CBSE Class 12 Hindi Elective Rachana वाचन
वाचन-कौशल (Speaking Skill)
वाचन या बोलना भाषा का वह रूप है जिसका प्रयोग सर्वाधिक होता है। वाचन में दक्षता लाने के लिए इसके विभिन्न रूपों का अभ्यास करना पड़ता है। वाचन के दो रूप हैं : 1 . मौन वाचन, 2 . सस्वर वाचन।
मौखिक अभिव्यक्ति में कुशलता प्राप्त करने के लिए सस्वर वाचन का अभ्यास आवश्यक है।
वाचन में निम्नलिखित गतिविधियाँ शामिल हैं :
- भाषण
- सस्वर कविता पाठ
- वार्तालाप और उसकी औपचारिकता
- कार्यक्रम-प्रस्तुति
- कथा-कहानी अथवा घटना सुनाना
- परिचय देना
- भावानुकूल संवाद वाचन
- चित्रों पर आधारित वर्णन
- चित्र-कथा का वर्णन
- निर्धारित विषय पर बोलना
- हास्य-प्रसंग
- सिनेमा की कहानी सुनाना आदि।
कुल तीन प्रश्न पूछे जा सकते हैं :
टिप्पणी : जब परीक्षार्थी बोलना आरंभ करे तो परीक्षक कम-से-कम हस्तक्षेप करे।
नमूना-1 : भाषण
भाषण वाचन (बोलने) का उत्कृष्ट रूप है। भाषण देने से पूर्व निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए :
- प्रारंभ में पूरा भाषण लिखकर याद कर लेना चाहिए।
- भाषण के मुख्य बिंदुओं को निश्चित कर लेना चाहिए।
- भाषण की भाषा सरल एवं रोचक होनी चाहिए।
- भाषण के प्रारंभ में संबोधनों का प्रयोग करना चाहिए।
- समय-सीमा का ध्यान रखना चाहिए।
- भाषण देते समय भाव-भंगिमा का भी प्रदर्शन करना चाहिए।
परीक्षक इन्हीं बिन्दुओं पर परीक्षार्थी का मूल्यांकन करेगा।
विषय : चरित्र-निर्माण में साहित्य का योगदान
आदरणीय अध्यापक वर्ग एवं मेरे प्रिय मित्रो !
मैं आपके सम्मुख ‘चरित्र निर्माण में साहित्य के योगदान’ विषय पर अपने विचार प्रकट कर रहा हूँ।
‘ज्ञानराशि के संचित कोश का नाम साहित्य है।’ साहित्य का मानव जीवन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसका प्रमुख कारण है कि साहित्य के अंदर मानव-जीवन ही प्रतिबिंबित रहता है। साहित्य मानव के ज्ञान का भंडार है। अपने मूल रूप से मानव जिन विचारों और भावों को परंपरा से संचित करता आया है, वे ही भाषा में लिपिबद्ध होकर साहित्य में संचित होते हैं।
साहित्य के रसास्वाद में मस्तिष्क का पोषण होता है। यदि साहित्य रूपी भोजन मस्तिष्क को प्राप्त न हो तो शनै: शनै: मस्तिष्क निष्क्रिय हो जाता है। मस्तिष्क को स्वस्थ और क्रियाशील रखने के लिए साहित्य का अध्ययन आवश्यक है। विकृत साहित्य मस्तिष्क को दूषित बना देता है। जहाँ समाज ही साहित्य का जन्मदाता है, वहीं साहित्य भी समाज को प्रेरणा और नया रूप देता है। अत: जो समाज जितना ही समृद्ध एवं विकसित होगा, उसका साहित्य भी उतना समृद्ध एवं विकसित होगा।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे अपने चरित्र में ईश्वरीय गुणों का सौंदर्य विरासत में मिला है। अतः मनुष्य दिव्य एवं चरित्रवान है। समाज के नियम उसके व्यक्तित्व को जटिल बना देते हैं। हिंसा, प्रतिहिंसा, स्वार्थ, शोषण, अत्याचार आदि प्रवृत्तियाँ समाज की ही देन हैं। इनसे उनमें असुरत्व आ जाता है। मानव स्वभाव से देवतुल्य है, मगर जमाने के छल-प्रपंच और परिस्थितियों के वशीभूत होकर वह अपना देवत्व खो बैठता है। साहित्य इसी देवत्व को अपने स्थान पर प्रतिष्ठित करता है। वह यह कार्य उपदेशों से नहीं, बल्कि अपने हृदय के भावों को स्पंदित करके, मन के कोमल तारों पर चोट लगाकर प्रकृति से सामंजस्य उत्पन्न करके करता है। बिहारी के इस दोहे ने राजा जयसिंह की काम-योग मदांधता को तिरोहित कर दिया था :
“नहिं पराग नहि मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल
अलि कली ही सों बिंध्यों आगे कौन हवाल।”
तुलसीदास का ‘रामचरितमानस’ तो मानव-चरित्र-निर्माण की आधारशिला बन गया है। इसने हमारे सोचने-समझने की दिशा को ही बदल दिया है। प्रत्येक पात्र का चरित्र हमें दिशा-निर्देश देता-सा प्रतीत होता है। श्रीराम का चरित्र आदर्श एवं प्रजावत्सल राजा के रूप में, लक्ष्मण का चरित्र आदर्श भाई के रूप में, माता-सीता का चरित्र आदर्श पत्नी के रूप में तथा हनुमान का आदर्श सेवक के रूप में समाज में प्रतिष्ठा पा चुका है। साहित्यकार अपने साहित्य के माध्यम से समाज को दिशा दिखाता है। वह हमें हर प्रकार के अन्याय से जूझने की प्रेरणा देता है। रामविलास शर्मा के शब्दों में :
“साहित्य का पांचजन्म समरभूमि में उदासीनता का राग नहीं सुनाता। वह मनुष्य को भाग्य के आसरे बैठने और पिंजरे में पंख फड़फड़ाने की प्रेरणा नहीं देता। इस तरह की प्रेरणा देने वालों के पंख वह कतर देता है।”
साहित्यकार तो प्रजापति की भूमिका का निर्वाह करता है। वह व्यक्ति के चरित्र-निर्माण में महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। उसका उत्तरदायित्व अत्यंत महान है। महादेवी वर्मा लिखती हैं :
धूल पोंछ कांटे मत गिन छाले मत सहला
मत ठंडे संकल्प आँसुओं से तू बहला,
तुझसे तो यदि अन्नि-स्नान यह प्रलय महोत्सक
तभी मरण का स्वाति-गान जीवन गएएा।
साहित्य तो व्यक्ति को कर्म करने के लिए प्रेरित करता है। कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ व्यक्ति को कर्मवीर बनाने की प्रेरणा इन शब्दों में देते हैं :
“देखकर बाधा विविघ, बहु विज्न घबराते नडीं।
भूलकर वे दूसरों का, मुँह कभी ताकते नहीं “
इस प्रकार साहित्य व्यक्ति के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। साहित्य की भूमिका अत्यंत विस्तृत है।
नमूना-2 : सस्वर कविता पाठ
सस्वर कविता-पाठ में निम्नलिखित बिंदुओं पर मूल्यांकन किया जाएगा-
- कविता का प्रभावपूर्ण सस्वर वाचन।
- शुद्ध उच्चारण।
- सही स्वराघात-बलाघात, आरोह-अवरोह का निर्वाह।
