर्ति की बड़े भक्ति-भाव और उत्साह से पूजा की गई। आस-पास के गाँवों को भी भंडारे में भाग लेने के लिए निमंत्रित किया गया। सबने बड़े आनंद से भगवान का प्रसाद ग्रहण किया और श्रद्धापूर्वक सिर झुकाया।

शाम के समय गाँव में साधु बाबा ने सबका धन्यवाद करने के लिए एक सभा बुलाई। उनके हाथ में एक सूची थी। उसमें उन सब लोगों के नाम लिखे थे, जिन्होंने मंदिर के निर्माण के लिए चंदा दिया था। साधु बाबा ने बताया ‘सब से बड़ा दान एक बुढ़िया माता ने दिया था, जो दान देने स्वयं यहाँ आई थीं।’

लोगों ने सोचा कि बुढ़िया ने हज़ारों रुपया दिया होगा। अनेक लोगों ने सैकड़ों रुपए तो दिए थे। पर लोगों को तब बड़ी हैरानी हुई जब साधु बाबा ने बताया कि-‘उन्होंने मुझे पचपन रुपए और थोड़ा-सा साग दिया है।’ लोगों ने समझा कि साधु बाबा हैंसी कर रहे हैं। बाबा ने आगे कहा-‘ बुद़िया माता इधर-उधर उगे साग को तोड़कर प्रतिदिन पास के शहर में घूम-घूमकर बेचती है। बड़ी मुश्किल से अपना पेट भर पाती है। उसने कई महीनों में इन पैसों को इकट्ठा किया था। उसकी जीवन भर की कुल संपत्ति इतनी ही थी। अपना सब कुछ दान कर देने वाली उस श्रद्धालु माता के सामने में अपना सिर झुकाता हूँ।’

लोगों ने सुना और सबने अपने-अपने सिर झुका लिए। सचमुच बुढ़िया माता द्वारा श्रद्धा से दिया गया दान सबसे बड़ा दान था।

3. सम्राट विक्रमादित्य अपने हाथी पर सवार होकर लाव-लश्कर के साथ एक बार नगर से गुज़र रहे थे। लोग उनकी एक झलक पाने और जय-जयकार करने के लिए खड़े थे। जब सवारी अनाज मंडी से गुज़र रही थी तब सम्राट ने देखा कि ज़मीन पर अनाज के कुछ दाने बिखरे पड़े थे। अनाज के दाने देखकर वे हाथी से उतर गए। वे घुटनों के बल ज़मीन पर बैठ गए और बोले-‘देखो तो, इतने सारे हींरे जमीन पर बिखरे पड़े हैं। कितने सुंदर हैं ये!’ यह कह कर वे अनाज के दानों को अपने हाथों से बीनने लगे। उन्हें ऐसा करते देख मंत्री तथा अन्य लोग भी बिखरे अनाज को बटोरने लगे।

कुछ ही देर में सम्राट की झोली अनाज के दानों से भर गई। फिर वे सब को संबोधित करते हुए बोले-‘ हमारे राज्य में अनाज की बरबादी पता नहीं क्यों होती है ? यदि हम अनाज की बरबादी और अनादर करेंगे तो यह भी हमारा अनादर करेगा। तब भुखमरी तो फैलेगी। अब देखो तो, इतने अनाज से पाँच-सात लोगों का पेट तो भर ही सकता है। हम तो इसे पैरों तले रॉंद रहे हैं।’

सभी लोगों ने एक-दूसरे की ओर देखा। उन्होंने मन-ही-मन अनाज को कभी बरबाद न करने की मौन प्रतिज्ञा की। कहते हैं कि इसके बाद सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में हमारे देश में अनाज की कमी कभी नहीं हुई थी।

(vi) चित्र देखकर कहानी सुनाना –
किसी चित्र को देखकर कल्पना करना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। उस कल्पना को कहानी के रूप में सरलता से प्रकट किया जा सकता है। अभ्यास से इस कला को निखारा जा सकता है।
उदाहरण –
एक गाँव में एक औरत अकेली ही अपने घर की रसोई के सामने चुपचाप बैठी थी। उसके चेहरे पर चिंता के भाव थे। वह बहुत देर से कुछ सोच रही थी।

CBSE Class 11 Hindi रचना मौखिक अभिव्यक्ति 1

इतने में उसके दोनों बेटे बाहर से उछ्लते-कुदते हुए भीतर आए। आते ही वे बोले-“माँ! रोटी दो। भुख लगी है।”

माँ ने उन्हें दुलारते हुए कहा-” बेटा, इसी चिंता में तो मैं कब से बैठी हूँ। घर में आज लकड़ी नहीं है और न ही सूखे उपले हैं। मैं रोटी पकाऊँ भी तो कैसे? तुम्हारे पिताजी भी आज गाँव से बाहर गए हुए हैं । यदि वे यहाँ होते तो सूखी लकड़ी का कोई प्रबंध कर देते।”
लड़के कुछ देर माँ के पास चुपचाप बैठे रहे। छोटा लड़का बोला-” ममाँ, क्या हम दोनों लकड़ियाँ लाएँ ?” माँ ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा-” तुम दोनों अभी बहुत छोटे हो। लकड़ियाँ भारी होती हैं। तुमसे नहीं उठेंगी और फिर कहाँ से लाओगे ?”
बड़ा लड़का अपनी उँगली से इशारा कर बोला-” वहाँ दूर खेतों के पार बड़े-बड़े पेड़ हैं। वहाँ कई सूखी लकड़ियाँ गिरी होती हैं। हम उन्हें इकट्ठी कर लाते हैं।”

CBSE Class 11 Hindi रचना मौखिक अभिव्यक्ति 2

माँ ने कुछ देर सोचा और कहा-” अच्छा जाओ। दोनों भाई इकट्ठे रहना। जंगल में बहुत आगे न जाना।”
दोनों लड़के लकड़ी लेने चले। आठ और दस वर्ष के दोनों भाई इतनी दूर अकेले कभी नहीं गए थे। जंगल में उन्हें आम के पेड़ के नीचे एक मोटी सूखी डाल दिखाई दी। वह आँधी से टूटकर नीचे गिरी थी।
बड़े भाई ने कहा-” लकड़ी तो मिल गई, पर इसे हम लेकर कैसे जाएँगे? यह तो बहुत भारी है।”

छोटे ने कहा-” हम इसे छोड़कर जाएँगे, तो कोई दूसरा उठा ले जाएगा।” पर वे क्या करते ? इतनी बड़ी लकड़ी उनसे उठ नहीं सकती थी। दोनों चुपचाप लकड़ी पर बैठ गए। इतने में छोटा लड़का चिल्लाया-“देखो, वह क्या है ? इतनी चांटियाँ! वे किसे ले जा रही हैं ?”
बड़े लड़के ने ध्यान से देखा और कहा-“चींटियाँ मरे हुए एक मोटे कीड़े को खींच कर ले जा रही हैं।”
छोटा भाई हैरानी से बोला-” इतनी छोटी-छोटी चींटियाँ इतने मोटे कीड़े को कैसे खींच सकती हैं ?”
“यह तो मरा हुआ कीड़ा ही है। कभी-कभी तो चींटियाँ मरे हुए साँप को भी घसीट ले जाती हैं”-बड़े भाई ने कहा।

दोनों भाई चींटियों को ध्यान से देखने लगे। चींटियाँ धीरे-धीरे कीड़े को सरका रही थीं। कभी-कभी मोटा कीड़ा लुढ़क कर उन पर भी गिए जाता था। झट से दूसरी चींटियाँ दनी हुई चींटियों को कीड़े के नीचे से निकाल देती थीं। चींटियाँ अपने काम में लगातार लगी हुई थीं। थोड़ी ही दे? में चींटियाँ कीड़े को सरका-सरका कर अपने बिल के पास ले गईं।
छोटा लड़का कुछ देर सोचता रहा। वह अपने भाई की ओर मुँह कर बोला-” क्या हम चींटियों से भी कमज़ोर हैं ?”

CBSE Class 11 Hindi रचना मौखिक अभिव्यक्ति 3

बड़े लड़के ने कहा-” क्यों, क्या हुआ ? हम तो उनसे कई गुना बड़े हैं, ताकतवर हैं।”
” यदि चींटियाँ मोटे कीड़े को धकेलकर वहाँ तक ले जा सकती हैं तो हम इस लकड़ी को धकेलकर अपने घर क्यों नहीं ले जा सकते ?”-छोटे लड़के ने कहा।
बड़ा लड़का उठकर खड़ा हो गया। वह बोला-” “तू यहीं बैठ। में अभी आया।”
वह भाग कर गाँव वापस गया। वहाँ से अपने मित्रों को बुला लाया। मित्र अनेक थे। उन सबने मिल कर उस भारी लकड़ी को लुढ़काना आरंभ किया। सबने मिलकर खेल-ही-खेल में वह लकड़ी उन दोनों भाइयों के घर पहुँचा दी।
माँ ने उन सबको शाबाशी दी और कहा-देखा तुमने। मिलकर काम करने से आप हर काम आसानी से कर सकते हो। सदा मिल-जुल कर काम किया करो। तुम्हारा हर काम हो जाएगा।”

(vii) परिचय देना, परिचय लेना-

हम-आप अपने-अपने समाज में रहते हैं। हम सदा एक-दूसरे का साथ पाना चाहते हैं और दूसरों को साथ देना चाहते हैं। अकेले तो हम रह ही नहीं पाते। समाज से कटकर अकेले रहना बहुत बड़ी सज़ा भोगने जैसा है। हमारी जान-पहचान पहले से ही अनेक लोगों से होती है पर जब हम किसी नए व्यक्ति के संपर्क में पहली बार आते हैं तो सबसे पहले हमें उससे परिचय प्राप्त करना होता है तथा उसे अपना परिचय देना होता है।

परिचय देना और परिचय लेना एक कला है। अपना परिचय देते समय हम पल भर में अपने व्यक्तित्व की पहली झलक किसी अपरिचित व्यक्ति को दे देते हैं। जब हम किसी को अपना परिचय देते हैं तब हमारे व्यवहार और हाव-भाव से अवश्य ऐसा झलकना चाहिए कि हम उससे अपना संपर्क बढ़ाना चाहते हैं। तब हमोरे चेहरे पर उदासीनता या वितृष्णा के भाव कदापि नहीं होने चाहिए। हमारे चेहरे पर उत्साह और खुशी के भाव होने चाहिए तथा हमारी दृष्टि सामने वाले व्यक्ति पर होनी चाहिए। उसे ऐसा लगना चाहिए कि उससे मिलकर हमें प्रसन्नता हुई है।

I. परिचय देना –

परिचय के प्रकार-प्रायः परिचय दो प्रकार से दिया जाता है।

  • अनौपचारिक परिचय
  • औपचारिक परिचय

1. अनौपचारिक परिचय-इस प्रकार के परिचय में नाम, कक्षा या व्यवसाय का ही परिचय देना पर्याप्त होता है। यदि परिचय पाने वाला व्यक्ति आपके विषय में अधिक जानना चाहता है तो वह स्वयं बातों-बातों में आपसे पूछ लेगा।
उदाहरण –
(क) मेरा नाम रेवती है। में दयाल सिंह पब्लिक स्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ती हूँ।
(ख) मैं मोहित। दिल्ली पब्लिक स्कूल, आर० के॰ पुरम में नौरीं कक्षा का विद्ययार्थी हूँ।

2. औपचारिक परिचय-इस प्रकार का परिचय प्रायः सभा-सभाओं, सार्वजनिक कार्यक्रमों, कक्षा या बड़े समूहों में देना होता है। कई बार तो यह बता दिया जाता है कि परिचय देते समय क्या-क्या बताना होगा। सामान्य रूप से ऐसे परिचय में चार बातें बतानी होती हैंनाम, कक्षाव्यवसाय, विद्यालय/निवास, रुचियाँ।
उदाहरण –
(क) मेरा नाम पल्लवी है। में सेंट थैरेसा कान्वेंट स्कूल, करनाल में नौर्वी कक्षा में पढ़ती हूँ। में न्यू हाउसिंग बोर्ड में रहती हूँ। कैरम खेलना, पेंटिंग करना और पुराने गाने सुनना मेरा शौक है।
(ख) मेरा नाम रोहन है। मैं डी० ए० वी० सीनियर सैकेंडरी स्कूल, जयपुर में ग्यारहवीं कक्षा का विद्यार्थी हूँ। मैं अपनी कक्षा का मॉनीटर हूँ। क्रिकेट खेलना मेरा शौक है। पत्र-मित्रता करने में मेरी गहरी रचचि है।
अपने किसी सगे-संबंधी/मित्र/पड़ोसी का परिच्चय देना
अपने परिचितों का किसी से परिचय कराते समय सदा ध्यान रखना चाहिए कि उनके विषय में कभी कोई ऐसी बात मुँह से नहीं निकलनी चाहिए जो उन्हें किसी भी प्रकार से बुरी लगे। सरल, सीधे और संतुलित शब्दों के प्रयोग से परिचय दिया जाना चाहिए। परिचय देते समय अतिशयोक्ति का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
उदाहरण-
1. आपके साथ आपकी मम्मी विद्यालय के पुरस्कार वितरण समारोह में आई हैं। उनका परिचय अपनी कक्षा अध्यापिका को दीजिए।
उत्तर मैडम, ये मेरी मम्मी हैं। राजकीय महाविद्यालय में गणित की प्रध्यापिका हैं। मुझे पुरस्कार प्राप्त करते देखना चाहती हैं। ये आपसे मिलना भी चाहती थीं।

2. आप बाज़ार जा रहे हैं। आपके साथ आपकी छोटी बहन है। उसका परिचय अपने मित्र से कराइए।
उत्तर यह उर्मि है, मेरी छोटी बहन। पाँचवीं कक्षा में पढ़ती है। इसे बाज्यार में खरीददारी करना अच्छा लगता है।

किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति का परिचय कराना

विद्यालय या किसी सार्वजनिक सभा में पधारे मुख्य अतिथि या किसी कलाकार का परिचय देना आवश्यक होता है। यह परिचय इस प्रकार दिया जाना चाहिए कि विशिष्ट व्यक्ति की विशेषताओं का संतुलित परिचय वहाँ उपस्थित लोगों को प्राप्त हो जाए। परिचय में अति विस्तार नहीं होना चाहिए और 7 ही कठिन भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए।

उदाहरण-

1. आपके विद्यालय में हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के पूर्व चेयरमैन डॉ० जयभगवान गोयल मुख्य अतिधि के रूप में पधारे हैं। हिंदी दिवस के अवसर पर वे अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। आप उनका परिचय कराइए।
उत्तर :
प्रिय साथियो! यह हमारा परम सौभाग्य है कि आज हिंदी दिवस के पुनीत अवसर पर हमारे बीच हिंदी साहित्य के परम विद्वान डॉ॰ जयभगवान गोयल पधारे हैं। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के पूर्व चेयरमैन और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के हिंदी विभाग के अध्यक्ष अपने आपमें ही एक संस्था हैं। सैकड़ों पुस्तकों के रचयिता और सैकड़ों विद्यार्थियों को शोष कराने वाले शिक्षाविद् डॉ० गोयल वर्तमान में हिंदी-सेवा के प्रति समर्पित हैं। वे हमें हिंदी दिवस के महत्त्व से परिचित कराएँगे। में आप सबकी ओर से उनका स्वागत करते हुए उन्हें मंच पर सादर आमंत्रित करता हूँ।

2. आपके विद्यालय में वार्षिक खेल-कूद प्रतियोगिता में मुख्य अतिथि के रूप में जिला के उपायुक्त पधारे हैं। उनका परिचय दीजिए।
उत्तर :
प्रिय मित्रो! हमारे लिए अंति हर्ष का विषय है कि आज हमारे बीच वह महान व्यक्तित्व खेल-कूद प्रतियोगिता के मुख्य अतिथि के रूप में पधारा है जिसने पिछले एक वर्ष में हमारे नगर की काया ही पलट दी है। अपनी दूरदृष्टि और अथक प्रयासों से हमारे आज के माननीय मुख्य अतिथि श्री राकेश देवगुण ने हमारे नगर को राज्य में एक नई पहचान प्रदान की है। ये केवल कुशल प्रशासक ही नहीं हैं बल्कि अपने समय के श्रेष्ठ खिलाड़ी भी रह चुके हैं। इन्होंने पोलो में भारतीय टीम का एशियन खेलों में प्रतिनिधित्व किया था। मैं उनके आगमन पर उनका हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए उन्हें मंच पर आमंत्रित करता हूँ।

II. परिचय लेना –

हमें अपने जीवन में प्रतिदिन अनेक ऐसे लोग मिलते हैं, जिनसे हमारा पूर्व परिचय नहीं होता। हम किसी-न-किसी कारण उनसे परिचय पाना चाहते हैं। कई लोग हमें अच्छे लगते हैं और कई से हमारे कारोबारी संबंध होते हैं।
जब भी किसी अपरिचित से हम परिचय प्राप्त करना चाहते हैं, हमें भद्रता और शालीनता का परिचय देते हुए शिष्टाचार के सभी नियमों का पालन करना चाहिए। आरंभ में औपपचारिकता बनी रहनी चाहिए और ‘आप’ शब्द का प्रयोग करना चाहिए। कभी भी ‘तू’ या ‘तुम’ जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। हैसी-मज़ाक और व्यंग्यात्मक शब्दों का प्रयोग तो कदापि नहीं करना चाहिए क्योंकि हम उस अपरिचित के स्वभाव को नहीं जानते। हमारा व्यंग्यात्मक शब्द उसे बुरा लग सकता है। परिचय प्राप्त करने से पहले सम्मानपूर्वक संबोधित करना आवश्यक होता है, जैसेभाई-साहब, बहन जी, अंकल, आंटी, मैडम, सर, श्रीमान जी, महोदय।

परिचय प्राप्त कर लेने के पश्चात मर्यांदा का ध्यान रखते हुए नाम से भी संबोधित किया जा सकता है।
अपनत्व दिखाने के लिए बीच-बीच में नाम/जाति/संबोधन आदि का प्रयोग किया जा सकता है, जैसे-
(क) आपसे मैं पहले कह चुका हूँ, गुप्ता जी।
(ख) महेश जी, कभी उधर भी आइए।
(ग) अच्छा, बहन जी ! फिर मिलेंगे।
(घ) अरे, बेटा! मैं भी उधर ही जा रहा हूँ।
(ङ) वाह अंकल ! आप तो बहुत अच्छे हैं।

परिचय पाने के लिए संबोधन के साथ अभिवादन किया जाना चाहिए, जैसे –
(क) हैलो, सर!
(ख) नमस्ते अंकल!
(ग) आदाब, भाई जान!
(घ) नमस्कार जी।
(ङ) नमस्कार आंटी।

अभिवादन के बाद परिचय पूछ्छा जा सकता है, जैसे –
(क) श्रीमान जी! क्या मैं आपका शुभ नाम जान सकता हूँ ?
(ख) कृपया अपना नाम बताइए।
(ग) सर! क्या में आपका नाम पूछ सकता हूँ?
(घ) मैडम! क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ?

नाम जान लेने के पश्चात रहने का स्थान, नगर, स्कूल, कार्यालय, शिक्षा आदि के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। परिचय प्राप्त करने के पश्चात औपचारिकतावश मिलने की खुशी अवश्य प्रकट की जानी चाहिए, जैसे-
(क) आपसे मिलकर बहुत प्रसन्नता हुई।
(ख) बहुत अच्छा लगा आपसे मिलकर, शर्मा जी।
(ग) फिर मिलना।
(घ) जल्दी फिर मिलेंगे।
(ङ) हमें आपसे मिलने का इंतजार रहेगा।
परिचय प्राप्त करने के पश्चात धन्यवाद अवश्य ज्ञापित करना चाहिए।

परिचय पाने के कुछ उदाहरण-

1. कक्षा में नया प्रवेश प्राप्त करने वाले एक लड़के से परिचय प्राप्त कीजिए।
उत्तर :

  • आप – हैलो!
  • वह – हैलो ! आप ?
  • आप – में रोहन हूँ और इसी कक्षा में पढ़ता हूँ।
  • वह – में अनुराग हूँ।
  • आप – आपको इस कक्षा में पहली बार देखा है।
  • वह – हाँ। मैने इस स्कूल में कल ही दाखिला लिया है।
  • आप – पहले कहाँ पढ़ते थे?
  • वह – में बेंगलुरू के मेरी कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ता था।
  • आप – क्या आपके पापा का ट्रांसफर हो गया है ?
  • वह – हाँ।
  • आप – कहाँ रह रहे हो ?
  • वह – अभी तो घर दूँढ़ रहे हैं। कुछ दिन के लिए गेस्ट हाउस में ठहरे हैं।
  • आप – मेंरे घर के सामने एक बड़ा-सा मकान किराए के लिए खाली है।
  • वह – फिर तो बहुत अच्छा है। मैं पापा-मम्मी को बताऊकँगा।
  • आप – हम भी आस-पास रहकर दोस्त बन जाएँगे।
  • वह – दोस्त तो हम बन भी गए। धन्यवाद।
  • आप – धन्यवाद।

2. सब्ज़ी की रेहड़ी के निकट खड़ी एक औरत से आप उसका परिचय प्राप्त कीजिए।
उत्तर :

  • आप – नमस्ते, बहन जी।
  • वह – नमस्ते, आप ?
  • आप – मैं नमिता हूँ। सामने वाले घर में रहती हूँ। और आप ?
  • वह – मैं मीनाक्षी हूँ। पिछ्ली गली में रहती हूँ।
  • आप – कौन-सा मकान है आपका ?
  • वह – कोने वाला।
  • आप – अच्छा है। चलती हूँ। धन्यवाद।
  • वह – प्रसन्नता हुई आप से मिलकर।

(viii) भावानुकूल संवाद-योजना-

जब भी दो या दो से अधिक लोग आपस में बातचीत करते हैं। तब भावों के अनुसार उन की वाणी और चेहरे के हाव-भावों में परिवर्तन दिखाई देता है। क्रोध की स्थिति में उनकी आवाज़ ऊँची और तेज़ हो जाती है तो करुण अवस्था में दुख की झलक अपने आप ही आवाज़ के माध्यम से प्रकट होने लगती है। प्रसन्नता के कारण आवाज़ में विशेष चहक-सी उत्पन्न हो जाती है। भक्ति-भाव के समय वह शांत हो जाती है। शब्दों का चयन भी भावों के अनुरूप बदलता दिखाई देता है। स्वरों का उतार-चढ़ाव मानसिक स्थिति के अनुसार निश्चित रूप से नए-नए रूप लेता रहता है। संवाद योजना सदा भावानुकल होनी चाहिए। इससे जब स्वभाविकता का गुण प्रकट होता है तब वह दूसरों को अधिक प्रभावित करता है। बातचीत में कभी बनावटीपन नहीं झलकना चाहिए। यदि किसी कहानी या नाटक के संवादों को बोला जाना हो तो व्यर्थ में बनावटी हाव-भाव कभी प्रकट नहीं किए जाने चाहिए। भावों और परिस्थितियों के अनुसार आंगिक क्रियाओं का संचालन किया जाना चाहिए।

संवादों को बोलने का अभ्यास निरंतरता की माँग करता है। दूसरों के सामने संवादों को बोलकर स्वयं को सुधारा और सँवारा जा सकता है। संवादों में छिपे भावों को केवल वाणी से ही नहीं बल्कि चेहरे के हाव-भावों से भी सरलतापूर्वक व्यक्त किया जा सकता है।

कुछ उदाहरण-

1. बोर्ड परीक्षा में पुत्र के प्रथम आने की सूचना को पाकर माता-पिता के बीच हुई बातचीत। पिता (कंप्यूटर स्क्रीन को देखते हुए) -अरे, वाह ! कमाल कर दिया मोहित ने।

  • माता – क्यों क्या हो गया ?
  • पिता – देखो तो, उसका परीक्षा परिणाम आ गया है।
  • माता (घबराकर)-पास तो हो गया है न वह।
  • पिता – पास ………… अरे। उसने तो करिश्मा कर दिया है।
  • माता – क्या स्कूल में फर्स्ट आ गया है।
  • पिता – अरे नहीं! वह तो पूरे राज्य में प्रथम आया है।
  • माता – क्या ?
  • पिता – हाँ, उसने तो पिछले बोर्ड परिणामों के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं।
  • माता – अरे वाह !

