Students can access the CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi with Solutions and marking scheme Term 2 Set 1 will help students in understanding the difficulty level of the exam.
CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi Course B Set 1 with Solutions
निर्धारित समय :2 घण्टे
अधिकतम अंक : 40
सामान्य निर्देश :
- इस प्रश्न-पत्र में कुल 2 खंड हैं- खंड ‘क’ और ‘ख’।
- खंड ‘क’ में कुल 3 प्रश्न हैं। दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए इनके उत्तर दीजिए।
- खंड ‘ख’ में कुल 5 प्रश्न हैं। दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए इनके उत्तर दीजिए।
- कुल प्रश्नों की संख्या 8 है।
- प्रत्येक प्रश्न को ध्यानपूर्वक पढ़ते हुए यथासंभव क्रमानुसार उत्तर लिखिए।
खंड ‘क’
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 25 से 30 शब्दों में दीजिए – (2 × 2 = 4)
(क) ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में पर्वत द्वारा अपना प्रतिबिंब तालाब में देखना पर्वत के किन मनोभावों को स्पष्ट करना चाहता है?
उत्तर:
पर्वत में मनुष्य की भाँति भावनाएँ हैं। तालाब या दर्पण एक संकेतक है कि पर्वत क्या महसूस कर रहा है। वह स्वयं को निहारकर अपने अंतर्निहित भावों को समझने का प्रयास करता है। विशाल आकार को देखकर गर्वित होता है और अपने ऊपर खिले फूलों की शोभा को देखकर प्रसन्न हो रहा है।
व्याख्यात्मक हलः
कवि ‘सुमित्रानंदन पंत’ ने जिस प्रदेश का सजीव चित्रण किया है वहाँ पर्वत मेखलाकार रूप में स्थित हैं। उनके बीचोंबीच विशाल तालाब है जिसमें पर्वतों की परछाई स्पष्ट दिखाई दे रही है, मानो वे पर्वत अपना प्रतिबिंब तालाब रूपी दर्पण में देख रहे हैं। यहाँ पर्वतों का मानवीकरण करके मानव के मनोभावों को दर्शाया गया है कि मानव अपनी छवि को निहारने के लिए तथा सदा अपने रूप के प्रति इतना उत्साहित रहता है कि दर्पण सामने होने पर उसमें निहारना स्वाभाविक ही है।
(ख) ‘कर चले हम फिदा’ कविता और कारतूस’ एकांकी के भावों की तुलना कीजिए। विश्लेषण करते हुए अपने मत के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
‘कर चले हम फिदा’ कविता और ‘कारतूस’ एकांकी में एक समान देशभक्ति का भाव निहित है। देश की एकता, अखंडता व सुरक्षा के लिए प्राण न्योछावर करने की भावना समाहित है। कविता में सैनिकों की कर्तव्य भावना का वर्णन है एवं एकांकी में वज़ीर अली के कारनामों से मातृभूमि के प्रति उसकी कर्तव्यनिष्ठा का पता चलता है। कविता और एकांकी पाठक के हृदय में देशभक्ति व कर्तव्य भावना को जगाती हैं।
व्याख्यात्मक हलः
कविता ‘कर चले हम फिदा’ के अंतर्गत उस सैनिक की भावनाओं को दर्शाया गया है जो सीमा पर तैनात रहकर देश की रक्षा करता है। दूसरी ओर कारतूस एकांकी में जांबाज सिपाही ‘वज़ीर अली’ की बहादुरी, साहस और स्वाभिमान को दर्शाया गया है। जिसके मन में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हो, वह किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो, अपने देश की रक्षा, सुरक्षा, मान-सम्मान के लिए अंतिम सांस तक प्रयास करता है और यही भाव यह दोनों पाठ बखूबी दर्शा रहे हैं।
(ग) वज़ीर अली के जीवन का लक्ष्य अंग्रेजों को इस देश से बाहर करना था। ‘कारतूस’ पाठ के आधार पर कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
जाँबाज वज़ीर अली अत्यंत साहसी, पीर तथा पराक्रमी था। वह अवध के नवाब आसिफउद्दौला का बेटा था। वह जब स्वयं अवध के तख्त पर बैठा था, तो केवल पाँच महीने के शासन में ही उसने अवध के दरवार को अंग्रेज़ी प्रभाव से पूर्णतया मुक्त कर दिया था। उसके अंग्रेज़ विरोधी कार्यों को देखते हुए अंग्रेजों ने अपने षड्यंत्रों द्वारा उसे तख्त से हटाकर उसके पिता के भाई सआदत अली को नवाव घोषित कर दिया था। वज़ीर अली ने ऐसी विषम परिस्थितियों से भी हार नहीं मानी तथा वह सदैव अंग्रेज़ो को खदेड़ने के लिए प्रयत्न करता रा। वह लगातार अपने बहादुर सिपाहियों के साथ नेपाल की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहा था ताकि वहाँ पहँचकर वह अपनी शक्ति का विस्तार कर सके और अंग्रेजों को बाहर कर सके। व्याख्यात्मक हल: वज़ीर अली ऐसा देशभक्त था जो न केवल अंग्रेजों से नफरत करता था बल्कि उन्हें अपने देश से खदेड़ने के लिए अकेला ही उनकी आँखों में धूल झोंकने का साहस रखता था। अपने स्वाभिमान को ठेस पहुँचाए जाने पर उसने बेखौफ अंग्रेजी वकील का कत्ल किया और जंगलों में छुपता रहा। पूरी अंग्रेजी सेना उसे ढूंढने में असमर्थ थी। वह धीरे-धीरे अपनी ताकत बढ़ा रहा था। उसकी योजना यह थी कि अफगानिस्तान को भारत पर हमले के लिए आमंत्रित करें और उनके साथ मिलकर अंग्रेजों को अपने देश से जल्द से जल्द बाहर करे।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित दो प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लगभग 60 से 70 शब्दों में दीजिए – (4 × 1 = 4)