- कविता में उचित अनुतान, यति, गति आदि पर ध्यान।
- कविता के रस के अनुरूप चेहरे पर भावाभिव्यक्ति।
- आवाज का सही सुनना।
कविता के उदाहरण-
1. तोड़ती पत्बर
वह तोड़ती पत्थर
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर-
वह तोड़ती पत्थर।
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार,
श्याम तन ? भर बँँधा यौवन,
नतनयन, प्रिय कर्म-रत-मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार
सामने तरु मलिका अद्टालिका, प्राकार।
चढ़ रही थी शूप
गरमियों के दिन
दिवा का तमतमाता रूप,
उठी झुलसती हुई लू
रुई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगी छा गई
प्रायः हुई दुपहर-
वह तोड़ती पत्थर।
देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्न तार;
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार
एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा-
‘मैं तोड़ती पत्थर।’
2. कर्मबीर
देखकर बाधा विविध बहु विए घराबते नहीं,
रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं।
काम कितना ही कठिन हो, किंतु उकताते नहीं,
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं।
हो गए इक आन में उनके बुरे दिन भी भले,
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले-फले॥
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं,
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं।
आज-कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं,
यत्न करने में कभी जो जी चुराते हैं नहीं।
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके किए,
वे नमूना आप बन जाते हैं, औरों के लिए।
सब तरह से आज जितने देश हैं फूले-फले,
बुद्धि, विद्या, धन, विभव के हैं जहाँ डेरे डले।
वे बनाने से उन्हीं के बन गए इतने भले,
वे सभी हैं हाथ से ऐसे सपूतों के पले।
3. ग्लोळल वारीज
‘ग्लोबल वार्मिग’, ‘ग्लोबल वार्मिग’
मच रहा है चारों ओर हाहाकार। तप उठी है धरती,
जल-प्रलय होगा संसार।
मनुष्य द्वारा किए प्रदूषण के कारण
पिघल उठेंगे सब हिम-पर्वत
धरातल के तापमान में हो जाएगी इतनी वृद्धि
कि डूब जाएगी उसमें सारी धरती।
बर्फराशियाँ पिघल जाएँगी
बिगड़ जाएगा पृथ्वी का संतुलन।
वायुमंडल में अगर हो गई CO<sub>2</sub> दुगुनी
बढ़ जाएगी मनुष्य की मुसीबत उतनी
हे मनुष्य ! अब तो तू जाग जा,
धरती को बर्बाद होने से बचा।
नियंत्रित कर ले प्रदूषण सारा,
धरती को कर दे हरा-भरा और प्यारा।
नमूना-3 : वाद-विधाद
- वाद-विवाद का विपय पहले से ही निर्धारित कर लिया जाता है।
- इसमें एक वक्ता पक्ष में तथा दूसरा वक्ता विपक्ष में तर्क प्रस्तुत करता है।
- वक्ता अपना पक्ष तो मजबूती से रखता है, पर विपक्षी के तकों का खंडन करता है।
- निर्धारित समय का पालन आवश्यक है।
- मूल्यांकन में तकों, अभिव्यक्ति तथा वोलने के ढंग को ध्यान में रखा जाएगा।
उदाहरण-
देश के विकास के लिए हिंदी आवश्यक
पक्ष में : माननीय अध्यक्ष महोदय,
मैं देश के विकास के लिए हिंदी की आवश्यकता के पक्ष में बोल रहा हूँ। हिंदी हमारे देश की राष्ट्रभाषा एवं राजभाषा है। हमें इसे अपनाना ही होगा। हिंदी जन-जन की भाषा है। हम अपने विचार हिंदी भाषा में कुशलतापूर्वक प्रकट कर सकते हैं। विदेशी भाषा से हमारी उन्नति कभी नहीं हो सकती।
हमारी संस्कृति संस्कृत और हिंदी के माध्यम से ही विकसित हुई है। हमें अपनी संस्कृति की रक्षा करनी है तो हिंदी को अपनाना ही होगा। हिंदी के अभाव में हमारी संस्कृति दम तोड़ देगी। भारत की अधिकांश जनसंख्या हिंदी बोलती और समझती है। अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या पाँच प्रतिशत से अधिक नहीं है अतः यह भाषा हमारी नहीं हो सकती। अंग्रेजी को अपनाना हमारी मानसिक गुलामी का परिचायक है। इससे हममें आत्महीनता की भावना विकसित होती है। हमें अपनी हिंदी भाषा पर गर्व होना चाहिए।
विपक्ष में : माननीय अध्यक्ष महोदय,
मेरे पूर्व वक्ता ने हिंदी की वकालत करते हुए कई दलीलें दी हैं, पर ये दलीलें पहले भी कई बार दी जा चुकी हैं। अब उनमें दम नहीं रह गया है। संविधान निर्माताओं ने हिंदी को राजभाषा बनाने का निर्णय पन्द्रह वर्ष के लिए स्थगित रखा था। कारण था-हिंदी में राजकाज चलाने की क्षमता का अभाव। आज भी स्थिति यह है कि अंग्रेजी के बिना राज-काज नहीं चल सकता। अतः अंग्रेजी की आवश्यकता बनी हुई है।
अब भारत में अंग्रेजी पढ़े-लिखे व्यक्तियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। सभी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़ाना चाहते हैं। क्यों ? वे जानते हैं कि भविष्य में अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ने वाला है। अंग्रेजी विश्व की भाषा है जबकि हिंदी केवल भारत की भाषा है। हमें विश्व नागरिकता की ओर बढ़ना है तो अंग्रेजी सीखनी और प्रयोग करनी होगी। मैं पूर्व वक्ता की इस बात से कतई सहमत नहीं हूँ कि-अंग्रेजी से हमारी संस्कृति दम तोड़ देगी। संस्कृति का विकास किसी भी भाषा से हो सकता है। अत: अंग्रेजी भाषा के महत्व को नकारा नहीं जा सकता।
वाद-विवाद के कुछ अन्य विषय इस प्रकार हो सकते हैं –
(क) विद्यार्थियों को दूरदर्शन से दूर रहना चाहिए।
(ख) हमारे देश में गरीबी का प्रमुख कारण जनसंख्या वृद्धि है।
(ग) हिंसा पर अहिंसा की विजय होती है।
(घ) मीडिया की भूमिका आवश्यक है।
नमूना-4 : लेख का वाचन
1. नियमित टहलना-स्वस्थ जीवन का आधार