2. मित्र के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने पर दो लड़कों के बीच हुए संवाद।

  • नेरेंद्र (घबराए हुए स्वर में) – अरे, सुना तुमने !
  • राघव – क्या ?
  • नेरेंद्र – परमजीत का एक्सीडेंट हो गया है।
  • राघव – कब ? कैसे ?
  • नेरेंद्रध – अभी, कुछ देर पहले। एक कार से।
  • राघव – कहाँ है वह ?
  • नेरेंद्र – उसे अस्पताल ले गए हैं। बहुत खून बह रहा था उसका।
  • राघव – क्या तूने उसे देखा ?
  • नेरेंद्र – हाँ। हम इकट्ठे ही तो खड़े थे स्कूल के बाहर।
  • राघव – कैसे हुआ यह ?
  • नेरेंद्र – एक कार तेज़ गति से आई। उसने तिरछा कट मारा और परमजीत से उसकी साइड टकरा गई।
  • राघव – तो ! कारवाला रुका क्या ?
  • नेरेंद्र – कहाँ ? वह तो भाग गया।
  • राघव – क्या तूने उस का नंबर नोट किया ?
  • नेरेंद्र – हाँ! मैंने वह नंबर पुलिसवाले को दे दिया।
  • राघव – चलो जल्दी। हम भी अस्पताल चलेंगे।
  • नेरेंद्र – हाँ, चलो।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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Class 11 Hindi Antra Chapter 1 Summary – Idgah Vyakhya

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ईदगाह Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 1 Summary

ईदगाह – प्रेमचंद – कवि परिचय

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय-प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई, सन 1880 ई० को वाराणसी ज़िले के लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। आरंभ में वे नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखते थे। युग के प्रभाव ने उन्हें हिंदी की ओर आकृष्ट किया। प्रेमचंद जी ने कुछ पत्रों का संपादन भी किया। उन्होंने ‘सरस्वती प्रेस’ के नाम से अपनी प्रकाशन संस्था भी स्थापित की।

जीवन में निरंतर विकट परिस्थितियों का सामना करने के कारण प्रेमचंद जी का शरीर जर्जर हो रहा था। देशभक्ति के पथ पर चलने के कारण उनके ऊपर सरकार का आतंक भी छाया रहता था पर प्रेमचंद जी एक साइसी सैनिक के रूप में अपने पथ पर आगे बढ़ते रहे। उन्होंने वही लिखा जो उनकी आत्मा ने कहा। वे बंबई (मुंबई) में पटकथा लेखक के रूप में अधिक समय तक कार्य नहीं कर सके क्योंकि वहाँ उन्हें फ़िल्म निर्मातओओं के निर्देश के अनुसार लिखना पड़ता था। उन्हें स्वतंत्र लेखन ही रुचिकर था। निरंतर साहित्य साधना करते हुए 8 अक्तूबर, 1936 को उनका स्वर्गवास हो गया।

साहित्यिक विशेषताएँ-प्रेमचंद जी हिंदी साहित्य के ऐसे प्रथम कलाकार थे, जिन्होंने साहित्य का नाता जन-जीवन से जोड़ा। उन्होंने अपने कथा-साहित्य को जन-जीवन के चित्रण द्वारा सजीव बना दिया। वे जीवन-भर आर्थिक अभाव की विषम चक्की में पिसते रहे। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक एवं सामाजिक वैषम्य को बड़ी निकटता से देखा था। यही कारण है कि जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति का सजीव चित्रण उनके उपन्यासों एवं कहानियों में उपलब्ध होता। प्रेमचंद जी प्रमुख रूप से कथाकार थे। उन्होंने जो कुछ भी लिखा, वह जन-जीवन का मँँर बोलता चित्र है। वे आदर्शोन्मुखी-यथार्थवादी कलाकार थे। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को अपनी रचनाओं का विषय बनाया पर निधन, पीड़ित एवं पिछड़े हुए वर्ग के प्रति उनकी विशेष सहानुभूति थी। उन्होंने शोषक एवं शोषित दोनों वर्गों का विशद चित्रण किया है। ग्राम्य जीवन के चित्रण में प्रेमचंद जी सिद्धहस्त थे।

रचनाएँ-प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
उपन्यास-वरदान, सेवा-सदन, प्रेमाश्रय, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन, कर्म भूमि, गोदान एवं मंगल-सूत्र (अपूर्ण)।
कहानी संग्रह-प्रेमचंद जी ने लगभग 400 कहानियों की रचना की। उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं। नाटक-कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी।
निबंध संग्रह-कुछ विचार।
उन्होंने ‘माधुरी’, ‘हंस’, ‘जागरण’, ‘मर्यादा’ आदि पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
भाषा-शैली – ‘ईदगाह’ कहानी भाषा-शैली की दृष्टि से मुंशी प्रेमचंद की अन्य रचनाओं की भाँति उच्चकोटि की रचना है। भाषा पूर्णत: पात्रानुकूल है। कहानी के प्रारंभ में लेखक ने काव्यात्मक भाषा के प्रयोग से ईद के त्योहार का खुशनुमा वातावरण प्रस्तुत कर दिया है। “रमज़ान के पूरे तीस रोज़ों के बाद ईद आई है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है।”

लेखक ने सामान्य बोल-चाल के शब्दों के साथ-साथ तत्सम शब्दावली के प्रयोजन, सामग्री, शास्त्रार्थ, आघात, आतंकित, मोहित, परास्त जैसे शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है। पात्रों की दृष्टि से गाँव में प्रचलित शब्दों जैसे-अब्बाजान, अम्मीजान, अल्लाह मियाँ, नियामतें, अठन्नी, जिन्नात, कानिसटिबिल, जाजिम, सिजदे, हिंडोला, घुड़कियाँ का प्रयोग यथास्थान उचित रूप से किया गया है। गाँव से मेले में जाने के लिए जब लोग निकलते हैं तो उनके साथ चल रहे बच्चों की हरकतों का लेखक ने बाल मनोविज्ञान के अनुसार सहज चित्रण किया है। “गाँव से मेला चला। और बच्चों के साथ हामिद भी जा रहा था। कभी सब-के-सब दौड़कर आगे निकल जाते। फिर किसी पेड़ के नीचे खड़े होकर साथवालों का इतज़ार करते। यह लोग क्यों इतना धीरे-धीरे चल रहे हैं। हामिद के पैरों में तो जैसे पर लग गए हैं। वह कभी थक सकता है।”
कहानी की शैली मुख्य रूप से वर्णनात्मक है किंतु संवादों के द्वारा कहानी में रोचकता तथा गति का समावेश हो गया है। संवाद संक्षिप्त,
चुस्त, पात्रानुकूल तथा सहज हैं, जैसे दुकानदार और हामिद का यह वार्तालाप –
हामिद ने दुकानदार से पूछा-‘यह चिमटा कितने का है ?’
दुकानदार ने उसकी ओर देखा और कोई आदमी साथ न देखकर कहा-‘ तुम्हारे काम का नहीं है जी!’
‘बिकाऊ है कि नहीं ?’
‘बिकाऊ क्यों नहीं है। और यहाँ क्यों लाद लाए हैं ?’
‘तो बताते क्यों नहीं, कै पैसे का है ?’
‘छह पैसे लगेंगे।’
हामिद का दिल बैठ गया।
‘ठीक-ठीक बताओ!’
‘ठीक-ठीक पाँच पैसे लगेंगे, लेना हो लो, नहीं चलते बनो।’
हामिद ने कलेजा मज़बूत करके कहा-‘ तीन पैसे लोगे ?’
इस प्रकार स्पष्ट है कि ‘ इदगाह’ कहानी की भाषा-शैली अत्त्यंत सहज, भावपूर्ण तथा प्रवाइमयी है।

Idgah Class 11 Hindi Summary

मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईंदगाह’ में इंद के अवसर पर होने वाली चहल-पहल के अतिरिक्त एक बच्चे के हदय में अपनी दादी के लिए उमड़ने वाले अपार प्रेम का मार्मिक चित्रण है जो मेले में जाकर कुछ खाने-पीने के स्थान पर अपनी दादी के लिए एक लोहे का चिमटा लेकर आता है क्योंकि रोटी बनाते समय दादी का हाथ जल जाता था।

रमज्ञान के तीस रोजों के बाद ईंद का दिन आता है। गाँव में बहुत चहल-पहल है तथा सभी ईदगाह जाने की तैयारी कर रहे हैं। कोई अपने कपड़े-जूते ठीक कर रहा है तो कोई बैलों को सानी-पानी दे रहा है क्योंकि ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो सकती है। लड़कों में इंदगाह जाने की बहुत प्रसन्नता है। महमूद तथा अन्य लड़के बार-बार अपने पैसे गिन रहे हैं जिनसे उन्होंने ईंद के अवसर पर लगने वाले मेले से अपनी-अपनी मनपसंद वस्तुएँ खरीदनी हैं। हामिद भी बहुत प्रसन्न है। वह एक गरीब दुबला-पतला-सा बिन माँ-बाप का लड़का है तथा अपनी दादी अमीना के पास रहता है। उसके पाँव में जूते नहीं हैं। सिर पर एक पुरानी टोपी है। उसके पास मेले में खर्च करने के लिए तीन पैसे हैं। अमीना को चिंता है कि वह अकेला कैसे तीन कोस चलकर मेले में जाएगा ? इस पर हामिद दादी को यह तसल्ली देकर अन्य लोगों के साथ चला जाता है कि वह सबसे पहले लौट आएगा।

गाँव के सभी लड़कों के साथ हँसते-खेलते हामिद शहर पहुँचता है। पहले अदालत, कॉलेज, क्लब-घर आदि की बड़ी-बड़ी इमारतें आती हैं, फिर हलवाइयों की दुकान आती हैं और फिर घने इमली के वृक्षों की छाया के नीचे ईंदगाह दिखाई देता है जहाँ रोज़ारों की एक के बाद एक पंक्तियाँ लगी हुई थीं। यहाँ अमीर-गरीब का कोई भेदभाव नहीं था। सब मिलकर एक साथ में झुक रहे थे और फिर एक साथ ही खड़े हो जाते थे। भाईचारे का बहुत ही सुंदर दृश्य यहाँ उपस्थित था। नमाज के बाद सब आपस में गले मिलते हैं।

बच्चे मिठाई और खिलौनों की दुकानों की ओर जाते हैं। वहीं हिंडोला भी था जिसपर एक पैसा देकर पच्चीस चक्करों का आनंद लूटने का अवसर मिलता था। महमूद, मोहसिन, नूरे और सम्मी चक्करों का मज़ा लेते हैं परंतु हामिद दूर खड़ा देखता रहता है, वह अपने तीन पैसों में से एक पैसा व्यर्थ के चक्कर खाने के लिए खर्च नहीं करना चाहता। बच्चे खिलौने की दुकान से सिपाही, भिश्ती, वकील आदि खरीदते हैं पर हामिद को इन मिट्टी के खिलौनों को लेने में कोई रचच नहीं है क्योंकि ये गिरते ही चकना-चूर हो

जाते हैं। खिलौनों के बाद बच्चे मिठाई की दुकान से रेवड़ियाँ, गुलाब जामुन, सोहनहलवा आदि लेकर मजे से खाते हैं पर हामिद कुछ भी नहीं लेकर खाता केवल ललचाई आँखों से देखता रह जाता है। वहीं कुछ लोहे, गिलट, नकली गहनें आदि बेचने की दुकानें भी थी। हामिद लोहे की एक दुकान पर कई चिमटे देखकर रुक जाता है और सोचता है कि दादी जब तवे से रोटियाँ उतारती हैं तो उसका हाथ जल जाता है। क्यों न वह दादी के लिए चिमटा ले ले। हामिद के साथी मिठाइयाँ खाकर छबील पर सब शर्बत पी रहे थे। उसे इस बात का बहुत बुरा लग रहा था कि बे लोग उससे काम तो करा लेते हैं पर मिठाई के लिए उसे किसी ने भी नहीं पूछा। उसने दुकानदार से चिमटे का मूल्य पूछा तो उसने पाँच पैसे बताए। हामिद ने उससे कहा कि तीन पैसे लोगे? तो दुकानदार ने उसे वह चिमटा दे दिया। हामिद ने चिमटे को लेकर कंधे पर इस प्रकार रखा मानो बंदूक हो और अकड़ता हुआ साथियों के पास जा पहुँचा।

मोहसिन और महमूद ने उसके चिमटे का यह कहकर मज़ाक उड़ाया कि यह कोई खिलौना है ? तब हामिद उन्हें बताता है कि खिलौना ही तो है जैसे कंधे पर रखे तो बंदूक, हाथ में लिया तो फकीरों का चिमटा, मँजोरे का काम भी देता है और तुम्होरे सभी खिलौनों की जान भी निकाल सकता है और इसका बाल भी बाँका नहीं होगा। सम्मी चिमटे को लेने के लिए हामिद को अपनी दो आने की खँँजरी देना चाहता है और वह नहीं बदलता। चिमटे ने सब लड़कों का मन मोह लिया था पर अब कोई चाहकर भी चिमटा नहीं खरीद सकता था, क्योंकि उन सबके पैसे खर्च हो चुके थे तथा मेले से भी दूर आ गए थे। सब मिन्नते करके हामिद का चिमटा देखते हैं तथा अपना-अपना खिलौना उसे दिखाते हैं। रास्े में महमूद को भूख लगी तो उसके पिता ने उसे खाने के लिए केले दिए जिनमें से उसने हामिद को भी खिलाए। अन्य मुँह ताकते रह गए क्योंकि महमूद हामिद के चिमटे से बहुत प्रभावित हुआ था।

ग्यारह वजे ये लोग गाँव पहुँचे। मोहसिन की बहन ने उसके हाथ से भिश्ती छीन लिया और खुशी से जैसे ही वह उछली तो भिश्ती उसके हाथ से बूटकर नीचे गिरा और टूट गया। नूरे का वकील भी मिट्टी में मिल गया। हामिद के हाथ में चिमटा देखकर दादी ने उससे पूछ्ध कि चिमटा कहाँ से आया? तो उसने बताया कि वह तीन पैसे देकर लाया है। दादी को गुस्सा आ गया कि मेले में जाकर कुछ खाने-पीने के स्थान पर वह चिमटा क्यों ले आया है ? इसपर हामिद के यह कहने पर कि तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं इसलिए लाया हूँ। दादी गद्गद होकर आँसू बहाती हुई हामिद को दुआएँ देने लगती है कि उसे उसकी कितनी चिंता है।

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • रमज़ान – इस्लाम का नौवाँ महीना
  • मनोहर – सुंदर
  • सौनक – शोभां, चमक
  • प्रयोजन – मतलब
  • ईं मुहर्रम होना – खुशियाँ गम में बदलना
  • अनगिनत – न गिने जाने योग्य
  • राई का पर्वत बनाना – बढ़ा-चढ़ा कर कहना
  • निगोड़ी – अभागी
  • विल कचोटन – भय लगना
  • चटपट – तुरंत
  • बिसात – हैसियत
  • उल्लू बनाना – मूख बनाना
  • मवरसा – विद्यालय
  • जिन्न – भूत, प्रेत
  • काबू – वश में
  • हराम का माल – मुफ्त का माल, रिश्वत
  • उमंग – उत्साह
  • जाजिम – फर्श पर बिछ्छाने वाली दरी
  • प्रदीप्त – प्रकाशित
  • अनंतता – जिस का अंत न हो
  • भ्रातृत्व – भाईचारा
  • रोज़े – व्रत
  • सुहावना – सुख्
  • अजीब – विचित्र
  • आँखें बदल लेना – नाराज़ होना
  • हैज़े की भेंट होना – हैज़े से मरना
  • नियामते – दुल्लभ पदार्थ
  • विपत्ति – मुसीबत
  • सिर पर सवार होन – बहुत अड़ना
  • आँखों नहीं लगना – अच्छा न लगना
  • खैरियत – कुशलता
  • तकदीर – भाग्य
  • तीन कौड़ी का – व्यर्थ का
  • बैट – बल्ला
  • बछवा – बछड़ा
  • प्रतिवाद – विरोध
  • लेई पूँजी – जमा रकम
  • विपन्नता – गरीबी
  • कतार – पोक्ति
  • अपूर्व – अद्भुत
  • आत्मानंद – आत्मा की प्रसन्नता
  • धावा बोलना – दौड़ना
  • कोष – खजाना।
  • फ़ैर करना – गोली दागना
  • नेमत – अलभ्य पदार्थ, दुर्लभ वस्तु
  • फायदा – लाभ
  • मिज्ञाज – स्वभाव
  • बाल भी बाँका न होना – कोई हानि न होना
  • एड़ी-चोटी का ज्ञोर लगाना – पूरी शक्ति लगा देना
  • कुमुक – सेना
  • कनकोआ – पतंग
  • सुरलोक सिधारना – मर जाना
  • माटी का चोला माटी में मिलना – नष्ट होना, मर जाना
  • आनन-फानन – तुरंत
  • ज़ब्त – काबू पाना
  • बामन – आँचल
  • विद्वत्ता – बुद्धिमानी
  • पृथक – अलग
  • आकर्षण – खिंचाव
  • सबील – प्याऊ
  • सलूक – व्यवहार
  • विधर्मी – धर्म बदलने वाला
  • परास्त – पराजित, हारा हुआ
  • बावर्चीखाना – रसोई घर
  • मैदान मारना – विजय प्राप्त करना
  • प्रतिष्ठानुकूल – मान-मर्यादा के अनुसार
  • विकार – दोष
  • विवेक – समझदारी
  • विचित्र – अजीब
  • दुआएँ – आशीर्वाद

ईदगाह सप्रसंग व्याख्या

1. अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन और उसके घर में दाना नहीं! आज आबिद होता तो क्या इसी तरह ईंद आती और चली जाती! इस अंधकार और निराशा में वह डूबी जा रही है। किसने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को ? इस घर में उसका काम नहीं; लेकिन हामिद ! उसे किसी के मरने-जीने से क्या मतलब ? उसके अंदर प्रकाश है, बाहर आशा। विपत्ति अपना सारा दलबल लेकर आए, हामिद की आनंद-भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने इद के त्योहार के आधार पर ग्रामीण मुस्लिम जीवन का यथार्थ अंकन करते हुए बाल मनोविज्ञान के विभिन्न पक्षों तथा अमीना की मनोस्थिति को भी उजागर किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ने हामिद की पारिवारिक स्थिति पर प्रकाश डाला है । हामिद के माता-पिता का निधन हो गया है। उसका पालन-पोषण उसकी बूढ़ी दादी अमीना कर रही है। ईद के दिन भी उसके पास पर्याप्त भोजन की सामग्री नहीं है। इस अभाव की स्थिति में वह अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। वह सोचती है आज यदि उसका बेटा आबिद जीवित होता तो इस तरह काली इंद न मनानी पड़ती। उसे इस प्रकार की उत्साहरहित तथा निराशाभरी इद का आना अच्छा नहीं लग रहा था। वह सोच रही थी कि ऐसी ईद न ही आती तो अच्छा था। इस अभावग्रस्त घर में ईद का कोई स्थान नहीं है। इसके विपरीत हामिद को किसी के मरने-जीने का कोई अर्थ ज्ञात नहीं था। वह तो ईद के आने के उल्लास में खुशी से फूला नहीं समा रहा था। हामिद को लगता था कि यदि बहुत सारी मुसीबतें एक साथ भी आ जाएँ तो भी वह उसका आनंदपूर्वक सामना करके उन्हें नष्ट कर देगा। उसके मन की उमंग के सामने विपत्तियाँ भी टिक नहीं सकती हैं।

विशेष – (i) लेखक ने ईद के आने पर अभावग्रस्त परिवार की दयनीय स्थिति तथा बच्चों के मन में ईद के उल्लास का सजीव अंकन किया है।
(ii) भाषा सहज, सरल तथा देशज शब्दों से युक्त है। शैली वर्णनात्मक है।

2. जिन्नात को रुपए की क्या कमी ? जिस खज़ाने में चाहें चले जाएँ। लोहे के दरवाज़े तक उन्हें नहीं रोक सकते जनाब, आप हैं किस फेर में ! हीरे जवाहरात तक उनके पास रहते हैं। जिससे खुश हो गए उसे टोकरों जवाहरात दे दिए। अभी बहीं बैठे हैं, पाँच मिनट में कलकत्ता पहुँच जाएँ।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ “्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने ईद के अवसर पर मुस्लिम परिवारों के उल्लास तथा बच्चों की उमंग का वर्णन किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ने उस समय का वर्णन किया है जब गाँव के बच्चे इद के अवसर पर लगे मेले में घूमते हुए विभिन्न दुकानों को देखते हैं। सजी हुई दुकानों को देखकर मोहसिन हामिद को बताता है कि कैसे इन दुकानों का बचा हुआ माल आधी रात को जिन्नात खरीद लेते हैं। उसके अनुसार जिन्नात के पास रुपये-पैसे की कमी नहीं होती है। वे जहाँ चाहे जा सकते हैं। वे किसी भी खज़ाने से रुपये ले सकते हैं। उन्हें लोहे के दरवाज़े तक खज्ञाने में जाने से नहीं रोक सकते। जिन्नात बहुत शक्तिशाली होते हैं। उनके पास हीरे-जवाहरात के भंडार होते हैं। जिस भी व्यक्ति से वे प्रसन्न हो जाते हैं, उसे ढेरों जवाहरात दे देते हैं, वे कहीं भी आ-जा सकते हैं। वे अभी यहाँ हैं तो पाँच मिनट में कलकत्ता पहुँच सकते हैं।

विशेष – (i) लेखक ने बाल कल्पना का सजीव अंकन किया है, जो जिन्नात को सर्वशक्तिमान मानते हैं।
(ii) भाषा सहज, सरल तथा उर्दू शब्दों से युक्त है। शैली वर्णनात्मक है।

3. कई बार यही क्रिया होती है, जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएँ और यही क्रम चलता रहे। कितना अपूर्व दूश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाएँ, विस्तार और अनंतता हूदय श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं, मानो भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने ईद के अवसर पर होने वाले धार्मिक आयोजन तथा बच्चों के उल्लास का वर्णन किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ईदगाह में होने वाली नमाज का वर्णन करते हुए लिखता है कि नमाज पढ़ते हुए सभी श्रद्धालु एक साथ पंक्तिबद्ध होकर प्रार्थना करते हैं। वे बार-बार झुककर, खड़े होकर तथा घुटनों के बल बैठकर नमाज पढ़ते हैं। उनका यह कार्य ऐसे प्रतीत होता है जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ जल-बुझ रही हों। लेखक को यह सारा दृश्य अत्यंत आकर्षक तथा मनोहारी लगता है। इतने अधिक लोगों का सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ना देखने वाले के मन को श्रद्धा, गर्व और आत्मिक आनंद से भर देता था। यह दृश्य ऐसा लग रहा था जँसे सब लोग भाईचारे के एक सूत्र में बँधे हुए हों।

विशेष – (i) लेखक ने ईंगाह में नमाज पढ़ने वाले श्रद्धालुओं का सजीव वर्णन किया है।
(ii) भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण, सहज तथा शैली चित्रात्मक है।

4. हामिद खिलौनों की निंदा करता है-मिट्टी ही के तो हैं, गिरे तो चकनाचूर हो जाएँ; लेकिन ललचाई हुई आँखों से खिलौनों को देख रहा है। और चाहता है कि ज़रा देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता। उसके हाथ अनायास ही लपकते हैं; लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते हैं, विशेषकर जब अभी नया शौक है। हामिद ललचाता रह जाता है।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने ईद के अवसर पर बच्चों में व्याप्त उल्लास तथा ईंद के मेले का वर्णन किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक इंद के मेले में बच्चों द्वारा की गई खरीदारी का वर्णन करते हुए बताता है कि हामिद को खिलौने खरीदना पसंद नहीं है। उसका मानना है कि खिलौने तो मिट्टी से बने हुए होते हैं जो गिरते ही चकनाचूर हो जाते हैं । हामिद कह तो यह रहा था पर उसका बाल मन चाह रहा था कि वह भी उन खिलौनों, को हाथ में लेकर देख सकता। वह ले नहीं सका इसलिए ललचाई आँखों से खिलौनों की ओर देख रहा था। न चाहते हुए भी उसके हाथ अपने आप खिलौनों की ओर फैलते हैं परंतु कोई भी बच्चा उसे अपना खिलौना देखने के लिए नहीं देता क्योंकि बच्चे इस प्रकार के त्यागी नहीं होते कि अपनी वस्तु किसी को दे सकें। वह भी तब जब कि वह वस्तु उन्होंने हाल ही में ली हो। इस प्रकार हामिद खिलौनों को देखने के लिए ललचाता ही रह जाता है।

विशेष – (i) लेखक ने बालमनोविज्ञान का यथार्थ अंकन किया है। यह एक वास्तविकता है कि बच्चे एक-दूसरे को अपनी वस्तु नहीं देते हैं।
(ii) भाषा सहज, सरल तथा देशज शब्दों से युक्त हैं। चित्रात्मक शैली है।

5. हामिद को स्वीकार करना पड़ा कि खिलॉनों को देखकर किसी की माँ इतनी खुश न होगी, जितनी दादी चिमटे को देखकर होंगी। तीन पैसों ही में तो उसे सब कुछ करना था और उन पैसों के इस उपयोग पर पछतावे की बिलकुल जरूरत न थी। फिर अब तो चिमटा रुस्तमे-हिंद है और सभी खिलौनों का बादशाह!

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने ईद के अवसर पर बच्चों के उल्लास का वर्णन किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक बताता है कि ईंद के मेले में जब सब बच्चे खिलौने, मिठाई आदि खरीदते हैं तो हामिद चिमटा खरीदता है क्योंकि उसे लगता है कि यह एक उपयोगी वस्तु है जबकि खिलौने तो टूट जाएँगे। सब बच्चों को यह आभास होने लगता है कि उन्होंने खिलौने व्यर्थ ही में खरीदे। हामिद को भी लगा कि खिलौनों को देखकर किसी की भी माँ इतनी प्रसन्न नहीं होगी जितनी कि उसकी दादी उसके लाए हुए चिमटे को देखकर खुश होगी। उसके पास केवल तीन पैसे थे। इन्हीं तीन पैसों से उसने सब कुछ खरीदना था। उसे लगा कि तीन पैसे में चिमटा खरीदकर उसने कोई गलती नहीं की है। उसे अपनी इस खरीदरी पर कोई अफ़सोस नहीं था बल्कि अब तो सब लड़के उसके चिमटे की तारीफ़ कर रहे थे। इसलिए उसे अपना चिमटा स्ततमे-हिंद और सभी खिलौनों का बादशाह लग रहा था।

विशेष – (i) लेखक ने बच्चे की मनोदशा का यथार्थ अंकन किया है जो अपनी वस्तु को सबसे श्रेष्ठ मानकर बहुत प्रसन्न है।
(ii) भाषा उर्दू, देशज शब्दों से युक्त तथा शैली आत्मकथात्मक है।

6. बुढ़िया का को तुरंत स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ईंदगाह से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने ग्रारीण क्षेत्र में ईद के त्योहार पर व्याप्त उत्साह एवं उल्लास का यथार्थ अंकन किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक हामिद की दादी अमीना की मनोदशा का वर्णन करता है जो हामिद द्वारा तीन पैसे में खरीदे हुए चिमटे को देखकर दुखी हो उठती है यह कैसा बेसमझ लड़का है जो मेले में दोपहर तक बिना खाए-पिए घूमता रहा और चिमटा खरीद लाया है। जब हामिद ने यह बताया कि उनकी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं इसलिए वह चिमटा खरीदकर लाया है तो दादी का क्रोध तुरंत शांत हो जाता है। वह हामिद के प्रति ममता से भर उठी। उसका यह स्नेह मूकस्नेह था। इसमें कोई चतुराई नहीं थी। वह शब्दों के माध्यम से अपनी इस ममता को व्यक्त नहीं कर पा रही थी। उसका यह स्नेह खामोश, बहुत गंभीर तथा भावनाओं से परिपूर्ण था।

विशेष – (i) लेखक ने वात्सल्य रस से भरी हुई ममतामयी दादी की मनोदशा का सजीव अंकन किया है।
(ii) भाषा तत्समप्रधान, सहज तथा शैली भावपूर्ण है।

Class 11 Hindi Summary

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Class 11 Hindi Antra Chapter 2 Summary – Dopahar Ka Bhojan Vyakhya

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दोपहर का भोजन Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 2 Summary

दोपहर का भोजन – अमरकांत – कवि परिचय

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय-प्रेमचंद परंपरा के कहानी लेखकों में अग्रणी अमरकांत का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के भगमलपुर (नगरा) नामक गाँव में 1 जुलाई, सन् 1925 ई० को हुआ था। इनका वास्तविक नाम श्रीराम वर्मा है किंतु हिंदी साहित्य संसार में इन्हें अमरकांत के नाम से जाना जाता है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा बलिया में ही हुई थी। सन् 1942 ई० के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग लेने के कारण इनकी पढ़ाई में व्यवधान पड़ गया था। बाद में सन् 1948 ई० में इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की थी। आजीविका के लिए उन्होंने पत्रकार का जीवन अपनाया तथा सबसे पहले ‘सैनिक’ साप्ताहिक में उपसंपादक का कार्यभार सँभाला। कुछ समय तक ये लखनक में साक्षरता निकेतन से भी जुड़े रहे। इसके पश्चात् इन्होंने इलाहाबाद में ‘अमृत पत्रिका’, ‘भारत’, ‘कहानी’ तथा ‘मनोरमा’ के संपादकीय विभागों में कार्य किया तथा साथ-साथ कहानियाँ भी लिखते रहे।

रचनाएँ – अमरकांत संपादकीय व्यस्तता के कारण बहुत कम लिखते हैं किंतु उनकी रचनाएँ अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। हिंदी कहानी जगत में वे सन् 1955 ई० में ‘कहानी’ पत्रिका के विशेषांक में प्रकाशित कहानी ‘डिप्टी कलक्टरी’ से प्रसिद्ध हुए। इनके अब तक प्रकाशित कहानी-संग्रह ‘जिंदगी और जोंक, देश के लोग, मौत का नगर, कुहासा आदि हैं। इन्होंने सूखा पत्ता, पराई ड्ञाल का पंछी, सुखजीवी, बीच की दीवार, काले-उजले दिन आदि उपन्यास भी लिखे थे। 15 फरवरी सन् 2014 ई॰ को इनका निधन हो गया।

भाषा-शैली – अमरकांत की कहानियाँ भारतीय जीवन के अंतरिंरोधों का सजीव चित्रण करती हैं। इनमें निम्न मध्यवर्ग का जीवन अपने यथार्थ रूप में उपस्थित हुआ है। इन्होंने अधिकांश कहानियाँ बोलचाल की सहजज भाषा में लिखी हैं जिनमें कहीं-कहीं तत्सम प्रधान शब्दावली के अतिरिक्त अरबी, फ़ारसी, अंग्रेजी तथा देशज शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। जैसे ‘दोपहर का भोजन’ कहानी में – ‘वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा-भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई।’…. ‘बाहर की गली से गुज़रते हुए खड़-खड़ैया इक्के की आवाज़ आ रही थी और खटोले पर सोए बालक की साँस का खर-खर शब्द सुनाई दे रहा था।’ ….. ‘आधा मिनट सुन्न खड़ी रही’ …… ‘मोहन कटोरे को मुँह में लगाकर सुड़-सुड़ पी रहा था।’….. ‘तदुपरांत एक लोटा पानी लेकर खाने बैठ गई।’ इसके अतिरिक्त इनकी कहानियों में अरबी-फ़ारसी के कस्साब, तमन्ना, फ़ाहिशा, कश, आमदोरफ्त; तत्सम शब्द-अंकुश, आग्रह, चित्र, द्वंद्व, अंक आदि शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। मिनट, डिप्टी, कलक्रर, स्टेशन, पैकेट आदि अंग्रेज़ी के प्रचलित शब्दों का भी लेखक ने भरूू प्रयोग हुआ है।

अमरकांत की कहानियों का शिल्प-विधान वर्णनात्मक है जो पात्रों के संवादों के माध्यम से गति प्राप्त करता है। जैसे ‘दोपहर का भोजन’ कहानी में जब रामचंद्र की थाली में रोटी का केवल एक टुकड़ा शेष रह जाता है, तो सिद्धेश्वरी ने उठाने का उपक्रम करते हुए प्रश्न किया, ‘एक रोटी और लाती हूँ ?’

