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CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल निबंध लेखन

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CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल निबंध लेखन

निबंध-लेखन – निबंध गद्य की वह विधा है जिसमें निबंधकार किसी भी विषय को अपने व्यक्तित्व का अंग बनाकर स्वतंत्र रीति से अपनी लेखनी चलाता है। निबंध दो शब्दों नि + बंध से मिलकर बना है जिसका अर्थ है भली प्रकार कसा या बँधा हुआ। इस प्रकार निबंध साहित्य की वह रचना है जिसमें लेखक अपने विचारों को पूर्णतः मौलिक रूप से इस प्रकार श्रृंखलाबद्ध करता है कि उनमें सर्वत्र तारतम्यता दिखाई दे। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है कि “यदि गद्य कवियों की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी है।”

निबंध की विशेषताएँ

  1. निबंध में विषय के अनुरूप भाषा होनी चाहिए।
  2. निबंध लिखते समय वर्तनी की शुद्धता तथा विराम चिह्नों का यथास्थान ध्यान रखना चाहिए।
  3. निबंध में वर्णित विचार एक-दूसरे से संबद्ध होने चाहिए।
  4. निबंध में विषय संबंधी सभी पत्रों पर चर्चा करनी चाहिए।
  5. सारांश में उन सभी बातों को शामिल किया जाना चाहिए जिनका वर्णन पहले हो चुका है।
  6. यदि निबंध लेखन में शब्द-सीमा दी गई है तो उसका अवश्य ध्यान रखें।

निबंध के तत्व :
निबंध के निम्नलिखित प्रमुख तत्व माने जाते हैं –

  1. विषय प्रतिपादन-निबंध में विषय के चुनाव की छूट रहती है, परंतु विषय का प्रतिपादन आवश्यक है।
  2. भाव-तत्व-भाव-तत्व होने पर ही कोई रचना निबंध की श्रेणी में आती है अन्यथा वह मात्र लेख बनकर रह जाती है।
  3. भाषा-शैली-निबंध की शैली के अनुरूप ही उसमें भाषा का प्रयोग होता है। निबंध एक शैली में भी लिखा जा सकता है तथा उसमें अनेक शैलियों का सम्मिश्रण भी हो सकता है।
  4. स्वच्छंदता-निबंध में लेखक की स्वच्छंद वृत्ति दिखाई देनी चाहिए, परंतु भौतिकता भी बनी रहनी चाहिए।
  5. व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति-निबंध में लेखक के व्यक्तित्व की झलक अवश्य होनी चाहिए।
  6. संक्षिप्तता-निबंध में सक्षिप्तता उसका अनिवार्य गुण है।

निबंध के अंग :
निबंध के मुख्य रूप से तीन अंग माने जाते हैं –

  1. भूमिका/परिचयं-यह निबंध का आरंभ होता है। इसलिए भूमिका आकर्षक होनी चाहिए जिससे पाठक पूरे निबंध को पढ़ने हेतु प्रेरित हो सके।
  2. विस्तार- भूमिका के पश्चात निबंध का विस्तार शुरू होता है। इस भाग में निबंध के विषय से संबंधित प्रत्येक पक्ष का अलग अलग अनुच्छेदों में वर्णन किया जाता है। प्रत्येक अनुच्छेद की अपने पहले तथा अगले अनुच्छेद से संबद्धता अनिवार्य है। इसके लिए विचार क्रमबद्ध होने चाहिए।
  3. उपसंहार-इस अंग के अंतर्गत निबंध में व्यक्त किए गए सभी विचारों का सारांश प्रस्तुत किया जाता है।

निबंध के प्रकार :
मुख्य रूप से निबंध के चार प्रकार माने जाते हैं –

  1. वर्णनात्मक
  2. विवरणात्मक
  3. विचारात्मक
  4. भावात्मक

1. वर्णनात्मक-वर्णनात्मक निबंध में स्थान, वस्तु, दृश्य आदि का क्रमबद्ध वर्णन किया जाता है। त्योहारों-दीवाली, रक्षाबंधन, होली तथा वर्षा ऋतु आदि पर लिखे निबंध इसी कोटि में आते हैं।

2. विवरणात्मक-विवरणात्मक निबंधों में विषय से संबंधित घटनाओं, व्यक्तियों, यात्राओं, उत्सवों आदि का विवरण प्रस्तुत किया जाता है। पं० जवाहरलाल नेहरू, रेल-यात्रा, विद्यालय का वार्षिक उत्सव आदि प्रकार के निबंध इस श्रेणी में आते हैं।

3. विचारात्मक-जिन निबंधों में किसी समस्या, विचार, मनोभाव आदि को विश्लेषणात्मक व व्याख्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया जाता है, वे विचारात्मक निबंध कहलाते हैं; जैसे-नशाखोरी, विज्ञान से लाभ-हानि आदि।

4. भावात्मक-जिन निबंधों में भाव-तत्व प्रधान होता है वे भावात्मक निबंध कहलाते हैं। परोपकार, साहस, पर उपदेश कुशल बहुतेरे आदि निबंध इसी श्रेणी में आते हैं।

निबंध लेखन करते समय ध्यान रखने योग्य कुछ आवश्यक बातें :

  1. प्रश्न-पत्र में दिए गए शब्दों की सीमा का ध्यान रखें।
  2. भाषा की शुद्धता का ध्यान रखें तथा विराम चिह्नों का यथास्थान प्रयोग करें।
  3. निबंध लेखन में मौलिकता अवश्य होनी चाहिए।
  4. विषय के अनावश्यक विस्तार से बचें।
  5. निबंध के प्रारंभ या अंत में किसी सूक्ति, उदाहरण, सुभाषित या काव्य पंक्ति के प्रयोग से निबंध आकर्षक बन जाता है।
  6. विचारों की क्रमबद्धता का ध्यान रखें।
  7. आवश्यकतानुसार मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग करें।

(1) लड़का-लड़की एक समान

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • प्राचीन काल में नारी की स्थिति
  • आधुनिक काल में नारी की स्थिति
  • उपसंहार
  • नारी में अधिक मानवीयगुण
  • मध्यकाल में नारी की स्थिति
  • नारी की स्थिति और पुरुष की सोच

प्रस्तावना – स्त्री और पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। जीवन की गाड़ी सुचारु रूप से चलती रहे इसके लिए दोनों पहियों अर्थात स्त्री-पुरुष दोनों का बराबर का सहयोग और सामंजस्य ज़रूरी है। यदि इनमें एक भी छोटा या बड़ा हुआ तो गाड़ी सुचारु रूप से नहीं चल सकेगी। इसी तरह समाज और देश की उन्नति के लिए पुरुषों की नहीं नारियों के योगदान की भी उतनी आवश्यकता है। नारी अपना योगदान उचित रूप में दे सके इसके लिए उसे बराबरी का स्थान मिलना चाहिए तथा यह ज़रूरी है कि समाज लड़के
और लड़की में कोई भेद न करे।

नारी में अधिक मानवीय गुण – स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता है। यद्यपि दोनों की शारीरिक रचना में काफ़ी अंतर है फिर भी जहाँ तक मानवीय गुणों की जहाँ तक बात है। वहाँ नारी में ही अधिक मानवीय गुण मिलते हैं। पुरुष जो स्वभाव से पुरुष होता है, उसमें त्याग, दया, ममता सहनशीलता जैसे मानवीय गुण नारी की अपेक्षा बहुत की कम होते हैं। नर जहाँ क्रोध का अवतार माना जाता है वहीं नारी वात्सल्य और प्रेम की जीती-जागती मूर्ति होती है। इस संबंध में मैथिली शरण गुप्त ने ठीक ही कहा है –

एक नहीं दो-दो मात्राएँ नर से भारी नारी।

प्राचीनकाल में नारी की स्थिति-प्राचीनकाल में नर और नारी को समान अधिकार प्राप्त थे। वैदिककाल में स्त्रियों द्वारा वेद मंत्रों, ऋचाओं, श्लोकों की रचना का उल्लेख मिलता है। भारती, विज्जा, अपाला, गार्गी ऐसी ही विदुषी स्त्रियाँ थीं जिन्होंने पुरुषों के साथ शास्त्रार्थ कर उनके छक्के छुड़ाए थे। उस काल में नारी को सहधर्मिणी, गृहलक्ष्मी और अर्धांगिनी जैसे शब्दों से विभूषित किया जाता था। समाज में नारी को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था।

मध्यकाल में नारी की स्थिति – मध्यकाल तक आते-आते नारी की स्थिति में गिरावट आने लगी। मुसलमानों के आक्रमण के कारण नारी को चार दीवारी में कैद होना पड़ा। मुगलकाल में नारियों का सम्मान और भी छिन गया। वह पर्दे में रहने को विवश कर दी गई। इस काल में उसे पुरुषों की दासी बनने को विवश किया गया। उसकी शिक्षा-दीक्षा पर रोक लगाकर उसे चूल्हे-चौके तक सीमित कर दिया गया। पुरुषों की दासता और बच्चों का पालन-पोषण यही नारी के हिस्से में रह गया। नारी को अवगुणों का भंडार समझ लिया गया। तुलसी जैसे महाकवि ने भी न जाने क्या देखकर लिखा –

ढोल गँवार शूद्र पशु नारी।
ये सब ताड़न के अधिकारी॥

आधुनिक काल में नारी की स्थिति- अंग्रेजों के शासन के समय तक नारी की स्थिति में सुधार की बात उठने लगे। सावित्री बाई फले जैसी महिलाएँ आगे आईं और नारी शिक्षा की दिशा में कदम बढ़ाया। इसी समय राजा राम मोहन राय, स्वामी दयानंद, महात्मा गांधी आदि ने सती प्रथा बंद करवाने, संपत्ति में अधिकार दिलाने, सामाजिक सम्मान दिलाने, विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा आदि की दिशा में ठोस कदम उठाए, क्योंकि इन लोगों ने नारी की पीड़ा को समझा। जयशंकार प्रसाद ने नारियों की स्थिति देखकर लिखा –

नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में
पीयूष स्रोत-सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में॥

एक अन्य स्थान पर लिखा गया है –

अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी॥

स्वतंत्रता के बाद नारी शिक्षा की दिशा में ठोस कदम उठाए गए। उनके अधिकारों के लिए कानून बनाए गए। शिक्षा के कारण पुरुषों के दृष्टिकोण में भी बदलाव आया। इससे नारी की स्थिति दिनोंदिन सुधरती गई। वर्तमान में नारी की स्थिति पुरुषों के समान मज़बूत है। वह हर कदम पर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। शिक्षा, चिकित्सा, उड्डयन, राजनीति जैसे क्षेत्र अब उसकी पहुँच में है।

नारी की स्थिति और पुरुष की सोच – समाज में जैसे-जैसे पुरुषों की सोच में बदलाव आया, नारी की स्थिति में बदलाव आता गया। कुछ समय पूर्व तक कन्याओं को माता-पिता और समाज बोझ समझता था। वह भ्रूण (कन्या) हत्या के द्वारा अजन्मी कन्याओं के बोझ से छुटकारा पा लेता था। यह स्थिति सामाजिक समानता और लिंगानुपात के लिए खतरनाक होती जा रही थी, पर सरकारी प्रयास और पुरुषों की सोच में बदलाव के कारण अब स्थिति बदल गई है। लोग अब लड़कियों को बोझ नहीं समझते हैं। पहले जहाँ लड़कों के जन्म पर खुशी मनाई जाती थी वहीं अब लड़की का जन्मदिन भी धूमधाम से मनाया जाने लगा है। हमारे संविधान में भी स्त्री-पुरुष को समानता का दर्जा दिया गया है, पर अभी भी समाज को अपनी सोच में उदारता लाने की ज़रूरत है।

उपसंहार – घर-परिवार, समाज और राष्ट्र की प्रगति की कल्पना नारी के योगदान के बिना सोचना हवा-हवाई बातें रह जाएँगी। अब समाज को पुरुष प्रधान सोच में बदलाव लाते हुए महिलाओं को बराबरी का सम्मान देना चाहिए। इसके लिए ‘लड़का-लड़की एक समान’ की सोच पैदा कर व्यवहार में लाने की शुरुआत कर देना चाहिए।

(2) विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • आदर्श मित्रता के उदाहरण
  • सच्चे मित्र के गुण
  • उपसंहार
  • मित्र की आवश्यकता
  • छात्रावस्था में मित्रता
  • मित्रता का निर्वहन

प्रस्तावना – मनुष्य सामाजिक प्राणी है। उसके जीवन में सुख-दुख का आना-जाना लगा रहता है। उसके अलावा दिन-प्रतिदिन की समस्याएँ उसे तनावग्रस्त करती हैं। इससे मुक्ति पाने के लिए वह अपने मन की बातें किसी से कहना-सुनना चाहता है। ऐसे में उसे अत्यंत निकटस्थ व्यक्ति की ज़रूरत महसूस होती है। इस ज़रूरत को मित्र ही पूरी कर सकता है। मनुष्य को मित्र की आवश्यकता सदा से रही है और आजीवन रहेगी।

मित्र की आवश्यकता – जीवन में मित्र की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को पड़ती है। एक सच्चा मित्र औषधि के समान होता है जो व्यक्ति की बुराइयों को दूर कर उसे अच्छाइयों की ओर ले जाता है। मित्र ही सुख-दुख के वक्त साथ देता है। वास्तव में मित्र के बिना सुख की कल्पना नहीं की जा सकती है, क्योंकि

अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम् ॥

आदर्श मित्रता के उदाहरण – इतिहास में अनेक उदाहरण भरे हैं जिनसे मित्रता करने और उसे निभाने की सीख मिलती है। वास्तव में मित्र बनाना तो सरल है पर उसे निभाना अत्यंत कठिन है। देखा गया है कि आर्थिक समानता न होने पर भी दो मित्रों की मित्रता आदर्श बन गई, जिसकी सराहना इतिहास भी करता है। राणाप्रताप और भामाशाह की मित्रता, कृष्ण और अर्जुन की मित्रता, राम और सुग्रीव की मित्रता, दुर्योधन और कर्ण की मित्रता कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं। इनकी मित्रता से हमें प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए, क्योंकि इन मित्रों के बीच स्वार्थ आड़े नहीं आया।

छात्रावस्था में मित्रता – ऐसा देखा जाता है कि छात्रावस्था या युवावस्था में मित्र बनाने की धुन सवार रहती है। बस एक दो-बार किसी से बातें किया, साथ-साथ नाश्ता किया, फ़िल्म देखी, हँसमुख चेहरा देखा, अपनी बात में हाँ में हाँ मिलाते देखा और मित्र बना लिया पर ऐसे मित्र जितनी जल्दी बनते हैं, संकट देख उतनी ही जल्दी साथ छोड़कर दूर भी हो जाते हैं। ऐसे ही मित्रों की तुलना जल से करते हुए रहीम ने कहा है –

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह ॥

सच्चे मित्र के गुण-जीवन में सच्चे मित्र का बहुत महत्त्व है। एक सच्चे मित्र का साथ व्यक्ति को उन्नति के पथ पर ले जाता है और बुरे व्यक्ति का साथ पतन की ओर अग्रसर करता है। सच्चा मित्र जहाँ व्यक्ति को अवगुणों से बचाकर सदगुणों की ओर ले जाता है वहीं कपटी मित्र हमारे पैरों में बँधी चक्की के समान होता है जो हमें पीछे खींचता रहता है। यदि हमारा कोई मित्र जुआरी या शराबी निकला तो उसका प्रभाव एक न एक दिन हम पर अवश्य पड़ना है। इसके विपरीत सच्चा मित्र सुमार्ग पर ले जाता है। वह मित्र के सुख-दुख को अपना सुख-दुख समझकर सच्ची सहानुभूति रखता है और दुख से उबारने का हर संभव प्रयास करता है। ऐसे मित्रों के बारे कवि तुलसीदास ने लिखा है –

जे न मित्र दुख होय दुखारी।
तिनहिं विलोकत पातक भारी॥
निज दुख गिरि सम रज कर जाना।
मित्रक दुख रज मेरु समाना।

सच्चा मित्र अपने मित्र को कुसंगति से बचाकर सन्मार्ग पर ले जाता है और उसके गुणों को प्रकटकर सबके सामने लाता है। मित्रता का निर्वहन-मित्रता के लिए यह माना जाता है कि उनमें आर्थिक समानता होनी चाहिए पर यदि सच्ची मित्रता है तो दो मित्रों के बीच धन, स्वभाव और आचरण की समानता न होने पर भी मित्रता का निर्वाह हुआ है। सच्चे मित्र अपने बीच अमीरी गरीबी को आड़े नहीं आने देते हैं। कृष्ण-सुदामा की मित्रता का उदाहरण सामने है। उनकी हैसियत में ज़मीन-आसमान का अंतर था पर उनकी मित्रता का उदाहरण दिया जाता है।

इसी प्रकार अकबर-बीरबल, कृष्णदेवराय और तेनालीरामन की मित्रता का उदाहरण हमारे सामने है। उपसंहार-मित्रता अनमोल वस्तु है जो जीवन में कदम-कदम पर काम आती है। एक सच्चा मित्र मिल जाना गर्व एवं सौभाग्य की बात है। जिसे सच्चा मित्र मिल जाए, उसे सुख का खज़ाना मिल जाता है। हमें मित्र बनाने में सावधानी बरतना चाहिए। एक सच्चा मित्र मिल जाने पर मित्रता का निर्वहन करना चाहिए। सच्चे मित्र के रूठने पर उसे तुरंत मना लेना चाहिए। हमें भी मित्र के गुण बनाए रखना चाहिए, क्योंकि –

विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत।

(3) डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • शिक्षा-दीक्षा
  • राष्ट्रपति डॉ कलाम
  • सादा जीवन उच्च विचार निबंध-लेखन
  • जीवन-परिचय
  • मिसाइल मैन डॉ० कलाम
  • सम्मान एवं अलंकरण
  • उपसंहार

प्रस्तावना – भारत भूमि ऋषियों-मुनियों और अनेक कर्मवीरों की जन्मदात्री है। यहाँ अनेक महापुरुष पैदा हुए हैं तो देश का नाम शिखर तक ले जाने वाले वैज्ञानिक भी हुए हैं। इन्हीं में एक जाना-पहचाना नाम है- डॉ० ए०पा. ने० अब्दुल कलाम का जिन्होंने दो रूपों में राष्ट्र की सेवा की। एक तो वैज्ञानिक के रूप में और दूसरे राष्ट्रपति के रूप में। देश उन्हें मिसाइल मैन के नाम से जानता-पहचानता है।

जीवन-परिचय – डॉ० कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु राज्य के रामेश्वरम् नामक कस्बे में हुआ था। इनके पिता का नाम जैनुलाबदीन और माता का नाम अशियम्मा था। इनके पिता पढ़े-लिखे मध्यमवर्गीय व्यक्ति थे जो बहुत धनी न थे। इनकी माता आदर्श महिला थीं। इनके पिता और रामेश्वरम मंदिर के पुजारी में गहरी मित्रता थी, जिसका असर कलाम के जीवन पर भी पड़ा। इनके पिता रामेश्वरम् से धनुषकोडि तक आने-जाने के लिए तीर्थयात्रियों के लिए नौकाएँ बनवाने का कार्य किया करते थे।

शिक्षा-दीक्षा – डॉ० कलाम की प्रारंभिक शिक्षा तमिलनाडु में हुई। इसके बाद वे रामनाथपुरम् के श्वार्ज़ हाई स्कूल में भर्ती हुए। हायर सेकंडी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पूरी करने के बाद इंटर की पढ़ाई के लिए सेंट जोसेफ कॉलेज में प्रवेश लिया। यहाँ चार साल तक पढ़ाई करने और बी०एस०सी० प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने ‘हिंदू पत्रिका’ में विज्ञान से संबंधित लेख-लिखने लगे। उन्होंने एअरोनॉटिक्स इंजीनियरिंग में डिप्लोमा भी किया।

मिसाइल मैन डॉ० कलाम – डॉ० कलाम को अपने कैरियर की चिंता हुई। वे भारतीय वायुसेना में पायलट पद के लिए चुने गए पर साक्षात्कार में असफल रहे। इसके बाद वे वर्ष 1958 में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन से जुड़ गए। उनकी पहली नियुक्ति हैदराबाद में हुई। वहाँ वे पाँच वर्षों तक अनुसंधान सहायक के रूप में कार्य करते रहे। उन्होंने यहाँ वर्ष 1980 तक कार्य किया और अंतरिक्ष विज्ञान को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग अनुसंधान को समर्पित कर दिया। परमाणु क्षेत्र में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता है। उनके नेतृत्व में 1 मई, 1998 का प्रसिद्ध पोखरण परीक्षण किया गया। मिसाइल कार्यक्रम को नई ऊँचाई तक ले जाने के कारण उन्हें मिसाइल मैन कहा जाता है।

राष्ट्रपति डॉ० कलाम – भारत के गणराज्य में 25 जुलाई, 2002 को वह सुनहरा दिन आया, जब मिसाइल मैन के नाम से मशहूर डॉ० कलाम ने राष्ट्रपति का पद सुशोभित किया और इसी दिन पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। यद्यपि उनका संबंध राजनीति की दुनिया से कोसों दूर था फिर भी संयोग और भाग्य के मेल से उन्होंने भारत के बारहवें राष्ट्रपति के रूप में इस पद को सुशोभित किया। उन्होंने राष्ट्रपति पद पर रहते हुए निष्पक्षता और पूरी निष्ठा से कार्य किया।

सम्मान एवं अलंकरण – डॉ० कलाम ने जिस परिश्रम से परमाणु एवं अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊँचाई तक पहुँचाया उसके लिए उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित एवं अलंकृत किया गया। उन्हें वर्ष 1981 में पद्म विभूषण एवं वर्ष 1990 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया। ‘भारत रत्न’ से सम्मानित होने वाले वे देश के तीसरे वैज्ञानिक हैं।

सादा जीवन उच्च विचार – डॉ० कलाम पर गांधी जी के विचारों का प्रभाव था। वे सादगीपूर्वक रहते थे। उनके विचार अत्यंत उच्च कोटि के थे। वे बच्चों से लगाव रखते थे। वे विभिन्न स्कूलों में जाकर बच्चों का उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करते थे। वे आज का काम आज निपटाने में विश्वास रखते थे। बच्चों को प्यार करने वाले डॉ० कलाम की मृत्यु भी बच्चों के बीच सन् 2015 में उस समय हुई जब वे उनके बीच अपने अनुभव बाँट रहे थे।

उपसंहार – डॉ० कलाम अत्यंत निराभिमानी व्यक्ति थे। वे परिश्रमी और कर्तव्यनिष्ठ थे। एक वैज्ञानिक होने के साथ ही उन्होंने मिसाइल कार्यक्रम को नई ऊँचाई पर पहुँचाया तो राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने देश की प्रगति में भरपूर योगदान दिया। उनका जीवन हम भारतीयों के लिए प्रेरणा स्रोत है।

(4) क्रिकेट का नया प्रारूप-ट्वेंटी-ट्वेंटी

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • टेस्ट क्रिकेट –
  • टी-ट्वेंटी प्रारूप
  • उपसंहार
  • क्रिकेट के विभिन्न प्रारूप
  • एक दिवसीय क्रिकेट
  • टी-ट्वेंटी का रोमांच एवं सफलता

प्रस्तावना-यूँ तो मनुष्य का खेलों से बहुत ही पुराना नाता है, पर मनुष्य ने शायद ही कभी यह सोचा हो कि ये खेल एक दिन उसे यश, धन और प्रतिष्ठा दिलाने का साधन सिद्ध होंगे। जिन खेलों को वह मात्र मनोरंजन के लिए खेला करता था, वही खेल अब खराब नहीं नवाब बना रहे हैं। खेलों में आज लोकप्रियता के शिखर पर क्रिकेट का स्थान है। इसकी लोकप्रियता के कारण आज हर बच्चा क्रिकेट का खिलाड़ी बनना चाहता है। वर्तमान में क्रिकेट का ट्वेंटी-ट्वेंटी रूप बहुत ही लोकप्रिय है।

क्रिकेट के विभिन्न प्रारूप – भारत में क्रिकेट की शुरुआत अंग्रेज़ों के समय हुई। अंग्रेज़ों का यह राष्ट्रीय खेल था, जिसे वे अपने साथ यहाँ लाए। कालांतर में यह विभिन्न देशों में फैला। उस समय क्रिकेट को मुख्यतया टेस्ट क्रिकेट के रूप में खेलते थे। समय की व्यस्तता और रुचि में आए बदलाव के साथ ही क्रिकेट का प्रारूप बदलता गया। एक दिवसीय क्रिकेट और टी-ट्वेंटी इसका लोकप्रिय रूप है।

टेस्ट क्रिकेट – टेस्ट क्रिकेट पाँच दिनों तक खेला जाने वाला रूप है। इसमें पाँचों दिन 90-90 ओवर की प्रतिदिन गेंदबाजी की जाती है। दोनों टीमें दो-दो बार बल्लेबाज़ी करती हैं। विपक्षी टीम को दोबार आल आउट करना होता है। ऐसा ही दूसरी टीम करती है, परंतु प्राय; पाँच दिन तक मैच चलने के बाद भी खेल का परिणाम नहीं निकलता है और मैच ड्रा कर दिया जाता है। यह प्रारूप धीरे-धीरे अपनी लोकप्रियता खोता जा रहा है।

एक दिवसीय क्रिकेट – यह क्रिकेट का दूसरा प्रारूप है, जिसे एक दिन में एक सौ ओवर अर्थात छह सौ आधिकारिक गेंदें खेलकर पूरा किया जाता है। प्रत्येक टीम 50-50 ओवर खेलती है। पहले बल्लेबाज़ी करने वाली टीम जितने रन बनाती है उससे एक रन अधिक बनाकर दूसरी टीम को मैच जीतना होता है। जो टीम ऐसा कर पाती है, वही विजयी होती है। यह क्रिकेट का बेहद रोमांचक प्रारूप है, जिसे दर्शक खूब पसंद करते हैं। एक ही दिन में प्रायः मैच का परिणाम निकलने और पूरा हो जाने के कारण क्रिकेट स्टेडियमों में दर्शकों की भीड़ देखने लायक होती है।

टी-ट्वेंटी प्रारूप- यह क्रिकेट का सर्वाधिक लोकप्रिय प्रारूप है जिसे चालीस ओवरों में पूरा कर लिया जाता है। प्रत्येक टीम बीस- . बीस ओवर खेलती है। इधर सात-आठ साल पहले ही शुरू हुए उस प्रारूप को फटाफट क्रिकेट कहा जाता है जिसकी लोकप्रियता ने अन्य प्रारूपों को पीछे छोड़ दिया है। यह प्रारूप अधिक रोमांचक एवं मनोरंजक है।

इसे देखकर दर्शकों का पूरा पैसा वसूल हो जाता है। यह क्रिकेट सामान्यतया सायं चार बजे के बाद ही शुरू होता है और आठ-साढ़े आठ बजे तक खत्म हो जाता है। इसमें परिणाम और मनोरंजन के लिए दर्शकों को पूरे दिन स्टेडियम में नहीं बैठना पड़ता है। भारत में शुरू हुई आई०पी०एल० लीग में इसी प्रारूप से खेला जाता है जो भविष्य के खिलाड़ियों के लिए एक नया प्लेटफॉर्म तथा नवोदित खिलाड़ियों के लिए कमाई का साधन बन गया है। अब तो आलम यह है कि इस प्रारूप में चार सौ से अधिक रन तक बन जाते हैं।

टी-ट्वेंटी का रोमांच एवं सफलता-क्रिकेट का यह नया प्रारूप अत्यंत रोमांचक है। 20 ओवरों के मैच में 200 से अधिक रन बन जाते हैं। ट्वेंटी-ट्वेंटी प्रारूप का रोमांच तब देखने को मिला जब युवराज ने अंग्रेज़ गेंदबाज़ किस ब्राड के एक ही ओवर में छह छक्कों को दर्शकों के बीच पहुँचा दिया। ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी ही इस प्रारूप की सफलता का रहस्य है। उपसंहार- हमारे देश में क्रिकेट अत्यंत लोकप्रिय है। खेल के इस नए प्रारूप ने इसे और भी लोकप्रिय बना दिया है। आस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ शेनवान और सचिन तेंदुलकर की रिटायर्ड खिलाड़ियों की टीमों ने अमेरिका में तीन मैचों की सीरीज खेलकर दर्शकों की खूब वाह-वाही लूटी। क्रिकेट का यह नया प्रारूप टी-ट्वेंटी दिनोंदिन लोकप्रिय होता जा रहा है।

(5) अनुशासन की समस्या

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • छात्र और अनुशासन
  • अनुशासनहीनता के कारण
  • उपसंहार
  • अनुशासन की आवश्यकता
  • प्रकृति में अनुशासन
  • समाधान हेतु सुझाव

उपसंहार प्रस्तावना-‘शासन’ शब्द में ‘अनु’ उपसर्ग लगाने से अनुशासन शब्द बना है, जिसका अर्थ है- शासन के पीछे अनुगमन करना, शासन के पीछे चलना अर्थात समाज और राष्ट्र द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करते हुए मर्यादित आचरण करना अनुशासन कहलाता है। अनुशासन का पालन करने वाले लोग ही समाज और राष्ट्र को उन्नति के पथ पर ले जाते हैं। इसी तरह अनुशासनहीन नागरिक ही किसी राष्ट्र के पतन का कारण बनते हैं।

अनुशासन की आवश्यकता- अनुशासन की आवश्यकता सभी उम्र के लोगों को जीवन में कदम-कदम पर होती है। छात्र जीवन, मानवजीवन की रीढ़ होता है। इस काल में सीखा हुआ ज्ञान और अपनाई हुई आदतें जीवन भर काम आती हैं। इस कारण छात्र जीवन में अनुशासन की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है। अनुशासन के अभाव में छात्र प्रकृति प्रदत्त शक्तियों का न तो प्रयोग कर सकता है और न ही विद्यार्जन के अपने दायित्व का भली प्रकार निर्वाह कर सकता है। छात्र ही किसी देश का भविष्य होते हैं, अतः छात्रों का अनुशासनबद्ध रहना समाज और राष्ट्र के हित में होता है।

छात्र और अनुशासन – कुछ तो सरकारी नीतियाँ छात्रों को अनुशासनविमुख बना रही हैं और कुछ दिन-प्रतिदिन मानवीय मूल्यों में आती गिरावट छात्रों को अनुशासनहीन बना रही है। आठवीं कक्षा तक अनिवार्य रूप से उत्तीर्ण कर अगली कक्षा में भेजने की नीति के कारण छात्र पढ़ाई के अलावा अनुशासन से भी दूरी बना रहे हैं। इसके अलावा अनुशासन के मायने बदलने से भी छात्रों में अब पहले जैसा अनुशासन नहीं दिखता है। इस कारण प्रायः स्कूलों और कॉलेजों में हड़ताल, तोड़-फोड़, बात-बात पर रेल की पटरियों और सड़कों को बाधित कर यातायात रोकने का प्रयास करना आमबात होती जा रही है। छात्रों में मानवीय मूल्यों की कमी कल के समाज के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है।

प्रकृति में अनुशासन-हम जिधर भी आँख उठाकर देखें, प्रकृति में उधर ही अनुशासन नज़र आता है। सूरज का प्रातःकाल उगना और सायंकाल छिपना न हीं भूलता। चंद्रमा अनुशासनबद्ध तरीके से पंद्रह दिनों में अपना पूर्ण आकार बिखेरता है और नियमानुसार अपनी चाँदनी लुटाना नहीं भूलता। तारे रात होते ही आकाश में दीप जलाना नहीं भूलते हैं। बादल समय पर वर्षा लाना नहीं भूलते तथा पेड़-पौधे समय आने पर फल-फूल देना नहीं भूलते हैं। इसी प्रकार प्रातः होने का अनुमान लगते ही मुर्गा हमें जगाना नहीं भूलता है। वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत, वसंत, ग्रीष्म ऋतुएँ बारी-बारी से आकर अपना सौंदर्य बिखराना नहीं भूलती हैं। इसी प्रकार धरती भी फ़सलों के रूप में हमें उपहार देना नहीं भूलती। प्रकृति के सारे क्रियाकलाप हमें अनुशासनबद्ध जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं।

अनुशासनहीनता के कारण- छात्रों में अनुशासनहीनता का मुख्य कारण दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है। यह प्रणाली रटने पर बल देती है। दस, बारह और पंद्रह साल तक शिक्षार्जन से प्राप्त डिग्रियाँ लेकर भी किसी कार्य में निपुण नहीं होता है। यह शिक्षा क्लर्क पैदा करती है। नैतिक शिक्षा और मानवीय मूल्यों के लिए शिक्षा में कोई स्थान नहीं है। छात्र भी ‘येनकेन प्रकारेण’ परीक्षा पास करना अपना कर्तव्य समझने लगे हैं।

अनुशासनहीनता का दूसरा महत्त्वपूर्ण कारण है- शिक्षकों द्वारा अपने दायित्व का सही ढंग से निर्वाह न करना। अब वे शिक्षक नहीं रहे जिनके बारे में यह कहा जाए –

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौ पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियो बताय॥

समाधान हेतु सुझाव-छात्रों में अनुशासनहीनता दूर करने के लिए सर्वप्रथम शिक्षा की प्रणाली और गुणवत्ता में सुधार किया जाना चाहिए। शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाया जाना चाहिए। शिक्षण की नई-नई तकनीक और विधियों को कक्षा कक्ष तक पहुँचाया जाना चाहिए। छात्रों के लिए खेलकूद और अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इसके अलावा परीक्षा प्रणाली में सुधार करना चाहिए। छात्रों को नैतिक मूल्यपरक शिक्षा दी जानी चाहिए तथा अध्यापकों को अपने पढ़ाने का तरीका रोचक बनाना चाहिए।

उपसंहार- अनुशासनहीनता मनुष्य को विनाश के पथ पर अग्रसर करती है। छात्रों पर ही देश का भविष्य टिका है, अत: उन्हें अनुशासनप्रिय बनाया जाना चाहिए। हमें अनुशासन का पालन करने के लिए प्रकृति से सीख लेनी चाहिए।

(6) भ्रष्टाचार 

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • भ्रष्टाचार के कारण
  • उपसंहार
  • भ्रष्टाचार के विविध क्षेत्र एवं रूप
  • भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय

प्रस्तावना – भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना है। ‘भ्रष्ट’ का अर्थ है- विचलित या अपने स्थान से गिरा हुआ तथा ‘आचार’ का अर्थ है-आचरण या व्यवहार अर्थात किसी व्यक्ति द्वारा अपनी गरिमा से गिरकर कर्तव्यों के विपरीत किया गया आचरण भ्रष्टाचार है। यह भ्रष्टाचार हमें विभिन्न स्थानों पर दिखाई देता है जिससे जन साधारण को दो-चार होना पड़ता है। आज लोक सेवक की परिधि में आने वाले विभिन्न कर्मचारी जैसे कि बाबू, अधिकारी आदि इसे बढ़ाने में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उत्तरदायी हैं।

भ्रष्टाचार के विविधि क्षेत्र एवं रूप – भ्रष्टाचार का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है। इसकी परिधि में विभिन्न सरकारी और अर्धसरकारी कार्यालय, राशन की सरकारी दुकानें, थाने और तरह-तरह की सरकारी अर्धसरकारी संस्थाएँ आती हैं। यहाँ नियुक्त बाबू व अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी, एजेंट, चपरासी, नेता आदि जनसाधारण का विभिन्न रूपों में शोषण करते हैं। इन कार्यालयों में कुछ लिए दिए बिना काम करवाना टेढ़ी खीर साबित होता है। लोगों के काम में तरह-तरह के अड़गे लगाए जाते हैं और सुविधा शुल्क लिए बिना काम नहीं होता है। भ्रष्टाचार के बाज़ार में यदि व्यक्ति के पास पैसा हो तो वह किसी को भी खरीद सकता है। यहाँ हर एक बिकने को तैयार है। बस कीमत अलग-अलग है। यह कीमत काम के अनुसार तय होती है। जैसा काम वैसा दाम। काम की जल्दबाज़ी और व्यक्ति की विवशता दाम बढ़ा देती है।

भ्रष्टाचार के विविध रूप हैं। इसका सबसे प्रचलित और जाना-पहचाना नाम और रूप है-रिश्वत। यह रिश्वत नकद, उपहार, सुविधा आदि रूपों में ली जाती है। आम बोलचाल में इसे घूस या सुविधा शुल्क के नाम से भी जाना जाता है। लोग चप्पलें घिसने से बचाने, समय नष्ट न करने तथा मानसिक परेशानी से बचने के लिए स्वेच्छा या मज़बूरी में रिश्वत देने के लिए तैयार हो जाते हैं।

भ्रष्टाचार का दूसरा रूप भाई-भतीजावाद के रूप में देखा जाता है। सक्षम अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपने चहेतों, रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों को कोई सुविधा, लाभ या नौकरी देने के अलावा अन्य लाभ पहुँचाना भाई-भतीजावाद कहलाता है। ऐसा करने और कराने में आज के नेताओं को सबसे आगे रखा जा सकता है। इससे योग्य व्यक्तियों की अनदेखी होती है और वे लाभ पाने से वंचित रह जाते हैं।

कमीशनखोरी भी भ्रष्टाचार का अन्य रूप है। सरकारी परियोजनाओं, भवनों तथा अन्य सेवाओं का काम तो कमीशन दिए बिना मिल ही नहीं सकता है। जो जितना अधिक कमीशन देता है, काम का ठेका उसे मिलने की संभावना उतनी ही प्रबल हो जाती है। इन ठेकों और बड़े ठेकों में करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं। बोफोर्स घोटाला, बिहार का चारा घोटाला, टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कॉमन वेल्थ घोटाला, मुंबई का आदर्श सोसायटी घोटाला तो मात्र कुछ नमूने हैं।

भ्रष्टाचार के कारण – समाज में दिन-प्रतिदिन भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ता ही जा रहा है। इसके अनेक कारण हैं। भ्रष्टाचार के कारणों में महँगी होती शिक्षा और अनुचित तरीके से उत्तीर्ण होना है। जो छात्र महँगी शिक्षा प्राप्त कर नौकरियों में आते हैं, वे रिश्वत लेकर पिछले खर्च को पूरा कर लेना चाहते हैं। एक बार यह आदत पड़ जाने पर फिर आजीवन नहीं छूटती है। इसका अगला कारण हमारी लचर न्याय व्यवस्था है जिसमें पकड़े जाने पर कड़ी कार्यवाही न होने से दोषी व्यक्ति बच निकलता है और मुकदमे आदि में हुए खर्च को वसूलने के लिए रिश्वत की दर बढ़ा देता है। उसके अलावा लोगों में विलासितापूर्ण जीवनशैली दिखावे की प्रवृत्ति, जीवन मूल्यों का ह्रास और लोगों का चारित्रिक पतन भी भ्रष्टाचार बढ़ाने के लिए उत्तरदायी हैं।

भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय – आज भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि इसे समूल नष्ट करना संभव नहीं है, फिर भी कठोर कदम उठाकर इस पर किसी सीमा तक अंकुश लगाया जा सकता है। भ्रष्टाचार रोकने का सबसे ठोस कदम है-जनांदोलन द्वारा जन जागरूकता फैलाना। समाज सेवी अन्ना हजारे और दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल द्वारा उठाए गए ठोस कदमों से इस दिशा में काफ़ी सफलता मिली है। इसके अलावा इसे रोकने के लिए कठोर कानून बनाने की आवश्यकता है ताकि एक बार पकड़े जाने पर रिश्वतखोर किसी भी दशा में लचर कानून का फायदा उठाकर छूट न जाए।

उपसंहार- भ्रष्टाचार हमारे समाज में लगा धुन है जो देश की प्रगति के लिए बाधक है। इसे समूल उखाड़ फेंकने के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए तथा रिश्वत न लेने-देने के लिए प्रतिज्ञा करनी चाहिए। इसके अलावा लोगों को चारित्रिक बल एवं जीवनमूल्यों का ह्रास रोकते हुए रिश्वत नहीं लेना चाहिए। आइए हम सभी रिश्वत न लेने-देने की प्रतिज्ञा करते हैं।

(7) मनोरंजन के विभिन्न साधन

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • मनोरंजन की आवश्यकता और उसका महत्त्व
  • प्राचीन काल के मनोरंजन के साधन
  • आधुनिक काल के मनोरंजन के साधन
  • भारत में मनोरंजन के साधनों की स्थिति
  • उपसंहार

प्रस्तावना – मनुष्य को अपनी अनेक तरह की आवश्यकताओं के लिए श्रम करना पड़ता है। श्रम के उपरांत थकान होना स्वाभाविक है। इसके अलावा जीवन संघर्ष और चिंताओं से परेशान होने पर वह इन्हें भूलना चाहता है और इनसे मुक्ति पाने का उपाय खोजता है और वह मनोरंजन का सहारा लेता है। मनोरंज से थके हुए मन-मस्तिष्क को सहारा मिलता है, एक नई स्फूर्ति मिलती है और कुछ पल के लिए व्यक्ति थकान एवं चिंता को भूल जाता है।

मनोरंजन की आवश्यकता और उसका महत्त्व – आदिम काल से ही मनुष्य को मनोरंजन की आवश्यकता रही है। जीवन संघर्ष से थका मानव ऐसा साधन ढूँढ़ना चाहता है जिससे उसका तन-मन दोनों ही प्रफुल्लित हो जाए और वह नव स्फूर्ति से भरकर कार्य में लग सके। वास्तव में मनोरंजन के बिना जीवन नीरस हो जाता है। ऐसी स्थिति में काम में उसका मन नहीं लगता है और न व्यक्ति को कार्य में वांछित सफलता मिलती है। ऐसे में मनोरंजन की आवश्यकता असंदिग्ध हो जाती है।

प्राचीन काल में मनोरंजन के साधन – प्राचीनकाल में न मनुष्य का इतना विकास हुआ था और न मनोरंजन के साधनों का। वह प्रकृति और जानवरों के अधिक निकट रहता था। ऐसे में उसके मनोरंजन के साधन भी प्रकृति और इन्हीं पालतू जानवरों के इर्द-गिर्द हुआ करते थे। वह तोता, मैना, तीतर, कुत्ता, भेड़, बैल, बिल्ली, कबूतर आदि पशु-पक्षी पालता था और तीतर, मुर्गे, भेड़ (नर) भैंसे, साँड़ आदि को लड़ाकर अपना मनोरंजन किया करता था। वह शिकार करके भी मनोरंजन किया करता था। इसके अलावा कुश्ती लड़कर, नाटक, नौटंकी, सर्कस आदि के माध्यम से मनोरंजन करता था। इसके अलावा पर्व-त्योहार तथा अन्य आयोजनों के मौके पर वह गाने-बजाने तथा नाचने के द्वारा आनंदित होता था।

आधुनिक काल के मनोरंजन के साधन-सभ्यता के विकास एवं विज्ञान की अद्भुत खोजों के कारण मनोरंजन का क्षेत्र भी अछूता न रह सका। प्राचीन काल की नौटंकी, नाच-गान की अन्य विधाओं का उत्कृष्ट रूप हमारे सामने आया। इससे नाटक के मंचन की व्यवस्था एवं प्रस्तुति में बदलाव के कारण नाटकों का आकर्षण बढ़ गया। पार्श्वगायन के कारण अब नाटक भी अपना मौलिक रूप कायम नहीं रख सके पर दर्शकों को आकर्षित करने में नाटक सफल हैं। लोग थियेटरों में इनसे भरपूर मनोरंजन करते हैं। सिनेमा आधुनिक काल का सर्वाधिक सशक्त और लोकप्रिय मनोरंजन का साधन है। यह हर आयु-वर्ग के लोगों की पहली पसंद है। यह सस्ता और सर्वसुलभ होने के अलावा ऐसा साधन है जो काल्पनिक घटनाओं को वास्तविक रूप में चमत्कारिक ढंग से प्रस्तुत करता है जिसका जादू-सा असर हमारे मन-मस्तिष्क पर छा जाता है और हम एक अलग दुनिया में खो जाते हैं। इस पर दिखाई जाने वाली फ़िल्में हमें कल्पनालोक में ले जाती हैं।

रेडियो और टेलीविज़न भी वर्तमान युग के मनोरंजन के लोकप्रिय साधन है। रेडियो पर गीत-संगीत, कहानी, चुटकुले, वार्ता आदि सनकर लोग अपना मनोरंजन करते हैं तो टेलीविज़न पर दुनिया को किसी कोने की घटनाएँ एवं ताज़े समाचार मनोरंजन के अलावा ज्ञानवर्धन भी करते हैं। तरह-तरह के धारावाहिक, फ़िल्में, कार्टून, खेल आदि देखकर लोग अपने दिनभर की थकान भूल जाते हैं। मोबाइल फ़ोन भी मनोरंजन का लोकप्रिय साधन सिद्ध हुआ है। इस पर एफ०एम० के विभिन्न चैनलों से तथा मेमोरी कार्ड में संचित गाने इच्छानुसार सुने जा सकते हैं। अकेला होते ही लोग इस पर गेम खेलना शुरू कर देते हैं। कैमरे के प्रयोग से मोबाइल की दुनिया में क्रांति आ गई। अब तो इससे रिकार्डिंग एवं फ़ोटोग्राफी करके मनोरंजन किया जाने लगा है।

इन साधनों के अलावा म्यूजिक प्लेयर्स, टेबलेट, कंप्यूटर भी मनोरंजन के साधन के रूप में प्रयोग किए जा रहे हैं।

भारत में मनोरंजन के साधनों की स्थिति- मनुष्य की बढ़ती आवश्यकता और सीमित होते संसाधनों के कारण मनोरंजन के साधनों की आवश्यकता और भी बढ़ गई है, परंतु बढ़ती जनसंख्या के कारण ये साधन महँगे हो रहे हैं तथा इनकी उपलब्धता सीमित हो रही है। आज न पार्क बच रहे हैं और खेल के मैदान। इनके अभाव में व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा, रूखा और क्रोधी होता जा रहा है। इसके लिए मनोरंजन के साधनों को सर्वसुलभ और सबकी पहुँच में बनाया जाना चाहिए।

उपसंहार- मनोरंजन मानव जीवन के लिए अत्यावश्यक हैं, परंतु ‘अति सर्वत्र वय॑ते’ वाली उक्ति इन पर भी लागू होती है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि मनोरंजन के चक्कर में हम इतने खो जाएँ कि हमारे काम इससे प्रभावित होने लगे और हम आलसी और कामचोर बन जाएँ। हमें ऐसी स्थिति से सदा बचना चाहिए।

(8) दूरदर्शन का मानव जीवन पर प्रभाव

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • दूरदर्शन का प्रभाव
  • दूरदर्शन से हानियाँ
  • दूरदर्शन का बढता उपयोग
  • दूरदर्शन के लाभ
  • उपसंहार

प्रस्तावना – विज्ञानं ने मनुष्य को एक से बढ़कर एक अद्भुत उपकरण प्रदान किए हैं। इन्हीं अद्भुत उपकरणों में एक है दूरदर्शन। दूरदर्शन ऐसा अद्भुत उपकरण है जिसे कुछ समय पहले कल्पना की वस्तु समझा जाता था। यह आधुनिक युग में मनोरंजन के साथसाथ सूचनाओं की प्राप्ति का महत्त्वपूर्ण साधन भी है। पहले इसका प्रयोग महानगरों के संपन्न घरों तक सीमित था, परंतु वर्तमान में इसकी पहुँच शहर और गाँव के घर-घर तक हो गई है।

दरदर्शन का बढ़ता उपयोग – दूरदर्शन मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन का उत्तम साधन है। आज यह हर घर की आवश्यकता बन गया है। उपग्रह संबंधी प्रसारण की सुविधा के कारण इस पर कार्यक्रमों की भरमार हो गई है। कभी मात्र दो चैनल तक सीमित रहने वाले दूरदर्शन पर आज अनेकानेक चैनल हो गए हैं। बस रिमोट कंट्रोल उठाकर अपना मनपसंद चैनल लगाने और रुचि के अनुसार कार्यक्रम देखने की देर रहती है। आज दूरदर्शन पर फ़िल्म, धारावाहिक, समाचार, गीत-संगीत, लोकगीत, लोकनृत्य, वार्ता, खेलों के प्रसारण, बाजार भाव, मौसम का हाल, विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रम तथा हिंदी-अंग्रेजी के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में प्रसारण की सुविधा के कारण यह महिलाओं, युवाओं और हर आयुवर्ग के लोगों में लोकप्रिय है।

दरदर्शन का प्रभाव – अपनी उपयोगिता के कारण दूरदर्शन आज विलसिता की वस्तु न होकर एक आवश्यकता बन गया है। बच्चेबूढ़े, युवा-प्रौढ़ और महिलाएँ इसे समान रूप से पसंद करती हैं। इस पर प्रसारित ‘रामायण’ और महाभारत जैसे कार्यक्रमों ने इसे जनमानस तक पहुँचा दिया। उस समय लोग इन कार्यक्रमों के प्रसारण के पूर्व ही अपना काम समाप्त या बंद कर इसके सामने आ बैठते थे। गाँवों और छोटे शहरों में सड़कें सुनसान हो जाती थीं। आज भी विभिन्न देशों का जब भारत के साथ क्रिकेट मैच होता है तो इसका असर जनमानस पर देखा जा सकता है। लोग सब कुछ भूलकर ही दूरदर्शन से चिपक जाते हैं और बच्चे पढ़ना भूल जाते हैं। आज भी महिलाएँ चाय बनाने जैसे छोटे-छोटे काम तभी निबटाती हैं जब धारावाहिक के बीच विज्ञापन आता है।

दरदर्शन के लाभ – दूरदर्शन विविध क्षेत्रों में विविध रूपों में लाभदायक है। यह वर्तमान में सबसे सस्ता और सुलभ मनोरंजन का साधन है। इस पर मात्र बिजली और कुछ रुपये के मासिक खर्च पर मनचाहे कार्यक्रमों का आनंद उठाया जा सकता है। दूरदर्शन पर प्रसारित फ़िल्मों ने अब सिनेमा के टिकट की लाइन में लगने से मुक्ति दिला दी है। अब फ़िल्म हो या कोई प्रिय धारावाहिक, घर बैठे इनका सपरिवार आनंद लिया जा सकता है।

दूरदर्शन पर प्रसारित समाचार ताज़ी और विश्व के किसी कोने में घट रही घटनाओं के चित्रों के साथ प्रसारित की जाती है जिससे इनकी विश्वसनीयता और भी बढ़ जाती है। इनसे हम दुनिया का हाल जान पाते हैं तो दूसरी ओर कल्पनातीत स्थानों, प्राणियों, घाटियों, वादियों, पहाड़ की चोटियों जैसे दुर्गम स्थानों का दर्शन हमें रोमांचित कर जाता है। इस तरह जिन स्थानों को हम पर्यटन के माध्यम से साक्षात नहीं देख पाते हैं या जिन्हें देखने के लिए न हमारी जेब अनुमति देती है और न हमारे पास समय है, को साक्षात हमारी आँखों के सामने प्रस्तुत कर देते हैं।

दूरदर्शन के माध्यम से हमें विभिन्न प्रकार का शैक्षिक एवं व्यावसायिक ज्ञान होता है। इन पर एन०सी०ई०आर०टी० के विभिन्न कार्यक्रम रोचक ढंग से प्रस्तुत किए जाते हैं। इसके अलावा रोज़गार, व्यवसाय, खेती-बारी संबंधी विविध जानकारियाँ भी मिलती हैं।

दरदर्शन से हानियाँ दूरदर्शन लोगों के बीच इतना लोकप्रिय है कि लोग इसके कार्यक्रमों में खो जाते हैं। उन्हें समय का ध्यान नहीं रहता। कुछ समय बाद लोगों को आज का काम कल पर टालने की आदत पड़ जाती है। इससे लोग आलसी और निकम्मे हो जाते हैं। दूरदर्शन के कारण बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है। इससे एक ओर बच्चों की दृष्टि प्रभावित हो रही है तो दूसरी और उनमें असमय मोटापा बढ़ रहा है जो अनेक रोगों का कारण बनता है।

दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रमों में हिंसा, मारकाट, लूट, घरेलू झगडे, अर्धनंगापन आदि के दृश्य किशोर और युवा मन को गुमराह करते हैं जिससे समाज में अवांछित गतिविधियाँ और अपराध बढ़ रहे हैं। इसके अलावा भारतीय संस्कृति और मानवीय मूल्यों की अवहेलना दर्शन के कार्यक्रमों का ही असर है।

उपसंहार- दूरदर्शन अत्यंत उपयोगी उपकरण है जो आज हर घर तक अपनी पैठ बना चुका है। इसका दूसरा पक्ष भले ही उतना उज्ज वल न हो पर इससे दूरदर्शन की उपयोगिता कम नहीं हो जाती। दूरदर्शन के कार्यक्रम कितनी देर देखना है, कब देखना है, कौन से कार्यक्रम देखने हैं यह हमारे बुद्धि विवेक पर निर्भर करता है। इसके लिए दूरदर्शन दोषी नहीं है। दूरदर्शन का प्रयोग सोच-समझकर करना चाहिए।

(9) यदि मैं अपने विद्यालय का प्रधानाचार्य होता

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • पढ़ाई की उत्तम व्यवस्था
  • गरीब छात्रों के लिए विशेष प्रयास
  • उपसंहार
  • मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था
  • परीक्षा प्रणाली में सुधार .
  • पाठ्य सहगामी क्रियाओं को बढ़ावा .

प्रस्तावना – मानव मन में नाना प्रकार की कल्पनाएँ जन्म लेती हैं। कल्पना के इसी उड़ान के समय वह खुद को भिन्न-भिन्न रूपों में देखता है। वह सोचता है कि यदि मैं यह होता तो ऐसा करता, यदि मैं वह होता तो वैसा करता है। मानव के इसी स्वभाव के अनुरूप मैं भी कल्पना की दुनिया में खोकर प्रायः सोचता हूँ कि यदि मैं अपने विद्यालय का प्रधानाचार्य होता तो कितना अच्छा होता। इस नई भूमिका को निभाने के लिए क्या-क्या करता, उसकी योजना बनाने लगता हूँ।

मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था – सरकारी विद्यालयों में मूलभूत सुविधाओं की क्या स्थिति होती है, यह बताने की आवश्यकता नहीं होती। यह बात तो सभी को पता ही है। मैं सर्वप्रथम विद्यालय में पीने के लिए स्वच्छ पानी की व्यवस्था करवाता। इसके बाद मेरा दूसरा कदम सफ़ाई की व्यवस्था की ओर होता। इस स्तर पर मैं दयनीय हालत में पहुँच चुके शौचालयों की सफ़ाई और मरम्मत करवाता। इसके बाद बच्चों के बैठने के लिए बेंचों की समुचित व्यवस्था कराता। अब कक्षा-कक्ष में श्यामपट और टूटी-फूटी और श्लोक लिखी दीवारों की मरम्मत कराकर रंग-पेंट करवाता। इसके बाद विद्यालय प्रांगण और खेल के मैदान की साफ़-सफ़ाई करवाता तथा विद्यालय परिसर में असामाजिक तत्वों और आवारा पशुओं के घुस आने से रोकने की पूरी व्यवस्था करता। मैं विद्यालय में इतनी टाट-पट्टियों की व्यवस्था करवाता कि सभी छात्र उस पर बैठकर मध्यांतर का खाना खा सकें।

पढ़ाई की उत्तम व्यवस्था – विद्यालय में मूलभूत सुविधाएँ होने के बाद मैं अध्यापकों की कमी पूरी करने के लिए विभाग को लिखता और जितने भी अध्यापक हैं उन्हें नियमित रूप से कक्षाओं में जाकर पढ़ाने को कहता। प्रत्येक विषय के शिक्षण के बाद बचे समय में छात्रों की खेल-कूद की व्यवस्था करता ताकि छात्र पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी अच्छा प्रदर्शन करें। समय की माँग को देखते हुए मैं छात्रों को नैतिक शिक्षा अनिवार्य रूप से प्रतिदिन प्रार्थना सभा में देने की व्यवस्था सुनिश्चित करता।

परीक्षा प्रणाली में सुधार – वर्तमान में सरकार की फेल न करने की नीति से शिक्षा स्तर में गिरावट आ गई है। मैं छात्रों की परीक्षा प्रतिमाह करवाकर साल में दो मुख्य परीक्षाएँ आयोजित करवाता और परीक्षा में नकल रोकने पर पूरा जोर देता ताकि छात्रों में शुरू से ही पढ़ने की आदत का विकास हो और वे सरकारी नीति का सहारा लेने को विवश न हों।

गरीब छात्रों के लिए विशेष प्रयास – मैं अपने विद्यालय में गरीब किंतु मेधावी छात्रों की पढ़ाई के लिए विशेष प्रयास करवाता तथा छात्र कल्याण निधि से उनके लिए कापियाँ, स्टेशनरी और अन्य कार्यों के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता। ऐसे छात्रों को छात्रवृत्ति संबंधी जानकारी समय-समय पर देकर उनको सरकारी सहायता दिलाने का सतत प्रयास करता।

पाठ्य सहगामी क्रियाओं को बढ़ावा – छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए पढ़ाई-लिखाई के अलावा अन्य क्रियाकलापों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। मैं छात्रों की दिल्ली-दर्शन की व्यवस्था कर उन्हें दर्शनीय स्थानों को दिखाता। इसके अलावा बाल सभा के आयोजन में भाषण, कविता-पाठ, वाद-विवाद, नाटक अभिनय जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करता ताकि छात्र इनमें भाग लेकर इसे पढ़ाई का अंग समझें और पढ़ाई को बोझ मानने की भूल न करें।

उपसंहार – विदयालय का प्रधानाचार्य बनकर मैं चाहूँगा कि छात्रों में पढ़ाई के प्रति रुचि उत्पन्न हो। इसके लिए मैं उन्हें पढ़ाते समय सरल और रुचिकर तकनीक अपनाने के लिए शिक्षकों से कहूँगा। मैं छात्रों को यह अवसर दूंगा कि वे अपनी बात कर सकें। इतने प्रयासों के बाद मेरा विद्यालय निःसंदेह अच्छा बन जाएगा। विद्यालय की उन्नति में ही मेरी मेहनत सार्थक सिद्ध होगी।

(10) देश के विकास में बाधक बेरोज़गारी

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • बेरोज़गारी के कारण
  • बेरोज़गारी के परिणाम
  • बेरोज़गारी का अर्थ
  • समाधान के उपाय
  • उपसंहार

प्रस्तावना – स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश को कई समस्याओं से दो-चार होना पड़ा है। इन समस्याओं में मूल्य वृद्धि, जनसंख्या वृद्धि, प्रदूषण, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी आदि प्रमुख हैं। इनमें बेरोजगारी का सीधा असर व्यक्ति पर पड़ता है। यही असर व्यक्ति के स्तर से आगे बढ़कर देश के विकास में बाधक सिद्ध होता है।

बेरोज़गारी का अर्थ – ‘रोज़गार’ शब्द में ‘बे’ उपसर्ग और ‘ई’ प्रत्यय के मेल से ‘बेरोज़गारी’ शब्द बना है, जिसका अर्थ है वह स्थिति जिसमें व्यक्ति के पास काम न हो अर्थात जब व्यक्ति काम करना चाहता है और उसमें काम करने की शक्ति, सामर्थ्य और योग्यता होने पर भी उसे काम नहीं मिल पाता है। यह देश का दुर्भाग्य है कि हमारे देश में लाखों-हज़ारों नहीं बल्कि करोड़ों लोग इस स्थिति से गुजरने को विवश हैं।

बेरोज़गारी के कारण – बेरोज़गारी बढ़ने के कई कारण हैं। इनमें सर्वप्रमुख कारण हैं- देश की निरंतर बढ़ती जनसंख्या। इस बढ़ती जनसंख्या के कारण सरकारी और प्राइवेट सेक्टर द्वारा रोज़गार के जितने पद और अवसर सृजित किए जाते हैं वे अपर्याप्त सिद्ध होते हैं। परिणामतः यह समस्या सुरसा के मुँह की भाँति बढ़ती ही जाती है। बेरोज़गारी बढ़ाने के अन्य कारणों में अशिक्षा, तकनीकी योग्यता, सरकारी नौकरी की चाह, स्वरोज़गार न करने की प्रवृत्ति, उच्च शिक्षा के कारण छोटी नौकरियाँ न करने का संकोच, कंप्यूटर जैसे उपकरणों में वृद्धि, मशीनीकरण, लघु उद्योग-धंधों का नष्ट होना आदि है।

इनके अलावा एक महत्त्वपूर्ण निर्धनता भी है, जिसके कारण कोई व्यक्ति चाहकर भी स्वरोज़गार स्थापित नहीं कर पाता है। हमारे देश की शिक्षा प्रणाली भी ऐसी है जो बेरोजगारों की फौज़ तैयार करती है। यह शिक्षा सैद्धांतिक अधिक प्रयोगात्मक कम है जिससे कौशल विकास नहीं हो पाता है। ऊँची-ऊँची डिग्रियाँ लेने पर भी विश्वविद्यालयों और कालेजों से निकला युवा स्वयं को ऐसी स्थिति में पाता है जिसके पास डिग्रियाँ होने पर भी काम करने की योग्यता नहीं है। इसका कारण स्पष्ट है कि उसके पास तकनीकी योग्यता का अभाव है।

समाधान के उपाय – बेरोज़गारी दूर करने के लिए सरकार और बेरोज़गारों के साथ-साथ प्राइवेट उद्योग के मालिकों को सामंजस्य बिठाते हुए ठोस कदम उठाना होगा। इसके लिए सरकार को रोजगार के नवपदों का सृजन करना चाहिए। यहाँ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि नवपदों के सृजन से समस्या का हल पूर्णतया संभव नहीं है, क्योंकि बेरोजगारों की फ़ौज बहुत लंबी है जो समय के साथसाथ बढ़ती भी जा रही है। सरकार को माध्यमिक कक्षाओं से तकनीकी शिक्षा अनिवार्य कर देना चाहिए ताकि युवा वर्ग डिग्री लेने के बाद असहाय न महसूस करे।

सरकार को स्वरोजगार को प्रोत्साहन देने के लिए बहुत कम दरों पर कर्ज देना चाहिए तथा युवाओं के प्रशिक्षण की व्यवस्था करते हुए इन उद्योगों का बीमा भी करना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह लघु एवं कुटीर उद्योगों के अलावा पशुपालन, मत्स्य पालन आदि को भी बढ़ावा दे। प्राइवेट उद्यमियों को चाहिए कि वे युवाओं को अपने यहाँ ऐसी सुविधाएँ दे कि युवाओं का सरकारी नौकरी से आकर्षण कम हो। युवा वर्ग को अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए तथा उनकी उच्च शिक्षा बाधक नहीं बल्कि सफलता के मार्ग का साधन है जिसका प्रयोग वे समय आने पर कर सकते हैं। अभी जो भी मिल रही है उसे पहली सीढ़ी मानकर शुरुआत तो करें। इसके अलावा उच्च शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा अवश्य ग्रहण करें ताकि स्वरोजगार और प्राइवेट नौकरियों के द्वार भी उनके लिए खुले रहें।

बेरोज़गारी के परिणाम – कहा गया है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। बेरोज़गार व्यक्ति खाली होने से अपनी शक्ति का दुरुपयोग असामाजिक कार्यों में लगाता है। वह असामाजिक कार्यों में शामिल होता है और कानून व्यवस्था भंग करता है। ऐसा व्यक्ति अपना तथा राष्ट्र दोनों का विकास अवरुद्ध करता है। ‘बुबुक्षकः किम् न करोति पापं’ भूखा व्यक्ति कौन-सा पाप नहीं करता है अर्थात भूखा व्यक्ति चोरी, लूटमार, हत्या जैसे सारे पाप कर्म कर बैठता है। अत: व्यक्ति को रोज़गार तो मिलना ही चाहिए।

उपसंहार-बेरोज़गारी की समस्या पूरे देश की समस्या है। यह व्यक्ति, समाज और देश के विकास में बाधक सिद्ध होती है। जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाने के साथ ही इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। बेरोज़गारी कम करने में सरकार के साथ-साथ समाज और युवाओं की सोच में बदलाव लाना आवश्यक है।

(11) वन रहेंगे हम रहेंगे

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • वनों के विभिन्न लाभ
  • हमारा दायित्व
  • वनों से प्राकृतिक संतुलन
  • नगरीकरण का प्रभाव
  • उपसंहार

प्रस्तावना – वनों के साथ मनुष्य का संबंध बहुत पुराना है। आदिमानव वनों की गोद में ही पला-बढ़ा है और अपना जीवन उन्हीं वनों में व्यतीत किया है। वन मानव के लिए प्रकृति प्रदत्त अनुपम वरदान है। वन मनुष्य की विविध आवश्यकताओं को विविध रूपों में पूरा करते हैं। सच तो यह है कि वनों के बिना धरती पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है।

वनों से प्राकतिक संतुलन – वन शिव की भाँति परोपकारी होते हैं। वे जहरीली गैसों का पानकर जीवनदायी ऑक्सीजन प्रदान करते हैं, जिससे प्राणियों को जीवन मिलता है। धरती पर निरंतर बढ़ते कल-कारखाने और उनसे निकलता धुआँ, मोटर-गाड़ियों का ज़हरीला धुआँ तथा मनुष्य के विभिन्न क्रियाकलापों से कार्बन डाई ऑक्साइड और सल्फर डाई ऑक्साइड जैसी गैसों के कारण वायुमंडल विषाक्त हो जाता है। उससे ऑक्सीजन की मात्रा घटती जाती है पर पेड़-पौधे इस दूषित हवा का अवशोषण कर शुद्ध हवा देकर प्राकृतिक संतुलन बनाए रखते हैं।

वनों के विभिन्न लाभ – वनों से मनुष्य को इतने लाभ हैं कि उनका आकलन सरल नहीं है। वनों के लाभों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –
1. प्रत्यक्ष लाभ-वन मनुष्य को फल-फूल, इमारती लकड़ी और जलावनी लकड़ी, गोद, शहद, पत्तियाँ, जानवरों के लिए चारा और छाया देते हैं। इनसे हमारे उद्योग-धंधों को मज़बूत आधार मिलता है। बहुत से उद्योगों के लिए कच्चा माल इन्हीं वनों से मिलता है। कागज़, प्लाइवुड, रेशम, दियासलाई अगरबत्ती जैसे उद्योगों का आधार वन हैं।

2. अप्रत्यक्ष लाभ-वनों से अनेक ऐसे लाभ हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते हैं। वन सभी प्राणियों के लिए जीवनदायी ऑक्सीजन
देते हैं जिसके मूल्य का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है। इसके अलावा वन पशु-पक्षियों को आश्रय एवं भोजन उपलब्ध कराते हैं। वन एक ओर वर्षा लाने में सहायक हैं तो दूसरी ओर मिट्टी का कटाव रोककर मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बनाए रखते हैं। इस मिट्टी को बहकर नदियों में जाने से रोककर वृक्ष बाढ़ रोकने में भी मदद करते हैं। इसके अलावा वन धरा का शृंगार हैं जो अपनी हरियाली से उसकी सुंदरता में वृद्धि करते हैं।

नगरीकरण का प्रभाव – दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ती जनसंख्या और उसकी आवश्यकता की सर्वाधिक मार वनों पर पड़ी है। मनुष्य ने अपनी बढ़ती आवासीय आवश्यकता के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की है। इसके अलावा उद्योगों की स्थापना से वन विनाश बढ़ा है। इससे सबसे अधिक बुरा असर शहरों और महानगरों पर पड़ा है जहाँ अब साँस लेने के लिए स्वच्छ हवा दुर्लभ हो गई है। इन उद्योगों और कल-कारखानों की चिमनियों से निकला धुआँ न केवल मनुष्य के लिए बल्कि वनों की वृद्धि में बाधक सिद्ध होती है। वनों की कटाई करते हुए मनुष्य यह भी भूल जाता है कि वनों का विनाश करके वह अपना विनाश करने पर तुला है।

हमारा दायित्व-वनों का विनाश रोककर ही मनुष्यता का विनाश रोका जा सकता है। ऐसे में मनुष्य का यह पहला दायित्व बनता है कि यदि वह अपनी ज़रूरत के लिए एक पेड़ काटता है तो उसकी जगह चार नए पौधे लगाए और पेड़ बनने तक उनकी देखभाल करे। अब वह समय आ गया है कि त्योहारों, जन्मदिन, विवाह या अन्य मांगलिक अवसरों पर पेड़ लगाएँ जाएँ और उनका संरक्षण किया जाए। वनों को बचाने के लिए अब पुनः एक बार ‘चिपको आंदोलन’ जैसा ही आंदोलन एवं जन जागरण चलाकर इन्हें कटने से बचाने का प्रयास करना चाहिए। सड़कों को चौड़ा करने और मेट्रो रेल जैसी नई परियोजना को पूरा करते समय जितने पेड़ काटे जाएँ उनके दूने पेड़ लगाना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए।

उपसंहार-वन प्राणियों के लिए वरदान हैं। इस वरदान को बनाए रखने की बहुत आवश्यकता है। वनों के सहारे ही पृथ्वी पर प्राणियों का जीवन संभव है। भरपूर वर्षा, धरती पर हरियाली और उसकी उर्वराशक्ति बनाए रखने के लिए वनों का होना आवश्यक है। हमें वनों के संरक्षण का हर संभव प्रयास करना चाहिए, क्योंकि वनों के बिना पृथ्वी पर जीवन न बचेगा। आइए हम सभी प्रतिवर्ष एक से अधिक पेड़ लगाने की प्रतिज्ञा करते हैं।

(12) कंप्यूटर के लाभ

संकेत-बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • कंप्यूटर की उपयोगिता
  • विद्यार्थियों के लिए उपयोगी
  • उपसंहार
  • वर्तमान युग-कंप्यूटर युग
  • कंप्यूटर और इंटरनेट का मेल
  • प्रकाशन क्षेत्र में कंप्यूटर

प्रस्तावना – विज्ञान की प्रगति ने मनुष्य की दुनिया बदलकर रख दी है। उसने मनुष्य को नाना प्रकार के सुविधा के साधन प्रदान किए हैं। उसकी कृपा से मनुष्य को ऐसे अत्याधुनिक उपकरण मिले हैं जिनकी कभी वह कल्पना किया करता था। ऐसे यंत्रों में टेलीविज़न, मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप, कैलकुलेटर, कंप्यूटर आदि हैं। इनमें कंप्यूटर ऐसा उपकरण है जिसने लगभग हर क्षेत्र में अपनी उपयोगिता साबित की है और अब तो सभी को ज़रूरत बनता जा रहा है।

वर्तमान युग (कंप्यूटर-युग) – वर्तमान युग को कंप्यूटर युग कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। कार्यालयों में इस यंत्र का उपयोग जितना तेज़ी से बढ़ा और लोकप्रिय हुआ है, उतना अन्य कोई उपकरण नहीं। आज हम नज़र दौड़ाकर देखें तो जीवन के हर क्षेत्र में उसका हस्तक्षेप दिखाई देता है। इतना ही नहीं इंटरनेट के मेल ने कंप्यूटर को बहुपयोगी बना दिया है। सरकारी या प्राइवेट कोई भी कार्यालय ऐसा न होगा जहाँ पर इसका उपयोग न हो।

कंप्यूटर की उपयोगिता – कंप्यूटर अपनी कार्यप्रणाली और त्वरित गणना के कारण अत्यधिक उपयोगी बन गया है। यह जटिल-सेजटिल गणनाएँ सेकंड में कर देता है। इसके अलावा कंप्यूटर से मानवीय भूल की संभावना न के बराबर हो जाती है। ये गणनाएँ इतने कम समय में हो जाती हैं कि कई व्यक्ति भी मिलकर नहीं कर सकते हैं। आज कार्यालयों में कई व्यक्तियों का कार्य अकेला कंप्यूटर कर देता है। अब कार्यालयों में न फाइलें खोने का डर है और चूहों के कुतरने का। बैंक, रेलवे आरक्षण केंद्र, अस्पतालों में मरीजों का आरक्षण, तरह-तरह की डिजाइनें बनाने का काम तथा छपाई की दुनिया में क्रांति ला दिया है। खेल की दुनिया में तरहतरह के रिकॉर्ड पलक झपकते प्रस्तुत कर देना कंप्यूटर के बाएँ हाथ का काम है। कंप्यूटर के कारण अब काम का तनाव नहीं रह गया, क्योंकि अशुद्धियों की संभावना न के बराबर रह जाती है।

कंप्यूटर और इंटरनेट का मेल – कंप्यूटर के साथ इंटरनेट का मेल होने से कंप्यूटर की उपयोगिता कई गुना बढ़ गई है। अब कंप्यूटर के साथ बैठकर किसी भी तरह की जानकारी पलभर में पाई जाती है। कोई भी विषय हो, कंप्यूटर जवाब देने के लिए तैयार है। आपके बैंक की पासबुक कंप्यूटर पर उपलब्ध है। रेलवे की आरक्षण तालिका से अपनी मनपसंद के ट्रेन में सीटों की उपलब्धता जानी जा सकती है। आज इंटरनेट युक्त कंप्यूटर की मदद से अपने देश ही नहीं विदेश की जानकारी भी पाई जा सकती है।

विद्यार्थी के लिए उपयोगी-जिस तरह कंप्यूटर के कारण अब फाइलों की आवश्यकता नहीं रही और उनके स्टोर्स की ज़रूरत नहीं रही उसी प्रकार कंप्यूटर ने विद्यार्थियों का काम भी सुगम बना दिया है। अब छात्रों को मोटी-मोटी पुस्तकें उठाने, लाने-ले जाने की ज़रूरत नहीं रही। कई-कई पुस्तकें एक मेमोरी कार्ड में डालकर कंप्यूटर पर पढ़ी जा सकती हैं। अब छात्रों के लिए एक सुविधा यह भी है कि कंप्यूटर पर पढ़ा ही नहीं लिखा भी जा सकता है तथा किसी जगह की गलती को सुधारकर त्रुटिहीन प्रिंट निकाला जा सकता है। नक्शे, दुर्लभ चित्र और दुर्लभ पुस्तकें अब खरीदने की आवश्यकता नहीं रही। बस कंप्यूटर पर एक क्लिक करके इनका लाभ उठाया जा सकता है।

प्रकाशन क्षेत्र में कंप्यटर – कंप्यूटर ने प्रकाशन की दुनिया में क्रांति ला दी है। अब पुस्तकों की छपाई की गुणवत्ता, त्रुटिहीनता और उनके आकर्षण की वृद्धि का श्रेय कंप्यूटर को जाता है। इतना ही नहीं कंप्यूटर से यह काम अल्प समय में हो जाता है। इसके अलावा कंप्यूटर से छपाई के कारण पुस्तकों का मूल्य कम हुआ है जिसका लाभ विद्यार्थियों को मिला है। कंप्यूटर उन जटिल चित्रों को सहजता से बनाकर प्रस्तुत कर देता है जिन्हें बनाना कठिन है।

उपसंहार-कंप्यूटर को विज्ञान का अद्भुत वरदान समझना चाहिए, जिसने कदम-कदम पर मनुष्य की मदद की है। ‘अति सर्वत्र वय॑ते’ का सिद्धांत कंप्यूटर पर भी लागू होता है। हमें कंप्यूटर का तभी उपयोग करना चाहिए जब आवश्यक हो तथा इसका दुरुपयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए ताकि यह वरदान अभिशाप न बनने पाए।

(13) जीवन में खेलकूद का महत्त्व

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • खेल बढ़ाते मानवीय गुण
  • खेलों के लिए प्रोत्साहन
  • खेलों से शारीरिक एवं मानसिक विकास
  • खेल-एक आकर्षक कैरियर
  • उपसंहार

प्रस्तावना – किसी समय कहा जाता था कि ‘खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब, पढ़ी-लिखोगे बनोगे नवाब’ परंतु यह उक्ति आज अपनी प्रासंगिकता एवं उपयोगिता पूर्णतया खो चुकी है। खेल हर आयु-वर्ग की आज आवश्यकता बन चुके हैं। पहले मनुष्य अपने दैनिक जीवन में शारीरिक परिश्रम वाली क्रियाएँ करता था, जिससे उसकी खेल-संबंधी आवश्यकताएँ पूरी हो जाती थीं, परंतु आज की दिनचर्या में खेलों की आवश्यकता एवं महत्ता और भी बढ़ गई है। अब तो डॉक्टर भी प्रातः खुली हवा में सैर करने, व्यायाम करने, योगा करने की सलाह देने लगे हैं।