(क) मृगाक्षी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर के पद पर आसीन है। श्रेष्ठ संचालन व बहुमुखी प्रतिभा की धनी होने के साथ ही बुद्धिमानी से तथ्यों को सुलझाने और सभी कार्यों को व्यवस्थित करने में उसका कोई सानी नहीं। वह रात-दिन काम में जुटी रहती है। कंपनी के स्तर को बढ़ाने के लिए सदैव प्रयासरत रहती है। कुछ दिनों से उसके सिर में दर्द रहने लगा है तथा नींद भी ठीक से नहीं आती है। ज़रा-ज़रा सी बात में चिड़चिड़ापन होता है तथा अक्सर उदासी उसे घेरे रहती है। इसका क्या कारण हो सकता है? ‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’ पाठ में ‘झेन की देन’ हमें जो सीख प्रदान करती है, क्या वह मृगाक्षी के लिए सही साबित हो सकती है? स्थिति का मूल्यांकन करते हुए अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’ पाठ में ‘झेन की देन’ हमें जो सीख प्रदान करती है वह निश्चित रूप से मृगाक्षी के लिए सही साबित हो सकती है। झेन की देन में मानसिक रोग होने के विभिन्न कारणों में जीवन की अधिक रफ्तार, मानसिक तनाव, उच्च स्तर की प्रतिस्पर्धा आदि बताए गए हैं। अधिक से अधिक काम करना व कम समय में काम निपटाना ऐसे कारणों से ही मानसिक तनाव बढ़ जाता है। यह रफ्तार दिमाग को रुग्ण कर देती है। हम अकेलेपन के शिकार हो जाते हैं और स्वयं से बातें करते हैं, लगातार बड़बड़ाते रहते हैं। मृगाक्षी के साथ भी ऐसा ही हुआ और जीवन में संतुलन न होने से वह बीमार हो गई। झेन की देन में ‘टी-सेरेमनी’ के माध्यम से वर्तमान का महत्व एवं सुख-चैन व आराम की जिंदगी के विषय में बताया गया है।
भूतकाल एवं भविष्यत काल के मिथ्या होने को समझकर सहजता से जीते हुए कर्मरत रहकर, तनावरहित होकर हम स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकते हैं। व्याख्यात्मक हल: मृगाक्षी का बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर के पद पर आसीन रहते हुए अथक परिश्रम करना, बड़े-बड़े निर्णय लेना और आगे बढ़ने के लिए प्रयत्नशील रहना निस्संदेह उसे तनाव ग्रस्त कर रहा था। जिसका असर धीरे-धीरे उसके स्वभाव पर पड़ा। वह शारीरिक ही नहीं मानसिक रूप से भी अस्वस्थ रहने लगी। यही स्थिति मनोरुग्ण होने की स्थिति कहलाती है। पाठ झेन की देन में लेखक के मित्र ने जापान में बढ़ते मानसिक रोगों का भी यही कारण बताया है। जापानियों ने अपने जीवन की रफ्तार अत्यधिक बढ़ाई हुई है, इसका कारण जापान का अमेरिका से प्रतिस्पर्धा करना है।
वे एक महीने का काम एक दिन में करने के प्रयास में तनावग्रस्त रहते हैं और मानसिक रूप से रोगी हो जाते हैं। इसके उपाय के रूप में लेखक ने झेन परंपरा को अपनाने की बात कही है। जब लेखक उस परंपरा का हिस्सा बने, तब उन्होंने वर्तमान में जीने का अनुभव किया और यह महसूस किया कि हम अधिकांशतः भूत या भविष्य में ही जीते हैं। वे दोनों ही काल मिथ्या हैं। एक अभी आया नहीं और दूसरा बीत चुका है, दोनों पर ही हमारा अधिकार नहीं है। यदि हम वर्तमान में जीना सीख लें, तो शायद मृगाक्षी जैसे बहुत से लोग मानसिक रोग का शिकार होने से बच सकते हैं।
अथवा
(ख) दुनिया भर में असहिष्णुता लगभग आम हो गई है। जाति, धर्म, रंग और वैचारिक रूप से भिन्न दृष्टिकोण रखने वाले लोगों के प्रति असहिष्णुता की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। सहिष्णुता की परिभाषा पर विचार करें तो जिस विश्वास और प्रथा को हम पसंद नहीं करते उसमें बाधा डालने की बजाय संयम बरतना ही सहिष्णुता है।
कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने कहा, ‘अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।’ इस पंक्ति की सार्थकता व वर्तमान समय में इसका औचित्य स्थापित कीजिए।
उत्तरः
कवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी कविता ‘मनुष्यता’ के द्वारा मानव जाति को प्रेरित किया है। वे मानव को सहिष्णुता, परमार्थ, विश्वबंधुत्व करुणा, उदारता, धैर्य, सहयोग आदि गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। अधीर होकर भाग्यहीन होने से अच्छा है कि हम धैर्यवान बनें। मेलजोल, प्रेम व सौहार्द की भावना परस्पर होनी चाहिए तथा वैचारिक भिन्नता को बढ़ने नहीं देना चाहिए। हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तथा ईश्वर की प्राप्ति के लिए विभिन्न मार्गों को एक करके पारस्परिक मतभेदों को भुला देना चाहिए तथा तर्कों से परे ईश्वर के एक पंथ पर आगे बढ़ना चाहिए। परमात्मा का अस्तित्व सभी तर्कों से ऊपर है और हम सभी उनके अंश हैं। अतः इन सद्गुणों को अपनाते हुए मनुष्य को लोककल्याण पर बल देना चाहिए।
व्याख्यात्मक हलः
सहिष्णुता अर्थात् सहने की शक्ति को कभी एक मानवीय गुण माना जाता था किंतु आज परिस्थिति- वश धारणा बदलती जा रही है। सहनशीलता को कमजोरी मान लिया जाता है। जाति, धर्म, रंग और विचारों के स्तर पर भिन्नता होना स्वाभाविक है, किंतु एक दूजे को स्वीकार करना ही सामाजिक संगठन की नींव है। यदि सहिष्ण गुता समाप्त हो जाए तो यह भिन्नताएँ विरोध का कारण बन जाती हैं। परिणामस्वरूप दंगे-फसाद, लड़ाई-झगड़े खड़े होते हैं और देश और दुनिया का विकास रुक जाता है। कवि ‘मैथिलीशरण गुप्त’ ने ‘मनुष्यता’ कविता के अंतर्गत मनुष्य जीवन की सार्थकता इसी में बताई है कि हम मिलकर चलें। ‘अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हो सभी’ अर्थात् ऐसे मार्ग का चुनाव करें जिसमें आपसी मतभेद न हो। एकमत होकर सतर्क और सावधान रहें कि न विचारों में मतभेद है और न होगा। यदि होगा भी तो हम उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे। यदि गुप्त जी के इस संदेश को हम समझें और अपनाएँ तो दृष्टिकोण भिन्न होते हुए, बल्कि अलग-अलग विचारों को सकारात्मकता से अपनाते हुए, शांति व्यवस्था बनाए रखते हुए, विकास की राह पर आगे बढ़ सकते हैं। तभी देश, दुनिया और
मानवता का हित संभव हो पाएगा।
प्रश्न 3.