रामचंद्र हाथ से मना करते हुए हड़बड़ाकर बोल पड़ा, ‘नहीं, नहीं, ज़रा भी नहीं। मेरा पेट पहले ही भर चुका है। मैं तो यह भी छोड़ने वाला हूँ। बस, अब नहीं।’ सिद्धेश्वरी ने जिद्द की-‘अच्छा, आधी ही सही।’

रामचंद्र बिगड़ उठा, ‘अधिक खिलाकर बीमार कर डालने की तबीयत है क्या ?’ इस प्रकार के संवादों से पात्रों का चरित्र उद्घाटित होता है। इसी कहानी के अंत में लेखक का यह कथन ‘सारा घर मक्खियों से भनभन कर रहा था। आँगन की अलंगनी पर एक गंदी साड़ी टँगी थी, जिसमें कई पैबंद लगे हुए थे।’ समस्त वातावरण को सजीवता प्रदान करते हुए निम्न मध्यवर्गीय परिवार की दयनीय दशा का शब्द -चित्र ही उपस्थित कर देता है। इस प्रकार के बिंबविधान में लेखक अत्यंत निपुण है।

वास्तव में अमरकांत की कहानियाँ गहरे दायित्व-बोध के अंतर्गत लिखी गई हैं। इन कहानियों में उन्होंने अपने आस-पास के जीवन में अनुभव किए गए अंतर्विरोधों, विसंगतियों, घटनाओं, स्थितियों, पात्रों आदि को उनकी यथार्थता के साथ उसी रूप में चित्रित किया है

जैसे कि वे थे। यही कारण है कि इन कहानियों की स्थितियाँ, घटनाएँ, विवरण, पात्र आदि सभी सप्राण हैं और कस्बाई वातावरण, देशज शब्दावली, पशु-पक्षियों की क्रियाओं आदि से युक्त हैं। इस कारण इनकी कहानियों में उन समस्त पारिवारिक-सामाजिक संदर्भों की ऐतिहासिकता, समय और परिवेशगत सत्यता प्रत्यक्ष हो उठती है जिसमें आदमी लगातार धूर्व, ओछा, दयनीय, दंभी और मक्कार होता गया है तथा उसके सभी आदर्श, सिद्धांत, नैतिक मूल्य आदि ध्वस्त होते गए हैं। वे सरल, सहज तथा व्यावहारिक भाषा में अपनी कहानी कह जाते हैं, जिससे उसमें रोचकता तथा प्रभावशीलता बनी रहती है।

Dopahar Ka Bhojan Class 11 Hindi Summary

‘दोपहर का भोजन’ अमरकांत जी की बहुचर्चित कहानी है, जिसमें उन्होंने निम्न आर्थिक स्थिति के एक परिवार की निर्धनता एवं बेकारी से होनेवाली दुर्शा का मार्मिक चित्रण किया है। सिद्धेश्वरी, मुंशी चंद्रिका प्रसाद की पत्ली तथा रामचंद्र, मोहन एवं प्रमोद की माँ है जो अपनी व्यवहार-कुशलता, त्याग तथा धैर्य से घर को टूटने से बचाए हुए है। घर के सभी सदस्य संवेदनशील हैं और गरीबी के चेहरे से परिचित हैं। गर्मियों की दोपहर में खाना बनाते समय सिद्धेश्वरी भूख से बेहाल है परंतु घर में इतना अनाज नहीं कि वह अपने लिए दो चपातियाँ बना सके। वह पानी पीकर गुज्ञारा करना चाहती है किंतु खाली पेट पानी पीकर कब तक जिया जा सकता है। दूटी खाट पर लेटा उसका नन्हा बेटा कुपोषण का शिकार है। उसकी टाँगों और बाँहों की हड़डियाँ निकल आई हैं तो पेट हाँडी की तरह फूल गया है। वह सोया हुआ है। दोपहर के बारह बज गए हैं। भोजन का समय हो गया है। घर का बड़ा लड़का बीस-इक्कीस वर्षीय रामचंद्र आकर चौकी पर निराश हताश बैठ जाता है।

बड़ी देर तक जब वह हिलता-डुलता नहीं तो माँ हिला-डुलाकर उठाती है। वह प्रेस में प्रूफ़ रीडिंग का काम सीखता है संभवतः उसे पारिश्रमिक अभी नहीं मिलता। वह इंटमीडिएट पास है परंतु नौकरी पाना उसके लिए सपना ही है। सिद्धेश्वरी उसे पानी भरी दाल, थोड़े से चने और दो चपातियाँ खाने को देती है। रामचंद्र भूखा रहते हुए भी पेट भरकर खाने का अभिनय करता है। वह छोटे भाई मोहन के विषय में पूछता है। सिद्धेश्वरी नहीं चाहती है कि मोहन को लेकर वह चिंतित हो। वह उसे झूठमूठ कह देती है कि मोहन किसी मित्र के यहाँ पढ़ने-लिखने गया है। वह यह भी कहती है कि मोहन उसकी बड़ी प्रशंसा करता है ताकि रामचंद्र अपना दु:ख भूलकर कुछ समय के लिए ही सही, प्रसन्न हो ले।

कुछ समय पश्चात् मोहन भोजन करने आता है। उससे हिस्से में भी दो ही चपातियाँ और पानी में डूबी दाल ही आती है। सिद्धेश्वरी उससे कहती है कि रामचंड्र उसकी बहुत प्रशंसा कर रहा था। मोहन को यह सुनकर प्रसन्नता होती है। सिद्धेश्वरी के कहने पर वह थोड़ी-सी दाल और पी लेता है। इस प्रकार मोहन भी आधा-पेट भोजन करके उठ जाता है।

पति मुंशी चंद्रिका प्रसाद भी परेशान एवं निराश हैं। उन्हें भी दो चपातियाँ खाने को मिलती हैं। छः महीने पहले उनकी छटनी ‘किराया नियंत्रण बोई्ड’ से हो चुकी है और आजकल वे भी बेकार हैं। सिद्धेश्वरी उसे भी मनोयोगपूर्वक खाना खिलाती है। मुंशी जी भी जानते हैं कि रसोई में भोजन नहीं है इसलिए सिद्धेश्वरी के कहने पर दो से अधिक चपातियाँ नहीं खाते। वे सिद्धेश्वरी से गुड़ का शर्बत बनवाकर पीते हैं। सिद्धेश्वरी उसे प्रसन्न करने के लिए कहती है कि बड़ा बेटा रामचंद्र तो पिता को देवता समान मानता है और उसे शीप्र ही नौकरी भी मिल जाएगी।

यह सुनकर मुंशी जी प्रसन्न हो जाते हैं और आराम से खाट पर सो जाते हैं मानो उसकी नौकरी छूटी ही न हो। मुंशी जी को खाना खिलाकर जब सिद्धेश्वरी स्वयं खाना खाने बैउती है तो उसके लिए थोड़ी-सी दाल, बची-खुची तरकारी, एक मोटी तथा जली हुई रोटी शेष थी। मुँह में पहला ग्रास डालते ही उसे अपने सोए हुए पुत्र की याद आ जाती है और वह आधी रोटी उसके लिए रख देती है। भोजन करते हुए उसकी आँखों में आँसू भर आते हैं। सारे घर में मक्खियाँ भिनभिना रही थीं और मुंशी जी निश्चिंत होकर ऐसे सो रहे थे मानो छँटनी के बाद उन्हें शाम को काम की तलाश में कही जाना ही न हो।

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • मतवाले – मदमस्त
  • जी मे जी आना – सहज होना, आराम अनुभव करना
  • निह्दारने – देखने
  • किवाड़ – दरवाज्ञा
  • बेजान-सा – निर्जीव-सा
  • ग्रास – निवाला, कौर
  • बड़का – बड़ा लड़का
  • गगरा – पीतल का घड़ा
  • ओसारा – बरामदा
  • व्यप्रता – बेचैनी
  • फुर्ती – तेज़ी
  • पनिमाई – पानीवाली
  • तारीफ़ – प्रशंसा
  • उन्माद – पागलपन
  • बर्राक – ठीक प्रकार के
  • दृष्टिपात – देखना
  • हाजमा – पाचन क्रिया
  • विभाजित – बाँटना
  • निर्विकार – बिना किसी विकार से
  • ज्ञायका – स्वाद
  • दुरुस्त – ठीक, सही
  • तदुपरांत – उसके बाद

दोपहर का भोजन सप्रसंग व्याख्या

1. “लगभग आधे घंटे तक वहीं उसी तरह पड़े रहने के बाद उसके जी में जी आया। वह बैठ गई, आँखों को मल-मल कर इधर-उधर देखा और फिर उसकी दृष्टि ओसारे में अध-टूटे खटोले पर सोए अपने छछ वर्षीय लड़के प्रमोद पर जम गई। लड़का नंग-धड़ंग पड़ा था। उसके गले तथा छाती की हड्डियाँ साफ़ दिखाई देती थीं। उसके हाथ पैर बासी ककड़ियों की तरह सूखे तथा बेजान पड़े थे और उसका पेट हैंडिया की तरह फूला हुआ था। उसका मुख खुला हुआ था और उसपर अनगिनत मक्खियाँ उड़ रही थीं।”

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ आधुनिक हिंदी कहानी के सशक्त कथाकार अमरकांत द्वारा रचित कहानी ‘दोपहर का भोजन’ से उद्धृत हैं। अमरकांत जी ने प्रस्तुत कहानी में निर्धनता और बेकारी से जूझते हुए एक परिवार का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या – प्रस्तुत गद्यांश में सिद्धेश्वरी की मनोदशा का चित्रण करते हुए अमरकांत जी लिखते हैं कि भूखे पेट पानी पीने के कारण उसकी छाती में दर्द उठा और वह पीड़ा से बिलबिलाती हुई लेट गई। आधे घंटे के पश्चात उसकी हालत ठीक हुई और वह उठकर बैठ गई। उसकी आँखों के आगे अँधेरा-सा छा रहा था। उसने आँखों को मला तो उसे दिखाई पड़ा कि टूटी-फूटी खाट पर उसका छह वर्षीय बेटा लेटा था। प्रमोद नंग-धड़ंग लेटा था। उसके शरीर की हड्डियाँ निकल आई थीं। उसके हाथ-पैर कमज्ञोरी के मारे किसी बासी ककड़ी की तरह सिकुड़े हुए प्रतीत होते थे। उसके हाथ-पैर प्रायः निर्जीव से पड़े थे। उसका पेट कुपोषण के कारण फूला हुआ था जो किसी हँडिया की तरह लगता था। बच्चे का मुख खुला हुआ था और उसपर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं।

विशेष – (i) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से मुंशी जी के घर की गरीबी का मार्मिक चित्रण किया गया है।
(ii) भाषा सरल, मुहावरेदार तथा मार्मिक है। शैली वर्णनात्मक है। लड़के के हाथ-पैरों को बासी ककड़ियों से उपमित करना अत्यंत सटीक है।

2. मुंशी जी ने पत्नी की ओर अपराधी के समान तथा रसोई की ओर काफ़ी कनखी से देखा। तत्पश्चात किसी छटे उस्ताद की भाँति बोले, ” रोटी ? रहने दो, पेट काफ़ी भर चुका है। अन्न और नमकीन दोनों चीजों से तबीयत ऊब भी गई है। तुमने व्यर्थ ही कसम धरा दी। खैर, कसम रखने के लिए ले रहा हूँ। गुड़ होगा क्या ?”

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हिंदी साहित्य के सशक्त कथाकार श्री अमरकांत विरचित कहानी ‘ दोपहर का भोजन ‘ से ली गई हैं। प्रस्तुत कहानी में अमरकांत जी ने निम्न मध्यवर्गीय परिवार का चित्रण किया है, जिसमें घर का मुखिया बेकारी की यंत्रणा से गुज़र रहा है।

व्याख्या – प्रस्तुत गद्यांश में लेखक मुंशी चंद्रिका प्रसाद की मनोदशा का चित्रण करता हुआ लिखता है कि जब सिद्धेश्वरी ने पति चंद्रिका प्रसाद को बड़े लड़के की कसम दिलाकर एक चपाती और खाने के लिए कहा तो मुंशी जी को लगा मानो पत्नी ने कसम दिलाकर कोई बड़ा अपराध कर दिया हो। उन्होंने दबी आँख से रसोई की ओर देखा अर्थांत समझ गए कि रसोई में फालतू चपाती नहीं है। मुंशी जी ने बात बनाते हुए कहा कि अन्न और नमकीन से उनका दिल भर गया है। वास्तव में स्थिति इसके ठीक विपरीत है। मुंशी जी ने कहा कि तुमने बेकार ही मुझे शपथ दिला दी इसलिए शपथ रखने के लिए मैं मीठा खा लेता हूँ। मुंशी जी ने सिद्धेश्वरी से गुड़ का शर्बत बनाने को कहा।

विशेष – (i) प्रस्तुत गद्यांश में मुंशी चंद्रिका प्रसाद के घर की विपन्नता का चित्रण किया गया है। मुंशी जी आधा पेटभर खाकर उठे हैं परंतु पत्नी के आग्रह पर केवल गुड़ की माँग करते हैं। उन्हें पता है कि तीसरी रोटी खाने का अर्थ है किसी का बिलकुल भूखे रहना। घरेलू वातावरण उभरकर सामने आता है। सिद्धेश्वरी और चंद्रिका प्रसाद दोनों ही एक-दूसरे से सच्चाई छिपाने का असफल प्रयास करते हैं।
(ii) कहानी की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है। शैली संवादात्मक है।

3. उन्माद की रोगिणी की भांति बड़बड़ाने लगी, “पागल नहीं है, बड़ा होशियार है। उस ज्ञमाने का कोई महात्मा है। मोहन तो उसकी बड़ी इज्जत करता है। आज कह रहा था कि भैया की शहर में बड़ी इज्जत होती है, पढ़ने-लिखनेवालों में बड़ा आदर होता है और बड़का तो छोटे भाइयों पर जान देता है। दुनिया में वह सब कुछ सह सकता है, पर यह नहीं देख सकता कि उसके प्रमोद को कुछ हो जाए।”

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ कहानीकार अमरकांत द्वारा रचित कहानी ‘दोपहर का भोजन’ से ली गई हैं। इसमें लेखक ने एक गरीब परिवार की दयनीय स्थिति का वर्णन किया है जिनके पास पेट भरने तक के लिए अन्न नहीं है, परंतु फिर भी गृहस्वामिनी घर के सभी सदस्यों को किसी-न-किसी प्रकार भोजन करा देती है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक कहता है कि जब सिद्धेश्वरी के पति उससे बड़े पुत्र रामचंद्र के बारे में पूछ्ते हैं तो वह पागलपन के मरीज के समान बड़बड़ाते हुए कहने लगती है कि उसका पुत्र पागल नहीं बहुत समझदार है । वह तो अपने पिछले जन्म में कोई संत-महात्मा रहा होगा। मोहन भी अपने बड़े भाई की बहुत इज्जत करता है तथा आज कह रहा था कि भैया की शहर में बहुत इज्जत होती है क्योंकि पढ़ने-लिखनेवालों में भी उसका बहुत सत्कार होता है। वह बड़े लड़के की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहती है कि बड़ा बेटा भी तो अपने छोटे भाइयों को अपने प्राणों से भी अधिक प्यार करता है। वह बताती है कि बड़ा बेटा संसार के समस्त कष्ट सहन कर सकता है परंतु यह नहीं सहन कर सकता कि प्रमोद को कुछ हो जाए।

विशेष – (i) इन पंक्तियों में लेखक सिद्धेश्वरी के मुख से उसके बड़े लड़के की विशेषताओं का वर्णन करता है।
(ii) भाषा सहज, सरल तथा पात्रानुकूल है तथा शैली वर्णनात्मक है।

4. सारा घर मक्खियों से भनभन कर रहा था। आँगन की अलगनी पर एक गंदी साड़ी टँगी थी, जिसमें पैबंद लगे हुए थे। दोनों बड़े लड़कों का कहीं पता नहीं था। बाहर की कोठरी में मुंशी जी औधें मुँह होकर निश्चिंतता के साथ सो रहे थे, जैसे डेढ़ महीने पूर्व मकान किराया नियंत्रण विभाग की क्लकी से उनकी छँटनी न हुई हो और शाम को उनको काम की तलाश में कहीं जाना न हो!

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ अमरकांत द्वारा रचित कहानी ‘दोपहर का भोजन’ से ली गई हैं जिसमें लेखक ने एक ऐसे गरीब परिवार की दयनीय स्थिति का वर्णन किया है जिनके पास पेट भरने तक के लिए अन्न नहीं है परंतु फिर भी गृहस्वामिनी घर के सभी सदस्यों को किसी-न-किसी प्रकार भोजन करा देती है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक कहता है कि जब दोपहर का भोजन सब लोग कर लेते हैं तो घर में शांति छा जाती है। सारा घर मक्खियों से भिनभिनाता रहता है। आँगन की अलगनी पर पैबंद लगी गंदी-सी साड़ी टँगी हुई थी। दोनों लड़के घर पर नहीं थे। उनका कुछ पता नहीं था कि कहाँ गए हैं। घर के बाहर की कोठरी में सिद्धेश्वरी के पति मुंशी जी उलटे मुँह लेटकर चिंता मुक्त होकर इस प्रकार सो रहे थे मानो उन्हें डेढ़ महीना पहले मकान किराया नियंत्रण विभाग की क्लर्की से निकाल दिए जाने की कोई चिंता ही न हो तथा शाम को उन्हें कहीं किसी काम की तलाश में जाना ही न हो।

विशेष – (i) इन पंक्तियों में लेखक घर की स्तिति का वर्णन करते हुए बताता है कि सोया हुआ व्यक्ति सब प्रकार की चिंताओं से मुक्त दिखाई देता है।
(ii) भाषा सहज, सरल, चित्रात्मक तथा शैली बिंबात्मक है।

Class 11 Hindi Summary

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Class 11 Hindi Antra Chapter 3 Summary – Torch Bechne Wale Vyakhya

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टार्च बेचने वाले Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 3 Summary

टार्च बेचने वाले – हरिशंकर परसाई – कवि परिचय

लेखक-परिचय :

जीवन-परिच्चय – हिंदी के सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, सन 1922 ई॰ को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद ज़िले के जमानी नामक गाँव में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई थी। इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। कुछ वर्षों तक इन्होंने अध्यापन कार्य किया परंतु बार-बार स्थानांतरणों से तंग आकर अध्यापन कार्य छोड़ लेखन का निर्णय लिया। जबलपुर में रहकर इन्होंने ‘वसुधा’ नामक पत्रिका निकाली।

आर्थिक कठिनाइयों के कारण इन्हें यह पत्रिका बंद करनी पड़ी। इन्हें सन 1984 में ‘साहित्य अकादमी’ ने इनकी पुस्तक ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए पुरस्कृत किया। मुंबई में इन्हें 20 हज़ार रुपए के ‘चकल्लस पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग ने इन्हें 21000 का पुरस्कार प्रदान किया। परसाई जी पुरस्कार लेने नहीं गए तो मुख्यमंत्री ने स्वयं इनके घर जबलपुर जाकर इन्हें पुरस्कार प्रदान किया। परसाई जी प्रगतिशील लेखक संघ के प्रधान रहे हैं। उनकी पुस्तक ‘आखिन देखी’ पर्याप्त चच्चित रही है। हिंदी व्यंग्य लेखन को सम्मानित स्थान दिलाने में पसाई जी का महत्वपूर्ण योगदान है। सन 1995 ई० में इनका देहांत हो गया था।

रचनाएँ – परसाई जी का हिंदी व्यंग्य लेखकों में सर्वोच्च स्थान है। इन्होंने ‘सारिका’ में नियमित रूप से ‘तुलसीदास चंदन घिसे’ स्तंभ के अंतर्गत व्यंग्यबाण छोड़े थे। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

कहानियाँ – हँसते हैं, रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, दो नाक वाले लोग, माटी कहे कुम्हार से।
उपन्यास – रानी नागफनी की कहानी’ तथा ‘तट की खोज’।

निबंध संग्रह – तब की बात और थी, भूत के पांव पीछे, बेइमानी की परत, पगडंडियों का जमाना, सदाचार का ताबीज, शिकायत मुझे भी है, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, विकलांग श्रद्धा का दौर, निठल्ले की डायरी।

भाषा-शैली – हरिशंकर परसाई ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त विभिन्न विसंगतियों पर प्रहार किया है। इसके लिए वे भावानुकूल भाषा-शैली का प्रयोग करने में सिद्धहस्त हैं। ‘टार्च बेचनेवाले’ आलेख में लेखक ने टार्च बेचनेवाले दो मित्रों के माध्यम से स्पष्ट किया है कि किस प्रकार से एक मित्र अपनी चालाकी से टार्च बेचते-बेचते धर्माचार्य बन जाता है। लोगों के अंधविश्वासों पर कटाक्ष किया गया है। भाषा में बोलचाल के शब्दों की अधिकता है, जैसे-टार्च, क्रूरता, हरामखोरी, घायल, बीवी, यार, किस्मत आदि। कहीं-कहीं तत्सम शब्द भी दिखाई देते हैं, जैसे -सर्वग्राही, पुष्ट, संपूर्ण, प्रवचन, भव्य, वैभव। लेखक ने मुख्य रूप से व्यंग्यात्मक वर्णन प्रधान शैली अपनाई है। कहीं-कहीं संवादात्मकता से रोचकता में वृद्धि हुई है, जैसे-मेने कहा, ‘ यार, तू तो बिल्कुल बदल गया।’ उसने गंभीरता से कहा,-्’परिवर्तन जीवन का अनंतक्रम है।’
मैने कहा, ‘साले, फ़िलासफ़ी मत बघार यह बता कि तूने इतनी दौलत कैसे सँभाली?’
उसने पूछा, ‘तुम इन सालों में क्या करते रहे ?’
मेंने कहा, ‘घूम-घूमकर टार्च बेचता रहा।’
लेखक ने मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया है तथा शब्द-चित्रों के माध्यम से तथाकथित धर्मांचायों पर भी व्यंग्य किया है जब टार्च बेचनेवाले को धर्माचार्य बनने की प्रेरणा मिलती है-‘एक शाम जब मैं एक शहर की सड़क पर चला जा रहा था, मैने देखा कि पास के मैदान में खूब रोशनी है और एक तरफ मंच सजा है। लाउडस्पीकर लगे हैं। मैदान में हजारों नर-नारी श्रद्धा से झुके बैठे हैं। मंच पर सुंदर रेशमी वस्त्रों से सजे एक भव्य पुरुष बैठे हैं। वे खूब पुष्ट हैं, सँवारी हुई लंबी दाढ़ी है और पीठ पर लहराते लंबे केश।’ यहीं से वह प्रेणा प्राप्त कर उपदेशक बन जाता है। इस प्रकार लेखक की भाषा-सैली रोचकता से परिपूर्ण तथा सामाजिक विकृतियों पर कटाक्ष करने में सक्षम है।

Torch Bechne Wale Class 11 Hindi Summary

‘टार्च बेचने वाले’ हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना है। इसमें लेखक ने टॉर्च बेचने का कार्य करने वाले दो मित्रों, के माध्यम से बताया है कि दोनों में से एक टार्च बेचता हुआ, किस प्रकार संतों की वेशभूषा धारण करके, ऊँचे सिंहासन पर बैठकर, आत्मा के अँधेरे को दूरकरने वाली टार्च बेचना आरंभ कर देता है अर्थात् प्रवचन कर्ता बन जाता है। दूसरा दोस्त उसके लाभप्रद धंधे को देखकर आश्चर्यचकित रह जाता है और उसका धंधा अपना लेता है। इस प्रकार समाज में ठगने-भरमाने का गरिमामय धंधा चलता रहता है। इस रचना में पाखंड पर कड़ा प्रहार है।

लेखक को बहुत दिनो बात चौरहे पर टार्च बेचनेवाला मिलता है। उसकी वेशभूपा बदली हुई थी। उसने लंबा कुरता पहना हुआ था और दाढ़ी बढ़ा रखी थी। लेखक उससे उसकी बदली हुई वेशभूषा के बारे में पूछता है। वह लेखक को बताता है कि अब उसकी आत्मा में टार्च रूपी प्रकाश फैल गया है। उसके आगे ‘सूरजछाप’ रूपी टार्च व्यर्थ है। लेखक को लगता है कि वह दुनिया से तंग आकर संन्यास ले रहा है। वह लेखक से कहता है कि ऐसा कुछ नहीं है एक घटना ने उसका जीवन बदल दिया है। वह लेखक को अपनी कहानी बतानी शुरू करता है। पाँच साल पहले वह और उसका दोस्त निराश बैठे एक-एक सवाल का उत्तर दूँढ़ने में लगे थे, लेकिन सारे प्रयल्न करने के बाद भी यह सवाल जैसा पहले था, वैसा ही उनके सामने खड़ा था। सवाल यह था ‘पैसा कैसे पैदा करें ?’ उसने इस सवाल के हल के लिए अपने दोस्त को उपाय सुझाया। वे दोनों इसी समय अलग-अलग दिशाओं में जाकर अपना भाग्य आजमाएँ और पाँच साल बाद इसी स्थान पर मिलें। दोस्त इसके लिए तैयार नहीं था लेकिन वह अपने तर्क से उसे तैयार कर लेता है।

उसने टार्च बेचने का धंधा शुरू कर दिया। वह अपनी टार्च बेचने के लिए लोगों को चौकाने या मैदान में इकट्ठा करता और उन्हें अंधेरे का डर दिखाता कि सभी जगह बहुत अँधेरा है आदमी भटक जाते हैं। अँधेरे में आदमी घायल भी हो जाते हैं। घर और बाहर दोनों जगह रातों में भयानक अँधेरा होता है। यदि चारों ओर अँधेरा है तो उसे आप लोग ‘सूरजछाप टार्च’ खरीदकर दूर करें। उसके ऐसा कहते ही उसकी ‘सूरजछाप टार्च’ बहुत जल्दी बिक जाती। उसका जीवन आराम से व्यतीत हो रहा था।

पाँच साल बाद वह अपने मित्र से मिलने उसी स्थान पर पहुँचा जहाँ से वे अलग हुए थे। उसका मित्र वहाँ नहीं पहुँचा, उसे लगा कि उसका मित्र या तो उसे भूल गया है या मर गया है। वह उसे दूँढ़ने निकल पड़ा। एक शाम एक स्थान पर एक भव्य पुरुष ऊँचे सिंहासन पर बैठे हुए रहस्यमयी वाणी में भाषण दे रहे थे कि अंधकार ने मनुष्य को चारों ओर से घेर रखा है। मनुष्य इस अंधकार से घबराकर अपने मार्ग से भटक गया है। उसके मन की आँखों की ज्योति क्षीण हो गई है इसीलिए उसकी आत्मा भय और पीड़ा से त्रस्त है। लोग उनकी बातें बड़े ध्यान से सुन रहे थे, लेकिन मुझे हँसी आ रही थी। अंत में उन भव्य पुरुष ने कहा कि तुम लोगों को इस अंधकार से नहीं डरना चाहिए। अंधकार के साथ ही प्रकाश की किरण होती है। जहाँ आत्मा में अंधकार है, वहीं प्रकाश की किरण भी है। वह सब लोगों से उस बुझी हुई ज्योति को जगाने का आहवान करते हैं। उनके बनाए साधना मंदिर में आकर वे भीतर की ज्योति जगाने का प्रयास करें। उसे यह सब सुनकर बहुत हँसी आ रही थी।

वह उस भव्य पुरुष से मिलने के लिए उनकी कार के पास पहुँच गया। उसने भव्य पुरुष को नहीं पहचाना था, लेकिन उन्होंने अपने पुराने मित्र को पहचानकर कार में बैठा लिया और उसे अपना परिचय दिया। उनके बँगले में पहुँचकर और उनका वैभव देखकर वह हैरान हो गया। वह उससे पूछता है कि उसने इतनी सारी दौलत कैसे कमा ली ? क्या वह अब भी टार्च बेचता है ? क्योंकि उसकी बातें उसके टार्च बेचने के ढंग से मिलती हैं। उसके मित्र ने कहा कि वह टार्च नहीं बेचता। वह तो साधु है लेकिन पहला मित्र उसकी बात का विश्वास नहीं करता है। उसे लगता है कि उसकी टार्च अच्छी कंपनी की है क्योंकि वह हज़ारों आदमियों के आगे अंधकार की बातें करता है जिसे दूर करने के लिए आत्मा में प्रकाश की किरण खोजने की बात कहता है। दूसरा मित्र उसे बताता है कि उसकी टार्च की कंपनी तो सदियों पुरानी है, जिसका नाम ‘सनातन’ है। इस टार्च की कोई दुकान नहीं होती है। वह बहुत सूक्ष्म है लेकिन उसका मूल्य बहुत अधिक मिलता है। दो दिन रुक जाओ, वह उसे अपने इस लाभप्रद काम के ढंग सिखा देगा। पहला मित्र दो दिन अपने मित्र के पास रुकता है और अपनी ‘सूरजछाप टार्च’ वाली पेटी फेंक देता है क्योंकि अब उसने भी टार्च बेचनेवाली कंपनी बदल ली है।

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • व्यर्थ – बेकार
  • कठोर वचन – अप्रिय बातें
  • गुप्त – छिपा हुआ, गूढ़
  • भर-दोपहर – एकदम दोपहर का उजाला
  • गुरु गंभीर वाणी – विचारों से युक्त गंभीर वाणी
  • हरामखोरी – मुप्त की खाना
  • चोट – पीड़ा
  • हताश – निराश
  • मुताबिक – अनुसार
  • प्रवचन – उपदेश
  • सर्वग्राही – सबको ग्रसित करनेवाला
  • अंतर – मन हृद्य
  • स्तब्ध – हैरान
  • आहववान – न्यौता, बुलावा
  • वैभव – ऐश्वर्य
  • बघार – बोलना
  • पथभ्रष्ट – मार्ग से भटका हुआ
  • व्रस्त – व्यकुल, परेशान
  • किजित – कुछ
  • शाश्वत – सदा समान रूप से रहनेवाली
  • फिलासफी – दार्शनिकता
  • सनातन – हमेशा रहनेवाली

टार्च बेचने वाले सप्रसंग व्याख्या

1. मगर यह बताओ कि तुम एकाएक ऐसे कैसे हो गए ? क्या बीवी ने तुम्हें त्याग दिया ? क्या उधार मिलना बंद हो गया ? क्या साहूकारों ने ज्यादा तंग करना शुरू कर दिया ? क्या चोरी के मामले में फँस गए हो ? आखिर बाहर का टार्च भीतर आत्मा में कैसे घुस गया ?