खेलों से शारीरिक एवं मानसिक विकास – खेल प्रायः दो प्रकार के होते हैं-पहले वे जिन्हें खुले मैदानों में खेला जाता है और दूसरे वे जिन्हें घर में बैठकर खेला जाता है। इनमें पहले प्रकार के खेल; जैसे-क्रिकेट, हॉकी फुटबॉल, वालीबॉल, कुश्ती, घुड़सवारी, लंबी-ऊँची कूद, दौड़ आदि खेलों में शारीरिक गतिविधियाँ अधिक होती हैं। इन खेलों से हमारा शरीर पुष्ट होता है। इनसे मांसपेशियाँ और हड्डियाँ पुष्ट और मज़बूत बनती हैं, शरीर सुडौल बनता है। इससे शरीर की सभी इंद्रियाँ सक्रिय रहती हैं तथा रक्त संचार सुचारु बनता है।

इन खेलों को खेलने से शारीरिक श्रम अधिक करना पड़ता है, अतः खिलाड़ी गहरी-गहरी साँसें लेते हैं जिससे हमारे फेफड़ों में ऑक्सीजन अधिक मात्रा में आती है जिससे शरीर को ऊर्जा मिलती है और हमारा पाचन ठीक रहता है जिससे भूख अधिक लगती है और हमारे द्वारा खाया-पिया गया आसानी से पच जाता है। इससे शरीर स्वस्थ और निरोग रहता है। इसके विपरीत खेल न खेलने वाले व्यक्ति की पाचन क्रिया ठीक न होने से वह अनेक बीमारियों से घिर जाता है। वह आलस्य अनुभव करता है, मोटापे का शिकार होता है और थोड़ा-सा भी काम करने, दौड़ने-भागने आदि से हाँफने लगता है। उसका स्वास्थ्य ठीक न होने से सब कुछ अच्छा होने से भी उसे कुछ अच्छा नहीं लगता है और निराशा तथा उदासी से घिर जाता है।

खेलों से मानसिक विकास भी होता है। शतरंज, लूडो, कैरम, ताश, वीडियोगेम जैसे खेल हमारी मानसिक क्षमता, चिंतन, सोच-विचार को बढ़ाते हैं जो हमारे जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं।

खेल बढ़ाते मानवीय गुण – खेल हमारे भीतर मानवीय गुणों को पैदा करते हैं तथा उनका विकास करते हैं। खेल एक ओर मित्रता और सद्व्यवहार को बढ़ावा देते हैं तो हमें हार-जीत को समभाव से ग्रहण करने की सीख देते हैं। यह भावना जीवन में सफलता पाने के लिए आवश्यक होती है। खेल हमारे भीतर त्वरित निर्णय लेने की क्षमता का विकास करते हैं। खेलों से ईमानदार बनने, परस्पर सहयोग करने, मिल-जुलकर रहने तथा त्याग करने की सीख देते हैं। इसके अलावा खेलों से हम अनुशासन, संगठन, साहस, विश्वास, आज्ञाकारिता, सहानुभूति, उदारता, आदि गुणों को खेल-ही-खेल में विकसित कर लेते हैं।

खेल एक आकर्षक कैरियर – खेल अब केवल खेलने-कूदने और स्वस्थ रहने का साधन ही नहीं रह गए हैं, बल्कि खेलों में एक आकर्षक कैरियर भी छिपा है। आज खेलों में अच्छा प्रदर्शन करके यश और नाम कमाया जा सकता है। सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, युवराज, राहुल द्रविड़, कपिल देव, साइना नेहवाल, सानिया मिर्जा आदि की प्रसिद्धि और वैभव संपन्नता का कारण खेल ही है। खेलों से ही ये विश्व प्रसिद्ध बने हैं और अपार धन के स्वामी बने हैं। इसके अलावा विभिन्न खेलों में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद एक समयोपरांत खेल प्रशिक्षक बनकर प्रशिक्षण केंद्र खोलकर नियमित आय अर्जित की जा सकती है।

खेलों के लिए प्रोत्साहन – खेलों में निरंतर उन्नत प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहन और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। प्रतियोगिताओं में विभिन्न प्रदेशों और देशों के खिलाड़ी भाग लेते हैं। इनके बीच पदक जीतने या स्थान हासिल करने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। यह प्रशिक्षण जितनी कम आयु से शुरू कर दिया जाए उतना ही अच्छा होता है। इसके लिए सरकार को जगह-जगह खेल प्रशिक्षण केंद्र खोलना चाहिए और ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को भी खेलों में अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

उपसंहार-खेल जीवन के लिए बहुत ज़रूरी होते हैं। ये नाना प्रकार से मनुष्य को लाभ पहुँचाते हैं। खेल स्वास्थ्य के लिए हितकारी होने के साथ ही मानवीय मूल्यों का विकास करते हैं। हमें खेलों को खेल भावना से खेलना चाहिए, बदला लेने की नीयत से नहीं। हमें खेलों में भाग लेना चाहिए और बच्चों को खेलों में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए। हम सभी को किसी-न-किसी एक खेल का भागीदार अवश्य बनना चाहिए।

(14) मेरी अविस्मरणीय यात्रा

संकेत-बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • यात्रा की अविस्मरणीय बातें
  • उपसंहार
  • यात्रा की तैयारी
  • अविस्मरणीय होने के कारण

प्रस्तावना – मनुष्य आदिकाल से ही घुमंतू प्राणी रहा है। यह घुमंतूपन उसके स्वभाव का अंग बन चुका है। आदिकाल में मनुष्य अपने भोजन और आश्रय की तलाश में भटकता था तो बाद में अपनी बढ़ी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए। इनके अलावा यात्रा का एक और उद्देश्य है-मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन। कुछ लोग समय-समय पर इस तरह की यात्राएँ करना अपने व्यवहार में शामिल कर चुके हैं। ऐसी एक यात्रा करने का अवसर मुझे अपने परिवार के साथ मिला था। दिल्ली से वैष्णों देवी तक की गई इस यात्रा की यादें अविस्मरणीय बन गई हैं।

यात्रा की तैयारी – वैष्णों देवी की इस यात्रा के लिए मन में बड़ा उत्साह था। यह पहले से ही तय कर लिया गया था कि इस बार दशहरे की छुट्टियों में हमें वैष्णों देवी की यात्रा करना है। इसके लिए दो महीने पहले ही आरक्षण करवा लिया गया था। आरक्षण करवाते समय यह ध्यान रखा गया था कि हमारी यात्रा दिल्ली से सवेरे शुरू हो ताकि रास्ते के दृश्यों का आनंद उठाया जा सके। रास्ते में खाने के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थ घर पर ही तैयार किए गए। चूँकि हमें सवेरे-सवेरे निकलना था, इसलिए कुछ गर्म कपड़ों के अलावा अन्य कपड़े एक-दो पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ टिकट, पहचान पत्र आदि दो-तीन सूटकेसों में यथास्थान रख लिए गए। शाम का खाना जल्दी खाकर हम अलार्म लगाकर सो गए ताकि जल्दी उठ सकें और रेलवे स्टेशन पहुँच सकें।

यात्रा की अविस्मरणीय बातें – दिल्ली से जम्मू और वैष्णों देवी की इस यात्रा में एक नहीं अनेक बातें अविस्मरणीय बन गई। हम सभी लगभग चार बजे नई दिल्ली से जम्मू जाने वाली ट्रेन के इंतजार में प्लेटफॉर्म संख्या 5 पर पहुँच गए। मैं सोचता था कि इतनी जल्दी प्लेटफॉर्म पर इक्का-दुक्का लोग ही होंगे पर मेरी यह धारणा गलत साबित हुई। प्लेटफार्म पर सैकड़ों लोग थे। हॉकर और वेंडर खाने-पीने की वस्तुएँ समोसे, छोले, पूरियाँ और सब्जी बनाने में व्यस्त थे। अखबार वाले अखबार बेच रहे थे। कुली ट्रेन आने का इंतज़ार कर रहे थे और कुछ लोग पुराने गत्ते बिछाए चद्दर ओढ़कर नींद का आनंद ले रहे थे।

ट्रेन आने की घोषणा होते ही प्लेटफार्म पर हलचल मच गई। यात्री और कुली सजग हो उठे तथा वेंडरों ने अपना-अपना सामान उठा लिया। ट्रेन आते ही पहले चढ़ने के चक्कर में धक्का-मुक्की होने लगी। दो-चार यात्री ही उस डिब्बे से उतरे पर चढ़ने वाले अधिक थे। हम लोग अपनी-अपनी सीट पर बैठ भी न पाए थे कि शोर उठा, ‘जेब कट गई’। जिस यात्री की जेब कटी थी उसका पर्स और मोबाइल फ़ोन निकल चुका था। हमने अपनी-अपनी जेबें चेक किया, सब सही-सलामत था। आधे घंटे बाद ट्रेन अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी। एक-डेढ़ घंटे चलने के बाद बाहर का दृश्य खिड़की से साफ़-साफ़ नज़र आने लगा। रेलवे लाइन के दोनों ओर दूर-दूर तक धरती ने हरी चादर बिछा दी थी। हरियाली का ऐसा नजारा दिल्ली में दुर्लभ था। ऐसी हरियाली घंटों देखने के बाद भी आँखें तृप्त होने का नाम नहीं ले रही थीं। हमारी ट्रेन आगे भागी जा रही थी और पेड़ पीछे की ओर। कभी-कभी जब बगल वाली पटरी से कोई ट्रेन गुज़रती तो लगता कि परदे पर कोई ट्रेन गुज़र रही थी।

ट्रेन में हमें नाश्ता और काफी मिल गई। दस बजे के आसपास अब खेतों में चरती गाएँ और अन्य जानवर नज़र आने लगे। उन्हें चराने वाले लड़के हमें देखकर हँसते, तालियाँ बजाते और हाथ हिलाते। सब कुछ मस्तिष्क की मेमोरी कार्ड में अंकित होता जा रहा था। लगभग एक बजे ट्रेन में ही हमें खाना दिया गया। खाना स्वादिष्ट था। हमने पेट भर खाया और जब नींद आने लगी तब सो गए। चक्की बैंक पहुँचने पर ही हमारी आँखें शोर सुनकर खुली कि बगल वाली सीट से कोई सूटकेस चुराने की कोशिश कर रहा था पर पकड़ा गया। कुछ और आगे बढ़ने पर पर्वतीय सौंदर्य देखकर आँखें तृप्त हो रही थीं। जम्मू पहुँचकर हम ट्रेन से उतरे और बस से कटरा गया। सीले रास्ते पर चलने का रोमांच हमें कभी नहीं भूलेगा। कटरा में रातभर आराम करने के बाद हम सवेरे तैयार होकर पैदल वैष्णों देवी के लिए चल पड़े और दो बजे वैष्णों देवी पहुंच गए।

अविस्मरणीय होने के कारण – इस यात्रा के अविस्मरणीय होने के कारण मेरी पहली रेल यात्रा, प्लेटफॉर्म का दृश्य, ट्रेन में चोरी, जेब काटने की घटना के अलावा प्राकृतिक दृश्य और पहाड़ों को निकट से देखकर उनके नैसर्गिक सौंदर्य का आनंद उठाना था। पहाड़ आकार में इतने बड़े होते हैं, यह उनको देखकर जाना। पहाड़ी जलवायु और वहाँ के लोगों का परिश्रमपूर्ण जीवन का अनुभव मुझे सदैव याद रहेगा।

उपसंहार-मैं सोच भी नहीं सकता था कि हरे-भरे खेत इतने आकर्षक होंगे और ट्रेन की यह यात्रा इस तरह रोमांचक होगी। पहाड़ी सौंदर्य देखकर मन अभिभूत हो उठा। अब तो इसी प्रकार की कोई और यात्रा करने की उत्सुकता मन में बनी हुई है। इस यात्रा की यादें मुझे सदैव रोमांचित करती रहेंगी।

(15) विज्ञान के वरदान

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • विज्ञान से हानियाँ
  • उपसंहार
  • विज्ञान के विभिन्न वरदान
  • विज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग

प्रस्तावना – मानव जीवन को सरल और सुखमय बनाने में सबसे ज्यादा यदि किसी का योगदान है तो वह विज्ञान का है। विज्ञान ने कदम-कदम पर मानव जीवन में हस्तक्षेप किया है और मनुष्य को इतनी सुविधाएँ प्रदान की हैं कि मनुष्य विज्ञान के अधीन होकर रह गया है। विज्ञान ने धरती आकाश और जल क्षेत्र तीनों को प्रभावित किया है। धरती का तो शायद ही कोई कोई कोना हो जहाँ विज्ञान ने कदम न रखा हो। विज्ञान के कारण मनुष्य ने उन्नति की है। मानव जीवन में क्रांति लाने का श्रेय विज्ञान को है। आज जिधर भी नज़र डालें, विज्ञान का प्रभाव सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है।

विज्ञान के विभिन्न वरदान – विज्ञान ने मनुष्य को इतनी सुविधाएँ दी हैं कि वह मनुष्य के लिए कामधेनु बन गया है। सर्वप्रथम कृषि क्षेत्र को देखते हैं। यहाँ पूरी तरह से बदलाव का कारण विज्ञान है। अब किसान को न हल चलाने की ज़रूरत है और न सिंचाई के लिए बैलों के पीछे दौड़ लगाने की। उसे अब निराई के लिए खुरपी उठाने की ज़रूरत नहीं हैं और न कटाई के लिए हँसिया उठाने की और न उसे धूप में चलकर एड़ी का पसीना चोटी पर पहुँचाने की। विज्ञान की कृपा से अब उसके पास ट्रैक्टर, ट्यूबवेल, कीटनाशक, खरपतवार नाशक यंत्र और दवाएँ हैं तथा कटाई-मड़ाई के लिए हारवेस्ट है जिनसे वह हफ़्तों का काम घंटों में कर लेता है। इसके अलावा उन्नतिशील बीज, खाद और यंत्रों का आविष्कार विज्ञान के कारण ही संभव हो पाया है। पैदल और बैलगाड़ियों पर यात्रा करने वाले मनुष्य के पास धरती, आकाश और जल पर चलने वाले द्रुतगामी साधन हैं जिनसे वह अपनी यात्रा को सरल, सुखद और मंगलमय ढंग से पूरा कर लेता है। विज्ञान के कारण अब आवागमन के साधनों से समय और श्रम दोनों बचने लगा है।।

अभी हरकारों और कबूतरों से संदेश भेजने वाला मनुष्य पत्रों की दुनिया से आगे बढ़कर रफ़्तार टेलीफ़ोन, ईमेल से होते मोबाइल तक आ पहुँचा है। जिस पत्र का जवाब आने में महीनों लगते थे और इलाज के लिए भेजा गया पैसा मरीज की मृत्यु और क्रिया कर्म के बाद मिलता था वही जवाब और पैसा अब हाथों हाथ मिलने लगा है। इतना ही नहीं अब तो बातें करते हुए व्यक्ति को हम देख भी सकते हैं। सरदी, गरमी और बरसात की मार झेलने वाले मनुष्य के पास अलग-अलग मौसम के कपड़े हैं। उसके पास हीटर और ब्लोअर हैं जो सरदी को उसके पास आने भी नहीं देते हैं। गरमी भगाने के लिए व्यक्ति के पास पंखे, कूलर और ए.सी. हैं। अब उसके यातायात के साधन भी वातानुकूलित हैं। वह जिन आरामदायी भवनों में रहता है, वे किसी स्वर्ग से कम नहीं हैं कच्चे घर और झोपड़ियों में सरदी, गरमी और वर्षा की मार झेलने की बातें गुज़रे ज़माने की बातें हो चुकी हैं।

चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में विज्ञान ने मनुष्य को नया जीवन दिया है। अब रोगों का इलाज ही नहीं, शरीर के खराब अंगों को बदलना बाएँ हाथ का काम हो गया है। रक्तदान और नेत्रदान जैसे मानवोचित कार्यों और विज्ञान के सहयोग से मनुष्य को नवजीवन मिल रहा है। एक्सरे, अल्ट्रासाउंड और एम.आर.आई. के माध्यम से रोगों की पहचान कर उनका यथोचित इलाज किया जा रहा है।

उपर्युक्त कुछ उदाहरण विज्ञान के वरदान के कुछ नमूने हैं। वास्तव में विज्ञान ने मनुष्य का कायाकल्प कर दिया है।

विज्ञान से हानियाँ –
विज्ञान के कारण मनुष्य को जहाँ अनेक लाभ हुआ है वहीं कुछ हानियाँ भी हैं। ये हानियाँ किसी सिक्के के दूसरे पहलू की भाँति हैं। विज्ञान की मदद से मनुष्य ने शत्रुओं से मुकाबला करने के लिए अनेक अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए हैं। इनमें परमाणु बम जैसे घातक हथियार भी हैं। ये अस्त्र-शस्त्र गलत हाथों में पड़कर समूची मानवता के लिए खतरा बन सकते हैं। इसके अलावा विज्ञान ने मनुष्य को भ्रम से दूर किया है जिससे मोटापा, रक्तचाप, अपच जैसी बीमारियाँ उसे घेर रही हैं।

विज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग – किसी भी वस्तु का विवेकपूर्ण उपयोग ही लाभदायक होता है। ऐसी ही स्थिति विज्ञान की है। विज्ञान
द्वारा प्रदत्त चाकू का प्रयोग हम सब्जी काटने के लिए करते हैं या दूसरे की हत्या के लिए, यह हमारे विवेक पर निर्भर करता है। यदि कोई विज्ञान का दुरुपयोग करता है तो यह विज्ञान का दोष नहीं है। विज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग ही मनुष्यता की भलाई जैसे कार्य करने में सहायक होगा।

उपसहार- विज्ञान ने हमारा जीवन नाना प्रकार से सुखमय बनाया है। हमें विज्ञान का ऋणी होना चाहिए, जिसने हमें आदिमानव की जंगली-जीवन शैली से ऊपर यहाँ तक पहुँचाया है। अब यह हमारा दायित्व बनता है कि हम विज्ञान को वरदान ही बना रहने दें। इसका दुरुपयोग कर इसे अभिशाप न बनाएँ। विज्ञान के वरदान बने रहने में मनुष्य, समाज, राष्ट्र और समूची मानवता की भलाई है।

(16) मेरी प्रिय पुस्तक-रामचरित मानस

संकेत-बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • मार्मिक प्रसंग
  • उपसंहार
  • आदर्शवादी व्यवहार
  • पुस्तक की कथावस्तु
  • कर्तव्यबोध का संदेश
  • प्रेरणादायिनी

प्रस्तावना – यह हमारे देश और समस्त भारतवासियों का सौभाग्य है कि यहाँ समय-समय पर अनेक कवियों ने जन्म लिया है और अपनी कालजयी कृतियों से जनमानस का मनोरंजन ही नहीं किया, बल्कि उन्हें ज्ञान के साथ-साथ कर्म का संदेश भी दिया। इनमें से कुछ कवियों ने धर्म और भक्तिभाव को प्रेरित करने वाली कृतियों की रचना की तो कुछ ने कर्तव्यबोध और आदर्श व्यवहार की तथा कुछ ने नीति सम्मत व्यवहार करने की पर गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस मुझे विशेष पसंद है, क्योंकि इसमें आवश्यक एवं जीवनोपयोगी गुणों एवं मूल्यों का संगम है।

पुस्तक की कथावस्तु – रामचरित मानस की प्रमुख कथावस्तु दशरथ पुत्र श्रीराम का जीवन चरित्र है। इसमें उनके जन्म से लेकर उनके सुख-सुविधापूर्ण शासन तक का वर्णन है। बीच-बीच में अनेक उपकथाएँ इसके कलेवर में वृद्धि करती हैं।

रामचरित मानस में वर्णित रामकथा को सात सर्गों में बाँटकर वर्णित किया गया है। इन्हें बालकांड, अयोध्याकांड, सुंदरकांड, किष्किंधाकांड, अरण्यकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड नामों से जाना जाता है। कथा का प्रारंभ ईश वंदना के दोहों, श्लोकों और चौपाइयों से शुरू होता है और राम-जन्म उनके तीनों भाइयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ की गई बाल-क्रीड़ा, उनकी शिक्षा-दीक्षा, विश्वामित्र के साथ राक्षसों के वध के लिए उनके संग गमन, मारीचि, सुबाहु, ताड़का वध, जनकपुर गमन, स्वयंवर में धनुषभंग करना, सीता विवाह और अयोध्या वापस लौटना, कैकेयी का राजा दशरथ से दो वरदान माँगना, राम का सीता और लक्ष्मण के साथ वन गमन, सीता हरण, हनुमान-सुग्रीव से मित्रता, बालि वध, समुद्र पर पुल बाँधकर सेना सहित लंका गमन, रावण से युद्ध, रावण को मारकर विभीषण को लंका का राजा बनाना, अयोध्या प्रत्यागमन, कुशलतापूर्वक राज्य करना, सीता को वनवास देना, लव-कुश के द्वारा अश्वमेध के घोड़े को रोकने आदि का वर्णन है।

मार्मिक प्रसंग – रामचरित मानस में अनेक प्रसंग ऐसे हैं जिनका मार्मिक वर्णन मन को छू जाता है। राम का वनवास जाना, दशरथ का मूछित होना, समस्त प्रजाजनों का शोकाकुल होना, दशरथ का प्राणत्याग, रावण द्वारा सीता-हरण, अशोक वाटिका में राम की याद में उनका शोक संतप्त रहना, मेघनाद के साथ युद्ध में लक्ष्मण का मूछित होना, भरत मिलन प्रसंग, सीता का निष्कासन आदि प्रसंग मन को छू जाते हैं। इन अवसरों पर पाठकों के आँसू रोकने से भी नहीं रुकते हैं। आज भी दशहरे के अवसर जब रामलीला का मंचन होता है तो इन मार्मिक प्रसंगों को देखकर आँसू बहने लगते हैं।

कर्तव्यबोध का संदेश – रामचरित मानस की सबसे मुख्य विशेषता है- कर्तव्य का बोध कराना। इस महाकाव्य में राजा को प्रजा के साथ, प्रजा को राजा के साथ, मित्र को मित्र के साथ, पिता को पुत्र के साथ कर्तव्यों का वर्णन एवं उन्हें अपनाने की सीख दी गई है। एक प्रसंग के अनुसार-आज के बच्चों को उनके कर्तव्य का बोध ‘प्रातः काल उन्हें माता-पिता के चरण छूना चाहिए’ कराते हुए लिखा गया है –

प्रातकाल उठि के रघुनाथा। मातु-पिता गुरु नावहिं माथा॥

इस कर्तव्य का उन्हें शीघ्र फल भी प्राप्त होता है। राम अपने भाइयों के साथ गुरु विश्वामित्र के घर पढ़ने जाते हैं और सारी विद्याएँ शीघ्र ही ग्रहण कर लेते हैं –

गुरु गृह पढ़न गए दोउ भाई। अल्पकाल सब विद्या पाई ॥

आदर्शवादी व्यवहार-रामचरित मानस नामक यह पुस्तक पाठकों के मन में धर्म और भक्तिभाव का उदय तो करती है साथ ही आदर्श व्यवहार की सीख भी देती है। यह मानव को मानवोचित व्यवहार के लिए प्रेरित करती है।

राजा पर यह दायित्व होता है कि वह प्रजा का पालन-पोषण करें तथा अपने कर्तव्यों का उचित प्रकार से निर्वाह करे। इसी को याद दिलाते हुए तुलसीदास ने लिखा है –

जासु राज निज प्रजा दुखारी। सो नृप अवस नरक अधिकारी।

आज के मंत्रियों और अफसरों के लिए इससे बड़ी सीख और क्या हो सकती है।

प्रेरणादायिनी – रामचरित मानस नामक यह पुस्तक हमें कर्म का संदेश देती है। राम ईश्वर के अवतार थे, अंतर्यामी थे, त्रिकालदर्शी थे, फिर भी उन्होंने आम इनसान की तरह हर कार्य अपने हाथों से करके एक ओर कर्म की प्रेरणा दी तो दूसरी ओर असत्य, अन्याय और अत्याचार सहन न करके उससे मुकाबला करने की प्रेरणा दी। इस महाकाव्य की एक-एक पंक्ति जीवन के सभी पक्षों को प्रेरित करती है।

उपसंहार – ‘रामचरितमानस’ की रचना को लगभग पाँच सौ वर्ष बीत गए पर इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। यह पुस्तक भारत में ही नहीं विश्व की भाषाओं में रूपांतरित की गई। इसकी अवधी भाषा, दोहा, सोरठा और चौपाई जैसे गेयता वाले छंदों के कारण यह पढ़ने में सरल सहज और सुनने में कर्णप्रिय है। इसकी लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह महाकाव्य हर हिंदू के घर में देखा जा सकता है।

(17) फ़िल्म जो अच्छी लगी

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • फ़िल्म की कहानी
  • उपसंहार
  • कथानक एवं दृश्य
  • फ़िल्म के दृश्य, पात्र एवं संवाद

प्रस्तावना – मनुष्य किसी-न-किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए श्रम करता है। श्रम के उपरांत थकान एवं तनाव होना स्वाभाविक है। इससे छुटकारा पाने के लिए अनेक तरीके अपनाता है। वह खेल-तमाशे, नाटक, फ़िल्म, देखता है तथा पत्र-पत्रिकाएँ पढ़कर तरोताज़ा महसूस करता है। इनमें फ़िल्म देखना सबसे लोकप्रिय तरीका है जिससे तनाव-थकान से मुक्ति के अलावा ज्ञानवर्धन एवं मनोरंजन भी होता है। मैंने भी अपने मित्रों के साथ जो फ़िल्म देखी, वह थी- चक दे इंडिया जो मुझे अच्छी और प्रेरणादायक लगी।

कथानक एवं दृश्य – इस फ़िल्म के प्रदर्शन के बाद से ही इसकी काफ़ी चर्चा थी। मेरे मित्र भी इस फ़िल्म का बखान करते थे कि यह प्रेरणादायी फ़िल्म है। मैंने अपने मित्रों के साथ इस फ़िल्म को देखा।

इस फ़िल्म में अभिनेता शाहरुख खान ने मुख्य भूमिका निभाई है। इसमें भारतीय महिला हाकी टीम की तत्कालीन दशा को मुख्य विषय बनाया गया है। फ़िल्म में खेल और राजनीति का संबंध, खेल भावना का परिचय, सांप्रदायिक तनाव, खेल में अधिकारियों का हस्तक्षेप, कभी गुस्साई और कभी हर्षित जनता की प्रतिक्रिया सब कुछ वास्तविक-सा लगता है।

फ़िल्म की कहानी – इस फ़िल्म में शाहरुख खान को भारतीय हॉकी टीम के कप्तान के रूप दर्शाया गया है। वह पठान मुसलमान है। उनकी टीम चिर-परिचित प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के विरुद्ध मैच खेल रही है। मैच में भारतीय टीम 1-0 से पिछड़ रही है। भारतीय खिलाड़ी जोरदार प्रदर्शन करते हैं और पेनाल्टी कार्नर का मौका टीम को मिल जाता है। इस पेनाल्टी कार्नर को गोल में बदलने में शाहरुख खान असफल रहते हैं। खेल जारी रहता है पर समाप्ति पर भारत वह मैच 1-0 से हार जाता है।

इसी दृश्य से पूर्व भारतीय कप्तान और पाकिस्तानी कप्तान को आपस में बातचीत करते दर्शा दिया जाता है। चूँकि भारत यह मैच हार चुका था इसलिए मीडिया इस मुलाकात का गलत अर्थ निकालती है और इस घटना के षड्यंत्र के साथ पेश करती है। ऐसे में देश की जनता भड़क जाती है। भारत में कप्तान की छवि खराब हो जाती है। कुछ उपद्रवी खेल प्रेमी उनका मकान नष्ट कर देते हैं। देश की जनता उन्हें गद्दार कहती है। वे धीरे-धीरे गुमनामी के अंधकार में खो जाते हैं।

इस घटना के पाँच, छह वर्ष बाद यह दिखाया जाता है कि भारतीय महिला हॉकी टीम की स्थिति इतनी खराब है कि कोई कोच बनने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में शाहरुख खान कोच की भूमिका निभाने के लिए आगे आते हैं। भारत के अलग-अलग राज्यों से आईं खिलाड़ियों के बीच समस्या-ही-समस्या है। सबकी अलग-अलग भाषा, रहन-सहन, तौर-तरीके सब अलग हैं। उनको एकता के सूत्र में बाँधना चुनौती है। ये महिला खिलाड़ी आपस में लड़ जाती हैं और कोच को हटाने की माँग करती हैं। संयोग से एक विदाई समारोह में इन खिलाड़ियों में एकता हो जाती है।

इसी बीच शाहरुख खान (कोच) भारतीय पुरुष एवं महिला हॉकी टीमों के बीच मुकाबला करवाते हैं। इस मुकाबले से महिला टीम की योग्यता सभी के सामने आ जाती है। अब टीम को विश्व कप प्रतियोगिता में भेजा जाता है जहाँ वह पहला मैच 7-1 से हार जाती है। यह हार उनके लिए टॉनिक का काम करती है और जीत दर्ज करते-करते विश्वकप जीत लेती है। अब वही मीडिया और भारतीय जनता शाहरुख खान को सिर पर बिठा लेती है।

फ़िल्म के दृश्य, पात्र एवं संवाद – यह फ़िल्म इतनी प्रभावी है कि दर्शकों को अंत तक बाँधे रखती है। फ़िल्म में मारपीट, खीझ, गुस्सा, संघर्ष, प्रतिशोध, एकता, साहस, हार से सबक, जीत की खुशी आदि को अच्छे ढंग से दर्शाया गया है। इसमें शाहरुख का अभिनय दर्शनीय है। खिलाड़ियों में जीत की चाह देखते ही बनती है जो अंत में उनकी विजय के लिए वरदान बन जाती है।

उपसंहार-‘चक दे इंडिया’ वास्तविक-सी लगने वाली कहानी पर बनी फ़िल्म है जो हार से मिली असफलता से निराश न होने तथा पुनः प्रयास कर आगे बढ़ने का संदेश देती है। यह फ़िल्म एकता एवं सौहार्द बढ़ाने में भी सहायक है। इस फ़िल्म का संदेश है, मुसीबत से हार न मानकर सफलता की ओर बढ़ते जाना, यही जीवन की सच्चाई है।

(18) परोपकार
या
परहित सरिस धर्म नहिं भाई

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • परोपकारी प्रकृति
  • परोपकार के विविध उदाहरण
  • उपसंहार
  • परोपकार-मानवधर्म
  • परोपकार के विविध रूप
  • वर्तमान स्थिति

प्रस्तावना- परोपकार शब्द ‘पर’ और ‘उपकार’ के मेल से बना है, जिसका अर्थ है-दूसरों की भलाई अर्थात दूसरों की भलाई के लिए तन-मन और धन से किए गए सभी कार्य परोपकार कहलाते हैं। परोपकार के समान न कोई धर्म है और न दूसरों को सताने जैसा कोई पाप। मनुष्य का सारा जीवन प्रेम और सहयोग पर आधारित है। इसी सहयोग के मूल में है-परोपकार, जिससे उपकारी और उपकृत दोनों कों खुशी होती है।

परोपकार-मानवधर्म – परोपकार मानवजीवन का सबसे बड़ा धर्म कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। मनुष्य का धर्म है, कि वह जैसे भी हो दूसरे की मदद करे। यहीं से परोपकार की शुरुआत हो जाती है। यदि मनुष्य परोपकार नहीं करता है तो उसमें और पशु में क्या अंतर रह जाता है। कवि मैथिलीशरण गुप्त ने ठीक ही कहा है –

अहा! वही उदार है, परोपकार जो करे।
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

परोपकारी प्रकृति-हम ध्यान से देखें तो प्रकृति का कण-कण परोपकार में लीन दिखता है। सूर्य अपना प्रकाश धरती का अँधेरा भगाने के लिए करता है तथा गरमी से शीत हर लेता है ताकि जीव आनंदपूर्वक रह सके। चाँद अपनी शीतलता से मन को शांति देता है। बादल दूसरों की भलाई के लिए बरसकर अपना अस्तित्व नष्ट कर लेते हैं। इसी प्रकार नदी तालाब अपना पानी दूसरों के लिए त्याग देते हैं। पेड़ दूसरों की क्षुधा शांति के लिए ही फल धारण करते हैं। प्रकृति के अभिन्न अंग फूल अपनी सुगंध दूसरों को बाँटते रहते हैं। प्रकृति के इस कार्य से प्रेरित होने में संत और सज्जन कहाँ पीछे रहने वाले। वे भी दूसरों की भलाई के लिए धन एकत्र करते हैं। कवि रहीम ने ठीक ही कहा है –

तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर करत न पान।
कह रहीम परकाज हित, संपति सँचहि सुजान॥

परोपकार के विविध रूप – परोपकार के नाना रूप साधन एवं तरीके हैं। मनुष्य वाणी, मन और कर्म से परोपकार कर सकता है, पर सबसे अच्छा तरीका कर्म द्वारा दूसरों की भलाई करना है, क्योंकि इसका प्रत्यक्ष लाभ व्यक्ति को मिलता है। वाणी द्वारा दूसरों की भलाई दूसरों का मनोबल बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती है। परोपकार के अंतर्गत हम असहाय की धन से मदद करके रोगी की सेवा करके, अपाहिज को उसके गंतव्य तक पहुँचाने जैसे छोटे-छोटे कार्यों द्वारा कर सकते हैं।

परोपकार के विविध उदाहरण – भारत का इतिहास परोपकारी व्यक्तियों के कार्यों से भरा पड़ा है। यहाँ लोगों ने मानवता की भलाई के लिए न अपने धन को धन समझा और न तन को तन। आवश्यकता पड़ने तन, मन और धन से दूसरों की भलाई की। भामाशाह ने अपनी जीवनभर की संचित कमाई राणा प्रताप के चरणों में रख दिया। महर्षि दधीचि ने देवताओं को संभावित पराजय से बचाने के लिए और मानवता के कल्याण हेतु अपनी हड्डियों तक का दान दे दिया। कर्ण ने अपने जीवन की परवाह न करते हुए कवच, कुंडल और सोने के दाँत तक का दान दे दिया।

राम, कृष्ण, ईसा मसीह, मदर टेरेसा, सुकरात, महात्मा गांधी आदि ने अपना जीवन ही परोपकार में लगा दिया। परोपकार के लिए सुकरात ने ज़हर का प्याला पिया, तो गौतम बुद्ध राज्य का सुख छोड़कर संन्यासी बन गए।

वर्तमान स्थिति – मनुष्य अपनी बढ़ी हुई आवश्यकताएँ, लोभ एवं स्वार्थ की प्रवृत्ति के कारण इतना उलझा हुआ है कि परोपकार जैसे कार्य पीछे छूट गए हैं। लोगों में परोपकारी भावना का अभाव दिखता है। आज मनुष्य को अधिकाधिक धन संचय करने की पड़ी है इस कारण वह पशुवत अपने लिए ही जी रहा है और मर रहा है। दूसरों की भलाई करना किताबों तक सीमित रह गया है।

उपसंहार – मानव जीवन को तभी सार्थक कहा जा सकता है जब वह परोपकार करे। इसके लिए छोटे-से-छोटे कार्य से शुरुआत की जा सकती है। परोपकार करने से खुद को आत्मिक शांति तो मिलती है वहीं दूसरे को मदद एवं खुशी भी मिलती है। मनुष्य को परोपकारी वृत्ति का कभी भी त्याग नहीं करना चाहिए।

(19) समय का सदुपयोग

संकेत-बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • समय का अधिकाधिक उपयोग
  • प्रकृति से सीख
  • समय नियोजन का महत्त्व
  • आलस्य समय के सदुपयोग में बाधक
  • उपसंहार

प्रस्तावना – मनुष्य अपने जीवन में बहुत कुछ कमाता है और बहुत गँवाता है। उसे प्रत्येक वस्तु परिश्रम के उपरांत प्राप्त होती है, परंतु प्रकृति ने उसे समय का अमूल्य उपहार मुफ़्त दिया है। इस उपहार की अवहेलना करके उसकी महत्ता न समझने वालों को एक दिन पछताना पड़ता है क्योंकि गया समय लौटकर वापस नहीं आता है। जो समय बीत गया उसे किसी हाल में लौटाया नहीं जा सकता है।

समय नियोजन का महत्त्व – समय ऐसी शक्ति है जिसका वितरण सभी के लिए समान रूप से किया गया है, परंतु उसका लाभ वही उठा पाते हैं जो समय का उचित नियोजन करते हैं। प्रकृति ने किसी के लिए भी छोटे दिन नहीं बनाया है परंतु नियोजनबद्ध तरीके से काम करने वाले हर काम के लिए पूरा समय बचा लेते हैं और अनियोजित तरीके से काम करने वालों का काम समय पर पूरा न होने से समय की कमी का रोना रोते हैं। समय का नियोजन न करने वालों को समय पीछे ढकेल देता है और समय का सदुपयोग करने वाले सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं।

महापुरुषों की सफलता का रहस्य उनके द्वारा समय का नियोजन ही है जिससे वे समय पर अपने काम निपटा लेते हैं। गांधी जी समय के एक-एक क्षण का सदुपयोग करते थे। वे अपनी दिनचर्या के अनुरूप रोज़ का काम रोज़ निपटाने के लिए तालमेल बिठा लेते थे। विद्यार्थी जीवन में समय का सदुपयोग और उसके नियोजन का महत्त्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इसी काल में उसे विद्यार्जन के अलावा शारीरिक और चारित्रिक विकास पर भी ध्यान देना होता है। इसके लिए उसे हर विषय के अध्ययन के लिए समय निकालना पड़ता है ताकि कोई विषय छूट न जाए। इसके अलावा उसे खेलने और अन्यकार्यों के लिए भी समय विभाजन करना पड़ता है। जो विद्यार्थी समय का उचित विभाजन नहीं करते वे सफलता नहीं प्राप्त कर पाते। आज का काम कल पर छोड़ने वाले विदयार्थी भी सफलता से कोसों दूर रह जाते हैं। फिर किस्मत का रोना रोने के अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं बचता है। ऐसे विद्यार्थियों के लिए ही कहा गया है कि –

अब पछताए होत का, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत।

समय का अधिकाधिक उपयोग – समय का महत्त्व और मूल्य समझकर हमें इसका अधिकाधिक उपयोग करना चाहिए। हमें एक बात यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि Time and tide wait for none अर्थात समय और ज्वार किसी की प्रतीक्षा नहीं करते हैं। वे अपने समयानुसार आते-जाते रहते हैं। यह तो व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है कि वे उनका उपयोग करते हैं या सदुपयोग। समय के बारे में एक बात सत्य है कि समय किसी की भी परवाह नहीं करता। यह किसी शासक, राजा या तानाशाह के रोके नहीं रुका है। जिन लोगों ने समय को नष्ट किया है, समय उनसे बदला लेकर एक दिन उन्हें अवश्य नष्ट कर देता है।

इस क्षणभंगुर मानव जीवन में काम अधिक और समय बहुत कम है। नेपोलियन और सिकंदर महान ने समय के पल-पल का उपयोग किया। समय पर बिना चूके अपने शत्रुओं-पर हमला किया और विजयश्री का वरण किया। समय पर हमले का जवाब न देने वाले, शत्रुओं को समय देने वाले शासक के हाथ पराजय ही लगती है। आतंकियों द्वारा लगाए बम को समय पर नष्ट न करने का कितना भीषण परिणाम होगा यह बताने की आवश्यकता नहीं है। समय के एक-एक पल की कीमत समझते हुए संत कबीर दास ने ठीक ही लिखा है –

काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करेगा कब॥

आलस्य समय के सदुपयोग में बाधक – कुछ लोग समय का उपयोग तो करना चाहते हैं, परंतु आलस्य उनके मार्ग में बाधक बन जाता है। यह मनुष्य को समय पर काम करने से रोकता है। आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। कहा भी गया है, “आलस्यो हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः”। जो लोग बुद्धिमान होते हैं वे खाली समय का उपयोग अच्छी पुस्तकें पढ़ने में करते हैं इसके विपरीत मूर्ख अपने समय का उपयोग सोने और झगड़ने में करते हैं। कहा भी गया है –

काव्य शास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रांकलहेन वा॥

उपसंहार- प्रकृति ने समय का बँटवारा सभी के लिए बराबर किया है। हमें चाहिए कि हम इसी समय का उचित नियोजन करें और प्रत्येक कार्य को समय पर निपटाने का प्रयास करें। आज का कार्य कल पर छोड़ने की आदत आलस्य को बढ़ावा देती है। हमें समय का उपयोग करते हुए सफलता अर्जित करने का प्रयास करना चाहिए।

(20) पत्र-पत्रिकाओं के नियमित पठन के लाभ

संकेत बिंदु –

  • प्रस्तावना
  • पढने की स्वस्थ आदत का विकास
  • पत्र-पत्रिकाएँ कितनी लाभदायी
  • उपसंहार
  • ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार
  • रंग-बिरंगी पत्र पत्रिकाएँ
  • पत्रिकाओं से दोहरा लाभ

प्रस्तावना – मनुष्य जिज्ञासु एवं ज्ञान-पिपासु जीव है। वह विभिन्न साधनों एवं माध्यमों से अपनी जिज्ञासा एवं ज्ञान-पिपासा शांत करता आया है। अन्य प्राणियों की तुलना में उसका मस्तिष्क विकसित होने के कारण वह अनेकानेक साधनों का प्रयोग करता है। ऐसे ही साधनों में एक है-पत्र-पत्रिकाएँ, जिनके द्वारा मनुष्य अपना ज्ञानवर्धन एवं मनोरंजन करता है।

ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार – पत्र-पत्रिकाएँ अपने अंदर तरह-तरह का ज्ञान समेटे होती हैं। इनके पठन से ज्ञानवर्धन के साथ-साथ हमारा स्वस्थ मनोरंजन भी होता है। वैसे भी पत्र-पत्रिकाएँ और पुस्तकें मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र होती हैं। पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ते समय यदि व्यक्ति इनमें एक बार खो गया तो उसे अपने आस-पास की दुनिया का ध्यान नहीं रह जाता है। पाठक को ऐसा लगने लगता है कि उसे कोई खजाना मिल गया है। इनमें छपी कहानियों से हमारा मनोरंजन होता है तो वहीं हमें नैतिक ज्ञान भी मिलता है तथा मानवीय मूल्यों की समझ पैदा होती है। इनमें विभिन्न राज्यों पर छपे लेख, वर्ग-पहेलियाँ, शब्दों का वर्गजाल, बताओ तो जानें आदि स्तंभ ज्ञानवृद्धि में सहायक होते हैं। रंगभरो, बिंदुजोड़ो, कविता। कहानी पूरी कीजिए जैसे स्तंभ ज्ञान में वृद्धि करते हैं।

पढ़ने की स्वस्थ आदत का विकास – पत्र-पत्रिकाओं के नियमित पठन से पढ़ने की स्वस्थ आदत का विकास होता है। यह देखा गया है कि जो बालक पढ़ने से जी चुराते हैं या पाठ्यक्रम की पुस्तकें पढ़ने से आना-कानी करते हैं उनमें पढ़ने की आदत विकसित करने का सबसे अच्छा साधन पत्र-पत्रिकाएँ हैं। इनमें छपी कहानियाँ, चुटकुले, आकर्षक चित्र पढ़ने को विवश करते हैं। यह आदत धीरे-धीरे बढ़ती जाती है जिसे समयानुसार पाठ्य पुस्तकों के पठन की ओर मोड़ा जा सकता है। इससे बच्चे में पढ़ने की आदत का विकास हो जाता है तथा पढ़ाई के प्रति रुचि उत्पन्न हो जाती है। ये पत्र-पत्रिकाएँ बच्चों के लिए पुनरावृत्ति का काम करती हैं। कई बच्चे कहानियाँ पढ़ने की लालच में गृहकार्य करने बैठ जाते हैं।

रंग-बिरंगी पत्रिकाएँ – बच्चों तथा पाठकों की आयु-रुचि तथा पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन अवधि के आधार पर इन्हें कई वर्गों में बाटा जा सकता है। जो पत्र-पत्रिकाएँ सप्ताह में एक-बार प्रकाशित की जाती हैं, उन्हें साप्ताहिक पत्रिकाएँ कहा जाता है। इन पत्रिकाओं में राजस्थान पत्रिका, सरस सलिल, इंडिया टुडे आदि मुख्य हैं। कुछ पत्रिकाएँ पंद्रह दिनों में एक बार छापी जाती हैं। इन्हें पाक्षिक पत्रिका कहते हैं। पराग, नंदन, नन्हे सम्राट, चंपक, लोट-पोट, चंदा मामा, सरिता, माया आदि ऐसी ही पत्रिकाएँ हैं।

महीने में एक बार छपने वाली पत्र-पत्रिका को मासिक पत्रिकाएँ कहा जाता है। इन पत्रिकाओं में गृहशोभा, सुमन, सौरभ, मुक्ता कादंबिनी, रीडर्स डाइजेस्ट, प्रतियोगिता दर्पण, मनोरमा तथा फ़िल्मी दुनिया से संबंधित बहुत-सी पत्रिकाएँ हैं। इनके अलावा और भी विषयों और साहित्यिक पत्रपत्रिकाओं का प्रकाशन महीने में एक बार किया जाता है। कुछ पत्रिकाओं का वार्षिकांक और अर्ध-वार्षिकांक भी प्रकाशित होता है।

पत्र-पत्रिकाएँ कितनी लाभदायी – पत्र-पत्रिकाएँ मनुष्य के दिमाग को शैतान का घर होने से बचाती हैं। ये हमारे बौद्धिक विकास का सर्वोत्तम साधन हैं। इन्हें ज्ञान एवं मनोरंजन का खजाना कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। शरीर और मस्तिष्क की थकान और तनाव दूर करना हो या अनिद्रा भगाना हो तो पत्र-पत्रिकाएँ काम आती हैं। सफर में इनसे अच्छा साथी और कौन हो सकता है। एकांत हो या किसी का इंतज़ार करते हुए समय बिताना हो पत्रिकाओं का सहारा लेना सर्वोत्तम रहता है। इनसे खाली समय आराम से कट जाता है। इन पत्र-पत्रिकाओं में छपी जानकारियों का संचयन करके जब चाहे काम में लाया जा सकता है।

पत्रिकाओं से दोहरा लाभ – पत्र-पत्रिकाएँ एक ओर हमारा बौद्धिक विकास करती हैं, मनोरंजन करती हैं तो दूसरी ओर रोज़गार का साधन भी हैं। इनके प्रकाशन में हज़ारों-लाखों को रोजगार मिला है तो बहुत से लोग इन्हें बाँटकर और बेचकर रोटी-रोज़ी का इंतजाम कर रहे हैं। इसके अलावा इन पत्रिकाओं को पढ़कर रद्दी में बेचने के बजाय बहुत से लोग लिफ़ाफ़े बनाकर अपनी आजीविका चला रहे हैं। इस प्रकार पत्रिकाएँ आम के आम और गुठलियों के दाम की कहावत को चरितार्थ कर रही हैं।

उपसंहार-पत्र-पत्रिकाएँ हमारी सच्ची मित्र हैं। ये हमारे सामने ज्ञान का मोती बिखराती हैं। इनमें से कितनी मोतियाँ हम एकत्र कर सकते हैं, यह हमारी क्षमता पर निर्भर करता है। हमें पत्र-पत्रिकाओं के पठन की आदत डालनी चाहिए तथा जन्मदिन आदि के अवसर पर उपहारस्वरूप पत्रिकाएँ देकर नई शुरुआत करनी चाहिए।

NCERT Solutions for Class 10 Hindi

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CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल पत्र लेखन

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CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल पत्र लेखन

पत्र लेखन एक विशेष कला – मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अपने दुख-सुख दूसरों में बाँटना चाहता है। जब उसका कोई प्रिय व्यक्ति उसके पास होता है तब वह मौखिक रूप से अभिव्यक्त कर देता है परंतु जब वही व्यक्ति दूर होता है तब वह पत्रों के माध्यम से अपनी बातें कहता और उसकी बातें जान पाता है। वास्तव में पत्र मानव के विचारों के आदान-प्रदान का अत्यंत सरल और सशक्त माध्यम है। पत्र हमेशा किसी को संबोधित करते हुए लिखे जाते हैं, अतः यह लेखन की विशिष्ट विधा एवं कला है। पत्र पढ़कर हमें लिखने वाले के व्यक्तित्व की झलक मिल जाती है।

पत्रों का महत्त्व – पत्र-लेखन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। इसका उल्लेख हमें अत्यंत प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। कहा जाता है कि रुक्मिणी ने एकांत में एक लंबा-चौड़ा पत्र लिखकर ब्राह्मण के हाथों श्रीकृष्ण को भिजवाया था। इसके बाद शिक्षा के विकास के साथ विभिन्न उद्देश्यों के लिए पत्र लिखे जाने लगे।

पत्र में हमें शब्दों का सोच-समझकर प्रयोग करना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार धनुष से छूटा तीर वापस नहीं आता उसी प्रकार पत्र में लिखे शब्दों को वापस नहीं लौटा सकते। पत्रों की उपयोगिता हर काल में रही है और रहेगी। मोबाइल फ़ोन और संचार के अन्य साधनों का विकास होने के बाद पत्र-लेखन प्रभावित हुआ है, पर इसकी महत्ता सदैव बनी रहेगी।

परीक्षा में विदयार्थियों को एक पत्र लिखने को कहा जाता है। इसमें परीक्षक का दृष्टिकोण यह देखना होता है कि विदयार्थी किस प्रकार पत्र लिखता है। पत्र का महत्त्वपूर्ण अंश उसका प्रारंभ और उपसंहार होता है। विद्यार्थी को इन्हीं अंशों में कठिनाई होती है। बीच के भाग में तो वे बड़ी आसानी से अपने विचारों को लिख सकते हैं। छात्रों को चाहिए कि पत्र रटने की अपेक्षा वे पत्र-लेखन को ध्यान से समझें कि पत्र का आरंभ कैसे करना चाहिए और उसे समाप्त कैसे करना चाहिए।

पत्र लिखते समय निम्नलिखित बातें अवश्य ध्यान में रखें –

1. सरलता- पत्र सरल भाषा में लिखना चाहिए। भाषा सीधी, स्वाभाविक व स्पष्ट होनी चाहिए। अतः पत्र में व्यक्ति को पूरी आत्मीयता और सरलता से उपस्थित होना चाहिए।

2. स्पष्टता- जो भी हमें पत्र में लिखना है यदि स्पष्ट, सुमधुर होगा तो पत्र प्रभावशाली होगा। सरल भाषा-शैली, शब्दों का चयन, वाक्य रचना की सरलता पत्र को प्रभावशाली बनाने में हमारी सहायता करती है।

3. संक्षिप्तता- पत्र में हमें अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए। अनावश्यक विस्तार पत्र को नीरस बना देता है। पत्र जितना संक्षिप्त व सुगठित होगा उतना ही अधिक प्रभावशाली भी होगा।

4. शिष्टाचार-पत्र प्रेषक और पत्र पाने वाले के बीच कोई न कोई संबंध होता है। आयु और पद में बड़े व्यक्ति को आदरपूर्वक, मित्रों को सौहार्द से और छोटों को स्नेहपूर्वक पत्र लिखना चाहिए।

5. आकर्षकता व मौलिकता- पत्र का आकर्षक व सुंदर होना भी महत्त्वपूर्ण होता है। मौलिकता भी पत्र का एक महत्त्वपूर्ण गुण है। पत्र में घिसे-पिटे वाक्यों के प्रयोग से बचना चाहिए। पत्र-लेखक को पत्र में स्वयं के विषय में कम तथा प्राप्तकर्ता के विषय में अधिक लिखना चाहिए।

6. उद्देश्य पूर्णता- कोई भी पत्र अपने कथन या मंतव्य में स्वतः संपूर्ण होना चाहिए। उसे पढ़ने के बाद तद्विषयक किसी प्रकार की जिज्ञासा, शंका या स्पष्टीकरण की आवश्यकता शेष नहीं रहनी चाहिए। पत्र लिखते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कथ्य अपने आप में पूर्ण तथा उद्देश्य की पूर्ति करने वाला हो।

पत्र के अंग –

1. पत्र लिखने वाले का पता तथा तिथि – आजकल ये दोनों पत्र के ऊपर बाएँ कोने में लिखे जाते हैं। निजी अथवा व्यक्तिगत
पत्रों में प्रायः यह नहीं लिखे जाते किंतु व्यावसायिक और कार्यालयी पत्रों में पते के साथ-साथ प्रेषक का नाम भी लिखा जाता है। विद्यार्थियों को यह ध्यान रहे कि परीक्षा में पत्र लिखते समय उन्हें भी ऐसा कुछ भी नहीं लिखना चाहिए जिससे उनके निवास स्थान, विद्यालय आदि की जानकारी मिले। सामान्यतः प्रेषक के पते के स्थान पर ‘परीक्षा भवन’ लिखना ही उचित होता

2. पाने वाले का नाम व पता-प्रेषक के बाद पृष्ठ की बाईं ओर ही पत्र पाने वाले का नाम व पता लिखा जाता है; जैसे –

सेवा में
थानाध्यक्ष महोदय
केशवपुरम्
लखनऊ।

3. विषय-संकेत – औपचारिक पत्रों में यह आवश्यक होता है कि जिस विषय में पत्र लिखा जा सकता है उस विषय को अत्यंत संक्षेप में पाने वाले के नाम और पते के पश्चात् बाईं ओर से विषय शीर्षक देकर लिखें। इससे पत्र देखते ही पता चल जाता है कि मूल रूप में पत्र का विषय क्या है।

4. संबोधन – पत्र प्रारंभ करने से पहले पत्र के बाईं ओर दिनांक के नीचे वाली पंक्ति में हाशिए के पास जिसे पत्र लिखा जा रहा
है, उसे पत्र लिखने वाले के संबंध के अनुसार उपयुक्त संबोधन शब्द का प्रयोग किया जाता है।

5. अभिवादन – निजी पत्रों में बाईं ओर लिखे संबोधन शब्दों के नीचे थोड़ा हटकर संबंध के अनुसार उपयुक्त अभिवादन शब्द सादर प्रणाम, नमस्ते, नमस्कार आदि लिखा जाता है। व्यावसायिक एवं कार्यालयी पत्रों में अभिवादन शब्द नहीं लिखे जाते।

6. पत्र की विषय – वस्तु-अभिवादन से अगली पंक्ति में ठीक अभिवादन के नीचे बाईं ओर से मूल पत्र का प्रारंभ किया जाता है।

7. पत्र की समाप्ति -पत्र के बाईं ओर लिखने वाले के संबंध सूचक शब्द तथा नाम आदि लिखे जाते हैं। इनका प्रयोग पत्र प्राप्त करने वाले के संबंध के अनुसार किया जाता है; जैसे-औपचारिक-भवदीय, आपका आज्ञाकारी। अनौपचारिक-तुम्हारा, आपका, आपका प्रिय, स्नेहशील, स्नेही आदि।

8. हस्ताक्षर और नाम – समापन शब्द के ठीक नीचे भेजने वाले के हस्ताक्षर होते हैं। हस्ताक्षर के ठीक नीचे कोष्ठक में भेजने वाले का पूरा नाम अवश्य दिया जाना चाहिए। यदि पत्र के आरंभ में ही पता न लिख दिया गया हो तो व्यावसायिक व सरकारी पत्रों में नाम के नीचे पता भी अवश्य लिख देना चाहिए। परीक्षा में पूछे गए पत्रों में नाम के स्थान पर प्रायः क, ख, ग आदि
लिखा जाता है। यदि प्रश्न-पत्र में कोई नाम दिया गया हो, तो पत्र में उसी नाम का उल्लेख करना चाहिए।

9. संलग्नक – सरकारी पत्रों में प्रायः मूलपत्र के साथ अन्य आवश्यक कागज़ात भी भेजे जाते हैं। इन्हें उस पत्र के ‘संलग्न पत्र’ या ‘संलग्नक’ कहते हैं।

10. पुनश्च-कभी – कभी पत्र लिखते समय मूल सामग्री में से किसी महत्त्वपूर्ण अंश के छूट जाने पर इसका प्रयोग होता है। विशेष- पहले पत्र भेजने वाले का पता, दिनांक दाईं ओर लिखा जाता था, पर आजकल इसे बाईं ओर लिखने का चलन हो गया है। छात्र इससे भ्रमित न हों। हिंदी में दोनों ही प्रारूप मान्य हैं।

पत्रों के प्रकार

पत्र दो प्रकार के होते हैं –
(क) औपचारिक पत्र
(ख) अनौपचारिक पत्र।

(क) औपचारिक पत्र – अर्ध-सरकारी, गैर-सरकारी या सरकारी कार्यालय को जो भी पत्र लिखे जाते हैं, वे सभी पत्र औपचारिक पंत्रों के अंतर्गत आते हैं। कार्यालय द्वारा अपने अधीनस्थ विभागों को जो पत्र लिखे जाते हैं, वे सब भी इसी श्रेणी में आते हैं।

(ख) अनौपचारिक पत्र-जो पत्र निजी, व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक होते हैं, वे ‘अनौपचारिक’ पत्र कहलाते हैं। इस पत्र में किसी तरह की औपचारिकता के निर्वाह का बंधन नहीं होता। इन पत्रों में प्रेषक अपनी बात व भावना को उन्मुक्तता के साथ, बिना लाग-लपेट लिख सकता है।

औपचारिक एवं अनौपचारिक पत्र के आरंभ व अंत की औपचारिकताओं की तालिका –
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल पत्र लेखन -1

औपचारिक पत्रों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है –

  1. प्रधानाचार्य को लिखे जाने वाले पत्र (प्रार्थना-पत्र)।
  2. कार्यालयी प्रार्थना-पत्र-विभिन्न कार्यालयों को लिखे गए पत्र।
  3. आवेदन-पत्र-विभिन्न कार्यालयों में नियुक्ति हेतु लिखे गए पत्र ।
  4. संपादकीय पत्र-विभिन्न समस्याओं की ओर ध्यानाकर्षित कराने वाले संपादक को लिखे गए पत्र।
  5. सुझाव एवं शिकायती पत्र-किसी समस्या आदि के संबंध में सुझाव देने या शिकायत हेतु लिखे गए पत्र।
  6. अन्य पत्र-बधाई, शुभकामना और निमंत्रण पत्र ।

औपचारिक पत्र
प्रार्थना-पत्र
प्रधानाचार्य को लिखे जाने वाले पत्र का प्रारूप

CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल पत्र लेखन -2
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल पत्र लेखन - 3

प्रधानाचार्य के नाम प्रार्थना-पत्र

प्रश्न 1.
आप अर्वाचीन सीनियर सेकेंड्री स्कूल, मयूर विहार, दिल्ली के दसवीं कक्षा के छात्र अभिषेक हो। इस विद्यालय की महँगी फीस के कारण यहाँ गरीब बच्चे प्रवेश नहीं ले पाते हैं। गरीब बच्चों को प्रवेश देने का अनुरोध करते हुए . विद्यालय की प्रधानाचार्या को प्रार्थना-पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
प्रधानाचार्या जी
अर्वाचीन सीनियर सेकेंड्री स्कूल
मयूर विहार, दिल्ली
विषय-गरीब बच्चों के प्रवेश के संबंध में

महोदया

विनम्र निवेदन यह है कि मैं इस विदयालय की दसवीं कक्षा का छात्र हैं। हमारे विद्यालय का शत-प्रतिशत परिणाम, यहाँ के अध्यापक-अध्यापिकाओं की मेहनत और शिक्षण-सुविधाएँ इसकी ख्याति में वृद्धि कर रहे हैं। क्षेत्र के अभिभावक अपने बच्चों को यहाँ प्राथमिकता के आधार पर पढ़ाना चाहते हैं। इस विद्यालय के पढ़े-लिखे छात्र उच्च पदों पर कार्यरत हैं, यह देख बच्चे भी यहाँ पढ़ने की इच्छा रखते हैं। धनीवर्ग अपने बच्चों को आसानी से पढ़ा सकते हैं पर यहाँ की महँगी फीस गरीब बच्चों की शिक्षा में बाधक है। गरीब बच्चे चाहकर न यहाँ प्रवेश ले सकते हैं और न अपने सपनों को साकार कर सकते हैं।

अतः आपसे प्रार्थना है कि विद्यालय की प्रत्येक कक्षा में 20 प्रतिशत गरीब बच्चों को प्रवेश देकर मानवता की भलाई के लिए एक पुनीत कार्य करें तथा उनके सपनों को साकार करने में अपना योगदान दें।

सधन्यवाद
आपका आज्ञाकारी शिष्य
अभिषेक
X-D, अनुक्रमांक-15
10 अप्रैल, 20xx

प्रश्न 2.
आपकी एस०ए० 1 की परीक्षाएँ अगले महीने से हैं, परंतु अंग्रेज़ी और गणित का पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो पाया है। पाठ्यक्रम पूरा न होने के कारणों का उल्लेख करते हुए अंग्रेज़ी और गणित विषयों की अतिरिक्त कक्षाएँ आयोजित करवाने हेतु अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
प्रधानाचार्य जी
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक बाल विद्यालय नं० 2
शक्ति नगर, दिल्ली
विषय-अंग्रेज़ी और गणित विषयों की अतिरिक्त कक्षाओं के आयोजन के संबंध में

महोदय

सविनय निवेदन यह है कि मैं इस विद्यालय की दसवीं कक्षा का छात्र हूँ। हमारी एस.ए.-1 की परीक्षाएँ सितंबर माह में होनी हैं, परंतु अंग्रेज़ी और गणित का पाठ्यक्रम अभी ठीक से शुरू भी न हो सका है। इसका कारण है-अंग्रेज़ी
और गणित विषयों के अध्यापकों का अवकाश पर रहना। इधर अगस्त महीने का दूसरा सप्ताह भी बीत चुका है, ऐसे में बिना अतिरिक्त कक्षाएँ आयोजित करवाए पाठ्यक्रम समय पर पूरा हो पाना असंभव है। अतः हम छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए छुट्टी के बाद अतिरिक्त कक्षाएँ आयोजित कराकर हमारा कोर्स पूरा करवाया जा सकता है।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि अंग्रेज़ी और गणित विषयों की अतिरिक्त कक्षाएँ आयोजित करवाने की कृपा करें। हम छात्र आपके आभारी रहेंगे।

सधन्यवाद ।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
क्षितिज
मॉनीटर दसवीं ‘अ’
17 अगस्त, 20xx

प्रश्न 3.
आपके पिता जी फैक्ट्री में दुर्घटनाग्रस्त हो गए। आप भी 15 दिन अस्पताल में रुककर उनकी देखभाल करते रहे। इस अवधि में विद्यालय न जाने के कारण आपका नाम काट दिया गया। दुबारा प्रवेश पाने के लिए विद्यालय की प्रधानाचार्या को प्रार्थना-पत्र लिखिए।
उत्तर :

सेवा में
प्रधानाचार्या जी
जोसेफ एंड मेरी पब्लिक स्कूल
इंदिरापुरम्, गाज़ियाबाद (उ०प्र०)
विषय-दसवीं में पुनः प्रवेश के संबंध में

महोदया

विनम्र प्रार्थना है कि मैं इस विद्यालय की दसवीं कक्षा का छात्र हूँ। मेरे पिता जी साहिबाबाद की एक फैक्ट्री में मशीन आपरेटर हैं। दुर्भाग्य से एक दिन काम करते हुए उनके साथ दुर्घटना घटित हुई जिससे उनके पैर और हाथ में गंभीर चोटें आईं। उन्हें दिल्ली स्थित सफदरजंग अस्पताल भेज दिया गया। यह सूचना मिलते ही मैं भी अस्पताल चला गया। वहाँ मुझे उनकी देखभाल के लिए रुकना पड़ गया जिससे जल्दबाजी में न तो मैं विद्यालय को सूचित कर सका और न विद्यालय आ सका। इससे कक्षाध्यापिका ने मेरा नाम काट दिया है।

आपसे प्रार्थना है कि मेरी स्थिति पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए मेरा नाम दसवीं में पुनः लिखने की कृपा करें। मैं भविष्य में ऐसा होने पर विद्यालय को अवश्य सूचित कर दूंगा।

सधन्यवाद
आपका आज्ञाकारी शिष्य
प्रखर
दसवीं डी, अनुक्रमांक-27
28 अगस्त, 20XX

प्रश्न 4.
आपके विद्यालय में खेल-कूद के सामान की कमी है जिससे आपके विद्यालय की टीम खेलों में न अच्छा प्रदर्शन कर पा रही है और न कोई पदक जीत पाती है। इस ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
प्रधानाचार्य महोदय
रा०व०मा० बाल विद्यालय
वाई ब्लॉक मंगोलपुरी, दिल्ली।
28 अक्टूबर, 20XX
विषय-खेलों का नया सामान मँगवाने के संबंध में

महोदय

विनम्र निवेदन यह है कि मैं इस विद्यालय की दसवीं कक्षा का छात्र एवं क्रिकेट टीम का कप्तान हूँ। यहाँ शिक्षण एवं पठन-पाठन की व्यवस्था बहुत अच्छी हैं। विद्यालय का शत-प्रतिशत परीक्षा परिणाम इसका प्रमाण है। यहाँ खेल-कूद का मैदान भी विशाल है, परंतु खेल संबंधी सामान का घोर अभाव है। यहाँ तीन-चार वर्षों से खेलों का नया सामान नहीं खरीदा गया है, जिसमें खिलाड़ी छात्रों को फटी-पुरानी गेंद, फुटबॉल और टूटे बल्ले से अभ्यास करने के लिए विवश होना पड़ता है। इस कारण हमारी तैयारी आधी-अधूरी रह जाती है और हम अपने से कमजोर टीमों से भी हार जाते हैं। मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि हमारे खिलाड़ी छात्रों में प्रतिभा की कमी नहीं है। खेल संबंधी सुविधाएँ मिलते ही वे विद्यालय का नाम रोशन करने में कसर नहीं छोड़ेंगे।

अतः आपसे प्रार्थना है कि हम छात्रों के विद्यालय में विभिन्न खेलों के नए सामान; जैसे-गेंद, बैट, फुटबॉल, वालीबाल, रैकेट, जाली आदि खरीदने की कृपा करें ताकि हम छात्र खेलों में अच्छा प्रदर्शन कर सकें।

सधन्यवाद
आपका आज्ञाकारी शिष्य
प्रत्यूष कुमार
कप्तान क्रिकेट टीम (विद्यालय)

प्रश्न 5.
आप नवयुग सीनियर सेकेंड्री स्कूल, महावीर एन्क्लेव दिल्ली के दसवीं के छात्र हो। दशहरा अवकाश में राजस्थान भ्रमण के लिए शैक्षिक टूर का आयोजन करने के लिए विद्यालय की प्रधानाचार्या को प्रार्थना-पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
प्रधानाचार्या जी
नवयुग सीनियर सेकेंड्री स्कूल
महावीर एन्क्लेव, दिल्ली
09 अक्टूबर, 20xx
विषय-शैक्षिक भ्रमण हेतु राजस्थान जाने के लिए टूर के आयोजन के संबंध में

महोदया

सविनय निवेदन यह है कि मैं इस विद्यालय की दसवीं कक्षा की छात्रा हूँ। हमारी एस०ए० 1 की परीक्षाएँ कल समाप्त हो गई हैं। आगामी 18 अक्टूबर से हमारा विद्यालय दशहरा अवकाश के लिए बंद हो रहा है। हम दसवीं की सभी छात्राएँ चाहती हैं कि दशहरे के अवकाश का सदुपयोग शैक्षिक भ्रमण के रूप में किया जाए। ऐसे में राजस्थान जो हमारे देश का प्रसिद्ध राज्य है, वीरता, साहस, त्याग और राष्ट्रभक्ति की कहानियाँ, जिसके रज-रज पर लिखी हैं, भामाशाह, पन्ना जैसे दानी एवं त्यागमयी तथा महाराणा प्रताप जैसे स्वाभिमानी वीर की जन्मभूमि को निकट से देखना-समझना हम छात्राओं के लिए अत्यंत ज्ञानवर्धक एवं रोचक होगा। विद्यालय की सामाजिक विज्ञान शिक्षिका एवं खेल शिक्षिका की देख-रेख में वहाँ जाना हमारे लिए और भी ज्ञानवर्धक रहेगा।

अतः आपसे प्रार्थना है कि इस दशहरे के अवकाश में राजस्थान शैक्षिक भ्रमण का आयोजन करवाने की कृपा करें। हम छात्राएँ आपकी आभारी रहेंगी।

सधन्यवाद
आपकी आज्ञाकारिणी शिष्या
प्राची
सांस्कृतिक सचिव एवं
मॉनीटर दसवीं ‘अ’

प्रश्न 6.
अपनी शैक्षिक एवं अन्य उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र लिखिए जिसमें छात्रवृत्ति देने का उल्लेख किया गया हो।
उत्तरः
सेवा में
प्रधानाचार्य महोदय
सागर रत्न पब्लिक स्कूल
आलमबाग; लखनऊ (उ०प्र०)
25 अप्रैल, 20XX
विषय-छात्रवृत्ति पाने के संबंध में

महोदय

सविनय निवेदन यह है कि मैं इस विद्यालय की दसवीं कक्षा का छात्र हूँ। हमारी कक्षाध्यापिका द्वारा यह जानकर बड़ा हर्ष हुआ कि विद्यालय ने उन छात्रों को छात्रवृत्ति देने का निर्णय किया है, जिन्होंने पिछली कक्षा में 80 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त किए हैं तथा पाठ्य सहगामी किसी एक क्रिया में भी उपलब्धि अर्जित किए हैं।

महोदय, मैंने नौवीं कक्षा में 87 प्रतिशत अंक अर्जित किया है। इसके अलावा मैंने विद्यालय स्तर पर वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। मैं इस विद्यालय की हॉकी टीम का कप्तान हूँ। हमारी टीम ने जोनल स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया था। उसमें विपक्षी टीम को 3-2 से हराने वाले फाइनल मैच में मैंने दो गोल किए थे। मैं अब भी खेल के साथ-साथ अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे रहा हूँ।

अतः आपसे प्रार्थना है कि छात्रवृत्ति हेतु मेरी पात्रता पर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर छात्रवृत्ति प्रदान करने की कृपा करें।

सधन्यवाद
आपका आज्ञाकारी शिष्य
पुष्कर
दसवीं ‘अ’ अनुक्रमांक-35

प्रश्न 7.
अपने पुस्तकालय में हिंदी की पत्रिकाओं की कमी की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए अपने विद्यालय की प्रधानाचार्या को प्रार्थना-पत्र लिखिए। आप दसवीं ‘सी’ में पढ़ने वाले उत्कर्ष हो।
उत्तर

सेवा में
प्रधानाचार्या जी
ज्ञानकुंज पब्लिक स्कूल
दिलशाद गार्डन, दिल्ली
28 नवंबर, 20xx
विषय-पुस्तकालय में हिंदी की पत्रिकाओं की कमी के संबंध में

महोदया

विनम्र निवेदन यह है कि मैं इस विद्यालय की दसवीं कक्षा का छात्र हूँ। मैं आपका ध्यान अपने विद्यालय के पुस्तकालय में हिंदी पत्रिकाओं की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ।
इस विद्यालय के पुस्तकालय में हज़ारों पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाएँ हैं। यहाँ अंग्रेज़ी की कई पत्रिकाएँ प्रतिमाह मँगवाई जाती हैं, परंतु हिंदी की पत्रिकाओं की घोर कमी है जिससे हिंदी पत्रिकाएँ पढ़ने की इच्छा रखने वाले छात्र-छात्राओं को निराश होकर लौटाना पड़ता है। अंग्रेज़ी पत्रिकाएँ पढ़ने वाले छात्रों को देखकर वे स्वयं को उपेक्षित-सा महसूस करते हैं। इन छात्रों के लिए सुमन-सौरभ, विज्ञान प्रगति, बाल हंस, पराग, चंपक, नंदन चंदामामा जैसी हिंदी की पत्रिकाओं की आवश्यकता है।

अतः आपसे प्रार्थना है कि पुस्तकालय में अंग्रेज़ी पत्रिकाओं के साथ-साथ हिंदी की पत्रिकाएँ मँगवाने की कृपा करें। हम छात्र आपके आभारी होंगे।

सधन्यवाद
आपका आज्ञाकारी शिष्य
उत्कर्ष
दसवीं ‘सी’ अनुक्रमांक-13

आवेदन-पत्र

आवेदन-पत्र का प्रारूप
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल पत्र लेखन - 4

प्रश्न 1.
भारतीय स्टेट बैंक ऑफ इंडिया प्रधान कार्यालय-नारीमन प्वाइंट, मुंबई को कुछ कंप्यूटर आपरेटर्स की आवश्यकता है। अपनी योग्यताओं का विवरण देते हुए आवेदन-पत्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तरः

मुख्य प्रबंधक महोदय
भारतीय स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
प्रधान कार्यालय, नरीमन प्वाइंट
मुंबई।
विषय-कंप्यूटर ऑपरेटर पद पर भरती के संबंध में

महोदय

दैनिक जागरण समाचार पत्र के 15 अक्टूबर, 20XX के अंक से ज्ञात हुआ कि इस बैंक के प्रधान कार्यालय में कंप्यूटर आपरेटर के कुछ पद रिक्त हैं। प्रार्थी भी अपना संक्षिप्त व्यक्तिगत विवरण प्रस्तुत करते हुए अपना आवेदन प्रस्तुत कर रहा है –

  1. नाम – विपिन कुमार
  2. पिता का नाम – श्री अमीरचंद
  3. जन्म तिथि – 20 फरवरी, 1993
  4. पत्र-व्यवहार का पता – सी-5/28, आशीर्वाद अपार्टमेंट सेक्टर 15 रोहिणी, दिल्ली।
  5. संपर्क सूत्र – 011-273………..
  6. शैक्षिक योग्यता

CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल पत्र लेखन - 5

प्रशिक्षण – एफ० टेक संस्था से एक वर्षीय कंप्यूटर प्रशिक्षण A ग्रेड
अनुभव – गत तीन माह से दिल्ली कोआपरेटिव बैंक में कार्यरत।

आशा है कि आप मेरी शैक्षिक योग्यताओं पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए सेवा का अवसर प्रदान करेंगे।

सधन्यवाद
भवदीय
विपिन कुमार
23 अक्टूबर, 20xx
संलग्नक-सभी प्रमाण पत्रों की छायांकित प्रति

प्रश्न 2.
दिल्ली नगर निगम के प्राथमिक विद्यालयों में अध्यापन हेतु अनुबंध के आधार पर कुछ शिक्षकों की आवश्यकता है। अपनी योग्यताओं का विवरण देते हुए निगमायुक्त उत्तरी दिल्ली नगर निगम टाउन हाल दिल्ली को प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तरः

सेवा में
निगमायुक्त महोदय
उत्तरी दिल्ली नगर निगम
टाउन हाल, दिल्ली
विषय-प्राथमिक शिक्षकों की भरती हेतु आवेदन-पत्र

महोदय

26 अक्टूबर, 20XX के नवभारत टाइम्स समाचार पत्र द्वारा ज्ञात हुआ कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम के प्राथमिक विद्यालयों में अनुबंध पर आधारित शिक्षकों के कुछ पद रिक्त हैं। प्रार्थी भी अपना विवरण प्रस्तुत कर रहा है –

  1. नाम – राजेश वर्मा
  2. पिता का नाम – रामरूप शर्मा
  3. जन्म तिथि – 19 नवंबर, 1994
  4. पत्र-व्यवहार का पता – 205/3 बी, महावीर एन्क्ले व, नई दिल्ली।
  5. संपर्क सूत्र – 981155………..
  6. शैक्षिक योग्यता

CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल पत्र लेखन - 6

अनुभव-अभिनव पब्लिक स्कूल, उत्तम नगर, दिल्ली में 2 साल से अब तक प्राथमिक शिक्षक पद पर कार्यरत। आशा है कि आप मेरी योग्यताओं पर विचार कर सेवा का अवसर प्रदान करेंगे।

सधन्यवाद
भवदीय
राकेश वर्मा
02 नवंबर, 20XX
संलग्नक-सभी योग्यताओं के प्रमाण प्रत्रों की छाया प्रतियाँ

प्रश्न 3.
सीमा सुरक्षा बल में कांस्टेबल के कुछ पद रिक्त हैं। इस पद पर भरती के लिए सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक को प्रार्थना पत्र लिखें।
उत्तरः

सेवा में
महानिदेशक
सीमा सुरक्षा बल
सी०जी०ओ० कांप्लैक्स
लोदी रोड, नई दिल्ली
विषय-सीमा सुरक्षा बल में कांस्टेबल पद पर भरती के संबंध में