पैदल चलना हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है। पैदल चलने से हमारे तन व मन को सुरक्षा मिलती है। सुबह-शाम नियमित सैर करने से हमारा शरीर सक्रिय रहता है। शरीर के स्वस्थ व सक्रिय रहने से हमारा मन भी अच्छा रहता है। मन अच्छा रहने से शरीर बीमारियों की गिरफ्त में कम आ पाता है और स्वस्थ शरीर तथा स्वच्छ मन से बढ़कर सौभाग्य और क्या हो सकता है ? इसलिए स्वास्थ्य विशेषज्ञ शरीर के लंबे समय तक स्वस्थ रहने के लिए नियमित रूप से पैदल चलने की सलाह देते हैं और प्रातःकालीन पैदल चलना तो शरीर व मन के स्वास्थ्य के लिए किसी वरदान से कम नहीं होता।
विशेषज्ञ सेहत में सुधार के लिए प्रतिदिन 6000 कदम और वजन कम करने के लिए 10,000 कदम चलने की सलाह देते हैं। वर्ष 2000 में किए गए एक शोध के अनुसार, नियमित रूप से सैर करना प्रति वर्ष सेहत पर किए जाने वाले खर्च में से 330 डॉलर यानी 20 हजार रुपये तक बचा सकता है। पहले के समय में नियमित पैदल चलना प्रत्येक की दिनचर्या में सम्मिलित था; जबकि आजकल तो छोटे बच्चे भी उतना पैदल नहीं चल पा रहे हैं, जितना पहले चला करते थे। प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, सन् 1970 के दशक में 66 प्रतिशत बच्चे पैदल स्कूल जाते थे; जबकि वर्तमान समय में यह सिर्फ 13 प्रतिशत है और इसी कारण पहले की तुलना में वर्तमान समय में बच्चे अधिक बीमार पड़ते दिखते हैं।
शोधकर्त्ताओं की दृष्टि में पैदल चलने के चलन का कम होना दुर्भाग्यपूर्ण है; क्योंकि अब लोग पैदल चलने को छोटा काम समझते हैं और बाइक, कार आदि में घूमने में अपनी शान समझते हैं। कुछ अध्ययनों के अनुसार, प्रति सप्ताह 3 से 5 घंटे पैदल चलना कैंसर से पीड़ित लोगों में जीवन-प्रत्याशा में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि करता है। वहीं प्रतिदिन 1 घंटे की सैर और 1500 कैलोरी का सेवन करने वाली महिलाएँ इसके द्वारा अपना वजन नियंत्रित रख सकती हैं।
इसी तरह 90 मिनट तक प्रति सप्ताह पैदल चलने वाले प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों में जीवन-प्रत्याशा में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि होती देखी गई हैं। जो महिलाएँ नियमित सैर करती हैं, उनमें कोलोन कैंसर की आशंका व्यायाम या सैर न करने वाली महिलाओं की तुलना में 31 प्रतिशत तक कम हो जाती है। सुबह सैर करने के फायदे भी दोगुने होते हैं, इससे शरीर को कैल्शियम व विटामिन-डी का स्तर सुधारने में बहुत मदद मिलती है।
शोध अध्ययन यह बताते हैं कि जो लोग हर सप्ताह 6 से 9 मील तक चलते हैं, उनमें बढ़ती उम्र के साथ याददाश्त कम होने की डिमेन्शिया जैसी समस्या की आशंका कम हो जाती है। डिमेन्शिया एक तंत्रिका तंत्र संबंधी समस्या है, जिसमें धीरे-धीरे व्यक्ति की याददाश्त कमजोर होने लगती है और वह संज्ञानात्मक कार्य करने में कठिनाई अनुभव करने लगता है। ऐसा व्यक्ति धीरे-धीरे अपने काम करने के लिए दूसरों पर निर्भर होने लगता है, लेकिन नियमित सैर के माध्यम से इन व्यक्तियों की स्मृति क्षमता में सुधार होते देखा गया है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, नियमित चलने से होने वाला शारीरिक व्यायाम हिप्पोकेंपस के आकार को बढ़ाने में मदद करता है; जबकि एक गतिहीन जीवनशैली हिप्पोकैंपस के आकार को कम करती है, जिससे याददाश्त कमजोर हो जाती है। सुबह-शाम सैर करने की प्रक्रिया एंडोरफिन्स नामक न्यूरोपेप्टाइड्स को स्नावित करती है, जिससे शरीर को आराम मिलता है और बेचैनी व चिड़चिड़ेपन जैसे लक्षणों में भी सुधार होता है।
प्रतिदिन 30 मिनट की सैर हृदय रोग के खतरे को भी कम करती हैं साथ ही इससे तनाव. कोलम्ट्रॉल और ब्लडप्रेशर पर काबू पाने में भी मदद मिलती है। आयरिश वैज्ञानिकों के अनुसार, हृदय रोगों के जोखिम को कम करन क लिए पैदल चलना, विशेषकर वयस्कों के लिए सबसे अच्छा व्यायाम है।
2. रोकें भोजन की बर्बादी
शादियों में खाने की बर्बादी रोकने के लिए दिल्ली सरकार ने एक पॉलिसी बनाने का निर्णय किया है। मंगलवार को उसने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह विवाह समारोहों में मेहमानों की संख्या सीमित करने और कैटरिंग सिस्टम को दुरुस्त बनाने पर विचार कर रही है। दिल्ली के मुख्य सचिव विजय कुमार देव ने जस्टिस मदन बी. लोकुर की बेंच को बताया कि कोर्ट के 5 दिसंबर के आदेश में उठाए गए इस मुद्दे पर सरकार ने गंभीरता से चर्चा की है।
इस आदेश में कोर्ट ने शादी समारोहों में खाने और पानी की बर्बादी पर चिंता व्यक्त की थी। बेंच ने मुख्य सचिव को अगले 6 हफ्ते के अंदर इस मामले में पॉलिसी तैयार करने का आदेश दिया है। पिछले कुछ वर्षों में शादियों में तामझाम काफी बढ़ा है। शादियाँ अपनी हैसियत दिखाने का जरिया बन गई हैं। इस अवसर पर खानपान में भी खूब इजाफा हुआ है, लेकिन उसका एक बड़ा हिस्सा प्रायः बेकार पड़ा रह जाता है।
अक्सर लोग अपनी आवश्यकता से अधिक खाना ले लेते हैं और बाद में कचरे में फेंक देते हैं। भारत जैसे देश में, जहाँ लगभग 19 करोड़ लोग रोज भूखे पेट हने को मजबूर हैं, भोजन की बड़े पैमाने पर बर्बादी एक त्रासदी है। मगर शादी जैसे सामाजिक मसले में हस्तक्षेप करने का साहस आम तौर पर सरकारें नहीं करती हैं। अब अगर दिल्ली सरकार यह कदम उठा रही है तो उसके साहस की प्रशंसा की जानी चाहिए। यह काम बहुत आसान नहीं है। सबसे पहले तो लोग इसका यही कहकर विरोध कर सकते हैं कि सामाजिक परंपराओं में सरकार कैसे दखल दे सकती है। लोगों ने तो इसी नाम पर सीमित मात्रा में पटाखा जलाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियाँ उड़ा दीं।