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘ हरिशंकर परसाई’ द्वारा रचित पाठ ‘टार्च बेचने वाले’ से ली गई हैं। लेखक कई दिनों के बाद सूरज छाप टार्च बेचनेवाले से मिलता है। उस व्यक्ति की वेशभूषा बदली हुई थी। उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे उसने संन्यास ले लिया हो। लेखक टार्च बेचनेवाले से उसकी बदली हुई वेशभूषा का कारण पूछता है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक सूरज छाप टार्च बेचनेवाले व्यक्ति से उसके विषय में सब कुछ जानने के लिए उत्सुक है क्योंकि लेखक को सूरज छाप टार्च बेचनेवाला व्यक्ति चौराहे पर दिखाई नहीं दिया था। एक दिन सूरज छाप टार्च बेचनेवाला व्यक्ति लेखक को बदले हुए रूप में मिलता है उसने लंबा कुरता पहन रखा था और दाढ़ी बढ़ा रखी थी। उसे अब सूरज छाप टार्च बेचना व्यर्थ लगता था क्योंकि अब उसके भीतर की टार्च जल गई थी। लेखक को लगता है कि वह संन्यास ले रहा है।

लेख़क उस आदमी से उसके बदलने का कारण पूछता है कि आत्मा के जागृत होने के पीछे क्या कारण है जो वह अचानक बदल गया है। लोगों के बाहर का अँधेरा टार्च से दूर करते हुए उसके अंदर कैसे जल गई है। लेखक को लगता है कि उसकी पली उसे छोड़ गई है तभी वह आत्मा की बातें कर रहा है या उसको अपने धंधे के लिए उधार मिलना बंद हो गया है क्योंकि उसके पास अधिक पूँजी नहीं थी। वह उधार में टार्च का माल लेता था और शाम को टार्च की बिक्री होने पर उधार चुका देता था।

या तो साहूकारों ने उसे परेशान करना आरंभ कर दिया होगा, उन्होंने टार्च का माल पहले से अधिक महँगा कर दिया होगा, उससे नगद पैसा देकर माल उठाने के लिए कहते होंगे या फिर उसका टार्च बेचने पर मिलने वाला कमीशन कम कर दिया है। कहीं वह चोरी किया हुआ माल तो नहीं बेच रहा था जो किसी झगड़े में पड़ गया हो और आत्मा की बातें करनी शुरू कर दी हों। लेखक को यह समझ नहीं आता कि बाहर का अँधेरा दूर करने वाली टार्च उस बेचनेवाले के अंदर कैसे चली गई ? यदि अंदर चली गई तो कैसे जल उठी ? कैसे उसकी आत्मा जाग गई?

विशेष – (i) लेखक उन व्यक्तियों पर कटाक्ष करता है जो लोगों को अपने वाक्-जाल में उलझाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं।
(ii) भाषा सहज, सरल तथा शैली जिज्ञासामूलक एवं विचार प्रधान है।

2. मैं आज मनुष्य को एक घने अंधकार में देख रहा हूँ। उसके भीतर कुछ बुड़ गया है। यह युग ही अंधकारमय है। यह सर्वग्राही अंधकार संपूर्ण विश्व को अपने उदर में छिपाए है। आज मनुष्य इस अंधकार से घबरा उठा है। वह पथभ्रष्ट हो गया है। आज आत्मा में भी अंधकार है। अंतर की आँखें ज्योतिहीन हो गई हैं। वे उसे भेद नहीं पातीं। मानव-आत्मा अंधकार में घुटती है। मैं देख रहा हूं, मनुष्य की आत्मा भय और पीड़ा से त्रस्त है।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्यलेख ‘टार्च बेचनेवाले’ से ली गई हैं। इस पाठ में लेखक ने पाखंडी उपदेशकों पर कटाक्ष किया है जो भोली-भाली जनता को आत्मा के अंधकार की बातें कहकर अपनी ज्ञान की टार्च बेचना चाहते हैं।

व्याख्या – इन पंक्तियों में उस समय का वर्णन किया गया है जब टार्च बेचनेवाला एक मित्र अपने दूसरे मित्र को दूँढ़ने निकलता है तो देखता है कि उसकी टार्च बेचनेवाला मित्र एक ऊँचे सिंहासन पर बैठा लोगों को उपदेश दे रहा है कि वह आज समस्त मानव समाज को अज्ञान के घने अंधकार से घिरा देख रहा है। ऐसा लगता है जैसे आज के मनुष्यों के भीतर कुछ बुझ गया है। यह समस्त युग ही अज्ञान रूपी अंधकार से युक्त हो गया है। यह अज्ञान का अंधकार समस्त संसार को अपने अंदर ले रहा है।

इस कारण मनुष्य इस अज्ञान रूपी अंधकार से घबरा गया है। वह अपने जीवन के सद्मार्ग से भटक गया है। उसकी आत्मा पर भी अज्ञान का अंधकार छा गया है। उसके मन की आँखें प्रकाश से रहित हो गई हैं। इस कारण वह अपनी आत्मा पर छाए हुए अंधकार को दूर नहीं कर पाता। आज मनुष्य की आत्मा इस अज्ञान रूपी अंधकार में घुटकर रह गई है। इसलिए वह टार्च बेचनेवाला व्यक्ति जो संत बन गया है, देख रहा है कि मनुष्य की आत्मा इस अज्ञान रूपी अंधकार के कारण भयभीत और व्याकुल हो रही है।

विशेष – (i) लेखक ने स्पष्ट किया है कि किस प्रकार उपदेशक अपनी वाणी के द्वारा भोले-भाले लोगों को उनकी आत्मा के अंधकार से भयभीत कर उनका लाभ उठाना चाहते हैं।
(ii) भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है। शैली उपदेशात्मक एवं विचारप्रधान है।

3. जहाँ अंधकार है, वहीं प्रकाश है। अंधकार में प्रकाश की किरण है, जैसे प्रकाश में अंधकार की किंचित कालिमा है। प्रकाश भी है। प्रकाश बाहर नहीं है, उसे अंतर में खोजो। अंतर में बुझी उस ज्योति को जगाओ। मैं तुम सबका उस ज्योति को उगाने के लिए आहुवान करता हूँ। मैं तुम्हारे भीतर वही शाश्वत ज्योति को जगाना चाहता हूँ। हमारे ‘साधना मंदिर’ में आकर उस ज्योति को अपने भीतर जगाओ।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश ‘हरिशंकर परसाई’ रचित रचना ‘टार्च बेचनेवाले’ से अवतरित किया गया है। इस पाठ में लेखक पाखंडी साधुओं के विषय में बता रहा है कि कैसे वह अपनी बातों से लोगों को भरमाते हैं और ठगते हैं।

व्याख्या – भव्य पुरुष अपने सामने बैठे हज़ारों नर-नारियों को आत्मा का अंधकार दिखाकर उन्हें डराता है कि आज का सारा संसार अंधकार में है। प्रत्येक मनुष्य अंधकार में है। मनुष्य उसकी आत्मा भी उस अंधकार में घुट रही है और दुखी है। मनुष्य के अंदर ज्ञान रूपी ज्योति समाप्त हो गई है, इसलिए वह कुछ देख नहीं सकता है। सिद्ध पुरुष लोगों को अंधकार में डूबा देखकर उन्हें अंधकार से प्रकाश में आने का मार्ग बताता है कि अंधकार के साथ रोशनी भी होती है जैसे रात के बाद सुबह आती है. बुराई के बाद अच्छाई आती है वैसे ही अंधकार के साथ रोशनी है परंतु वह लोगों को दिखाई नही देती है, क्योंकि मनुष्य के अंदर की बुराइयों में अच्छाई दबी रहती है, जिसे जगाने की ज़रूरत होती है।

आत्मा में अज्ञान के अँधेरे के साथ ज्ञान की रोशनी और ज्ञान की रोशनी के साथ अज्ञान का अँधेरा होता है। यह सब समझने की ज़रूत है। आत्मा को अंधकार से मुक्त कराने के लिए बाहर की रोशनी की आवश्यकता नहीं होती है। उसके लिए अपने अंदर में ही ज्ञान की रोशनी को ढूँढ़ना पड़ता है। आत्मा में ही ज्ञान की रोशनी मिल जाती है। उसे जागृत करने के लिए सिद्ध पुरुष लोगों को अपने पास बुलाते हैं अर्थात लोगों की अपनी बातों से अंधकार और प्रकाश में ऐसा उलझा देते हैं कि वहह अपने सोचने की शक्ति खो देते हैं और उनकी बातों में उलझकर अपने अंदर की बुझी हुई ज्योति को जलाने के लिए तैयार हो जाते हैं। वह सिद्ध पुरुष लोगों की आत्मा में साक्षात ज्योति जलाना चाहता है और उनकी आत्मा को अंधकार से प्रकाश में लाकर पुण्य आत्मा बनाना चाहता है। इस कार्य के लिए लोगों को उनके बनाए ‘साधना मंदिर’ में आना होता है, जहाँ जाकर लोग साधना द्वारा प्रकाश में आने का प्रयत्न करता है, जिसका लाभ तथाकथित उपदेशक उठाते हैं।

विशेष – (i) लेखक ने स्पष्ट किया है कि कैसे अपने उपदेशों द्वारा पाखंडी साधु लोगों को भ्रमजाल में उलझाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं।
(ii) भाषा तत्सम प्रधान तथा शैली उपदेशात्मक है।

4. मैंने कहा-‘तुम कुछ भी कहलाओ, बेचते तुम टार्च हो। तुम्हारे और मेरे प्रवचन एक जैसे हैं। चाहे कोई दार्शंनिक बने, संत बने या साधु बने, अगर वह लोगों को अँथेरे का डर दिखाता है, तो जरूर अपनी कंपनी का टार्च बेचना चाहता है। तुम जैसे लोगों के लिए हमेशा ही अंधकार छाया रहता है। बताओ, तुम्हारे जैसे किसी आदमी ने हज़ारों में कभी भी यह कहा है कि आज दुनिया में प्रकाश फैला है, कभी नहीं कहा। क्यों ? इसलिए कि उन्हें अपनी कंपनी का टार्च बेचना है।’ मैं खुद भर-दोपहर में लोगों से कहता हूँ कि अंधकार छाया है। बता किस कंपनी का टार्च बेचता है ?

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण ‘हरिशंकर परसाई’ द्वारा रचित व्यंग्य लेख ‘टार्च बेचनेवाले’ से अवतरित किया गया है। इस पाठ में लेखक ने पाखंडी साधुओं पर कड़ा प्रहार किया है कि टार्च बेचनेवाले भी स्वयं को साधु, संत या दार्शनिक कहलाना पसंद करते हैं क्योंकि उनकी टार्च से लोगों की आत्मा में फैला अंधेरा दूर होता है।

व्याख्या – लेखक इन पंक्तियों में दूसरे दोस्त के माध्यम से पहले दोस्त अर्थात सिद्ध पुरुष के कार्यों की पोल खोलता है। दूसरे दोस्त को लगता है कि उसका दोस्त भी टार्च बेचनेवाला है क्योंकि वह भी लोगों में आत्मा के अँधरे का डर उत्पन्न कर रहा है। उन दोनों की बातें लोगों के सामने एक समान थीं। वह लोगों में रात के अँधेरे का डर पैदा करता है और उसका दोस्त लोगों में आत्मा के अँधेरे का डर पैदा कर रहा था। दूसरा दोस्त उसकी बात मानने से इनकार कर देता है। वह उसे कहता है कि वह अपना नाम कुछ भी बदल ले लेकिन उसका काम टार्च बेचनेवालों जैसा ही है। उन दोनों की बातें एक जैसी हैं। दोनों ही लोगों को अँधेर का डर दिखाकर अपना माल बेचते हैं। दूसरा दोस्त टार्च बेचनेवाला कहलाता है और पहला दार्शनिक संत और साधु कहलाता है।

यदि वह भी उसकी तरह संसार में फैले अँधेरे और आत्मा के अँधेरे का डर लोगों को दिखाता है, वह भी अवश्य अपनी ही कंपनी की बनाई टार्च बेचता है, जिसमें लाभ ज्यादा है। इसीलिए वह उसे अपना भेद बता नहीं रहा है। टार्च बेचनेवालों के लिए तो सदा अंधकार फैला रहता है। यदि वह साधु है तो प्रकाश फैलने की बात क्यों नहीं करता ? क्यों लोगों को अँधेरे का डर दिखाता है ? कभी भी उस जैसे आदमी ने यह नहीं कहा कि संसार में प्रकाश फैला हुआ है, डरने की कोई बात नहीं है।

अँधेरा समाप्त हो चुका है। चारों ओर प्रकाश फैला हुआ है। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं कहता, वह इसलिए नहीं कहता क्योंकि उन्हें अपनी कंपनी की टार्च बेचनी होती है। वह स्वयं भी भरी दोपहर में, जब अँधरे का नाममात्र भी निशान नहीं होता, अपनी बातों से लोगों को अँधरे के नाम से इतना डरा देता है कि लोगों को दिन में भी अंधेरा दिखाई देने लगता है और वे टार्च खरीद लेते हैं। वह उससे पूछता है कि वह अंधकार की बातें करके लोगों को किस कंपनी की टार्च बेचता है ?

विशेष – (i) लोगों को अँधेरे का डर दिखाकर मूर्ख बनाया जाता है और उन्हें प्रकाश में लाने के लिए अपना उत्पाद बेचा जाता है।
(ii) भाषा सहज, सरल, प्रवाहमयी तथा शैली संवादात्मक है।

Class 11 Hindi Summary

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Class 11 Hindi Antra Chapter 4 Summary – Gunge Vyakhya

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गूँगे Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 4 Summary

गूँगे – रांगेय राघव – कवि परिचय

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय-रांगेय राधव हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार हैं। उनकी कहानियाँ जीवन के विविध पहलुओं को छूने की विशेषता रखती हैं। उनका जन्म 17 जनवरी, 1923 ई० को आगरा में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा भी आगरा में ही हुई। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए, पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। उन्हें सन 1961 ईी० में राजस्थान साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत किया था। केवल 39 वर्ष की अल्पायु में सन 1962 ईं० में उनका निधन हो गया था।

रचनाएँ – श्री रांगेय राषव बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने सभी विधाओं में साहित्य की रचना – है। इनमें कहानी, उपन्यास, कविता तथा आलोचना मुख्य हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
कहानी-संग्रह-राम राज्य का वैभव, देवदासी, समुद्र के फेन, अधूरी मूरत, जीवन के दाने, अंगारे न बुझे, ऐयाश मुरदे, इनसान पैदा हुआ। उपन्यास-घरॉंदा, सीधा-सादा रास्ता, अँधरे के जुगनू, बोलते खंडहर, कब तक पुकारूू तथा मुरदों का टीला।
उनकी संपूर्ण रचनाओं का संग्रह दस खंडों में ‘रांगेय राघव ग्रंधावली’ नाम से प्रकाशित हो चुका है।

भाथा-शैली – रांगेय राघव की कहानियाँ जीवन के विविध पहलुओं का बड़ा सहज उद्घाटन करती हैं। उन्होंने समाज के शोषित-पीड़ित मानव के जीवन के सथार्थ का बहुत मार्मिक चित्रण किया है। रांगेय राघव की भाषा में सरलता और प्रवाह का गुण रहता है। उन्होंने तत्सम शब्दों के साथ तद्भव और विदेशी शब्दों का भी सहज रूप में प्रयोग किया है जैसे चमेली आवेश में आकर चिल्ला उठी-‘मक्कार, बदमाश!’ इसी प्रकार से क्षोभ, निष्फल, नखरे, अचरज, विरस्कार, पक्षपात, शिकायत, चेतना, परदे, परिणत, गजब आदि प्रयोग देखे जा सकते हैं। उन्होंने संवादात्मक शैली का अत्यंत सहज भाव से प्रयोग किया है। इनके संवाद सहज, स्वाभाविक,संक्षिप्त तथा भावानुकूल हैं; जैसे-
‘शकुंतला क्या नहीं जानती ?’
‘कौन? शकुंतला! कुछ नहीं जानती।’
‘क्यों साहब? क्या नहीं जानती? ऐसा क्या काम है जो वह नहीं कर सकती?’
‘वह उस गूँगे को नहीं बुला सकती।’
लेखक ने शब्दों के माध्यम से वस्तु-स्थिति का यथार्थ अंकन करने में भी सफलता प्राप्त की है, जैसे गूँगे के न बोल सकने पर उसकी दशा का यह वर्णन-‘ वह ऐसे बोलता है जैसे घायल पशु कराह उठता है, शिकायत करता है, जैसे कुत्ता चिल्ला रहा हो और कभी-कभी उसके स्वर में ज्वालामुखी के विस्फोट की-सी भयानकता थपेड़े मार उठती है।
लेखक ने पेट बजाना, छत उठाकर सिर पर रखना, नाली का कीड़ा, पत्ते चाटना, कुत्ते की दुम क्या कभी सीधी होना आदि मुहावरों और लोकोक्तियों के सहज प्रयोग द्वारा भाषा की लक्षणा शक्ति में वृद्धि की है। इस प्रकार इस कहानी की भाषा-शैली प्रवाहपूर्ण, सहज, चित्रात्मक, संवादात्मक एवं भावपूर्ण है।

Gunge Class 11 Hindi Summary

‘गूरेगे’ कहानी रांगेय राघव की एक प्रसिद्ध कहानी है। यह कहानी एक गूँगे लड़के की है जिसमें शोषित एवं पीड़ित मानव की असहाय स्थिति का मार्मिक चित्रण किया गया है। गूँगे में ऐसी तड़पन है जो पाठक के हृदय को झकझोर देती है।

गूँगा बालक सभी का दया का पात्र है। वह जन्म से बहरा होने के कारण गूँगा है। वह सुख-दुख जो कुछ भी अनुभव करता है, उसे इशारों के माध्यम से प्रकट करता है। उसके इशारे एक प्रकार से दूसरों का मनोरंजन भी करते थे। वह इशारों से बताता था कि उसकी माँ घूंषट काढ़ती थी, छोड़ गई, क्योंकि बाप मर गया। उसका पालन-पोषण किसने किया यह तो समझ में नहीं आया। लेकिन उसके इशारों से इतना अवश्य स्पष्ट हो गया कि जिन्होंने उसे पाला, वे मारते बहुत थे। वह बोलने की बड़ी कोशिश करता है, लेकिन नतीजा कुछ नहीं, केवल कर्कश काँय-काँय का ढेर। अस्फुट ध्वनियों का वमन, जैसे आदिम मानव अभी भाषा बनाने में जी-जान से लड़ रहा हो। कैसी विडंबना है कि वह अपने हदय के उद्गार प्रकट करना चाहता है, पर कर नहीं पाता।

सुशीला गूँगे को मुँह खोलने के लिए कहती है। गूँगे के मुँह में कुछ नहीं। गले में कौअ है। किसी ने बचपन में गला साफ करने की कोशिश में काट दिया और वह ऐसे बोलता है, जैसे घायल पशु कराह उठता है।

खाने-पीने के विषय में पूछने पर बताता है-हलवाई के यहाँ रातभर लड्डू बनाए है, कड़ाही माँजी है, नौकरी की है, कपड़े धोए हैं-गूँगे का स्वर चीत्कार में बदल गया। सीने पर हाथ मारकर इशारा किया कि हाथ फैलाकर उसने कभी नहीं माँगा। वह भीख नहीं लेता। भुजाओं पर हाथ रखकर बताया कि वह मेहनत का खाता है।

चमेली के हृदय में अनाथ बच्चों के लिए दया थी। लेकिन वह इस गूँगे को घर में नौकर रखकर क्या करेगी ? लेकिन पूँगे ने इशारे से स्पष्ट किया कि वह सब कुछ समझता है। केवल इशारों की जरूरत है। चमेली ने उसे चार रुपए वेतन और खाना देने का वादा कर घर में नौकर रख लिया। सुशील ने चमेली को समझाया कि गूंगे को नौकर रखकर क्या करोगी ? पर चमेली के मन में दया थी। उसने कहा और कुछ नहीं करेगा तो कम-से-कम बच्चों की तबीयत तो बहलती रहेगी।

गूँगा अपने घर वापस नहीं जाना चाहता। उसे बुआ और फूफा ने पाला अवश्य था पर वे मारते बहुत थे। वे चाहते थे कि गूँगा कुछ काम करे और उन्हें कमा कर दे और बदले में बाजरे तथा चने की रोटियों पर निर्वाह करे।

गूँगे की यह आदत थी कि वह इधर-उधर भाग जाता था। घर के सब लोग जब खाना खा चुके तो वह अचानक दरवाजे पर दिखाई दिया और इशारे से बताया कि वह भूखा है। चमेली ने उसकी तरफ़ रोटियाँ फेंक दीं और पूछा कहाँ गया था। गूँगा अपराधी की भाँति खड़ा था। चमेली ने एक चिमटा उसकी पीठ पर जड़ दिया पर गूँगा रोया नहीं। चमेली की आँखों से आँसू गिरने लगे। वह देखकर गूँगा भी रोने लगा। गूँगा कभी भाग जाता और कभी लौटकर फिर आ जाता। जगह-जगह नौकरी करके भाग जाना उसकी आदत बन गई थी। एक दिन चमेली के बेटे बसंता ने गूँगे को चपत मार दी। गूँगे ने भी उसे मारने के लिए हाथ उठाया पर रुक गया।

गूँगा रोने लगा उसका रुदन इतना कर्कंश था कि चमेली चूल्हा छोड़कर वहाँ आई। पूछने पर पता चला कि खेलते-खेलते बसंता ने उसे मारा था। बसंता ने शिकायत की कि गूँगा उसे मारना चाहता था। गूँगा चमेली की भावभंगिमा से सब कुछ समझ गया था। उसने चमेली का हाथ पकड़ लिया। एक क्षण के लिए चमेली को लगा जैसे उसके पुत्र ने ही उसका हाथ पकड़ रखा है। एकाएक चमेली ने घृणा का भाव व्यक्त करते हुए अपना हाथ छुड़ा लिया। अपने बेटे का ध्यान आते ही चमेली के हृदय में गूँगे के प्रति दया का भाव भर आया। वह लौटकर चूल्हे पर जा बैठी, जिसके अंदर आग थी लेकिन उसी आग से वह सभी पक रहा था जिससे सब भयानक आग बुझती हैं-पेट की आग जिसके कारण आदमी गुलाम हो जाता है।

चमेली की समझ में आ गया कि गूँगा यह समझता है कि बसंता मालिक का बेटा है, इसलिए उसने बसंता पर हाथ नहीं उठाया। उसे अपनी हीन स्थिति का पूरा ज्ञान था। गूँगे पर चोरी का आरोप लगाया गया। चमेली ने उसे घर से निकाल दिया और चिल्लाकर कहा ‘मक्कार’ बदमाश! रोज़-रोज़ भाग जाता है, पत्ते चाटने की आदत पड़ गई है। नहीं रखना है हमें, जा त, इसी वक्त निकल जा।’ गूँगे ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। चमेली ने उसका हाथ पकड़कर उसे दरवाजे से बाहर धकेल दिया। गूँगा वहाँ से चला गया। चमेली देखती रही।

लगभग घंटे-भर बाद शकुंतला और बसंता दोनों चिल्ला उठे। चमेली ने नीचे उतर कर देखा गूंगा खून से लथ-पथ था। उसका सिर फट गया था। उसे सड़क के लड़कों ने पीट दिया था क्योंकि गूँगा होने के नाते वह उनसे दबना नहीं चाहता था। दरवाजे की दहलीज पर सिर रखकर वह कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था। चमेली चुपचाप देखती रही कि इस मूक अवसाद में युगों का हाहाकर भरकर गूंज रहा है और वे गूँगे -अनेक-अनेक हो संसार में भिन्न-भिन्न रूपों में हो गए हैं-जो कहना चाहते हैं पर कह नहीं पाते। जिनके हदय की प्रतिहिंसा न्याय और अन्याय को परखकर भी अत्याचार को चुनौती नहीं दे सकते, क्योंक बोलने के लिए स्वर होकर भी स्वर में अर्थ नहीं है, क्योंकि वे असमर्थ हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • गूँगे – जो बोल नहीं सकते
  • वज्र बहरा – जिसे बिलकुल सुनाई न देता हो
  • इंगित – इशारा
  • कर्कश – कठोर
  • चीत्कार – चीख
  • पल्लेदारी – कुली का काम, बोझ उठाना
  • रोष – क्रोध
  • विस्मय – हैरानी
  • पक्षपात – भेदभाव
  • विक्षुब्ध – दुखी
  • मूक – खामोश
  • कृत्रिम – बनावटी, दिखावटी
  • द्वेष – वैर
  • कुतूहल – हैरानी, उत्सुकता
  • जबर्दस्त – बहुत अधिक
  • अस्पुट – अस्पष्ट
  • परिणत – बदल
  • प्रतिच्छाया – प्रतिबिंब
  • भाव-भंगिमा – हाव-भाव
  • विक्षोथ – दुख
  • तिरस्कार – उपेक्षा
  • निष्कल – बेकार
  • अवसाद – दीनता
  • वमन – डगलना