महोदय

25 सितंबर 20XX को प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र ‘हिंदुस्तान’ से ज्ञात हुआ कि आपके कार्यालय के माध्यम से सीमा सुरक्षा बल में कांस्टेबल के पदों की रिक्तियाँ विज्ञापित की गई हैं। इस पद के लिए मैं भी अपना प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है

  1. नाम – रोहित शर्मा ।
  2. पिता का नाम – श्री राम रतन शर्मा
  3. जन्म तिथि – 15 नवंबर, 1996
  4. पत्राचार का पता – सी-51, रेलवे स्टेशन रोड, भोपाल, मध्य प्रदेश
  5. शैक्षिक योग्यता

(क)
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल पत्र लेखन - 7

(ख) शारीरिक योग्यताएँ –
लंबाई – 178 सेमी
सीना – 80 सेमी बिना फुलाए, 85 सेमी फुलाने पर
स्वास्थ्य – उत्तम
आशा है आप मेरी योग्यताओं पर विचार करते हुए देश सेवा का अवसर प्रदान करेंगे।

सधन्यवाद
भवदीय
रोहित शर्मा
28 सितंबर, 20XX
संलग्न प्रमाण पत्रों की छायांकित प्रति –

  1. X अंक पत्र एवं प्रमाण पत्र
  2. XII अंक पत्र एवं प्रमाण पत्र

प्रश्न 4.
हिमानी कॉस्मेटिक्स प्रा० लिमिटेड दिल्ली को कुछ क्लर्कों की आवश्यकता है। अपनी योग्यता का विवरण देते हुए एक आवेदन-पत्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तरः

सेवा में
प्रबंधक महोदय
हिमानी कॉस्मेटिक्स प्रा. लिमिटेड
पंडारा रोड, नई दिल्ली
विषय- क्लर्कों की भरती के संबंध में

महोदय

20 अक्टूबर, 20XX को प्रकाशित नवभारत टाइम्स समाचार पत्र से ज्ञात हुआ कि आपके कार्यालय को कुछ क्लर्कों . की आवश्यकता है। प्रार्थी भी अपनी योग्यता एवं अनुभव का संक्षिप्त विवरण देते हुए अपना आवेदन-पत्र प्रस्तुत कर रहा है, जिसका विवरण निम्नलिखित है –

  1. नाम – राजीव कुमार
  2. पिता का नाम – उदय पाल
  3. जन्म तिथि – 20 नवंबर, 1995
  4. पत्राचार का पता – 128/3 रामा भवन, चूना फैक्ट्री रोड, सतना (म०प्र०)
  5. शैक्षिक योग्यता –

CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल पत्र लेखन - 8

आशा है कि आप मेरी योग्यताओं पर विचार करते हुए सेवा का अवसर अवश्य प्रदान करेंगे।

सधन्यवाद
भवदीय
राजीव कुमार
कक्षा

संलग्नक – प्रमाण पत्र एवं अंक पत्र-X ..
प्रमाण पत्र एवं अंक पत्र-XII
प्रमाण पत्र एवं अंक पत्र-बी०ए०
प्रमाण पत्र ………… कंप्यूटर डिप्लोमा

संपादकीय-पत्र

संपादक के नाम पत्र का प्रारूप

CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल पत्र लेखन - 9

संपादकीय पत्रों के उदाहरण

प्रश्न 1.
आप 29/5 संस्कार अपार्टमेंट, सेक्टर-14 रोहिणी, दिल्ली के निवासी हैं। आप चाहते हैं कि लोग दीपावली में पटाखों का कम से कम प्रयोग करें। पटाखों से होने वाली हानियों से अवगत कराते हुए नवभारत टाइम्स के संपादक को पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
संपादक महोदय
नवभारत टाइम्स
बहादुरशाह जफ़र मार्ग,
नई दिल्ली
विषय-पटाखों से होने वाली हानि से अवगत कराने के संबंध में
महोदय

मैं आपके सम्मानित पत्र के माध्यम से लोगों का ध्यान पटाखों से होने वाली हानियों की ओर आकर्षित कराना चाहताdfdsfdsfs

खुशियों के विभिन्न मौकों एवं दीपावली के त्योहार पर लोग पटाखों का जमकर प्रयोग करते हैं। बच्चों तथा युवा वर्ग का पटाखों से विशेष लगाव होता है। अपनी खुशी में वे यह भूल जाते हैं कि इनसे पर्यावरण तथा आसपास के लोगों को कितना नुकसान होता है। पटाखों में प्रयुक्त बारूद और फॉस्फोरस के जलने से एक ओर जोरदार धमाका होता है तो दूसरी ओर फॉस्फोरस पेंटा ऑक्साइड गैस उत्सर्जित होती है जो बच्चों और स्वांस के रोगियों के लिए अत्यधिक हानिकारक होती है। इनकी आवाज से ध्वनि प्रदूषण होता है तथा वायुमंडल में वायु प्रदूषकों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे साँस लेने में परेशानी होती है। इसके अलावा पटाखों से पैसों का भी अपव्यय होता है। पटाखों के प्रयोग से बच्चों के जलने की घटनाएँ प्रायः सुनने को मिलती हैं, इसलिए पटाखों का प्रयोग न करें ताकि मनुष्य और पर्यावरण दोनों ही स्वस्थ रहें।

आपसे प्रार्थना है कि जनहित को ध्यान में रखते हुए इसे अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करने की कृपा करें ताकि लोग पटाखें और उससे होने वाली हानियों के प्रति सजग हो सकें।

सधन्यवाद
भवदीय
अनुभव वर्मा
29/5 संस्कार अपार्टमेंट
सेक्टर-14 रोहिणी, दिल्ली
03 नवंबर, 20xx

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए समाचार को पढ़िए। इसको पढ़कर जो विचार आपके मन में आते हैं, उन्हें किसी समाचार पत्र के संपादक को पत्र के रूप में अपने शब्दों में लिखिए। (Foreign 2015)

ईमानदारी की मिसाल

बीते शुक्रवार को बाईस वर्षीय शेख लतीफ़ अली अपने खाते में मौजूद कुल पाँच सौ में से दो सौ रुपए निकालने स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद के एक ए०टी०एम० पर गया। पैसे निकालने के क्रम में मशीन के किनारे का एक दरवाजा खुल गया और उसमें से सारे नोट बाहर गिर गए। वहाँ न कोई सुरक्षा गार्ड तैनात था न ही सी०सी०टी०वी० कैमरा लगा था। यानी चुपचाप सुरक्षित तरीके से ढेर सारी रकम ले जाने के लिए लतीफ़ के सामने पूरा मौका था, लेकिन उसके भीतर पल भर के लिए भी ऐसा खयाल नहीं आया और उसने बाहर खड़े अपने साथियों से सुरक्षा गार्ड को खोजने के लिए कहा। गार्ड के न मिलने पर पुलिस को फ़ोन करके सारी स्थिति बताई।
उत्तरः

सेवा में
संपादक महोदय
हिंदुस्तान दैनिक
कस्तूरबा गांधी मार्ग,
नई दिल्ली।
विषय-ईमानदारी की नई मिसाल प्रस्तुत करने के संबंध में

महोदय

मैं आपके सम्मानित एवं लोकप्रिय पत्र के माध्यम से शेख लतीफ़ अली द्वारा प्रस्तुत ईमानदारी की मिसाल की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूँ जो सभी के लिए प्रेरणा स्रोत बन सकती है।

महोदय, बाईस वर्षीय लतीफ़ अली के खाते में मात्र पाँच सौ रुपये होना और उसमें दो सौ रुपये निकालने का प्रयास उसकी आर्थिक स्थिति की कमज़ोरी की कहानी स्वयं कह देता है। इस स्थिति के बाद भी अचानक ए०टी०एम० का दरवाजा खुलना नोटों का बाहर आ जाना, गार्ड का मौजूद न होना, सी०सी०टी०वी० कैमरे की गैर मौजूदगी उसके लिए सोने पर सुहागा वाली स्थिति उत्पन्न कर रहे थे पर लतीफ़ अली ने गार्ड को खोजने का प्रयास करना और न मिलने पर पुलिस को सूचित करना उसकी ईमानदारी का साक्षात प्रमाण है। आज समाज को शेख लतीफ़ अली जैसा एक-दो नहीं बल्कि सभी को बनने की आवश्यकता है क्योंकि ऐसी ईमानदारी दुर्लभ होती है।

आपसे प्रार्थना है कि इसे अपने समाचार पत्र के मुख्य पृष्ठ पर ‘ईमानदारी की अद्भुत मिसाल’ शीर्षक से छापने का कष्ट करें ताकि दूसरे भी इससे प्रेरित हो सकें।

सधन्यवाद
भवदीय
मयंक मौर्य
275/3 बी
राणा प्रताप बाग, दिल्ली
10 नवंबर, 20xx

प्रश्न 3.
कई जगह सूचनापट्ट पर अशुद्ध हिंदी लिखी मिलती है। इस ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए प्रसिद्ध दैनिक पत्र के संपादक को पत्र लिखिए। (CBSE Sample Paper 2015)
उत्तरः

सेवा में
संपादक महोदय
नवभारत टाइम्स
बहादुरशाह जफ़र मार्ग,
नई दिल्ली
विषय-सूचनापट्टों पर अशुद्ध हिंदी लेखन के संबंध में

महोदय

आपके सम्मानित एवं लोकप्रिय समाचार पत्र के माध्यम से मैं लोगों का ध्यान सूचनापट्ट पर लिखी गई अशुद्ध हिंदी की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ।

हिंदी हमारी राजभाषा है और दिल्ली हमारे देश की राजधानी। ऐसी महत्त्वपूर्ण जगह के सूचनापट्ट पर बहुतों की मातृभाषा और राजभाषा के अति महत्त्वपूर्ण पद पर सुशोभित हिंदी का अशुद्ध लेखन देखकर दुख होता है। दुख तो तब और भी होता है जब पढ़े-लिखे लोगों के द्वारा ऐसा अशुद्ध लेखन किया जाता है। यह कार्य जिनकी देख-रेख में होता है, वे तो उच्चशिक्षित होते हैं परंतु यह सोचकर कि ‘सब चलता है’, इसे देखकर भी अनदेखा कर जाते हैं। उनकी यह अनदेखी विद्यार्थियों और नव साक्षर के मन में भ्रम की स्थिति पैदा करती है कि आखिर सही कौन-सा है, उनके द्वारा सीखा हुआ या यह जो लिखा है।

आपसे प्रार्थना है कि इसे अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करने का कष्ट करें ताकि संबंधित अधिकारी और कर्मचारीगण इस गलती पर ध्यान दें, इसे सुधारें और भविष्य में सावधान रहें।

सधन्यवाद
भवदीय
विकास कुमार
ए-129/3, दरियागंज,
दिल्ली
25 जुलाई, 20xx

प्रश्न 4.
आजकल दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रमों में हिंसा और अर्धनग्नता का बोलबाला होता है। इन कार्यक्रमों के प्रसारण पर रोक लगाने के लिए अनुरोध करते हुए किसी प्रतिष्ठित समाचार पत्र के संपादक को पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
संपादक महोदय
राष्ट्रीय सहारा (दैनिक)
नई दिल्ली
विषय-दूरदर्शन पर प्रसारित आपत्तिजनक कार्यक्रमों पर रोक लगाने के संबंध में

महोदय

मैं आपके सम्मानित एवं लोकप्रिय पत्र के माध्यम से दूरदर्शन पर प्रसारित उन कार्यक्रमों पर रोक लगाने का अनुरोध करना चाहता हूँ जिनमें हिंसा और अश्लीलता का बोलबाला होता है।

इन दिनों दूरदर्शन के अनेक चैनलों पर ऐसे धारावाहिकों तथा अन्य कार्यक्रमों का प्रसारण किया जा रहा है जिनमें हिंसा, मार-काट और अश्लीलता का खुला प्रदर्शन किया जा रहा है। दर्शकों को हँसाने के नाम पर द्विअर्थी संवादों का प्रयोग किया जा रहा है। बात-बात में बंदूक निकाल कर यूँ दिखाई जाती है जैसे खिलौना हो। इसके अलावा महिला पात्रों के वस्त्र इतने छोटे दिखाए जाते हैं कि ये पात्र अर्धनंगे से नज़र आते हैं। इसका सबसे अधिक बुरा असर बाल एवं किशोर मन पर होता है। उनका कोमल मन भ्रमित होता है। इससे छेड़-छाड़, हिंसा, बलात्कार जैसी असामाजिक घटनाओं में वृद्धि हुई है जो किसी भी समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है। ऐसे में इन कार्यक्रमों के प्रसारण पर रोक लगाया जाना चाहिए।

अतः आपसे प्रार्थना है कि इसे अपने समाचार पत्र में स्थान दें ताकि ऐसे कार्यक्रमों के निर्माता एवं प्रसारण अधिकारी इनके प्रसारण को रोकने के लिए यथोचित कदम उठाएँ।

सधन्यवाद
भवदीय
अंकुर वर्मा
पता : ………………
8 अक्टूबर, 20xx

प्रश्न 5.
जमाखोरी का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इससे वस्तुओं के मूल्य आसमान छूने लगते हैं। जमाखोरी की दुष्प्रवृत्ति पर चिंता प्रकट करते हुए किसी समाचार पत्र के संपादक को पत्र लिखिए।
उत्तर-

सेवा में
संपादक महोदय
नवभारत टाइम्स
बहादुरशाह जफ़र मार्ग
नई दिल्ली
विषय-जमाखोरी की दुष्प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के संबंध में

महोदय

मैं आपके लोकप्रिय समाचार पत्र के माध्यम से दुकानदारों की जमाखोरी की दुष्प्रवृत्ति तथा इससे उत्पन्न समस्याओं की ओर दुकानदारों एवं संबंधित अधिकारियों का ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूँ।

लाभ कमाना हर दुकानदार की आकांक्षा होती है, परंतु ये दुकानदार लाभ कमाने के लिए जब अनैतिक कार्यों का सहारा लेते हैं। इसी क्रम में कुछ दुकानदार खान-पान की वस्तुओं को जमा करना शुरू कर देते हैं जिससे इन वस्तुओं की नकली कमी हो जाती है और इनके दाम आसमान छूने लगते हैं। वस्तुओं के दाम बढ़ने से ये लोगों की पहुँच से दूर होती जाती है। जमाखोरी रोकने का दायित्व जिन पर सौंपा जाता है वे भी इन दुकानदारों से मिलीभगत करके उनका सहयोग ही करते हैं। दाल का दाम 200 रुपये प्रति किलो से ऊपर पहुँचना और छापे में 82000 टन से ज्यादा दालें बरामद होना इसका प्रमाण है। आम आदमी की समस्या को ध्यान में रखकर इस प्रवृत्ति पर तुरंत नियंत्रण करने की आवश्यकता है।

अतः आपसे प्रार्थना है कि इसे अपने समाचार पत्र में स्थान दें ताकि संबंधित अधिकारियों और लोगों का ध्यान इस ओर जाए और वे इसे रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाएँ।

सधन्यवाद
भवदीय
राजन राय
पता : ………….
30 अक्टूबर, 20XX

कार्यालयी प्रार्थना-पत्र का प्रारूप
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल पत्र लेखन - 10

प्रश्न 1.
आपको चेक बुक की आवश्यकता है। नई चेक बुक प्राप्त करने के लिए स्टेट बैंक मालवीय नगर, दिल्ली शाखा के प्रबंधक को पत्र लिखिए।
उत्तरः

सेवा में
प्रबंधक महोदय
भारतीय स्टेट बैंक
शाखा-मालवीय नगर, दिल्ली
विषय-नई चेक बुक प्राप्त करने के संबंध में

महोदय

विनम्र निवेदन यह है कि मैं बैंक का नियमित खाता धारक हूँ। मेरा खाता क्रमांक 1066688…………… है। मुझे भविष्य में लेन-देन के लिए चेक बुक की आवश्यकता है।

आपसे प्रार्थना है कि मुझे उपर्युक्त खाते के लिए नई चेक बुक प्रदान करने का कष्ट करें।

सधन्यवाद
भवदीय
ए-1035/3
मालवीय नगर, दिल्ली
26 अक्टूबर, 20XX

प्रश्न 2.
बाज़ार से घर आते समय आपके पिता जी का ए०टी०एम० कार्ड खो गया है। इसकी सूचना देते हुए संबंधित बैंक के प्रबंधक को प्रार्थना-पत्र लिखिए, जिसमें नया ए०टी०एम० कार्ड प्रदान करने का अनुरोध किया गया हो।
उत्तर

सेवा में
प्रबंधक महोदय
पंजाब नेशनल बैंक
कुंदन भवन, आजादपुर
दिल्ली
विषय-खोए ए०टी०एम० की सूचना देने तथा नया ए०टी०एम० प्राप्त करने के संबंध में।

महोदय

निवेदन यह है कि कल शाम आदर्शनगर मेन मार्केट से घर जाते समय इसी बैंक का ए०टी०एम० कहीं खो गया है। बहुत ढूँढ़ने के बाद भी यह कार्ड मुझे न मिल सका। मैंने इसकी सूचना संबंधित थाने में दे दिया है, जिसकी प्रति मेरे पास है। इस ए०टी०एम० कार्ड से कोई लेन-देन न कर सके, इसलिए इसे ब्लॉक करने (रोकने) का कष्ट करें तथा नया कार्ड देने के लिए आवश्यक कार्यवाही करें।

अतः आपसे प्रार्थना है कि पुराने ए०टी०एम० कार्ड को बंद कर नया ए०टी०एम० कार्ड जारी करने की कृपा करें।

सधन्यवाद,
भवदीय
रोहित कुमार
125/4 बी
महेंद्र एन्क्लेव, दिल्ली
05 नवंबर, 20XX

शिकायती-पत्र

शिकायती पत्रों का प्रारूप
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल पत्र लेखन - 11

प्रश्न 1.
समस्त औपचारिकताएँ पूर्ण करने के बाद भी आधार पहचान पत्र’ न मिलने की शिकायत करते हुए अपने क्षेत्र के संबंधित अधिकारी को पत्र लिखिए। (Delhi 2014)
उत्तरः

130 ए/4
रानी लक्ष्मीबाई मार्ग
बलजीत नगर, दिल्ली
13 अगस्त, 20XX
उपनिदेशक
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण
(आधार पहचान पत्र)
जीवन भारती भवन
कनाट प्लेस, नई दिल्ली
विषय-आधार पहचान पत्र न मिलने के संबंध में

महोदय

मैं आपका ध्यान अपने आधार पहचान पत्र की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ। इसका नामांकन क्रमांक 1415/73038/00556 है जिसे मैंने सर्वोदय बाल विद्यालय, बलजीत नगर पर बने आधार केंद्र पर 15-11-20XX को नामांकित करवाया था। आधार पहचान पत्र बनवाने के लिए मैंने निवास एवं पहचान संबंधी औपचारिकताएँ पूरी कर दी थी। आज लगभग दो साल का समय बीतने को है, परंतु मेरा आधार पहचान पत्र मुझे अब तक नहीं मिल पाया है जबकि उसी केंद्र पर उसी दिन नामांकित अन्य लोगों के आधार पहचान पत्र मिल गए हैं। बैंक खाते से संबद्ध करवाने, गैस कनेक्शन में सब्सिडी प्राप्त करने के लिए यह पहचान पत्र आवश्यक हो चुका है।

आपसे प्रार्थना है कि मेरी समस्याओं एवं कठिनाइयों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए आधार पहचान पत्र शीघ्रातिशीघ्र मेरे पते पर भेजने का कष्ट करें।

धन्यवाद सहित
भवदीय
अमित कुमार
संलग्नक-आधार नामांकन पत्र की छायाप्रति ।

प्रश्न 2.
परिवहन निगम के प्रबंधक को अपनी कॉलोनी तक बस चलाने के लिए एक पत्र लिखिए। (All India 2014)
उत्तरः

सेवा में
प्रबंधक महोदय
दिल्ली परिवहन निगम
आईपी स्टेट डिपो नई दिल्ली
विषय-‘हरित विहार’ कॉलोनी तक बस चलाने के संबंध में

महोदय

मैं आपका ध्यान ‘हरित विहार’ कॉलोनी की परिवहन समस्या की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ। यमुना पार क्षेत्र में दिल्ली और गाज़ियाबाद की सीमा पर बसी इस कॉलोनी की आबादी दस हजार से अधिक है। यह कॉलोनी 12 या 13 साल पुरानी है परंतु यहाँ से होकर जाने वाली दिल्ली परिवहन निगम की कोई बस नहीं है। इसका पूरा फायदा फटफट सेवा आटो और अन्य प्राइवेट वाहन वाले उठाते हैं। वे यात्रियों से मनमाना किराया तो वसूलते ही हैं पर अपनी मर्जी से आते-जाते हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों और महिलाओं को विशेष कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

अतः आपसे प्रार्थना है कि इस कालोनी से केंद्रीय टर्मिनल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन जैसे प्रमुख स्थानों तक जाने वाली बस चलवाने की कृपा करें। हम क्षेत्र के निवासी गण आपके आभारी होंगे।

सधन्यवाद
भवदीय
अमर दीप
सचिव
हरित विहार रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन
दिल्ली
22 जुलाई, 20XX

प्रश्न 3.
अपने क्षेत्र के विधायक को पत्र लिखकर अपने गाँव में एक बालिका विद्यालय की स्थापना के लिए अनुरोध कीजिए। (All India 2014)
उत्तर-

सेवा में
माननीय विधायक महोदय
विधानसभा रजोपुरा
जनपद-सतना, मध्य प्रदेश
विषय-रजोपुरा विधानसभा के रजतपुरा ग्राम में बालिका विद्यालय की स्थापना के संबंध में

महोदय

मैं आपका ध्यान रजोपुरा विधानसभा के रजतपुरा और उसके आसपास के क्षेत्र की ओर ले जाना चाहता हूँ, जहाँ बालिका विद्यालय नहीं है, जिससे इस क्षेत्र की अधिकांश लड़कियाँ अनपढ़ रह जाती हैं।

मान्यवर, इस क्षेत्र की छह सात किलोमीटर की परिधि में लडकियों की शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। यहाँ से दो किलोमीटर दूर एक प्राइमरी पाठशाला है जहाँ लड़के-लड़कियाँ पाँचवीं तक पढ़ लेते हैं। उसके बाद यहाँ के अभिभावक लड़कियों को घर बिठा लेते हैं। लड़के तो जैसे-तैसे दूरस्थ पाठशालाओं में पढ़ने चले जाते हैं पर लड़कियों के साथ किसी अनहोनी के डर से लोग लड़कियों को इतनी दूर पढ़ने नहीं भेजते हैं। इस कारण वे भविष्य में अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाती हैं और उनके सपने अधूरे रह जाते हैं।

अतः आपसे प्रार्थना है कि इस विधानसभा क्षेत्र के रजतपुरा गाँव की खाली पड़ी जमीन पर बालिकाओं के लिए बारहवीं तक विद्यालय खुलवाने की कृपा करें ताकि इस क्षेत्र की लड़कियों के लिए भी शिक्षा का द्वार खुल सके और उनका भविष्य सँवर सके।

सधन्यवाद
भवदीय
राम रतन
ग्राम-रजतपुरा
सतना, मध्य प्रदेश
20 फरवरी, 20XX

अन्य पत्र

प्रश्न.
आप साक्षात्कार में शामिल होने लखनऊ जा रहे थे। रास्ते में आपका बैग खो गया। चार दिन बाद कोई अपरिचित आपका बैग लौटा गया। उसे धन्यवाद देते हुए पत्र लिखिए।
उत्तरः

अपरिचित भास्कर जी
सादर नमस्ते

मैं सकुशल रहकर आशा करता हूँ कि आप भी सकुशल होंगे। वास्तव में मेरी कुशलता में आपका बड़ा योगदान है। 5 मई को मैं दिल्ली से लखनऊ जाने के लिए बस से यात्रा करने का निश्चय किया क्योंकि ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं

मिला पा रहा था। मुरादाबाद पहुँचने पर बस रुकी तो आधे से अधिक यात्री जलपान के लिए उतर गए। मैं भी हाथ में बैग लिए रेस्टोरेंट पर चला गया। अभी मैं कुछ खा ही रहा था कि ड्राइवर ने चलने के लिए हॉर्न बजाना शुरू कर दिया। मैं भी जल्दी से खाना समाप्त किया और बस पकड़ने दौड़ गया। लखनऊ पहुँचने पर ध्यान आया कि मेरा बैग कहीं खो गया। मैं साक्षात्कार भी नहीं दे सका क्योंकि सारे प्रमाण पत्र उसी बैग में थे। चौथे दिन जब कोई नवयुवक यह बैग लौटाने मेरे घर आया, तब पता चला कि उसे आपने भेजा है। अपना बैग और उसमें सारा सामान यथावत पाकर भी विश्वास नहीं हो रहा था कि यह हकीकत है। अभी भी दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है, इसे आपने प्रमाणित कर दिया। मेरा बैग लौटाकर आपने मुझे बहुत बड़ी समस्या से उबार लिया है। इसके लिए आपको जितना भी धन्यवाद दूं, कम है।

एक बार पुनः आपको धन्यवाद देते हुए पत्र यहीं समाप्त करता हूँ।

सादर नमस्ते
भवदीय
चंद्र प्रकाश
पत्र पानेवाले का नाम एवं पता
श्री भास्कर कुमार
28ए रेलवे स्टेशन रोड,
मुरादाबाद (उ०प्र०)
10 जुलाई, 20XX

अनौपचारिक पत्रों का प्रारूप
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल पत्र लेखन - 12

मित्र को पत्र

प्रश्न 1.
आपका मित्र आई०आई०टी० की परीक्षा में चयनित हो गया है। उसे बधाई देते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर-

प्रिय मित्र पुष्कर
सप्रेम नमस्ते

मैं यहाँ सकुशल रहकर आशा करता हूँ कि तुम भी सकुशल होगे और मैं ईश्वर से यही मनाया करता हूँ। कुछ ही देर पहले अमित नामक एक मित्र से सुना कि तुम्हारा चयन आई०आई०टी० की परीक्षा में हो गया है तो मैं खुशी से उछल पड़ा। इसके लिए मैं तुम्हें बार-बार बधाई देता हूँ।

मित्र राष्ट्रीय स्तर की इस परीक्षा में चुना जाना कोई आसान काम नहीं है। यह तुम्हारे निरंतर कठिन परिश्रम का फल है। परिश्रम से मनचाही सफलता अर्जित की जा सकती है, इसका तुमने एक बार फिर से प्रमाण दे दिया है। तुम्हारी यह सफलता तुम्हारे छोटे भाई-बहनों के अलावा हम मित्रों के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य करेगी। अब वह दिन दूर नहीं जब तुम इंजीनियर बनकर माता-पिता का नाम रोशन करोगे तथा देश की उन्नति में अपना योगदान दोगे। ऐसी शानदार सफलता के लिए एक बार पुनः बधाई स्वीकार करो। तुम्हारी इस सफलता से मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है।

अपने माता-पिता को मेरा प्रणाम कहना। शेष सब ठीक है। उज्ज्वल भविष्य की खूब सारी शुभकामनाएं देते हुए।

तुम्हारा अभिन्न मित्र
सलिल
10 जुलाई, 20XX

प्रश्न 2.
आपको अपने विज्ञान शिक्षक के साथ खेल प्रतियोगिता में भाग लेने लंदन जाने का अवसर मिला। उन सुनहरी यादों का वर्णन करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।
उत्तरः

प्रिय मित्र संचित
सप्रेम नमस्ते।

मैं यहाँ सकुशल रहकर आशा करता हूँ कि तुम भी सकुशल होंगे और मैं ईश्वर से यही कामना भी करता हूँ।
मित्र, इसी अक्टूबर के आरंभ में मुझे अपने खेल शिक्षक और सात अन्य सहपाठियों के साथ लंदन में आयोजित विभिन्न देशों की अंतर विद्यालयी प्रतियोगिता में शामिल होने का सुनहरा अवसर मिला। इस प्रतियोगिता की यादें मुझे आजीवन याद रहेंगी।

हम सभी इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद लंदन गए। वहाँ एक दिन के विश्राम के बाद खेल प्रतियोगिता में हम भाग लेने लगे। मैं कुश्ती के लिए चुना गया था। वहाँ विभिन्न देशों के चार अन्य पहलवान छात्रों को हराने के बाद भी फाइनल न जीत सका और रजत पदक से संतोष करना पड़ा। हमारी टीम का एक छात्र दौड़ में तृतीय स्थान पर रहकर कांस्य पदक जीत सका। इस प्रतियोगिता का रोमांच हमें अब भी रोमांचित कर जाता है। आशा है कि मेरी खुशी में तुम अवश्य शामिल होगे।

अपने माता-पिता को मेरा प्रणाम और शैली को स्नेह कहना। शेष मिलने पर पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में,

तुम्हारा अभिन्न मित्र
विख्यात
10 अक्टूबर 20XX

प्रश्न 3.
‘सामाजिक सेवा कार्यक्रम’ के अंतर्गत किसी ग्राम में सफाई अभियान के अनुभवों का उल्लेख करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए। (Delhi 2014)
उत्तरः

125/4ए, अंसारी नगर
नई दिल्ली
29 अक्टूबर, 20xx
प्रिय मित्र शगुन
सप्रेम नमस्ते

मैं स्वयं सकुशल रहकर आशा करता हूँ कि तुम भी सकुशल होगे और मैं ईश्वर से यही कामना भी करता हूँ।

मित्र, आशा करता हूँ कि तुमने इस शरदकालीन अवकाश को मस्ती से बिताया होगा। ज़रूर तुम इस बार किसी नई जगह पर घूमने निकल गए होगे और एक नया अनुभव सँजोए लौटे होगे। छुट्टियों का सदुपयोग करते हुए इस बार मैं भी एक स्वयंसेवी संस्था ‘सहयोग’ से जुड़ गया था। इसमें एक ‘स्वयंसेवक’ की भाँति मैंने अपना योगदान दिया।

यह संस्था शहर से दूर कच्ची कॉलोनियों और मलिन बस्तियों यहाँ तक कि झुग्गी-झोपड़ियों में और गाँवों में सफ़ाई के प्रति जागरूकता अभियान चलाती है। इस बार के अवकाश में उन्होंने गाज़ियाबाद जनपद के मीरपुर गाँव में साफ़-सफ़ाई का कार्यक्रम बनाया। इस गाँव की गलियाँ अभी भी कच्ची हैं। वहाँ पानी की निकासी की अच्छी व्यवस्था नहीं है। घरों का गंदा पानी नालियों और सड़कों पर फैला रहता है। हमारी संस्था ने लोगों को एकत्र किया और उन्हें साफ़-सफ़ाई का महत्त्व समझाया तथा इस कार्य में लोगों से सहयोग देने की अपील की। लोग खुशी-खुशी हमारे साथ आ गए। गाँव से सबसे पहले पानी की निकासी का प्रबंध किया गया फिर कूड़े के ढेर को उठवाकर आबादी से दूर ले जाया गया। जानवरों के रहने की जगह को भी साफ़ सुथरा बनाया गया। पाँच दिन की मेहनत के बाद गाँव की दशा देखने लायक थी। अब गाँव वाले हमारे काम की प्रशंसा करते हुए धन्यवाद दे रहे थे। इस कार्यक्रम से जुड़कर मुझे अजीब सा सुखद अनुभव हो रहा है। हो सके तो तुम भी किसी ऐसे कार्यक्रम से जुड़ना।

अपने माता-पिता को मेरा प्रणाम और सुनयना को स्नेह कहना। शेष मिलने पर, पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में,

तुम्हारा अभिन्न मित्र
कुणाल

प्रश्न 4.
आपने छुट्टियों में देहरादून और उसके आसपास के भ्रमण का आनंद उठाया। इस कार्य में देहरादून में रहने वाले आपके मित्र ने आपको पहाड़ी स्थलों को दिखाया और पहाड़ी संस्कृति से परिचय कराया। उसे धन्यवाद देते हुए पत्र लिखिए।
उत्तरः
137 बी/4
डेसू कॉलोनी
सागरपुर, दिल्ली
प्रिय मित्र नमन जोशी
सप्रेम नमस्ते

स्वयं सकुशल रहकर आशा करता हूँ कि तुम भी अपने परिवार के साथ सकुशल होगे। मैं ईश्वर से यही कामना भी करता हूँ।

मित्र। पिछले सप्ताह जब से देहरादून और आसपास के मनोरम स्थलों को देखकर आया हूँ तब से मन में वहीं की यादें बसी हुई हैं। मैंने सोचा भी नहीं था कि मेरा यह भ्रमण इस तरह यादगार बन जाएगा और यह सब तुम्हारे कारण ही हो सका। तुमने वहाँ अपने घर पर रुकने का स्थान ही नहीं दिया बल्कि तुमने मंसूरी, सहस्त्र धारा, लक्ष्मण झूला जैसे मनोरम स्थानों की सैर भी कराई। सहस्त्रधारा के शीतल जल में स्नान करना और गंधक युक्त जल पीना मानो कल की बातें हों। तुमने एक ओर पहाड़ी गाँवों का दर्शन कराया, वहाँ की परिश्रमपूर्ण दिनचर्या से सामना कराया साथ ही वहाँ की संस्कृति से भी परिचित कराया। हरिद्वार आकर गंगा स्नान करना और मंशा देवी के मंदिर जाकर मन्नतें माँगना सब कुछ कितना अच्छा लग रहा था। इस यात्रा को इस तरह यादगार बनाने में सहयोग देने के लिए मैं तुम्हें बार-बार धन्यवाद देता हूँ। अगली छुट्टियों में तुम दिल्ली आओ हम दोनों साथ-साथ दिल्ली दर्शन करेंगे।
अपने माता-पिता को मेरा प्रणाम और रमन को स्नेह कहना। शेष अगले पत्र में,

तुम्हारा अभिन्न मित्र
पंकज कुमार

छोटे भाई को पत्र

प्रश्न 1.
अपका छोटा भाई दसवीं की परीक्षा में अच्छा ग्रेड लाने पर मोटरसाइकिल उपहार स्वरूप पिता जी से लेना चाहता है उसे समझाते हुए पत्र लिखिए कि इस उम्र में मोटरसाइकिल लेना उचित नहीं है।
उत्तरः
स्वामी विवेकानंद छात्रावास
उत्तर प्रदेश
29 अक्टूबर, 20xx
प्रिय उमेश
शुभाशीष

मैं सकुशल रहकर आशा करता हूँ कि तुम भी सकुशल होगे और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे रहे होगे। यह जानकर काफ़ी खुशी हुई कि इस वर्ष तुमने एस०ए० 1 परीक्षा में 80 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त किया है।

प्रिय भाई, पिता जी के पत्र से ज्ञात हुआ कि दसवीं में अच्छा ग्रेड लाने के फलस्वरूप तुम पिता जी से मोटरसाइकिल लेना चाहते हो, पर तुम्हारी यह माँग पूर्णतया अनुचित है। एक तो अभी तुम्हारी उम्र 18 वर्ष नहीं है। 18 साल से कम उम्र वालों का ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनता है और ड्राइविंग लाइसेंस के बिना मोटरसाइकिल चलाना कानूनी अपराध है। इसके अलावा पिता जी हम दोनों भाइयों की पढ़ाई के साथ-साथ अन्य खर्चों की व्यवस्था अपनी सीमित आय से कर रहे हैं। मोटरसाइकिल की माँग करना उनको आर्थिक संकट में डालना होगा। इसके लिए आवश्यक है कि तुम सबसे पहले दसवीं और बारहवीं परीक्षा की पढ़ाई मन लगाकर करो और वयस्क होने का इंतजार करो तब मोटर साइकिल अवश्य लेना।।

आशा है कि तुम मेरी बात पर पुनर्विचार करोगे तथा मोटरसाइकिल की अनुचित माँग अपने दिमाग से निकाल दोगे। शेष सब ठीक है। अपनी पढ़ाई और स्वास्थ्य पर ध्यान देना।

तुम्हारा बड़ा भाई
आलोक कुमार

प्रश्न 2.
मोटरसाइकिल सुविधा के लिए है-तेज़ चलाने, करतब दिखाने के लिए नहीं, यह समझाते हुए अपने छोटे भाई को एक पत्र लिखिए। (Fereign 2014)
उत्तरः

परीक्षा भवनं नई दिल्ली
07 जुलाई, 20XX
प्रिय छोटे भाई करन
शुभाशीष

मैं स्वयं सकुशल रहकर आशा करता हूँ कि तुम भी सकुशल होंगे और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे रहे होगे। – अनुज, पिता जी के पत्र से ज्ञात हुआ कि तुमने इस मई-जून की छुट्टियों में मोटरसाइकिल सीख लिया है। यह अच्छी बात है जिसे जानकर मुझे खुशी हुई पर यह जानकर बड़ा दुख हुआ कि मोटरसाइकिल तेज़ चलाने के साथ ही उससे तरहतरह के करतब दिखाने और स्टंट करने का प्रयास करने लगे हो। यह तुम्हारे लिए घातक सिद्ध हो सकता है। तनिक-सी – लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है। मोटरसाइकिल की सवारी हमारी यात्रा को सुगम बनाने के साथ समय की बचत भी कराती है। यह हमारी सुविधा के लिए है न कि स्टंट करने के लिए। जब तक हम इसका उपयोग करेंगे तब तक यह सुविधाजनक और लाभदायी है, परंतु इसका दुरुपयोग जानलेवा साबित हो सकता है।

आशा है कि तुम मेरी बात मानकर मोटरसाइकिल से कोई स्टंट नहीं करोगे और न ही सामान्य रफ़्तार से तेज़ चलोगे और इसका उपयोग सुविधा के लिए ही करोगे। शेष सब ठीक है।

पूज्य माता-पिता को प्रणाम कहना। पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में,

तुम्हारा बड़ा भाई
नमन कुमार

पिता को पत्र

प्रश्न 1.
अपने पिता जी को पत्र लिखकर बताइए कि आपके विद्यालय में वार्षिकोत्सव किस तरह मनाया गया।
उत्तरः

राजा राम मोहन राय छात्रावास
सेक्टर-21, रोहिणी
दिल्ली 15 फरवरी, 20xx
पूज्य पिता जी

सादर चरण स्पर्श

मैं स्वयं स्वस्थ एवं प्रसन्न रहते हुए आशा करता हूँ कि आप भी सकुशल होंगे और मैं ईश्वर से कामना भी करता हूँ। इस पत्र के द्वारा मैं आपको बताना चाहता हूँ कि हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव किस तरह मनाया गया।

पिता जी, हमारे विद्यालय में वार्षिकोत्सव. अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। इसकी तैयारी 15 से 20 दिन पहले से शुरू कर दी जाती है। छात्र-छात्राएँ विभिन्न कार्यक्रमों की तैयारियां शुरू कर देते हैं। 9 फरवरी को मनाए गए इस वार्षिकोत्सव के लिए आवश्यक टेंट तथा आगंतुकों के बैठने की व्यवस्था कर दी गई। साफ़-सफ़ाई की व्यवस्था देखने लायक थी। चूना आदि छिड़ककर आने जाने के रास्ते बनाए गए। नियत दस बजे देशभक्ति गीत बजने के साथ ही कार्यक्रम शुरू हो गया। मुख्य अतिथि के आते ही सरस्वती पूजन और दीप प्रज्ज्वलन किया गया। छात्र-छात्राओं ने सामूहिक स्वर में ‘वर दे वीणा वादिनी वर दे’ प्रस्तुत किया। फिर स्वागत है श्रीमान आपका…स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम की अगली कड़ी में देशभक्ति पूर्ण नाटक का मंचन किया गया। फिर तो एक-एककर सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। इनमें लोकगीत, पंजाबी नृत्य, झूमर आदि मुख्य थे। प्रधानाचार्य जी विद्यालय की वार्षिक रिपोर्ट पढ़ी और कार्यक्रम के अंत में मुख्य अतिथि ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए आशीर्वचन द्वारा छात्रों का उत्साहवर्धन किया। अंत में मिष्ठान्न वितरण के साथ ही कार्यक्रम का समापन किया गया।

पूज्या माता जी को चरण स्पर्श और सुरभि को स्नेह कहना। शेष सब ठीक है।

आपका प्रिय पुत्र
पल्लव

माता को पत्र

प्रश्न 1.
नए विद्यालय में दाखिला दिलाने के बाद आपकी माता जी आपके विद्यालय के छात्रावास में मिलने वाले भोजन और अन्य बातों को लेकर चिंतित रहती हैं। उनकी चिंता दूर करते हुए एक पत्र द्वारा स्थिति को बताइए।
उत्तरः
दयानंद सरस्वती छात्रावास
प्रशांत विहार, रोहिणी
दिल्ली
10 अप्रैल, 20xx
पूज्या माता जी

सादर चरण स्पर्श

आपका पत्र कल मिला। पढ़कर सब हाल मालूम किया। यह जानकर अच्छा लगा कि आप सभी सकुशल हैं। मैं भी यहाँ आकर पढ़ाई में मन लगा लिया है। पत्र में आपकी चिंता स्पष्ट दिख रही थी कि छात्रावास का वातावरण, भोजन व्यवस्था तथा अन्य बातें कैसी हैं ? इस पत्र में उन्हीं बातों को लिखकर भेज रहा हूँ।

माँ यद्यपि घर-घर होता है और घर का वातावरण अन्यत्र मिलना कठिन होता है, पर मैंने यहाँ आकर एक सप्ताह में स्वयं को छात्रावास के माहौल में ढाल लिया है। यहाँ का चौकीदार हमें पाँच-साढ़े पाँच बजे तब जगा देता है। छह बजे तक दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर व्यायामादि करते हैं। लौटकर नहाना, नाश्ता करना तथा पाठ को एक बार दोहराकर आठ बजे तक विद्यालय आ जाते हैं। यहाँ पढ़ाई का वातावरण अच्छा है। अध्यापक परिश्रमी और लगन से पढ़ाने वाले हैं। दो बजे हम छात्रावास आ जाते हैं। छात्रावास के मेस में खाना खाते हैं और थोड़ी देर आराम कर पढ़ाई करते हैं। शाम को एक घंटे खेलना फिर पढ़ना और आधे घंटे टी०वी० देखने से पूर्व सायं का भोजन करते हैं। साढ़े दस बजे तक हम सभी सो जाते हैं। इसमें विशेष बात यह है कि मेस का भोजन स्वादिष्ट, साफ़ एवं अच्छी गुणवत्ता का है। इसे जानकर अब आपकी चिंता कुछ हद तक दूर हो जाएगी। कोई भी परेशानी होने पर मैं आपको अवश्य लिलूँगा।

पूज्य पिता जी को सादर चरण स्पर्श और पुनीता को स्नेह कहना। शेष अगले पत्र में,

आपका प्रिय पुत्र
समीर शाक्य

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CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन

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CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन

वर्तमान काल में वस्तुओं की बिक्री बढ़ाने एवं उनके उपभोग पर भरपूर जोर दिया जा रहा है। उत्पादक अपनी वस्तुओं की बिक्री द्वारा अधिकाधिक लाभ कमाना चाहते हैं तो उपभोक्ता उनका प्रयोग कर सुख एवं संतुष्टि पाना चाहता है। उपभोक्ताओं की इसी प्रवृत्ति का फायदा उठाने के लिए उत्पादक तरह-तरह के साधनों का सहारा लेते हैं। आज वस्तुओं की बिक्री बढ़ाने का प्रमुख हथियार विज्ञापन है। विज्ञापन शब्द ‘ज्ञापन’ में ‘वि’ उपसर्ग लगाने से बना है, जिसका अर्थ है-विशेष जानकारी देना। यह जानकारी उत्पादित वस्तुओं सेवाओं आदि से जुड़ी होती है। विज्ञापन में वस्तु के गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है, जिससे उपभोक्ता लालायित हों और इन्हें खरीदने के लिए विवश हो जाएँ। विज्ञापन के कारण उत्पादकों को अपनी वस्तुओं के अच्छे दाम मिल जाते हैं तो उपभोक्ता को वस्तुओं की जानकारी, तुलनात्मक दाम एवं चयन का विकल्प मिल जाता है। आजकल टी.वी., रेडियो के कार्यक्रम, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, भवनों की दीवारें विज्ञापनों से रंगी दिखाई पड़ती हैं।

विज्ञापन लेखन कैसे करें –
विज्ञापन लेखन करते समय –

  1. एक बाक्स-सा बनाकर ऊपर मध्य में विज्ञापित वस्तु का नाम मोटे अक्षरों में लिखना चाहिए।
  2. दाएँ एवं बाएँ किनारों पर सेल धमाका, खुशखबरी, खुल गया जैसे लुभावने शब्दों को लिखना चाहिए।
  3. बाईं ओर मध्य में विज्ञापित वस्तु के गुणों का उल्लेख करना चाहिए।
  4. दाहिनी ओर या मध्य में वस्तु का बड़ा-सा चित्र देना चाहिए।
  5. स्टॉक सीमित या जल्दी करें जैसे प्रेरक शब्दों का प्रयोग किसी डिजाइन में होना चाहिए।
  6. मुफ़्त मिलने वाले सामानों या छूट का उल्लेख अवश्य किया जाना चाहिए।
  7. ऊपर ही जगह देखकर कोई छोटी-सी तुकबंदी, जिससे पढ़ने वाला आकर्षित हो जाए।
  8. संपर्क करें/फ़ोन नं. का उल्लेख करें, जैसे- 011-23456789 आदि। अपना या सही फोन नं. देने से बचना चाहिए।

विज्ञापन लेखन के लिए छात्र यह उदाहरण देखें –
‘रक्षक’ हेलमेट बनाने वाली-कंपनी’ की बिक्री बढ़ाने के लिए विज्ञापन तैयार करना –
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 1

कुछ और उदाहरण

1. नवांकुर प्ले स्कूल में प्री प्राइमरी से पाँचवी तक के दाखिले शुरू हो गए हैं। इस स्कूल के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 2

2. ‘रुचिकर परिधान शो रुम’ को अपने परिधानों की बिक्री बढ़ानी है। वे सभी परिधानों पर 20% की छूट दे रहे हैं। इस संबंध में एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 3

3. आप एक योग प्रशिक्षण केंद्र खोलना चाहते हैं। इस संबंध में युवाओं को आकर्षित करने वाला एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 4

4. ‘कान्हा डेयरी’ अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए एक विज्ञापन तैयार करवाना चाहते हैं। इस संबंध में आप उनके लिए
विज्ञापन लेखन कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 5

5. उत्तर प्रदेश पर्यटन निगम पर्यटकों की संख्या बढ़ाना चाहता है। उसके लिए एक आकर्षक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 6

6. आपने अपना नया कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र खोला है। यहाँ प्रवेश लेने के लिए शिक्षार्थी आकर्षित हों, इसके लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 7

7. ‘सरस्वती पुस्तक भंडार’ पुस्तक की बिक्री बढ़ाने हेतु विज्ञापन तैयार करवाना चाहता है। आप उसके लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 8

8. ज्ञानदीप कोचिंग सेंटर में छात्रों को प्रवेश लेने हेतु आकर्षित करते हुए एक आकर्षक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 9

9. एक्सेल मोबाइल फ़ोन बाने वाली कंपनी के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 10

10. आपको अपनी पुरानी मोटर साइकिल बेचनी हैं। इसके लिए विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 11

11. आपके मोहल्ले में पालतू जानवरों के इलाज के लिए अस्पताल खोला गया है। इसके लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 12

12. ‘रक्षक’ जूते बनाने वाली कंपनी के लिए विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 13

13. ‘स्वादिष्ट’ अचार बनाने वाली कंपनी के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 14

14. ‘लवली’ पेंसिलें बनाने वाली कंपनी के लिए विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 15

15. रचना रजिस्टर एवं कापियाँ बनाने वाली कंपनी के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 16

16. ‘प्रकाश’ एल.ई.डी. बल्ब बनाने वाली कंपनी की बिक्री बढ़ाने हेतु विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 17

17. ‘कलर विजन’ टी.वी. बनाने वाली कंपनी अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए विज्ञापन तैयार करवाना चाहती है। आप उसके लिए एक आकर्षक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 18

18. ‘पवन’ पंखा बनाने वाली कंपनी अपने पंखों की बिक्री बढ़ाना चाहती है। आप उसके लिए एक आकर्षक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 19

19. ‘प्रीति’ साड़ी स्टोर की साड़ियों की बिक्री बढ़ाने के लिए एक आकर्षक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 20

20. ‘कूल इंडिया’ कूलर्स की बिक्री बढ़ाने के लिए एक आकर्षक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 21

21. आप अपनी पुरानी कार बेचना चाहते हैं। इसके लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 22

22. आप शाम 7 PM से 9 PM नृत्य का प्रशिक्षण देने के लिए कक्षाएं शुरू की जा रही हैं। इसमें प्रवेश के इच्छुक लड़कियों के लिए विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 23

23. आपके मित्र फूलों से बनी वस्तुओं-गुलदस्ते, हार, मालाएँ, बुके आदि की बिक्री बढ़ाना चाहता है। उसकी मदद के लिए एक विज्ञान तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 24

24. कार ड्राइविंग सिखाने वाले नए स्कूल के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 25

25. ‘मोनू स्कूल बैग्स’ अपने बैगों की बिक्री बढ़ाना चाहते हैं। इसके लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल विज्ञापन लेखन - 26

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CBSE Class 10 Hindi B Unseen Passages अपठित काव्यांश

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CBSE Class 10 Hindi B Unseen Passages अपठित काव्यांश

अपठित काव्यांश

अपठित काव्यांश अपठित काव्यांश किसी कविता का वह अंश होता है जो पाठ्यक्रम में शामिल पुस्तकों से नहीं लिया जाता है। इस अंश को छात्रों द्वारा पहले नहीं पढ़ा गया होता है।

अपठित काव्यांश का उद्देश्य काव्य पंक्तियों का भाव और अर्थ समझना, कठिन शब्दों के अर्थ समझना, प्रतीकार्थ समझना, काव्य सौंदर्य समझना, भाषा-शैली समझना तथा काव्यांश में निहित संदेश। शिक्षा की समझ आदि से संबंधित विद्यार्थियों की योग्यता की जाँच-परख करना है।

अपठित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों को हल करने से पहले काव्यांश को दो-तीन बार पढ़ना चाहिए तथा उसका भावार्थ और मूलभाव समझ में आ जाए। इसके लिए काव्यांश के शब्दार्थ एवं भावार्थ पर चिंतन-मनन करना चाहिए। छात्रों को व्याकरण एवं भाषा पर अच्छी पकड़ होने से यह काम आसान हो जाता है। यद्यपि गद्यांश की तुलना में काव्यांश की भाषा छात्रों को कठिन लगती है। इसमें प्रतीकों का प्रयोग इसका अर्थ कठिन बना देता है, फिर भी निरंतर अभ्यास से इन कठिनाइयों पर विजय पाई जा सकती है।

अपठित काव्यांश संबंधी प्रश्नों को हल करते समय निम्नलिखित प्रमुख बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए

  • काव्यांश को दो-तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ना और उसके अर्थ एवं मूलभाव को समझना।
  • कठिन शब्दों या अंशों को रेखांकित करना।
  • प्रश्न पढ़ना और संभावित उत्तर पर चिह्नित करना।
  • प्रश्नों के उत्तर देते समय प्रतीकार्थों पर विशेष ध्यान देना।
  • प्रश्नों के उत्तर काव्यांश से ही देना; काव्यांश से बाहर जाकर उत्तर देने का प्रयास न करना।
  • उत्तर अपनी भाषा में लिखना, काव्यांश की पंक्तियों को उत्तर के रूप में न उतारना।
  • यदि प्रश्न में किसी भाव विशेष का उल्लेख करने वाली पंक्तियाँ पूछी गई हैं तो इसका उत्तर काव्यांश से समुचित भाव व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ ही लिखना चाहिए।
  • शीर्षक काव्यांश की किसी पंक्ति विशेष पर आधारित न होकर पूरे काव्यांश के भाव पर आधारित होना चाहिए।
  • शीर्षक संक्षिप्त आकर्षक एवं अर्थवान होना चाहिए।
  • अति लघुत्तरीय और लघुउत्तरीय प्रश्नों के उत्तर में शब्द सीमा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
  • प्रश्नों का उत्तर लिखने के बाद एक बार दोहरा लेना चाहिए ताकि असावधानी से हुई गलतियों को सुधारा जा सके।

काव्यांश को हल करने में आनेवाली कठिनाई से बचने के लिए छात्र यह उदाहरण देखें और समझें-

निम्नलिखित काव्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

CBSE Class 10 Hindi B Unseen Passages अपठित बोध- 2

प्रश्नः 1.
कवि देशवासियों से क्या आह्वान कर रहा है?
उत्तर:
कवि देशवासियों से यह आह्वान कर रहा है कि वे भारत में एकता स्थापित करके सुख-शांति से जीवन बिताएँ।

प्रश्नः 2.
आपस में एकता बनाए रखने के लिए किसका उदाहरण दिया गया है ?
उत्तर:
आपस में एकता बनाए रखने के लिए कवि तरह-तरह के फूलों से बनी सुंदर माला का उदाहरण दे रहा है।

प्रश्नः 3.
देश में एकता की भावना कब मज़बूत हो सकती है?
उत्तर:
देश में एकता की सच्ची भावना तब मज़बूत हो सकती है जब हर देशवासी जाति-धर्म, भाषा प्रांत आदि के बारे में अविवेक से सोचना बंद करे और सच्चे मन से दूसरों से मेल करे।

प्रश्नः 4.
“भिन्नता में खिन्नता’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है और क्यों?
उत्तर:
भिन्नता के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि अलग-अलग रहने का परिणाम दुख एवं अशांति ही होता है। अतः हमें मेल जोल और ऐक्यभाव से रहना चाहिए क्योंकि एकता के अभाव में देश कमज़ोर हो जाएगा जिसका परिणाम दुखद ही होगा।

प्रश्नः 5.
काव्यांश में सच्ची एकता किसे कहा गया है ? इसे बनाए रखने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
सच्चे मन से ही एक-दूसरे से मिलने को सच्ची एकता कहा है। इसके लिए भारतीयों को आपसी बैर और विरोध को सप्रयास बलपूर्वक दबा देना चाहिए और एकता मज़बूत करनी चाहिए।

उदाहरण (उत्तर सहित)

निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

(1) पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
पुस्तकों में है नहीं, छापी गई इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की जुबानी,
अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,
पर गए कुछ लोग इस पर, छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!

है अनिश्चित किस जगह पर, सरित-गिरि-गह्वर
मिलेंगे,
है अनिश्चित किस जगह पर, बाग-बन सुंदर मिलेंगे,
किस जगह यात्रा खत्म हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित, कब सुमन, कब कंटकों के सर मिलेंगे,
कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा,
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!

प्रश्नः (क)
कवि ने बटोही को क्या सलाह दी है और क्यों?
उत्तर:
कवि ने बटोही को यह सलाह दी है कि वह रास्ते पर चलने से पहले उसके बारे में जाँच-परख कर ले। वह ऐसा करने के लिए इसलिए कहता है क्योंकि इससे यात्रा सुगम और निर्विघ्न रूप से पूरी हो जाएगी।

प्रश्नः (ख)
निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जीवन पथ पर बहुत से लोग गए हैं पर उनमें कुछ विशिष्ट लोग भी थे, जो अपने अच्छे कर्मों का उदाहरण छोड़ गए। उनके द्वारा छोड़ी गई अच्छे कर्मों की निशानी यद्यपि मूक है पर हमें जीवन पथ पर चलते जाने की प्रेरणा देती है।

प्रश्नः (ग)
कवि ने जीवन मार्ग में क्या-क्या अनिश्चितताएँ बताई हैं?
उत्तर:
कवि ने जीवन पथ में मिलने वाले सुख-दुख, साथ-चलने वालों का अचानक साथ छोड़ देना या नए यात्रियों का मिल जाना और जीवन कभी भी समाप्त हो सकता है जैसी अनिश्चितताएँ बताई हैं।

(2) आज की दुनिया विचित्र, नवीन;
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।
हैं बँधे नर के करों में वारि, विद्युत्, भाप,
हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप।
है नहीं बाकी कहीं व्यवधान,
लाँघ सकता नर सरित्, गिरि, सिंधु एक समान।
प्रकृति के सब तत्त्व करते हैं मनुज के कार्य;
मानते हैं हुक्म मानव का महा वरुणेश,

और करता शब्दगुण अंबर वहन संदेश।
नव्य नर की मुष्टि में विकराल,
हैं सिमटते जा रहे प्रत्येक क्षण विकराल।
यह प्रगति निस्सीम! नर का यह अपूर्व विकास!
चरण-तल भूगोल! मुट्ठी में निखिल आकाश!
किंतु, है बढ़ता गया मस्तिष्क ही निःशेष,
शीश पर आदेश कर अवधार्य,
छूट पर पीछे गया है रह हृदय का देश;
मोम-सी कोई मुलायम चीज़
ताप पाकर जो उठे मन में पसीज-पसीज।

प्रश्नः (क)
कवि को आज की दुनिया विचित्र और नवीन क्यों लग रही है?
उत्तर:
कवि को आज की दुनिया विचित्र और नवीन इसलिए लग रही है क्योंकि आज मनुष्य ने प्रकृति पर सर्वत्र विजय प्राप्त कर ली है। प्राकृतिक बाधाएँ उसका मार्ग नहीं रोक पाती हैं।

प्रश्नः (ख)
‘हैं नहीं बाकी कहीं व्यवधान’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
कहीं नहीं बाकी व्यवधान के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि मनुष्य के सामने अब कोई रुकावट नहीं है। आज पानी, बिजली, भाप, वायु मनुष्य के हाथों में बँधे हैं। वह अपनी मर्जी से इनका उपयोग कर रहा है। अब नदी, पहाड़, सागर सभी को लाँघ सकता है।

प्रश्नः (ग)
मानव द्वारा किए गए वैज्ञानिक प्रगति के अद्भुत विकास कवि को खुशी नहीं दे रहे हैं, क्यों?
उत्तर:
मानव द्वारा किए गए अद्भुत विकास कवि को इसलिए खुशी नहीं दे रहे हैं क्योंकि मनुष्य ने अपने मस्तिष्क का विकास तो खूब किया पर हृदय का विकास पीछे छूट गया अर्थात् जीवन मूल्यों में गिरवाट आती गई।

(3) मैं तो मात्र मृत्तिका हूँ-
जब तुम मुझे पैरों से रौंदते हो ।
तथा हल के फाल से विदीर्ण करते हो
तब मैं-
धन-धान्य बनकर मातृरूपा हो जाती हूँ।
पर जब भी तुम
अपने पुरुषार्थ-पराजित स्वत्व से मुझे पुकारते हो

तब मैं
अपने ग्राम्य देवत्व के साथ विन्मयी शक्ति हो जाती हूँ
प्रतिमा बन तुम्हारी आराध्या हो जाती हूँ।
विश्वास करो
यह सबसे बड़ा देवत्व है कि
तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य हो
और में स्वरूप पाती मृत्तिका।

प्रश्नः (क)
पुरुषार्थ को सबसे बड़ा देवत्व क्यों कहा गया है?
उत्तर:
मनुष्य अपने पुरुषार्थ द्वारा ही मिट्टी को भिन्न आकार देता है। मनुष्य के पुरुषार्थ के परिणामस्वरूप ही मिट्टी चिन्मयी शक्ति का रूप धारण करती है। पुरुषार्थ हर सफलता का मूलमंत्र है, इसलिए उसे सबसे बड़ा देवत्व माना गया है।

प्रश्नः (ख)
मिट्टी चिन्मयी शक्ति कब बन जाती है, कैसे?
उत्तर:
मिट्टी जब आराध्या की प्रतिमा बन जाती है तब वह चिन्मयी शक्ति प्राप्त कर लेती है। मनुष्य जब थक हारकर आराध्या की आराधना करता है तब वह पराजित मनुष्य को सांत्वना देकर उसे शक्ति प्रदान करती है।

प्रश्नः (ग)
मिट्टी मातृरूपा कब बन जाती है?
उत्तर:
मिट्टी को जब जोत कर, रौंदकर भुरभुरा बनाया जाता है, उसमें फसलें उगाई जाती है तब मिट्टी धन-धान्य से भरपूर हो जाती है और मातृरूपा बनाकर माँ के समान हमारा भरण-पोषण करती है।

(4) हम प्रचंड की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल। ।
हम नवीन भारत के सैनिक, धीर, वीर, गंभीर, अचल।
हम प्रहरी ऊँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं।
हम हैं शांति-दूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं।
वीर प्रसू माँ की आँखों के, हम नवीन उजियाले हैं।
गंगा, यमुना, हिंद महासागर के हम ही रखवाले हैं।
तन-मन-धन तुम पर कुर्बान,
जियो, जियो जय हिंदुस्तान !

हम सपूत उनके, जो नर थे, अनल और मधु के मिश्रण।
जिनमें नर का तेज प्रखर था, भीतर था नारी का मन।
एक नयन संजीवन जिनका, एक नयन था हालाहल।
जितना कठिन खड्ग था कर में उतना ही अंतर के मल।
थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर।
स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर।
हम उन वीरों की संतान
जियो, जियो जय हिंदुस्तान।

प्रश्नः (क)
कविता में ‘हम’ कौन हैं ?
उत्तर:
कविता में ‘हम’ भारत की नई पीढ़ी के नवयुवक हैं। वे अपने को प्रचंड की नई किरण इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि अब उन्हें अपने अच्छे कार्यों का आलोक दुनिया भर में फैलाना है, तथा वे देश के भावी कर्णधार हैं।

प्रश्नः (ख)
भारतवासी हिंदुस्तान पर क्या-क्या न्योछावर करना चाहते हैं, क्यों?
उत्तर:
भारतीय नवयुवक अपने देश हिंदुस्तान पर तन, मन और धन अर्थात् सर्वस्व न्योछावर कर देना चाहते हैं क्योंकि देश की आन-बान-शान की रक्षा और भविष्य का उत्तरदायित्व उनके कंधों पर है।

प्रश्नः (ग)
‘अनल और मधु के मिश्रण’ किन्हें कहा गया है? उनकी अन्य विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर:
अनल और मधु के मिश्रण हम भारतीयों के पूर्वजों को कहा गया है। वे युद्ध में आग के समान कोहराम मचाने वाले परंतु हृदय से बड़े दयालु थे। उनका तेज़ अत्यंत प्रखर और हृदय कोमल भावों से भरा था।

(5) आज सवेरे
जब वसंत आया उपवन में चुपके-चुपके
कानों ही कानों में मैंने उससे पूछा
“मित्र पा गए तुम तो अपने यौवन का उल्लास दुबारा
गमक उठ फिर प्राण तुम्हारे,
फूलों-सा मन फिर मुसकाया
पर साथी

जब मेरे जीवन का पहला पहर झुलसता था लपटों में,

तुम बैठे थे बंद उशीर पटों से घिरकर।
मैं जब वर्षा की बाढ़ों में डूब-डूब कर उतराया था
तुम हँसते थे वाटर प्रूफ़ कवचन को ओढ़े।
और शीत के पाले में जब गलकर मेरी देह जम गई

तब बिजली के हीटर से
तुम सेंक रहे थे अपना तन-मन
जिसने झेला नहीं, खेल क्या उसने खेला?
जो कष्टों से भागा दूर हो गया सहज जीवन के क्रम से,

उसको दे क्या दान प्रकृति की यह गतिमयता यह नव बेला।
पीड़ा के माथे पर ही आनंद तिलक चढ़ता आया है

क्या दोगे मुझको?
मेरा यौवन मुझे दुबारा मिल न सकेगा?”
सरसों की उंगलियाँ हिलाकर संकेतों में वह यों बोला,
मेरे भाई!
व्यर्थ प्रकृति के नियमों की यों दो न दुहाई,
होड़ न बाँधो तुम यो मुझसे।

मुझे देखकर आज तुम्हारा मन यदि सचमुच ललचाया है
तो कृत्रिम दीवारें तोड़ो

बाहर जाओ,
खुलो, तपो, भीगो, गल जाओ
आँधी तूफ़ानों को सिर लेना सीखो
जीवन का हर दर्द सहे जो स्वीकारो हर चोट समय की

जितनी भी हलचल मचती हो, मच जाने दो
रस विष दोनों को गहरे में पच जाने दो
तभी तुम्हें भी धरती का आशीष मिलेगा
तभी तुम्हारे प्राणों में भी यह
पलाश का फूल खिलेगा।

प्रश्नः (क)
उपवन को हरा-भरा देख कवि ने उससे क्या कहा और उससे क्या माँगा?
उत्तर:
उपवन को हरा-भरा देखकर कवि ने उससे कहा कि मित्र! तुम्हें तो अपने यौवन की खुशियाँ दुबारा मिल गईं। इससे तुम्हारा मन महक उठा है। कवि ने उपवन से अपने यौवन का उल्लास माँगा।

प्रश्नः (ख)
धरती के सुख मनुष्य को कब सुलभ हो सकते हैं ?
उत्तर:
धरती के सुख मनुष्य को तब सुलभ हो सकते हैं, जब मनुष्य सुख और दुख दोनों को समान रूप में अपनाए और सहन करे। केवल सुखों को अपनाने और दुख से विमुख रहने पर वह धरती के सुख नहीं पा सकता है।

प्रश्नः (ग)
मानव ने स्वयं को किन-किन कृत्रिम दीवारों में कैद कर रखा है ?
उत्तर:
मानव ने स्वयं को जिन कृत्रिम दीवारों में कैदकर रखा है, वे हैं

  • समस्त सुख-सुविधाओं के साधन
  • मौसम की मार से बचाने वाले उपकरण आदि।

(6) इस समाधि में छिपी हुई है
एक राख की ढेरी।
जलकर जिसने स्वतंत्रता की
दिव्य आरती फेरी॥

यह समाधि यह लघु समाधि, है
झाँसी की रानी की।
अंतिम लीला-स्थली यही है
लक्ष्मी मर्दानी की॥

यहीं कहीं पर बिखर गई वह
भग्न विजय-माला-सी
उसके फूल यहाँ संचित हैं
है वह स्मृति-शाला-सी॥

सहे वार पर वार अंत तक
लड़ी वीर बाला-सी।
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर
चमक उठी ज्वाला-सी॥

बढ़ जाता है मान वीर का
रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की
भस्म यथा सोने से॥

रानी से भी अधिक हमें अब
यहाँ समाधि है प्यारी।
यहाँ निहित है स्वतंत्रता की
आशा की चिंगारी॥

प्रश्नः (क)
कवि किसकी समाधि की बात कर रहा है?
उत्तर:
कवि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की समाधि के बारे में बात कर रहा है। उसने रानी लक्ष्मीबाई को मर्दानी इसलिए कहा है क योंकि रानी ने महिला होकर पुरुष वीर योद्धा की भाँति युद्ध किया और लड़ते-लड़ते वीरगति प्राप्त की।

प्रश्नः (ख)
अंतिम लीला-स्थली किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर:
अंतिम लीला-स्थली समाधि के आस-पास के उस स्थल को कहा गया है, जहाँ रानी लक्ष्मीबाई का अंग्रेजों के साथ भीषण युद्ध हुआ था। यहीं रानी को वीरगति मिली थी। यह रानी का अंतिम युद्ध था, इसलिए उसे अंतिम लीला-स्थली कहा गया है।

प्रश्नः (ग)
वीर का मान कब बढ़ जाता है?
उत्तर:
वीर का मान तब बढ़ जाता है जब वह अपने देश की रक्षा के लिए युदध करते-करते वह अपना बलिदान दे देता है। उसका यह बलिदान देशवासियों में देशभक्ति और देशभक्ति की भावना जगाते है। इससे दूसरे लोग भी अपने देश के लिए कुछ कर गुज़रने के लिए प्रेरित हो उठते हैं।

(7) बजता है समय अधीर पथिक,
मैं नहीं सदाएँ देती हूँ
हूँ पड़ी राह से अलग, भला
किस राही का क्या लेती हूँ?

मैं भी न जान पायी अब तक,
क्यों था मेरा निर्माण हुआ?
सूखी लकड़ी के जीवन का
जाने सर्बस क्यों गान हुआ?

जाने किसकी दौलत हूँ मैं
अनजान, गाँठ से गिरी हुई।
जानें किसका हूँ स्वप्न
ना जानें किस्मत किसकी फिरी हुई।

तुलसी के पत्ते चले गये
पूजोपहार बन जाने को।
चंदन के फूल गये जग में
अपना सौरभ फैलाने को।

जो दूब पड़ोसिन है मेरी,
वह भी मंदिर में जाती है।
पूजती कृषक-वधुएँ आकर,
मिट्टी भी आदर पाती है।

बस, एक अभागिन हूँ जिसका
कोई न कभी भी आता है।
झंझा से लेकर काल-सर्प तक
मुझको छेड़ बजाता है।

प्रश्नः (क)
बाँसुरी अब तक क्या नहीं जान पाई? वह ‘सूखी लकड़ी के जीवन का’ के माध्यम से क्या कहना चाहती है? \
उत्तर:
बाँसुरी अब तक यह नहीं जान पाई कि इस दुनिया में उसे क्यों बनाया गया है ? ‘सूखी लकड़ी के जीवन का’ के माध्यम से वह यह कहना चाहती है कि बाँस से बनी बाँसुरी को जब वादक मधुर स्वर फूंककर बजाता है तो उस सूखी लकड़ी में भी जीवन आ जाता है। वह प्राणवान हो जाती है।

प्रश्नः (ख)
बासुरी को अपनी किस्मत और तुलसी-चंदन में क्या अंतर दिखाई देता है ?
उत्तर:
रास्ते में पड़ी बाँसुरी सोचती है कि वह न जाने किसकी अनजान दौलत है जो किसी की गाँठ से गिर गई हूँ। मुझे उठाने वाला कोई नहीं है, जबकि तुलसी के पत्ते पूजा बनने और चंदन के फूल अपनी महक लुटाने के लिए चले गए हैं। ऐसा बाँसुरी को किस्मत के कारण लगता है।

प्रश्नः (ग)
इस कविता में दुख का भाव किस प्रकार व्यक्त होता है?
उत्तर:
बाँसुरी का दुख यह है कि जंगल के अन्य सभी पेड़-पौधे यहाँ तक कि मिट्टी भी आदर का पात्र समझी जाती है पर बाँसुरी उपेक्षित पड़ी रहती है और उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता है।

(8) नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर हैं,
सूर्य चंद्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है,
नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मंडल है,
बदीजन खग-वृंद, शेषफन सिंहासन है
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की
हे मातृभूमि! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की;
जिसकी रज में लोट-लोटकर बड़े हुए हैं,
घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुए हैं,
परमहंस सम बाल्यकाल में सब, सुख पाए,
जिसके कारण ‘धूल भरे हीरे कहलाए,
हम खेले-कूदे हर्षयुत, जिसकी प्यारी गोद में
हे मातृभूमि! तुझको निरख, मग्न क्यों न हो मोद में

निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है,
शीतल मंद सुगंध पवन हर लेता श्रम है,
षट्ऋतुओं का विविध दृश्य युत अद्भुत क्रम है,
हरियाली का फर्श नहीं मखमल से कम है,
शुचि-सुधा सींचता रात में, तुझ पर चंद्रप्रकाश है
हे मातृभूमि! दिन में तरणि, करता तम का नाश है
जिस पृथ्वी में मिले हमारे पूर्वज प्यारे,
उससे हे भगवान! कभी हम रहें न न्यारे,
लोट-लोट कर वहीं हृदय को शांत करेंगे
उसमें मिलते समय मृत्यु से नहीं डरेंगे,
उस मातृभूमि की धूल में, जब पूरे सन जाएंगे
होकर भव-बंधन-मुक्त हम, आत्मरूप बन जाएँगे।

प्रश्नः (क)
कवि अपने देश पर क्यों बलिहारी जाता है?
उत्तर:
कवि अपने देश पर इसलिए बलिहारी जाता है क्योंकि इस देश का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम, अतुलनीय है। यहाँ वातावरण में चारों ओर हरियाली फैली हैं। यहाँ की नदियाँ जीवनदायिनी है तथा सागर हमें अमूल्य संपदा प्रदान करता है।

प्रश्नः (ख)
कवि अपनी मातृभूमि के जल और वायु की क्या-क्या विशेषता बताता है?
उत्तर:
कवि अपनी मातृभूमि के जल की विशेषता बताता है कि अत्यंत शीतल स्वच्छ और अमृत के समान है। इसी तरह यहाँ की वायु मंद, सुगंधित और शीतलतायुक्त है जो सारी थकान हर लेती है।

प्रश्नः (ग)
मातृभूमि को ईश्वर का साकार रूप किस आधार पर बताया गया है?
उत्तर:
हमारी मातृभूमि ईश्वर का साकार रूप है क्योंकि सूर्य एवं चाँद इसके मुकुट के समान तथा शेषनाग का फल इसके सिंहासन जैसा है। बादल निरंतर इसका अभिषेक करते हैं और पक्षियों का समूह इसके यश का गुणगान करता है।

(9) सागर के उर पर नाच-नाच करती हैं लहरें मधुरगान
जगती के मन का खींच-खींच
निज छवि के रस से सींच-सींच
जेल कन्याएँ भोली अजान,

सागर के उर पर नाच-नाच करती है लहरें मधुरगान
प्रातः समीर से हो अधीर,

सागर के उर पर नाच-नाच करती हैं लहरें मधुरगान
करतल गत कर नभ की विभूति
पाकर शशि से सुषमानुभूति
तारांवलि-सी मृदु दीप्तिमान,

सागर के उर पर नाच-नाच करती हैं लहरें मधुरगान
तन पर शोभित नीला दुकूल
हैं छिपे हृदय में भाव फूल

छूकर पल-पल उल्लसित तीर,
कुसुमावलि-सी पुलकित महान,

सागर के उर पर नाच-नाच करती है लहरें मधुरगान
संध्या से पाकर रूचि रंग
करती सी शत सुर-चाप भंग
हिलती नव तरु-दल के समान,

आकर्षित करती हुई ध्यान,

सागर के उर पर नाच-नाच करती हैं लहरें मधुरगान
हैं कभी मुदित, हैं कभी खिन्न,
हैं कभी मिली, हैं कभी भिन्न,
हैं एक सूत्र में बँधे प्राण
सागर के उर पर नाच-नाच, करती हैं लहरें मधुरगान।

प्रश्नः (क)
जल कन्याएँ किन्हें कहा गया है? वे क्या कर रही हैं?
उत्तर:
जल कन्याएँ सागर की लहरों को कहा गया है। ये जल कन्याएँ अपनी सुंदरता से लोगों का मन अपनी ओर खींच रही हैं और सागर के हृदय पर मधुर गीत गाती फिर रही हैं।

प्रश्नः (ख)
प्रातः कालीन वायु का लहरों पर क्या असर हुआ है? उनके क्रिया कलाप को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
प्रातः कालीन वायु का स्पर्श पाकर लहरें अधीर हो उठी हैं। वे खुशी-खुशी किनारों को छूकर लौट जाती हैं। दूर से आती लहरों को देखकर ऐसा लगता है जैसे फूलों की बड़ी-सी कतार चली आ रही हैं। ये लहरें आनंदपूर्वक सागर के हृदय पर गान कर रही हैं।

प्रश्नः (ग)
लहरों का वस्त्र कैसा है? वे हमारा ध्यान आकर्षित करने के लिए क्या कर रही हैं?
उत्तर:
लहरों का वस्त्र नीला है। वे अपने हृदय में नाना प्रकार के भाव छिपाए, मधुर गीत गाती हुई सागर के सीने पर नाचती फिर रही हैं। इस तरह अपनी सुंदरता से लहरें हमारा ध्यान अपनी ओर खींच रही हैं।

(10) अंत समय आ गया पास था
उसे बता यह दिया गया था उसकी हत्या होगी।

धीरे-धीरे चला अकेले
सोचा साथ किसी को ले ले
फिर रह गया, सड़क पर सब थे
सभी मौन थे सही निहत्थे
सभी जानते थे यह उस दिन उसकी हत्या होगी।

खड़ा हुआ वह बीच सड़क पर

दोनों हाथ पेट पर रख कर
सधे कदम रख करके आए
लोग सिमट कर आँख गड़ाए
लगे देखने उसको जिसकी तय था हत्या होगी।

निकल गली से तब हत्यारा
आया उसने नाम पुकारा
हाथ तौलकर चाकू मारा
छूटा लोहू का फव्वारा
कहा नहीं था उसने आखिर उसकी हत्या होगी?