मेहमानों की संख्या सीमित करने का विचार बहुत व्यावहारिक नहीं लगता। सवाल है कि किस आधार पर संख्या तय की जाएगी ? लोग इसमें भी कई छिद्र निकाल लेंगे। हाँ, यह नियम बनाया जा सकता है कि सड़कों पर बारात किसी एक जगह पर निश्चित समय से ज्यादा खड़ी नहीं रह सकती। इससे ट्रैफिक जाम से कुछ राहत मिलेगी। विवाह-स्थल दिए जाने में कुछ शर्तें जोड़ दी जाएँ। आमतौर पर राजधानी में जितने भी बैंक्विट हॉल, फार्म हाउस और अन्य विवाह-स्थल हैं, वे किसी न किसी रूप में सरकार के रेगुलेशन के तहत आते हैं।
उनके लिए कई नियम बनाए जा सकते हैं। जैसे इनकी सेवा के बदले यह शर्त रखी जाए कि मेजबान बचे हुए खाने को किसी संस्था को दे देंगे। दिल्ली सरकार का यह प्रस्ताव महत्त्वपूर्ण है कि कैटरर और बेसहारा लोगों को खाना उपलब्ध कराने वाले एनजीओ के बीच एक व्यवस्था बनाई जाए। दिल्ली के अलावा और राज्यों को भी इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। सामाजिक-धार्मिक संगठन भी इस दिशा में सामने आएँ और इस मुद्दे पर लोगों में जागरूकता फैलाने का कार्य करें।
नमूना-5 : समाचार-वाचन
1. जब दिल्ली वालों को सर्दी में हुआ उर्दू से रोमांस
नई दिल्ली : छाप तिलक सब छीनी….कव्वाली का राग वारसी ब्रदर्स ने जश्ने रेख्ता में छेड़ा तो दिल्ली के नैशनल स्टेडियम में उर्दू का बड़ा फेस्टिवल परवान चढ़ चुका था। कव्वालियों के सुर जा जादू चला तो हजारों लोग झूमने लगे। युवाओं की तादाद बहुत थी। सर्द मौसम में दिल्ली में गर्माहट लाने वाले जश्ने रेख्ता का यह पांचवां एडिशन है। रविवार को आखिरी दिन होने प़र काफी तादाद में लोगों की पहुंचने की संभावना है। रेख्ता पाउंडेशन का ये जश्न संस्कृति का महाकुंभ बनता जा रहा है। इस बार चार बड़े हिस्सों में कार्यक्रम हो रहे हैं।
दो शायर एक क्रहानी : गीतकार जावेद अख्तर और शबाना आजमी ने जब दो शायरों की कहानी सुनाई तो सुनने वाले किसी और वक्त में जा चुके थे। शायर जां निसार अख्तर और कैफी आजमी की शायरी और जिंदगी पर उनके अपने बच्चों से अच्छा भला कौन बता सकता है। दोनों ने उनकी नज्में पढ़ीं।
खतरे में नहीं है उर्दू : जावेद जाफरी के साथ आतिका अहमद की बातचीत शुरू हुई तो लोग वाह-वाह कर उठे। जावेद जाफरी अपने व्यंग्य के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कहा कि लोग कहते हैं उर्दू खतरे में है, मैं तो कहूँगा कि कतरे कतरे में है। आजकल नाम बदलने का सिलसिला चला है। ऐसे में अकबर इलाहबादी और मुरादाबादी जैसे शायरों का क्या होगा, सोचकर परेशान हो जाता इकबाल याद आए : उर्दू की बात हो तो अल्लामा इकबाल का जिक्र जरूर आता है। इकबाल की शायरी का अध्ययन करने वाले पौलेंड के प्रोफेसर पियोत्रे क्लोदकोवस्की ने यूरापियन नजरिये से इकबाल को पेश किया।
उनका कहना है कि मैं हिंदुस्तान में भी रहा और पाकिस्तान में भी मुझे इकबाल सूफी लगते हैं। उनकी शायरी में दार्शनिकता है। उनके साथ आए पालैंड के एम्बैसेडर एडम बुराकोवस्की ने कहा कि मैं 21 साल से हिंदी और उर्दू लिख-पढ़ रहा हूँ। जश्न में पहली बार शामिल होने पर काफी खुश दिखे। कबीर की बानी पर चर्चा : कबीर को लेकर हुई चर्चा में हिंदी के प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल और उपन्यासकार अब्दुल बिस्मिल्ला के बीच काफी जोरदार चर्चा हुई। इस बातचीत का संचालन कर रहे कबीर को चाहने वाले पत्रकार दिबांग ने कई बार चर्चा को दिलचस्प बनाया।
वास्तानगोई, नए शायर और गजलें : मुगलों के वक्त की दास्तानगोई कला को फिर से जिंदा करने वाले दास्तानगो महमूद फारुखी को यहां लोग दमसाधे सुनते रहे। इस कला की खास बात यह है कि दास्तान सुनाते हुए मंजर गढ़े जाते हैं और लोग कल्पना करते चले जाते हैं। नए शायरों को भी मौका मिला और खुली निशित में उन्होंने अपना फन दिखाया।
2. गैर लड़ालू भूमिकाओं में सेना बढ़ाएगी महिलाओं की संख्या
भाषा, हैदराबाद : आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत ने शनिवार को कहा कि सेना में ट्रांलेटर और साइबर एक्सपर्ट जैसी गैर लड़ाकू भूमिकाओं में महिलाओं की संख्या बढ़ाई जाएगी। उन्होंने डुंडीगल स्थित वायुसेना अकादमी में संवाददाताओं से कहा कि सेना पुलिस में महिलाओं की भर्ती पर भी विचार किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि हम कह रहे हैं कि हम संख्या बढ़ाने जा रहे हैं। महिलाएँ पहले से ही सेना में हैं। अब हम धीरे-धीरे उन्हें अन्य कैडरों में भी लेने जा रहे हैं। हम भारतीय सेना में महिला अधिकारियों की संख्या बढ़ा रहे हैं। उन्होंने इस संबंध में एक सवाल के जवाब में कहा कि सेना में महिलाएँ कानून और शिक्षा के क्षेत्रों में पहले से ही हैं। आर्मी चीफ ने कहा कि मैं मिलिटरी पुलिस में भी महिला जवान चाहता हूं।
सैन्य पुलिस सेवा में सैनिक के रूप में महिलाओं की भर्ती और फिर इसके बाद देखा जाएगा कि क्या भूमिका विस्तार की कोई गुंजाइश है। पिछले महीने के शुरू में पुणे में नेशनल डिफेंस एकेडमी में 135 वें कोर्स की पासिंग आउट परेड के बाद उन्होंने कहा था कि सेना अभी लड़ाकू भूमिकाओं में महिलाओं को लेने के लिए तैयार नहीं है। ग्रेजुएट अधिकारियों में लड़ाकू पायलट प्रिया शर्मा भी शामिल थीं जो भारतीय वायुसेना की सातवीं महिला लड़ाकू पायलट और राजस्थान के झुंजुनू हिले से ताल्तुक रखने वाली तीसरी महिला लड़ाकू पायलट हैं।
नमूना-6 : चित्र-बर्णन
नीचे बने चित्र को देखकर इसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए :
नमूना-7 : चित्र-कथा वर्णन
नीचे बने चित्रों को देखकर कथा का वाचन कीजिए-
नमूना-8 : चलचित्र (सिनेमा) की कहानी कहना
1. फिल्म का नाम : स्पाइडर मैन इन टु द स्पाइडर-वर्स