पूरक पाठ्यपुस्तक संचयन के तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए- (3 × 2 = 6)
(क) कल भी उनके यहाँ गया था, लेकिन न तो वह कल ही कुछ कह सके और न आज ही। दोनों दिन उनके पास मैं देर तक बैठा रहा, लेकिन उन्होंने कोई बातचीत नहीं की। जब उनकी तबीयत के बारे में पूछा तब उन्होंने सिर उठाकर एक बार मुझे देखा फिर सिर झुकाया तो दुबारा मेरी ओर नहीं देखा। हालाँकि उनकी एक ही नज़र बहुत कुछ कह गई। जिन यंत्रणाओं के बीच वह घिरे थे और जिस मन:स्थिति में जी रहे थे, उसमें आँखें ही बहुत कुछ कह देती हैं, मुंह खोलने की ज़रूरत नहीं पड़ती।
हरिहर काका की पंद्रह बीघे जमीन उनके लिए जी का जंजाल बन गई। कथन के आलोक में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तरः
हरिहर काका और लेखक के बीच बहुत ही मधुर एवं आत्मीय संबंध थे। लेखक गाँव में जिन लोगों का सम्मान करते थे, हरिहर काका उनमें से एक थे। हरिहर काका की आँखों में लेखक ने उस दुख को देखा जो रिश्तों की गर्माहट के भावों को नकारता हुआ तथा पाँव पसारती हुई, स्वार्थलिप्सा और धर्म की आड़ में फलने-फूलने का अवसर पा रही हिंसा प्रवृत्ति को उजागर करता है। ठाकुरबारी के महंत एवं हरिहर काका के भाइयों का एकमात्र उद्देश्य हरिहर काका की पंद्रह बीघे जमीन को हथियाना था। इसके लिए उन्होंने कई तरह के हथकंडे अपनाए और हरिहर काका पर बहुत जुल्म और अत्याचार किए। उनके विश्वास को ठेस पहुँचाई। ठाकुरबारी के महंत ने ज़बरदस्ती सादे कागज़ पर अंगूठे के निशान लिए, उन्हें मारा-पीटा तथा हाथ पाँव और मुँह बाँधकर कमरे में बदं कर दिया। हरिहर के भाइयों ने भी ऐसा ही किया। भौतिक सुखों की होड़, रिश्तों की अहमियत को औपचारिकता और आडंबर का जामा पहनाना इत्यादि के कारण हरिहर की पंद्रह बीघे ज़मीन उनके लिए जी का जंजाल बन गई थी।
व्याख्यात्मक हलः
‘हरिहर काका’ पाठ में गाँव के वृद्ध किसान की वह दशा दिखाई गई है जो कि भारत के ग्रामीण समाज में बहुत सामान्य है। एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति अपना जीवन जमीन-जायदाद और दौलत बनाने में लगा देता है। अपनी जरूरतों को कम करते हुए जो कुछ इकट्ठा करता है वही कभी-कभी उसके अहंकार का कारण बन जाता है। उसे रिश्तों से ज्यादा उन भौतिक वस्तुओं से सुरक्षा का भाव मिलता है। समाज और परिवार भी व्यक्ति को नहीं उसके धन-दौलत, जमीन-जायदाद को अधिक प्रेम करते हैं। जब लेखक छोटे थे तब हरिहर काका उनको खूब खिलाते थे, पिता जैसा दुलार देते थे। अपने मन की सभी बातें लेखक से करते थे। अब लेखक बड़े हो चुके थे। कई वर्ष बाद जब उनसे मिलने गए तो हरिहर काका मौन धारण कर चुके थे। उनकी जमीन ही उनके लिए जंजाल बन चुकी थी। सबकी नजर उस पर थी पर हरिहर काका उसका मोह त्याग नहीं पा रहे थे क्योंकि उन्हें लगता था वह जमीन ही उनके बुढ़ापे का सहारा है। यदि समय रहते वह अपनी ज़मीन का उचित बंटवारा कर देते, तो शायद रिश्तों में ऐसी कड़वाहट न आती।
(ख) लेखक गुरदयाल सिंह अपने छात्र जीवन में छुट्टियों के काम को पूरा करने के लिए योजनाएँ तैयार करते थे। क्या आप की योजनाएँ लेखक की योजनाओं से मेल खाती हैं? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए तरह-तरह की योजनाएँ बनाया करते थे; जैसे-हिसाब के मास्टर जी द्वारा दिए गए दो सौ सवालों को पूरा करने के लिए रोज़ दस सवाल निकाले जाने पर बीस दिन में पूरे हो जाएँगे, लेकिन खेल-कूद में छुट्टियाँ भागने लगतीं, तो मास्टर जी की पिटाई का डर सताने लगता फिर लेखक रोज़ के पंद्रह सवाल परे करने की योजना बनाते, तब उसे छुट्टियाँ भी बहुत कम लगने लगती और दिन बहुत छोटे लगने लगते तथा स्कूल का भय भी बढ़ने लगता। ऐसे में लेखक पिटाई से डरने के बावजूद उन लोगों की भाँति बहादुर बनने की कल्पना करने लगते, जो छुट्टियों का काम पूरा करने की बजाय मास्टर जी से पिटाई खाना ही अधिक बेहतर समझते थे। छात्र-छात्राएँ अपने मतानुसार अपनी योजनाओं का वर्णन करेंगे। व्याख्यात्मक हलः पाठ ‘सपनों के से दिन’ में लेखक ‘गुरदयाल सिंह’ ने अपने बचपन की खट्टी-मीठी यादों को हमारे साथ साझा किया है। अपने विद्यालय के दो अध्यापकों का उन्होंने विशेष रूप से जिक्र किया। एक ‘मास्टर प्रीतम चंद’ जो अत्यधिक अनुशासनप्रिय होने के कारण स्वभाव में कड़क थे।