प्रश्नः (क)
रामदास के उदासी का क्या कारण था?
उत्तर: रामदास की उदासी का कारण यह था कि उसे पता चल गया था कि उसका अंत समय आ गया है। उसे यह भी बता दिया गया था कि उसकी हत्या कर दी जाएगी। अपनी मृत्यु को अवश्यंभावी जानकर वह बहुत उदास था।

प्रश्नः (ख)
रामदास अपने साथ किसी को लेते-लेते क्यों रुक गया।
उत्तर: रामदास अपने साथ किसी को लेते-लेते इसलिए रुक गया था क्योंकि उसे पता था कि सड़क पर अकेला नहीं होगा। सड़क पर और भी बहुत से लोग होंगे जो उसे बचाने आगे आएँगे। इस तरह उसकी हत्या नहीं होने पाएगी।

प्रश्नः (ग)
सड़क पर हत्या होने से क्या मतलब है? इससे समाज के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
सड़क पर हत्या होने का मतलब है-हत्यारों को किसी का भय न होना तथा शहर में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज़ न होना। इससे समाज के बारे में यह पता चलता है कि लोग कितने संवेदनहीन हो चुके हैं। भय और आतंक के कारण उनकी संवेदना मर गई है।

(11) आज तक मैं यह समझ नहीं पाया
कि हर साल बाढ़ में पड़ने के बाद भी
लोग दियारा छोड़कर कोई दूसरी जगह क्यों नहीं जाते?
समुद्र में आता है तूफ़ान
तटवर्ती सारी बस्तियों को पोंछता
वापस लौट जाता है
और दूसरे ही दिन तट पर फिर
बस जाते हैं गाँव –
क्यों नहीं चले जाते ये लोग कहीं और?
हर साल पड़ता है सूखा
हरियरी की खोज में चलते हुए गौवों के खुर
धरती की फाँट में फँस-फँस जाते हैं
फिर भी कौन इंतज़ार में आदमी

बैठा रहता है द्वार पर,
कल भी आएगी बाढ़
कल भी आएगा तूफ़ान
कल भी पड़ेगा अकाल
आज तक मैं समझ नहीं पाया
कि जब वृक्ष पर एक भी पत्ता नहीं होता
झड़ चुके हैं सारे पत्ते
तो सूर्य डूबते-डूबते
बहुत दूर से चीत्कार करता
पंख पटकता
लौटता है पक्षियों का एक दल
उसी दूंठ वृक्ष के घोसलों में
क्यों? आज तक मैं समझ नहीं पाया।

प्रश्नः (क)
दियारा के संबंध में लोगों की किस स्वाभाविक विशेषता का उल्लेख है ? इससे क्या प्रकट होता है?
उत्तर:
दियारा अर्थात् नदी के किनारे के निचले क्षेत्र जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ आती है और वहाँ की फ़सलें, धन-धान्य और घर तबाह कर जाती है फिर भी लोग उसे छोड़कर अन्यत्र जाकर नहीं बसते हैं। इससे दियारा के प्रति लोगों का स्वाभाविक लगाव प्रकट होता है।

प्रश्नः (ख)
तूफ़ान आने के बाद तटीय इलाकों की स्थिति कैसी हो जाती है पर उनमें शीघ्र क्या बदलाव दिखाई देता है?
उत्तर:
तूफ़ान आने से तटीय इलाकों की स्थिति बदहाल हो जाती है। वहाँ पेड़-पौधे घर-मकान, रोजी-रोटी के साधन सभी कुछ नष्ट हो जाते हैं पर अगले दिन से ही वहाँ जन-जीवन सामान्य होने लगता है और फिर से सब कुछ पहले जैसा हो जाता है।

प्रश्नः (ग)
गायों के खुर कहाँ फँस जाते हैं और क्यों?
उत्तर:
गायों के खुर उन दरारों में फट जाते हैं जो धरती फटने से बनी हैं। भयंकर सूखे के कारण धरती में दरारें पड़ गईं है। गाएँ
हरी-हरी घास की तलाश में इधर-उधर भटक रही थी और उनका खुर इन दरारों में फँस गया।

(12) कितने ही कटुतम काँटे तुम मेरे पथ पर आज बिछाओ,
और अरे चाहे निष्ठुर कर का भी धुंधला दीप बुझाओ।
किंतु नहीं मेरे पग ने पथ पर बढ़कर फिरना सीखा है।
मैंने बस चलना सीखा है।
कहीं छुपा दो मंज़िल मेरी चारों ओर निमिर-घन छाकर,
चाहे उसे राख कर डालो नभ से अंगारे बरसाकर,

पर मानव ने तो पग के नीचे मंज़िल रखना सीखा है।
मैंने बस चलना सीखा है।
कब तक ठहर सकेंगे मेरे सम्मुख ये तूफ़ान भयंकर
कब तक मुझसे लड़ा पाएगा इंद्रराज का वज्र प्रखरतर
मानव की ही अस्थिमात्र से वज्रों ने बनना सीखा है।
मैंने बस चलना सीखा है।

प्रश्नः (क)
मानव के सामने क्या नहीं टिक पाता और क्यों?
उत्तर:
मानव के सामने भयंकर से भयंकर तूफ़ान भी नहीं टिक पाता है क्योंकि मनुष्य अपने अदम्य साहस व शक्ति के बल पर निडरता पूर्वक तूफ़ान से संघर्ष करता है और उस पर विजय पाता है।

प्रश्नः (ख)
साहसी मानव की मंजिल कहाँ रहती है और क्यों?
उत्तर:
साहसी मनुष्य की मंजिल उसके पैरों तले रहती है। उसकी इच्छा शक्ति के सामने प्राकृतिक आपदाएँ भी शरमा जाती हैं। वह अपनी मंजिल को अंधकार में से भी ढूँढ़कर निकाल लेता है।

प्रश्नः (ग)
‘अस्थिमात्र से वज्र बनना’ इस पंक्ति से किस कथा की ओर संकेत किया गया है।
उत्तर:
‘अस्थिमात्र से वज्र बनना’ इस पंक्ति से ऋषि दधीचि द्वारा मानवता की भलाई के लिए अपनी हड्डियाँ तक दान दे देने की ओर संकेत किया गया है। उनकी हड्डियों से बने वज्र द्वारा वृत्तासुर नामक राक्षस का वध किया गया था।

(13) जब गीतकार मर गया, चाँद रोने आया,
चाँदनी मचलने लगी कफ़न बन जाने को।
मलयानिल ने शव को कंधों पर उठा लिया,
वन ने भेजे चंदन-श्रीखंड जलाने को।

सूरज बोला, यह बड़ी रोशनीवाला था,
मैं भी न जिसे भर सका कभी उजियाली से,
रँग दिया आदमी के भीतर की दुनिया को
इस गायक ने अपने गीतों की लाली से!

बोला बूढ़ा आकाश ध्यान जब यह धरता,
मुझ में यौवन का नया वेग जग जाता था।
इसके चिंतन में डुबकी एक लगाते ही,
तन कौन कहे, मन भी मेरा रंग जाता था।

देवों ने कहा, बड़ा सुख था इसके मन की
गहराई में डूबने और उतराने में।
माया बोली, मैं कई बार थी भूल गयी
अपने को गोपन भेद इसे बतलाने में।

योगी था, बोला सत्य, भागता मैं फिरता,
यह जाल बढ़ाये हुए दौड़ता चलता था।
जब-जब लेता यह पकड़ और हँसने लगता,
धोखा देकर मैं अपना रूप बदलता था।

मर्दो को आयीं याद बाँकपन की बातें,
बोले, जो हो, आदमी बड़ा अलबेला था।
जिस के आगे तूफ़ान अदब से झुकते हैं,
उसको भी इसने अहंकार से झेला था।

प्रश्नः (क)
गीतकार के मरने पर उसकी अंत्येष्टि में किसने क्या-क्या योगदान दिया?
उत्तर:
गीतकार के मर जाने पर चाँद विलाप करने आया, चाँदनी उसका कफ़न बन जाना चाहती थी। मलय पर्वत से चलने वाली शीतल हवाओं ने उसे कंधे पर उठा लिया और कवि को जलाने के लिए जंगल ने चंदन और श्री खंड की लकड़ियाँ भेज दीं।

प्रश्नः (ख)
गीतकार के गीतों से आकाश किस तरह प्रभावित था?
उत्तर:
गीतकार के गीतों से आकाश बहुत ही प्रभावित था। कवि(गीतकार) के गीत सुनकर वह जवान हो जाता था। वह बाहर और भीतर से ऊर्जावान महसूस करने लगता है। कवि के बारे में सोचते हुए आकाश उसके गुणों में खो जाता था।

प्रश्नः (ग)
मर्दो ने गीतकार की किस तरह प्रशंसा की?
उत्तर:
मर्दो ने गीतकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि गीतकार बड़ा ही अलबेला आदमी था। जिसके आगे तूफ़ान भी झुकते थे उसको भी इस व्यक्ति ने गर्व के साथ झेला था। इस तरह कवि बहुत ही सहनशील और स्वाभिमानी व्यक्ति था।

(14) माँ अनपढ़ थीं
उसके लेखे
काले अच्छर भैंस बराबर
थे नागिन-से टेढ़े-मेढ़े
नहीं याद था
उस श्लोक स्तुति का कोई भी
नहीं जानती थी आवाहन
दुर्बल तन वृद्धावस्था का या कि विसर्जन देवी माँ का
नहीं वक्त था
ठाकुरवारी या शिवमंदिर जाने का भी
तो भी उसकी तुलसी माई
नित्य सहेज लिया करती थीं
निश्छल करुण अश्रु गीतों में
लिपटे-गुंथे दर्द को माँ के।

अकस्मात् बीमार हुई माँ
चौका-बासन गोबर-गोंइठा ओरियाने में
सुखवन लाने-ले जाने में
भीगी थीं सारे दिन जमकर
ऐसा चढ़ा बुखार
न उतरा अंतिम क्षण तक
झेल नहीं पाया प्रकोप
ज्वर का अतिभीषण
लकवा मारा, देह समूची सुन्न हो गई,
गल्ले वाले घर की चाभी
पहुँच गई ग्रेजुएट भाभी के
तार चढे मखमली पर्स में।

प्रश्नः (क)
‘काले अच्छर भैंस बराबर’ किसके लिए प्रयुक्त है और क्यों?
उत्तर:
‘काले अच्छर भैंस बराबर’ का प्रयोग कवि ने अपनी माँ के लिए किया है, क्योंकि उसकी माँ बिलकुल निरक्षर थी। वह अक्षर भी नहीं पहचानती थी।

प्रश्नः (ख)
‘माँ’ को मंदिर जाने का समय क्यों नहीं मिलता था?
उत्तर:
माँ को मंदिर जाने का समय नहीं मिलता था क्योंकि वह रसोई के कामों के अलावा गोबर के उपले बनाने, अनाज सुखाने साफ़ करने में सारा दिन व्यस्त रहती थी।

प्रश्नः (ग)
माँ किसकी पूजा करती थी? वह उसे क्या अर्पित करती थी?
उत्तर:
माँ तुलसी माई की पूजा करती थी। वह अपने दुखों को आँसुओं में लपेटकर निश्छल भाव से तुलसी माई को अर्पित कर दिया करती थी।

(15) निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

अहसहाय किसानों की किस्मत को खेतों में, क्या जल में बह जाते देखा है?
क्या खाएँगे? यह सोच निराशा से पागल, बेचारों को नीरव रह जाते देखा है?
देखा है ग्रामों की अनेक रम्भाओं को, जिनकी आभा पर धूल अभी तक छाई है?
रेशमी देह पर जिन अभागिनों की अब तक रेशम क्या, साड़ी सही नहीं चढ़ पाई है।
पर तुम नगरों के लाल, अमीरों के पुतले, क्यों व्यथा भाग्यहीनों की मन में लाओगे,
जलता हो सारा देश, किन्तु, होकर अधीर तुम दौड़-दौड़कर क्यों यह आग बुझाओगे?
चिन्ता हो भी क्यों तुम्हें, गाँव के जलने से, दिल्ली में तो रोटियाँ नहीं कम होती हैं।
धुलता न अश्रु-बूंदों से आँखों से काजल, गालों पर की धूलियाँ नहीं नम होती हैं।
जलते हैं ये गाँव देश के जला करें, आराम नयी दिल्ली अपना कब छोड़ेगी,
या रक्खेगी मरघट में भी रेशमी महल, या आँधी की खाकर चपेट सब छोड़ेगी,
या रक्खेगी मरघट में भी रेशमी महल, या आँधी की खाकर चपेट सब छोड़ेगी।
चल रहे ग्राम-कुंजों में पछिया के झकोर, दिल्ली, लेकिन, ले रही लहर पुरवाई में,
है विकल देश सारा अभाव के तापों से, दिल्ली सुख से सोई है नरम रजाई में।

प्रश्नः (क)
राजधानी में और ग्रामीण भारत में क्या अंतर है?
उत्तर:
राजधानी में नाना प्रकार की सुख-सुविधाएँ हैं। लोग इस सुख सुविधाओं का आनंद उठा रहे हैं जबकि दूसरी ओर ग्रामीण भारत में अनेक प्रकार के कष्ट हैं जिन्हें भोगते हुए ग्रामीण जी रहे हैं।

प्रश्नः (ख)
किसान और रंभाओं को देखकर कवि दुखी थ्यों होता है ?
उत्तर:
कवि देखता है कि किसानों की फ़सल बाढ़ में बह गई है। फ़सल बहने से किसान असहाय दुखी और परेशान हैं। इसी तरह ग्रामीण नवयुवतियाँ सौंदर्य की मूर्ति तो हैं पर उनके पास पूरा तन ढंकने को वस्त्र नहीं है। यह देखकर कवि दुखी होता है।

प्रश्नः (ग)
दिल्ली वासियों की हृदयहीनता को कवि ने किस तरह उभारा है?
उत्तर:
दिल्लीवासियों की हृदयहीनता को कवि ने उभारते हुए कहा है कि वे ग्रामीणों के दुख के बारे में नहीं सोचते हैं। गाँव वालों को दुखमुक्त करने के बारे में वे बिलकुल नहीं सोचते हैं। वे गाँव वालों का उपजाया अन्न खाते हैं पर उनकी चिंता नहीं करते हैं।

NCERT Solutions for Class 10 Hindi

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NCERT Solutions For Class 11 Biology Chapter 1 The Living World

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NCERT Solutions For Class 11 Biology Chapter 1 The Living World

Topics and Subtopics in NCERT Solutions for Class 11 Biology Chapter 1 The Living World:

Section NameTopic Name
1The Living World
1.1What is ‘Living’?
1.2Diversity in the Living World
1.3Taxonomic Categories
1.4Taxonomical Aids
1.5Summary

NCERT Solutions Class 11 BiologyBiology Sample Papers

NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED

1. Why are living organisms classified?
Soln. Living organisms are classified because of the following reasons:
(i) Easy identification.
(ii)Study of organisms of other places.
(iii)Study of fossils
(iv)Grouping helps in study of all types of organisms while it is impossible to study individually all of them.
(v) Itbringsoutsimilaritiesanddissimilarities. They help in knowing relationships among different groups.
(vi)Evolution of various taxa can be known.

2. Why are the classification systems changing every now and then?
Soln. From very early days till now biologists use several characters for classification system. These are morphology, anatomy, cytology, physiology, ontogeny, phylogeny, reproduction, biochemistry, etc. But day by day biologists are learning something new about organisms from their fossil records and using” advanced study techniques such as molecular phylogeny, etc. So their point of view about classification keeps changing. Thus the system of classification is modified every now and then.

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3. What different criteria would you choose to classify people that you meet often?
Soln. The various criteria that may be chosen to classify people whom we meet often include behaviour, geographical location, morphology, family members, relatives, friends etc.

4. What do we learn from identification of individuals and populations?
Soln. The knowledge of characteristic of an individual or its whole population helps in identification of similarities and dissimilarities among the individuals of same kind or between different types of organisms. It helps us to classify the organisms in various categories depending upon these similarities and dissimilarities.

5. Given below is the scientific name of mango. Identify the correctly written name.
Mangifera Indica Mangifera indica
Soln. The correctly written scientific name of mango is Mangifera indica.

6. Define a taxon. Give some example of taxa at different hierarchical levels.
Slon. A taxonomic unit in the biological system of classification of organism is called taxon (plural taxa). For example a phylum, order, family, genus or species represents taxon. It represents a rank. For example, all the insects form a taxon. Taxon of class category for birds is Aves and taxon of Phylum category for birds is Chordata. The degree of relationship and degree of similarity varies with the rank of the taxon. Individuals of a higher rank, say Order or Family, are less closely related than those of a lower rank, such as Genus or Species.

7. Can you identify the correct sequence of taxonomical categories?
(a) Species —> Order —> Phylum —> Kingdom
(b) Genus—) Species—> OrderKingdom
(c) Species —> Genus —>Order —> Phylum
Slon. The correct sequence of taxonomical categories is
(c) i.e., Species —>Genus —> Order —> Phylum.

8. Try to collect all the currently accepted meanings for the word ‘species’. Discuss with your teacher the meaning of species in case of higher plants and animals on one hand, and bacteria on the other hand.
Slon. Species occupies a key position in classification. It is the lowest taxonomic category. It is a natural population of individuals or group of populations which resemble one another in all essential morphological and reproductive characters so that they are able to interbreed freely and produce fertile offsprings. Each species is also called genetically distinct and reproductively isolated natural population. Mayr (1964) has defined species as “a group of actually or potentially interbreeding populations that are reproductively isolated from other such groups”.
In higher plants and animals the term ‘species’ refers to a group of individuals that are able to interbreed freely and produce fertile offsprings. But, in case of bacteria interbreeding cannot serve as the best criteria for delimiting species because bacteria usually reproduce asexually. Conjugation, transformation and transduction, which are termed as sexual reproduction methods in bacteria, also do not correspond to true interbreeding. Thus, for bacteria many other characters such as molecular homology, biochemical, physiological, ecological and morphological characters are taken into consideration while classifying them.

9. Define and understand the following terms:
(i) Phylum (ii) Class (iii) Family
(iv) Order (v) Genus
Slon. (i) Phylum – Phylum is a category higher than that of Class. The term Phylum is used for animals. A Phylum is formed of one or more classes, e.g., the Phylum Chordata of animals contains not only the class Mammalia but also Aves (birds), Reptilia (reptiles), Amphibia (amphibians), etc. In plants the term Division is used in place of Phylum.
(ii) Class – A Class is made of one or more related Orders. For example, the Class Dicotyledoneae of flowering plants contains all dicots which are grouped into several orders (e.g., Rosales, Sapindales, Ranales, etc.).
(iii) Family, – It is a taxonomic category which contains one or more related genera. All the genera of a family have some common features or correlated characters. They are separable from genera of a related family by important and characteristic differences in both vegetative and reproductive features. E.g., the genera of cats (Fells) and leopard (Panthera) are included in the Family Felidae. The members of Family Felidae are quite distinct from those of Family Canidae (dogs, foxes, wolves).
Similarly, the family Solanaceae contains a number of genera like Solanum, Datura, Petunia and Nicotiana. They are distinguishable from the genera of the related family Convolvulaceae (Convolvulus, Ipomoea).
(iv) Order – The category includes one or more related families. E.g., the plant Family Solanaceae is placed in the Order Polemoniales alongwith four other related families (Convolvulaceae, Boraginaceae, Hydrophyllaceae and Polemoniaceae). Similarly, the animal families Felidae and Canidae are included under the Order Carnivora alongwith Hyaenidae (hyaenas) and Ursidae (bears).
(v) Genus – It is a group or assemblage of related species which resemble one another in certain correlated characters. Correlated characters are those similar or common features which are used in delimitation of a taxon above the rank of species. All the species of genus are presumed to have evolved from a common ancestor. A genus may have a single living species e.g., Genus Homo. Its species is Homo sapiens – the living or modem man. The Genus Felis has many species, e.g., F. domestica – common cat, F. chaus (jungle cat) etc.

lO.How is a key helpful in the identification and classification of an organism?
Slon.‘Key is an artificial analytic device having a list of statements with dichotomic table of alternate characteristics. Taxonomic
keys are aids for rapid identification of unknown plants and animals based on
the similarities and dissimilarities. Keys are primarily based on stable and reliable characters. The keys are helpful in a faster preliminary identification which can bebacked up by confirmation through comparison with detailed description of the taxon provisionally identified with. Separate taxonomic keys are used for each taxonomic category like Family, Genus and Species.

11.Illustrate the taxonomical hierarchy with suitable examples of a plant and an animal.
Slon. The arrangement of various taxa in a hierarchical order is called taxonomic hierarchy. The hierarchy indicates the various levels of kinship. The number of similar characters of categories decreases from lowest rank to highest rank. The hierarchical system of classification was introduced by Linnaeus.
The hierarchy of major categories is:
Species —►Genus-►Family —► Order—► Class
Kingdom -4— Phylum or Division
Increasing specificity – ► Decreasing specificity
Classification of a plant (Wheat):
Kingdom  –  Plantae
Division   –  Angiospermae
Class         –  Monocotyledonae
Order        –  Poales
Family      –  Poaceae
Genus       – Triticum
Species     –  aestivum
Classification of an animal (Housefly):
Kingdom  –   Animalia
Phylum    –   Chordata
Class        –   Insecta
Order       –   Diptera
Family     –  Muscidae
Genus      –   Musca
Species    –   domestica

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PUBG MOBILE APK +OBB DATA: FREE DOWNLOAD, INSTALL, PLAY, TIPS & TRICKS, SETTINGS, AND MORE

Nowadays, everyone is talking about the free-to-play battle royal game PlayerUnknown’s Battleground aka PUBG.  The Bluehole Studio has done a great job by converting the PC experience of the game into mobile. They joined hands with Tencent to release PUBG mobile version on Google Play Store and Apple App Store for free. So, you can download PUBG mobile free from your respected stores. So, are you excited to play PUBG mobile on your Android or iOS device? Check out the following procedure to download latest apk of PUBG Mobile.

PUBG Mobile 0.14.5 update

Before heading to the process to install PUBG on your mobile, you should make it sure that your Android and or iOS have the capacity tosupport PUBG Mobile Apk. If you don’t have any idea about the PUBG Mobile requirements, then here’s the information.

PUBG Mobile Requirements

Whether you want to play PUBG mobile on Android or iPhone, here are some necessities of PUBG mobile.

PUBG Mobile Android System Requirements 

The PUBG mobile is compatible with more than 500 Android devices. Make sure that your Android device has 2GB of RAM and running 5.1.1 lollipop or later version.

PUBG Mobile iOS System Requirements 

If you have iPhone and want to play PUBG on your iOS device, then you need iPhone 5S and above version running iOS 9.0,10, 11,12, 13 or later. Well, you may get the lag issue on your iPhone 5S. But, it will run smoothly on 5S following devices.

PUBG Mobile Maps

PUBG Mobile Maps 2

If you are new on this battle royal games then you should also know about four PUBG mobile maps names so that you will be ready to play with your friends on your favourite map. There is a total of four maps available in PUBG Mobile-ErangelMiramarSanhok, and newly added Vikendi snow map.

How to Download PUBG Mobile APK Android or iPhone

You can free download PUBG mobile APK from Google Play Store for Android and App Store for iOS devices. There are three different login options available while playing PUBG mobile- As Guest, use Facebook, or Twitter. It will help you to keep your PUBG mobile record sync whenever you play PUBG APK form different smartphone. So, here can find every Apk of PUBG Mobile inclusing latest betas.

Download Latest Update from Google Play Store.

PUBG Mobile 0.14.0 Beta

PUBG Mobile 0.13.5 APK

PUBG Mobile 0.13.0 APK

PUBG Mobile 0.12.5 APk

PUBG Mobile 0.12.0 APK+OBB

PUBG Mobile 0.14.5 APK (Chinese Lightspeed)

PUBG Mobile 0.11.5 APK

PUBG Mobile 0.13.5 Chinese New Year APK

PUBG Mobile 0.11 APK (Zombie Mode)

PUBG Mobile 0.10.5 APK

PUBG MOBILE 0.10.0 APK

PUBG MOBILE 0.9.0 APK

PUBG MOBILE 0.8.0 APK

PUBG MOBILE 0.7.0 APK

How To Install PUBG Mobile APK on Android and iPhone

Step #1: Once you have downloaded the latest PUBG Mobile APK file from the above link, you need to go to the settings, and then go to Security.
Step #2: Once you tap on security, scroll down you will find unknown sources just tick mark that option.
Step #3: Now go to Downloads and tap on PUBG Mobile APK version and click on install and then follow the instructions as asked to enjoy the game on your smartphone.

How to Play PUBG Mobile Cross-player Multiplayer

If you want to know you can play PUBG mobile cross multiplayer or not after installing PUBG APK, then let me tell you that you can play PUBG mobile in cross-player multiplayer on your iOS and Android device. For instance, If you have logged PUBG on your iOS device with Facebook, then you see all Facebook friend playing PUBG on Android and iPhone. So, whether you are playing on an iOS device or Android, you can play PUBG mobile in cross-platform.

How to Play PUBG Mobile with Friends (Add Friends in PUBG Mobile)

Once after successfully installing PUBG mobile on your phone, you can add your Friends to play in the squad. Well, you can play with one friend or with three friends from PUBG mobile. Here’s how to add friends in PUBG mobile on Android and iPhone.

Step #1: Launch the PUBG mobile on your smartphone.

Step #2: Next, tap on Friend icon at the left side of the screen.

Step #3:  Now tap on “Add Friend” on the right side of the screen and search by name in AdHow to Play PUBG Mobile with Friends – Enter the Name 5vance search.

Step #4: Enter the name and hit the yellow Search button.

Step #5: Once you get the friend suggestions, tap on Add button next to the profile to a sent request.

Step #6: Type a message and hit the Send button to send the request.

How to Play PUBG Mobile with Friends - Type a Message 6

Step #7: Once they accept the request, you can add them from the Invite list once they come online and play with them.

How to Accept Friend Request in PUBG mobile?

If you get a request from your friends, then you will need to accept the request to play with them. You will see the friend request in the friend icon. Here’s the process to accept the friend request in PUBG mobile.

Step #1: Open the PUBG mobile on your device.

Step #2: Tap on friend icon on the left side of the screen with a friend request.

Step #3: Now tap on Game Friend and then Request List.

Step #4: Here you need to tap Accept button next to your friend’s profile to accept PUBG friend request.

How to Turn on Voice Chat on PUBG Mobile

To keep connected with your friends, you can use the PUBG mobile voice chat to keep on a conversation with your squad. With the PUBG mobile 0.7.0 updates, the voice chat feature has been clear and noise-free. To enable voice chat on PUBG mobile, you will need to tap on speaker and mic icon at the button on the home page and right top side when the game start.

How to Send Message to Your PUBG Mobile Friend

In the PUBG mobile, there is also an option to message your friend. So, if you want to message your friend to invite play PUBG with you, then here’s how to message your friends in PUBG mobile.

Step #1: Open the PUBG mobile main menu.

Step #2: Next, tap on the friend list at the left side of the screen and select friend you want to message.

How to Send Message to Your PUBG Mobile Friend 7

Step #3: Now tap on “Start a Chat”, Enter the message and hit the Send button.

How to Send Message to Your PUBG Mobile Friend - Start Chat 8

How to Select Solo, Due, or Squad play in PUBG Mobile

How to Select Solo, Due, or Squad play in PUBG Mobile 9

The PUBG Mobile allows up to four friend play together. You can also play Duo if you want to play with only one friend. Well, in the updated version of PUBG mobile, you can select Solo, Due and Squad mode by tapping on the Mode and select single, due, or squad person icon under the Team section on the pop-up screen as per your requirement.

How to Select TPP (third-person view) or FPP (first person view) Mode in PUBG Mobile?

How to Select TPP third-person view or FPP first person view Mode in PUBG Mobile 10

The PUBG Mobile June update included first-person view mode in the game. So, you can play PUBG mobile in FPP mode on your Android device. To choose TPP or FPP mode, you will need to tap on the mode on the main menu and select Third-Person Perspective (TPP) or First- Person Perspective (FPP) at the top of the pop-up screen. Here you can also select Classic and Arcade mode to play as per your choice.

Top 10 Best PUBG Mobile Tips & Trick You Should Know To Be The Last Man Standing

PUBG mobile is all among surviving in the long island by killing everyone else to get chicken dinner. But, there are some tactics and PUBG mobile tips you can follow to get Chicken Dinner.  Here are those:

 #1: Choose Mode Friendly Clothes

PUBG mobile is the game of survival where you have a battle against other players. So, when it comes to wearing cloth, you should keep in mind that it isn’t a fashion show or party. You can choose the right clothes as per the mode you are playing. You can wear a sand colour t-shirt if you are going to play Miramar. Likewise, you can choose Erangle map friendly wild t-shirt so that your enemies can’t track you easily.

#2: Choose Lower Competitive and More Loot Area

PUBG Mobile Choose Lower Competitive and More Loot Area 11

The first thing is to try to land in the area where fewer people jump and more weapons, consumables, and other necessary stuff available. It will help you to get every needed item quickly without being shot by other players. Personally, I prefer to land on Rozhok, Mylta Power, School in Erangle map.

#3: Follow Your Map Wisely

PUBG Mobile Follow Your Map Wisely 12

Once you start playing PUBG mobile on your smartphone, the left top corner side of the screen you will always see live map. This map helps you to track your enemies by gunshot and footsteps. And also, show you the blue and safe zone. So, also keep your eyes on the map.

#4: Enable Peek & Fire

PUBG Enable Peek and Fire 13

The Peek & Fire feature is not enabled by default in the game. You have to turn it in the Basic setting to play by just revealing your head to shot by hiding your full body. Once you activate Peek & Fire, you will see two upper body icons at the left side of the screen.

#5: Use Headphones and Connected With Your Squad

PUBG Use Headphones and Connected With Your Squad 14

To get a better sound of gunshot and enemy footstep, we suggest you always use headphones while playing the game with or without a squad. It will give you the bright idea about from where the gun triggered to track the enemy. Also, you can use headphone to keep communicating with your squad to make strategies and plans to play like a team to get chicken dinner.

#6: Keep Moving

Keep Moving PUBG Lite 15

Do not stick to one point; it will give other players a perfect headshot of you. So, try to keep moving to avoid getting killed. There are a lot of snipers roaming around you, so keep moving by taking good covers. It will help you to survive for long.

#7: Avoid Gun Fights

Avoid Gun Fights PUBG 166

Sometimes, involving in other fights won’t the right choice. You may get killed in the battle. So, you need to take your action correctly. If you hear two groups or persons are fighting, then hiding is an excellent idea. After that, you can kill the reaming one. Agree?

#8: Silencers Are Good Friends

PUBG Silencers Are Good Friends 17

In the PUBG mobile game, there are differently typed of guns available-AR, Sniper, SMG, etc. When pressing the trigger to shoot someone, it makes noise, and you will get easily tracked. Therefore, there are silencers are available for different type of weapons.  So, once you found a suitable silencer for your gun, just attacked it on your weapon to kill rivals silently.

#9: Lie Down While Looting Enemy Crates

PUBG Lie Down While Looting Enemy Crates 18

Once you kill someone, for you would want to raid the crate, right? So, our advice is always raid crates while being lying down so that your enemy can locate you even if they see the green light popping on the person you have just killed.

#10: Prefer To Play On The Edge

If there are only two or three circles left, then try to play on the edge. It will give you the unobstructed view of the whole ring especially if you have 4x or 8x scope. It also minimizes the chances of getting killed from behind.  Therefore, always prefer to play on the edge of the play zone where our blue line is near to the white.

Finishing

This was all about PUBG mobile on your Android and iPhone. Hope here you have got everything about the PUBG mobile apk. The lot more are coming in upcoming PUBG mobile updates. Till then, keep playing PUBG mobile.

Happy Playing!

Articles on PUBG Mobile

 

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NCERT Books for all Classes 12, 11, 10, 9, 8, 7, 6, 5, 4, 3, 2, 1

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NCERT Books: National Council of Educational Research and Training (NCERT) which is also known as the universalization of elementary education. NCERT works under the government of India for the improvement of school education. The main role of NCERT is to prepare and publish model textbooks, supplementary material, newsletters, study material, journals and develops educational kits, multimedia digital materials for the betterment of school education.

NCERT Books

A complete selection of textbooks published by NCERT for Class 12, 11, 10, 9, 8, 7, 6, 5, 4, 3, 2, 1 of CBSE & CBSE affiliated schools.

All the NCERT Textbooks from class 1 to class 12 are published by the officials of NCERT (National Council Of Educational Research and Training), New Delhi. These NCERT Books are recommended followed by the CBSE and other major state boards in India.  Also, most of the competitive exam question papers such as JEE Main, NEET, UPSC, etc., are prepared based on the content present in the NCERT Textbooks.

So the students who are in search of NCERT Textbooks for their education reference can refer to this article. In this article, LearnCBSE is providing the list of NCERT Books from class 1 to class 12 along with the download link of the books. Read on to know further about Free NCERT Textbooks from class 1 to class 12. You can also download the NCERT Solutions mobile APP for these textbooks.

NCERT Books for Class 12

Uttar Pradesh Board (UP Board) also implementing the NCERT Books for Senior Secondary classes (intermediate). UP Board has confirmed NCERT books for class 11 History, Geography, Civics, Maths, Physics, Chemistry, Biology, Economics and sociology. Books for class 12 Physics, Chemistry, Biology and Maths.

NCERT Books for Class 12

NCERT Books for Class 11

NCERT Books for Class 11

NCERT Books for Class 10

Gujrat Secondary and Senior Secondary Education Board (GSEB) is also going to follow NCERT Books 2019-20 onward

NCERT Books for Class 9

NCERT Books for Class 8

NCERT Books for Class 7

NCERT Books for Class 6

NCERT Books for Class 5

NCERT Books for Class 4

NCERT Books for Class 3

NCERT Books for Class 2

NCERT Books for Class 1

NCERT Class XII Maths Book

NCERT Class XI Maths Book

NCERT Class X Maths Book

NCERT Class IX Maths Book

NCERT Class VIII Maths Book

NCERT Class VII Maths Book

NCERT Class VI Maths Book

NCERT Class V Maths Book

Maths Magic

Class 4 Maths NCERT Book

Maths Magic

Class 3 Maths NCERT Book

Maths Magic

Class 2 Maths NCERT Book

Maths Magic – 2

NCERT Books for Class 1 Maths

Maths Magic – 1

NCERT Books for Class 12 Physics – English Medium

NCERT Books for Class 12 Physics – Hindi Medium

भौतिकी (भाग 1 तथा भाग 2)

NCERT Books for Class 12 Chemistry – English Medium

NCERT Books for Class 12 Chemistry – Hindi Medium

रसायन (भाग 1 तथा भाग 2)

NCERT Books for Class 12 Biology – English Medium

NCERT Books for Class 12 Biology – Hindi Medium

जीव विज्ञान

NCERT Books for Class 12 English (Core)

Flamingo – Prose

Flamingo – Poetry

Vistas – Supplementary Reader

NCERT Books for Class 11 Physics (English Medium)

NCERT Books for Class 11 Physics (Hindi Medium)

भौतिकी (भाग 1 तथा भाग 2)

NCERT Books for Class 11 Chemistry (English Medium)

NCERT Books for Class 11 Chemistry (Hindi Medium)

रसायन (भाग 1 तथा भाग 2)

NCERT Books for Class 11 Biology (English Medium)

NCERT Books for Class 11 Biology (Hindi Medium)

जीव विज्ञान

NCERT Books for Class 11 English (Core Course)

Hornbill (Core Course)

READING SKILLS

WRITING SKILLS

Snapshots (Core Course)

SUPPLEMENTARY READER

NCERT Science Book Class 10

NCERT Science Book Class 10 in Hindi

NCERT Books for Class 10 Social Science

History Book Class 10:

History (India and The Contemporary World – II)

Geography Book Class 10:

Geography (Contemporary India – II)

Political Science Book Class 10:

Political Science (Democratic Politics -II)

Economics Book Class 10:

Economics (Understanding Economic Development)

NCERT Class 10 Social Science Book in Hindi Medium PDF

इतिहास (भारत और समकालीन विश्व – II)

भूगोल (समकालीन भारत – II)

राजनीति विज्ञान (लोकतांत्रिक राजनीति -II)

अर्थशास्त्र (आर्थिक विकास की समझ)

CLASS 10 ENGLISH NCERT TEXTBOOK

First Flight class 10 NCERT English Book

FOOTPRINTS WITHOUT FEET

INTERACT IN ENGLISH – LITERATURE READER

A Textbook for English Course (Communicative) – Friction (Prose)

POETRY

DRAMA

INTERACT IN ENGLISH – MAIN COURSE BOOK (MCB)

LONG READING TEXT – NOVELS

CLASS 10 HINDI NCERT BOOKS – COURSE A

NCERT Hindi A Class 10 Textbook:

KRITIKA – कृतिका

KSHITIJ – क्षितिज

CLASS 10 HINDI NCERT BOOKS – COURSE B

स्पर्श (पद्य)

स्पर्श(गद्य )

Sanchayan

NCERT BOOKS FOR CLASS 10 SANSKRIT

शेमुषी

व्याकरणवीथिः

Class 10 NCERT Books PDF

NCERT Books in Hindi

NCERT Books in Hindi for Class 12

कक्षा १२ के लिए एन.सी.ई.आर.टी. की किताबें Download PDF from List of Books.

NCERT Books in Hindi for Class 11

कक्षा ११ के लिए एन.सी.ई.आर.टी. की किताबें Download PDF from List of Books.

NCERT Books in Hindi for Class 10

कक्षा १० के लिए एन.सी.ई.आर.टी. की किताबें Download PDF from List of Books.

NCERT Books in Hindi for Class 9

कक्षा ९ के लिए एन.सी.ई.आर.टी. की किताबें Download PDF from List of Books.

NCERT Books in Hindi for Class 8

कक्षा ८ के लिए एन.सी.ई.आर.टी. की किताबें Download PDF from List of Books.

NCERT Books in Hindi for Class 7

कक्षा ७ के लिए एन.सी.ई.आर.टी. की किताबें Download PDF from List of Books.

NCERT Books in Hindi for Class 6

कक्षा ६ के लिए एन.सी.ई.आर.टी. की किताबें Download PDF from List of Books.

NCERT Books in Hindi for Class 5

कक्षा ५ के लिए एन.सी.ई.आर.टी. की किताबें Download PDF from List of Books.

NCERT Books in Hindi for Class 4

कक्षा ४ के लिए एन.सी.ई.आर.टी. की किताबें Download PDF from List of Books.

NCERT Books in Hindi for Class 3

कक्षा ३ के लिए एन.सी.ई.आर.टी. की किताबें Download PDF from List of Books.

NCERT e Books in Hindi for Class 2

कक्षा २ के लिए एन.सी.ई.आर.टी. की किताबें Download PDF from List of Books.

NCERT e Books in Hindi for Class 1

कक्षा १ के लिए एन.सी.ई.आर.टी. की किताबें Download PDF from List of Books.

एनसीईआरटी पुस्तकें: सीबीएसई कक्षा 5 से 12 के लिए मुफ्त डाउनलोड

देश भर के सभी सीबीएसई स्कूल और परीक्षा एनसीईआरटी द्वारा पालन करते हैं। इस लेख में, आपको सभी वर्गों के लिए डाउनलोड करने योग्य NCERT पुस्तकों की सूची मिल जाएगी।

नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) भारत सरकार का एक स्वायत्त संगठन है, जिसे 1 सितंबर 1961 को सोसाइटीज़ रजिस्ट्रेशन एक्ट (1860 के अधिनियम XXI) के तहत एक साहित्यिक, वैज्ञानिक और धर्मार्थ सोसाइटी के रूप में स्थापित किया गया था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में श्री अरबिंदो मार्ग पर स्थित है। डॉ। हृषिकेश सेनापति सितंबर 2015 से परिषद के निदेशक हैं। NCERT स्कूली शिक्षा से संबंधित शैक्षणिक मामलों पर केंद्र और राज्य सरकारों की सहायता और सहायता करता है। यह लेख संक्षेप में NCERT पुस्तकों की चर्चा करता है। आप उन्हें यहाँ डाउनलोड कर सकते हैं!

एनसीईआरटी बुक्स के बारे में

प्रवेश स्तर की परीक्षा की तैयारी करते समय, किसी को पूरी तरह से एक प्रक्रिया के माध्यम से तैयारी करनी चाहिए जिसके लिए विषय की आपकी समझ का समग्र विकास आवश्यक है। यह कठोर प्रक्रिया एक उपयुक्त संशोधन के साथ उचित अध्ययन सामग्री और मुश्किल अंकों को हल करने के माध्यम से जाने की मांग करती है। यहाँ पर निभाई गई सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अध्ययन सामग्री की है जो इसके लिए पहला ठोस आधार है जिस पर आगे की समझ आधारित है। एनसीईआरटी की किताबें अपनी सादगी के लिए सबसे अच्छी तरह से जानी जाती हैं और अवधारणाओं को सामने लाती हैं क्योंकि वे बिना अधिक जटिल सिद्धांतों के बहुत अधिक गहराई तक गोता लगाती हैं।

एनसीईआरटी बुक्स के बारे में कुछ मुख्य बातें नीचे सूचीबद्ध हैं:

प्रवेश परीक्षा के अधिकांश प्रश्न एनसीईआरटी पुस्तकों से हैं: एनसीईआरटी पुस्तकों से अध्ययन करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि एनईईटी में कई प्रश्न या तो सीधे इन पुस्तकों से प्राप्त होते हैं या समान पैटर्न का पालन करते हैं। इसलिए, आपको अपनी तैयारी के लिए इन पुस्तकों को संदर्भित करना नहीं भूलना चाहिए।

विश्वसनीय जानकारी: विषयों पर गहन शोध करने के बाद सभी NCERT पुस्तकें विशेषज्ञों द्वारा लिखी गई हैं। जानकारी पूरी तरह से प्रामाणिक है और अन्य स्रोतों से कहीं बेहतर है।

मजबूत मूल बातें और बुनियादी बातें: एनसीईआरटी की पुस्तकों में छात्रों के लिए सभी विषयों पर मूल बातें और बुनियादी बातें शामिल हैं। इसलिए, छात्रों को अवधारणाओं को समझना और किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए बेहतर तरीके से तैयार करना आसान बनाता है, चाहे वह जेईई-मेन या एआईपीटीटी हो।

पढ़ने और समझने में सरल: एनसीईआरटी की पुस्तकों में आसानी से समझी जाने वाली भाषा होती है और व्यापक शोध के बाद विशेषज्ञों द्वारा लिखी जाती है। चूंकि ये पुस्तकें अपने दृष्टिकोण में स्पष्ट और प्रत्यक्ष हैं, इसलिए छात्रों के लिए कैनेटीक्स या ऊर्जा जैसे विषयों के तकनीकी पहलुओं को समझना सरल हो जाता है।

यदि आपके पास अवधारणा को समझने और फिर किसी समस्या को हल करने के लिए आवेदन करने की आदत है, तो NCERT पुस्तकें आपके बोर्ड और प्रवेश परीक्षा की तैयारी को शुरू करने के लिए उत्कृष्ट सामग्री प्रदान करती हैं। थोड़ा और मार्गदर्शन और कठिन समस्याओं के संपर्क में आने के बाद, आप वैचारिक प्रश्नों के साथ अद्भुत काम कर सकते हैं।

वरिष्ठ माध्यमिक के लिए विषय-वार विश्लेषण

आइए विषय-वार देखें कि एनसीईआरटी की किताबें बोर्ड परीक्षाओं के लिए पर्याप्त हैं और आपको अतिरिक्त अध्ययन सामग्री का संदर्भ देने पर विचार करना चाहिए।

  • NCERT for Physics: NCERT भौतिकी में ऑप्टिक्स जैसे कुछ अध्याय हैं, जो उत्कृष्ट हैं। पुस्तक को पूरी तरह से समझने के लिए विस्तृत चित्र के साथ अच्छी तरह से चित्रित किया गया है। उनमें से प्रत्येक को समझ लेना सुनिश्चित करें।
  • गणित के लिए NCERT: NCERT पाठ और समस्याओं को पूरी तरह से पढ़ने की जरूरत है, विशेष रूप से LP, त्रिकोणमिति और समन्वित ज्यामिति के लिए। एनसीईआरटी एक्जम्पलर से बड़े पैमाने पर अभ्यास करना महत्वपूर्ण है। यदि आप इन समस्याओं को बहुत कठिन पाते हैं, तो यह पिछले बोर्ड पेपर और कम्पार्टमेंट पेपर का अभ्यास करने के लिए अच्छी तरह से काम करेगा। प्रोबेबिलिटी और 3 डी जियोमेट्री के लिए भी आप एनसीईआरटी पुस्तकों के बाहर से बहुत सारे प्रश्नों की अपेक्षा कर सकते हैं। सभी ने कहा, किसी भी अन्य पुस्तक में कूदने से पहले सुनिश्चित करें कि आप एनसीईआरटी की पुस्तकों को पूरा करें।
  • एनसीईआरटी फॉर केमिस्ट्री: केमिस्ट्री की पाठ्यपुस्तकों की बहुत प्रशंसा की जाती है और छात्रों में सबसे लोकप्रिय भी है। इसकी व्याख्या की सादगी के साथ, कठिन अवधारणाओं से निपटा जाता है और कोई भी पत्थर नहीं छोड़ा जाता है। किसी भी प्रकार की अवधारणाओं को साफ करने के लिए ये आपकी गो-टू बुक्स होनी चाहिए।

अपने बोर्डों में, और कुछ प्रवेश परीक्षाओं में एक हद तक उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए, एनसीईआरटी की पुस्तकों को पूर्ण और पूरी तरह से पढ़ा जाना अनिवार्य है। कोशिश करो और याद करो और साथ ही साथ सभी अवधारणाओं को समझो, जितना आप कर सकते हैं। परिणामी रीडिंग के साथ, आप आसानी से विषय को सीख और समझ सकते हैं। ये पुस्तकें विषय पर सहायक और व्यावहारिक होने के लिए हैं। सुनिश्चित करें कि आप उस सभी लेखक को अवशोषित करते हैं जो आपके लिए समझने का इरादा रखता है।

खुद को सतर्क और तेज रखने के लिए, आपको विभिन्न प्रकार की परीक्षा सामग्री से अभ्यास करना चाहिए। इस तरह, भले ही बोर्ड आउट ऑफ द बॉक्स सवाल फेंकता है, आप इसे हल कर सकते हैं। अपने बोर्ड परीक्षा में सफल होने के लिए, आपको विषय की अच्छी समझ, NCERT पुस्तकों का गहन संशोधन, मन की उपस्थिति और बहुत अधिक मेहनत की आवश्यकता होगी।

NCERT Solutions

प्रत्येक अध्याय के अंत में NCERT पाठ्यपुस्तकों में दिए गए प्रश्न और उत्तर न केवल परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि अवधारणाओं को बेहतर तरीके से समझने के लिए आवश्यक हैं। इसलिए, हम दृढ़ता से इन किताबों को अच्छी तरह से पढ़ने और प्रत्येक अध्याय में उचित नोट्स बनाने की सलाह देते हैं जो तेजी से संशोधन करेंगे।

ये मॉडल समाधान NCERT पाठ्यपुस्तकों में सभी प्रश्नों के लिए गहराई से और चरण-दर-चरण समाधान प्रदान करते हैं और छात्रों के लिए एक अपूरणीय समर्थन है जो उन्हें सीखने, असाइनमेंट पर काम करने और परीक्षा की तैयारी में मदद करेंगे।

What is the use of  NCERT Books?

The advantages of NCERT books are listed below:

  1. Useful For Competitive Exams: Most of the competitive exams like JEE Main, NEET, UPSC, FCI and other government job question papers content are derived from the NCERT textbooks only. And for this reason, every aspirant must have a good knowledge of the content present in the NCERT textbooks to crack the exam easily.
  2. Useful for CBSE Students: NCERT Textbooks strictly follow the CBSE circular and thus the students of CBSE must refer NCERT Books for their board exam preparation.
  3. Clears all Fundamental Concepts: NCERT textbooks are not only enough to cover the entire CBSE syllabus but are also enough to cover all the basics and fundamentals on all topics in simple and easy language. Which in turn helps every aspirant to make their concepts crystal clear.
  4.  Offers in-depth Knowledge in Simple Language:All the content which is present in the NCERT textbooks are written by the experts which provide apt information in easy & understandable language. For this reason, the NCERT e – textbooks PDF’s are easily accessible by anyone.

Now that you are provided with all the necessary information regarding NCERT e Textbooks from class 1 to class 12 and we hope this detailed article is helpful. If you have any doubt regarding this article NCERT Books, leave your comments in the comment section below and we will get back to you as soon as possible.

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CBSE Class 10 Hindi B Unseen Passages अपठित बोध

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CBSE Class 10 Hindi B Unseen Passages अपठित बोध

अपठित बोध

‘अपठित’ शब्द अंग्रेज़ी भाषा के शब्द ‘unseen’ का समानार्थी है। इस शब्द की रचना ‘पाठ’ मूल शब्द में ‘अ’ उपसर्ग और ‘इत’ प्रत्यय जोड़कर बना है। इसका शाब्दिक अर्थ है-‘बिना पढ़ा हुआ।’ अर्थात गद्य या काव्य का ऐसा अंश जिसे पहले न पढ़ा गया हो। परीक्षा में अपठित गद्यांश और काव्यांश पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। इस तरह के प्रश्नों को पूछने का उद्देश्य छात्रों की समझ अभिव्यक्ति कौशल और भाषिक योग्यता का परख करना होता है।

अपठित गद्यांश

अपठित गद्यांश प्रश्नपत्र का वह अंश होता है जो पाठ्यक्रम में निर्धारित पुस्तकों से नहीं पूछा जाता है। यह अंश साहित्यिक पुस्तकों पत्र-पत्रिकाओं या समाचार-पत्रों से लिया जाता है। ऐसा गद्यांश भले ही निर्धारित पुस्तकों से हटकर लिया जाता है परंतु, उसका स्तर, विषय वस्तु और भाषा-शैली पाठ्यपुस्तकों जैसी ही होती है। प्रायः छात्रों को अपठित अंश कठिन लगता है और वे प्रश्नों का सही उत्तर नहीं दे पाते हैं। इसका कारण अभ्यास की कमी है। अपठित गद्यांश को बार-बार हल करने से-

  • भाषा-ज्ञान बढ़ता है।
  • नए-नए शब्दों, मुहावरों तथा वाक्य रचना का ज्ञान होता है।
  • शब्द-भंडार में वृद्धि होती है, इससे भाषिक योग्यता बढ़ती है।
  • प्रसंगानुसार शब्दों के अनेक अर्थ तथा अलग-अलग प्रयोग से परिचित होते हैं।
  • गद्यांश के मूलभाव को समझकर अपने शब्दों में व्यक्त करने की दक्षता बढ़ती है। इससे हमारे अभिव्यक्ति कौशल में वृद्धि होती है।
  • भाषिक योग्यता में वृद्धि होती है।

अपठित गद्यांश के प्रश्नों को कैसे हल करें-

अपठित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों को हल करते समय निम्नलिखित तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए-

  • गद्यांश को एक बार सरसरी दृष्टि से पढ़ लेना चाहिए।
  • पहली बार में समझ में न आए अंशों, शब्दों, वाक्यों को गहनतापूर्वक पढ़ना चाहिए।
  • गद्यांश का मूलभाव अवश्य समझना चाहिए।
  • यदि कुछ शब्दों के अर्थ अब भी समझ में नहीं आते हों तो उनका अर्थ गद्यांश के प्रसंग में जानने का प्रयास करना चाहिए।
  • अनुमानित अर्थ को गद्यांश के अर्थ से मिलाने का प्रयास करना चाहिए।
  • गद्यांश में आए व्याकरण की दृष्टि से कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दों को रेखांकित कर लेना चाहिए।
  • अब प्रश्नों को पढ़कर संभावित उत्तर गद्यांश में खोजने का प्रयास करना चाहिए।
  • शीर्षक समूचे गद्यांश का प्रतिनिधित्व करता हुआ कम से कम एवं सटीक शब्दों में होना चाहिए।
  • प्रतीकात्मक शब्दों एवं रेखांकित अंशों की व्याख्या करते समय विशेष ध्यान देना चाहिए।
  • मूल भाव या संदेश संबंधी प्रश्नों का जवाब पूरे गद्यांश पर आधारित होना चाहिए।
  • प्रश्नों का उत्तर देते समय यथासंभव अपनी भाषा का ध्यान रखना चाहिए।
  • उत्तर की भाषा सरल, सुबोध और प्रवाहमयी होनी चाहिए।
  • प्रश्नों का जवाब गद्यांश पर ही आधारित होना चाहिए, आपके अपने विचार या राय से नहीं।
  • अति लघूत्तरात्मक तथा लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तरों की शब्द सीमा अलग-अलग होती है, इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  • प्रश्नों का जवाब सटीक शब्दों में देना चाहिए, घुमा-फिराकर जवाब देने का प्रयास नहीं करना चाहिए।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

CBSE Class 10 Hindi B Unseen Passages अपठित बोध -1

प्रश्न: 1.
आकाश गंगा को यह नाम क्यों मिला?
उत्तर:
आकाश में पृथ्वी से देखने पर आकाशगंगा नदी की धारा की भाँति दिखाई देती है, इसलिए इसका नाम आकाशगंगा पड़ा।

प्रश्न: 2.
पृथ्वी से कितनी आकाशगंगा दिखाई देती है? उनके नाम क्या हैं?
उत्तर:
पृथ्वी से केवल एक आकाशगंगा दिखाई देती है। इसका नाम ‘स्पाइरल गैलेक्सी’ है।

प्रश्न: 3.
आकाशगंगा में कितने तारे हैं ? उनमें सूर्य की स्थिति क्या है?
उत्तर:
आकाशगंगा में लगभग बीस अरब तारे हैं, जिनमें अनेक सूर्य से भी बड़े हैं। सूर्य इसी आकाशगंगा का एक सदस्य है जो इसके केंद्र से दूर इसकी एक भुजा पर स्थित है।

प्रश्न: 4.
आकाशगंगा में उभार और मछली की भाँति भुजाएँ निकलती क्यों दिखाई पड़ती हैं ?
उत्तर:
आकाशगंगा के केंद्र में तारों का जमावड़ा है। यही जमावड़ा उभार की तरह दिखाई देता है। आकाशमंडल में अन्य तारे धूल और गैस के बादलों में समाए हुए हैं। इनकी स्थिति देखने में मछली की भुजाओं की भाँति निकलती-सी प्रतीत होती हैं।

प्रश्न: 5.
प्रकाश वर्ष क्या है ? गद्यांश में इसका उल्लेख क्यों किया गया है?
उत्तर:
प्रकाशवर्ष लंबी दूरी मापने की इकाई है। एक प्रकाशवर्ष प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की गई दूरी होती है। गद्यांश में इसका उल्लेख आकाशगंगा की विशालता बताने के लिए किया गया है, जिसकी लंबाई एक लाख प्रकाश वर्ष है।

उदाहरण ( उत्तर सहित)

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

(1) गंगा भारत की एक अत्यन्त पवित्र नदी है जिसका जल काफ़ी दिनों तक रखने के बावजूद अशुद्ध नहीं होता जबकि साधारण जल कुछ दिनों में ही सड़ जाता है। गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री या गोमुख है। गोमुख से भागीरथी नदी निकलती है और देवप्रयाग नामक स्थान पर अलकनंदा नदी से मिलकर आगे गंगा के रूप में प्रवाहित होती है। भागीरथी के देवप्रयाग तक आते-आते इसमें कुछ चट्टानें घुल जाती हैं जिससे इसके जल में ऐसी क्षमता पैदा हो जाती है जो उसके पानी को सड़ने नहीं देती।

हर नदी के जल में कुछ खास तरह के पदार्थ घुले रहते हैं जो उसकी विशिष्ट जैविक संरचना के लिए उत्तरदायी होते हैं। ये घुले हुए पदार्थ पानी में कुछ खास तरह के बैक्टीरिया को पनपने देते हैं तो कुछ को नहीं। कुछ खास तरह के बैक्टीरिया ही पानी की सड़न के लिए उत्तरदायी होते हैं तो कुछ पानी में सड़न पैदा करने वाले कीटाणुओं को रोकने में सहायक होते हैं। वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि गंगा के पानी में भी ऐसे बैक्टीरिया हैं जो गंगा के पानी में सड़न पैदा करने वाले कीटाणुओं को पनपने ही नहीं देते इसलिए गंगा का पानी काफ़ी लंबे समय तक खराब नहीं होता और पवित्र माना जाता है।

हमारा मन भी गंगा के पानी की तरह ही होना चाहिए तभी वह निर्मल माना जाएगा। जिस प्रकार पानी को सड़ने से रोकने के लिए उसमें उपयोगी बैक्टीरिया की उपस्थिति अनिवार्य है उसी प्रकार मन में विचारों के प्रदूषण को रोकने के लिए सकारात्मक विचारों के निरंतर प्रवाह की भी आवश्यकता है। हम अपने मन को सकारात्मक विचार रूपी बैक्टीरिया द्वारा आप्लावित करके ही गलत विचारों को प्रविष्ट होने से रोक सकते हैं। जब भी कोई नकारात्मक विचार उत्पन्न हो सकारात्मक विचार द्वारा उसे समाप्त कर दीजिए।

प्रश्नः (क)
गंगा के जल और साधारण पानी में क्या अंतर है?
उत्तर:
गंगा का जल पवित्र माना जाता है। यह काफी दिनों तक रखने के बाद भी अशुद्ध नहीं होता है। इसके विपरीत साधारण जल कुछ ही दिन में खराब हो जाता है।

प्रश्नः (ख)
गंगा के उद्गम स्थल को किस नाम से जाना जाता है? इस नदी को गंगा नाम कैसे मिलता है?
उत्तर:
गंगा के उद्गम स्थल को गंगोत्री या गोमुख के नाम से जाना जाता है। वहाँ यह भागीरथी नाम से निकलती है। देवप्रयाग मेंयह अलकनंदा से मिलती है तब इसे गंगा नाम मिलता है।

प्रश्नः (ग)
भागीरथी से देव प्रयाग तक का सफ़र गंगा के लिए किस तरह लाभदायी सिद्ध होता है?
उत्तर:
भागीरथी से देवप्रयाग तक गंगा विभिन्न पहाड़ों के बीच बहती है जिससे इसमें कुछ चट्टानें धुल जाती हैं। इससे गंगा का जल दीर्घ काल तक सड़ने से बचा रहता है। इस तरह यह सफ़र गंगा के लिए लाभदायी सिद्ध होता है।

प्रश्नः (घ)
बैक्टीरिया ही पानी में सड़न पैदा करते हैं और बैक्टीरिया ही पानी की सड़न रोकते हैं, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुछ खास किस्म के बैक्टीरिया ऐसे होते हैं जो पानी में सड़न पैदा करते हैं और कुछ बैक्टीरिया इन बैक्टीरिया को रोकने का काम करते हैं। गंगा के पानी में सड़न रोकने वाले बैक्टीरिया इनको पनपने से रोककर पानी सड़ने से बचाते हैं।

प्रश्नः (ङ)
मन को निर्मल रखने के लिए क्या उपाय बताया गया है?
उत्तर:
मन को निर्मल रखने के लिए विचारों का प्रदूषण रोकना चाहिए। इसके लिए मन में सकारात्मक विचार प्रवाहित होना चाहिए। मन में नकारात्मक विचार आते ही उसे सकारात्मक विचारों द्वारा नष्ट कर देना चाहिए।

(2) वर्तमान सांप्रदायिक संकीर्णता के विषम वातावरण में संत-साहित्य की उपादेयता बहुत है। संतों में शिरोमणि कबीर दास भारतीय धर्मनिरपेक्षता के आधार पुरुष हैं। संत कबीर एक सफल साधक, प्रभावशाली उपदेशक, महा नेता और युग-द्रष्टा थे। उनका समस्त काव्य विचारों की भव्यता और हृदय की तन्मयता तथा औदार्य से परिपूर्ण है। उन्होंने कविता के सहारे अपने विचारों को और भारतीय धर्म निरपेक्षता के आधार को युग-युगान्तर के लिए अमरता प्रदान की। कबीर ने धर्म को मानव धर्म के रूप में देखा था। सत्य के समर्थक कबीर हृदय में विचार-सागर और वाणी में अभूतपूर्व शक्ति लेकर अवतरित हुए थे। उन्होंने लोक-कल्याण कामना से प्रेरित होकर स्वानुभूति के सहारे काव्य-रचना की।

वे पाठशाला या मकतब की देहरी से दूर जीवन के विद्यालय में ‘मसि कागद छुयो नहिं’ की दशा में जीकर सत्य, ईश्वर विश्वास, प्रेम, अहिंसा, धर्म-निरपेक्षता और सहानुभूति का पाठ पढ़ाकर अनुभूति मूलक ज्ञान का प्रसार कर रहे थे। कबीर ने समाज में फैले हुए मिथ्याचारों और कुत्सित भावनाओं की धज्जियाँ उड़ा दीं। स्वकीय भोगी हुई वेदनाओं के आक्रोश से भरकर समाज में फैले हुए ढोंग और ढकोसलों, कुत्सित विचारधाराओं के प्रति दो टूक शब्दों में जो बातें कहीं, उनसे समाज की आँखें फटी की फटी रह गईं और साधारण जनता उनकी वाणियों से चेतना प्राप्त कर उनकी अनुगामिनी बनने को बाध्य हो उठी। देश की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान वैयक्तिक जीवन के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयत्न संत कबीर ने किया।

प्रश्नः (क)
आज संत-साहित्य को उपयोगी क्यों माना गया है?
उत्तर:
आज संत साहित्य को इसलिए उपयोगी माना जाता है क्योंकि संतों के साहित्य में विचारों की भव्यता, हृदय की तन्मयता और धार्मिक उदारता है जो आज के सांप्रदायिक संकीर्णता के विषम वातावरण में अत्यंत उपयोगी है।

प्रश्नः (ख)
संत-शिरोमणि किसे माना गया है और क्यों?
उत्तर:
संत शिरोमणि कबीर को माना गया है क्योंकि वे किसी धर्म के कट्टर समर्थक न होकर सभी धर्मों के प्रति समान आदर भाव रखते थे। वे भारतीय धर्म-निरपेक्षता के आधार पुरुष थे जो धार्मिक भेदभाव से कोसों दूर रहते थे।

प्रश्नः (ग)
कबीर के व्यक्तित्व एवं काव्य की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
कबीर के व्यक्तित्व की विशेषता थी सत्य का समर्थन, हृदय में अगाध विचार-सागर और वाणी में अभूतपूर्व शक्ति। उनकी काव्य रचना की विशेषता थी- लोक कल्याण की कामना से प्रेरित होकर स्वानुभूति के सहारे काव्य-सृजन। इससे कबीर को खूब प्रसिद्धि मिली।

प्रश्नः (घ)
सामान्य जनता कबीर की वाणी को मानने को क्यों बाध्य हो गई?
उत्तर:
कबीर की वाणी में अभूतपूर्व शक्ति थी। वे सत्य, प्रेम, ईश्वर विश्वास, अहिंसा धर्मनिरपेक्षता और सहानुभूति का पाठ पढ़ा रहे थे। वे समाज में फैले मिथ्याचारों और कुत्सित विचारों पर कड़ा प्रहार कर रहे थे। यह देख सामान्य जनता उनकी वाणी मानने को बाध्य हो गई।

प्रश्नः (ङ)
अपने जीवन के माध्यम से कबीर ने किन समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया?
उत्तर:
कबीर ने अपने जीवन के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियाँ, धार्मिक कट्टरता मिथ्याचार, वाह्याडंबर, ढकोसलों के अलावा देश की धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया।

(3) सुखी, सफल और उत्तम जीवन जीने के लिए किए गए आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है। देश, काल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार में भारी विविधता है, अतएव अपने-अपने ढंग से जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाले विविध धर्मों के बीच भी ऊपर से विविधता दिखाई देती है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने ही विचारों और जीने के तौरतरीकों को तथा अपनी भाषा और खानपान को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा चाहता है कि लोग उसी का अनुसरण और अनुकरण करें, अतएव दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठतर समझते हुए वह चाहता है कि सभी लोग उसे अपनाएँ। इसके लिए वह ज़ोरज़बर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता।

धर्म के नाम पर होने वाले जातिगत विद्वेष, मारकाट और हिंसा के पीछे मनुष्य की यही स्वार्थ-भावना काम करती है। सोच कर देखिए कि आदमी का यह दृष्टिकोण कितना सीमित, स्वार्थपूर्ण और गलत है। सभी धर्म अपनी-अपनी भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आवश्यकताओं के आधार पर पैदा होते, पनपते और बढ़ते हैं, अतएव उनका बाह्य स्वरूप भिन्न-भिन्न होना आवश्यक और स्वाभाविक है, पर सबके भीतर मनुष्य की कल्याण-कामना है, मानव-प्रेम है। यह प्रेम यदि सच्चा है, तो यह बाँधता और सिकोड़ता नहीं, बल्कि हमारे हृदय और दृष्टिकोण का विस्तार करता अपठित गद्यांश है, वह हमें दूसरे लोगों के साथ नहीं, समस्त जीवन-जगत के साथ स्पष्ट है कि ऊपर से भिन्न दिखाई देने वाले सभी धर्म अपने मूल में मानव-कल्याण की एक ही मूलधारा को लेकर चले और चल रहे हैं।

हम सभी इस सच्चाई को जानकर भी जब धार्मिक विदवेष की आँधी में बहते हैं, तो कितने दुर्भाग्य की बात है! उस समय हमें लगता है कि चिंतन और विकास के इस दौर में आ पहुँचने पर भी मनुष्य को उस जंगली-हिंसक अवस्था में लौटने में कुछ भी समय नहीं लगता; अतएव उसे निरंतर यह याद दिलाना होगा कि धर्म मानव-संबंधों को तोड़ता नहीं, जोड़ता है इसकी सार्थकता प्रेम में ही है।

प्रश्नः (क)
गदयांश के आधार पर बताइए कि धर्म क्या है और इसकी मुख्य विशेषता क्या है?
उत्तर:
धर्म मनुष्य द्वारा किए उन आवरण और प्रयत्नों का नाम है जिन्हें वह अपना जीवन सफल, सुखी एवं उत्तम बनाने के लिए करता है। धर्म की मुख्य विशेषता इसकी विविधता है।

प्रश्नः (ख)
विविध धर्मों के बीच विविध प्रकार की मान्यताओं के क्या कारण हैं? इन विविधताओं के बावजूद मनुष्य क्यों चाहता है कि लोग उसी की धार्मिक मान्यताओं को अपनाएँ? ।
उत्तर:
विविध धर्मों के बीच विविध प्रकार की मान्यताओं का कारण मनुष्य के द्वारा जीवन जीने का ढंग है। वह अपने विचार, जीवन जीने के तरीके, भाषा, खानपान आदि को श्रेष्ठ मानता है, इसलिए वह चाहता है कि लोग उसी की धार्मिक मान्यताएँ अपनाएँ।

प्रश्नः (ग)
अपनी धार्मिक मान्यताएँ दूसरों पर थोपना क्यों हितकर नहीं होता?
उत्तर:
अपनी धार्मिक मान्यताओं को अच्छा समझते हुए व्यक्ति इन्हें दूसरों पर थोपना चाहता है। इसके लिए वह ज़ोर-जबरदस्ती का सहारा लेता है। इससे जातीय विद्वेष, मारकाट और हिंसा फैलती है जो हितकारी नहीं होती।

प्रश्नः (घ)
धर्मों के बाह्य स्वरूप में भिन्नता होना क्यों स्वाभाविक है? धर्म का मूल लक्ष्य क्या होना चाहिए?
उत्तर:
धर्मों के पैदा होने, पनपने फलने-फूलने की भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आवश्यकताएँ अलग-अलग होती हैं। अत: उनके बाह्य स्वरूप में भिन्नता होना स्वाभाविक है। धर्म का मूल लक्ष्य मानव कल्याण होना चाहिए।

प्रश्नः (ङ)
गद्यांश के आधार पर बताइए कि धर्म की मूल भावना क्या है? वह अपनी मूल भावना को कैसे बनाए हुए हैं?
उत्तर:
गद्यांश से ज्ञात होता है कि धर्म की मूल भावना है- हृदय और दृष्टिकोण का विस्तार करते हुए मानव कल्याण करना तथा इसे समस्त जीवन जगत के साथ जोड़ना। ऊपर से भिन्न दिखाई देने वाले धर्म अपने मूल में मानव कल्याण का लक्ष्य अपने में समाए हुए हैं।

4 धरती का स्वर्ग श्रीनगर का ‘अस्तित्व’ डल झील मर रही है। यह झील इंसानों के साथ-साथ जलचरों, परिंदों का घरौंदा हुआ करती थी। झील से हज़ारों हाथों को काम और लाखों को रोटी मिलती थी। अपने जीवन की थकान, मायूसी और एकाकीपन को दूर करने, देश-विदेश के लोग इसे देखने आते थे।

यह झील केवल पानी का एक स्रोत नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों की जीवन-रेखा है, मगर विडंबना है कि स्थानीय लोग इसको लेकर बहुत उदासीन हैं।

समुद्र-तल से पंद्रह सौ मीटर की ऊँचाई पर स्थित डल एक प्राकृतिक झील है और कोई पचास हज़ार साल पुरानी है। श्रीनगर शहर के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी दिशा में स्थित यह जल-निधि पहाडों के बीच विकसित हई थी। सरकारी रिकार्ड गवाह है कि 1200 में इस झील का फैलाव पचहत्तर वर्ग किलोमीटर में था। 1847 में इसका क्षेत्रफल अड़तालीस वर्ग किमी आँका गया। 1983 में हुए माप-जोख में यह महज साढ़े दस वर्ग किमी रह गई। अब इसमें जल का फैलाव आठ वर्ग किमी रह गया है। इन दिनों सारी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग का शोर है और लोग बेखबर हैं कि इसकी मार इस झील पर भी पड़ने वाली है।

इसका सिकुड़ना इसी तरह जारी रहा तो इसका अस्तित्व केवल तीन सौ पचास साल रह सकता है।

इसके पानी के बड़े हिस्से पर अब हरियाली है। झील में हो रही खेती और तैरते बगीचे इसे जहरीला बना रहे हैं। सागसब्जियों में अंधाधुंध रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाएँ डाली जा रही हैं, जिससे एक तो पानी दूषित हो गया, साथ ही झील में रहने वाले जलचरों की कई प्रजातियाँ समूल नष्ट हो गईं।

आज इसका प्रदूषण उस स्तर तक पहुँच गया है कि कुछ वर्षों में ढूँढ़ने पर भी इसका समाधान नहीं मिलेगा। इस झील के बिना श्रीनगर की पहचान की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह भी तय है कि आम लोगों को झील के बारे में संवेदनशील और भागीदार बनाए बगैर इसे बचाने की कोई भी योजना सार्थक नहीं हो सकती है।

प्रश्नः (क)
डल झील को स्थानीय लोगों की जीवन रेखा क्यों कहा गया है?
उत्तर:
डल झील को स्थानीय लोगों की जीवन-रेखा इसलिए कहा गया है क्योंकि इस झील के सहारे चलने वाले अनेक कारोबार से लोगों को काम मिलता है और वे इसी के सहारे रोटी-रोजी कमाते हैं।

प्रश्नः (ख)
सरकारी रिकॉर्ड झील के सिकुड़ने की गवाही किस प्रकार देते हैं ?
उत्तर:
डल झील का फैलाव सन् 1200 में 75 वर्ग किमी में था। 1847 में इसका क्षेत्रफल 48 वर्ग किमी और 1983 में इसका क्षेत्रफल मात्र 10 वर्ग किमी बचा है। अब इसमें मात्र 8 वर्ग किमी पर पानी बचा है। इस तरह सरकारी रिकॉर्ड झील के सिकुड़ने की गवाही देते हैं।

प्रश्नः (ग)
ग्लोबल वार्मिंग क्या है? इसका झील पर क्या असर हो रहा है?
उत्तर:
पिछले कुछ वर्षों से धरती के औसत तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। इसे ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है। धरती की गरमी बढ़ती जाने से जलाशय सूखते जा रहे हैं। इससे डल झील सूखकर सिकुड़ती जा रही है। यह डल झील के अस्तित्व के लिए खतरा है।

प्रश्नः (घ)
डल झील की खेती और बगीचे इसके सौंदर्य पर ग्रहण लगा रहे हैं, कैसे?
उत्तर:
डल झील पर तैरती खेती की जाती है और बगीचे उगाए जाते हैं। इससे अधिक से अधिक फ़सलें और फल पाने के लिए __ अंधाधुंध रासायनिक खादें और कीटनाशक डाले जा रहे हैं। इससे झील का पानी प्रदूषित हो रहा है और झील के जलचर मर रहे हैं। इस तरह यहाँ की जाने वाली खेती और बगीचे इसके सौंदर्य पर ग्रहण हैं।

प्रश्नः (ङ)
झील पर प्रदूषण का क्या असर होगा? इसके रोकने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
उत्तर:
झील पर बढ़ते प्रदूषण का असर यह होगा कि इसका हल खोजना कठिन हो जाएगा। इसके दूषित पानी में रहने वाले जलचर समूल नष्ट हो जाएंगे। इसे रोकने के लिए ऐसे उपाय करने होंगे जिनमें आम लोगों को शामिल करके उन्हें संवेदनशील बनाया जाए और उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जाए।

(5) अच्छा नागरिक बनने के लिए भारत के प्राचीन विचारकों ने कुछ नियमों का प्रावधान किया है। इन नियमों में वाणी और व्यवहार की शुद्धि, कर्तव्य और अधिकार का समुचित निर्वाह, शुद्धतम पारस्परिक सद्भाव, सहयोग और सेवा की भावना आदि नियम बहुत महत्त्वपूर्ण माने गए हैं। ये सभी नियम यदि एक व्यक्ति के चारित्रिक गुणों के रूप में भी अनिवार्य माने जाएँ तो उसका अपना जीवन भी सुखी और आनंदमय हो सकता है। इन सभी गुणों का विकास एक बालक में यदि उसकी बाल्यावस्था से ही किया जाए तो वह अपने देश का श्रेष्ठ नागरिक बन सकता है। इन गुणों के कारण वह अपने परिवार, आस-पड़ोस, विद्यालय में अपने सहपाठियों एवं अध्यापकों के प्रति यथोचित व्यवहार कर सकेगा।

वाणी एवं व्यवहार की मधुरता सभी के लिए सुखदायी होती है, समाज में हार्दिक सद्भाव की वृद्धि करती है किंतु अहंकारहीन व्यक्ति ही स्निग्ध वाणी और शिष्ट व्यवहार का प्रयोग कर सकता है। अहंकारी और दंभी व्यक्ति सदा अशिष्ट वाणी और व्यवहार का अभ्यास होता है। जिसका परिणाम यह होता है कि ऐसे आदमी के व्यवहार से समाज में शांति और सौहार्द का वातावरण नहीं बनता।

जिस प्रकार एक व्यक्ति समाज में रहकर अपने व्यवहार से कर्तव्य और अधिकार के प्रति सजग रहता है, उसी तरह देश के प्रति भी उसका व्यवहार कर्तव्य और अधिकार की भावना से भावित रहना चाहिए। उसका कर्तव्य हो जाता है कि न तो वह स्वयं कोई ऐसा काम करे और न ही दूसरों को करने दे, जिससे देश के सम्मान, संपत्ति और स्वाभिमान को ठेस लगे। समाज एवं देश में शांति बनाए रखने के लिए धार्मिक सहिष्णुता भी बहुत आवश्यक है। यह वृत्ति अभी आ सकती है जब व्यक्ति संतुलित व्यक्तित्व का हो।

प्रश्नः (क)
समाज एवं राष्ट्र के हित में नागरिक के लिए कैसे गुणों की अपेक्षा की जाती है?
उत्तर:
समाज एवं राष्ट्र के हित में नागरिक के लिए वाणी और व्यवहार की शुद्धि, कर्तव्य और अधिकार का समुचित निर्वाह, पारस्परिक सद्भाव, सहयोग और सेवा की भावना जैसे गुणों की अपेक्षा की जाती है।

प्रश्नः (ख)
चारित्रिक गुण किसी व्यक्ति के निजी जीवन में किस प्रकार उपयोगी हो सकते हैं?
उत्तर:
चारित्रिक गुणों से किसी व्यक्ति का निजी जीवन सुखी एवं आनंद मय बन जाता है। वह अपने परिवार, आस-पड़ोस और मिलने-जुलने वालों से यथोचित व्यवहार कर सकता है।

प्रश्नः (ग)
वाणी और व्यवहार की मधुरता सबके लिए सुखदायक क्यों मानी गई है?
उत्तर:
वाणी और व्यवहार की मधुरता सबके लिए सुखदायक मानी जाती है क्योंकि इससे समाज में हार्दिक सद्भाव में वृद्धि होती है। वह सबका प्रिय और सबके आदर का पात्र बन जाता है।