स्पाइडर मैन इन टु द स्पाइडखर्स एक एनिमेशन फिल्म है. जिसमें बेहतरीन एक्शन दिखाया गया है, तो स्पाइडर मैन के फैंस के लिए आधा स्पाइडर मैन मौजुद है। यह फिल्म कांमिक्स की कहानी पर आधारित है। फिल्म की कहानी के मुताबिक माइल्स मोरेल्स न्ययॉर्क के ब्रूकलिन में रहता है। उसकी अपने पुलिस ऑफिसर पापा से ज्यादा नहीं पटती, इसलिए वह अपने अंकल के ज्यादा करीब है। एक दिन माइल्स अंकल के साथ उनके एक ठिकाने पर गया, जहाँ उसे एक रेडियो एक्टिव मकड़ी काट लेती है। उसके बाद उसे खुद के स्पाइडर मैन बनने का अहसास होता है।
उधर असली स्पाइडर मैन यानी कि पीटर पार्कर की भिड़ंत विलन किंगपिन से होती है, जो कि सुपर कोलाइडर मशीन की मदद से दूसरे ब्रह्गण्ड के लोगों को इस दुनिया में लाना चाहता है। इस लड़ाई में पीटर पार्कर मारा जाता है, लेकिन उससे पहले वह माइल्स को किंगपिन को रोकने की जिम्मेदारी सौंप जाता है। माइल्स की परेशानी यह है कि वह अभी अपनी शक्तियों का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर पाता। तभी एक दिन उसकी मुलाकात एक और स्पाइडर मैन से होती है। दरअसल कोलाइडर मशीन में हुए धमाके की वजह से दूसरे ब्रहाण्ड का स्पाइडर मैन इस दुनिया में आ गया था।
वह माइल्स को स्पाइडर मैन बनने की ट्रेनिंग देता है। उसके अलावा दूसरे ब्रहांडों से कुछ और स्पाइडर मैन और वीमेन भी इस दुनिया में आ गए हैं। इन सबके सामने बस एक ही मिशन है कि उन्हें किंगपिन की सुपर कोलाइडर मशीन को बर्बाद करना है और मशीन बर्बाद होने से पहले अपने-अपने ब्रहाण्ड में वापस जाना है। दूसरे ब्रहाण्ड से आया पीटर पार्कर खुद यहाँ रक कर बाकी स्पाइडर मैन और वीमेन को वापस भेजने का बीड़ा उठाता है। इस लड़ाई का क्या अंजाम होता है ? यह जानने के लिए आपको सिनेमाघर जाना होगा।
फिल्म के डायरेक्सर्स ने स्पाइडर मैन के चाहने वालों को बेहतरीन सरप्राइज दिया है। बेशक इतने सारे स्पाइडर मैन और बीमेन को एक साथ पर्द पर देखना फैंस के लिए किसी ट्रीट से कम नहीं था। अलग-अलग खूबियों से लैस ये सारे सुपर हीरो पर्द पर कमाल दिखाते हैं, तो फैंस हैरान रह जाते हैं। फिल्म में एनीमेशन का बेहतरीन इस्तेमाल हुआ है, जिसके चलते कामिक्स के कैरक्टर भी काफी हद तक आरिजिल लगते हैं। वहीं सुपर कोलाइडर मशीन के चलने और लड़ाई के सीन भी दिलचस्य हैं। फिल्म के हिंदी वर्जन में मजेदार डबिंग हुई है। फिल्म को एन्जॉय करने के लिए इसका 3 डी वर्जन देखें। स्पाइडर मैन के ढेरों अवतारों से लैस इस फिल्म को दुनियाभर में पसंद किया जा रहा है।
2. फिल्म का नाम : एक्वामैन
समंदर की रोमांचक दुनिया
डीसी कॉमिक्स के करैक्टर एक्वामैन पर बेस्ड फिल्म एक्वामैन का रिलीज से पहले ही जबर्दस्त क्रेज है। इस फिल्म की रिलीज डेट काफी पहले ही 21 दिसंबर अनाउंस कर दी गई थी। ऐसे में, इसका मुकाबला शाहरखख खान की अगले हफते रिलीज हो रही महत्वाकांक्षी फिल्म जीरो से होता। लेकिन शायद 14 दिसंबर की रिलीज डेट को कोई और हिंदी फिल्म रिलीज नही होने की वजह से एक्वामैन को इंडिया में एक हफ्ता प्रीपॉन कर दिया गया जबकि अमेरिका में यह फिल्म अगले हफ्ते ही रिलीज होगी।
फिल्म की कहानी कुछ यूं है कि अमेरिका में एक लाइट हाऊस का रखवाला थॉमस एक दिन समंदर में आए एक तूफान के दौरान एक राज्य अटलांटिस की मल्लिका अटलाना की जान बचाता है, जो अपने देश से भाग कर आई है। उन दोनों से प्यार हो जाता है और उनके बेटे आर्थर का जन्म होता है। कुछ समय बाद अटलांटिस के राजा को अटलाना की खबर लग जाती है। ऐसे में अपने बेटे और पति की हिफाजत की खातिर अटलाना अपने देश लौट जाती है।
आर्थर का सौतेला भाई ओरम अटलांटिस का राजा बन जाता है। वह धरती पर बढ़ते प्रदूषण के चलते समंदर को हो रहे नुकसान का हवाला देकर धरती वालों के खिलाफ जंग छंड़ना चाहता है। क्या आर्थर ओरम को मात देकर धरती को बचा पाता है ? यह जानने के लिए आपको सिनेमा जाना होगा। फिल्म के डायरेक्टर जेम्स वान ने बेहद रोमांचक कहानी के माध्यम से समंदर में बढ़ रहे प्रदूषण के मुद्दे को छुआ है और लोगों को संदेश देने की कोशिश की है कि अगर हम नहीं माने, तो एक दिन समंदर अपना बंला लेगा और तब हमें बचाने कोई एक्वामैन भी नहीं आएगा। समंदर के भीतर की दुनिया और वहाँ के राज्य काफी जबरदस्त लगते हैं। समंदर के भीतर बसे राज्यों की जंग देखकर आप हैरान रह जाएँगे। फिल्म की कहानी का करीब 90 फीसदी हिस्सा पानी के भीतर है, जो कि आपको रोमांचित करता है।
इस फिल्म का 3 डी वर्जन बेहद जबर्दस्त है। खासकर समंदर में लड़ाई के सीन बेहद दिलचस्प लगते हैं। पूरी फिल्म के दौरान आपको लगेगा कि आप समंदर की रोमांचक दुनिया में पहूँच गए हैं। इस फिल्म को पूरी तरह एन्जॉय करने के लिए इसे 3 डी में ही देखें। इस फिल्म को आईएमडीबी पर $8.2$ रेटिंग मिली है।
3. फिल्म का नाम : जीरो
कलाकार : शाहरुख खान, कटरीना कैफ, अनुष्का शर्मा, मोहम्मद जीशान अय्यूब, तिग्मांशु धूलिया, अभय देओल, बृज्जेंद्र काला, शीबा चड्ठा।
फिल्म की कहानी : ‘जीोो’ मेरठ में रहने वाले बउआ सिंह (शाहरुख खान) की कहानी है। शहर के मशहूर ठिकाने घंटाघर पर रहने वाले बउआ की उम्र 38 साल हो चुकी है। लेकिन अपने छोटे कद की वजह से अभी तक उसकी शादी नहीं हो पाई है। वह अपने दोस्त गुड्डू (मोहम्मद जीशान अय्यूब) के साथ मिल कर अपने लिए दुल्हन तलाशता रहता है। एक मैरिज ब्रोकर से बउआ को आफिया यूसुफजई भिंडर (अनुष्का शर्मा) के बारे में पता लगता है।