गूँगे सप्रसंग व्याख्या

1. करुणा ने सबको घेर लिया। वह बोलने की कितनी ज़बर्देस्त कोशिश करता है । लेकिन नतीजा कुछ नहीं, केवल कर्कश काँय-काँय का ठेर ? अस्फुट ध्वनियों का वमन, जैसे आदिम मानव अभी भाषा बनाने में जी-जान से लड़ रहा हो।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ रांगेय राघव द्वारा रचित कहानी ‘गूँग’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने एक गूँगे बालक के माध्यम से शोषित एवं पीड़ित मनुष्य की उस असहाय अवस्था का चित्रण किया है जो मूक भाव से सब अत्याचार सहन करता है और कभी इन अत्याचारों के विरोध में अपना आक्रोश भी व्यक्त करता है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक उस समय का वर्णन कर रहा है जब गूँगा बालक अपनी दयनीय दशा का वर्णन संकेतों के माध्यम से करता है जिसे समझकर उपस्थित महिलाएँ उसके प्रति दया से भर उठती हैं। गूँगे को बोलने में असमर्थ देखकर उन सब महिलाओं को उसपर बहुत दया आई। वे देख रही थीं कि वह बोलने के लिए बहुत प्रयत्न करता है परंतु बोल नहीं पाता। उसके सभी प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं। उसके मुख से कठोर तथा कर्णकटु काँय-काँय की आवाजों के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं निकलता है। ऐसा लगता था जैसे वह अस्पष्ट ध्वनियों की उलटी कर रहा हो या प्राचीनकाल का मनुष्य अभी-अभी भाषा बनाने की पूरी कोशिश कर रहा है।

विशेष – (i) लेखक ने गूँगे-बहरे व्यक्ति की बोलने में असमर्थता का सजीव चित्रण करते हुए उसके न बोल सकने की स्थिति में लोगों की उसके प्रति करुणा की भावना का वर्णन किया है।
(ii) भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण तथा शैली भावात्मक है।

2. वह लौटकर चूले पर जा बैठी, जिसमें अंदर आग थी, लेकिन उसी आग से वह सब पक रहा था जिससे भयानक आग बुझती है-पेट की आग, जिसके कारण आदमी गुलाम हो जाता है।

प्रसंग – प्रस्तुत पक्तियाँ रांगेय राघव द्वारा रचित कहानी ‘गुँगे’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने एक गूँगे-बहरे व्यक्ति की मानसिक दशा का चित्रण किया है जो अपनी श्रवण क्षमता न होने की यातनाओं को सहन करने के लिए विवश है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ने उस समय का वर्णन किया है जब बसंता गूंगे को चपत मार देता है और गूंगे की सांकेतिक बातों पर ध्यान न देकर चमेली बसंता की शिकायत पर गूँगे को डाँटती है तो गूँगा उसकी बाँह पकड़ लेता है कि कहीं वह उसे भी न मारे। चमेली उससे अपना हाथ छुड़ा लेती है। वह यह सोचकर गूँगे के प्रति ममता से भर उठती है कि कहीं उसका अपना बेटा गूँगा होता तो क्या उसकी भी यही दशा न होती। वह फिर से चूले के पास जा बैठती है जिसमें आग जल रही थी और उसी आग से वह भोजन पक रहा था जिससे पेट की आग अर्थात भूख मिटती है जिसके लिए मनुष्य को मनुष्य की गुलामी तक करनी पड़ती है।

विशेष – (i) लेखक ने इस तथ्य की ओर संकेत किया है कि मनुष्य को अपनी भूख मिटाने के लिए मनुष्य की गुलामी करनी पड़ती है।
(ii) भाषा मुहावरों से युक्त लाक्षणिक तथा भावपूर्ण है। शैली व्यंग्यात्मक तथा विचार प्रधान है।

3. सोचा-मारने से यह ठीक नहीं हो सकता। अपराध को स्वीकार करा दंड न देना ही शायद कुछ असर करे और फिर कौन मेरा अपना है। रहना हो तो ठीक से रहे, नहीं तो फिर जाकर सड़क पर कुत्तों की तरह जूठन पर ज़िंदगी बिताए, दर-दर अपमानित और लाँछित….।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ रांगेय राघव द्वारा रचित कहानी ‘गूँगे’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने एक मूक-बधिर बालक की दयनीय दशा का सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक उस समय का वर्णन करता है जब चमेली गूँगे को खाने के लिए बासी रोटी देती है तो अचानक ही उसे गूँगे के मुख से गुरंहट-सी सुनाई देती है। उसे लगता है कि उसने एक ऐसा पशु पाला है जिसके हृदय में मानवों की-सी वेदना है। वह उससे पूछती है कि क्या उसने चोरी की है ? गूँगा चुप रहता है। चमेली क्रोध से उसे घूरती है और सोचती है कि मारपीट करने से यह ठीक नहीं हो सकता। इसे इसके किए हुए अपराध का बोध कराकर इसे दंड न देने पर ही शायद इसपर कोई प्रभाव पड़ेगा। फिर वह सोचती है कि वह उसका कौन-सा अपना संबंधी हैं। यदि वह यहाँ रहना चाहता है तो उसे ठीक तरह से रहना चाहिए अन्यथा फिर इधर-उधर भटकते हुए कुत्तों के समान लोगों की फेंकी हुई जूठन को खाकर अपना जीवन व्यतीत करे और हर किसी से अपमान और लाँछन सहन करता रहे।

विशेष – (i) लेखक ने लोगों की उस मानसिक स्थिति को उजागर किया है जो अपने स्वार्थ के लिए मूक-बधिरों का प्रयोग करते हैं तथा आवश्यकता न होने पर उन्हें घर से निकाल देते हैं।
(ii) भाषा तत्सम-प्रधान, प्रवाहमयी तथा भावपूर्ण है। शैली वर्णनात्मक तथा विचार प्रधान है।

4. और ये गूंगे-अनेक-अनेक हो संसार में भिन्न-भिन्न रूपों में छा गए हैं-जो कहना चाहते हैं, पर कह नहीं पाते। जिनके द्दयय की प्रतिहिंसा न्याय और अन्याय को परखकर भी अत्याचार को चुनौती नहीं दे सकती, क्योंकि बोलने के लिए स्वर होकर भी-स्वर में अर्थ नहीं है…क्योंकि वे असमर्थ हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ रांगेय राघव द्वारा रचित कहानी ‘गूँगे’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने एक मूक-बधिर बालक की मनोदशा का वर्णन करते हुए उसकी व्यथा, शोषण तथा आक्रोश का वर्णन किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में उस समय का वर्णन किया गया है जब सड़क के लड़के गूँगे का सिर फाड़ देते हैं और वह खून में लथपथ चमेली की दहलीज पर सिर रखकर कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था। उसकी सहायता करने कोई नहीं आता है। तब चमेली सोचती है कि केवल यही गूँगा नहीं है जो समाज से इस प्रकार की उपेक्षा सहन कर रहा है। इस संसार में और भी गूँगे हैं जो अलग-अलग रूप में समाज में विचरण कर रहे हैं। वे सामाजिक अन्यायों को देखकर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पाते। उनका मन न्याय और अन्याय में भेद करके भी अत्याचारों का विरोध नहीं कर पाता। उन्हें पता है कि उनके बोलने से कुछ नहीं हो सकता। उनमें इतनी शक्ति नहीं है कि वे समाज में होनेवाले अत्याचारों का विरोध कर सकें।

विशेष – (i) लेखक ने आज के समाज में व्याप्त संवेदनहीनता पर चिंता व्यक्त की है। किसी को दुखी देखकर भी कोई किसी की सहायता नहीं करता है। सब अपने तक ही सीमित हो गए हैं।
(ii) भाषा तत्सम-प्रधान, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है। शैली विचार प्रधान तथा व्यंग्यात्मक है।

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Class 11 Hindi Antra Chapter 5 Summary – Jyotiba Phule Vyakhya

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ज्योतिबा फुले Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 5 Summary

ज्योतिबा फुले – सुधा अरोड़ा – कवि परिचय

लेखिका-परिचय :

जीवन-परिचय-सुधा अरोड़ा का जन्म सन 1948 ई॰ में हुआ था। इन्होंने उच्च शिक्षा कोलकाता विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी तथा वहीं के दो कॉलेजों में अध्यापन कार्य भी किया था। इन्होंने ‘सारिका’ तथा ‘जनसत्ता’ में पाक्षिक तथा साप्ताहिक कॉलम भी लिखे थे जिनमें आम आदमी और महिलाओं से संबंधित विषयों को उठाया गया था। इसका संबंध विभिन्न महिला संगठनों से है तथा वे उनसे संबंधित कार्यों के प्रति सदा सक्रिय रहती हैं। इन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सन 1978 में विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। रचनाएँ-सुधा अरोड़ा की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैंकहानी संग्रह-बगैर तराशे हुए, काँसे का गिलास, काला शुक्रवार, युद्ध-विराम, महानगर की भौतिकी। संपादित-औरत की कहानी, दहलीज को लाँघते हुए, पंखों की उड़ान।

निबंध संग्रह – औरत की दुनिया बनाम दुनिया की औरत।

भाषा-शैली – सुधा अरोड़ा ने अपनी भावनाओं को अत्यंत सहज, रोचक एवं प्रभावशाली भाषा-शैली में व्यक्त किया है। जज्योतिबा फुले ‘ निबंध में लेखिका ने मुख्य रूप से तत्सम प्रधान भाषा का प्रयोग किया है जिसमें व्यावहारिक उर्दू के शब्दों का प्रयोग भी मिलता है, जैसे-‘ज्योतिबा फुले ब्राहमण वर्चस्व और सामाजिक मूल्यों को कायम रखने वाली शिक्षा और सुधार के समर्थक नहीं थे।’ इनकी शैली अत्यंत सहज तथा प्रवाहमयी है। वे घटनाओं का आँखों देखा विवरण प्रस्तुत करने में निपुण हैं, जैसे- ‘ “एक बार सावित्री शिखल गाँव के हार में गई। वहाँ कुछ खरीदकर खाते-खाते उसने देखा कि एक पेड़ के नीचे कुछ मिशनरी स्त्रियाँ और पुरुष गा रहे हैं। एक लाट साहब ने उसे खाते हुए और रुककर गाना सुनते देखा तो कहा ‘इस तरह रास्ते में खाते-खाते घूमना अच्छी बात नहीं है।’ सुनते ही सावित्री ने हाथ का खाना फेंक दिया।” इस प्रकार इस पाठ में सर्वत्र सहज तथा बोधगम्य भाषा एवं सहज वर्णनात्मक शैली का प्रयोग प्राप्त होता है।

Jyotiba Phule Class 11 Hindi Summary

‘ज्योतिबा फुले’ निबंध सुधा अरोड़ा द्वारा रचित है। लेखिका ने इस निबंध में ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री देवी द्वारा किए गए शिक्षा और सुधार संबंधी कायों का वर्णन किया है। उन्होंने समाज और धर्म के पारपरिक और अनीतिपूर्ण रूढ़ियों का विरोध किया। कुछ वरों, शोषितों और स्त्रियों की समानता के लिए अधिकारो की लड़ाई लड़ी, इसलिए उन्हें समाज का व्यापक विरोध भी सहन करना पड़ा। उनका संघर्ष दूसरों के लिए प्रेरणादायक रहा है।

भारत के सामाजिक विकास और व्यवस्था में बदलाव लानेवाले पाँच सुधारकों की सूची में महात्मा ज्योतिबा फुले का नाम नहीं है, इसका कारण यह है कि उन्होंने ब्राहमण होते हुए भी ब्राहमणवाद और पूँजीपति-समाज का डटकर विरोध किया। ब्राहमणों द्वारा यह कहने पर कि विद्या विशेष वर्गों के घर चली गई थी। महात्मा ज्योतिबा फुले के अनुसार शासक और धर्म के ठेकेदार आपस में मिलकर प्रशासन चलाते हैं, इसीलिए विशेष वर्गों और स्त्रियों को मिलकर उच्च प्रशासन व्यवस्था के विर्द्ध आंदोलन चलाना चाहिए।

महात्मा ज्योतिबा फुले के विचार ‘गुलाम गिरी’, ‘शेतकर यांचा आसूड’, ‘सार्वजनिक सत्यधर्म’ आदि पुस्तकों में मिलते हैं। वे अपने समय से आगे की सोच रखते थे। उनके आदर्श परिवार की कल्पना में पिता को बौद्ध, माता ईसाई, बेटी मुसलमान और बेटा सत्य के मार्ग पर का अनुक्षरण करनेवाला होना चाहिए। आधुनिक शिक्षा के लिए वे कहते थे यदि विशेष वर्गों को शिक्षा का अधिकार नहीं है ऐसी शिक्षा का क्या लाभ है उनसे ही ‘कर’ के रूप में पैसा इकट्ठा करके ऊँची जाति के बच्चों की शिक्षा पर खर्च करना कहाँ तक उचित है। समाज के मुट्ठीभर लोगों का प्रतिनिधित्व करनेवाले और समाज-सुधार की बात करने वाले लोगों को महात्मा फुले की बातें पसंद नहीं थी इसलिए उनका नाम समाज-सुधारकों की सूची में शामिल नहीं किया। इससे ब्राहमण मानसिकता का पता चलता है।

1883 में ज्योतिबा फुले ने ‘शेतकर यांचा आसूड’ में कहा है कि विद्या के बिना मनुष्य के सभी काम बिगड़ जाते हैं क्योंकि विद्या प्राप्त न करने से बुद्धि का विकास नहीं होता। बुद्धि का विकास न होने पर अच्छे-बुरे की पहचान नहीं होती। जब अच्छे-बुरे का ज्ञान ही नहीं है तो समाज में किस प्रकार कार्य किया जाएगा। समाज में बिना काम किए धन नहीं मिलेगा और धन पास न होने से वर्ग, पिछड़े ही रहेंगे, अपना उद्धार नहीं कर सकेंगे। फुले जी के अनुसार स्त्रियों को भी पुरुषों के समान शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए। स्त्रियों को पुरुषों जैसी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। उनसे पक्षपात नहीं करना चाहिए। उन्होंने विवाह-विधि में से ब्राह्मण का स्थान ही हटा दिया और स्त्रियों की गुलामीवाले सभी मंत्र निकाल दिए। उनके स्थान पर विवाह-विधि के नए मंत्रों की रचना की। इन मंत्रों में स्त्री पुरुष से, उसको स्वतंत्रता देने के अधिकार की शपथ लेने को कहती है। फुले जी ने स्त्रियों की स्वतंत्रता के लिए बहुत प्रयत्त किए।

1888 में फुले जी को ‘महात्मा’ उपाधि से विभूषित किया गया। उन्होंने कहा कि उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि नहीं चाहिए। इससे समाज में फैला संघर्ष समाप्त हो जाता है। वह एक साधारण व्यक्ति के समान ही कार्य करना चाहते हैं। वे कथनी और करनी में विश्वास करते थे। स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए, इसके लिए सबसे पहले अपनी पत्नी सावित्री बाई को शिक्षित किया। सावित्री बाई को भी बचपन से शिक्षा में रुचि थी लेकिन उनके पिता ने उन्हें नहीं पढ़ाया। उनके अनुसार स्वियाँ पढ़ने से बिगड़ जाती हैं। 14 जनवरी, 1848 को पुणे में भारत की सबसे पहली कन्या पाठशाला खुली। इसके बाद उन्होंने पिछड़े वर्गों और लड़कियों के लिए पाठशाला खोलनी आरंभ कर दीं। इस काम में प्रतिष्ठित समाज ने दोनों का कड़ा विरोध किया। उन्हें ब्राहमण समाज से बाहर निकाल दिया। ज्योतिबा के पिता ने भी उसे पुरोहितों और रिश्तेदारों से डरकर अपने घर से निकाल दिया।

सावित्री देवी को पाठशाला में जाने से रोकने के लिए लोगों ने उन पर थूक फेंका, पत्थर मारे और गोबर उछाला लेकिन पति-पत्नी दोनों ने धैर्य नहीं छोड़ा। दोनों ने सभी प्रकार के विरोधों का डटकर मुकाबला किया। 1840-1890 तक दोनों ने पचास वर्षों तक एक साथ मिलकर विशेष वर्ग के लिए कार्य किया। उन्होंने मिशनरी महिलाओं की तरह किसानों और उन वरों के घर जाकर लड़कियों को पाठशाला भेजने, बाल हत्या रोकने और विधवाओं को फिर से जीवन शुरू करने के कार्य किए। विशेष वर्ग की एक घूँट पानी पीकर प्यास बुझाने की तकलीफ़ को देखा। ज्योतिबा फुले ने अपने घर की पानी की टंकी सभी जतियों के लिए खोल दी।

ज्योतिबा फुले और सावित्री देवी ने सभी काम डंके की चोट पर किए। पिछड़े वर्गों और स्त्रियों को पारंपरिक रूढ़ियों से बाहर निकाला। आज के आधुनिक समाज में पढ़े-लिखे प्रतिष्ठित लोग कई साल तक साथ रहकर अलग हो जाते हैं और अपने को ठीक बताने के लिए अपने साथी पर तरह-तरह के आरोप लगाते हैं। ऐसे में ज्योतिबा और सावित्री देवी का एक-दूसरे के प्रति समर्पित जीवन भाव की भावना अन्य दंपतियों के लिए एक आदर्श है।

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • अप्रत्याशित – जिसकी उम्मीद भी न हो
  • बदलाव – परिवर्तन
  • शुमार – गिनती, शामिल
  • उच्चवर्णीय – ऊँची जाति के, उच्च वर्ग से संबौधित
  • वर्चस्व – दबदबा, प्रधानता
  • कायम रखना – बनाए रखना, स्थिर रखना
  • पूँजीवादी – जो पूँजी को सर्वाधिक महत्व प्रदान करता है
  • संगृहित – एकत्रित करना
  • अवधारणा – मान्यता, विचार
  • सत्यधर्मी – सत्य धर्म का अचरण करनेवाला
  • सर्वांगीण – सब प्रकार से
  • संभ्रांत – श्रेष्ठ, उच्चवर्ग
  • असलियत – वास्तविकता
  • पर्दाफ़ाश – उजागर करना, रहस्य या भेद खोलना
  • पक्षपात – भेदभाव, किसी एक पक्ष को बढ़ावा देना
  • गुलामगिरी – लोगों से गुलामी करवाना
  • पूर्णविराम – समाप्त करना
  • मठाधीश – किसी मठ का अधिष्ठाता या स्वामी, जो किसी धर्म या वर्ग के नाम पर समूह बनाते हैं
  • हाट – बाज़ार
  • आग बलूला होना – अत्याधिक क्रोध करना
  • कन्याशाला – लड़कियों की पाठशाला
  • व्यवधानों – अड़चनों, रुकावटों
  • मुकाम – अवसर
  • डंके की चोट पर – ख्रुले आम
  • आमादा – तैयार, उद्भत

ज्योतिबा फुले सप्रसंग व्याख्या

1. स्वतंत्रता का अनुभव हम स्त्रियों को है ही नहीं। इस बात की आज शपथ लो कि स्त्री को उसका अधिकार दोगे और उसे अपनी स्वतंत्रता का अनुभव करने दोगे।” यह आकांक्षा सिफ़़ वधू की ही नहीं, गुलामी से मुक्ति चाहनेवाली हर स्त्री की थी।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण सुधा अरोड़ा द्वारा लिखित निबंध ‘ज्योतिबा फुले’ से अवतरित किया गया है। लेखिका ने इस निबंध के माध्यम से यह बताया हैं कि ज्योतिबा फुले द्वारा समाज और धर्म के पारंपरिक और अनीतिपूर्ण विचारों का विरोध कर पिछड़े वर्गों और स्त्रियों की समानता और शिक्षा के हक के लिए लड़ाई लड़ी, जिसके कारण उन्हें समाज का विरोध भी झेलना पड़ा।

व्याख्या – लेखिका कहती हैं कि ज्योतिबा फुले ने स्त्री की समानता और स्वतंत्रता को प्रतिष्ठित करने के लिए नई विवाह विधि की रचना की। उन्होंने इसमें से विचारधारा का निकाल दिए जिन के अनुसार स्त्री को गुलाम समझा जाता था। उन मंत्रों के स्थान पर ऐसे मंत्र बनाए जिनमें वधू वर से अपने लिए स्वतंत्रता की माँग करती हुई कहती है कि उन्होंने अपनी आज्ञादी कभी महसूस ही नहीं की है अर्थात स्त्रियों को समाज में स्वतंत्र रूप से अपने लिए सोचने का अधिकार नहीं है। इसलिए नए जीवन का आरंभ करते हुए वह इस बात की कसम ले कि अपनी स्त्री को समाज में अपने ही समान स्वतंत्र रूप से रहने का अधिकार देंगे। इस अधिकार से स्त्री स्वयं को बंधनों से मुक्त अनुभव करेगी। केवल समाज में इस प्रकार की इच्छा करने वाली वधू ही नहीं थी अपितु हर वह नारी थी जो पुरुष की दासता से आजादी चाहती थी। नारी भी समाज में पुरुषों से अलग अपना अस्तित्व बनाना चाहती थी।

विशेष – (i) लेखिका के अनुसार ज्योतिबा फुले स्त्री को पुरुषों के समान स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार देने के पक्ष में थे।
(ii) उस समय की स्त्री भी समाज में पुरुष की दासता से मुक्ति चाहती थी।
(iii) भाषा तत्सम प्रधान है। शैली विचारात्मक है।

2. ‘मुझे ‘महात्मा’ कहकर मेरे संघर्ष को पूर्ण-विराम मत दीजिए। जब व्यक्ति मठाधीश बन जाता है तब वह संघर्ष नहीं कर सकता। इसलिए आप सब साधारण जन ही रहने दें, मुझे अपने बीच से अलग न करें।”

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ सुधा अरोड़ा द्वारा लिखित निबंध ‘ज्योतिबा फुले’ से ली गई हैं । लेखिका ने इस पाठ में ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई द्वारा निर्धनों, शोषितों और स्त्रियों के उद्धार के लिए किए गए कार्यों का वर्णन बड़े प्रेरणाप्रद ढंग से किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखिका उस समय का वर्णन कर रही हैं जब ज्योतिबा फुले को उनके कायों के फलस्वरूप ‘महात्मा’ की उपाधि से सम्मानित किया जा रहा था अर्थात ज्योतिबा फुले ने विशेष वर्गों और स्त्रियों को समाज में उचित स्थान दिलवाने में बहुत संघर्ष किया था। ज्योतिबा फुले ने महात्मा की उपाधि से सम्मानित करने पर कहा था कि उन्हें महात्मा नहीं बनना है। महात्मा बनने से संघर्ष समाप्त हो जाता है क्योंकि जब मनुष्य किसी समाज का मुखिया बन जाता है तो वह किसी के अधिकार के लिए लड़ाई नहीं लड़ सकता। इसलिए सब लोग उन्हें आम व्यक्ति ही बना रहने दें क्योंकि विशेष बनने से वह उन लोगों से दूर हो जाएँगे जिनके लिए उन्होंने संघर्ष किया। वह उन लोगों से अलग रहना नहीं चाहते अर्थात ज्योतिबा फुले आम व्यक्ति की तरह उन लोगों के बीच में रहना चाहते थे।

विशेष – (i) लेखिका कहती हैं कि ज्योतिबा फुले के अनुसार महान बनने पर आम व्यक्ति संघर्ष नहीं कर सकता।
(ii) ज्योतिबा फुले बड़े-बड़े कार्य करने के उपरांत भी साधारण जीवन जीना पसंद करते थे।
(iii) भाषा तत्सम, प्रधान है और शैली प्रभावोत्पादक है।

3. दोनों पति-पत्नी सारी बाधाओं से जूझते हुए अपने काम में डटे रहे। 1840-1890 तक पचास वर्षों तक, ज्योतिबा और सावित्री बाई ने एक प्राण होकर अपने मिशन को पूरा किया। कहते हैं-एक और एक मिलकर ग्यारह होते हैं, ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले ने हर मुकाम पर कंधे-से-कंधा मिलाकर काम किया।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘सुधा अरोड़ा’ द्वारा लिखित ‘ज्योतिबा फुले’ निबंध से ली गई हैं। लेखिका ने इस पाठ में बताया है कि ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई ने समाज और धर्म की अनीतिपूर्ण रूढ़ियों का विरोध कर विशेष वर्गों, शोषितों और स्त्रियों की समानता के अधिकारों की लड़ाई लड़ी जिसके कारण दोनों को समाज का व्यापक विरोध भी सहना पड़ा। लेकिन दोनों ने साइस नहीं छोड़ा।

व्याख्या – लेखिका कहती हैं कि ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई को विशेष वर्गों तथा स्त्रियों के अधिकारों के लिए ब्राह्मण और पूँजीवादी समाज का विरोध सहना पड़ा और समाज से निष्कासित होना पड़ा। उनके परिवारवालों ने भी समाज और रिश्तेदारों के भय से दोनों को घर से निकाल दिया। दोनों ने सभी प्रकार के विरोधों का डटकर मुकाबला किया। सभी प्रकार की कठिनाइयों को पार करते हुए अपने लक्ष्य को पूरा करने में जुटे रहे।

पचास वर्षों तक दोनों ने साथ रहकर एक-दूसरे के प्रति समर्पित होकर अपने मिशन को पूरा किया अर्थात दोनों समाज के तमाम विरोधों से टूटे नहीं। एक-दूसरे का साथ देते हुए अपने समाज-सुधार के मार्ग पर चलकर मंज़िल प्राप्त की।ऐसे लोगों के लिए कहा गया है कि साथ-साथ चलनेवाले लोग एक और एक मिलकर ग्यारह हो जाते हैं अर्थात ऐसे लोगों को किसी अन्य के साथ की ज़रूरत नहीं होती क्योंकि उनके साथ उनके हर कदम में साथ देने वाला साथी होता है। ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले ने हर क्षेत्र में एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य किया है।

विशेष – (i) लेखिका के अनुसार दोनों ने जीवन-पयंत एक-दूसरे का साथ देते हुए अपना लक्ष्य प्राप्त किया। ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले के एक-दूसरे के प्रति समर्पित भाव का प्रदर्शन है।
(ii) भाषा सहज एवं व्यावहारिक है । शैली वर्णनात्मक है। मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है।

4. महात्मा ज्योतिबा फुले ने लिखा है ” स्त्री-शिक्षा के दरवाज़े पुरुषों ने इसलिए बंद कर रखे हैं कि वह मानवीय अधिकारों को समझ न पाए, जैसी स्वतंत्रता पुरुष लेता है, वैसी ही स्वतंत्रता स्त्री ले तो ? पुरुषों के लिए अलग नियम और स्त्रियों के लिए अलग नियम-यह पक्षपात है।”

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण ‘सुधा अरोड़ा’ द्वारा लिखित ‘ज्योतिबा फुले’ से अवतरित किया गया है। इस पाठ में लेखिका ने ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई द्वारा किए गए समाज-सुधार के कार्यों के विषय में बताया है। ज्योतिबा फुले ने शोषितों, विशेष वर्गों और स्त्रियों को शिक्षा और समानता के अधिकार दिलाने के लिए प्रतिष्ठित समाज से संघर्ष किया। उनका संघर्ष सभी के लिए एक आदर्श उदाहरण है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखिका ने ज्योतिबा फुले के शिक्षा संबंधी विचारों का वर्णन किया है। ज्योतिबा फुले के अनुसार सभी को शिक्षा-प्राप्ति के समान अवसर मिलने चाहिए। शिक्षित व्यक्ति ही समाज में उन्नति कर सकता है तथा उचित सम्मान प्राप्त कर सकता है। उनके अनुसार पुरुषों ने स्त्रियों के शिक्षा-प्राप्ति के सभी रास्ते बंद कर रखे थे। वह स्त्रियों को शिक्षा प्राप्ति के अवसार नहीं देना चाहते थे। यदि स्त्रियाँ शिक्षित हो जाएँगी तो उन्हें अपने अधिकारों का पता चल जाएगा और वह पुरुषों के समान स्वतंत्रता से निर्णय लेने तथा अपने अस्तित्व के बारे में विचार करने लगेंगी और पुरुष वर्ग ऐसा नहीं चाहता। इसीलिए समाज़ ने पुरुषों के लिए अलग नियम बनाए हैं और स्त्रियों के लिए अलग नियम बनाए हैं। उन्होंने ही समाज में स्त्रियों और पुरुपों में भेदभाव किया है। ज्योतिबा फुले इस पक्षपात के विरुद्ध आवाज उठाने के पक्ष में थे।

विशेष – (i) ज्योतिबा फुले स्त्री शिक्षा के पक्ष में थे। वे समाज में स्त्रियों और पुरुषों में उत्पन्न भेदभाव के विरुद्ध थे।
(ii) भाषा तत्सम-प्रधान तथा उर्दू के शब्दों से युक्त है। शैली वर्णन प्रधान है।