प्रश्नः (घ)
मधुर वाणी और शिष्ट व्यवहार कौन कर सकता है, कौन नहीं और क्यों?
उत्तर:
मधुर वाणी और शिष्ट व्यवहार का प्रयोग अहंकारहीन व्यक्ति ही कर सकता है, अहंकारी और दंभी व्यक्ति नहीं क्योंकि ऐसा व्यक्ति सदा अशिष्ट वाणी और व्यवहार को अभ्यासी होती है।

प्रश्नः (ङ)
देश के प्रति व्यक्ति का व्यवहार और कर्तव्य कैसा होना चाहिए? अपठित गद्यांश
उत्तर:
देश के प्रति व्यक्ति का व्यवहार कर्तव्य और अधिकार की भावना से भावित होना चाहिए। ऐसे में व्यक्ति का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह कोई ऐसा कार्य न करे और न दूसरों को करने दे, जो देश के सम्मान, संपत्ति और स्वाभिमान की भावनाको ठेस पहुँचाए।

(6) गत कुछ वर्षों में जिस तरह मोबाइल फ़ोन-उपभोक्ताओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, उसी अनुपात में सेवा प्रदाता कंपनियों ने जगह-जगह टावर खड़े कर दिए हैं। इसमें यह भी ध्यान नहीं रखा गया कि जिन रिहाइशी इलाकों में टावर लगाए जा रहे हैं, वहाँ रहने वाले और दूसरे जीवों के स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा। मोबाइल टावरों से होने वाले विकिरण से मनुष्य और पशु-पक्षियों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के मद्देनज़र विभिन्न-अदालतों में याचिकाएं दायर की गई हैं। शायद यही वजह है कि सरकार को इस दिशा में पहल करनी पड़ी। केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार टावर लगाने वाली कंपनियों को अपने मौजूदा रेडियो फ्रिक्वेंसी क्षेत्र में दस फीसदी की कटौती करनी होगी।

मोबाइल टावरों के विकरण से होने वाली कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का मुद्दा देशभर में लोगों की चिंता का कारण बना हुआ है। पिछले कुछ महीनों में आम नागरिकों और आवासीय कल्याण-संगठनों ने न सिर्फ रिहाइशी इलाकों में नए टावर लगाने का विरोध किया, बल्कि मौजूदा टावरों पर भी सवाल उठाए हैं। अब तक कई अध्ययनों में ऐसी आशंकाएँ व्यक्त की जा चुकी हैं कि मोबाइल टावरों से निकलने वाली रेडियो तरंगें न केवल पशु-पक्षियों, बल्कि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भी कई रूपों में हानिकारक सिद्ध हो सकती हैं। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की ओर से कराए एक अध्ययन की रिपोर्ट में तथ्य सामने आए कि गौरैयों और मधुमक्खियों की तेज़ी से घटती संख्या के लिए बड़े पैमाने पर लगाए जा रहे मोबाइल टावरों से निकलने वाली विद्युत्-चुंबकीय तरंगें कारण हैं।

इन पर हुए अध्ययनों में पाया गया है कि मोबाइल टावर के पाँच सौ मीटर की सीमा में रहने वाले लोग अनिद्रा, सिरदर्द, थकान, शारीरिक कमजोरी और त्वचा रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं, जबकि कुछ लोगों में चिड़चिड़ापन और घबराहट बढ़ जाती है। फिर मोबाइल टावरों की रेडियो फ्रिक्वेंसी तरंगों को मनुष्य के लिए पूरी तरह सुरक्षित मान लेने का क्या आधार हो सकता है? टावर लगाते समय मोबाइल कंपनियाँ तमाम नियम-कायदों को ताक पर रखने से नहीं हिचकतीं। इसलिए चुंबकीय तरंगों में कमी लाने के साथ-साथ, टावर लगाते समय नियमों की अनदेखी पर नकेल कसने की आवश्यकता है।

प्रश्नः (क)
मोबाइल फ़ोन सेवा प्रदाता कंपनियों ने जगह-जगह टावर क्यों लगाए? उन्होंने किस बात की अनदेखी की?
उत्तर
पिछले कुछ वर्षों में मोबाइल फ़ोन उपभोक्ताओं की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है। उन्हें सेवाएं प्रदान करने के लिए मोबाइल कंपनियों ने टावर लगाए हैं। अपने लाभ के लिए उन्होंने उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों और अन्य प्राणियों के स्वास्थ्य संबंधी खतरे की अनदेखी की।

प्रश्नः (ख)
सरकार द्वारा पहल करने का क्या कारण था? उसने क्या निर्देश दिए?
उत्तर:
सरकार द्वारा मोबाइल कंपनियों के विरुद्ध पहल करने का कारण था, लोगों और पशु-पक्षियों के स्वास्थ्य पर पड़ रहे कुप्रभाव संबंधी याचिकाएँ जो अदालतों में विचाराधीन थीं। इस संबंध में सरकार ने कंपनियों को मौजूदा रेडियो फ्रीक्वेंसी क्षेत्र में दस प्रतिशत कटौती का निर्देश दिया।

प्रश्नः (ग)
मोबाइल टावरों के प्रति लोगों की क्या प्रतिक्रिया हुई और क्यों?
उत्तर:
मोबाइल टावरों के प्रति लोगों ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इन्हें रिहायशी इलाकों में लगाने का विरोध किया और उनकी मौजूदगी पर सवाल उठाया। इसका कारण यह था कि इनसे निकलने वाली तरंगें मनुष्य तथा पशु-पक्षियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती हैं।

प्रश्नः (घ)
मोबाइल टावर हमारे पर्यावरण के लिए कितने हानिकारी हैं ? उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मोबाइल टावर हमारे पर्यावरण के लिए भी बहुत हानिकारक हैं। इनसे निकलने वाली किरणों के कारण गौरैया और मधुमक्खियों की संख्या में निरंतर कमी आती जा रही है। इस कारण हमारे पर्यावरण का सौंदर्य कम हुआ है तथा प्रदूषण में वृद्धि हुई है।

प्रश्नः (ङ)
मोबाइल टावरों को सेहत के लिए सुरक्षित क्यों नहीं माना जा सकता है?
उत्तर:
मोबाइल टावरों को सेहत के लिए इसलिए सुरक्षित नहीं माना जा सकता है, क्योंकि

  • मोबाइल टावरों से जो विद्युत चुंबकीय तरंगें निकलती हैं उनसे सिर दर्द, अनिद्रा, थकान, शारीरिक कमजोरी और त्वचा रोग होता है।
  • इससे चिड़चिड़ापन और घबराहट बढ़ती है।

(7) साहस की जिंदगी सबसे बड़ी जिंदगी होती है। ऐसी जिंदगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह बिल्कुल निडर, बिल्कुल बेखौफ़ होती है। साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिंता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं। जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला आदमी दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्य को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है। अड़ोस-पड़ोस को देखकर चलना, यह साधारण जीवन का काम है। क्रांति करने वाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं और न अपनी चाल को ही पड़ोसी की चाल देखकर मद्धिम बनाते हैं।

साहसी मनुष्य उन सपनों में भी रस लेता है जिन सपनों का कोई व्यावहारिक अर्थ नहीं है। साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता, पर वह अपने विचारों में रमा हुआ अपनी ही किताब पढ़ता है। अर्नाल्ड बेनेट ने एक जगह लिखा है कि जो आदमी यह महसूस करता है कि किसी महान निश्चय के समय वह साहस से काम नहीं ले सका, जिंदगी की चुनौती को कबूल नहीं कर सका, वह सुखी नहीं हो सकता।

जिंदगी को ठीक से जीना हमेशा ही जोखिम को झेलना है और जो आदमी सकुशल जीने के लिए जोखिम का हर जगह पर एक घेरा डालता है, वह अंततः अपने ही घेरों के बीच कैद हो जाता है और जिंदगी का कोई मज़ा उसे नहीं मिल पाता, क्योंकि जोखिम से बचने की कोशिश में, असल में, उसने जिंदगी को ही आने से रोक रखा है। ज़िन्दगी से, अंत में हम उतना ही पाते हैं जितनी कि उसमें पूँजी लगाते हैं। पूँजी लगाना जिंदगी के संकटों का सामना करना है, उसके उस पन्ने को उलटकर पढ़ना है जिसके सभी अक्षर फूलों से ही नहीं, कुछ अंगारों से भी लिखे गए हैं।

प्रश्नः (क)
साहस की जिंदगी जीने वालों की उन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए जिनके कारण वे दूसरों से अलग नज़र आते हैं।
उत्तर:
साहस की जिंदगी जीने वाले निडर और बेखौफ़ होकर जीते हैं। वे इस बात की चिंता नहीं करते है कि जनमानस उनके बारे में क्या सोचता है। ये विशेषताएँ उन्हें दूसरों से अलग करती हैं।

प्रश्नः (ख)
गद्यांश के आधार पर क्रांति करने वालों तथा जन साधारण में अंतर लिखिए।
उत्तर:
क्रांति करने वालों का उद्देश्य बिल्कुल ही अलग होता है। वे अपने उद्देश्य की तुलना पड़ोसी से नहीं करते है और पड़ोसी की चाल देखकर अपनी चाल को कम या ज्यादा नहीं करते हैं। इसके विपरीत जनसाधारण का लक्ष्य और अपने पड़ोसियों जैसा होता है।

प्रश्नः (ग)
‘साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता है’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता है’ का आशय है कि जो साहसी होते हैं वे अपने जीवन का लक्ष्य एवं उसे पूरा करने का मार्ग स्वयं चुनते हैं। वे दूसरे के लक्ष्य और रास्तों की नकल नहीं करते हैं।

प्रश्नः (घ)
‘अर्नाल्ड बेनेट’ के अनुसार सुखी होने के लिए क्या-क्या आवश्यक है?
उत्तर:
अर्नाल्ड बेनेट के अनुसार सुखी होने के लिए-

  • किसी महान निश्चय के समय साहस से काम लेना आवश्यक है।
  • ज़िंदगी की चुनौती को स्वीकार करना आवश्यक है।

प्रश्नः (ङ)
जोखिम पर हर जगह घेरा डालने वाला आदमी जिंदगी का मज़ा क्यों नहीं ले सकता?
उत्तर:
जोखिम पर हर जगह घेरा डालने वाला व्यक्ति जिंदगी का असली मजा इसलिए नहीं ले सकता क्योंकि जोखिम से बचने के प्रयास में वह जिंदगी को अपने पास आने ही नहीं देता है। इस तरह वह जिंदगी के आनंद से वंचित रह जाता है।

(8) कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सद्वृत्ति का ही नाश नहीं करता, बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-रात अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी, जो उसे निरंतर उन्नति की ओर उठाती जाएगी।

इंग्लैंड के एक विद्वान को युवावस्था में राज-दरबारियों में जगह नहीं मिली। इस पर जिंदगी भर वह अपने भाग्य को सराहता रहा। बहुत-से लोग तो इसे अपना बड़ा भारी दुर्भाग्य समझते, पर वह अच्छी तरह जानता था कि वहाँ वह बुरे लोगों की संगति में पड़ता जो उसकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक बनते। बहुत-से लोग ऐसे होते हैं, जिनके घड़ी भर के साथ से भी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, क्योंकि उनके ही बीच में ऐसी-ऐसी बातें कही जाती हैं जो कानों में न पड़नी चाहिए, चित्त पर ऐसे प्रभाव पड़ते हैं, जिनसे उसकी पवित्रता का नाश होता है। बुराई अटल भाव धारण करके बैठती है। बुरी बातें हमारी धारणा में बहुत दिनों तक टिकती हैं। इस बात को प्रायः सभी लोग जानते हैं कि भद्दे व फूहड़ गीत जितनी जल्दी ध्यान पर चढ़ते हैं, उतनी जल्दी कोई गंभीर या अच्छी बात नहीं।

एक बार एक मित्र ने मुझसे कहा कि उसे लड़कपन में कहीं से बुरी कहावत सुनी थी, जिसका ध्यान वह लाख चेष्टा करता है कि न आए, पर बार-बार आता है। जिन भावनाओं को हम दूर रखना चाहते हैं, जिन बातों को हम याद करना नहीं चाहते, वे बार-बार हृदय में उठती हैं और बेधती हैं। अतः तुम पूरी चौकसी रखो, ऐसे लोगों को साथी न बनाओ जो अश्लील, अपवित्र और फूहड़ बातों से तुम्हें हँसाना चाहें। सावधान रहो। ऐसा न हो कि पहले-पहल तुम इसे एक बहुत सामान्य बात समझो और सोचो कि एक बार ऐसा हुआ, फिर ऐसा न होगा। अथवा तुम्हारे चरित्रबल का ऐसा प्रभाव पड़ेगा कि ऐसी बातें बकने वाले आगे चलकर आप सुधर जाएँगे। नहीं, ऐसा नहीं होगा। जब एक बार मनुष्य अपना पैर कीचड़ में डाल देता है, तब फिर यह नहीं देखता कि वह कहाँ और कैसी जगह पैर रखता है। धीरे-धीरे उन बुरी बातों में अभ्यस्त होते-होते तुम्हारी घृणा कम हो जाएगी।

पीहे तुम्हें उनसे चिढ़ न मालूम होगी, क्योंकि तुम यह सोचने लगोगे कि चिढ़ने की बात ही क्या है। तुम्हारा विवेक कुंठित हो जाएगा और तुम्हें भले-बुरे की पहचान न रह जाएगी। अंत में होते-होते तुम भी बुराई के भक्त बन जाओगे। अतः हृदय को उज्ज्वल और निष्कलंक रखने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि बुरी संगति की छूत से बचो।

प्रश्नः (क)
कुसंगति की तुलना किससे की गई है और क्यों?
उत्तर:
कुसंगति की तुलना किसी व्यक्ति के पैरों में बँधी चक्की से की गई है क्योंकि इससे व्यक्ति आगे अर्थात् उन्नति की ओर नहीं बढ़ पाता है। इससे व्यक्ति अवनति के गड्ढे में गिरता चला जाता है।

प्रश्नः (ख)
राज-दरबारियों के बीच जगह न मिलने पर भी विद्वान दुखी क्यों नहीं हुआ?
उत्तर:
राजदरबारियों के बीच जगह न मिलने पर विद्वान इसलिए दुखी नहीं हुआ क्योंकि वहाँ वह ऐसे लोगों की कुसंगति में पड़ता जो उसकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक होते।

प्रश्नः (ग)
बुरी बाते चित्त में जल्दी जगह बनाती हैं। इसके लिए लेखक ने क्या दृष्टांत दिया है?
उत्तर:
बुरी बातें चित्त में जल्दी बैठती हैं और बहुत दिनों तक हमारे चित्त में टिकती हैं। इसे बताने के लिए लेखक ने आजकल के फूहड़ गानों का उदाहरण दिया है जो सरलता से हमारे दिमाग में चढ़ जाते हैं।

प्रश्नः (घ)
लेखक किस तरह के साथियों से दूर रहने की सलाह देता है और क्यों?
उत्तर:
लेखक ऐसे साथियों से दूर रहने की सलाह देता है जो अश्लील, फूहड़ और अपवित्र बातों से हमें हँसाना चाहते हैं। इसका कारण है कि बुरी बातों को चित्त से दूर रखने की लाख चेष्टा करने पर वे दूर नहीं होती है।

प्रश्नः (ङ)
एक बार बुराइयों में पैर पड़ने के बाद व्यक्ति उन्हें छोड़ नहीं पाता है. क्यों?
उत्तर:
एक बार बुराई में पैर पड़ने के बाद व्यक्ति बुराइयों का अभ्यस्त हो जाता है। उसे बुराइयों से चिढ़ समाप्त हो जाती है। उसे बुराइयाँ हानिकारक नहीं लगती और वह इनको छोड़ नहीं पाता है।

(9) विश्व के प्रायः सभी धर्मों में अहिंसा के महत्त्व पर बहुत प्रकाश डाला गया है। भारत के सनातन हिंदू धर्म और जैन धर्म के सभी ग्रंथों में अहिंसा की विशेष प्रशंसा की गई है। ‘अष्टांगयोग’ के प्रवर्तक पतंजलि ऋषि ने योग के आठों अंगों में प्रथम अंग ‘यम’ के अन्तर्गत ‘अहिंसा’ को प्रथम स्थान दिया है। इसी प्रकार ‘गीता’ में भी अहिंसा के महत्त्व पर जगह-जगह प्रकाश डाला गया है। भगवान् महावीर ने अपनी शिक्षाओं का मूलाधार अहिंसा को बताते हुए ‘जियो और जीने दो’ की बात कही है। अहिंसा मात्र हिंसा का अभाव ही नहीं, अपितु किसी भी जीव का संकल्पपूर्वक वध नहीं करना और किसी जीव या प्राणी को अकारण दुख नहीं पहुँचाना है। ऐसी जीवन-शैली अपनाने का नाम ही ‘अहिंसात्मक जीवन शैली’ है।

अकारण या बात-बात में क्रोध आ जाना हिंसा की प्रवृत्ति का एक प्रारम्भिक रूप है। क्रोध मनुष्य को अंधा बना देता है; वह उसकी बुद्धि का नाश कर उसे अनुचित कार्य करने को प्रेरित करता है, परिणामतः दूसरों को दुख और पीड़ा पहुँचाने का कारण बनता है। सभी प्राणी मेरे लिए मित्रवत् हैं। मेरा किसी से भी वैर नहीं है, ऐसी भावना से प्रेरित होकर हम व्यावहारिक जीवन में इसे उतारने का प्रयत्न करें तो फिर अहंकारवश उत्पन्न हुआ क्रोध या द्वेष समाप्त हो जाएगा और तब अपराधी के प्रति भी हमारे मन में क्षमा का भाव पैदा होगा। क्षमा का यह उदात्त भाव हमें हमारे परिवार से सामंजस्य कराने व पारस्परिक प्रेम को बढ़ावा देने में अहम् भूमिका निभाता है।

हमें ईर्ष्या तथा वेष रहित होकर लोभवृत्ति का त्याग करते हुए संयमित खान-पान तथा व्यवहार एवं क्षमा की भावना को जीवन में उचित स्थान देते हुए अहिंसा का एक ऐसा जीवन जीना है कि हमारी जीवन-शैली एक अनुकरणीय आदर्श बन जाए।

प्रश्नः (क)
भारतीय ग्रंथों में अहिंसा के बारे में क्या कहा गया है?
उत्तर:
भारत के सनातन हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म आदि के ग्रंथों में अहिंसा को उत्तम बताया गया है। ‘अष्टांगयांग’ में अहिंसा को प्रथम स्थान तथा ‘गीता’ में जगह-जगह अहिंसा का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है।

प्रश्नः (ख)
‘जियो और जीने दो’ की बात किसने कही? इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘जियो और जीने दो’ की बात भगवान महावीर ने कही है। इस कथन के मूल में भी अहिंसा का भाव निहित है। हम स्वयं जिएँ पर अपने जीवन के लिए दूसरों का हम जीवन न छीनें तथा उन्हें सताए नहीं।

प्रश्नः (ग)
गद्यांश में वर्णित अहिंसात्मक जीवनशैली से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अहिंसात्मक जीवन शैली से तात्पर्य है- किसी भी जीव का संकल्पपूर्वक या जान-बूझकर वध न करना और किसी जीव या प्राणी मात्र को अकारण दुख नहीं पहुँचाना है। दुख पहुँचाने का तरीका मन, वाणी या कर्म कोई भी नहीं होना चाहिए।

प्रश्नः (घ)
क्रोध अहिंसा के मार्ग में किस तरह बाधक सिद्ध होता है?
उत्तर:
बात-बात में क्रोध करना हिंसा का प्रारंभिक रूप है। क्रोध की अधिकता व्यक्ति को अंधा बना देती है। क्रोध उसकी बुद्धि पर हावी होकर व्यक्ति को अनुचित करने के लिए उकसाता है। इससे व्यक्ति दूसरों को दुख पहुंचाता है। इस तरह क्रोध अहिंसा के मार्ग में बाधक है।

प्रश्नः (ङ)
क्षमा का उदात्त भाव मानव जीवन के लिए क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
क्षमा का उदात्त भाव क्रोध और द्वेष को शांत करता है। इससे व्यक्ति परिवार के साथ सामंजस्य बिठाने एवं पारस्परिक प्रेम को बढ़ावा देने में सफल होता है। इस तरह क्षमा मानव-जीवन के लिए आवश्यक है।

(10) कुछ लोगों के अनुसार मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य धन-संग्रह है। नीतिशास्त्र में धन-संपत्ति आदि को ही ‘अर्थ’ कहा गया है। बहुत से ग्रंथों में अर्थ की प्रशंसा की गई है; क्योंकि सभी गुण अर्थ अर्थात् धन के आश्रित ही रहते हैं। जिसके पास धन है वही सुखी रह सकता है, विषय-भोगों को संगृहीत कर सकता है तथा दान-धर्म भी निभा सकता है।

वर्तमान युग में धन का सबसे अधिक महत्त्व है। आज हमारी आवश्यकताएँ बहुत बढ़ गई हैं, इसलिए उनको पूरा करने के लिए धन-संग्रह की आवश्यकता पड़ती है। धन की प्राप्ति के लिए भी अत्यधिक प्रयत्न करना पड़ता है और सारा जीवन इसी में लगा रहता है। कुछ लोग तो धनोपार्जन को ही जीवन का उददेश्य बनाकर उचित-अनुचित साधनों का भेद भी भुला बैठते हैं। संसार के इतिहास में धन की लिप्सा के कारण जितनी हिंसाएँ, अनर्थ और अत्याचार हुए हैं, उतने और किसी दूसरे कारण से नहीं हुए हैं।

अतः धन को जीवन का सर्वोत्तम लक्ष्य नहीं माना जा सकता; क्योंकि धन अपने आप में मूल्यवान वस्तु नहीं है। धन को संचित करने के लिए छल-कपट आदि का सहारा लेना पड़ता है, जिसके कारण जीवन में अशांति और चेहरे पर विकृति बनी रहती है। इतना ही नहीं इसके संग्रह की प्रवृत्ति के पनपने के कारण सदा चोर, डाकू और दुश्मनों का भय बना रहता है। धन का अपहरण या नाश होने पर कष्ट होता है। इस प्रकार अशांति, संघर्ष, दुष्प्रवृत्ति, दुख, भय एवं पाप आदि का मूल होने के कारण, धन को जीवन का परम लक्ष्य नहीं माना जा सकता।

प्रश्नः (क)
जीवन में धन का सर्वाधिक महत्त्व क्यों माना गया है?
उत्तर:
जीवन में धन का महत्त्व इसलिए बढ़ गया है क्योंकि बहुत से धर्मग्रंथों में अर्थ अर्थात धन-संपत्ति की प्रशंसा की गई है। इसके अलावा सभी गुण धन के आश्रित ही रहते हैं। जिसके पास धन है वही सुखी रह सकता है।

प्रश्नः (ख)
आज के युग में धन-संग्रह की आवश्यकता क्यों अधिक बढ़ गई है?
उत्तर:
आज के युग में धन संग्रह की आवश्यकता इसलिए बढ़ गई है क्योंकि आज हमारी आवश्यकताएँ बहुत बढ़ गई हैं। उनको पूरा करने के लिए धन संग्रह की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्नः (ग)
धन-संग्रह को ही जीवन का परम उद्देश्य मानने के कारण जीवन और जगत में क्या दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं?
उत्तर:
(ग) धन-संग्रह को ही जीवन का परम उद्देश्य मानने के कारण अनेक दुष्परिणाम दिखाई देते हैं-
(i) लोग उचित-अनुचित का भेद भुला बैठते हैं।
(ii) अनेक बार हिंसाएँ अनर्थ और अत्याचार हुए हैं।

प्रश्नः (घ)
धन को सर्वोच्च लक्ष्य मानना कितना उचित है और क्यों?
उत्तर:
कुछ लोग धन को जीवन लक्ष्य मान बैठते हैं। यह बिलकुल भी उचित नहीं है, क्योंकि धन अपने आप में मूल्यवान वस्तु नहीं है। इसको एकत्र करने के लिए छल-कपट का सहारा लेना पड़ता है।

प्रश्नः (ङ)
धन दुख का कारण भी बन जाता है स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अनुचित साधनों से धन एकत्र करने पर व्यक्ति अशांत रहता है। इसके नष्ट होने पर व्यक्ति को कष्ट होता है। इस तरह धन दुख का कारण भी बन जाता है।

(11) आज से लगभग छह सौ साल पूर्व संत कबीर ने सांप्रदायिकता की जिस समस्या की ओर ध्यान दिलाया था, वह आज भी प्रसुप्त ज्वालामुखी की भाँति भयंकर बनकर देश के वातावरण को विदग्ध करती रहती है। देश का यह बड़ा दुर्भाग्य है कि यहाँ जाति, धर्म, भाषागत, ईर्ष्या, द्वेष, बैर-विरोध की भावना समय-असमय भयंकर ज्वालामुखी के रूप में भड़क उठती है। दस बीस हताहत होते हैं, लाखों-करोड़ों की संपत्ति नष्ट हो जाती है। भय, त्रास और अशांति का प्रकोप होता है। विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है।

कबीर हिंदू-मुसलमान में, जाति-जाति में शारीरिक दृष्टि से कोई भेद नहीं मानते। भेद केवल विचारों और भावों का है। इन विचारों और भावों के भेद को बल धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिकता से मिलता है। हृदय की चरमानुभूति की दशा में राम और रहीम में कोई अंतर नहीं। अंतर केवल उन माध्यमों में है जिनके द्वारा वहाँ तक पहुँचने का प्रयत्न किया जाता है। इसीलिए कबीर साहब ने उन माध्यमों – पूजा-नमाज़, व्रत, रोज़ा आदि के दिखावे का विरोध किया।
समाज में एकरूपता तभी संभव है जबकि जाति, वर्ण, वर्ग, भेद न्यून-से-न्यून हों। संतों ने मंदिर-मस्जिद, जाति-पाँति के भेद में विश्वास नहीं रखता। सदाचार ही संतों के लिए महत्त्वपूर्ण है। कबीर ने समाज में व्याप्त वाह्याडम्बरों का कड़ा विरोध किया और समाज में एकता, समानता तथा धर्म-निरपेक्षता की भावनाओं का प्रचार-प्रसार किया।

प्रश्नः (क)
क्या कारण है कि कबीर छह सौ साल बाद भी प्रासंगिक लगते हैं?
उत्तर:
कबीर छह सौ साल बाद भी आज इसलिए प्रासंगिक लगते हैं, क्योंकि सांप्रदायिकता की जिस समस्या की ओर हमारा ध्यान छह सौ साल पहले खींचा था वह समस्या आज भी अपना असर दिखाकर जन-धन को नुकसान पहुँचा रही है।

प्रश्नः (ख)
किस समस्या को ज्वालामुखी कहा गया है और क्यों?
उत्तर:
सांप्रदायिकता की समस्या को ज्वालामुखी कहा गया है क्योंकि जिस तरह ज्वालामुखी सोई रहती है पर जब वह भड़कती है तो भयानक बन जाती है। यही स्थिति सांप्रदायिकता की है। फैलने वाली सांप्रदायिकता के कारण लोग मारे जाते हैं और धन संपत्ति की क्षति होती है।

प्रश्नः (ग)
समाज में ज्वालामुखी भड़कने के क्या दुष्परिणाम होते हैं?
उत्तर:
समाज में ज्वालामुखी भड़कने का दुष्परिणाम यह होता है कि एक संप्रदाय दूसरे संप्रदाय का दुश्मन बन जाता है। दोनों संप्रदाय एक-दूसरे की जान लेने के लिए आमने-सामने आ जाते हैं। इससे जन-धन को हानि पहुँचती है।

प्रश्नः (घ)
मनुष्य-मनुष्य में भेदभाव के विचार कैसे बलशाली बनते हैं?
उत्तर:
मनुष्य-मनुष्य में भेदभाव के विचार धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिकता से बलशाही बनते हैं। मनुष्य अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ समझता है और दूसरे धर्म का अनादर करता है। वह अपने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अन्य धर्म को हानि पहुँचाने लगता है।

प्रश्नः (ङ)
कबीर ने किन माध्यमों का विरोध किया और क्यों?
उत्तर:
कबीर ने पूजा-नमाज़, व्रत, रोज़ा आदि के दिखावों का विरोध किया है क्योंकि इससे व्यक्ति में धार्मिक कट्टरता उत्पन्न होती है तथा इस आधार पर व्यक्ति दूसरे धर्म के व्यक्ति का अनादर करने लगता है।

(12) दैनिक जीवन में हम अनेक लोगों से मिलते हैं, जो विभिन्न प्रकार के काम करते हैं-सड़क पर ठेला लगानेवाला, दूधवाला, नगर निगम का सफाईकर्मी, बस कंडक्टर, स्कूल अध्यापक, हमारा सहपाठी और ऐसे ही कई अन्य लोग। शिक्षा, वेतन, परंपरागत चलन और व्यवसाय के स्तर पर कुछ लोग निम्न स्तर पर कार्य करते हैं तो कुछ उच्च स्तर पर। एक माली के कार्य को सरकारी कार्यालय के किसी सचिव के कार्य से अति निम्न स्तर का माना जाता है, किंतु यदि यही अपने कार्य को कुशलतापूर्वक करता है और उत्कृष्ट सेवाएँ प्रदान करता है तो उसका कार्य उस सचिव के कार्य से कहीं बेहतर है, जो अपने काम में ढिलाई बरतता है तथा अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह नहीं करता। क्या आप ऐसे सचिव को एक आदर्श अधिकारी कह सकते हैं? वास्तव में पद महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि महत्त्वपूर्ण होता है, कार्य के प्रति समर्पण-भाव और कार्य-प्रणाली में पारदर्शिता।

इस संदर्भ में गांधी जी से उत्कृष्ट उदाहरण और किसका दिया जा सकता है, जिन्होंने अपने हर कार्य को गरिमामय मानते हुए किया। वे अपने सहयोगियों को श्रम की गरिमा की सीख दिया करते थे। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय लोगों के लिए संघर्ष करते हुए उन्होंने सफ़ाई करने जैसे कार्य को भी कभी नीचा नहीं समझा और इसी कारण स्वयं उनकी पत्नी कस्तूरबा से भी उनके मतभेद हो गए थे।

बाबा आमटे ने समाज द्वारा तिरस्कृत कुष्ठ रोगियों की सेवा में अपना समस्त जीवन समर्पित कर दिया। सुंदरलाल बहुगुणा ने अपने प्रसिद्ध ‘चिपको आंदोलन’ के माध्यम से पेड़ों को संरक्षण प्रदान किया। फादर डेमियन ऑफ मोलोकाई, मार्टिन लूथर किंग और मदर टेरेसा जैसी महान आत्माओं ने इसी सत्य को ग्रहण किया। इनमें से किसी ने भी कोई सत्ता प्राप्त नहीं की, बल्कि अपने जन-कल्याणकारी कार्यों से लोगों के दिलों पर शासन किया। गांधी जी का स्वतंत्रता के लिए संघर्ष उनके जीवन का एक पहलू है, किंतु उनका मानसिक क्षितिज वास्तव में एक राष्ट्र की सीमाओं में बँधा हुआ नहीं था। उन्होंने सभी लोगों में ईश्वर के दर्शन किए। यही कारण था कि कभी किसी पंचायत तक के सदस्य नहीं बनने वाले गांधी जी की जब मृत्यु हुई तो अमेरिका का राष्ट्रध्वज भी झुका दिया गया था।

प्रश्नः (क)
विभिन्न व्यवसाय करने वाले लोगों के समाज में निम्न स्तर और उच्च स्तर को किस आधार पर तय किया जाता है।
उत्तर:
विभिन्न व्यवसाय करने वाले लोगों के समाज में निम्नस्तर और उच्च स्तर को उनकी शिक्षा वेतन व्यवसाय आदि के आधार पर तय किया जाता है। उच्च शिक्षित तथा अधिक वेतन पाने वाले व्यक्ति के काम को उच्च स्तर का तथा माली जैसों के काम को निम्न स्तर का माना जाता है।

प्रश्नः (ख)
एक माली अथवा सफाईकर्मी का कार्य किसी सचिव के कार्य से बेहतर कैसे माना जा सकता है?
उत्तर:
एक माली अथवा सफाईकर्मी अपना काम पूरी निष्ठा ईमानदारी, जिम्मेदारी और कुशलता से करता है तो उसका कार्य उस सचिव के कार्य से बेहतर है जो अपने काम पर ध्यान नहीं देता है या अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन नहीं करता है।

प्रश्नः (ग)
गांधी जी काम के प्रति क्या दृष्टिकोण रखते थे। उनका अपनी पत्नी के साथ क्यों मतभेद हो गया?
उत्तर:
गांधी जी सफ़ाई करने जैसे कार्य को गरिमामय मानते थे। वे अपने सहयोगियों को श्रम करने की सीख देते थे फिर खुद श्रम से कैसे पीछे रहते। उन्होंने सफ़ाई का काम स्वयं करना शुरू कर दिया। इसी बात पर उनका पत्नी के साथ झगड़ा हो गया।

प्रश्नः (घ)
बाबा आमटे, सुंदरलाल बहुगुणा, मदर टेरेसा आदि का उल्लेख क्यों किया गया है?
उत्तर:
बाबा आमटे ने समाज द्वारा तिरस्कृत कुष्ठ रोगियों की सेवा की सुंदरलाल बहुगुणा ने चिपको आंदोलन चलाकर पेडों को करने से बचाया तथा मदर टेरेसा ने रोगियों की सेवा की। उन्होंने अपने कार्य को अत्यंत लगन से किया, इसलिए उनका नाम उल्लिखित है।

प्रश्नः (ङ)
गांधी जी की मृत्यु पर अमेरिका का राष्ट्रध्वज क्यों झुका दिया गया?
उत्तर:
गांधी जी की मृत्यु पर अमेरिका ने उनके सम्मान में अपना राष्ट्र ध्वज झुका दिया। गांधी जी किसी एक व्यक्ति या राष्ट्र की भलाई के लिए काम न करके समूची मानवता की भलाई के लिए काम कर रहे थे।

(13) परिवर्तन प्रकृति का नियम है और परिवर्तन ही अटल सत्य है। अतः पर्यावरण में भी परिवर्तन हो रहा है लेकिन वर्तमान समय में चिंता की बात यह है कि जो पर्यावरणीय परिवर्तन पहले एक शताब्दी में होते थे, अब उतने ही परिवर्तन एक दशक में होने लगे हैं। पर्यावरण परिवर्तन की इस तेज़ी का कारण है विस्फोटक ढंग से बढ़ती आबादी, वैज्ञानिक एवं तकनीकी उन्नति और प्रयोग तथा सभ्यता का विकास। आइए, हम सभी मिलकर यहाँ दो प्रमुख क्षेत्रों का चिंतन करें एवं निवारण विधि सोचें। पहला है ओजोन की परत में कमी और विश्व के तापमान में वृद्धि।

ये दोनों क्रियाएँ परस्पर संबंधित है। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में सुपरसोनिक वायुयानों का ईजाद हुआ और वे ऊपरी आकाश में उड़ाए जाने लगे। उन वायुयानों के द्वारा निष्कासित पदार्थों में उपस्थित नाइट्रिक ऑक्साइड के द्वारा ओजोन परत का क्षय महसूस किया गया। यह ओजोन परत वायुमंडल के समताप मंडल या बाहरी घेरे में होता है। आगे शोध द्वारा यह भी पता चला कि वायुमंडल की ओजोन परत पर क्लोरो-फ्लोरो कार्बस प्रशीतक पदार्थ, नाभिकीय विस्फोट इत्यादि का भी दुष्प्रभाव पड़ता है। ओजोन परत जीवमंडल के लिए रक्षा-कवच है, जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों के विकिरण को रोकता है जो जीवमंडल के लिए घातक है।

अतः इन रासायनिक गैसों द्वारा ओजोन की परत की हो रही कमी को ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा 1978 में गुब्बारों और रॉकेटों की मदद से अध्ययन किया गया। अतः नवीनतम जानकारी के मुताबित अं टिका क्षेत्र के ऊपर ओजोन परत में बड़ा छिद्र पाया गया है जिससे हो सकता है कि सूर्य की घातक विकिरण पृथ्वी की सतह तक पहुँच रही हो और पृथ्वी की सतह गर्म हो रही हो। भारत में भी अंटार्कटिका स्थित अपने अड्डे, दक्षिण गंगोत्री से गुब्बारों द्वारा ओजोन मापक यंत्र लगाकर शोध कार्य में भाग लिया।

क्लोरो-फ्लोरो कार्बस रसायन सामान्य तौर पर निष्क्रिय होते हैं, पर वायुमंडल के ऊपर जाते ही उनका विच्छेदन हो जाता है। तकनीकी उपकरणों द्वारा अध्ययन से पता चला है कि पृथ्वी की सतह से क्लोरो-फ्लोरो कार्बस की मात्रा वायुमंडल में 15 मिलियन टन से भी अधिक है। इन कार्बस के अणुओं का वायुमंडल में मिलन अगर आज से भी बंद कर दें, फिर भी उनकी उपस्थिति वायुमंडल में आने वाले अनेक वर्षों तक बनी रहेगी। अतः क्लोरो-फ्लोरो कार्बस जैसे रसायनों के उपयोग पर हमें तुरंत प्रतिबंध लगाना होगा, ताकि भविष्य में उनके और ज्यादा अणुओं के बनने का खतरा कम हो जाए।

प्रश्नः (क)
कोई दो कारण लिखिए जिनसे पर्यावरण तेज़ी से परिवर्तित हो रहा है?
उत्तर:
(क) पर्यावरण में तेजी से परिवर्तन लाने वाले दो कारक हैं

  • विस्फोटक ढंग से बढ़ती हुई आबादी
  • वैज्ञानिक एवं तकनीकी उन्नति और उनका जीवन में बढ़ता प्रयोग एवं सभ्यता का विकास।

प्रश्नः (ख)
ओजोन परत क्या है? इसके क्षय (नुकसान) होने का क्या कारण है?
उत्तर:
ओजोन एक गैस है जिसकी मोटी परत वायुमंडल के समताप मंडल या बाहरी घेरे में होती है। यह हमें सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाती है। सुपर सोनिक विमानों से निकले धुएँ में नाइट्रिक आक्साइड होता है जिससे ओजोन को क्षति पहुँचती है।

प्रश्नः (ग)
आजकल पृथ्वी की सतह क्यों गर्म हो रही है?
उत्तर:
आजकल पृथ्वी की ऊपरी सतह इसलिए गर्म हो रही है क्योंकि अंटार्कटिक के ऊपर ओजोन परत में बड़ा छिद्र पाया गया है जिससे सूर्य की घातक विकिरण किरणें धरती पर पहुँच रही हैं। इससे धरती गरम हो रही है।

प्रश्नः (घ)
ओजोन परत को रक्षा-कवच क्यों कहा गया है? यह परत किनसे प्रभावित हो रही है?
उत्तर:
ओजोन परत को जीवमंडल की रक्षा कवच इसलिए कहा गया है क्योंकि यह परत हमें सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों के विकिरण से बचाती है।
यह परत क्लोरो फ्लोरो कार्बन, प्रशीतक पदार्थ नाभिकीय विखंडन आदि के द्वारा प्रभावित हो रही है।

प्रश्नः (ङ)
क्लोरो फ्लोरो कार्बन रसायनों का विच्छेदन कैसे हो जाता है?
उत्तर:
क्लोरो-फ्लोरो कार्बस रसायन सामान्यतया निष्क्रिय होते हैं, पर वायुमंडलीय सीमा से ऊपर जाते ही उनका विखंडन अपने आप हो जाता है।

(14) आधुनिक युग विज्ञान का युग है। मनुष्य विकास के पथ पर बड़ी तेज़ी से अग्रसर है। उसने समय के साथ स्वयं के लिए सुख के सभी साधन एकत्र कर लिए हैं। इतना होने के बाद और अधिक पा लेने की अभिलाषा में कोई कमी नहीं आई है बल्कि पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। समय के साथ उसकी असंतोष की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। कल-कारखाने, मोटर-गाड़ियाँ, रेलगाड़ी, हवाई जहाज़ आदि सभी उसकी इसी प्रवृत्ति की देन हैं। उसके इस विस्तार से संसाधनों के समाप्त होने का खतरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।

प्रकृति में संसाधन सीमित हैं। विश्व की बढ़ती जनसंख्या के साथ आवश्यकताएँ भी बढ़ती ही जा रही हैं। दिन-प्रतिदिन सड़कों पर मोटर-गाडियों की संख्या में अतुलनीय वृद्धि हो रही है। रेलगाड़ी हो या हवाई जहाज़ सभी की संख्या में वृद्धि हो रही है। मनुष्य की मशीनों पर निर्भरता धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। इन सभी मशीनों के संचालन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, परंतु जिस गति से ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ रही है उसे देखते हुए ऊर्जा के समस्त संसाधनों के नष्ट होने की आशंका बढ़ने लगी है। विशेषकर ऊर्जा के उन सभी साधनों की जिन्हें पुनः निर्मित नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए पेट्रोल, डीजल, कोयला तथा भोजन पकाने की गैस आदि।

पेट्रोल अथवा डीजल जैसे संसाधनों रहित विश्व की परिकल्पना भी दुष्कर प्रतीत होती है। परंतु वास्तविकता यही है कि जिस तेज़ी से हम इन संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं उसे देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब धरती से ऊर्जा के हमारे ये संसाधन विलुप्त हो जायेंगे। अत: यह आवश्यक है कि हम ऊर्जा संरक्षण की ओर विशेष ध्यान दें अथवा इसके प्रतिस्थापन हेतु अन्य संसाधनों को विकसित करे क्योंकि यदि समय रहते हम अपने प्रयासों में सक्षम नहीं होते तो संपूर्ण मानव सभ्यता ही खतरे में पड़ सकती है।

प्रश्नः (क)
मनुष्य के विकास और उसकी अभिलाषा के बीच क्या संबंध है? गद्यांश के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
मनुष्य और उसकी अभिलाषा के बीच यह संबंध है कि मनुष्य ने ज्यों-ज्यों विकास किया त्यों-त्यों उसकी अभिलाषा बढ़ती गई। मनुष्य को जैसे-जैसे सुख-सुविधाएँ मिलती गईं उसकी अभिलाषा कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही हैं।

प्रश्नः (ख)
कल कारखाने मनुष्य की किस प्रवृत्ति की देन हैं? इस प्रवृत्ति से क्या हानि हुई है?
उत्तर:
कल-कारखाने, मोटर गाड़ियाँ मनुष्य की बढ़ती अभिलाषा की प्रवृत्ति की देन है। इस प्रवृत्ति के लगातार बढ़ते जाने से यह हानि हुई है कि कोयला, पेट्रोल जैसे संसाधनों के समाप्त होने का खतरा बढ़ गया है।

प्रश्नः (ग)
ऊर्जा के संसाधनों के नष्ट होने का खतरा क्यों बढ़ गया है ?
उत्तर:
विश्व में जनसंख्या बढ़ने के साथ ही उसकी आवश्यकताओं में खूब वृद्धि हुई है। रेल-मोटर गाड़ियाँ बेतहाशा बढ़ी हैं। इनके लिए तेज़ गति से ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ी है। इसे देखते हुए उर्जा के संसाधनों के नष्ट होने का खतरा बढ़ गया है।

प्रश्नः (घ)
ऊर्जा के वे कौन से संसाधन हैं जिनके खत्म होने की आशंका से मनुष्य घबराया हुआ है?
उत्तर:
ऊर्जा के जिन साधनों के नष्ट होने से मनुष्य घबराया है वे ऐसे संसाधन हैं जिन्हें नष्ट होने पर पुनः नहीं बनाया जा सकता है। ऐसे साधनों में डीजल, कोयला, पेट्रोल, खाना पकाने की गैस प्रमुख है।

प्रश्नः (ङ)
उर्जा संरक्षण की ओर ध्यान देने की आवश्यकता क्यों बढ़ गई है?
उत्तर:
ऊर्जा संसाधन के संरक्षण की आवश्यकता इसलिए बढ़ गई है, क्योंकि इनके अंधाधुंध उपयोग से इनके नष्ट होने का खतरा मँडराने लगा है। इसके लिए हमें इनका सावधानी से प्रयोग करते हुए इनके विकल्पों की खोज करनी चाहिए।

(15) पड़ोस सामाजिक जीवन के ताने-बाने का महत्त्वपूर्ण आधार है। दरअसल पड़ोस जितना स्वाभाविक है, हमारी सामाजिक सुरक्षा के लिए तथा सामाजिक जीवन की समस्त आनंदपूर्ण गतिविधियों के लिए वह उतना ही आवश्यक भी है। यह सच है कि पड़ोसी का चुनाव हमारे हाथ में नहीं होता, इसलिए पड़ोसी के साथ कुछ-न-कुछ सामंजस्य तो बिठाना ही पड़ता है। हमारा पड़ोसी अमीर हो या गरीब, उसके साथ संबंध रखना सदैव हमारे हित में ही होता है। पड़ोसी से परहेज़ करना अथवा उससे कटे-कटे रहने में अपनी ही हानि है, क्योंकि किसी भी आकस्मिक आपदा अथवा आवश्यकता के समय अपने रिश्तेदारों अथवा परिवारवालों को बुलाने में समय लगता है।

यदि टेलीफ़ोन की सुविधा भी है तो भी कोई निश्चय नहीं कि उनसे समय पर सहायता मिल ही जाएगी। ऐसे में पड़ोसी ही सबसे अधिक विश्वस्त सहायक हो सकता है। पड़ोसी चाहे कैसा भी हो, उससे अच्छे संबंध रखने ही चाहिए। जो अपने पड़ोसी से प्यार नहीं कर सकता, उससे सहानुभूति नहीं रख सकता, उसके साथ सुख-दुख का आदान-प्रदान नहीं कर सकता तथा उसके शोक और आनंद के क्षणों में शामिल नहीं हो सकता, वह भला अपने समाज अथवा देश के साथ क्या खाक भावनात्मक रूप से जुड़ेगा। विश्व-बंधुत्व की बात भी तभी मायने रखती है, जब हम अपने पड़ोसी से निभाना सीखें।

प्रायः जब भी पड़ोसी से खटपट होती है तो इसलिए कि हम आवश्यकता से अधिक पड़ोसी के व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक जीवन में हस्तक्षेप करने लगते हैं। हम भूल जाते हैं कि किसी को भी अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी की रोक-टोक और हस्तक्षेप अच्छा नहीं लगता। पड़ोसी के साथ कभी-कभी तब भी अवरोध पैदा हो जाते हैं, जब हम आवश्यकता से अधिक उससे अपेक्षा करने लगते हैं। बात नमक-चीनी के लेन-देन से आरंभ होती है तो स्कूटर और कार तक माँगने की नौबत ही न आए। आपको परेशानी में पड़ा देख पड़ोसी खुद ही आगे आ जाएगा। पड़ोसियों से निर्वाह करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि बच्चों को नियंत्रण में रखें। आमतौर से बच्चों में जाने-अनजाने छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होते हैं और बात बड़ों के बीच सिर फुटौवल तक जा पहुँचती है। इसलिए पड़ोसी के बगीचे से फल-फूल तोड़ने, उसके घर में ऊधम मचाने से बच्चों पर सख्ती से रोक लगाएँ। भूलकर भी पड़ोसी के बच्चे पर हाथ न उठाएँ, अन्यथा संबंधों में कड़वाहट आते देर न लगेगी।

प्रश्नः (क)
पड़ोस का सामाजिक जीवन में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
पड़ोस सामाजिक जीवन के ताने-बाने का महत्त्वपूर्ण आधार है। यह हमारी सुरक्षा के लिए तथा सामाजिक जीवन की समस्त आनंदपूर्ण गतिविधियों के लिए भी बहुत आवश्यक है।

प्रश्नः (ख)
कैसे कह सकते हैं कि पड़ोसी के साथ सामंजस्य बिठाना हमारे हित में है?
उत्तर:
मुसीबत के समय सहायता के लिए पड़ोसी से तालमेल बिठाना आवश्यक होता है, क्योंकि पड़ोसी ही हमारे सबसे निकट होता है। हमारी सहायता करने वाला वही पहला व्यक्ति होता है क्योंकि हमारे रिश्तेदारों को आने में समय लग जाता है।

प्रश्नः (ग)
“जो अपने पड़ोसी से प्यार नहीं कर सकता, …वह भला अपने समाज अथवा देश के साथ क्या खाक भावनात्मक रूप से जुड़ेगा!” उपर्युक्त पंक्तियों का भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
जो अपने पड़ोसी से प्यार नहीं कर सकता वह विश्व से भला कैसे जुड़ सकता है, क्योंकि विश्व से जुड़ने का आधार पड़ोस है। जो अपने पड़ोस से मिलकर एक नहीं हो सकता, वह भला देश या समाज से एक होकर कैसे रह सकता है।

प्रश्नः (घ)
पड़ोसी से खटपट होने में हमारी भूल कितनी जिम्मेदार रहती है?
उत्तर:
पड़ोसी के साथ खटपट होने का मुख्य कारण होता है-आवश्यकता से अधिक पड़ोसी के व्यक्तिगत या पारिवारिक जीवन में हस्तक्षेप करना। यह व्यक्तिगत हस्तक्षेप उसे अच्छा नहीं लगता। इस तरह खटपट के लिए हमारी भूल जिम्मेदार रहती है।

प्रश्नः (ङ)
पड़ोसी से अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर:
पड़ोसी से अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए हमें

  • अपने बच्चों के व्यवहार पर ध्यान रखना चाहिए।
  • अपनी आवश्यकताओं के लिए उन पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
  • पड़ोसी के बच्चे को अपना बच्चा समझना चाहिए।

(16) समस्त ग्रंथों एवं ज्ञानी, अनुभवीजनों का कहना है कि जीवन एक कर्मक्षेत्र है। हमें कर्म के लिए जीवन मिला है। कठिनाइयाँ एवं दुख और कष्ट हमारे शत्रु हैं, जिनका हमें सामना करना है और उनके विरुद्ध संघर्ष करके हमें विजयी बनना है। अंग्रेज़ी के यशस्वी नाटककार शेक्सपीयर ने ठीक ही कहा है कि “कायर अपनी मृत्यु से पूर्व अनेक बार मृत्यु का अनुभव कर चुके होते हैं किंतु वीर एक से अधिक बार कभी नहीं मरते हैं।”

विश्व के प्रायः समस्त महापुरुषों के जीवन वृत्त अमरीका के निर्माता जॉर्ज वाशिंगटन और राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन से लेकर भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन चरित्र हमें यह शिक्षा देते हैं कि महानता का रहस्य संघर्षशीलता, अपराजेय व्यक्तित्व है। इन महापुरुषों को जीवन में अनेक संकटों का सामना करना पड़ा परंतु वे घबराए नहीं, संघर्ष करते रहे और अंत में सफल हुए। संघर्ष के मार्ग में अकेला ही चलना पड़ता है। कोई बाहरी शक्ति आपकी सहायता नहीं करती है। परिश्रम, दृढ़ इच्छा शक्ति व लगन आदि मानवीय गुण व्यक्ति को संघर्ष करने और जीवन में सफलता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

समस्याएँ वस्तुतः जीवन का पर्याय हैं यदि समस्याएँ न हों तो आदमी प्रायः अपने को निष्क्रिय समझने लगेगा। ये समस्याएँ वस्तुतः जीवन की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती हैं। समस्या को सुलझाते समय उसका समाधान करते समय व्यक्ति का श्रेष्ठतम तत्व उभरकर आता है। धर्म, दर्शन, ज्ञान, मनोविज्ञान इन्हीं प्रयत्नों की देन हैं। पुराणों में अनेक कथाएँ यह शिक्षा देती हैं कि मनुष्य जीवन की हर स्थिति में जीना सीखे व समस्या उत्पन्न होने पर उसके समाधान के उपाय सोचे। जो व्यक्ति जितना उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य करेगा, उतना ही उसके समक्ष समस्याएँ आएँगी और उनके परिप्रेक्ष्य में ही उसकी महानता का निर्धारण किया जाएगा।

प्रश्नः (क)
महापुरुषों ने जीवन को एक कर्मक्षेत्र क्यों कहा है?
उत्तर:
मनुष्य के जीवन में सबसे ज़रूरी है- कर्म करते हुए जीवन पथ पर आगे बढ़ना और निरंतर कर्म करना। इसका कारण है जीवन ही कर्म करने के लिए मिला है। कर्म द्वारा संघर्ष ही हमें सदैव विजयी बना सकता है।

प्रश्नः (ख)
महापुरुषों का जीवन हमें क्या संदेश देता है?
उत्तर:
महापुरुषों का जीवन हमें यह संदेश देता है कि महानता का रहस्य संघर्षशीलता एवं अपराजेय व्यक्तित्व है। हमें कभी संघर्ष से घबराना नहीं चाहिए। इन महापुरुषों की सफलता का रहस्य है- जीवन में संकटों से घबराए बिना संघर्ष करते रहना।

प्रश्नः (ग)
समस्याएँ हमारे जीवन का पर्याय कैसे हैं ? समस्याओं का सामना हमें किस प्रकार करना चाहिए?
उत्तर:
समस्याएँ हमारे जीवन का पर्याय हैं। समस्या आने पर उनसे छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति संघर्ष करता है। इस तरह वे हमें कर्म के लिए प्रेरित करती हैं और हम कर्मशील बनते हैं। हमें समस्याओं का सामना धैर्यपूर्वक सोच समझकर करना चाहिए।

प्रश्नः (घ)
संघर्ष के मार्ग की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
संघर्ष के मार्ग की विशेषता यह है कि व्यक्ति को इस मार्ग पर अकेला चलना पड़ता है। इसमें कोई बाहरी शक्ति हमारी मदद नहीं करती है। संघर्ष में सफलता पाने के लिए परिश्रम, दृढ़ इच्छाशक्ति, लगन आदि मानवीय गुणों की आवश्यकता होती है।

प्रश्नः (ङ)
पुराणों की कथाओं में हमें क्या सीख दी गई है?
उत्तर:
पुराणों की कथाओं में यह सीख दी गई है कि मनुष्य जीवन की हर स्थिति में जीना सीखे, समस्याएँ उत्पन्न होने पर उसके समाधान का उपाय सोचे। समस्याओं का समाधान करने की क्षमता से व्यक्ति की महानता का संबंध बताकर समस्याएँ हमें संघर्ष के लिए प्रेरित करती हैं।

(17) श्रमहीन शरीर की दशा जंग लगी हुई चाबी की तरह अथवा अन्य किसी उपयोगी वस्तु की तरह निष्क्रिय हो जाती है। शारीरिक श्रम वस्तुत जीवन का आधार है, जीवंतता की पहचान है। योगाभ्यास में तो पहली शिक्षा होती है आसन आदि के रूप में शरीर को श्रमशीलता का अभ्यस्त बनाना।
महात्मा गांधी अपना काम अपने हाथ से करने पर बल देते थे। वह प्रत्येक आश्रमवासी से आशा करते थे कि वह अपने शरीर से संबंधित प्रत्येक कार्य सफ़ाई तक स्वयं करेगा। उनका कहना था कि जो श्रम नहीं करता है, वह पाप करता है और पाप का अन्न खाता है।

ऋषि मुनियों ने कहा है- बिना श्रम किए जो भोजन करता है, वह वस्तुतः चोर है। महात्मा गांधी का समस्त जीवन दर्शन श्रम सापेक्ष था। उनका समस्त अर्थशास्त्र यही बताता था कि प्रत्येक उपभोक्ता को उत्पादनकर्ता होना चाहिए। उनकी नीतियों की उपेक्षा करने का परिणाम हम आज भी भोग रहे हैं। न गरीबी कम होने में आती है, न बेरोजगारी पर नियंत्रण हो पा रहा है और न अवरोधों की वृद्धि हमारे वश की बात रही है। दक्षिण कोरिया वासियों ने श्रमदान करके ऐसे श्रेष्ठ भवनों का निर्माण किया है, जिनसे किसी को भी ईर्ष्या हो सकती है।

श्रम की अवज्ञा के परिणाम का सबसे ज्वलंत उदाहरण है, हमारे देश में व्याप्त शिक्षित वर्ग की बेकारी। हमारा शिक्षित युवा वर्ग शारीरिक श्रमपरक कार्य करने से परहेज करता है, वह यह नहीं सोचता है कि शारीरिक श्रम परिमाणतः कितना सुखदायी होता है। पसीने से सिंचित वृक्ष में लगने वाला फल कितना मधुर होता है। ‘दिन अस्त और मज़दूर मस्त’ इसका भेद जानने वाले महात्मा ईसा मसीह ने अपने अनुयायियों को यह परामर्श दिया था कि तुम केवल पसीने की कमाई खाओगे। पसीना टपकाने के बाद मन को संतोष और तन को सुख मिलता है, भूख भी लगती है और चैन की नींद भी आती है। हमारे समाज में शारीरिक श्रम न करना सामान्यतः उच्च सामाजिक स्तर की पहचान माना जाता है।

यही कारण है कि ज्यों के यों आर्थिक स्थिति में सुधार होता जाता है। त्यों त्यों बीमारी व बीमारियों की संख्या में वृद्धि होती जाती है। इतना ही नहीं बीमारियों की नई-नई किस्में भी सामने आती जाती हैं। जिसे समाज में शारीरिक श्रम के प्रति हेय दृष्टि नहीं होती है, वह समाज अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ एवं सुखी दिखाई देता है। विकसित देशों के निवासी शारीरिक श्रम को जीवन का अवश्यक अंग समझते हैं। ऐसे उदाहरण भारत में ही मिल सकते हैं, शत्रु दरवाजा तोड़ रहे हैं और नवाब साहब इंतज़ार कर रहे हैं जूते पहनने वाली बाँदी का।

प्रश्नः (क)
जीवन का आधार क्या है और क्यों?
उत्तर:
जीवन का आधार शारीरिक श्रम है। इसका कारण यह है कि जो शरीर श्रम नहीं करता है, उसकी दशा उस जंग लगी चाबी जैसी होती है जो उपयोग में न आने के कारण बेकार हो जाती है। अपठित गद्यांश

प्रश्नः (ख)
गांधी जी की नीति क्या थी? उसकी उपेक्षा का परिणाम हम किस रूप में भोग रहे हैं?
उत्तर:
गांधी जी की नीति यह थी कि प्रत्येक व्यक्ति अपना काम स्वयं करे। श्रम न करने वाला पाप का अन्न खाता है। उनकी नीतियों की उपेक्षा का परिणाम हम इन रूपों में भोग रहे हैं

  • गरीबी कम न होना
  • बेरोज़गारी पर नियंत्रण न होना
  • अपराध में वृद्धि

प्रश्नः (ग)
समाज की आर्थिक स्थिति और बीमारियों में संबंध बताते हुए श्रम के दो लाभ लिखिए।
उत्तर:
समाज की आर्थिक स्थिति और बीमारियों में गहरा संबंध है। ज्यों-ज्यों समाज की आर्थिक स्थिति बढ़ती है त्यों-त्यों वहाँ बीमारियों की संख्या भी बढ़ती जाती है क्योंकि व्यक्ति परिश्रम से विमुख होने लगता है। परिश्रम करने से-

  • व्यक्ति स्वस्थ रहता है।
  • व्यक्ति को भूख लगती है और चैन की नींद आती है।

प्रश्नः (घ)
शिक्षित वर्ग की बेकारी का क्या कारण है? यह वर्ग किस बात से अनभिज्ञ है?
उत्तर:
युवा शिक्षित वर्ग की बेकारी का कारण शारीरिक श्रम की उपेक्षा है। यह वर्ग इस बात से अनभिज्ञ है कि शारीरिक श्रम कितना सुखदायी होता है और पसीने से सिंचित वृक्ष में लगने वाला फल कितना मधुर होता है।

प्रश्नः (ङ)
श्रम के प्रति भारत और अन्य देशों की सोच में क्या अंतर है? इस सोच का परिणाम क्या होता है?
उत्तर:
श्रम के प्रति हमारे देश की सोच यह है कि जब ज़रूरत आ पड़ेगी तब देखा जाएगा वही अन्य देश इसे जीवन का आवश्यक अंग समझते हैं। इस सोच का परिणाम यह होता है कि परिश्रम करने वाले देश उन्नति करते हैं तथा दूसरे पिछड़ते जाते हैं।

(18) ईश्वर के प्रति आस्था वास्तव में जन्मजात न होकर सामान्यतः हमारे घर-परिवार और परिवेश से हमें संस्कारों के रूप में मिलती है और ज़्यादातर लोग बचपन में इसे बिना कोई प्रश्न किए ही ग्रहण करते हैं। हमें छह में से सिर्फ एक व्यक्ति ऐसा मिला जिसका कहना है कि वह बचपन से ही ईश्वर के अस्तित्व के प्रति संदेहशील हो चला था, लेकिन पाँच ने कहा कि उनके साथ ऐसी स्थिति नहीं थी। जिस व्यक्ति ने यह कहा कि बचपन से ही उसने ईश्वर के बारे में अपने संदेह प्रकट करने शुरू कर दिए थे, उसका कहना था कि ऐसा उसने शायद अपने आसपास के जीवन में सामाजिक विसंगतियाँ देखकर किया होगा, क्योंकि उसके सवालों के स्रोत यही थे।

एक तरफ उसने पाया कि धार्मिक पुस्तकें और धार्मिक लोगों के कथनों से कुछ और बात निकलती हैं, लेकिन जो आसपास के वातावरण में उन्हें देखने को मिलता है तथा ये धार्मिक लोग स्वयं जो व्यवहार करते हैं वह कुछ और है, लेकिन बाकी पांच ने सामाजिक-आर्थिक विसंगतियों और ईश्वर के प्रति आस्था में अंतर्संबंध पहले नहीं देखे थे। जिन लोगों ने ईश्वर में आस्था बाद में खो दी, उन्होंने माना कि इसका मूल कारण उनका पुस्तकों से बचपन से ही संपर्क में आना रहा है। बाद में निरीश्वरवादी विचारों तथा नास्तिकों के संपर्क में आने से ईश्वर में आस्था बाद में खो दी। वे नहीं मानते कि उनके इस जीवन में बाद में कभी ऐसा कोई समय भी आ सकता है, जब वे ईश्वर की तरफ पुनः लौटने की बाध्यता महसूस करेंगे, हालांकि वे स्वीकार करते हैं कि उन्होंने ऐसे लोगों को भी देखा है, जो अपने युवाकाल में घनघोर नास्तिक थे, मगर जीवन के अंतिम दौर तक आकर घनघोर आस्तिक बन गये।

आस्तिकों का कहना है कि ईश्वर के विरुद्ध कोई कितना ही मज़बूत तर्क पेश करे, उनकी ईश्वर में आस्था कभी कमज़ोर नहीं पड़ेगी। तर्क वे सुन लेंगे, लेकिन ईश्वर नहीं है, इस बात को किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करेंगे। उनका मानना है कि तर्क से ईश्वर को पाया नहीं जा सकता, वह तो तर्कातीत है। दूसरी तरफ जिन्होंने ईश्वर में अपनी आस्था खो दी है, उनका कहना है कि उन्होंने अपनी नव अर्जित नास्तिकता के कारण अपने परिवार और समाज में अकेला पड़ जाने का खतरा भी उठाया है लेकिन धीरे-धीरे अपने परिवार में उन्होंने ऐसी स्थिति पैदा कर ली है कि उन्हें इस रूप में स्वीकार किया जाने लगा है।
यह पाया गया कि ईश्वर में व्यक्ति की आस्था को कायम रखने के लिए तमाम तरह का संस्थागत समर्थन निरंतर मिलता रहता है, जबकि इसके विपरीत स्थिति नहीं है।

वे संस्थाएँ भी ईश्वर और धर्म के प्रति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आस्था पैदा और मज़बूत करने की कोशिश करती हैं, जिनका कि प्रत्यक्ष रूप से धर्म से कोई संबंध नहीं है। जैसे परिवार, पास-पड़ोस, स्कूल, अदालतें, काम की जगहें आदि। एक साथी ने बताया कि वे एक ऐसे कालेज में काम करते थे, जहाँ रोज सुबह ईश्वर की प्रार्थना गाई जाती है, जिससे छात्र-छात्राएँ तो किसी तरह बच भी सकते हैं, लेकिन अध्यापक नहीं, अगर वे बचने की कोशिश करते हैं, तो उनकी नौकरी खतरे में पड़ सकती है।

प्रश्न
प्रश्नः (क)
ईश्वर के प्रति आस्था हम कहाँ से ग्रहण करते हैं ? हम उसे किस तरह स्वीकारते हैं ?
उत्तर:
ईश्वर के प्रति आस्था हम अपने घर-परिवार और परिवेश से संस्कार के रूप में ग्रहण करते हैं। इस आस्था पर कोई तर्क वितर्क या सोच-विचार किए बिना हम ग्रहण कर लेते हैं।

प्रश्नः (ख)
छह में से एक व्यक्ति के ईश्वर के प्रति संदेहशील हो उठने का क्या कारण था?
उत्तर:
छह में से एक व्यक्ति के ईश्वर के प्रति संदेहशील हो उठने का कारण था- उसके द्वारा अपने आसपास के जीवन में सामाजिक विसंगतियाँ देखना। उसने पाया कि धार्मिक पुस्तकें और धार्मिक लोग की बातों में और उनके व्यवहार में बहुत अंतर है।

प्रश्नः (ग)
ईश्वर के प्रति आस्था खो देने का क्या कारण था? वे अपने विचार का किस तरह खंडन करते दिखाई देते हैं ?
उत्तर:
ईश्वर के प्रति आस्था खो देने का कारण था- बचपन से ही पुस्तकों के संपर्क में आना और बाद में निरीश्वरवादी और नास्तिकों के संपर्क में आना। ये लोग कहते हैं कि उन्होंने ऐसे लोगों को देखा है कि युवावस्था में घोर नास्तिक थे परंतु जीवन के अंतिम समय में घोर आस्तिक बन गए। ऐसा कहकर वे अपने विचारों का खंडन करते हैं।

प्रश्नः (घ)
ईश्वर के बारे में आस्तिकों का क्या कहना है? इस बारे में वे क्या तर्क देते हैं?
उत्तर:
ईश्वर के बारे में आस्तिकों का कहना है कि कोई ईश्वर के विरुद्ध कितना भी मज़बूत तर्क प्रस्तुत करे पर वे अपनी आस्था को कमज़ोर नहीं होने देंगे। इस बारे में वे तर्क देते हैं कि ईश्वर को तर्क से नहीं पाया जा सकता है वह तर्क से परे है।

प्रश्नः (ङ)
नास्तिक हो जाने से व्यक्ति क्या हानि उठता है?
उत्तर:
नास्तिक हो जाने से व्यक्ति परिवार और समाज में अकेला पड़ जाता है। बाद में उसे लोगों के बीच ऐसी स्थिति बनानी पड़ती है कि सब उसे उसी स्थिति में स्वीकार करें।

NCERT Solutions for Class 10 Hindi

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CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण शब्द व पद में अंतर

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CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण शब्द व पद में अंतर

शब्द –

बोलते समय हमारे मुँह से ध्वनियाँ निकलती हैं। इन ध्वनियों के छोटे से छोटे टुकड़े को वर्ण कहा जाता है। इन्हीं वर्गों के सार्थक मेल से शब्द बनते हैं। वर्णों का सार्थक एवं व्यवस्थित मेल शब्द कहलाता है।

उदाहरण – आ + ग् + अ + म् + अ + न् + अ = आगमन
प् + उ + स् + त् + अ + क् + अ = पुस्तक
प् + र् + आ + च् + ई + न् + अ = प्राचीन
क् + ष् + अ + त् + र् + इ + य् + अ = क्षत्रिय

शब्द की विशेषताएँ

  • शब्द भाषा की स्वतंत्र और अर्थवान इकाई हैं।
  • शब्द भाषा में विशिष्ट महत्त्व रखते हैं जो हमारे भाव-विचार व्यक्त करने में सहायक होते हैं।
  • शब्दों की रचना वर्णों के मेल से होती है।
  • शब्द एक निश्चित अर्थ रखते हैं।

शब्द एवं पद –

शब्द कोश में रहते हैं तथा एक निश्चित अर्थ का बोध कराते हैं; जैसे-लड़का, आम, खा। पद-शब्दों के साथ जब विभक्ति चिह्नों या परसर्गों का प्रयोग करके तथा व्याकरणिक नियमों में बाँधकर वाक्य में प्रयोग किया जाता है, तब वही शब्द पद बन जाते हैं; जैसे –

लड़के ने आम खाया।
परसर्ग का प्रयोग

लड़के आम खाएँगे।
(व्याकरण सम्मत नियमों का प्रयोग)

शब्द एवं पद में अंतर

  • शब्द वाक्य के बाहर होते हैं जबकि पद वाक्य में बँधे होते हैं।
  • शब्दों का अपना स्वतंत्र अर्थ होता है जबकि पद अपना अर्थ वाक्य के अनुसार देते हैं।

पद में दो प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया जाता है –

1. कोशीय शब्द-वे शब्द जो शब्दकोश में मिलते हैं और जिनका अर्थ कोश में प्राप्त हो जाए; जैसे-बाल, क्षेत्र, कृषक, पुष्प, शशि, रवि आदि।
2. व्याकरणिक शब्द-वे शब्द जो व्याकरणिक कार्य करते हैं, उन्हें व्याकरणिक शब्द कहते हैं।

जैसे-वृद्धा से अब चला नहीं जाता।
घायल से लड़ा नहीं जाता
यहाँ रेखांकित अंश ‘जाता’ व्याकरणिक शब्द है।

पदबंध- जब कई पद मिलकर एक व्याकरणिक इकाई का कार्य करते हैं तो उसे पदबंध कहते हैं; जैसे –

(क) सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाने वाले गांधी जी का नाम विश्व प्रसिद्ध है।
(ख) पटेल के आदर्शों पर चलने वाले आज भी बहुत मिल जाएँगे।
(ग) हमेशा बक-बक करने वाले तुम, आज मौन क्यों हो?