साइंटिस्ट आफिया को सेरेब्रल पाल्सी की प्रॉब्लम है। आफिया और बडआ करीब आते हैं, लेकिन बडआ सुपरस्टार बबीता कुमारी (कैटरीना कैफ) से मिलने के चक्कर में आफिया को शादी के मंडप में छोड़कर भाग जाता है। बाद में जब बउआ का प्यार आफिया के लिए दोबारा जागता है, तब वह उसे भाव नहीं देती। क्या बउआ अपनी माशूका को दोबारा हासिल कर पाता है ? यह जानने के लिए आपको सिनेमाघर जाना होगा।
देसी फ्लेवर की फिल्मों के उस्ताद माने जाने वाले आनंद एल राय ने मेरठ के ठेठ देसी इलाके घंटाघर से फिल्म की मजेदार शुरुआत की, जो दर्शकों में एक और मजेदार फिल्म की उम्मीद जगाती है, लेकिन अफसोस कि वह बउआ जैसे शातिर इंसान और विकलांग आफिया के बीच लव स्टोरी को सही तरह से पका नहीं पाए। फर्स्ट आफ में बडआ उसके दोस्तु गुड्डू और मेरठ के सीन्स आपको गुदगुदाते हैं, लेकिन आफिया और बउआ के लंबे सीन्स आपको बोर करने लगते हैं। इंटरवल तक आप सेकंड हाफ का इंतजार करते हैं, लेकिन सेकंड हाफ में न्यूयॉर्क पहुँची कहानी पूरी तरह पटरी से उतर जाती है।
कैटरीना के साथ बउआ के सीन्स फिर भी कुछ मजेदार लगते हैं, लेकिन आफिया को दोबारा मनाने की कोशिश में जुटे बउआ के तमाम सीन्स आपको हजम नहीं हो पाएँगे। मसलन आपको सिनेमा से निकल कर यह कतई समझ नहीं आएगा कि घर से भाग गए बउआ के पास इतना पैसा कहाँ से आता है कि वह मुंबई से लेकर न्यूयॉर्क तक पहुँच जाता है। फिल्म के सेकंड हाफ में कमजोर कहानी आपको निराश करती है।
फिल्म में शाहरखख खान ने बौने के रोल में बढ़िया एक्टिंग की है। रोमांटिक फिल्मों के किंग ने मेरठ के देसी लौंडे के रोल में दर्शकों को खूब हँसाया है। वहीं अनुष्का ने आफिया ने चैलेंजिंग रोल में अच्छी एक्टिंग की है। कैटरीना का फिल्म में बहुत ज्यादा रोल नहीं है।
नमूना-9 : कहानी कहना
एक बार मोहम्मद साहब भोजन कर रहे थे। तभी एक भिखारी आया और अपना कटोरा मोहम्मद साहब के सामने फैलाकर कहने लगा अल्लाह के नाम पर कुछ दे दो। मोहम्मद साहब खाना खाते रहे। भिखारी बोला : कुछ खाने को ही दे दो। मोहम्मद साहब अब भी अपना खाना खाते रहे। जब एक रोटी बाकी रह गई, तब भिखारी बोला : अब एक रोटी तो दे दो। जब आधी रोटी रह गई तब फिर भिखारी बोला : आधी ही दे दो। लेकिन मोहम्मद साहब ने उसको कुछ भी नहीं दिया।
भिखारी बोलने लगा : कैसा आदमी है। सारी रोटी खुद खा गया। मुझे एक टुकड़ा भी नहीं दिया। मोहम्मद साहब उठे और उस भिखारी को साथ लेकर चल दिए। बाजार पहुँचे। वहां उस भिखारी से कहा : अपना ये कटोरा बेच। भिखारी का कटोरा बिकवाया। उस पैसे से कुल्हाड़ी खरीदवाई। कुल्हाड़ी खरीदने के बाद मोहम्मद साहब उस भिखारी को जंगल ले गए और भिखारी से कहा : सूखी लकड़ियाँ काट। लकड़ी कटवाने के बाद उनकी गठरी बंधवाई और भिखारी के सिर पर रखी और बाजार ले आए। लकड़ियाँ बिकवाई। अब उस भिखारी को खाने की दुकान पर ले गए और उससे कमाए पैसों से उसे खाना खिलवाया। इसके बाद मोहम्मद साहब ने उस भिखारी से कहा : ऐसा रोज करना। मेहनत करो, कर्मठ बनो, कमाओ और खाओ, भिखारी नहीं बनना।
निष्कर्ष : महानता भीख देने में नहीं बल्कि सामने वाले को इस काबिल बनाने में है कि वह किसी के आगे हाथ न फैलाएँ। चुंकि इसमें समय लगता है इसलिए व्यक्ति दान या भीख देकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं। लेकिन इससे भीखवृत्ति को बढ़ावा मिलता हैं। बेहतर होगा कि अपने जीवन में ज्यादा नहीं तो किसी एक को स्वावलंबी बनाएँ। उससे जो खुशी मिलेगी वह भीख देने की खुशी से कहीं ज्यादा होगी।
गाँधीजी चरखा संघ के लिए धन इकट्ठा करने के उद्देश्य से देश भर में भ्रमण कर रहे थे। एक दिन उड़ीसा के एक आदिवासी क्षेत्र में उनकी सभा चल रही थी। श्रोताओं के बीच एक वृद्ध महिला भी थी जिसके बाल सफेद हो चुके थे, कपड़े फटे हुए थे और कमर झुकी थी। गाँधीजी के भापण से वह बहुत प्रभावित हुई। भाषण समाप्त होने के बाद वह महिला किसी तरह भीड़ में रास्ता बनाती हुई गाँधीजी के पास तक पहुँची। उसने सबसे पहले अपनी साड़ी के पल्लू में बँधा ताँबे का एक सिक्का निकाला और गाँधी जी के चरणों में रख दिया। गाँधीजी ने सावधानी से सिक्का उठाया और उसे अपने पास रख लिया। उस समय चरखा संघ का कोष जमनालाल बजाज संभाल रहे थे।
बजाज ने हँसते हुए वह सिक्का माँगा, पर गाँधी जी ने उस वृद्ध महिला का दिया सिक्का उन्हें देने से इन्कार कर दिया। जमनालाल जी ने कहा, ‘मैं चरखा संघ के लिए हजारों रुपये के चेक संभालता हूँ। अभी आप मुझ पर एक ताँबे के सिक्के के लिए भी भरोसा नहीं कर रहे हैं। एक ताँबे के सिक्के के लिए आपकी चिता मुझे परेशान कर रही है।’ इस पर गाँधीजी ने अपने मन के उद्गार को व्यक्त करते हुए कहा, ‘ यह सिक्का हजारों से कहीं अधिक कीमती है। यदि किसी के पास लाखों हैं तो वह दो हजार देता है और उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन यह सिक्का शायद उस औरत की कुल जमा पूँजी थी।
गाँधीजी ने जमनालाल बजाज को समझाते हुए कहा कि उस वृद्ध महिला ने अपना सारा धन दान दे दिया। कितनी उदारता दिखाई. उसने कितना बड़ा बलिदान किया। इसलिए इस ताँबे के सिक्के का मूल्य मेरे लिए एक करोड़ रुपये से भी अधिक है, यह अमूल्य है। इसकी कोई कीमत नहीं है। मैं इसे अपने पास रखना चाहता हूँ ताकि मुझे हमेशा उस महान दान की याद बनी रहे।
2. बहू लक्ष्मी
एक लकड़हारा था। उसके चार बेटे थे। वे सभी आलसी और निकम्मे थे। उन्हें रोज जमीदार के यहाँ एक-एक गट्ठर लकड़ियाँ पहुँचानी पड़ती थीं। उसके बदले उन्हें एक-एक किलो अनाज मिलता था। वे अपनी सुविधा से एक-एक किलो चना ले आते थे। अपने झोंपड़े में आते ही, अपने-अपने चूल्हे पर चने को भूनते और खाकर सो जाते थे। इस तरह उनके दिन कट रहे थे।
एक दिन लकड़हारे के पड़ोसी ने उससे कहा, “तुम अपने लड़कों का विवाह क्यों नहीं करते ?”