दूसरे थे हेडमास्टर शर्मा जी’ जो बहुत ही विनम्र स्वभाव के थे। दोनों ही अध्यापक छात्रों को अपनी-अपनी तरह से प्रभावित करते हैं। इसके अतिरिक्त लेखक ने बताया कि जब खब सारा अवकाश कार्य मिलता था, तो उसे करने के लिए तरह-तरह की योजनाएँ बनाई जाती थीं। छुट्टियों का प्रारंभिक समय तो खेलते-कूदते बीत जाता। जब छुट्टियाँ समाप्त होने को होती तो काम की याद आती। तब वे ओमा नाम के छात्रों के एक नेता से प्रोत्साहित होते थे, जो अवकाश कार्य करने की तुलना में अध्यापकों की डांट-मार खाना अधिक सस्ता सौदा समझता था। छुट्टियों के काम को करने की मेरी योजनाएँ लेखक की योजनाओं से मेल नहीं खातीं। अब हमारे विद्यालय से बहुत अधिक काम नहीं मिलता, जो मिलता भी है वह बहुत ही रचनात्मक होता है, जिसे करने में मुझे मजा आता है। मेरी कोशिश यह होती है कि पहले मैं अपना काम खत्म करूँ और फिर छुट्टियों का मज़ा लूँ।
(ग) वह तो जब डॉक्टर साहब की जमानत जब्त हो गई तब घर में ज़रा सन्नाटा हुआ और टोपी ने देखा कि इम्तहान सिर पर खड़ा है। वह पढ़ाई में जुट गया। परंतु ऐसे वातावरण में क्या कोई पढ़ सकता था? इसलिए उसका पास ही हो जाना बहुत था।
“वाह!” दादी बोली, “भगवान नज़रे-बद से बचाए। रफ़्तार अच्छी है। तीसरे बरस तीसरे दर्जे में पास तो हो गए।….”
टोपी जहीन होने के बावजूद कक्षा में दो बार फेल हो गया। जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियों से हार मान लेना कहाँ तक उचित है? टोपी जैसे बच्चों के विषय में आपकी क्या राय है?
उत्तरः
जहीन (बुद्धिमान) होने के बावजूद भी टोपी नौवीं कक्षा में दो बार फेल हो गया। उसकी पारिवारिक परि स्थितियाँ उसकी पढ़ाई में बाधा उत्पन्न करती थीं। जब भी वह पढ़ने बैठता तो बड़े भाई या माँ को कोई काम याद आ जाता, जो सिर्फ वही कर सकता था। छोटा भाई उसकी कॉपियाँ खराब कर दिया करता था। दूसरे साल उसे टाइफाइड हो गया। डॉक्टर भृगु नारायण चुनाव के लिए खड़े हो गए और घर में चुनावी माहौल छा गया परंतु फिर उसने दृढ़ निश्चय किया कि वह किसी भी तरह परीक्षा पास ज़रूर करेगा और उसने कर दिखाया। सच्ची लगन और दृढ़ निश्चय से जो काम उसने तीसरे साल में किया उसे पहले साल में भी किया जा सकता था। परिस्थितियाँ सदैव हमारे अनुकूल नहीं होती परंतु उनका सामना करके कर्तव्यपथ पर बढ़कर ही हम लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।
व्याख्यात्मक हलः
पाठ ‘टोपी शुक्ला’ का मुख्य पात्र ‘बलभद्र नारायण शुक्ला’ का एकमात्र मित्र इफ्फन था। उसके साथ वह अपने मन की सभी बातें किया करता था। इफ्फन के पिता का तबादला होने पर टोपी बिल्कुल अकेला पड़ गया। इस अकेलेपन का प्रभाव इस कदर पड़ा कि वह पढ़ाई में पिछड़ता गया। अन्य परिस्थितियाँ भी ऐसी बनी कि वह लगातार दो साल फेल हो गया। ऐसा नहीं है कि टोपी ने हार मान ली किंतु या तो पढ़ने का मौका मिला ही नहीं या उसके स्वास्थ्य ने उसका साथ नहीं दिया। तीसरे बरस जब जी-जान से उसने कोशिश की तो वह पास हो गया। हर बच्चे के धैर्य और साहस का स्तर अलग-अलग होता है। बहुत से बच्चे प्रतिकूल परिस्थितियों में घबरा जाते हैं जबकि कुछ को वह परिस्थितियाँ और भी मजबूत बना देती हैं। यह सही है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में हार नहीं माननी चाहिए बल्कि उनसे सीख कर आगे बढ़ना चाहिए ताकि परिस्थितियों को अनुकूल बनाया जा सके।
खंड ‘ख’: लेखन
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर संकेत बिन्दुओं के आधार पर लगभग 150 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए
(क) आभासी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया
- आरंभ कब और कैसे
- लाभ-हानि, सावधानियाँ
- स्थिति से सामंजस्य
उत्तरः
- भूमिका – 1 अंक
- विषयवस्तु – 4 अंक
- भाषा – 1 अंक
व्याख्यात्मक हलः