इन वाक्यों के रेखांकित अंश क्रमशः संज्ञा, विशेषण और सर्वनाम पदबंध हैं।

शब्दों के भेद –

हिंदी में जिन शब्दों का प्रयोग हो रहा है उनके स्रोत भिन्न-भिन्न हैं। संस्कृत, उर्दू, अंग्रेज़ी आदि से आये शब्दों के कारण रूप बदल गया है।
शब्दों के भेद निम्नलिखित आधार पर किए जाते हैं –

  1. उत्पत्ति के आधार पर
  2. बनावट के आधार पर
  3. प्रयोग के आधार पर
  4. अर्थ के आधार पर

1. उत्पत्ति के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण –
इस आधार पर शब्दों को चार वर्गों में बाँटा जा सकता है –

(क) तत्सम शब्द-जो शब्द अपरिवर्तित रूप में संस्कृत भाषा से लिए गए हैं या जिन्हें संस्कृत के मूल शब्दों से संस्कृत के ही
प्रत्यय लगाकर नवनिर्मित किया गया है, वे तत्सम शब्द कहलाते हैं।

तत्सम शब्द दो शब्दों से बना है, ‘तत्’ और ‘सम’ जिसका अर्थ है उसके अनुसार अर्थात् संस्कृत के अनुसार। तत्सम शब्दों के कुछ उदाहरण-प्रौद्योगिकी, आकाशवाणी, आयुक्त, स्वप्न, कूप, उलूक, चूर्ण, चौर, यथावत, कर्म, कच्छप, कृषक, कोकिल, अक्षि, तैल, तीर्थ, चैत्र, तपस्वी, तृण, त्रयोदश, कन्दुक, उच्च, दश, दीपक, धूलि, नासिका आदि।

(ख) तद्भव शब्द-जो शब्द संस्कृत भाषा से उत्पन्न तो हुए हैं, पर उन्हें ज्यों का त्यों हिंदी में प्रयोग नहीं किया जाता है। इनके रूप में परिवर्तन आ जाता है। इनको तद्भव शब्द कहते हैं।

तद्भव शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है; जैसे – ‘तद्’ और ‘भव’। जिसका अर्थ है-उसी से उत्पन्न।
तद्भव शब्दों के कुछ उदाहरण – काजर, सूरज, रतन, परीच्छा, किशन, अँधेरा, अनाड़ी, ईख, कुम्हार, ताँबा, जोति, जीभ, ग्वाल, करतब, कान, साँवला, साँप, सावन, भाप, लोहा, मारग, मक्खी , भीषण, पूरब, पाहन, बहरा, बिस आदि।

(ग) देशज शब्द-वे शब्द जिनका स्रोत संस्कृत नहीं है किंतु वे भारत में ग्राम्य क्षेत्रों अथवा जनजातियों में बोली जाने वाली तथा संस्कृत से भिन्न भाषा परिवारों के हैं। देशज शब्द कहलाते हैं। ये शब्द क्षेत्रीय प्रभाव के कारण हिंदी में प्रयुक्त होते हैं।

देशज शब्दों के कुछ उदाहरण-कपास, अंगोछा, खिड़की, ठेठ, टाँग, झोला, रोटी, लकड़ी, लागू, खटिया, डिबिया, तेंतुआ, थैला, पड़ोसी, खोट, पगिया, घरौंदा, चूड़ी, जूता, दाल, ठेस, ठक-ठक, झाड़ आदि।

(घ) आगत या विदेशी शब्द-विदेशी भाषाओं से संपर्क के कारण अनेक शब्द हिंदी में प्रयोग होने लगे हैं। ये शब्द ही आगत या विदेशी शब्द कहलाते हैं। हिंदी में प्रयुक्त विदेशी शब्द निम्नलिखित हैं –

  • अरबी शब्द-बर्फ, बगीचा, कानून, काज़ी, ऐब, कसूर, किताब, करामात, कत्ल, कलई, रिश्वत, मक्कार, मीनार, फ़कीर, नज़र, नखरा, तहसीलदार, अदालत, अमीर, बाज़ार, बेगम, जवाहर, दगा, गरीब, खुफिया, वसीयत, बहमी, फ़ौज, दरवाज़ा, कदम आदि।
  • फारसी शब्द-नालायकी, शादी, शेर, चापलूस, चादर, जिंदा, ज़बान, जिगर, दीवार, गरदन, चमन, चरबी, खार, गरीब, खत, खान, कारतूस, आतिशी, अनार, कम, कफ़, कमर, आफ़त, गरीब, अब्र, अबरी, गुनाह, सब्जी, चाकू, सख्त आदि।
  • अंग्रेज़ी शब्द-पार्क, राशन, अफ़सर, अंकल, अंडर, सेक्रेटरी, बटन, कंप्यूटर, ओवरकोट, कूपन, गैस, कार्ड, चार्जर, चॉक, चॉकलेट, चिमनी, वायल सरकस, हरीकेन, हाइड्रोजन, स्टूल, स्लेट, स्टेशन, लाटरी, लेबल, सिंगल, सूट, मील, मोटर, मेम्बर, रिकॉर्ड, मेल, रेडियो, प्लेटफार्म, बाम, बैरक, डायरी, ट्रक, ड्राइवर आदि।
  • पुर्तगाली शब्द-मिस्त्री, साबुन, बालटी, फालतू, आलू, आलपीन, अचार, काजू, आलमारी, कमीज़, कॉपी, गमला, चाबी, गोदाम, तौलिया, तिजोरी, पलटन, पीपा, पादरी, फीता, गमला, गोभी, प्याला आदि।
  • चीनी शब्द-चाय, लीची, पटाखा व तूफ़ान आदि।
  • यूनानी शब्द-टेलीफ़ोन, टेलीग्राम, डेल्टा व ऐटम आदि।
  • जापानी शब्द-रिक्शा।
  • फ्रांसीसी शब्द-कॉर्टून, इंजन, इंजीनियर, बिगुल व पुलिस आदि।

2. बनावट या रचना के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण –
बनावट की भिन्नता के आधार पर शब्दों को तीन वर्गों में बाँटा गया है।

(क) रूढ़ शब्द-जिन शब्दों के सार्थक खंड न किए जा सकें तथा जो शब्द लंबे समय से किसी विशेष अर्थ के लिए प्रयोग हो रहे हैं, उन्हें रूढ़ शब्द कहते हैं।

रूढ़ शब्द के कुछ उदाहरण-ऊपर (ऊ + प + र), नीचे (नी + चे), पैर (पै + र), कच्चा (क + च् + चा), कमल (क + म + ल), फूल (फू + ल), वृक्ष (वृ + क्ष), रथ (र + थ), पत्ता (प + त् + ता) आदि।

(ख) यौगिक शब्द-दो या दो से अधिक शब्दों या शब्दांशों द्वारा निर्मित शब्दों को यौगिक शब्द कहते हैं। यौगिक शब्दों के कुछ
उदाहरण –

रसोईघर = रसोई + घर
अनजान = अन + जान
अभिमानी = अभि + मानी
पाठशाला = पाठ + शाला
रेलगाड़ी = रेल + गाड़ी
ईमानदार = ईमान + दार
हिमालय = हिम + आलय
हमसफ़र = हम + सफ़र
आज्ञार्थ = आज्ञा + अर्थ
वाचनालयाध्यक्ष = वाचन + आलय + अध्यक्ष

(ग) योगरूढ़ शब्द-जो यौगिक शब्द किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं, उन्हें योगरूढ़ शब्द कहते हैं।
योगरूढ़ शब्दों के उदाहरण –

चिड़ियाघर = चिड़िया + घर = शाब्दिक अर्थ = पक्षियों का घर।
विशेष अर्थ = सभी प्रकार के पशु-पक्षियों के रखे जाने का स्थान ।
पंकज = पंक + ज = शाब्दिक अर्थ = कीचड़ में उत्पन्न।
विशेष अर्थ = कमल।
श्वेतांबरा = श्वेत + अंबर + आ = शाब्दिक अर्थ = सफ़ेद वस्त्रों वाली।
विशेष अर्थ = सरस्वती।
नीलकंठ = नील + कंठ शाब्दिक अर्थ = नीला कंठ।
विशेष अर्थ = शिव जी।
दशानन = दश + आनन = शाब्दिक अर्थ = दस मुँह वाला।
विशेष अर्थ = रावण।
लंबोदर = लंबा + उदर = शाब्दिक अर्थ = लंबे उदर वाला।
विशेष अर्थ = गणेश।

3. प्रयोग के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण –
प्रयोग के आधार पर शब्द तीन प्रकार के होते हैं –

(क) सामान्य शब्द-जिन शब्दों का प्रयोग दिन-प्रतिदिन के कार्य-व्यवहार में होता है, उन्हें सामान्य शब्द कहते हैं। उदाहरण-रोटी, पुस्तक, कलम, साइकिल, शिशु, मेज़, लड़का आदि।

(ख) अर्ध तकनीकी शब्द-जो शब्द दिन-प्रतिदिन के कार्य-व्यवहार में भी प्रयोग में लाए जाते हैं तथा किसी विशेष उद्देश्य के लिए ही इनका प्रयोग किया जाता है, उन्हें अर्ध तकनीकी शब्द कहते हैं।
उदाहरण – दावा, आदेश, रस।

(ग) तकनीकी शब्द-किसी क्षेत्र विशेष में प्रयोग की जाने वाली शब्दावली के शब्दों को तकनीकी शब्द कहते हैं।
उदाहरण – विधि (कानून) के क्षेत्र में प्रयोग किए जाने वाले शब्द – विधि, विधेयक, संविधान, प्रविधि आदि।
इसी प्रकार–प्रशासन, बैंक, चिकित्सा, विज्ञान, अर्थशास्त्र के क्षेत्रों से संबंधित शब्द हैं-महानिदेशक, आयोग, समिति, कार्यवृत्त, सीमा शुल्क, सूचकांक, पदोन्नति, शेयर, कार्यशाला, आरक्षण आदि।
साहित्य में भी ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है – संधि, समास, उपसर्ग, रूपक, दोहा, रस आदि।

4. अर्थ के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण
अर्थ के आधार पर शब्दों के दो भेद किए गए हैं –

(क) निरर्थक शब्द-जो शब्द अर्थहीन होते हैं, निरर्थक शब्द कहलाते हैं। ये शब्द सार्थक शब्दों के पीछे लग उनका अर्थ-विस्तार करते हैं।
उदाहरण-

  • लड़का पढ़ने में ठीक-ठाक है।
  • घर में फुटबॉल मत खेलो, कहीं कुछ टूट-फूट गया तो मार पड़ेगी।

(ख) सार्थक शब्द-जिन शब्दों का कुछ न कुछ अर्थ होता है, उन्हें सार्थक शब्द कहते हैं।
उदाहरण – कोयल, पशु, विचित्र, कर्तव्य, संसार आदि।
सार्थक शब्द अनेक प्रकार के है –

(i) एकार्थी शब्द-जिन शब्दों का केवल एक निश्चित अर्थ होता है, वे एकार्थी शब्द कहलाते हैं।
उदाहरण-हाथी, ईश्वर, पति, पुस्तक, शत्रु, मित्र, कमरा आदि।

(ii) अनेकार्थी शब्द-जिन शब्दों के एक से अधिक अर्थ होते हैं, उन्हें अनेकार्थी शब्द कहते हैं।
उदाहरण- अर्थ – मतलब, प्रयोजन, धन।
कर – हाथ, टैक्स, किरण।
अंबर – आकाश, कपड़ा, सुगंधित पदार्थ।
काल – समय, अवधि, मौसम।
आम – सामान्य, एक फल, मामूली।
काम – कार्य, मतलब, संबंध, नौकरी।

(iii) समानार्थी या पर्यायवाची शब्द-जो शब्द एक समान (लगभग एक सा ही) अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें पर्यायवाची शब्द कहते हैं। पर्याय का अर्थ है दूसरा अर्थात् उसी प्रयोजन या वस्तु के लिए दूसरा शब्द। इनका अर्थ लगभग एक समान होता है पर पूर्ण रूप से समान नहीं।

उदाहरण – कमल – शतदल, वारिज, जलज, नीरज, पंकज, अंबुज।
पेड़ – विटप, पादप, वृक्ष, द्रुम, रूख, तरु।
आकाश – नभ, गगन, आसमान, अंबर।
पक्षी – खग, विहग, विहंगम, द्विज, खेचर।
धरती – भू, भूमि, धरा, वसुंधरा।
अँधेरा – अंधकार, तम, तिमिर, हवांत।

(iv) विपरीतार्थक शब्द-हिंदी भाषा के प्रचलित शब्दों के विपरीत अर्थ देने वाले शब्दों को विपरीतार्थक शब्द कहते हैं।

उदाहरण – कटु – मधुर
आदि – अंत
उपकार – अपकार
हार – जीत
अनुज – अग्रज
आदर – निरादर, अनादर
आय – व्यय
चतुर – मूर्ख

पद-भेद

वाक्यों में प्रयुक्त शब्दों अर्थात् पदों को पाँच भेदों में बाँटा जाता है

  1. संज्ञा
  2. सर्वनाम
  3. विशेषण
  4. क्रिया
  5. अव्यय।

1. संज्ञा–जिन शब्दों से किसी प्राणी, व्यक्ति, स्थान, वस्तु अथवा भाव के नाम का बोध होता है, उन्हें संज्ञा कहते हैं।
उदाहरण – सचिन, हरिद्वार, क्रिकेट, उड़ान, गरमी, बचपन, शेर आदि।
संज्ञा के तीन भेद होते हैं –

(क) व्यक्तिवाचक संज्ञा-जिन संज्ञा शब्दों से किसी विशेष व्यक्ति, स्थान एवं वस्तु का बोध हो, उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।
उदाहरण – भगत सिंह, ताजमहल, कुरान, रामायण, भारत, लाल किला, कुतुबमीनार आदि। शब्द एवं पद में अंतर

(ख) जातिवाचक संज्ञा-जो संज्ञा शब्द किसी एक ही जाति के प्राणियों, वस्तुओं एवं स्थानों का बोध करवाते हैं, उन्हें जातिवाचक संज्ञा कहते हैं।
उदाहरण – लड़का, पर्वत, ग्रह, खिलाड़ी, पशु, पक्षी, मित्र, भवन, शहर, इमारत आदि।
जातिवाचक संज्ञा के दो उपभेद हैं –

  • द्रव्यवाचक संज्ञा-जिन संज्ञा शब्दों से किसी द्रव्य (पदार्थ) या धातु का बोध होता है, उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं।
    उदाहरण-मिट्टी, सोना, कोयला, तेल, पीतल, लोहा आदि।
  • समूहवाचक संज्ञा-जो शब्द किसी समुदाय या समूह का बोध करवाते हैं, उन्हें समूहवाचक संज्ञा कहते हैं।
    उदाहरण – कक्षा, दल, गुच्छा, सभा, जनता, पुलिस आदि।

(ग) भाववाचक संज्ञा – जो संज्ञा शब्द, गुण, कर्म, दशा, अवस्था आदि भावों का बोध करवाते हैं, उन्हें भाववाचक संज्ञा कहते हैं।
उदाहरण – सुंदरता, लंबाई, बचपन, भूख, चोरी, घृणा, क्रोध, ममता, चुनाव, लालिमा आदि।

2. सर्वनाम-जो शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त किए जाते हैं, वे सर्वनाम कहलाते हैं।
उदाहरण – वे, उसका, वह, आप, मैं, उनके, तुम आदि।

सर्वनाम के निम्नलिखित छह भेद माने जाते हैं –

(क) पुरुषवाचक सर्वनाम
(ख) निश्चयवाचक सर्वनाम
(ग) अनिश्चयवाचक सर्वनाम
(घ) संबंधवाचक सर्वनाम
(ङ) प्रश्नवाचक सर्वनाम
(च) निजवाचक सर्वनाम

(क) पुरुषवाचक सर्वनाम-वक्ता स्वयं अपने लिए, श्रोता के लिए अथवा किसी अन्य व्यक्ति के लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग करता है, उन्हें पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण – हम, तुम, ये, तू, मैं, वे आदि।
पुरुषवाचक सर्वनाम के निम्नलिखित तीन उपभेद हैं –

  • उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम-वक्ता जिन सर्वनामों का प्रयोग अपने लिए करता है, उन्हें उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।
    उदाहरण – मैं, मेरा, हम, हमें आदि।
  • मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम-वक्ता द्वारा जो सर्वनाम श्रोता (सुनने वाले) के प्रयुक्त किए जाते हैं, उन्हें मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।
    उदाहरण – तू, तेरा, तुम, तुम्हारा, आप, आपका आदि।
  • अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम-लिखने या बोलने वाला जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग पढ़ने या सुनने वाले किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के लिए करता हैं, उन्हें अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।

उदाहरण – वह, वे, यह, ये, उसका, उसे, उन्हें आदि।

(ख) निश्चयवाचक सर्वनाम – जिस सर्वनाम से पास या दूर स्थित वस्तुओं या प्राणियों का बोध हो, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण-

  1. यह बॉल रवि की है।
  2. वे चित्र कमला के हैं।
  3. वह मेरा मित्र है।
  4.  ये समीर के घर हैं।

उपर्युक्त वाक्यों में यह, वे, वह, ये निश्चयवाचक सर्वनाम हैं।

(ग) अनिश्चयवाचक सर्वनाम-जिन सर्वनामों से निश्चित व्यक्ति या वस्तु का बोध ना हों, उन्हें अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण –

  • बाज़ार से कुछ खाने के लिए ले आना।
  • दरवाज़े पर कोई खड़ा है।

(घ) संबंधवाचक सर्वनाम-जो सर्वनाम शब्द किसी अन्य (प्रायः अपने उपवाक्य से पूर्व) उपवाक्य में प्रयुक्त संज्ञा व सर्वनाम से संबंध बताते हैं, उन्हें संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण –

  1. जो जीता वही सिकंदर।
  2. जिसकी लाठी उसकी भैंस।
  3. जैसी करनी वैसी भरनी।
  4. जैसा बोओगे वैसा काटोगे।
  5. जैसी मेहनत वैसा फल।

(ङ) प्रश्नवाचक सर्वनाम-जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग प्रश्न पूछने के लिए जाता है, उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण –

  1. वह कौन खड़ा है ?
  2. यह घर किसका है?
  3. तुम्हारा मित्र कौन है?

(च) निजवाचक सर्वनाम-जो शब्द वाक्य में कर्ता के साथ आकर अपनेपन का बोध कराते हैं, उन्हें निजवाचक सर्वनाम
कहते हैं।
उदाहरण –

  1. शीला स्वयं भोजन बना लेगी।
  2. मैं अपने आप घर जाऊँगा।
  3. यह कार्य मैं खुद कर लूँगा।
  4. मरीज आप ही चलने लगा है।

3. विशेषण – जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, उन्हें विशेषण कहते हैं।
उदाहरण –

(क) धरती गोल है।
(ख) राजेश ईमानदार बालक है।
(ग) यह महँगी पुस्तक है।
(घ) मेरी कक्षा में पचास छात्र हैं।
(ङ) ये फूल खुशबूदार है।
(च) पके आम स्वादिष्ट होते हैं।

विशेष्य-विशेषण जिन संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताते हैं, उस संज्ञा या सर्वनाम को विशेष्य कहते हैं।
उदाहरण – धरती, बालक, पुस्तक, छात्र, फूल, आम आदि उपर्युक्त उदाहरणों में विशेष्य हैं।

प्रविशेषण-विशेषणों की विशेषता बताने वाले विशेषण को प्रविशेषण कहते हैं।
उदाहरण –

(क) वह बहुत चालाक है।
(ख) रमेश अत्यंत शौकीन है।
(ग) राजेश बेहद ईमानदार है।
(घ) इस साल अत्यल्प वर्षा हुई।

मुख्य रूप से विशेषण के चार भेद होते हैं –

(क) गुणवाचक विशेषण
(ख) संख्यावाचक विशेषण
(ग) परिमाणवाचक विशेषण
(घ) संकेतवाचक विशेषण या सार्वनामिक विशेषण

(क) गुणवाचक विशेषण-जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम के गुण-दोष (भाव, रंग, आकार, प्रकार, स्वाद, गंध, देश काल, स्पर्श एवं दशा आदि) का बोध करवाते हैं, उन्हें गुणवाचक विशेषण कहते हैं।
उदाहरण –

  1. भारत के उत्तर में विशाल हिमालय है।
  2. मेज वृत्ताकार है।
  3. राम की माँ स्वादिष्ट खाना बनाती है।
  4. यह किताब बहुत महँगी है।

(ख) संख्यावाचक विशेषण-जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की संख्या-संबंधी विशेषता का बोध कराते हैं, उन्हें संख्यावाचक
विशेषण कहते हैं।
उदाहरण-

  1. मेरी कक्षा में पचास बच्चे हैं।
  2. मैं प्रतिदिन विद्यालय जाता हूँ।
  3. वह मुझसे दुगुना लंबा है।
  4. राम बाज़ार से कुछ केले ले आओ।

संख्यावाचक विशेषण के दो उपभेद हैं –

  1. निश्चित संख्यावाचक विशेषण-संज्ञा या सर्वनाम की निश्चित संख्या का बोध करवाने वाले विशेषण शब्द, निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं।
    उदाहरण – दस दर्जन, चालीस बच्चे, तीसरा छात्र, एक लाख रुपये आदि।
  2. अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण-जिन विशेषण शब्दों द्वारा संज्ञा या सर्वनाम की निश्चित संख्या का पता नहीं चलता है, उन्हें अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं।
    उदाहरण – कुछ फल, अनेक लोग, कई कलमें आदि।

(ग) परिमाणवाचक विशेषण-जिन विशेषण शब्दों से उनके विशेष्य की माप-तौल (मात्रा) का बोध हो, उन्हें परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं।
उदाहरण –

  1. उसके पास थोडे पैसे हैं।
  2. मोहन दस किलो चावल लाया।
  3. माँ ने चार मीटर कपड़ा खरीदा।
  4. चाय में थोड़ी चीनी और डालना।
  5. मज़दूर एक पाव तेल लाया।

परिमाणवाचक विशेषण के दो उपभेद हैं –

  1. निश्चित परिमाणवाचक विशेषण-जिन विशेषण शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम की निश्चित मात्रा का बोध हो, उन्हें निश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं।
    उदाहरण – दस किलो, दो टन, चार मीटर कपड़ा, आधा लीटर दूध आदि।
  2. अनिश्चित परिणामवाचक विशेषण-जिन विशेषण शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम की निश्चित मात्रा का बोध नहीं होता, उन्हें अनिश्चित परिणामवाचक विशेषण कहते हैं।
    उदाहरण – थोड़ी-सी मिठाई, सारा गेहूँ, कुछ पुस्तकें आदि।

(घ) संकेतवाचक विशेषण-जब सर्वनाम शब्द संज्ञा शब्दों से पहले लगकर विशेषण शब्दों का कार्य करते हैं या उसकी ओर संकेत करते हैं, तो उन्हें संकेतवाचक अथवा सार्वनामिक विशेषण कहते हैं।
उदाहरण –

  1. वह पुस्तक विमला की है।
  2. वे विद्यार्थी जा रहे हैं।
  3. कोई लड़का बुला रहा है।
  4. यह पुस्तक मेरी है।
  5. इन्हीं मजदूरों ने यह काम पूरा किया है।

4. क्रिया-जिन शब्दों से किसी कार्य के करने या होने का अथवा किसी वस्तु या व्यक्ति की अवस्था या स्थिति का बोध होता है, उन्हें क्रिया कहते हैं।
उदाहरण –

(क) श्याम लिख रहा है।
(ख) बच्चा सो रहा है।
(ग) राम प्रतिदिन मैदान में खेलता है
(घ) पतंग बहुत ऊँचाई पर उड़ रही है
(ङ) कविता चित्र बनाती है
(च) भौरे फूलों पर गुंजार कर रहे हैं।
(छ) किसान फ़सल की सिंचाई कर चुके थे
(ज) थका हुआ मज़दूर जल्दी सो गया

कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं –
(क) अकर्मक क्रिया
(ख) सकर्मक क्रिया

(क) अकर्मक क्रिया-जिन क्रियाओं में कर्म की अपेक्षा नहीं रहती, वे अकर्मक क्रियाएँ कहलाती हैं।
उदाहरण –

  1. सुनीता गाती है
  2. सूरज कब का निकल चुका है
  3. बच्चा रो रहा है

(ख) सकर्मक क्रिया-जिन क्रियाओं में कर्म की अपेक्षा रहती है, उन्हें सकर्मक क्रियाएँ कहते हैं।
उदाहरण –

  1. रेखा पत्र लिख रही है
  2. माँ कपड़े धो रही है
  3. अतुल गाना गा रहा है

सकर्मक क्रिया के दो उपभेद हैं –

1. एककर्मक क्रिया-जो सकर्मक क्रियाएँ केवल एक कर्म के साथ प्रयुक्त होती हैं, उन्हें एककर्मक क्रिया कहते हैं।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण शब्द व पद में अंतर 1

2. द्विकर्मक क्रिया-जिस वाक्य में क्रिया के साथ दो कर्म प्रयुक्त होते हैं, उन्हें द्विकर्मक क्रिया कहते हैं।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण शब्द व पद में अंतर 2

रचना अथवा बनावट के आधार पर क्रिया के भेद –
(क) सरल क्रिया-रूढ़ अर्थों में वाक्य में प्रयोग की जाने वाली साधारण क्रिया को सरल क्रिया कहते हैं।
उदाहरण –

  1. राम गया
  2. तुम बाज़ार जाओ
  3. मैंने तीन कहानियाँ लिखीं

(ख) संयुक्त क्रिया-जब दो या दो से अधिक क्रिया शब्द मिलकर पूर्ण क्रिया का बोध कराएँ, तो वह क्रिया संयुक्त क्रिया कहलाती है।
उदाहरण –

  1. मैंने कविता पढ़ ली है।
  2. मेहमान चले गए।
  3. बच्चे ने कागज फाड़ दिया।
  4. कनिष्क ने चित्र बना लिया है।

(ग) प्रेरणार्थक क्रिया-जिन क्रियाओं द्वारा कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य को कार्य करने के लिए प्रेरित करे, उन्हें प्रेरणार्थक क्रियाएँ कहते हैं।
उदाहरण –

  1. सोनिया माली से पौधे लगवाती है
  2. उसने रसोइए से खाना बनवाया
  3. माँ ने बच्चों को खाना खिलाया
  4. उसने मज़दूर से काम करवाया

इस क्रिया में दो कर्ता होते हैं।

(घ) नामधातु क्रिया-जो क्रियाएँ संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण शब्दों से बनाई जाती हैं, उन्हें नामधातु क्रियाएँ कहते हैं।
उदाहरण –

  1. मैंने उसे अपना लिया है।
  2. आकाश में तारे टिमटिमा रहे हैं।
  3. बच्चा अजनबी से शरमा रहा है।
  4. उन्होंने इसे लद्दाख में फ़िल्माया है।

(ङ) पूर्वकालिक क्रिया-वाक्य में मुख्य क्रिया से पूर्व प्रयुक्त संपन्न होने वाली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं।
उदाहरण –

  1. राजू पढ़कर सो गया।
  2. शीला खाना खाकर जाएगी।
  3. खिलाड़ी ने उछलकर गेंद पकड़ ली।
  4. मनीश दौड़कर बस में आ गया।

(च) मुख्य क्रिया-जो क्रियाएँ वाक्य में मुख्य कार्य करने का बोध कराती हैं, उन्हें मुख्य क्रिया कहते हैं।

उदाहरण –

  1. बच्चा देर तक सोता रहा।
  2. नौकर से गिलास टूट गया।
  3. बच्चे ने पेज फाड़ दिया।
  4. गायक गीत गाता रहा।
  5. किसान धूप में फ़सल काटने लगा।
  6. इंजेक्शन लगते ही मरीज उठ गया।

5. अव्यय-अव्यय वे शब्द हैं जिन पर विकारक तत्वों अर्थात् लिंग, वचन एवं कारक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
उदाहरण –

  1. रोहन घर के भीतर है।
  2. मैं तेज़ भागता हूँ।
  3. हवा रुक-रुक कर चल रही है।
  4. यह पहलवान बहुत खाता है।
  5. सुमन बेधड़क यहाँ आ गई।
  6.  घोड़ा सरपट भाग रहा था।

अव्यय के पाँच भेद हैं –

(क) क्रियाविशेषण
(ख) संबंधबोधक
(ग) समुच्चयबोधक
(घ) विस्मयादिबोधक
(ङ) निपात

(क) क्रियाविशेषण-जो अव्यय क्रिया की विशेषता का बोध कराते हैं, उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण –

  1. रामू अधिक बोलता है।
  2. मैं वहाँ गया।
  3. तोता कुतरकर फल खाता रहा।

क्रियाविशेषण के चार भेद होते हैं –
(i) रीतिवाचक क्रियाविशेषण-जो शब्द क्रिया के होने की रीति का बोध कराते हैं, उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण –

  1. श्याम धीरे-धीरे खाता है।
  2. वह अवश्य आएगा।
  3. महँगाई निरंतर बढ़ती जा रही है।
  4. पत्थर लुढ़कता हुआ नदी में गिर गया।

(ii) स्थानवाचक क्रियाविशेषण-जो शब्द क्रिया के घटित होने के स्थान का बोध कराते हैं, उन्हें स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण –

  1. भीतर बहुत गरमी है।
  2. बाहर बैठकर पढ़ो।
  3. उधर पानी का बहाव तेज़ है।
  4. सुमन यहीं रहती है।

(iii) कालवाचक क्रियाविशेषण-जो शब्द क्रिया के घटित होने अथवा करने का समय (काल) का बोध कराते हैं, उन्हें कालवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण-

  1. वह दिनभर पढ़ता रहता है।
  2. वह अभी-अभी आया है।
  3. कल से भारी वर्षा हो रही है।
  4. आज कल प्रदूषण कुछ कम हुआ है।

(iv) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण-जो शब्द क्रिया के परिमाण (मात्रा) का बोध कराते हैं, उन्हें परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण –

  1. राहुल बहुत बोलता है।
  2. उसके पास पर्याप्त धन है।
  3. मरीज अभी कम खाता है।
  4. उसने कुछ नहीं खाया।

(ख) संबंधबोधक-संबंधबोधक वे अव्यय या अविकारी शब्द हैं जो संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ आकर उनका संबंध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ बताते हैं।
उदाहरण –

  1. अंकिता डर के मारे काँपने लगी।
  2. विद्या के बिना जीवन व्यर्थ है।
  3. राम घर के भीतर चला गया।
  4. सुमन धारा की ओर मत जाओ।
  5. अब हिंदी के बजाय गणित पढ़ लेते हैं।

(ग) समुच्चयबोधक-जो अव्यय शब्द दो शब्दों, दो वाक्यों को जोड़ने का कार्य करते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक कहते हैं।
उदाहरण –

  1. राम और श्याम पढ़ रहे हैं।
  2. धीरे बोलो ताकि सुनाई न दे।
  3. चाहे यहाँ रहो चाहे वहाँ।
  4. राम आया परंतु देर तक नहीं रुका।
  5. पल्लवी अस्वस्थ है इसलिए नहीं आयी।
  6. बादल घिरे परंतु वर्षा न हुई।

(घ) विस्मयादिबोधक-जो अव्यय आश्चर्य, घृणा, हर्ष, लज्जा, ग्लानि, पीड़ा, दुख आदि मनोभावों का बोध कराते हैं, उन्हें विस्मयादिबोधक कहते हैं।
उदाहरण –

  1. उफ! कितनी गरमी है।
  2. सावधान! आगे सड़क बन रही है।
  3. हे राम! यह क्या हो गया?
  4. अरे! किसने इस पौधे को तोड़ दिया।
  5. छिः ! यहाँ कितनी बदबू है।
  6. अहा! हम मैच जीत गए।

(ङ) निपात-जो अव्यय वाक्य में किसी शब्द के बाद लगकर उसके अर्थ पर विशेष प्रकार का बल देते हैं, उन्हें निपात शब्द कहते हैं।
उदाहरण –

  1. गाड़ी अभी तक नहीं आई।
  2. वह भी मेरे साथ जाएगा।
  3. यह कलम केवल दस रुपये की है।
  4. ऐसा तो मैंने कहा भर था।
  5. सुमन ही ऐसा स्वेटर बुन सकती है।
  6. अध्यापक तो कब के जा चुके हैं।

आओ देखें कितना सीखा

प्रश्नः 1.
शब्द से आप क्या समझते हैं ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
वर्णों के सार्थक एवं व्यवस्थित मेल को शब्द कहते हैं।
उदाहरण – क् + अ + म् + अ + ल् + ए + श् + अ = कमलेश
व् + इ + द् + य् + आ + ल् + अ + य् + अ = विद्यालय

प्रश्नः 2.
पद किसे कहते हैं? पदों के उदाहरण भी लिखिए।
उत्तरः
शब्द स्वतंत्र होते हैं परंतु यही शब्द व्याकरण के नियमों में बाँधकर जब वाक्य में प्रयोग किए जाते हैं तब वे पद बन जाते हैं।
उदाहरण – लड़कों ने कई खेलों में भाग लिया।
यहाँ रेखांकित अंश पद हैं।

प्रश्नः 3.
स्रोत के आधार पर शब्द कितने प्रकार के होते हैं ? उनके नाम लिखिए।
उत्तरः
स्रोत के आधार पर शब्द चार प्रचार के होते हैं। ये हैं –

(क) तत्सम शब्द
(ख) तद्भव शब्द
(ग) देशज शब्द
(घ) विदेशी शब्द

प्रश्न 4.
विदेशज शब्दों से आप क्या समझते हैं?
उत्तरः
वे शब्द जो विदेशी भाषा से हिंदी में आए हैं और बोलचाल तथा लेखन में प्रयोग किए जा रहे हैं, उन्हें विदेशी शब्द कहते हैं।
उदाहरण – बस, टेलीफ़ोन, चाय, चीनी, रोटी, किताब, स्टेशन, स्कूल, पोस्ट ऑफिस, शर्ट, बटन आदि।

प्रश्नः 5.
रचना या बनावट के आधार पर शब्द कितने प्रकार के होते हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तरः
रचना या बनावट के आधार पर शब्द तीन प्रकार के होते हैं। ये हैं
(क) रूढ़ शब्द
(ख) यौगिक शब्द
(ग) योगरूढ़ शब्द

प्रश्नः 6.
यौगिक शब्दों से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तरः
जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दांशों या शब्दों के मेल से बनते हैं, उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं। जैसे –
जंतु + शाला = जंतुशाला
कलम + दान = कलमदान
मुसाफ़िर + खाना = मुसाफ़िरखाना
फल + वाला = फलवाला

प्रश्नः 7.
निपात किसे कहते हैं? कोई तीन निपात लिखकर उनसे वाक्य बनाइए।
उत्तरः
जो अव्यय किसी शब्द के बाद आकर उसके अर्थ पर विशेष बल देते हैं, उन्हें निपात कहते हैं। तीन मुख्य निपात हैं –

तक – मरीज से बोला तक नहीं जाता है।
ही – रमन ने ही यह गमला तोड़ा है।
तो – तुम तो पहले झूठ नहीं बोलते थे।

NCERT Solutions for Class 10 Hindi

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Gandhi Jayanti Essay in Hindi

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गांधी जयंती निबंध

महात्मा गांधी का व्यापारी वर्ग का परिवार था। 24 साल की उम्र में, महात्मा गांधी कानून का पालन करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए और 1915 में वे भारत वापस आ गए। भारत लौटने के बाद, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बन गए। अपनी कड़ी मेहनत के लिए इस समय, वह कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्होंने न केवल भारत की स्वतंत्रता के लिए काम किया है, बल्कि उन्होंने कई तरह की सामाजिक बुराइयों जैसे अस्पृश्यता, जातिवाद, महिला अधीनता, आदि के लिए भी लड़ाई लड़ी है। उन्होंने इतने सारे गरीबों और जरूरतमंदों की मदद भी की।

सत्य के मार्ग का अनुसरण करें और राष्ट्रपिता के संदेश का प्रसार करें

गांधी जयंती का महत्व

बापू का जन्म उस समय हुआ था जब ब्रिटिश भारत में शासन कर रहे थे। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राष्ट्र के प्रति उनके प्रेम, हमारे देश की स्वतंत्रता के लिए सर्वोच्च समर्पण और गरीब लोगों के लिए दयालुता ने उन्हें “राष्ट्रपिता” या “बापू” कहा जाने वाला सम्मान दिया है।

गांधी जयंती को पूरे विश्व में अहिंसा के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, जिसे 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा घोषित किया गया था। इसका उद्देश्य महात्मा गांधी के दर्शन, उनकी अहिंसा और शांति की शिक्षाओं का प्रसार करना है। दुनिया भर में। कुछ स्थानों पर, गांधी के जन्मदिन को दुनिया भर में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के लिए, कुछ थीम के आधार पर शारीरिक गतिविधियों के साथ मनाया जाता है।

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गांधी जयंती कैसे मनाई जाती है?

गांधी जयंती पूरे भारत में स्कूलों और कॉलेजों, सरकारी अधिकारियों आदि के छात्रों और शिक्षकों द्वारा कई अभिनव तरीकों से मनाई जाती है। यह महात्मा गांधी की प्रतिमाओं को पुष्प अर्पित करके राज घाट, नई दिल्ली में मनाया जाता है। सम्मान की पेशकश करते हुए लोग अपने पसंदीदा भक्ति गीत “रघुपति राघव राजा राम” गाते हैं और अन्य पारंपरिक गतिविधियां सरकारी अधिकारियों द्वारा की जाती हैं। राज घाट बापू का दाह संस्कार स्थल है, जिसे माला और फूलों से सजाया गया है। समाधि पर गुलदस्ते और फूल चढ़ाकर इस महान नेता को श्रद्धांजलि दी जाती है। समाधि पर, सुबह में धार्मिक प्रार्थना भी आयोजित की जाती है।

भारत के राष्ट्रीय नेता को श्रद्धांजलि देने के लिए गांधी जयंती पर स्कूल, कॉलेज, सरकारी कार्यालय, डाकघर, बैंक आदि बंद रहते हैं। हम इस दिन को बापू और उनके महान कार्यों को याद करने के लिए मनाते हैं। छात्रों को इस दिन विभिन्न कार्य करने के लिए आवंटित किया जाता है जैसे, कविता या भाषण पाठ, निबंध लेखन, नाटक नाटक, नारा लेखन, समूह चर्चा, आदि महात्मा गांधी के जीवन और कार्यों के आधार पर।

गांधी जयंती भाषण

गांधी जयंती (2 अक्टूबर) – लघु भाषण 1

प्रिय शिक्षकों और छात्रों, आज हम राष्ट्र के पिता मोहनदास करमचंद गांधी को श्रद्धांजलि देने के लिए यहां एकत्रित हुए हैं, जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है। यह भाषण इस व्यक्ति को समर्पित है, जिनके सिद्धांतों और मूल्यों को आज भी विदेशी प्रभुत्व से स्वतंत्रता प्राप्त करने में महत्वपूर्ण माना जाता है।

महात्मा गांधी का जन्मदिन, 2 अक्टूबर, पूरे देश में गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म वर्ष 1869 में गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था।

मेरे प्रिय दर्शकों, हमें गांधीजी के जीवन से बहुत कुछ सीखना है, सत्य और अहिंसा के उनके सिद्धांत हमें ईमानदारी के साथ जीवन जीने के बारे में बहुत कुछ सिखाते हैं। सत्याग्रह की अवधारणा को लाने के लिए भारतीय स्वतंत्रता इतिहास में वह एक जानी-मानी हस्ती हैं, जिसका अर्थ है कि सत्य बल का पालन करना, नागरिक प्रतिरोध का एक विशेष रूप है। वह 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता बने, और फिर सामाजिक कारणों और स्वराज्य या स्वराज प्राप्त करने के लिए विभिन्न राष्ट्रव्यापी अभियानों का नेतृत्व किया।

गांधीजी ने स्वदेशी नीति को शामिल करने के लिए अपने अहिंसक असहयोग का विस्तार किया, जिसका अर्थ है कि ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं का बहिष्कार करना। उन्होंने हर भारतीय द्वारा पहने जाने वाले विदेशी वस्त्रों के बजाय खाकी के इस्तेमाल की भी वकालत की। उन्होंने अपना समय साबरमती आश्रम में, अपनी पत्नी कस्तूरबा के साथ बिताया और उस स्थान को एक संग्रहालय में बदल दिया गया, जो अहमदाबाद में स्थित है।

मार्च 1931 में प्रसिद्ध गांधी – इरविन पैक्ट पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके अनुसार ब्रिटिश सरकार ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के निलंबन के बदले में सभी राजनीतिक कैदियों को मुक्त करने के लिए सहमति व्यक्त की। उन्हें लंदन में गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन यह सम्मेलन उनके और अन्य राष्ट्रवादियों के लिए एक निराशा थी। गांधीजी के आदर्शों के साथ-साथ अन्य स्वतंत्रता सेनानियों से ब्रिटिश शासन के खिलाफ तीव्र प्रतिरोध के साथ-साथ 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिशों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था।

इस भाषण के निष्कर्ष में, मैं केवल यह कहना चाहूंगा कि हम सभी को महात्मा गांधी के जीवन से कुछ सीखना चाहिए, और हमारे राष्ट्र को महान बनाने की कोशिश करनी चाहिए, जैसा कि उनके द्वारा परिकल्पित किया गया है।

गांधी जयंती (2 अक्टूबर) – लघु भाषण 2

सभी छात्रों और शिक्षकों को सुप्रभात यहाँ एकत्र हुए। आज, मैं 2 अक्टूबर के महत्व के बारे में बात करने जा रहा हूँ। यह दिन हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी के जन्म का प्रतीक है। उन्होंने भारत को अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन से मुक्ति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस भूमिका ने उन्हें “राष्ट्रपिता” की उपाधि दी। 2 अक्टूबर को आने वाला उनका जन्मदिन उनकी याद में राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है।

महात्मा गांधी का जन्म 1869 में गुजरात में मोहनदास करमचंद गांधी के रूप में हुआ था। इस दिन को भारत में विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में उनकी याद में गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। उनकी सादगी उस तरह से परिलक्षित होती है जिस तरह से दिन मनाया जाता है। उनकी स्मृति के सम्मान में, उत्सव विनम्र हैं और उन्हें याद करने और सामाजिक गतिविधियों के माध्यम से उनके मूल्यों और शिक्षाओं का सम्मान करने का प्रयास करते हैं। राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और अन्य नेता राज घाट में स्थित अपने स्मारक पर गांधीजी को सम्मान देते हैं। विभिन्न धर्मों की पवित्र पुस्तकों और उनके पसंदीदा भजन “राजूपति राघव” से प्रार्थनाएं विभिन्न समारोहों में गाई जाती हैं।

“अहिंसा” या अहिंसा के अपने सिद्धांत के सम्मान में, संयुक्त राष्ट्र ने 2 अक्टूबर को 15 जून 2007 को अहिंसा के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया है। तब से, हर साल गांधी जयंती को गैर दिवस के रूप में मनाया जाता है। -अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंसा। यह मान्यता उनके सत्य और अहिंसा के विचारों से आती है, जिसने भारत की स्वतंत्रता का नेतृत्व किया और दुनिया भर में उत्पीड़न के खिलाफ अहिंसक विरोध को प्रेरित किया।

वर्ष 2019 की गांधी जयंती विशेष महत्व रखती है। इसमें महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती है। यह वह दिन था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान को एक लक्ष्य के रूप में निर्धारित किया था। जब यह कार्यक्रम शुरू किया गया था, तो इसका उद्देश्य भारत में स्वच्छता, सड़कों और सार्वजनिक स्थानों जैसे विभिन्न पहलुओं के संदर्भ में स्वच्छता हासिल करना था। यह गांधीजी की स्वच्छता के प्रति प्रतिबद्धता को देखते हुए बनाया गया है।

महात्मा गांधी एक विशाल सार्वजनिक व्यक्ति हैं जो इस देश में और दुनिया भर में सभी प्रकार के लोगों से परिचित हैं। एक भाषण उन मूल्यों की स्मृति को सम्मानित करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जिनके लिए वह खड़ा था और जीवन का नेतृत्व किया। हम देश के भविष्य के रूप में उसे सच्चाई, सादगी और अहिंसा के सिद्धांतों द्वारा जीने का सम्मान दे सकते हैं जो उन्होंने भारत को एक समावेशी राष्ट्र बनाने और बनाने के लिए प्रयास किया।

गांधी जयंती उल्लेख। उद्धरण

शक्ति शारीरिक क्षमता से नहीं आती है। एक एक अदम्य इच्छा शक्ति से आता है।

खुशी तब होती है जब आप क्या सोचते हैं, आप क्या कहते हैं, और आप जो करते हैं वह सामंजस्य होता है।

कमज़ोर कभी माफ नहीं कर सकते। क्षमा ताकतवर की विशेषता है।

जहाँ प्यार है, वहाँ जीवन है।

एक विनम्र तरीके से, आप दुनिया को हिला सकते हैं।

पृथ्वी हर आदमी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, लेकिन हर आदमी को लालच नहीं।

मैं अपने गंदे पैरों से किसी को अपने दिमाग से नहीं जाने दूंगा।

भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम वर्तमान में क्या करते हैं।

एक आदमी है, लेकिन उसके विचारों का उत्पाद है; वह जो सोचता है, वह बन जाता है।

आपको मानवता में विश्वास नहीं खोना चाहिए। मानवता एक महासागर है; अगर सागर की कुछ बूंदें गंदी हैं, तो सागर गंदा नहीं हो जाता।

महात्मा गांधी के बारे में

महात्मा गांधी का जन्म एक छोटे से तटीय शहर, पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से सभी महान कार्य किए जो आज भी इस आधुनिक युग में लोगों पर प्रभाव डालते हैं। उन्होंने स्वराज को प्राप्त करने के लिए, समाज से अस्पृश्यता के रीति-रिवाजों को दूर करने, अन्य सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन, महिलाओं के अधिकारों को सशक्त बनाने, किसानों की आर्थिक स्थिति को विकसित करने और कई और अधिक प्रयासों के साथ काम किया है। उन्होंने 1920 में असहयोग आंदोलन, 1930 में दांडी मार्च या नमक सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भारत के लोगों को ब्रिटिश शासन से आजादी दिलाने में मदद करने के लिए तीन आंदोलन चलाए। उनका भारत छोड़ो आंदोलन भारत छोड़ने के लिए ब्रिटिशों का आह्वान था।

सविनय अवज्ञा का सही अर्थ नागरिक कानून में गिरावट है, विशेष रूप से कुछ मांगों के लिए असहमति के रूप में। महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध करने के लिए अहिंसात्मक तरीके के रूप में सविनय अवज्ञा का इस्तेमाल किया। उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान कई कठोर अवज्ञा आंदोलनों की शुरुआत की और ब्रिटिश सरकार के कई कठोर अधिनियमों और नीतियों का विरोध किया। सविनय अवज्ञा एक कारण था जिसकी वजह से भारत की स्वतंत्रता बनी।

1916 में, महात्मा गांधी को भारत के बिहार के चंपारण जिले में हजारों भूमिहीन किसानों और नौकरों के नागरिक सुरक्षा के आयोजन के लिए कैद किया गया था। 1916 के चंपारण सत्याग्रह के माध्यम से, महात्मा गांधी ने किसानों और नौकरों के साथ विध्वंसक बिखराव के दौरान अंग्रेजों द्वारा किसानों पर लगाए गए कर (लगान) का विरोध किया। अपनी दृढ़ निश्चय के साथ, गांधी ने 1930 में ब्रिटिशों को समुद्र में 440 किमी लंबी पैदल यात्रा के साथ झटका दिया। यह मूल रूप से ब्रिटिश नमक एकाधिकार से लड़ने और भारतीयों को ब्रिटिश मजबूर नमक कर की अवहेलना करने के लिए नेतृत्व करने के लिए था। दांडी नमक मार्च इतिहास में रखा गया है, जहां लगभग 60,000 लोगों ने विरोध मार्च के परिणाम को कैद किया है।

हालांकि कहानी और स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष की सीमा बहुत लंबी थी और कई लोगों ने इस प्रक्रिया के दौरान अपने जीवन का बलिदान दिया। आखिरकार, भारत ने अगस्त 1947 में स्वतंत्रता हासिल की। ​​लेकिन स्वतंत्रता के साथ ही भयानक विभाजन भी हुआ। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद भारत और पाकिस्तान की मुक्ति पर विभाजन और धार्मिक हिंसा के बाद, गांधी ने धार्मिक हिंसा को खत्म करने के लिए असंख्य उपवास शुरू किए। नई दिल्ली के बिड़ला हाउस में नाथूराम गोडसे द्वारा गोली चलाने के बाद 30 जनवरी, 1948 (महात्मा गांधी की मृत्यु तिथि) पर बापू की हत्या कर दी गई थी।

गांधी ने अपनी सक्रियता के साथ क्या करने की कोशिश की?

प्रारंभ में, गांधी के अभियानों ने ब्रिटिश शासन के हाथों प्राप्त द्वितीय श्रेणी के दर्जे के भारतीयों का मुकाबला करने की मांग की। आखिरकार, हालांकि, उन्होंने अपना ध्यान पूरी तरह से ब्रिटिश शासन को आगे बढ़ाने के लिए लगाया, एक लक्ष्य जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सीधे वर्षों में प्राप्त किया गया था। यह जीत इस तथ्य से हुई थी कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भारत के भीतर की सांप्रदायिक हिंसा ने दो स्वतंत्र राज्यों-भारत और पाकिस्तान के निर्माण की आवश्यकता के रूप में – एक एकीकृत भारत के विपरीत।

गांधी के धार्मिक विश्वास क्या थे?

गांधी के परिवार ने हिंदू धर्म के भीतर प्रमुख परंपराओं में से एक वैष्णववाद का अभ्यास किया, जो जैन धर्म के नैतिक रूप से कठोर सिद्धांतों के माध्यम से विभक्त किया गया था – एक भारतीय विश्वास जिसके लिए तप और अहिंसा जैसी अवधारणाएं महत्वपूर्ण हैं। जीवन में बाद में गांधी के आध्यात्मिक दृष्टिकोण की विशेषता वाली कई मान्यताएँ उनके पालन-पोषण में उत्पन्न हुईं। हालाँकि, विश्वास की उनकी समझ लगातार विकसित हो रही थी क्योंकि उन्होंने नई विश्वास प्रणालियों का सामना किया। मिसाल के तौर पर, लियो टॉल्स्टॉय के ईसाई धर्मशास्त्र के विश्लेषण, गांधी की आध्यात्मिकता की अवधारणा पर भारी पड़ गए, जैसा कि बाइबल और क़ुर्आन जैसे ग्रंथों में है, और उन्होंने सबसे पहले भागवदगीता को पढ़ा – एक हिंदू महाकाव्य – जो कि ब्रिटेन में रहते हुए अपने अंग्रेजी अनुवाद में था। ।

गांधी की सक्रियता ने किन अन्य सामाजिक आंदोलनों को प्रेरित किया?

भारत के भीतर, गांधी के दर्शन समाजसेवी विनोबा भावे जैसे सुधारकों के संदेशों पर आधारित थे। अब्रॉड, मार्टिन लूथर किंग, जूनियर जैसे कार्यकर्ताओं ने गांधी के अहिंसा के अभ्यास और अपने स्वयं के सामाजिक समानता के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सविनय अवज्ञा से भारी उधार लिया। शायद सबसे प्रभावी, गांधी के आंदोलन ने भारत के लिए जो स्वतंत्रता हासिल की थी, वह एशिया और अफ्रीका में ब्रिटेन के अन्य औपनिवेशिक उद्यमों के लिए मौत की घंटी बजाती थी। गांधीजी के प्रभाव से मौजूदा आंदोलनों को बढ़ावा देने और नए लोगों को प्रज्वलित करने के साथ स्वतंत्रता आंदोलन जंगल की आग की तरह बह गया।

गांधी का व्यक्तिगत जीवन कैसा था?

गाँधी के पिता ब्रिटिश राज की अधीनता में काम करने वाले एक स्थानीय सरकारी अधिकारी थे, और उनकी माँ एक धार्मिक भक्त थीं, जो परिवार के बाकी सदस्यों की तरह – हिंदू धर्म की वैष्णववादी परंपरा में प्रचलित थीं। गांधी ने अपनी पत्नी, कस्तूरबा से विवाह किया, जब वह 13 वर्ष की थी, और एक साथ उनके पांच बच्चे थे। उनका परिवार भारत में रहा, जबकि गांधी कानून का अध्ययन करने के लिए 1888 में लंदन गए और 1893 में इसका अभ्यास करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए। वह 1897 में उन्हें दक्षिण अफ्रीका ले आए, जहाँ कस्तूरबा उनकी सक्रियता में उनकी सहायता करती थीं, जो उन्होंने 1915 में परिवार के भारत वापस चले जाने के बाद करना जारी रखा।

गांधी के समकालीन विचार क्या थे?

गांधी के रूप में एक आंकड़े की सराहना करते हुए, उनके कार्यों और विश्वासों ने उनके समकालीनों की आलोचना से बच नहीं किया। उदारवादी राजनेताओं ने सोचा कि वह बहुत जल्दी बदलाव का प्रस्ताव दे रहा है, जबकि युवा कट्टरपंथी उसे पर्याप्त प्रस्ताव न देने के लिए लताड़ लगाते हैं। मुस्लिम नेताओं ने मुस्लिमों और उनके अपने हिंदू धार्मिक समुदाय और दलितों (पूर्व में अछूत कहे जाने वाले) के साथ व्यवहार करते समय उनमें समरसता की कमी होने का संदेह किया और उन्हें जाति व्यवस्था को खत्म करने के अपने स्पष्ट इरादे के बारे में सोचा। उन्होंने भारत के बाहर भी एक विवादास्पद आंकड़ा काट दिया, हालांकि विभिन्न कारणों से। अंग्रेजी के रूप में भारत के उपनिवेशवादियों ने उनके प्रति कुछ नाराजगी जताई, क्योंकि उन्होंने अपने वैश्विक शाही शासन में पहले डोमिनोज़ में से एक को पछाड़ दिया था। लेकिन गांधी की जो छवि बनी है, वह एक है जो नस्लवाद और उपनिवेशवाद के दमनकारी ताकतों के खिलाफ लड़ाई और अहिंसा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के खिलाफ लड़ती है।

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CBSE Class 10 Hindi B लेखन कौशल अनुच्छेद लेखन

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CBSE Class 10 Hindi B लेखन कौशल अनुच्छेद लेखन

अनुच्छेद लेखन

मानव मन में नाना प्रकार के भाव-विचार आते-जाते रहते हैं। किसी विषय विशेष से संबंधित भावों-विचारों को सीमित शब्दों में लिखते हुए एक अनुच्छेद में लिखना अनुच्छेद लेखन कहलाता है। अनुच्छेद लेखन भी एक कला है। इस तरह के लेखन में अनावश्यक विस्तार से बचते हुए इस तरह लेखन किया जाता है कि कोई आवश्यक तथ्य छूटने न पाए।

अनुच्छेद लेखन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  • अनुच्छेद लेखन में मुख्य विषय से भटकना नहीं चाहिए।
  • व्यर्थ के विस्तार से बचने का प्रयास करना चाहिए।
  • वाक्यों के बीच निकटता और संबद्धता होनी चाहिए।
  • भाषा प्रभावपूर्ण और प्रवाहमयी होनी चाहिए।
  • छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना अच्छा रहता है।
  • भाषा सरल, बोधगम्य और सहज होनी चाहिए।
  • अनुच्छेद लेखन उतने ही शब्दों में करना चाहिए जितने शब्द में लिखने का निर्देश दिया गया हो। उस शब्द-सीमा से 5 या अधिक शब्द होने से फर्क नहीं पड़ता है।
  • अनुच्छेद पढ़ते समय लगे कि इसमें लेखक की अनुभूतियाँ समाई हैं।

नोट- आजकल परीक्षा में अनुच्छेद लेखन के लिए शीर्षक और उससे संबंधित संकेत बिंदु दिए गए होते हैं। इन संकेत बिंदुओं को
ध्यान में रखकर अनुच्छेद लेखन करना चाहिए। इन संकेत बिंदुओं को अनदेखा करके अनुच्छेद-लेखन करना हितकर नहीं होगा। इसस अक कम हान का सभावना बढ़ जाती है।

1. मिट्टी तेरे रूप अनेक

  • सामान्य धारणा
  • मानव शरीर की रचना के लिए आवश्यक
  • जीवन का आधार
  • कल्याणकारी रूप
  • बच्चों के लिए मिट्टी।

प्रायः जब किसी वस्तु को अत्यंत तुच्छ बताना होता है तो लोग कह उठते हैं कि यह तो मिट्टी के भाव मिल जाएगी। लोगों की धारणा मिट्टी के प्रति भले ही ऐसी हो परंतु तनिक-सी गहराई से विचार करने पर यह धारणा गलत साबित हो जाती है। समस्त जीवधारियों यहाँ तक पेड़-पौधों को भी यही मिट्टी शरण देती है। आध्यात्मवादियों का तो यहाँ तक मानना है कि मानव शरीर निर्माण के लिए जिन तत्वों का प्रयोग हुआ है उनमें मिट्टी भी एक है।

जब तक शरीर जिंदा रहता है तब तक मिट्टी उसे शांति और चैन देती है और फिर मृत शरीर को अपनी गोद में समाहित कर लेती है।पृथ्वी पर जीवन का आधार यही मिट्टी है, जिसमें नाना प्रकार के फल, फ़सल और अन्य खाद्य वस्तुएँ पैदा होती हैं, जिसे खाकर मनुष्य एवं अन्य प्राणी जीवित एवं हृष्ट-पुष्ट रहते हैं। यह मिट्टी कीड़े-मकोड़े और छोटे जीवों का घर भी है। यह मिट्टी विविध रूपों में मनुष्य और अन्य जीवों का कल्याण करती है।

विभिन्न देवालयों को नवजीवन से भरकर कल्याणकारी रूप दिखाती है। मिट्टी का बच्चों से तो अटूट संबंध है। इसी मिट्टी में लोटकर, खेल-कूदकर वे बड़े होते हैं और बलिष्ठ बनते हैं। मिट्टी के खिलौनों से खेलकर वे अपना मनोरंजन करते हैं। वास्तव में मिट्टी हमारे लिए विविध रूपों में नाना ढंग से उपयोगी है।

2. आज की आवश्यकता-संयुक्त परिवार

  • एकल परिवार का बढ़ता चलन
  • एकल परिवार और वर्तमान समाज
  • संयुक्त परिवार की आवश्यकता
  • बुजुर्गों की देखभाल
  • एकाकीपन को जगह नहीं।

समय सतत परिवर्तनशील है। इसका उदाहरण है-प्राचीनकाल से चली आ रही संयुक्त परिवार की परिपाटी का टूटना और एकल परिवार का चलन बढ़ते जाना। शहरीकरण, बढ़ती महँगाई, नौकरी की चाहत, उच्च शिक्षा, विदेशों में बसने की प्रवृत्ति के कारण एकल परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके अलावा बढ़ती स्वार्थ वृत्ति भी बराबर की ज़िम्मेदार है। इन एकल परिवारों के कारण आज बच्चों की शिक्षा-दीक्षा, पालन-पोषण, माता-पिता के लिए दुष्कर होता जाता है।

जिस एकल परिवार में पति-पत्नी दोनों ही नौकरी करते हों, वहाँ यह और भी दुष्कर बन जाता है। आज समाज में बढ़ते क्रेच और उनमें पलते बच्चे इसका जीता जागता उदाहरण हैं। प्राचीनकाल में यह काम संयुक्त परिवार में दादा-दादी, चाचा-चाची, ताई-बुआ इतनी सरलता से कर देती थी कि बच्चे कब बड़े हो गए पता ही नहीं चल पाता था। संयुक्त परिवार हर काल में समाज की ज़रूरत थे और रहेंगे।

भारतीय संस्कृति में संयुक्त परिवार और भी महत्त्वपूर्ण हैं। बच्चों और युवा पीढ़ी को रिश्तों का ज्ञान संयुक्त परिवार में ही हो पाता है। यही सामूहिकता की भावना, मिल-जुलकर काम करने की भावना पनपती और फलती-फूलती है। एक-दूसरे के सुख-दुख में काम आने की भावना संयुक्त परिवार में ही पनपती है। संयुक्त परिवार बुजुर्गं सदस्यों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

परिवार के अन्य सदस्य उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं जिससे उन्हें बुढ़ापा कष्टकारी नहीं लगता है। संयुक्त परिवार व्यक्ति को अकेलेपन का शिकार नहीं होने देते हैं। आपसी सुख-दुख बाँटने, हँसी-मजाक करने के साथी संयुक्त परिवार स्वतः उपलब्ध कराते हैं। इससे लोग स्वस्थ, प्रसन्न और हँसमुख रहते हैं।

3. ग्लोबल वार्मिंग-मनुष्यता के लिए खतरा

  • ग्लोबल वार्मिंग क्या है ?
  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण
  • ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव
  • समस्या का समाधान।

गत एक दशक में जिस समस्या ने मनुष्य का ध्यान अपनी ओर खींचा है, वह है-ग्लोबल वार्मिंग। ग्लोबल वार्मिंग का सीधा-सा अर्थ है है-धरती के तापमान में निरंतर वृद्धि। यद्यपि यह समस्या विकसित देशों के कारण बढ़ी है परंतु इसका नुकसान सारी धरती को भुगतना पड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारणों के मूल हैं-मनुष्य की बढ़ती आवश्यकताएँ और उसकी स्वार्थवृत्ति। मनुष्य प्रगति की अंधाधुंध दौड़ में शामिल होकर पर्यावरण को अंधाधुंध क्षति पहुँचा रहा है। कल-कारखानों की स्थापना, नई बस्तियों को बसाने, सड़कों को चौड़ा करने के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की गई है।

इससे पर्यावरण को दोतरफा नुकसान हुआ है तो इन गैसों को अपनाने वाले पेड़-पौधों की कमी से आक्सीजन, वर्षा की मात्रा और हरियाली में कमी आई है। इस कारण वैश्विक तापमान बढ़ता जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण एक ओर धरती की सुरक्षा कवच ओजोन में छेद हुआ है तो दूसरी ओर पर्यावरण असंतुलित हुआ है। असमय वर्षा, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सरदी-गरमी की ऋतुओं में भारी बदलाव आना ग्लोबल वार्मिंग का ही प्रभाव है।

इससे ध्रुवों पर जमी बरफ़ पिघलने का खतरा उत्पन्न हो गया है जिससे एक दिन प्राणियों के विनाश का खतरा होगा, अधिकाधिक पौधे लगाकर उनकी देख-भाल करनी चाहिए तथा प्रकृति से छेड़छाड़ बंद कर देना चाहिए। इसके अलावा जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करना होगा। आइए इसे आज से शुरू कर देते हैं, क्योंकि कल तक तो बड़ी देर हो जाएगी।

4. नर हो न निराश करो मन को

  • आत्मविश्वास और सफलता
  • आशा से संघर्ष में विजय
  • कुछ भी असंभव नहीं
  • महापुरुषों की सफलता का आधार।

मानव जीवन को संग्राम की संज्ञा से विभूषित किया है। इस जीवन संग्राम में उसे कभी सुख मिलता है तो कभी दुख। सुख मन में आशा एवं प्रसन्नता का संचार करते हैं तो दुख उसे निराशा एवं शोक के सागर में डुबो देते हैं। इसी समय व्यक्ति के आत्मविश्वास की परीक्षा होती है। जो व्यक्ति इन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपना विश्वास नहीं खोता है और आशावादी बनकर संघर्ष करता है वही सफलता प्राप्त करता है।

आत्मविश्वास के बिना सफलता की कामना करना दिवास्वप्न देखने के समान है। मनुष्य के मन में यदि आशावादिता नहीं है और वह निराश मन से संघर्ष करता भी है तो उसकी सफलता में संदेह बना रहता है। कहा भी गया है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत। मन में जीत के प्रति हमेशा आशावादी बने रहना जीत का आधार बन जाता है। यदि मन में आशा संघर्ष करने की इच्छा और कर्मठता हो तो मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।

वह विपरीत परिस्थितियों में भी उसी प्रकार विजय प्राप्त करता है जैसा नेपोलियन बोनापार्ट ने। इसी प्रकार निराशा, काम में हमें मन नहीं लगाने देती है और आधे-अधूरे मन से किया गया कार्य कभी सफल नहीं होता है। संसार के महापुरुषों ने आत्मविश्वास, दृढनिश्चय, संघर्षशीलता के बल पर आशावादी बनकर सफलता प्राप्त की। अब्राहम लिंकन हों या एडिसन, महात्मा गांधी हों या सरदार पटेल सभी ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आशावान रहे और अपना-अपना लक्ष्य पाने में सफल रहे।

सैनिकों के मन में यदि एक पल के लिए भी निराशा का भाव आ जाए तो देश को गुलाम बनने में देर न लगेगी। मनुष्य को सफलता पाने के लिए सदैव आशावादी बने रहना चाहिए।

5. सबको भाए मधुर वाणी

  • मधुर वाणी सबको प्रिय
  • मधुर वाणी एक औषधि
  • मधुरवाणी का प्रभाव
  • मधुर वाणी की प्रासंगिकता।

मधुर वाणी की महत्ता प्रकट करने वाला एक दोहा है-

कोयल काको दुख हरे, कागा काको देय।
मीठे वचन सुनाए के, जग अपनो करि लेय।

यूँ तो कोयल और कौआ दोनों ही देखने में एक-से होते हैं परंतु वाणी के कारण दोनों में ज़मीन आसमान का अंतर हो जाता है। दोनों पक्षी किसी को न कुछ देते हैं और न कुछ लेते हैं परंतु कोयल मधुर वाणी से जग को अपना बना लेती है और कौआ अपनी कर्कश वाणी के कारण भगाया जाता है। कोयल की मधुर वाणी कर्ण प्रिय लगती है और उसे सब सुनने को इच्छुक रहते हैं। यही स्थिति समाज की है।

समाज में वे लोग सभी के प्रिय बन जाते हैं जो मधुर बोलते हैं जबकि कटु बोलने वालों से सभी बचकर रहना चाहते हैं। मधुर वाणी औषधि के समान होती है जो सुनने वालों के तन और मन को शीतलकर देती है। इससे लोगों को सुखानुभूति होती है। इसके विपरीत कटुवाणी उस तीखे तीर की भाँति होती है जो कानों के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करती है और पूरे शरीर को कष्ट पहुँचाती है।

कड़वी बोली जहाँ लोगों को ज़ख्म देती है वहीं मधुर वाणी वर्षों से हुए मन के घाव को भर देती है। मधुर वाणी किसी वरदान के समान होती है जो सुनने वाले को मित्र बना देती है। मधुर वाणी सुनकर शत्रु भी अपनी शत्रुता खो बैठते हैं। इसके अलावा जो मधुर वाणी बोलते हैं उन्हें खुद को संतुष्टि और सुख की अनुभूति होती है। इससे व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावी एवं आकर्षक बन जाता है। इससे व्यक्ति के बिगड़े काम तक बन जाते हैं।

कोई भी काल रहा हो मधुर वाणी का अपना विशेष महत्त्व रहा है। इस भागमभाग की जिंदगी में जब व्यक्ति कार्य के बोझ, दिखावा और भौतिक सुखों को एकत्रकर पाने की होड़ में तनावग्रस्त होता जा रहा है तब मधुर वाणी का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। हमें सदैव मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए।

6. बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भूमिका

  • शिक्षा और माता-पिता
  • शिक्षा की महत्ता
  • उत्तरदायित्व
  • शिक्षाविहीन नर पशु समान।

संस्कृत में एक श्लोक है-

माता शत्रु पिता वैरी, येन न बालो पाठिता।
न शोभते सभा मध्ये हंस मध्ये वको यथा।।

अर्थात वे माता-पिता बच्चे के लिए शत्र के समान होते हैं जो अपने बच्चों को शिक्षा नहीं देते। ये बच्चे शिक्षितों की सभा में उसी तरह होते हैं जैसे हंसों के बीच बगुला। एक बच्चे के लिए परिवार प्रथम पाठशाला होती है और माता-पिता उसके प्रथम शिक्षक। माता-पिता यहाँ अभी अपनी भूमिका का उचित निर्वाह तो करते हैं पर जब बच्चा विद्यालय जाने लायक होता है तब कुछ माता पिता उनके शिक्षा-दीक्षा पर ध्यान नहीं देते हैं और अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं। ऐसे में बालक जीवन भर के लिए निरक्षर की विशेष महत्ता एवं उपयोगिता है।

शिक्षा के बिना जीवन अंधकारमय हो जाता है। कभी वह साहकारों के चंगल में फँसता है तो कभी लोभी दकानदारों के। उसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर होता है। वह समाचार पत्र. पत्रिकाओं, पुस्तकों आदि का लाभ नहीं उठा पाता है। उसे कदम-कदम पर कठिनाइयों का सामना करना पडता है ऐसे में माता-पिता का उत्तरदायित्व है कि वे अपने बच्चों के पालन-पोषण के साथ ही उनकी शिक्षा की भली प्रकार व्यवस्था करें। कहा गया है कि विद्याविहीन नर की स्थिति पशुओं जैसी होती है, बस वह घास नहीं खाता है। शिक्षा से ही मानव सभ्य इनसान बनता है। हमें भूलकर भी शिक्षा से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए।

7. जीवन में सरसता लाते त्योहार

  • त्योहारों का देश भारत
  • नीरसता भगाते त्योहार
  • त्योहारों के लाभ
  • त्योहारों पर महँगाई का असर।

भारतवासी त्योहार प्रिय होते हैं। यहाँ त्योहार ऋतुओं और भारतीय महीनों के आधार पर मनाए जाते हैं। साल के बारह महीनों में शायद ही कोई ऐसा महीना हो जब त्योहार न मनाया जाता हो। चैत महीने में राम नवमी मनाने से त्योहारों का जो सिलसिला शुरू होता है, वह बैसाखी, गंगा दशहरा मनाने के क्रम में नाग पंचमी, तीज, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, दशहरा, दीपावली, क्रिसमस, लोहिड़ी से आगे बढ़कर वसंत पंचमी तथा होली पर ही आकर रुकती है। इसी बीच पोंगल, ईद जैसे त्योहार भी अपने स हैं।

त्योहार थके हारे मनुष्य के मन में उत्साह का संचार करते हैं और खुशी एवं उल्लास से भर देते हैं। वे लोगों को बँधी-बँधाई जिंदगी को अलग ही ढर्रे पर ले जाते हैं। इससे जीवन की ऊब एवं नीरसता गायब हो जाती है। त्योहार मनुष्य को मेल-मिलाप का अवसर देते हैं। इससे लोगों के बीच की कटुता दूर होती है। त्योहार लोगों में सहयोग और मिल-जुलकर कर रहने की प्रेरणा देते हैं। एकता बढ़ाने में त्योहारों का विशेष महत्त्व है।

वर्तमान समय में त्योहार अपना स्वरूप खोते जा रहे हैं। इनको महँगाई ने बुरी तरह से प्रभावित किया है। इसके अलावा त्योहारों पर बाज़ार का असर पड़ा है। अब प्रायः बाज़ार में बिकने वाले सामानों की मदद से त्योहारों को जैसे-तैसे मना लिया जाता है। इसका कारण लोगों की व्यस्तता और समय की कमी है। त्योहार हमारी संस्कृति के अंग हैं। हमें त्योहारों को मिल-जुलकर हर्षोल्लास से मनाना चाहिए।

8. जीना मुश्किल करती महँगाई
अथवा
दिनोंदिन बढ़ती महँगाई

  • महँगाई और आम आदमी पर प्रभाव
  • कारण
  • महँगाई रोकने के उपाय
  • सरकार के कर्तव्य।

महँगाई उस समस्या का नाम है, जो कभी थमने का नाम नहीं लेती है। मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के साथ ही गरीब वर्ग को जिस समस्या ने सबसे ज्यादा त्रस्त किया है वह महँगाई ही है। समय बीतने के साथ ही वस्तुओं का मूल्य निरंतर बढ़ते जाना महँगाई कहलाता है। इसके कारण वस्तुएँ आम आदमी की क्रयशक्ति से बाहर होती जाती हैं और ऐसा व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताएँ तक पूरा नहीं कर पाता है।

ऐसी स्थिति में कई बार व्यक्ति को भूखे पेट सोना पड़ता है।महँगाई के कारणों को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि इसे बढ़ाने में मानवीय और प्राकृतिक दोनों ही कारण जिम्मेदार हैं। मानवीय कारणों में लोगों की स्वार्थवृत्ति, लालच अधिकाधिक लाभ कमाने की प्रवृत्ति, जमाखोरी और असंतोष की भावना है। इसके अलावा त्याग जैसे मानवीय मूल्यों की कमी भी इसे बढ़ाने में आग में घी का काम करती है।

सूखा, बाढ़ असमय वर्षा, आँधी, तूफ़ान, ओलावृष्टि के कारण जब फ़सलें खराब होती हैं तो उसका असर उत्पादन पर पड़ता है। इससे एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति पैदा होती है और महँगाई बढ़ती है।महँगाई रोकने के लिए लोगों में मानवीय मूल्यों का उदय होना आवश्यक है ताकि वे अपनी आवश्यकतानुसार ही वस्तुएँ खरीदें। इसे रोकने के लिए जनसंख्या वृद्धि पर लगाम लगाना आवश्यक है।

महँगाई रोकने के लिए सरकारी प्रयास भी अत्यावश्यक है। सरकार को चाहिए कि वह आयात-निर्यात नीति की समीक्षा करे तथा जमाखोरों पर कड़ी कार्यवाही करें और आवश्यक वस्तुओं का वितरण रियायती मूल्य पर सरकारी दुकानों के माध्यम से करें।

9. समाचार-पत्र एक : लाभ अनेक
अथवा
समाचार-पत्र : ज्ञान और मनोरंजन का साधन

  • जिज्ञासा पूर्ति का सस्ता एवं सुलभ साधन
  • रोज़गार का साधन
  • समाचार पत्रों के प्रकार
  • जानकारी के साधन ।

मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अपने समाज और आसपास के अलावा देश-दुनिया की जानकारी के लिए जिज्ञासु रहता है। उसकी इस जिज्ञासा की पूर्ति का सर्वोत्तम साधन है-समाचार-पत्र, जिसमें देश-विदेश तक के समाचार आवश्यक चित्रों के साथ छपे होते हैं। सुबह हुई नहीं कि शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में समाचार पत्र विक्रेता घर-घर तक इनको पहुँचाने में जुट जाते हैं। कुछ लोग तो सोए होते हैं और समाचार-पत्र दरवाजे पर आ चुका होता है।

अब समाचार पत्र अत्यंत सस्ता और सर्वसुलभ बन गया है। समाचार पत्रों के कारण लाखों लोगों को रोजगार मिला है। इनकी छपाई, ढुलाई, लादने-उतारने में लाखों लगे रहते हैं तो एजेंट, हॉकर और दुकानदार भी इनसे अपनी जीविका चला रहे हैं। इतना ही नहीं पुराने समाचार पत्रों से लिफ़ाफ़े बनाकर एक वर्ग अपनी आजीविका चलाता है। छपने की अवधि पर समाचार पत्र कई प्रकार के होते हैं।

प्रतिदिन छपने वाले समाचार पत्रों को दैनिक, सप्ताह में एक बार छपने वाले समाचार पत्रों को साप्ताहिक, पंद्रह दिन में छपने वाले समाचार पत्र को पाक्षिक तथा माह में एक बार छपने वाले को मासिक समाचार पत्र कहते हैं। अब तो कुछ शहरों में शाम को भी समाचार पत्र छापे जाने लगे हैं। समाचार पत्र हमें देश-दुनिया के समाचारों, खेल की जानकारी मौसम तथा बाज़ार संबंधी जानकारियों के अलावा इसमें छपे विज्ञापन भी भाँति-भाँति की जानकारी देते हैं।

10. सबसे प्यारा देश हमारा
अथवा
विश्व की शान-भारत

  • भौगोलिक स्थिति
  • प्राकृतिक सौंदर्य
  • विविधता में एकता की भावना
  • अत्यंत प्राचीन संस्कृति।

सौभाग्य से दुनिया के जिस भू-भाग पर मुझे जन्म लेने का अवसर मिला दुनिया उसे भारत के नाम से जानती है। हमारा देश एशिया महाद्वीप के दक्षिणी छोर पर स्थित है। यह देश तीन ओर समुद्र से घिरा है। इसके उत्तर में पर्वतराज हिमालय हैं, जिसके चरण सागर पखारता है। इसके पश्चिम में अरब सागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी है। चीन, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका आदि इसके पड़ोसी देश हैं।

हमारे देश का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम है। हिमालय की बरफ़ से ढंकी सफ़ेद चोटियाँ भारत के सिर पर रखे मुकुट में जड़े हीरे-सी प्रतीत होती हैं।यहाँ बहने वाली गंगा-यमुना, घाघरा, ब्रह्मपुत्र आदि नदियाँ इसके सीने पर धवल हार जैसी लगती हैं। चारों ओर लहराती हरी-भरी फ़सलें और वृक्ष इसका परिधान प्रतीत होते हैं। यहाँ के जंगलों में हरियाली का साम्राज्य है। भारत में नाना प्रकार की विविधता दृष्टिगोचर होती है।

यहाँ विभिन्न जाति-धर्म के अनेक भाषा-भाषी रहते है। यहाँ के परिधान, त्योहार मनाने अनुच्छेद लेखन के ढंग और खान-पान व रहन-सहन में खूब विविधता मिलती है।यहाँ की जलवायु में भी विविधता का बोलबाला है, फिर भी इस विविधता के मूल में एकता छिपी है। देश पर कोई संकट आते ही सभी भारतीय एकजुट हो जाते हैं। हमारे देश की संस्कृति अत्यंत प्राचीन और समृद्धिशाली है।

परस्पर एकता, प्रेम, सहयोग और सहभाव से रहना भारतीयों की विशेषता रही है। ‘अतिथि देवो भवः’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना भारतीय संस्कृति का आधार है। हमारा देश भारत विश्व की शान है जो अपनी अलग पहचान रखता है। हमें अपने देश पर गर्व है।

11. सुरक्षा का आवरण : ओजोन
अथवा
पृथ्वी का रक्षक : अदृश्य ओजोन

  • ओजोन परत क्या है?
  • मनुष्य की प्रगति और ओजोन परत
  • ओजोन नष्ट होने का कारण
  • ओजोन बचाएँ जीवन बचाएँ।

मनुष्य और प्रकृति का अनादिकाल से रिश्ता है। प्रकृति ने मनुष्य की सुरक्षा के लिए अनेक साधन प्रदान किए हैं। इनमें से एक है-ओजोन की परत। पृथ्वी पर जीवन के लिए जो भी अनुकूल परिस्थितियाँ हैं, उन्हें बनाए और बचाएँ रखने में ओजोन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। पृथ्वी पर चारों ओर वायुमंडल का उसी तरह रक्षा करता है जिस तरह बरसात से हमें छाते बचाते हैं। इसे पृथ्वी का रक्षा कवच भी कहा जाता है।

मनुष्य ज्यों-ज्यों सभ्य होता गया त्यों-त्यों उसकी आवश्यकताएँ बढ़ती गईं। बढ़ती जनसंख्या की भोजन  और आवास संबंधी आवश्यकता के लिए उसने वनों की अंधाधुंध कटाई की जिससे धरती पर कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ी। कुछ और विषाक्त गैसों से मिलकर कार्बन डाईऑक्साइड ने इस परत में छेद कर दिया जिससे सूर्य की पराबैगनी किरणें धरती पर आने लगीं और त्वचा के कैंसर के साथ अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ गया।

इन पराबैगनी किरणों को धरती पर आने से ओजोन की परत रोकती है। ओजोन की परत नष्ट करने में विभिन्न प्रशीतक यंत्रों में प्रयोग की जाने वाली क्लोरो प्लोरो कार्बन का भी हाथ है। यदि पृथ्वी पर जीवन बनाए रखना है तो हमें ओजोन परत को बचाना होगा। इसके लिए धरती पर अधिकाधिक पेड़ लगाना होगा तथा कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन कम करना होगा।

12. भ्रष्टाचार का दानव
अथवा
भ्रष्टाचार से देश को मुक्त बनाएँ

  • भ्रष्टाचार क्या है?
  • देश के लिए घातक
  • भ्रष्टाचार का दुष्प्रभाव
  • लोगों की भूमिका।

भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना है, जिसका अर्थ है-नैतिक एवं मर्यादापूर्ण आचारण से हटकर आचरण करना। इस तरह का आचरण जब सत्ता में बैठे लोगों या कार्यालयों के अधिकारियों द्वारा किया जाता है तब जन साधारण के लिए समस्या उत्पन्न हो जाती है। पक्षपात करना, भाई-भतीजावाद को प्रश्रय देना, रिश्वत माँगना, समय पर काम न करना, काम करने के बदले अनुचित माँग रख देना, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।

भ्रष्टाचार समाज और देश के लिए घातक है। दुर्भाग्य से आज हमारे समाज में इसकी जड़ें इतनी गहराई से जम चुकी हैं कि इसे उखाड़ फेंकना आसान नहीं रह गया है। भ्रष्टाचार के कारण देश की मान मर्यादा कलंकित होती है। इसे किसी देश के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। भ्रष्टाचार के कारण ही आज रिश्वतखोरी, मुनाफाखोरी, चोरबाज़ारी, मिलावट, भाई-भतीजावाद, कमीशनखोरी आदि अपने चरम पर हैं।

इससे समाज में विषमता बढ़ रही है। लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है और विकास का मार्ग अवरुद्ध होता जा रहा है। इसके कारण सरकारी व्यवस्था एवं प्रशासन पंगु बन कर रह गए हैं। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए लोगों में मानवीय मूल्यों को प्रगाढ़ करना चाहिए। इसके लिए नैतिक शिक्षा की विशेष आवश्यकता है। लोगों को अपने आप में त्याग एवं संतोष की भावना मज़बूत करनी होगी। यद्यपि सरकारी प्रयास भी इसे रोकने में कारगर सिद्ध होते हैं पर लोगों द्वारा अपनी आदतों में सुधार और लालच पर नियंत्रण करने से यह समस्या स्वतः कम हो जाएगी।

13. भारतीय नारी की दोहरी भूमिका
अथवा
कामकाजी स्त्रियों की चुनौतियाँ

  • प्राचीनकाल में नारी की स्थिति
  • वर्तमान में नौकरी की आवश्यकता
  • दोहरी भूमिका और चुनौतियाँ
  • सुरक्षा और सोच में बदलाव की आवश्यकता।

परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह परिवर्तन समय के साथ स्वतः होता रहता है। मनुष्य भी इस बदलाव से अछूता नहीं है। प्राचीन काल में मनुष्य ने न इतना विकास किया था और न वह इतना सभ्य हो पाया था। तब उसकी आवश्यकताएँ सीमित थीं। ऐसे में पुरुष की कमाई से घर चल जाता था और नारी की भूमिका घर तक सीमित थी। उसे बाहर जाकर काम करने की आवश्यकता न थी।