लकड़हारा बोला-” अरे, घर में यों ही खाने का ठिकाना नहीं, लड़कों का विवाह कराकर बहुओं को क्या खिलाऊँगा ? बड़े लड़के का विवाह हुए पाँच साल बीत गए, किंतु बहू का गौना अभी तक नहीं कराया।”
पड़ोसी बोला, “हाँ भाई, मैं तो भूल ही गया था। तुम्हें बड़ी बहू का गौना अवश्य करा लेना चाहिए।”
लकड़हारा झुँझलाकर बोला, “अरे, उस कलमुँही का नाम मत लो। जिस महीने लड़के का विवाह हुआ और बहू मेरे घर आई. तभी मेरी घरवाली चल बसी। अब मैं उसे यहाँ बुलाकर घर का सत्यानाश नहीं करवाऊँगा।”
पड़ोसी ने समझाया- “भाई, मरने-जीने पर मनुष्य का क्या वश! तुम्हें अपनी बहू को अवश्य बुला लेना चाहिए। उसके भाई-भौजाई आखिर उसे कब तक अपने यहाँ रखेंगे ? बहू को न बुलाने से तुम्हारी बहुत बदनामी होगी।”
इसी तरह और लोगों ने भी लकड़हारे को बहू का गौना करा लाने को कहा। आखिर उसने अपने बड़े लड़के को बहू को लिवा लाने के लिए भेज दिया। लड़का बहू को ले आया।
बहू ने आकर देखा कि घर के स्थान पर एक टूटी-फूटी झोंपड़ी खड़ी है। वह भिखमंगों का अड्डा जैसा दिखाई देती थी। झोंपड़ी में पाँच चूल्हे बने थे। घर ने कभी झाडू का मुँह तक नहीं देखा था। कहीं चने के छिलके बिखरे थे, कहीं कूड़े-करकट का ढेर लगा था। घर की दशा देखकर बहू को रोना आ गया, पर उसने भाग्य को नहीं कोसा। वह तुरंत काम में जुट गई। उसने एक चूल्हे को छोड़कर बाकी सारे चूल्हे तोड़ डाले। एक झाड़ बनाई और घर की सफाई की।
शाम को लकड़हारा अपने लड़कों के साथ घर आया। उसने घर को साफ-सुथरा देखा तो उसका मन खुश हो गया। पर जब लड़कों को अपने-अपने चूल्हे दिखाई नहीं दिए, तो वे बिगड़ गए। एक क्रोधित होकर बोला, “यह तो आते ही घर का सत्यानाश करने लगी है। देखो न अपने पति का चूल्हा तो छोड़ दिया और हमारे सभी चूल्हे फोड़ डाले। अब एक चूल्हे पर इतने चने कौन भूनेगा ? इनको भूनने में घंटों लगेंगे। भूख के मारे हमारा दम निकल रहा है।”
बहू सब कुछ सुन रही थी। उसने एक लोटे में हाथ-पैर धोने के लिए पानी दिया और बैठने के लिए एक चटाई बिछा दी। जाड़े के दिन थे। अतः उन सबके हाथ-पैर सेंकने के लिए आग भी सुलगा दी। फिर वह ससुर से बोली, “आप लोग हाथ-पैर सेकें, तब तक मैं खाना बनाकर लाती हूँ।”
यह कहकर वह चने लेकर पड़ोसिन के यहाँ चली गई। उसने सारे चने पीसे। आधे आटे की रोटियाँ बना लीं और आधा आटा बचा लिया।
इधर वे लोग भूख के मारे छटपटा रहे थे, तभी बहू रोटी-साग लेकर घर आ गई। बरसों के बाद इन लोगों को ऐसा स्वादिष्ट भोजन मिला था। रोटियाँ बहुत थीं। सबने ढूँस-ढूँस कर खाई। अब तो बूढ़ा लकड़हारा और उसके बेटे नई बहू की चतुराई पर बहुत खुश हुए। सुबह होते ही सभी लकड़हारे लकड़ियाँ लेने जंगल को जाने लगे। बहू ने रात की बची हुई रोटी का एक-एक टुकड़ा उसको नाश्ते के लिए दिया। इससे उन लोगों को आश्चर्य हुआ। पहले तो वे एक ही शाम को सारा चना फाँक लेते थे और फिर भी उनका पेट नहीं भरता था।
अब खाने वाला और बढ़ गया फिर भी उतने ही अन्न से उन्होंने खूब खाया और सुबह का नाश्ता भी किया। उन्होंने उस लक्ष्मी जैसी बहू की खूब प्रशंसा की। शाम को जब लकड़हारे घर पहुँचे, तब उन्हें रोटी और बेसन की कढ़ी तैयार मिली। यह भेजन बहू ने रात को बचाए आधे आटे से बना लिया था। अब तो हाथ-पैर धोकर सभी तुरंत भोजन करने बैठ गए। वे सभी यह सोचने लगे कि ऐसी चतुर बहू को घर में न लाकर वे वर्षो तक व्यर्थ कष्ट उठाते रहे।
तीसरे दिन लकड़हारे जंगल को जाने लगे, तो बहू ने कहा, ” आप सब थोड़ी-थोड़ी लकड़ियाँ अपने घर के लिए भी लाएँ।” वे बहू-लक्ष्मी की बात टाल न सके। घर के लिए सभी लकड़ियों का एक-एक छोटा गट्ठर लेते आए। इन लकड़ियों को बहू ने पड़ोसियों को बेचकर घर के लिए नमक, तेल, मसाले आद् का प्रबंध कर लिया।
एक दिन बहू ने ससुर से पृछा, “आप लोगों का जमींदार मजदूरी में केवल चने ही देता है या दूसरा अनाज भी दे सकता है।” ससुर बोला, “जमींदार कोई भी अनाज एक-एक किलो दे सकता है। हम लोग तो अपनी सुविधा से चने ले आते हैं।” बहू ने कहा, “तो अब से रोज नया-नया अनाज लाया कीजिए। आज मजदूरी में चावल ले आइए।”
“बहुत अच्छा” ससुर ने कहा। उस दिन सभी मजदूरी में चावल लाए। अब तो उन लोगों को भोजन में भात, कढ़ी, साग, रोटी भी मिलने लगी। ऐसा अच्छा भोजन इन लोगों ने पहले कभी नहीं खाया था। सभी बहुत खुश हुए। बूढ़ा लकड़हारा अब उसे ‘लक्ष्मी बहू’ कहता और देवर उसे ‘लक्ष्मी भाभी’।
लकड़हारे मजदूरी में अनाज बदल-बदल कर लाते थे। अब उस घर में गेहूँ, चना, दाल तथा गृहस्थी का सभी सामान जुटने लगा। बहू रोज मजदूरी के अनाज में से आधा अनाज बचाकर रखती थी। उसने मिट्टी के छोटे-छोटे बरतन बना लिए थे। अब उस झोंपड़ी में रौनक आ गई थी।
कुछ महीने बाद बहू ने बूढ़े ससुर का मजदूरी पर जाना बंद करवा दिया। उसने उसे गाँव में ही एक छोटी-सी दुकान खुलवा दी। दुकान चल निकली और उससे अच्छी आय होने लगी। अब गाँव में उन लोगों की मान-प्रतिष्ठा भी बढ़ने लगी। उन्होंने छोटी-मोटी जायदाद भी खड़ी कर ली। उनका जीवन आनंदमय हो गया। यह सब बहू-लक्ष्मी की चतुराई और मेहनत से हुआ।
नमूना-10 : हास्य-व्यंग्य
चुटकुले –
1. मोनू : क्या हो गया भाई ?
सोनू : आज मैं घर पर पुराने कागजात देख रहा था और तभी मेरे हाथ में पत्नी का 11 वीं क्लास का रिपोर्ट कार्ड आ गया।
मोनू : हाँ तो बेहोश कैसे हो गए ?
सोनू : अरे नंबरों के नीचे रिमार्क में लिखा था, मधुरभाषी और शांतिप्रिय छात्रा।
2. पापा : तुझे लड़की वाले देखने आ रहे हैं। अपनी सैलरी ज्यादा बताना।
लड़की के पिता : कितना कमा लेते हो बेटा ?
गण्पू : अंकल, सैलरी तो दो लाख है लेकिन कट-कटाकर हर महीने 8,000 मिलते हैं।
3. गण्पू : आज मैंने दुनिया को परेशान होने से बचा लिया।
टप्पू : वह कैसे ?
गण्पू : आज अमरूद के पेड़ से एक अमरूद मेरे सिर पर गिरा। मैंने चुपचाप खा लिया। न्यूटन की तरह दुनिया को परेशान थोड़े ही किया।
4. मास्टरजी के घर में 7-8 मास्टर आ गए।
बीवी : घर में चीनी नहीं है, चाय कैसे बनाऊँ ?