5. आज के प्रतिस्पद्धात्मक समय में, जब प्रबुद्ध वर्ग के प्रतिष्ठित जाने-माने, दंपती साथ रहने के कई बरसों के बाद अलग होते ही एक-दूसरे को संपूर्णतः नष्ट-भ्रष्ट करने और एक-दूसरे की जड़ें खोदने पर आमादा हो जाते हैं, महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले का एक-दूसरे के प्रति और एक लक्ष्य के प्रति समर्पित जीवन एक आदर्श दांपत्य की मिसाल बनकर चमकता है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश ‘सुधा अरोड़ा’ द्वारा लिखित ‘ज्योतिबा फुले ‘ से अवतरित किया गया है। लेखिका ने इस पाठ में ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई के आदर्श जीवन का वर्णन किया है। उन दोनों ने एक साथ मिलकर समाज और धर्म के पारंपरिक और अनीतिपूर्ण रूढ़ियों का विरोध किया तथा विशेष वर्गों, शोषितों और स्त्रियों की शिक्षा और समानता की लड़ाई लड़ी। उनका संघर्ष आज के समाज के लिए प्रेरणाप्रद है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखिका ने ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई के आदर्श जीवन का वर्णन किया है। दोनों ने पचास वर्ष तक समाज और परिवार का व्यापक विरोध एक-दूसरे का साथ देकर सहा तथा पिछड़े वर्गों और शोषितों के उत्थान के लिए कार्य किए। लेखिका कहती है कि आज के आधुनिक और भौतिकवादी युग में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी हुई है। ऐसे समय में समाज के पढ़े-लिखे और प्रतिष्ठित परिवारों के पति-पत्नी कई सालों तक साथ रहकर कुछ मतभेदों के कारण अलग हो जाते हैं।

अलग होने के बाद दोनों पति-पत्नी समाज में स्वयं को सही सिद्ध करने के चक्कर में एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं तथा उसका सम्मान नष्ट करने के लिए दृढ़ संकल्प हो जाते हैं। ऐसे समय में ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई का दांपत्य जीवन एक आदर्श प्रस्तुत करता है। वे दोनों पूरी तरह से एक-दूसरे को सर्मर्पित थे। उनकी मंज्ञिल भी एक थी तथा उस मंजिल को पाने का मार्ग भी एक था। इस प्रकार दोनों का पूरा जीवन आज के दंपत्तियों के लिए एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।

विशेष – (i) लेखिका ने ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई के पूरे जीवन को आज के भौतिकवादी पति-पतियों के लिए आदर्श बताया है। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति समर्पित जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
(ii) भाषा उर्दू शब्दों से युक्त-तत्सम प्रधान है। शैली उपदेशात्मक है।

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Class 11 Hindi Antra Chapter 6 Summary – Khanabadosh Vyakhya

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खानाबदोश Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 6 Summary

खानाबदोश – ओमप्रकाश वाल्मीकि – कवि परिचय

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय – प्रसिद्ध दलित लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि का जन्म सन 1950 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर ज़िले में बरला नामक स्थान पर हुआ। अपने अध्ययन काल में उन्हें अनेक सामाजिक और मानसिक के साथ-साथ आर्थिक कष्टों को भी झेलना पड़ा। इन कष्टों से जूझते हुए उन्होंने हिंदी विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि ग्रहण की। ओम प्रकाश वाल्मीकि ने महाराष्ट्र के विशेष लेखकों के संपर्क में आने के बाद बाबा साहब डॉ० भीमराव अंबेडकर की रचनाओं का खूब अध्ययन एवं चिंतन-मनन किया।

हिंदी में विशेष साहित्य को विकसित करने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। उन्हें उनकी आत्मकथा ‘जूठन’ के कारण हिंदी साहित्य में विशेष पहचान मिली है। सन 1993 में वाल्मीकि जी को डॉ॰ अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार से तथा सन 1995 में परिवेश पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वर्तमान में वे देहरादून की ऑडिनेंस फैक्टरी में अधिकारी के पद पर कार्य कर रहे हैं।

रचनाएँ – वाल्मीकि ने अपनी रचनाओं में मुख्यत: जातीय अपमान और असहायों के उत्पीड़न को आधार बनाया है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि एक असहाय की पीड़ा को असहाय ही बेहतर ढंग से समझ सकता है और उसकी अभिव्यक्ति कर सकता है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

कविता संग्रह – सदियों का संताप, बस! बहुत हो चुका।
कहानी-संग्रह – सलाम।
आत्मकथा – जूठन।
इसके अतिरिक्त उन्होंने आलोचनात्मक लेखक भी लिखे हैं।

भाषा-शैली – प्रस्तुत पाठ में लेखन अत्यंत सहज तथा साधारण बोलचाल की भाषा-शैली का प्रयोग किया है। उनकी भाषा अत्यंत तथ्यपरक तथा आवेगमयी है। भाषा में व्यंग्य का गहरा पुट भी स्पष्ट झलकता है। लेखक ने कहीं-कहीं आत्मिक, दुश्चिंता, अवसाद, आक्रोश, अवचेतन जैसे तत्सम शब्दों के साथ पाथना, गमक, बाट, हाड़, गोड़, खसम, पचड़ा जैसे देशज शब्दों का भी प्रयोग किया है। कही-कहीं लोक प्रचलित विदेशी शब्दों का प्रयोग भी देखा जा सकता है, जैसे-मुआयना, औकात, माहौल, दफ्तर, इयूटी, अर्दली, हैं डपंप, ट्रांजिस्टर, शिद्दत आदि। लेखक की भाषा-शैली में राजस्थानी का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है जिससे भट्ठे का वातावरण सजीव हो उठता है, जैसे-‘यह भट्ठा मालिक का है। हम ईटें उनके लिए बनाते हैं। हम तो मज़दूर हैं। इन इटों पर अपना कोई हक ना है।’

लेखक ने मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से इस कहानी में सरसता एवं व्यंग्य उत्पन्न कर दिया है। मानो जब अपना पक्का मकान बनाने के लिए कहती है तो सुकिया उत्तर देता है-‘पक्की ईंटों का घर दो-चार रुपए में ना बणता है। इत्ते छेर से नोट लगे हैं घर बणाने में। गाँठ में नहीं है पैसा, चले हाथी खरीदने।’ अन्यत्र भी चर्बीं चढ़ जाना, पोर-पोर टूटना, पचड़े में पड़ना आदि मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है। ‘संवादों के द्वार’ कहानी में रोचकता एवं गति उत्पन्न की गई है।

कहीं-कहीं चित्रात्मक शैली के भी दर्शन होते हैं; जैसे-‘भट्ठे की चिमनी धुआँ उगलने लगी थी। यह धुआँ मीलों दूर से दिखाई पड़ जाता था। हरे-भरे खेतों के बीच गहरे मटमैले रंग का यह भट्ठा एक धब्बे जैसा दिखाई देता था।’ इस प्रकार प्रस्तुत पाठ में लेखक की भाषा-शैली व्यावहारिक तथा भावानुकूल है। लेखक ने मुख्य रूप से वर्णनात्मक, भावप्रधान, चित्रात्मक एवं संवादात्मक शैलियों का प्रयोग किया है।

Khanabadosh Class 11 Hindi Summary

‘खानावदोश’ कहानी में ओमप्रकाश वाल्मीकि ने मजदूरी करके किसी तरह गुज़र-बसर कर रहे मजदूर वर्ग के शोषण और यातना को चित्रित किया है. मज्रदूर वर्ग यदि ईमानदारी से मेहनत-मजदूरी करके इक्ज़त के साथ जीवन जीना चाहता है, तो समृद्ध और ताकतवर लोग उन्हें जीने नहीं देते। मजदूर बर्ग समाज की जातिवादी मानसिकता से उबर नहीं पाया है। कहानी में ईट के भट्ठे पर काम करने वाले मजदूर अपनी जमीन से उखड़ कर मजदूरी करने के लिए वहाँ आते हैं और तरह-तरह के शोषण-चक्रों में फँस जाते हैं। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से इस शोषण-चक्र को बेनकाब करके रख दिया है।

सुकिया और मानो असगर ठेकेदार के साथ, तरक्की की आस लेकर गाँव छोड़कर, इट के भट्ठे पर काम करने आए थे। भट्ठे पर सबसे कठिन काम मोरी पर काम करना होता था। वहाँ इटें पकाने के लिए कोयला, बुरादा, लकड़ी और गन्ने की बाली को मोरियों के अंदर डालना होता था। असगर ठेकेदार ने सुकिया और मानो के एक सप्ताह के काम से खुश होकर उन्हें साँचे पर ईंट पाथने का काम दे दिया था। भट्ठे पर दिन तो गहमा-गहमी वाला होता था लेकिन रात होते ही भट्ठा अँधेरे की गोद में समा जाता था। मानो भट्ठे की जिंदगी से तालमेल नहीं बैठा पाई थी, परंतु सुकिया की दलीलों के आगे द्युक जाती थी कि गाँव में जाकर फिर से नर्क की जिदरी गुजारनी पड़ेगी। यदि तरक्की करनी है तो शहर में रहना ही पड़ेगा।

पहले महीने ही सुकिया ने कुछ रुपए बचा लिए थे, जिन्हें देखकर मानो भी खुश थी। उन दोनों ने ज़्यादा पैसे कमाने के लिए अधिक काम करना शुरू कर दिया। उनके साथ एक छोटी उम्र का लड़का जसदेव भी काम करता था। एक दिन भट्ठे के मालिक मुखतार सिंह की जगह उनका बेटा सूबे सिंह भट्ठे पर आया। सूबे सिंह के भट्ठे पर आने से भट्ठे का माहौल बदल गया। उसके सामने असगर सिंह भी भीगी बिल्ली बन जाता था। भट्ठे पर काम करनेवाली किसनी को सूबे सिंह ने अपने जाल में फंसा लिया था। किसनी उसके साथ शहर भी कई-कई दिन के लिए चली जाती थी। उसका पति महेश मन मारकर रह जाता था। असगर ठेकेदार ने उसे शराब की लत लगा दी थी। किसनी के हालात बदल गए थे। अब उसके पास ट्रांजिस्टर तथा अच्छे-अच्छे कपड़े आ गए थे।

भट्ठे में पक्की लाल ईंटों को देखकर मानो अपना पक्का घर बनाने का सपना देखने लगी। उसने सुकिया से पूछा कि एक घर बनाने में कितनी ईटें लगती हैं। सुकिया ने कहा कि इंटों के अलावा लोहा, सीमेंट, लकड़ी, रेत आदि सामान भी लगता है। यह सुनकर मानो बेचैन हो गई थी। उसके दिमाग में ईंटों का लाल रंग छा गया था। वह सुकिया से अपने घर के लिए इटें बनाने को कहती है तो सुकिया उसे समझाता है कि ये इंें तो भट्ठे के मालिक की हैं। इनपर हमारा हक नहीं है। अब मानो और सुकिया का एक ही लक्ष्य था कि पैसे इकट्ठे करके अपने लिए पक्की ईंटों का घर बनाना है, इसलिए वे पहले से अधिक मेहनत करने लगे थे।

एक दिन सूबे सिंह ने अपने दफ़्तर में मानो को बुलवाया था। सुकिया और जसदेव को यह बात अच्छी नहीं लगी। मानो के स्थान पर सूबे सिंह के पास जसदेव चला गया। जसदेव को देखकर सूबे सिंह को क्रोध आ गया और उसने उसे बहुत मारा। उस दिन की घटना से सूबे सिंह से सभी सहम गए थे। मानो और सुकिया को जसदेव पराए शहर में अपना लगने लगता था। मानो जसदेव के लिए खाना लेकर जाती थी। जसदेव ब्राहमण होने के कारण उसके हाथ की रोटी नहीं खाता क्योंकि वह उसकी जाति की नहीं थी। मानो उसे कहती है कि जब वह उसके लिए मार खा सकता है तो उसके हाथ की रोटी क्यों नहीं खा सकता ? सुकिया मानो को लेकर बेचैन हो उठा था। उसे लग रहा था कि जिन स्थितियों में उसने गाँव छोड़ा था वह स्थिति यहाँ पर भी थी।

सूबे सिंह ताकतवर आदमी था। वह कभी भी कुछ भी कर सकता था। अगले दिन असगर ठेकेदार जसदेव को उनके मामले में न पड़ने की सलाह देता है, जिसे जसदेव मान लेता है। सूबे सिंह सुकिया और मानो को तंग करने लगा था। उसने सुकिया से साँचा छीनकर जसदेव को दे दिया था। सुकिया को मोरी के काम पर लगा दिया था। मानो डरने लगी थी। उनकी मज़दूरी छोटी-छोटी बातों पर कटने लगी थी। जसदेव भी मानो पर हुक्म चलाने लगा था। एक दिन मानो ने पाथी ईटों को सूखने के लिए आड़ी-तिरछी जालीदार दीवारों के रूप में लगा दिया। वह अगले दिन सुबह जल्दी ही काम पर गई तो वहाँ पहुँचकर देखा कि पहले दिन की इंटें टूटी पड़ी थीं। वह दहाड़ें मारकर रोने लगी। उसकी आवाज़ सुनकर सभी इकट्ठे हो जाते है।

सबको मालूम है कि यह किसने किया है लेकिन इसका विरोध कोई नहीं करता है। टूटी ईटों को देखकर मानो को लग रहा था जैसे उसका पक्का मकान बनाने का सपना टूट गया हो। असगर ठेकेदार ने भी उसे टूटी इंटों के पैसे देने से इनकार कर दिया। सुकिया और मानो दोनों बुरी तरह टूट गए थे। दोनों वहाँ से अगले काम के लिए निकल पड़े थे। भट्ठा उन्हें अपनी खानाबदोश जिंदगी का एक पड़ाव लग रहा था। मानो को लग रहा था कि जसदेव उन्हें रोक लेगा। जसदेब के चुप रहने से उसका विश्वास टूट गया। टूटे हुए सपनों के काँच उसकी आँखों में चुभने लगे थे। वे एक दिशाहीन यात्रा के लिए निकल पड़े थे।

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • निगरानी – देख-रेख
  • वामन – ब्राह्मण
  • थारी – तुम्हारी
  • ताड़ लेना – अंदाज़ लगाना
  • अंतर्मन – हुदय, दिल
  • मुआयना – निरीक्षण, जाँच
  • कतार – पंंक्ति
  • प्रतिध्वनियाँ – गूँज
  • औकात – हैसियत
  • जिस्म – शरीर
  • गमकना – महकना
  • स्याहपन – अँधेरा
  • पुख्ता – मज़बूत
  • उथल-पुथल – उलट-पुलट
  • बसंत खिल उठना – सुखद विचार आना
  • घिघ्यी बँधना – कुछ बोल न पाना
  • वजूू – अस्तित्व
  • लालसा – इच्छा
  • तरतीब – ढ़ंग
  • जिनावर – जानवर
  • दहशत – भय
  • अटकलें – अंदाज़े
  • टीस – कसक
  • साँझ – संध्या
  • दुश्चिता – बुरी चिता
  • माहौल – वातावरण
  • दिहाड़ी – दैनिक मजदूरी
  • अस्तित्व – वजूद
  • सन्नाटा – खामोशी
  • शिद्दत – तीव्रता
  • बवंडर – हलचल,
  • टेम – समय
  • अंजाम – नतीजा, परिणाम
  • कातरता – अधीरता, दुख से होनेवाली
  • अदम्य – जिसे रोका न जा सके

खानाबदोश सप्रसंग व्याख्या

1. भट्ठे से उठते काले धुएँ ने आकाश तले एक काली चादर फैला दी थी। सब कुछ छोड़कर मानो और सुकिया चल पड़े थे एक खानाबदोश की तरह, जिन्हें एक घर चाहिए था रहने के लिए। पीछे छूट गए थे कुछ बेतरतीब पल, पसीने के अक्स जो कभी इतिहास नहीं बन सकेंगे। खानाबदोश ज़िदगी का एक पड़ाव था, यह भट्ठा।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश ‘ओमप्रकाश वाल्मीकि’ द्वारा लिखित कहानी ‘खानाबदोश’ से उद्धृत किया गया है। लेखक ने इस पाठ में बताया है कि समृद्ध और ताकतवर लोगों द्वारा मज़दूर वर्ग का शोषण किस प्रकार होता है। यदि मज़दूर मेहनत-मज़दूरी करके सम्मान का जीवन व्यतीत करना चाहता है तो उसे जीने नहीं दिया जाता।

व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक कहता है कि सुकिया और मानो को सूबे सिंह तंग करता है । दोनों अपने सपनों को पूरा करने के लिए उसके अत्याचार सहन करते रहते हैं लेकिन जब सूबे सिंह मानो की बनाई इंें तोड़ देता है, टूटी इंटों को देखकर मानो की मानसिक दशा खराब हो जाती है तो सुकिया भट्ठा छोड़ने का निर्णय लेता है। सुकिया मानो का हाथ पकड़कर भट्ठे से निकल जाता है। सुकिया भट्ठे से निकलता काला धुआँ देखता है। उसे लगता है जैसे भट्ठे के धुएँ ने आकाश के उजलेपन को समाप्त कर दिया है वैसे ही सूबे सिंह ने उनके भविष्य पर अपनी ताकत की काली चादर फैला दी है।

सुकिया और मानो ने रहने के लिए एक स्थायी पकके घर का सपना देखा था लेकिन सूबे सिंह ने उन्हें भट्ठे पर सब कुछ छोड़कर जाने के लिए और खानाबदोश की तरह भटकने के लिए मजबूर कर दिया। उनके भट्ठा छोड़कर जाने से भट्ठे पर उनके बिताए वह पल वहीं रह गए जिनमें उन्होंने कुछ सपने देखे थे और मेहनत करके जो पसीना बहाया था वह भी वहीं छूट गया उनके कुछ भी काम नहीं आया। सुकिया और मानो के लिए भट्ठा तो केवल एक पड़ाव था जहाँ उन्होंने कुछ पल बिताए और सपने देखे। खानाबदोश अर्थात मज्ञदूरों की ज़िंदगी में ठहराब नहीं होता।

विशेष :

  1. लेखक कहता है कि मजदूरों को सपने देखने का अधिकार नहीं है। उनके भविष्य पर सूबे सिंह जैसे ताकतवर लोगों की ताकत का धुआँ छाया रहता है।
  2. खानाबदोश लोगों के जीवन में ठहराव नहीं होता है। वह जीवन भर छोटे-छोटे पड़ाव लेते रहते हैं।
  3. भाषा सहज, सरल प्रवाहमय है और शैली भावात्मक है।

2. साँझ होते ही सारा माहौल भाँय-भाँय करने लगता था। दिन-भर के थके-हारे मज़दूर अपने-अपने दड़बों में घुस जाते थे। साँप-बिच्छू का डर लगा रहता था। जैसे समूचा जंगल झोंपड़ी के दरवाज़े पर आकर खड़ा हो गया है। ऐसे माहौल में मानो का जी घबराने लगता था। लेकिन करे भी तो क्या ! न जाने कितनी बार सुकिया से कहा था मानो ने, “अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस के पकवानों से अच्छी होती है।”

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा लिखित कहानी ‘खानाबदोश’ से अवतरित किया गया है। लेखक ने इस पाठ में मज़दूरों के जीवन का वर्णन किया है। यदि मज़दूर वर्ग इमानदारी और मेहनत की जिदगी व्यतीत करना चाहे तो सूबे सिंह जैसे स्वार्थी और ताकतवर लोग उन्हें करने नहीं देते। विभिन्न प्रकार से उनका शोषण करते हैं।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक कहता है कि भट्ठा शहर से दूर खेतों में था जहाँ यातायात की उचित व्यवस्था नहीं थी और न ही मनोरंजन का कोई साधन था। दिन के समय भट्ठे पर बहुत भीड़-भाड़ रहती थी। भट्ठे का सारा वातावरण हलचल से भरा रहता था। मज़दूर और मालिक सभी अपना काम करते हुए भविष्य के सपने बुनते हैं लेकिन जैसे ही शाम होती है भट्ठे का वातावरण सुनसान हो जाता है, मालिक शहर लौट जाते हैं और दिनभर की मेहनत से थके हुए लोग अपने-अपने झोंपड़ों में चले जाते हैं जहाँ वे दिनभर की थकावट उतारते हैं।

भट्ठा सूना जगह खेतों में होने के कारण यह भय लगा रहता है कि कहीं अँधेरे में साँप-बिच्छू जैसे जंगली जानवर न निकल आए। मानो को रात के समय ऐसा लगता था जैसे आस-पास का पूरा जंगल सिमट कर उनकी झोंपड़ी के आगे आ गया हो। ऐसे सुनसान वातावरण में उनका मन घबराने लगता था। उसने सुकिया से कई बार वापस गाँव जाने के लिए कहा लेकिन सुकिया ने उसकी बात नहीं मानी। मानो सुकिया को समझाती कि अपने गाँव में तो वह तंगी में भी गुज्ञारा करके खुश रह सकती है क्योंकि वहाँ के सभी लोग अपनी जान-पहचान के हैं जिनके साथ सुख-दुख बाँटा जा सकता है। यहाँ भट्टे पर तो कहने को भी अपना कोई नहीं है सभी पराए लोग हैं। यदि वे लोग उन्नति कर भी लें तो उसे किसके साथ बाँटेंगे। सुख-दुख तो अपनों के साथ बाँटा जाता है और उन्हीं के साथ अच्छा लगता है।

विशेष :

  1. लेखक ने यह बताया है कि भट्ठे का जीवन नीरस तथा डरावना है। लोग अपनी मजबूरी के कारण वहाँ आते हैं।
  2. सहज, सरल और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग है।
  3. भाषा-शैली विवरणात्मक है।

3. कड़ी मेहनत और दिन-रात भट्ठे में जलती आग के बाद जब भट्ठा खुलता था तो मजदूर से लेकर मालिक तक की बेचैन साँसों को राहत मिलती थी। भट्ठे से पकी इटों को बाहर निकालने का काम शुरू हो गया था। लाल-लाल पक्की ईंटों को देखकर सुकिया और मानो की खुशी की इंतहा नहीं थी। खासकर मानो तो ईटों को उलट-पुलटकर देख रही थी। खुद के हाथ की पथी इंटों का रंग ही बदल गया था।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा लिखित कहानी ‘खानाबदोश’ से अवतरित किया गया है। इस पाठ में लेखक ने बताया है कि मज़दूर लोग मेहनत और ईमानदारी से जीवन व्यतीत करने का सपना देखते हैं लेकिन ताकतवर और समृद्ध लोग उनके सपनों को अपने अत्याचारों के द्वारा तोड़ देते हैं। उन लोगों को उनकी मेहनत का उचित फल नहीं मिलता।

व्याख्या – लेखक भट्ठे पर पकी ईटों के बोरे में कहता है कि भट्ठे पर मिट्टी से ईंट पाथी हुई जाती हैं। उन पथी इंों को सुखा लिया जाता है। सूखी इंटों को पकाने के लिए भट्ठे में ड्डाल दिया जाता है। भट्ठे पर सबसे खतरनाक काम इंटं पकाने का होता है। जरा-सी असावधानी से मृत्यु भी हो सकती है। कई दिनों की मेहनत के बाद दिन-रात जलते हुए भट्ठे को खोला जाता है तो भट्ठ मालिक और मजदूरों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती है क्योंकि जब तक भट्ठा नहीं खुलता तब तक मालिक और मजदूर दोनों को बेचैनी लगी रहती है।

कहीं कुछ अप्रिय घटना न घट जाए। भर्ठा खुलने पर पकी हुई ईटों को बाहर निकालने का काम शुरू हो गया था। सुकिया और मानो ने जीवन में पहली बार लाल-लाल पक्की इंटं देखी थी। उन इंटों को देखकर दोनों को बहुत खुशी हो रही थी। मानो की खुशी तो सुकिया की खुशी से भी अधिक थी। वह इंटों को बार-बार उलट-पुलट कर देख रही थी। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये उसकी बनाई इंटे हैं क्योंकि उनका तो रंग ही बदल गया था।

विशेष :

  1. मज़ूरों को जब अपनी मेहनत का फल मिलता है तो उन्हें मालिकों से अधिक प्रसन्नता अनुभव होती है।
  2. भाषा में तद्भव तथा उर्दू. शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
  3. लेखक ने कहीं-कहीं युग्म शब्दों का प्रयोग किया है।
  4. भाषा-शैली विवरणात्मक तथा भावात्मक है।

4. मानो भी गुमसुम अपने-आपसे ही लड़ रही थी। बार-बार उसे लग रहा था कि वह सुरक्षित नहीं है। एक सवाल उसे खाए जा रहा था-क्या औरत होने की यही सजा है। वह जानती थी कि सुकिया ऐसा-वैसा कुछ नहीं होने देगा। वह महेश की तरह नहीं है। भले ही यह भट्ठा छोड़ना पड़े।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘ओमप्रकाश वाल्मीकि’ द्वारा लिखित कहानी खानाबदोश से ली गई हैं। लेखक ने इस पाठ में समृद्ध और ताकतवर लोगों द्वारा मज़दरों पर होने वाले अत्याचारों का वर्णन किया है। अपनी जमीन से उखड़कर मजदूर लोग दूसरी जगह काम करने आते हैं और पूँजीवादी लोगों द्वारा चलाए गए शोषण चक्रों में फँस जाते हैं।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक मानो की उस समय की मानसिक दशा का वर्णन कर रहा है जब भट्ठे का मालिक सूबे सिंह मानो को सेवा-टहल के लिए आफ़िस में बुलाता है। मानो के स्थान जसदेव चला जाता है। जसदेव को देखकर सूबे सिंह उसे बहुत मारता है। यह सब देखकर भट्ठे के सभी मज़दूरों के साथ-साथ मानो और सुकिया भी डर जाते हैं। सभी लोग चुपचाप अपनी-अपनी झोंपड़ियों में चले जाते हैं। मानो को भी भट्टे पर घटी घटना ने विचलित कर दिया था। वह अपनी झोपडड़ी में चुपचाप अपने आपसे लड़ रही थी।

वह सोच रही थी कि औरत होना एक अभिशाप है। वह कहीं भी सुरक्षित नहीं है। उसंके चारों ओर वासना रूपी साया सदा मँडराता रहता है। उसके मन में यह प्रश्न बार-बार उठ रहा था कि औरत होना एक सजा है जो उसके कारण जसदेव को मिली है। मानो को सुकिया पर पूरा विश्वास था कि सुकिया सूबे सिंह के हाथों उसकी इज्ज़त खराब नहीं होने देगा। सुकिया महेश की तरह कायर नहीं था। महेश ने सूबे सिंह के डर से किसनी को सूबे सिंह के पास छोड़ दिया था लेकिन सुकिया ऐसा नहीं करेगा। सुकिया को उसकी इज्ज़त बचाने के लिए यदि भट्ठा भी छोड़ना पड़ गया तो वह भट्ठा भी छोड़ देगा।

विशेष :

  1. लेखक ने मानो के माध्यम से औरत के अंतद्र्वद्व को दिखाया है।
  2. लेखक ने दैनिक भाषा का प्रयोग करके एक औरत के मन की बात को सफल ढंग से दिखाया है।
  3. भाषा-शैली भावात्मक और विचारात्मक है।

5. सुकिया भी चुपचाप लेटा हुआ था। उसकी भी नींद उड़ चुकी थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था, कि क्या करे, इन्हीं हालात में गाँव छोड़ा था। वे ही फिर सामने खड़े थे। आखिर जाएँ तो कहाँ ? सूबे सिंह से पार पाना आसान नहीं था। सुनसान जगह है कभी भी हमला कर सकता है। या फिर मानो को…….विचार आते ही वह काँप गया था।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश ‘ओमप्रकाश वाल्मीकि’ द्वारा लिखित कहानी ‘खानाबदोश’ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में लेखक ने मज़दूरी करके किसी तरह गुज़ारा कर रहे मजदूर वर्ग के शोषण और यातना को चित्रित किया है। ईमानदारी से मेहनत मजदूरी करके इज्ज़त से जीवन जीनेवाले मज़दूर को समृद्ध और ताकतवर लोग जीने नहीं देते।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ने सुकिया की मानसिक दशा का वर्णन किया है। सुकिया मानो को लेकर घटी घटना से डर गया था। उसे उम्मीद नहीं थी कि सूबे सिंह जसदेव को मारने की नीयत करेगा। सभी मज़दूर डर गए थे। सुकिया और मानो भी अपनी झोंपड़ी में चुपचाप लौट गए थे। दोनों ही डरे हुए थे। सुकिया भी चुपचाप लेटा हुआ मन-ही-मन दिन में घटी घटना को लेकर विचार कर रहा था। सूबे सिंह के डर के कारण उसकी नींद उड़ गई थी। उसे अपनी और मानो के भविष्य के बोरे में कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वह उस स्थिति के बारे में सोच रहा था जिससे मजबूर होकर उसने गाँव छोड़ा था।