तकनीक हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पदार्पण कर चुकी है। कोई भी कार्य चाहे वह घरेलू हो या व्यावसायिक, तकनीक हर जगह काम आ रही है और तेजी से उसका विस्तार हो रहा है। इसका एक मुख्य उदाहरण शिक्षण प्रक्रिया में भी नजर आ रहा है। एक दशक से अधिक का समय हो गया है जब विभिन्न स्तरों के छात्र प्रभावी शिक्षण पाने के लिए ई-शिक्षण का सहारा लेने लगे थे। किंतु पिछले दो वर्षों में कोरोना नाम की महामारी ने पूरे विश्व को इस कदर प्रभावित किया कि आभासी शिक्षण अर्थात ई-शिक्षण की प्रक्रिया को औपचारिक रूप से सभी को अपनाना पड़ा। जहाँ छात्रों को मोबाइल फोन इत्यादि से दूर रखने की कोशिश की जाती थी वहीं अभिभावकों व शिक्षकों ने उनके हाथों में मोबाइल और लैपटॉप पकड़ा कर उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित किया।
इसमें कोई संदेह नहीं कि इसका बहुत लाभ हुआ कि महामारी के दौर में भी शिक्षण प्रक्रिया रुकी नहीं। छात्र एक से दूसरी और दूसरी से तीसरी कक्षा में पदार्पण भी कर गए। किंतु वहीं अनेक हानियाँ भी देखने को मिली। छात्रों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, आभासी शिक्षण के नाम पर छात्रों ने अंतरजाल पर बहुत से आपत्तिजनक कार्य भी किए। आभासी शिक्षण को अधिक प्रभावी बनाने के लिए अभिभावकों को अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है। ऐसी परिस्थितियाँ आगे भी आ सकती हैं जब हमें आभासी शिक्षण का सहारा लेना पड़े, तो स्थिति में सामंजस्य बनाना आना चाहिए। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, इसी तरह से आभासी शिक्षण भी वरदान सिद्ध हो सकती है यदि छात्र धैर्य और विवेक के साथ इसका सदुपयोग करें।
अथवा
(ख) क्यों आवश्यक है सहनशीलता
- सहनशीलता का अर्थ
- इसकी आवश्यकता नैतिक मूल्य एवं सुखद जीवन
उत्तरः
व्याख्यात्मक हल:
मनुष्य जीवन को सफल और सार्थक बनाने के लिए कुछ नैतिक मूल्यों को आत्मसात करना आवश्यक होता है। इसमें दया, करुणा, परोपकार, सहृदयता, सहानुभूति और सहनशक्ति जैसे गुण आते हैं। यदि गहराई से देखा जाए तो यह सभी गुण एक-दूसरे के पूरक हैं। इनमें से कोई एक गुण भी हम पूरी तरह ग्रहण कर लें तो अन्य गुण अपने आप विकसित होते चले जाते हैं। जैसे यदि हम अपने व्यक्तित्व में सहनशीलता अर्थात् सहन करने की शक्ति ले आते हैं तो हमें किसी का भी स्वभाव या किसी प्रकार की भिन्नताएँ व्यथित नहीं करेंगी। हमारे प्रति किसी व्यक्ति, जाति अथवा समूह का बर्ताव कैसा भी हो, हमारे मन में सभी के प्रति दया और परोपकार की भावना बनी रहेगी। इस प्रकार हम सभी विकारों से दूर रह पाएँगे। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सहनशीलता सभी नैतिक मूल्यों का आधार है। इसके अभाव में नैतिक मूल्य विकसित नहीं हो सकते और नैतिक मूल्यों के अभाव में एक सुखी जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।
अथवा
(ग) मेरे सपनों का भारत
- कैसा है?
- क्या अपेक्षा है
- आपका कर्तव्य
उत्तरः
व्याख्यात्मक हल:
लगभग प्रत्येक व्यक्ति सुखी और समृद्ध जीवन जीना चाहता है। उसकी इस कामना का पूरा होना बहुत-सी बातों पर निर्भर करता है। उसकी मेहनत, आत्मविश्वास, धैर्य आदि के साथ-साथ उसका जीवन उसके देश व समाज के वातावरण से भी प्रभावित होता है। यदि देश सुखी व समद्ध है तो उसका प्रभाव व्यक्ति पर और व्यक्ति की समृद्धि का प्रभाव देश पर अवश्य पड़ता है। मैं भारत का नागरिक होने के नाते एक ऐसे भारत का सपना देखता हूँ जहाँ कोई भूखा न सोए, पीने को शुद्ध पानी, सांस लेने के लिए शुद्ध हवा मिल सके। सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति मिले, सभी को समान दृष्टि से देखा जाए। विश्व में भारत का नाम सम्मान से लिया जाए। मैं जानता हूँ कि ऐसे भारत के सपने को साकार करने के लिए सबको मिलकर प्रयास करना है। यदि नैतिक मूल्यों को हम जीवन में अपनाएँगे तो न केवल हमारा निजी जीवन बल्कि सम्पूर्ण समाज व देश के उज्ज्वल भविष्य का सपना, साकार होगा एक सच्चे देशवासी का सपना।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित आप शौर्य/शारवी हैं। आपने अपने लिए ऑनलाइन पुस्तकें खरीदी थीं। रुपये जमा हो गए परंतु पुस्तकें प्राप्त नहीं हो सकीं। इस बात की शिकायत करते हुए संबंधित अधिकारी को लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए। (5)
उत्तरः
- आरंभ और अंत की औपचारिकताएं – 1 अंक
- विषयवस्तु – 3 अंक
- भाषा – 1 अंक
व्याख्यात्मक हलः
परीक्षा भवन
नई दिल्ली
दिनांक ……….