मास्टर : बिना चीनी की बना दो।
चाय आते ही मास्टरजी बोले-जिसके हिस्से फीकी चाय आएगी, कल सब उसके यहाँ डिनर करेंगे। सबने चाय गटक ली।
5. एक बस पेड़ से टकराई। मौके पर पहुँचे पुलिसवाले ने ड्राइवर से पूछा : बस पेड़ से कैसे टकराई ?
ड्राइवर : मुझे कुछ नहीं पता साहब।
पुलिसवाला : याद करके बताओ हुआ क्या था ?
ड्राइवर : जी, उस दिन कंडक्टर नहीं आया था और जब बस टकराई तब मैं पीछे वाले यात्रियों से किराया ले रहा था।
नमूना-11 : टेलीफोन वार्ता
टेलीफोन आज जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गया है। कार्यालय, व्यवसाय, उद्योग आदि क्षेत्रों में टेलीफोन संं्रेषण एक सामान्य साधन है। ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब हमें टेलीफोन प्रयोग की आवश्यकता होती है। टेलीफोन पर बातचीत करना वाचन कला का एक माध्यम है। टेलीफोन वार्ता भी एक कला है। टेलीफोन वार्ता औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार की हो सकती है। दोनों ही स्थितियों में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखने की आवश्यकता है :
- टेलीफोन वार्ता का प्रारंभ अपने या टेलीफोन उठाने वाले व्यक्ति के परिचय और टेलीफोन करने का कारण बताने से किया जाना चाहिए।
- वार्तालाप के समय उपयुक्त अभिवादन और शिष्टाचारयुक्त भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- वार्तालाप यथासंभव संक्षिप्त होना चाहिए।
- गलत नंबर मिल जाने पर असुविधा के लिए खेद व्यक्त करना चाहिए।
- कक्षा में टेलीफोन वार्ता का अभ्यास कराया जाना चाहिए।
एक उदाहरण :
- अमित : हैलो ! गुरुजी प्रणाम ! मैं अमित बोल रहा हूँ।
- गुरुजी : कहो बेटे अमित क्या बात है ?
- अमित : गुरुजी, आज मुझे ज्वर आ रहा है। अत: मैं विद्यालय में आपके दर्शन करने नहीं आ पाऊँगा।
- गुरुजी : कोई बात नहीं। तुम विश्राम करो।
- अमित : धन्यवाद गुरुजी। मैं आपका आभारी रहूँगा।
उपर्युक्त प्रकारों के अतिरिक्त निम्नलिखित उपायों से भी वाचन कला का विकास एवं मूल्यांकन किया जा सकता है :
- कार्यक्रम प्रस्तुति द्वारा
- परिचय देना/परिचय प्राप्त करना
नमूना-12 : कार्यक्रम प्रस्तुति
इसमें भी वाचन-कौशल का प्रदर्शन होता है। एक उदाहरण प्रस्तुत है-
- माननीय मुख्य अतिथि एवं दर्शको-श्रोताओ ! मैं आपके सम्मुख आज की साँस्कृतिक संध्या का कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए अत्यंत हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ।
- सर्वप्रथम प्रस्तुत है -‘सरस्वती वंदना’। इसे स्कूल की ही छात्राएँ प्रस्तुत कर रही हैं।
- ‘सरस्वती वंदना’ के पश्चात् आपको अपनी हास्य-कविता से गुदगुदाने आ रहे हैं-नीरज गुप्ता।
- अब आपके सम्मुख पंजाब का प्रसिद्ध ‘भंगड़ा’ डांस प्रस्तुत हैं। इस पर आप झूम उठेंगे।
- भंगड़ा की मस्ती से बाहर निकालकर अब मैं आपको ले जा रहा हूँ-प्रकृति की गोद में। हिमाचल का लोक नृत्य आपके सम्पुख प्रस्तुत है।
- अब आप मजा लीजिए कव्वाली का। सोनू एंड पार्टी कव्वाली पेश कर रही है।
- अंत में मैं मुख्य अतिथि से निवेदन कर रहा हूँ कि वे हमें आशीर्वाद प्रदान कर कृतार्थ करें।
नमूना-13 : परिचर्चा
यह भी वाचन (बोलने) का एक रूप है।
प्रश्न मंच –
हमें डकार क्यों आती है ?
जब पेट की गैस ऊपर की ओर चढ़कर मुँह के रास्ते बाहर आती है, तब इसे डकार आना कहते हैं। जल्दी-जल्दी भोजन करने पर बहुत-सी हवा पेट में चली जाती है। जब हवा की मात्रा अधिक हो जाती है तब वह डकार के रूप में बाहर आती है। कई ठंडे पेय पदार्थों में अधिक मात्रा में गैस घुली रहती है। इन्हें पीने पर जल्दी-जल्दी डकारें आने लगती हैं। जब पेट में भोजन ठीक से नहीं पचता तब बड़ी मात्रा में गैस बनने लगती है और डकारें आने लगती हैं।
क्या कारण है कि ऊँचे स्थानों पर रहने वाले लोगों के गाल गुलाबी होते हैं ?
– ऐसा कई कारणों से होता है। वहाँ प्रकाश कम होता है, इस कारण उनकी त्वचा में मेलालिन वर्णक कम बनता. है। इस कारण त्वचा पारदर्शक रहती है। त्वचा के नीचे उपस्थित रुधिर कोशिकाएँ सतह पर झलकती हैं। ऊँचे स्थानों पर वायु-दाब की कमी के कारण लोगों के खून में लाल रुधिर कणिकाएँ अधिक पाई जाती हैं। कम तापमान के कारण त्वचा कुछ फटी हुई-सी रहती है। इन सब कारणों से त्वचा गुलाबी दिखाई देती है।
शरीर में श्वसन क्रिया कहाँ होती है ?
शरीर की प्रत्येक जीवित कोशिका श्वसन क्रिया करती है। कोशिका के अंदर यह क्रिया दो स्थानों पर दो चरणों में होती है। प्रथम चरण कोशिका द्रव्य में होता है। इसमें ग्लूकोज का एक अणु दो छोटे अणुओं में बँट जाता है। इस चरण में कुछ ऊर्जां उत्पन्न होती है। इस चरण में ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं पड़ती। ग्लूकोज अणु दूटने पर दो कार्बनिक अणु कोशिकांग माइटोकोंड्रिया में प्रवेश करते हैं। इस क्रिया में उनका विघटन होता है तथा ऊर्जा, कार्बन डाइऑक्साइड व जल उत्पन्न होता है। इस क्रिया में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
क्या हरे पौधे श्वसन में दिन में ऑक्सीजन तथा रात में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं ?
सभी जीव श्वसन में ऑक्सीजन लेते व कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। हरे पौधे दिन में श्वसन के साथ प्रकाश संश्लेषण की क्रिया भी करते हैं। इस क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड ली जाती है तथा ऑक्सीजन छोड़ी जाती है। दिन में हरे पौधों में श्वसन में काम आने वाली ऑक्सीजन की तुलना में प्रकाश संश्लेषण में छोड़ी ऑक्सीजन अंधिक होती है। इस कारण श्वसन का प्रभाव छुपा रहता है।
फास्ट फूड्स हानिकारक क्यों होते हैं ?
फास्ट फूड्स (बर्गर, चिप्स, पिज्जा, चाउमीन, पेस्ट्री, पैटीज़. चॉकलेट, कोल्ड ड्रिक्स) स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक हैं। दरअसल इनमें संतृप्त बसा, नमक और चीनी भरपूर मात्रा में पाई जाती है। ऐसे आहार में प्रोटीन विटामिन, खनिज लवण. रेशा और रोगनाशक तत्व नगण्य होते हैं। इनके सेवन से शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इनमें स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने वाले रसायन, रंग और खुशबू आदि तत्वों का प्रयोग किया जाता है।
12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers
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