वर्तमान समय में मनुष्य की आवश्यकता इतनी बढ़ी हुई है कि इसे पूरा करने के लिए पुरुष की कमाई अपर्याप्त सिद्ध हो रही है और नारी को नौकरी के लिए घर से बाहर कदम बढ़ाना पड़ा।आज की नारी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लगभग हर क्षेत्र में काम करती दिखाई देती हैं। आज की नारी दोहरी भूमिका का निर्वाह कर रही है।

घर में उसे खाना पकाने, घर की सफ़ाई, बच्चों की देखभाल और उनकी शिक्षा का दायित्व है तो वह कार्यालयों के अलावा खेल, राजनीति साहित्य और कला आदि क्षेत्रों में उतनी ही कुशलता और तत्परता से कार्य कर रही है। वह दोनों जगह की ज़िम्मेदारियों की चुनौतियों को सहर्ष स्वीकारती हुई आगे बढ़ रही है और दोहरी भूमिका का निर्वहन कर रही है।

वर्तमान में नारी द्वारा घर से बाहर आकर काम करने पर सुरक्षा की आवश्यकता महसूस होने लगी है। कुछ लोगों की सोच ऐसी बन गई है कि वे ऐसी स्त्रियों को संदेह की दृष्टि से देखते हैं। ऐसी स्त्रियों को प्रायः कार्यालय में पुरुष सहकर्मियों तथा आते-जाते कुछ लोगों की कुदृष्टि का सामना करना पड़ता है। इसके लिए समाज को अपनी सोच में बदलाव लाने की आवश्यकता है।

14. बढ़ती जनसंख्या : प्रगति में बाधक
अथवा
समस्याओं की जड़ : बढ़ती जनसंख्या

  • जनसंख्या वृद्धि बनी समस्या
  • संसाधनों पर असर
  • वृद्धि के कारण
  • जनसंख्या रोकने के उपाय।

किसी राष्ट्र की प्रगति के लिए जनसंख्या एक महत्त्वपूर्ण संसाधन होती है, पर जब यह एक सीमा से अधिक हो जाती है तब यह समस्या का रूप ले लेती है। जनसंख्या वृद्धि एक ओर स्वयं समस्या है तो दूसरी ओर यह अनेक समस्याओं की जननी भी है। यह परिवार, समाज और राष्ट्र की प्रगति पर बुरा असर डालती है।

जनसंख्या वृद्धि के साथ देश के विकास की स्थिति ‘ढाक के तीन पात वाली’ बनकर रह जाती है। प्रकृति ने लोगों के लिए भूमि वन आदि जो संसाधन प्रदान किए हैं, जनाधिक्य के कारण वे कम पड़ने लगते हैं तब मनुष्य प्रकृति के साथ खिलवाड़ शुरू कर देता है। वह अपनी बढ़ी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों का विनाश करता है।

इससे प्राकृतिक असंतुलन का खतरा पैदा होता है जिससे नाना प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। जनसंख्या वृद्धि के लिए हम भारतीयों की सोच काफ़ी हद तक जिम्मेदार है। यहाँ की पुरुष प्रधान सोच के कारण घर में पुत्र जन्म आवश्यक माना जाता है। भले ही एक पुत्र की चाहत में छह, सात लड़कियाँ क्यों न पैदा हो जाएँ पर पुत्र के बिना न तो लोग अपना जन्म सार्थक मानते हैं और न उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती दिखती है।

इसके अलावा अशिक्षा. गरीबी और मनोरंजन के साधनों का अभाव भी जनसंख्या वृद्धि में योगदान देता है। जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए लोगों का इसके दुष्परिणामों से अवगत कराकर जन जागरूकता फैलाई जानी चाहिए। सरकार द्वारा परिवार नियोजन के साधनों का मुफ़्त वितरण किया जाना चाहिए तथा ‘जनसंख्या वृद्धि’ को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए।

15. मोबाइल फ़ोन : सुखद व दुखद भी
अथवा
विज्ञान की अद्भुत खोज : मोबाइल फ़ोन

  • विज्ञान की अद्भुत खोज
  • फ़ोनों की बदलती दुनिया में
  • संचार क्षेत्र में क्रांति
  • स्ता और सुलभ साधन
  • लाभ और हानियाँ।

विज्ञान ने मानव जीवन को विविध रूपों में प्रभावित किया है। शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जहाँ विज्ञान ने हस्तक्षेप न किया हो। समय-समय पर हुए आश्चर्यजनक आविष्कारों ने मानव जीवन को बदलकर रख दिया है। विज्ञान की इन्हीं अद्भुत खोजों में एक है मोबाइल फ़ोन जिससे मनुष्य इतना प्रभावित हुआ कि आप हर किशोर ही नहीं हर आयु वर्ग के लोग इसका प्रयोग करते देखे जा सकते हैं।

वास्तव में मोबाइल फ़ोन इतना उपयोगी और सुविधापूर्ण साधन है कि हर व्यक्ति इसे अपने पास रखना चाहता है और इसका विभिन्न रूपों में प्रयोग भी कर रहा है। संचार की दुनिया में फ़ोन का आविष्कार एक क्रांति थी। तारों के माध्यम से जुड़े फ़ोन पर अपने प्रियजनों से बातें करना एक रोमांचक अनभव था। शरू में फ़ोन महँगे और कई उपकर लाना-ले-जाना संभव न था।

हमें बातें करने के लिए इनके पास जाना पड़ता था पर मोबाइल फ़ोन जेब में रखकर कहीं भी लाया-ले जाया जा सकता है। अब यह सर्वसुलभ भी बन गया है। वास्तव में मोबाइल फ़ोन का आविष्कार संचार के क्षेत्र में क्रांति से कम नहीं है। आज मोबाइल फ़ोन पर बातें करने के अलावा फ़ोटो खींचना, गणनाएँ करना, फाइलें सुरक्षित रखना जैसे बहुत से काम किए जा रहे हैं क्योंकि यह जेब का कंप्यूटर बन गया है।

कुछ लोग इसका दुरुपयोग करने से नहीं चूकते हैं। असमय फ़ोन करके दूसरों को परेशान करना, अवांछित फ़ोटो खींचना जैसे कार्य करके इसका दुरुपयोग करते हैं। इसके कारण छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा है। इसका आवश्यकतानुरूप ही प्रयोग करना चाहिए।

16. सादा जीवन उच्च विचार
अथवा
मर्यादित जीवन का आधार : सादा जीवन उच्च विचार

  • भारतीय संस्कृति और सादा जीवन उच्च विचार
  • महत्ता
  • महापुरुषों ने अपना सादा जीवन उच्च विचार
  • वर्तमान स्थिति।

भारतीय संस्कृति को समृद्धशाली और लोकप्रिय बनाने में जिन तत्त्वों का योगदान है उनमें एक है-सादा जीवन उच्च विचार। सादा जीवन उच्च विचार रहन-सहन की एक शैली है जिससे भारतीय ही नहीं विदेशी तक प्रभावित हुए हैं। प्राचीनकाल में हमारे देश के ऋषि मुनि भी इसी जीवन शैली को अपनाते थे। भारतीयों को प्राचीनकाल से ही सरल और सादगीपूर्ण जीवन पसंद रहा है।

इनके आचरण में त्याग, दया, सहानुभूति, करुणा, स्नेह उदारता, परोपकार की भावना आदि गुण विद्यमान हैं। मनुष्य के सादगीपूर्ण जीवन के लिए इन गुणों की प्रगाढ़ता आवश्यक है। भारतीयों का जीवन किसी तप से कम नहीं रहा है क्योंकि उनके विचारों में महानता और जीवन में सादगी रही है। प्राचीनकाल से ही यह नियम बना दिया गया था कि जीवन के आरंभिक 25 वर्ष को ब्रहमचर्य जीवन के रूप में बिताया जाय।

इस काल में बालक गुरुकुलों में रहकर सादगी और नियम का पाठ सीख जाता था। इनका जीवन ऐशो-आराम और विलासिता से कोसों दूर हुआ करता था। यही बाद में भारतीयों के जीवन का आधार बन जाता था। महात्मा गांधी, सरदार पटेल आदि का जीवन सादगी का दूसरा नाम था। वे एक धोती में जिस सादगी से रहते थे वह दूसरों के लिए आदर्श बन गया। वे दूसरों के लिए अनुकरणीय बन गए।

अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन भी सादगीपूर्ण जीवन बिताते थे। दुर्भाग्य से आज लोगों की सोच में बदलाव आ गया है। अब सादा जीवन जीने वालों को गरीबी और पिछड़ेपन का प्रतीक माना जाने लगा है। अब लोगों की पहचान उनके कपड़ों । लोग उपभोग को ही सुख मान बैठे हैं। सुख एकत्र करने की चाहत में अब जीवन तनावपूर्ण बनता जा रहा है।

17. सांप्रदायिकता का फैलता जहर
अथवा
मानवता के लिए घातक : सांप्रदायिकता का जहर

  • सांप्रदायिकता-अर्थ एवं कारण
  • सांप्रदायिकता का जहर
  • सांप्रदायिकता की रोकथाम
  • हमारी भूमिका।

धर्म के बिगड़े एवं कट्टर रूप को सांप्रदायिकता की संज्ञा दी जा सकती है। ‘धारयति इति धर्मः’ अर्थात् जिसे धारण किया जाए वही धर्म है। मनुष्य अपने आचरण और जीवन को मर्यादित रखने के लिए धर्म का सहारा लिया करता था। बाद में धर्म ने एक जीवन पद्धति का रूप ले लिया। धर्म का यह रूप मनुष्य और समाज के लिए कल्याणकारी माना जाता था।

धीरे-धीरे लोगों की सोच में बदलाव आया और धर्म का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए करना शुरू कर दिया। यहीं से धर्म में विकृति आई। लोगों में अपने धर्म के प्रति कट्टरता आने लगी और सांप्रदायिकता अपना रंग दिखाने लगी। सांप्रदायिकता के वशीभूत होकर मनुष्य वाणी और कर्म से दूसरे धर्मावलंबियों की भावनाएँ भड़काता है जो व्यक्ति समाज और राष्ट्र सभी के लिए हानिकारक होती है।

दुर्भाग्य से यह कार्य आज समाज के तथा कथित ठेकेदार और समाज सुधारक कहलाने वाले नेता खुले आम कर रहे हैं जिससे लोगों का आपसी विश्वास घट रहा है। इसके अलावा धार्मिक सद्भाव, सहिष्णुता, भाई-चारा, आपसी सौहार्द्र नष्ट हो रहा है तथा घृणा की भावना प्रगाढ़ हो रही है। सांप्रदायिकता की रोक थाम के लिए धार्मिक भावनाओं को भड़काना बंद किया जाना चाहिए।

ऐसा करने वालों को कठोर दंड देना चाहिए। हमारे नेताओं को चाहिए कि वे वोट की राजनीति बंद करें और लोगों को जाति-धर्म के आधार पर न बाँटें। इस स्थिति में हमारा कर्तव्य यह होना चाहिए कि हम किसी के बहकावे में न आएँ और सद्भाव बनाए रखते हुए दूसरों की भावनाएँ और उनके धर्मों का भी आदर करें।

18. सुविधाओं का भंडार : कंप्यूटर
अथवा
कंप्यूटर : आज की आवश्यकता

  • विज्ञान की अद्भुत खोज
  • बढ़ता प्रयोग
  • ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार
  • अधिक प्रयोग हानिकारक।

विज्ञान ने मनुष्य को जो अद्भुत उपकरण प्रदान किए हैं उनमें प्रमुख है-कंप्यूटर। कंप्यूटर ऐसा चमत्कारी उपकरण है जो हमारी कल्पना को साकार रूप दे रहा है। जिन बातों की कल्पना कभी मनुष्य किया करता था, उन्हें कंप्यूटर पूरा कर रहा है। यह बहूपयोगी  उपकरण है जिससे मनुष्य की अनेकानेक समस्याएँ हल हुई हैं। कंप्यूटर में लगा उच्च तकनीकि वाला मस्तिष्क मनुष्य की सोच से  भी अधिक तेजी से कार्य करता है जिससे मनुष्य का समय और भ्रम दोनों ही बचने लगा है।

आज कंप्यूटर का प्रयोग हर छोटे-बड़े सरकारी और गैर सरकारी कार्यालयों में किया जाने लगा है। इसका प्रयोग इतनी जगह पर किया जा रहा है कि इसे शब्दों में बाँधना कठिन है। पुस्तक प्रकाशन, बैंकों में खाते का रख-रखाव, फाइलों की सुरक्षा, रेल और वायुयान के टिकटों का आरक्षण, रोगियों के आपरेशन, बीमारियों की खोज, विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण आदि में इसका प्रयोग अत्यावश्यक हो गया है।

अब तो छात्र अपनी पढ़ाई और लोग अपने व्यक्तिगत प्रयोग के लिए इसका प्रयोग आवश्यक मानने लगे हैं। कंप्यूटर पर अब पीडीएफ (PDF) फ़ॉर्म में पुस्तकें अपलोड कर दी जाती हैं। अब छात्रों को बस एक बटन दबाने की ज़रूरत है। ज्ञान का संसार कंप्यूटर की स्क्रीन पर प्रकट हो जाता है। अब उन्हें न भारी भरकम बस्ता उठाने की ज़रूरत है और न मोटी-मोटी पुस्तकें।

इसके अलावा कंप्यूटर पर गीत सुनने, फ़िल्में देखने और गेम खेलने की सुविधा भी उपलब्ध रहती है। कंप्यूटर का अत्यधिक प्रयोग हमें आलसी और मोटापे का शिकार बनाता है। इंटरनेट के जुड़ जाने से कुछ लोग इसका दुरुपयोग करते हैं। कंप्यूटर का अधिक प्रयोग हमारी आँखों के लिए हानिकारक है। हमें कंप्यूटर का प्रयोग सोच समझकर करना चाहिए।

19. मनोरंजन के साधनों की बढ़ती दुनिया 
अथवा 
मनोरंजन का बदलता स्वरूप

  • मनोरंजन की आवश्यकता
  • मनोरंजन के प्राचीन साधन
  • मनोरंजन के साधनों में बदलाव
  • आधुनिक साधनों के लाभ-हानियाँ।

मनुष्य श्रमशील प्राणी है। वह आदिकाल से श्रम करता रहा है। इस श्रम के उपरांत थकान उत्पन्न होना स्वाभाविक है। पहले वह भोजन की तलाश एवं जंगली जानवरों से बचने के लिए श्रम करता था। बाद में उसकी आवश्यकता बढ़ीं अब वह मानसिक और शारीरिक श्रम करने लगा। श्रम की थकान उतारने एवं ऊर्जा प्राप्त करने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता महसूस हुई।

इसके लिए उसने विभिन्न साधन अपनाए। प्राचीन काल में मनुष्य पशु-पक्षियों के माध्यम से अपना मनोरंजन करता था। वह पक्षी और जानवर पालता था। उनकी बोलियों और उनकी लड़ाई से वह मनोरंजन करता था। इसके अलावा शिकार करना भी उसके मनोरंजन का साधन था। इसके बाद ज्यों-ज्यों समय में बदलाव आया, उसके मनोरंजन के साधन भी बढ़ते गए।

मध्यकाल तक मनुष्य ने नृत्य और गीत का सहारा लेना शुरू किया। नाटक, गायन, वादन, नौटंकी, प्रहसन काव्य पाठ आदि के माध्यम से वह आनंदित होने लगा। खेल तो हर काल में मनोरंजन का साधन रहे हैं। आज मनोरंजन के साधनों में भरपूर वृद्धि हुई है। अब तो मोबाइल फ़ोन पर गाने सुनना, फ़िल्म देखना, सिनेमा जाना, देशाटन करना, कंप्यूटर का उपयोग करना, चित्रकारी करना, सरकस देखना, पर्यटन स्थलों का भ्रमण करना उसके मनोरंजन में शामिल हो गया है।

मनोरंजन के आधुनिक साधन घर बैठे बिठाए व्यक्ति का मनोरंजन तो करते हैं पर व्यक्ति में मोटापा, रक्तचाप की समस्या, आलस्य, एकांतप्रियता और समाज से अलग-थलग रहने की प्रवृत्ति उत्पन्न कर रहे हैं।

20. दहेज का दानव
अथवा
दहेज प्रथा : एक सामाजिक समस्या

  • दहेज क्या है?
  • दहेज का बदलता स्वरूप
  • दहेज प्रथा कितनी घातक
  • दहेज प्रथा की रोकथाम।

भारतीय संस्कृति के मूल में छिपी है-कल्याण की भावना। इसी भावना के वशीभूत होकर प्राचीनकाल में कन्या का पिता अपनी बेटी की सुख-सुविधा हेतु कुछ वस्त्र-आभूषण और धन उसकी विदाई के समय स्वेच्छा से दिया करता था। कालांतर में यही रीति विकृत हो गई। इसी विकृति को दहेज नाम दिया गया। धीरे-धीरे लोगों ने इसे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ लिया।

सभ्यता और भौतिकवाद के कारण लोगों में धन लोलुपता बढ़ी है जिसने इस प्रथा को विकृत करने में वही काम किया जो आग में घी करता है। वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से खुलकर दहेज माँगने लगे और समाज की नज़र बचाकर बलपूर्वक दहेज लेने लगे जिससे इस प्रथा ने दानवी रूप ले लिया। आज स्थिति यह है कि समाज में लड़कियों को बोझ समझा जाने लगा है।

लोग घर में कन्या का जन्म किसी अपशकुन से कम नहीं समझते हैं। इससे समाज की सोच में विकृति आई है। दहेज प्रथा हमारे समाज के लिए अत्यंत घातक है। इस प्रथा के कारण ही जन्मी-अजन्मी लड़कियों को मारने का चलन शुरू हो गया। आज का समय तो जन्मपूर्व ही कन्या भ्रूण की हत्या करा देता है। इसमें असफल रहने के बाद वह जन्म के बाद कन्याओं के पालन-पोषण में दोहरा मापदंड अपनाता है।

वह लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा, खान-पान और अन्य सुविधाओं के साथ ही उनके साथ व्यवहार में हीनता दिखाता है। दहेज प्रथा के कारण ही असमय नव विवाहिताओं को अपनी जान गवानी पड़ती है। मनुष्यता के लिए इससे ज़्यादा कलंक की बात क्या होगी कि अनेक लड़कियाँ बिन ब्याही रह जाती हैं या उन्हें बेमेल विवाह के लिए बाध्य होना पड़ता है।

दहेज प्रथा रोकने के लिए केवल सरकारी प्रयास ही काफ़ी नहीं हैं। इसके लिए युवा वर्ग को आगे आना होगा और दहेज रहित-विवाह प्रथा की शुरूआत करके समाज के सामने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करना होगा।

21. त्योहारों का बदलता स्वरूप
अथवा
त्योहारों पर हावी भौतिकवाद

  • मानव जीवन और त्योहार
  • भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग
  • त्योहार में आते बदलाव
  • हमारा दायित्व,
  • वर्तमान स्वरूप।

मनुष्य और त्योहारों का अटूट संबंध है। मनुष्य अपने थके हारे मन को उत्साहित एवं आनंदित करने के साथ ही ऊर्जान्वित करने के लिए त्योहार मनाने का कोई न कोई बहाना खोज ही लेता है। कभी महीना बदलने पर, कभी नई ऋतु आने पर और कभी फ़सल पकने की आड़ में मनुष्य प्राचीन समय से त्योहार मनाता आया है।

ये त्योहार, मानव के सुख-दुख, हँसी-खुशी, उल्लास आदि व्यक्त करने का साधन भी होते हैं। त्योहार हमारे संस्कृति के अभिन्न अंग बन गए हैं। इनके माध्यम से हमारी संस्कृति की झलक मिलती है। त्योहारों के अवसर पर प्रयुक्त परिधान, रहन-सहन का ढंग, नृत्य-गायन की कलात्मकता आदि में संस्कृति के दर्शन होते हैं। ये त्योहार हमारी एकता को मजबूत बनाते हैं। वर्तमान में भौतिकवाद के कारण बदलाव आया है।

लोगों की भागम भरी जिंदगी की व्यस्तता और काम से बचने की प्रवृत्ति के कारण अब त्योहार उस हँसी-खुशी उल्लास से नहीं मनाए जाते हैं, जैसे पहले मनाए जाते थे। आज लोगों के मन में धर्म-जाति भाषा क्षेत्रीयता और संप्रदाय की कट्टरता के कारण दूरियाँ बढ़ी हैं। अब तो त्योहारों के अवसर पर दंगे भड़कने का भय स्पष्ट रूप से लोगों को आतंकित किए रहता है।

इस कारण लोग इन त्योहारों को जैसे-तैसे मनाकर इतिश्री कर लेते हैं। त्योहारों को हँसी-खुशी मनाने के लिए धार्मिक कट्टरता त्यागनी चाहिए तथा प्रकृति से निकटता बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें इस तरह त्योहार मनाने का प्रयास करना चाहिए जिससे सभी को खुशी मिल सके।

22. मानव जीवन पर विज्ञापनों का असर
अथवा
विज्ञापनों की दुनिया कितनी लुभावनी
अथवा
मानव मन को सम्मोहित करते विज्ञापन

  • विज्ञापन का अर्थ एवं प्रचार-प्रसार
  • विज्ञापनों की लुभावनी भाषा
  • विज्ञापन का प्रभाव
  • विज्ञापन के लाभ-हानि।

‘ज्ञापन’ में ‘वि’ उपसर्ग लगाने से विज्ञापन शब्द बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है-सूचना या जानकारी देना। दुर्भाग्य से आज विज्ञापन का अर्थ सिमट कर वस्तुओं की बिक्री बढ़ाकर लाभ कमाने तक ही सीमित रह गया है। वर्तमान समय में विज्ञापन का प्रचार-प्रसार इतना बढ़ गया है कि अब तो कहीं भी विज्ञापन देखे जा सकते हैं। इस कारण से वर्तमान समय को विज्ञापनों का युग कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है।

विज्ञापनों की भाषा अत्यंत लुभावनी और आकर्षक होती है। इनके माध्यम से कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अभिव्यक्ति का प्रयास किया जाता है। विज्ञापन की भाषा सरल एवं सटीक होती है, जिसे विशेष रूप से तैयार करके प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है। दूरदर्शन और अन्य चलचित्रों के माध्यम से दिखाए जाने वाले विज्ञापनों की भाषा और भी प्रभावी बन जाती है।

विज्ञापन मानव मन पर गहरा असर डालते हैं। बच्चे और किशोर इन विज्ञापनों के प्रभाव में आसानी से आ जाते हैं। विज्ञापनों का प्रस्तुतीकरण, उनमें प्रयुक्त नारी देह का दर्शन, उनके हाव-भाव और अभिनय मानवमन पर जादू-सा असर कर सम्मोहित कर लेते हैं। यह विज्ञापनों का असर है कि हम विज्ञापित वस्तुएँ खरीदने का लाभ संवरण नहीं कर पाते हैं।

विज्ञापन उत्पादक और उपभोक ता दोनों के लिए लाभदायी हैं। इसके माध्यम से हमारे सामने चुनाव का विकल्प, सलभ तो विक्रेताओं को भी भरपूर लाभ होता है। विज्ञापन के कारण वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाता है। इनमें वस्तु के गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है। अतः हमें विज्ञापनों से सावधान रहना चाहिए।

23. मनुष्यता का दूसरा नाम : परोपकार
अथवा
परहित सरसि धर्म नहिं भाई

  • परोपकार का अर्थ और प्रकृति
  • परोपकार मनुष्य का उत्तम गुण
  • जीवन की सार्थकता
  • परोपकार सच्चे आनंद का स्रोत।

उपकार का अर्थ है-भलाई करना। इसी उपकार में ‘पर’ उपसर्ग लगाने से परोपकार बना है। इसका अर्थ है-दूसरों की भलाई करना। जब मनुष्य निस्स्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई मन, वाणी और कर्म से करता है, तब उसे परोपकार कहा जाता है। परोपकार का सर्वोत्तम उदाहरण हमें प्रकृति के कार्यों से मिलता है।

वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं, नदियाँ अपना पानी स्वयं नहीं पीती हैं। इसी प्रकार फूल दूसरों के लिए खिलते हैं और बादल जीवों के कल्याण के लिए अपना अस्तित्व तक नष्ट कर देते हैं। परोपकार मनुष्य का सर्वोत्तम गुण है। हमारे ऋषि-मुनि तो अपना जीवन परोपकार में अर्पित कर देते थे। उनके कार्य हमें परोपकार की प्रेरणा देते हैं। कहा भी गया है कि ‘वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।’

परोपकार से व्यक्ति को सुख-शांति की अनुभूति होती है तथा जिसकी भलाई की जाती है उसे अपनी दीन-हीन स्थिति से मुक्ति मिल जाती है। परोपकार व्यक्ति को आदर्श जीवन की राह दिखाते हैं। इससे व्यक्ति को मनुष्य बनने की पूर्णता प्राप्त होती है। वास्तव में परोपकार में ही जीवन की सार्थकता है। परोपकार से व्यक्ति को सच्चा आनंद प्राप्त होता है।

इसी आनंद के वशीभूत होकर व्यक्ति अपना तन-मन और धन देकर भी परोपकार करता है। महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियाँ देकर मानवता का कल्याण किया तो शिवि ने अपने शरीर का मांस देकर कबूतर की जान बचाई। हमें भी परोपकार का अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।

24. विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत
अथवा
विपत्ति का साथी : मित्र

  • मित्र की आवश्यकता
  • मित्र का स्वभाव
  • सन्मार्ग पर ले जाते मित्र
  • मित्र के चयन में सावधानियाँ।

मानव जीवन को संग्राम की सभा से विभूषित किया गया है, जिसमें दुख और सुख क्रमशः आते-जाते रहते हैं। सुख का समय जल्दी और सरलता से कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता पर दुख के समय में उसे ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत होती है जो उसके काम आए। अब उसे मित्र की आवश्यकता होती है जो होती है जो उसे दख सहने का साहस प्रदान करे। मित्र का स्वभाव उदार. परोपकारी होने के साथ ही विपत्ति में साथ न छोड़ने वाला होना चाहिए।

उसे जल की भाँति नहीं होना चाहिए जो जाल पड़ने पर जाल में फँसी मछलियों का साथ छोड़कर दूर हो जाता है और मछलियों को मरने के लिए छोड़ जाता है। वास्तव में मित्र का स्वभाव श्रीराम और सुग्रीव के स्वभाव की भाँति होना चाहिए जिन्होंने एक-दूसरे की मदद करके अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। एक सच्चा मित्र को बुराइयों से हटाकर सन्मार्ग की ओर ले जाता है।

एक सच्चा मित्र अपने मित्र को व्यसन से बचाकर सत्कार्य के लिए प्रेरित करता है और उसके लिए घावों पर लगी उस औषधि के समान साबित होता है जो उसकी पीड़ा हरकर शीतलता पहुँचाती है। व्यक्ति के पास धन देखकर बहुत से लोग नाना प्रकार से मित्र बनने की चेष्टा करते हैं। हमें इन अवसरवादी लोगों से सावधान रहना चाहिए। हमारी जी हुजूरी और चापलूसी करने वाले को भी सच्चा मित्र नहीं कहा जा सकता है।

हमारी गलत बातों का विरोधकर उचित मार्गदर्शन कराने वाला ही सच्चा मित्र होता है। हमें मित्र के चयन में सावधान रहना चाहिए ताकि मित्रता चिरकाल तक बनी रहे।

25. जीवन में व्यायाम का महत्त्व
अथवा
स्वास्थ्य के लिए हितकारी : व्यायाम

  • स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन
  • उत्तम स्वास्थ्य की औषधि-व्यायाम
  • व्यायाम का सर्वोत्तम समय
  • व्यायाम एक-लाभ अनेक।

स्वास्थ्य और मानवजीवन का घनिष्ठ संबंध है। यूँ तो स्वास्थ्य की महत्ता हर प्राणी के लिए होती है पर मनुष्य इसके प्रति कुछ अधिक ही सजग रहता है और स्वस्थ रहने के नाना उपाय करता है। मनुष्य जानता है कि धन को तुरंत दुबारा कमाया जा सकता है परंतु स्वास्थ्य इतनी सरलता से नहीं पाया जा सकता है। एक स्वस्थ व्यक्ति ही सांसारिक सुखों का लाभ उठा सकता है।

यदि शरीर स्वस्थ नहीं है तो दुनिया का कोई सुख व्यक्ति को रुचिकर नहीं लगता है, तभी स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन कहा गया है। स्वास्थ्य पाने का एक साधन सात्विक भोजन, स्वस्थ आदतें, उचित दिनचर्या और दवाईयाँ हैं, पर ये सभी स्वस्थ रहने के साधन मात्र हैं। स्वास्थ्य का अर्थ केवल शारीरिक नहीं बल्कि इस परिधि में मानसिक स्वास्थ्य भी आता है।

इसे पाने की मुफ्त की औषधि है-व्यायाम, जिसे पाने के लिए धन खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती है। व्यायाम करने का सर्वोत्तम समय भोर की बेला है जब वातावरण में शांति, हवा में शीतलता और सुगंध होती है। ऐसे वातावरण में मन व्यायाम में लगता है। व्यायाम से हमारे शरीर का रक्त प्रवाह तेज़ होता है, हड्डियाँ मज़बूत और मांसपेशियाँ लचीली बनती हैं। इससे तन-मन दोनों स्वस्थ होता है। हमें भी समय निकालकर व्यायाम अवश्य करना चाहिए।

26. विद्यार्थी और अनुशासन
अथवा
अनुशासन का महत्त्व

  • अनुशासन का अर्थ
  • अनुशासन की आवश्यकता
  • प्रकृति में अनुशासन
  • अनुशासन सफलता की कुंजी।

‘शासन’ शब्द में ‘अनु’ उपसर्ग जोड़ने से अनुशासन शब्द बना है, जिसका अर्थ है शासन के पीछे चलना अर्थात् समाज द्वारा बनाए नियमों का पालन करते हुए मर्यादित जीवन जीना। जीवन के हर क्षेत्र और हर काल में अनुशासन की महत्ता होती है पर विद्यार्थी काल जीवन की नींव के समान होता है। इस काल में अनुशासन की आवश्यकता और महत्ता और भी बढ़ जाती है।

इस काल में विद्यार्थी जो कुछ सीखता है वही उसके जीवन में काम आता है। इस काल में एक बार अनुशासनबद्ध जीवन की आदत पड़ जाने पर आजीवन यही आदत बनी रहती है। मानव मन अत्यंत चंचल होता है। वह स्वच्छंद आचरण करना चाहता है। इसके लिए अनुशासन बहुत आवश्यक है। प्रकृति अपने कार्य व्यवहार से मनुष्य तथा अन्य प्राणियों को अनुशासन का पाठ पढ़ाती है।

सूर्य समय पर निकलता है। चाँद और तारे रात होने पर चमकना नहीं भूलते हैं। ऋतु आने पर फूल खिलना नहीं भूलते हैं। वर्षा ऋतु में बादल बरसना और समयानुसार वृक्ष फल नहीं भूलते हैं। ऋतुएँ समय पर आती जाती हैं और मुर्गा समय पर बाँग देता है। ये हमें अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं।

जीवन में जितने भी लोगों ने सफलता प्राप्त की है उसके मूल में अनुशासन रहा है। गांधी जी, नेहरू जी, टैगोर, तिलक, विवेकानंद आदि की सफलता का मूल मंत्र अनुशासन रहा है। विद्यार्थियों को कदम-कदम पर अनुशासन का पालन करना चाहिए और सफलता के सोपान चढ़ना चाहिए।

27. समय का महत्त्व
अथवा
समय चूकि वा पुनि पछताने

  • समय की पहचान
  • समय पर काम न करने पर पछताना व्यर्थ
  • समय का सदुपयोग-सफलता का सोपान
  • आलस्य का त्याग।

एक सूक्ति है–’समय और सूक्ति किसी की प्रतीक्षा नहीं करते हैं।’ ये आते और जाते रहते हैं, चाहे कोई इनका लाभ उठाए या नहीं पर गुणवान लोग समय की महत्ता समझकर समय का लाभ उठाते हैं। एक चतुर मछुआरा अपने जाल और नाव के साथ ज्वार की प्रतीक्षा करता है और उसका लाभ उठाता है। जो लोग समय पर काम नहीं करते हैं उनके हाथ पछताने के सिवा कुछ भी नहीं लगता है।

समय बीतने पर काम करने से उसकी सफलता का आनंद सूख जाता है। ऐसे ही लोगों के लिए गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है-‘समय चूकि वा पुनि पछताने।’ का बरखा जब कृषि सुखाने। अर्थात् समय पर काम करने से चक कर पछताना उसी तरह है जैसा कि फ़सल सखने के बाद वर्षा होने से वह हरी नहीं हो पाती है। जो व्यकि सदुपयोग करते हैं वे हर काम में सफल होते हैं।

शत्रु आक्रमण का जो देश मुकाबला नहीं करता वह गुलाम होकर रह जाता है, समय पर बीज न बोने वाले किसान की फ़सल अच्छी नहीं होती है और समय पर वर्षा न होने से भयानक अकाल पड़ जाता है। इस तरह निस्संदेह समय का उपयोग सफलता का सोपान है। समय पर काम करने के लिए आवश्यक है-आलस्य का त्याग करना। आलस्य भाव बनाए रखकर समय पर काम पूरा करना कठिन है। अतः हमें आलस्य भाव त्यागकर समय का सदुपयोग करना चाहिए।

28. देशाटन
अथवा
मनोरंजन का साधन : पर्यटन

  • देशाटन क्या है?
  • देशाटन का महत्त्व
  • देशाटन के लाभ
  • देश की प्रगति में सहायक।

‘देशाटन’ शब्द दो शब्दों ‘देश’ और ‘अटन’ के मेल से बना है जिसका अर्थ है देश का भ्रमण करना अर्थात् ज्ञान और मनोरंजन के उद्देश्य से किया जाने वाला भ्रमण देशाटन कहलाता है। देशाटन करना मनुष्य की स्वाभाविक विशेषता है। वह प्राचीनकाल से ही शिकार और आश्रय के उद्देश्य से भटकता रहा है। मनुष्य आज भी भ्रमण करता है पर उसके भ्रमण की महत्ता आज अधिक है।

आज वह ज्ञानार्जन और धनार्जन के लिए भ्रमण करता है जो उसे सामाजिक और आर्थिक रूप से उन्नत बनाता है। इस प्रकार मनुष्य के जीवन में देशाटन का बहुत महत्त्व है। देशाटन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि मनुष्य विभिन्न वस्तुओं को साक्षात् रूप से देखता है और भिन्न-भिन्न लोगों से मिलता है। वह उस स्थान विशेष की कला, संस्कृति और सभ्यता से परिचित होता है। उसका स्वभाव मिलनसार बनता है।

वह भिन्न-भिन्न लोगों की भाषाओं से परिचित होता है। इससे राष्ट्रीय एकता मज़बूत होती है। देशाटन से देश के विकास में सहायता होती है। पर्यटन उद्योग फलता-फूलता है और विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होती है। लोगों को रोजगार मिलता है। इस प्रकार व्यक्ति और राष्ट्र दोनों की आय बढ़ती है। हमें अवसर मिलते ही देशाटन अवश्य करना चाहिए।

29. मेरी अविस्मरणीय यात्रा
अथवा
पर्वतीय स्थल की यात्रा का रोमांच

  • यात्रा की तैयारी
  • रास्ते का सौंदर्य
  • पर्वतीय सौंदर्य
  • यादगार पल।

मनुष्य के मन में यात्रा करने का विचार ज़ोर मारता रहता है। उसे बस मौके की तलाश रहती है। मुझे भी यात्रा करना बहुत अच्छा लगता है। आखिर मुझे अक्टूबर के महीने में यह मौका मिल ही गया जब पिता जी ने बताया कि हम सभी वैष्णो देवी जाएँगे। वैष्णो देवी का नाम सुनते ही मन बल्लियों उछलने लगा और मैं तैयारी में जुट गया। उधर माँ भी आवश्यक तैयारियाँ करने के क्रम में कपड़े, चादर और खाने के लिए नमकीन बिस्कुट आदि पैक करने लगी।

आखिर नियत समय पर हम प्रात: तीन बजे नई दिल्ली स्टेशन पर पहुँचे और स्वराज एक्सप्रेस से जम्मू के लिए चल पड़े। लगभग आधे घंटे बाद हम दिल्ली की सीमा पार करते हुए सोनीपत पहुँचे। अब तक सवेरा हो चुका था। दोनों ओर दूर तक हरे-भरे खेत दिखाई देने लगे। इसी बीच पूरब से भगवान भास्कर का उदय हुआ। उनका यह रूप मैं दिल्ली में नहीं देख सका था।

दस बजे तक तो मैं जागता रहा पर उसके बाद चक्की बैंक पहुँचने पर मेरी नींद खुली। उससे आगे जाने पर हमें एक ओर पहाड़ नज़र आ रहे थे। वहाँ से कटरा जाकर हमने पैदल चढ़ाई की। पर्वतों को इतने निकट से देखने का यह मेरा पहला अवसर था। इनकी ऊँचाई और महानता देखकर अपनी लघुता का अहसास हो रहा था।

अब मुझे समझ में आया कि ‘अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे’ मुहावरा क्यों कहा गया होगा। वैष्णो देवी पहुँचकर वहाँ का पर्वतीय सौंदर्य हमारे दिलो-दिमाग पर अंकित हो गया। वहाँ से भैरव मंदिर पहुँचकर जिस सौंदर्य के दर्शन हुए वह आजीवन भुलाए नहीं भूलेगा।

30. परीक्षा का डर
अथवा
परीक्षा से पहले मेरी मनोदशा

  • परीक्षा नाम से भय
  • पर्याप्त तैयारी
  • घबराहट और दिल की धड़कनें हुई तेज़
  • प्रश्न-पत्र देखकर भय हुआ दूर।

परीक्षा वह शब्द है जिसे सुनते ही अच्छे अच्छों के माथे पर पसीना आ जाता है। परीक्षा का नाम सुनते ही मेरा भी भयभीत होना स्वाभाविक है। ज्यों-ज्यों परीक्षा की घड़ी निकट आती जा रही थी त्यों-त्यों यह घबराहट और भी बढ़ती जा रही थी। जितना भी पढ़ता था घबराहट में सब भूला-सा महसूस हो रहा था। खाने-पीने में भी अरुचि-सी हो रही थी।

इस घबराहट में न जाने कब ‘जय हनुमान ज्ञान गुण सागर’-उच्चरित होने लगता था पता नहीं। यद्यपि मैं अपनी तरफ से परीक्षा का भय भूलने और सभी प्रश्नों के उत्तर दोहराने की तैयारी कर रहा था और जिन प्रश्नों पर तनिक भी आशंका होती तो उस पर निशान लगाकर पिता जी से शाम को हल करवा लेता था पर मन में कहीं न कहीं भय तो था ही। परीक्षा का दिन आखिर आ ही गया।

सारी तैयारियों को समेटे मैं परीक्षा भवन में चला गया पर प्रश्न-पत्र हाथ में आने तक मन में तरह-तरह की आशंकाएँ आती जाती रही। मैंने अपनी सीट पर बैठकर आँखें बंद किए प्रश्न-पत्र मिलने का इंतज़ार करने पर घबराहट के साथ-साथ दिल की धड़कने तेज़ हो गई थी। इसी बीच घंटी बजी। कक्ष निरीक्षक ने पहले हमें उत्तर पुस्तिकाएँ दी फिर दस मिनट बाद प्रश्न-पत्र दिया।

काँपते हाथों से मैंने प्रश्न पत्र लिया और पढ़ना शुरू किया। शुरू के पेज के चारों प्रश्नों को पढ़कर मेरी घबराहट आधी हो गई क्योंकि उनमें से चारों के जवाब मुझे आते थे। पूरा प्रश्न पत्र पढ़ा। अब मैं प्रसन्न था क्योंकि एक का उत्तर छोड़कर सभी के उत्तर लिख सकता था। मेरी घबराहट छू मंतर हो चुकी थी। अब मैं लिखने में व्यस्त हो गया।

31. देश-प्रेम
अथवा
प्राणों से प्यारा : देश हमारा

  • देश से लगाव स्वाभाविक गुण
  • देश के लिए सर्वस्व न्योछावर
  • मातृभूमि ‘माँ’ के समान
  • राष्ट्रीय एकता प्रगाढ़ करने में सहायक।

मनुष्य की स्वाभाविक विशेषता है कि वह जिस व्यक्ति, वस्तु या स्थान के साथ कुछ समय बिता लेता है उससे उसका लगाव हो जाता है। ऐसे में जिस देश में उसने जन्म पाया है, जहाँ का अन्न-जल और वायु ग्रहण कर बड़ा हुआ है, उस स्थान से लगाव होना लाजिमी है। इसी लगाव का नाम है देश-प्रेम। अर्थात् देश के कण-कण से प्रेम होना उसकी सजीव-निर्जीव वस्तुओं के अलावा पेड़-पौधे, जीव-जंतुओं और मनुष्यों से प्यार करना देश-प्रेम कहलाता है।

यह वह पवित्र भावना है जो देश की रक्षा करते हुए अपना तन-मन-धन अर्थात् सर्वस्व न्योछावर करने के लिए प्रेरित करती है। ऐसा व्यक्ति ही सच्चादेश प्रेमी कहलाता है। कहा गया है-‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। आखिर हो भी क्यों न व्यक्ति को स्वर्ग जाने के योग्य जननी और जन्मभूमि ही बनाते हैं। माँ संतान को जन्म देती है पर जन्मभूमि की रज में लोटकर बच्चा बढ़ता है और यहीं का अन्न जलग्रहण कर बड़ा होता है।

वास्तव में जन्मभूमि के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हमारे देश के वीरों और देशभक्तों ने जन्मभूमि की रक्षा के लिए सुख-चैन त्याग दिया, जेल की दर्दनाक यातनाएँ भोगी, हँसते-हँसते लाठियाँ और कोड़े खाए और हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को चूम गए। देश प्रेम की पवित्र भावना जाति, धर्म, भाषा, वर्ण, वर्ग, प्रांत और दल से ऊपर होती है। यह इन संकीर्णताओं का बंधन नहीं स्वीकारती है। इससे राष्ट्रीय एकता मजबूत होती है। हमें अपने देश पर गर्व है। मैं इससे असीम प्यार करता हूँ।

32. हमारे देश के राष्ट्रीय पर्व
अथवा
देश की अखंडता में सहायक राष्ट्रीय पर्व

  • राष्ट्रीय पर्व का अर्थ एवं उनकी महत्ता
  • हमारे राष्ट्रीय पर्व और मनाने का ढंग
  • देश की एकता अखंडता बनाने में सहायक
  • राष्ट्रीय पर्यों का संदेश।

पर्व मानव जीवन को मनोरंजन और ऊर्जा से भरकर मनुष्य की नीरसता दूर करते हैं। इन पर्यों को सांस्कृतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय पर्यों के रूप में बाँटा जा सकता है। राष्ट्रीय पर्व वे पर्व हैं जिन्हें राष्ट्र के सारे लोग बिना किसी भेदभाव के एकजुट होकर मनाते हैं। इनका सीधा संबंध देश की एकता और अखंडता से होता है।

राष्ट्रीय पर्व व्यक्तिगत न होकर राष्ट्रीय होते हैं, इसलिए देशवासियों के अलावा विभिन्न प्रशासनिक और सरकारी कार्यालय, विभिन्न संस्थाएँ मिल-जुलकर मनाती हैं। इस दिन देश में सरकारी अवकाश रहता है। यहाँ तक कि दुकानें और फैक्ट्रियाँ भी बंद रहती हैं ताकि देशवासी इन्हें मनाने में अपना योगदान दें। हमारे राष्ट्रीय पर्व हैं-स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त), गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) और गांधी जयंती (02 अक्टूबर)।

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रातःकाल सरकारी कार्यालयों एवं भवनों पर झंडा फहराया जाता है और रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। इस दिन देशभक्तों और शहीदों के योगदान को याद करते हुए स्वतंत्रता बनाए रखने की प्रतिबद्धता दोहराई जाती है। गांधी जयंती के अवसर पर कृतज्ञ देशवासी गांधी जी के योगदान को याद करते हैं और उनके बताए रास्ते पर चलने की प्रतिज्ञा करते हैं।

देश की एकता अखंडता बनाए रखने में राष्ट्रीय त्योहार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री देशवासियों से एकता बनाए रखने का आह्वान करते हैं। ये पर्व हमें एकजुट रहकर देश की स्वतंत्रता की रक्षा करने तथा देश के लिए तन-मन और धन न्योछावर करने का संदेश देते हैं। हमें इस संदेश को सदा याद रखना चाहिए।

33. गाँवों का देश भारत
अथवा
गाँवों की दयनीय दशा

  • देश की 70 प्रतिशत जनता गाँवों में
  • प्रदूषण रहित वातावरण
  • गाँवों में अभाव ग्रस्तता
  • गाँवों की दशा में कुछ बदलाव।

हमारे गाँवों में। अगर हमें अपने देश की सच्ची तसवीर देखनी है तो हमें गाँवों की ओर रुख करना पड़ेगा। हमारे देश की आत्मा इन्हीं गाँवों में निवास करती है। देश की जनसंख्या का 70 प्रतिशत से अधिक भाग इन्हीं गाँवों में बसता है। इनमें से अधिकांश लोगों की आजीविका का साधन कृषि है। यहाँ रहने वाले चाहे खुद भूखे सो जाएँ पर देशवासियों को पेट भरने का दायित्व यही गाँव निभाते हैं।

यहाँ के किसानों का श्रम और कार्य देखकर श्री लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था। गाँवों में चारों ओर हरियाली का साम्राज्य होता है। ये पेड़-पौधे ग्रामवासियों को शुद्ध वायु उपलब्ध कराते हैं। यहाँ कारखाने और औद्योगिक इकाइयों का अभाव है। यहाँ मोटर गाड़ियों का न धुआँ है और न शोर। यहाँ का वातावरण शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक है।

गाँवों की धूलभरी गलियाँ, कच्चे घर, घास-फूस की झोपड़ियाँ, नालियों में बहता गंदा पानी, मैले-कुचैले कपड़े पहने बच्चे और अधनंगे बदन वाले किसान की दयनीय दशा देखकर गाँवों की अभाव ग्रस्तता का पता चल जाता है। यहाँ रहने वालों की कृषि मानसून पर आधारित है। मानसून की कमी होने पर फ़सल अच्छी नहीं होती है जिससे उन्हें साहूकारों से कर्ज लेने पर विवश होना पड़ता है और वे ऋण ग्रस्तता के जाल में फँस जाते हैं।

ग्रामवासी आज भी अंधविश्वास और अशिक्षा के शिकार हैं। गाँवों तक पक्की सड़कें बन जाने और बिजली पहुँच जाने के कारण गाँवों की दशा में कुछ सुधार होता है। सरकार द्वारा शिक्षा की व्यवस्था करने तथा ग्रामवासियों के कल्याण हेतु अनेक योजनाएँ चलाने के कारण अब गाँवों के दिन फिरने लगे हैं।

34. रंग-बिरंगी ऋतुएँ 
अथवा 
भारत की छह ऋतुएँ 

  • ऋतुएँ-प्रकृति का अनुपम उपहार
  • छह ऋतुएँ और उनकी विशेषताएँ,
  • ऋतुराज वसंत,
  • ऋतुओं का प्रभाव।

प्रकृति ने भारत को अनेक उपहार प्रदान किए हैं। इन उपहारों में एक है-छह ऋतुओं का उपहार । ये ऋतुएँ एक के बाद एक बारी बारी से आती हैं और मुक्त हाथों से सौंदर्य बिखरा जाती हैं। ऋतुओं के जैसा मनभावन मौसम का समन्वय भारत में बना रहता है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। हमारे देश में छह ऋतुएँ पाई जाती हैं। ये छह ऋतुएँ हैं ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत और वसंत।

भारतीय महीनों के अनुसार बैसाख और जेठ ग्रीष्म ऋतु के महीने होते हैं। इस समय छोटी-छोटी वनस्पतियाँ सूख जाती हैं। धरती तवे-सी जलने लगती है। आम, कटहल, फालसा, जामुन आदि फल इस समय प्रचुरता से मिलते हैं। इसके बाद अगले दो महीने वर्षा ऋतु के होते हैं। इस समय वर्षा होती है जो मुरझाई धरती और प्राणियों को नवजीवन देती हैं।

अधिक वर्षा बाढ़ के रूप में प्रलय लाती है। वर्षा ऋतु के उपरांत शरद ऋतु का आगमन होता है। यह ऋतु दो महीने तक रहती है। दशहरा और दीपावली इस ऋतु के प्रमुख त्योहार हैं। इस समय सरदी और गरमी बराबर होती है, जिससे मौसम सुहाना रहता है। शिशिर और हेमंत ऋतुओं में कड़ाके की सरदी पड़ती है। हेमंत पतझड़ की ऋतु मानी है। इस समय पेड़-पौधे अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।

इसके बाद ऋतुराज वसंत का आगमन होता है। इस से मौसम सुहावना होता है। चारों ओर खिले फूल और सुगंधित हवा इस समय को सुहावना बना देते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह सर्वोत्तम ऋतु है। विभिन्न ऋतुओं का अपना अलग-अलग प्रभाव होता है। इस कारण हमारा खान-पान और रहन-सहन प्रभावित होता है। तरह-तरह की फ़सलों के उत्पादन में ऋतुएँ महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। सचमुच ये ऋतुएँ किसी वरदान से कम नहीं हैं।

35. भारतीय समाज में नारी की स्थिति
अथवा
भारतीय समाज में नारी की बदलती स्थिति

  • प्राचीन भारत में नारी की स्थिति
  • मध्यकाल में नारी की स्थिति
  • आधुनिक काल में नारी
  • भारतीय नारी त्याग एवं ममता की मूर्ति।

स्त्री और पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। इनमें स्त्रियों की स्थिति में देश काल और परिस्थिति के अनुसार समय-समय पर बदलाव आता रहा है। प्राचीनकाल में हमारे देश में स्त्रियों को सम्मानजनक स्थान प्राप्त था। वह यज्ञ कार्यों, वेद-पुराण और ऋचाओं की रचना में सहभागी रहती थी। वह पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलती थी।

उस समय कहा जाता था कि ‘यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात जहाँ नारियों की पूजा होती है वहीं देवता निवास करते हैं। इससे नारी की उच्च स्थिति का अनुमान स्वयं लगाया जा सकता है। मध्यकाल तक नारियों की स्थिति में बहुत गिरावट आ चुकी थी। पुरुष प्रधान समाज ने नारियों को परदे की वस्तु बनाकर घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया।

उसे निर्णय लेने के अधिकार से वंचित कर दिया गया।मुसलमानों के आक्रमण के कारण वे घरों में रहने को विवश थी। इस कारण उनकी शिक्षा में गिरावट आई और वे निरक्षरता का शिकार हो गई। आधुनिक काल में स्त्रियों की दशा में खूब सुधार हुआ है। स्वतंत्रता के बाद उनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया गया। इस कारण वह प्रगति की दौड़ में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं।

चिकित्सा, शिक्षा, पुलिस सेवा, प्रशासन आदि में वह अपनी योग्यता से पुरुषों से आगे निकलती जा रही है। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, ‘लाडली योजना’ जैसी योजनाओं के कारण उनकी स्थिति में सुधार हो रहा है। नारी त्याग, ममता, सहानुभूति, स्नेह की मूर्ति है। हमें नारियों का सम्मान करना चाहिए।

36. वन रहेंगे-हम रहेंगे
अथवा
वनों की महत्ता

  • वन प्रकृति के अनुपम उपहार
  • वनों के लाभ
  • मनुष्य का स्वार्थपूर्ण व्यवहार
  • वन बचाएँ जीवन बचाएँ।

प्रकृति ने मनुष्य को जो नाना प्रकार के उपहार दिए हैं, वन उनमें सबसे अधिक उपयोगी और महत्त्वपूर्ण हैं। मनुष्य और प्रकृति का साथ अनादिकाल से रहा है। पृथ्वी पर जीवन योग्य जो परिस्थितियाँ हैं उन्हें बनाए रखने में वनों का विशेष योगदान है। मनुष्य अन्य जीव-जंतुओं के साथ इन्हीं वनों में पैदा हुआ, पला, बढ़ा और सभ्य होना सीखा।

वनों ने मनुष्य की हर जरूरत को पूरा किया है। वन हमें लकड़ी, छाया, फल-फूल, कोयला, गोंद, कागज, नाना प्रकार की औषधियाँ देते हैं। वे पशुओं तथा पशु-पक्षियों के लिए आश्रय-स्थल उपलब्ध करते हैं। इससे जैव विविधता और प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। वन वर्षा लाने में सहायक हैं जिससे प्राणी नवजीवन पाते हैं। वन बाढ़ रोकते हैं और भूक्षरण कम करते हैं तथा धरती का उपजाऊपन बनाए रखते हैं।

वास्तव में वन मानवजीवन का संरक्षण करते हैं। वन परोपकारी शिव के समान हैं जो विषाक्त वायु का स्वयं सेवन करते हैं और बदले में प्राणदायी शुद्ध ऑक सीजन देते हैं। दुर्भाग्य से मनुष्य की जब ज़रूरतें बढ़ने लगी तो उसने वनों की अंधाधुंध कटाई शुरू कर दी। नई बस्तियाँ बनाने, कृषि योग्य भूमि पाने, सड़कें बनाने आदि के लिए पेड़ों की कटाई की गई, जिससे पर्यावरण असंतुलन बढ़ा और वैश्विक ऊष्मीकरण में वृद्धि हुई।

इससे असमय वर्षा, बाढ़, सूखा आदि का खतरा उत्पन्न हो गया। धरती पर जीवन बचाने के लिए पेड़ों को बचाना आवश्यक है। आओ हम जीवन बचाने के लिए अधिकाधिक पेड़ लगाने और बचाने की प्रतिज्ञा करते हैं।

37. प्रदूषण की समस्या
अथवा
जीवन खतरे में डालता प्रदूषण

  • प्रदूषण का अर्थ
  • प्रदूषण के कारण
  • प्रदूषण के प्रभाव
  • प्रदूषण से बचाव के उपाय।

स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक है कि हम जिन वस्तुओं का सेवन करें, जिस वातावरण में रहें वह साफ़-सुथरा हो। जब हमारे पर्यावरण और वायुमंडल में ऐसे तत्व मिल जाते हैं जो उसे दूषित करते हैं तथा इनका स्तर इतना बढ़ जाता है कि स्वास्थ्य के लिए  हानिकारक हो जाते हैं तब यह स्थिति प्रदूषण कहलाती है।  आज सभ्यता और विकास की इस दौड़ में मनुष्य के कार्य व्यवहार ने प्रदूषण को खूब बढ़ाया है।

बढ़ती आवश्यकता के कारण एक ओर वनों को काटकर नई बस्तियाँ बसाई गईं तो दूसरी ओर अंधाधुंध कल-कारखानों की स्थापना की गई। इन बस्तियों तक पहुँचने के लिए सड़कें बनाई गईं। इसके लिए भी वनों की कटाई की गई।  सभ्यता की ऊँचाई छूने के लिए मनुष्य ने नित नए आविष्कार किए।

मोटर-गाड़ियाँ वातानुकूलित उपकरणों से सजी गाड़ियाँ और मकानों के कार्य आदि के कारण पर्यावरण इतना प्रदूषित हआ कि आदमी को साँस लेने के लिए शदध हवा मिलना कठिन हो गया है। प्रदूषण के दुष्प्रभाव के कारण प्राकृतिक असंतुलन उत्पन्न हो गया है।  वायुमंडल में कार्बनडाई ऑक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ गई है। इससे अम्लीय वर्षा का खतरा पैदा हो गया है।

मोटर-गाड़ियों और फैक्ट्रियों के शोर के कारण स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है। अति वृष्टि, अनावृष्टि और असमय वर्षा प्रदूषण का ही दुष्परिणाम है। इस प्रदूषण से बचने का सर्वोत्तम उपाय है अधिकाधिक वन लगाना। पेड़ लगाकर प्रकृति में संतुलन लाया जा सकता है। इसके अलावा हमें सादा जीवन उच्च विचार वाली जीवन शैली अपनाते हुए प्रकृति के करीब लौटना चाहिए।

38. बाल मज़दूरी
अथवा
बाल मजदूरी : समाज के लिए अभिशाप

  • बाल मजदूर कौन
  • बाल मजदूरी क्यों
  • बाल मजदूरी के क्षेत्र
  • समस्या का समाधान।

समाज शास्त्रियों ने मानवजीवन को आयु के विभिन्न वर्गों में बाँटा है। इसके अनुसार सामान्यतया 5 से 11 साल के बच्चे को बालक कहा जाता है। इसी उम्र में बालक विद्यालय जाकर पढ़ना-लिखना सीखता है और शिक्षित जीवन की नींव रखता है परंतु परिस्थितियाँ प्रतिकूल होने के कारण जब बच्चे को पढ़ने-लिखने का मौका नहीं मिलता है और उसे अपना पेट पालने के लिए न चाहते हुए काम करना पड़ता है तो उसे बाल मजदूरी कहते हैं।

मजदूर की भाँति काम करने वाले इन बालकों को बाल मज़दूर कहते हैं। बाल मजदूरी के मूल में है-गरीबी। गरीब माता-पिता जब बच्चे को विद्यालय भेजने की स्थिति में नहीं होते हैं और वे परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते हैं तो वे अपने बच्चों को भी काम पर भेजना शुरू कर देते हैं। इसका एक कारण समाज के कुछ लोगों की शोषण की प्रवृत्ति भी है।

वे अपने लाभ के लिए कम मजदूरी देकर इन बच्चों से काम करवाते हैं। बाल मजदूरी के कुछ विशेष क्षेत्र हैं जहाँ बच्चों से काम कराया जाता है। दियासलाई उद्योग, पटाखा उद्योग, अगरबत्तियों के कारखाने, कालीन बुनाई, चूड़ी उद्योग, बीड़ी, गुटखा फैक्ट्रियों में बच्चों से काम लिया जाता है।

बाल मजदूरी रोकने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने की ज़रूरत है। बाल मजदूरों को मज़बूरी से मुक्त कराकर उन्हें शिक्षित और प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। इसके अलावा स्वार्थी लोगों को अपनी स्वार्थवृत्ति त्यागकर इन बच्चों पर दया करना चाहिए और इनसे काम नहीं करवाना चाहिए।

39. महानगरों की यातायात को सुखद बनाती-मैट्रो रेल
अथवा
यात्रा सुखद बनाती-मैट्रो रेल

  • महानगरों का भीड़भाड़ युक्त जीवन
  • मैट्रो रेल की आवश्यकता
  • मैट्रो रेल के लाभ
  • सुखद यात्रा का साधन।

महानगर सुख-सुविधा के केंद्र माने जाते हैं। इसी सुख-सुविधा का आकर्षण लोगों को अपनी ओर खींचता है जिससे लोग महानगरों की ओर पलायन करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि महानगर भीड़भाड़ का केंद्र बनते जा रहे हैं। यहाँ भीड़ के कारण यातायात कठिन हो गया है। यहाँ काम-काज के सिलसिले में लोगों को लंबी यात्राएँ करनी पड़ती हैं जो भीड़ के कारण दुष्कर हो जाती हैं। थोड़ी दूर की यात्रा भी पहाड़ पार करने जैसा हो जाती है।

ऐसे में आवागमन को सरल, सुगम और सुखद बनाने के लिए ऐसे साधन की आवश्यकता महसूस होने लगी जो इनका समाधान कर सके। महानगरों में आवागमन की समस्या को हल किया है मैट्रो रेल ने। आज मैट्रो रेल दिल्ली के अलावा अन्य महानगरों जैसे-मुंबई, जयपुर, लखनऊ, चेन्नई आदि में संचालित करने की योजना है जिन पर जोर-शोर से काम हो रहा है। मैट्रो रेल का संचालन खंभों पर पटरियाँ बिछाकर ज़मीन से काफ़ी ऊँचाई पर किया जाता है।

इस कारण जाम की समस्या से मुक्ति तो मिली है तीव्र गति से यात्रा भी संभव हो गई है। इसके अलावा वातानुकूलित मैट्रो रेल की यात्रा लोगों को थकान, चिड़चिड़ेपन और रक्तचाप बढ़ने से बचाती है। इस यात्रा के बाद भी थकान की अनुभूति नहीं होती है। मैट्रो में लोगों की बढ़ती भीड़ इसका स्वयं में प्रमाण है। हमें मैट्रो रेल के नियमों का पालन करते हुए स्टेशन और रेल को साफ़-सुथरा बनाना चाहिए ताकि यह सुखद यात्रा सदा वरदान जैसी बनी रहे।

40. जल है तो जीवन है
अथवा
जल ही जीवन है
अथवा
जल संरक्षण-आज की आवश्यकता

  • जीवनदायी जल
  • जल प्रदूषण के कारण
  • जल संरक्षण कितना ज़रूरी
  • जल संरक्षण के उपाय।

पृथ्वी पर प्राणियों के जीवन के लिए हवा के बाद सबसे आवश्यक वस्तु है-जल। यद्यपि भोजन भी आवश्यक है पर इस भोजन को तरल रूप में लाने और सुपाच्य बनाने के लिए जल की आवश्यकता होती है। मानव शरीर में लगभग 70 प्रतिशत जल होता है। कहा भी गया है-क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच तत्व से बना शरीरा। वनस्पतियों में तो 80 प्रतिशत से ज़्यादा जल पाया जाता है। इस जल के बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है।

पृथ्वी पर यूँ तो तीन चौथाई भाग जल ही है पर इसमें पीने योग्य जल की मात्रा बहुत कम है। यह पीने योग्य जल कुओं, तालाबों, नदियों और झीलों में पाया जाता है जो मनुष्य की स्वार्थपूर्ण गतिविधियों के कारण दूषित होता जा रहा है। मनुष्य नदी, तालाबों में खुद नहाता है और जानवरों को नहलाता है।

इतना ही नहीं वह फैक्ट्रियों और नालियों का दषित पानी इसमें मिलने देता है जिससे जल प्रदषित होता है। पेयजल की मात्रा में आती कमी और गिरते भ-जल स्तर के कारण जल संरक्षण अत्यावश्यक हो गया। पृथ्वी पर जीवन बनाए और बचाए रखने के लिए जल बचाना ज़रूरी है।

जल संरक्षण का पहला उपाय है-उपलब्ध जल का दुरुपयोग न किया जाए और हर स्तर पर होने वाली बरबादी को रोका जाए। टपकते नलों की मरम्मत की जाए और अपनी आदतों में सुधार लाया जाए। इसे बचाने का दूसरा उपाय है-वर्षा जल का संरक्षण करना और इसे व्यर्थ बहने से बचाना। ऐसा करके हम आने वाली पीढ़ी को जल का उपहार स्वतः दे जाएँगे।

NCERT Solutions for Class 10 Hindi

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CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य रूपांतर

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CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य रूपांतर

वाक्य –
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह समाज में रहकर अपने मन के भाव दूसरों को बताना चाहता है तथा उनके विचारों को सुनना-जानना चाहता है। इसके लिए वह भाषा का सहारा लेता है। यह भाषा उसके मुंह से शब्दों या वाक्यों के माध्यम से व्यक्त होती हैं।

शब्दों की रचना वर्णों के सार्थक मेल से होती है। इन्हीं सार्थक शब्दों के सार्थक एवं व्यवस्थित मेल से वाक्य बनते हैं। वाक्य भाषा की सबसे छोटी इकाई हैं, जिनके द्वारा लिखने या बोलने वाले के मन का आशय समझ में आ जाता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि “मनुष्य के विचारों को व्यक्त करने वाला शब्द समूह, जो व्यवस्थित हो तथा पूर्ण आशय प्रकट कर सके, वाक्य कहलाता है।”

वाक्य के गुण –
वाक्य में निम्नलिखित बातों का होना ज़रूरी है –
1. सार्थकता-वाक्य रचना के लिए ज़रूरी है कि उसमें प्रयुक्त सभी पद सार्थक हों।
उदाहरण –

  • राम पार्क में खेलता है।
  • मैं घर जाकर खाना खाऊँगा।

2. योग्यता-इसका मतलब है-क्षमता। इसका अर्थ यह है कि शब्दों में सार्थक होने के साथ-साथ प्रसंग के अनुसार अर्थ देने की क्षमता भी होनी चाहिए।
उदाहरण –
(i) पवन पानी खाता है।
⇒ पवन खाना खाता है।
(ii) श्याम खाना पीता है।
⇒ श्याम पानी पीता है।

3. आकांक्षा-इसका अर्थ है-इच्छा। इसका आशय यह है कि वाक्य अपने आप में पूरा होना चाहिए। उसमें कोई भी शब्द कमनहीं होना चाहिए, जिसके कारण वाक्य में अधूरापन लगे।
उदाहरण –
(i) लड़के खाना हैं। (खा रहे)
⇒ लड़के खाना खा रहे हैं।
(ii) सैनिक लड़ हैं। (रहे)
⇒ सैनिक लड़ रहे हैं।

4. पदक्रम-वाक्य का सही अर्थ जानने के लिए शब्दों का उचित पदक्रम में होना ज़रूरी है। पदक्रम के अभाव में वाक्य का सही अर्थ नहीं निकलता।
उदाहरण –
(i) सारे देश के नागरिक कर्तव्यनिष्ठ हैं। ⇒ देश के सारे नागरिक कर्तव्यनिष्ठ हैं।
(ii) गाय का ताकतवर दूध होता है। ⇒ गाय का दूध ताकतवर होता है।

5. अन्वय-इसका अर्थ है-मेल। वाक्य में कर्ता, वचन, लिंग, कारक आदि में होना ज़रूरी है। इसके बिना वाक्य का पूर्ण अर्थ नहीं निकलता।
उदाहरण –
(i) मेरा देश में अनेक नदियाँ बहता हैं। ⇒ मेरे देश में अनेक नदियाँ बहती हैं।
(ii) चूहें किताबें कुतर गई। ⇒ चूहे किताबें कुतर गए।

वाक्य के अंग –
वाक्य की संरचना के आधार पर उसको दो भागों में विभाजित किया जाता है –

  1. उद्देश्य,
  2. विधेय।

1. उद्देश्य-वाक्य का वह अंग, जिसके विषय में कुछ कहा जाए, उसे उद्देश्य कहते हैं।
उदाहरण –

  1. राम सो रहा है।
  2. राजू खाना खा रहा है।
  3. किसान फलों के पेड़ भी लगाते हैं।
  4. जवान देश की रक्षा करते हैं।

इन वाक्यों में ‘राम’, ‘राजू’, ‘किसान’ और ‘जवान’ के विषय में बताया जा रहा है। इसलिए ‘राम’, ‘राजू’, ‘जवान’ और ‘किसान’ उद्देश्य हैं।

2. विधेय-वाक्य में उद्देश्य के बारे में जो कुछ कहा जाए, उसे विधेय कहते हैं।
उदाहरण –

  1. करन खेल रहा है।
  2. चित्रकार चित्र बनाता है
  3. चित्रा गीत गा रही है
  4. मंजरी बस से शहर गई

इन वाक्यों में ‘खेल रहा है’, ‘चित्र बनाता है’, ‘गीत गा रही है’ और ‘बस से शहर गई’ वाक्यों के विधेय हैं। वाक्य के भेद-मुख्य रूप से वाक्यों को दो भागों में बाँटा गया है –

  1. रचना के आधार पर,
  2. अर्थ के आधार पर।

नोट-पाठ्यक्रम के अनुसार हम सिर्फ रचना के आधार पर वाक्य भेद’ का अध्ययन करेंगे।

रचना के आधार पर वाक्य भेद –

रचना अथवा बनावट के आधार पर वाक्य के तीन भेद होते हैं –
(क) सरल वाक्य
(ख) संयुक्त वाक्य
(ग) मिश्र वाक्य।

(क) सरल वाक्य-जिन वाक्यों में एक उद्देश्य तथा एक विधेय होता है, उन्हें सरल वाक्य कहते हैं।
उदाहरण –

  • वर्षा हो रही है।
  • मोहन पतंग उड़ा रहा है।
  •  बच्चे मैदान में खेल रहे हैं।
  • रविवार को भी हम पढ़ेंगे।
  • वह फलों के लिए बाज़ार गया।
  • राम खाना खाकर सो गया।

(ख) संयुक्त वाक्य-जिन वाक्यों में दो या दो से अधिक स्वतंत्र उपवाक्य किसी समुच्चयबोधक अव्यय से जुड़े होते हैं, उन्हें संयुक्त वाक्य कहते हैं।
उदाहरण –

  • माँ बाज़ार गई और सब्जियाँ लेकर आयी।
  • आप खाना खाएँ और आराम करें।
  • आप चाय पिएँगे या कॉफ़ी?
  • राम बीमार है इसलिए स्कूल नहीं आया।
  • विद्यार्थी परिश्रमी होता है तो अवश्य सफल होता है।
  • सोमवार को हड़ताल है, अतः बाज़ार बंद रहेगा।

संयुक्त वाक्य की पहचान

  • दो उपवाक्यों के बीच समानाधिकरण संबंध होता है।
  • संयुक्त वाक्य में दो या अधिक मुख्य या स्वतंत्र उपवाक्य होते हैं।
  • उपवाक्य होते हुए भी उनमें पूर्ण अर्थ का बोध होता है।
  • मुख्य उपवाक्य अपने पूर्ण अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए किसी दूसरे उपवाक्य पर आश्रित नहीं रहते।

(ग) मिश्र वाक्य-जिस वाक्य में एक मुख्य उपवाक्य हो और अन्य उपवाक्य उस पर आश्रित हों, उसे मिश्र वाक्य कहते हैं। मिश्र वाक्य के उपवाक्य ‘कि, जैसा-तैसा, जो, वह, जब-तब, क्योंकि’ आदि व्यधिकरण योजकों से जुड़े रहते हैं।

उदाहरण –

  • जैसे ही शाम हुई, बिजली चली गई।
  • जब नई कक्षा में दाखिला होगा तब हम पढ़ेंगे।
  • जब राम आया तो श्याम चला गया।
  • उस लड़के को बुलाओ जिसने काले जूते पहने है।
  • जब आँधी आई तो धूल उड़ने लगी।

उपर्युक्त वाक्यों आश्रित और मुख्य उपवाक्य इस प्रकार हैं –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य रूपांतर - 1

मिश्रित वाक्य में आश्रित उपवाक्यों के तीन प्रकार संभव है –
(क) संज्ञा उपवाक्य
(ख) विशेषण उपवाक्य
(ग) क्रिया-विशेषण उपवाक्य।

(क) संज्ञा उपवाक्य – जो उपवाक्य वाक्य में संज्ञा का काम करते हैं, वे संज्ञा उपवाक्य कहलाते हैं। संज्ञा उपवाक्य से पहले प्रायः कि का प्रयोग होता है।
उदाहरण –

  •  मैं चाहता हूँ कि तुम डॉक्टर बनो।
  • राम को विश्वास है कि श्याम होली पर ज़रूर जाएगा।
  • ऐसा लगता है कि महँगाई कम नहीं होगी।
  • गांधी जी कहते थे कि हिंसा नहीं करनी चाहिए।
  • पवन ने कहा कि वह दिल्ली जाएगा।

(ख) विशेषण उपवाक्य-जो उपवाक्य मुख्य उपवाक्य में संज्ञा, सर्वनाम पदबंध की विशेषता बताते हैं, उन्हें विशेषण उपवाक्य कहते हैं।
उदाहरण –

  • जिसने कार्य नहीं किया, वह खड़ा हो जाए।
  • जो आदमी पढ़ाता है, वह अध्यापक होता है।
  • उन अंकल को बुलाओ, जिनके हाथ में बैग है।
  • वह साइकिल कहाँ है, जिससे आप कल आए थे
  • जिसे आप ढूँढ़ रहे हैं, वह तो चला गया।
  • वह आम कौन-सा है, जो दशहरी है।

(ग) क्रिया-विशेषण उपवाक्य-जिन उपवाक्यों द्वारा मुख्य उपवाक्यों में क्रिया की विशेषता बताई जाती है, उन्हें क्रिया विशेषण उपवाक्य कहते हैं। क्रिया-विशेषण उपवाक्य किसी काल, स्थान, रीति, परिमाण, कार्य-करण आदि का द्योतन करते हैं।

इन उपवाक्यों में जहाँ, जैसा, जब, ज्यों-त्यों आदि समुच्चयबोधक अव्यय प्रयुक्त होते हैं –
उदाहरण-

  • जब राम आया तो बारिश हो रही थी। (कालवाची)
  • यदि वह पढ़ लेता तो अवश्य अच्छा इंसान बनता। (कार्य-करण)
  • जहाँ-जहाँ प्रधानमंत्री गए, वहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ। (स्थानवाची)
  • जहाँ तुम रहते हो, वहीं मैं रहता था। (रीतिवाची)
  • जैसा अध्यापक ने बताया, बच्चों ने वैसा काम किया। (रीतिवाची)
  • जैसा करोगे वैसा भरोगे। (रीतिवाची)
  • जितना तुम जानते हो, उतना काम करो। (कालवाची)

वाक्य-परिवर्तन –
किसी वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्य में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को वाक्य परिवर्तन कहते हैं।

(क) सरल या साधारण वाक्य से मिश्र वाक्य में परिवर्तन –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य रूपांतर - 2

(ख) सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य में परिवर्तन –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य रूपांतर - 3

(ग) मिश्रित वाक्य से संयुक्त वाक्य में परिवर्तन –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य रूपांतर - 4

(घ) मिश्रित वाक्य से सरल वाक्य में परिवर्तन –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य रूपांतर - 5

(ङ) संयुक्त वाक्य से मिश्रित वाक्य में परिवर्तन –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य रूपांतर - 6
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य रूपांतर - 8

CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य रूपांतर - 7

आओ देखें कितना सीखा

प्रश्नः 1.
निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और रचना के आधार पर उनका भेद लिखिए

  1. प्रातः जल्दी उठो और एक घंटे नियमित रूप से व्यायाम करो।
  2. मरीज दवाएँ लेने अस्पताल गया।
  3. अध्यापक आए और कक्षा में शोर बंद हो गया।
  4. परिश्रमी मजदूरों को सभी काम पर बुलाते हैं।
  5. जो लोग धनवान होते हैं, उन्हें गरीबों की मदद करनी चाहिए।
  6. जैसे ही मोहन आया श्याम ने आगे बढ़कर उसका स्वागत किया।
  7. उसने अपना आपा खोया और कटुवचन बोलने लगा।
  8. सवेरा होते ही पक्षियों के कलरव से आसमान गूंज उठा।
  9. आँधी आई और धूल उड़ने लगी।
  10. अपने अथक परिश्रम से उसने असंभव को भी संभव बना दिया।
  11. मज़दूरी पाते ही मज़दूर घर चला गया।
  12. वर्षा समाप्त हुई और इंद्रधनुष निकल आया।
  13. धनवान होने पर भी हमें दयालु बने रहना चाहिए।
  14. जैसे ही नाटक समाप्त हुआ, वैसे ही दर्शक घर जाने लगे।
  15. बाढ़ आई और फ़सलें पानी में डूब गईं।
  16. जैसे ही महात्मा जी आए वैसे ही भीड़ उनके स्वागत में कड़ी हो गई
  17. चुनाव निकट आते ही नेताओं को जनता के दुख दर्द याद आने लगे।
  18. योगाचार्य ने कहा कि प्रतिदिन एक घंटा योग करना चाहिए।
  19. जो परिश्रमी होते हैं, वे काम से नहीं डरते।
  20. बत्ती हरी होते ही गाड़ियाँ चल पड़ी।

उत्तरः

  1. संयुक्त वाक्य
  2. सरल वाक्य
  3. संयुक्त वाक्य
  4. सरल वाक्य
  5. मिश्र वाक्य
  6. मिश्र वाक्य
  7. संयुक्त वाक्य
  8. सरल वाक्य
  9. संयुक्त वाक्य
  10. सरल वाक्य
  11. सरल वाक्य
  12. संयुक्त वाक्य
  13. सरल वाक्य
  14. मिश्र वाक्य
  15. संयुक्त वाक्य
  16. मिश्र वाक्य
  17. सरल वाक्य
  18. मिश्र वाक्य
  19. मिश्र वाक्य
  20. सरल वाक्य।

प्रश्नः 2.
निम्नलिखित वाक्यों को मिश्र वाक्य में बदलिए –

  1. मेरे घर पहुँचते ही आंधी आ गई।
  2. पुस्तकें खरीदने के लिए वह बाज़ार गई।
  3. दुकान पर सजी मिठाइयाँ देखकर बच्चे के मुँह में पानी आ गया।
  4. निराला जी द्वारा रचित कविता सभी को पसंद आई।
  5. गार्ड द्वारा हरी झंडी हिलाते ही गाड़ी चल पड़ी।
  6. पानी का टैंकर आते ही लोगों में हलचल मच गई।
  7. महात्मा जी का प्रभावपूर्ण प्रवचन सुनकर लोग नतमस्तक हो गए।
  8. रोहित शर्मा की अच्छी बल्लेबाजी के कारण भारत मैच जीत गया।
  9. मेरे स्टेशन पर पहुँचते ही बस चल पड़ी।
  10. लाल कपड़ा देखते ही साँड़ भड़ककर गोपू के पीछे भागने लगा।
  11. वह धन कमाने के लिए शहर गया।
  12. धरती को हरा-भरा बनाए रखने के लिए लोग पेड़ लगाते हैं।
  13. सैनिक देशवासियों के सुख-चैन के लिए अपने प्राणों की बाज़ी लगा देते हैं।
  14. यही छात्र एक सौ मीटर की दौड़ में प्रथम आया था।
  15. बूढ़ा व्यक्ति सड़क पार करते हुए मोटरसाइकिल से टकरा गया।
  16. डॉक्टरी सहायता मिलने पर भी घायल को बचाया न जा सका।
  17. छत पर दाना देखते ही कबूतर आ गए।
  18. वसंत आते ही चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिल उठे।
  19. इसी विद्यालय में मैंने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की थी।
  20. सैनिक दल बनाकर जल्दी-जल्दी आतंकवादियों की ओर बढ़ने लगे।
  21. दूसरों का निस्स्वार्थ भला करने वाला सच्चा परोपकारी होता है।
  22. मुख्य अतिथि के मंच पर आते ही सरस्वती वंदना की गई।
  23. भारी हिमपात के कारण पर्यटक रास्ते में फँस गए।
  24. नींद आने के कारण उसने पढ़ना बंद कर दिया।
  25. हेलमेट लगाने के कारण उसका सिर फटने से बच गया।
  26. इसी भारत देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था।
  27. इसी जन्मभूमि की रज में लोट-लोटकर हम बड़े हुए हैं।
  28. प्रयोगशाला में ब्यूरेट तोड़ने वाला छात्र खड़ा हो जाए।
  29. इसी पेड़ पर सबसे मीठे आम आते हैं।
  30. इसी छात्र ने चित्रकला प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।

उत्तरः

  1. जैसे ही मैं घर पहुँचा वैसे ही आँधी आ गई।
  2. क्योंकि उसे पुस्तकें खरीदनी थी इसलिए वह बाज़ार गई।
  3. जैसे ही बच्चे ने दुकान पर सजी मिठाइयाँ देखीं वैसे ही उसके मुँह में पानी आ गया।
  4. जो कविता निराला जी द्वारा रचित है, वह सभी को पसंद आई।
    या
    वह कविता जो निराला जी द्वारा रचित है, सभी को पसंद आई।
  5. ज्यों ही गार्ड ने हरी झंडी हिलाई, त्यों ही गाड़ी चल पड़ी।।
  6. जैसे ही पानी का टैंकर आया वैसे ही लोगों में हलचल मच गई।
  7. महात्मा जी का प्रवचन इतना प्रभावपूर्ण था कि लोग नतमस्तक हो गए।
  8. चूँकि रोहित शर्मा ने अच्छी बल्लेबाजी की इसलिए भारत मैच जीत गया।
  9. जैसे ही मैं स्टेशन पर पहुँचा वैसे ही बस छूट गई।
  10. ज्यों ही साँड़ ने लाल कपड़ा देखा त्यों ही वह गोपू के पीछे भागने लगा।
  11. चूँकि उसे धन कमाना था इसलिए वह शहर गया।
  12. क्योंकि धरती को हरा-भरा बनाना है इसलिए लोग पेड़ लगाते हैं।
  13. जब सैनिक प्राणों की बाज़ी लगाते हैं तब देशवासी चैन से सोते हैं।
  14. यह वह छात्र है जो एक सौ मीटर की दौड़ में प्रथम प्रथम आया था।
  15. वह बूढ़ा व्यक्ति जो सड़क पार कर रहा था, मोटरसाइकिल से टकरा गया।
  16. यद्यपि डॉक्टरी सहायता मिली फिर भी घायल को बचाया न जा सका।
  17. जैसे ही कबूतरों ने दाना देखा वे छत पर आ गए।
  18. जब वसंत आया तब चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिल उठे।
  19. यही वह विद्यालय है जहाँ मैंने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की थी।
  20. जब सैनिकों ने दल बनाया तब वे आतंकवादियों की ओर बढ़ने लगे।
  21. जो दूसरों का निस्स्वार्थ भला करता है वही सच्चा परोपकारी होता है।
  22. जैसे ही मुख्य अतिथि मंच पर आए वैसे ही सरस्वती वंदना शुरू की गई।
  23. जब भारी हिमपात हुआ तब पर्यटक रास्ते में फँस गए।
  24. चूँकि उसे नींद आने लगी थी इसलिए उसने पढ़ना बंद जाता है।
  25. चूँकि उसने हेलमेट लगाया था इसलिए उसका सिर फटने से बच गया।
  26. यही वह भारत देश है जिसे सोने की चिड़िया कहा
  27. यही वह जन्मभूमि है जिसकी रज में लोट-लोटकर बड़े हुए हैं।
  28. जिस छात्र ने प्रयोगशाला में व्यूरेट तोड़ा है वह खड़ा हो जाए ।
  29. यही वह पेड़ है जिस पर सबसे मीठे आम लगते हैं।
  30. यही वह छात्र है जिसने चित्रकला प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।

प्रश्नः 3.