क ख ग पुस्तक भंडार,
नई दिल्ली
विषय : पुस्तकें प्राप्त न होने की शिकायत
महोदय,
मैं शारवी, दिल्ली विकासपुरी की निवासी हूँ। गत माह मैंने आपके ऑनलाइन स्टोर से दो पुस्तकें पसंद करके मंगवाई थीं। पुस्तकें मुझ तक लगभग 4 दिन के अंदर पहुँचने का दावा किया गया था। आज 12 दिन हो गए हैं, मुझे पुस्तकें प्राप्त नहीं हुई हैं।
मैंने आपके संबंधित अधिकारी से फोन पर बात की। हर बार उसने मुझे यही आश्वासन दिया कि पुस्तकें जल्दी मुझ तक पहुँच जाएँगी। किंतु ऐसा न होने पर मुझे आपको यह पत्र लिखना पड़ रहा है। पुस्तकों का विवरण इस प्रकार है –
विषय – विज्ञान और हम, सामान्य ज्ञान
लेखक-के. के. सिंघ
कीमत- ₹400, ₹600
मुझे आशा है कि आप उन पुस्तकों का मुझ तक पहुँचने का संभावित समय ठीक-ठीक बताएँगे और अपनी ऑनलाइन बिक्री की छवि को खराब नहीं होने देंगे।
भवदीया
शारवी
अथवा
आप सृष्टि/सार्थक हैं। बंगलुरु से चेन्नई शताब्दी एक्सप्रेस में यात्रा करते समय आपका कीमती सामान वाला बैग जल्दबाजी में गाड़ी में ही रह गया। आपके द्वारा की गई शिकायत से आपको अपना बैग वापस मिल गया। प्रबंधन की प्रशंसा करते हुए किसी समाचार पत्र के संपादक को लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए।
उत्तरः
- आरंभ और अंत की औपचारिकताएँ
- विषयवस्तु
- भाषा
व्याख्यात्मक हल:
परीक्षा भवन
नई दिल्ली
दिनांक……..
रेल अधिकारी
दक्षिणी भारत
बेंगलुरु क्षेत्र
विषय : रेलगाड़ी में छूटा सामान मिल जाने की सराहना
आदरणीय महोदय,
मैं चेन्नई निवासी 15 दिसंबर, 2021 को आपकी रेलगाड़ी से बंगलुरु से चेन्नई आ रही थी। रात का सफर था। सुबह पहुँचने पर मैं जल्दबाजी में अपना बैग, जिसमें कीमती वस्तुओं के साथ-साथ कुछ जरूरी कागजात भी थे, वहीं भूल गई थी। घर पहुँचने पर मुझे पता चला तो मैंने तुरंत आपके रेल विभाग के अधिकारी पी. के. शर्मा जी को सूचित किया। उन्होंने मेरी समस्या को गंभीरता से लिया और मुझे आश्वस्त किया कि वे अवश्य ही मेरी मदद करेंगे।
अगले ही दिन साएं 7:00 बजे मेरे पास सूचना आ गई कि मेरा बैग मिल गया है और चेन्नई रेलवे स्टेशन बैग सुरक्षित रख लिया गया है। अपने पहचान पत्र के साथ पहुँचने का मुझे निर्देश दिया गया। आपके विभाग के के. पी. शर्मा जी के साथ-साथ अन्य सदस्यों का मैं धन्यवाद करती हूँ। मुझे इस बात खुशी है कि हमारे देश के रेल विभाग में इतने ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारी कार्यरत हैं।
धन्यवाद
भवदीया
सृष्टि
प्रश्न 6.
(क) आप निवासी कल्याण संघ (रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन) के अध्यक्ष रमेश सुब्रमण्यम हैं। अपने क्षेत्र के मुख्य पार्क में आयोजित होने वाले योग-शिविर के विषय में जानकारी देते हुए लगभग 50 शब्दों में एक सूचना तैयार कीजिए। (2½)
उत्तरः
- औपचारिकताएँ – ½ अंक
- विषयवस्तु – 1½ अंक
- भाषा – ½ अंक
व्याख्यात्मक हलः
निवासी कल्याण संघ
दिनांक ……….
सूचना
योग शिविर का आयोजन
(पहला सुख निरोगी काया)
क्षेत्र के सभी निवासियों को सूचित करते हुए मुझे हर्ष हो रहा है कि एक बार फिर हमारे क्षेत्र में| योग शिविर का आयोजन होने जा रहा है, जिसका|
विवरण इस प्रकार है
स्थान- मुख्य पार्क
दिनांक- 20 जनवरी से 27 जनवरी
समय- प्रातः 6 से 8 बजे, सायं 6 से 8
विभिन्न आयु वर्ग के लोगों को ध्यान में रखते हुए शिविर को चार समूहों में विभाजित किया गया है।
पहला-4 वर्ष से 10 वर्ष के बच्चे
दूसरा- 11 से 18
तीसरा- 19 से 40
चौथा- 50 व उससे ऊपर अधिक से
अधिक लोग शिविर का लाभ उठाएँ। कोविड नियमों का पालन करना न भूलें।
15 जनवरी तक अपना नामांकन हस्ताक्षरकर्ता को अवश्य करवाएँ।
धन्यवाद
अध्यक्ष
सुब्रमण्यम
अथवा
आप साहित्य संघ की सचिव सुपरना चक्रवर्ती हैं। आपके क. ख. ग. विद्यालय में वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित होने वाली है। इसके लिए
एक सूचना लगभग 50 शब्दों में तैयार कीजिए।
उत्तरः
- औपचारिकताएँ
- विषयवस्तु
- भाषा
व्याख्यात्मक हलः
क ख ग विद्यालय
सूचना
वाद विवाद प्रतियोगिता
सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि विद्यालय में हिंदी वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन होने वाला है। संबंधित मुख्य जानकारी इस प्रकार है
स्थान- विद्यालय का सभागार
दिनांक- 30 जनवरी
समय- प्रात: 9:00 बजे से 12:00 बजे
विषय :
कनिष्ठ वर्ग-महामारी से मजदूर वर्ग पर सबसे अधिक मार।
वरिष्ठ वर्ग-सबसे गंभीर वैश्विक समस्या प्रदूषण ही है।