गाँव में भी मानो सुरक्षित नहीं थी और आज फिर भट्ठे पर वही हालात पैदा हो गए थे। उसे लग रहा था कि औरत और मजदूरों के लिए सभी जगह एक-सा वातावरण है। ऐसे हालात में वह कहाँ जाए ? सूबे सिंह समृद्ध और ताकतवर आदमी था। इसलिए उससे झगड़ा करना ठीक नहीं था। भट्ठा भी सुनसान जगह पर था जहाँ वह कभी भी हमला करके मानो को उठाकर ले जा सकता था। मानो का खयाल आते ही सुकिया काँप उठा कि कहीं मानो के साथ कुछ बुरा न हो जाए।

विशेष – (i) लेखक ने सुकिया के माध्यम से आदमी के अंतद्वर्वद्व को दिखाया है कि घर हो या बाहर औरत कहीं भी सुरक्षित नहीं है।
(ii) भाषा भावानुकूल, सरल, सहज और प्रवाहमय है तथा शैली विचारात्मक है।

Hindi Antra Class 11 Summary

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Class 11 Hindi Antra Chapter 7 Summary – Naye Ki Janam Kundali Ek Vyakhya

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नए की जन्म कुंडली : एक Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 7 Summary

नए की जन्म कुंडली : एक – ओमप्रकाश वाल्मीकि – कवि परिचय

जीवन-परिचय – गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ का जन्म 13 नवंबर, 1917 को श्योपुर में ग्वालियर के निकट हुआ था। आपके पिता पुलिस विभाग में इंस्पेक्टर थे और उनका तबादला प्राय: होता रहता था। बालक मुक्तिबोध की शिक्षा में इस कारण बाधा पड़ती रही थी। सन 1930 में मुक्तिबोध ने मिडिल की परीक्षा उज्जैन से दी और अनुत्तीर्ण हो गए। कवि ने इस असफलता को अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटना स्वीकार किया है। इसके पश्चात पढ़ाई का सिलसिला ठीक ढंग से चला और साथ ही जीवन के प्रति उनकी नई संवेदना और जागरूकता बढ़ने लगी। माधव कॉलेज, उज्जैन में पढ़ते हुए सन 1935 में इन्होंने साहित्य रचना का कार्य प्रारंभ किया। 1939 में आपने शांता जी से प्रेम-विवाह कर लिया।

मुक्तिबोध ने छोटी आयु में ही बड़नगर के मिडिल स्कूल में अध्यापन कार्य प्रारंभ किया। इसके पश्चात शुजालपुर, उज्जैन, कोलकाता, इंदौर, मुंबर्, वैंगलुरु तथा बनारस आदि स्थानों पर नौकरियाँ कीं। लेखक के अनुसार, “नौकरियां पकड़ता और छोड़ता रहा। शिक्षक, पत्रकार, पुन: शिक्षक, सरकारी और गैर-सरकारी नौकरियाँ। निम्न मध्यवर्गीय जीवन बाल-बच्चे, दवा-दारु, जन्म-मृत्यु में उलझा रहा।” मुक्तिबोध ने मध्य प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड के लिए ‘भारत का इतिहास और संस्कृति’ पुस्तक लिखी और मँजूरी भी मिल गई।

परंतु शीघ्र ही कुछ लोगों के दबाव के कारण पुस्तक पर न्यायालय ने रोक लगा दी। अपनी पुस्तक पर प्रतिबंध लगने की घटना को मुक्तिबोध ने दूसरी महत्वपूर्ण घटना स्वीकार किया है। 1958 में आपको दिग्विजय महाविद्यालय, राजनंदगाँव में प्राध्यापक की नौकरी मिल गई। मुक्तिबोध की रुचि अध्ययन-अध्यापन, पत्रकारिता और समसामयिक, राजनीतिक एवं साहित्यिक विषयों पर लेखन में थी। 1942 के आसपास वे वामपंथी विचारधारा की ओर झुके तथा शुजालपुर में रहते हुए उनकी वामपंथी चेतना सुदुढ़ हुई। आजीवन निर्धनता से लड़ते और रोगों का मुकाबला करते हुए 11 सितंबर, 1964 को आपका देहांत हो गया।

रचनाएँ – ‘मुक्तिबोध’ की ख्याति सन 1943 में प्रकाशित ‘तार-सप्तक’ से फैली जिसका संपादन अज्ञेय ने किया था। इस संग्रह से मुक्तिबोध प्रयोगवादी कवि के रूप में स्थापित हुए। इसी समय उसका झुकाव वामपंथ की ओर हो चला था और वे मार्क्सवादी दर्शन से प्रभावित होने लगे थे। आपकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
काव्य संग्रह – चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल।
कथा साहित्य – काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी।
आलोचना-कामायनी : एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्म-संघर्ष, नए साहित्य का साँदर्य-शास्त्र, समीक्षा की समस्याएँ एक साहित्यिक की डायरी।
संस्कृति और इतिहास-भारत : इतिहास और संस्कृति।
मुक्तिबोध का समस्त साहित्य राजकल प्रकाशन द्वारा ‘मुक्तिबोध रचनावली’ के रूप में छः खंडों में प्रकाशित हो चुका है।

भाषा-शैली – मुक्तिबोध ने अपने निबंध ‘नए की जन्म कुंडली : एक’ में यह स्पष्ट किया है कि समाज में आने वाले नए परिवर्तनों को व्यावहारिकता में पूर्णरूप से न अपनाने के कारण हम पुराने को तो छोड़ देते हैं-परंतु नए को भी वास्तविक रूप में अपना नहीं पाते हैं। लेखक ने अपनी भावनाओं को अत्यंत ही सहज, तत्सम-प्रधान भाषा तथा आत्मकथात्मक शैली में रोचकता से प्रस्तुत किया है। लेखक ने मेधावी, अनुभूति, आंतरिक, स्पर्श, सूक्ष्म, निजत्व, जर्जर, यर्शस्विता जैसे तत्सम प्रधान शब्दों के साथ ही ऐड़ा-बेड़ा, कड़ी, नामी-गिरामी, कतई, मुलाकात, चमचमाते, रोमांस, रोमेंटिक, चिमटी, जिंदगी, चौखटा जैसे देशज तथा विदेशी शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया है।

बाल सफ़ेद होना, अड़ा रहना, दो ध्रुवों का भेद, झपट्टा मारना जैसे मुहावरों के प्रयोग से लेखक के कथन में लाक्षणिकता एवं प्रतीकात्मकता का समावेश हो गया है। लेखक का कवि हृदय भी कुछ स्थलों पर मुखरित हो गया है, जैसे-“सामने पीपल का वृक्ष है। चाँदनी में उसके पत्ते चमचमाते काँप रहे हैं। चाँदनी और उसमें चित्रित छायाएँ हमारे मनोलोक को एक नई दिशा दे रही हैं।” लेखक ने इस निंबध में वर्तमान और अतीत से जूझती भारतीय जन-जीवन की मानसिकता का यथार्थ अंकन इस निबंध में अत्यंत कुशलतापूर्वक किया है।

Naye Ki Janam Kundali Ek Class 11 Hindi Summary

‘नए की जन्म कुंडली : एक’ गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित एक विचार-प्रधान निबंध है, इसमें लेखक ने वर्तमान युग में होने वाले सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं साहित्यिक परिवर्तनों को व्यावहारिकता में न अपनाने के कारण होने वाली विसंगतियों पर चर्चा की है। लेखक का एक मित्र है, जिसे वह बहुत बुद्धिमान समझता था और उसे आशा थी कि वह एक दिन अवश्य ही प्रतिभाशाली व्यक्ति बनेगा। बारह वर्षों बाद जब लेखक की अचानक उससे मुलाकात होती है तो उसे लगता है कि अब तो वह स्वयं भी बुद्धिमान हो गया है। उसके और उसके मित्र की दिशाएँ भी बदल गई हैं। उसके मित्र के बाल सफेद हो गए थे।

उसका मित्र काव्य और गणित नहीं समझ पाता था। लेखक को अपने मित्र के बीच आई हुई दूरी खटकती भी थी और अच्छी भी लगती थी। खटकती इसलिए थी कि मित्रों के बीच दूरी नहीं होनी चाहिए और अच्छी इसलिए लगती थी कि यह दूरी उनकी गति को चुनौती दे रही है।

लेखक को इस बात की खुशी थी कि वह अपने इस मित्र को पूरी तरह से भूल चुका था, क्योंकि उसका मित्र एक जिद्दी स्वभाव का व्यक्ति था। उसने राजनीति को अपना लिया था। लेखक को उसका राजनीति में उतरना अपने उत्तरदायित्वों से भागना लगा था। राजनीति के साथ वह साहित्य रचना भी करने लगा तो लेखक को कुछ अच्छा लगा, किंतु तब तक उसकी हालत बिगड़ गई थी। इस प्रकार दोनों एक-दूसरे से दूर होते चले गए। आज लेखक को लगता है कि सांसारिक समझौतों ने ही उसके मित्र के व्यक्तित्व को असामान्य बना दिया था।

लेखक सामान्य व्यक्ति उसे मानता है जो अपने भीतर के असामान्य के उग्र आदेशों को न मानने की सामर्थ्य रखता हो। जब उसका मित्र सदा उसके भीतर के असामान्य को उकसा देता था, तब वह स्वयं को बहुत हीन अनुभव करने लगता था।

लेखक के सोचने-समझने और कार्य करने की अपनी शैली थी। वह सब कार्य यह सोचकर करता था कि उसके कार्यों से लोग प्रसन्न होते हैं जबकि उसका मित्र कोई भी कार्य इसलिए करता था क्योंकि उस वह कार्य ढंग से कर देना होता है। यही दोनों में दो ध्रुवों का भेद था। लेखक जीवन में सफल हो गया तथा उसका मित्र असफल रहा। लेखक के मित्र को अपने असफल होने की कोई चिता नहीं थी।

अब जब इतने वर्षों बाद मित्र उसे मिला है तो उसे ऐसा लग रहा है जैसे वह किसी उल्का-पिंड की तरह है जो सैकड़ों वर्षों से सूर्य के पास चक्कर लगाते हुए भटक गया था और अब सही मार्ग पर आ गया है। वह अपनी ज़िदगी को भूल का नक्शा कहता है, जो जीवन में छोटी-छोटी सफलताएँ चाहता था पर उसे मिली सिफ़ एक भव्य असफलता। लेखक ने उसे यह कहकर सांत्वना देने का प्रयास किया कि उसके पास तो नक्शा ही नहीं है, न गलत और न सही।

लेखक अपने मित्र से डर-डर कर बातें कर रहा था। वह उसे किसी प्रकार की चोट नहीं पहुँचाना चाहता था। वह चुपचाप उसकी बातें सुन रहा था और आवश्यकता होने पर मुस्कराकर अपनी बात कर देता था। लेखक ने उससे पूछा कि पिछले बीस वर्षों की सब से महान घटना क्या है। इस पर उसने उत्तर दिया कि संयुक्त परिवारों का विघटन होना। लेखक उसका उत्तर सुनकर स्तब्ध रह गया। उसने लेखक को बताया कि इसका साहित्य से भी गहरा संबंध है। वातावरण में चाँदनी की रहस्यमय मधुरता और ठंडा एकांत था। लेखक अपने मित्र का उत्तर सुनकर अपने पड़ोसियों और परिचितों के संबंध में सोचने लगा तो बेचैन हो उठा। उसे लगा कि उसके मित्र का कथन सही है। ज़िंदगी और जमाना बदलता जा रहा है, पर हम इसे पचा नहीं पा रहे।

लेखक ने फिर उससे पूछा कि इन वर्षों में सबसे बड़ी भूल कौन-सी हुई है ? उसका जवाब था कि राजनीति और साहित्य के पास समाजसुधार का कोई कार्यक्रम न होना सबसे बड़ी भूल है। आजादी के बाद जातिवाद का उदय इसी का दुष्परिणाम है। लेखक को मित्र का यह कथन हास्यास्पद लग रहा था। वह लेखक को अविश्वास से देख रहा था। चाँदनी रात में सेमल के झाड़ पर बैठे कुछ कौवे चौँक पड़े थे। मित्र ने लेखक को कहा कि आज समाज में वर्ग-भेद है, परंतु राजनीति और साहित्य के पास कोई ऐसी योजना नहीं है कि समाज की बुनियादी इकाई परिवार के लिए कुछ कर सके।

परिवार ही हमारे चरित्र का विकास करता है और वहीं से हमें सांस्कृतिक शिक्षा मिलती है। समय के साथ-साथ संयुक्त सामंती परिवारों का विषटन हुआ और उन विचारों और संस्कारों के प्रति विद्रोह भी हुआ, जो इन परिवारों में पाए जाते थे। इसके बाद विद्रोह राजनीति के बाहर तो होने लगा, पर घर में नहीं। इस प्रकार संघर्ष को टाल दिया गया। अब भी हमारे परिवारों में पुराने सामंती अवशेष पल रहे हैं। सर्वत्र एक अवसरवादी दृष्टिकोण अपनाया जाता है। कोई कुछ नया नहीं खोजना चाहता।

जो पुराना है वह लौट कर तो नहीं आ सकता, परंतु नया भी पुराने का स्थान नहीं ले पा रहा है। धर्म-भावना गई, परंतु वैज्ञानिक बुद्धि भी नहीं आई है। धर्म हमारे जीवन के प्रत्येक पक्ष को अनुशासित करता था। नए वैज्ञानिक मानवीय दर्शन ने ‘नया’ तो दिया, परंतु उस ‘नए’ को हम नहीं जान सके, क्योंकि नए मान-मूल्य, नया इनसान परिभाषाहीन और निराकार हो गए हैं। इन्होंने नए जीवन और अनुशासन का रूप धारण नहीं किया है और ये धर्म और दर्शान का स्थान भी नहीं ले सके हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • मेधावी – बुद्धिमान
  • भान – आभास
  • विचित्र – अनोखा
  • आंतरिक – भीतरी
  • साक्षात् – प्रत्यक्ष, आँखों के सामने
  • शिकंजा – जकड़
  • मस्तिष्क-तंतुओं – मस्तिष्क की शिराएँ
  • रोमैंटिक कल्पना – ऐसी कल्पना जिनमें प्रेम और रोमांच हो
  • भूतपूर्व – पहले का
  • मर्म – रहस्य
  • ‘ओड टु वेस्ट विंड’ – अंग्रेजी कवि शैले की रचना
  • स्क्वेअर रुट ऑफ़ माइनस वन – गणित का एक सूत्र
  • बावजूद – के अतिरिक्त, अलावा
  • अभिधार्थ – शब्द का वाच्यार्थ
  • ध्वन्यार्थ – वह अर्थ जिसका बोध व्यंजनावृत्ति से होता है
  • व्यंग्यार्थ – व्यंजना शब्द शक्ति से प्राप्त अर्थ, सांकेतिक अर्थ
  • कतई – बिलकुल
  • आच्छन्न – छिपा हुआ, ढका हुआ
  • असाधारणता – विशेषता, जो साधारण न हो
  • कुर्बान – न्योछावर
  • क्रूरता – हृद्य की कठोरता
  • निर्दयता – क्रूरता, दया का न होना
  • बरदाश्त – सहन
  • भीषण – कठिन
  • उत्तरदायित्व – ज़िम्मेदारी
  • पलायन – भावना
  • वहन – उठाना
  • प्रवृत्ति – स्वभाव
  • जर्जर – ट्रा-फूटा
  • विनाशक – विनाश करने वाली
  • हुदयभेदक प्रक्रिया – हुदय को भीतर तक प्रभावित करने वाली क्रिया
  • निजत्व – अपनापन
  • ऐंड़ा-वेंड़ा – टेढ़ा-मेढ़ा
  • नामी-गिरामी – प्रसिद्ध
  • इंटीग्रल (अंग्रेजीवाद) – अभिन्न
  • आत्मप्रकटीकरण – अपने मन की वास्तविकता प्रकट करना, मन की बात कहना
  • यशस्विता – प्रतिष्ठा, अत्यधिक यश, प्रसिद्धि
  • धुव – केंट्र, छोर
  • उल्कापिंड – लौहमिश्रित पत्थर के टुकड़े जो अंतरिक्ष से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं
  • अप्रत्याशित – जिसकी आशा न हो, उम्मीद के विपरी
  • खरब – भारतीय गणना में सौ अरब की संख्या
  • हास – पतन
  • अनिच्छित – बिना इच्छा के, अनचाहा
  • इम्तिहान – परीक्षा
  • वस्तुस्थिति – वास्तविक स्थिति
  • अप्रत्यक्ष – जो दिखाई न दे, परोक्ष
  • जातिवाद – जाति-विशेष को श्रेष्ठ बताने या जाति-विशेष का पक्ष लेने की प्रवृत्ति।
  • अवशेष – बचा हुआ।
  • सप्रश्नता – प्रश्न के साथ, जिसके साथ प्रश्न जुड़ा हुआ हो
  • अवलंबन – सहारा, आश्रय।
  • सर्वतोमुखी – सभी ओर से, सभी दिशाओं में

नए की जन्म कुंडली : एक सप्रसंग व्याख्या

1. वह अपने विचारों या भावों को केवल प्रकट ही नहीं करता था, बल्कि उन्हें स्पर्श करता था, सूँघता था, उनका आकार-प्रकार, रंग-रूप और गति बता सकता था, मानो उसके सामने वे प्रकट साक्षात और जीवंत हों। उसका दिमाग लोहे का एक शिकंजा था या सुनार की एक छोटी-सी चिमटी, जो बारीक-से-बारीक और बड़ी-से-बड़ी बात को सूक्ष्म रूप से और मजबूती से पकड़कर सामने रख देती है।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित निबंध ‘नए की जन्म कुंडली : एक’ से ली गई हैं। इस निबंध में लेखक ने नए और पुराने के संघर्ष में टूटते हुए संयुक्त परिवारों, सांस्कृतिक मूल्यों तथा सामाजिक संरचना पर विचार किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक अपने उस मित्र की प्रशंसा कर रहा है जिसने सारा जीवन अभाव में व्यतीत करते हुए भी अपने सिद्धांतों को नहीं त्यागा लेखक के अनुसार उसका मित्र अपनी भावनाओं तथा विचारों को पूरी ईमानदारी से व्यक्त करता था। अपने विचारों को प्रकट करने से पूर्व वह उन पर गंभीरता से मनन करता था। उसकी अभिव्यक्ति से ऐसा प्रतीत होता था, मानो उसने उन विचारों को स्वयं प्रत्यक्ष रूप में हुआ है, सूँघा है, देखा है। उनका आकार-प्रकार उसके सामने सजीव रूप धारण किए हुए प्रतीत होता था। उसका दिमाग ऐसा तेज था जैसे कोई पकड़ने वाली वस्तु हो अथवा सुनार की छोटी-सी चिमटी हो, जो छोटी-से-छोटी अथवा बड़ी-से-बड़ी बात को भी अत्यंत सावधानी और मजबूती से पकड़कर अथवा सोच-विचारकर सामने रख देती है।

विशेष – (i) लेखक ने अपने मित्र की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा की है, क्योंकि वह अपने विचार बहुत सोच-विचारकर तथा स्पष्ट रूप से व्यक्त करता था।
(ii) भाषा तत्सम-प्रधान, सहज तथा व्यावहारिक है। शैली वर्णनात्मक है।

2. इस भीषण संघर्ष की हूदय-भेदक प्रक्रिया में से गुजरकर उस व्यक्ति का निजत्व कुछ ऐंड़ा-वेंड़ा, कुछ विचित्र अवश्य हो गया था। किंतु सबसे बड़ी बात यह थी कि उसकी बाजू सही थी। इसलिए वह असामान्य था।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित निबंध ‘नए की जन्म कुंडली : एक’ से ली गई हैं। इस निबंध में लेखक ने नए और पुराने मूल्यों की संघर्ष गाथा प्रस्तुत करते हुए पुराने को छोड़ने और नए को पूरी तरह से न अपना सकने पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक अपने उस मित्र के संबंध में बता रहा है जो अपने सिद्धांतों के कारण तत्कालीन परिस्थितियों से समझौता नहीं करता था। उसकी इस जिद्द के कारण उसके जीवन में अनेक कठिनाइयाँ आई. परंतु वह अपने मार्ग से विचलित नहीं हुआ। इन कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए उसे अनेक दुःखद स्थितियों से गुजरना पड़ा था। उसका हृदय विचलित हो जाता था, परंतु वह प्रत्येक संघर्ष का सामना करता रहा। इस कारण उसका व्यक्तित्व कुछ विचित्र तथा अटपटा-सा अवश्य हो गया था। इन सब स्थितियों से भी वह घबराया नहीं था क्योंकि उसमें अभी भी विसंगतियों से टकराने की शक्ति थी। यही कारण था कि वह एक सामान्य व्यक्ति न होकर असामान्य व्यक्ति था।

विशेष – (i) लेखक ने अपने मित्र की परिस्थितियों से जूझने तथा सिद्धांत विरुद्ध समझौते न करने की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है।
(ii) भाषा तत्सम-प्रधान, भावपूर्ण तथा शैली विचारात्मक है।

3. चारों ओर चाँदनी की रहस्यमय मधुरता फैली हुई थी। चारों ओर ठंडा एकांत फैला हुआ था। मेरी अजीब मनोस्थिति हो गई। मैं अपने पड़ोसियों की जिंदगियाँ हूँड़ने लगा, अपने परिचितों का जीवन तलाशने लगा। एक अनिच्छित बेचैनी मुझमें फैल गई। हाँ, यह सही है कि जिंदगी और जमाना बदलता जा रहा था।किंतु में परिवर्तन के परिणामों को देखने का आदी था, परिवर्तन की प्रक्रिया को नहीं।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित निबंध ‘नए की जन्म कुंडली : एक’ से ली गई हैं। इस निबंध में लेखक ने संयुक्त परिवारों के विघटन, पुराने मानदंडों की उपेक्षा तथा नए मूल्यों को पूर्णरूप से न अपना सकने पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक अपने मित्र से पिछले बीस वर्षों की सबसे महान घटना संयुक्त परिवारों के विघटन की बात सुनकर स्तब्ध रह जाता है और विचारों में डूब जाता है। उस समय वातावरण में चारों ओर चाँदनी फैली हुई थी। लेखक को इस चाँदनी में एक रहस्यमय मधुरता का अनुभव हो रहा था। उसे हर तरफ एकदम ठंडे एकांत के दर्शन हो रहे थे। लेखक की मानसिक दशा बहुत अजीब-सी हो गई थी। अपने मित्र द्वारा बताए गए संयुक्त परिवारों के विघटन की स्थितियों को वह अपने आस-पास के पड़ोसियों और अपने परिचितों के जीवन ला निरीक्षण करने लगा कि इस पारिवारिक विघटन का उन पर क्या प्रभाव हुआ है। यह सब सोचते-सोचते लेखक एक न चाही हुई बेचैनी महसूस करने लगा। उसे लगा कि यह बिलकुल सही है कि आज लोगों की जिंदगी में बदलाव आ रहा है और वक्त भी बदल रहा है। लेखक इन होने वाले परिवर्तनों के परिणामों को देखने का तो अभ्यस्त था, किंतु वह यह नहीं देख पा रहा था कि यह परिवर्तन हो कैसे रहे हैं।

विशेष – (i) इन पंक्तियों में लेखक समाज में होने वाले पारिवारिक विघटनों तथा बदलते जीवन-मूल्यों के प्रति अपनी चिंता की करता है।
(ii) भाषा तत्सम-प्रधान, भावपूर्ण तथा सरस है । शैली काव्यात्मक, विचारप्रधान एवं आत्मकथात्मक है।

4. लड़के बाहर राजनीति या साहित्य के मैदान में खेलते, और घर आकर वैसा ही सोचते या करते, जो सोचा या किया जाता रहा। समाज में, बाहर, पूँजी या धन की सत्ता से विद्रोह की बात की गई, लेकिन घर में नहीं। वह शिष्टता और शील के बाहर की बात थी। मतलब यह कि अन्यायपूर्ण व्यवस्था को चुनौती घर में नहीं, घर के बाहर दी गई।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित नियंध ‘नए की जन्म कुंडली : एक’ से ली गई हैं। इस निबंध में लेखक ने वर्तमान युग में प्राचीन जीवन मूल्यों के विषटन तथा नवीन जीवन मूल्यों को पूर्णरूप से न अपनाने की संघर्ष गाथा प्रस्तुत की है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक का मित्र लेखक को बता रहा है कि किस प्रकार आजादी के बाद हमारे देश में कथनी और करनी में अंतर आ गया है। ‘नए’ की बातें की तो जाती परंतु पालन ‘पुराने’ का ही हो रहा था। नई पीढ़ी घर से बाहर तो राजनीति और साहित्य के क्षेत्र में नए मूल्यों की चर्चा और वकालत करते हैं, परंतु घर के अंदर वही सब कुछ करते हैं जो परंपरा से उनके घरों में होता रहा है। घर के बाहर तो सामाजिक क्रांति, पूँजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह आदि की बातें की जाती हैं परंतु घर में ऐसी कोई चर्चा नहीं होती है। घर में इस प्रकार की बातें शिष्टता और सदाचार के विपरीत मानी जाती हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि जहाँ भी अन्याय हो रहा है उसे चुनौती देने का कार्य घर से बाहर किया जाता है, घर में नहीं। इस प्रकार के दोहरे माप-दंड अपनाए जा रहे हैं।

विशेष – (i) लेखक ने समाज में व्याप्त दोही मानसिक्ता पर व्यंय किया है, जहाँ अपने लिए कुछ्छ और तथा दूससें के लिए कुछ दूसे नियम-कानून होते हैं।
(ii) भाषा सहज, व्यावहारिक, भावपूर्ण तथा शैली विचार प्रधान है।

5. इसलिए पुराने सामंती अवशेष बड़े मजे में हमारे परिवारों में पड़े हुए हैं। पुराने के प्रति और नए के प्रति इस प्रकार एक बहुत भयानक अवसरवादी दृष्टि अपनाई गई है। इसीलिए सिर्फ एक सप्रश्नता है। प्रश्न है, वैज्ञानिक पद्धति का अवलंबन करके उत्तर खोज निकालने की न जल्दी है, न तबीयत है, न कुछ। मैं मध्यवर्गीय शिक्षित परिवारों की बात कर रहा हूँ।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्सियाँ गजानन मानव मुक्तिबोध द्वारा रचित निबंध ‘ नए की जन्म कुंडली : एक’ से ली गई हैं। इस निबंध में लेखक ने नए और पुराने जीवन-मूल्यों के जुड़ने और टूटने के संघर्ष की व्यथा-कथा प्रस्तुत की है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक का सिद्धांतवादी मित्र उसे बताता है कि किस प्रकार अभी भी हम पुरानी परंपराओं से जकड़े हुए हैं। नई पीढ़ी घर से बाहर तो क्रांति की बातें करती है परंतु घर में पुरानी परंपराओं का ही अनुसरण करती है। यही कारण है कि अब भी हमारे परिवार पुराने सामंती रीति-रिवाजों को सहज रूप से अपना रहे हैं । इस प्रकार हम लोग पुराने और नए के प्रति अवसरवादी दृष्टिकोण अपना रहे हैं। जिस अवसर पर जो अच्छा लगता है वैसा ही हम करते हैं। इसलिए इसके साथ एक प्रश्न भी जुड़ जाता है कि हम लोग इस समस्या का वैज्ञानिक रूप से कोई उचित हल नहीं निकालना चाहते क्योंकि न तो ऐसा कुछ करने की हमें जल्दी है और न ही हम ऐसा कुछ करना चाहते हैं। यह सब वह मध्यवर्गीय शिक्षित परिवारों के दृष्टिकोण से कह रहा है।