  1. निम्नलिखित वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलिए
  2. शहर जाने पर श्यामू मलेरिया से पीड़ित हो गया। ।
  3. मोबाइल फ़ोन झपटने का अपराधी होने से उसे सजा हुई।
  4. परिश्रम से कमाए गए धन को सोच-समझकर खर्च करना चाहिए।
  5. आज तुम घर पर रहकर जानवरों की देख-रेख का काम करो।
  6. मुर्गे की कुकड-कूँ सुनते ही महात्मा जी नदी की ओर चले गए।
  7. प्रधानाचार्य की बातें सुनकर छात्र जोश से भर उठे।
  8. बादल घिरने के बाद भी वर्षा नहीं हुई।
  9. दौड़ प्रतियोगिता में फ़िसलकर गिर जाने के कारण वह प्रथम न आ सका।
  10. बच्चों के शोर मचाने पर पक्षी उड़ गए।
  11. आरक्षण समर्थकों द्वारा किए गए उत्पात से अनेक रेलगाड़ियाँ रद्द की गईं।
  12. जादूगर का खेल देखकर लोगों ने तालियाँ बजाईं।
  13. बाज़ार में धमाका होते ही लोग इधर-उधर भागने लगे।
  14. अकबर के अत्याचार के सामने राणा प्रताप नहीं झुके।
  15. (हरी-भरी फ़सलों को बाढ़ ने तबाह कर दिया।
  16. आंधी आते ही रेगिस्तान में रेत उड़ने लगी।
  17. (हवा का तेज़ झोंका आते ही पतंग आसमान में उड़ने लगी।
  18.  स्टेशन पर पहुँचकर भी वह गाड़ी न पकड़ सकी।
  19. वर्षा होने पर पेड़-पौधे नहाए-धोए से नज़र आने लगे।
  20. उदय ने बाज़ार जाकर पुस्तकें खरीदीं।
  21. दंगा शुरू होते ही पुलिस की कई गाड़ियाँ आ गईं।
  22. संन्यासी प्रवचन देकर चले गए।
  23. बिजली जाते ही गली में अँधेरा छा गया।
  24. मेरे बार-बार फ़ोन करने पर भी डॉक्टर नहीं आए।
  25. किसान बड़े सवेरे उठकर खेत में चला गया।

उत्तरः

  1. श्यामू शहर गया और मलेरिया से पीड़ित हो गया।
  2. उसने मोबाइल फ़ोन झपटा था, इसलिए उसे सजा हुई।
  3. धन को परिश्रम से कमाया जाता है इसलिए उसे सोच समझकर खर्च करना चाहिए।
  4. आज तुम घर पर रहो और जानवरों की देखरेख करो।
  5. महात्मा जी ने मुर्गे की कुकड़-कूँ सुना और नदी की ओर चल पड़े।
  6. छात्रों ने प्रधानाचार्य की बातें सुनीं और जोश से भर उठे।
  7. बादल घिरे परंतु वर्षा नहीं हुई।
  8. वह दौड़ प्रतियोगिता में फ़िसलकर गिर गया इसलिए प्रथम न आ सका
  9. बच्चों ने शोर मचाया और पक्षी उड़ गए।
  10. आरक्षण समर्थक ने उत्पात किया और अनेक रेलगाड़ियाँ रद्द करनी पड़ी।
  11. लोगों ने जादूगर का खेल देखा और तालियाँ बजाई।
  12. बाज़ार में धमाका हुआ और लोग इधर-उधर भागने लगे।
  13. अकबर ने अत्याचार किया परंतु राणा प्रताप झुके नहीं।
  14. बाढ़ आई और हरी-भरी फ़सलों को तबाह कर गई।
  15. आँधी आई और रेगिस्तान में धूल उड़ने लगी।
  16. हवा का तेज़ झोंका आया और पतंग आसमान में उड़ने लगी।
  17. वह स्टेशन पर पहुँची परंतु गाड़ी न पकड़ सकी।
  18. वर्षा हुई और पेड़-पौधे नहाए धोए से नज़र आने लगे।
  19. उदय बाज़ार गया और पुस्तकें खरीदी।
  20. दंगा शुरू हुआ और पुलिस की कई गाड़ियाँ आ गईं।
  21. संन्यासियों ने प्रवचन दिया और चले गए।
  22. बिजली गई और गली में अँधेरा छा गया। कर दिया।
  23. मैंने बार-बार फ़ोन किया परंतु डॉक्टर नहीं आए।
  24. किसान बड़े सवेरे उठा और खेत में चला गया।

प्रश्नः 4.
निम्नलिखित वाक्यों को सरल वाक्य में बदलिए

  1. मैंने एक लाल गुलाब देखा जो बहुत खुशबूदार था।
  2. कुत्ते भौंकने लगे तब चोर भाग गए।
  3. यही वह छात्र है जिसने नाटक में अध्यापक की भूमिका निभाई।
  4. यही वे महात्मा हैं जो अपनी ज्ञानभरी बातों से प्रभावित कर लेते हैं।
  5. पुलिस ने आसू गैस छोड़ी और भीड़ तितर-बितर हो गई।
  6. गली में शोर हुआ परंतु उसकी नींद न खुली।
  7. लोगों ने जोकर की बातें सुनीं और हँस पड़े।
  8. जब सुमन ने मुझे समझाया तो मैं मान गया।
  9. बल्लेबाजों ने अच्छा प्रदर्शन किया और भारत मैच जीत गया।
  10. जब पीटी अध्यापक ने सीटी बजाई तब छात्र सावधान हो गए।
  11. किसान परिश्रम करते हैं पर उसका लाभ बिचौलिए उठाते हैं।
  12. सचिन तेंदुलकर वह महान खिलाड़ी हैं, जिन्होंने सर्वाधिक रन बनाए हैं।
  13. रिंग मास्टर ने हंटर उठाया और शेर ने मुँह खोल दिया।
  14. यही वह चौकीदार है जिसने चोरों को ललकारा था।
  15. दिसंबर वह महीना है जब यहाँ कड़ाके की सरदी पड़ती है।
  16. शेर ने दहाड़ लगाई और हिरन पर झपट्टा मारा।
  17. चैत आया और टेसू के फूल दहकने लगे।
  18. जब जून आएगा तब ये आम पकने लगेंगे।
  19. पुलकित परिश्रमी है इसलिए सब उसे प्यार करते हैं।
  20. उसने कठोर परिश्रम किया और कक्षा में प्रथम आया।
  21. यही वह पहाड़ी है जहाँ औषधियाँ मिलती हैं।
  22. दो दिन लगातार वर्षा हुई और सर्वत्र पानी भर गया।
  23. सूरज निकला और ओस की बूंदें गायब होने लगी।
  24. जब गार्ड ने हरी झंडी दिखाई तब गाड़ी चल पड़ी।
  25. बिजली आई और गली-गली जगमगा उठी।
  26. ठेकेदार ने मजदूरी दी और मजदूर घर चले गए।
  27. जब पूजा समाप्त हुई तब प्रसाद वितरण शुरू हुआ।
  28. आँधी आई और फ़सलें तहस-नहस हो गईं।
  29. बढ़ई ने मेज बनाई और उसे रंग दिया।
  30. जैसे ही भोर हुआ वैसे ही प्रकृति की नीरवता भंग होने लगी।

उत्तरः

  1.  मैंने एक लाल खुशबूदार गुलाब देखा।
  2. कुत्तों के भौंकने पर चोर भाग गए।
  3. इसी छात्र ने नाटक में अध्यापक की भूमिका निभाई थी।
  4. ये महात्मा अपनी ज्ञानभरी बातों से प्रभावित कर लेते हैं।
  5. पुलिस द्वारा आसू गैस छोड़ने पर भीड़ तितर-बितर हो गई।
  6. गली में शोर होने पर भी उसकी नींद न खुली।
  7. जोकर की बातें सुनकर लोग हँस पड़े।
  8. सुमन के समझाने पर मैं मान गया।
  9. बल्लेबाजों के अच्छे प्रदर्शन से भारत मैच जीत गया।
  10. पीटी अध्यापक के सीटी बजाने पर छात्र सावधान हो गए।
  11. किसानों के परिश्रम का लाभ बिचौलिए उठाते हैं।
  12. महान खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर ने सर्वाधिक रन बनाए हैं।
  13. रिंग मास्टर के हंटर उठाते ही शेर ने मुँह खोल दिया।
  14. इसी चौकीदार ने चोरों को ललकारा था।
  15. दिसंबर महीने में कड़ाके की ठंड पड़ती है।
  16. शेर ने दहाड़कर हिरन पर झपट्टा मारा।
  17. चैत आते ही टेसू के फूल दहकने लगे।
  18. जून आने पर ये आम पकने लगेंगे।
  19. परिश्रमी पुलकित को सभी प्यार करते हैं।
  20. कठोर परिश्रम करके वह कक्षा में प्रथम आया।
  21. इसी पहाड़ी पर औषधियाँ मिलती हैं।
  22. दो दिन लगातार वर्षा होने से सर्वत्र पानी भर गया।
  23. सूरज निकलने पर ओस की बूंदें गायब होने लगीं।
  24. गार्ड के हरी झंडी दिखाते ही गाड़ी चल पड़ी।
  25. बिजली आने से गली-गली जगमगा उठी।
  26. ठेकेदार से मज़दूरी पाकर मज़दूर अपने घर चले गए।
  27. पूजा समाप्त होने पर प्रसाद वितरण शुरू हुआ।
  28. आँधी आने से फ़सलें तहस-नहस हो उठीं।
  29. बढ़ई ने मेज़ बनाकर उसे रंग दिया।
  30. भोर होते ही प्रकृति की नीरवता भंग होने लगी।

NCERT Solutions for Class 10 Hindi

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National Fellowship for OBC | Application, Award, Key Date, Eligibility

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National Fellowship for OBC 2019-20: OBC’s National Fellowship is a UGC grant system financed under the Government of India by the Ministry of Social Justice & Empowerment. This UGC grant is for the advantage of Other Backward Class (OBC) applicants. The unemployed OBC applicants are significantly endorsed under this National Fellowship for OBC students to conduct sophisticated studies and study aspiring to M.Phil. And Ph.D. in Science, Humanities, Social Science and Engineering & Technology. This UGC scholarship is given annually to a maximum of 300 applicants.

National Fellowship for OBC – Highlights

ParticularsDetails
Award detailsFellowship amount up to Rs. 28,000 per month along with contingency grant and assistance from escorts/reader for candidates with different skills
Application period*October-December
EligibilityCandidates must be from the OBC Category. Must pursue M.Phil./Ph. D. Degree No more than Rs. 6 Lakh Annual revenue
Application processThrough the official website of UGC

National Fellowship for OBC – Awards

This UGC fellowship provides financial support to a total of 300 candidates selected according to the eligibility criteria. Under OBC’s National Fellowship, the fellowship’s duration is 5 years, divided into the Junior Research Fellowship (JRF) and Senior Research Fellowship (SRF). List of selected candidates for national fellowship for OBC will be published at the official website.

JRF’s work is evaluated by a three-member committee comprising Department Head, Supervisor, and an external subject expert, and if the work is found to be satisfactory, the tenure of the candidates is further extended for a period of 3 years under the SRF’s enhanced rewards. National Fellowship for OBC Amount is Rs.25000 for first two years.

In addition, the amount of the fellowship is transferred directly to the awarded account via e-payment under DBT. In addition, the amount of the fellowship is transferred directly to the awarded account via e-payment under DBT. Find the quantity of the OBC National Fellowship as given to the applicants chosen below.

National Fellowship for OBC – Award details

ParticularsDetails
Fellowship amountA monthly grant sum of Rs.25,000 for the first two years to JRF A grant sum of Rs.28,000 per month for the following commitment to SRF
Contingency grant for Humanities & Social Sciences studentsAn annual quantity of Rs. 10,000 for the original two years Rs. 20,500 per year for the following three years
Contingency grant for Science and Engineering & Technology studentsRs. 12,000 per year for the original two years Rs. 25,000 per year for the following three years
Escorts/Reader assistance to physically & visually challenged candidatesRs. 2000 per month
HRAAs per the norms of the Government of India

National Fellowship for OBC – Application Period

The National OBC Fellowship’s application period varies from year to year. Its application period, however, generally ranges from October to December. The request launched in the first week of October for the educational era of 2018-19, with the date dropping in the last week of December. Furthermore, applicants wanting to take advantage of this UGC grant must bear in mind that the timeline listed here is timely and may alter according to the membership provider’s path.

National Fellowship for OBC – Eligibility Criteria

OBC’s National Fellowship enables aspirants to study M.Phil full-time. Or doctoral degree program without UGC NET JRF or UGC-CSIR NET. Under this UGC scholarship system, 300 applicants are chosen annually for economic advantages. The information of qualifying circumstances to be fulfilled by candidates in an attempt to benefit from the advantages of this grant is given below.

  • To qualify for this UGC grant, candidates must be homeless and adhere to the OBC group.
  • The postgraduate examination must have been taken by the candidates.
  • The candidates ‘ annual household earnings from all accounts must not exceed INR 6 Lakh.
  • Applicants must be enrolled for periodic M.Phil./Ph.D. full-time. Science, Humanities, Social Science or Engineering & Technology program from universities/colleges/institutions recognized by UGC, State/Central Government or nationally significant institutions.
  • As part of this UGC scholarship, transgender applicants are also permitted to register. The reservation is made in accordance with the Indian government’s standards.

National Fellowship for OBC – Application Process

UGC enables candidates to register the internet through its formal portal to render the registration method simpler and more effective for candidates. Follow the step-by-step manual below to complete your OBC National Fellowship request type.

  • First, applicants must check and surf down the formal UGC portal to press the’ vision all’ button on the’ Scholarship / Fellowships ‘ section. A range of UGC’s scholarships and grants is shown.
  • Go to the’ Fellowship’ section and press the’ Apply Now’ key provided under the OBC Candidate National Fellowship.
  • The candidates must closely study the guidance and tap on ‘Continue to register.’
  • In the registration form, complete the necessary information. Upon completion of the enrollment method, a registered identification is produced. The registration ID helps download the finished request form’s PDF file once it has been presented.
  • The candidates must provide personal details, email data, educational details, details of the institute, study job descriptions, etc. while carrying out the application. Other information such as the information of the Supervisor, the details of the scholarship and the current job are also needed.
  • Lastly, the applicants must check the request type filled in. Go to the statement chapter once you are fulfilled. Carefully read it and tap on ‘I agree’ to submit the application.

National Fellowship for OBC – Key Documents

While registering for this UGC grant, there are some significant papers that the candidates must maintain prepared with them. The range of important papers that applicants should have with them when carrying out the National Fellowship request document for OBC is highlighted below.

  • Applicant’s caste license Income register of the applicant’s relatives issued by the competent authority
  • Applicant’s license picture (color) and registration
  • Mark of the master’s degree diploma given by Head of Department/Institution indicating that the required equipment will be supplied by the College/University/Institution in the event that applicants are chosen for this grant.

National Fellowship for OBC – Selection Procedure

The candidates receiving this UGC fellowship are selected based on merit and according to the UGC procedure. However, 3% of the complete spaces are allocated for people with disabilities (PwD) in the OBC class.

National Fellowship for OBC – Conditions

There are a couple of terms and conditions that applicants need to search for if they want to take advantage of this UGC scholarship. See below the table of National Fellowship terms and conditions for OBC applicants.

  • Under this UGC scholarship, the institution’s applicants can be supplied with appropriate single-seat hostel facilities.
  • OBC’s National Fellowship award is liable in addition to public holidays for a maximum of 30 days of leave per year. They also qualify for maternity/paternity leave in accordance with the Indian government’s standards.
  • Within 3 months of awarding the grant, the applicants must attend the class.
  • A copy of their Award Letter and Joining Report together with a photo, address and contact number in the prescribed format must also be submitted to the bank’s designated branch.
  • The applicants chosen must also send a’ Continuation Certificate’ to the assigned office every three months.
  • The applicants must also send their progress report to the office allocated to the UGC after completing one year of the scholarship.

FAQ’s on National Fellowship for OBC

Question 1.
In which field is the national fellowship being offered to students?

Answer:
This fellowship is for the students aspiring to M.Phil. And Ph.D. in Science, Humanities, Social Science and Engineering & Technology.

Question 2.
In total, how many scholarships are offered under national fellowship?

Answer:
This UGC scholarship is given annually to a maximum of 300 applicants.

Question 3.
How is the amount in this fellowship transferred to students?

Answer:
The amount of the fellowship is transferred directly to the awarded account via e-payment under DBT.

Scholarships for Students

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CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास

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CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास

नए शब्द बनाने के लिए जिन प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जाता है उनमें समास प्रमुख है।
‘समास’ शब्द का अर्थ है-संक्षिप्त करने की प्रक्रिया या संक्षेपीकरण अर्थात् जब दो या दो से अधिक शब्दों को पास-पास लाकर एक नया सार्थक शब्द बनाया जाता है तो शब्दों को इस तरह संक्षेप करने की प्रक्रिया को समास कहते हैं; जैसे –

हवन के लिए सामग्री = हवन सामग्री
कमल के समान नयन है जिसके अर्थात् श्रीराम = कमलनयन
नियम के अनुसार = नियमानुसार
गायों के लिए शाला = गौशाला
डाक के लिए खाना (घर) = डाकखाना

समस्त पद – सामासिक प्रक्रिया में बने नए शब्द को समस्त पद कहते हैं; जैसे –
पुस्तक के लिए आलय = पुस्तकालय
समुद्र तक = आसमुद्र
राजा और रानी = राजा-रानी

पूर्व पद – समस्त पद के पहले पद को पूर्व पद कहते हैं; जैसे –

राजा का कुमार = राजकुमार
मन से चाहा हुआ = मनोवांछित
देश के लिए भक्ति = देशभक्ति
इन समस्त पदों में राज, मनो और देश पूर्व पद हैं।

उत्तर पद-समस्त पद के अंतिम पद को उत्तर पद कहते हैं; जैसे –

स्थिति के अनुसार = यथास्थिति
प्रत्येक दिन = प्रतिदिन
नीला है गगन = नीलगगन

इन समस्त पदों में स्थिति, दिन और गगन उत्तर पद हैं।
समास-विग्रह-समस्त पद में प्रयुक्त शब्दों को पहले जैसी स्थिति में लाना अर्थात् अलग-अलग करना समास-विग्रह कहलाता है; जैसे –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 1

समास की विशेषताएँ –
(i) समास में दो या दो से अधिक पदों का मेल होता है।
(ii) समास में शब्द पास-पास आकर नया शब्द बनाते हैं।
(iii) पदों के बीच विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है।
(iv) समास से बने शब्द में कभी उत्तर पद प्रधान होता है तो कभी पूर्व पद और कभी-कभी अन्य पद। इसके अलावा कभी कभी दोनों पद प्रधान होते हैं।

समास के भेद-समास के निम्नलिखित छह भेद होते हैं –
(क) अव्ययीभाव समास
(ख) तत्पुरुष समास
(ग) कर्मधारय समास
(घ) द्विगु समास
(ङ) द्वंद्व समास
(च) बहुव्रीहि समास

(क) अव्ययीभाव समास – जिस समास में पूर्व पद प्रधान एवं अव्यय होता है तथा समस्त पद भी प्रधान होता है, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसका उत्तर पद संज्ञा या विशेषण होता है। समास किये जाने के पहले दोनों पदों का भाव अलग-अलग होता है।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 2

(ख) तत्पुरुष समास – जिस सामासिक शब्द का दूसरा पद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच लगी विभक्ति या विभक्ति चिह्नों का लोप हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 3

विभक्तियों के आधार पर तत्पुरुष समास के छह उपभेद हैं –
(i) कर्म तत्पुरुष-इसमें ‘कर्म कारक’ की विभक्ति (विभक्ति चिह्न) ‘को’ का लोप हो जाता है।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 4

(ii) करण तत्पुरुष – इसमें ‘करण कारण’ की विभक्ति (विभक्ति चिह्नों) ‘से’, ‘के द्वारा’ का लोप हो जाता है।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 5

(iii) संप्रदान तत्पुरुष – इसमें ‘संप्रदान कारक’ की विभक्ति ‘को’, ‘के लिए’ का लोप हो जाता है।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 6

(iv) अपादान तत्पुरुष – इसमें ‘अपादान कारक’ के विभक्ति चिह्न ‘से अलग’ का लोप होता है।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 7

(v) संबंध तत्पुरुष – इसमें ‘संबंध कारक’ के विभक्ति चिह्न ‘का’, ‘के’, ‘की’ का लोप होता है।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 8

(vi) अधिकरण तत्पुरुष-इसमें ‘अधिकरण कारक’ के विभक्ति चिह्न ‘में’, ‘पर’ का लोप होता है।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 9

(ग) कर्मधारय समास-जिस समास का पहला पद विशेषण या उपमेय और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है, उसे कर्मधारय समास कहते हैं।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 10
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 11

(घ) द्विगु समास-जिस समास में प्रथम पद संख्यावाचक हो, वह द्विगु समास कहलाता है।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 12

(ङ) वंद्व समास-जिस समास में प्रथम और दूसरा, दोनों पद प्रधान हों और समास करने पर ‘या’, ‘और’, ‘तथा’, ‘अथवा’ जैसे योजकों का लोप होता है।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 13
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 14
(च) बहुव्रीहि समास-जिस समास में प्रथम एवं दूसरा पद गौण होते हैं तथा किसी तीसरे पद की तरफ़ संकेत करते हैं, बहुव्रीहि समास कहलाता है।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 15
नोट : समास का विग्रह बदलने पर उसका नाम भी बदल जाता है।
उदाहरण –
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 16
प्रश्न 1.
निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रह कीजिए और समास का नाम भी लिखिए –

  1. कर्मभूमि
  2. ऋणमुक्त
  3. राजीवलोचन
  4. क्रोधाग्नि
  5. त्रिनेत्र
  6. कार्यकुशल
  7. भारतभूमि
  8. कालीमिर्च
  9. कनकलता
  10. कमलनयन
  11. बाढ़ग्रस्त
  12. अकालपीड़ित
  13. कृपापात्र
  14. सेनानायक
  15. सत्यार्थी
  16. चंद्रमुखी
  17. त्रिफला
  18. सचिवालय
  19. प्रधानमंत्री
  20. पंचवटी
  21. क्रीडांगन
  22. आमरण
  23. महात्मा
  24. घर-घर
  25. परीक्षाफल
  26. आजन्म
  27. चौराहा
  28. यथाशक्ति
  29. सप्तर्षि
  30. रक्तदाता
  31. गजानन
  32. राजा-रानी
  33. रसोईघर
  34. राहखर्च
  35. नीतिनिपुण
  36. विद्यालय
  37. धर्मभ्रष्ट
  38. ऋणमुक्त
  39. त्रिफला
  40. नगरवासी
  41. पदच्युत
  42. ग्रामगत
  43. पीतांबर
  44. हथकड़ी
  45. भुजदंड
  46. नीलगाय
  47. क्रय-विक्रय
  48. नीलकंठ
  49. दयानिधि
  50. पंचानन
  51. रोगग्रस्त
  52. विहारीकृत
  53. हाथोंहाथ
  54. श्वेतवसना
  55. दहीबड़ा
  56. घनश्याम
  57. एकदंत
  58. सप्तपदी
  59. त्रिवेणी
  60. चरणकमल
  61. यश-अपयश
  62. आसमुद्र
  63. घर-आँगन
  64. घुड़सवार
  65. कर्मयोगी
  66. महावीर
  67. मृगाथी
  68. बातोंबात
  69. परीक्षाफल
  70. दशानन
  71. शताब्दी
  72. राजकन्या
  73. ज्वरपीड़ित
  74. अश्वपति
  75. नीलांबुज
  76. घुड़दौड़
  77. शोकाकुल
  78. नवनिधि
  79. त्रिनेत्र
  80. सीता-राम

उत्तरः
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 17
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 18
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 19
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 20
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 21

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए विग्रहों के लिए सामासिक पद लिखते हुए समास का नाम भी लिखिए

  1. राह के लिए खर्च
  2. कमल जैसे नयन हैं जिसके अर्थात् श्रीराम
  3. जितना शीघ्र हो
  4. जैसा संभव हो
  5. रसोई के लिए घर
  6. पीला है वस्त्र
  7. रात और दिन
  8. नियम के अनुसार
  9. गुण से हीन
  10. तीन फलों का समूह
  11. प्रधान है जो अध्यापक
  12. आठ अध्यायों का समाहार
  13. विधि के अनुसार
  14. चार आनों का समाहार
  15. मवेशियों के लिए घर
  16. कनक के समान लता
  17. सत्य के लिए आग्रह
  18. चार भुजाएँ हैं जिसकी अर्थात् एक विशेष आकृति
  19. देश और विदेश
  20. कन्या रूपी धन
  21. काला है सर्प
  22. हवन के लिए सामग्री
  23. राधा और कृष्ण
  24. रेखा से अंकित
  25. नवरत्नों का समाहार
  26. माल के लिए गोदाम
  27. वन में वास करने वाला
  28. जीवन भर
  29. राह के लिए खर्च
  30. स्वयं द्वारा रचा हुआ
  31. आज्ञा के अनुसार
  32. जीवन पर्यंत
  33. वचन रूपी अमृत
  34. हाथ ही हाथ में
  35. महान है राजा महान ह राजा
  36. सात ऋषियों का समाहार
  37. जल की धारा
  38. तीन वेणियों का समूह
  39. ज्वर से ग्रस्त
  40. मुसाफ़िरों के लिए खाना (घर)
  41. राजा का निवास स्थल
  42. नीति में निपुण
  43. आनंद में डूबा हुआ
  44. देश के लिए भक्ति
  45. मन से गढ़ा हुआ
  46. मद से अंधा
  47. भूख से मरा हुआ
  48. गुरु के लिए दक्षिणा
  49. पुरुषों में उत्तम
  50. प्रजा का पालक
  51. मानव द्वारा निर्मित
  52. स्नेह से सिंचित
  53. आज्ञा के अनुसार
  54. बिना संदेह के
  55. पाँच तंत्रों का समाहार
  56. कमल के समान चरण
  57. चक्र को धारण करता है जो अर्थात् कृष्ण
  58. जीवन और मरण
  59. गुण से हीन
  60. सत्य के लिए आग्रह
  61. गगन को चूमने वाला
  62. जीवनरूपी संग्राम
  63. चंद्रमा है शिखर पर जिसके अर्थात् चंद्रशेखर

उत्तरः
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 22
CBSE Class 10 Hindi B व्याकरण समास - 23

NCERT Solutions for Class 10 Hindi

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NCERT Solutions For Class 11 Biology Cell Cycle and Cell Division

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NCERT Solutions For Class 11 Biology Cell Cycle and Cell Division

Topics and Subtopics in NCERT Solutions for Class 11 Biology Chapter 10 Cell Cycle and Cell Division:

Section NameTopic Name
10Cell Cycle and Cell Division
10.1Cell Cycle
10.2M Phase
10.3Significance of Mitosis
10.4Meiosis
10.5Significance of Meiosis
10.6Summary

NCERT Solutions Class 11 BiologyBiology Sample Papers

NCRT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED

1. What is the average cell cycle span for a mammalian cell?
Solnution: 24 hours.

2. Distinguish cytokinesis from karyokinesis.
Solnution: Differences between cytokinesis and karyokinesis are:
ncert-solutions-for-class-11-biology-cell-cycle-and-cell-division-1

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3. Describe the events taking place during interphase.
Solnution: The interphase, though called the resting phase, is metabolically quite active. It is the time during which the cell prepares itself for division by undergoing both cell growth and DNA replication in an orderly manner. The interphase is further divided into three phases:
• G1 (Gap 1) phase
• S (Synthesis) phase
• G2 (Gap 2) phase
G1 phase corresponds to the interval between mitosis of previous cell cycle and initiation of DNA replication. During G1 phase the cell is metabolically active and grows continuously but does not replicate its DNA S or synthesis phase marks the period during which DNA synthesis or replication takes place. During this time the amount of DNA doubles per cell. In animal cells, during the S phase, DNA replication occurs in the nucleus, and the centriole duplicates in the cytoplasm. During the G2 phase synthesis of DNA stops while cell growth continues with synthesis of protein and RNA in preparation for mitosis.

4. What is G0 (quiescent phase) of cell cycle?
Solnution: G0 phase is the phase of inactivation of cell cycle due to non-availability of mitogens and energy rich compounds. Cells in this stage remain metabolically active but no longer proliferate i.e., do not grow or differentiate unless called on to do so depending on the requirement of the organism. E.g., Nerve and heart cells of chordates are in permanent G0 phase.

5. Why is mitosis called equational division?
Solnution: Mitosis is a type of cell division in which chromosomes replicate and become equally distributed in two daughter nuclei so that the daughter cells come to have the same number and type of chromosomes as present in parent cell. So mitosis is called as equational division.

6. Name the stage of cell cycle at which each one of the following events occur:
(i) Chromosomes are moved to spindle equator.
(ii) Centromere splits and chromatids
separate.
(iii) Pairing between homologous chromo-somes takes place.
(iv) Crossing over between homologous chromosomes takes place.
Solnution: 
(i) Metaphase
(ii) Anaphase
(iii) Zygotene of prophase I of meiosis 1
(iv) Pachytene of prophase I of meiosis I

7. Describe the following:
(a) Synapsis
(b) Bivalent
(c) Chiasmata
Draw a diagram to illustrate your answer.
Solnution: 
(a) Synapsis: During zygotene of prophase I stage homologou s chromosomes start pairing together and this process of association is called synapsis. Electron micrographs of this stage indicate that chromosome synapsis is accompanied by the formation of complex structure called synaptonemal complex.
(b) Bivalent: The complex formed by a pair of synapsed homologous chromosomes is called a bivalent or a tetrad i.e., 4 chromatids or a pair of chromosomes.
ncert-solutions-for-class-11-biology-cell-cycle-and-cell-division-2
(c) Chiasmata: The beginning of diplotene is recognized by the dissolution of the synaptonemal complex and the tendency of the synapsed homologous chromosomes of the bivalents to separate from each other except at the sites of crossovers. These points of attachment (X-shaped structures) between the homologous chromosomes are called chiasmata.

8. How does cytokinesis in plant cells differ from that in animal cells?
Solnution: Plant cytokinesis and animal cytokinesis differ in following respects:
ncert-solutions-for-class-11-biology-cell-cycle-and-cell-division-3

9. Find examples where the four daughter cells from meiosis are equal in size and where they are found unequal in size.
Solnution: During formation of male gametes (i.e., spermatozoa) in a typical mammal (i.e., human being), the four daughter cells formed from meiosis are equal in size. On the other hand, during formation of female gamete (i.e., ovum) in a typical mammal (i.e., human being), the four daughter cells are unequal in size.

10. Can there be DNA replication without cell division?
Solnution: Yes. Endomitosis is the multiplication of chromosomes present in a set in nucleus without karyokinesis and cytokinesis result-ing in numerous copies within each cell. It is of 2 types.
Polyteny: Here chromosomes divide and redivide without separation of chromatids so that such chromosomes become multistranded with many copies of DNA. Such polytene (many stranded) chromosomes remain in permanent prophase stage and do not undergo cell cycle e.g., polytene (salivary glands) chromosome of Drosophila has 512- 1024 chromatids. Here number of sets of chromosomes does not change.
Polyploidy (endoduplication) : Here all chromosomes in a set divide and its chromatids separate but nucleus does not divide. This results in an increase in number of sets of chromosomes in the nucleus (4x, 8x….). This increase in sets of chromosomes is called polyploidy. It can be induced by colchicine and granosan. These chromosomes are normal and undergo cell cycle.

11. List the main differences between mitosis and meiosis.
Solnution: 
ncert-solutions-for-class-11-biology-cell-cycle-and-cell-division-4

12. Distinguish anaphase of mitosis from anaphase I of meiosis.
Solnution: Anaphase of mitosis : It is the phase of shortest duration. APC (anaphase promoting complex) develops. It degenerates proteins -binding the two chromatids in the region of centromere. As a result, the centromere of each chromosome divides. This converts the two chromatids into daughter chromosomes each being attached to the spindle pole of its side by independent chromosomal fibre. The chromosomes move towards the spindle poles with the centromeres projecting towards the poles and the limbs trailing behind. There is corresponding shortening of chromosome fibres. The two pole-ward moving chromosomes of each type remain attached to each other by interzonal fibres. Ultimately, two groups of chromosomes come to lie at the spindle poles.
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Anaphase I of meiosis : Chiasmata disappear completely and the homologous chromosomes separate. The process is called disjunction. The separated chromosomes (univalents) show divergent chromatids and are called dyads. They move towards the spindle poles and ultimately form two groups of haploid chromosomes.
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13. What is the significance of meiosis?
Solnution: The significance of meiosis is given below:
(i) Formation of gametes – Meiosis forms gametes that are essential for sexual reproduction.
(ii) Genetic information – It switches on the genetic information for the development of gametes or gametophytes and switches off the sporophytic information. ‘
(iii) Maintenance of chromosome number – Meiosis maintains the fixed number of chromosomes in sexually reproducing organisms by halving the same. It is essential since the chromosome number becomes double after fertilisation.
(iv) Assortment of chromosomes – In meiosis paternal and maternal chromosomes assort independently. It causes reshuffling of chromosomes and the traits controlled by them. The variations help the breeders in improving the races of useful plants and animals.
(v) Crossing over – It introduces new combination of traits or variations.
(vi) Mutations – Chromosomal and genomic mutations can take place by irregularities of meiotic divisions. Some of these mutations are useful to the organism and are perpetuated by natural selection.
(vii) Evidence of basic relationship of organisms – Details of meiosis are essentially similar in the majority of organisms showing their basic similarity and relationship.

14. Discuss with your teacher about
(i) haploid insects and lower plants where cell division occurs, and
(ii)some haploid cells in higher plants where cell division does not occur.
Solnution: 
(i) Cell division occurs in haploid insect, such as drones of honey bee and lower plant like gametophyte of algae, bryophytes, and pteridophytes.
(ii) Synergids and antipodals in embryo sac of ovule are haploid cells where cell division does not occur.

15. Can there be mitosis without DNA replication in’S’phase?
Solnution: No there cannot be any mitotic division without-DNA replication in ‘S’ phase.

16. Analyse the events during every stage of ceil cycle and notice how the following two parameters change.
(i) number of chromosomes (N) per cell
(ii) amount of DNA content (C) per cell
Solnution: Number of chromosomes and amount of DNA change during S-phase and anaphase of cell cycle. S or synthesis phase marks the period during which DNA synthesis or replication takes place. During this time the amount of DNA per cell doubles. If the initial amount of DNA is denoted as 2C then it increases to 4C. However, there is no increase in the chromosome number; if the cell had diploid or 2N number of chromosomes at G„ even after S phase the number of chromosomes remains the same, i.e., 2N.
In mitotic anaphase, number of chromosomes remains the same. It is only sister chromatids which move towards their respective poles. DNA content remains unchanged. In anaphase I of meiosis, number of chromosomes are reduced to half, i.e., from 2N to IN and also DNA content decrease to one half i.e., from 4C to 2C. In anaphase II of meiosis II DNA content decreases to one half from 2C to 1C but chromosome number remain same.

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NCERT Solutions For Class 11 Biology Photosynthesis in Higher Plants

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NCERT Solutions For Class 11 Biology Photosynthesis in Higher Plants

Topics and Subtopics in NCERT Solutions for Class 11 Biology Chapter 13 Photosynthesis in Higher Plants:

Section NameTopic Name
13Photosynthesis in Higher Plants
13.1What do we Know?
13.2Early Experiments
13.3Where does Photosynthesis take place?
13.4How many Pigments are involved in Photosynthesis?
13.5What is Light Reaction?
13.6The Electron Transport
13.7Where are the ATP and NADPH Used?
13.8The C4 Pathway
13.9Photorespiration
13.10Factors affecting Photosynthesis
13.11Summary

NCRT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED

1. By looking at a plant externally can you tell whether a plant is C3 or C? Why and how?
Solution: It is not possible to distinguish externally between a C3 and C4 plant, but generally tropical plants are adapted for C cycle.

2. By looking at which internal structure of a plant can you tell whether a plant is C3 or C? Explain.
Solution: C plants live in hot moist or arid and nonsaline or saline habitats. Internally the leaves show kranz anatomy. In kranz anatomy, the mesophyll is undifferentiated and its cells occur in concentric layers around vascular bundles. Vascular bundles are surrounded by large sized bundle sheath cells which are arranged in a wreath-like manner (kranz – wreath). The mesophyll and bundle sheath cells are connected by plasmodesmata or cytoplasmic bridges. The chloroplasts of the mesophyll cells are smaller. They have well developed grana and a peripheral reticulum but no starch. Mesophyll cells are specialised to perform light reaction, evolve 02 and produce assimilatory power (ATP and NADPH). They also possess enzyme PEPcase for initial fixation of CO2 The chloroplasts of the bundle sheath cells are agranal.

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3. Even though a very few cells in a C plant carry out the biosynthetic – Calvin pathway, yet they are highly productive. Can you discuss why?
Solution: Since, through C cycle, a plant can photosynthesise even in presence of very low concentration of CO2 (upto 10 parts per million), the partial closure of stomata due to xeric conditions would not bring much
effect. Therefore, the plants can adapt to grow at low water content, high temperature and bright light intensities. This cycle is specially suited to such plants which grow in dry climates of tropics and subtropics. Besides, the photosynthetic rate remains higher due to absence of photorespiration in these plants. It can be visualised that both C cycle and photorespiration are the result of evolution or might have been one of the reasons of evolution for the adaptation of plants to different environments. C plants are about twice to efficient as Cplants in converting solar energy into production of dry matter.

4. RuBisCO is an enzyme that acts both as a carboxylase and oxygenase. Why do you think RuBisCO carries out more carboxylation in C plants?
Solution: RuBisCO is an enzyme which acts both as carboxylase (carboxylation during photosynthesis) and oxygenase (during photorespiration). But RuBisCO carries out more carboxylation in C4 plants. In C plants, initial fixation of carbon dioxide occurs in mesophyll cells. The primary acceptor of C02 is phosphoenol pyruvate or PER It combines with carbon dioxide in the presence of PEP carboxylase or PEPcase to form oxaloacetic acid or oxaloacetate. Malic acid or aspartic acid is translocated to bundle sheath cells through plasmodesmata. Inside the bundle sheath cells they are decarboxylated (and deaminated in case of aspartic acid) to form pyruvate and CO2 . CO2 is again fixed inside the bundle sheath Cells through Calvin cycle. RuBP of Calvin cycle is called secondary or final acceptor of CO2 in C plants. Pyruvate is sent back to mesophyll cells.

5. Suppose there were plants that had a high concentration of chlorophyll b, but lacked chlorophyll a, would it carry out photosynthesis? Then why do plants have chlorophyll b and other accessory pigments?
Solution: Plants that do not possess chlorophyll a will not carry out photosynthesis because it is the primary pigment and act as the reaction centre. It performs the primary reactions of photosynthesis or conversion of light into chemical or electrical energy. Other photosynthetic pigments are called accessory pigments. They absorb light energy of different wavelengths and hence broaden the spectrum of light absorbed by photosynthetic pigments. These pigments hand over the absorbed energy to chlorophylla.

6. Give comparison between the following:
(a) C3 andC pathways
(b) Cyclic and non-cydic photophosphorylation
(c) Anatomy of leaf in C3 and C plants.
Solution: (a) The differences between C3 and C
ncert-solutions-for-class-11-biology-photosynthesis-in-higher-plants-1
ncert-solutions-for-class-11-biology-photosynthesis-in-higher-plants-2
(b) The differences between cyclic and non- cyclic photophosphorylation are as follows :
ncert-solutions-for-class-11-biology-photosynthesis-in-higher-plants-3
ncert-solutions-for-class-11-biology-photosynthesis-in-higher-plants-4
(c) Differences between the leaf anatomy of C3 and C4plants are as follows :
ncert-solutions-for-class-11-biology-photosynthesis-in-higher-plants-5

7. Look at leaves of the same plant on the shady side and compare it with the leaves on the sunny side. Or ompare the potted plants kept in the sunlight with those in the shade. Which of them has leaves that are darker green? Why?
Solution: The leaves of the shaded side are darker green than those kept in sunlight due to two reasons:
(i) The chloroplasts occur mostly in the mesophyll cells along their walls for receiving optimum quantity of incident light.
(ii)The chloroplasts align themselves in vertical position along the lateral walls of high light intensity and along tangential wails in moderate light.

8. The given figure shows the effect of light on the rate of photosynthesis. Based on the graph, answer the following questions.
ncert-solutions-for-class-11-biology-photosynthesis-in-higher-plants-6
(a) At which point/s (A, B or C) in the curve is light limiting factor?
(b) What could be the limiting factor/s in region A?
(c) What do C and D represent on the curve?
Solution: (a) At regions A and B light is the limiting factor.
(b) In the region A’, light can be a limiting factor.
(c) C is the region where the rate of photosynthesis is not increased when light intensity is increased. D is the point where some other factors become limiting.

9. Why is the colour of a leaf kept in the dark frequently becomes yellow, or pale green? Which pigment do you think is more stable?
Solution: Carotenoid pigments are found in all photosynthetic cells. They are accessory pigments also found in roots, petals etc. These pigments do not breakdown easily thus temporarily reveal their colour due to unmasking, following breakdown of chlorophylls. Thus the colour of leaf kept in dark is yellow or pale green.

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NCERT Solutions For Class 11 Biology Breathing and Exchange of Gases

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NCERT Solutions For Class 11 Biology Breathing and Exchange of Gases

Topics and Subtopics in NCERT Solutions for Class 11 Biology Chapter 17 Breathing and Exchange of Gases:

Section NameTopic Name
17Breathing and Exchange of Gases
17.1Respiratory Organs
17.2Mechanism of Breathing
17.3Exchange of Gases
17.4Transport of Gases
17.5Regulation of Respiration
17.6Disorders of Respiratory System
17.7Summary

NCERT TEXTBOOK QUESTIONS FROM SOLVED

1. Define vital capacity. What is its significance?
Solution: Vital capacity is defined as the maximum volume of air a person can breathe in after a forced expiration or the maximum volume of air a person can breathe out after a forced inspiration. It represents the maximum amount of air one can renew in the respiratory system in a single respiration. Thus, greater the vital capacity more is the energy available to the body.

2. State the volume of air remaining in the lungs after a normal breathing.
Solution: When a person breathes normally, the amount which remains in the lung after normal expiration, is called functional residual capacity. It is the sum of residual volume and the expiratory reserve volume (FRC = RV + ERV). It is about 2100 – 2300 mL of air.

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3. Diffusion of gases occurs in the alveolar region only and not in the other parts of respiratory system. Why?
Solution: For efficient exchange of gases, respi: atory surface must have certain characteristics such as (i) it must be thin, me ist and permeable to respiratory gases (ii) it must have large surface area, (iii) it must be highly vascular. Only alveolar region has these characteristics. Thus, diffusion of gases occurs in this region only.

4. What are the major transport mechanisms for CO2? Explain.
Solution: Nearly 20-25 percent of CO2 is transported by haemoglobin of RBCs, 70 percent of it is carried as bicarbonate ion in
plasma and about 7 percent of CO2 is carried in a dissolved state through plasma. CO2 is carried by haemoglobin as carbamino- haemoglobin. This binding is related to the partial pressure of CO2.

5. What will be the p02 and pCO2 in the atmospheric air compared to those in the alveolar air?
(i) pO2 lesser, pCO2 higher
(ii) pO2 higher, pCO2 lesser
(iii) pO2 higher, pCO2 higher
(iv) pO2 lesser, pCO2 lesser
Solution: (ii) Air that has entered the alveoli through the bronchioles is called alveolar air. It has the same partial pressure of CO2 and 02 as is in the atmospheric air. Then, there occurs gaseous exchange between the adjacent blood capillaries and the alveoli. CO2 diffuses from blood into the alveolar air and O2 diffuses from alveolar air to the blood. As a result, new alveolar air has higher pCO2and lesser pO2, than the atmospheric air.

6. Explain the process of inspiration under normal conditions.
Solution: Inspiration is a process by which fresh air enters the lungs. The diaphragm, intercostal muscles and abdominal muscles play an important role. The muscles of the diaphragm and external intercostal muscles are principle muscles of inspiration. Volume of thoracic cavity increases by contraction of diaphragm and external intercostal muscles. During inspiration, relaxation of abdominal muscles also occurs which allows compression of the abdominal organs by diaphragm. Thus, overall volume of the thoracic cavity increases and as a result, there is a decrease of the air pressure in the lungs. The greater pressure outside the body now causes air to flow rapidly into the lungs. The sequence of air flow is.

7. How is respiration regulated?
Solution: Respiration is under both nervous and chemical regulation.
The respiratory centre in brain is composed of groups of neurons located in the medulla oblongata and pons varolii. The respiratory centre regulates the rate and depth of the breathing.
Dorsal respiratory group of neurons are located in the dorsal portion of the medulla oblongata. This group of neurons mainly causes inspiration.
Ventral group of neurons are located in the ventrolateral part of the medulla oblongata. These can cause either inspiration or expiration.
Pneumotaxic centre is located in the dorsal part of pons varolii. It sends signals to all the neurons of dorsal respiratory group and only to inspiratory neurons of ventral respiratory group. Its job is primarily to limit inspiration. Chemically, respiration is regulated by the large numbers of chemoreceptors located in the carotid bodies and in the aortic bodies. Excess carbon dioxide or hydrogen ions mainly stimulate the respiratory centre of the brain and increases the inspiratory and expiratory-signals to the respiratory muscles. Increased C02 lowers the pH resulting in acidosis. The role of oxygen in the regulation of respiratory rhythm is quite insignificant.

8. What is the effect of pCO2on oxygen transport?
Solution: Increase in pCO2 tension in blood brings rightward shift of the oxygen dissociation curve of haemoglobin thereby decreasing the affinity of haemoglobin for oxygen. This effect is called Bohr’s effect. It plays an important role in the release of oxygen in the tissues.

9. What happens to the respiratory process in a man going up a hill?
Solution: Rate of breathing will increase in order to supply sufficient oxygen to blood because air in mountainous region is deficient in oxygen.

10. What is the site of gaseous exchange in an insect?
Solution: Tracheae (Tracheal respiration) is the site of gaseous exchange in an insect. .

11. Define oxygen dissociation curve. Can you suggest any reason for its sigmoidal pattern?
Solution: The relationship between the partial pressure of oxygen (pO2) and percentage saturation of the haemoglobin with oxygen (O2)is graphically illustrated by a curve called oxygen haemoglobin dissociation curve (also called oxygen dissociation curve).
The sigmoidal pattern of oxygen haemoglobin dissociation curve is the result of two properties which play significant role in the transport of oxygen. These two properties are:
(i) Minimal loss of oxygen from haemoglobin occurs above p02 of 70-80 mm Hg despite significant changes in tension of oxygen beyond this. This is depicted by relatively flat portion of the curve.
(ii)Any further decline in p02 from 40 mm Hg causes a disproportionately greater release of oxygen from the haemoglobin. It results in the steeper portion of the curve and causes the curve to be sigmoid.

12. Have you heard about hypoxia? Try to gather information about it, and discuss with your friends.
Solution: Hypoxia is a condition of oxygen shortage in the tissues. It is of two types:
(i) Artificial hypoxia: It results from shortage of oxygen in the air as at high altitude. It causes mountain sickness characterised by breathelessnes, headache, dizziness and bluish tinge on skin.
(ii) Anaemic hypoxia: It results from the reduced oxygen carrying capacity of the blood due to anaemia or carbon monoxide poisoning. In both cases, less haemoglobin is available for carrying 02.

13. Distinguish between
(a) IRV and ERV
(b) Inspiratory capacity and expiratory capacity.
(c) Vital capacity and total lung capacity.
Solution:
(a) Differences between IRV and ERV are as follows:
ncert-solutions-for-class-11-biology-breathing-and-exchange-of-gases-1
(b)Differences between inspiratory capacity and expiratory capacity are as follows:
ncert-solutions-for-class-11-biology-breathing-and-exchange-of-gases-2
(c) Differences between vital capacity and total lung capacity are as follows:
ncert-solutions-for-class-11-biology-breathing-and-exchange-of-gases-3

14. What is tidal volume? Find out the tidal volume (approximate value) for a healthy human in an hour.
Solution: Tidal volume is the volume of air inspired or expired with each normal breath. This is about 500 mL in an adult person. It is composed of about 350 mL of alveolar volume and about 150 mL of dead space volume. The alveolar volume consists of air that reaches the respiratory surfaces of the alveoli and engages in gas exchange. The dead space volume consists of air that does not reach the respiratory surfaces.
A healthy man can inspire or expire approximately 6000 to 8000 mL of air per minute. Therefore, tidal volume for a healthy human in an hour is 360 – 480 mL of air.

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NCERT Solutions For Class 11 Biology Body Fluids and Circulation

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NCERT Solutions For Class 11 Biology Body Fluids and Circulation

Topics and Subtopics in NCERT Solutions for Class 11 Biology Chapter 18 Body Fluids and Circulation:

Section NameTopic Name
18Body Fluids and Circulation
18.1Blood
18.2Lymph (Tissue Fluid)
18.3Circulatory Pathways
18.4Double Circulation
18.5Regulation of Cardiac Activity
18.6Disorders of Circulatory System
18.7Summary

NCERT TEXTBOOK QUESTIONS FROM SOLVED

1. Name the components of the formed elements in the blood and mention one major function of each of them.
Solutlion: Blood corpuscles are the formed ele-ments in the blood, they constitute 45% of the blood. Formed elements are – (erythrocytes, RBCs or red blood corpuscles), (leucocytes, WBCs or white blood corpuscles) and throm¬bocytes or blood platelets. The major function of RBCs is to transport oxygen from lungs to body tissues and COz from body tissues to the lungs. White blood cells provide immunity to the body. Blood platelets play important role in blood clotting.

2. What is the importance of plasma proteins?
Solutlion: Plasma proteins constitute about 7 to 8% of plasma. These mainly include albumin, globulin, prothrombin and fibrinogen. Prothrombin and fibrinogen are needed for blood clotting. Albumins and globulins retain water in blood plasma and helps in maintainingosmoticbalance. Certain globulins

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3. Match Column I with Column II.
Column I                          Column II
(a) Eosinophils               (i) Coagulation
(b) RBC                            (ii) Universal recipient
(c) AB Group                  (iii) Resist infections
(d) Platelets                    (iv) Contraction of heart
(e) Systol                         (v) Gas transport
Solutlion.(a) – (iii); (b) – (v); (c) – (ii); (d) – (i); (e) – (iv).

4. Why do we consider blood as a connective tissue?
Solutlion: A connective tissue connects different tissues or organs of the body. It consists of living cells and extracellular matrix. Blood is vascular connective tissue, it is a mobile tissue consisting of fluid matrix and free cells. Blood transports materials from one place to the other and thereby establishes connectivity between different body parts.

5. What is the difference between lymph and blood?
Solutlion: The differences between blood and lymph are given below:
ncert-solutions-for-class-11-biology-body-fluids-and-circulation-1

6. What is meant by double circulation? What is its significance?
Solutlion: The type of blood circulation in which oxygenated blood and deoxygenated blood do not get mixed is termed double circulation. It includes systemic circulation and pulmonary circulation. The circulatory pathway of double circulation is given in the following flow chart.
ncert-solutions-for-class-11-biology-body-fluids-and-circulation-2
Flow chart: Double blood circulation Double circulation or separation of systemic and pulmonary circulations provides a higher metabolic rate to the body and also allows the two circulations to have different blood pressures according to the need of the organs they supply.

7. Write the differences between:
(a) Blood and lymph
(b) Open and closed system of circulation
(c) Systole and diastole
(d) P-wave and T-wave
Solutlion: (a) Refer answer 5.
(b) The differences between open and closed circulatory system are given below:
ncert-solutions-for-class-11-biology-body-fluids-and-circulation-3
ncert-solutions-for-class-11-biology-body-fluids-and-circulation-4
(c) Systole is contraction of heart chambers in order to pump out blood while diastole is relaxation of heart chambers to receive blood. The contraction of a chamber or systole decreases its volume and forces the blood out of it, whereas its relaxation or diastole brings it back to its original size to receive more blood.
(d) P wave is a small upward wave of elec-trocardiograph that indicates the atrial depolarisation (contraction of atria). It is caused by the activation of SA node. T-wave is a dome shaped wave of electro-cardiograph which represents ventricular repolarisation (ventricular relaxation).

8. Describe the evolutionary change in the pattern of heart among the vertebrates.
Solutlion: Vertebrates have a single heart. It is a hollow, muscular organ composed of cardiac muscle fibres. Two types of chambers in heart are atria and ventricles. The heart of lower vertebrates have additional chambers, namely sinus venosus and conus arteriosus or bulbus arteriosus or truncus arteriosus. During the course of development, in higher vertebrates, the persistent portions viz, auricles and ventricles are retained. However, these get complicated by incorporating several valves inside them and becoming compartmentali sed.
In fishes, heart is two chambered (1 auricle and 1 ventricle). Both the accessory chambers, sinus venosus and conus arteriosus are present. The heart pumps out deoxygenated blood which is oxygenated by the gills and sent to the body parts from where deoxygenated blood is carried to the heart. It is called single circulation and heart is called venous heart. Lung fish, amphibians and reptiles have three chambered heart, (2 auricles and 1 ventricle). The left atrium gets oxygenated blood from the gills/lungs/skin/buccopharyngeal cavity and the right atrium receives the deoxygenated blood from other body parts. But both oxygenated and deoxygenated blood get mixed up in single ventricle which pumps out mixed blood. This is called incomplete double circulation.
Crocodiles, birds and mammals have a complete four chambered heart (right and left auricles; right and left ventricles). Oxygenated and deoxygenated blood never get mixed. Right parts of the heart receive deoxygenated blood from all other body parts and send it to lungs for oxygenation whereas left parts of heart receive oxygenated blood from lungs and send it to other body parts. This mode of circulation is termed as complete double circulation which includes systemic and pulmonary circulation. There are no accessory chambers in heart of birds and mammals.

9. Why do we call our heart myogenic?
Solutlion: The heart of molluscs and vertebrates including humans is myogenic. It means heart beat is initiated in heart itself by a patch of modified heart muscle called sino-atrial node or pacemaker which lies in the wall of the right atrium near the opening of the superior vena cava.

10. Sino-atrial node is called the pacemaker of our heart. Why?
Solutlion: Sino-atrial node (SAN) is a mass of neuromuscular tissue which lies in the wall of right atrium. It is responsible for initiating and maintaining the rhythmic contractile activity of the heart. Therefore, it is called the pacemaker.

11. What is the significance of atrio-ventricular node and atrio-ventricular bundle in the functioning of heart?
Solutlion: Atrio-ventricular node (AVN) is a mass of neuromuscular tissue, which is situated in wall of. right atrium, near the base of inter-atrial septum. AV node is the pacesetter of the heart,- as it transmits the impulses initiated by SA node to all parts of ventricles. Atrio-ventricular bundle (A-V bundle) or bundle of His is a mass of specialised fibres which originates from the AVN. Within the myocardium of the ventricles the branches of bundle of His divide into a network of fine fibres called Purkinje fibres. The bundle of His and the Purkinje fibres convey impulse of contraction from the AVN to the myocardium of the ventricles.

12. Define a cardiac cycle and the cardiac output.
Solutlion: The sequential events in the heart which are repeated cyclically is called cardiac cycle and it consists of systole (contraction) and diastole (relaxation) of both the atria and ventricles. The duration of a cardiac cycle is 0.8 seconds. Periods of cardiac cycle are atrial systole (0.1 second), ventricular systole (0.3 second) and complete cardiac diastole (0.4 second).
The amount of blood pumped by heart per minute is called cardiac output. It is calculated by multiplying stroke volume (volume of blood pumped by each ventricle per minute) with heart rate (number of beats per minute). The heart of normal person beats 72 times per minute and pumps out about 70 mL of blood per beat. Therefore, cardiac output averages 5000 mL or 5 litres.

13. Explain heart sounds.
Solutlion: The beating of heart produces characteristic sounds which can be heard by using stethoscope. In a normal person, two sounds are produced per heart beat. The first heart sound Tubb’ is low pitched, not very loud and of long duration. It is caused partly by the closure of the bicuspid and tricuspid valves and partly by the contraction of muscles in the ventricles.
The second heart sound ‘dubb’ is high pitched, louder, sharper and shorter in duration. It is caused by the closure of the semilunar valves and marks the end of ventricular systole.

14. Draw a standard ECG and explain the different segments in it.
Solutlion: ECG is graphic record of the electric current produced by the excitation of the cardiac muscles. The instrument used to record the changes is an electrocardiograph. A normal electrogram (ECG) is composed of a P wave, a QRS wave (complex) and a T wave. The P Wave is a small upward wave that represents electrical excitation or the atrial depolarisation which leads to contraction of both the atria (atrial contraction). It is caused by the activation of SA node. The impulses of contraction start from the SAnode and spread throughout the artia.
The QRS Wave (complex) represents ventricular depolarisation (ventricular contraction). It is caused by the impulses of the contraction from AV node through the bundle of His and Purkinje fibres and the contraction of the ventricular muscles. Thus this wave is due to the spread of electrical impulse through the ventricles.
The T Wave represents ventricular repolarisation (ventricular relaxation). The potential generated by the recovery of the ventricle from the depolarisation state is called the repolarisation wave. The end of the T-wave marks the end of systole.
ECG gives accurate information about the heart. Therefore, ECG is of great diagnostic value in cardiac diseases.
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NCERT Solutions For Class 11 Biology Excretory Products and their Elimination

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NCERT Solutions For Class 11 Biology Excretory Products and their Elimination

Topics and Subtopics in NCERT Solutions for Class 11 Biology Chapter 19 Excretory Products and their Elimination:

Section NameTopic Name
19Excretory Products and their Elimination
19.1Human Excretory System
19.2Urine Formation
19.3Function of the Tubules
19.4Mechanism of Concentration of the Filtrate
19.5Regulation of Kidney Function
19.6Micturition
19.7Role of other Organs in Excretion
19.8Disorders of the Excretory System
19.9Summary

NCERT Solutions Class 11 BiologyBiology Sample Papers

NCERT TEXTBOOK QUESTIONS FROM SOLVED

1.Define Glomerular Filtration Rate (GFR).
Solution. The amount of filtrate formed by the kidneys per minute is called glomerular filtration rate (GFR). It is approximately 125 mL/min. in a healthy person.

2.Explain the autoregulatory mechanism of GFR.
Solution. The kidneys have built-in mechanisms for the regulation of glomerular filtration rate. One such efficient mechanism is carried out by juxta glomerular apparatus (JGA). JGA is a special sensitive region formed by cellular modifications in the distal convoluted tubule and the afferent arteriole at the location of their contact. A fall in GFR can activate the JG cells to release renin which can stimulate the glomerular blood flow and thereby the GFR back to normal.

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3.Indicate whether the following statements are true or false.
(a) Micturition is carried out by a reflex.
(b) ADH helps in water elimination, making the urine hypotonic.
(c) Protein-free fluid is filtered from blood plasma into the Bowman’s capsule.
(d) Henle’s loop plays an important role in concentrating the urine.
(e) Glucose is actively reabsorbed in the proximal convoluted tubule.
Solution.(a) True (b) False (c) True (d) True (e) True

4.Give a brief account of the counter current mechanism.
Solution. The kidneys have a special mechanism for concentrating the urine, it is called counter current mechanism. The mechanism is said to be a counter current mechanism because the out flow (in the ascending limb) of Henle’s loop runs parallel to and in the opposite direction of the inflow (in the descending limb) and vasa recta. As the mechanism begins to function, the ascending limb of loop of Henle actively transports chloride and sodium ions out into the vasa recta from where it is secreted into the interstitial fluid. As a result the interstitial fluid around the loop of Henle contains large quantities of NaCl. The filtrate passes from the ascending limb of loop of Henle and enters a collecting duct. The collecting duct passes adjacent to the loop of Henle where the interstitial fluid contains large amounts of NaCl. The high osmotic pressure created by NaCl causes water to diffuse out of the collecting duct in the interstitial fluid and eventually to the blood of vasa recta. The filtrate becomes greatly concentrated and is now called urine. A similar counter current mechanism, operates between the interstitial fluid and blood passing through the vasa recta. As the blood capillary runs along the ascending limb of loop of Henle, NaCl diffuses out of the blood. The direction is reversed as the blood capillary passes along the descending limb of Henle. The blood flows in the vasa recta around the loop of Henle from ascending to the descending side while the fluid passing through the loop of Henle goes in the opposite direction. The arrangement helps to maintain the concentration gradient of NaCl.
The ‘overall function of counter current mechanism is to concentrate sodium chloride in the interstitial fluid and thereby cause water to diffuse out of the collecting ducts and concentrate the urine.

5.Describe the role of liver, lungs and skin in excretion.
Solution. Other than the kidneys, lungs, liver and skin also help in the elimination of excretory wastes. Lungs remove large amounts of C02 (18 litres/day) and also significant quantities of water every day. Liver secretes bile which contains substances like bilirubin, biliverdin, cholesterol, degraded steroid hormones, vitamins and drugs. Most of these substances ultimately pass out along with digestive wastes. The sweat and sebaceous glands in the skin can eliminate certain substances through their secretions. Sweat produced by the sweat glands is a watery fluid containing NaCl, small amounts of urea, lactic acid etc. Sebaceous glands eliminate certain substances like sterols, hydrocarbons and waxes through sebum.

6.Explain micturition.
Solution. The process of passing out urine from the urinary bladder is called micturition. Urine formed by the nephrons is ultimately carried to the urinary bladder where it is stored. This causes stretching of the wall of bladder that leads to the stimulation of stretch receptors on the walls of the bladder. This sends signal to the CNS. The CNS passes on motor messages to initiate the contraction of smooth muscles of the bladder and simultaneous relaxation of the urethral sphincter causing the release of urine.

7.Match the items of column I with those of column II.
Column I                                     Column II
(a) Ammonotelism                   (i)Birds
(b) Bowman’s capsule             (ii)Water reabsorption
(c) Micturition                          (iii)Bony fish
(d) Uricotelism                         (iv)Urinary bladder
(e) ADH                                       (v)Renal tubule
Solution. (a) – (iii), (b) – (v), (c) – (iv), (d) – (i), (e) – (ii)

8.What is meant by the term osmoregulation?
Solution. The regulation of water and solute contents of the body fluids by the kidney is called osmoregualtion.

9.Terrestrialanimalsaregenerallyeitherureotelic or uricotelic, not ammonotelic, why?
Solution. Ammonotelic animals are aquatic animals that excrete ammonia which is highly soluble in water, thus large amount of water is also excreted. Terrestrial animals cannot afford to lose such large quantities of water from their bodies as they live in environment having water scarcity. They, therefore, excrete either urea (ureotelic) or uric acid (uricotelic) as these are less soluble in water.

10. What is the significance of juxta glomerular apparatus (JGA) in kidney function?
Solution. Juxta glomerular apparatus (JGA) is a special sensitive region formed by cellular modifications in the distal convoluted tubule and the afferent arteriole at the location of their contact. The JGA plays a complex regulatory role. A fall in glomerular blood flow/ glomerular blood pressure/GFR can activate the JG cells to release renin which converts angiotensinogen in blood to angiotensin I and further to angiotensin II. Angiotensin II, being a powerful vasoconstrictor, increases the glomerular blood pressure and thereby GFR. Angiotensin II also activates the adrenal cortex to release aldosterone. Aldosterone causes reabsorption of Na+ and water from the distal parts of the tubule. This also leads to an increase in blood pressure and GFR.

11 .Name the following.
(a) A chordate animal having flame cells as excretory structures.
(b) Cortical portions projecting between the medullary pyramids in the human kidney.
(c) A loop of capillary running parallel to the Henle’s loop.
Solution. (a) Cephalochordate – Amphioxus
(b) Columns of Bertini
(c) Vasa recta

12.Fill in the gaps.
(a) Ascending limb of Henle’s loop is________to water whereas the descending limb is________to it.
(b) Reabsorption of water from distal parts of the tubules is facilitated by hormone________
(c) Dialysis fluid contains all the constituents as in plasma except________
(d) A healthy adult human excretes (on an average)________gm of urea/day.
Solution.
(a) Ascending limb of Henle’s loop is impermeable to water whereas the descending limb is permeable to it.
(b) Reabsorption of water from distal parts of the tubules is facilitated by hormone ADH.
(c) Dialysis fluid contains all the constituents as in plasma except nitrogenous wastes.
(d) A healthy adult human excretes (on an average) 25 – 30 gm of urea/day.

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NCERT Solutions For Class 12 Biology Molecular Basis of Inheritance

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NCERT Solutions For Class 12 Biology Molecular Basis of Inheritance

Topics and Subtopics in NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 6 Molecular Basis of Inheritance:

Section NameTopic Name
6Molecular Basis of Inheritance
6.1The DNA
6.2The Search for Genetic Material
6.3RNA World
6.4Replication
6.5Transcription
6.6Genetic Code
6.7Translation
6.8Regulation of Gene Expression
6.9Human Genome Project
6.10DNA Fingerprinting
6.11Summary

QUESTIONS FROM TEXTBOOK SOLVED

1.Group the following as nitrogenous bases and nucleosides: Adenine, Cytidine, Thymine, Guanosine, Uracil and Cytosine.
Ans. Nitrogenous Bases – Adenine, Uracil and Cytosine, Thymine; Nucleosides – Cytidine, guanosine.

2.If a double stranded DNA has 20 per cent of cytosine, calculate the per cent of adenine in the DNA.
Ans. In a DNA molecule, the number of cytosine molecule is equal to guanine molecules & the number of adenine molecules are equal to thymine molecules. As a result, if a double stranded DNA has 20% of cytosine, it has 20% of guanine. The remaining 60% includes both adenine & thymine which are in equal amounts. So, the percentage of adenine is 30%.

3. If the sequence of one strand of DNA is written as follows:
5′-ATGCATGCATGCATGCATGCA
TGCATGC-3′
Write down the sequence of complementary strand in 5′ -> 3′ direction.
Ans. 5′-GCATGCATGCATGCATGCAT G C ATG CAT-3′.

4.If the sequence of the coding strand in a transcription unit is written as follows: 5-ATGCATGCATGCATGCATGCA TGCATGC-3′
Write down the sequence of mRNA.
Ans. mRNA: 5′ -A U G CAU G CAU G C AU G CA UGCAUGCAUGC-3′.

5.Which property of DNA double helix led Watson and Crick to hypothesise semi-conservative mode of DNA replication? Explain.
Ans. Complementary base pairing property of DNA double helix led Watson and Crick to hypothesise semi-conservative mode of DNA replication. Watson & Crick observed that the nitrogenous bases are in complementary pairing in two strands of double helix of DNA molecule. Such an arrangement of DNA molecule led them to hypothesize the semi conservative mode of replication of DNA.

6.Depending upon the chemical nature of the template (DNA or RNA) and the nature of nucleic acids synthesized from it (DNA or RNA), list the types of nucleic acid polymerases.
Ans.(i) DNA dependent DNA polymerase – synthesis.
(ii)DNA dependent RNA polymerase – synthesis.
(iii)RNA dependent DNA polymerase – Retroviral nucleic acid.
(iv)RNA dependent RNA polymerase – cDNA synthesis.

7.How did Hershey and Chase differentiate between DNA and protein in their experiment white proving that DNA is the genetic material?
Ans.Alfred Hershey and Martha Chase (1952) worked with viruses that infect bacteria called bacteriophages. In 1952, they chose a bacteriophage known as T2 for their experimental material.
They grew some viruses on a medium that contained radioactive phosphorus (p32) and some others on medium that contained radioactive sulphur (s35). Viruses grown in the presence of radioactive phosphorus contained radioactive DNA but not radioactive protein because DNA contains phosphorus but protem does not. Similarly, viruses grown on radioactive sulphur contained radioactive protein but not radio’active DNA because DNA does not contain sulphur.
Radioactive phages were allowed to attach to E. coli bacteria. Then, as the infection proceeded, the viral coats were removed from the bacteria by agitating them in a blender. The virus particles were separated from the bacteria by spinning them in a centrifuge. ,
Bacteria which was infected with viruses that had radioactive DNA were radioactive, indicating that DNA was the material that passed from the virus to the bacteria. Bacteria that were infected with viruses that had radioactive proteins were not radioactive. This indicates that proteins did not enter the bacteria from the viruses. DNA is therefore the genetic material that is passed from virus to bacteria.

8. Differentiate between the followings:
(a)Repetitive DNA and Satellite DNA
(b)mRNAand tRNA
(c)Template strand and Coding strand
Ans. (a) The main differences between repetitive DNA and satellite DNA are as following:
(b) The main difference between mRNA and tRNA are as following:
(c) The main difference between template strand and coding strand are as follows :

9. List two essential roles of ribosome during translation.
Ans. Two essential roles of ribiosomes during translation are ;o
(i)they provide surface for binding of mRNA in the groove of smaller sub unit of ribosome.
(ii)As larger sub unit of ribosome has peptidy transferase on its ‘P’ site, therefore, it helps in joining amino acids by forming peptide bonds. .

10.In the medium where E. coli was growing, lactose was added, which induced the lac operon. Then, why does lac operon shut down some time after addition of lactose in the medium?
Ans. Lac operon is switched on adding lactose in the medium, as lactose acts as inducer and make repressor inactive. Due to this switch on of lac operon system, (3-galactosidase is formed which converts lactose into glucose and galactose. As soon as lactose is consumed, repressor again become active and cause switch off (shut down) of system.

11.Explain (in one or two lines) the function of the followings:
(a) Promoter (b) tRNA
(c) Exons
Ans. Promoter: It is one of the three components of a transcription unit that takes part in transcription. It is located at the start 5′ end and provides site for attachment of transcription factors (TATA Box) and RNA polymerase. tRNA: It takes part in the transfer of activated amino acids from cellular pool to ribosome for their taking part in protein formation.
Exons: In eukarytoes, DNA is mosaic of exons and introns. Exons are coding sequences of DNA which are transcribed and translated both.

12.Why is the Human genome project called a mega project?
Ans. Human genome project is called a mega project because
(i)it required bioinformatics data basing and other high speed computational devices for analysis, storage and retrieval of information.
(ii)it generated lot of information in the form of sequence annotation.
(iii)it was carried out in number of labs and coordinated on extensive scale.

13.What is DNA fingerprinting? Mention its application.
Ans. DNA fingerprinting is identification of difference in specific region of DNA sequences based on DNA polymorphism, repetitive DNA and satellite DNA.
Application of DNA fingerprinting: Settling, paternity disputes and identity of criminal by different DNA profiles in forensic laboratories.

14.Briefly describe the following:
(a) Transcription (b) Polymorphism
(c) Translation (d) Bioinformatics
Ans. Transcription : It is DNA directed synthesis of RNA in which the RNA is transcribed on 3*—>5’ template strand of DNA in 5’—>3’ direction. Polymorphism: Variation at genetic level arisen due,to mutation, is called polymorphism. Such variations are unique at particular site of DNA, forming satellite DNA. The polymorphism in DNA sequences is the basis of genetic mapping and DNA finger printing.
Translation : Protein synthesis from mRNA, tRNA, rRNA.
Bioinformatics : Computational method of handling and analyzing biological databases.

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