प्रतियोगिता में भाग लेने के इच्छुक छात्र अपनी हस्ताक्षरकर्ता को 20 जनवरी तक नामांकन अवश्य कराएँ। प्रतियोगिता से संबंधित आवश्यक दिशा निर्देशों की सूची नामांकन के समय दे दी जाएगी।
धन्यवाद
साहित्य संघ सचिव
सुपरना चक्रवर्ती
(ख) आप कक्षा दसवीं के लिओनार्ड/बर्नडैट हैं। विद्यालय के बॉस्केटबॉल मैदान में आपको एक घड़ी मिली है। इससे संबंधित सूचना विद्यालय के सूचनापट्ट के लिए तैयार कीजिए। जिससे घड़ी खोने वाला छात्र उसे प्राप्त कर सके। यह सूचना लगभग 50 शब्दों में तैयार कीजिए। (2½)
उत्तरः
- औपचारिकताएँ
- विषयवस्तु
- भाषा
व्याख्यात्मक हलः
क ख ग विद्यालय
सूचना
खेल के मैदान में मिली है एक घड़ी।
सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि विद्यालय के बास्केटबॉल खेल के मैदान में एक घड़ी पाई गई है, जिसका विवरण दिया जा रहा है
रंग- काला
कंपनी- जी शौक
आकार- चौकोर, लगभग नवीं या दसवीं के छात्रों के अनुरूप जिस किसी की भी वह घड़ी हो, हस्ताक्षरकर्ता के पास दो दिन के भीतर दोपहर 9 से 10 के बीच में आ जाएँ। उसकी कुछ पहचान बताएँ और अपनी घड़ी लेकर जाए।
धन्यवाद
बर्नडैट
छात्र, कक्षा दसवीं
अथवा
आप अपने विद्यालय में इको क्लब के अध्यक्ष हैं। पर्यावरण दिवस के लिए आप विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहते हैं। इको क्लब के सभी सदस्यों की सभा इसी संदर्भ में आयोजित करने के लिए विद्यालय के सूचनापट्ट के लिए एक सूचना-पत्र लगभग 50 शब्दों में तैयार कीजिए।
उत्तरः
- औपचारिकताएँ
- विषयवस्तु माना है।
- भाषा
व्याख्यात्मक हलः
क ख ग विद्यालय
सूचना
पर्यावरण दिवस पर विशेष कार्यक्रमों का आयोजन सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि विद्यालय में हर वर्ष की तरह पर्यावरण दिवस के अवसर पर कुछ विशेष कार्यक्रम आयोजित करने पर विचार किया जा रहा है।
इस संदर्भ में इको क्लब के सभी सदस्यों को विशेष रुप से सूचित किया जाता है कि 20 जनवरी प्रातः 9:00 बजे विद्यालय के द्वितीय तल के हाल में सभा हेतु एकत्रित हो। आयोजन को अधिक से अधिक प्रभावी तथा मनोरंजक बनाने के लिए सभी के सुझाव अपेक्षित हैं।
धन्यवाद
इको क्लब अध्यक्ष
प्रश्न 7.
(क) स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए सरकार की ओर से एक विज्ञापन लगभग 50 शब्दों में तैयार कीजिए। (2½)
उत्तरः
विषयवस्तु का काम
व्याख्यात्मक हलः
स्वच्छता ही स्वास्थ्य की जननी है।
वातावरण को स्वच्छ रखें
देश को स्वस्थ रखें
एक कदम स्वच्छता की ओर
आओ मिलकर कदम बढ़ाएँ
देश से बीमारी भगाएँ
जब होगा देश का हर नागरिक स्वच्छ और स्वस्थ
तभी होगा देश तंदुरुस्त
सरकार की ओर से एक अनोखी पहल देश के प्रत्येक राज्य का स्वच्छता सर्वेक्षण 1 जनवरी, 2022 से 10 जनवरी, 2022 तक बेहतरीन 3 राज्य स्वच्छता के आधार पर 26 जनवरी को पुरस्कृत होंगे।
अथवा
आपके विद्यालय में एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया है जिसमें हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा जी विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित हैं। इसका प्रचार-प्रसार करने के लिए लगभग 50
शब्दों में विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तरः
व्याख्यात्मक हलः
खुशखबरी..
हास्य योग का सुनहरा अवसर
क ख ग विद्यालय में 23 जनवरी को सप्रसिद्ध हास्य कवि ‘सुरेंद्र शर्मा’ जी पधार रहे हैं… क्या आप अपने मन को गुदगुदाना चाहते हैं व्यक्ति और समाज की चुलबुली का मजा लेना चाहते हैं तो याद रखिए दिन 23 जनवरी 2022 समय 4:00 से 6:00
सुरेंद्र शर्मा जी को सुनिए –
चलिए एक दिन हंसी के नाम करिए ऑनलाइन नामांकन विद्यालय की वेबसाइट पर 15 जनवरी तक करना आवश्यक
(ख) आपके क्षेत्र में निवासी कल्याण संघ (रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन) द्वारा एक पुस्तकालय तैयार किया गया है जिसमें प्रत्येक आयु वर्ग के लिए पुस्तकें उपलब्ध हैं। इसके प्रचार-प्रसार के लिए लगभग 50 शब्दों में विज्ञापन तैयार कीजिए। (2½)
उत्तरः
व्याख्यात्मक हलः
निवासी कल्याण संघ
विकासपुरी की ओर से बच्चे, युवा व वृद्ध
सभी लिए के लिए खुशखबरी…
हर उम्र हर वर्ग के लोगों के लिए
एक भव्य पुस्तकालय खुलने जा रहा है
पुस्तकालय का समय
प्रात: 7:00 बजे से सायं 7:00 बजे लगभग 2,000 पुस्तकों का विभिन्न भाषाओं में समावेश छोटे बच्चों के लिए तथा वृद्धों के लिए
बैठने का विशेष आकर्षक स्थान
सदस्य बनने के लिए शुल्क मात्र ₹100 प्रतिमाह | एक समय में एक ही पुस्तक घर ले जाई जा सकती है। पुस्तकालय में बैठने के लिए समय की कोई पाबंदी नहीं..