विशेष – (i) लेखक ने वर्तमान पौढ़ी को अवसरवादी माना है जो अपनी आवश्यकता तथा अवसर के अनुकूल नए या पुराने को अपनाती है।
(ii) भाषा तत्सम प्रधान तथा भावपूर्ण है। शैली विचार प्रधान है।

6. नया जीवन, नए मान-मूल्य, नया इंसाफ़ परिभाषाहीन और निराकार हो गए। वे दृढ़ और नया जीवन, नए व्यापक मानसिक सत्ता के अनुशासन का रूप धारण न कर सके। वे धर्म और दर्शन का स्थान न ले सके।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित निबंध ‘ नए की जन्म कुंडली : एक’ से ली गई हैं। इस निबंध में लेखक ने वर्तमान युग में नए को अपनाने के मोह में पुराने को त्यागने तथा नए को पूर्ण रूप से न अपना सकने पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या – लेखक का मित्र उसे बताता है कि किस प्रकार आज पुराने को छोड़कर नए को अपनाने के मोह में हम नए को भी पूरी तरह से नहीं अपना पा रहे हैं। हमें यहु भी पता नहीं कि ‘ नया’ है क्या ? यही कारण है कि आज नया जीवन, नए मान-मूल्य तथा नया इंसाफ़ सब कुछ परिभाषाहीन तथा आकार-रहित हो गए हैं। इनका कोई अस्तित्व दिखाई नहीं देता है। ये नए विचार और नई जीवन-पद्धति किसी नए व्यापक मानसिक सत्ता के अनुरूप अनुशासन नहीं दे सके। इन्होंने हमारी धार्मिक एवं दार्शनिक भावनाओं का स्थान भी नहीं लिया।

विशेष – (i) लेखक का विचार है कि हमारे जीवन में इस ‘नए’ का कोई स्थान नहीं है, क्योंकि हूम अभी भी अपनी पुगनी परंपरओं से जुड़े हुए हैं।
(ii) भाषा तत्सम-प्रधान, भावपूर्ण तथा शैली विचार प्रधान है।

Hindi Antra Class 11 Summary

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Class 11 Hindi Antra Chapter 8 Summary – Uski Maa Vyakhya

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उसकी माँ Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 8 Summary

उसकी माँ – ओमप्रकाश वाल्मीकि – कवि परिचय

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय – पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का जन्म सन् 1900 ई० में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले की चुनार तहसील के सदद्दुर मुहल्ले में हुआ था। इनके पिता का नाम बैजनाथ पांडे तथा माता का नाम जयकली था। अभी इन्होंने तुतलाना भी नहीं सीखा था कि इनके पिता का देहांत हो गया। आर्थिक कठिनाइयों के कारण इन्होंने व्यवस्थित शिक्षा नहीं प्राप्त की थी। रामलीलाओं में विभिन्न भूमिकाएँ करते हुए इन्हें तुलसीकृत रामचरितमानस कंठाग्र तक हो गया था। अपनी जन्मजात प्रतिभा और साधना से वे प्रसिद्ध पत्रकार और गद्यकार बने। निराला जी इनके विशिष्ट मित्र थे। इन्होंने ‘आज,’ विश्वामित्र’, स्वदेशी, वीणा, ‘स्वराज्य’ और ‘विक्रम’ पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया था। सन 1967 ई० में इनका निधन हो गया था।

रचनाएँ – उग्र जी की प्रमुख रचनाएँ ‘चॉकलेट, अपनी खबर, चंद हसीनों के खतूत, फागुन के चार दिन, घंटा, दिल्ली का दलाल, शराबी, पौली इमारत, काल कोठरी, चित्र-विचित्र, कला का पुरस्कार’ आदि हैं।

भाषा-शैली – पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ सहज एवं भावपूर्ण भाषा में अपने विचारों को व्यक्त करनेवाले कथाकार कहे जाते हैं। ‘उसकी माँ’ कहानी की भाषा में बोल-चाल की हिंदी भाषा के दर्शन होते हैं जिसमें लेखक ने उर्द, अंग्रेजी, देशज शब्दों का पर्याप्त प्रयोग किया है। जैसे-ज़रूत, तलाश, मिनट, सुपरिटेंडेंट, सुरमई, अंट-संट, अल्हड़-बिल्हड़ आदि। ध्यनि अर्थ व्यंजन ‘पो-पो’ आदि शब्दों के प्रयोग से कहानी का वातावरण सजीव हो उठा है। कहीं-कहीं भाषा काव्यमय भी हो गई है। जैसे- ” तू बूढ़ी, वह बूढ़ी। उसका उजला हिमालय है, तेरे केश”‘! लेखक की शैली वर्णनात्मक, आत्मकथात्मक तथा संवादात्मक है। छोटे-छोटे वाक्यों तथा चुस्त संवादों ने इनकी शैली को रोचकता प्रदान की है। संवाद पात्रानुकूल हैं एवं इनकी भाषा पात्रों की मानसिक एवं सामाजिक स्थितियों के अनुरूप है। समग्र रूप से इनकी भाषा-शैली सहज, सरल तथा मन को छूने वाली है।

Uski Maa Class 11 Hindi Summary

‘उसकी माँ’ लेखक की स्वाधीनता-संग्राम से प्रेरित कहानी है। इस कहानी में लेखक ने देश को आजाद कराने के लिए कुछ युवकों द्वारा दिए गए बलिदान का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है तथा यह भी बताया है कि किस प्रकार एक बूड़ी माँ अपने इकलौते पुत्र को देश पर न्योछावर कर देती है।

एक दिन दोपहर के समय आराम करने के पश्चात जरींदार कुछ पढ़ने के विचार से अपने पुस्तकालय में जाता है कि इतने में नगर का पुलिस सुपरिेेंडेंट उससे मिलने आता है। पुलिस अधिकारी के अचानक आने से वह कुछ घबरा जाता है किंतु जब पुलिस अधिकारी उसे लाल की फोटो दिखाकर लाल के विषय में पूछता है तो वह उसे लाल के संबंध में बता देता है कि वह उसके मृत मैनेजर रामनाथ का पुत्र है, कॉलेज में पढ़ता है तथा उसके बंगले के सामने अपनी बूढ़ी माँ के साथ एक-दो मंज़िले मकान में रहता है। पुलिस अधिकारी ज़रींदार को लाल से सावधान रहने के लिए कहकर चला जाता हैं।

ज़रींदार लाल की माँ को समझाता है कि वह लाल को क्रांतिकारियों से दूर रहने की बात समझा दे अन्यथा उसे दंड भोगना पड़ेगा। तभी लाल अपनी माँ को बुलाने आ जाता है तो ज्मींदार लाल को कहता है कि तुम ब्रिटिश सरकार के विस्द्ध पइयंत्र करना छोड़ दो। लाल देश को पराधीन नहीं देख सकता तथा ज़रीदार से तर्क-वितर्क करने लगता है। वह देश को स्वतंत्र कराने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। एक दिन लाल की माँ तथा मींदार की पत्नी बैठी हुई बातें कर रही थी कि ज़मींदार वहाँ पहुँच गया तथा लाल की माँ से लाल और उसके मित्रों के विषय में पूछा। उसने उसे बताया है कि लाल के सभी साथी मस्त, हैसोड़ तथा ज्ञिदादिल थे। वे उसे भारत-माता कहते थे तथा खूब बहस करते रहते थे। वे परदेसियों से देश को स्वतंत्र करवाना चाहते थे। जमीदार इस सबको बहुत बुरा मानता था।

जमींदार अपने कार्य के संबंध में बाहर चला गया था। जब वह लौटकर आया तो उसकी पल्नी ने उसे बताया कि लाल की माँ पर भयानक विपत्ति टूट पड़ी थी। पुलिस ने उसके घर की तलाशी ली थी जिसमें पिस्तौलें, कारतूस, खुफ़िया-पत्र आदि मिले थे। पुलिस लाल और उसके साथियों को पकड़कर ले गई थी तथा उनपर अब मुकदमा चल रहा था। सरकार की ओर से उनपर षड्यंत्र आदि के अनेक आरोप लगाए गए थे। सरकार के डर से कोई वकील भी उनकी पैरवी के लिए नहीं आया। लाल की माँ ने घर का सामान बेचकर किसी प्रकार एक मामूली वकील पैरवी के लिए वैयार किया किंतु अंत में अदालत ने लाल, बंगड़ तथा दो अन्य लड़कों को फांसी तथा अन्य दस लड़कों को दस से सात वर्ष तक की कड़ी सज़ा सुना दी। लाल की माँ के समस्त प्रयत्न व्यर्थ गए।

जब से लाल और उसके साथी पकड़े गए थे, लाल की माँ के मुहल्ले का कोई भी व्यक्ति बात नहीं करता था क्योंकि वह एक विद्रोही की माँ थी। जमींदार एक दिन अपने पुस्तकालय में कोई पुस्तक देख रहा था जिस पर पेंसिल से लाल ने अपने हस्ताक्षर कर रखे थे। पुलिस अधिकारी की चेतावनी याद आते ही उसने रबड़ से उसके हस्ताक्षर मिटाने चाहे कि तभी लाल की माँ एक पत्र लेकर उसके पास आती है। यह लाल का अंतिम पत्र था। ज़मींदार ने वह पत्र उसे पढ़कर सुना दिया। लाल की माँ पत्र लेकर चुपचाप चली जाती है किंतु जमींदार व्याकुल हो उठा। वह रातभर सो भी न सका। उसे ऐसा लगा मानो लाल की माँ कराह रही हो। वह नौकर को लाल की माँ को देख आने के लिए भेजता है। नौकर ने आकर बताया कि वह तो अपने हाथ में पत्र लिए घर के द्वार पर ही पाँव पसारे मरी पड़ी है।

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • निहार – देख
  • सुरमई – सुरमे के रंग वाली
  • आगमन – आने
  • स्मरण – याद
  • पुश्त – पीढ़ी
  • पाजीपन – दुष्टता, नीचता
  • रंग उड़ना – घबरा जाना
  • दुरवस्था – बुरी अवस्था
  • सर्वनाश – सब कुछ नष्ट होना
  • लेना – मुकाबला करना
  • छोर – किनारा
  • छाती फूल उठना – गर्व होना
  • श्रृंगार – सजावट, साज, सज्जन
  • त्रास – कष्ट
  • नीति-मर्दक – नीजि को तोड़नेवाले
  • विपत्ति – मुसीबत
  • चेष्टा – कोशिश
  • दोषारोपण – दोष लगाना
  • नहीं का भाई – बेकार
  • बातूनी – अधिक या व्यर्थ बोलनेवाला
  • टुकुर-टुकुर देखना – लगातार देखना
  • वज्ञपात – अचानक मुसीबत आना
  • सिवान – गाँव की सीमा
  • बाल अरूण – प्रभातकालीन सूर्य
  • विकलता – व्याकुलता
  • स्मृति – याद।
  • धूमिल – धुंधला, कम होना
  • कृति – रचना
  • बेवक्त – असमय
  • नम्रता – विनयभाव से।
  • देहांत – मृत्यु।
  • फृरमाबरदार – आज्ञाकारी
  • विवेकी – समझदार
  • उबल उठना – गुस्सा करना
  • पराधीनता – गुलामी
  • दुर्बल – कमज़ोर पंजा
  • चर्र-मर्र होना – नष्ट होना
  • मुग्ध – मोहित
  • बली – बलवान
  • गप हॉंकना – व्यर्थ बातें करना
  • उत्तेजित – भड़काया हुआ
  • मिज्ञाज – स्वभाव
  • विस्तृत – विस्तार से अस्वीकार
  • नकार – मना करना
  • पीठ पर होना – सहायता करना
  • दाँत निपोरना – खुशामत करना
  • दूध का दूध और पानी का पानी – उचित न्याय।
  • ब्यालू – रात का भोजन
  • ऊजड़ – उजड़ा हुआ
  • पीली पड़ना – कमज़ोर होना
  • दिवाकर – सूर्य
  • स्तब्ध – जड़
  • खचित – खीचा हुआ, लिखा हुआ
  • क्षितिज – धरती आकाश का मिलन स्थल

उसकी माँ सप्रसंग व्याख्या

1. इस पराधीनता के विवाद में, चाचा जी, मैं और आप दो भिन्न सिरों पर हैं। आप कट्टर राजभक्त, मैं कट्टर राजविद्रोही। आप पहली बात को उचित समझते हैं-कुछ कारणों से, मैं दूसरी को-दूसरे कारणों से। आप अपना पद छोड़ नहीं सकते अपनी प्यारी कल्पनाओं के लिए, मैं अपना भी नहीं छोड़ सकता।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए युवकों द्वारा दिए गए बलिदान तथा उनके माता-पिता के त्याग का मार्मिक वर्णन किया है।

व्याख्या – इस कहानी में यह कथन लाल का है। उसके चाचा उसे ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध पड्यंत्र न करने की चेतावनी देते है क्योंकि वह ब्रिटिश सरकार को धर्मात्मा, विवेकी तथा न्यायी सरकार मानता है, किंतु लाल उसकी बात नहीं मानता। वह अपने देश को स्वतंत्र कराने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है। अतः अपने चाचा को कहता है कि उनकी तथा उसकी विचारधाराएँ अलग-अलग हैं। इस कारण वह उनसे कोई समझौता नहीं कर सकता। उसके चाचा जी ब्रिटिश सरकार के पक्के वफ़ादार हैं जबकि वह देश को गुलाम बनानेवाली ब्रिटिश सरकार का घोर विरोधी है। इस कारण वह राजद्रोही कहलाता है। उसके चाचा सरकार की वफ़ादारी को अपने कुछ कारणों से उचित मानते हैं, परंतु वह देशभक्त होने के कारण इसे ठीक नहीं मानता है। उसके चाचा अपनी सुख-सुविधाओं के लिए अपना पद छोड़ना नहीं चाहते और वह अपना देश-सेवा का व्रत त्याग नहीं सकता।

विशेष – (i) लेखक की मान्यता है कि देश को स्वतंत्र कराने वाले युवक किसी भी शर्त पर ब्रिटिश सरकार से कोई समझौता नहीं करना चाहते।
(ii) भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण तथा शैली, ओजपूर्ण उद्बोधनात्मक है।

2. ‘चाचा जी, नष्ट हो जाना तो बहाँ का नियम है। जो सँवारा गया है, वह बिगड़ेगा ही। हमें दुर्बलता के डर से अपना काम नहीं रोकना चाहिए। कर्म के समय हमारी भुजाएँ नहीं भगवान की सहस्त भुजाओं की सखिया है।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शमा ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए युवकों द्वारा दिए गए बलिदान तथा उनके माता-पिता के त्याग का मार्मिक चित्रण किया गया है।

व्याख्या – लाल एक क्रांतिकारी युवक है। उसकी माँ विधवा है। वह जहाँ रहता है उसके पास के घर में रहनेवाले जरींदार का लाल के परिवार के प्रति बहुत मोह है। अतः वह लाल को क्रांतिकारियों का साथ न देने के लिए कहता है क्योंकि त्रिटिश सरकार के सम्मुख वे अत्यंत दुर्बल तथा असहाय हैं। इससे उनकी मृत्यु भी हो सकती है। तब लाल उन्हें उत्तर देते हुए कहता है कि यह तो सृष्टि का नियम है जो जन्म लेता है वह एक दिन मरता भी है। अतः वह मृत्यू से नहीं डरता क्योंकि जिसका आज निर्माण हुआ है कल उसका विनाश भी होगा। वह दुर्बल होने के कारण अपना कार्य रोकना नहीं चाहता। उसकी मान्यता है कि जब हम कर्म करने लगते हैं तो हमारी भुजाएँ दो न होकर भगवान की सहसों भुजाओं के समान हो जाती हैं अर्थात कर्म करनेवाले व्यक्ति की सहायता ईश्वर भी करता है।

विशेष – (i) इन पंक्तियों में लेखक ने कर्म करने पर बल दिया है क्योंकि कर्मशील व्यक्ति का सहायक ईंश्वर भी होता है।
(ii) भाषा सरल, स्वाभाविक तथा प्रसंगानुकूल है। शैली उद्बोधनात्मक है।

3. पुलिसवाले केवल संदेह पर भले आदमियों के बच्चों को त्रास देते हैं, मारते हैं, सताते हैं। यह अत्याचारी पुलिस की नीचता है। ऐसी नीच शासन-प्रणाली को स्वीकार करना अपने धर्म को, कर्म को, आत्मा का परमात्मा को भुलाना है। धीरे-धीरे चुलाना-मिटाना है।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पंडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से उद्धृत की गई हैं। इस कहानी में लेखक ने स्वाधीनता संग्राम में क्रांतिकारी युवकों के बलिदान और उनके माता-पिता के त्याग का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या – लाल के चाचा जब लाल की माँ से पूछती है कि लाल और उसके मित्र किस प्रकार की बाते करते हैं तो लाल की माँ उन्हें बताती है कि भारत-माता की तथा अन्य अनेक प्रकार की बातें करते रहते हैं। एक दिन वे अत्यंत उत्तेजित स्वर में कर रहे थे कि सरकार लड़कों को पकड़ रही है। वे कहते थे कि पुलिस केवल संदेह के आधार पर ही अच्छे-अच्छे परिवार के लड़कों को पकड़कर ले जाती है तथा उन्हें बहुत कष्ट देती है। वे उन बच्चों को मारते, पीटते और अनेक प्रकार से सताते भी हैं। इसे वे लड़के पुलिस का अत्याचार और नीचता मानते हैं। उन लड़कों के अनुसार इस प्रकार की नीच हरकतोंवाली शासन-प्रणाली को स्वीकार करना अपने धर्म, कर्म, आत्मा तथा परमात्मा को धोखा देना है। इस प्रकार हम अपने आप को धीरे-धीरे नष्ट कर देते हैं तथा हमारा अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है।

विशेष – (i) वे लड़के क्रांतिकारी विचारधारा के हैं। अत: ब्रिटिश सरकार का अत्याचारी शासन स्वीकार करना वे अपने स्वाभिमान के विरुद्ध मानते हैं।
(ii) भाषा सहज, सरल, भावानुकूल तथा शैली उद्बोधनात्मक है।

4. “लोग ज्ञान न पा सकें, इसलिए इस सरकार ने हमारे पढ़ने-लिखने के साधनों को अज्ञान से भर रखा है। लोग वीर और स्वाधीन न हो सकें, इसलिए अपमानजनक और मनुष्यहीनता नीति-मर्दक कानून गढ़े हैं। गरीबों को चूसकर, सेना के नाम पर पले हुए पशुओं को शराब से, कबाब से, मोटा-ताज़ा रखती है-यह सरकार। धीरे-धीरे जोंक की तरह हमारे देश का धर्म, प्राण और धन चूसती चली जा रही है -यह शासन प्रणाली।”

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शर्म ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से उद्धृत की गई हैं। इस कहानी में लेखक ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए क्रांतिकारी युवकों द्वारा दिए गए बलिदान तथा उनके माता-पिता के त्याग का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लाल की माँ लाल के चाचा को लाल और उसके मित्रों बातों के विषय में बता रही हैं। वे बताती है कि एक दिन लाल का एक मित्र कह रहा था कि ब्रिटिश सरकार भारतीयों को इसलिए पढ़ाना-लिखाना नहीं चाहती कि कहीं वे अपना अधिकार न माँगने लगें। वह कहता है कि लोग पढ़-लिखकर जागरूक न हो जाऐं। इस कारण ब्रिटिश सरकार भारतीयों को पढ़ने-लिखने नहीं देती तथा जो पढ़ते-लिखते हैं उन्हें भी अंग्रेज़ी ढंग की शिक्षा दी जाती है।

अंग्रेज़ी सरकार ने इस कारण ऐसे अपमानजनक तथा मानवता से रहित नीति-विर्द्ध नियम बनाएँ हैं जिससे लोगों में वीर भावनाए न पनप सकें तथा वे उनकी गुलामी से आजाद न हो सकें। यह सरकार गरीबों का शोषण कर अपनी सेना को शराब, कबाब आदि खिला-पिलाकर मोटा-ताज़ा बनाएँ रखती है जिससे भारतीयों पर अत्याचार किया जा सके। यह सरकार धीरे-धीरे इस देश में धर्म, मनुष्यों तथा धन-संपत्ति को इस प्रकार नष्ट करती जा रही है जैसे जोंक खून चूसती है। इस प्रकार से ब्रिटिश सरकार भारतीयों का पूर्ण रूप से शोषण कर रही है।

विशेष – (i) इन पंक्तियों में स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश सरकार के तानाशाही रूप का यथार्थ अंकन किया गया है तथा उसकी शोषण-प्रवृत्ति को उजागर किया गया है।
(ii) भाषा सहज, सरल तथा शैली व्यंग्यात्मक है।

5. यह बुरा है, लाल की माँ।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से ली गई है। इस कहानी में लेखक ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए युवकों के दिए गए बलिदान तथा उनके माता-पिता के त्याग का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या – कहानी में यह कथन जमींदार का है। जब-जमींदार को लाल की माँ से यह ज्ञात होता है कि लाल तथा उसके साथी ब्रिटिश सरकार से देश को आजाद कराने की बातें करते रहते हैं तो वह लाल की माँ को समझाते हुए कहता है कि इनकी ये बातें बहुत खतरनाक हैं क्योंकि सरकार के विरूद्ध बोलने से सरकार उन्हें कभी भी दंडित कर सकती है। विशेष इस पंक्ति में लाल के चाचा लाल की माँ को समझाते हैं कि लाल का अंग्रेज़ों से विरोध उसके लिए हानिकारक है।

6. उधर उन लड़कों की पीठ पर कौन था ? प्रायः कोई नहीं। सरकार के डर के मारे पहले तो कोई वकील ही उन्हें नहीं मिल रहा था, फिर वह बेचारा मिला भी, तो ‘नहीं’ का भाई । हाँ, उनकी पैरवी में सबसे अधिक परेशान वह बूड़ी रहा करती।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शर्म ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से उद्धृत की गई हैं। इस कहानी में लेखक ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए क्रांतिकारी युवकों द्वारा दिए गए बलिदान तथा उनके माता-पिता के त्याग का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ने उस समय का वर्णन किया है जब लाल तथा उसके साथियों को पुलिस पकड़ कर ले जाती है तथा उनपर झूठे मुकदमे चलाऐ जाने लगते हैं। लाल तथा उनके साधियों की पैरवी करने के लिए कोई वकील तैयार नहीं होता क्योंकि उनकी सहायता करनेवाला कोई नहीं था। सरकार के प्रकोप से भयभीत होकर कोई भी वकील उनकी पैरवी नहीं करना चाहता था। बाद में उन्हें ऐसा वकील मिला जो न होने के बराबर ही था। अर्थात उस वकील की अदालत में कोई साख नहीं थी। केवल लाल की माँ ही लाल तथा उसके मित्रों की पैरवी में बहुत अधिक परेशान रहती थी तथा जिस किसी के पास उनकी फ़रियाद लेकर जाती थी।

विशेष – (i) लेखक यह बताना चाहता है कि स्वतंत्रता से पूर्व क्रांतिकारियों को झूठे मुकदमों में फँसा दिया जाता था तथा उनका मुकदमा लड़ने के लिए कोई वकील भी नहीं मिलता था क्योंकि वकील ब्रिटिश सरकार के प्रकोप से भयभीत रहते थे।
(ii) भाषा सहज, सरल तथा व्यावहारिक है। शैली नाटकीय तथा व्यंग्यात्मक है।

7. “तू भी जल्द वहीं आना जहाँ हम लोग जा रहे हैं। यहाँ से थोड़ी ही देर का रास्ता है, माँ एक साँस में पहुँच जाएगी। वहीं हम स्वतंत्रता से मिलेंगे। तेरी गोद में खेलेंगे। तुझे कंधे पर उठाकर इधर-से-उधर दौड़ते फिरेंगे ? समझती है ? वहाँ बड़ा आनंद है।”

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा रचित कह्नानी ‘उसकी माँ’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने भारत के स्वाधीनता संग्राम के दिनों में क्रांतिकारी युवकों के बलिदान एवं उनके माता-पिता के त्याग का मार्मिक वर्णन किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ने उस समय का वर्णन किया है जब लाल तथा उसके तीन मित्रों को फाँसी की तथा अन्य को दस से सात वर्ष की सज़ा सुनाई जाती है। लाल की माँ अदालत के बाहर खड़ी ज़जीरों में जकड़े बच्चों को देख रही थी, तब लाल अपनी माँ को कहता है कि माँ, तुम चिंता न करो, तुम भी शीम्र ही वहाँ आ जाना जहाँ हमें भेजा जा रहा है। वह माँ को बताता है कि जहाँ वे जा रहे हैं वह स्थान विशेष दूर नहीं है।

यहाँ पर वहाँ पहुँचने में केवल एक साँस का अंतर है अर्थात प्राण निकलते ही मनुष्य दूसरे लोक में पहुँच जाता है। वह माँ को सांत्वना देते हुए कहता है कि उस लोक में कोई रोक-टोक नहीं होगी, तथा हम पूरी आजादी से वहाँ तुम्हें मिल सकेंगे। वहाँ हम तेरी गोद में खेलेंगे। तुझे कंधे पर उठाकर इधर-उधर मस्ती करेंगे। वह पुन: माँ को समझाते हुए कहता है कि उस लोक में बहुत आनंद हैं।

विशेष – (i) इन पंक्तियों में सांकेतिक रूप से लाल अपनी माँ को बता देता है कि उन्हें फांसी की सजा मिल गई है। अतः अब वे मरकर दूसरे लोक में ही माँ से मिलेंगे।
(ii) भाषा सहज, सरल तथा काव्यात्मक है। शैली भावात्मक है।

8. जिस दिन तुम्हें यह पत्र मिलेगा उसके ठीक सवेरे मैं बाल-अरुण के किरण-पथ पर चड़कर उस ओर चला जाऊँगा। में चाहता तो अंत समय तुझसे मिल सकता था, मगर इससे क्या फ़ायदा! मुझे विश्वास है, तुम मेरी जन्म-जन्मांतर की जननी ही रहेगी। मैं तुमसे दूर कहाँ जा सकता हूं! माँ! जब तक पवन साँस लेता है, सूर्य चमकता है, समुद्र लहराता है, तब तक कौन मुझे तुम्हारी करुणामयी गोद से दूर खींच सकता है।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा रचित कहानी ‘उसकी माँ’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में युवकों के बलिदान एवं उनके परिवार जनों के त्याग का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक ने लाल के डस पत्र का वर्णन किया है जो उसने जेल से अंतिम बार अपनी माँ को लिखा था। लाल का चाचा लाल की माँ को यह पत्र पढ़कर सुनाता है । लाल ने अपनी माँ को संबोधित करके इस पत्र में लिखा था कि माँ, जिस दिन तुम्हें मेरा यह पत्र मिलेगा उसी दिन सुबह वह प्रभातकालीन सूर्य के किरणों रूपी रथ पर सवार होकर दूसरे लोक चला जाएगा, अर्थात उसे फाँसी हो जाएगी।

वह कहता है कि अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त कर वह उससे मिल सकता था पर उसे इस मिलन में कोई लाभ प्रतीत नहीं हो रहा था। उसे विश्वास है कि उसकी माँ अनेक जन्मों में भी उसकी माँ ही रहेगी। अतः वह उसे समझाता है कि वह उससे कहीं दूर नहीं जा रहा है। वह उसे विश्वास दिलाता है कि जब तक वायु बह रही है, सूर्य अपना प्रकाश फैला रहा है, सागर लहरा रहा है तब तक उसे उसकी ममताभरी गोद से कोई दूर नहीं कर सकता। भाव यह है कि वह सदा उस माँ का बेटा बनकर ही जन्म लेना चाहता है।

विशेष – (i) इन पंक्तियों में भारतीय पुनर्जन्म के सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया है।
(ii) देश-प्रेमी युवक अपनी माँ से मिलने के लिए भी ब्रिटिश सरकार का ऊहसान नहीं लेना चाहते थे। अतः लाल माँ से अंतिम बार भी मिलने नहीं आया था।
(iii) भाषा, सहज, सरल काव्यमय तथा शैली भावपूर्ण है।

Hindi Antra Class 11 Summary

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