पुस्तकालय के सभी नियमों का पालन करना | अनिवार्य। जानकारी के लिए संपर्क कीजिए…
अथवा
आपकी कक्षा को विद्यालय के मेले के लिए हस्तर्निमित सामग्री और चित्रों की प्रदर्शनी लगानी है। अपनी प्रदर्शनी के लिए लगभग 50 शब्दों में एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तरः
व्याख्यात्मक हलः
रंग बिरंगे प्यारे प्यारे
हस्त निर्मित चित्र हमारे
क ख ग विद्यालय
समय 7 से दोपहर 1 बजे
स्थान विद्यालय का प्रांगण
कक्षा दसवीं की प्रदर्शनी विभाग संख्या 20 आइए और विद्यार्थियों की कला को सराहिए आपका प्रोत्साहन किसी विद्यार्थी को जीवन की नई दिशा दे सकता है.
प्रश्न 8.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर लगभग 120 शब्दों में लघुकथा लिखिए
परोपकार का परिणाम
उत्तरः
- विषयवस्तु – 2
- प्रस्तुति – 2
- भाषा – 1
व्याख्यात्मक हलः
परोपकार का परिणाम परोपकार का परिणाम सदा अच्छा ही होता है, कर भला तो हो भला; ऐसी बातों से मुझे स्वार्थ की गंध आती थी। यदि हम पूर्ण नि:स्वार्थ भाव से किसी की मदद कर रहे हैं तो उसमें यह भाव नहीं आना चाहिए कि बदले में हमारा भी भला होगा। यही सोच रखते हुए करोना काल में मैंने अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर लोगों की मदद करने का प्रयास किया। हम 10 मित्रों ने अपने परिवार की मदद से अपने नंबर जन-जन तक पहुँचाए कि यदि कोई परिवार कोरोना से पीड़ित है तो उन्हें दवाइयाँ और खाना मुफ्त हम उनके घर में पहुँचाएँगे। हमारे इस प्रयास में हमें आशातीत सफलता प्राप्त हुई। बहुत से अनुभव देकर गई यह प्रथम लहर।
इसके पश्चात धीरे-धीरे सब सामान्य होने लगा। हम सब भी पढ़ने के लिए विदेश चले गए जोकि कोरोना के कारण स्थगित हो चुका था। हम वहीं थे कि दूसरी लहर ने फिर अपना कहर बरसाया। पढ़ाई में बहुत व्यस्त होने के कारण कई-कई दिनों तक घर पर ठीक से बात भी नहीं हो पाई। परीक्षा समाप्त करने के बाद जब घर लौटे तो जो सामने आया वह आश्चर्यजनक था। हमारी अनुपस्थिति में हमारा पूरा परिवार कोरोना से पीड़ित हो गया था। आसपास के लोगों ने मिलकर उन्हें अस्पताल दाखिल करवाया, उनके खाने-पीने और हर तरह का ख्याल रखा। अब सब बिल्कुल ठीक थे।
मुझे वही बात याद आई जिसको मैं कभी बहुत पसंद नहीं करती थी कि परोपकार का परिणाम अच्छा ही होता है।
अथवा
अपूर्व संतोष
उत्तरः
व्याख्यात्मक हलः
अपूर्व संतोष
माँ जरा मेरा बैग पकड़ा दो… माँ मुझे भूख लगी मिल रही है, जरा ढूंढ दो… यह बातें शायद हर घर में होती है। मैं भी हर काम के लिए माँ पर निर्भर करती थी और माँ भी खुशी-खुशी मेरे सारे काम दौड़ती भागती करती थी। कुछ दिन से मैं महसूस कर रही थी कि जैसे-जैसे मैं बड़ी होती जा रही हूँ, माँ मेरी माँगों को कभी-कभी अनदेखा करने लगी है। इस कारण मैं थोड़ी चिड़चिड़ाया करती थी। कभी भी न सोचा कि माँ को भी आराम चाहिए, वह भी बीमार हो सकती है, वह भी थकती होंगी। पर वक्त ने मुझे इस बात का एहसास करा दिया। एक दिन स्कूल से मैं घर पहुँची और रोज़ की तरह आवाज लगाई ‘माँ, क्या बनाया है बहुत भूख लगी है।’ कोई आवाज नहीं आई। मेरी आवाज थोड़ी तेज़ हुई, थोड़े पैर पटकते हुए मैं अंदर गई। रसोईघर के पास पहुँची, पर माँ तो वहाँ थी ही नहीं।
आवाज लगाते हुए अंदर गई तो देखा माँ रजाई ओढ़ कर लेटी हैं। ऐसा मैंने पहली बार देखा था। करीब गई, पूछा क्या हुआ, आज खाना नहीं बनाया? पर माँ का चेहरा लाल था, मैंने हाथ लगाया तो वह बहुत गर्म थी। मैं बहुत घबरा गई, क्या करूँ कुछ समझ नहीं आया। सबसे पहले माँ का बुखार देखा, पानी गर्म करके दिया। रसोईघर में जाकर देखा, सब्जी बनी हुई थी। जैसे तैसे मैंने अलग-अलग आकृति की रोटियाँ बनाईं और अपने हाथ से माँ को खिलाईं। दवा दी, शाम तक माँ थोड़ी ठीक थी। मैंने सोच लिया था कि आज शाम का खाना मैं ही बनाऊँगी। माँ से पूछ-पूछ कर सब्जी बनाई, माँ पिताजी को अपने हाथ का बना हुआ खाना खिलाया। उनके चेहरे पर जो मुस्कान थी, उसने मुझे अपूर्व संतोष का एहसास कराया।
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